इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 4

नर्सिंग होम मालिकों ने रची साजिश

इधर अनुज महतो अविनाश के किसी भी मकसद को और पनपने देना नहीं चाहता था क्योंकि वह उस के लिए बेहद खतरनाक बन चुका था.

पहले रची योजना के मुताबिक 9 नवंबर, 21 को अनुज महतो ने रात 9 बज कर 58 मिनट पर पूर्णकला देवी से अविनाश को फोन करवाया और एक अहम जानकारी देने के लिए उसे अपने नर्सिंग होम बुलवाया. नर्स पूर्णकला देवी ने वैसा ही किया जैसा मालिक ने उसे करने को कहा.

नर्स पूर्णकला देवी का फोन आने के बाद अविनाश उस से मिलने फोन पर बात करते हुए अपने औफिस से पैदल ही निकल गया और अपनी बाइक वहीं छोड़ गया था. उसी समय उस की मां संगीता जब खाना खाने के लिए उसे बुलाने पहुंची तो औफिस खुला देख समझा कि यहीं कहीं बाहर गया होगा, आ जाएगा. फिर वह वापस घर लौट आई थीं.

इधर फोन पर बात करता हुआ अविनाश थाना बेनीपट्टी से 400 मीटर दूर कटैया रोड पहुंचा, जहां एक कार उस के आने के इंतजार में खड़ी थी. कार में नर्स पूर्णकला देवी सवार थी. अविनाश को देखते ही उस ने पीछे का दरवाजा खोल कर उसे बैठा लिया.

फिर वहां से सीधे अनुराग हेल्थकेयर सेंटर पहुंची, जहां पहले से घात लगाए सब से आगे वाले कमरे में अनुज महतो बैठा था. उसी कमरे में उस ने लकड़ी का मूसल भी छिपा कर रखा था, जबकि पूर्णकला ने अनुज महतो के चैंबर में लाल मिर्च का पाउडर और एक पैकेट कंडोम रखा था.

अविनाश को साथ ले कर वह सीधा चैंबर में पहुंची, जहां उस ने उपर्युक्त सामान छिपा कर रखा था. खाली पड़ी एक कुरसी पर उसे बैठने का इशरा कर भीतर कमरे में गई और जब लौटी तो उस के हाथ में पानी भरा कांच का गिलास था.

उस ने पानी अविनाश की ओर बढ़ा दिया. अविनाश ने पानी भरा गिलास नर्स के हाथों से ले कर जैसे ही अपने होठों से लगाया, फुरती से मिर्च पाउडर पूर्णकला ने उस की आंखों में झोंक दिया. मिर्च की जलन से अविनाश के हाथ से कांच का गिलास छूट कर फर्श पर गिर पड़ा और खतरे को भांप कर अविनाश आंखें मलता हुआ बाहर की ओर भागा.

तब तक मूसल ले कर कमरे में पहले से घात लगाए बैठा अनुज महतो बाहर निकला और उस के सिर पर पीछे से मूसल का जोरदार वार किया. वार इतना जोरदार था कि वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. तब तक वहां रोशन, बिट्टू, दीपक, पवन और मनीष भी आ पहुंचे.

फर्श पर गिरे अविनाश की सांसों की डोर अभी टूटी नहीं थी. वह बेहोश हुआ था. फिर उसे खींचकर चैंबर में ले जाया गया. वहां अस्पताल की चादर से अविनाश का गला तब तक दबाया गया, जब तक उस का बदन ठंडा नहीं पड़ गया. इस के बाद अनुज महतो पांचों की मदद से एक बोरे में अविनाश की लाश भर कर जिस कार से आया था, उसी कार की डिक्की में छिपा कर औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के जंगल में फेंक कर फरार हो गए.

2 दिनों बाद जब अविनाश की खोज जोर पकड़ी तो अनुज महतो सहित सभी घबरा गए कि कहीं उस की लाश बरामद न हो जाए, नहीं तो सब के सब पकड़े जाएंगे. बुरी तरह परेशन अनुज महतो 11 नवंबर की रात अपनी बाइक ले कर उड़ने चौर थेपुरा पहुंचे, जहां अविनाश की लाश फेंकी थी. उस की लाश अभी वहीं पड़ी थी. फिर क्या था, उस ने बोरे के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी और अपनी बाइक थेपुरा गांव में छोड़ कर फरार हो गया.

अपने दुश्मन अविनाश को रास्ते से हटाने के बाद अनुज महतो ने जो फूलप्रूफ योजना बनाई थी, वह फेल हो गई और आरोपी कानून के मजबूत फंदों से बच नहीं सके. वह असल ठिकाने पहुंच गए. अनुज महतो कथा लिखने तक फरार चल रहा था.

पुलिस ने नर्स पूर्णकला देवी की निशानदेही पर अनुराग हेल्थकेयर सेंटर से मिर्च से भरी डिब्बी, कंडोम का पैकेट, खून से सनी चादर और मूसल बरामद कर लिया था. जांचपड़ताल में यह पता चली थी कि अविनाश और नर्स पूर्णकला देवी के बीच मधुर संबंध थे. ये मधुर संबंध भी अविनाश की हत्या का एक वजह बनी थी.

अविनाश की हत्या के मुख्य आरोपी अनुज महतो, जो फरार चल रहा था, ने पुलिस के दबाव में आ कर 21 जनवरी, 2022 को व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां पुलिस ने 48 घंटे की रिमांड पर ले कर उस से हत्या की जानकारी जुटाई और फिर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पत्रकार अविनाश के सभी आरोपी जेल की सलाखों के पीछे कैद अपनी करनी पर पछता रहे थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

क्रूरता की इंतिहा

जमाना कितना भी आगे बढ़ गया हो, देश में कितना ही तकनीकि विकास हो गया हो, लोग चाहे कितने ही शिक्षित बन गए हों पर कुछ लोग अपनी मानसिकता से अंधविश्वासी बने हुए हैं. इसीलिए गलीनुक्कड़ पर दुकान जमाए बैठे नीमहकीम, मुल्लामौलवी और तांत्रिक उन्हें अब भी चंद पैसों के लिए अपने जाल में फंसा ही लेते हैं.

ये लोग अंधविश्वासी लोगों का न केवल शोषण करते हैं बल्कि कभीकभी उन के हाथों ऐसा अपराध करवा देते हैं, जिस की वजह से उन्हें अपनी सारी जिंदगी सलाखों के पीछे काटनी पड़ती है. हाल ही में पंजाब की एक महिला तांत्रिक ने एक महिला को अपने सम्मोहन के जाल में फांस कर ऐसा जघन्य अपराध करा दिया, जिसे सुन कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं.

पंजाब में थाना सदर बटाला के अंतर्गत एक गांव है काला नंगल. 32 वर्षीय बलविंदर सिंह उर्फ बिंदर अपनी 27 वर्षीय पत्नी जसबीर कौर के साथ इसी गांव में रहता था. वैसे बलविंदर सिंह मूलरूप से अमृतसर के गांव अकालगढ़ दपिया का निवासी था. लेकिन अपनी शादी के बाद वह अपनी पत्नी को साथ ले कर अपनी ननिहाल काला नंगल में रहने लगा था.

इस गांव में उस के नाना गुरनाम सिंह, मामा संतोख सिंह और बड़ा मामा जगतार सिंह रहते थे. उस के ननिहाल वाले कोई अमीर आदमी नहीं थे. बस मेहनतमजदूरी कर अपना परिवार चलाने वाले लोग थे. बिंदर भी उन के साथ खेतों में मेहनतमजदूरी करने लगा. बिंदर के मामा के साथ उन की पत्नियां भी खेतों में काम करने जाया करती थीं. ताकि घर में ज्यादा पैसे आए. उन के देखादेखी बिंदर की पत्नी भी उन के साथ काम करने जाती थी.

बिंदर के पड़ोस में पूर्ण सिंह का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी जोगिंदर कौर के अलावा बेटा हरप्रीत सिंह, उस की पत्नी रविंदर कौर, बेटी नीतू अमन और राजिंदर कौर थीं. हालांकि नीतू और राजिंदर कौर दोनों ही शादीशुदा थीं पर वह अधिकतर अपने मायके में ही डेरा जमाए रहती थीं. ये सब लोग उन्हीं के खेतों के साथ वाले खेत में काम करते थे, जिस में बिंदर और उस के मामामामी काम किया करते थे, यह भी कहा जा सकता है कि ये दोनों परिवार साथसाथ काम करते थे.

27 अप्रैल, 2019 की बात है. सुबह के लगभग 11 बजे का समय था. कुछ लोग उस समय खेतों में काम पर लगे हुए थे तो कुछ लोग पेड़ों के नीचे बैठे सुस्ता रहे थे.

बिंदर का मामा संतोख सिंह, उस की पत्नी कंवलजीत कौर, मामा जगतार सिंह और बिंदर की पत्नी जसबीर कौर साथ बैठे इधरउधर की बातें कर रहे थे कि उन के बीच बैठी जसबीर कौर अचानक गायब हो गई.

उन लोगों ने सोचा शायद वह लघुशंका के लिए गई होगी और किसी ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया. सब अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए थे. शाम के 5 बजे यानी छुट्टी का समय हो गया पर तब तक जसबीर कौर किसी को दिखाई नहीं दी. अब पूरे परिवार को चिंता ने घेर लिया कि आखिर सब के बीच जसबीर कहां गायब हो गई. जसबीर कौर इन दिनों गर्भवती थी. उसे सातवां महीना चल रहा था.

सब ने मिल कर सोचा कि कहीं तबीयत खराब होने के कारण वह घर तो नहीं चली गई. घर पहुंचने पर पता चला कि वह वहां भी नहीं थी. उसे फिर पूरे गांव में ढूंढा गया पर उस का कहीं पता नहीं चला.

जसबीर के मायके और अन्य रिश्तेदारियों में भी उसे तलाशा गया. कुल मिला कर रातभर की खोज के बाद भी जसबीर का कहीं सुराग नहीं लगा. अगली सुबह 28 अप्रैल को सब लोगों ने थाना सदर बटाला जा कर जसबीर कौर के रहस्यमय तरीके से लापता होने की सूचना दी. पुलिस ने जसबीर कौर का फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी.

जसबीर कौर के लापता होने की वजह किसी की समझ में नहीं आ रही थी, क्योंकि न तो वो पैसे वाले लोग थे जो कोई फिरौती के लिए उस का अपहरण करता और न ही जसबीर कौर चालू किस्म की औरत थी. वह बेहद शरीफ औरत थी.

सरपंच परजिंदर सिंह और साबका सरपंच नवदीप सिंह भी यही सोचसोच कर हैरान थे. पुलिस और बिंदर के परिजन अपनेअपने तरीके से जसबीर की तलाश में जुटे  थे. इसी दौरान किसी ने सरपंच नवदीप सिंह और बिंदर को बताया कि जसबीर के गायब होने वाले दिन यानी 27 अप्रैल को उसे पूर्ण सिंह की पत्नी जोगिंदर कौर और पड़ोसन राजिंदर कौर के साथ उन के घर की तरफ जाते देखा गया था.

इस बात का पता चलते ही सरपंच नवदीप सिंह कुछ गांव वालों के साथ पूर्ण सिंह के घर पहुंचे और जसबीर के बारे में पूछा.

उस समय घर पर पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटा गुरप्रीत, उस की बहू रविंदर कौर और दोनों बेटियां नीतू व राजिंदर कौर मौजूद थीं. उन्होंने बताया कि जसबीर कौर दोपहर को उन के घर आई तो जरूर थी पर 3 बजे वापस अपने घर चली गई थी. जसबीर कौर का पता लगने की जो आशा दिखाई दे रही थी वह जोगिंदर कौर के बताने से बुझ गई थी.

जसबीर की तलाश फिर से शुरू की गई. पर न जाने क्यों सरपंच नवदीप को ऐसा लगने लगा कि जसबीर के गायब होने का राज पूर्ण सिंह और उस का परिवार जानता है. यही बात बिंदर और उस के दोनों मामाओं को भी खटक रही थी. आखिर 29 अप्रैल, 2019 को शाम को सरपंच नवदीप और परजिंदर  के साथ पूरे गांव ने पूर्ण सिंह के घर पर धावा बोल दिया.

उन्होंने उस के घर के चप्पेचप्पे की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उन्हें घर में एक जगह बड़ा संदूक दिखाई दिया. वह संदूक कमरों के पीछे पशुओं के बाड़े के पास पड़ा था. संदूक पर मक्खियां भिनभिना रही थीं और उस में से अजीब सी दुर्गंध आ रही थी.

सरपंच नवदीप ने बढ़ कर जब उस संदूक को खोल कर देखा तो उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. संदूक में जसबीर कौर की लाश थी जो जगहजगह से कटी हुई थी. थोड़ी ही देर में यह खबर गांव भर में फैल गई. पूरा गांव पूर्ण सिंह के घर की ओर दौड़ने लगा.

बिंदर ने सरपंच नवदीप सिंह के साथ थाना बटाला जा कर इस की सूचना एसएचओ हरसंदीप सिंह को दी. एसएचओ तुरंत एएसआई बलविंदर सिंह, सितरमान सिंह, लेडी एएसआई अंजू बाला, लेडी हवलदार जसविंदर कौर, बलजीत कौर, हवलदार दिलबाग, सुखजीत सिंह, लखविंदर सिंह, सिपाही जगदीप सिंह और सुखदेव सिंह को साथ ले कर पूर्ण सिंह के घर पहुंच गए.

मौके पर पहुंच कर पुलिस ने सब से पहले जसबीर कौर की लाश अपने कब्जे में ली. इस के बाद पूर्ण सिंह उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर तथा एक महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्याकांड से जुड़े अन्य 3 आरोपी नीतू, अमन और राजिंदर कौर फरार होेने में कामयाब हो गए थे. एसएचओ हरसंदीप सिंह ने एसपी बटाला एच.एस. हीर, डीएसपी बलबीर सिंह को भी घटना की सूचना दे दी थी.

कुछ देर में दोनों पुलिस अधिकारी क्राइम टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मृतका जसबीर कौर का पेट चीरा हुआ था. वह 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने जब लाश बरामद की तो उस के पेट से बच्चा गायब था.

इस बारे में पुलिस के साथ आरोपियों से पूछताछ की गई तो प्रथम पूछताछ में ही रविंदर कौर ने अपना अपराध स्वीकर कर लिया. उस ने बताया कि उस के परिवार के लोगों ने मृतका का पेट चीर कर उस के गर्भ से बच्चा निकाला था. इन लोगों ने गर्भवती महिला के पेट को चीर कर गर्भ से बच्चा निकालने की जो कहानी बताई वह वास्तव में रोंगटे खडे़ कर देने वाली निकली.

इस कहानी की मुख्य अभियुक्ता रविंदर कौर की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. उस के 4 बच्चे थे. रविंदर कौर बचपन से ही आजादखयाल की महत्त्वाकांक्षी औरत थी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती थी. उसे अपने ऊपर किसी भी तरह की बंदिश पसंद नहीं थी.

अपने स्वार्थपूर्ति के लिए रिश्ते बदलना, बनाना उस का मनपसंद खेल था. करीब 6 साल पहले जब उस की आंख पूर्ण सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह के साथ लड़ीं तो वह अपने चारों बच्चों सहित अपने पुराने पति को अलविदा कह कर हरप्रीत सिंह की पत्नी बन उस के घर आ गई थी.

अब इसे रविंदर की बदकिस्मती कहें या उस की ढलती उम्र समझें अथवा नए पति हरप्रीत सिंह की शारीरिक कमी. बात कुछ भी रही हो पर हरप्रीत के साथ शादी के 5 साल बीत जाने के बाद भी वह उस के बच्चे की मां नहीं बन पाई थी. बच्चा न जनने के कारण उस की सास जोगिंदर कौर हर समय उसे कोसती रहती और ताने देती थी. जिस कारण रविंदर कौर बड़ी परेशान थी.

एक बार उस की एक खास सहेली ने उसे बताया कि पास के गांव में जगदीशो उर्फ दीशो नाम की महिला तांत्रिक रहती है, जिस के आशीर्वाद से कई बांझ औरतों की गोद हरी हुई है. तुम उस के पास चलो.

सहेली के कहने पर रविंदर कौर तांत्रिक दीशो से मिली. दीशो कुछ टाइम तक अपनी ढोंग विद्या से उस से पैसे ऐंठ कर उल्लू बनाती रही. अंत में उस ने स्पष्ट कह दिया ‘‘रविंदर तुम्हारी कोख पर ऐसे जिन्न का साया है जो अब कभी तुम्हें मां नहीं बनने देगा. हां एक तरीका है अगर तुम उसे कर सको तो मैं तुम्हें बताऊं?’’

‘‘मैं कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ रविंदर कौर बोली.

‘‘तो सुनो, अपने अड़ोसपड़ोस में कोई ऐसी औरत तलाश करो जो गर्भवती हो और तुम अभी कुछ दिन अपने घर से बाहर मत निकलना. अपने बारे में यह बात भी फैला दो कि तुम गर्भ से हो. इस के बाद क्या करना है यह मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी.’’ दीशो ने सलाह दी.

दीशो के कहने पर रविंदर कौर ने वैसा ही किया. साथ ही यह बात अपनी सास और ननदों को भी बता दी. उन्हीं दिनों जसबीर कौर गर्भवती थी. यह बात रविंदर कौर ने तांत्रिक दीशो को बता दी. दीशो ने फिर एक भयानक योजना बनाई.

घटना वाले दिन रविंदर कौर पड़ोस के खेतों में काम कर रही जसबीर को इशारे से बुला कर वह उसे अपने घर ले गई. उस ने जसबीर को बताया था कि एक बड़ी देवी उन के घर आई हुई है. वह उस से आशीर्वाद ले ले ताकि उस का बच्चा सहीसलामत पैदा हो.

जसबीर नीयत की साफ थी और भोली भी. रविंदर कौर की बातों को वह समझ नहीं पाई और उस के घर चली गई. वहां पहले से ही रविंदर कौर के परिवार के सब लोग मौजूद थे. सो समय व्यर्थ न करते हुए सब ने किसी तरह जसबीर को अपने कब्जे में ले कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

दम घुटते ही जसबीर एक ओर लुढ़क गई. वह मर चुकी थी. तभी तांत्रिक दीशो ने अपने साथ लाए सर्जिकल ब्लेड से उस का पेट चीर कर पेट का शिशु बाहर निकाल लिया. शिशु को गोद में ले कर जब देखा तो पता चला कि जसबीर कौर के साथसाथ वह भी मर चुका है. मां और बच्चे की मौत के बाद उन सब के हाथपैर फूल गए.

अब क्या किया जाए? सब के सामने अब यही एक प्रश्न था. काफी सोचविचार के बाद तय किया गया कि शिशु के शव को घर में बनी सीढि़यों के नीचे गाड़ दिया जाए और जसबीर की लाश कमरे के बाहर रखे संदूक में छिपा दिया जाए.

बाद में मौका मिलने पर जसबीर की लाश के टुकड़े कर नहर में बहा देंगे. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगेगी कि जसबीर कहां गई. बाद में यह अफवाह फैला देंगे कि वह अपने किसी यार के साथ भाग गई होगी.

एसएचओ हरसंदीप सिंह ने भादंवि की धारा 302, 313, 316, 201 और 120 बी के तहत पूर्ण सिंह, जोगिंदर कौर, रविंदर कौर, गुरप्रीत सिंह, नीतू, अमन और राजिंदर कौर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर चारों अभियुक्तों पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर और महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर पहली मई को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान इस हत्याकांड की मुख्य आरोपी रविंदर कौर की निशानदेही पर ड्यूटी मजिस्ट्रैट अजय पाल सिंह और नायब तहसीलदार तथा पुलिस के उच्च अधिकारियों व गांव वालों की मौजूदगी में उन के घर में सीढि़यों के नीचे दफनाए गए मृतका जसबीर के शिशु को जमीन खोद कर बाहर निकला. फिर मांबेटे का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवाया गया. अन्य 3 दोषियों की निशानदेही पर घर से खून सने कपडे़ और सर्जिकल ब्लेड बरामद कर लिया गया.

बहरहाल जो 4 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, उन्हें सीखचों के पीछे से बाहर आने का मौका कब मिलेगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. वह बाहर आ पाएंगे या नहीं, किसी को पता नहीं है. अदालत से उन्हें कितनी सजा मिलती है, यह भी अभी भविष्य के गर्भ में है.

लेकिन इतना तय है कि समाज में अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहरे तक जमी हुई हैं. ये जड़ें कैसे और कब उखड़ सकेंगी, कोई नहीं जानता.

करोड़ों के लिए सीए की हत्या – भाग 3

उस से कड़ाई से पूछताछ की तो वह खुल गया. उस ने बताया, ‘‘साहब, मैं कुशांक गुप्ता हत्याकांड में जरूर था, लेकिन जिस ने हत्या की, उसे मैं नहीं जानता. कुशांक गुप्ता की हत्या पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक ने करवाई थी. मैं शूटर को ले कर जरूर गया था. उस शूटर को ललित कौशिक जानता है.’’

अब पुलिस को विश्वास हो गया कि इन दोनों हत्याओं का मास्टरमाइंड भाजपा नेता और पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक ही है. आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस को श्वेताभ तिवारी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली.

सीए हत्याकांड का हुआ खुलासा

श्वेताभ तिवारी उत्तर प्रदेश के शहर मुरादाबाद के मंडी चौक मोहल्ले में रहते थे. वहीं पर अभियुक्त विकास शर्मा का आनाजाना था. उस के बाद श्वेताभ तिवारी कांठ रोड पर साईं गार्डन कालोनी में अपना मकान बना कर रहने लगे थे. श्वेताभ तिवारी मुरादाबाद व आसपास के जिलों में बड़े चार्टर्ड एकांउंटेंट के रूप में गिने जाते थे. इन का औफिस दिल्ली रोड पर बंसल कांप्लैक्स में था, जिस में करीब 80 कर्मचारी कार्य करते थे.

श्वेताभ तिवारी चार्टर्ड एकाउंटेंट के अलावा प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करते थे. उन का यह धंधा मुरादाबाद के अलावा नोएडा, गाजियाबाद, दिल्ली, उत्तराखंड, नैनीताल, भवाली में भी था. यहां इन्होंने काफी संपत्ति भी अर्जित कर रखी थी. इन की करीब 40-50 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने साले संदीप ओझा व अपनी पत्नी शालिनी के नाम कर रखी थी. इतनी बड़ी संपत्ति श्वेताभ तिवारी ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से अर्जित की थी.

संदीप ओझा एमडीए कालोनी में लवीना रेस्टोरेंट चलाता है. उस की दोस्ती थाना कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला रेती स्ट्रीट निवासी विकास शर्मा से थी. विकास शर्मा भी प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस का अकसर संदीप ओझा के रेस्टोरेंट पर उठनाबैठना था.

संदीप ओझा सरल स्वभाव का था. विकास शर्मा के साथ शराब पार्टी के दौरान जब संदीप ओझा जब नशे में हो जाता तो वह अपने घरपरिवार के बारे में बतियाता रहता था. उस ने विकास शर्मा को बताया कि मेरे जीजा श्वेताभ तिवारी कितने महान हैं, जिन्होंने अपनी आधी संपत्ति उस के नाम कर दी है और आधी उस की बहन शालिनी के नाम कर रखी है. अपने लिए उन्होंने कुछ नहीं रखा है. पीनेपिलाने का खर्च संदीप ओझा ही उठाता था. शाम को यह महफिल रेस्टोरेंट पर जमती थी.

विकास शर्मा का एक दोस्त भाजपा नेता ललित कौशिक भी था. वह दलपतपुर डिलारी थाना मंूढापांडे का रहने वाला था व मंूढापांडे ब्लौक का ब्लौक प्रमुख था जोकि सत्ता की हनक रखता था. ललित कौशिक हेकड़, बदमाश किस्म का व्यक्ति था. भाजपा नेता रामवीर जोकि कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुका है, वही ललित कौशिक को राजनीति में लाया था. ललित कौशिक को मूंढापांडे ब्लौक का ब्लौक प्रमुख बनवाने में उस की अहम भूमिका थी. बाद में ललित कौशिक का भी उस से छत्तीस का आंकड़ा हो गया.

शराब पी कर घर की हकीकत जाहिर कर देता था संदीप

अभियुक्त विकास शर्मा ने ललित कौशिक से बताया कि चार्टर्ड एकाउंटेंट श्वेताभ तिवारी का साला करोड़ों का मालिक है. उस के जीजा ने आधी से ज्यादा संपत्ति संदीप ओझा व आधी संपत्ति अपनी पत्नी शालिनी के नाम कर रखी है, जोकि 40-50 करोड़ रुपए की है.

इतना सुनते ही ललित कौशिक खुशी से उछल पड़ा था. दोनों ने एक योजना पर काम करना शुरू कर दिया. दोनों मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने लगे थे. उन्होंने मिल कर एक खतरनाक योजना बना डाली. योजना के मुताबिक दोनों ने सोचा कि क्यों न चार्टर्ड एकाउंटेंट श्वेताभ तिवारी का मर्डर करवा दिया जाए. जब श्वेताभ तिवारी इस दुनिया में नहीं होगा तो हम लोग इन के सीधेसादे साले संदीप ओझा से संपत्ति औनेपौने दाम पर खरीद लेंगे. नहीं देगा तो जबरदस्ती कब्जा कर लेंगे. यह काम तो हमारे बाएं हाथ का खेल है. सत्ता हमारे पास है तो सारे अफसर हमारे हैं.

यह बैठक ललित कौशिक के मोहल्ला दीनदयाल के औफिस पर की गई थी, जिस में ललित कौशिक, विकास शर्मा, शूटर केशव सरन शर्मा उस का साथी खुशवंत उर्फ भीम भी मौजूद था. इस के बाद इन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट श्वेताभ तिवारी की रैकी की व उन का चेहरा दिखाने का काम विकास शर्मा को दिया गया था.

विकास शर्मा ने शूटर केशव सरन शर्मा को श्वेताभ तिवारी का चेहरा दिखाया व उन का फोटो भी शूटर को उपलब्ध करा दिया. श्वेताभ तिवारी कब घर से निकलते हैं, औफिस से कब आते हैं, कब जाते हैं. इस की 3-4 बार रैकी करवाई गई, जब शूटर केशव सरन शर्मा को पूरा विश्वास हो गया तो उन्होंने 15 फरवरी, 2023 का दिन उन की हत्या करने का चुना.

योजना के मुताबिक श्वेताभ तिवारी रोजाना की भांति बंसल कांप्लैक्स स्थित अपने औफिस गए. वह रोजाना शाम 7 बजे अपना औफिस छोड़ देते थे. शूटर केशव सरन शर्मा व उस का साथी खुशवंत उर्फ भीम बाइक से बंसल कांप्लैक्स पहुंचे. बाहर खड़े दोनों उन के आने का इंतजार करते रहे. वह 7 बजे औफिस से बाहर नहीं आए तो वे दोनों आसपास चहलकदमी करते रहे.

करीब पौने 9 बजे श्वेताभ तिवारी अपने पार्टनर अखिल अग्रवाल के साथ औफिस से बाहर आए तो उसी समय उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया. वह अपनी गाड़ी से उतर कर बात करते हुए बंसल कांप्लैक्स से करीब 50 मीटर दूर तक बात करते हुए आ गए थे. उसी समय शूटर केशव सरन शर्मा ने गोलियां चला कर उन की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों बाइक पर बैठ कर भाग गए.

आरोपियों से बरामद हुए कई सबूत

बुद्धि विहार होते हुए सोनकपुर पुल पार कर वे अपनेअपने घरों को चले गए थे. अभियुक्त ललित कौशिक ने अपने साथियों को बताया था कि 12 जनवरी, 2022 को स्पोट्र्स कारोबारी व कुशांक गुप्ता की हत्या उस ने ही करवाई थी, जिसे पुलिस आज तक नहीं खोल पाई थी. उस हत्या में उस के किराएदार 2 भाई जेल की हवा खा रहे हैं.

पुलिस ने 31 मार्च, 2023 को श्वेताभ तिवारी हत्याकांड का खुलासा कर दिया. शूटर केशव सरन शर्मा व उस के साथी विकास शर्मा को पुलिस हिरासत में ले चुकी थी.

इन के पास से एक अदद पिस्टल .32 बोर और 6 जिंदा कारतूस, एक तमंचा .315 बोर, एक यामहा बाइक, एक मोबाइल फोन, एक काला बैग, जोकि हत्या के समय प्रयोग में लाया गया था, बरामद किया. पुलिस ने ललित कौशिक के घर से अवैध असलहा की मैगजीन तलाशी के दौरान बरामद की थी. उस असलहा को बरामद करने के लिए पुलिस ने 12 अप्रैल, 2023 को उसे रिमांड पर लिया था.

फिर उस ने विवेकानंद अस्पताल के पीछे चट्ïटा पुल, रामगंगा नदी की झाडिय़ों से एक पिस्टल बरामद करवाई. जब शूटर केशव सरन शर्मा को पुलिस ने पकड़ा तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. उस ने कहा कि जिस दिन श्वेताभ तिवारी की हत्या हुई थी, वह उस दिन देहरादून में एक तारीख पर कोर्ट गया था. उस ने अपना रिजर्वेशन टिकट भी दिखाया.

पुलिस देहरादून से तस्दीक करवाई तो पता चला कि 5 फरवरी को उस की कोर्ट में तारीख तो थी, लेकिन वह वहां पहुंचा नहीं था. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

मुरादाबाद रेंज के डीआईजी शलभ माथुर ने इस बहुचर्चित केस के आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली 5 टीमों को 50 हजार रुपए का ईनाम व प्रशस्ति पत्र देने की घोषणा की.

ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 3

अपने ही इलाके बेनीपट्टी के कटैया रोड पर किराए का 5 कमरों का एक मकान ले कर उस में जयश्री हेल्थकेयर के नाम से नर्सिंग होम खोल लिया. भिन्नभिन्न इलाजों के लिए अलगअलग डाक्टरों को नियुक्त कर के नर्सिंग होम शुरू किया था. थोड़ी मेहनत से अविनाश का नर्सिंग होम चल निकला. लेकिन उस के सपनों का शीशमहल धरातल पर ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. इस की बड़ी वजह थी बेनीपट्टी में कुकुरमुत्तों की तरह नर्सिंग होम्स का पहले से संचालित होना.

दरअसल, दरजनों नर्सिंग होम उस इलाके में पहले से चल रहे थे. अच्छी जगह पर अविनाश का नर्सिंग होम खुल जाने और सब से कम पैसों में इलाज करने से बाकी के नर्सिंग होम्स की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी, जिस से सभी नर्सिंग होम संचालकों की नींद हराम हो गई थी.

वे नहीं चाहते थे कि जयश्री हेल्थकेयर चले. फिर क्या था, सभी संचालकों ने मिल कर स्वास्थ्य विभाग में झूठी शिकायत कर के उस का नर्सिंग होम बंद करवा दिया. एक साल के भीतर ही उस का नर्सिंग होम बंद हो गया. यह बात 2019 की है.

ऐसा नहीं था कि धन माफियाओं के डर से हार मान कर अविनाश ने हथियार डाल दिया हो. उस दिन के बाद से अविनाश ने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि स्वास्थ्य के नाम पर नर्सिंग होमों द्वारा गरीबों से मनमाने तरीके से की जा रही वसूली को वह ज्यादा दिनों तक चलने नहीं देगा. उन नर्सिंग होमों को भी वह बंद करवा कर दम लेगा, जिन्होंने उस के सपनों को कुचलामसला था. क्योंकि उसे पता था कि जिले के अधिकांश नर्सिंग होम अपने आर्थिक लाभ के लिए नियमकानून को ताख पर रख कर कैसे संचालित हो रहे हैं.

अवैध नर्सिंग होम्स के खिलाफ अविनाश ने उठाई आवाज

बड़ेबड़े मगरमच्छों से टकराना अविनाश के लिए आसान नहीं था. क्योंकि वह उन की ताकत को देख चुका था. उन्हें कुचलने के लिए एक ऐसे हथियार की उसे जरूरत थी, जो उसे सुरक्षा भी दे सके और दुश्मनों को मीठे जहर के समान धीरेधीरे मार भी सके.

विकास झा अविनाश का सब से अच्छा दोस्त भी था और हमदर्द भी. उस के सीने में सुलग रही आग को वह अच्छी तरह जानता था. बीएनएन न्यूज पोर्टल नाम से वह एक न्यूज चैनल भी चलाता था. शार्प दिमाग वाले अविनाश के मन में आया कि दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए क्यों न पत्रकारिता को अपना ले. फिर उस ने विकास से बात कर के बीएनएन न्यूज पोर्टल जौइन कर लिया.

पत्रकारिता का चोला ओढ़ने के बाद अविनाश बेहद ताकतवर बन गया था. खाकी वरदी से ले कर खद्दर वालों के बीच उस ने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था. धीरेधीरे वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था. अपने विरोधियों और दुश्मनों को धूल चटाने के लिए वह परिपक्व हो चुका था. उस के दुश्मनों की लिस्ट में बेनीपट्टी के 2 नर्सिंग होम अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संजय और अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के मालिक डा. अनुज महतो थे.

2019 के अगस्त महीने में अविनाश ने आरटीआई के माध्यम से दरजन भर नर्सिंग होम्स से सूचना मांगी थी, जिन के नाम अलजीना हेल्थकेयर, शिवा पाली क्लीनिक, सुदामा हेल्थेयर, सोनाली हेल्थकेयर, मां जानकी सेवा सदन, आराधना हेल्थ ऐंड डेंटल केयर क्लिनिक, जय मां काली सेवा सदन, अंशु हेल्थकेयर सेंटर, सानवी हौस्पिटल, अनन्या नर्सिंग होम, अनुराग हेल्थकेयर सेंटर और आर.एस. मेमोरियल हौस्पिटल थे.

अविनाश के इस काम से सभी नर्सिंग होम के संचालकों की भौहें तन गईं कि इस की इतनी हिम्मत कि हमें ही आंखें दिखाने लगा. उसे पता नहीं है किस से टकराने की कोशिश कर रहा है. बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. इन धन माफियाओं की गीदड़भभकी के आगे अविनाश न झुका और न ही डरा. बल्कि इन से टक्कर लेने के लिए वह डट कर खड़ा हो गया था.

काररवाई से तिलमिला गए नर्सिंग होम मालिक

अविनाश द्वारा डाली गई आरटीआई का  किसी भी नर्सिंग होम के संचालकों ने उत्तर नहीं दिया तो उस ने लोक जन शिकायत के माध्यम से इस की शिकायत ऊपर के अधिकारियों तक पहुंचा दी. अविनाश की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपर्युक्त नर्सिंग होमों की जांच की तो उन में से कई नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग के मानक पर खरे नहीं उतरे. अंतत: उन्हें स्वास्थ्य विभाग के कोप का भाजन पड़ा और उन पर ताला लगा दिया गया.

अविनाश ने पानी में रह कर मगरमच्छों से दुश्मनी मोल ले ली थी. विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए अविनाश ने जो तीर छोड़ा था, वह ठीक उस के निशाने पर जा कर लगा था. अविनाश के इस काम से खफा चल रहे सभी नर्सिंग होम संचालक आपस में एकजुट हो गए और मिल कर अविनाश को सबक सिखाने की तैयारी में जुट गए थे. इसी कड़ी में अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संतोष एक दिन अविनाश के घर जा पहुंचे.

इत्तफाक से उन की मुलाकात अविनाश के बडे़ भाई त्रिलोकीनाथ झा उर्फ चंद्रशेखर से हुई. उस समय अविनाश घर पर नहीं था, कहीं गया हुआ था.

त्रिलोकीनाथ को समझाते हुए डा. संतोष ने कहा, ‘‘तुम अपने भाई अविनाश को समझाओ कि वह जो कर रहा है, उसे तुरंत बंद कर दे. वरना जानते ही हो आए दिन सड़कों पर तमाम एक्सीडेंट होते रहते हैं. वह भी किसी दुर्घटना का शिकार हो कर कहीं सड़क किनारे पड़ा मिलेगा. फिर मत कहना कि मैं ने समझाया नहीं.’’

डा. संतोष त्रिलोकीनाथ को धमकी दे कर चला गया. त्रिलोकीनाथ जानता था कि बदले की आग में जल रहा अविनाश अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा है. उस ने संतोष की धमकी को दरकिनार कर दिया और छोटे भाई को कुछ नहीं बताया.

विरोधियों को खाक में मिलाने के लिए पत्रकार अविनाश बहुत आगे निकल चुका था. उस के आरटीआई पर 2 और नर्सिंग होमों अनन्या और अनुराग पर स्वास्थ्य विभाग की काररवाई होनी तय हो गई थी. दोनों नर्सिंग होम भी स्वास्थ्य विभाग के मानकों पर खरे नहीं उतरे थे. अनन्या के मालिक संतोष और अनुराग के मालिक अनुज महतो किसी कीमत पर अपने नर्सिंग होम बंद होने नहीं देना चाहते थे. उन के बंद होने से हाथों से लाखों रुपए की कमाई जा रही थी.

क्रोध की आग में जल रहे अनुज महतो ने अविनाश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी इस योजना में उस ने अपने नर्सिंग होम की सब से विश्वासपात्र नर्स पूर्णकला देवी के साथ रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को मिला लिया.

कहीं से इस की भनक अविनाश को मिल गई थी. 7 नवंबर को फेसबुक पर उस ने बेहद मार्मिक पोस्ट शेयर की, जिस में उस ने अपनी हत्या किए जाने की आशंका जाहिर करते हुए 15 नवंबर को ‘द गेम इज ओवर’ लिखते हुए बड़ा खेल होना पोस्ट किया था.

                                                                                                                                         क्रमशः

करोड़ों के लिए सीए की हत्या – भाग 2

श्वेताभ हत्याकांड से पूर्व 12 जनवरी, 2023 की रात में स्पोट्र्स सामान की दुकान करने वाले कुशांक गुप्ता जब दुकान बंद कर घर जा रहे थे तो अज्ञात हत्यारे ने उन की गोली मार कर हत्या कर दी थी. पुलिस ने मृतक कुशांक गुप्ता के घर वालों के शक के आधार पर उन के 2 किराएदार प्रियांशु गोयल व हिमांशु गोयल को हत्या के इस केस में जेल भेजा था.

प्रियांशु व हिमांशु के घर वालों ने पुलिस से बहुत विनती की कि इस हत्याकांड से इन दोनों का दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. पुलिस को भी इन दोनों से हत्या का कोई सबूत नहीं मिला था. मृतक के घर वालों ने इन पर शक इस आधार पर किया था कि कुछ दिन पहले किराए को ले कर कुशांक गुप्ता का इन से झगड़ा हुआ था.

प्रियांशु और हिमांशु मूलत: नूरपुर बिजनौर के रहने वाले थे. वे यहां पर पढऩे के लिए आए थे. 3 महीने बाद जब इन दोनों भाइयों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला तो पुलिस ने कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की. फिर कोर्ट के आदेश पर दोनों भाइयों को रिहा कर दिया गया.

एक जैसे थे दोनों हत्याकांड

13 माह बीतने के बाद भी पुलिस हत्याकांड का खुलासा नहीं कर पा रही थी. श्वेताभ तिवारी हत्याकांड के साथ पुलिस ने इस केस को भी खोलने का प्रयास तेज कर दिया था. क्योंकि इन दोनों मामलों में एक ही तरह से घटना को अंजाम दिया था. दोनों की हत्या करने का तरीका एक जैसा ही था.

पुलिस ने श्वेताभ तिवारी और कुशांक गुप्ता हत्याकांड के सीसीटीवी फुटेज का मिलान किया तो दोनों में समानता थी. दोनों ही केसों में शूटर का हुलिया एक जैसा था. सिद्ध वली स्पोट्र्स सोनकपुर में मृतक कुशांक गुप्ता की एक दुकान है. 2020 में यह दुकान (नाई की दुकान) खाली करवाने का विवाद चल रहा था.

दुकान खाली करने को ले कर तत्कालीन ब्लौक प्रमुख मूंढापांडे और भाजपा नेता ललित कौशिक ने अपने साथियों के साथ हथियार लहराते हुए मृतक कुशांक गुप्ता को धमकाया था. कुशंाक गुप्ता की दुकान पर लगे सीसीटीवी में वह घटना कैद हो गई थी. कैद हुई घटना को कुशांक गुप्ता ने सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया था. जिस कारण तत्कालीन ब्लौक प्रमुख मूंढापांडे ललित कौशिक की वजह से भाजपा की काफी छीछालेदर हुई थी.

दुकान पर आ कर धमकाने की रिपोर्ट मृतक कुशांक गुप्ता ने थाना सिविल लाइंस में करवाई थी, लेकिन सत्ता पक्ष से जुड़ा ललित कौशिक ब्लौक प्रमुख के खिलाफ पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की थी. उधर ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक बीजेपी में अपनी छवि खराब होने पर कुशांक गुप्ता से बहुत नाराज था. उस ने प्रण कर लिया कि वह कुशंाक गुप्ता को इस का सबक जरूर सिखाएगा.

फिर उस ने भाड़े के हत्यारे से कुशांक गुप्ता की 12 जनवरी, 2022 को रात 8 बजे हत्या करवा दी. इतना ही नहीं, वह हत्या होने के बाद भी संवदेना प्रकट करने के लिए कुशांक गुप्ता के घर गया था. कुशांक की हत्या से कुछ दिन पहले 2 भाई प्रियांशु और हिमांशु, जोकि कुशांक के किराएदार थे, से किराए को ले कर मारपीट हो गई थी. कुशांक गुप्ता के पिता अशोक गुप्ता ने इन दोनों भाइयों के खिलाफ कुशांक की हत्या करने की रिपोर्ट दोनों भाइयों के खिलाफ दर्ज करवाई थी.

एसपी (सिटी) ने कराई निगरानी

एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया ने मृतक श्वेताभ तिवारी के बंगले साईं गार्डन में आनेजाने वाले लोगों पर विजिलेंस टीम को लगाया जो वहां आनेजाने वाले सभी संदिग्ध लोगों पर नजर रखें. डा. अनूप सिंह ने श्वेताभ तिवारी की पत्नी शालिनी से उन दोनों व्यक्तियों के बारे में जानकारी की तो उस ने बताया, ‘‘ये दोनों व्यक्ति मेरे भाई संदीप ओझा के मिलने वाले हैं. घर पर ये लोग पहली बार आए हैं और बिना मांगे मुझे कानूनी सलाह दे रहे हैं, हमारे परिवार के नजदीकी बने हुए हैं. मुझे भी ये लोग संदिग्ध लगे.’’

पुलिस ने जांच की तो पता चला कि इन में से एक व्यक्ति का नाम ललित कौशिक है, वह मूंढापांडे का पूर्व ब्लौक प्रमुख है, जिसे थाना मंढापांडे पुलिस एक अपहरण व मारपीट के मामले में ढूंढ रही है. उस के साथ आने वाले दूसरे व्यक्ति का नाम विकास शर्मा था. पुलिस ने उसे उस के मुरादाबाद शहर के रेती स्ट्रीट स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया.पुलिस ने उस से पूछताछ की तो विकास शर्मा ने बताया कि मृतक श्वेताभ तिवारी के साले संदीप ओझा से उस की दोस्ती है. उस के साथ उठनाबैठना खानापीना है.

उधर पुलिस की एक टीम पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक की तलाश में लगी थी. 25 मार्च, 2023 को प्रदेश के मंत्री जितिन प्रसाद सर्किट हाउस में कार्यकर्ताओं की मीटिंग ले रहे थे. उस मीटिंग में पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक भी सम्मिलित हुआ था.

सर्किट हाउस से किया गिरफ्तार

पुलिस ने ललित कौशिक को सर्किट हाउस में चल रही मीटिंग में से किसी बहाने से बुला लिया. फिर उसे गिरफ्तार कर गाड़ी में बैठा कर पहले पुलिस लाइन ले जाया गया. वहां उस से श्वेताभ तिवारी की हत्या के संबंध में पूछताछ की. उस ने उस की हत्या की कहानी बयां कर दी. पुलिस ने उसी रात ललित कौशिक के घर की तलाशी ली तो वहां से 8 लाख रुपए और अवैध पिस्टल की मैगजीन बरामद की थी. पुलिस ने विकास शर्मा नाम के जिस युवक को उठाया था, वह खुद को निर्दोष बता रहा था. कह रहा था कि श्वेताभ तिवारी के साले संदीप ओझा से उस की दोस्ती है.

पुलिस ने उस का फोन ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पुलिस को कुछ संदिग्ध फोन नंबर मिले. जिस दिन श्वेताभ तिवारी की हत्या हुई थी, विकास शर्मा की लोकेशन एपेक्स अस्पताल पर थी. उस ने वहां से कई बार ललित कौशिक से बात की थी. पुलिस ने उस से उस बातचीत के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मैं ने उन से कहा था सीए सर को किसी ने गोली मार दी है. उस के बाद मैं ने दूसरी बार बताया कि श्वेताभ तिवारी की मृत्यु हो गई है.’’

पुलिस ने उस से पूछा कि घटना के तुरंत बाद तुम अस्पताल क्यों पहुंचे तो वह पुलिस के सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया. पुलिस को कुछ संदिग्ध नंबर भी मिले. पुलिस ने ललित कौशिक के फोन को भी खंगाला. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से कई बार बातचीत का ब्यौरा पुलिस को मिला. उक्त नंबर विकास शर्मा के मोबाइल में भी था.

जांच की तो वह फोन नंबर भोजपुर (मुरादाबाद) निवासी खुशवंत उर्फ भीम का था. वह वर्तमान में हरथला (मुरादाबाद) में रह रहा था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

हैवानियत की हद पार : एक डाक्टर ने इंसानियत पर किया वार

याद है न बदन में सिरहन पैदा कर देने वाला निठारी कांड? साल था 2006 और जगह थी नोएडा का निठारी गांव. वहां की कोठी नंबर डी-5 दूसरी आम कोठियों की तरह ही थी. लेकिन जब इस कोठी के आसपास से नरकंकाल मिलने शुरू हुए, तो पूरा देश सकते में आ गया था. सीबीआई को जांच के दौरान इनसानी हड्डियों के हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले थे, जिन में इनसानी अंगों को भर कर जमीन में गाड़ दिया था या पास के नाले में फेंक दिया था.

इस के बाद कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उस के नौकर सुरेंद्र कोली को पुलिस ने धर दबोचा. इस तरह से निठारी के कांड का काला सच सब के सामने आ गया. सुरेंद्र कोली के मुताबिक उस का मालिक (मोनिंदर सिंह पंढेर) कई वेश्याएं घर पर लाया करता था. उन्हें आतेजाते देखते हुए उस के मन में सैक्स और इनसानी शरीर को काटने की प्रबल इच्छा पैदा होने लगी.

बाद में खुलासा हुआ कि सुरेंद्र कोली अपने शिकारों को पहले फंसाता था, फिर पीड़ित को बेहोश कर देता था. उस के बाद रेप की कोशिश करता था. आखिर में पीड़ित को मार कर उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर देता था, फिर उन्हें जमीन में गाड़ देता था या नाले में बहा देता था.

पहले तो सीबीआई ने मई, 2007 में मोनिंदर सिंह पंढेर को अपनी चार्जशीट में एक पीड़िता रिम्पा हलदर के अपहरण, बलात्कार और हत्या के मामले में आरोपमुक्त कर दिया था, पर इस के 2 महीने बाद अदालत की फटकार के बाद सीबीआई ने मोनिंदर सिंह पंढेर को इस मामले में सहआरोपी बनाया था.

तब इस मामले में इनसानी अंगों की तस्करी का मुद्दा भी उछला था. अब फिर एक दिल दहला देने वाला कांड सामने आया है और इसे अंजाम देने वाला कोई कसाई नहीं, बल्कि एक डाक्टर है जिस पर दूसरों की जान बचाने की जिम्मेदारी होती है.

इस डाक्टर का नाम देवेंद्र शर्मा है, पर है पूरा सीरियल किलर. उस ने कबूल किया है कि साल 2002 से 2004 के बीच दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में अब तक वह 100 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है, जिन में से ज्यादातर को उस ने उत्तर प्रदेश की एक नहर में मौजूद मगरमच्छों का खाना बना दिया.

गुरुग्राम किडनी कांड में शामिल अलीगढ़ के डाक्टर देवेंद्र शर्मा को हाल ही में दिल्ली से पकड़ा गया गया था. इस से पहले वह किडनी केस में पिछले 16 साल से सजा काट रहा था और अब परोल पर बाहर था. मियाद पूरी होने के बाद उसे वापस जेल जाना था, लेकिन वह अंडरग्राउंड हो गया था. पर अब पकड़े जाने के बाद उस की काली करतूतों की परतें खुल रही हैं.

ऐसे बना अपराधी…

कोई डाक्टर अपराधी कैसे बन गया? यह सवाल अब हर किसी के मन में उठ रहा है. जानकारी हासिल हुई है कि एक निवेश में धोखे के बाद देवेंद्र शर्मा ने जुर्म का रास्ता चुना था, फिर वह डाक्टरी के साथसाथ किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट, फर्जी गैस एजेंसी भी चलाने लगा था. इतना ही नहीं वह चोरी की गाड़ियां भी बेचता था. अपनी फर्जी गैस एजेंसी के लिए जब उसे सिलेंडर चाहिए होते थे, तब वह गैस डिलीवरी वाले ट्रक लूट लेता था और उस के ड्राइवर को मार देता था.

यह भी खुलासा हुआ है कि दिल्ली से उत्तर प्रदेश जाने के लिए डाक्टर देवेंद्र शर्मा के गैंग के लोग जिस टैक्सी को बुक करते थे बाद में उसे ही लूट लेते थे. हाल ही में पकड़े जाने के बाद डाक्टर देवेंद्र शर्मा ने बताया कि उस ने ज्यादातर लाशों को उत्तर प्रदेश के कासगंज इलाके की हजारा नहर में फेंक दिया था. इस नहर में बड़ी तादाद में मगरमच्छ रहते हैं.

डाक्टर देवेंद्र शर्मा को बुधवार, 29 जुलाई को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था. वह कोई एमबीबीएस डाक्टर नहीं था, बल्कि साल 1984 में उस ने बिहार के सिवान से बैचलर औफ आयुर्वेद मैडिसिन ऐंड सर्जरी की डिगरी पूरी कर के राजस्थान में क्लिनिक खोला था, फिर साल 1994 में उस ने गैस एजेंसी के लिए एक कंपनी में 11 लाख रुपए लगाए थे, लेकिन वह कंपनी अचानक गायब हो गई. इस नुकसान के बाद उस ने साल 1995 में एक फर्जी गैस एजेंसी खोल ली थी.

बनाया अपना गैंग…

इस के बाद डाक्टर देवेंद्र शर्मा ने एक गैंग बनाया जो एलपीजी सिलेंडर ले कर जाते ट्रकों को लूट लेता था. इस के लिए वे लोग ड्राइवर को मार देते थे और ट्रक को भी कहीं ठिकाने लगा देते थे. इस दौरान उस ने अपने गैंग के साथ मिल कर तकरीबन 24 लोगों का खून किया था. फिर देवेंद्र शर्मा किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह में शामिल हो गया था और उस ने 5 लाख से 7 लाख रुपए प्रति ट्रांसप्लांट के हिसाब से 125 ट्रांसप्लांट करवाए थे.

इतना ही नहीं, ये लोग कैब ड्राइवरों को मार कर उन की कैब लूट लेते थे और ड्राइवर की लाश को नहर में फेंक देते थे. बाद में कैब को सैकंडहैंड कार बता कर बेच दिया जाता था. इस के बाद साल 2004 में डाक्टर देवेंद्र शर्मा पकड़ा गया था और 16 साल जयपुर जेल में रहा था, फिर अच्छे बरताव के लिए उसे जनवरी, 2020 को 20 दिन की परोल मिली थी, लेकिन वह भाग कर अंडरग्राउंड हो गया था.

अंधविश्वास ने ली पिता पुत्र की जान

अंधविश्वास हमारे समाज में अमरवेल की तरह फल फूल रहा है.और इसको खाद पानी देने का काम धर्म के ठेकेदार पंडो , पुजारियों के द्वारा बखूबी किया जा रहा है. समाज में फैले तरह-तरह के अंधविश्वास लोगों की जेब से  रुपए पैसे तो ऐंठते  ही हैं, साथ ही जरा सी असावधानी की वजह से जान माल का नुक़सान भी कर रहे हैं.अंधविश्वास के शिकार दलित, पिछड़ों के साथ पढ़े लिखे  नौकरी पेशा लोग भी हो रहे हैं.

एक ऐसा ही ताजा मामला मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में देखने को मिला है. लोगों को न्याय देने जज की कुर्सी पर बैठने वाले एक अंधविश्वासी शख्स की नासमझी ने अपने साथ अपने पुत्र की जान भी गंवा दी. बताया जा रहा है कि  जज के एक महिला मित्र से संबंधों की बजह से परिवार में कलह चल रही थी, जिससे छुटकारा पाने जज साहब तंत्र मंत्र के चक्कर में पड़ गये.

बैतूल  जिला न्यायालय में पदस्थ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश  महेन्द्र कुमार त्रिपाठी  और इसके दो बेटे अभियान राज त्रिपाठी, और  छोटा बेटा आशीष राज त्रिपाठी ने  20 जुलाई 2020 को रात्रि 10.30 बजे के लगभग एक साथ बैठकर डायनिंग टेबल पर  खाना खाया. कुछ समय बाद अचानक वे तीनों उल्टीयां करने लगे . जिस भोजन में परोसी ग‌ई रोटियों की बजह  से तीनों की तबीयत खराब हुई ,वह  जज साहब की पत्नी श्रीमती भाग्य त्रिपाठी ने तैयार की थी.

जज साहब की पत्नी ने दोपहर की बची  रोटियां खाई थी, इस कारण उन्हें कुछ नहीं हुआ.  21  एवं 22 जुलाई  तक जज साहब और इनके बेटो का इलाज न्यायाधीश आवास परिसर बैतूल में ही  चलता रहा. 23 जुलाई को जिला चिकित्सालय के चिकित्सक डॉ. आनद मालवीय की सलाह पर  जज साहब व इनके दोनो बेटों को पाढर अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया.

छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी की तबीयत में सुधार होने के कारण वह घर पर ही रहे .25 जुलाई को शाम के समय जज साहब एवं इनके बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी की तबीयत अचानक ज्यादा खराब होने से  इन्हे नागपुर के प्रतिष्ठित एलेक्सिसी अस्पताल ले जाया गया . जहां अस्पताल के चिकित्सको ने अभियान राज त्रिपाठी को मृत घोषित किया. और जज श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी का ईलाज चलता रह . 26 जुलाई को प्रातः 04.30 बजे के लगभग जज महेन्द्र त्रिपाठी  की भी मौत हो गई.

दोनो पिता पुत्र की मृत्यु के बाद नागपुर के  मानकापुर पुलिस थाने में एफआईआर  जज के छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी ने दर्ज कराते हुए पुलिस को बताया कि नागपुर आते समय उसके पिता महेन्द्र त्रिपाठी ने रास्ते में उसे बताया था कि उनकी किसी परिचित महिला संध्या सिह ने उन्हें  किसी पंडित से पूजा पाठ करवा कर  गेहूं का आटा दिया था और कहा था कि आटा घर के आटे में मिलाकर खाना बनाना . उसी आटे से तैयार रोटी खाने के बाद फुड पाईजनिग से उसके पापा और भाई की मौत हो गई.

न्यायिक क्षेत्र का मामला होने से पुलिस अधीक्षक द्वारा सम्पूर्ण जांच पड़ताल हेतु विशेष कार्य दल का गठन किया गया . इसी संदर्भ में जज महेन्द्र कुमार त्रिपाठी के घर से 20 जुलाई को प्रयुक्त शेष आटे के पैकेट को जप्त कर जांज के लिए लैब भेजा गया. लैब से आई रिपोर्ट में आटे में जहर मिले होने की पुष्टि हुई. पुलिस की जांच में जो कहानी सामने आई वह चौकाने वाली थी.

मूलतः रीवा निवासी श्रीमति संध्या सिंह विगत कई वर्षों से छिन्दवाडा में रहकर एन.जी.ओ चलाती है . महिलाओं को कानूनी सलाह देने जैसे कार्यक्रम आयोजित करने की वजह से जज महेन्द्र त्रिपाठी से नजदीकियां हो गई थी . चूंकि जज बैतूल में अकेले रहते थे, तो अक्सर दोनों की मेल मुलाकात होती रहती थी संध्या जज साहब से रूपए पैसों की मांग भी करने लगी थी.

लाक डाउन की बजह से जज साहब की पत्नी व वेटों के बैतूल आ जाने के कारण से संध्या विगत चार माह से जज  से नहीं मिल पा रही थी. परेशान होकर  उसने छिन्दवाड़ा में अपने ड्रायवर संजू , संजू के फूफा देवीलाल  चन्द्रवशी  और बाबा रामदयाल के साथ मिलकर एक योजना बनाई.   योजना के अनुसार श्रीमति संध्या सिंह ने बैतूल आकर  जज साहब से उनके घर से आटा मंगवाया और वही आटा पन्नी में भरकर बाबा उर्फ रामदयाल को दिया गया .

दो दिन  बाद बाबा उर्फ रामदयाल ने आटे में जहर मिला कर संध्या को दे दिया. 20 जुलाई को  सर्किट हाउस बैतूल में संध्या और जज ने एकांत में मुलाकात की.  संध्या सिंह ने बाबा की पूजा वाला जहरीला आटा जज साहब को देते हुए कहा-

“बाबा ने इस‌ आटे को तंत्र मंत्र से सिद्ध किया है, इसकी रोटी खाने से सारी परेशानियां दूर हो जायेगी और हमारा मिलना जुलना आसान हो जाएगा.”

घर आकर  इसी तंत्र मंत्र वाले आटे को जज साहब ने घर में रखे आटे के डिब्बे में मिला दिया.  इसी आटे की रोटी खाने के बाद जज साहब और इनके दोनो बेटो की तबीयत खराब हुई और अंत में जज  महेन्द्र कुमार त्रिपाठी और इनके बड़े बेटे श्री अभियान राज त्रिपाठी की मौत हो गई .

एक पढ़ें लिखे उच्च पद पर काम करने वाले जज की यह कहानी बताती है कि हम किस तरह आंख मूंदकर तंत्र मंत्र और चमत्कारों पर विश्वास करने लगते हैं. अपनी गर्लफ्रेंड के प्यार में अंधे कानूनी पढाई वाले जज ने कैसे विश्वास कर लिया कि बाबा द्वारा दिए गए इस आटे के टोटके से  घर की परेशानियां दूर हो जायेगी.

आज भी विज्ञान के युग में भले ही हम आधुनिक तकनीक का उपयोग कर अपने आपको माडर्न समझने लगे हैं, परन्तु हमारे समाज में वैज्ञानिक सोच विकसित नहीं हुई है. जब हमारे देश के वैज्ञानिक चंद्रयान की सफलता के लिए पूजा पाठ और हवन करते हो, देश के रक्षा मंत्री राफेल विमान की नारियल और नींबू से पूजा करते हों,तो फिर समाज के दूसरे वर्ग से क्या उम्मीद की जा सकती हैं.

अंधविश्वास का आलम ये है रोज सोशल मीडिया पर देवी देवताओं की पोस्ट वाले मेसैज 5 ग्रुप में फारवर्ड करने की अपील पर हम बिना सोचे समझे भेड़ चाल चलने लगते हैं. ज्ञान विज्ञान और समाज को जागरूक करने  वाली पत्रिकाओं को पढ़ने की रूचि लोगों की खत्म होती जा रही है.

ऐसे में दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएं सरिता, सरस सलिल, मुक्ता, गृहशोभा समाज में फैले पाखंड और अंधविश्वास के प्रति समाज को जागरूक करने का काम कर रही हैं. इसी तरह सत्यकथा और मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित अपराध कथाओं में यह सीख प्रमुखता से दी जाती है कि अपराध का अंजाम सुखद नहीं होता. नशा, अंधविश्वास, धार्मिक आडंबर और अपराध पैसे से तंगहाली लाकर हमें  बर्बाद की ओर ले जाते हैं.

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 2

हत्या के विरोध में लोगों ने किया आंदोलन

बहरहाल, पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा की निर्मम हत्या के विरोध में विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का शांतिपूर्ण आंदोलन चरम पर था. उस के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ रही थी. उस से शहर की शांति व्यवस्था उथलपुथल हो चुकी थी.

इस बीच, अविनाश का पोस्टमार्टम कर के उस का पार्थिव शरीर घर वालों को सौंप दिया गया था, लेकिन घर वालों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्यारों के गिरफ्तार होने तक उस का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया.

एसपी डा. सत्यप्रकाश जानते थे कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा, शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जाएगी. उन्होंने एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल अविनाश के घर उन्हें समझाने के लिए भेजा कि अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा, उस का अंतिम संस्कार कर दें.

एसपी सत्यप्रकाश के आश्वासन पर मृतक के घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इधर अविनाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सिर में गहरी चोट लगना बताया गया था. साथ ही मौत 72 से 80 घंटे पहले होनी बताई गई.

यानी जिस दिन अविनाश रहस्यमय ढंग से गायब हुआ था, उसी दिन उस की हत्या हो चुकी थी. पुलिस ने अविनाश के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन अध्ययन किया. काल डिटेल्स में रात के 9 बज कर 58 मिनट पर आखिरी बार किसी को काल आई थी.

जब पुलिस ने अविनाश के न्यूज पोर्टल औफिस में लगे सीसीटीवी कैमरे को चैक किया तो उस समय भी फुटेज में यही समय हो रहा था जब काल रिसीव करते हुए अविनाश बाहर निकल रहा था. उस के बाद वह घर नहीं लौटा था.

बहरहाल, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर पूर्णकला देवी के नाम का निकला. पुलिस ने जब और गहराई से जांच की तो पता चला कि अनुराग हेल्थ सेंटर में काम करने वाली नर्स पूर्णकला देवी और अविनाश के बीच पिछले 3 महीने से मधुर संबंध कायम थे. पुलिस की जांच प्रेम प्रसंग की ओर मुड़ गई थी.

नर्स से मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

पुलिस की जांच तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचती, जब पूर्णकला देवी पुलिस के हाथ लगती. इधर पुलिस पर हत्यारों को गिरफ्तार करने का लगातार दबाव बना हुआ था. अखबारों ने अविनाश हत्याकांड की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर दिया था. चारों ओर पुलिस की आलोचना हो रही थी. घटना का सही ढंग से खुलासा करना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. पूर्णकला देवी के गिरफ्तार होने पर ही निर्मम हत्याकांड का खुलासा हो सकता था.

14 नवंबर, 2021 को अरेर थानाक्षेत्र के अतरौली की रहने वाली पूर्णकला देवी को पुलिस ने दबिश दे कर उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए बेनीपट्टी थाने ले आई. एसडीपीओ अरुण कुमार सिंह और थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की.

नर्स पूर्णकला देवी कोई पेशेवर अपराधी तो थी नहीं, जो घंटों पुलिस को यहांवहां भटकाती. पुलिस के सवालों के सामने उस ने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर बता दिया कि पत्रकार अविनाश हत्याकांड में उस के अलावा कई और लोग शामिल थे. उसी दिन पुलिस ने पूर्णकला देवी की निशानदेही पर बेनीपट्टी के रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई.

पांचों आरोपियों से कड़ाई से हुई पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म कुबूल लिया. उन्होंने अविनाश हत्याकांड के मास्टरमाइंड अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के संचालक डा. अनुज महतो को बताया था, जिस ने अविनाश की ब्लैकमेलिंग से त्रस्त हो कर घटना को अंजाम दिया था. घटना के बाद से ही डा. अनुज महतो फरार चल रहा था.

नीतीश कुमार ने जारी किया फरमान

खैर, अविनाश हत्याकांड की गूंज प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कानों तक पहुंच चुकी थी. उन्होंने प्रदेश के पुलिस प्रमुख को अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजने का फरमान जारी कर दिया था. पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा हत्याकांड हाईप्रोफाइल मर्डर कांड बन चुका था, इसीलिए पुलिस की आंखों से नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने आननफानन में उसी दिन शाम को पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अविनाश के हत्यारों को पेश किया और घटना की असल वजहों से रूबरू कराया. उस के बाद सभी आरोपियों को जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

25 वर्षीय अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा मूलरूप से बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थानाक्षेत्र के लोहिया चौक का निवासी था. अंबिकेश झा के 2 बेटों में वह छोटा था.

सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले अंबिकेश किसान थे. खेतीबाड़ी से इतनी आमदनी कर लेते थे कि परिवार का भरणपोषण करने के बाद कुछ बचा लेते थे. बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पानी की तरह रुपए बहाते थे. ऐसा नहीं था कि उन के दोनों बेटे अपने सामान्य परिस्थितियों को न समझते रहे हों या पैसों की कीमत न समझते हों, बल्कि वे गरीबी की भट्ठी में तप कर कुंदन बन गए थे.

दोनों बेटे त्रिलोकीनाथ और अविनाश पढ़लिख कर योग्य इंसान बनाना चाहते थे. इस के लिए दोनों ही हाड़तोड़ मेहनत करते थे. जिस तरह दोनों हाथों की सभी अंगुलियां एक समान नहीं हैं, उसी तरह अंबिकेश के दोनों बेटे एक समान नहीं थे.

अविनाश घर में सब से छोटा था, इसलिए सब का लाडला था. मांबाप से ले कर भाईबहन सभी उस पर अपना प्यार लुटाते थे. इसलिए वह थोड़ा जिद्दी भी था. जिस भी काम को करने की जिद वह ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. चाहे इस के लिए उसे बड़ी से बड़ी कुरबानी क्यों न देनी पड़े. वह पीछे नहीं हटता था.

अविनाश का नर्सिंग होम करा दिया बंद

बात साल 2018 की है. ग्रैजुएशन पूरा कर चुके अविनाश का सपना था नर्सिंगहोम खोल कर वह गरीबों की सेवा करे. इतनी ही छोटी उम्र में उस की सोच महासागर से भी गहरी थी क्योंकि वह गरीबी अपनी आंखों से देख चुका था. इसलिए वह नहीं चाहता था कि कोई भी गरीब पैसों के अभाव में इलाज के लिए दम तोड़े.

                                                                                                                                           क्रमशः

साजिश जो छिप न सकी

पंजाब के जिला संगरूर के गांव लखोवाल निवासी शेर सिंह पहली अक्तूबर, 2017 को थाना भवानीगढ़ के अंतर्गत पड़ने वाली पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकीइंचार्ज एएसआई गुरमीत सिंह को एक लिखित तहरीर देते हुए कहा कि मैं कल सुबह अपने बेटे यादविंदर के साथ अपने खेतों पर काम करने के लिए गया था. खेतों के नजदीक ही एक प्लाईवुड फैक्ट्री थी. कुछ देर बाद उसी फैक्ट्री में काम करने वाले शिवकुमार और राम नरेश हमारे पास खेत पर आ गए.

शिवकुमार और रामनरेश दिन भर खेतों पर साथ ही रहे. रात करीब 9 बजे मैं ने और मेरे बेटे ने उन दोनों को अपनी मोटरसाइकिलों से प्लाईवुड फैक्ट्री छोड़ दिया. उन्हें छोड़ कर मैं अपने बेटे के साथ घर की ओर लौट रहा था तभी कोई ट्रक बेटे की मोटरसाइकिल में पीछे से टक्कर मार कर भाग गया. उस समय रात के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे, इसलिए मैं ट्रक का नंबर भी नहीं देख पाया.

यादविंदर खून से लथपथ सड़क पर पड़ा तड़पने लगा. फोन करने के बाद जब अस्पताल की एंबुलेंस वहां पहुंची तो उसे नाभा अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. यादविंदर के पास उस समय एक मोबाइल फोन था. वह मौके पर ही कहीं खो गया. शेर सिंह ने उस अज्ञात ट्रक चालक के खिलाफ कानूनी काररवाई किए जाने की मांग की.

शेर सिंह की इस सूचना पर चौकीइंचार्ज गुरमीत सिंह ने भादंसं की धारा 279, 304ए के तहत अज्ञात ट्रक चालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन घटना के 3-4 महीने बाद भी वह उस ट्रक चालक को नहीं ढूंढ पाई. लिहाजा इस केस की जांच वहां से सीआईए के इंचार्ज इंसपेक्टर विजय कुमार को ट्रांसफर कर दी गई.

शुरूशुरू में इंसपेक्टर विजय कुमार को भी इस केस में कोई सफलता मिलती नजर नहीं आई, पर उन्हें मामले की तह तक तो पहुंचना ही था सो उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. साथ ही अपने खास मुखबिरों को इस काम पर लगाने के बाद मृतक के पिता शेर सिंह से भी पूछताछ की. इस बार शेर सिंह ने बताया कि उन्हें संदेह है कि उस के बेटे यादविंदर की मृत्यु दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि उस की हत्या की गई थी.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ इंसपेक्टर विजय कुमार ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, ‘‘आप ने तो अपने बयानों में लिखवाया था कि उस की मौत एक्सीडेंट से हुई थी. आप के बयानों के अनुसार एक अंजान ट्रक चालक के खिलाफ रिपोर्ट भी लिखी गई थी. अगर ऐसी बात थी तो आप ने यह सब पहले क्यों नहीं बताया था. इस प्रकार गलतबयानी कर के आप ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की है.’’

‘‘साहबजी, दरअसल किसी ने मुझे उस रात खबर दी थी कि यादविंदर का एक्सीडेंट हो गया है और उस की लाश सड़क पर पड़ी है. खबर सुनते ही मैं मौके पर पहुंचा तो बेटा तड़प रहा था. वहीं उस की मोटरसाइकिल भी पड़ी थी. फोन कर के मैं ने एंबुलेंस बुलाई और उसे नाभा के अस्पताल ले गया था.

‘‘पहली अक्तूबर को मैं ने पुलिस चौकी के एसआई गुरमीत सिंह को जो बयान दिया था, वह किसी के कहने पर दिया था, जबकि सच्चाई यह है कि मैं ने ट्रक वाले को नहीं देखा था.

‘‘सच्चाई यह है कि उस समय बेटे की लाश देख कर मैं अपना होश खो बैठा था. लोग जैसा कह रहे थे, मैं वैसा ही कर रहा था. अब मैं पूरी तरह ठीक हूं. मुझे उम्मीद है कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर मामले को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की है.’’

शेर सिंह की बात सुनने के बाद इंसपेक्टर विजय कुमार ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. जांच की शुरुआत उन्होंने शेर सिंह के घर से ही की. उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि कहीं यादविंदर या शेर सिंह की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. इस काम में उन्होंने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया.

इस बीच एक मुखबिर ने इंसपेक्टर विजय कुमार को खबर दी कि शेर सिंह के परिवार की नूरपुर गांव के रहने वाले जसवंत सिंह उर्फ जस्सा के साथ दुश्मनी थी. दुश्मनी की वजह क्या थी, यह बात मुखबिर नहीं बता सका.

जस्सा के साथ शेर सिंह की क्या दुश्मनी थी, यह जानने के लिए उन्होंने शेर सिंह को सीआईए औफिस बुलाया तो शेर सिंह ने बताया, ‘‘साहब, जस्सा से उस की ऐसी कोई खास दुश्मनी नहीं है. बस खेतों के पानी को ले कर एकदो बार उस से कहासुनी जरूर हो गई थी.’’

शेर सिंह के हावभाव और बातों से इंसपेक्टर विजय कुमार समझ गए कि वह कुछ छिपा रहा है या जानबूझ कर वह सच नहीं बताना चाहता. और फिर खेतों के पानी को ले कर तो गांवों में अकसर छोटेमोटे झगड़े होते ही रहते हैं. इस के पीछे कोई किसी का कत्ल नहीं करता. बात जरूर कोई और ही रही होगी.

बहरहाल, इंसपेक्टर विजय को किसी ऐसे आदमी की तलाश थी जो जस्सा और शेर सिंह के बीच चल रही दुश्मनी की सही वजह का पता लगा सके. थोड़ी कोशिश के बाद उन्हें एक ऐसी चतुर औरत मिल गई. वह न केवल जसवंत सिंह उर्फ जस्सा और शेर सिंह के परिवारों के बीच की दुश्मनी का पता लगा सकती थी बल्कि उन की कुंडली भी खंगाल सकती थी.

इंसपेक्टर विजय ने उसे कुछ ईनाम देने का लालच दिया तो वह यह काम करने के लिए तैयार हो गई. काम सौंपे जाने के कुछ दिनों बाद उस औरत ने सब पता लगाने के बाद उन्हें जो कुछ बताया, उस में उन्हें सच्चाई दिखाई दी. उस औरत ने बताया कि जस्सा और शेर सिंह के बीच दुश्मनी की वजह खेतों का पानी नहीं था बल्कि जस्सा की खूबसूरत बेटी थी. जस्सा की एक बेटी थी कल्पना, जिस की सुंदरता की चर्चा आसपास के गांवों में भी थी. उस के चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त थी.

शेर सिंह के बेटे यादविंदर की नजर जब उस पर पड़ी तो पहली नजर में ही वह उस का दीवाना हो गया था. लड़की के अन्य चाहने वालों की तरह वह भी उस के घर के इर्दगिर्द चक्कर लगाने लगा था. यादविंदर भी अच्छाखासा गबरू नौजवान था. वह पढ़ालिखा भी था और अच्छे घर से ताल्लुक रखता था, पर कल्पना ने उसे कभी लिफ्ट नहीं दी. वह भी एक अच्छे परिवार की संस्कारी लड़की थी.

प्यार वगैरह के फालतू चक्करों में वह नहीं पड़ना चाहती थी. इसलिए यादविंदर क्या उस ने किसी भी लड़के को भाव नहीं दिया. लेकिन यादविंदर किसी न किसी तरह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करता रहा. कल्पना के घर के चक्कर लगाने की यादविंदर की दिनचर्या सी बन गई थी. कल्पना की झलक पाने या उस से बात करने के चक्कर में वह उस के घर के कई चक्कर रोजाना लगाता था. जब वह उसे रास्ते में मिल जाती तो वह उस के साथ छेड़छाड़ करे बिना नहीं मानता था.

1-2 बार तो कल्पना के पिता जस्सा ने यादविंदर को अपनी बेटी के साथ छींटाकशी करते देख लिया था. तब उन्होंने उसे चेतावनी दे कर छोड़ दिया था. पर यादविंदर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. एक रोज तो यादविंदर ने हद ही कर दी. उस ने कल्पना का रास्ता रोक कर उस का हाथ पकड़ कर बात करने की कोशिश की. कल्पना को यह बात बहुत बुरी लगी. उस ने यह सारी बात अपने पिता जसवंत सिंह को बता दी. पानी सिर से इतना ऊंचा पहुंच जाएगा, इस बात का अंदाजा शायद जसवंत सिंह उर्फ जस्सा को नहीं था.

बेटी के मुंह से यादविंदर की करतूतें सुन कर जस्सा का खून खौल उठा. वह सीधा शेर सिंह के घर गया. उस ने यादविंदर को ही नहीं, बल्कि शेर सिंह को भी खरीखोटी सुनाई. बापबेटे की उस ने गांव वालों के सामने ही बेइज्जती की और बाद में चलते समय उस ने शेर सिंह को यह भी धमकी दी कि अगर उस ने अपने बेटे पर लगाम नहीं लगाई तो वह उस के टुकड़ेटुकड़े कर देगा.

यह धमकी जस्सा ने पूरे गांव के सामने दी थी, पर इंसपेक्टर विजय कुमार को गांव वालों ने यह बात नहीं बताई थी. बहरहाल, जस्सा और शेर सिंह के बीच दुश्मनी की असली वजह इंसपेक्टर विजय कुमार को पता चल चुकी थी. उन्होंने जस्सा को पूछताछ के लिए सीआईए औफिस बुलवा लिया. उन्होंने उस से यादविंदर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने खुद को निर्दोष बताया. उस ने कहा, ‘‘साहब, आप को शायद गलतफहमी हुई है. यादविंदर की हत्या नहीं हुई, बल्कि उस का एक्सीडेंट हुआ था.’’

‘‘बकवास बंद करो.’’ इंसपेक्टर विजय ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘हमें सब मालूम है कि यादविंदर का एक्सीडेंट हुआ था या अपनी बेटी के चक्कर में तुम ने मिल कर उस की हत्या की थी. यह सारी सच्चाई मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

इंसपेक्टर विजय की घुड़की के बाद जसवंत सिंह उर्फ जस्सा हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा और रोते हुए कहने लगा, ‘‘साहबजी, मैं यादविंदर की हत्या नहीं करना चाहता था पर जब बात इज्जत पर बन आई तो मजबूरन मुझे यह कदम उठाना पड़ा.’’

इस के बाद उस ने यादविंदर के एक्सीडेंट के रहस्य से परदा उठाते हुए उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

यादविंदर काफी समय से जस्सा की बेटी कल्पना को छेड़छेड़ कर परेशान कर रहा था. जस्सा ने उसे प्यार से और धमका कर हर तरह से समझा कर देख लिया था पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. जस्सा ने उस के पिता शेर सिंह को भी चेतावनी दी पर यादविंदर पर किसी बात का असर नहीं हुआ था. उल्टे यादविंदर कल्पना को धमकी देता था कि यदि उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उसे उठा कर ले जाएगा.

30 सितंबर, 2017 की रात यादविंदर कल्पना से बातचीत करने के लिए उस के घर की तरफ चक्कर लगाने के लिए आया था. इत्तफाक से उस समय जस्सा भी अपने घर के बाहर खड़ा था. यादविंदर को देखते ही उस के तनबदन में आग लग गई. उस जलती हुई आग पर तेल खुद यादविंदर ने ही डाला. वह जस्सा के घर के बाहर खड़ा हो कर अपनी बाइक का हौर्न बजाने लगा. जस्सा ने यादविंदर को अपने पास बुला लिया और प्यार से बातें करते हुए उसे अपने खेतों की ओर ले गया.

उस समय जस्सा के साथ उस का भतीजा मनदीप सिंह मनी व नौकर सुखविंदर सिंह उर्फ काला भी था. अपने खेत में पहुंचने के बाद यादविंदर को सबक सिखाने की नीयत से तीनों ने जम कर उस की पिटाई की. उन का इरादा यादविंदर की हत्या करने का नहीं था पर अंधाधुंध पिटाई करने से यादविंदर की मौत हो गई. यादविंदर की मौत के बाद तीनों घबरा गए और इस हत्या से बचने के उपाय सोचने लगे.

अंत में तीनों ने मिल कर यादविंदर की हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की योजना बनाई और उस की लाश और मोटरसाइकिल अपनी ट्रौली पर लाद कर नाभा रोड पर चन्नो गांव के पास ला कर सड़क पर फेंक दिया. उस की लाश उधर से गुजरने वाले किसी वाहन से कुचल गई थी. फिर जस्सा ने ही किसी से यादविंदर का एक्सीडेंट होने की सूचना शेर सिंह के पास पहुंचा दी थी.

शेर सिंह चन्नो गांव के करीब गया तो बेटे की लहूलुहान लाश देख कर घबरा गया. फिर वह उसे एंबुलेंस से नाभा अस्पताल ले गया था. जस्सा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने अन्य आरोपी मनदीप सिंह और सुखविंदर उर्फ काला को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों को अदालत में पेश कर उन्हें 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड अवधि में उन की निशानदेही पर कुछ सबूत भी हासिल किए. बाद में उन्हें पुन: न्यायालय में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया. पुलिस को यह मामला सुलझाने में भले ही 8 महीने लग गए, लेकिन साजिश का खुलासा कर के आरोपियों को जेल पहुंचा दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कल्पना परिवर्तित नाम है.