सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 3

महेंद्र को कहीं से पता चला कि चांदनी चौक में ऐसे तमाम लोग हैं, जो यहां से लाखों रुपए के गहने गुजरात ले जाते हैं और वहां से भी उसी तरह गहने दिल्ली आते हैं. उस ने सोचा कि अगर उन्हीं में से किसी को शिकार बना लिया जाए तो एक ही झटके में लाखों रुपए हाथ लग सकते हैं.

इस के बाद वह यह पता लगाने लगा कि यह काम कौनकौन करते हैं. किसी जानकार ने उसे बताया कि दिल्ली के कूचा घासीराम में कई आंगडि़ए हैं, जो दिल्ली से बाहर गहने भेजते हैं. वहीं एक सरजू पंडित नाम का आदमी है, जो उन आंगडिय़ों के बारे में अच्छी तरह से जानता है. क्योंकि वह उन्हें चायपानी पिलाता है. अगर सरजू पंडित को विश्वास में ले लिया जाए तो मोटा माल हाथ लग सकता है.

महेंद्र कूचा घासीराम के सरजू पंडित के पास पहुंच गया. उस ने पहले तो किसी जरिए उस से जानपहचान की. इस के बाद वह रोजाना उस से मिलने लगा. धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. जब दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई तो एक दिन महेंद्र ने सरजू को अपनी योजना के बारे में बता कर पैसों का लालच दे कर कि जो भी माल हाथ लगेगा, उस में से एक हिस्सा उसे दिया जाएगा, के बाद आंगडि़ए के बारे में पूछा.

सरजू पंडित लालच में आ गया. 60 वर्षीय सरजू पंडित ने महेंद्र को प्रवीण कुमार के बारे में बताया ही नहीं, उसे पहचनवा भी दिया. प्रवीण कूचा घासीराम स्थित राजेश कुमार अरविंद कुमार आंगडिय़ा की फर्म में काम करता था. यह फर्म गहनों की कूरियर का काम करती थी. दिल्ली के कुछ ज्वैलर्स इस फर्म द्वारा पुराने गहने अहमदाबाद भेज कर वहां से नए डिजाइन के तैयार गहने मंगाते थे. यह काम इस फर्म का कूरियर बौय भरतभाई करता था. वह हर 2 दिन बाद दिल्ली आता था.

सरजू पंडित ने महेंद्र को पूरी बात बता तो दी, लेकिन महेंद्र यह फैसला नहीं कर सका कि कूरियर बौय भरतभाई से माल कैसे झटका जाए. महेंद्र का एक दोस्त था रोशन गुप्ता, जो विवेक विहार की झिलमिल कालोनी में रहता था. वह पेशे से ड्राइवर था. उस के 2 बच्चे थे, जो बड़े हो चुके थे. उन की शादी को ले कर वह काफी परेशान था. कुछ दिनों पहले उस ने मकान बनवाया था, जिस से उस पर ढाई लाख रुपए का कर्ज हो गया था. उसे इस बात की भी चिंता रहती थी कि वह कर्ज कैसे चुकाएगा.

महेंद्र ने लूट की योजना रोशन को समझाई तो पैसों की सख्त जरूरत की वजह से वह भी उस के साथ यह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने एक महीने तक उस रूट की रेकी की, जिस रूट से भरतभाई और प्रवीण माल ले कर नई दिल्ली स्टेशन आतेजाते थे. रेकी में रोशन ने अपनी स्प्लेंडर मोटरसाइकिल का उपयोग किया था.

रूट को अच्छी तरह समझने के बाद बात हुई कि वारदात को कैसे अंजाम दिया जाए, क्योंकि इस में रिस्क था, इसलिए हथियारबंद लोगों का भी इस में शामिल होना जरूरी था. रोशन मनीष शर्मा और मोहम्मद आरिफ नाम के बदमाशों को जानता था. दोनों ही गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद के रहने वाले थे.

मनीष शार्पशूटर था तो मोहम्मद आरिफ शातिर चाकूबाज. रोशन ने दोनों से बात की. वे राजी हो गए तो उन्हें भी योजना में शामिल कर लिया. दोनों बदमाशों को शामिल करने के बाद उन के दिमाग में बात आई कि ज्वैलरी लूटने के बाद मोटरसाइकिल से तुरंत भागना होगा. इस के लिए उन्हें भीड़भाड़ वाली जगह में भी तेजी से मोटरसाइकिल चलाने वाले 2 लोग चाहिए.

इस बारे में आपस में चर्चा हुई तो मनीष शर्मा ने बताया कि वह जसपालदास उर्फ रिंकू को जानता है. वह भी साहिबाबाद में रहता है. पहले वह दिल्ली में क्लस्टर बस चलाता था. कुछ दिनों पहले उस ने नौकरी छोड़ा है. वह एक अच्छा बाइक रेसर है. जसपाल को एक खतरनाक जानलेवा बीमारी थी, उसी के इलाज के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.  मनीष ने उसे लूट की योजना बताई तो वह भी तैयार हो गया. उस के पास चोरी की एक पल्सर मोटरसाइकिल भी थी.

उन्हें एक मोटरसाइकिल चलाने वाला मिल गया था, एक की अभी और जरूरत थी. इस के लिए जसपाल ने अरुण नागर उर्फ बौबी से बात कराई. अरुण नागर मोटरसाइकिल से स्टंट करता था. वह बेरोजगार था. पैसों के लालच में वह भी उन के साथ काम करने को तैयार हो गया. अरुण ने भी किसी की अपाचे मोटरसाइकिल चुरा रखी थी, जिस की नंबर प्लेट बदल कर वह उसे खुद ही चलाता था.

पूरी टीम तैयार हो गई तो सभी ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कूचा घासीराम बाजार तक का कई बार चक्कर लगाया. इस के बाद इस बात पर विचार किया जाने लगा कि घटना को किस जगह अंजाम दिया जाए, जहां से वे आसानी से भाग सकें.

काफी सोचनेविचारने के बाद कुतुब रोड पर तांगा स्टैंड के पास वारदात को अंजाम देना निश्चित किया गया. क्योंकि वहां जो दुकानें बनी थीं, वे सुबह के समय बंद रहती थीं और सामने की पार्किंग भी खाली रहती थी.  सुनसान रहने की वजह से वहां से यूटर्न ले कर भागना आसान था.  वारदात की जगह निश्चित करने के बाद इस बात का भी कई बार रिहर्सल किया गया कि बैग को छीन कर किस तरह वहां से भागना है.

महेंद्र और रोशन गुप्ता को इस बात की पुख्ता जानकारी मिल गई थी कि अहमदाबाद से माल ले कर भरतभाई अहमदाबाद- नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस से 2 जनवरी को नई दिल्ली स्टेशन पर उतरेगा. उसे पता ही था कि भरतभाई को लेने प्रवीण कुमार आता है. वहां से दोनों औटो से औफिस जाते हैं.

पूरा प्लान तैयार कर के महेंद्र, मनीष शर्मा, अरुण नागर उर्फ बौबी, रोशन गुप्ता, जसपाल उर्फ रिंकू और मोहम्मद आरिफ पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलों से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. महेंद्र ने सब से पहले रेलवे स्टेशन की इनक्वायरी से यह पता लगाया कि अहमदाबाद से नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस कब आ रही है.

वहां से उसे पता चला कि ट्रेन स्टेशन पर 8 बजे पहुंचेगी. भरतभाई को लेने के लिए सुबह 7 बज कर 40 मिनट पर प्रवीण स्टेशन पहुंच गया था. महेंद्र प्रवीण को पहचानता था, इसलिए वह कुछ दूरी से उस पर नजर रखने लगा, क्योंकि भरतभाई को ट्रेन से उतर कर उसी के पास आना था.

कुछ देर बाद अहमदाबाद से चल कर नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस के दिल्ली पहुंचने की घोषणा हुई, महेंद्र सतर्क हो गया. स्टेशन से बाहर निकलने वाले यात्रियों को महेंद्र गौर से देख रहा था. जब उसे भरतभाई दिखा तो वह खुश हो गया. भरत के हाथ में एक बैग था. भरत को पहले से ही पता था कि प्रवीण कहां खड़ा हो कर उस का इंतजार करता है, इसलिए वह स्टेशन से बाहर सीधे उसी स्थान पर पहुंच गया, जहां प्रवीण खड़ा था.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 3

प्यारेलाल को जब पता चला कि रचना नाराज हो कर उन की बेटी के पास नवादा चली गई है तो उन्हें ज्यादा चिंता नहीं हुई. उन्होंने सोचा कि 2-4 दिन में गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह लौट आएगी. बहन के यहां रह कर रचना अपने लिए नौकरी तलाशने लगी. थोड़ी कोशिश करने के बाद नांगलोई में एक होम्योपैथी फार्मेसी में उस की नौकरी भी लग गई.

रचना स्वच्छंद विचारों की थी, इसलिए नवादा में अपनी बहन से भी उस की नहीं बनी तो बहन का मकान छोड़ कर वह द्वारका सेक्टर-7 में किराए पर रहने लगी. अब द्वारका में उस से कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उस का जहां मन करता, घूमतीफिरती थी. फेसबुक और अन्य सोशल साइटों के जरिए नएनए दोस्त बनाना उसे अच्छा लगता था. सोशल साइट के जरिए उस की दोस्ती नाइजीरियन युवक चिनवेंदु अन्यानवु से हुई.

चिनवेंदु जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से आईटी की पढ़ाई कर रहा था. धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ती गई तो वह रचना से मिलने दिल्ली आने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच प्यार हो गया. यह प्यार शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच गया. इस के बाद तो रचना उस की ऐसी दीवानी हुई कि अपनी नौकरी छोड़ कर उस के साथ जयपुर में लिव इन रिलेशन में रहने लगी. वह जयपुर में करीब एक साल रही.

चिनवेंदु का एक दोस्त था जेम्स विलियम. वह भी नाइजीरिया का ही रहने वाला था. वह ग्रेटर नोएडा के किसी इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रहा था. जेम्स अकसर चिनवेंदु से मिलने जयपुर जाता रहता था, इसलिए वह रचना को भी जान गया था.

जयपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद चिनवेंदु रचना को ले कर ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. वे दोनों जानते थे कि रचना सोशल साइट पर लोगों से दोस्ती करने में माहिर है. इसलिए दोनों युवकों ने लोगों से पैसे ऐंठने का नया आइडिया रचना को बताया तो रचना ने तुरंत हामी भर दी. फिर योजना बना कर किसी पैसे वाली पार्टी को फांसने का फैसला किया गया.

रचना ने सोशल साइट टैग्ड डौटकाम के जरिए नोएडा के मनीष नाम के युवक से दोस्ती की. मनीष को अपने जाल में पूरी तरह फांसने के बाद रचना ने उसे अपने कमरे पर बुलाया. बातचीत के बाद रचना और मनीष जब आपत्तिजनक स्थिति में पहुंच गए तो चिनवेंदु ने किसी तरह उन के फोटो खींच लिए. फिर क्या था, उन फोटोग्राफ के जरिए वह मनीष को ब्लैकमेल करने लगा. मगर मनीष ने पैसे देने के बजाय पुलिस को सूचना देने की धमकी दी.

इस से वे लोग डर गए और उन्होंने उसे कमरे से भगा दिया. पहला वार खाली जाने के बाद उन्होंने अब नया शिकार तलाशना शुरू किया. फिर रचना ने अगला शिकार गुड़गांव के रहने वाले जोगिंद्र को बनाया. जोगिंद्र से दोस्ती गांठने के बाद रचना ने उसे भी अपने कमरे पर बुलाया. उन्होंने जोगिंद्र को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की. लेकिन जोगिंद्र भी रचना और उस के साथियों की धमकी में नहीं आया. लिहाजा उन्होंने जोगिंद्र को भी कमरे से भगा दिया.

इस के बाद रचना और उस के साथियों ने दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में एक कमरा किराए पर लिया. रचना और उस के साथियों के 2 वार खाली जा चुके थे. अब वे मोटे आसामी की फिराक में थे. टैग्ड डौटकाम के जरिए अब रचना नया मुर्गा फांसने में जुट गई. रचना ने अरुण वाही से दोस्ती कर ली. अरुण वाही लुधियाना के सुंदरनगर के रहने वाले थे. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. 46 साल के अरुण वाही भी रचना के जाल में फंस गए. दोनों ने एकदूसरे को नेट के जरिए अपने फोटो भी भेज दिए.

अरुण वाही उस पर एक तरह से मोहित हो गए थे. सोशल साइट के जरिए वह एकदूसरे से बात करते रहते थे. रचना ने अरुण वाही को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया. 18 दिसंबर की रात को अरुण वाही की रचना से फोन पर 3 बार बात भी हुई थी. वह रचना से मिलने के लिए बेचैन थे, इसलिए 18 दिसंबर को सुबह 4 बजे लुधियाना से ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए निकल पड़े.

अरुण वाही को लेने रचना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई थी. वह स्टेशन से उन्हें कमरे पर ले गई. वाही ने सोचा कि वह उस से एकांत में मन की बात करेंगे, इसलिए किराए की कार से रचना के साथ चित्तरंजन पार्क स्थित उस के कमरे पर पहुंचे. वहां भी चिनवेंदु ने रचना के साथ आपत्तिजनक हरकतें करते हुए वाही के फोटो खींच लिए. फिर उन का मोबाइल जब्त करने के बाद उन से 4 लाख रुपए की मांग की.

अरुण वाही एक इज्जतदार परिवार से थे, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के लिए पैसे देने की हामी भी भर ली. फिर पैसे हासिल करने के लिए वाही ने लुधियाना में रहने वाले अपने दोस्त राजेंदर सिंह का नंबर उन लोगों को बता दिया. चिनवेंदु भारत में रह कर हिंदी सीख गया था. उस ने ही वाही के फोन से राजेंदर सिंह से बात कर के अरुण वाही के बदले 4 लाख रुपए देने की मांग की. बाद में उन्होंने जब राजेंदर सिंह को बैंक एकाउंट नंबर भेजा तो वाही के बजाए अपना फोन नंबर प्रयोग किया. उसी के जरिए वे लोग पुलिस के चंगुल में फंस गए.

पुलिस ने 20 दिसंबर, 2013 को अभियुक्त रचना नायक राजपूत, चिनवेंदु अन्यानवु और जेम्स विलियम को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के यहां पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन के पास से विभिन्न कंपनियों के 46 सिमकार्ड, 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, एक कैमरा, 3 लाख 98 हजार 5 सौ रुपए नकद बरामद किए. उन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना एसआई घनश्याम किशोर कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. राजेंदर सिंह और मनीष परिवर्तित नाम हैं.

ठगी का बड़ा खिलाड़ी

सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर – भाग 3

अमेरिका में बढ़ रही है ड्रग्स की मांग

मैक्सिकन गिरोह कोलंबियाई आपराधिक संगठनों के लिए संदेशवाहक और मालवाहक के तौर पर थोक व्यापारी बनने के लिए स्थानांतरित हो गए. उन में कुख्यात कैली और मेडेलिन कार्टेल शामिल हैं. मैक्सिकन कार्टेल ने 2007 तक अमेरिका में प्रवेश करने वाले कोकीन के अनुमानित 90 प्रतिशत को नियंत्रित कर लिया. अमेरिकी सरकार द्वारा ‘ड्रग्स पर युद्ध’ छेडऩे और विदेशों में अन्य मादक द्रव्यों के खिलाफ अभियानों के प्रयास के बावजूद ड्रग्स की मांग में कमी नहीं आई.

साल 2017 में अमेरिकियों ने कोकीन, हेरोइन, मारिजुआना और मेथामफेटामाइन सहित अवैध दवाओं पर 153 बिलियन डालर खर्च किए. फेंटेनाइल सहित सिंथेटिक ओपिओइड के बढ़ते उपयोग से सार्वजनिक स्वास्थ्य के बिगडऩे जैसा संकट भी बढ़ गया. अमेरिका में आने वाली अधिकांश अवैध दवाएं, जो अधिकारियों द्वारा जब्त की जाती हैं, उन्हें 300 से अधिक बंदरगाहों पर अमेरिकी प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा खोजी जाती हैं.

समुद्री और स्थल की सीमा पर अमेरिकी अधिकारियों द्वारा पता लगाने से बचने के लिए तस्कर विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं. इन में वाहनों या समुद्री जहाजों में ड्रग्स को छिपाना है. इस के लिए भूमिगत सुरंगों का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका में तस्करी करते हैं. नए तरीकों में सीमा पर ड्रोन या अन्य विमानों का उपयोग भी शामिल हो गया है. तस्करों द्वारा अमेरिका में नशीली दवाओं के थोक शिपमेंट की तस्करी के बाद इसे स्थानीय समूह और स्ट्रीट गैंग चप्पेचप्पे में फैलाने का प्रबंधन करते हैं.

ऐसा भी नहीं है कि मैक्सिको ने कार्टेल के खिलाफ कुछ नहीं किया. फेलिप काल्डेरोन (2006-2012) ने राष्ट्रपति पद संभालने के तुरंत बाद कार्टेल पर युद्ध की घोषणा कर दी थी. अपने 6 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कार्टेल की गतिविधियों पर नकेल लगाने के लिए हजारों सैन्यकर्मियों को तैनात कर दिया था.

कई मामलों में वैसे स्थानीय पुलिस बलों को बदल दिया था, जिन्हें भ्रष्ट माना गया था. अमेरिकी सहायता से मैक्सिकन सेना ने मैक्सिको में शीर्ष 37 ड्रग किंगपिनों में से 25 को पकड़ कर मार डाला था. सैन्य काररवाई काल्डेरोन के कार्यकाल का केंद्रबिंदु थी.

कारोबार रोकने में सरकार भी नाकाम

इस अभियान पर काल्डेरोन आलोचनाओं से घिर गए थे. आलोचकों का कहना था कि काल्डेरोन की सिर काटने की रणनीति ने दरजनों छोटे और अधिक हिंसक ड्रग गिरोह बना लिए हैं. कई लोग यह भी तर्क देते हैं कि मैक्सिको की सेना पुलिस कार्यों को करने के लिए तैयार नहीं थी. सरकार ने काल्डेरोन के कार्यकाल के दौरान 1,20,000 से अधिक हत्याओं की जानकारी दी, जो उन के पहले की सरकारों के कार्यकाल के दौरान हुई हत्याओं की लगभग दोगुनी थी.  इस बारे में विशेषज्ञों का अनुमान है कि मैक्सिको में एकतिहाई से डेढ़ गुना हत्याएं कार्टेल से जुड़ी हुई थीं.

काल्डेरोन के उत्तराधिकारी एनरिक पेना नीटो ने कार्टेल के नेताओं को हटाने की तुलना में नागरिकों और व्यवसायियों के खिलाफ हिंसा को कम करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की बात कही. फिर भी राष्ट्रपति पेना नीटो ने कार्टेल से लडऩे के लिए संघीय पुलिस के साथ मिल कर काम करने लिए सेना पर भरोसा किया. उन्होंने कई हजार अधिकारियों का एक खास तरह का नया राष्ट्रीय पुलिस बल भी बनाया.

इस का प्रभाव दिखा और नीटो के राष्ट्रपति पद के पहले वर्षों में हत्याओं में कमी आई, लेकिन 2015 में फिर तेजी देखी गई. उन के कार्यकाल के अंत तक आधुनिक मैक्सिकन इतिहास में हत्याओं की संख्या शिखर पर जा पहुंची थी. विशेषज्ञ इस का श्रेय सरगना रणनीति, क्षेत्रीय झगड़ों और कार्टेल टूटने में आई लगातार गिरावट को देते हैं.

उस के बाद साल 2018 में एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर ने राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के कुछ समय बाद ही घोषणा की कि उन की सरकार कार्टेल नेताओं को पकडऩे के सैन्य प्रयासों से दूर हो जाएगी और इस के बजाय क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग में सुधार और हत्या की दरों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करेगी. राष्ट्रपति मैनुअल को एएमएलओ के नाम से भी जाना जाता है.

वह चाहते हैं कि ‘हग्स नौट बुलेट्स’ दृष्टिकोण अपनाते हुए रोजगार के अवसर पैदा कर संगठित अपराधियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए. इस के लिए साल 2018 से उन के प्रशासन ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया है और कार्टेल की आमदनी को बाधा पहुंचाने की हरसंभव कोशिश की है. इस ने सभी अवैध दवाओं को अपराध से मुक्त करने और निम्नस्तरीय कार्टेल सदस्यों को माफी की पेशकश करने का भी प्रस्ताव दिया है.

हालांकि एएमएलओ ने अपनी रणनीति को एक नए दृष्टिकोण के रूप में तैयार किया है, जिस पर कुछ विशेषज्ञों ने नकारात्मक टिप्पणी की है. उन का कहना है कि सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक नए सैन्य नेतृत्व वाले राष्ट्रीय गार्ड को तैनात करने सहित उस के कार्य पहले जैसी ही रणनीति हैं, जो असफल होते रहे हैं. यह भी सच है कि हत्या की दर में कोई कमी नहीं आई है.

नागरिक स्वतंत्रता समूहों, पत्रकारों और विदेशी अधिकारियों ने वर्षों से कार्टेल के साथ मैक्सिकन सरकार के युद्ध की आलोचना की है, जिस में सेना, पुलिस और कार्टेल पर व्यापक मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है. उन का कहना है कि इस युद्ध में यातनाएं, न्यायिक अधिकार एवं मुकदमे से हट कर की गई हत्याएं और जबरन गायब होने जैसी वारदातें शामिल हैं.

मानवाधिकारों का हो रहा है उल्लंघन

साल 2006 के बाद से 79 हजार से अधिक लोग गायब हो गए हैं. वे मुख्यरूप से कार्टेल जैसे आपराधिक संगठनों के कारण गायब हुए हैं, लेकिन उन में सरकारी बल भी एक भूमिका निभाते हैं. लापता लोगों को खोजने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए स्थानीय तलाशी के प्रयासों को कार्टेल से संबंधित हिंसा,
सरकारी अक्षमता और भ्रष्टाचार जैसी वजहों से बाधा पहुंचती है.

इस का एक बड़ा उदाहरण 2014 में दक्षिणी राज्य ग्युरेरो में तब देखने को मिला था, जब 43 छात्र प्रदर्शनकारियों का अपहरण कर लिया गया था और उन के मारे जाने की आशंका जताई गई थी. हालांकि बाद में केवल 3 छात्रों के अवशेषों की निश्चित रूप से पहचान की गई थी.

इस घटना के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों का दौर चला था. प्रदर्शनकारियों ने अपहरण के बारे में जवाब मांगते हुए मैक्सिको के स्थानिक भ्रष्टाचार, हिंसा और अन्य अपराध पर अंकुश लगाने की मांग की थी. छात्रों के लापता होने की जांच में कथित तौर पर जो सबूत मिले, उस में पुलिस और सेना सहित अधिकारियों द्वारा अपराधों में कार्टेल सदस्यों के साथ साजिश रचने की बात आई.

छात्रों के परिवारों, मानवाधिकार समूहों और स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा पिछली जांच के संचालन पर सवाल उठाने के बाद सरकार ने एक नई जांच शुरू की है. इसे ले कर अगस्त 2022 में एक न्यायाधीश ने पूर्व अटार्नी जनरल को आदेश दिया है कि मूल जांच की देखरेख के लिए जबरन गायब होने, यातना की रिपोर्ट करने में विफलता और कदाचार के आरोपों पर मुकदमा चलाया जाए.

सीमा हैदर : प्रेम दीवानी या पाकिस्तानी जासूस – भाग 3

सचिन के गांव में चर्चा का विषय बन गई थी खूबसूरत सीमा

अगले दिन से जब लोगों ने नेत्रपाल के घर में एक खूबसूरत महिला व 4 बच्चों को देखा तो गांव में खुसरफुसर होने लगी. मांग में सिंदूर और सिर पर साड़ी का पल्लू डाल कर रखने वाली सीमा बेहद खूबसूरत थी. लोगों ने जब नेत्रपाल व उस के परिवार वालों से घर में आई अंजान महिला के बारे में पूछा तो परिवार ने बताया कि ये उन की बहू सीमा है, जिस के साथ सचिन ने प्रेम विवाह किया है.

परिवार ने गांव वालों को बताया कि सीमा का अपने पति से तलाक हो चुका है, इसलिए वह अपने चारों बच्चों के साथ सचिन के साथ रहने आ गई है, लेकिन अचानक सामने आई इस प्रेम कहानी को ले कर गांव में रहस्यभरी बातें होने लगीं. सीमा और सचिन अपनी शादी को वैध करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने नोएडा कोर्ट में मैरिज के लिए आवेदन किया तो पुलिस ने वैरीफिकेशन के लिए सचिन व सीमा के दस्तावेज पुलिस को सौंपे गए.

पुलिस ने गांव में जा कर जब सचिन व उस की पत्नी के बारे में पड़ताल शुरू की तो किसी ने बताया कि उसे शक है कि जिस लडक़ी से सचिन ने शादी की है वो मुसलिम है और शायद पाकिस्तानी भी. क्योंकि जिस शख्स ने पुलिस को ये जानकारी दी, उस ने सीमा को ईद के दिन घर में नमाज पढ़ते देख लिया था.

बस फिर क्या था, 4 जून को सीमा को रबूपुरा थाने की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. नोएडा पुलिस के साथ इंटैलीजेंस के अधिकारियों ने भी सीमा से पूछताछ शुरू कर दी. सचिन मीणा के साथ रबूपुरा में अवैध रूप से रह रही पाकिस्तान की सीमा हैदर को पुलिस, स्वाट व सर्विलांस की संयुक्त टीम ने आ कर कस्बा रबूपुरा के मोहल्ला अंबेडकरनगर में 13 मई, 2023 से सचिन के साथ अवैध रूप से रहने के आरोप में धारा 14 विदेशी अधिनियम, 120 बी, 34 भादंवि एवं 3/4/5 द पासपोर्ट (एंट्री इंटू इंडिया) एक्ट 1920 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन अगले दिन ही उन दोनों को जमानत मिल गई. पुलिस ने सचिन और उस के पिता नेत्रपाल उर्फ नित्तर को भी महिला को संरक्षण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि नोएडा कोर्ट ने उन्हें अगले ही दिन जमानत दे दी थी, लेकिन उन की गिरफ्तारी के साथ ही इस मामले ने तूल पकड़
लिया.

सोशल मीडिया पर वायरल हो गई पाकिस्तानी बहू

जमाना सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की आजादी का है. वैसे भी हिंदुस्तान में पाकिस्तान से जुड़ी हर चीज को संदेह की नजर से देखा जाता है. एक दुश्मन देश की महिला अपना घरबार बेच कर एक साधारण से नौजवान से शादी करने के लिए अवैध रूप से कई देशों की सीमा लांघ कर देश में आ गई तो पूरे देश के लोगों में कौतूहल पैदा होना ही था.

एक तरफ जहां पाकिस्तान वाली भाभी कह कर दूरदूर से लोग सीमा को देखने के लिए सचिन के रबूपूरा स्थित घर पहुंचने लगे तो कुछ लोगों ने उसे पाकिस्तानी जासूस कह कर सवाल भी उठाने शुरू कर दिए.
जब बात शक और संदेह की होती है तो लोग सवाल भी पूछते हैं. लोग सीमा को विषकन्या कह कर कई तरह के सवाल पूछने लगे. सीमा अचानक भारत में अखबारों व टीवी की हैडलाइन बन गई. जाहिर है जिस मुल्क की रहने वाली थी, उस पाकिस्तान में भी उस की चर्चा शुरू होनी थी.

इधर भारत की जांच एजेंसियां सीमा के जासूस होने के शक में उस की छानबीन करने लगीं तो दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर भी सीमा को ले कर नित नए सवाल खड़े होने लगे. पुलिस ने सीमा हैदर के पास से पासपोर्ट के अलावा उस का मैरिज सर्टिफिकेट, 3 आधार कार्ड, गवर्नर औफ पाकिस्तान नैशनल डाटाबेस ऐंड रजिस्ट्रैशन अथारिटी (मिनिस्ट्री औफ इंटीरियर) की एक सूची भी बरामद की है. महिला के पास 5
वैक्सीनेशन कार्ड और काठमांडू से दिल्ली तक की यात्रा के बस टिकट भी बरामद किए गए.

सीमा और उस के बच्चों के पासपोर्ट पर नेपाल का वीजा भी मिला है. इतना ही नहीं, सीमा की पहली शादी के 2 वीडियो कैसेट भी मिले, वो अपनी शादी से जुड़े सभी दस्तावेज और सबूत ले कर भारत आई है. पबजी से शुरू हुई ये लव स्टोरी ग्रेटर नोएडा में आ कर खत्म हो गई है. पुलिस की सीमा पर शक की वजह भी थी. अकसर हनीट्रैप या ऐसे ही दूसरे मामलों में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी अपने जासूसों को भारत भेजती रही है. अब पुलिस इसी बात की जांच कर रही है कि सीमा सच में मोहब्बत की मारी है या फिर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का कोई मोहरा.

फिलहाल उत्तर प्रदेश पुलिस की एटीएस व केंद्रीय जांच एजेंसियों को कोई भी सबूत नहीं मिला है, जिस से सीमा को पाकिस्तानी जासूस साबित किया जा सके, लेकिन उस के बयानों में इतने विरोधाभास हैं कि उस ने पुलिस को सीमा पर शक के लिए मजबूर कर दिया है.

सचिन की शुरुआती जांच के बाद ऐसा ही लगता है कि वो भी इश्क का ही शिकार है. सचिन का कोई पुराना क्रिमिनल रिकौर्ड नहीं मिला है, लेकिन बगैर वीजा और कानूनी यात्रा दस्तावेज के सीमा और उस के बच्चों के भारत आने और ये सब कुछ जानते हुए भी सचिन का उस को पनाह देना कानून की नजर में जुर्म है. जांच एजेंसियों का कहना है कि कानूनन सीमा को पाकिस्तान तो वापस जाना ही होगा.

बुझ गया आसमान का दीया – भाग 3

हरिदत्त शर्मा के यहां मोहल्ले वालों का तांता लगा था. सभी को दुख के साथसाथ गुस्सा भी आ रहा था. अगले दिन हरिदत्त शर्मा 15-20 लोगों के साथ आईपीएसआर के छतरपुर औफिस पहुंचे तो वहां उन लोगों में से कोई नहीं मिला, जिन से उन की बात होती थी. पहलवान जैसा एक आदमी मिला, जिस का नाम प्रमोद राणा था. उसी जैसे 6-7 लोग और उस के साथ थे. उस ने खुद को संस्थान का निदेशक बता कर मामले को रफादफा करने को कहा.

हरिदत्त ने बेटे को विदेश से वापस बुलाने को कहा तो प्रमोद राणा को लगा कि मामला सुलझने वाला नहीं है. उस ने अपने साथियों से हरिदत्त और उन के साथ आए लोगों को धक्के मार कर निकलवा दिया. बाद में पता चला वह हौस्टल का इंचार्ज था.

प्रमोद राणा के इस व्यवहार से क्षुब्ध हो कर हरिदत्त ने 100 नंबर पर फोन कर दिया. जो पुलिस वाले आए वे भी हरिदत्त पर समझौता के लिए दबाव बनाने लगे. उन का आरोप है कि प्रमोद राणा ने पुलिस वालों की जेब गरम कर दी थी, इसलिए वे उसी का पक्ष ले रहे थे.

हरिदत्त शर्मा थाना महरौली पहुंचे और आईपीएसआर के कर्मचारियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करानी चाही. तब थानाप्रभारी रमन लांबा ने सबइंसपेक्टर एस.पी. समारिया को जांच करा कर रिपोर्ट दर्ज करने को कहा.

बेटे को ले कर हरिदत्त शर्मा काफी परेशान थे. पुलिस रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कर रही थी. ऐसी स्थिति में वह डीसीपी बी.एस. जायसवाल और उपराज्यपाल नजीब जंग से मिले. इस के बाद भी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई. हरिदत्त को फोन कर के धमकी जरूर दी जाने लगी कि अगर वह समझौता नहीं करते तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

हरिदत्त ने इस की भी शिकायत की. जब लोगों ने देखा कि पुलिस रिपोर्ट नहीं दर्ज कर रही है तो 20 मई, 2014 को बुराड़ी के लोग 2-3 बसों में भर कर दक्षिणी दिल्ली के डीसीपी कार्यालय पहुंच गए और रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग करते हुए वे धरने पर बैठ गए. उन के साथ आम आदमी पार्टी के विधायक संजीव झा भी थे. जिस शैलेंद्र शर्मा ने हरिदत्त शर्मा को फोन पर धमकी दी थी, उसी ने फोन कर के कहा कि धरना मत दो, प्रदीप की लाश भारत आ रही है.

हरिदत्त शर्मा ने उस की बात नहीं मानी और हाथों में तरहतरह के नारों की तख्तियां लिए वे धरने पर बैठे रहे. भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी, इसलिए वरिष्ठ अधिकारियों ने आ कर उन्हें समझाने की कोशिश की. लेकिन वे लोग तभी माने जब थाना महरौली पुलिस ने आईपीएसआर मेरिटाइम के कर्मचारियों के खिलाफ भादंवि की धारा 370 (मानव तस्करी) के तहत मुकदमा दर्ज किया.

पुलिस ने इंस्टीट्यूट पर दबाव बनाया. इस के बावजूद लाश नहीं आई. तब 29 मई को सैकड़ों लोग भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय के बाहर पहुंच कर नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रदीप की लाश भारत लाने और अभियुक्तों के खिलाफ काररवाई की मांग करने लगे. वहां से वे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के कार्यालय गए. वह वहां नहीं थीं, तब उन के पीए मनीष गुप्ता से हरिदत्त ने अपनी व्यथा सुनाई और उचित काररवाई करने की गुहार लगाई. मनीष गुप्ता ने इमिग्रेशन जांच कराने का भरोसा उन्हें दिया.

हरिदत्त शर्मा सैकड़ों लोगों के साथ जंतरमंतर पर धरना देने जा रहे थे, तभी उन्हें भारतीय विदेश मंत्रालय से फोन द्वारा सूचना दी गई कि प्रदीप शर्मा की लाश तेहरान से फ्लाइट नंबर ईके-0972 द्वारा दुबई और वहां से फ्लाइट नंबर ईके-0514 से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर आएगी. यह फ्लाइट रात तकरीबन 8 बज कर 20 मिनट पर दिल्ली पहुंचेगी.

सभी लोग हवाईअड्डे पहुंच गए. महरौली के थानाप्रभारी भी भारी पुलिस बल के साथ वहां मौजूद थे. इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जैसे ही प्रदीप शर्मा की लाश का ताबूत पहुंचा, वहां मौजूद दिल्ली पुलिस ने उस ताबूत को अपने कब्जे में ले लिया और पोस्टमार्टम के लिए एम्स ले गई.

चूंकि मामला बहुचर्चित हो चुका था, इसलिए पोस्टमार्टम के लिए 3 डाक्टरों डा. असित कुमार सिकरी, चितरंजन बेहेरा और डा. रजनीकांत स्विम का पैनल बनाया गया.

जब प्रदीप शर्मा की लाश ताबूत से निकाली गई तो उस के शरीर पर सिर्फ अंडरवियर था. वो भी एकदम नया था. उस की जींस सिर के नीचे रखी थी. हरिदत्त शर्मा ने लाश की शिनाख्त अपने बेटे प्रदीप शर्मा के रूप में कर दी.

पोस्टमार्टम से पहले लाश का निरीक्षण किया तो उस के कंधे और बाएं हाथ पर एकएक घाव पाए गए. सिर, घुटनों और जांघों पर भी चोट के निशान थे. होंठ सूजे थे और दांत टूटे थे. पेट पर खून का थक्का जमा था. कागजों से पता चला कि उस का पोस्टमार्टम ईरान के किसी अस्पताल में हुआ था, जिस के अनुसार उस के फेफड़ों पर कैविटी थी. उसी की वजह से उस की मौत हुई थी.

एम्स के डाक्टरों ने प्रदीप की लाश खोली तो उस की शर्ट उस के पेट से मिली. पोस्टमार्टम के बाद लाश हरिदत्त शर्मा को सौंप दी गई.

पुलिस अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं कर रही थी इसलिए हरिदत्त और उन के शुभचिंतकों ने पुलिस मुख्यालय के सामने लाश रख कर पुलिस के ढीलेपन पर नाराजगी जताई. उन का कहना था कि प्रदीप की मौत टीबी से नहीं, बल्कि शिप में बुरी तरह पिटाई से हुई है. उस के शरीर पर घाव भी उसी मारपीट के हैं. इसलिए इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए. पुलिस अधिकारियों के समझाने पर उसी दिन निगमबोध घाट पर प्रदीप शर्मा का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

इस मामले में हम ने आईपीएसआर मेरिटाइम के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन उन से संपर्क नहीं हो सका.

मूलरूप से उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले के सल्ट ब्लौक के अंतर्गत रिठा गांव के रहने वाले हरिदत्त शर्मा 1992 में दिल्ली आए थे. तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें जीवन में इतने दुखद दिन देखने होंगे. जिस एकलौते बेटे का कैरियर बनाने के लिए उन्होंने अपना आशियाना तक बेच दिया, उस की यह गति होगी.

—कथा हरिदत्त शर्मा और उन के परिजनों से की गई बातचीत पर आधारित

तुझे राम कहें या राक्षस

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 2

उसी दौरान उस की मुलाकात उमेश कुमार से हुई, जो दिल्ली के आजादपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में चपरासी था. उमेश कुमार उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा की तहसील छाता के दलोटा गांव के रहने वाले चंद्रपाल का बेटा था. करीब 2 साल पहले उमेश ने इंटर किया, तभी उस के पिता की मौत हो गई.

पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उमेश पर आ गई. उस के पिता ने बैंक से एक लाख रुपए का लोन ले रखा था. उन्होंने उस की कुछ किस्तें ही दी थीं. आगे की किस्तें जमा न होने से लोन की राशि बढ़ कर एक लाख रुपए से ज्यादा हो गई थी.

आरसी कट जाने से संग्रह अमीन उस के यहां बारबार वसूली का तकादा करने आने लगा, जिस से उस के परिवार की गांव में बेइज्जती होने लगी. उमेश बहुत परेशान था. उस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह लोन अदा कर देता. पैसे न होने की वजह से वह बीए में दाखिला भी नहीं ले सका था. उस के गांव के कई लडक़े दिल्ली में नौकरी करते थे.

नौकरी की लालसा में वह भी उन के साथ करीब डेढ़ साल पहले दिल्ली चला आया. दिल्ली में किसी के माध्यम से उसे आजादपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में अस्थाई तौर पर चपरासी की नौकरी मिल गई. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उसी में से कुछ बचा कर वह गांव में अपनी मां के पास भेज देता था.

तपन कुमार को जब उमेश ने अपने घर के हालात के बारे में बताया तो उसे उमेश से सहानुभूति हो गई. उमेश को अपने साथ काम के लिए एक आदमी की जरूरत थी. उस ने उस के सामने अपने साथ काम करने का प्रस्ताव रखा तो वह तैयार हो गया. तब तपन ने उसे साढ़े 6 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर अपने साथ लगा लिया.

तपन शकूरपुर गांव में किराए का कमरा ले कर रहता था. उमेश को भी उस ने अपने कमरे पर रख लिया. इस से उमेश का मकान का किराया और खानेपीने का खर्च बच रहा था, जिस से वह ज्यादा से ज्यादा पैसे मां के पास भेज देता था. तपन धीरेधीरे उमेश को भी बिजली फिटिंग का काम सिखा रहा था.

एक दिन उमेश ने बातोंबातों में तपन से अपने बैंक के लोन के बारे में बता कर कहा कि अमीन हर हफ्ते उस के घर तकादा करने आता है, तरहतरह की धमकियां देता है. तपन को उस पर दया आ गई उस ने बैंक का लोन अदा करने के लिए उसे एक लाख 20 हजार रुपए दे दिए.

उमेश ने पैसे जमा कर के लोन से छुटकारा पा लिया. तपन द्वारा यह बहुत बड़ी मदद थी. इस के बाद उमेश और उस के घर वालों की नजरों में तपन की इज्जत बहुत बढ़ गई. इस के बाद वह उमेश के साथ जब कभी उस के घर जाता, उस का बड़ा आदरसत्कार होता.

मथुरा में गोवद्र्धन परिक्रमा के रास्ते में एक जगह है राधा कुंड. यहीं की रहने वाली इंदिरा से उमेश कुमार की शादी तय हो गई और जून, 2015 में उन का विवाह भी हो गया. उमेश की शादी में भी तपन ने उमेश को 50 हजार रुपए दिए थे. जिस की वजह से तपन की उस शादी में एक वीआईपी की तरह आवभगत हुई. यहां तक तो सब ठीकठाक चलता रहा. शादी के 2 महीने बाद उमेश जब पत्नी को दिल्ली ले आया तो इस के बाद तपन और उमेश के संबंधों में ऐसी दरार पैदा हुई कि दोनों में से किसी ने कल्पना नहीं की होगी.

दरअसल, उमेश ने एक बड़ी गलती यह कर दी कि अपनी नवविवाहिता को दिल्ली लाने के बाद अलग कमरा किराए पर नहीं लिया. तपन के कहने पर वह उसी के कमरे में पत्नी के साथ रहने लगा. यानी तीनों एक ही कमरे में रहते थे. इस से तपन को सहूलियत यह हो गई थी कि उसे दोनों टाइम का खाना बनाबनाया मिल जाता था.

तपन के पास पैसों की कमी तो थी नहीं, वह उमेश की पत्नी इंदिरा के लिए खानेपीने की चीजें तो लाता ही था, उस के लिए अच्छेअच्छे कपड़े भी ला कर देता था, इस से इंदिरा तपन से बहुत खुश रहती थी. तपन का दिल्ली और नोएडा में कई जगहों पर काम चल रहा था.

वह उमेश को पहले तो काम पर अपने साथ ही रखता था, लेकिन अब वह उसे दूसरी जगहों पर काम के लिए भेजने लगा था. उमेश नहीं समझ पा रहा था कि तपन ऐसा क्यों कर रहा है? लेकिन उसे तपन की नौकरी करनी थी, इसलिए तपन उसे जहां भेजता था, वह वहां चला जाता था. इस की वजह यह थी कि पैसे और अपनी बातों के बूते पर उस ने उमेश की नवविवाहिता इंदिरा को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

इस का पता उमेश को तब चला, जब एक दिन वह शाम 6 बजे के करीब कमरे पर लौटा. उस समय कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने सोचा कि तपन के काम पर जाने के बाद इंदिरा सो रही होगी. उस ने दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर तक अंदर से न तो कोई आवाज आई और न ही दरवाजा खुला. उस ने पत्नी को आवाज देते हुए दोबारा दरवाजा खटखटाया.

इस बार भी दरवाजा नहीं खुला तो उस ने खिडक़ी से झांकने की कोशिश की. खिडक़ी पर जाली लगी थी, इसलिए जाली पर आंख लगा कर कमरे में झांका. अंदर का नजारा देख कर वह चौंक गया. इंदिरा और तपन जल्दीजल्दी कपड़े पहन रहे थे. बंद कमरे में उन्हें उस हालत में देख कर उसे मामला समझते देर नहीं लगी. उसे गुस्सा आ रहा था. वह तपन को एक भला आदमी समझता था और बड़े भाई की तरह उस की इज्जत करता था. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि तपन इतना घटिया काम भी कर सकता है.

दरवाजा खुला तो सामने पति को देख कर इंदिरा के होश उड़ गए. उमेश ने पत्नी से कुछ कहने के बजाय तपन से कहा, “भाईसाहब, मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी…”

“जो होना था, सो हो गया, अब बात को आगे बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है, इस में बदनामी तुम्हारी ही होगी.” तपन ने बात खत्म करने की गरज से कहा.

“इतनी बड़ी गलती कर के आप मुझे चुप रहने को कह रहे हैं.” उमेश नाराज हो कर बोला.

“चुप रहने में ही तुम्हारी भलाई है, वरना जान से भी हाथ धो सकते हो.” तपन ने धमकी दी तो उमेश चुप हो गया.

तपन ने उमेश की जो आर्थिक मदद की थी, वह उसी के एहसान से दबा हुआ था. वह उस की हैसियत को जानता था, इसलिए उस समय तो उस ने मुंह बंद कर लिया, लेकिन मन ही मन खुंदक रखने लगा. उस ने तय कर लिया कि वह उसे इस का सबक जरूर सिखाएगा.

उस ने तपन से बदला लेने की ठान ली थी. एक बार तो उस के मन में आया कि वह रात में सोते समय तपन की हत्या कर दे. लेकिन दिल्ली में ऐसा करने पर वह फंस सकता था, इसलिए वह ऐसी योजना बनाने लगा, जिस में सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसी वजह से वह अपनी इस योजना में किसी को शामिल नहीं करना चाहता था.

सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 2

अब पुलिस टीमों ने दूसरी दिशा में जांच शुरू की. जिस तांगा स्टैंड के पास लूट की गई थी, वहां पर मार्केट एसोसिएशन की ओर से 3 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पुलिस को उम्मीद थी कि उन कैमरों में लुटेरों की फोटो जरूर कैद हो गई होगी. लेकिन पुलिस ने उन कैमरों की फुटेज के लिए मार्केट एसोसिएशन से सपंर्क किया तो पता चला कि 31 दिसंबर की रात 8 बजे से किसी वजह से सीसीटीवी सिस्टम बंद हो गया था. पुलिस को यहां भी शक हुआ कि यह सिस्टम इस घटना से कुछ घंटे पहले ही क्यों बंद हुआ?

कहीं ऐसा तो नहीं कि इस सिस्टम की देखरेख करने वाले की लुटेरों से कोई सांठगांठ रही हो? लुटेरों के कहने पर उस ने सिस्टम को बंद कर दिया हो. पुलिस टीम ने इस बिंदु पर भी जांच की. मार्केट एसोसिएशन की तरफ से जो व्यक्ति सीसीटीवी सिस्टम को देखता था, उस से भी पुलिस ने पूछताछ की. उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स भी खंगाली, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस को जांच में जिस बिंदु पर सफलता की उम्मीद नजर आती, उस पर भी जांच आगे नहीं बढ़ पा रही थी.

जांच का अगला पड़ाव पुलिस ने काल डिटेल्स पर केंद्रित किया. पुलिस टीम ने पता किया कि घटना वाले दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड तांगा स्टैंड तक सुबह 6 बजे से 9 बजे तक कौनकौन से फोन नंबर सक्रिय रहे. यानी उस रूट पर उस दौरान कितने लोगों की फोन पर बातें हुईं.

मोबाइल फोन कंपनियों के सहयोग से पुलिस ने यह डाटा इकट्ठा किया. इस डाटा को डंप डाटा कहा जाता है. इस डाटा में कई हजार नंबर निकले. उन हजारों फोन नंबरों से संदिग्ध नंबरों को छांटना आसान नहीं था. यह जिम्मेदारी उत्तरी जिला पुलिस मुख्यालय में कंप्यूटर औपरेटर हेडकांस्टेबल ए.के. वालिया को दी गई. ए.के. वालिया को डंप डाटा खंगालने का एक्सपर्ट माना जाता है. उन्होंने उस डाटा से करीब 300 संदिग्ध नंबर निकाले.

इस के अलावा पुलिस ने अरविंदभाई की फर्म में जितने भी कर्मचारी काम करते थे, उन सभी के फोन नंबर ले कर यह जानने की कोशिश की कि उन में से किसी की डंप डाटा के नंबरों से किसी पर उस समय बात नहीं हुई थी. लेकिन कर्मचारियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. उन हजारों फोन नंबरों में जो 3 सौ संदिग्ध नंबर निकाले गए थे, उन में से भी कोई ऐसा सूत्र नहीं मिला, जिस से लुटेरों तक पहुंचा जा सकता. यह जांच भी जहां से चली थी, वहीं ठहर गई.

भरतभाई ने पुलिस को बताया था कि बदमाश पल्सर और अपाचे मोटर- साइकिलों से आए थे. इन के बारे में पता करने के लिए पुलिस ने यह पता लगाया कि घटनास्थल से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बीच कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पता चला कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर, स्टेशन के बाहर स्थित कई दुकानों पर और उसी रोड पर रास्ते में पडऩे वाले थाना नबी करीम के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं.

लुटेरों ने घटना को अचानक अंजाम नहीं दिया होगा. इस से पहले उन्होंने इस रूट पर रेकी की होगी. इसी बात को ध्यान में रख कर पुलिस ने सभी कैमरों की 15 दिन पुरानी फुटेज देखी. फुटेज में घटना वाले दिन एक औटो के पीछे पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिल जाती दिखाई दी. उस दिन से एक दिन पहले भी वे दोनों मोटरसाइकिलें उसी रूट पर जाती दिखाई दीं, लेकिन फुटेज में उन के नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहे थे.

4-5 दिन पहले तक दोनों मोटरसाइकिलें उस रूट में कई बार आतीजाती दिखीं. उन मोटरसाइकिलों पर जो लोग बैठे थे, उन की कदकाठी भरतभाई और प्रवीण द्वारा बताए गए हुलिए से मेल खा रही थी. इस के बाद पुलिस ने अपना ध्यान पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलों पर लगा दिया. दिल्ली परिवहन विभाग की सभी अथौरिटियों में जितनी भी पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड थीं, पुलिस ने उन की जानकारी निकलवाई. पता चला कि दिल्ली में 40 हजार पल्सर और 20 हजार अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड हैं.

इतनी मोटरसाइकिलों की जांच करना आसान बात नहीं है. लिहाजा पुलिस ने अपने जिले की अथौरिटी से उक्त दोनों ब्रांड की मोटरसाइकिलों की डिटेल्स निकलवाई. यहां 400 पल्सर और 150 अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड थीं. इन सभी की डिटेल्स हासिल कर पुलिस ने जिन लोगों के नाम से गाडिय़ां थीं, उन का उम्र के हिसाब से वर्गीकरण किया. ज्वैलरी का बैग लूटने वाले बदमाशों की जो उम्र थी, उस उम्र के मोटरसाइकिल वालों को छांटा गया. इस तरह के करीब 42 मोटरसाइकिल मालिक मिले.

इन सभी के पतों पर जा कर पुलिस ने पता किया कि 2 जनवरी, 2016 को वे सुबह 7 से 9 बजे के बीच वे अपनी मोटरसाइकिल ले कर कहां थे. इस जांच में भी पुलिस के हाथ लुटेरों तक नहीं पहुंच सके. उधर जिला पुलिस मुख्यालय में कंप्यूटर औपरेटर ए.के. वालिया डंप डाटा को खंगालने में जुटे थे. उस में से वोडाफोन के एक नंबर पर उन की नजर जम गई. वह नंबर उन्होंने एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम को दिया. वह नंबर पश्चिमी दिल्ली के रघुवीरनगर की रहने वाली गुड्डी के नाम था.

सबइंसपेक्टर संजय कुमार सिंह उस नंबर की जांच के लिए गए तो पता चला कि उस पते पर गुड्डी नाम की कोई महिला नहीं रहती. इस से साफ हो गया कि वह नंबर किसी फरजी आईडी पर लिया गया था. जब किसी भी कंपनी का नया मोबाइल नंबर लिया जाता है तो कंपनियां फार्म पर ग्राहक का एक अल्टरनेट नंबर मांगती हैं.

वोडाफोन कंपनी का जो नंबर लिया गया था, उस पर अल्टरनेट नंबर के रूप में रिलायंस कंपनी का एक नंबर लिखा था. वह नंबर महेंद्र सिंह का था, जो बी-492, मीतनगर, ज्योतिनगर, नंदनगरी, दिल्ली का रहने वाला था. एसआई संजय कुमार सिंह हैडकांस्टेबल अवधेश और अशोक को ले कर उस पते पर पहुंचे.

वहां महेंद्र सिंह मिल गया. पुलिस को देखते ही वह घबरा गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर सदर बाजार में हुए गहनों की लूट के बारे में पूछा तो उस ने इस लूट से मना करते हुए बताया कि वह तो नंदनगरी की ईएसआई डिसपेंसरी में नौकरी करता है. उसे किसी लूट की कोई जानकारी नहीं है.

उस ने भले ही खुद को ईएसआईसी डिसपेंसरी का कर्मचारी बताया था, पर उस के हावभाव से साफ लग रहा था कि वह कुछ छिपा रहा है. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो आखिर उस ने मुंह खोल दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि 2 जनवरी को उसी ने अपने साथियों के साथ लूट की उस घटना को अंजाम दिया था.

पुलिस टीम पूछताछ के लिए उसे थाने ले आई. डीसीपी मधुर वर्मा को जब पता चला कि लूट वाला मामला खुल गया है तो वह भी थाने आ गए. उन के सामने जब महेंद्र सिंह से पूछताछ की गई तो गहनों के बैग की लूट का पूरा रहस्य उजागर हो गया. पता चला, उस में सवा करोड़ के गहने थे. गहनों के बैग की लूट की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी.

महेंद्र सिंह दिल्ली के ज्योतिनगर के रहने वाले तेजू सिंह का बेटा था. वह नंदनगरी स्थित कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) की डिसपेंसरी में अस्थाई सफाई कर्मचारी था. उसे वहां से जो वेतन मिलता था, उस से उस के परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था. इसलिए वह हमेशा मोटी कमाई के बारे में सोचा करता था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 2

सोनिया वाही को पति की चिंता खाए जा रही थी. जब उन्हें पता चला कि बैंक में पैसे डलवाने के लिए अपहर्त्ताओं ने बैंक एकाउंट नंबर दे दिए हैं तो वह राजेंदर सिंह पर दबाव बनाने लगीं कि जल्द से जल्द एकाउंट में पैसे जमा करा दें, ताकि पति जल्द घर आ जाएं.

राजेंदर सिंह दिल्ली पुलिस को बताए बिना उन के एकाउंट में पैसे जमा कराने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार से बात की. उन्होंने पुलिस को यह भी बता दिया कि अपहर्त्ता ने इस बार फोन अरुण वाही के नंबर से नहीं, बल्कि नए नंबर 8860103333 से किया था, इसी नंबर से मैसेज भी भेजा था.

पुलिस ने अपहर्त्ता के इस फोन नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया. पुलिस नहीं चाहती थी कि अपहर्त्ता अरुण वाही को कोई क्षति पहुंचाएं, इसलिए उन्होंने राजेंदर सिंह से कह दिया कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा भेजे गए दोनों बैंक खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दें. पुलिस के कहने पर राजेंदर सिंह ने आईसीआईसीआई के दोनों खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दिए.

पुलिस ने अपहर्त्ताओं द्वारा दिए गए खातों की जांच की तो पहला खाता इंफाल के रहने वाले किसी थांगन राकी नाम के व्यक्ति का और दूसरा इंफाल के ही लाइस रान थांबा का था. दिल्ली पुलिस ने इंफाल की पुलिस से जब इन के पते की जांच कराई तो पता चला कि इस पते पर इन नामों के लोग नहीं हैं. इस से यह पता चला कि दोनों बैंक खाते फरजी आईडी से खुलवाए गए थे.

अपहर्त्ताओं के जिस फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, उस की लोकेशन भी दिल्ली के चित्तरंजन पार्क स्थित मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. इस के अलावा पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर ज्यादा बात होती थी. वह नंबर था 8130973333. उधर पुलिस ने अरुण वाही के फोन की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उस में इसी नंबर से 18 दिसंबर की रात को ढाई बजे, साढ़े 3 बजे और पौने 4 बजे बात हुई थी.

8130973333 नंबर अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर और मिला, जिस पर लगातार कई बार बातें हुई थीं. वह नंबर गुड़गांव के जोगिंद्र नाम के व्यक्ति का था. एक पुलिस टीम गुड़गांव रवाना कर दी गई. जोगिंद्र पुलिस टीम को मिल गया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह नंबर रचना नाम की एक लड़की का है. वह लड़की बड़ी शातिर है. वह सोशल साइट के जरिए पहले लोगों से दोस्ती करती है, उस के बाद उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने की कोशिश करती है. जोगिंद्र ने बताया कि वह भी रचना का शिकार बन चुका है. उस ने पुलिस को रचना का फोटो भी उपलब्ध करा दिया.

जोगिंद्र से बात करने के बाद पुलिस के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. पुलिस ने रचना का मोबाइल फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. जांच के बाद पता चला कि उस ने फोन का सिम भी फरजी आईडी से लिया था. अब पुलिस के पास उस तक पहुंचने का जरिया केवल फोटो ही था.

2 दिन बीत गए थे, अरुण वाही के घर वालों को उन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था. सोनिया वाही इस बात को सोचसोच कर परेशान थीं कि पता नहीं वह किस हाल में होंगे. इस मामले में लगी पुलिस भी उन के पास जल्द से जल्द पहुंचने का जरिया ढूंढ़ रही थी.

पुलिस को ध्यान आया कि अपहर्त्ताओं ने जब राजेंदर सिंह को फोन किए थे तो उन की लोकेशन चित्तरंजन पार्क में मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. पुलिस टीम रचना का फोटो ले कर दिल्ली के चित्तरंजन पार्क इलाके में पहुंच गई. मंदाकिनी इनक्लेव में पहुंच कर पुलिस ने कोठियों के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को रचना का फोटो दिखा कर उन से पूछताछ की.

काफी मशक्कत के बाद एक सुरक्षा गार्ड ने लड़की का फोटो पहचान लिया. उस ने यह भी बता दिया कि यह लड़की 52/76 नंबर के मकान में रहती है. पुलिस जब वहां पहुंची तो उस मकान की तीसरी मंजिल पर रचना नाम की वही लड़की मिल गई, जिस का फोटो उन के पास था. उस के साथ 2 नाइजीरियन युवक भी थे.

उसी कमरे के एक कोने में अरुण वाही भी बैठे मिले. पुलिस के पास अरुण वाही का भी फोटो था, जो उन के बेटे निखिल ने दिया था. पुलिस ने सब से पहले अरुण वाही को अपने कब्जे में लिया. इस के बाद रचना सहित दोनों नाइजीरियन युवकों को हिरासत में ले लिया.

अरुण वाही को सकुशल बरामद कर के पुलिस खुश थी, क्योंकि पुलिस का पहला मकसद उन्हें सकुशल बरामद करना था. पुलिस तीनों को पूछताछ के लिए थाना जनकपुरी ले आई. रचना से जब पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. फिर उस ने सोशल साइट के जरिए लोगों को फांसने से ले कर उन्हें ब्लैकमेल करने तक की जो कहानी बताई, वह बड़ी दिलचस्प निकली.

रचना का पूरा नाम रचना नायक राजपूत था. वह मूलरूप से हरियाणा के शहर फरीदाबाद के रहने वाले प्यारेलाल की बेटी थी. प्यारेलाल की 7 बेटियां थीं, जिन में से रचना चौथे नंबर की थी. प्यारेलाल प्रौपर्टी डीलर थे. उसी से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. अन्य बेटियों की तरह वह रचना को भी पढ़ाना चाहते थे, लेकिन रचना ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

वह अति महत्त्वाकांक्षी थी. कुछ दिन घर बैठने के बाद उस ने फरीदाबाद के ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. यह नौकरी रचना ने अपने शौक पूरे करने के लिए की थी. लेकिन प्यारेलाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने उसे डांटा और उस की नौकरी छुड़वा दी. रचना को अपने पिता का यह तुगलकी फरमान अच्छा नहीं लगा. उन के दबाव में उस ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन घर वालों से नाराज हो कर वह पश्चिमी दिल्ली के नवादा क्षेत्र में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यह करीब 5 साल पहले की बात है.