Smuggling : शराब तस्करी से कमाए करोड़ों रुपए

Smuggling  गुजरात पुलिस में कांस्टेबल नीता चौधरी शाही जिंदगी जीने की शौकीन है. उस के पास अनेक लग्जरी गाडिय़ां हैं. एक मामूली सिपाही के पास आखिर कहां से आई करोड़ों रुपए की संपत्ति?

गुजरात पुलिस की भचाऊ लोकल क्राइम ब्रांच को शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा की तलाश थी, जो कच्छ क्राइम ब्रांच के एसआई डी.जे. झाला की वाचलिस्ट में था. एसआई झाला जब से भचाऊ आए थे, तब से उन्होंने युवराज सिंह जडेजा के खिलाफ 5 प्रोहिबिशन (शराब तस्करी) के अपराध दर्ज किए थे, जिन में वह वांटेड था.

उसी बीच 30 जून, 2024 दिन रविवार को एसआई डी.जे. झाला रोज की तरह अपने रूटीन काम में लगे थे, तभी शाम पौने 7 बजे एक सिपाही ने सूचना दी कि साहब, युवराज सिंह जडेजा सफेद रंग की थार से समखियाणी से गांधीधाम की ओर जा रहा है. थोड़ी देर में वह भचाऊ के चोपडवा ब्रिज से गुजरने वाला है.

युवराज क्यों चढ़ाना चाहता था पुलिस पर थार

एसआई झाला ने यह जानकारी पूर्वी कच्छ के एसपी सागर बागमार को दी तो उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि जैसे भी हो, युवराज सिंह बच कर नहीं जाना चाहिए. फिर तो पल भर में एसआई झाला ने 6 पुलिसकर्मियों की 3 टीमें बना कर जांच करना शुरू कर दिया.

ये पुलिस टीमें भचाऊ के चोपड़वा ब्रिज के नीचे प्राइवेट कार से चोपड़वा ब्रिज पर पहुंच गए और युवराज सिंह की उस थार के आने का इंतजार करने लगे. रात के ठीक सवा 8 बजे पुलिस को सफेद रंग की थार आती दिखाई दी. उस थार को आते देख कर पुलिस टीमें चौकन्नी हो गईं. पूरी रफ्तार से आ रही थार को रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड्स लगा कर रास्ता ब्लौक कर दिया. पुलिस के पास 3 प्राइवेट वाहन थे. बैरिकेड्स पर रुकने के बजाय युवराज सिंह ने बैरिकेड्स को तोड़ते हुए पुलिस के एक खाली वाहन को टक्कर मारी.

अब तक युवराज सिंह ब्रिज के बीचोबीच पहुंच चुका था. तब तक पुलिस के वाहनों ने उसे आगे और पीछे से घेर लिया. एसआई डी.जे. झाला कांस्टेबल भवानभाई के साथ उतर कर सड़क के बीचोबीच खड़े थे. युवराज सिंह की थार को आते देख सिपाही भवानभाई ने अपना डंडा दिखा कर चिल्लाते हुए उसे गाडी रोकने को कहा. युवराज सिंह ने अपनी गाड़ी रोकने के बजाय सीधे एसआई झाला और सिपाही भवानभाई की ओर मोड़ दी.

उसे डराने के लिए युवराज सिंह की थार के बोनट पर फायर कर दिया.

गोली बोनट पर लगने के बजाय बम्पर लगी थी. फिर भी गोली चलाने से युवराज सिंह घबरा गया था और थार रोक दी. पुलिस टीमों ने दौड़ कर थार को घेर लिया. युवराज सिंह ने थार तो रोक दी थी, पर वह न तो दरवाजा खोल रहा था और न ही शीशा खोल रहा था. थार के शीशे काले थे. तब एक पुलिस वाले ने ड्राइवर के बगल वाले कांच को अपने डंडे से शीशा तोड़ दिया. शीशा तोड़ कर पुलिस वाले युवराज सिंह को पकड़ कर बाहर खींच रहे थे, तभी एसआई झाला की नजर ड्राइविंग सीट की बगल वाली सीट पर बैठी एक महिला पर पड़ी. उन्हें पता नहीं था कि यह महिला कौन है. वह उस से कुछ पूछते, तभी एक सिपाही ने कहा, ”अरे यह तो लेडी कांस्टेबल नीताबेन चौधरी है. इस की ड्यूटी तो इस समय सीआईडी क्राइम ब्रांच में है.’’

डीजे झाला ने नीता चौधरी को थार से उतरने के लिए कहा. वह उस समय शराब के नशे में धुत थी. थार से बाहर आते ही नीता चौधरी ने एसआई झाला से कहा, ”साहब, मुझे जाने दीजिए.’’

जब एसआई झाला ने कोई जवाब नहीं दिया तो नीता चौधरी ने विनती करते हुए कहा, ”साहब, मेरी युवराज सिंह से दोस्ती थी. मैं आ रही थी तो यह रास्ते में मिल गया, इसीलिए हम दोनों साथ थे.’’

एसआई झाला ने तुरंत पुलिस अधिकारियों को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी थी. शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला सुरेंद्रनगर की तहसील पालनपुर के नजदीक के गांव बादरपुर की रहने वाली थी. नौकरी से छुट्टी ले कर वह अपने गांव गई थी.

नीता की थार गाड़ी में कहां से आई थी शराब

पुलिस ने जब नीता चौधरी और युवराज सिंह को पकड़ा तो तलाशी में उन की थार से भारतीय शराब (Smuggling) की 16 बोतलें मिली थीं. चूंकि गुजरात में शराब बंदी है, इसलिए शराब लाना तो क्या, वहां शराब पीना भी अपराध है. युवराज सिंह और नीता चौधरी को शराब तस्करी और पुलिस पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से नीता चौधरी को जमानत मिल गई थी, जबकि युवराज सिंह पर तो वैसे भी तमाम केस थे, इसलिए उस की जमानत होने का सवाल ही नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने दौड़भाग कर के सेशन कोर्ट में नीता की जमानत रद करने की अरजी दी तो सेशन कोर्ट ने पुलिस वालों पर थार चढ़ाने की कोशिश और एक सिपाही द्वारा शराब की तस्करी को गंभीर मानते हुए नीता चौधरी की भी जमानत रद कर दी. जमानत रद होने के बाद नीता चौधरी फरार हो गई. इस के बाद कच्छ पुलिस उस की तलाश में लग गई. पुलिस जब एक सप्ताह तक उसे नहीं खोज पाई तो यह मामला जांच एजेंसी एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वायड) को सौंपा गया.

इंसपेक्टर पीयूष देसाई की टीम उस की तलाश में गांधीधाम की ओर लगी थी, पर वहां उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. उसने अपने मोबाइल फोन का यूज करना बंद कर दिया था. तब एटीएस ने मुखबिरों की मदद ली, जिस में उसे सफलता मिल भी गई. एटीएस को सूचना मिली कि नीता जिला सुरेंद्रनगर की तहसील लींमडी के गांव भलगामडा में हो सकती है. यह सूचना मिलने के बाद एक गुप्त औपरेशन शुरू हुआ, जिस के बारे में केवल एटीएस के उच्च अधिकारियों को ही मालूम था.

इस के लिए सब से पहला काम था नीता की लोकेशन का पता करना. एटीएस ने दूसरी एक टीम इंसपेक्टर पीयूष देसाई के नेतृत्व में बनाई, जिस में 2 एसआई, एक महिला कांस्टेबल सहित 3 कांस्टेबल शामिल थे.

नीता को किस ने दी थी पनाह

इंसपेक्टर देसाई अपनी टीम को साथ ले कर प्राइवेट कार से निकल पड़े. कार अहमदाबाद-राजकोट हाइवे पर चली जा रही थी. उन्हें सूचना मिल गई थी कि नीता चौधरी भलगामडा के किसी घर में छिपी है. पर उस घर के बारे में किसी को पता नहीं था. इसलिए पहले तो यह पता करना था कि वह घर कौन सा है. इस बात का भी ध्यान रखना था कि नीता को इस बारे में पता न चले, वरना वह वहां से भाग सकती थी. किसी को यह भी पता न चले कि वे पुलिस वाले हैं, इस के लिए इंसपेक्टर देसाई और उन की टीम के लोग साधारण कपड़ों में वहां पहुंचे थे.

भलगामड़ा पहुंचने पर इंसपेक्टर देसाई को पता चला कि नीता चौधरी अपने दोस्त शराब तस्कर युवराज सिंह के किसी जानपहचान वाले की मदद से यहां छिपी है. जल्दी ही एटीएस को पता चल गया कि युवराज सिंह के साले आदित्य राणा के दोस्त मयूर ने नीता को शरण दी है. पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो एक और परेशानी खड़ी हो गई. भलगामड़ा में मयूर के 2 घर थे. जिन में से एक घर गांव में था तो दूसरा गांव से बाहर खेतों था, जो 2 बीएचके था. एटीएस टीम के सामने अब सवाल यह था कि उसे पता नहीं था कि नीता चौधरी मयूर के किस घर में है. मयूर के दोनों घरों के बीच एक किलोमीटर का अंतर था. तब एटीएस टीम 2 भागों में बंट गई. आधे लोग एक घर पर नजर रखने लगे तो आधे लोग दूसरे घर पर.

इस बीच एटीएस ने देखा कि मयूर सुबह-शाम फूड पैकेट ले कर गांव के बाहर खेतों वाले घर पर जाता है. खेतों वाले उस घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता था. जब मयूर फूड पैकेट ले कर जाता था, तभी दरवाजा खुलता था. यह देख कर एटीएस टीम को लगा कि नीता यहीं होगी. उस घर के पास से एक रास्ता गुजरता था. वह रास्ता एटीएस के लिए उपयोगी साबित हुआ. उसी रास्ते पर आटो, बाइक और इसी तरह के वाहनों से एटीएस उस घर पर और ज्यादा नजर रखने लगी. उस घर में कौनकौन जाता है? घर से कोई बाहर आता है या नहीं? घर में कहां क्या हो रहा है? इन सभी बातों पर एटीएस ने अपना ध्यान केंद्रित किया.

एटीएस इसी तरह लगातार 3 दिनों तक उस घर पर नजर रखे रही. आखिर तीसरे दिन अंत में तय हो गया कि नीता चौधरी मयूर के इसी खेत वाले घर में ही रह रही है. नीता की पक्की लोकेशन मिल जाने के बाद एटीएस ने राहत की सांस ली. इंसपेक्टर देसाई ने मयूर के घर पर नजर रखने वाली टीम को भी वहीं बुला लिया और उस की गिरफ्तारी के लिए टीम आगे बढ़ी. 16 जुलाई, 2024 की शाम लगभग साढ़े 5 बजे एटीएस की टीम ऐक्शन में आ गई. टीम के सभी सदस्यों ने पहले से तय की गई रणनीति के अनुसार उस घर को चारों ओर से घेर लिया, जिस में नीता के होने की संभावना थी. क्योंकि अगर नीता को पता चल जाता कि एटीएस उसे पकडऩे आई है तो वह भाग सकती थी.

घर का मुख्य दरवाजा लोहे का था, जिसे खोल कर एटीएस की टीम अंदर घुसी. अंदर जा कर घर का दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर में दरवाजा खुला तो एटीएस की टीम ने देखा कि सामने नीता खड़ी थी. पिछले एक सप्ताह से नीता मीडिया और पुलिस विभाग में चर्चा का विषय बनी हुई थी, इसलिए उसे पहचानने में एटीएस को जरा भी देर नहीं लगी. अचानक घर के दरवाजे पर अनजान लोगों को देख कर नीता को भी झटका सा लगा. क्योंकि शायद उसे भरोसा था कि कोई उसे खोज नहीं पाएगा. उस के मन में तमाम सवाल उठे. पर उन तमाम सवालों का जवाब महिला कांस्टेबल को एक ही वाक्य में दे दिया, ”हम लोग एटीएस से हैं.’’

सामने खड़े लोगों की पहचान जान कर नीता चौंक उठी. इस के बाद एटीएस की टीम घर के अंदर गई. नीता अभी तक अचंभित थी. टीम के एक सदस्य ने कहा, ”मैडम शांति से बैठ जाइए.’’

नीता टीम की महिला कांस्टेबल के पास खड़ी थी. टीम के बाकी लोगों ने घर की फटाफट तलाशी ली. तलाशी में एटीएस को कुछ खास नहीं मिला. सिर्फ एक बैग मिला. जिसे खोल कर देखा गया तो उस में नीता के कपड़े थे.

एटीएस ने नीता से कोऔपरेट करने के  लिए कहा तो नीता चुपचाप पुलिस द्वारा लाई कार में बैठ गई. इस के बाद एटीएस टीम तुरंत वहां से रवाना हो गई. एटीएस नीता को सुरेंद्रनगर के भलगामड़ा गांव से सीधे अहमदाबाद ले आई, जहां से उसे कच्छ पुलिस को सौंप दिया गया.

लग्जरी कारों की शौकीन थी नीता

अब सवाल यह था कि नीता भचाऊ से सुरेंद्रनगर कैसे पहुंची? नीता का तो कहना था कि वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से वहां आई थी. लेकिन पुलिस का कहना है कि सेशन कोर्ट से जमानत रद होने के बाद वह जिस शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, उस का साला आदित्य सिंह राणा उसे यहां पहुंचा गया था. यहां वह जिस मयूर के घर छिपी थी, वह आदित्य सिंह राणा का दोस्त था. नीता का इरादा ऊपरी अदालत से जमानत मिलने तक फरार रहने का था.

नीता चौधरी ने सेशन कोर्ट के जमानत रद करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. नीता की अरजी देख कर हाईकोर्ट ने कहा था, ”अरजी देने वाले पर गंभीर आरोप है. वह अपनी जिंदगी में क्या करती है, कोर्ट को बताया जाए. अगर अपीलकर्ता निर्दोष थी तो भाग क्यों गई. आरोपी की जमानत रद कर के सेशन कोर्ट ने ठीक किया है. अगर अपीलकर्ता अपनी अपील को वापस नहीं लेता तो कोर्ट उस पर 5 लाख रुपए से अधिक का जुरमाना कर सकता है. अपीलकर्ता पुलिस में रहते हुए शराब तस्कर को सेफ पैसेज दे रही थी.’’

नीता चौधरी के वकील का कहना था कि अपीलकर्ता सीआईडी क्राइम में कांस्टेबल है. वह सीनियर अधिकारियों के कहे अनुसार काम कर रही थी. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग में होते हुए इस ने शराब (Smuggling) तस्कर की मदद की. पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार कर पुलिस कर्मचारियों को मारने की कोशिश की. यह चाहती तो अपराधी को रोक कर पुलिस की मदद कर सकती थी. नीता चौधरी जब से पकड़ी गई, तब से सोशल मीडिया पर शोर सा मच गया था. क्योंकि शायद उस ने वरदी इसलिए पहनी थी कि कानून को ठेंगा दिखा कर हवा में उडऩे वाले अपराधियों को जमीन पर ला सके.

लेकिन पैसों के लालच में वह अपना फर्ज निभाने के बजाय अपने फर्ज के साथ गद्ïदारी कर के शानोशौकत वाली जिंदगी जीते हुए हवा में उडऩे लगी. जैसे ही नीता चौधरी को गिरफ्तार किया गया, उस के किस्से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. फिर तो सोशल मीडिया ने उस की पूरी कुंडली ही खोल कर रख दी. फटाफट इस खूबसूरत कांस्टेबल की जो तसवीरें सामने आईं, देख कर लोग अचंभे में पड़ गए. सोशल मीडिया से ही पता चला कि यह लेडी कांस्टेबल फर्ज निभाने से कहीं ज्यादा अपनी लग्जरी लाइफस्टाइल से सुर्खियां बटोरती है. तसवीरों में जो दिखाई दे रहा है, वह किसी को भी दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दे. आखिर एक सिपाही इतने महंगे शौक कैसे पूरे करती है?

नीता चौधरी एक बेहद ग्लैमरस और आलीशान जिंदगी जीने की आदी है. उस की पसंद वाली चीजों में महंगी कारें, महंगी बाइक्स के अलावा, हेलीकौप्टर, याट के साथ अरबी घोड़े हैं. इस के पहले भी वह इसी तरह इंस्टग्राम पर वीडियो डालने लिए सस्पेंड हो चुकी है, लेकिन सस्पेंड होने के बाद भी न उस पर कोई फर्क पड़ा था और न उस की लाइफस्टाइल में कोई अंतर आया था. अगर नीता चौधरी के कारों के शौक के बारे में देखा जाए तो उस के पास खुद का लग्जरी कारों का अच्छाखासा कलेक्शन है. उसके विभाग वाले हंसीहंसी में कहते भी हैं कि अगर जिंदगी जीनी है तो नीता चौधरी की तरह, जो गुजरात पुलिस में एक सिपाही होते हुए भी राजसी शानोशौकत के जीती है. लेकिन हर कोई नीता चौधरी की तरह अपने फर्ज से गद्ïदारी नहीं कर सकता. इसलिए  वे लोग सिर्फ नीता को देख कर जलते हैं.

एटीएस ने दौड़भाग कर के नीता चौधरी को भलगामड़ा गांव से गिरफ्तार किया था. नीता को गिरफ्तार कर के एटीएस ने थाना भचाऊ पुलिस के हवाले किया तो भचाऊ पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

नीता और वीरसंग की कैसे शुरू हुई लव स्टोरी

कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील पालनपुर के गांव मोरिया की रहने वाली है. 15 साल पहले उस ने वीरसंग चौधरी से लवमैरिज की थी. वह भी पालनपुर के पास के गांव बादरपुर का रहने वाला है. वीरसंग खेतीबाड़ी करने के अलावा प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. वह अपने गांव का सरपंच भी रह चुका है. इस समय उस की भाभी गांव की सरपंच हैं. नीता ने वीरसंग के साथ लवमैरिज कर ली तो उस के मम्मीपापा से संबंध पहले जैसे नहीं रहे.

नीता और उस का पति वीरसंग चौधरी एक ही स्कूल में पढ़ते थे. वहीं दोनों में प्यार हुआ था. इसलिए दोनों का आपस में मिलनाजुलना होता रहता था. 15 साल पहले दोनों ने कोर्ट में प्रेमविवाह कर लिया था. जिस के साथ कांस्टेबल नीता चौधरी पकड़ी गई है, वह शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा गुजरात के जिला कच्छ के चिरई गांव का रहने वाला है. उस ने मात्र 9वीं तक पढ़ाई की है. वह शादीशुदा है. उस का मुख्य धंधा शराब तस्करी का है. उस के पिता भी उसी की तरह शराब तस्कर थे. काफी समय से गांधीधाम में रहने की वजह से अन्य पुलिसकर्मियों की तरह वह नीता चौधरी को भी जानता था.

नीता चौधरी की तैनाती जिन दिनों गांधीधाम लोकल क्राइम ब्रांच में थी, उन्हीं दिनों सोशल मीडिया के जरिए वह नीता चौधरी के संपर्क में आया था. कहा जाता है कि युवराज सिंह खुद शराब पीने का शौकीन नहीं है. वह सिर्फ शराब बेचता है. सामान्य रूप से युवराज सिंह जब भी शराब मंगाता था, शराब की डिलीवरी हो जाती थी. उसे कभी भी शराब लेने जाना नहीं पड़ा. पर इस बार उस के पास से शराब मिली है. कहा जाता है कि उस की कई नेताओं से अच्छी पटती है. पटेगी क्यों नहीं, शराब की जरूरत तो नेताओं को भी पड़ती है.

युवराज सिंह सालों से गांधीधाम और भुज में बड़े पैमाने पर शराब का धंधा कर रहा था. उस पर प्रोहिबिशन के 16 मामले दर्ज हैं. एकदो बार झगड़ा भी हुआ था, पर इन झगड़ों में वह सीधे इनवौल्व नहीं था. ये झगड़े उस के आदमियों ने किए थे. बीच में पड़ कर उसने इन झगड़ों को शांत करा दिया था. उस का फोकस अपने शराब के धंधे पर रहता था. नीता चौधरी पर केस हुआ और वह चर्चा में आई तो सोशल मीडिया पर उस के फालोअर्स बढ़ गए. इंस्टाग्राम पर उस के पहले लगभग 41 हजार फालोअर्स थे, केस होने के बाद वह संख्या 1 लाख 14 हजार हो गई. 73 हजार फालोअर्स एकाएक बढ़ गए हैं.

कच्छ पुलिस ने जब नीता चौधरी को गिरफ्तार कर के मीडिया के सामने पेश किया था तो उस के चेहरे पर किसी तरह का पछतावा नहीं था. वह जिस युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, वह गुजरात का मोस्टवांटेड शराब तस्कर है.

जिस सफेद थार से शराब की 16 बोतलें पकड़ी गई थीं, कहा जाता है कि वह नीता की ही थी. उस के पीछे चौधरी लिखा भी था. मजे की बात यह है कि इस सफेद थार में नंबर प्लेट भी नहीं थी. नीता चौधरी की तसवीरें और कारनामे तमाम सवाल खड़े कर रहे हैं कि आखिर गुजरात पुलिस कब सुधरेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Gangster काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया

हरियाणा के जिला सोनीपत में 1984 में जन्मे संदीप उर्फ काला जठेड़ी को दिल्ली पुलिस बेसब्री से तलाश रही थी. उस पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) लगा हुआ था, जिस में जमानत नहीं मिलती है. उसे पहली फरवरी, 2020 को फरीदाबाद अदालत में पेशी के लिए ले कर आई थी. पेशी के बाद वापस ले जाने के दौरान गुड़गांव मार्ग पर उस के गुर्गों ने पुलिस की बस को घेर लिया था.

ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और काला जठेड़ी को छुड़ा ले भागे थे. सारे बदमाश उस के गैंग के थे. यह पूरी वारदात एकदम से फिल्मी अंदाज में काफी तेजी से घटित हुई थी. इस मामले को ले कर तब डबुआ थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था. तभी से वह फरार था. पुलिस को आशंका थी कि वह नेपाल के रास्ते दुबई भाग निकला है. पुलिस का यह भी मानना था कि ऐसा उसे भ्रमित करने और उस पर से ध्यान हटाने के लिए किया गया है कि वह दुबई में है. यानी काला जठेड़ी की तलाश में जुटी पुलिस टीम अच्छी तरह से समझ रही थी कि उन्हें अपने निशाने से हटाने की उस की यह एक चाल हो सकती है.

इस बारे में दिल्ली के डीसीपी (काउंटर इंटेलिजेंस, स्पैशल सेल) मनीषी चंद्रा का कहना था कि जठेड़ी एक भूत की तरह रहता था, क्योंकि वह 2020 में पुलिस हिरासत से भागने के बाद कभी नहीं दिखा. कानून प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान हटाने के लिए ही जठेड़ी गैंग के सदस्यों ने इस अफवाह को बढ़ावा दिया कि वह विदेश से ही गिरोह को संचालित कर रहा है. इस पर गौर करते हुए पुलिस ने जठेड़ी की कमजोर नस का पता लगाने की पहल की. इस में पुलिस को अनुराधा चौधरी के रूप में सफलता भी मिल गई. वह जठेड़ी की बेहद करीबी थी और गोवा में रह रही थी. पुलिस ने सब से पहले उसे ही अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई.

अनुराधा चौधरी के बारे में दिल्ली की स्पैशल सेल ने कई जानकारियां जुटा ली थीं. पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, अनुराधा चौधरी का जन्म राजस्थान के सीकर में हुआ था, लेकिन दिल्ली के एक कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उस की शादी दीपक मिंज से हुई थी. दोनों एक समय में शेयर ट्रेडिंग का काम करते थे, जिस में उन्हें लाखों रुपए का नुकसान हुआ था. वे कर्ज में दबे होने के उस की वापसी कर पाने असमर्थ थे. इसी परेशानी से जूझते हुए उस का संपर्क एक गैंगस्टर आनंद पाल सिंह से हुआ. वह राजस्थान का एक शातिर और फरार अपराधी था. उस पर राजस्थान पुलिस ने ईनाम रखा हुआ था.

आनंद पाल सिंह ने ही उसे अनुराधा को अपराध की दुनिया में घसीट लिया था और जल्द ही उस की पहचान मैडम मिंज की बन गई थी. 2017 में पुलिस मुठभेड़ में आनंद पाल सिंह की मौत हो जाने के बाद वह काला जठेड़ी के संपर्क में आ गई थी, वह उसे ‘रिवौल्वर रानी’ कहता था.  वह उस के गिरोह की एकमात्र अंगरेजी बोलने वाली सदस्य थी. उस ने काला जठेड़ी से हरिद्वार में शादी कर ली थी. शादी के बाद वे कनाडा शिफ्ट होने की फिराक में थे. उन की योजना वहीं से अपराध का काला कारोबार चलाने की थी.

जठेड़ी को दबोचने के लिए ‘औप डी24’

जठेड़ी को दबोचने के लिए दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने अनुराधा तक पहुंचने की योजना बनाई. सेल ने कुल 30 पुलिसकर्मियों को शामिल किया और एक अभियान के तहत औपरेशन का कोड नाम दिया ‘औप डी24’, इस का अर्थ ‘अपराधी पुलिस से 24 घंटे आगे था.’ सर्विलांस सीसीटीवी फुटेज से ले कर मोबाइल फोन ट्रैकिंग तक की थी. करीब 4 महीने की मेहनत के बाद 30 जुलाई, 2021 को तब सफलता मिली, जब सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे तक ट्रैक किया गया.

इस औपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्पैशल सेल की टीम टुकडि़यों में बंट कर कुल 12 राज्यों तक अलर्ट हो गई थी. राज्य सरकार की पुलिस को भी इस की जानकारी दे दी गई थी और जरूरत पड़ने पर उन से मदद करने का अनुरोध किया जा चुका था. जठेड़ी और अनुराधा के संबंध में हर तरह की मिली सूचना की दिशा में सर्विलांस का सहारा लिया गया था. टीम को अनुराधा और जठेड़ी गैंग के सदस्यों के गोवा में होने की तकनीकी जानकारी मिली. हालांकि तब पुलिस की निगाह में यह निश्चित नहीं था, इसलिए उस जानकारी को जांचने के लिए एक टीम गोवा भेजी गई.

टीम के सदस्यों को वहां कुछ सुराग मिले. उन्हें 2 वाहन मिले, जिस पर हरियाणा के नंबर लिखे थे. फिर क्या था पुलिस टीम ने उन गाडि़यों का पीछा करना शुरू कर दिया. इस सिलसिले में टीम को गोवा से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली तक का सफर करना पड़ा. पीछा करने के सिलसिले में ही टीम को तिरुपति से एक सीसीटीवी फुटेज मिला. उस में अनुराधा चौधरी को जठेड़ी गैंग के कुछ सदस्यों के साथ देखा गया था. उस के बाद कई टीमें उन वाहनों का पीछा करने लगीं, जो उन के द्वारा उपयोग किए जा रहे थे. लगभग 10,000 किलोमीटर तक उन का पीछा करने के बाद टीम को एक और खास इनपुट मिली. सूचना थी कि चौधरी और जठेड़ी एक एसयूवी में पंजाब की यात्रा पर हैं. पुलिस टीम ने उन का पीछा जारी रखा.

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे पर दोनों उसी वाहन से दबोच लिए गए. वहां से दोनों को दिल्ली लाया गया.

मोबाइल स्नैचर से माफिया तक

बात 2004 की है. तब फीचर मोबाइल फोन के बाद टचस्क्रीन का स्मार्टफोन आया था. वे फोन काफी महंगे हुआ करते थे. काला जठेड़ी और उस के साथियों ने दिल्ली के समयपुर बादली में शराब की दुकान पर एक व्यक्ति से टचस्क्रीन का स्मार्टफोन छीन लिया था.

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इस का मामला थाने में दर्ज करवाया गया था. वह इस स्नैचिंग में पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया. तब उस की उम्र करीब 19 साल की थी. उस के खिलाफ दर्ज मामले में नाम संदीप जठेड़ी और निवासी सोनीपत का लिखवाया गया था. रंग काला होने के कारण मीडिया में उसे नया नाम काला जठेड़ी का मिल गया. मोबाइल स्नैचिंग की छोटी सी सजा काट कर जेल से छूटने के बाद उस ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा लिया. कई तरह के अपराध करने लगा, जिस में स्नैचिंग के साथसाथ हिंसा भी शामिल हो गई. उस की पढ़ाई 12वीं के बाद छूट गई, किंतु जल्द ही वह शार्पशूटर बन गया. वह एक गैंग में शामिल हो गया और अपना आदर्श लारेंस बिश्नोई को मान लिया.

पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में गांव के कुछ लोगों के साथ वह दिल्ली के डाबड़ी इलाके में आया. उस ने यहां विवाद में पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. उसे इस मामले में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में उस की अनिल रोहिल्ला उर्फ लीला से दोस्ती हो गई. अनिल रोहिल्ला ने ही उसे बताया कि रोहतक स्थित उस के गांव में एक परिवार से दुश्मनी चल रही है. उस परिवार में 7 भाई हैं और उन्होंने उस के पिता की हत्या की है. इस का बदला लेने के लिए उस ने गैंग बनाया है. इस परिवार के 5 भाइयों सहित 8 लोगों को काला जठेड़ी ने मार डाला. इस हत्याकांड से ही संदीप का नाम काला जठेड़ी के रूप में अपराध की दुनिया में मशहूर हो गया.

फिर कुछ साल बाद ही हरियाणा के सांपला और फिर गोहाना में हुई हत्याओं में उस का नाम आ गया. उस के बाद उस ने मुड़ कर नहीं देखा. और फिर जठेड़ी का नाम 2012 में हरियाणा पुलिस के मोस्टवांटेड अपराधियों की सूची में तब जुड़ गया, जब उस ने 3 सहयोगियों के साथ मिल कर हरियाणा के झज्जर जिले में दुलिना गांव के पास एक जेल वैन को ट्रक से टक्कर मार दी थी. यह टक्कर जानबूझ कर मारी गई थी. उस का मकसद उस में सवार कैदियों को मारना था. इस वारदात में उस ने 3 कैदियों की गोली मार कर हत्या कर दी थी और 2 पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे. बताते हैं कि वे कैदी उस के दुश्मन थे. बाद में जठेड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.

दरअसल, वर्ष 2012 में काला जठेड़ी को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था. जेल में उस की मुलाकात गैंगस्टर नरेश सेठी से हो गई. उस ने काला जठेड़ी को राजू बसोडी से मिलवाया. राजू बसोडी ने उक्त परिवार के छठे भाई को 2018 में मरवा दिया. उस समय काला जठेड़ी जेल में ही था. गैंगस्टर नरेश सेठी के जीजा को उस ने इसलिए मार डाला, क्योंकि उस ने नरेश की बहन को मार दिया था. जेल में रहने के दौरान ही काला जठेड़ी की दोस्ती लारेंस बिश्नोई से हो गई थी.  वह उस के गैंग में शामिल हो गया था. लारेंस ने ही उसे पुलिस हिरासत से फरवरी, 2020 में फरार करवाया था. उस के बाद से ही वह लगातार फरार चल रहा था और उस के नाम साल भर में 20 से ज्यादा हत्याओं को अंजाम देने का आरोप लग चुका था.

हत्या समेत अपहरण की वारदातों को तो काला जठेड़ी जेल में रह कर ही अंजाम दे दिया करता था. जेल से बाहर उस ने अपना जबरदस्त गिरोह बना रखा है. उन में 100 से अधिक शूटर हैं. गैंग के लोग दिल्ली समेत हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान में सक्रिय हैं. वे एक इशारे पर मरनेमारने को तैयार रहते हैं.

रंगदारी वसूलने में भी माहिर

वे बड़े ही सुनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम देने में माहिर हैं. रंगदारी का एक मामला मोहाली के कारोबारी का सामने आया, जिसे उस ने जेल में रहते हुए अंजाम दिया. वह पंजाब के लारेंस बिश्नोई के 7 सहयोगियों में एक खास बदमाश है. बात  2021 की है. पंजाब की मोहाली पुलिस को एक ईंट भट्ठा कारोबारी कुदरतदीप सिंह ने शिकायत लिखवाई कि 8 अक्तूबर को काला जठेड़ी ने उस से एक करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी है. इस शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 387 के तहत मोहाली पुलिस ने काला जठेड़ी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. तब तक काला जठेड़ी एक कुख्यात अपराधी घोषित हो चुका था. उस के खिलाफ जबरन वसूली और हत्या के करीब 40 मामले दर्ज थे.

काला जठेड़ी गैंग के गुर्गे भी कुछ कम शातिर नहीं हैं. एक गुर्गे अक्षय अंतिल उर्फ अक्षय पलड़ा की हिम्मत देखिए, उस ने जेल में एक सिपाही से सिमकार्ड मांगा. वहां से ही एक कारोबारी को फोन कर उस से 5 करोड़ की रंगदारी मांग ली. दिल्ली पुलिस जब इस मामले में सक्रिय हुई तब काला जठेड़ी गैंग से जुड़े अक्षय अंतिल को गिरफ्तार कर लिया गया. हैरानी की बात यह थी कि 22 साल का अक्षय दिल्ली की मंडोली जेल में बंद था और वहीं से काला जठेड़ी का भय दिखा कर दिल्ली के करोलबाग के एक कारोबारी से 5 करोड़ की रंगदारी मांगी थी.

उस के बाद पुलिस ने मंडोली जेल से फिरौती के लिए इस्तेमाल किए गए सिम कार्ड के साथ एक एप्पल आईफोन12 मिनी फोन भी बरामद किया है. इस का खुलासा तब हुआ, जब करोलबाग के एक कारोबारी ने 30 मई, 2021 को शिकायत दे कर बताया कि उसे 5 करोड़ रुपए की रंगदारी के लिए धमकी भरे काल आ रहे हैं. फोन करने वाले ने खुद को लारेंस बिश्नोई गैंग का शार्पशूटर बताया था. जांच में पता चला कि काल बीएसएनएल सिम वाले फोन का उपयोग कर मंडोली जेल दिल्ली से की गई थी. ब्यौरा लेने के बाद मेरठ के एक दुकानदार और सिम जारी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आईडी वाले ग्राहक का पता लगाया गया.

उन से गहन पूछताछ में पता चला कि थाना कंकड़खेड़ा, मेरठ, यूपी में तैनात एक कांस्टेबल ने एक सीएनजी मैकेनिक के नाम से यह सिम लिया था. तकनीकी जांच में पता चला कि काल मंडोली जेल से अक्षय पलड़ा द्वारा की गई थी. इस मामले के संदर्भ में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस को ले कर भी कान खड़े हो गए. उस में बिश्नाई जठेड़ी गैंग की भूमिका होने की आशंका जताई है. पूछताछ के दौरान इस बात का भी खुलासा हुआ कि पूरी साजिश अक्षय और नरेश सेठी ने मिल कर रची थी. दोनों काला जठेड़ी गैंग से जुड़े हैं.

इस के लिए उन्होंने काला जठेड़ी गैंग के एक अन्य सदस्य राजेश उर्फ रक्का के माध्यम से 2 सिम कार्ड (बीएसएनएल और वोडाफोन) और 2 मोबाइल एप्पल के मिनी और छोटे चाइनीज कीपैड वाले फोन हासिल किए थे. बीएसएनएल सिमकार्ड को एप्पल आईफोन12 मिनी में और वोडाफोन सिम को चाइनीज फोन में लगाया गया था. अक्षय हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला है और काला जठेड़ी गिरोह का शातिर शार्प शूटर है. उस पर कत्ल, अपहरण और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं. उस का नाम मूसेवाला हत्याकांड में भी एक संदिग्ध के रूप में सामने आया है.

बहरहाल, पिछले साल फरवरी में भागने के बाद काला जठेड़ी विदेशों के दूसरे गैंगस्टरों के साथ जुड़ा रहा. उन में वीरेंद्र प्रताप उर्फ काला राणा (थाईलैंड से संचालित), गोल्डी बराड़ (कनाडा में स्थित) और मोंटी (यूके से संचालित) हैं. उन के साथ वह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अपराध गठबंधन का नेतृत्व कर रहा था.

अनुराधा का मिला साथ

पुलिस के अनुसार उन का गठबंधन हाईप्रोफाइल जबरन वसूली, शराब के प्रतिबंधित राज्यों में शराब का अवैध,  अंतरराज्यीय व्यापार, अवैध हथियारों की तसकरी और जमीन पर कब्जा करना शामिल था.

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काला जठेड़ी के साथ सक्रियता के साथ काम करने वालों में शिक्षित युवती अनुराधा भी थी. उस के काला जठेड़ी के साथ लिवइन रिलेशन थे.  पूछताछ में काला जठेड़ी ने अनुराधा के संपर्क में आने का कारण बताया. दरअसल, लारेंस बिश्नोई ने काला जठेड़ी को निर्देश दिया कि वह लेडी डौन अनुराधा की मदद करे. आनंदपाल सिंह की दोस्त अनुराधा से उस की मुलाकात कब प्यार में बदल गई उसे भी नहीं पता चला.

हालांकि बताते हैं दोनों ने हाल में ही शादी भी कर ली थी. लेडी डौन के नाम से कुख्यात अनुराधा के खिलाफ भी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो काला जठेड़ी के नाम पर करती रही. यहां तक कि भारत से भागने की कहानी भी उसी ने फैलाई. कहने को तो उस की योजना काला जठेड़ी के साथ कनाडा में शिफ्ट होने की थी, किंतु इस में सफलता नहीं मिल पाई. गैंगस्टर काला जठेड़ी के साथ लेडी डौन अनुराधा की गिरफ्तारी के बाद कई नए खुलासे हुए. वैसे तो कई ऐसे राज का परदाफाश होना अभी बाकी है, लेकिन दोनों के संबंधों और कुख्यात साजिशों के बारे में जो कुछ सामने आया, वह काफी चौंकाने वाला है. उसे सुन कर सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं.

दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल को उन्होंने बताया कि दोनों बतौर पतिपत्नी कनाडा में शिफ्ट होने के लिए नेपाल से पासपोर्ट बनवाने की तैयारी में थे. इस के लिए उन्होंने शादी रचाई थी. पुलिस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए अनुराधा पूछताछ के दौरान जांच अधिकारियों से सिर्फ फर्राटेदार अंगरेजी में ही बात करती है. खाली वक्त में अंगरेजी की किताब मांगती है. पूछताछ में अनुराधा ने बताया कि उसी ने काला जठेड़ी को हुलिया बदलने के लिए कहा था. उल्लेखनीय है कि जब काला जठेड़ी पकड़ा गया था, तब वह सिख के वेश में था. उस के कहने पर ही जठेड़ी ने सरदार का हुलिया बना लिया था.

मंदिर में शादी के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे और अपनी पहचान बदल कर फरजी आईडी पर दोनों ने अपना नाम पुनीत भल्ला और पूजा भल्ला रख लिया था. स्पैशल सेल के सूत्रों के अनुसार, जब अनुराधा राजस्थान के गैंगस्टर आंनदपाल सिंह के साथ काम करती थी, तब उस समय उस का भी हुलिया उस ने ही बदलवाया था. आंनदपाल के कपड़े पहनने, रहनसहन और बौडी लैंग्वेज के अनुसार बोलचाल आदि की भी ट्रेनिंग दी थी. यहां तक कि अपना जुर्म का काला धंधा कैसे चलाए, इस का फैसला भी अनुराधा ही करती थी.

बताते हैं कि अनुराधा की ही प्लानिंग थी कि पुलिस की नजरों में काला जठेड़ी का ठिकाना विदेश बताया जाए. उस ने ही काला जठेड़ी के गैंग के सभी सदस्यों को यह कह रखा था कि अगर वह पुलिस के हत्थे चढ़ जाएं तो पुलिस को यही बताएं कि काला जठेड़ी अब विदेश में है और वहीं से अपना गैंग औपरेट कर रहा है. यह सब एक सोचीसमझी प्लानिंग थी. अनुराधा जानती थी कि जुर्म की दुनिया में अगर पुलिस को थोड़ी सी भी भनक लग गई तो काला जठेड़ी का हाल भी आंनदपाल जैसा हो सकता है.

गैंगस्टर ने पूछताछ में बताया है कि उस के गुर्गे दिल्ली और देश के कई अन्य राज्यों में फैले हुए हैं. उस के बाद से दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल अब राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत अन्य राज्यों में इन गुर्गों की तलाश में जुट गई है. उन में हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला मनप्रीत राठी व बच्ची गैंगस्टर, गोल्डी बरार, कैथल निवासी मंजीत राठी और झज्जर का रहने वाला दीपक है.

पिछले दिनों ओलंपिक में मेडल जीतने वाले सुशील कुमार पर भी हत्या का आरोप लगा था और उस का नाम भी गैंगस्टर में शामिल हो गया था. गिरफ्तारी से पहले सुशील कुमार ने भी दिल्ली में जमीन की खरीदफरोख्त सहित अन्य काले कारनामों के लिए जठेड़ी के साथ हाथ मिला लिया था. बाद में दोनों में दुश्मनी हो गई. दिल्ली के स्टेडियम में पहलवान सागर धनखड़ की पिटाई के बाद मौत के मामले में सुशील गिरफ्तार हो गया. सागर के साथ सोनू महाल नामक शख्स की भी पिटाई हुई थी, जो रिश्ते में काला जठेड़ी का भांजा होने के साथ ही दाहिना हाथ भी माना जाता है.

बनना चाहता था सिपाही

पूछताछ में काला जठेड़ी ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया. उस ने बताया कि वह दिल्ली पुलिस का सिपाही बनना चाहता था. इस के लिए उस ने परीक्षा भी दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाया था. उस ने हरियाणा पुलिस में भी सिपाही का आवेदन किया था, लेकिन सेलेक्शन नहीं हुआ. उस ने बताया कि अगर उस का सपना न टूटा होता तो वह अपराधी भी नहीं होता. उस के बाद ही वह बदमाशों के संपर्क में आ गया और कई राज्यों का वांछित बदमाश बन गया.

इस बारे में उस ने स्पैशल सेल को बताया कि वर्ष 2002 में सोनीपत आईटीआई से सर्टिफिकेट कोर्स कर रहा था. उसी दौरान उस ने पुलिस में सिपाही बनने के लिए आवेदन किया था. इस के लिए उस ने दिल्ली और हरियाणा पुलिस में सिपाही भरती में हिस्सा लिया. दोनों ही जगह परीक्षा पास नहीं कर सका. सिपाही में भरती न हो पाने के बाद वह परिजनों से कुछ रुपए ले कर दिल्ली आ गया. यहां आ कर वह छोटेछोटे अपराध में लिप्त हो गया.

वर्ष 2004 में दिल्ली के समयपुर बादली थाना पुलिस ने पहली बार मोबाइल झपटमारी में काला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. झपटमारी में जमानत मिलने पर वह वापस गांव लौट आया. वहीं खेती में पिता का हाथ बंटाने के साथ केबल कारोबार में लग गया.

बहरहाल, काला जठेड़ी भले ही जेल में हो, लेकिन उस के गैंग के कई राज्यों में फैले हुए गुर्गे उस के इशारे पर कब किसी अपराध को अंजाम दे दें कहना मुश्किल है.