Real Crime Stories in Hindi : महात्मा गांधी की परपोती धोखाधड़ी में पहुंची जेल

Real Crime Stories in Hindi : महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से निकलने वाले अपने अखबार की जिम्मेदारी अपने एक बेटे मणिलाल को सौंपी थी. बाद में मणिलाल वहीं जा कर बस गए थे. इन्हीं मणिलाल की पोती यानी महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन ने दक्षिण अफ्रीका में ऐसी जालसाजी की कि कोर्ट ने उन्हें 7 साल की सजा सुनाई. जानिए क्या है ये मामला…

दक्षिण अफ्रीका के डरबन की एक अदालत में 7 जून को एक अहम सुनवाई होनी थी. ज्यूरी के लोग पूरी तैयारी से अपनीअपनी जगहों पर आ चुके थे. कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों, कोर्ट के कर्मचारियों और न्यायाधीश के अतिरिक्त मुकदमे के वादी, प्रतिवादी पक्षों के दरजनों लोग मौजूद थे. पूरी दुनिया में कोविड-19 की महामारी, वैक्सीनेशन, औक्सीजन और भारत में कहर बन कर टूटी कोरोना वायरस संक्रमण की हो रही चर्चा के बीच मीडिया में इस सुनवाई को ले कर भी जिज्ञासा बनी हुई थी. गहमागहमी का माहौल था.

अंतिम फैसले पर सब की नजरें टिकी थीं. इस की वजह यह थी कि मामले की जो आरोपी महिला थी, उस का संबंध महात्मा गांधी के परिवार और दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़े नाम के साथ जुड़ा था. पूरा मामला हाईप्रोफाइल होने के साथसाथ 6 साल पुराना कारोबारी धोखाधड़ी का था. यह आरोप एस.आर. महाराज नाम के एक बिजनैसमैन की शिकायत पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के द्वारा लगाया गया था. करीब 6 साल से जमानत पर चल रही 56 वर्षीया आरोपी महिला कठघरे में हाजिर हो चुकी थीं. अदालत की काररवाई शुरू होते ही अभियोजन पक्ष की तरफ से आरोपी के परिचय के साथसाथ न्यायाधीश के सामने उस पर लगे फरजीवाड़े के तमाम आरोप प्रस्तुत कर दिए गए थे.

प्रोसिक्यूटर द्वारा कहा गया कि धोखाधड़ी की आरोपी आशीष लता रामगोबिन ने अपनी पूर्व सांसद मां इला गांधी की इमेज और अपने परदादा महात्मा गांधी की वैश्विक कीर्ति का सहारा ले कर इस काम को अंजाम दिया था. इला गांधी भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पोती हैं. वह दक्षिण अफ्रीका में 9 साल तक सांसद रह चुकी हैं और भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से भी नवाजी जा चुकी हैं. वह राजनीतिक रसूख वाली जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के जवाब में आरोपी आशीष लता की तरफ से वैसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका, जिन से अगस्त 2015 में उद्योगपति एस.आर. महाराज के साथ धोखाधड़ी का लगा आरोप गलत साबित हो सकता था.

नतीजा कुछ समय में ही दक्षिण अफ्रीकी कानून के मुताबिक आशीष लता को अफ्रीकी मुद्रा में 62 लाख रैंड ( करीब 3 करोड़ 22 लाख रुपए) की धोखाधड़ी, जालसाजी का दोषी ठहराते हुए 7 साल जेल की सजा सुना दी गई. महाराज ने उन्हें कथित तौर पर भारत से ऐसी खेप के आयात और सीमा शुल्क कर के समाशोधन के लिए 62 लाख रैंड दिए थे, जिस का कोई अस्तित्व ही नहीं था. इस में आशीष लता की तरफ से लाभ का एक हिस्सा देने का वादा भी किया गया था. समाजसेविका के रूप में पहचान थी आशीष लता की वर्ष 2015 में जब इस संबंध में उन के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई थी, तब एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा था कि उन्होंने संभावित निवेशक को यकीन दिलाने के लिए कथित रूप से फरजी चालान और दस्तावेज दिए थे. उस में भारत से लिनेन के 3 कंटेनर आने की जानकारी दी गई थी.

आशीष लता इंटरनैशनल सेंटर फौर नौन वायलेंस नामक एक गैरसरकारी संगठन के एक प्रोग्राम की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक रह चुकी थीं. हालांकि उन के खिलाफ लगे आरोपों में फरजीवाड़े की रकम भारतीय बैंकों को करीब 23 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी की तुलना में बहुत ही कम है. फिर भी हर भारतीय को आशीष लता का कारनामा क्षुब्ध कर गया है. कारण वह उस बापू की परपोती हैं, जिन्होंने जीवन भर सत्य को अपनाया, सत्य का प्रयोग किया, सत्य की रक्षा के लिए संघर्ष किया और सत्य के लिए जिया.

आज जब भी किसी को अपनी सत्यता का हवाला देना होता है तो वह बापू के अपनाए गए तरीके से प्रदर्शन करता है. लोग अंतर्द्वंद्व और आत्मग्लानि के मौकों पर बापू की प्रतिमा के आगे मौन धारण कर आत्मशुद्धि के लिए बैठ जाते हैं. इस अनुसार यह कहा जा सकता है कि आशीष लता ने न केवल इस सत्यनिष्ठा को आंच पहुंचाई, बल्कि बापू की वैश्विक कीर्ति पर ही कालिख पोतने का काम किया. यह बात हैरानी के साथसाथ अफसोस करने जैसी है. बात करीब 6 साल पहले उस समय की है, जब एक दिन उद्योगपति एस.आर. महाराज अपनी लग्जरी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे औफिस जा रहे थे. उसी दौरान लैपटौप में अपने बैंक के बैलेंसशीट पर एक नजर डालने के बाद वह मेल चैक करने लगे थे.

पहले उन्होंने अपने एग्जीक्यूटिव्स के रोजमर्रा के मेल चैक किए. उन्हें जरूरी जवाब दिए, फिर वैसे मेल चैक करने लगे, जो पहली बार आए थे. एक मेल को देख कर चौंकते हुए उन की नजर ठहर गई. कारण वह सामान्य हो कर भी खास मेल था. उस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट थी, जिस से थोड़े समय में ही अच्छी आमदनी का वादा किया गया था. हालांकि उन के पास आए दिन इस तरह के मेल आते रहते थे, जिसे वे खुद विस्तार से पढ़ने के बजाय उस की डिटेल से जानकारी के लिए अपने सेक्रेटरी को फारवर्ड कर दिया करते थे. महाराज की बढ़ी रुचि लेकिन उस मेल में महाराज को जिज्ञासा भेजने वाले को ले कर भी हुई थी. उन्होंने तुरंत जवाब टाइप कर दिया, ‘‘आई नोटिस्ड योर रिक्वेस्ट, विल रिप्लाई सून!’’ यह बात साल 2015 के मई महीने की थी.

थोड़ी देर में महाराज दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित अपनी कंपनी के औफिस ‘न्यू अफ्रीका अलायंस फुटवेयर डिस्ट्रीब्यूटर्स’ के चैंबर में पहुंच गए. वह इस कंपनी के निदेशक हैं. कंपनी जूतेचप्पल, कपड़े और लिनेन के आयात, बिक्री एवं निर्माण का काम करती है. कंपनी का एक और काम प्रौफिट और मार्जिन के तहत दूसरी कंपनियों की आर्थिक मदद भी करना है. एस.आर. महाराज ने अपने सेक्रेटरी को बुला कर कहा, ‘‘मिस्टर सुथार, आज ही मुझे उस मेल की तुरंत डिटेल्स दो, जिस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट की गई है.’’

‘‘कौन सा मेल… जिसे समाजसेवी महिला आशीष लता रामगोबिन ने भेजा है?’’

‘‘हांहां वही. वह कोई आम महिला नहीं हैं. उन्होंने अपने परिचय में जो लिखा है, शायद तुम ने उस पर गौर नहीं किया.’’ उन्होंने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ ज्यादा नहीं समझ पाया.’’ सेक्रेटरी बोला.

‘‘उस ने जिस के लिए काम की बात कही है वह एक विश्वसनीय परिवार से ताल्लुक रखता है. वह भरोसे के लायक है. उस परिवार ने भारत में सामाजिक उत्थान के लिए कई बेमिसाल काम किए हैं. उन के साथ भारत के राष्ट्रपिता का दरजा हासिल कर चुके महात्मा गांधी का नाम जुड़ा है. उन के साथ जल्द ही मीटिंग की डेट फिक्स कर दो.’’

ऐसे हुआ आशीष लता पर विश्वास उद्योगपति महाराज का यह मजबूत आत्मविश्वास बनने की वजहें भी कम नहीं थीं. उस बारे में वे कई बातें पहले से जानते थे और कुछ जानकारी बाद में मालूम कर ली थीं. फाइनैंस की रिक्वेस्ट महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन ने भेजी थी. उन्होंने अपने परिचय में दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में सक्रिय महिला इला गांधी की बेटी लिखा था, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ काम किया था. तत्कालीन सरकार से सीधी टक्कर ली थी. उन्होंने निर्वासन की यातना झेली थी. उस के खात्मे के बाद सन 1994 से 2003 तक अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस की सदस्य के रूप में सांसद रह कर लोकहित में कई कार्य किए थे. उन के पति का नाम स्व.

मेवा रामगोबिन है. वह महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के 4 बेटों हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास में दूसरे बेटे मणिलाल मोहनदास गांधी की बेटी हैं. मणिलाल पहली बार 1897 में दक्षिण अफ्रीका गए थे. महात्मा गांधी ने 1904 में डरबन के पास ‘द फीनिक्स सेटलमेंट’ नामक एक जगह की स्थापना की थी. वहीं उन्होंने एक ग्रामसंस्था भी स्थापित की थी और सत्याग्रह के साथ अपने अनूठे क्रांतिकारी प्रयोग किए थे. इस दौरान मणिलाल 1906 से 1914 के बीच क्वाजुलु नटाल और ग्वाटेंग में रहे. फिर वापस भारत आ गए. जबकि महात्मा गांधी ने डरबन से अपना साप्ताहिक अखबार अंगरेजी और गुजराती में ‘इंडियन ओपिनियन’ भी छापना शुरू कर दिया था. इस की शुरुआत 1903 में ही हुई थी.

बाद में महात्मा गांधी ने उस अखबार के विशेष रूप से गुजराती खंड प्रकाशन में सहायता के लिए मणिलाल को दक्षिण अफ्रीका भेज दिया था. वहां मणिलाल सन 1920 में उस के संपादक बन गए और लंबे समय तक इस की जिम्मेदारी संभाली. उन्होंने सन 1927 में सुशीला मशरूवाला से शादी की थी, जो बाद में उन की प्रिंटिंग प्रैस की पार्टनर बन गईं. उन से 3 संतानें सीता, अरुण और इला हुए. ये सभी दक्षिण अफ्रीका के ही नागरिक बन गए. आशीष लता की मां इला का नाम दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में बड़ा नाम है. उन का जन्म वहां के क्वाजुलु नटाल में सन 1940 में हुआ था. उन्होंने हर तरह की हिंसा के खिलाफ संघर्ष किया. इस के लिए उन्होंने गांधी डेवलपमेंट ट्रस्ट बनाया, जो अहिंसा के लिए काम करता है. साथ ही महात्मा गांधी के नाम एक मार्च कमेटी भी बनाई गई है.

विभिन्न सामाजिक कार्यों को देखते हुए सन 2002 में वह ‘कम्युनिटी आफ क्राइस्ट इंटरनैशनल पीस अवार्ड’ से सम्मानित की जा चुकी हैं. भारत सरकार ने भी वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था. दक्षिण अफ्रीका में रह रहे महात्मा गांधी परिवार के कई सदस्यों में कीर्ति मेनन, स्वर्गीय सतीश धुपेलिया, उमा धुपेलिया मेस्त्री, इला गांधी और आशीष लता रामगोबिन शामिल हैं. 3 दिसंबर, 1965 को जन्म लेने वाली आशीष लता रामगोबिन का रहनसहन हिंदू रीतिरिवाज पर आधारित है एवं प्रोफेशनल पहचान सामाजिक कार्यकर्ता और उद्यमिता के रूप में है. वैसे उन की नागरिकता दक्षिण अफ्रीका की है.

उन के 4 छोटे भाईबहनों में आशा और आरती बहनें हैं, जबकि किदार और खुश भाई हैं. उन की फेसबुक अकाउंट के अनुसार उन्होंने सन 1988 में उरबन के ग्लेनहैवेन सकेंडरी स्कूल से सेकेंडरी तक पढ़ाई पूरी कर क्वाजुलु नटाल यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया है. फिर दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रैशन से पोस्ट ग्रैजुएट तक की पढ़ाई की. बाद में प्रोफ्रेशनल ट्रेनिंग और कोचिंग इंडस्ट्री के गुर सीखे. स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए सरकारी प्रोजेक्ट, गवर्नेंस की बारीक जानकारियां, पं्रोजेक्ट एवं प्रोग्राम का मूल्यांकन, प्रोजेक्ट ड्राफ्ंिटग और एंटरप्रेन्योरशिप में महारत हासिल कर ली.

आशीष लता की शादी एक कारोबारी मार्क चूनू से हुई थी. उन से तलाक हो चुका है, लेकिन अपनी 2 संतानों बेटा और बेटी के साथ रहती हैं. वे अभी किशोर उम्र के हैं. उन का करियर स्वयंसेवी संस्था इंटरनैशनल सेंटर नान वायलेंस से जुड़ा है, जिस की वह संस्थापक और ओनर हैं. वह उस की कार्यकारी निदेशक भी हैं. उन की पहचान राजनीतिज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता की भी है. न्यूजएंडजिप वेब पोर्टल के अनुसार, उन्होंने 29 जनवरी, 2000 को महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए एक नान वायलेंस संस्था स्थापित की थी. साथ ही उन्होंने 2016 से 5 साल तक यूनाइटेड ट्रेड सोल्यूशन के मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभाई.

इस तरह उन्होंने स्वयंसेवी संस्था के लिए डोनेशन जुटाने का काम करने के साथसाथ बिजनैस करते हुए अच्छी पूंजी अर्जित कर ली है. लग गई धोखाधड़ी की कालिख आशीष लता के बारे में कई वैसी बातें भी हैं, जो उन्हें खास बनाने के लिए काफी हैं. जैसे उन्होंने अपने परदादा महात्मा गांधी और मां इला गांधी के कदमों पर चलने की निर्णय लिया है. उन्होंने अपने एनजीओ के माध्यम से घरेलू हिंसा की शिकार औरतों और बच्चों की मदद की है. वह दक्षिण अफ्रीका के समारोहों में अपने परिवार के साथ शामिल होती रही हैं. आशीष लता रामगोबिन की उद्योगपति एस.आर. महाराज से मुलाकात सन 2015 में ही हो गई थी. दोनों की पहली मीटिंग के दौरान महाराज ने फाइनैंस की जरूरत के बारे में पूछा, ‘‘आप को पैसा क्यों चाहिए?’’

‘‘दरसअल, हम ने भारत से लिनेन के 3 कंटेनर मंगवाए हैं, जो बंदरगाह पर पड़े हैं. आयात लागत और सीमा शुल्क पेमेंट करने में दिक्कत आ गई है. माल को साउथ अफ्रीकन हौस्पिटल ग्रुप नेट केयर को डिलीवर करना है.’’ लता ने सिलसिलेवार ढंग से जवाब दिया.

‘‘पैसे की वापसी का भरोसा क्या है?’’ महाराज के फाइनैंस एडवाइजर ने पूछा.

‘‘ये रहे नेट केयर कंपनी और हमारे साथ एग्रीमेंट बनाने के डाक्युमेंट्स. इस में सारी बातें लिखी हैं.’’ आशीष लता ने कहा.

‘‘कितना फाइनैंस करना होगा?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘6.2 मिलियन रैंड की जरूरत है. उस की डिटेल्स की मूल कौपी दे रही हूं. आयात किए गए माल के खरीद की रसीद यह रही.’’ लता ने आश्वासन दिया.

‘‘इस में मेरा प्रौफिट क्या होगा?’’ महाराज ने पूछा.

‘‘उस बारे में भी फाइनैंस की रिक्वेस्ट डिटेल्स के साथ दी गई है.’’ लता ने साथ लाए डाक्युमेंट्स के पन्ने पलट कर दिखाए. उन के द्वारा सौंपे गए डाक्युमेंट्स पर महाराज ने एक सरसरी निगाह दौड़ाई और अपने फाइनैंस एडवाइजर को सौंपते हुए उस का बारीकी से अध्ययन करने का निर्देश दिया.

‘‘थोड़ा वक्त दीजिए. वैसे मुझे आप पर और आप की पहचान के साथसाथ पारिवारिक इमेज पर पूरा भरोसा है. डाक्युमेंट्स की जांचपरख तो महज औपचारिकता भर है. जल्द ही फाइनैंस संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी करवा दूंगा.’’ एस.आर. महाराज बोले.

‘‘बहुतबहुत धन्यवाद, जितना जल्द हो सके फाइनैंस करवा दें तो अच्छा रहेगा.’’ लता ने आभार जताते हुए आग्रह किया.

‘‘…लेकिन हां, मेरे प्रौफिट की हिस्सेदारी में देरी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में हमारी कंपनी काफी सख्त है.’’ महाराज ने साफसाफ कहा.

इसी बीच कंपनी के फाइनैंस एडवाइजर ने आशंका जताई, ‘‘सर, इस में कुछ डाक्युमेंट्स कम हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बता दो. जितनी जल्द हो सके, लताजी उसे जमा करवा देंगी. बैंक अकाउंट स्टेटमेंट और रिटर्न की डिटेल्स भी मंगवा लेना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, बाकी के सारे डाक्युमेंट्स एक हफ्ते में आप को मिल जाएंगे.’’ लता ने कहते हुए एक बार फिर महाराज को धन्यवाद दिया. इस तरह दोनों की पहली मीटिंग संभावनाओं से भरी रही. बहुत जल्द ही एक महीने के भीतर ही 3 मीटिंग्स और हुईं और आशीष लता को जरूरत के मुताबिक फाइनैंस मिल गया. उस के बाद मुनाफे के साथ रकम वापसी की एक महीने बाद की एक डेडलाइन तय हो गई. कहते हैं कि बिजनैसमैन एस.आर. महाराज की कंपनी ने जिस तरह से फाइनैंस करने में जितनी तत्परता दिखाई, उतनी ही सुस्ती आशीष लता की तरफ से बरती गई.

समय पर नहीं लौटाई रकम  महाराज की कंपनी को समय पर भुगतान नहीं मिलने पर उन्होंने कंपनी के नियम और शर्तों के मुताबिक आशीष लता को नोटिस भेज दिया. नोटिस का सही जवाब नहीं मिलने पर कंपनी ने लता द्वारा जमा करवाए गए डाक्यूमेंट्स की जांच करवाई. जांच में लता द्वारा किए गए कई दावे गलत साबित हुए. जिस में माल की खरीद के हस्ताक्षरित खरीद का आदेश और नेटकेयर बैंक खाते में भुगतान से संबंधित था. कंपनी ने पाया कि उन के द्वारा जमा किए गए डाक्युमेंट्स जाली थे और उन के साथ नेटकेयर ने कभी कोई व्यवस्था ही नहीं की थी. यहां तक कि लिनेन के कंटेनर बंदरगाह पर पहुंचे ही नहीं थे.

इस फरजीवाड़े का पता चलते ही कंपनी के डायरेक्टर एस.आर. महाराज ने आशीष लता के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. 2015 में लता के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के दौरान एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा कि लता ने इनवैस्टर को यकीन दिलाने के लिए फरजी दस्तावेज और चालान दिखाए थे. भारत से लिनेन का कोई कंटेनर दक्षिण अफ्रीका आया ही नहीं था. हालांकि सुनवाई के दौरान लता ने सबूत पेश करने के लिए समय मांगा और जमानत की अरजी दाखिल की. लता की पारिवारिक इमेज को ध्यान में रखते हुए अक्तूबर 2015 में 50 हजार रैंड (करीब 2.68 लाख रुपए) की जमानत राशि पर पर उन्हें छोड़ दिया गया.

जमानत पर रिहा हुई आशीष लता ने कुल 6 साल तक राहत की सांस ली, किंतु उन के कारनामे दिनप्रतिदिन और मजबूत होते चले गए और 7 जून, 2021 को डरबन की अदालत ने आशीष लता रामगोबिन को धोखाधड़ी और

का दोष सिद्ध करते हुए 7 साल की सजा सुनाई. कथा लिखे जाने तक वह दक्षिण अफ्रीका की जेल में थीं.

 

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी – भाग 3

पुलिस ने 18 नवंबर, 2010 को जोलाइल मंगेनी को केपटाउन की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने 20 नवंबर को मजिवामाडोडा क्वेब और जोला टोंगो को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में इन दोनों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

21 नवंबर को एनी देवानी का शव लंदन पहुंचा, जहां उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

22 नवंबर को जोला टोंगो और मजिवामाडोडा को अदालत में पेश किया गया तो अदालत में टोंगो ने जो बयान दिया, वह चौंकाने वाला था. उस ने बताया कि एनी की हत्या की साजिश किसी और ने नहीं, उस के पति श्रीन देवानी ने रची थी. उसी ने पैसे दे कर एनी की हत्या कराई थी. इस हत्या के लिए उस ने 15 हजार रेंड दिए थे. जोला टोंगो ने ही पैसे दे कर मजिवामाडोडा क्वेब और जोलाइल मंगेनी से एनी की हत्या कराई थी.

जोलाइल मंगेनी ने गोली मार कर एनी की हत्या की थी तो मजिवामाडोडा क्वेब ने एनी के शरीर से सारे गहने उतारे थे, जिन में व्हाइट गोल्ड की चेन, डायमंड ब्रेसलेट और एक जियार्जियो अरमानी की घड़ी थी.

एनी की हत्या उस के पति श्रीन देवानी ने कराई थी, यह खुलासा होने पर उस के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर लिया गया. श्रीन लंदन में था, इसलिए इस बात की जानकारी वहां की पुलिस को देने के साथ जरूरी दस्तावेज भी भिजवा दिए गए थे.

लंदन पुलिस ने श्रीन देवानी को गिरफ्तार कर लिया. जबकि उस का कहना था कि उसी की नवविवाहिता पत्नी की हत्या हुई है और उसे ही दोषी ठहराया जा रहा है. वह उसे दिल से प्यार करता था. उसी के कहने पर वह उसे साउथ अफ्रीका ले गया था.

श्रीन के घर वाले साउथ अफ्रीकी पुलिस पर सवाल उठा रहे थे कि वहां सुरक्षा के ठीक इंतजाम नहीं हैं. वहां के लोगों का ध्यान हटाने के लिए पुलिस ने ऐसा किया है, ताकि कोई वहां के सुरक्षा इंतजामों पर सवाल न खड़ा कर सके.

एनी की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार होने के बाद श्रीन स्टे्रस और्डर की बीमारी से ग्रस्त हो गया. उस की मानसिक स्थिति बिगड़ गई थी.

4 मई, 2011 को अदालत में श्रीन देवानी के मामले की एक्स्ट्रा एडीशन सुनवाई हुई. 5 मई, 2011 को बेलमार्श के मजिस्ट्रेटों ने उसे सिस्सी क्राइम कह कर पुकारा और 18 जुलाई, 2011 तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी.

18 जुलाई को श्रीन देवानी को जज रिडल की अदालत में पेश किया गया. साइकियाट्रिक एक्सपर्ट ने अदालत को बताया कि अगर श्रीन देवानी को लगता है कि उसे परेशान किया जा रहा है तो वह स्वयं को खत्म कर सकता है. इसलिए उसे जेल न भेजा जाए. बहरहाल अदालत ने जमानत की सुनवाई के लिए अगली तारीख दे दी.

अगली तारीख यानी 10 अगस्त, 2011 को प्राप्त दस्तावेजों से अदालत ने मान लिया कि श्रीन देवानी ने ही अपनी पत्नी एनी देवानी की सुपारी दे कर हत्या कराई थी.

21 सितंबर, 2011 को श्रीन देवानी की जमानत की अरजी पर सुनवाई थी. इस सुनवाई पर साउथ अफ्रीका पुलिस ने बताया कि पकड़े गए तीनों आरोपियों ने स्वीकार किया है कि श्रीन देवानी ने ही जोला टोंगो के साथ साजिश रच कर एनी की हत्या की सुपारी दी थी. इसलिए उसे जमानत पर छोड़ना ठीक नहीं है.

दूसरी ओर 26 सितंबर 2011 को साउथ अफ्रीका के होम सेके्रटरी येरेसा ने श्रीन देवानी की अफ्रीका में एक्स्ट्राडिशन सुनवाई के और्डर पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जिस से श्रीन देवानी के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया था.

लेकिन 30 सितंबर को श्रीन देवानी के वकीलों ने उस के मानसिक रूप से बीमार होने का हवाला दे कर एक अपील दायर कर दी थी. 13 दिसंबर, 2011 को इस पर बहस के दौरान श्रीन देवानी के वकीलों ने कहा कि वह अपने बचाव के लिए मानसिक बीमारी का बहाना नहीं बना रहा है. वह वाकई में बीमार है. ऐसी स्थिति में उस के एक्स्ट्राडिशन और्डर रद्द कर दिए जाने चाहिए.

14 दिसंबर, 2011 को अदालत ने साउथ अफ्रीका पुलिस से पूछा कि श्रीन देवानी की सुनवाई साउथ अफ्रीका में ठीक से हो सकती है या नहीं? 16 दिसंबर को अदालत ने आगे की कार्यवाही के लिए 31 जुलाई, 2012 की तारीख तय कर दी. इस तारीख को अदालत ने प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर श्रीन देवानी के प्रत्यर्पण पर अस्थाई रोक लगा दी. दूसरी ओर साउथ अफ्रीका की अदालत ने 8 अगस्त, 2012 को अभियुक्त मजिवामाडोडा क्वेब को एनी देवानी की हत्या के मामले में दोषी मानते हुए 25 साल के कैद की सजा सुनाई.

श्रीन देवानी ने अदालत से प्रार्थना की थी कि उस के मानसिक रूप से बीमार रहने तक उस के साथ नरमी बरती जाए. डाक्टरों के अनुसार 32 वर्षीय श्रीन देवानी पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसौर्डर और डिप्रेशन का शिकार था. उस के साइकियाट्रिस्ट डा. पौल केट्रेल ने अदालत में कहा था कि उसे जमानत दे कर दिमागी तौर पर राहत दी जानी चाहिए. उसे जिस पुनर्वास वार्ड में रखा गया है, वहां उस का फ्लाइट रिस्न बढ़ सकता है.

जोलाइल मंगेनी ने कोर्ट में स्वीकार कर लिया था कि उसी ने एनी देवानी की गोली मार कर हत्या की थी, इसलिए उसे हत्या का दोषी करार देते हुए 5 दिसंबर, 2012 को उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. उसी के साथ टैक्सी ड्राइवर जोला टोंगो को साजिश रचने के आरोप में 18 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.

जुलाई, 2013 को अदालत ने कहा था कि अगर श्रीन देवानी की दिमागी बीमारी ठीक हो गई है तो अदालत में पेश किया जाए. लेकिन श्रीन देवानी का मेंटल हेल्थ अस्पताल में इलाज चल रहा था, इसलिए उसे अदालत में पेशी से छूट मिल गई. फिर भी मुख्य मजिस्ट्रेट हावर्ड रिडल ने कहा कि उसे इसी महीने कोर्ट में पेश होना होगा.

तमाम सुनवाई के बाद आखिर 24 जुलाई, 2013 को अदालत ने आदेश दिया कि श्रीन देवानी को अपनी पत्नी एनी की हत्या के मामले में साउथ अफ्रीका की अदालत में सुनवाई के लिए पेश होना होगा. अदालत का कहना था कि श्रीन देवानी काफी समय से अपना इलाज करा रहा है. अब तक वह ठीक हो गया होगा, इसलिए अब इस मामले में देर करना ठीक नहीं होगा.

श्रीन देवानी बीमारी की वजह से भले ही  साउथ अफ्रीका की अदालत में पेश नहीं हुआ था, लेकिन अदालत ने प्राप्त सुबूतों के आधार पर उसे एनी देवानी की हत्या की सुपारी देने और साजिश रचने का दोषी करार दे दिया था. अदालत का मानना था कि अब वह स्वस्थ हो चुका है, इसलिए यहां ला कर सजा सुनाने की कार्यवाही की जानी चाहिए.

अदालत श्रीन देवानी को क्या सजा देती है, यह तो उस के अदालत में पेश होने के बाद ही पता चलेगा. मजे की बात यह है कि हत्या के इस मामले में दोषियों को तो सजा मिल गई, लेकिन अभी तक यह पता नहीं चला है कि जिस पत्नी को श्रीन जान से ज्यादा प्यार करता था, उसी की जान लेने के लिए इतनी बड़ी साजिश क्यों रची?

श्रीन देवानी के कुछ दोस्तों का कहना है कि शादी के कुछ दिनों बाद ही वह एनी को ले कर अपसेट रहने लगा था. उस ने एनी के मोबाइल पर उस के किसी पुरुष मित्र का मैसेज पढ़ लिया था. शायद इसी वजह से वह परेशान था. चरित्र पर संदेह होने की वजह से ही वहां ले जा कर उस ने उस की हत्या करा दी थी.

बात कुछ भी हो,  यह साबित ही हो चुका है कि एनी की हत्या उसी ने कराई थी. इसलिए अब वह ज्यादा दिनों तक सजा से बच नहीं पाएगा.

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी – भाग 2

एनी का जन्म स्वीडन के मेरिस्टाड शहर में हुआ था. इस के पहले उस का परिवार युगांडा में रहता था. लेकिन जब युगांडा में ईदी अमीन का शासन हुआ तो उस ने एशियाई लोगों को युगांडा छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. सभी को स्वीडन के मेरिस्टाड शहर भेज दिया गया था. तभी एनी का परिवार भी वहां आ गया था. यहीं एनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर के नौकरी कर रही थी.

सारी जानकारी जुटा कर श्रीन के घर वाले एनी के घर रिश्ता मांगने पहुंचे तो उस के घर वालों को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ. रिश्ता खुद उन के घर चल कर आया था. वे लोग भी उन्हीं की तरह भारतीय मूल के थे. आर्थिक स्थिति भी बेहतर थी.

लड़का सुंदर और सुशील होने के साथ व्यवसाय में लगा था. कोई ऐब भी नहीं था. इस सब के अलावा सब से बड़ी बात यह थी कि लड़का और लड़की एकदूसरे को प्यार करते थे. इसलिए न करने का सवाल ही नहीं था.

दोनों परिवारों की सहमति पर शादी तय हो गई. इस के बाद पेरिस के होटल रिट्ज में रिंग सेरेमनी हो गई. चूंकि दोनों परिवार भारतीय मूल के थे, उन के अधिकतर रिश्तेदार भारत में रहते थे, इसलिए तय हुआ कि शादी वे भारत में करेंगे. शादी का दिन और जगह भी तय कर ली गई.

29 अक्तूबर, 2010 को बाहरी मुंबई के लेक पोवई रिसौर्ट में हिंदू रीतिरिवाजों से श्रीन और एनी शादी के पवित्र बंधन में बंध गए. श्रीन के अरमानों की डोली में बैठ कर एनी लंदन आ गई. शादी की खुशी में यहां भी दोस्तों और परिचितों के लिए एक पार्टी आयोजित की गई.

एनी हिंडोचा अब एनी देवानी बन गई. एनी हनीमून मनाने साउथ अफ्रीका जाना चाहती थी, जबकि श्रीन पश्चिम के किसी देश जाना चाहता था. कई दिनों तक दोनों में इसी विषय पर चर्चा होती रही. लेकिन दोनों ही अपनी जिद पर अड़े थे.

एनी साउथ अफ्रीका घूमना चाहती थी, जबकि श्रीन इस के लिए तैयार नहीं था. वह यह जरूर कह रहा था कि फिर कभी वह उसे साउथ अफ्रीका घुमा लाएगा. लेकिन अचानक श्रीन का मन बदल गया.

उस ने साउथ अफ्रीका जाने के लिए हां कर करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि इस छोटी सी बात के लिए तुम्हें निराश नहीं कर सकता. और फिर फर्क ही क्या पड़ता है, हनीमून पश्चिम के किसी देश में मनाया जाए या साउथ अफ्रीका में.’’

नवंबर के दूसरे सप्ताह में हनीमून पर जाने की तैयारी हो गई. 11 नवंबर को दोनों साउथ अफ्रीका के केपटाउन पहुंच गए. कमरे वगैरह पहले से ही बुक थे, इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. अगले दिन सुबह तैयार हो कर श्रीन कहीं जाने लगा तो एनी ने कहा, ‘‘अकेलेअकेले कहां जा रहे हो?’’

‘‘पता करने जा रहा हूं कि यहां कौन कौन सी जगह घूमने लायक है. फिर टैक्सी का भी तो इंतजाम करना होगा. मैं सब पता कर के कुछ देर में आता हूं.’’ कह कर श्रीन चला गया. श्रीन ने लौट कर बताया कि कल सुबह ही टैक्सी आ जाएगी. टैक्सी ड्राइवर अच्छा मिल गया है. वही गाइड का भी काम करेगा. उसे अंगरेजी अच्छी आती है.

13 नवंबर, 2010 को 10 बजे के आसपास श्रीन एनी को ले कर होटल से निकला. टैक्सी गेट पर खड़ी थी. टैक्सी ड्राइवर था जोला टोंगो. वह वहीं का रहने वाला था.

पूरा दिन टोंगो श्रीन और एनी को घुमाता रहा. रात का खाना भी उन लोगों ने बाहर ही खाया. वे काफी दूर निकल गए थे. लौटते समय रात 11 बजे के करीब उन की टैक्सी केपटाउन से 5-6 किलोमीटर दूर टाउनशिप गुगुलेथू से गुजर रही थी तो 2 लोगों ने अचानक सामने आ कर टैक्सी रोक ली.

एनी ने जोला टोंगो से कहा भी कि इतनी रात को गाड़ी रोकना ठीक नहीं है. पता नहीं ये लोग कौन हैं. लेकिन उस ने उस की बात नहीं मानी और गाड़ी रोक दी.

टोंगो ने शीशा खोल कर जानना चाहा कि उन्होंने गाड़ी क्यों रुकवाई है तो दोनों में से एक व्यक्ति ने ड्राइवर टोंगो की कनपटी से रिवाल्वर सटा कर टैक्सी से नीचे आने को कहा. टोंगो चुपचाप नीचे आ गया. पीछे की सीट पर बैठे एनी और श्रीन हैरान परेशान थे.  डर के मारे एनी की तो आवाज ही नहीं निकल रही थी.

टोंगो के उतरने के बाद रिवाल्वर सटाने वाला आदमी ड्राइविंग सीट पर बैठ गया तो उस का साथी उस की बगल वाली सीट पर बैठ गया. दोनों ने अपनी भाषा में कुछ बात की और फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठे व्यक्ति ने एनी और श्रीन की ओर रिवाल्वर तान कर कहा, ‘‘चुपचाप बैठे रहना. अगर शोर मचाया तो गोली मार दूंगा.’’

एनी एवं श्रीन और ज्यादा डर गए. ड्राइवर जोला टोंगो को वहीं छोड़ कर टैक्सी चल पड़ी. टैक्सी हरारे पहुंची तो श्रीन को सड़क पर फेंक कर टैक्सी फिर आगे बढ़ गई. श्रीन किसी तरह नजदीकी पुलिस स्टेशन पर पहुंचा और एनी के अपहरण की सूचना दी.

पुलिस तुरंत हरकत में आ गई. 14 नवंबर, 2010 की सुबह टैक्सी वेस्ट लिंगेलिथ में लावारिस हालत में खड़ी मिली. टैक्सी की पिछली सीट पर एनी देवानी की लाश पड़ी थी. उस की गरदन में गोली मारी गई थी. सीने और जांघों पर खरोंच के निशान थे. ऊपर का कपड़ा कमर तक उठा हुआ था और अंडरवियर घुटनों के नीचे तक खिसकी हुई थी.

वेस्टर्न केप पुलिस ने अपहरण, डकैती और हत्या का मामला दर्ज कर लिया. मामला विदेशी पर्यटक से जुड़ा था, इसलिए वेस्टर्न के विनिस्टर एल्बर्ट फ्रिटज ने लोगों से अपील की कि अगर कोई इस हत्या के बारे में कोई जानकारी दे सकता है तो आगे आ कर पुलिस की मदद करे. पुलिस को भी त्वरित काररवाई के आदेश दिए गए थे.

मामला काफी संगीन था. पुलिस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी. परिणामस्वरूप तीसरे दिन 16 नवंबर को पुलिस ने एक आदमी को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने खुद को निर्दोष बताते हुए 26 वर्षीय जोलाइल मंगेनी पर शक जाहिर किया. इस के बाद उस की निशानदेही पर 17 नवंबर को जोलाइल मंगेनी को गिरफ्तार कर लिया गया.

जोलाइल मंगेनी से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उसी ने गोली चला कर एनी देवानी की हत्या की थी. इस वारदात में टैक्सी ड्राइवर जोला टोंगो और मजिवामाडोडा क्वेब भी शामिल था. जोला टोंगो के कहने पर ही उस ने और मजिवामाडोडा क्वेब ने एनी की हत्या की थी. इस के लिए उन्हें मोटी रकम दी गई थी.

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी – भाग 1

सन 2009 के जुलाई महीने में एनी हिंडोचा अपनी कजिन स्नेहा से मिलने ल्यूटोन गई तो वहीं उस की मुलाकात श्रीन देवानी से हुई. श्रीन स्नेहा का पारिवारिक मित्र था. श्रीन देवानी हेल्थकेयर बिजनैस का एक जानामाना नाम था. मूलरूप से भारत का रहने वाला श्रीन देवानी का परिवार लंदन के ब्रिस्टल शहर में रहता था. सालों पहले उस के घर वाले यहां आ कर रहने लगे थे. उस के पिता पीएसपी हेल्थकेयर कंपनी चलाते थे. श्रीन देवानी का जन्म वहीं हुआ था.

यूनिवर्सिटी औफ मैनचेस्टर से इकोनौमिक्स में ग्रैजुएशन कर के श्रीन वहीं एक कंपनी में एकाउंटेंट की नौकरी करने लगा था. इसी नौकरी के दौरान स्नेहा से उस की दोस्ती हुई थी. नौकरी कर के श्रीन को जब अच्छाखासा अनुभव हो गया तो उस ने अपना पारिवारिक कारोबार संभाल लिया था. नौकरी उस ने भले छोड़ दी थी, लेकिन दोस्तों से वह पहले की ही तरह मिलताजुलता रहता था.

दोस्तों से ही मिलने जुलने में श्रीन की मुलाकात स्नेहा की कजिन एनी हिंडोचा से हुई तो पहली ही मुलाकात में खूबसूरत एनी उसे कुछ इस तरह भायी कि एक बार उस के चेहरे पर उस की नजर पड़ी तो वह अपनी नजर को हटा नहीं सका.

एनी ने श्रीन देवानी के दिल में एक अजीब सी हलचल मचा दी थी. अब तक उस के संपर्क में तमाम लड़कियां आई थीं, लेकिन जो बात उस ने एनी में पाई थी, शायद वह उन में से किसी में नहीं दिखी थी. इसीलिए वह उस पर से नजर नहीं हटा सका था.

श्रीन एनी को एकटक देख रहा था. उसे इस बात की भी परवाह नहीं थी कि वह जो कर रहा है, वह अभद्रता है और उस की इस अभद्रता पर लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे.

एनी को उस के मन की बात भांपते देर नहीं लगी थी. श्रीन भी कम आकर्षक नहीं था. सुखी और संपन्न तो था ही. एक लड़की को जिस तरह का मर्द चाहिए, वे सारे गुण उस में थे. इसलिए उस का एकटक ताकना एनी को बुरा लगने के बजाय अच्छा ही लगा था. कहा जाए तो उस का हाल भी श्रीन से कुछ अलग नहीं था.

जब दोनों के ही दिलों की हालत एक जैसी हो गई तो वे एकदूसरे की आंखों में डूब गए. तभी स्नेहा ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘यहां तुम दोनों के अलावा भी तमाम लोग मौजूद हैं. उन लोगों की ओर भी देख लो.’’

श्रीन और एनी को अपनी अपनी गलती का अहसास हुआ. दोनों शरमा गए, इसलिए कुछ कह नहीं सके, सिर्फ मुसकरा कर रह गए. दोनों बातें भले ही अन्य लोगों से करते रहे, पर नजरें एकदूसरे को ही ताकती रहीं. इतना सब होने के बाद अब उन्हें एकदूसरे से यह कहने की जरूरत नहीं रह गई थी कि वे एकदूसरे के दिलों में बस चुके हैं. इस तरह उन के प्यार का इजहार नजरों से ही हो गया था.

वहां से विदा होने से पहले एनी और श्रीन ने एकदूसरे के नंबर ले लिए थे. इस के बाद उन की मोबाइल पर बात ही नहीं होने लगी, बल्कि दोनों ऐसी जगहों पर मिलने भी लगे, जहां सिर्फ वही दोनों होते थे. एकांत में मिल कर दोनों अपनेअपने दिलों की बात कह कर बेहद सुकून महसूस करते थे. ज्यादातर वे ब्रिस्टल और स्टाकहोम के बीच मिलते थे.

एकांत में एक दिन जब श्रीन ने एनी की ठोढ़ी उठा कर उस की आंखों में झांकते हुए कहा कि वह उसे बहुत प्यार करता है तो एनी उस की हथेली अपने हाथों में दबा कर बोली, ‘‘प्यार! मैं तुम्हें तुम से भी ज्यादा प्यार करती हूं. मेरी हर धड़कन, हर सांस अब तुम्हारे लिए है. तुम भले ही मुझ से दूर रहते हो, पर यादों की वजह से हर पल मेरे साथ होते हो.’’

‘‘एनी, सागर की गहराई को तो नापा जा सकता है, लेकिन दिल की गहराई को किसी भी तरह नहीं नापा जा सकता. वरना मैं भी दिखा देता कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं. तुम्हारे प्यार से इस जिंदगी को एक मकसद मिल गया है. अब इसे जीने में मजा आने लगा है. बाकी तो यह सूखी नदी जैसी थी.’’ श्रीन ने उसी तरह एनी की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘तुम से प्यार करने के बाद ही मुझे भी पता चला है कि यह जिंदगी कितनी खूबसूरत होती है. तुम्हारे प्यार में बीतने वाला हर पल बहुत हसीन लगता है. मेरी जिंदगी में आ कर तुम ने इसे धन्य कर दिया. मैं तुम्हारा यह एहसान ताउम्र नहीं भूल सकती.’’ यह कहते हुए एनी भावुकता की गहराई में उतर गई.

‘‘एहसान तो तुम ने मुझ पर किया है, मेरी जिंदगी में आ कर. तुम्हारा यह प्यार मेरे लिए वह इबादत है, जो मैं मरते दम तक करता रहूंगा.’’ श्रीन ने कहा.

‘‘मुझे कभीकभी विश्वास ही नहीं होता कि मुझे तुम जैसा प्यार करने वाला मिला है. सचमुच तुम्हें पा कर मेरी जिंदगी बदल गई है.’’ एनी ने आंखें मूंद कर कहा.

प्यार मोहब्बत की बातों की कोई सीमा नहीं होती. इस के लिए तो कई जीवन भी कम पड़ जाएं. इसलिए  जब भी मिलते, इसी तरह की बातें करते रहते. मिलतेजुलते, ऐसी ही बातें करते डेढ़ साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला.

गुजरे समय के साथ उन का प्यार गहरा होता गया. अब वे कईकई दिनों में कुछ घंटे के लिए मिलते तो उन का मन न भरता. वे चाहते थे कि उन का हर पल एकदूसरे की बांहों में गुजरे.

लेकिन इस के लिए एक बंधन की जरूरत थी. वह बंधन था शादी का और इस के लिए जरूरत थी दोनों के परिवारों की रजामंदी. दोनों भले ही पश्चिमी देशों में जन्मे और पलेबढ़े थे, लेकिन थे तो हिंदुस्तानी, जहां की संस्कृति आज भी उन के घर वालों पर हावी थी. शायद इसीलिए उन्होंने अपने प्यार को अभी तक घर वालों के सामने उजागर नहीं होने दिया था.

इसीलिए जब उन के मन में शादी का विचार आया तो एनी ने कहा, ‘‘श्रीन, शादी के लिए तुम अपने घर वालों से बात करो, क्योंकि मैं तो अपने घर वालों से कुछ कह नहीं सकती. लेकिन इतना जरूर जानती हूं कि तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता ले कर आएंगे तो मेरे घर वाले मना नहीं करेंगे.’’

‘‘प्यार की पहल मैं ने की तो अब शादी की भी पहल मुझे ही करनी पड़ेगी.’’ श्रीन ने हंसते हुए कहा, ‘‘खैर, तुम्हारे लिए मैं यह भी करूंगा.’’

‘‘मुझ पर अधिकार पाना है तो तुम्हें यह भी करना होगा.’’

‘‘ठीक है, मैं जल्दी ही कुछ करता हूं, क्योंकि अब तुम से दूरी सहन नहीं हो रही है.’’ श्रीन ने कहा.

श्रीन ने एनी से वादा ही नहीं किया, बल्कि उस पर अमल भी किया. उस ने अपने घर वालों को अपने प्यार के बारे में बता कर एनी के घर जा कर रिश्ता मांगने के लिए कहा. उस के घर वालों को इस बात पर कोई ऐतराज नहीं था. वे बेटे की खुशी में खुश थे.

उन्हें सब से बड़ा संतोष इस बात का था कि एनी भारतीय मूल की थी. वह उन के परिवार में आराम से एडजस्ट हो जाएगी. लेकिन एनी के घर वालों से मिलने से पहले उन्होंने एनी और उस के घर वालों के बारे में पता करना जरूरी समझा.