प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 1

अभी सुबह का उजाला भी ठीक से फैला नहीं था कि मैनपुरी कोतवाली के गेट से एक महिला अंदर घुसी. वह काफी अस्तव्यस्त और घबराई हुई लग रही थी, इसलिए ड्यूटी पर तैनात संतरी ने आगे बढ़ कर पूछा, “कहो, कैसे आई?”

“साहब से मिलना है.”

“क्यों, क्या परेशानी है?” संतरी ने पूछा.

संतरी का इतना कहना था कि महिला रोने लगी. संतरी ने उसे चुप कराते हुए कहा, “साहब तो अभी आए नहीं हैं. तुम अपनी परेशानी बताओ. अगर कोई ज्यादा परेशानी वाली बात होगी तो मैं साहब से जा कर बता दूंगा.”

“मेरे पति ने रात में आत्महत्या कर ली है. उन की लाश घर में पड़ी है.” महिला ने सिसकते हुए कहा.

इस के बाद संतरी महिला को ड्यूटी पर तैनात मुंशी के पास ले गया और उसे पूरी बात बताई. मामला गंभीर था, इसलिए मुंशी ने संतरी से कोतवाली प्रभारी को सूचना देने के लिए कहा.

सूचना पा कर कुछ ही देर में कोतवाली प्रभारी मनोहर सिंह यादव आ गए. उन्होंने महिला को अपने कक्ष में बुला कर पूछा,

“क्या नाम है तुम्हारा?”

“जी प्रेमलता, घर में सब पिंकी कहते हैं.”

“कहां से आई हो?”

“नगला कीरत से. वहीं अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी.”

“पति का क्या नाम था?”

“गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू.”

“बच्चे कितने हैं?”

“2, बेटा 8 साल का और बेटी 5 साल की है.”

प्रेमलता जिस तरह टकर टकर मनोहर सिंह के सवालों का जवाब दे रही थी, उस से उन्हें उस पर संदेह हुआ. जिस औरत का पति मरा हो, वह इस तरह कतई बातें नहीं कर सकती. उन्होंने पूछा, “यह सब हुआ कैसे?”

“साहब, हम क्या बताएं. रात को हम सब खाना खा कर सोए और सवेरे उठे तो उन की लाश मिली. आप चलिए और लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम करा दीजिए. हम उन का जल्दी से अंतिम संस्कार करना चाहते हैं.”

आगे कुछ पूछने के बजाय कोतवाली प्रभारी कुछ सिपाहियों और प्रेमलता को साथ ले कर कीरतपुर नगला जा पहुंचे. प्रेमलता के घर के सामने भीड़ लगी थी. भीड़ को हटा कर मनोहर सिंह अंदर पहुंचे तो कमरे में पड़ी चारपाई अस्तव्यस्त हालत में पड़ी थी.

मनोहर सिंह ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर चोट का कहीं कोई निशान नहीं था. गले पर जरूर कुछ इस तरह का निशान था, जो गला दबाने पर पड़ जाते हैं. उन्हें जो आशंका थी, लाश देख कर वह सच नजर आ रही थी. घर में एक ही दरवाजा था, उसी से अंदर आया या बाहर जाया जा सकता था. प्रेमलता का कहना था कि रात में उस ने खुद कुंडी लगाई थी.

मनोहर सिंह ने औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद उन्होंने एक बार फिर प्रेमलता से पूछताछ की. उस का कहना था कि वह रहते भले तनाव में थे, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं कि उन्हें आत्महत्या करनी पड़े. शाम को सब ठीकठाक था. बात भी अच्छी तरह कर रहे थे. कहीं से नहीं लगता था कि वह रात में आत्महत्या कर लेंगे.

पूछताछ में पता चला कि मृतक गवेंद्र सिंह की सरकारी नौकरी थी. वह सरकारी स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. वह बहुत खुशदिल था. हर किसी से हमेशा हंस कर मिलता था. मनोहर सिंह को गवेंद्र सिंह की आत्महत्या का यह मामला पूरी तरह से संदिग्ध लग रहा था, लेकिन जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आ जाती, वह कुछ नहीं कर सकते थे.

प्रेमलता ने 6 बजे ही अपने ससुर रामसेवक को फोन कर के गवेंद्र की मौत की सूचना दे दी थी. उसी सूचना पर रामसेवक 9 बजे घर वालों के साथ नगला कीरतपुर पहुंचे तो पुलिस वहां मौजूद थी. बेटे की लाश देख कर रामसेवक ने रोते हुए कहा,

“साहब, मेरे बेटे ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. आखिर वह आत्महत्या क्यों करेगा, उसे किसी चीज की कमी थोड़े ही थी.”

“कोई बात नहीं, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सब पता चल जाएगा. उस के पहले हम कुछ नहीं कह सकते.” मनोहर सिंह ने उसे आश्वासन दिया.

मनोहर सिंह ने मृतक के पिता रामसेवक की ओर से अपराध संख्या 1341/2015 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया था. मनोहर सिंह ने मुखबिरों से प्रेमलता के बारे में पता लगाने को कहा, क्योंकि उन्हें उस का चरित्र संदिग्ध लग रहा था.

आखिर जब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो सारा मामला साफ हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक की मौत दम घुटने से हुई थी. उस की गला दबा कर हत्या की गई थी. ऐसे में संदेह प्रेमलता पर ही था, क्योंकि घर में मृतक के साथ वही थी और थाने आ कर उस ने झूठ भी बोला था.

मनोहर सिंह ने पूरे परिवार को इकट्ठा किया तो उन की नजरें मृतक के बच्चों पर जम गईं. हत्या वाली रात वे भी साथ थे. बच्चे डरे हुए लग रहे थे. बेटी तो छोटी थी, लेकिन बेटा उमंग 8 साल का था. वह कुछ बता सकता है, यह सोच कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और प्यार से पुचकार कर पूछा तो उस ने कहा, “मम्मी ने बबलू अंकल और 2 लोगों के साथ मिल कर पापा को मारा है.”

अब क्या था, पुलिस ने तुरंत प्रेमलता उर्फ पिंकी को हिरासत में ले लिया. लेकिन जब उस से हत्या में शामिल बबलू तथा 2 अन्य लोगों के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा कि न वह बबलू को जानती है और न 2 अन्य लोगों को. उमंग ने बबलू का नाम तो बता दिया था, लेकिन वह कौन था, कहां का रहने वाला था, यह सब वह नहीं बता सका था.

पुलिस बबलू के बारे में पता करने लगी. उसी बीच उसे पता चला कि प्रेमलता इन दिनों आगरा की लायर्स कालोनी स्थित आईआईएमटी से नॄसग की पढ़ाई कर रही थी और वहीं कमरा ले कर रहती थी. इस से पुलिस को लगा कि कहीं बबलू आगरा का ही रहने वाला तो नहीं है.

पुलिस वहां जा कर बबलू के बारे में पता लगाने की सोच ही रही थी कि प्रेमलता से मिलने एक लडक़ा आया. उस ने थानाप्रभारी से प्रेमलता को अपनी बहन बता कर मिलने की गुजारिश की तो मनोहर सिंह ने उसे प्रेमलता से मिलने की इजाजत दे दी.

मौज मजा बन गया सजा

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 5

सुनील की परेशानी वासिफ से भी छिपी नहीं थी. कुछ महीने नौकरी कर के वासिफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मेरठ चला आया और लालकुर्ती इलाके में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. सुनील से उस का दोस्ताना भी बना रहा और संपर्क भी. उधर सुनील नितिन और पूजा के मुद्दे पर जितना सोचता उस की परेशानी उतनी ही बढ़ जाती. जिंदगी की राहों में मिलनाबिछड़ना कोई नई बात नहीं होती.

यूं भी इंसान की जिंदगी और रिश्ते ठीक वैसे नहीं होते जैसे वह खुद चाहता है. कुछ लोग विपरीत स्थितियों से भी संतुलन बैठा कर अपनी राह आसान कर लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाते. सुनील भी कुछ ऐसा ही था. वह नितिन को अपना सब से बड़ा दुश्मन मानता था. यह बात अलग थी कि नितिन को इस का अहसास भी नहीं था. यदाकदा वह सुनील से हालचाल पूछने के लिए फोन कर लिया करता था.

जिंदगी का एक सच यह भी है कि खूबसूरत यादें जल्दी नहीं भूली जातीं. सुनील ने पूजा की खूबसूरत यादों की नींव रख कर ख्वाबों का जो खूबसूरत आशियाना बनाया था वह उस की मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गया था. यह अलग बात है कि यह उस का एकतरफा जुनून था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए अब वह बुरी कल्पनाएं करने लगा था. एक दिन वह मेरठ आया, तो काफी परेशान था.

उस की परेशानी भांप कर वासिफ ने पूछा तो वह रोष में बोला, ‘‘मैं नितिन को रास्ते से हटाना चाहता हूं. चाहे जो भी हो, अब मैं पूजा को पा कर ही रहूंगा. नितिन मेरे रास्ते से हट जाए तो सब ठीक हो जाएगा. तू इस काम में मेरा साथ दे.’’

दोस्ती की वजह से वासिफ इनकार करने की स्थिति में नहीं था. फिर भी उस ने संदेह जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हम पकड़े गए तो कैरियर चौपट हो जाएगा.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, हम पूरी प्लानिंग के साथ काम करेंगे.’’ सुनील की यह बहुत ही घटिया सोच थी. लेकिन उस के सिर पर जुनून सवार था. वासिफ उस का साथ देने को तैयार हो गया. दोनों ने मिल कर नितिन की हत्या की योजना तैयार की. योजनाबद्ध ढंग से कुछ इस तरह योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. सुनील ने वासिफ से कहा कि वह नितिन से बात करता रहेगा ताकि उसे शक न हो. नितिन ने उन दोनों को अपना दूसरा नंबर दे रखा था. बात कर के सुनील वापस हिमाचल चला गया.

अक्तूबर के चौथे सप्ताह में वह मेरठ आया. योजना के अनुसार वह अपना मोबाइल हिमाचल में ही छोड़ आया था ताकि उस की लोकेशन वहीं मिले. 24 अक्तूबर की सुबह वासिफ व सुनील मोटरसाइकिल से नितिन के कालेज के गेट पर पहुंच कर उस के आने का इंतजार करने लगे. उस वक्त सुनील वहां से हट गया था. इस काम के लिए वासिफ अपने बहनोई की मोटरसाइकिल मांग कर लाया था. नितिन आया तो वासिफ को देख कर रुक गया.

औपचारिक बातचीत के बाद वासिफ बोला, ‘‘नितिन ट्रेन से मेरा कुछ सामान आ रहा है उसे लेने के लिए चलना है. सुनील भी आया हुआ है तीनों चलते हैं. इस बहाने थोड़ा घूमनाफिरना भी हो जाएगा.’’

नितिन उस की चाल को समझ नहीं पाया. वह चलने को तैयार हो गया. वासिफ उसे पीछे बैठा कर चल दिया. सुनील उन्हें थोड़ी दूर आगे मिल गया. सब से पहले तीनों नितिन के कमरे पर गए. वहां नितिन ने कपड़े बदले और जेब में पर्स डाल कर उन के साथ चल दिया. वहां से तीनों कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पहुंच कर वासिफ ने कहा कि उन का सामान सिटी स्टेशन पर आएगा. इसलिए उन्हें वहीं चलना होगा.

वहां  ट्रेन से चलेंगे. दोनों स्टेशनों के बीच चंद मिनट का फासला था. वे तीनों मुजफ्फरनगर की तरफ से आने वाली ट्रेन में सवार हो गए. सुनील और वासिफ की योजना थी कि नितिन को चलती रेल से धक्का दे कर गिरा देंगे, इस से उस की मौत हो जाएगी और इस तरह उस की हत्या हादसा लगेगी.

जब ट्रेन चली तो तीनों दरवाजे पर खड़े हो गए. नितिन को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह मौत के दरवाजे पर खड़ा है. इसी बीच दूसरी पटरी पर विपरीत दिशा से जालंधर एक्सप्रेस आई, तो दोनों ने उस का मोबाइल और पर्स निकाल कर उसे धक्का दे दिया. नितिन डिब्बे से टकरा कर नीचे गिर गया. यह इत्तफाक ही था कि उन्हें ऐसा करते किसी ने नहीं देखा था. कुछ ही देर में अगले स्टेशन पर उतर कर वह दोनों यह जानने के लिए वापस आए कि नितिन मरा या नहीं.

जब वे वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि लोग नितिन के आसपास खड़े थे. वह बुरी तरह घायल और बेहोश था. स्टेशन चूंकि वहां से पास ही था इसलिए आननफानन में एंबुलेंस बुला ली गई थी. घायल नितिन को जिला अस्पताल ले जाया गया. पीछेपीछे सुनील और वासिफ भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गए. जब नितिन को एंबुलेंस से मेडिकल ले जाया जा रहा था तो वासिफ ने उसे टैम्पों से ले जाने की बात कही थी. लेकिन वहां मौजूद लोगों ने मना कर दिया था.

दरअसल वे दोनों टैंपों से ले जाने के बहाने रास्ते में ही गला दबा कर उस की हत्या कर देना चाहते थे. बाद में दोनों अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचे. वहां लोगों की आवाजाही देख कर उन्हें अपनी योजना विफल होती नजर आई. इसलिए थोड़ा घूम कर वह वापस आ गए.

अस्पताल से लौट कर सुनील ने एक उस्तरे का इंतजाम किया. फिर शाम को वह इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा. वासिफ मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़ा रहा. सुनील को वहां के लोगों से यह बात पता चल गई थी कि सुबह तक नितिन को होश आ जाएगा. इस से वह परेशान हो उठा. वह जानता था कि अगर नितिन को होश आ गया तो दोनों फंस जाएंगे. इसलिए वह हर हाल में उसे खत्म कर देना चाहता था. इसलिए वह आसपास ही मंडराता रहा. तभी तीमारदार रविंद्र के पूछने पर उस ने अपना नाम सचिन बताया था.

रात साढ़े 3 बजे सुनील को मौका मिल गया. वहां भरती मरीज और उन के मरीज तीमारदार नींद के आगोश में थे. वह दबे पांव अंदर गया और उस्तरे से नितिन की गरदन काट कर बाहर आ गया. नितिन की हत्या कर के सुनील व वासिफ ने उस का मोबाइल पुलिस लाइन के नजदीक एक गंदे नाले में फेंक दिया और कमरे पर पहुंच कर आराम किया. उस्तरा व नितिन का पर्स वासिफ के कमरे पर ही छोड़ कर सुनील अगले दिन हिमाचल प्रदेश चला गया.

सुनील को उम्मीद थी कि पुलिस नितिन की हत्या का राज कभी नहीं खोल पाएगी. क्योंकि उन लोगों ने अपना काम बेहद चालाकी से किया था. लेकिन यह उन की गलतफहमी थी. देर से ही सही पर वह पुलिस की पकड़ में आ गए. विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर वासिफ के कमरे से हत्या में इस्तेमाल किया गया उस्तरा और नितिन का पर्स बरामद कर लिया.

नितिन के घर वालों को भी इस की खबर दे दी गई. वे भी मेरठ आ गए. अगले दिन पुलिस ने दोनों को अदालत पर पेश किया जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. सुनील के अविवेकपूर्ण रवैये ने न सिर्फ एक परिवार का चिराग बुझा दिया बल्कि अपना कैरियर भी चौपट कर लिया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कहानी में पूजा नाम परिवर्तित है.)

सीमा हैदर : प्रेम दीवानी या पाकिस्तानी जासूस

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 4

विस्तृत पूछताछ में नितिन की हत्या का ऐसा चौंकाने वाला सच सामने आया जिस ने पुलिस को भी सोचने पर मजबूर कर दिया.

दरअसल एक ही गांव के रहने वाले नितिन व सुनील में दोस्ताना संबंध थे. सुनील उम्र में नितिन से थोड़ा बड़ा था. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. सुनील अलीगढ़ में रह कर बीफार्मा कर रहा था. नितिन भी बीफार्मा करना चाहता था. 2012 में जब उस ने इंटरमीडिएट कर लिया तो सुनील ने उस का एडमिशन अलीगढ़ के शिवदान कालेज में करा दिया. दोनों साथसाथ ही रहने भी लगे. सुनील के साथ वासिफ भी बीफार्मा कर रहा था. इसी नाते नितिन के साथ भी उस के दोस्ताना संबंध बन गए.

सुनील और वासिफ का बीफार्मा का अंतिम वर्ष था जबकि नितिन का पहला. तीनों का समय आराम से बीतने लगा. सुनील अपने ही गांव की लड़की पूजा से अकसर बातें किया करता था. नितिन यह तो जानता था कि वह किसी लड़की के संपर्क में है लेकिन वह कौन है इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. सुनील पूजा को दिल से चाहता था. उस ने उस के साथ दुनिया बसाने का ख्वाब संजो कर साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं. लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि जिस पूजा को वह दिलोजान से चाहता है, वही पूजा नितिन की भी गर्लफ्रेंड है.

कुछ दिन बाद सुनील ने महसूस किया कि पूजा उस से बात करने में पहले की तरह दिलचस्पी नहीं लेती.

एक दिन नितिन कमरे में अकेला था. वह मोबाइल का स्पीकर औन कर के पूजा से बात कर रहा था. जब वह प्यार भरी बातों में मशगूल था, तभी सुनील चुपचाप उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया और दोनों की बातें सुन ने लगा. उन की बातें उस के दिमाग में धमाका सा कर गईं. क्योंकि उस ने पूजा की आवाज पहचान ली थी.

अचानक नितिन ने सुनील को देखा तो वह सकपका गया. उस ने यह कह कर फोन बंद कर दिया कि बाद में बात करेगा. फिर उस ने सुनील से कहा, ‘‘भैया आप अचानक?’’

‘‘अचानक कहां, मैं तो काफी देर से तुम्हारी बातें सुन रहा था.’’ उस ने हंस कर मजाकिया लहजे में कहा तो नितिन ने सफाई देनी चाही, लेकिन सुनील उसे बीच में ही टोकते हुए बोला, ‘‘रहने दे, छुपा रूस्तम निकला तू तो.’’

सुनील के कानों में रहरह कर फोन पर दूसरी ओर से आने वाली आवाज गूंज रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह लड़की पूजा होगी. वह अपने मन को समझा रहा था कि पूजा जैसी आवाज वाली कोई दूसरी लड़की रही होगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘वह कौन लड़की थी जिस से बात कर रहे थे?’’

नितिन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि पूजा के साथ सुनील का भी कोई चक्कर है. इसलिए उस ने बता दिया कि जिस से वह बात कर रहा था वह गांव की ही पूजा थी. सुन कर सुनील पर बिजली सी गिरी. वह समझ गया कि पूजा अचानक उस में दिलचस्पी क्यों नहीं ले रही है. उस के लिए यह बड़ा आघात था. उस ने नितिन को यह नहीं बताया कि पूजा के साथ उस का पहले से ही चक्कर चल रहा है.

बहरहाल, बात वहीं खत्म हो गई. लेकिन उस दिन के बाद नितिन के प्रति उस की सोच बदल गई. वह उसे अपना दुश्मन समझने लगा. पूजा के प्रति भी उस के दिल में गुस्सा था. उस ने पूजा से तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस के बाद वह थोड़ा परेशान जरूर रहने लगा. दिन बीतते गए. एक दिन सुनील को परेशान देख कर नितिन ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, आजकल परेशान से रहते हो?’’

‘‘मेरी परेशानी की वजह तुम हो.’’ सुनील ने गंभीर हो कर कहा तो नितिन को उस की बात पर यकीन नहीं हुआ. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रहा है. सुनील कुछ देर खामोश रहा फिर उस ने नितिन को समझाया, ‘‘नितिन, तुम अपने घर के इकलौते बेटे हो. इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. रही बात पूजा की तो उसे मैं देख लूंगा.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि पूजा को मैं तुम से पहले से जानता हूं. वह मेरी गर्लफ्रेंड है. उस से ज्यादा बात मत किया करो.’’ सुनील ने कहा तो नितिन बुरी तरह चौंका. उसे यह पता नहीं था कि सुनील जिस लड़की से बातें किया करता था वह पूजा ही थी. इस मुद्दे पर दोनों में बहस हो गई. सुनील ने उसी वक्त पूजा को फोन कर के उसे खरीखोटी सुनाई. साथ ही कहा भी कि वह नितिन पर ज्यादा ध्यान न दे.

इस से नितिन और सुनील के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए. इस के बाद सुनील जब तब नितिन को समझाने लगा कि वह पूजा के चक्कर में न पड़े. लेकिन उस के लिए परेशानी की बात यह थी कि अब पूजा ने उसे और भी ज्यादा नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था. पूजा के मुद्दे को ले कर नितिन और सुनील में जब तब कहासुनी हो जाती थी. इसी को ले कर एक दिन सुनील ने नितिन पर हाथ छोड़ दिया. उस वक्त वासिफ वहीं मौजूद था. उस ने जैसेतैसे दोनों के बीच समझौता करा दिया. फलस्वरूप बात आई गई हो गई.

सन 2013 में सुनील और वासिफ की पढ़ाई पूरी हुई, तो दोनों को हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी में नौकरी मिल गई. अकेला होने की वजह से नितिन ने भी अलीगढ़ का कोर्स बीच में छोड़ कर मेरठ में दाखिला ले लिया और परमजीत के साथ गंगापुरम में रहने लगा.

आधुनिकता की चकाचौंध कई बार इंसान पर ज्यादा ही हावी हो जाती है. शहरों में लड़केलड़कियों के बीच दोस्ताना रिश्ते कोई नई बात नहीं होती. गांव से निकल कर आए नितिन के लिए यह रोमांच की बात थी. पूजा के अलावा भी अन्य कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. उन से बात करने के लिए वह एक मोबाइल पर 3 सिम कार्ड इस्तेमाल किया करता था.

उधर सुनील नौकरी पर चला तो गया था, लेकिन उस के दिमाग में हर वक्त पूजा व नितिन ही घूमते रहते थे. हालांकि नितिन को वह कई बार समझाबुझा चुका था, लेकिन उस के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि नितिन की वजह से पूजा ने उस से दूरी बना ली है. बाद में जब पूजा ने उस से बात करनी लगभग बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. ऐसे में नितिन उसे अपना सब से बड़ा दुश्मन नजर आता था.

मौज मजा बन गया सजा – भाग 3

बलदाऊ यादव डा. सुनील के ही यहां था. थोड़ी देर में डा. अशोक कुमार भी मैडिकल कालेज परिसर स्थित डा. सुनील आर्या के आवास पर पहुंच गए. इस के बाद डा. अशोक कुमार अपनी गाड़ी से तो डा. सुनील आर्या ने अपनी गाड़ी में बलदाऊ को बैठा लिया. अविनाश चौहान शरीफ के साथ उस की गाड़ी में बैठ गया था.  सभी पनियरा डाक बंगले की ओर चल पड़े. सभी रात डेढ़ बजे के करीब वे लोग गेस्टहाऊस पहुंचे.

आराधना मिश्रा बाहर ही खड़ी रह गईं, जबकि डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ, अविनाश और बलदाऊ डाकबंगले के अंदर चले गए. अंदर पहुंच कर डा. अशोक कुमार ने अराधना के बारे में पूछा तो डा. आर्या ने कहा, ‘‘आराधना फ्रेश होने गई है. अभी आ जाएगी.’’

डा. अशोक कुमार वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए. इस के बाद उसी के सामने कुर्सी रख कर डा. आर्या भी बैठ गए. उस ने डा. अशोक कुमार को बातों में उलझा लिया तो शरीफ ने देशी तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटाया और ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही डा. अशोक कुमार लुढ़क कर छटपटाने लगा.

थोड़ी देर में वह खत्म हो गया तो डा. आर्या ने बलदाऊ से अपनी कार से तौलिया मंगा कर उस के सिर में लपेट दिया. इस के बाद लाश उठा कर शरीफ अहमद की इंडिका में रख दी गई. गेस्टहाउस से तकिए का कवर निकाल कर बलदाऊ ने फर्श पर फैला खून साफ किया और उस तकिए के कवर को भी रख लिया.

एक बार फिर तीनों कारें चल पड़ीं. उस समय रात के ढाई बज रहे थे. डा. अशोक कुमार की कार अविनाश चला रहा था तो लाश वाली गाड़ी में शरीफ के साथ बलदाऊ बैठा था. आराधना मिश्रा डा. सुनील आर्या की कार में थी. गोरखपुर के भटहट पहुंच कर लाश को शरीफ की गाड़ी से निकाल कर मृतक डा. अशोक कुमार की कार में डाला जाने लगा तो आराधना को पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या कर दी गई है. वह डर गई, लेकिन बोली कुछ नहीं.

वहीं डा. सुनील आर्या ने अपनी कार अविनाश को दे कर आराधना को उस के साथ गोरखपुर भेज दिया. जबकि खुद शरीफ और बलदाऊ के साथ लाश को ठिकाने लगाने के लिए देवरिया की ओर चल पड़ा. इस के बाद देवरिया-सलेमपुर रोड पर स्थित वन विभाग की पौधशाला के पास डा. अशोक की लाश को फेंक दिया.

उसी के साथ उन्होंने तौलिया और तकिया का कवर भी फेंक दिया था. लाश तो ठिकाने लग गई थी, अब कार को ठिकाने लगाना था. कार ले जा कर उन्होंने जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला के जहांगीराबाद में सड़क किनारे खड़ी कर दी. उस के बाद सभी गोरखपुर वापस आ गए.

तीनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने बलदाऊ यादव को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद शरीफ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का एक देशी पिस्तौल, 2 कारतूस, हत्या के समय पहने कपड़े बरामद कर लिए थे. कार में लगे खून के धब्बे के नमूने परीक्षण के लिए लखनऊ भेज दिए गए थे.

आराधना मिश्रा की डा. अशोक कुमार की हत्या में कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए पुलिस ने उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था. लेकिन गवाहों की सूची में उस का भी नाम था. पुलिस ने इस मामले में 34 लोगों को गवाह बनाया था.

अभियुक्तों के बयान और सभी गवाहों के गवाही होने में काफी अरसा लग गया. लगभग 13 सालों तक चले डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया गया 11 अप्रैल, 2014 को. न्यायमूर्ति श्री सुरेंद्र कुमार यादव ने डा. अशोक कुमार की हत्या का दोषी मानते हुए 52 पृष्ठों का अपना फैसला सुनाया था.

फैसले में अभियुक्त अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या तथा बलदाऊ यादव को आजीवन कारावास के साथ 10-10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी. जुर्माना अदा न करने पर एक साल की अतिरिक्त सजा भोगनी होगी. सजा सुनाते ही सभी अभियुक्तों को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले कर जेल भेज दिया. अब चारों अभियुक्त हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

—कथा अदालत द्वारा सुनाए फैसले पर आधारित

सूरज ने बुझाया जिंदगी का दीया

रामाश्रय यादव आ कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन उठा कर देखा, नंबर किसी खास का था, इसलिए फोन रिसीव करते हुए उन के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी थी.

दूसरी ओर से महिला की शहदघुली आवाज आई. ‘‘तुम कब तक मेरे यहां पहुंच रहे हो? मैं ने दोपहर को ही बता दिया था कि पैसों की व्यवस्था हो गई है. जानते ही हो, समय कितना खराब चल रहा है. कहीं से चोरउचक्कों को हवा लग गई तो अनर्थ हो जाएगा, इसीलिए एक बार फिर कह रही हूं कि आ कर अपने पैसे उठा ले जाओ.’’

‘‘ठीक है, मैं थोड़ी देर में तुम्हारे यहां पहुंच रहा हूं.’’ कह कर रामाश्रय ने फोन काट दिया.

फोन काट कर रामाश्रय उठा और अपने कमरे में जा कर अलमारी से एक डायरी निकाल कर पत्नी आशा से बोला, ‘‘गामा की पत्नी का फोन आया था, पैसे देने के लिए बुला रही है. मुझे लौटने में देर हो तो तुम लोग खाना खा लेना. मेरी राह मत देखना.’’

‘‘कभी आप को खिलाए बिना मैं ने अपना मुंह जूठा किया है कि आज ही खा लूंगी. लौट कर आओगे तो साथ बैठ कर खाना खाऊंगी.’’ आशा ने कहा.

‘‘ठीक है भई, साथ ही खाएंगे. लेकिन बच्चों और बहुओं को भूखा मत रखना, उन्हें खिला देना.’’ रामाश्रय ने कहा और डायरी ले कर बाहर आ गया. अब तक उस के छोटे बेटे राकेश ने उस की मोटरसाइकिल निकाल कर बाहर खड़ी कर दी थी. डायरी उस ने डिक्की में रखी और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के चल पड़ा. उस समय शाम के यही कोई 6 बज रहे थे और तारीख थी 12 नवंबर, 2013.

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की थानाकोतवाली शाहपुर के मोहल्ला नंदानगर दरगहिया के रहने वाले रामाश्रय यादव ब्याज पर रुपए देने का काम करते थे. इसी की कमाई से उस ने अपना आलीशान मकान बनवा रखा था, जिस में वह पत्नी आशा, 2 बेटों दिनेश यादव उर्फ पहलवान और राकेश यादव के साथ रहते थे. उस ने करीब 40 लाख रुपए जरूरतमंदों को 10 से 15 प्रतिशत ब्याज पर दे रखा था.

इसी ब्याज की ही कमाई से रामाश्रय ने करोड़ों रुपए का प्लौट खरीद कर अपना यह आलीशान मकान तो बनाया ही था, एक फार्महाउस भी बनवा रखा था. उस का मकान और फार्महाउस आमनेसामने थे. फार्महाउस में उस ने भैंसें पाल रखी थीं, जिन का दूध बेच कर भी वह मोटी कमाई कर रहा था. यही नहीं, कुसुम्ही में 20 बीघे जमीन भी खरीद रखी थी, जिस पर खेती करवाता था. इन सब के अलावा वह प्रौपर्टी में भी पैसा लगाता था. एक तरह से वह बहुधंधी आदमी  था. उस के इन कारोबारों में उस का छोटा बेटा राकेश उस की मदद करता था.

रामाश्रय यादव को घर से गए 3 घंटे से ज्यादा हो गया और न ही उस का फोन आया और न ही वह आया तो आशा को चिंता हुई. उस ने राकेश से कहा, ‘‘अपने पापा को फोन कर के पूछो कि उन्हें आने में अभी कितनी देर और लगेगी. इस समय वह कहां हैं?’’

राकेश ने रामाश्रय को फोन किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है. यह बात उसे अजीब लगी, क्योंकि ऐसा कभी नहीं होता था. राकेश की समझ में यह बात नहीं आई तो मां से कह कर वह अपनी मोटरसाइकिल से गामा यादव के घर के लिए निकल पड़ा. गामा के घर की दूरी 6 किलोमीटर के आसपास थी. वह अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी में रहता था. यह इलाका थाना कैंट के अंतर्गत आता था. गामा यादव तो नौकरी की वजह से बाहर रहता था, यहां उस की पत्नी मंजू बच्चों के साथ रहती थी. मंजू से रामाश्रय के अच्छे संबंध थे, जिस की वजह से वह अकसर उस के यहां आताजाता रहता था.

करीब 20 मिनट में राकेश मंजू के यहां पहुंच गया. उस ने घंटी बजाई तो मंजू ने ही दरवाजा खोला. उतनी रात को अपने यहां राकेश को देख कर वह चौंकी. उस ने कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. कहो, क्या बात है?’’

‘‘आप के यहां पापा आए थे, अभी तक लौटे नहीं. उन का फोन भी बंद है.’’

वह तो मेरे यहां दोपहर में आए थे. पैसों का हिसाबकिताब करना था, ले कर तुरंत चले गए थे.’’ मंजू ने कहा.

मंजू के इस जवाब से राकेश हैरान रह गया, क्योंकि घर से निकलते समय उस के पापा ने इन्हीं के यहां आने की बात कही थी. जबकि यह कह रही थी कि पापा इस के यहां दोपहर में आए थे और हिसाबकिताब कर के पैसे ले कर चले गए थे. वह क्या कहता, बिना कुछ कहेसुने ही बाहर से लौट आया. घर लौट कर उस ने सारी बात मां को बताई तो आशा का दिल घबराने लगा.

मां की हालत देख कर राकेश ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, फोन कर के अन्य परिचितों से पूछता हूं. हो सकता है किसी के घर जा कर बैठ गए हों. बातचीत में उन्हें समय का खयाल ही न हो.’’

राकेश ने लगभग सभी जानपहचान वालों को फोन कर के पिता के बारे में पूछ लिया. लेकिन कहीं से उसे कोई जानकारी नहीं मिली. अब तक काफी रात हो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी रात गए वह कहां जा कर पिता को ढूंढे. किसी तरह रात बिता कर सुबह होते ही राकेश पिता को ढूंढ़ने के लिए निकल पड़ा.

सुबह भी वह सब से पहले मंजू के ही घर गया. इस बार भी मंजू ने वही जवाब दिया, जो रात में दिया था. इस के बाद वह पिता को जगहजगह ढूंढ़ने लगा. शाम होतेहोते उस के किसी परिचित ने बताया कि थाना झंगहा पुलिस ने नया बाजार स्थित मंदिर के पास से एक मोटरसाइकिल लावारिस स्थिति में खड़ी बरामद की है. जा कर देख लो, कहीं वह उस के पिता की तो नहीं है.

अब तक राकेश के कुछ दोस्त भी उस की मदद के लिए आ गए थे. वह अपने दोस्तों के साथ थाना झंगहा जा पहुंचा. राकेश ने मोटरसाइकिल देखी तो वह वही थी, जो पिछली शाम उस के पिता ले कर निकले थे. उस ने डिक्की देखी तो उस में वह डायरी नहीं थी, जो उस के पिता उस में रख कर ले गए थे. डायरी न पा कर उसे लगा कि उस के पापा के साथ अवश्य कोई अनहोनी हो चुकी है.

अगले दिन 14 नवंबर, 2013 की सुबह राकेश अपने दोस्तों के साथ थाना कोतवाली शाहपुर पहुंचा. कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव को पूरी बात बताई तो कोतवाली प्रभारी ने उस से एक तहरीर ले कर रामाश्रय यादव के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

मुकदमा दर्ज कराने के बाद कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने रामाश्रय यादव का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस की काल डिटेल्स निकलवा ली. काल डिटेल्स में अंतिम फोन अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी की रहने वाली मंजू यादव के मोबाइल से किया गया था.

मंजू यादव के यहां ही जाने की बात कह कर घर से निकले थे. उसी के बाद से उस का पता नहीं चल रहा था. मोबाइल भी बंद हो गया था. पुलिस को मंजू पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया. क्योंकि पुलिस को लग रहा था कि रामाश्रय के अपहरण में कहीं न कहीं से उस का हाथ जरूर है.

2 दिनों तक उस नंबर पर न तो किसी का फोन आया और न ही उसी ने किसी को फोन किया. 17 नवंबर, 2013 की सुबह मंजू ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के रामाश्रय यादव के बारे में कुछ इस तरह की बातें कीं कि जैसे उस के गायब होने के बारे में उसे जानकारी है.

मामला एक संभ्रांत औरत से जुड़ा था, इसलिए पुलिस ने सारे साक्ष्य जुटा कर ही उस पर हाथ डालने का विचार किया. पुलिस की एक टीम बनाई गई, जिस में सिपाही राम विनय सिंह, संजय पांडेय, रामकृपाल यादव, अजीत सिंह, महिला सिपाही पिंकी सिंह और इंदु बाला को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव कर रहे थे.

गुप्त रूप से सारी जानकारियां जुटा कर उपेंद्र कुमार ने रात को अपनी टीम के साथ मंजू के घर छापा मारा. घर पर उस समय मंजू और उस का बेटा सौरभ था. उतनी पुलिस देख कर मंजू सकपका गई. दरवाजा खुलते ही पुलिस घर में घुस कर तलाशी लेने लगी. पीछे के कमरे की तलाशी लेते समय पुलिस ने देखा कि कमरे का आधा फर्श इस तरह है, जैसे गड्ढा खोद कर पाटा गया हो, जबकि बाकी का आधा हिस्सा लीपा हुआ था.

दरअसल मकान का फर्श अभी बना नहीं था. एक सिपाही ने उस पर पैर मारा तो वह जमीन में धंस गया. संदेह हुआ तो पुलिस ने लोहे की सरिया का टुकड़ा उठा कर उस में घुसेड़ा तो वह आसानी से घुसता चला गया. इस के बाद मंजू से पूछताछ की गई तो पहले वह इधरउधर की बातें करती रही. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए पुलिस को बताया कि रामाश्रय यादव की हत्या कर के उसी की लाश यहां गाड़ी गई है.

कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने मंजू को हिरासत में ले कर इस बात की सूचना क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव को दे दी. इस के बाद नम्रता श्रीवास्तव, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी, इंसपेक्टर भंवरनाथ चौधरी और इंजीनियरिंग कालेज चौकी के चौकीप्रभारी भी वहां पहुंच गए.

सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी की उपस्थिति में फर्श की खुदाई कर के लाश बरामद की गई. पुलिस ने मृतक रामाश्रय के बेटे राकेश को फोन कर के बुलवा लिया था. लाश देखते ही वह बिलखबिलख कर रोने लगा था. लाश की शिनाख्त हो ही गई थी. पुलिस ने अपनी औपचारिक काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

मंजू यादव को हिरासत में ले कर पुलिस थाने ले आई. थाने में एसपी (सिटी) परेश पांडेय और क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव की उपस्थिति में उस से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में मंजू ने रामाश्रय यादव की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी.

40 वर्षीया मंजू यादव मूलरूप से गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला अभिषेकनगर, शिवपुर की नहर कालोनी की रहने वाली थी. उस के परिवार में पति गामा यादव और 2 बेटे, सूरज कुमार तथा सौरभ कुमार थे. करीब 5 साल पहले गामा यादव सेवानिवृत्ति हुए तो उन्हें झारखंड के बोकारो में नौकरी मिल गई. वह वहां अकेले ही रहते थे. उन की पत्नी मंजू गोरखपुर में रह कर दोनों बच्चों को पढ़ा रही थी.

अभिषेकनगर में रहने से पहले गामा यादव का परिवार नंदानगर दरगहिया में किराए के मकान में रहता था. वहीं रहते हुए उन की मुलाकात रामाश्रय यादव से हुई तो जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां खूब आनाजाना हो गया. रामाश्रय यादव की शादी तो हो ही गई थी, वह 2 बेटों का बाप भी बन गया था. जबकि गामा यादव की नईनई शादी हुई थी. यह लगभग 20-25 साल पहले की बात है.

गामा यादव के ड्यूटी पर जाने के बाद घर में मंजू यादव ही रह जाती थी. ऐसे में कभीकभार घूमतेफिरते रामाश्रय उस के घर पहुंच जाता तो घंटों उस से बातें करता रहता था. बातें करतेकरते ही उस के मन में दोस्त की बीवी के प्रति आकर्षण पैदा होने लगा.

मंजू 2 बेटों सूरज और सौरभ की मां बन गई थी. 2 बेटों के जन्म के बाद उस के शरीर में जो निखार आया, वह रामाश्रय को और बेचैन करने लगा. मंजू के आकर्षण में बंधा वह जबतब उस के घर पहुंचने लगा. लेकिन अब वह उस के घर खाली हाथ नहीं जाता था. बच्चों के बहाने वह कुछ न कुछ ले कर जाता था. मंजू और उस के बीच हंसीठिठोली होती ही थी, इसी बहाने वह उस से अश्लील मजाक करते हुए शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगा. मंजू ने कभी विरोध नहीं किया, इसलिए उस की हिम्मत बढ़ती गई और फिर एक दिन उस ने उसे बांहों में भर लिया.

ऐसे में न तो रामाश्रय ने घरपरिवार की चिंता की न मंजू ने. उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जब इस बारे में घर वालों को पता चलेगा तो इस का परिणाम क्या होगा. दोनों ही किसी तरह की परवाह किए बगैर एक हो गए. इस के बाद उन का यह लुकाछिपी का खेल लगातार चलने लगा. दोनों ही यह खेल इतनी सफाई से खेल रहे थे कि इस की भनक न तो गामा को लगी थी और न ही आशा को.

गामा नंदानगर में किराए के मकान में रहता था. बच्चे बड़े हुए तो जगह छोटी पड़ने लगी. रामाश्रय सूदखोरी के साथ प्रौपर्टी का भी काम करता था. इसी वजह से मंजू ने उस से प्लौट दिलाने की बात कही तो रामाश्रय ने उसे अभिषेकनगर का यह प्लौट दिला दिया. प्लौट खरीदने का पैसा भी रामाश्रय ने ही दिया. लेकिन गामा ने उस का यह पैसा धीरेधीरे अदा कर दिया था.

रामाश्रय ने मंजू को प्लौट ही नहीं दिलवाया, बल्कि उस का मकान भी बनवा दिया था. मकान बनने के बाद मंजू बच्चों को ले कर अपने मकान में आ गई. यह 18 साल पहले की बात है. उसी बीच गामा नौकरी से रिटायर हो गया तो उसे झारखंड के बोकारो में बढि़या नौकरी मिल गई, जहां वह अकेला ही रह कर नौकरी करने लगा.

गामा के आने से जहां मंजू और रामाश्रय को मिलने में दिक्कत होने लगी थी, वहीं उस के बोकारो चले जाने के बाद उन का रास्ता फिर साफ हो गया. सूरज और सौरभ बड़े हो गए थे. लेकिन वे स्कूल चले जाते थे तो मंजू घर में अकेली रह जाती थी. उसी बीच रामाश्रय उस से मिलने आता था. मंजू को पता ही था कि रामाश्रय ब्याज पर पैसे देता है. उस के मन में आया कि क्यों न वह भी अपने शारीरिक संबंधों को कैश कराए. वह रामाश्रय से रुपए ऐंठने लगी. उन पैसों को वह 12 प्रतिशत की दर से ब्याज पर उठाने लगी. इसी तरह उस ने रामाश्रय से करीब 15 लाख रुपए ऐंठ लिए.

15 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं होती. रामाश्रय मंजू से अपने पैसे वापस मांगने लगा. जबकि मंजू देने में आनाकानी करती रही. रामाश्रय को लगा कि उस के पैसे डूबने वाले हैं तो उस ने थोड़ी सख्ती की. किसी तरह मंजू ने 10 लाख रुपए तो वापस कर दिए, लेकिन 5 लाख रुपए उस ने दबा लिए. उस ने कह भी दिया कि अब वह ये रुपए नहीं देगी. इस के बाद रामाश्रय ने उस से पैसे मांगने छोड़ दिए.

12 नवंबर, 2013 की शाम 6 बजे मंजू ने फोन कर के रामाश्रय को अपने घर बुलाया, क्योंकि उस समय वह घर में अकेली थी. उस के दोनों बेटे कहीं घूमने गए थे. घर से निकलते समय रामाश्रय ने पत्नी को बता दिया था कि वह मंजू के यहां हिसाबकिताब करने जा रहा है. उसे लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह उस का इंतजार नहीं करेगी.

जिस समय रामाश्रय मंजू के यहां पहुंचा, सौरभ आ चुका था. उसे देख कर दोनों अचकचा गए. तब रामाश्रय ने उसे बाहर भेजने के लिए कुछ रुपए दे कर कोई सामान लाने को कहा. उस के जाते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. वह वासना की आग ठंडी कर ही रहे थे कि सूरज आ गया. दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो उसे अंदर से खुसुरफुसुर की आवाज आती सुनाई दी.

सूरज दीवाल के सहारे छत पर चढ़ गया. सीढि़यों से उतर कर वह कमरे में पहुंचा तो मां को रामाश्रय के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उसे गुस्सा आ गया. सूरज को देख कर मंजू हड़बड़ा कर उठी. वह कुछ करती, उस के पहले ही सूरज ने गुस्से में फावड़ा उठा कर रामाश्रय के सिर पर वार कर दिया.

एक ही वार में रामाश्रय का सिर फट गया और वह बिस्तर पर लुढ़क गया. मंजू डर गई. वह हड़बड़ा कर बिस्तर से नीचे कूद गई. तब तक सौरभ भी आ गया. वह भी छत के रास्ते नीचे आया था. रामाश्रय को खून में लथपथ देख कर वह बुरी तरह से डर कर रोने लगा. मंजू ने उसे डांट कर चुप कराया.

जो होना था, सो हो चुका था. तीनों डर गए कि अब उन्हें जेल जाना होगा. पुलिस से बचने के लिए मंजू ने बेटों के साथ मिल कर कमरे के अंदर गड्ढा खोदा और रामाश्रय की लाश को उसी में दबा दिया. इस के बाद अपने एक रिश्तेदार की मदद से सूरज उस की मोटरसाइकिल को थाना झंगहा के अंतर्गत आने वाले नया बाजार के मंदिर के पास खड़ी कर आया. वहां से लौट कर वह उसी दिन पिता के पास बोकारो चला गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मंजू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 21 नवंबर, 2013 को पुलिस ने सूरज को हिरासत में ले कर बच्चों की अदालत में पेश किया, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया.

इस मामले मे मृतक के बेटे राकेश का कहना है कि उस के पिता के मंजू से अवैध संबंध बिलकुल नहीं थे. पैसे लौटाने न पड़ें, इस के लिए उस ने उस के पिता की हत्या की है. यही नहीं, घटना वाले दिन उस के पिता के पास 2 लाख रुपए के चैक और 2 लाख रुपए नकद थे, वे भी गायब हैं. उन का मोबाइल भी नहीं मिला.

कथा लिखे जाने तक न तो मंजू की जमानत हुई थी, न सूरज की. गामा यादव ने उन की जमानत की कोशिश भी नहीं की थी. शायद उन्होंने बेटे और पत्नी को उन के किए की सजा भुगतने के लिए छोड़ दिया है.

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 3

पुलिस एक महीने तक इस मामले की जांचपड़ताल में उलझी रही. लेकन नतीजा शून्य ही रहा. नितिन ने अलीगढ़ से पढ़ाई की थी. हत्या वाली रात जो युवक उस के बेड के पास देखा गया था उस ने भी खुद को अलीगढ़ का ही रहने वाला बताया था. शायद अलीगढ़ से ही कोई क्लू मिल जाए यह सोच कर एसआई संजीव कुमार शर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम अलीगढ़ भेजी गई.

पुलिस ने वहां पूछताछ भी की. लेकिन नितिन की किसी रंजिश के बारे में पता नहीं चल सका. कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस टीम वापस लौट आई. नितिन की हत्या पुलिस के लिए पहेली बन गई थी. हत्या का खुलासा नहीं हो सका तो नितिन के घर वालों ने डीआईजी के. सत्यनारायण से मुलाकात कर के हत्यारे को पकड़ने की मांग की. इस मामले को ले कर पुलिस की किरकिरी हो रही थी. पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे थे. डीआईजी के. सत्यनारायण और एसएसपी ओंकार सिंह इस मामले को ले कर काफी परेशान थे.

अस्पताल में हुई हत्या का यह केस पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. उन्होंने एसपी (सिटी) ओमप्रकाश, सीओ विकास त्रिपाठी और सर्विलांस टीम के साथ मीटिंग कर के जांच की समीक्षा की और पूरे मामले की नए सिरे से जांच के निर्देश दिए. इस बीच थाना मैडिकल प्रभारी का स्थानांतरण कर के बचन सिंह सिरोही को इंचार्ज बना दिया गया था.

नए सिरे से जांच की कड़ी में पुलिस ने नितिन के मोबाइल के इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आईडेंटिटी (आईएमइआई) नंबर के जरिए पता करने की कोशिश की कि क्या उस मोबाइल में और भी सिमकार्ड इस्तेमाल किए गए थे. इस से पुलिस को 2 और नंबर मिल गए. उन नंबरों का इस्तेमाल हत्या से पहले किया जाता रहा था. ये दोनों नंबर भी नितिन के ही नाम पर थे. उन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. पता चला कि उन में से एक नंबर ऐसा था जिस पर अकसर बातचीत और एसएमएस होते थे.

पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो वह नंबर नितिन के गांव की एक लड़की पूजा (परिवर्तित नाम) का निकला. इस तरह कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस पूजा तक पहुंच गई. पुलिस ने पूजा के बारे में सब से पहले नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने यह तो बताया कि पूजा उन्हीं के गांव की है पर उस के नितिन से कैसे रिश्ते थे, इस बारे में रामबीर कुछ नहीं जानते थे. पुलिस ने पूजा से पूछताछ की तो पता चला उस से नितिन के गहरे दोस्ताना संबंध थे. नितिन की हत्या किस ने की, इस बारे में वह कुछ नहीं जानती थी.

नितिन के 2 नंबरों की डिटेल्स में 2 और नंबर भी मिले थे. उन नंबरों  की भी जांच की गई. उन में एक नंबर जिला मुजफ्फरनगर के थाना चरथावल क्षेत्र के गांव कुलहेड़ी निवासी अध्यापक मखदूम अली के बेटे मोहम्मद वासिफ का था और दूसरा नितिन के ही गांव के महेंद्र सिंह के बेटे सुनील कुमार का. महेंद्र कुमार सेवानिवृत्त अध्यापक थे.

यह पता चलने पर पुलिस ने एक बार फिर नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सुनील नितिन का दोस्त था. उस ने अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. उसी की मदद से अलीगढ़ में नितिन का दाखिला कराया गया था. दोनों अलीगढ़ में 1 साल साथसाथ रहे थे, बाद में सुनील की नौकरी हिमाचल प्रदेश में लग गई थी और नितिन पढ़ाई के लिए मेरठ चला गया था.

रामबीर चौहान को सुनील पर कोई शक नहीं था. वह उसे नितिन का अच्छा दोस्त बता रहे थे. फिर भी पुलिस को लग रहा था कि हत्या के तार सुनील से जुड़े हो सकते हैं. इस की वजह यह थी कि अस्पताल में देखे गए संदिग्ध युवक का हुलिया सुनील से मिलताजुलता था. लेकिन पुलिस बिना किसी पुख्ता सुबूत के सुनील पर हाथ नहीं डालना चाहती थी. वैसे भी वह हिमाचल में था.

सुबूतों के चक्कर में पुलिस ने उस के मोबाइल की घटना वाले दिन की लोकेशन पता लगाई, तो उस के फोन की लोकेशन हिमाचल की ही मिली. लेकिन इस में एक पेंच यह था कि उस के मोबाइल से 24 और 25 अक्तूबर को कोई फोन नहीं किया गया था. जबकि इन 2 तारीखों के आगेपीछे मोबाइल का इस्तेमाल हुआ था.

उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की गई, तो पुलिस चौंकी. क्योंकि सुनील भी अपने गांव की लड़की पूजा के लगातार संपर्क में रहा था. नितिन की तरह वह भी पूजा से बात करता था और उसे एसएमएस भेजा करता था. इस जानकारी ने पुलिस को सोचने पर मजबूर कर दिया.

नितिन के मोबाइल से वासिफ का जो दूसरा नंबर मिला था पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स और लोकेशन हिस्ट्री हासिल की. इस से पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण तथ्य मिल गया. 24 व 25 अक्तूबर को उस के नंबर की लोकेशन कैंट रेलवे स्टेशन, जहां हादसा हुआ था और मैडिकल कालेज की पाई गई. यह बात भी साफ हो गई कि इस बीच वासिफ और सुनील की लगातार बातें होती रही थीं. इस की गवाही दोनों की काल डिटेल्स दे रही थीं. इन तथ्यों के मद्देनजर पुलिस को नितिन की हत्या की कहानी सुनील, वासिफ और पूजा के इर्दगिर्द घूमती नजर आने लगी.

मेरठ पुलिस ने मुजफ्फरनगर पुलिस की मदद से वासिफ के बारे में खुफिया जानकारी जुटाई तो पता चला कि उस ने भी अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. इतना ही नहीं उस ने कुछ महीने हिमाचल प्रदेश में नौकरी भी की थी, लेकिन फिलहाल वह मेरठ में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. इस से पुलिस को शक हुआ कि नितिन की हत्या में दोनों का हाथ है. पुलिस ने दोनों के नंबर सर्विलांस पर लगा दिए.

इस बीच नितिन की हत्या हुए एक महीना बीत गया. बहरहाल, पुलिस की मेहनत रंग लाई. दिसंबर के पहले सप्ताह में सुनील और वासिफ के फोन की लोकेशन मेरठ में मिलने लगी. इस पर सीओ विकास त्रिपाठी ने उन की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बचन सिंह सिरोही, एसआई संजीव कुमार शर्मा, श्रवण कुमार, कांस्टेबल नरेश कुमार, सौरभ कुमार, बंटी कुमार और तेजपाल सिंह को शामिल किया गया.

7 दिसंबर की दोपहर पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि दोनों वांछित शास्त्रीनगर इलाके में मौजूद हैं. इस सूचना के आधार पर पुलिस ने दोनों को एल ब्लाक तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस दोनों को थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई, तो उन्होंने नितिन की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया. लेकिन जब तथ्यों के आधार पर उन से सख्ती से पूछताछ की गई, तो दोनों ऐसे मास्टरमाइंड कातिल निकले जिन्होंने न सिर्फ पुलिस जांच को भटका दिया था बल्कि पूरे 1 महीना 12 दिन तक इस में सफल भी रहे थे.

मौज मजा बन गया सजा – भाग 2

अगले दिन जब डा. अशोक कुमार के लापता होने की खबर अखबारों में छपी तो मऊ पुलिस को लगा कि बरामद कार डा. अशोक कुमार की है, क्योंकि कार का जो नंबर था, उसी नंबर की जेन कार ले कर वह निकले थे. मऊ पुलिस ने कार बरामद होने की सूचना गोरखपुर पुलिस को दी तो गोरखपुर पुलिस डा. अशोक कुमार के घर वालों को साथ ले कर मऊ के थाना दक्षिण टोला जा पहुंची.

घर वालों ने कार की शिनाख्त कर दी. कार डा. अशोक कुमार की ही थी. कार की स्थिति देख कर सभी को यही लगा कि डा. अशोक कुमार के साथ कोई अनहोनी घट चुकी है. अखबारों में छपी खबर पढ़ कर देवरिया पुलिस ने गोरखपुर पुलिस को अपने यहां से एक लाश बरामद होने की सूचना दी.

उसी सूचना के आधार पर महावीर प्रसाद के बड़े दामाद जयराम प्रसाद गोरखपुर पुलिस के साथ देवरिया के थाना खुखुंदू जा पहुंचे. लाश के फोटो और कपड़े आदि देख कर उन्होंने बता दिया कि फोटो और सामान डा. अशोक कुमार के हैं. संदेह तो पहले ही था, अब साफ हो गया कि डा. अशोक कुमार की हत्या हो चुकी है. इस के बाद परिवार में कोहराम मच गया.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए इस मामले के खुलासे के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय कुमार ने इस मामले की जांच में चौराचौरी के क्षेत्राधिकारी, एसओजी प्रभारी और क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत के नेतृत्व में 3 टीमें बना कर लगा दीं. चूंकि मामला एससी/एसटी का था, इसलिए इस मामले की जांच क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को सौंपी गई थी.

क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत ने जब अपने हिसाब से इस मामले की जांच की तो पता चला कि डा. अशोक कुमार काफी आशिकमिजाज आदमी थे. वह अपने कुछ खास मित्रों के साथ पनियारा स्थित वन विभाग के बांकी डाक बंगले में अकसर मौजमस्ती के लिए जाया करते थे. उन्होंने जब उन के खास दोस्तों के बारे में पता किया तो वे थे बीआरडी मैडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. सुनील आर्या, कपड़ा व्यवसायी शरीफ अहमद, साइबर कैफे चलाने वाला अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव. इन में एक महिला भी थी, जिस का नाम था अराधना मिश्रा, जो नर्स थी.

इस जानकारी के बाद एस.के. भगत ने डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव की ही नहीं, डा. अशोक कुमार की भी घटना के दिन एवं उस से 3 दिन पहले की मोबाइल फोन एवं लैंडलाइन फोनों की काल डिटेल्स निकलवा ली. इस से पता चला कि डा. अशोक कुमार के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन डा. सुनील आर्या का आया था. उसी के बाद डा. अशोक कुमार गायब हुए थे.

इस से मामले की जांच कर रहे क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को डा. सुनील आर्या पर ही नहीं, उन के अन्य साथियों पर शक हुआ.  इस के बाद शक के आधार पर ही उन्होंने डा. सुनील आर्या, अविनाश चौहान, बलदाऊ यादव और शरीफ अहमद को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कई चक्रों में की गई पूछताछ में जब घटना का खुलासा हुआ तो जो बातें सामने आईं, वह हैरान करने वाली थीं. पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या उन के इन्हीं दोस्तों ने की थी.

डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव शराब और शबाब के यार थे. ये सभी एक साथ शराब पीते और एक साथ अय्याशी करते. डा. अशोक कुमार अपने यार डा. सुनील आर्या के घर बैठ कर शराब पीते तो उन की पत्नी रंजना को जरा भी ऐतराज न होता. इसी तरह डा. सुनील डा. अशोक के यहां बैठ कर शराब पीते तो निर्मला भी ऐतराज नहीं करती थी. इस तरह दोनों लगभग रोज ही पार्टी करते थे.

6 जुलाई, 2001 को अविनाश चौहान के भांजे के जन्मदिन की पार्टी थी. उस पार्टी में डा. अशोक कुमार और डा. सुनील आर्या भी आमंत्रित थे. डा. अशोक कुमार तो निर्मला के साथ पार्टी में पहुंच गए, लेकिन डा. सुनील आर्या उस दिन लखनऊ में थे, इसलिए पार्टी में नहीं आ पाए. केवल उन की पत्नी रंजना आर्या ही आई थीं.

पार्टी में पीने की भी व्यवस्था थी. डा. अशोक कुमार पीने के शौकीन थे ही. वह शराब पी रहे थे, तभी किसी ने उन से पूछा, ‘‘डा. साहब, आज अकेलेअकेले ही पार्टी का मजा ले रहे हैं. आप के मित्र नहीं आए हैं क्या?’’

‘‘यार नहीं आया तो क्या हुआ, उस की मैडम तो आई हैं. उस की कमी मैं पूरी कर दूंगा. हम दोनों के बीच सब चलता है.’’ डा. अशोक कुमार ने नशे में कहा.

डा. अशोक कुमार के पास ही अविनाश खड़ा था, इसलिए उस ने ये बातें सुन ली थीं. डा. अशोक कुमार की बात से उसे हैरानी हुई कि यह नया खेल कब से शुरू हो गया? जबकि उन की दोस्ती काफी पुरानी थी. उस ने तो ऐसा कभी नहीं सुना था.

डा. अशोक कुमार की यह बात अविनाश को बहुत बुरी लगी. बुरी लगने की एक वजह यह थी कि वह डा. सुनील आर्या का सगा साढू था. देर रात पार्टी खत्म हुई तो अविनाश को अशोक कुमार की बात उस के दिमाग में घूमने लगी. क्योंकि अशोक ने एक तरह से उस की साली को गाली दी थी. गाली भी ऐसी, जो सहन करने लायक नहीं थी. उस से नहीं रहा गया तो उस ने डा. सुनील को फोन कर के डा. अशोक द्वारा रंजना के बारे में कही गई बात बता दी.

अविनाश की बातें सुन कर डा. सुनील आर्या के तनबदन में आग लग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं अभी गोरखपुर के लिए निकल रहा हूं. उस कमीने ने जो उलटासीधा कहा है, उस की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए.’’

सवेरा होते ही डा. सुनील आर्या गोरखपुर के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के साथ उन की महिला मित्र आराधना मिश्रा के अलावा बलदाऊ यादव भी था. वहीं से उन्होंने शरीफ अहमद को फोन कर के गोरखपुर में मिलने के लिए कहा.

गोरखपुर पहुंच कर डा. सुनील आर्या ने अपने सभी साथियों यानी अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, बलदाऊ यादव और आराधना मिश्रा को विश्वास में ले कर डा. अशोक कुमार की हत्या की योजना बना डाली.

10 जुलाई की रात डा. सुनील आर्या पत्नी रंजना के साथ एक पार्टी में गए. पार्टी में खाना खा कर उन्होंने पत्नी को घर पहुंचाया और खुद कार से निकल पड़े. इस के बाद वह मैडिकल कालेज के उत्तरी गेट पर पहुंचे, जहां नर्स आराधना मिश्रा उन का इंतजार कर रही थी. आराधना को कार में बैठा कर उन्होंने डा. अशोक कुमार को फोन किया, ‘‘भई, आज रात का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘आज तो कोई प्रोग्राम नहीं है.’’

डा. अशोक कुमार ने कहा तो डा. सुनील आर्या ने कहा, ‘‘सोच रहा हूं, आज बढि़या सा प्रोग्राम रखा जाए, जिस में सब कुछ हो. तुम कहो तो आराधना मिश्रा को बुला लूं?’’

डा. अशोक कुमार भला क्यों मना करते. उन्होंने हामी भर दी. इस तरह डा. सुनील आर्या जो चाहते थे, वह हो गया.  डा. अशोक कुमार से बात करने के बाद डा. सुनील आर्या ने शरीफ और अविनाश को फोन कर के बुला लिया. शरीफ अपनी इंडिका कार से उस के यहां पहुंच गया.

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 2

राहुल के अनुसार उस युवक की उम्र 20-22 साल थी और वह आसमानी रंग की कमीज पहने हुए था. पुलिस ने डा. हर्षवर्धन से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उस युवक को उन्होंने 3 बजे देखा था. उस वक्त वह बेहोश जरूर था लेकिन जीवित था. इस का मतलब उस युवक की हत्या 3 बजे के बाद की गई थी. पुलिस ने वार्ड में भरती मरीजों के अलावा  उन के तीमारदारों से भी पूछताछ की.

तीमारदार रविंद्र ने ही सब से पहले उस युवक की गरदन से खून बहते देखा था और उसी ने दूसरों को यह बात बताई थी. इसलिए वह इस मामले की महत्त्वपूर्ण कड़ी था. उस के मुताबिक युवक के बिलकुल बराबर वाले बेड नंबर-11 पर उस की मरीज बेबी सो रही थी. बेड नंबर-9 खाली था इसलिए वह उस पर जा कर लेट गया था. बीचबीच में वह देखभाल के लिए बेबी के बेड के पास चक्कर लगाने चला जाता था.

पुलिस के पूछने पर रविंद्र ने बताया कि बीती शाम उस ने एक युवक को वहां घूमते देखा था. वह युवक आधे मुंह पर चादर लपेटे हुए था. चूंकि ठंड पड़ रही थी इसलिए उस ने उस पर कोई शक नहीं किया था. रविंद्र के पूछने पर उस ने बताया था कि उस का नाम सचिन है और वह घायल की देखभाल के लिए उस के साथ है. वह खुद को अलीगढ़ का रहने वाला बता रहा था.

एंबुलेंस चालक ने संदिग्ध युवक का जो हुलिया बताया था वह रविंद्र द्वारा बताए गए हुलिए से मैच नहीं कर रहा था. इमरजेंसी में घूमने वाला वह अज्ञात युवक ही शक के दायरे में था क्योंकि घटना के बाद से वह लापता था. मैडिकल कालेज 149.48 एकड़ में फैला था. वहां 24 घंटे लोगों की आवाजाही रहती थी. परिसर में छात्रछात्राओं के छात्रावास तो थे ही साथ ही विभिन्न वार्डों में हर वक्त सैकड़ों मरीज और उन के तीमारदार भी मौजूद रहते थे. परिसर के अंदर ही मेडीकल पुलिस थाना भी था. ऐसे में कौन कब आया और कत्ल कर के कैसे चुपचाप निकल गया यह पता लगाना आसान नहीं था.

न तो मृतक की शिनाख्त हो पा रही थी और न ही पुलिस को हत्या की वजह पता चल पा रही थी. कातिल के शातिराना तरीके को ले कर पुलिस हैरत में थी. उसे लग रहा था कि हत्यारे ने पहले उस युवक को ट्रेन से गिरा कर मारने की कोशिश की होगी ताकि यह हादसा लगे. जब वह बच गया, तो कातिल उस का पीछा करता रहा और मौका मिलते ही उस ने हत्या को अंजाम दे दिया.

उस का मकसद हर हाल में उस की हत्या करना था. पुलिस ने मृतक के शव का पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और हत्या का केस दर्ज कर लिया. डीआईजी के. सत्यनारायण से ले कर एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी तक इस मामले को ले कर परेशान थे.

वारदात की गंभीरता को देखते हुए सीओ विकास त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया गया ताकि जल्दी से जल्दी इस केस की तह तक पहुंचा जा सके.

जांच आगे बढ़ाने के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी. इस के लिए जिले के अन्य थानों से पता किया गया, लेकिन कहीं से किसी युवक के लापता होने की सूचना नहीं मिली. इसलिए पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद युवक के शव को शवगृह में सुरक्षित रखवा दिया.

इत्तफाक से अगले दिन ही मृतक की शिनाख्त हो गई. एक व्यक्ति ने कुछ लोगों के साथ अस्पताल आ कर बताया कि संभवत: मृतक उस का बेटा था. डा. सुभाष सिंह ने उसे पोस्टमार्टम हाउस ले जा कर शव दिखाया, तो वह फूटफूट कर रोने लगा. मृतक की पहचान हो गई है, यह सूचना मिलते ही पुलिस अस्पताल आ गई. पता चला मृतक जिला अमरोहा की तहसील मंडी धनौरा क्षेत्र के ग्राम जटपुरा निवासी रामबीर चौहान का बेटा नितिन चौहान था.

एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी ने मृतक के पिता रामबीर को सांत्वना दे कर उस से पूछताछ की. पुलिस के पूछने पर रामबीर सिंह ने बताया कि नितिन अपने रूम पार्टनर परमजीत के साथ मेरठ में ही रहता था. 24 अक्तूबर को वह कालेज गया था. जब वह शाम को वापस नहीं लौटा तो परमजीत ने फोन कर के यह बात उन्हें बताई. उन्होंने नितिन के नंबर पर फोन लगाया तो वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.

वह परेशान हो गए और मेरठ आ कर दिन भर उस की तलाश की. लेकिन कोई पता नहीं चला. आज जब यह खबर अखबार में छपी तो वह अस्पताल आए. अस्पताल में पता चला कि नितिन अब इस दुनिया में नहीं है. रामबीर चौहान ने इस बात से इनकार किया कि उन की या नितिन की किसी से कोई रंजिश थी. मृतक की शिनाख्त तो हो गई लेकिन पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने के लिए कोई सूत्र नहीं मिल रहा था. मामला काफी उलझा हुआ था.

नितिन के पिता गांव के सीधेसाधे किसान थे. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 3 बच्चे थे. नितिन सब से बड़ा था, उस से छोटी 2 बेटियां थीं निशी और आशू. नितिन ने सन 2012 में गांव से इंटर करने के बाद अलीगढ़ जा कर शिवदान कालेज में बीफार्मा की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया था. लेकिन अलीगढ़ में नितिन का पढ़ाई में मन नहीं लगा, तो इसी साल उस ने मेरठ के मवाना रोड स्थित ट्रांसलेम इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया था. रहने के लिए उस ने अपने एक सहपाठी परमजीत के साथ गंगापुरम कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया था.

नितिन की लगभग हर रोज अपने घर वालों से बात होती थी. 24 अक्तूबर को उस की कोई बातचीत नहीं हुई थी. इसी बीच सनसनीखेज ढंग से उस की हत्या हो गई थी. पुलिस ने नितिन के रूम पार्टनर परमजीत से पूछताछ की. उस ने बताया कि 24 तारीख को नितिन कालेज के लिए निकला तो था लेकिन अंदर न जा कर कालेज के गेट पर ही रुक गया था. जब वह क्लास में नहीं आया तो उस ने सोचा कि वह उसे बिना बताए कहीं घूमने चला गया होगा. जब वह शाम को कमरे पर नहीं लौटा तो उस ने फोन कर के यह बात उस के पिता को बता दी.

‘‘तुम ने उस का पता लगाने की कोशिश नहीं की?’’ विकास त्रिपाठी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘की थी. लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था.’’

पुलिस ने कालेज में भी पूछताछ की. परमजीत सच बोल रहा था. वह उस दिन क्लास में मौजूद था जबकि नितिन गैरहाजिर था. पुलिस ने अन्य छात्रछात्राओं से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में पता चला कि नितिन कालेज के गेट से ही एक युवक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया था. मोटरसाइकिल वाला कौन था, इस बारे में किसी को पता नहीं था. अस्पताल में जिस युवक को नितिन के पास देखा गया था उस से भी मोटरसाइकिल वाले का हुलिया नहीं मिल रहा था जो नितिन को मोटरसाइकिल पर ले कर गया था.

इस से पुलिस को लगा कि नितिन की हत्या में एक नहीं 2 युवक शामिल रहे होंगे. हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने नितिन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, लेकिन इस से भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस से यह साफ हो गया कि हत्यारा जो भी था बेहद चालाक था. उस ने अपने पीछे कोई सुबूत नहीं छोड़ा था.