भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा पुलिस अफसर

भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा पुलिस अफसर – भाग 3

जल्दी ही ऐसा समय आ गया कि पुलिस विभाग में जिस का भी काम अटकता, वह फरहीन के दरबार में हाजिरी लगाने लगा. फरहीन काम के हिसाब से ‘सुविधा शुल्क’ तय करती. सुविधा शुल्क मिल जाने के बाद ही फरहीन के इशारे पर एसपी साहब काम करते थे.

कुछ ही दिनों में एसपी सत्यवीर सिंह फरहीन के इस तरह दीवाने हो गए कि आधी रात बाद वह अपने किसी ‘खासमखास’ सिपाही व अन्य व्यक्ति के साथ मोटरसाइकिल से सरकारी आवास से निकलते और सीधे बारां रोड स्थित फरहीन के होटल पहुंचते, जहां 2-3 घंटे गुजार कर सुबह 5 बजे तक अपने आवास पर लौट आते. कोटा के पुलिस विभाग में इसे एसपी की ‘विशेष नाइट गश्त’ कहा जाता था.

एसपी साहब फरहीन पर किस तरह फिदा थे, वह उन दोनों की मोबाइल फोन पर होने वाली बातचीत से पता चलता है. रात में मुलाकात होने के बावजूद एसपी साहब दिन में करीब 10 से 15 बार फरहीन से बात करते थे. यह जानकारी तब मिली, जब शिकायत के बाद एसपी साहब और फरहीन के मोबाइल सर्विलांस पर लगाए गए. एसीबी ने दोनों के 2700 काल रिकौर्ड किए थे. दोनों फोन पर बेहद अश्लील बातें करते थे.

एसपी सत्यवीर सिंह ने अपनी ‘खिदमतगार’ फरहीन को शहर के 2 पुलिस थानों के मामले निपटाने की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. वे थाने थे बोरखेड़ा और नयापुरा. इन थानों में जमीनों से जुड़े ज्यादा मामले दर्ज होते थे. फरहीन का घर और होटल भी थाना बोरखेड़ा के तहत आता था. जब इन दोनों थानाक्षेत्रों के प्रौपर्टी व्यवसाइयों को फरहीन के रसूख का पता चला तो वे अपने काम कराने के लिए उसी के पास आने लगे थे.

थाना बोरखेड़ा और नयापुरा के थानाप्रभारियों से ले कर सिपाहियों तक की तैनाती फरहीन की सिफारिश पर होती थी. इन थानों की वही फाइलें आगे बढ़ती थीं, जिन्हें फरहीन चाहती थी. जांच में यह भी पता चला है कि कोटा शहर में जुआ वही खेलवा सकता था, जिसे फरहीन और निसार चाहते. स्थान भी वही तय करते थे.

फरहीन पुलिसकर्मियों को फोन पर एक डीएसपी की तरह डाइरेक्शन देती थी. इतना ही नहीं, उन का और जो काम उसे कराने होते थे, उन की फाइलों का वह सुपरविजन भी करती रहती थी. अगर उसे लगता कि जांच उस के मनमुताबिक नहीं हो रही है तो वह उस जांच अधिकारी को एसपी साहब के सामने खड़ा कर देती थी. तब एसपी साहब उसी के सामने जांच अधिकारी की बेइज्जती करते थे.

एसपी सत्यवीर सिंह से दोस्ती के बाद फरहीन की चांदी हो गई थी. उस ने सरस्वती कालोनी में किराए की जमीन ले कर एक होटल बना लिया, जिस का नाम उस ने ‘टेस्टी बाइट’ रखा था. उस के इस होटल का उद्घाटन एसपी सत्यवीर सिंह ने ही किया था. इस होटल का मेन गेट सड़क पर अतिक्रमण कर के बनाया गया था. होटल के अंदर लड़केलड़कियों के लिए अलग से केबिन बनवाए गए थे.

थाना नयापुरा के जिस मामले को ले कर यह सारा बवाल हुआ, उस में हुआ यह था कि पिछले साल विजय कुमार बैरवा ने अपनी एक जमीन अब्दुल मतीन को बेची थी. चूंकि जमीन एससी/एसटी कोटे की थी, इसलिए मतीन ने इस का इकरारनामा और मुख्तारनामा ही कराया था. अचानक अनुपम अग्रवाल नाम के आदमी ने उन से कहा कि वह जमीन उस की है और उस के कागजात भी उस के पास हैं. इस के बाद विजय बैरवा ने अनुपम के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा थाना नयापुरा में दर्ज करा दिया था.

पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. मतीन जमीन के चक्कर में इधरउधर भागता रहा. एसपी से भी मिला. उन्होंने कोई सुनवाई नहीं की. तभी किसी सिपाही ने उस से कहा कि अगर वह बोराखेड़ा आर.के.नगर की रहने वाली फरहीन से मिले तो उस का काम हो सकता है.

इस के बाद मतीन फरहीन और निसार तंवर से मिला. आईजी आलोक वशिष्ठ के अनुसार फरहीन और निसार ने एसपी सत्यवीर से काम कराने के लिए मतीन से 2 लाख रुपए मांगे. मतीन तैयार हो गया और पहली किश्त के रूप में 25 हजार रुपए दे भी दिए. फरहीन ने थाना नयापुरा के थानाप्रभारी से जब मतीन के मामले में काररवाई करने को कहा तो उस ने मना कर दिया.

फरहीन इस मामले को रिओपन करा कर अनुपम का चालान कराना चाहती थी, जबकि जांच अधिकारी का कहना था कि इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है. तब फरहीन ने एसपी सत्यवीर सिंह से बात की. इस के बाद इस मामले की जांच रामपुरा कोतवाली को सौंप दी गई. मतीन ने कुछ पैसे पैसे दे दिए थे. फिर भी उस का काम नहीं हो रहा था. उसे गड़बड़ी दिखाई दी तो वह एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) की शरण में चला गया.

14 मई को उस ने एसीबी से शिकायत की थी. इसी शिकायत पर उच्चाधिकारियों से आदेश ले कर एसीबी ने एसपी सत्यवीर सिंह के फोन सर्विलांस पर लगा दिए. फरहीन और एसपी सत्यवीर सिंह ने मोबाइल नंबर भी बदले, लेकिन एसीबी ने उन नंबरों के बारे में भी पता कर लिया था. दोनों मोबाइल पर ऐसी अश्लील बातें करते थे, जिस के बारे में विश्वास नहीं किया जा सकता. कभी फरहीन फोन पर पैसे वगैरह की बात करती तो एसपी साहब मना कर देते.

15 मई को मतीन 50 हजार रुपए की दूसरी किस्त देने पहुंचा तो सुबूत के तौर पर गुप्त कैमरे से उस की वीडियोग्राफी करा ली गई. गिरफ्तार फरहीन और निसार के घर से मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि फरहीन के इशारे पर कई बड़े मामलों की जांच में फेरबदल किए गए थे.

एसपी सत्यवीर सिंह के जयपुर के आवास से मिली लौकर की चाबी से लौकर खोला गया तो उस में से 1 लाख रुपए नकद और 10 लाख रुपए के गहने मिले थे. इस के अलावा उन के यहां मिले दस्तावेजों में एक ज्योतिषी का लिखा एक कागज भी मिला, जिस में उस ने लिखा था कि किसी मामले में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. उस ने परेशानी से निपटने के उपाय भी बताए थे. लेकिन अगर इस सब से परेशानी दूर हो तो लोग गलत काम करने से डरें ही क्यों.

एसपी सत्यवीर सिंह को जिस दिन गिरफ्तार किया गया था, उसी दिन शाम को उन के भाई और बहनोई के साथ गांव के भी कुछ लोग आए थे. लेकिन एसीबी ने उन से किसी को भी मिलने नहीं दिया. गिरफ्तारी के बाद पूरी रात उन से पूछताछ चली थी.

अगले दिन अदालत में पेश कर के सभी को 5 दिनों के रिमांड पर लिया गया था. एसीबी ने सारे सुबूत जुटा कर 5 दिनों बाद फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. 30 मई को राज्य सरकार ने एसपी सत्यवीर को निलंबित कर दिया था. कोटा के एसपी पहले कोटा की जेल में बंद थे, लेकिन फिलहाल उन्हें जयपुर की जेल भेज दिया गया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा पुलिस अफसर – भाग 2

पुलिस सेवा में होने की वजह से सत्यवीर सिंह को पुलिस के हर दांवपेचों की तो जानकारी थी ही, पूर्व में तहसीलदार रहने की वजह से जमीन संबंधी भी सारी जानकारी थी. इसी वजह से उन्हें अच्छी तरह पता था कि किस मामले में कैसे मोटा माल ऐंठा जा सकता है. इसलिए पदभार संभालने के तुरंत बाद सत्यवीर सिंह ने पुलिसकर्मियों की एक ऐसी टीम बनाई, जो उन के अनुसार काम करे.

इस के लिए एसपी सत्यवीर सिंह को काफी बड़ा फेरबदल करना पड़ा. भवन निर्माण स्वीकृतियों की सुरक्षा संबंधी एनओसी के लिए आवेदकों का एसपी से मिलना जरूरी कर दिया गया था. उन से मिलने के बाद ही लोगों की एनओसी मिलती थी.

सत्यवीर सिंह शौकीनमिजाज आदमी थे. इसलिए शौकीनमिजाज लोगों की पार्टियों में जाते रहते थे. ऐसी ही किसी पार्टी में एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने उन का परिचय फरहीन से करा दिया था.

फरहीन कोटा की तहसील दीगोद के गांव सुलतानपुर की रहने वाली थी. ब्राह्मण परिवार में जन्मी फरहीन का नाम ऊषा शर्मा था. उस के पिता पुलिस विभाग में सबइंसपेक्टर थे. इस के बावजूद ऊषा ज्यादा पढ़लिख नहीं सकी. इस की वजह यह थी कि जब वह हाईस्कूल में थी, तभी उस की गांव के ही रहने वाले निसार से आंखें मिल गई थीं. दोनों का प्यार गहराया तो उन्होंने निकाह कर लिया.

निकाह के बाद ऊषा ने अपना नाम फरहीन रख लिया और गांव छोड़ कर निसार के साथ कोटा शहर आ गई. निसार छोटामोटा काम कर के गुजरबसर करने लगा. उस की इस कमाई से किसी तरह घर तो चल जाता था, लेकिन फरहीन के शौक पूरे नहीं होते थे. जबकि वह काफी महत्त्वाकांक्षी थी. वह खूबसूरत तो थी ही, वाकचातुर्य भी उस में कूटकूट कर भरा था.

अपनी बातों से कुछ देर की मुलाकात में फरहीन किसी को भी प्रभावित कर लेती थी. शहर में आने के बाद वह फैशनेबल भी हो गई थी. अपने खर्च और शौक पूरे करने के लिए फरहीन ने ब्यूटीपार्लर का काम सीखा और अपना ब्यूटीपार्लर और मसाज पार्लर खोल लिया. इस से उस के शौक पूरे होने लगे. लेकिन वह जो चाहती थी, वह नहीं हो पा रहा था.

फरहीन बड़े लोगों की तरह रहना चाहती थी. वह चाहती थी कि लोग उसे नमस्कार करें, उस के आगेपीछे घूमें. वह बड़ेबड़े अफसरों के साथ उठनाबैठना, खानापीना और उन के साथ मौजमस्ती करना चाहती थी. लेकिन इस के लिए न उस के पास पैसा एवं साधन था और न ही पहुंच.

लेकिन फरहीन के पास सुंदरता थी. वह अपनी सुंदरता और बातचीत से किसी को भी आकर्षित कर सकती थी. जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो उस ने इस का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. वह देखती थी कि नेता की इज्जत समाज भी करता है और सरकारी अमला भी. इसलिए नेता बनने के लिए फरहीन ने राजनीति में जाने का निश्चय किया.

पहले उस ने छोटेछोटे नेताओं से संबंध बनाए. उस के बाद उन्हीं के माध्यम से उस ने बड़े नेताओं तक पहुंच बना ली. राजस्थान में बिना जनाधार वाली मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं से उस की नजदीकियां बढ़ गईं तो उन्हीं के माध्यम से उस ने समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह, उन के मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश सिंह तक अपनी पहुंच बना ली. वह उन से और पार्टी के अन्य बड़े पदाधिकारियों से मिलने लखनऊ तथा दिल्ली भी आनेजाने लगी.

सपा नेताओं से अपने संबंधों के बल पर फरहीन राजस्थान में महिला नेता के रूप में उभरने लगी. इन्हीं संबंधों के बल पर सन् 2008 में राजस्थान में विधानसभा का समाजवादी पार्टी के टिकट पर कोटा की पीपल्दा विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन इस चुनाव में उसे वहां से चुनाव लड़ रहे आठों प्रत्याशियों में सब से कम केवल 730 वोट मिले थे.

चुनाव में भले ही फरहीन अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई थी, लेकिन उस का जो सपना था, वह राह पा चुका था. नेता बन जाने की वजह से उसे समाज में भी तवज्जो मिलने लगी थी और अधिकारियो में भी. अधिकारियों में तवज्जो मिलने लगी तो उसे संबंध बनाने में आसानी हो गई. जो भी नया अधिकारी कोटा में आता, उस तक पहुंच बनाने के लिए पहले उस का नंबर प्राप्त करती, उस के बाद वह वेलकम मैसेज भेजती.

अगर अधिकारी का जवाब आ जाता तो उसे अपने जाल में फांसने के लिए नौनवेज खाना बनवा कर भेजती. उस के उस लजीज नौनवेज का स्वाद अधिकारी के मुंह लग जाता तो वह उस के जाल में फंस जाता. घर आने वाले अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए उस ने अपने उन दिवंगत पिता की वरदी में बड़ी सी तसवीर ड्राइंगरूम में लगा रखी थी, जिन्होंने शादी के बाद उस से संबंध खत्म कर लिए थे.

इस तरह फरहीन के संबंध जिले के ही नहीं, राज्य के तमाम अफसरों से हो गए थे. उस के बाद वह इन संबंधों का इस्तेमाल अपने हिसाब से करती. संबंधों के बल पर लोगों के काम कराने के लिए वह मोटी रकम लेती. अब उस का रुतबा बढ़ ही गया था और आमदनी भी.

विधानसभा चुनाव में फरहीन बुरी तरह हारी थी. इस के बावजूद उस के रुतबे में जरा भी कमी नहीं आई थी. 2009 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो लखनऊ पहुंच कर उस ने सपा नेताओं को अपना जलवा दिखाया और कोटा से लोकसभा का टिकट हासिल कर लिया. इस बार भी वह अपनी जमानत नहीं बचा पाई. लोकसभा चुनाव में उसे मात्र 1479 वोट मिले थे.

विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में करारी हार के बावजूद फरहीन राजनीति में अपने पैर जमाए रही. इसी राजनीति की आड़ में वह बड़ेबड़े अधिकारियों से दोस्ती गांठने लगी. वह अधिकारियों से सिर्फ दोस्ती ही नहीं करती थी, बल्कि उन के हर शौक पूरे करती थी. इन्हीं संबंधों के बल पर वह अधिकारियों से काम कराने के लिए जरूरतमंदों से पैसे लेती थी यानी दलाली करती थी.

फरहीन ने सब से ज्यादा पैठ पुलिस अधिकारियों में बना रखी थी. बड़ेबड़े पुलिस अधिकारियों से दोस्ती की वजह से फरहीन की पहचान कोटा के सोशल सर्किल में भी होने लगी थी. वह अफसरों से बड़े लोगों के अटके काम कराने लगी. कोटा का जो अधिकारी फरहीन का काम करने से मना करता, जयपुर में पुलिस मुख्यालय में तैनात एडीजी एवं शासन सचिवालय में तैनात सचिव स्तर के अधिकारियों से उस पर दबाव डलवा कर वह अपना काम करवा लेती.

फरहीन ने लोगों को प्रभावित करने के लिए सपा नेताओं एवं एडीजी स्तर के अधिकारियों के साथ खिंचाए फोटो अपनी फेसबुक पर डाल रखे थे. सभी फोटो उस के मोबाइल में भी रहते थे. वह अधिकारियों को अपने नाम और परिचय के साथ मैसेज भी भेजती रहती थी.

सत्यवीर सिंह कोटा के एसपी बन कर आए तो जयपुर के पुलिस मुख्यालय में तैनात अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) स्तर के एक अधिकारी ने फरहीन का परिचय उन से कराया था. पहली ही मुलाकात में फरहीन ने उन का दिल जीत लिया था. सत्यवीर सिंह को फरहीन अपने काम की लगी तो फरहीन को एसपी साहब अपने काम के लगे. दोनों ने एकदूसरे को समझा तो उन की दोस्ती गहराती चली गई.

                                                                                                                                              क्रमशः

भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा पुलिस अफसर – भाग 1

रेतीले धोरों वाले राजस्थान में चंबल नदी के मुहाने पर बसा औद्योगिक शहर कोटा आज एजूकेशन हब बन चुका है. इंजीनियरिंग एवं मैडिकल की आल इंडिया तथा प्रदेश स्तर की परीक्षाओं में सब से ज्यादा यहीं की कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले बच्चों का सिलेक्शन होता है. यहां देश के नामीगिरामी कोचिंग सेंटरों की सैकड़ों शाखाएं हैं, जिन में देशभर के लाखों मेधावी बच्चे पढ़ने आते हैं.

उसी कोटा शहर में 27 मई की दोपहर को सूरज अपने पूरे शबाब पर था तो उस की तपन से लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा था. उस गरमी में कुछ देर पहले ही अपने औफिस से सरकारी बंगले पर आए शहर के एसपी सत्यवीर सिंह आराम फरमा रहे थे.

तभी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के डीआईजी आलोक वशिष्ठ आम कपड़ों में पैदल चलते हुए एसपी सत्यवीर सिंह के बंगले पर पहुंचे. गेट पर तैनात संतरी उन्हें पहचानता नहीं था, इसलिए उस ने उन्हें रोक कर पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘मैं डीआईजी हूं, जयपुर से आया हूं.’’ डीआईजी आलोक वशिष्ठ ने कहा.

संतरी को जैसे ही पता चला कि आगंतुक डीआईजी हैं, उस ने झट से सैल्यूट मारा और उन के आने की सूचना देने के लिए इंटरकौम की घंटी बजाई. लेकिन डीआईजी आलोक वशिष्ठ बिना कुछ कहेसुने सीधे बंगले के अंदर चले गए.

सामने ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर एसपी साहब आराम की मुद्रा में बैठे थे. वह डीआईजी आलोक वशिष्ट को पहचानते थे, इसलिए उन के कमरे में आते ही उन्होंने तुरंत खड़े हो कर सैल्यूट मारा. डीआईजी ने उन के सैल्यूट का जवाब देते हुए कहा, ‘‘सत्यवीर सिंह, यू आर अंडर अरेस्ट. रिश्वत लेने के जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार किया जाता है.’’

डीआईजी आलोक वशिष्ठ की ये बातें सुन कर एसपी सत्यवीर सिंह के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह कुछ कहने वाले थे कि डीआईजी साहब के पीछे आने वाले लोगों को देख कर चुप हो गए. डीआईजी साहब के पीछे एसीबी की टीम के साथ वह आदमी भी था, जिस ने उन पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया था. उस आदमी का नाम अब्दुल मतीन था. उसी की शिकायत पर यह काररवाई की गई थी.

एसीबी ने यह काररवाई इतनी तेजी और गोपनीय तरीके से की थी कि एसपी सत्यवीर सिंह को न तो कुछ सोचने का समय मिला था और न ही कुछ कहनेसुनने का. अब्दुल मतीन को देखते ही वह सारा माजरा समझ गए थे. जबकि उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि एक एसपी को उस के सरकारी आवास से इस तरह गिरफ्तार किया जाएगा.

एसपी सत्यवीर सिंह अच्छी तरह जानते थे कि विरोध करने का कोई मतलब नहीं है. आईपीएस होने के नाते वह एसीबी की कार्यप्रणाली को अच्छी तरह जानते थे. उन्हें अहसास हो गया कि अब खेल खत्म हो चुका है, इसलिए चुप रहना ही ठीक है. एसीबी टीम ने एसपी के मोबाइल जब्त करने के साथ उन के सरकारी आवास की तलाशी शुरू कर दी.

इस तलाशी में एसीबी टीम ने 62 हजार रुपए नकद, शराब की 6 बोतलें और 4 मोबाइल फोन के साथ कुछ खास दस्तावेज जब्त किए. दूसरी ओर उन के जयपुर के वैशालीनगर, गंगा सागर स्थित बंगले की भी तलाशी ली गई. वहां से कुछ दस्तावेजों के साथ बैंक के लौकर की चाबी भी मिली थी. तलाशी खत्म होने के बाद डीआईजी आलोक वशिष्ठ एसपी सत्यवीर सिंह को हिरासत में ले कर कोटा के अन्वेषण भवन आ गए.

एक ओर जहां एसीबी के डीआईजी आलोक वशिष्ठ ने एसपी सत्यवीर सिंह को गिरफ्तार किया था, वहीं दूसरी ओर एक अन्य डीआईजी हवा सिंह घुमरिया ने अपनी टीम के साथ जाल बिछा कर एसपी और जरूरतमंदों के बीच दलाली का काम करने वाली फरहीन और उस के पति निसार तंवर को आर.के.नगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार किया था.

फरहीन और निसार को रंगेहाथों पकड़ने के लिए एसीबी टीम ने शिकायत करने वाले मतीन को रिश्वत के रूप में तय 2 लाख रुपए की रकम में से 50 हजार रुपए ले कर निसार के पास भेजा था. मतीन ने जैसे ही फरहीन को 50 हजार रुपए सौंपे थे, एसीबी की टीम ने घर में घुस कर फरहीन एवं उस के पति निसार को दबोच लिया था.

फरहीन और निसार की गिरफ्तारी की सूचना डीआईजी हवा सिंह घुमरिया द्वारा अपने साथी डीआईजी आलोक वशिष्ठ को मोबाइल फोन से देने के बाद ही आलोक वशिष्ठ ने एसपी सत्यवीर सिंह के घर छापा मार कर उन्हें गिरफ्तार किया था. फरहीन और निसार को गिरफ्तार करने की यह काररवाई इतनी गोपनीय थी कि यह दंपति अपनी गिरफ्तारी की सूचना अपने ‘आका’ एसपी को नहीं दे सका था. एसीबी टीम ने फरहीन और निसार के भी मोबाइल फोन जब्त कर लिए थे.

गिरफ्तारी के बाद फरहीन और निसार के घर तथा होटल की तलाशी ली गई. इस तलाशी में तमाम ऐसे दस्तावेज मिले, जिन से साफ हो गया कि फरहीन और उस का पति पैसे ले कर एसपी से तमाम काम कराते थे. यही नहीं, उस के रेस्टोरेंट और घर से पुलिसकर्मियों के तबादलों की तमाम अर्जियां भी मिली थीं.

एसीबी ने एसपी सत्यवीर सिंह के सरकारी आवास और जयपुर के वैशालीनगर स्थित आवास की ही नहीं, अलवर जिले की तहसील बहरोड़ के गांव चांदीचाना जा कर उन के पैतृक घर की भी तलाशी ली थी. एसीबी ने अपनी इस काररवाई को ‘औपरेशन टाइगर’ का नाम दिया था, जो पूरी तरह सफल रहा था.

एसीबी टीम का यह औपरेशन इतना गोपनीय था कि कोटा के एसीबी के एसपी को भी इस काररवाई की भनक नहीं लगी थी. एसपी सत्यवीर सिंह की गिरफ्तारी के बाद जब डीआईजी ने फोन कर के उन्हें पुलिस अन्वेषण भवन बुलाया तो इस काररवाई से वह हैरान रह गए थे.

गिरफ्तार एसपी सत्यवीर सिंह और उन के लिए दलाली का काम करने वाले फरहीन एवं उस के पति निसार से एसीबी अधिकारियों ने अलगअलग पूछताछ तो की ही, आमनेसामने बैठा कर भी पूछताछ की. इस पूछताछ एवं जांच में एक महिला की महत्त्वाकांक्षा एवं एक भ्रष्ट अधिकारी के भ्रष्टाचार और शौकीनमिजाजी की वरदी को दागदार करने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

राजस्थान के जिला अलवर की तहसील बहरोड़ के गांव चांदीचाना के रहने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक अमीचंद के बड़े बेटे सत्यवीर सिंह ने पढ़ाई पूरी होने के बाद प्रतियोगी परीक्षाएं दीं तो उन का चयन राजस्व सेवा में हो गया था. पदोन्नति से भले ही वह तहसीलदार हो गए थे, लेकिन उस ने प्रतियोगी परीक्षाएं देनी बंद नहीं की थीं. इसी का नतीजा था कि तहसीलदार रहते हुए उन का चयन राजस्थान पुलिस सेवा में हो गया.

राज्य पुलिस सेवा में चयन होने के बाद वह डीएसपी बने. इस के बाद पदोन्नत कर के एडिशनल एसपी बने. 1 फरवरी, 2010 को उन की पदोन्नति भारतीय पुलिस सेवा में हो गई. आईपीएस बनने के बाद उन की पहली पोस्टिंग दौसा के एसपी के रूप में हुई. इस के बाद वह जयपुर (पूर्व) के पुलिस उपायुक्त बने.

जयपुर में सत्यवीर सिंह विवादों में घिरे तो उन्हें एपीओ बना दिया गया. इस के बाद उन्हें सीकर का एसपी बनाया गया. 6 महीने बाद ही उन का तबादला कोटा कर दिया गया. 24 अगस्त, 2013 को उन्होंने कोटा के एसपी का पदभार संभाला था.

                                                                                                                                         क्रमशः