चचेरे देवर गोपाल से हो गए संबंध
कुछ समय में ही गोपाल भूसाघर के पास जा पहुंचा था. रंजना के मना करने के बावजूद उसे आया देख चुपचाप दरवाजे की कुंडी पर लगा ताला खोल दिया. इधरउधर नजर घुमा कर देखा और फिर दूर खड़े गोपाल को देखने लगी. गोपाल उस के देखने का मतलब समझ गया और भूसा घर में चला गया. भीतर कमरे में केवल छोटे से रोशनदान से रोशनी आ रही थी.
भूसा चारों तरफ फैला हुआ था. गोपाल बिना कुछ कहे पास रखे भूसा समेटने वाले डंडे से बिखरे भूसे को सहेजने लगा. इस बीच रंजना भूसा भरा एक बोरा सिर पर उठाए हुए कमरे में ले आई. बोरे को जमीन पर पटकने से पहले ही गोपाल ने हाथ लगा कर उतार दिया.
ऐसा करते हुए भूसा भरभरा कर गोपाल के सिर और कपड़े पर गिर गया. रंजना तुरंत उस के सिर और कपड़े पर गिरे भूसे को हाथों से झाड़ने लगी. उस के चेहरे को अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछ दिया.
गोपाल इस लाड़प्यार को पा कर हतप्रभ था. कुछ भी कहे बगैर कमरे के बिखरे भूसे को सहेजने लगा. रंजना उसे ऐसा करते देखती रही.
इसी बीच एक छोटा बच्चा कमरे में घुस आया. वह बोलने लगा, ‘‘चाची…चाची! बाहर किसी की गाय आप का चारा खा रही है.’’
लड़के को अचानक कमरे में आया देख रंजना चौंक गई. कभी उसे तो कभी गोपाल को देखने लगी. गोपाल बोल पड़ा, ‘‘मेरी ही गाय है, अभी उसे ले जाता हूं.’’
गोपाल के जाने के बाद रंजना लड़के से बोली, ‘‘देख चाचा को गोपाल के बारे में मत बताना कि वह यहां आया था… मैं तुझे मिठाई दूंगी.’’
‘‘अच्छा चाची, मैं यह नहीं बताउंगा कि गोपाल की गाय आप का चारा खा गई है.’’ जवाब में लड़का बोल पड़ा.
उस रोज की बात आईगई हो गई. शाम को रामसुशील घर आया और सीधा भूसाघर गया. वहां एक कोने में जमा भूसे के ढेर को देख कर खुश हो गया. रंजना की तारीफ में बोला, ‘‘रोज थोड़ाथोड़ा कर काम निपटा लो, तब एक बार इतना बोझ नहीं रहता है.’’
रंजना भी अपनी तारीफ सुन कर खुश हो गई. वह कुछ बोलने वाली ही थी, इस से पहले ही रामसुशील बोल पड़ा, ‘‘अगर तुम थकी न हो तो आज रात को कुछ मीठा पका लो.’’
‘‘हां, मैं भी सोच रही थी. दूध कल
का भी बचा है. कहो तो खीर और दालपूड़ी बना लूं.’’
‘‘अरे, तुम ने तो मेरे मन की बात कह दी. कुछ ज्यादा पकाना. एक कटोरा खीर और 4-5 दालपूड़ी उस गोपू को भी दे देना.’’
‘‘कौन उस गोपाल को?’’ रंजना के दिमाग में सुबह से ही गोपाल घूम रहा था, जो जाते वक्त बोल गया था कि कोई जरूरत हो तो गोपू पुकार लेना. कोई शक नहीं करेगा.
‘‘अरे उसे क्यों देना वह तो बदमाश है, मेरे हर काम में टांग अड़ाता रहता है. वह छोटा लड़का है न, बगल में रहता है.’’
‘‘अच्छा उसे! उसे तो नहीं भी कहोगे तब भी दूंगी. घर के आसपास खेलता रहता है. और क्या मजाल है कि उस के रहते कोई कुत्ताबिल्ली घर में घुस जाए.’’ गहरी सांस लेती हुई रंजना बोली और रसोई के काम में लग गई.
रामसुशील और रंजना के दिन हंसीखुशी में बीतने लगे थे. उन की खुशी को ग्रहण तब लग गया जब एक दिन गांव की एक बुढि़या ने रामसुशील को अपने पास बिठा लिया और हालचाल पूछने के बहाने रंजना की ढेर सारी शिकायतें कर डालीं.
उन शिकायतों में एक शिकायत गोपाल को ले कर भी थी. उस ने बताया कि उस के पीछे में गोपाल और रंजना का मिलनाजुलना होता है. यह गलत बात है. गांव के दूसरे लोग भी उन के बारे में कानाफूसी करने लगे हैं. ये बातें रामसुशील के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह पड़ीं. उस रोज तो वह चुप रहा. रंजना पर इस की जरा भी प्रतिक्रिया नहीं की.
लेकिन वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे भी सच का पता चल गया. एक दिन उस ने अपनी आंखों के सामने गोपाल को रंजना से बातें करते देख लिया. इस पर रंजना को डांट भी लगाई. डांट खा कर रंजना बिफर गई, लेकिन उसे यह मालूम हो गया कि उस का भेद पति को मालूम हो चुका है.
छिपछिप कर होने लगीं मुलाकातें
असल में रंजना और गोपाल के मिलने का सिलसिला लगातार चल पड़ा था. रंजना उस के बांकेपन पर फिदा हो गई थी. जबकि गोपाल रंजना की भरी जवानी पर मर मिटा था. जैसे ही रामसुशील खेती के काम से शहर जाता था, गोपाल उस के घर आ धमकता था. यहां तक कि खेत के पास बने छोटे से कमरे में वे अकसर मिला करते थे.
उन का छिपछिप कर मिलना ज्यादा दिनों तक लोगों की नजरों से नहीं बचा. एक दिन गांव की कुछ औरतों को इस की भनक लग गई. यहां तक कि गोपाल के पिता और दूसरे चाचा को भी इस की जानकारी मिल गई कि उन के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा है. इस कारण उन्हें रामसुशील को बदनाम करने का एक कारण भी मिल गया.
रामसुशील जब भी रंजना पर गुस्सा होता, तब उसे ताना भी दे देता. उस के साथ छोटीछोटी बातों पर मारपीट करने लगा, जिस से रंजना तिलमिला जाती थी.
एक दिन रंजना ने गोपाल से बोल कर इस समस्या का समाधान निकालने का दबाव बनाया. रंजना के कहने पर गोपाल ने रामसुशील को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.
उस के द्वारा रची गई साजिश में मृतक के भाई गुलाब पाल, अंजनी पाल और रामपति पाल के बेटे पंकज और छोटू भी शामिल हो गए.
उन्हें रामसुशील को ठिकाने लगाने में दोहरा फायदा नजर आ रहा था. गोपाल को एक फायदा जहां रंजना का था, वहीं अन्य को उस की खेती की जमीन पर आसानी से कब्जा मिल जाने का था.
मई 2021 का महीना था. योजना के मुताबिक रंजना ने घर में ही समोसा बनाने की तैयारी की. इस बारे में उस ने पति को बताया कि वह शाम को जल्द घर आ जाएं, वह घर में ही समोसा चाट बनाएगी. अचार का मसाला और दही घर में ही है. रामसुशील खुश हो गया. उस ने महसूस किया रंजना में सुधार आ गया है.
शाम हुई, रंजना ने समोसा चाट बना कर रामसुशील को खिला दी, लेकिन उस में नींद की गोलियां भी मिला दीं. गोलियों का असर तेजी से हुआ.
उस के नींद में हो जाने पर रात के समय गोपाल भी अपने चाचा को ले कर आ गया. दोनों ने मिल कर उसे गला दबा कर मार डाला. गला भी काट डाला. लाश को ठिकाने लगाने के लिए भूसाघर के ढेर में दबा दी.
गोपाल ने कई बार लाश को कहीं और ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन इस में वह सफल नहीं हो पाया. जिस से लाश भूसे के ढेर में ही डेढ़ साल तक पड़ी रही. लाश भूसे के काफी भीतर थी, जिस से उस के सड़ने की ज्यादा गंध बाहर नहीं निकल पाई.
रंजना ने पासपड़ोस में यह बात फैला दी कि उस का पति शहर में ही काम करने लगा है. बीचबीच में खेती का काम देखने के लिए आ जाता है.
संयोग से गोपाल पाल की कदकाठी रामसुशील से मिलतीजुलती थी. जब वह अंधेरा होने के बाद रंजना के घर पर आता था, तब रामसुशील के कपडे़ पहन कर इधरउधर खेतों में घूम आता था. उसे दूर से देख कर आसपास के लोग रामसुशील ही समझ लेते थे.
इस बार दीपावाली से पहले भूसे की खपत अधिक हो गई थी, जिस से उस में से लाश के सड़ने की तेज गंध आने लगी थी. आननफानन में रंजना ने गोपाल से लाश को कहीं बाहर फेंक आने के लिए कहा.
गोपाल ने भी भेद खुल जाने के डर से लाश को ठिकाने लगाने के लिए अपने चाचा और अन्य की मदद ली. वे लाश को एक बोरे में ठूंस कर मऊगंज के जंगली इलाके में एक पुलिया के नीचे नाले में फेंक आए.
बाद में किसी के द्वारा सूचना मिलने पर पुलिस ने लाश बरामद कर ली. कंकाल के रूप मिली लाश की पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की और गहन तहकीकात के बाद रंजना, उस के प्रेमी और अन्य आरोपियों को हिरासत में लेने में सफल हो पाई.
सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की जांच टीआई श्वेता मौर्या कर रही थीं. द्य