तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 1

बात 22 मार्च, 2023 की है. मेरठ शहर के थाना दिल्ली गेट के एसएचओ ऋषिपाल औफिस में बैठे अखबार देख रहे थे, तभी 2 युवक उन के पास आए. दोनों के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. उन्होंने एसएचओ साहब को सलाम कहा तो ने उन्हें सामने पड़ी कुरसियों पर बैठने का इशारा किया. दोनों बैठ गए. कपड़ों और चेहरों से दोनों मुसलमान दिखाई पड़ रहे थे.

“कहिए, थाने में आप का कैसे आना हुआ?” एसएचओ ऋषिपाल ने पूछा.

“साहब, मेरा नाम शाहिद बेग है.” एक छरहरे बदन का युवक अपना परिचय देते हुए बोला, “मेरे साथ मेरा साला दानिश खान है. मैं आप के पास अपने 2 बच्चों के गुम हो जाने की फरियाद ले कर आया हूं. मुझे शक है कि मेरे दोनों बच्चे कत्ल कर दिए गए हैं.”

कत्ल की बात सुन कर ऋषिपाल चौंक गए, वह कुरसी पर झुकते हुए बोले, “आप को यह शक क्यों और कैसे है कि आप के बच्चों का कत्ल कर दिया गया है?”

“साहब, निशा ने मेरे 3 बच्चों को पहले भी मार डाला था. अब मेरे बेटे मेराब और बेटी कोनेन की भी उस ने हत्या कर दी है.”

“निशा…यह कौन है?”

“मेरी बीवी है साहब, एक नंबर की मक्कार, चालबाज और फरेबी औरत है. ढोंगी तांत्रिक का लबादा ओढ़ कर वह लोगों को बेवकूफ बना रही है, तंत्रमंत्र के नाम पर उस ने अपनी पांचों औलादों की बलि चढ़ा दी है. मेरे बच्चे परसों शाम से गायब हैं…”

मामला काफी संगीन नजर आ रहा था. एसएचओ के चेहरे पर गंभीरता फैल गई. उन्होंने शाहिद बेग के चेहरे को ध्यान से देखा, वह काफी परेशान और दुखी दिखाई पड़ रहा था.

“शाहिद बेग, मुझे सारी बात विस्तार से बताओ.”

“साहब, मेरा निकाह सन 2001 में निशा के साथ हुआ था. वह शुरूशुरू में बहुत नेक और शांत स्वभाव की थी. वह मेरे 5 बच्चों की मां बनी, तब तक सब कुछ सामान्य चलता रहा. बाद में निशा में तेजी से परिवर्तन आ गया. वह खुद को तांत्रिक बताने लगी. उस की बातों में अनेक अनपढ़, गरीब लोग आ गए. मेरे घर पर लोगों का जमावड़ा लगने लगा. मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. वह कहती, “मैं तुम्हारे घर की खुशहाली के लिए सिद्धि प्राप्त करने की कोशिश कर रही हूं. तुम देखना कि मैं तुम्हें दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बना दूंगी.

“वह घर में अजीबअजीब तंत्रमंत्र के टोटके करने लगी, उस की हरकतों से परेशान हो कर मैं ने घर छोड़ दिया. मैं बच्चों को साथ रखना चाहता था, लेकिन निशा ने बच्चे मेरे हवाले नहीं किए. कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरे 3 बच्चे गायब हो गए हैं. मै ने निशा से मिल कर बच्चों की बाबत पूछा तो वह तरहतरह के बहाने बनाने लगी. कभी कहती कि वह पीर बाबा के मुरीद बन कर घर से चले गए, कभी कहती कि अजमेर शरीफ में उस से बिछुड़ गए.

“मैं तब चुप लगा गया. अब उस मक्कार औरत ने मेरा बेटा और बेटी को गायब कर दिया है. मुझे किसी ने बताया है कि निशा ने तांत्रिक शक्ति पाने के लिए मेरे बच्चों की बलि चढ़ा दी है. साहब, आप उस सिरफिरी औरत को कोतवाली ला कर पूछताछ कीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी.”

एसएचओ ऋषिपाल ने शाहिद बेग की बातों को गंभीरता से सुना. उन्होंने साथ में आए दानिश खान की तरफ देखा, “दानिश खान, आप को अपने जीजा की बातों में कितनी सच्चाई नजर आती है?”

“यह हकीकत बयां कर रहे हैं साहब. मुझे निशा को अपनी बहन कहते हुए भी शरम आती है. उस ने मेरे मासूम भांजेभांजियों का कत्ल किया है, उसे गिरफ्तार कर के सख्त से सख्त सजा दीजिए.”

“ठीक है. मैं निशा को यहां बुला कर पूछताछ करता हूं. आप अपनी एफआईआर दर्ज करवा दीजिए.” एसएचओ ने बड़ी गंभीरता से इस मामले को लिया. उन्होंने तुरंत निशा को पकड़ कर लाने के लिए एक पुलिस टीम खैर नगर भेज दी. इस की सूचना उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

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दोनों बच्चों की हत्या की

पुलिस टीम निशा को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. जब उसे एसएचओ के सामने लाया गया तो वह जरा भी भयभीत नहीं थी. उस ने साड़ी ब्लाउज पहन रखा था, पूरे शृंगार से सजीधजी हुई थी. वह शान से आ कर उन के सामने तन कर खड़ी हो गई. उस ने एसएचओ के चेहरे पर नजरें जमा कर उपेक्षा से पूछा, “मुझे यहां क्यों बुलाया है कोतवाल साहब, आप जानते नहीं, मैं कौन हूं?”

एसएचओ उस की बेबाकी पर चौंके. वह इतनी बेफिक्री से बातें किस दम पर कर रही है, यह जानना जरूरी था. लेकिन उस से पहले वह उस से उस के बच्चों के विषय में जान लेना जरूरी समझते थे. उन्होंने उसे घूरते हुए पूछा, “तेरा बेटा मेराब और बेटी कोनेन कहां है?”

“उन दोनों को तो मैं ने खैरनगर की सलामती के लिए कुरबान कर दिया है.” निशा उसी लापरवाही भरे अंदाज में बोली, “जिस प्रकार युद्ध में अमन (शांति) के लिए मोघ्याल राजा राहिब सिद्ध दत्त ने अपने बच्चे का सिर कलम कर दिया था, उसी तर्ज पर मैं ने भी खैरनगर में अमन के लिए अपने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. यदि मैं ऐसा नहीं करती तो पूरा खैरनगर तबाह और बरबाद हो जाता. वहां लाशों के ढेर लग जाते.” वह बोली.

एसएचओ ऋषिपाल ऊपर से नीचे तक हिल गए. एक मां अपने जिगर के टुकड़ों को अपने हाथों से हलाक कर सकती है, वह सपने में भी नहीं सोच सकते थे. यह औरत बड़ी बेशरमी से अपना गुनाह खैरनगर में अमन लाने के नाम पर थोप रही है. या तो यह अपना दिमागी संतुलन खो चुकी है या फिर जरूरत से ज्यादा शातिर और मक्कार है. कुछ सोच कर उन्होंने पास में खड़ी महिला सिपाही से कहा, “मुझे लगता है, इस का दिमागी पेच ढीला हो गया है. जरा इस का दिमाग दुरुस्त तो करो.”

महिला सिपाही एसएचओ साहब का इशारा समझ गई. एसएचओ उठ कर बाहर आ गए. वह उस कक्ष में आए, जहां उन्होंने शाहिद बेग और उस के साले दानिश खान को बिठाया हुआ था. वे दोनों अमित राय को देख कर खड़े हो गए.

“आप लोग सही कह रहे थे.” ऋषिपाल गंभीर स्वर में बोले, “निशा तुम्हारे दोनों बच्चों की बलि चढ़ा चुकी है. उस ने बताया है कि खैरनगर को तबाह होने से बचाने के लिए उस ने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. हकीकत उगलवाने के लिए उस से पूछताछ चल रही है.”

शाहिद और दानिश खान बच्चों के कत्ल की पुष्टि हो जाने पर सकते में आ गए. शाहिद फूटफूट कर रोने लगा. एसएचओ ने उस का कंधा थपथपा कर कहा, “निशा की सरकारी खातिरदारी की जा रही है. अभी वह बता देगी कि बच्चे कत्ल किए गए हैं तो उन की लाश कहां हैं.”

10 मिनट बाद वह शाहिद बेग और दानिश खान को साथ ले कर उसी कमरे में आ गए, जहां निशा से पूछताछ की जा रही थी. निशा पूरी तरह टूट गई थी, वह चीखते हुए कह रही थी, “रुक जाइए, मुझे मत मारिए, मैं सब बता दूंगी.”

ऋषिपाल ने महिला कांस्टेबल को हाथ रोकने का इशारा किया और निशा को घूरते हुए पूछा, “बोलो, तुम ने दोनों बच्चों का क्या किया?

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“म… मैं ने उन दोनों को अपनी जिंदगी से दूर करने के लिए अपने प्रेमी सऊद फैजी, आरिफ कोसर, मुसर्रत बेगम और उस के बेटे साद को अमनचैन के नाम पर उकसाया. उन लोगों ने दोनों बच्चों मेराब और कोनेन को पहले रजाईगद्ïदे रखने वाले संदूक में हाथपांव बांध कर बंद कर दिया. 2 घंटे तक बंद रखने के बाद भी उन के प्राण नहीं निकले तो सऊद फैजी ने दोनों को जहर के इंजेक्शन लगा दिए. इस से छोटी कोनेन तो मर गई, मेराब नहीं मरा. तब उस का गला घोंटा गया. वह मर गया तो हम लोगों ने उन की लाशें गंगनहर में फेंक दी.”

“तू मां नहीं, मां के नाम पर कलंक है, तूने मेरे पांचों बच्चों की अंधविश्वास में हत्या की है. तुझे फांसी होनी चाहिए.” शाहिदबेग गुस्से से चीख पड़ा.

गंगनहर में हुई लाशों की तलाश

एसएचओ ने उसे शांत करवा कर बाहर भेज दिया. उन्होंने मां द्वारा अंधविश्वास में 2 बच्चों की हत्या करने की सूचनाएसएसपी रोहित सिंह सजवाण, एसपी (सिटी) पीयूष सिंह और सीओ अमित राय को दे दी तो ये तीनों पुलिस अधिकारी भीथाने पहुंच गए.

                                                                                                                                          क्रमशः

मृतक की वीडियो से खुला हत्या का राज़ – भाग 1

18 मार्च, 2023 की रात करीब साढ़े 11 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के रीवा शहर की पडऱा इलाके की दुर्गा कालोनी में रहने वाली 31 साल की शालेहा परवीन बदहवास हालत में अपने पति शाहिद को ले कर अपनी मां के साथ संजय गांधी मेमोरियल जिला अस्पताल पहुंची. शालेहा आंखों में आंसू लिए ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर से गुहार लगाते हुए बोली, “डाक्टर साहब, मेरे पति को बचा लीजिए.”

“आखिर क्या हुआ है इन को. इन की हालत तो काफी नाजुक है.” शाहिद की नब्ज पर हाथ रखते हुए डाक्टर ने पूछा.

“डाक्टर साहब, इन्होंने किसी जहरीले पदार्थ का सेवन किया है, जल्दी से इलाज कीजिए इन का.” कहते हुए शालेहा फफकफफक कर रोने लगी.

डाक्टर ने स्टेथेस्कोप को कान में लगा कर उस का चेकअप किया. कुछ ही सेकेंड बाद डाक्टर ने शालेहा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, “आई एम सौरी, ही इज नो मोर.”

डाक्टर के इतना कहते ही शालेहा दहाड़ मार कर रोने लगी. शालेहा की मां ने उसे संभालते हुए कहा, “शालू रो मत बेटी, शायद खुदा को यही मंजूर था. अपने आप को संभाल और शाहिद के पापा को इत्तिला कर दे बेटी.”

कुछ देर बाद शालेहा ने अपने पर्स से शाहिद का मोबाइल फोन निकालते हुए अपने ससुर को यह दुखद खबर सुना दी. यूं तो

शालेहा के ससुर सलामत खान परिवार के खिलाफ जा कर शादी करने की वजह से शाहिद से नाराज थे. पिछले 7 सालों से दोनों के बीच बातचीत बंद थी. मगर बेटे की मौत की सूचना मिली तो जल्दी से अस्पताल पहुंच गए. हौस्पिटल पहुंचे तो देखा शाहिद का बदन सफेद चादर में लिपटा हुआ था. उस के पास ही बहू शालेहा और उस के अब्बूअम्मी खड़े थे.

तब तक अस्पताल प्रशासन की सूचना पर थाना सिविल लाइंस पुलिस अस्पताल आ चुकी थी. पुलिस ने आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. शालेहा ने अपने ससुर को रोतेबिलखते हुए बताया, “अब्बाजान, किसी बात से नाराज हो कर शाहिद ने जहर पी लिया था, मैं उन्हें ले कर अस्पताल आई, लेकिन उन्हें बचा नहीं सकी.”

सलामत खान को वहां पर शालेहा और उस की अम्मी का रवैया संदिग्ध लग रहा था. उन्होंने देखा कि बहू शालेहा अपने अब्बू और अम्मी से बारबार कानाफूसी कर रही थी, इसलिए बहू की बात सुन कर सलामत खान वहीं पर बुरी तरह बिफर पड़े. उन्होंने बहू पर आरोप लगाते हुए कहा, “तुम्हारी हरकतों की वजह से ही मेरे बेटे की जान गई है.”

सलामत खान ने पुलिस से कहा कि मेरे बेटे ने आत्महत्या नहीं की है. उसकी पत्नी ने ही उसे जहर दे कर मारा है. पुलिस ने सभी के बयान दर्ज कर लिए, मगर पुलिस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं था, जिस से सलामत खान की बात को सही साबित कर सके.

लव मैरिज से नाराज थे पिता

पब्लिक वक्र्स डिपार्टमेंट (पीडब्ल्यूडी) में असिस्टेंट ड्राफ्ट्समैन के पद से रिटायर 65 साल के सलामत खान रीवा के घोघर मोहल्ले में रहते हैं. उन की 2 बेटियां और एक 37 साल का बेटा शाहिद था. शाहिद बचपन से ही होनहार था. उसे मोबाइल और नेटवर्क से जुड़े काम में काफी रुचि थी. साल 2015 में रीवा के न्यू बस स्टैंड के पास एक मोबाइल शोरूम खुला था. उस के लिए वैकेंसी निकली तो कई लडक़े व लड़कियों ने इस के लिए इंटरव्यू दिए.

इंटरव्यू में शाहिद के साथ शालेहा परवीन नाम की लडक़ी का भी चयन हुआ था. मोबाइल शोरूम में दोनों दिन भर साथ काम करते थे. इस वजह से शाहिद खान की दोस्ती शालेहा से हो गई. दोनों ड्यूटी पर साथ रहते, वहां से भी साथ में ही निकलते और खाली समय भी एकदूसरे के साथ बिताने लगे. धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. जब उन का प्यार परवान चढऩे लगा तो दोनों के रिश्ते के बारे में घर वालों को भी पता चला.

शाहिद के पिता ने जब लडक़ी के बारे में जानकारी जुटाई तो उन के नजदीकी रिश्तेदारों ने बताया कि लडक़ी का चालचलन ठीक नहीं है. शाहिद तो शालेहा के प्यार में इस कदर दीवाना हो चुका था कि परिवार के लाख समझाने के बाद भी नहीं माना और घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर 2016 में शालेहा से लव मैरिज कर ली.

शाहिद के घर वाले इस बात से बहुत खफा हो गए और उन्होंने शाहिद को घर से निकाल दिया. शाहिद रीवा शहर की पडऱा इलाके की दुर्गा कालोनी में किराए के मकान में बीवी शालेहा के साथ रहने लगा. शादी के बाद शाहिद के सासससुर का उस के घर में दखल बढ़ गया था.

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शादी के 2 साल तक सब कुछ ठीक रहा, इस दौरान शालेहा ने एक बेटी को जन्म दिया. लेकिन उस के बाद दोनों के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर विवाद होने लगा. इस बात की भनक शाहिद के वालिद सलामत खान को भी थी, मगर वह शाहिद से इतने खफा थे कि उस से कोई मतलब नहीं रखना चाहते थे. उन का मानना था कि जिस बेटे ने हमारी बात ही नहीं मानी तो हमें भी उस की फिक्र नहीं है. वह अकसर यही कहते थे कि शाहिद ने गलत कदम उठाया है तो खुद ही भुगते.

मृतक के मोबाइल में छिपा मौत का राज

शाहिद के पिता सलामत खान को यकीन नहीं हो रहा था कि शाहिद इस तरह खुदकुशी कर सकता है. मौत के तीसरे दिन 21 तारीख की बात है, उन्होंने देखा कि शाहिद की मौत का गम बहू के चेहरे पर कहीं नजर नहीं आ रहा था. शाहिद की मौत के बाद बहू दिन भर उस का मोबाइल यूज कर रही थी.

उन्होंने गुस्से में बहू को डांटते हुए उस से मोबाइल ले लिया था. सलामत खान को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि उन के इकलौते बेटे की मौत से परिवार में मातम पसरा था, मगर बहू के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी. उस दिन शाम को वह शाहिद का मोबाइल साथ ले कर घर लौट आए.

21 मार्च को ही शाहिद की बहन मातमपुरसी के लिए अपने मायके आई हुई थी. उस समय वह अपने भाई को याद कर उस का मोबाइल देख रही थी, तभी अचानक मोबाइल में एक वीडियो देख कर उस की बहन चौंक गई. वह दौड़ती हुई अपने अब्बू के पास आ कर बोली, “अब्बा, इस मोबाइल में भाईजान का एक वीडियो है, जिस में वो बता रहे हैं कि उन्हें जान से मारने के लिए चाय में जहर मिला कर दिया गया है.”

“बेटी, जरा मुझे भी दिखाओ कैसा वीडियो है.” अपनी बेटी के हाथ से मोबाइल लेते हुए सलामत खान बोले. जैसे ही उन्होंने वीडियो देखा तो उन का शक पुख्ता हो गया. वे बिना देर किए मोबाइल ले कर सिविल लाइंस थाने पहुंच गए. वीडियो में शाहिद बारबार अपनी मौत के लिए ससुराल वालों को जिम्मेदार बता रहा था.

                                                                                                                                         क्रमशः

3 महीने बाद खुला सिर कटी लाश का राज – भाग 3

घटना के दिन भी जब दोनों बच्चे स्कूल चले गए, तब शैलेंद्र ने गुस्से में आ कर राधा को उलाहना देते हुए कहा, ‘‘मैं नौकरी चले जाने की चजह से पैसेपैसे को तरस रहा हूं और तेरा भाई प्लौट के पैसे दबाए बैठा है. उस से पैसे क्यों नहीं मांग लेती?’’

“भाई से पैसे ला कर तुम्हें दे दूं, जिस से तुम गुलछर्रे उड़ा सको. प्लौट के पैसे मैं ने बच्चों की पढ़ाई के लिए जमा कर रखे हैं. उस में से तुम्हें एक पाई भी नहीं दूंगी.’’ राधा ने भी दोटूक जबाब देते हुए कहा. राधा के इस तरह जबाब देने से शैलेंद्र भडक़ गया और गुस्से में आ कर घर के आंगन में रखा फावड़ा पत्नी के सिर पर दे मारा, जिस से राधा के सिर से खून की धारा बहने लगी और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

यह घटना 7 दिसंबर, 2022 की है. शैलेंद्र ने फावड़े से राधा की हत्या कर दी और दिन भर शव घर में ही रखा. उस ने कपड़ों से आसपास बिखरे खून को साफ कर दिया था. दोनों बच्चों के स्कूल से घर आने के बाद उस ने बड़े बेटे के सामने रोते गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, आज मुझ से बड़ी गलती हो गई, मैं ने गुस्से में आ कर तेरी मम्मी को मार दिया. अब पुलिस मुझे पकड़ कर ले जाएगी, अब तुम दोनों का क्या होगा?’’

यह सुन कर शौर्य रोने लगा तो शैलेंद्र ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, यदि हम तेरी मम्मी की लाश को किसी तरह ठिकाने लगा दें तो किसी को शक नहीं होगा और मैं तुम दोनों बच्चों को अनाथ होने से बचा भी लूंगा.’’

14 साल का मासूम पिता के जेल जाने की सोच कर सहम गया और उसे पिता को बचाने का यही तरीका अच्छा लगा तो उस ने पिता की बात पर सहमति दे दी. रात में उसी दिन अपनी कार में पत्नी राधा की लाश को कपड़े में छिपा कर दोनों हनुमान डोल मंदिर के पास बनी पुलिया पर पहुंच गए और पुलिया के नीचे ले जा कर शव फेंक दिया. वे अपने साथ लोहे की आरी ले कर आए थे.

लाश की पहचान न हो, इस कारण शैलेंद्र ने राधा का सिर अपने बेटे की मदद से आरी से काट कर अलग कर दिया और शव को रेत, पत्थर से ढंक दिया. दोनों अपनी कार में सिर को कपड़े में लपेट कर अपने घर ले आए. फिर बापबेटे ने प्लानिंग कर सिर को नैशनल हाईवे पर शाहपुर के पास ले जा कर एक गड्ïढे में पैट्रोल डाल कर जला दिया.

दोस्त की मदद से काट रहा था फरारी

जैसे ही शैलेंद्र को पता चला कि राधा के भाई दिलीप ने पुलिस में राधा की गुमशुदगी दर्ज कराई है तो शैलेंद्र अपने बच्चों को पास में ही रहने वाली अपनी मां के पास छोड़ कर अपने घर से भाग निकला. नागपुर की तरफ जाते समय उस ने पुणे में रहने वाले अपने दोस्त गोविंद को फोन लगा कर बातचीत की.

“हैलो गोविंद, मैं बैतूल से शैलेंद्र बोल रहा हूं. भाई, मैं बड़े संकट में फंस गया हूं. तेरी मदद की इस समय मुझे सख्त जरूरत है.’’ शैलेंद्र बोला.

“संकट के समय दोस्त ही दोस्त के काम आता है. बताओ शैलेंद्र, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं.’’ गोविंद ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा.

“गोविंद कुछ दिनों के लिए मैं तुम्हारे साथ पुणे में रहना चाहता हूं, तुम मुझ पर एक उपकार करोगे तो मैं शायद बड़े संकट से बच जाऊंगा.’’ शैलेंद्र बोला.

“अब पहेलियां न बुझाओ शैलेंद्र, तुम पुणे आ जाओ. मेरे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हर समय खुले हुए हैं.’’ गोविंद ने उसे पुणे आने का न्यौता देते हुए कहा. अंधा क्या चाहे दो आंखें. शैलेंद्र के मन की मुराद पूरी हो गई. वह नागपुर से ट्रेन पकड़ कर पुणे पहुंच गया. पुणे रेलवे स्टेशन पर उतरते ही उस ने गोविंद को फोन लगा दिया. बचपन का दोस्त गोविंद वरकड़े उसे लेने स्टेशन आ गया.

गोविंद ने घर ले जा कर शैलेंद्र को खाना खिलाया और उस से परिवार का हालचाल पूछा तो शैलेंद्र ने घडिय़ाली आंसू बहाते हुए गोविंद को बताया कि पत्नी राधा से झगड़ा होने की वजह से उस ने उसे फावड़ा मार दिया था, जिस से राधा की मौत हो गई. पुलिस से बचने के लिए वह पुणे आया है.

शैलेंद्र का दोस्त भी हुआ गिरफ्तार

गोविंद ने फरारी काटने के लिए शैलेंद्र को अपने घर पर पनाह देते हुए भरोसा दिलाया कि कुछ दिनों में उसे किसी कंपनी में काम दिलवा देगा और यहां पुलिस उसे खोज भी नहीं पाएगी. मगर पुलिस की पकड़ से वह ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका. मोबाइल लोकेशन के आधार पर 22 मार्च, 2023 को बैतूल पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. शैलेंद्र को फरारी काटने में मदद करने के आरोप में गोविंद वरकड़े को भी हिरासत में ले लिया.

23 मार्च को बैतूल कंट्रोल रूम में एसपी सिमाला प्रसाद ने प्रेस कौन्फ्रैंस में घटना का खुलासा किया. शैलेंद्र और गोविंद को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को बैतूल जेल भेज दिया गया. नाबालिग बेटे शौर्य को बाल सुधार गृह भेज दिया गया.

नशाखोरी और अय्याशी की वजह से शैलेंद्र की गृहस्थी उजड़ गई और उसे जेल की हवा खानी पड़ी. गलत रास्ते पर चलने वाले दोस्त को सहयोग करने वाले गोविंद को भी अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा. पढऩेलिखने की उम्र में नाबालिग बेटे को बाल सुधार गृह में जाने को मजबूर होना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में शौर्य बदला हुआ नाम है.

वह नादान नहीं थी : कैसी लत का शिकार हुई वो

रात के 10 बजे राजेंद्र सिंह ने कमबाइन मशीन खेतों के बाहर बने कमरे के पास खड़ी की और ट्यूबवैल की मोटर चला कर नहाने लगा. नहा कर उस ने खाना खाया और सोने के लिए चारपाई पर लेट गया, क्योंकि उसे सुबह जल्दी उठना था.

दिन भर कमबाइन मशीन चलातेचलाते बलजिंदर इतना थक जाता था कि चारपाई पर लेटते ही उसे नींद आ जाती थी. अभी उस ने आंखें मूंदी ही थीं कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. अलसाई आंखें खोल कर उस ने मोबाइल स्क्रीन को देखा.

रात के ठीक 11 बजे थे. उस ने फोन रिसीव कर के कान से लगाया तो दूसरी ओर से उस के छोटे भाई की पत्नी सोमपाल कौर की घबराई हुई आवाज उभरी. उस ने कहा, ‘‘सत्तश्री अकाल वीरजी, क्या अभि के पापा आप के पास हैं?’’

‘‘नहीं तो. क्यों क्या बात है?’’ राजेंद्र ने चिंतित स्वर में पूछा तो सोमपाल कौर ने कहा, ‘‘बलजिंदर काम से नहीं लौटे हैं, मुझे चिंता हो रही है.’’

राजेंद्र ने सोमपाल कौर की बात सुन कर उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह किसी यारदोस्त के पास बैठ गया होगा, थोड़ी देर में आ जाएगा.’’

‘‘लेकिन उन का फोन…’’

‘‘मैं ने कहा न, तुम सो जाओ. मैं सुबह घर आ कर देख लूंगा. चिंता की कोई बात नहीं है.’’ कह कर राजेंद्र ने फोन काट दिया. यह रात 11 बजे की बात थी.

जिला श्रीमुक्तसर साहिब के थाना सदर मटौल का एक गांव है खुन्नण कलां. इसी गांव के रहने वाले गुरमेज सिंह के 2 बेटे थे, 32 साल का राजेंद्र सिंह और 29 साल का बलजिंदर सिंह उर्फ बिल्ला. इस गांव की अधिकांश आबादी मेहनतमजदूरी करने वाले सिखों की है.

गरीब परिवार के होने के कारण राजेंद्र और बलजिंदर जाटों के खेतों में काम कर के गुजरबसर करते थे. मेहनत की बदौलत दोनों भाई घर खर्च चलाने के साथसाथ थोड़ीबहुत बचत भी कर लेते थे.

राजेंद्र सिंह की शादी करीब 11 साल पहले हुई थी. वह अपने बीवीबच्चों के साथ गांव में ही अलग मकान में रहता था. बलजिंदर की शादी 8 साल पहले फाजिल्का के गांव महुआणा बोदला निवासी थाना सिंह की बेटी सोमपाल कौर के साथ हुई थी. दोनों का 7 साल का एक बेटा अभि सिंह था.

राजेंद्र सिंह खेतों में कमबाइन से फसल काटने का काम करता था, जबकि बलजिंदर ट्रैक्टर चलाता था. सोमपाल कौर भी मजदूरी करती थी. वह थी तो सांवले रंग की, पर उस के तीखे नैननक्श और आकर्षक शरीर किसी को भी उस की ओर देखने को मजबूर कर सकते थे.

14 अप्रैल, 2017 की सुबह बलजिंदर रोज की तरह अपने काम पर गया तो लौट कर नहीं आया. उस की पत्नी सोमपाल कौर और भाई राजेंद्र सिंह रात भर उस के नंबर पर फोन करते रहे. उस के फोन की घंटी तो बजती थी, पर कोई फोन नहीं उठा रहा था. अगले दिन सुबह राजेंद्र सिंह घर पहुंचा और सोमपाल कौर से पूरी बात सुनने के बाद भाई की तलाश में निकल पड़ा.

राजेंद्र सिंह ने आसपास के गांवों में रहने वाले अपने रिश्तेदारों तथा उस के यारदोस्तों के यहां पता किया पर वह किसी के यहां नहीं गया था. बलजिंदर काफी हंसमुख और मिलनसार युवक था. वह गांव वालों के सुखदुख में काम आता था. इसलिए गांव के कई लोग और उस के दोस्त काफी परेशान थे और उस की तलाश में जुटे हुए थे.

लेकिन 3 दिनों तक ढूंढने के बाद भी बलजिंदर का कोई सुराग नहीं मिला. आखिर में ग्रामप्रधान और अन्य लोगों के कहने पर 19 अप्रैल, 2017 को राजेंद्र सिंह ने थाना सदर मलौट जा कर अपने भाई बलजिंदर सिंह की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

थाना सदर मलौट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने उसे आश्वासन दिया कि वह उस के भाई को ढूंढने की हर संभव कोशिश करेंगे. पुलिस अपना काम अपने तरीके से कर रही थी, पर राजेंद्र सिंह भी पुलिस के भरोसे नहीं बैठा था. उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि शाम 6 बजे तक घर लौटने वाला उस का भाई आखिर अचानक कहां गायब हो गया.

20 अप्रैल को राजेंद्र सिंह गांव के अपने दोस्तों हरदीप, बलजिंदर और जालंधर सिंह के साथ अपने भाई की तलाश कर के राजस्थान फीडर नहर के किनारे से गांव की ओर लौट रहा था तो भुल्लर गांव के पास उन्हें भयानक दुर्गंध का सामना करना पड़ा. जिज्ञासावश सभी ने नहर में झांक कर देखा तो नहर के किनारे सिर पर बांधने वाला केसरी रंग का पटका नजर आया था.

हालांकि वहां इतनी दुर्गंध थी कि खड़ा होना मुश्किल था. राजेंद्र सिंह के दोस्त नहर की ओर जाने से मना कर रहे थे, पर राजेंद्र सिंह पटका देख कर आगे जाना चाहता था. क्योंकि उस का भाई ज्यादातर केसरी रंग का ही पटका बांधा करता था. उस जगह नहर में बांध सा बना था, इसलिए वहां पानी रुका हुआ था.

राजेंद्र सिंह ने जब नीचे पानी में झांक कर देखा तो उसे नहर में एक लाश दिखाई दी. उस ने चिल्ला कर अपने दोस्तों को आवाज दी. सभी ने पानी में उतर लाश बाहर निकाली. वह लाश बलजिंदर सिंह की थी.

अपने जवान भाई की लाश देख राजेंद्र दहाड़े मार कर रोने लगा. उस के एक दोस्त ने जा कर यह सूचना थाना सदर मलौट पुलिस को दी. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर परमजीत सिंह, सबइंसपेक्टर श्रवण सिंह, अजमेर सिंह, हैडकांस्टेबल गुरमीत सिंह, गुरजीत सिंह और कांस्टेबल रणदीप सिंह के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी थी.

पुलिस ने लाश और पटका कब्जे में ले कर पंचनामा तैयार कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने लौट कर बलजिंदर सिंह उर्फ बिल्ला की गुमशुदगी को लाश बरामदगी दिखा कर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201/34 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

शुरुआती जांच में इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने सोमपाल कौर और उन के पड़ोसियों के बयान लिए. मृतक बलजिंदर के खास दोस्तों से भी पूछताछ की, पर उन्हें कोई सुराग नहीं मिला. मृतक बेहद मिलनसार था, उस की ना किसी से दुश्मनी थी, न लड़ाईझगड़ा. किसी से कोई लेनदेन भी नहीं था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस के अनुसार मृतक की हत्या गला घोंट कर की गई थी.  उस के पेट में नशे के अंश भी पाए गए.

पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के घर वालों को सौंप दी गई. घर वालों ने उसी दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया. जांच में जब कहीं कोई बात सामने नहीं आई तो इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने गांव के मुखबिरों का सहारा लिया. मुखबिरों ने टोह लेने के बाद बताया कि गांव के ही हरबंस सिंह की पत्नी परमजीत कौर और मृतक की पत्नी सोमपाल कौर में कुछ ज्यादा ही पट रही है.

परमजीत कौर को ले कर मृतक का अपनी पत्नी से कई बार झगड़ा भी हुआ था. वजह यह थी कि गांव में कोई भी परमजीत कौर को अच्छी नहीं समझता था. उस की गिनती गलत औरतों में होती थी. मुखबिर ने यह भी बताया कि इन दिनों सोमपाल कौर रोजाना परमजीत कौर के साथ काम करने गांव के ही जाट जमींदार गुरप्रीत सिंह उर्फ पिंदा के खेतों में जाती है और काम खत्म होने के बाद सोमपाल कौर अकेली ही पिंदा के घर पर कईकई घंटे गुजारती है.

इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने सीधे परमजीत कौर पर हाथ डालने से पहले पिंदा के बारे में पता करवाया. पता चला कि पिंदा अय्याश किस्म का जमींदार है. उस का अपनी पत्नी से तलाक का केस चल रहा है. गांव की कई जरूरतमंद खूबसूरत औरतों से उस के संबंध हैं. बहलाफुसला कर काम दिलवाने के बहने परमजीत कौर ही उन औरतों को पिंदा के यहां ले आती थी.

परमजीत कौर, गुरप्रीत कौर और पिंदा के बारे में ठोस जानकारी मिलते ही इंसपेक्टर परमजीत सिंह ने गुपचुप तरीके से पूछताछ के लिए परमजीत कौर और पिंदा को थाने बुलवा लिया. पहले उन्होंने परमजीत कौर से पूछताछ करने का फैसला लिया. पूछताछ से पहले उन्होंने लेडी कांस्टेबल जसवीर कौर को उस के कमरे में भेजा.

लेडी कांस्टेबल ने धमकाते हुए परमजीत कौर को चेतावनी दी कि साहब बडे गर्ममिजाज हैं. उन की बात का सीधासच्चा जवाब नहीं दिया तो समझो तुम्हारी फांसी पक्की है. इसलिए वह जो भी पूछें, सचसच जवाब देना. परमजीत सिंह ने परमजीत कौर पर मनोवैज्ञानिक दबाव डाल कर पूछा, ‘‘देखो, मैं जानता हूं कि बलजिंदर को तुम सब ने मिल कर क्यों और कैसे मारा है, फिर भी मैं तुम्हें इस शर्त पर बचा सकता हूं कि तुम अपने मुंह से मुझे पूरी बात बता दो. नहीं तो दूसरों के चक्कर में तुम भी फांसी…’’

‘‘नहीं…नहीं सरदार जी, मुझे फांसी नहीं चढ़ना है. मैं तो पहले ही बेवजह इस चक्कर में फंस गई.’’ परमजीत कौर ने इंसपेक्टर परमजीत सिंह की बात पूरी होने से पहले ही एक सांस में सच उगल दिया. उस का बयान लेने के बाद परमजीत सिंह ने पुलिस टीम भेज कर गांव से मृतक बलजिंदर की पत्नी सोमपाल कौर तथा कुलविंदर सिंह उर्फ भूप को थाने बुलवा लिया.

अगले दिन पुलिस ने परमजीत कौर, सोमपाल कौर, गुरप्रीत सिंह उर्फ पिंदा तथा कुलविंदर सिंह और भूप को बलजिंदर सिंह उर्फ बिल्ला की हत्या के आरोप में अदालत में पेश कर के 23 अप्रैल तक के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान चारों से पूछताछ में बलजिंदर की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह दूसरों की बातों में आ कर अपना घर बरबाद करने वाली बेअक्ल औरत की जुर्म भरी कहानी थी, जिस ने दूसरों के महलों के ख्वाब देख कर अपना झोपड़ा फूंक दिया था.

शादी के बाद सोमपाल कौर बड़ी खुश थी. बलजिंदर जैसा सुंदर, हृष्टपुष्ट, नेक, कमाऊ और मेहनती पति पा कर जैसे उसे सब कुछ मिल गया था. गरीब परिवार की बेटी गरीब परिवार में ही ब्याह कर आई थी. इसलिए उस के ना कोई ऊंचे ख्वाब थे, न कोई बड़ी महत्वाकांक्षा. बस 2 वक्त की रोटी और शांति से परिवार कर गुजारा होता रहे, यही उस की कामना थी.

बलजिंदर के लाख मना करने पर भी उस ने कंधे से कंधा मिला कर उस के साथ मेहनत की और पैसा जमा कर के कच्चे घर की जगह पक्का घर बनवा लिया. संतान के रूप में बेटा पैदा हुआ तो वह निहाल हो गई. कुल मिला कर सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. करीब 2 साल पहले उस ने लोगों के यहां काम करना बंद कर दिया था. अब उस का सारा समय बेटे अभि के लालनपालन में गुजरता था. पतिपत्नी अपने इस जीवन से संतुष्ट थे. इसी बीच अचानक बलजिंदर बीमार हो गया. बीमारी की वजह से वह 2-3 महीने तक काम पर नहीं जा पाया, जिस से घर की आर्थिक स्थिति डगमगा गई.

पति से पूछ कर सोमपाल कौर ने दूसरे के खेतों में काम करना शुरू कर दिया. कुछ समय बाद बलजिंदर ठीक हो गया तो उस ने सोमपाल कौर को घर पर ही रहने के लिए कहा, पर सोमपाल ने पति को समझाते हुए कहा, ‘‘इस में हर्ज क्या है, घर पर मैं सारा दिन खाली ही बैठी रहती हूं. चार पैसे जमा हो जाएंगे तो भविष्य में बेटे के काम आएंगे.’’ सोमपाल कौर की बात सही थी. बलजिंदर चुप रह गया. अब पतिपत्नी दोनों सुबह अभि को स्कूल भेज कर काम पर निकल जाते. स्कूल से लौट कर अभि अपने ताया राजेंद्र के घर चला जाता था.

लगभग एक साल पहले की बात है. सोमपाल कौर शाम को काम से घर लौट रही थी तो रास्ते में पिंदा के खेत पड़ते थे. पिंदा की नजर उस पर पड़ी तो वह पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया. उस का पिछले 2 सालों से अपनी पत्नी से तलाक का मुकदमा चल रहा था. उस की रातें रंगीन करने का इंतजाम परमजीत कौर किया करती थी.

पिंदा ने जब सोमपाल कौर को देखा तब वह नहीं जानता था कि यह कौन है. उसे परमजीत कौर के माध्यम से पता चला कि वह अपने गांव की ही है तो उस ने परमजीत कौर के सामने नोट फेंकते हुए कहा कि उसे हर हाल में सोमपाल कौर चाहिए. परमजीत कौर ऐसे कामों में माहिर थी. उस ने सोमपाल कौर को फंसाने के लिए ऐसा जाल फेंका कि ना चाहते हुए भी वह परमजीत कौर की बातों में आ कर पिंदा के बिस्तर पर जा पहुंची.

धीरेधीरे दोनों को एकदूसरे के शरीर का ऐसा चस्का लगा कि दोनों साथ रहने के सपने देखने लगे. पिंदा ने सोमपाल कौर के लिए अपनी तिजोरी का मुंह खोल दिया था. गरीब परिवार की सोमपाल कौर को लगने लगा कि अब वह जमीनदारनी बनने वाली है. लेकिन बलजिंदर के रहते यह संभव नहीं था. फिर भी यह खेल जैसे-तैसे गुपचुप तरीके से चलता रहा. लेकिन ऐसा कब तक संभव था.

आखिर एक दिन यह खबर बलजिंदर के कानों तक पहुंच ही गई. उस ने सोमपाल कौर को प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘कल से तुम बाहर काम पर जाना बंद कर दो और घर में रह कर बेटे की परवरिश पर ध्यान दो. कमाने के लिए मैं काफी हूं.’’

लेकिन सोमपाल ने बलजिंदर का कहना मानने से इनकार कर दिया. इस बात को ले कर घर में तनाव रहने लगा क्योंकि सोमपाल कौर ने खेतों में काम करना बंद नहीं किया था. लेकिन अब उसे इस बात का डर सताने लगा था कि कभी भी कुछ भी हो सकता है. इसी बात को ध्यान में रख कर एक दिन उस ने पिंदा से कहा, ‘‘जो करना है जल्दी करो, क्योंकि अब मैं ज्यादा दिनों तक घर में बगावत नहीं कर सकती. हमारे रिश्तेदारों को भी खबर लग गई है.’’

‘‘बताओ, क्या करना है.’’ पिंदा ने सोमपाल को बांहों में भर कर कहा, ‘‘कहो तो बलजिंदर का काम तमाम कर देते हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं…’’ घबरा कर सोमपाल कौर बोली, ‘‘यह ठीक नहीं है. अगर हम फंस गए तो मेरे बेटे अभि का क्या होगा?’’

‘‘तुम चिंता मत करो, बलजिंदर को हम इस तरह से रास्ते से हटाएंगे कि किसी को हम पर शक नहीं होगा.’’

यह 2 अप्रैल की बात है. अगले दिन पिंदा के घर पर बलजिंदर की हत्या की योजना बनाई गई. इस योजना में पिंदा ने सोमपाल कौर के अलावा परमजीत कौर और गांव के ही कुलविंदर सिंह उर्फ भूप को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया. योजना यह थी कि जिस दिन बलजिंदर का भाई राजेंद्र कमबाइन चलाने किसी दूसरे गांव जाए, उसी दिन यह काम कर दिया जाएगा.

गेहूं की कटाई शुरू हो चुकी थी. राजेंद्र बैसाखी वाले दिन पड़ोसी गांव लखमी रेहाणा चला गया. उसी दिन यानी 14 अप्रैल, 2017 की शाम जब बलजिंदर अपने काम से घर लौट रहा था तो रास्ते में उसे कुलविंदर सिंह और पिंदा मिल गए. बलजिंदर उन के साथ जाना नहीं चाहता था, पर बैसाखी मनाने के बहाने वे उसे जबरदस्ती घर ले गए.  परमजीत कौर और सोमपाल कौर दूसरे कमरे में मौजूद थीं.

वहां शराब का दौर चला और बलजिंदर को अधिक शराब पिला कर उसे नशे में कर दिया गया इस के बाद चारों उसे बातों में उलझा कर भुल्लर गांव के पास नहर पर ले गए. चूंकि बलजिंदर नशे का आदी नहीं था, इसलिए उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. बलजिंदर वही कर रहा था, जो वे कह रहे थे. नशे की अधिकता की वजह से वह सीधा खड़ा भी नहीं हो पा रहा था.

बहरहाल, नहर के पास पहुंच कर चारों ने उसी के सिर पर बंधे पटके को उस के गले में डाल कर कस दिया. सोमपाल कौर ने उस के बाजू और परमजीत कौर ने उस की टांगें पकड़ीं. पिंदा और कुलविंदर ने दोनों ओर से पटका खींच कर गला कसा. इस के बाद लाश नहर में फेंक कर सभी अपनेअपने घर चले गए थे. योजनानुसार रात 11 बजे सोमपाल कौर ने राजेंद्र को फोन कर के बलजिंदर के घर न आने की जानकारी दी थी.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने चारों आरोपियों को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

3 महीने बाद खुला सिर कटी लाश का राज – भाग 2

दिलीप को जब शंका हुई तो उस ने 13 मार्च, 2023 को बैतूल गंज पुलिस थाने में जा कर अपनी बहन राधा की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. उस ने पुलिस को बताया कि उस की बहन राधा और जीजा शैलेंद्र के बीच अकसर विवाद होता रहता था. उसे शंका है कि कहीं उस के जीजा ने बहन के साथ कोई बुरा सुलूक न कर दिया हो.

मोबाइल लोकेशन से मिला सुराग

13 मार्च, 2023 को राधा के भाई दिलीप ने जब राधा की गुमशुदगी दर्ज कराई तो पुलिस ने राधा के पति शैलेंद्र राजपूत व घर वालों को पूछताछ के लिए थाने में तलब किया, मगर शैलेंद्र रंगपंचमी से ही अपने घर से फरार हो गया था. इस से पुलिस का शैलेंद्र पर शक और गहरा गया. पुलिस ने जब शैलेंद्र के पुराने आपराधिक रिकौर्ड की जांच की तो पता चला कि उस की पहली पत्नी कल्पना की मौत आग लगने की वजह से हुई थी. शैलेंद्र की कल्पना से एक बेटी थी, जिस की शादी हो चुकी है. कल्पना की मौत के बाद शैलेंद्र ने राधा से शादी कर ली थी.

कल्पना के मायके वालों ने शैलेंद्र पर कोतवाली थाने में दहेज प्रताडऩा के साथ जला कर मारने का मुकदमा दर्ज कराया था. राधा को भी शैलेंद्र प्रताडि़त करता रहता था, इस बात की जानकारी राधा के भाई दिलीप को भी थी. जब भी दिलीप शैलेंद्र से इस बारे में राधा से बात करता तो राधा भाई को समझा कर कहती, ‘‘भैया, घरगृहस्थी में सब चलता रहता है, अपने बेटों की खातिर मैं पति की प्रताडऩा भी सह लूंगी.’’

भाई ने की लाश की शिनाख्त

राधा के भाई दिलीप डांगी को जब बैतूल के रानीपुर थाना क्षेत्र में 29 दिसंबर, 2022 को मिली एक महिला की सिर कटी लाश की फोटो दिखाई गई तो शरीर की बनावट और कपड़ों से दिलीप ने उस की पहचान राधा के तौर पर की. पुलिस को सिर कटी लाश के पास पैर की अंगुली में पहनी जाने वाली बिछिया मिली थी. जब पुलिस ने राधा के घर की तलाशी ली तो उसी प्रकार की दूसरी बिछिया राधा के सामान में मिली थी. इस से पुलिस को पूरा यकीन हो गया था कि सिर कटी लाश राधा राजपूत की ही है. पति शैलेंद्र के फरार होने के बाद पुलिस का शक पति पर गया और पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी.

एसपी सिमाला प्रसाद और एडिशनल एसपी नीरज सोनी के निर्देश पर आरोपी की तलाश हेतु थाना रानीपुर की टीआई अपाला सिंह, इंसपेक्टर रविकांत डहेरिया, एसआई आबिद अंसारी, राकेश सरियाम, मोहित दुबे, राजेंद्र राजवंशी, वंशज श्रीवास्तव, एएसआई दीपक मालवीय, हैडकांस्टेबल तरुण पटेल, राजेंद्र धाड़से, हैडकांस्टेबल बलराम राजपूत, दीपेंद्र सिंह आदि की टीम गठित कर दी.

साइबर टीम ने सब से पहले शैलेंद्र के मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन महाराष्ट्र के पुणे शहर की मिल रही थी. पुलिस टीम ने 8 दिन की मशक्कत के बाद राधा के पति शैलेंद्र को पुणे महाराष्ट्र में श्रीनिवास कंपनी नौलखा उमरी के पास से गिरफ्तार किया. वहां अपने दोस्त गोविंद वरकड़े के साथ रह रहा था. गोविंद बैतूल के कत्लढाना इलाके का रहने वाला था. पुलिस ने शैलेंद्र को पुलिस थाने ला कर पूछताछ की तो पहले तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो वह टूट गया.

पति शैलेंद्र और नाबालिग बेटे को किया गिरफ्तार

शैलेंद्र ने पुलिस के सामने अपने नाबालिग बेटे के साथ मिल कर पत्नी की हत्या करने की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने हत्या के मामले में आरोपी पति शैलेंद्र राजपूत, नाबालिग बेटे और आरोपी को घर में छिपा कर रखने के मामले में गोविंद वरकड़े को गिरफ्तार कर जब पूछताछ की तो राधा की हत्या की कहानी से परदा उठ गया.

45 साल के शैलेंद्र राजपूत के पिता वन विभाग में बीट गार्ड के पद पर नौकरी करते थे. पिता की मौत के बाद उसे अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति मिल गई. शैलेंद्र आलसी और कामचोर स्वभाव का था. पिता की नौकरी मिलते ही आवारागर्दी करने वाले शैलेंद्र के दिन ही फिर गए. वह अपने ऐशोआराम के लिए नई कार ले आया. नौकरी से मिलने वाला पैसा वह शराब पीने और अय्याशी में खर्च करने लगा. नशे की लत और रंगीनमिजाज होने के कारण गलत तरीके से पैसा कमाने का आदी हो चुका था.

शैलेंद्र जंगल में सागौन की तस्करी करने लगा. कुछ समय पहले जंगल में बंकर बनाने के नाम पर उस ने सागौन की अवैध कटाई कर के लाखों रुपए की लकड़ी की खरीदफरोख्त की थी. बैतूल जिले के इतिहास में पहली बार वन विभाग का बंकर कांड सामने आया था, जिस में बंकर बना कर आरा मशीन लगा कर अवैध सागौन की कटाई की जाती थी. इस की जांच की गई तो उसे कुसूरवार मान कर नौकरी से बरखास्त कर उस के खिलाफ धारा 3.5 लोक संघ निवारण अधिनियम व 379, 120बी भादंवि का मामला दर्ज किया गया था. बैतूल के चिखलार में हुए बंकर कांड में शैलेंद्र को पुलिस ने आरोपी बनाया था, जिस से उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा था.

आशिकमिजाज था शैलेंद्र

शैलेंद्र की आशिकमिजाजी की वजह से पतिपत्नी के बीच अकसर विवाद होता रहता था. राधा के नाम उस के मायके सागर जिले के देवरी में एक प्लौट था, जिसे उस ने अपने भाई दिलीप की मदद से बेच दिया था. राधा पति की पैसे उड़ाने की आदत जानती थी, जिस के कारण मायके में बेचे गए प्लौट के पैसे राधा ने भाई के पास जमा करवा दिए थे, जिस से उस के दोनों बेटों के भविष्य में काम आ सके. इस बात को ले कर अकसर विवाद होता था. यही नहीं, शैलेंद्र के किसी दूसरी महिला से अवैध संबंधों को ले कर भी घर में झगड़े होते थे.

जवान बेटी ने मां के किए टुकड़े

मां की दी कुरबानी

24 अगस्त, 2015. शाजापुर शहर में डोल ग्यारस की धूम मची थी. गलीमहल्लों में ढोलढमक्का व अखाड़ों के साथ डोल निकाले जा रहे थे, वहीं दूसरी ओर मुसलिम समुदाय ईद की तैयारी में मसरूफ था. 25 अगस्त, 2015 की ईद थी. सो, हंसीखुशी से यह त्योहार मनाए जाने की तैयारी में जुटा यह समुदाय खरीदफरोख्त में मशगूल था. कुरबानी के लिए बकरों को फूलमालाओं से सजा कर सड़कों पर घुमाया जा रहा था. बाजार में खुशनुमा माहौल था. कपड़े और मिठाइयों की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लगी हुई थी.

शाजापुर के एक महल्ले पटेलवाड़ी के बाशिंदे इरशाद खां ने इस खुशनुमा माहौल में एक ऐसी दिल दहलाने वाली वारदात को अंजाम दे दिया कि सुनने वालों की रूह कांप गई. इरशाद खां ने अपने पड़ोसी आजाद की बकरी को गुस्से में आ कर छुरे से मार डाला. शायद वह बकरी इरशाद के घर में घुस गई थी और उस ने कुछ नुकसान कर दिया होगा, तभी इरशाद खां ने यह कांड कर दिया.

अपनी बकरी के मारे जाने की खबर लगते ही आजाद आपे से बाहर हो गया और उन दोनों के बीच तकरार शुरू हो गई. नौबत तूतूमैंमैं के बाद हाथापाई पर आ गई. इरशाद खां की 65 साला मां रईसा बी भी यह माजरा देख रही थीं. इरशाद खां द्वारा बकरी मार दिए जाने के बाद वे मन ही मन डर गई थीं. कोई अनहोनी घटना न घट जाए, इस के मद्देनजर वे अपने बेटे पर ही बरस पड़ीं. वे चिल्लाचिल्ला कर इरशाद खां को गालियां देने लगीं.

यह बात शाम की थी. हंगामा बढ़ता जा रहा था. इरशाद खां के सिर पर जुनून सवार होता जा रहा था. मां का चिल्लाना और गालियां बकना उसे नागवार लगा. पहले तो वह खामोश खड़ाखड़ा सुनता रहा, फिर अचानक उस का जुनून जब हद से ज्यादा बढ़ गया, तो वह दौड़ कर घर में गया और वही छुरा उठा लाया, जिस से उस ने बकरी को मार डाला था. लोग कुछ समझ पाते, इस के पहले इरशाद खां ने आव देखा न ताव और अपनी मां की गरदन पर ऐसा वार किया कि उन की सांस की नली कट गई. खून की फुहार छूटने लगी और वे कटे पेड़ की तरह जमीन पर गिर पड़ीं. उन का शरीर छटपटाने लगा.

इस खौफनाक मंजर को देख कर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए. रईसा बी का शरीर कुछ देर छटपटाने के बाद शांत हो गया. मामले की नजाकत देखते हुए इरशाद खां वहां से भाग खड़ा हुआ. रईसा बी के बड़े बेटे रईस को जब इस दिल दहलाने वाली वारदात का पता चला, तो वह भागाभागा घर आया. तब तक उस की मां मर चुकी थीं.

बेटे रईस ने इस वारदात की रिपोर्ट कोतवाली शाजापुर पहुंच कर दर्ज कराई. पुलिस ने वारदात की जगह पर पहुंच कर कार्यवाही शुरू की. हत्या के मकसद से इस्तेमाल में लाए गए छुरे की जब्ती कर के पंचनामा बनाया गया. मौके पर मौजूद गवाहों के बयान लिए गए. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए डा. भीमराव अंबेडकर जिला अस्पताल भेजा गया. इरशाद खां वहां से फरार तो हो गया था, लेकिन कुछ ही समय बाद पुलिस ने उसे दबोच कर अपनी गिरफ्त में ले लिया.

शाजापुर जिला कोर्ट में यह मामला 2 साल तक चला. जज राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने मामले की हर पहलू से जांच करते हुए अभियोजन पक्ष की दलीलों से सहमत होते हुए इरशाद खां को मां की गरदन काट कर हत्या करने के जुर्म में कुसूरवार पाया. 8 सितंबर, 2017 को जज ने फैसला देते हुए उसे ताउम्र कैद की सजा सुनाई. यह सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत सुनाई गई. साथ ही, कुसूरवार पर 2 हजार रुपए का जुर्माना किया गया. जुर्माना अदा न करने पर 2 साल की अलग से कैद की सजा सुनाई गई.

ईद के मौके पर एक बेटे ने बकरे की जगह अपनी मां की कुरबानी दे कर रोंगटे खड़े कर देने वाले कांड को अंजाम दिया. वही मां, जिस ने उसे 9 महीने पेट में रखा. पालपोस कर उस की हर मांग पूरी करते हुए बड़ा किया. लेकिन शाजापुर में एक बेटे की इस दरिंदगी ने मां की मम?ता को तारतार कर दिया. गुस्से में उठाया गया यह कदम उस परिवार पर भारी पड़ गया. मां जान से हाथ धो बैठी, जबकि उस के कत्ल के इलजाम में बेटा जेल चला गया.

3 महीने बाद खुला सिर कटी लाश का राज – भाग 1

27 दिसंबर, 2022 की बात है. बैतूल के रानीपुर थाना क्षेत्र में वन विभाग के बीट गार्ड शांतिलाल पचोरिया दोपहर के वक्त इलाके में गश्त कर रहे थे. उन्होंने महसूस किया कि हनुमान डोल के आसपास से बदबू आ रही थी. मौके पर जा कर उन्होंने देखा तो एक मरा हुआ बैल दिखाई दिया. उसे देख कर वह वापस लौट आए. दूसरे दिन 28 दिसंबर को जब बदबू ज्यादा आने लगी तो उन्होंने आसपास के इलाकों में सर्च की.

सर्चिंग के दौरान हनुमान डोल मंदिर से करीब 50 मीटर दूर एक पुलिया के नीचे प्लेटफार्म से सटी रेत पर चादर से लिपटा एक शव बीट गार्ड को दिखाई दिया. शव मिलने की सूचना जब तक उस ने थाना रानीपुर को दी, तब तक शाम हो चुकी थी. तीसरे दिन 29 दिसंबर, 2023 को जब रानीपुर पुलिस फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंची तो देखा कि शव के सिर्फ पैर दिख रहे थे. शव पत्थर और रेत में ढंका हुआ था. जब पुलिस टीम ने शव बाहर निकाला तो एक धड़ मिला, जिस के शरीर से सिर गायब था.

कपड़ों के लिहाज से यह लाश किसी महिला की थी. मौके पर पहुंचे एसडीपीओ रोशन जैन, टीआई अपाला सिंह को महिला का शव जिस हालत में मिला, उस से लग रहा था कि वह किसी मिडिल क्लास परिवार से है. जंगल में लाश मिलने की खबर सोशल मीडिया पर वायरल होते ही इलाके में दहशत का माहौल बन गया. घटना की सूचना तत्काल ही बैतूल जिले के आला अधिकारियों को दी गई.

सूचना मिलते ही जिले की एसपी सिमाला प्रसाद, एडिशनल एसपी नीरज सोनी, एसडीओपी रोशन जैन ने भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने के बाद एसपी ने टीआई को केस का जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद टीआई अपाला सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

सिर कटी लाश बनी पहेली

बैतूल जिले की पुलिस के लिए महिला की सिरकटी लाश पहेली बनी हुई थी. सिर न होने से महिला की शिनाख्त नहीं हो पा रही थी. लाश की शिनाख्त के लिए करीब 500 गुम महिलाओं की जानकारी जुटाने की कोशिश की गई, मगर पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल रहा था. पुलिस ने इस लाश से जुड़ी जानकारी अन्य थानों में देने के साथ सूचना देने वाले को 10 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा भी की थी. एसपी सिमाला प्रसाद ने इस मामले में स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया.

एसआईटी ने बैतूल और सीमावर्ती जिले होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, हरदा, खंडवा, खरगोन के अलावा भोपाल, इंदौर के साथ महाराष्ट्र के सीमावर्ती जिलों से गुम महिलाओं की जानकारी प्राप्त की, जिस में करीब 500 महिलाओं की जानकारी प्राप्त कर शव की पहचान करने की कोशिश की गई, मगर फिर भी कोई पुख्ता सुराग पुलिस को नहीं मिल सका.

राधा की गुमशुदगी से हुआ खुलासा

मध्य प्रदेश के बैतूल में विवेकानंद वार्ड की रहने वाली 41 साल की राधा राजपूत अपने पति और 14 साल के बेटे शौर्य और 9 साल के शक्ति के साथ रहती है. राधा का मायका देवरी जिला सागर में है. पिछले 2 महीनों से राधा का भाई दिलीप डांगी कई बार अपनी बहन राधा से बात करने के लिए संपर्क कर चुका था, लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी. बहनोई शैलेंद्र को भी वह कई बार फोन कर चुका था, मगर उस का फोन आउट औफ कवरेज रहता था.

होली के दिन की बात है. रात में खाना खा कर दिलीप ने अपने जीजा को फोन मिलाया तो इस बार शैलेंद्र ने फोन काल रिसीव करते हुए पूछा, ‘‘हां बोलो दिलीप भाई, बहुत दिनों के बाद याद किया. क्या हालचाल हैं तुम्हारे?’’

“अरे जीजाजी सब ठीक है, बहुत दिनों से हमारी राधा दीदी से बात नहीं हुई तो सोचा आज होली का त्यौहार है, इसी बहाने उस से बात कर लूं.’’ दिलीप ने शैलेंद्र से कहा.

“लेकिन तुम्हारी जीजी तो 8-10 दिन पहले ही देवरी जाने की बोल कर गई है, क्या तुम्हारे पास नहीं पहुंची?’’ शैलेंद्र ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा.

“अरे जीजा, काहे मजाक कर रहे हो. चलो जल्दी से राधा से बात कराओ,’’ दिलीप बोला.

“अरे भाई, मैं मजाक नहीं कर रहा, सच बोल रहा हूं. राधा घर पर यही बोल कर निकली है कि काफी दिनों से वह अपने मायके नहीं गई है, इसलिए होली पर गुलाल लगाने भाई के घर जा रही है. यकीन न हो तो शक्ति और शौर्य से बात कर लो.’’

शैलेंद्र ने दिलीप को यकीन दिलाते हुए मोबाइल अपने बड़े बेटे शौर्य को पकड़ाते हुए कहा. शौर्य ने दिलीप को बताया, ‘‘मामाजी, मम्मी तो यहां से यही बोल कर गई है कि कुछ दिनों के लिए मामा के यहां जा रही हूं.’’

पड़ोसियों की बातों से बढ़ा शक

दिलीप को काटो तो खून नहीं वह अपनी बहन राधा को ले कर चिंतित हो गया, दिलीप को पता था कि उस का जीजा राधा से पैसों को ले कर आए दिन झगड़ा करता रहता है. राधा के बारे में उस के मन में तरहतरह के खयाल आ रहे थे. दिलीप ने उस के दूसरे रिश्तेदारों से राधा की खैरखबर मांगी, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी.

आखिर में दिलीप रंगपंचमी पर बहन के घर बैतूल पहुंचा तो उस का जीजा शैलेंद्र घर पर नहीं मिला. अपने भांजे शौर्य और शक्ति से जब बात की तो वे भी कोई संतोषजनक जबाब नहीं दे पाए. राधा के दोनों बेटे भी डरेसहमे से घर पर मिले. पड़ोस में रहने वाली महिलाओं ने बताया कि राधा को उन्होंने करीब 2 माह से नहीं देखा. जब बच्चों से पूछते हैं तो वे यही जबाब देते हैं कि मम्मी मामा के यहां गई हुई हैं.

दर्द में डूबी जिंदगी: न प्यार मिला न पति

21 अक्तूबर, 2016 की रात साढ़े 10 बजे के करीब अभिनव पांडेय ससुराल पहुंचा तो नशा अधिक होने की वजह से उस के कदम डगमगा रहे थे. पति की हालत देख कर नेहा का पारा चढ़ गया. ससुर घनश्याम शुक्ला को भी दामाद की यह हरकत अच्छी नहीं लगी, इसलिए वह उठ कर दूसरे कमरे में चले गए. अभिनव ने नेहा से साथ चलने को कहा तो उस ने उस के साथ जाने से मना कर दिया. अभिनव नशे में तो था ही, उसे भी तैश आ गया. गुस्से में वह नेहा से मारपीट करने लगा. पहले तो घनश्याम शुक्ला ने बेटी को बचाने का प्रयास किया, लेकिन जब वह उसे नहीं छुड़ा पाए तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी.

थोड़ी ही देर में मोटरसाइकिल से 2 पुलिस वाले उन के घर आ गए और पत्नी के साथ मारपीट करने के आरोप में अभिनव को हिरासत में ले लिया. अभिनव को पता था कि उस के ससुर घनश्याम शुक्ला ने फोन कर के पुलिस वालों को बुलाया है. वह वैसे भी दुखी और परेशान था, क्योंकि उन्हीं की वजह से नेहा ससुराल नहीं जा रही थी. पुलिस को देख कर उस का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने आगेपीछे की चिंता किए बगैर अपना लाइसेंसी रिवौल्वर निकाला और पुलिस के सामने ही घनश्याम शुक्ला के सीने में 2 गोलियां उतार दीं. गोली लगते ही घनश्याम शुक्ला जमीन पर गिर पड़े. उन्हें अस्पताल ले जाया जाता, उस के पहले ही उन की मौत हो गई.

इस के बाद अभिनव नेहा की ओर बढ़ा, लेकिन तब तक पुलिस वालों ने उसे पकड़ कर उस का रिवौल्वर कब्जे में ले लिया था. कंट्रोल रूम की सूचना पर आए सिपाहियों ने घटना की सूचना थाना कैंट के थानाप्रभारी बृजेश कुमार वर्मा को दी तो थोड़ी ही देर में वह भी सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. अभिनव को गिरफ्तार कर लिया गया था. थाने आ कर थाना कैंट पुलिस ने नेहा की तहरीर पर घनश्याम शुक्ला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अभिनव को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अभिनव द्वारा दिए गए बयान एवं नेहा ने पुलिस को अपनी जो आपबीती सुनाई, उस के अनुसार नेहा की जो दर्दभरी कहानी सामने आई, वह सचमुच द्रवित करने वाली थी.

37 वर्षीया नेहा उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले घनश्याम शुक्ला की दूसरे नंबर की बेटी थी. जनरल कंसल्टेंट का काम करने वाले घनश्याम शुक्ला की पत्नी कुसुम शुक्ला भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की एजेंट थीं. शहर में घनश्याम शुक्ला की गिनती रईसों में होती थी. पतिपत्नी खुले विचारों के थे, शायद इसी का असर था कि उन की बड़ी बेटी नम्रता ने रुस्तमपुर निवासी विष्णु तिवारी से प्रेम विवाह कर लिया था. विष्णु तिवारी उन्हीं की जाति का था, इसलिए शुक्ला दंपति ने इस रिश्ते को स्वीकार कर बेटीदामाद को आशीर्वाद दे दिया था.

उस समय नेहा 8वीं में पढ़ रही थी. लेकिन जब उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के जीजा विष्णु तिवारी का दिल उस पर आ गया. जीजासाली का रिश्ता तो वैसे भी हंसीमजाक का होता है, इसलिए विष्णु तिवारी इस रिश्ते का फायदा उठाते हुए नेहा से हंसीमजाक के बहाने छेड़छाड़ करने लगा.

जीजा के मन में क्या है, उस की हरकतों से नेहा को जल्दी ही इस का अंदाजा हो गया. जीजा की नीयत का अंदाजा होते ही वह होशियार हो गई. विष्णु तिवारी ने पहले तो राजीखुशी से नेहा को अपनी बनाने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि नेहा राजीखुशी से उस के वश में आने वाली नहीं है तो नेहा को घर में अकेली पा कर उस ने जबरदस्ती करने की भी कोशिश की. लेकिन नेहा ने जीजा को अपने मकसद में कामयाब नहीं होने दिया. उस ने खुद को किसी तरह बचा लिया.

विष्णु तिवारी की हरकतों से परेशान हो कर नेहा ने आत्महत्या करने की कोशिश की. क्योंकि वह जानती थी कि उस की बातों पर घर में कोई विश्वास नहीं करेगा. नेहा फांसी का फंदा गले में डाल पाती, संयोग से कुसुम आ गईं और उन्होंने उसे बचा कर आश्वासन दिया कि वह विष्णु तिवारी को रोकेगी. पर शायद उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, क्योंकि इस के बाद भी वह नेहा से पहले की ही तरह छेड़छाड़ करता रहा. तंग आ कर नेहा ने जीजा की शिकायत बहन से कर दी. लेकिन बहन ने भी पति को कुछ कहने के बजाय उसे ही डांटा और भविष्य में पति के चरित्र पर कीचड़ न उछालने की हिदायत भी दी. इस के बाद नेहा विष्णु तिवारी से बच कर रहने लगी.

जिन दिनों नेहा बीए कर रही थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात विष्णु तिवारी के भांजे अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी से हुई. दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. अभिनव नेहा के घर भी आनेजाने लगा. उसे नेहा के घर आनेजाने में कोई दिक्कत न हो, इस के लिए उस ने नेहा के भाई कपिल उर्फ मोहित से दोस्ती कर ली. अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी कैंट थाना के बेतियाहाता मोहल्ले में अपनी मां और छोटे भाई उत्कर्ष के साथ रहता था. विष्णु तिवारी के रिश्ते से अभिनव नेहा का भांजा लगता था, लेकिन प्यार रिश्तेनाते कहां देखता है. बोंटी भी रिश्तेनाते भूल कर नेहा के प्रेम में डूब गया था.

अभिनव नेहा से शादी करना चाहता था, लेकिन इस के लिए नेहा के मातापिता से बात करना जरूरी था. उसे लगा कि अगर वह मामा से कहे तो शायद बात बन जाए. उस ने नेहा से अपने प्रेम की बात बता कर विष्णु तिवारी से मदद मांगी तो मदद करने के बजाय वह भड़क उठा. उस ने अभिनव को हद में रहने की हिदायत दी. पर अभिनव ने तो नेहा से प्रेम किया था, इसलिए मामा की धमकी की चिंता किए बगैर अपने प्रेम के बारे में मां को बता कर उन्हें नेहा का हाथ मांगने के लिए उस के घर जाने को कहा.

अभिनव की मां नेहा का रिश्ता मांगने घनश्याम शुक्ला के घर जातीं, उस के पहले ही विष्णु तिवारी ने सासससुर से अभिनव और नेहा के प्रेम के बारे में नमकमिर्च लगा कर बता कर उन्हें भड़का दिया. इस का नतीजा यह निकला कि अभिनव की मां नेहा का रिश्ता मांगने आईं तो कुसुम ने उन्हें जलील कर के खाली हाथ लौटा दिया. इस की एक वजह यह भी थी कि कुसुम ने नेहा के लिए एलआईसी के मुंबई के एग्जीक्यूटिव डाइरेक्टर राधेमोहन पांडेय के बेटे मनीष कुमार पांडेय को पसंद कर रखा था.

मनीष लखनऊ सचिवालय में दलाली कर के अच्छी कमाई कर रहा था. कुसुम ने जल्दी से मनीष से नेहा का विवाह कर दिया. नेहा मनीष की दुलहन बन कर ससुराल चली गई. ससुराल में कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद ससुराल वालों की असलियत सामने आ गई. वे मायके से दहेज लाने के लिए नेहा को परेशान करने लगे.

नेहा को परेशान करने की एक वजह यह भी थी कि विष्णु तिवारी ने नेहा से बदला लेने के लिए अभिनव से उस के संबंधों की बात मनीष को बता दी थी. इस के अलावा अभिनव नेहा की ससुराल फोन कर के उस से बातचीत किया करता था. नेहा को परेशान करने वाली बात घनश्याम और कुसुम को पता चली तो लखनऊ जा कर वे उसे गोरखपुर ले आए.

मायके में ही नेहा ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम मौलि रखा गया. मौलि के पैदा होने की सूचना घनश्याम शुक्ला ने नेहा की ससुराल वालों को भी दी थी, लेकिन वहां से कोई नहीं आया था. धीरेधीरे एक साल बीत गया. जब ससुराल से नेहा को लेने कोई नहीं आया तो अगस्त, 2004 में उस ने गोरखपुर के महिला थाना में भादंवि की धाराओं 498ए, 323, 342, 313 व 3/4 के तहत ससुराल वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

संकट की इस घड़ी में अभिनव ने नेहा का हर तरह से साथ दिया. परिणामस्वरूप उन का प्यार एक बार फिर से जाग उठा. इस की जानकारी विष्णु तिवारी को हुई तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा. उस ने साली का साथ देने के बजाय मनीष का साथ दिया और नेहा पर मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव डालने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि वह मनीष के साथ मिल कर ठेकेदारी करने लगा था.

चूंकि अभिनव हर तरह से नेहा का साथ दे रहा था, इसलिए 25 नवंबर, 2005 को उसे सबक सिखाने के लिए विष्णु तिवारी कुछ लोगों के साथ उस के घर जा पहुंचा. संयोग से उस समय अभिनव घर पर नहीं था. बाद में उस ने विष्णु तिवारी के खिलाफ थाना कैंट में भादंवि की धारा 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कराया. अभिनव द्वारा मुकदमा दर्ज कराने के बाद कुसुम नेहा से नाराज हो गईं. बेटी से नाराज होने के बाद उस की मदद करने वाले अभिनव के खिलाफ उन्होंने 16 फरवरी, 2006 को थाना कैंट में ही भादंवि की धाराओं 498ए, 506, 328, 352, 307 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन का कहना था कि 15 फरवरी को अभिनव ने जान से मारने के लिए उन पर हमला किया था. उस समय नेहा ने विष्णु तिवारी और मनीष की वजह से जहर खा लिया था, जिस की वजह से वह अस्पताल में भरती थी. दरअसल विष्णु तिवारी ने रिवौल्वर की नोक पर मनीष के सामने ही उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. तब अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने घर में रखा जहर खा लिया था.

17 फरवरी, 2006 को अस्पताल में पत्रकारों के सामने अभिनव पांडेय ने ऐलान किया कि वह नेहा और उस की बेटी को अपनाने को तैयार है. इस के अगले दिन 18 फरवरी को अस्पताल में ही नेहा पर जानलेवा हमला हुआ. अगले दिन 19 फरवरी को अभिनव नेहा को एंबुलैंस से एसएसपी दीपेश जुनेजा के आवास पर ले गया, जहां उस ने उन्हें पूरी बात बताई.

इस के बाद एसएसपी के आदेश पर थाना कैंट में विष्णु तिवारी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 323, 354, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ, जिस की जांच बेतियाहाता चौकीप्रभारी मनोज पटेल को सौंपी गई. मनोज पटेल ने जांच में सारे आरोप सत्य पाए. लेकिन वह उसे गिरफ्तार कर पाते, उस के पहले ही उस ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टे ले लिया.

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद नेहा अभिनव के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. चूंकि नेहा का अभी मनीष से तलाक हुआ नहीं था, इसलिए वह अभिनव से शादी नहीं कर सकती थी. आखिर घनश्याम शुक्ला ने कोशिश कर के किसी तरह नेहा को मनीष से आजादी दिला दी. मनीष से छुटकारा मिलने के बाद नेहा ने अभिनव पांडेय से मंदिर में शादी कर ली. नेहा को अभिनव से भी 2 बेटियां पैदा हुईं. रियल एस्टेट कंपनी में मैनेजर की नौकरी करने वाले अभिनव ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने लगा.

इस धंधे से उस ने खूब कमाई की, लेकिन उसी बीच वह शराब पीने लगा. नेहा को अभिनव का शराब पीना अच्छा नहीं लगता था. वह उसे रोकती तो अभिनव उस से मारपीट करता. जब अभिनव नेहा को ज्यादा परेशान करने लगा तो उस ने मांबाप से की शिकायत की. घनश्याम शुक्ला ने अभिनव को समझाया कि वह पत्नी को सलीके से रखे. ससुर की यह बात उसे काफी बुरी लगी. इस के बाद नेहा के प्रति उस का व्यवहार और खराब हो गया.

दुर्भाग्य से उसी बीच नेहा की मां कुसुम की अचानक मौत हो गई. कुसुम की मौत की बाद घनश्याम शुक्ला अकेले पड़ गए. नेहा पिता को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए अभिनव से बात कर के वह बच्चों को ले कर मायके चली आई. अभिनव जबतब शराब पी कर ससुराल आता और लड़ाईझगड़ा कर के नेहा से मारपीट करता. घनश्याम शुक्ला उसे समझाते, पर उस की तो आदत पड़ चुकी थी. वह भला कैसे सुधरता. उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. लेकिन उस दिन नशे में अभिनव ने जो किया, उस की तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. आखिर नशे में उस ने अपना घर ही नहीं, जिंदगी भी बरबाद कर ली.

पूछताछ के बाद पुलिस ने अभिनव को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अभिनव के जेल जाने के बाद उस के घर वाले नेहा पर मुकदमा वापस लेने का दबाव डाल रहे हैं, जिस की वजह से नेहा बच्चों को ले कर छिप कर रह रही है. कथा लिखे जाने तक अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी की जमानत नहीं हुई थी. थाना कैंट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी अभिनव पांडेय के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर न्यायालय में दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं.

अय्याश शौहर बदचलन बीवी

22 नवंबर, 2022 को पुष्पा जब रात को बाजार से सामान खरीद कर घर लौटी, तब उस का मन काफी बेचैन था. उसे बारबार अपने भाई गुमान सिंह की याद आ रही थी. कई दिन हो गए थे उसे भाई मिले हुए. वह घर के पास ही अपने 17 साल के बेटे शानू के साथ रहता था. उस की एक दुकान थी. पत्नी आशा यादव से 9 साल पहले ही उस का तलाक हो चुका था. उस के बाद से बच्चे की देखभाल पुष्पा ही करती थी.

वह बड़ा होने के साथसाथ समझदार भी हो गया था, इस कारण पुष्पा उस की देखभाल के लिए भाई के घर जाने में कई बार नागा भी कर देती थी. फिर भी न जाने क्यों पुष्पा का मन उस रोज बेचैन था. रात के 9 बज चुके थे. अपने भाई की जिंदगी और शानू के बारे में सोचतेसोचते यह निर्णय लिया कि कल सब से पहले भाई से मिलने जाएगी. उस का और भतीजे का हालसमाचार मालूम करेगी. यही सोचतेसोचते कब उसे नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

डोडाबाई के रहने वाले चमन सिंह के बेटे गुमान सिंह के पास काफी जमीनजायदाद थी, लेकिन करीब 2 साल पहले वहां का मकान और दुकान बेच कर वह देहरादून आ कर रहने लगा था. वह अपनी जमीन आदि संभाल नहीं पा रहा था. अपनी ही मौजमस्ती की दुनिया में मशगूल रहता था और अपनी अनापशनाप बुरी आदतों पर पैसे खर्च करता रहता था. ऐशोआराम और मजे की जिंदगी में पैसे खत्म होने पर वह अपनी प्रौपर्टी ही बेच दिया करता था. वैसे वह अपनी बहन पुष्पा का भी काफी खयाल रखता था. बीचबीच में उस की तलाकशुदा बीवी भी अपने बेटे से मिलने के लिए उस के पास आ जातीथी. आशा भी उसी शहर के सेलाकुइ में रहती थी और वहीं एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर अपनी गुजरबसर कर रही थी. उसे अकसर पैसे की तंगी बनी रहती थी.

अगले रोज 23 नवंबर, 2022 को पुष्पा सुबहसुबह दिनचर्या से निपट कर नाश्ता किया और जो पकाया था, उस में से ही खानेका कुछ सामान टिफिन बौक्स में ले कर करीब साढ़े 9 बजे गुमान सिंह के पास गई. घर पर दोनों में से कोई नहीं मिला. बाहरदरवाजे पर ताला लगा था. उस ने सोचा शायद वह अपनी दुकान खोलने के लिए चला गया.

बहन पुष्पा को मिली मौत की खबर…

पुष्पा अपने घर आ कर घरेलू कामकाज में व्यस्त हो गई. उस रोज घर में काम भी काफी फैा हुआ था. साफसफाई भी करनीथी. सर्दी के मौसम में कपड़े धोने और सुखाने की समस्या को देखते हुए उस ने गुरुवार को धोए जाने वाले कपड़े भी धो दिए. अधिक काम होने के चलते पुष्पा दोपहर तक घर के काम में लगी रही. दोपहर में खाना खाने के बाद उसे थोड़ी झपकी आई और सो गई. तकिए के नीचे रखे मोबाइल की घंटी बजी और उस के तेज वाइब्रेशन से पुष्पा की आंखें खुल गईं. मोबाइल में अनजाना नंबर देख कर वह चौंक गई. काल रिसीव करने से पहले ही कट गई. तुरंत दूसरी काल आ गई. इस बार काल गुमान सिंह की थी. उस ने तुरंत काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो…हैलो!’’

उधर से जवाबी आवाज गुमान सिंह की नहीं थी. पुष्पा दोबारा बोली, ‘‘हैलो..हैलो! भैया बोल रहे हो, लेकिन तुम्हारी आवाज क्यों बदली हुई है?’’

“तुम्हारा नाम पुष्पा है, तुम गुमान सिंह की बहन हो? मैं सहसपुर थाने से एसएचओ गिरीश नेगी बोल रहा हूं.’’ पुष्पा ने थाने का नाम सुना तो समझ नहीं पाई कि आखिर क्या बात हो गई जो उस के भाई के मोबाइल से पुलिस वाला फोन कर रहा है. कहीं उस का मोबाइल तो नहीं खो गया या फिर गुमान ने कुछ कर दिया. लड़ाईझगड़े वगैरह. वह चिंतित हो गई. कुछ सेकेंड फोन कान से लगाए हुए चुप बनी रही. उस के कान में दोबारा आवाज आई, ‘‘हैलो… हैलो, आप सुन रही हैं न! जवाब दो!’’

“जी…जी, मैं पुष्पा ही बोल रही हूं. गुमान सिंह मेरा बड़ा भाई है. उस का फोन आप के पास कैसे आया?’’ पुष्पा बोली.

“सब मालूम हो जाएगा, तुम पहले अपने किसी परिचित के साथ बाबूवाला आ जाओ.’’ नेगी बोले.

“बाबूवाला?’’ पुष्पा ने आश्चर्य से पूछा.

“हां…हां बाबूवाला. लेकिन वह तो वहां नहीं रहता है? गुमान से बात करवा दो.’’ पुष्पा ने सवाल किया.

“अरे, बाबूवाला के उस घर में आओ न, जहां उस की पत्नी आशा यादव रहती है.’’ नेगी जोर दे कर बोले और काल डिसकनेक्ट कर दी. पुष्पा समझ नहीं पा रही थी कि एसएचओ उसे भाभी के घर पर क्यों बुला रहे हैं? भाई से बात भी नहीं करवा रहे हैं, जबकि वह गुमान से बात करवाने के लिए आग्रह भी कर चुकी थी. वह फटाफट तैयार हुई और बाबूवाला के उस घर पर जा पहुंची, जहां भाभी रहती थी. घर के बाहर जुटी कुछ लोगों की भीड़ और कई पुलिसकर्मियों को देख कर वह सहम गई.

घर में दाखिल होते ही कमरे का दृश्य देख कर चौंक गई. उस का भाई बैड पर पड़ा था. कुछ पुलिसकर्मी कमरे की छानबीन कर रहे थे. एक पुलिस वाला हाथ में तख्ती लगे सादे कागज पर कुछ लिख रहा था. पास में ही उस की भाभी आशा फर्श पर बैठी रो रही थी. उसे एक पुलिस वाली सांत्वना दे रही थी. वह उस से कुछ जानने की कोशिश कर रही थी. पुष्पा को आया देख कर नेगी बोले, ‘‘तुम्हीं पुष्पा हो?’’

“जी, क्या हुआ है मेरे भाई को?’’ पुष्पा बोली.

“तुम्हारे भाई की मौत हो गई है, यह लो इस पेपर पर साइन कर दो.’’ नेगी बोले.

“कैसे मरा मेरा भाई? सुबह ही तो उस के घर पर मिल कर आई थी. यहां कब आया? मेरा साइन किसलिए?’’ पुष्पा ने सवाल किया.

“यह फार्मैलिटी है जांच के लिए… उस की पत्नी आशा ने भी साइन कर दिए हैं. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजनी है, जल्दी करो…’’

“पोस्टमार्टम के लिए?’’ पुष्पा फिर बोली.

“हां! पोस्टमार्टम होगा, तभी उस की मौत के बारे में पता चल पाएगा.’’ नेगी बोले. उस के बाद नेगी ने पुष्पा से भी वहीसवाल पूछे जो आशा से पूछे गए थे.

“गुमान सिंह की किसी के साथ कोई रंजिश थी?’’

“नहीं साहब, वह खानेपीने वाला आदमी जरूर था, लेकिन उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ पुष्पा बोली.

‘‘ठीक है, कल सुबह थाने आ जाना. बाकी की पूछताछ थाने में होगी.’’ आशा से भी नेगी ने ऐसा ही कहा.

48 घंटे में खुला केस…

मामला आकस्मिक मौत का था. प्रारंभिक जांच से हत्या प्रतीत हो रही थी. चारपाई पर मृत पड़े गुमान की कोहनियां मुड़ीहुई थीं. जीभ बाहर की ओर निकली हुई थी. वारदात की सूचना सीओ संदीप नेगी और एसपी (देहात) कमलेश उपाध्याय को भी दे दी. गिरीश नेगी अपने साथ एसएसआई रविंद्र नेगी और थानेदार ओमवीर सिंह समेत फोरैंसिक जांच टीम ने घटनास्थल पर जांच खत्म की. फोरैंसिक टीम ने मौके की फोटोग्राफी कर मौत के संदर्भ में साक्ष्य जुटा लिए थे. साथ ही तलाकशुदा बीवी आशा यादव के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स के लिए साइबर विभाग को उस का फोन नंबर भेज दिया था.

घटनास्थल की प्रारंभिक जांच करने के बाद गुमान सिंह की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत पुष्पा देवी निवासी शीशमवाड़ा की ओर से रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. नेगी ने इस हत्याकांड की विवेचना उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्वयं ही शुरू कर दी थी. एसपी (देहात) कमलेश उपाध्याय ने गुमान सिंह की हत्या के खुलासे के लिए 2 टीमों का गठन किया, जबकि एसओजी टीम आशा के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने के अलावा गुमान सिंह के आसपास रहने वाले लागों से पूछताछ कर रही थी.

आशा और गुमान सिंह के घर के आसपास लगे 45 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी चैक की जाने लगी. परिणाम आने में ज्यादा समय नहीं लगा. पुलिस ने 48 घंटे में ही संदिग्ध आरोपी और आशा यादव के प्रेमी रंजीत सिंह को हिरासत में ले लिया. उस की गिरफ्तारी मुखबिर की सूचना पर देहरादून से हुई थी. इस से पहले 24 नवंबर, 2022 को पुलिस मृतक की पत्नी आशा यादव से गहन पूछताछ कर चुकी थी. थोड़ी सी सख्ती बरतते ही वह टूट गई. बिफरते हुए पहले उस ने अपना दुखड़ा सुनाया, फिर उस ने प्रेमी रंजीत सिंह नेगी के साथ मिल कर गुमान सिंह की हत्या करनी स्वीकार कर ली.

आशा और प्रेमी रंजीत नेगी ने रची थी साजिश…

आशा यादव ने बताया कि उस का पति अय्याश किस्म का इंसान था. उस की आदतों से वह बेहद परेशान रहती थी. आशा का कहना था कि वह अकसर दिन भर शराब पी कर मौजमस्ती में डूबा रहता था. सारे पैसे अपने और दोस्तों पर उड़ा देता था. मना करने पर उस की पिटाई भी कर दिया करता था. न उस पर और न ही बच्चे पर ही वह ध्यान देता था. उस की इसी आदत से तंग आ कर उस ने साल 2013 में उस से तलाक ले लिया था.

तलाक लेने के बाद गुमान ने ओडिशा की एक महिला से दूसरा ब्याह रचा लिया था. हालांकि वह भी गुमान की आदतों से तंग आ गई और उस के साथ 2 साल ही निभा पाई. वह जब मन करता था, अपनी प्रौपर्टी बेच दिया करता था. इस कारण ही मन में उस से नफरत होने लगी थी. गुमान पैसे लुटाता था और वह बच्चे के साथ तंगहाली में जीवन गुजार रही थी.

आखिरकार, आजिज आ कर वह सेलाकुई चली गई. वहीं एक कंपनी में मामूली नौकरी कर ली. किसी तरह जीवनयापन करने लगी. उन्हीं दिनों उस की मुलाकात रंजीत सिंह नेगी से हुई. वह उसी इलाके की एक कंपनी में गार्ड की नौकरी करता था. जानपहचान जल्द ही गहरी नजदीकियों में बदल गई. एक तरह से वे दानेों लिवइन रिलेशन में पतिपत्नी की तरह जीवन गुजारने लगे.

पूर्व पति की प्रौपर्टी पर थी निगाह…

एसएचओ ने उस से पूछा, ‘‘गुमान से तुम्हारा तलाक हो जाने के बाद जब तुम ने प्रेमी रंजीत के साथ अपनी जिंदगी की शुरुआत कर दी और गुमान को कोई आपत्ति नहीं थी, फिर तुम ने पति की हत्या क्यों की?’’ इस के जवाब में आशा ने कहा कि वह अपने प्रेमी के बहकावे में आ गई थी. इस के लिए उसे प्रेमी ने उकसा दिया था कि गुमान सिंह को हटा कर उस की प्रौपर्टी पर कब्जा किया जा सकता है.

अपने प्रेमी रंजीत को आशा ने गुमान की पारिवारिक स्थिति के बारे में पूरी जानकारी बता दी थी. गुमान की 2 बहनें हरिद्वार के लक्सर कस्बे में ब्याही गई थीं. उन में से एक देहरादून में अपने पति और परिवार के साथ रह रही थी. गुमान सिंह के एक भाई की मौत हो चुकी थी, जबकि उस का एक भाई लापता था. आशा जानती थी कि गुमान की मौत हो जाने पर उस की सारी प्रौपर्टी पर आसानी से कब्जा किया जा सकता है. आशा के प्रस्ताव को रंजीत ने स्वीकार कर लिया था. उस के बाद दोनों ने मिल कर योजना बनाई.

आशा और रंजीत द्वारा रची गई साजिश के मुताबिक 22 नवंबर, 2022 को आशा ने एक नया सिम खरीदा. उस ने बताया कि उसी नए नंबर से गुमान सिंह को फोन कर के बालूवाला मोहल्ला स्थित घर पर बुलाया. जब गुमान बालूवाला आ गया, तब रात को उस के खाने में नींद की गोलियां डाल कर उसे खाना खिला दिया. आधी रात को गुमान सिंह गहरी नींद सो गया था. उसी समय रंजीत एक रस्सी ले कर आया. बेहोशी की हालत में रंजीत के साथ मिल कर मैं ने रस्सी से उस का गला घोट डाला. कुछ देर छटपटाने के बाद उस की मौत हो गई.

तलाकशुदा आशा यादव ने गुमान की हत्या कराई थी, इसलिए पुलिस ने आशा का यह बयान दर्ज कर लिया. एसएचओ ने उसे भी हत्याकांड का सहअभियुक्त बना दिया गया. रंजीत नेगी, पुत्र वचन सिंह निवासी गांव गजा टिहरी गढ़वाल का रहने वाला है. पूछताछ में रंजीत नेगी ने भी आशा द्वारा दिए बयानों की पुष्टि की और पुलिस के सामने गुमान सिंह की हत्या की योजना में खुद को भागीदार बताया. दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया. वहां से उन्हें हिरासत में ले कर जेल भेज दिया गया. इस हत्याकांड की विवेचना एसएचओ सहसपुर गिरीश नेगी कर रहे थे.