कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा

बदचलन बीवी और दगाबाज दोस्त

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बिछवां के गांव मधुपुरी के रहने वाले परशुराम का परिवार बढ़ने से खर्च तो बढ़ गया था, लेकिन कमाई उतनी की उतनी ही थी. पतिपत्नी थे ही, 3-3 बच्चों की पढ़ाईलिखाई, कपड़ेलत्ते और खानाखर्च अब खेती की कमाई से पूरा नहीं होता था. गांव में हर कोशिश कर के जब इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो उस ने किसी शहर जाने की सोची.

गांव के तमाम लोग दिल्ली में रहते थे. उन की माली हालत परशुराम को ठीकठाक लगती थी, इसलिए उस ने सोचा कि वह भी दिल्ली चला जाएगा. उस ने अपने एक दोस्त से बात की और दिल्ली आ गया. यह करीब 10 साल पहले की बात है. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली में एक एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. लेकिन कुछ दिनों बाद उस ने वह नौकरी छोड़ दी और अपने एक परिचित के यहां गाजियाबाद चला गया. क्योंकि वहां ज्यादा पैसे की नौकरी मिल रही थी.

गाजियाबाद की जिस कंपनी में परशुराम नौकरी करता था, उसी में खोड़ा गांव का रहने वाला भारत सिंह भी नौकरी करता था. एक साथ नौकरी करने की वजह से दोनों की अक्सर मुलाकात हो जाती थी. कुछ ही दिनों में दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई. भारत सिंह की शादी नहीं हुई थी, इसलिए उसे कोई चिंताफिक्र नहीं रहती थी. वह मौज से रहता था.

परशुराम की बीवी और बच्चे गांव में रहते थे, इसलिए उन्हें ले कर वह परेशान रहता था. उस ने सोचा कि अगर बीवीबच्चे साथ रहें तो उसे खानापानी भी समय से मिल जाएगा और वह निश्चिंत भी रहेगा. शहर में रह कर बच्चे भी ठीक से पढ़ लेंगे. उस ने भारत सिंह से किराए का मकान दिलाने को कहा तो उस ने अपने पड़ोस में उसे मकान दिला दिया.

मकान मिल गया तो परशुराम अपना परिवार ले आया. भारत सिंह परशुराम का दोस्त था, दूसरे उसी ने उसे मकान दिलाया था, इसलिए परशुराम ने उसे एक दिन अपने घर खाने पर बुलाया. खाना खाने के बाद भारत सिंह खाने की तारीफ करने लगा तो परशुराम की पत्नी शारदा ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप मेरे खाने की इतनी तारीफ क्यों कर रहे हैं?’’

‘‘क्यों…?’’ भारत सिंह ने पूछा.

‘‘कहते हैं, खाने वाला खाने की तारीफ इसलिए करता है कि उसे फिर से खाने पर बुलाया जाए.’’

‘‘लेकिन मैं तो बिना बुलाए ही आने वालों में हूं. आप को एक बात बताऊं भाभीजी, आदमी बड़ा चटोरा होता है. जहां का खाना उस के मुंह लग जाता है, वह वहां बारबार जाता है. मेरे मुंह आप का बनाया खाना लग गया है, इसलिए जब मन होगा, मैं यहां आ जाऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

शारदा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह भी तो आप का ही घर है. जब मन हो, आ जाना.’’

‘‘भाभीजी, आप तो जानती हैं, मैं अकेला आदमी हूं. ज्यादातर बाहर ही खाता हूं. घर का खाना इसी तरह कभीकभार ही नसीब होता है. इसलिए जब कभी इस तरह का खाना मिलता है तो इच्छा तृप्त हो जाती है.’’ भारत सिंह ने थोड़ा उदास हो कर कहा.

‘‘मैं तो कहूंगी, तुम भी शादी कर लो. रोज दोनों जून घर का खाना खाओ. इच्छा भी तृप्त होगी और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा. अपने दोस्त को देखो और खुद को देखो. खैर, जब तक खाना बनाने वाली नहीं आती, तब तक जब कभी घर का खाना खाने का मन हो, अपने दोस्त के साथ चले आना. इतने लोगों का खाना बनाती ही हूं, तुम्हारा भी बना दूंगी.’’ शारदा ने कहा.

उस दिन के बाद भारत सिंह परशुराम के यहां अक्सर जाने लगा. अकेले होने की वजह से भारत सिंह के ऊपर कोई जिम्मेदारी तो थी नहीं, इसलिए वह ठाठ से रहता था. कभीकभार पार्टी भी कर लेता था. उस पार्टी में परशुराम को भी शामिल करता था. पीनेपिलाने के बाद खाने की बात आती तो परशुराम कहता, ‘‘अब बाहर खाना खाने कहां जाओगे. चलो तुम्हारी भाभी ने खाना बनाया ही होगा, वहीं खा लेना.’’

इसी तरह आनेजाने में स्त्रीसुख से वंचित भारत सिंह को शारदा अच्छी लगने लगी. इस के बाद वह कुछ ज्यादा ही परशुराम के यहां आनेजाने लगा. वह जब भी परशुराम के यहां आता, खाली हाथ नहीं आता. खानेपीने की ढेर सारी चीजें ले कर आता. वह बातें तो अच्छीअच्छी करता ही था, शारदा पर दिल आ जाने की वजह से उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखने लगा था, इसलिए शारदा को उस का आना अच्छा लगने लगा था.

परशुराम में एक आदत यह थी कि वह शराब देख कर पागल हो जाता था. अगर उसे शराब मिल जाए तो वह तब तक पीता रहता था, जब तक बेहोश नहीं हो जाता था. उस स्थिति में भारत शारदा से कहता, ‘‘भाभी, मैं इसे मना करता हूं कि तू इतनी मत पिया कर, लेकिन यह मानता ही नहीं. पहली बात तो इसे पीनी ही नहीं चाहिए. क्योंकि यह बालबच्चों वाला है, इस के ऊपर तमाम जिम्मेदारियां हैं. रही बात मेरी तो मेरे ऊपर कौन जिम्मेदारी है. फिर मेरा कोई मन बहलाने वाला भी तो नहीं है. अकेले में घुटन सी होने लगती है तो पी लेता हूं. शराब पीने से जल्दी नींद आ जाती है.’’

‘‘अगर कोई मन बहलाने वाला मिल जाए तो आप पीना छोड़ दोगे? क्योंकि आप नहीं पिएंगे तो यह भी नहीं पिएंगे. यह पीते तो आप के साथ ही हैं,’’ शारदा ने कहा.

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं रोज कहां पीता हूं. मैं तो साथ मिलने पर ही पीता हूं. अगर आप कह दें तो मैं बिलकुल शराब नहीं पीऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

‘‘शराब कोई अच्छी चीज तो है नहीं, मैं तो यही चाहूंगी कि न आप पिएं और न अपने दोस्त को पिलाएं. यही पैसा किसी और चीज में खर्च करें, जो आप लोगों के काम आए.’’ शरदा ने समझाते हुए कहा.

शारदा को प्रभावित करने के लिए भारत सिंह ने सचमुच शराब पीना छोड़ दिया. लेकिन परशुराम नहीं माना. एक दिन शराब पी कर परशुराम लुढ़का पड़ा था तो भारत सिंह ने कहा, ‘‘भाभी, ऐसे पति से क्या फायदा, जो पत्नी के सुखदुख, हंसीखुशी का खयाल न रखे.’’

‘‘क्या करूं भइया, सब भाग्य की बात है. मेरे भाग्य में ऐसा ही पति लिखा था. एक आप हैं. मैं आप की कोई नहीं, फिर भी आप मेरा इतना खयाल रखते हैं. जिस की खयाल रखने की जिम्मेदारी है, वह शराब पी कर लुढ़का पड़ा है.’’

‘‘भाभी, ऐसा मत कहो कि मैं आप का कोई नहीं. कुछ रिश्ते बनाए जाते हैं तो कुछ अपनेआप बन जाते हैं. अपने आप बने रिश्ते भी कम मजबूत नहीं होते. बात तो मन से मानने वाली है. आप भले ही मुझे अपना न मानें, लेकिन मैं आप को अपनी मानता हूं. आप मुझे कितना मानती हैं, यह आप जानें,’’ भारत सिंह ने शारदा की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘आप को क्या लगता है? मैं भी आप को उतना ही मानती हूं, जितना आप मानते हैं. अब आप समझ न पाएं तो मैं क्या करूं.’’ शारदा ने नजरें नीची कर के कहा.

शारदा का इतना कहना था कि भारत सिंह ने उस का एक हाथ थाम लिया. उसे सीने से लगा कर कहा, ‘‘आज लगा कि मेरा भी कोई है. अब मैं अकेला नहीं रहा. भाभी, सही बात तो यह है कि मैं आप को अपनी समझने लगा हूं. इधर कुछ दिनों से आप हर पल मेरे खयालों में बसी रहती हैं. मुझे उम्मीद है कि आप मेरे दिल की बात समझेंगी.’’

‘‘मैं आप के दोस्त की पत्नी हूं,’’ शारदा ने अपना हाथ छुड़ाए बगैर कहा, ‘‘क्या यह सब अच्छा लगेगा.’’

‘‘भाभी, अच्छा लगे या खराब, अब मैं आप के बिना नहीं रह सकता. अगर आप ने मना कर दिया तो कल से मेरा भी वही हाल होगा, जो परशुराम का है. क्योंकि आप नहीं मिलीं तो मैं चैन से नहीं रह पाऊंगा. इस के बाद बेचैनी दूर करने के लिए शराब का ही सहारा लेना होगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

भारत सिंह के स्पर्श ने शारदा की धड़कन बढ़ा दी थी. इन बातों से लगा कि अब उस का खुद पर काबू नहीं रह गया है. वह विरोध तो पहले ही नहीं कर रही थी, भारत सिंह की बातें सुन कर नजरें झुका लीं. उस की इस अदा से उसे समझते देर नहीं लगी कि शारदा भी वही चाहती है जो वह चाहता है.

दरअसल, शारदा का दिल भारत सिंह पर तभी डोल गया था, जब उसे पता चला था कि उस ने शादी नहीं की. वह अच्छाखासा कमाता था, जबकि खाने वाला कोई नहीं था. शारदा ने सोचा था कि अगर इसे वह फांस ले तो वह अपनी कमाई उस पर लुटाने लगेगा. और सचमुच उस ने उसे अपने रूप के जादू से फांस लिया था.

भारत सिंह ने शारदा से कहा था कि वह उन लोगों में नहीं है, जो मजा ले कर चले जाते हैं. वह उस के हर सुखदुख में उस का साथ देगा. भारत सिंह की इन्हीं कसमों और वादों पर विश्वास कर के शारदा ने उसे अपनी देह सौंप दी थी.

भारत सिंह से संबंध बनाने के बाद उदास और परेशान रहने वाली शारदा में अपनेआप बदलाव आने लगे थे. उस का रहनसहन भी काफी बदल गया था. भारत सिंह उसे ढंग के कपड़ेलत्ते तो ला कर देता ही था, खर्च के लिए पैसे भी देता था. इसलिए उस ने परशुराम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया था. अब वह उस से कुछ मांगती भी नहीं थी.

पत्नी में आए बदलाव से परशुराम हैरान तो था, लेकिन वजह उस की समझ में नहीं आ रही थी. जब बदलाव कुछ ज्यादा ही दिखाई देने लगे तो उस ने पत्नी पर नजर रखनी शुरू की. तब उस ने देखा कि पत्नी उस के दोस्त से कुछ ज्यादा घुलमिल ही नहीं गई, बल्कि उस का खयाल भी उस से ज्यादा रखने लगी है.

परशुराम इतना भी बेवकूफ नहीं था, जो इस का मतलब न समझता. बदलाव का मतलब समझते ही उस ने शारदा से कहा, ‘‘इधर भारत सिंह कुछ ज्यादा ही हमारे घर नहीं आने लगा है?’’

‘‘वह तुम्हारा दोस्त है, तुम्हीं उसे घर लाते हो. अगर कभी तुम्हारे न रहने पर आ जाता है तो उसे घर में बैठाना ही नहीं पड़ेगा, बल्कि चायपानी भी पिलानी पड़ेगी. अब इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ शारदा ने तुनक कर कहा.

शारदा ने पति से बहाना तो बना दिया, लेकिन इस के बाद वह खुद भी सतर्क हो गई और भारत सिंह को भी सतर्क कर दिया. पर ऐसे संबंध कितने भी छिपाए जाएं, छिपते नहीं हैं. कुछ पड़ोसियों ने भी जब उस की अनुपस्थिति में भारत सिंह के घर आने की शिकायत की तो परशुराम छुट्टी ले कर पत्नी की चौकीदारी करने लगा.

भारत सिंह से भी उस ने कई बार कहा कि वह जो कर रहा है, वह ठीक नहीं है. तब भारत सिंह ने हंस कर यही कहा कि जैसा वह सोच रहा है, वैसा कुछ भी नहीं है. वह बेकार ही शक करता है. शारदा को वह भाभी कहता ही नहीं है, बल्कि उसी तरह सम्मान भी देता है.

पत्नी भी कसम खा रही थी और दोस्त भी. जबकि परशुराम को अब तक पूरा विश्वास हो गया था कि दोनों के बीच गलत संबंध है. लेकिन उस के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं था कि वह दोनों के सामने दावे के साथ कह सकता. लेकिन जब एक दिन उस ने शारदा के बक्से में नईनई साडि़यां देखी तो हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी साडि़यां तुम्हारे पास कहां से आईं?’’

‘‘तुम ने तो ला कर दीं नहीं, फिर क्यों पूछ रहे हो?’’ शारदा ने कहा.

‘‘मैं यही तो जानना चाहता हूं कि तुम्हें ये साडि़यां किस ने ला कर दी हैं?’’

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो. यही न कि ये साडि़यां भारत सिंह ने ला कर दी हैं?’’ शारदा थोड़ा तेज आवाज में बोली, ‘‘अगर उसी ने ला कर दी हैं तो तुम क्या कर लोगे?’’

परशुराम सन्न रह गया. वह समझ गया कि यह लेनेदेने का खेल इस तरह चल रहा है. उस ने पहले तो शारदा की जम कर पिटाई की, उस के बाद घर का सामान समेटने लगा. शारदा ने पूछा, ‘‘यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘हम गांव चल रहे हैं.’’ परशुराम ने कहा.

परशुराम ने कहा ही नहीं, बल्कि जहां नौकरी करता था, वहां से अपना हिसाबकिताब करा कर गांव चला गया. गांव में परशुराम तो अपने कामधाम में लग गया, लेकिन शारदा भारत सिंह के लिए बेचैन रहने लगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने उसे फोन किया कि वह उस के बिना नहीं रह सकती.

भारत सिंह भी उस के लिए उसी की तरह तड़प रहा था, इसलिए उस ने उसे आने का आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि उस से मिलने उस के गांव पहुंच भी गया. परशुराम से मिल कर उस ने कहा कि उस से जो गलती हुई है, उस के लिए वह माफी मांगने आया है.  इस तरह होशियारी से एक बार फिर भारत सिंह ने परशुराम की सहानुभूति प्राप्त कर ली. इस के बाद उस का जब मन होता, वह परशुराम से मिलने के बहाने गांव पहुंच जाता.

शुरूशुरू में तो परशुराम सतर्क रहा, लेकिन जब उसे लगा कि भारत सिंह सचमुच सुधर गया है तो वह उस की ओर से लापरवाह हो गया. इस के बाद शारदा और भारत सिंह फिर मिलने लगे.  गांव वालों को शक हुआ तो उन्हें भारत सिंह का आना खराब लगने लगा. लोगों ने परशुराम को टोका तो उसे होश आया. भारत सिंह को ले कर गांव में लोग परशुराम के बेटों का भी मजाक उड़ाते थे. इन सब बातों से दुखी हो कर परशुराम ने गुस्से से कहा, ‘‘भारत, तुम क्यों हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ गए हो. क्यों आते हो हमारे घर, आखिर हमारा तुम्हारा रिश्ता क्या है?’’

भारत सिंह तो कुछ नहीं बोला, पर पति की इस बात पर शारदा आपा खो बैठी. उस ने कहा, ‘‘घर आए मेहमान से कोई इस तरह बात करता है. अगर यह हमारे यहां आता है तो क्या गलत करता है. कान खोल कर सुन लो, यह इसी तरह आता रहेगा, देखती हूं कौन रोकता है.’’

शारदा के तेवर देख कर परशुराम डर गया, लेकिन दोनों की यह बातचीत सुन कर पड़ोसी आ गए. उन्होंने भारत सिंह को लताड़ा तो उस ने वहां से चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन परेशानी यह थी कि शारदा उस के बिना रह नहीं सकती थी, इसलिए जब उसे पता चला कि 15 मई को परशुराम किसी शादी में जाने वाला है तो उस ने फोन कर के यह बात भारत सिंह को बता दी.

15 मई को परशुराम दोनों बेटों के साथ शादी में चला गया. उस के जाते ही भारत सिंह गांव वालों की नजरें बचा कर शाम को उस के घर जा पहुंचा. प्रेमी के लिए शारदा ने बढि़या खाना पहले से ही बना कर रख लिया था. पहले दोनों ने खाना खाया, उस के बाद मौजमस्ती में लग गए.

दोनों मस्ती में इस तरह डूब गए कि उन्हें समय का पता ही नहीं चला. रात 1 बजे के करीब परशुराम लौटा तो दोनों बेटे घेर में सोने चले गए, जबकि परशुराम ने हाथ डाल कर बाहर से दरवाजे की कुंडी खोली और घर के अंदर आ गया. अंदर आंगन में पड़ी चारपाई पर शारदा और भारत सिंह रंगरलियां मना रहे थे.

पत्नी और दोस्त को उस हालत में देख कर परशुराम का खून खौल उठा. कोने में रखी लाठी उठा कर वह दोनों को पीटने लगा. उस की इस पिटाई से दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी आ गए. मामला गंभीर होते देख परशुराम भाग खड़ा हुआ.

शारदा और भारत सिंह की हालत गंभीर थी. गांव वालों ने दोनों को जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें सैफई रैफर कर दिया.

18 मई को शारदा ने दम तोड़ दिया. गांव वालों के अनुसार शारदा की मौत की सूचना उन्होंने थाना बिछवां पुलिस को दे दी थी. लेकिन शाम तक पुलिस नहीं आई तो उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.  जब कहीं से शारदा की मौत की जानकारी पुलिस अधीक्षक श्रीकांत को हुई तो उन्होंने थाना बिछवां के थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर को फटकार लगा कर इस मामले की तत्परता से जांच करने को कहा.

थाना बिछवां पुलिस गांव मधुपुरी पहुंची तो शारदा की चिता ठंडी पड़ चुकी थी. इस के बाद चौकीदार की ओर से परशुराम के खिलाफ अपराध संख्या 119/2014 पर भादंवि की धारा 308, 304, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और उस की तलाश में जगहजगह छापेमारी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप परशुराम बसअड्डे से पकड़ में आ गया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने कहा कि शारदा मर गई अच्छा ही हुआ. भारत सिंह भी मर जाता तो और अच्छा होता. उस ने जो किया है, उस से बदचलन बीवियों और धोखेबाज दोस्तों को सबक मिलेगा.

पूछताछ के बाद पुलिस ने परशुराम को मैनपुरी की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. भारत सिंह का इलाज चल रहा था. थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर का तबादला हो चुका था. अब इस मामले की जांच नए थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह कर रहे थे.

दूसरी बीवी का खूनी खेल – भाग 3

टेलर से बात करने के बाद पुलिस टीम नूरपूर बेहटा गांव पहुंच गई. वहां पता चला कि कल्लू का दूसरा नाम संतोष है. घर पर सब उसे कल्लू कहते थे. घर पर संतोष की पत्नी और पिता मिले. घर वालों को जैसे ही पता लगा कि संतोष का मर्डर हो गया है तो घर में कोहराम मच गया. सभी रोने लगे.

उस की पत्नी राजकुमारी ने सीधे आरोप लगाया कि उन की हत्या में रिंकी तिवारी और रिंकू मिश्रा का हाथ है. बाद में घर वाले भी मोर्चरी पहुंच गए. वहां राजकुमारी ने लाश की पहचान अपने पति संतोष उर्फ कल्लू के रूप में की.

चूंकि राजकुमारी ने पति की हत्या का आरोप रिंकू मिश्रा और रिंकी पर लगाया था, इसलिए लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उन्हें तलाशना शुरू कर दिया. एक सप्ताह की कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने रिंकी तिवारी और रिंकू मिश्रा को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर जब उन से संतोष कुमार उर्फ कल्लू की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उन्होंने संतोष की हत्या की जो कहानी बताई, वह रिश्तों की मर्यादा को तारतार करती नजर आई.

उम्र में दो गुने बड़े संतोष के साथ पतिपत्नी के संबंध निभाते रिंकी को यह पता चल चुका था कि संतोष के पास अब बहुत पैसा नहीं है. उस ने जिस मकसद से उस के साथ शादी की थी, वह मकसद उसे पूरा होता नजर नहीं आ रहा था. इसलिए वह धीरेधीरे संतोष से किनारा करने लगी थी. संतोष के प्रति उस की दिलचस्पी भी खत्म हो चुकी थी.

इस के अलावा रिंकू ने संतोष से एक लाख 60 हजार रुपए उधार लिए थे. संतोष ने जब उस से अपने पैसे मांगे तो वह पैसे लौटाने में आनाकानी करने लगा था. लगातार तकाजा करने से रिंकू भी परेशान रहने लगा था.  इसी बीच रिंकू और रिंकी के बीच अवैध संबंध भी बन चुके थे. इस बात की भनक संतोष को लग चुकी थी. इसलिए संतोष ने रिंकू से कह दिया था कि उस के पैसे लौटाने के बाद वह ढाबा छोड़ कर चला जाए.

वहीं दूसरी तरफ रिंकी और रिंकू अपनी अलग योजना बना चुके थे. रिंकी ने रिंकू से कहा, ‘‘संतोष, अब तुम से अपने पैसे मांग रहा है. इस से बचने का एक ही रास्ता है कि उसे रास्ते से हटा दिया जाए.’’

‘‘पर तुम ने तो उस के साथ शादी की है.’’ रिंकू बोला.

‘‘मुझे क्या पता था कि वह कंगाल हो चुका है. मैं ने तो सुना था कि वह 50-60 लाख का आदमी है. रिंकू तुम्हें पता नहीं, अब वह हमारे ऊपर शक भी करने लगा है. उस ने मेरी नाक में दम कर रखा है. मैं उस से अब बहुत परेशान हो गई हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं, हम उसे रास्ते से ही हटा देते हैं.’’ इतना कह कर रिंकू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया.

योजना के मुताबिक 17 मार्च, 2014 की रात को रिंकू और संतोष ने साथ बैठ कर शराब पी. जब संतोष काफी नशे में हो गया तो रिंकू और रिंकी उसे लखनऊ-फैजाबाद रोड पर एक अधबने मकान में ले गए और रिंकू ने धक्का दे कर संतोष को गिरा दिया. ज्यादा नशे में होने की वजह से वह विरोध भी नहीं कर सका.  उस के गिरते ही रिंकू उस के ऊपर चढ़ कर बैठ गया. उसी दौरान रिंकू ने मौजे से संतोष का गला घोंट दिया. उस की हत्या करने के बाद दोनों वहां से भाग निकले.

दोनों को पता था कि पुलिस लाश की शिनाख्त नहीं कर पाएगी. ऐसे में वह लोग बच जाएंगे लेकिन कमीज पर लगे लेवल के सहारे पुलिस हत्या के इस मामले को सुलझाने में सफल हो गई. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

शहरी चकाचौंध में फंस कर संतोष ने अपना घरपरिवार और खेती छोड़ कर शहर में रहना शुरू किया. यही चकाचौंध और बीवी से की गई बेवफाई उस की जान की दुश्मन बनी.

जेल जाते समय रिंकी और रिंकू खुद को बेकुसूर बता रहे थे. उन की सच्चाई को परखने का काम अदालत करेगी. जो लोग शहर की चकाचौंध देख कर, शहर की तरफ भागते हैं उन्हें देखना चाहिए कि शहरी आकर्षण में कुछ बुराइयां भी हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कपूत की करतूत : अपने पिता की दी सुपारी – भाग 3

गलत संगत की वजह से वह किशोरावस्था से ही गंदी आदतों का शिकार हो गया. पिता से उसे मनचाहा जेब खर्च मिलता ही था, इसलिए उस के तमाम दोस्त भी थे. उन के साथ वह नशा करता, जुआ खेलता और बाजारू लड़कियों के साथ अय्याशी करता.

इन बातों की जानकारी जब मामन को हुई तो उन्होंने अशोक को जेब खर्च देना बंद कर दिया. लेकिन अब तक अशोक पूरी तरह बिगड़ चुका था. पैसे न मिलने पर वह घर में चोरी करने लगा. अब तक वह 24 साल का हो चुका था. मामन ने सोचा कि अगर उस का विवाह कर दें तो जिम्मेदारी पडऩे पर शायद वह सुधर ही जाए.

उन्होंने अशोक का विवाह रोशनी से कर दिया. लेकिन वह नहीं सुधरा. वह पहले की ही तरह शराब पीता और बाजारू औरतों के पास जाता. पत्नी उसे रोकती तो वह उस के साथ मारपीट करता. तंग आ कर मामन ने अशोक को घर से निकाल दिया. उसे और उस की पत्नी के रहने के लिए दूसरा मकान दे दिया. वह कोई कामधंधा कर सके, इस के लिए उसे 7 लाख रुपए भी दिए.

अशोक चाहता तो इतने से अपनी गृहस्थी चला सकता था. लेकिन उस ने कामधंधा करने के बजाय सारे रुपए अपनी गंदी आदतों में उड़ा दिए. पति की गलत आदतों और रोजरोज की मारपीट से तंग आ कर रोशनी पति का साथ छोड़ कर मायके में रहने लगी थी. साथ ही उस ने तलाक का मुकदमा भी दायर कर दिया. उन दिनों अशोक राजा हरिश्चंद्र अस्पताल में गार्ड की नौकरी करता था.

अदालत में तलाक का मुकदमा चला और सन्ï 2010 में अदालत ने निर्णय दिया कि अशोक रोशनी को हर महीने 20 हजार रुपए गुजाराभत्ता देगा. अशोक को जो वेतन मिलता था, उस से उस का ही खर्च पूरा नहीं होता था. इसलिए वह लोगों से रुपए उधार ले कर अपने शौक पूरा करता था. धीरेधीरे उस पर 70 लाख रुपए का कर्ज हो गया था.

जब काफी दिन हो गए तो कर्ज देने वाले उस से अपना रुपया मांगने लगे. इसी बीच अशोक को अस्पताल की एक नर्स से प्यार हो गया. पैसे न होने की वजह से वह उस की फरमाइशें पूरी नहीं कर पा रहा था. वह उस नर्स से शादी करना चाहता था. कर्ज चुकाने और शादी के लिए उसे पैसे चाहिए थे. इस के लिए वह पिता से मिला और उन से 2 करोड़ रुपए मांगे.

मामन ने उसे लताड़ते हुए कहा, “2 करोड़ तो क्या, मैं तुम्हें 2 पैसे भी नहीं दूंगा. मैं ने सोच लिया है कि मेरा बेटा मर चुका है. तुम से अब मेरा कोई संबंध नहीं है. आइंदा तुम मुझ से मिलने भी मत आना.”

अक्टूबर, 2014 में अशोक को एक वकील के जरिए पता चला कि मामन उसे अपनी संपत्ति से बेदखल कर के सारी संपत्ति सोनम के नाम करवा रहे हैं. यह जान कर अशोक क्रोध में पागल हो उठा और शराब पी कर मामन के पास पहुंच गया. जब वह उन से गालीगलौज करने लगा तो मामन ने उसे दुत्कारते हुए कहा, “मैं ने तो पहले ही कहा था कि मेरा कोई बेटा नहीं है. था भी तो मैं ने उसे मरा मान लिया है. मेरी संपत्ति में अब तुम्हारा कोई हक नहीं है.”

“मैं तुम्हें सारी प्रौपर्टी सोनम के नाम नहीं करने दूंगा.”

“क्या करेगा तू…?” मामन चीखे.

“तुम्हें जिन्दा नहीं रहने दूंगा.”

“धमकी देता है मुझे.”

“धमकी नहीं, सच कह रहा हूं. अगर तुम ने आधी संपत्ति मेरे नाम नहीं की तो मैं तुम्हें मरवा दूंगा. मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुम वक्त से पहले क्यों मरना चाहते हो?”

“निकल जा यहां से.”

“इस का मतलब तुम नहीं मानोगे. तो ठीक है, मरने की तैयारी कर लो. लेकिन एक बार और सोच लेना. मरने के बाद क्या ले जा सकोगे यहां से. तुम्हारी मौत के बाद सबकुछ मेरा और सोनम का ही होगा.”

“जीतेजी मैं तुझे एक पैसा नहीं दूंगा.”

“यानी तुम ने मरने का फैसला कर लिया है. चलता हूं, अब हम जीते जी कभी नहीं मिलेंगे.” हंसता हुआ अशोक चला गया.

अशोक नरेला सैक्टर ए-6 में रहने वाले नीतू उर्फ काला को जानता था. उसे पता था कि काला सुपारी किलर है. वह काला से मिला और उसे 20 लाख रुपए में पिता के कत्ल की सुपारी दे दी. उस ने कर्ज ले कर एडवांस के रूप में उसे 14 लाख रुपए दे भी दे दिए. बाकी रकम उस ने काम होने के 2-3 महीने बाद जमीन बेच कर देने को कहा.

नीतू उर्फ काला ने अपने आपराधिक सहयोगी जितेंद्र उर्फ ङ्क्षटकू के साथ मिल कर मामन के कत्ल की योजना बनाई. दोनों ने कई दिनों तक मामन की गतिविधियों पर नजर रखी. मामन को ठिकाने लगाने के लिए उसे सुबह का समय ठीक लगा. दोनों ने बिजनौर से एक मोटरसाइकिल चोरी की और हत्या के लिए एक गुप्ती भी वहीं से खरीदी.

योजना के अनुसार, 2 नवंबर, 2014 की सुबह दोनों ने चोरी की मोटरसाइकिल से मामन का पीछा किया और गुप्ती से गोद कर उन की हत्या कर दी. उन्होंने मोटरसाइकिल वहीं जंगल में छोड़ दी और हरियाणा चले गए. इस के बाद वे जबतब अशोक से फोन पर बात करते रहे.

जब दोनों को पता चला कि अशोक ने 2 एकड़ जमीन 90 लाख रुपए में बेची है तो उन्होंने फोन कर के अपनी बकाया रकम मांगी. लेकिन अशोक ने 70 लाख रुपए का कर्ज अदा करने के बाद जो पैसे बचे थे, उन्हें अय्याशी में खर्च कर दिए थे.

बकाया रकम के लिए दोनों की अशोक से अकसर झड़प होती रहती थी. नीतू और ङ्क्षटकू को जब पता चला कि अशोक के नाम पिता की आधी संपत्ति होने वाली है और वह करोड़ों की है तो वे उस से 4 करोड़ रुपए मांगने लगे. रकम न देने पर वे उसे पुलिस से सच्चाई बताने की धमकी दे रहे थे.

एक दिन जब नरेला स्थित शराब के ठेके पर नीतू और ङ्क्षटकू की अशोक से झड़प हो रही थी, तभी वहां मौजूद मुखबिर ने उन की बातें सुन ली थीं. उस के बाद उस ने सारी बातें अशोक कुमार को बता दी थीं. इस तरह मामन की हत्या का राज खुल गया और हत्यारे पकड़े गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दूसरी बीवी का खूनी खेल – भाग 2

ढाबे से आमदनी बढ़ी तो संतोष की फिजूलखर्ची भी बढ़ गई. वह अपनी आमदनी का ज्यादातर हिस्सा दोस्तों के साथ शराब पीने आदि पर खर्च करने लगा. यानी उस का हाल आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया वाली हो गई थी.

जितना वो कमाता नहीं था, उस से ज्यादा खर्च कर देता था. धंधे में व्यस्त होने की वजह से उस का गांव में आनाजाना भी कम हो गया था. वह कभीकभी ही गांव जाता था. उस ने गांव से अपना रिश्ता लगभग तोड़ सा लिया था. वह केवल पैसे लेने के लिए ही गांव जाता था.

श्याम का एक दोस्त था रिंकू मिश्रा, जो जानकीपुरम में रहता था. वह भी पहले श्याम के साथ ही ढाबे पर काम करता था. श्याम किसी वजह से उस का ढाबा छोड़ कर कहीं चला गया तो संतोष के सामने ढाबा चलाने की समस्या खड़ी हो गई. क्योंकि वह खाना बनाना नहीं जानता था. इसलिए उस ने रिंकू मिश्रा को बुला लिया. रिंकू ढाबा चलाने में संतोष का सहयोगी बन गया. दोनों को ही शराब पीने की आदत थी. ऐसे में उन की जोड़ी जम गई.

पत्नी से दूर रहने की वजह से संतोष का मन औरत के लिए बेचैन रहता था. उस के मन में जवानी की उमंगें हिलोरें मारने लगी थीं. चूंकि संतोष खूब बनठन कर रहता था इसलिए रिंकू उसे बहुत पैसे वाला समझता था. रिंकू उस के पैसे से खुद भी मजे करना चाहता था और संतोष को भी कराना चाहता था. संतोष ने मन की बात रिंकू को बताई तो वह संतोष को देहधंधा करने वाली औरतों के पास ले जाने लगा. दोनों ही वहां मस्ती करते.

एक दिन संतोष ने रिंकू से कहा, ‘‘रिंकू भाई, सही कहूं तो इन औरतों के पास आने से तन की प्यास तो बुझ जाती है. पर मन में कोई सुख महसूस नहीं होता. हो सके तो कोई परमानेंट इंतजाम करो.’’

‘‘ठीक है संतोष भाई, मैं तुम्हारे लिए कोई परमानेंट इंतजाम करता हूं.’’ रिंकू ने उसे भरोसा दिलाया.

संतोष के ढाबे पर रिंकी तिवारी नाम की एक युवती आती थी. वह काकोरी गांव की रहने वाली थी. उस की शादी हरदोई के रहने वाले प्रेम कुमार के साथ हुई थी. लेकिन शादी के कुछ साल के अंदर ही उस का अपने पति से झगड़ा हो गया तो वह वापस मायके आ गई. वह लखनऊ आतीजाती रहती थी. इसी दौरान रिंकी की मुलाकात रिंकू हुई.

रिंकी कुछ दिन रिंकू के जानकीपुरम स्थित मकान में किराएदार के रूप में भी रही. रिंकू ने रिंकी को संतोष के बारे में बताया. रिंकी भी चाहती थी कि वह किसी पैसे वाले के साथ बंधे. एक दिन रिंकू ने एकांत में रिंकी की मुलाकात संतोष से करा दी. 40 साल का संतोष 22 साल की रिंकी से मिल कर बहुत खुश हुआ. चूंकि दोनों को ही एकदूसरे के साथ की जरूरत थी. इसलिए बहुत जल्द ही उन के बीच दोस्ती हो गई.

रिंकी को मर्दों की कमजोरी का पता था. वह संतोष के करीब जाने से पहले उसे अच्छी तरह से तौल लेना चाहती थी. कई बार संतोष ने उस के करीब जाने की कोशिश की तो रिंकी ने अपने मन की बात बताते हुए कहा, ‘‘संतोष, मैं तुम्हें प्यार करती हूं, मैं भी तुम को पाना चाहती हूं. पर मेरी इच्छा है कि पहले हम शादी कर लें. जिस से मुझे तुम्हारे सामने शर्मिंदा न होना पड़े.’’

रिंकी की बात संतोष को समझ आ गई. वह इस के लिए तैयार हो गया. उस ने सोचा कि राजकुमारी गांव में बच्चों को देखभाल करती रहेगी और रिंकी उस के साथ लखनऊ में रहेगी. वह रिंकी से बोला, ‘‘हम लोग कोई अच्छा सा समय देख कर शादी कर लेते हैं.’’

रिंकी भी यही चाहती थी. दोनों ने एक मंदिर में जा कर शादी कर ली. फिर रिंकी उस के साथ ही रहने लगी.

रिंकी से शादी करने की बात ज्यादा दिनों तक छिपी न रह सकी. कुछ दिनों में इस की जानकारी उस के घर वालों को भी हो गई. गांव में रह रही संतोष की पत्नी राजकुमारी को जब पता चला कि पति ने शहर में दूसरी शादी कर ली है, तो उसे बहुत दुख हुआ. मगर अब उस के सामने आंसू बहाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. क्योंकि परिजनों के कहने के बाद भी वह रिंकी को छोड़ने को तैयार नहीं था. इस तरह एक तरफ शहर में रह कर संतोष मौजमस्ती करता रहा और दूसरी तरफ गांव में बैठी उस की ब्याहता अपनी किस्मत पर आंसू बहाती रही थी.

इसी दौरान 18 मार्च, 2014 को थाना गाजीपुर के इस्माइलगंज में लखनऊ-फैजाबाद राजमार्ग पर केटीएल वर्कशाप के पास एक अधबने मकान में एक आदमी की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. खबर पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई आर.आर. कुशवाह और कुछ सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए.

लाश एक 40-45 साल के आदमी की थी. उस के शरीर पर कोई घाव वगैरह नहीं था. थाना प्रभारी ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे न पहचान सका. तब पुलिस ने पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

2 दिन बाद लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में मृतक के मरने की वजह श्वांस नली दबाने से होता बताया गया. यानी उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के पेट में एल्कोहल भी पाया गया.

थाना प्रभारी नोवेंद्र सिंह ने हत्या के इस मामले की जांच करनी शुरू कर दी. लेकिन उन के सामने सब से बड़ी समस्या लाश की शिनाख्त की थी. अभी तक उन्हें यह पता नहीं लग सका था कि वह लाश किस की थी? थानाप्रभारी ने लाश मिलने की सूचना एसपी ट्रांसगोमती हबीबुल हसन, सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय और लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार को भी दे दी थी.

लाश के पास से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला था जिस के सहारे जांच आगे बढ़ सके. वह आदमी जो कपड़े पहने था, थानाप्रभारी ने उन की गंभीरता से जांच की तो उन्हें उस की कमीज पर टेलर का नाम दिखा. कमीज पर लगे लेबल पर टेलर का नाम ‘न्यू फैंसी टेलर गोसाईंगंज’ लिखा था. लखनऊ के आसपास के जिलों में गोसाईंगंज नाम के 3 बाजार हैं. पहला लखनऊ जिले में है, दूसरा सुल्तानपुर में और तीसरा फैजाबाद जिले में है.

थानाप्रभारी ने इन बाजारों में ‘न्यू फैंसी टेलर’ का पता लगाना शुरू किया. लखनऊ जिले के गोसाईंगंज बाजार में पुलिस ‘न्यू फैंसी टेलर’ नाम के दरजी की दुकान पर पहुंची. पता चला वह दुकान बहुत पुरानी है. उस दरजी ने शर्ट देखते ही बता दिया कि वह लेबल उस के यहां का नहीं है.

इस के बाद पुलिस गाजीपुर पहुंची. वहां रूप कुमार नाम का टेलर मिला. उस ने शर्ट देखते ही बता दिया, ‘‘साहब, यह तो कल्लू भाई की शर्ट है.’’

रूप कुमार कल्लू को अच्छी तरह से जानता था, इसलिए वह बोला, ‘‘साहब, मुझे याद है कि इस शर्ट का कपड़ा वह लखनऊ के किसी मौल से लाए थे.’’

पुलिस ने जब उस से कल्लू भाई का पता मालूम लिया तो टेलर ने बता दिया कि वह यहीं के नूरपुर बेहटा गांव में रहते हैं. पहले वह यहीं रहते थे लेकिन कुछ दिनों से वह लखनऊ जा कर रहने लगे थे. वैसे गांव में उन के मातापिता वगैरह रहते हैं.

कपूत की करतूत : अपने पिता की दी सुपारी – भाग 2

अशोक उर्फ चौटाला ने उस नंबर पर 1 नवंबर, 2014 की सुबह, दोपहर, शाम और रात में फोन कर के काफी देर तक बातें की थीं. इस के अलावा इसी नंबर पर उस ने 2 नवंबर की सुबह 5 बजे, 11 बजे और शाम 6 बजे बातें की थीं. उसी दिन सुबह सवा 7 बजे मामन की हत्या हुई थी.

इस के बाद अशोक उर्फ चौटाला की उसी नंबर पर 25 दिसंबर से ले कर 28 दिसंबर, 2014 तक कुल 13 बार बातें हुईं थीं. इस के बाद 13 जनवरी से ले कर 17 जनवरी, 2015 तक 8 बार बातें हुई थीं. जिस नंबर पर बातें हुई थीं, वह नंबर रिलायंस का था. अशोक कुमार ने रिलायंस से इस नंबर के बारे में पता किया तो बताया गया कि वह नंबर उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के रहने वाले नीतू उर्फ काला का है.

हत्या में जिस मोटरसाइकिल का उपयोग हुआ था, वह भी बिजनौर की थी, इसलिए अशोक कुमार को लगा कि हत्या नीतू उर्फ काला ने ही की है. उन्होंने बिजनौर पुलिस से संपर्क कर के नीतू उर्फ काला के बारे में जानकारी मांगी तो पता चला कि 26 वर्षीय नीतू उर्फ काला पेशेवर अपराधी है. उस के खिलाफ उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अनेक थानों में लूट, हत्या, हत्या की कोशिश और रंगदारी के कई मुकदमे दर्ज थे. काला कई बार जेल भी जा चुका था. उस समय वह जमानत पर छूटा हुआ था. बिजनौर पुलिस ने उसे जिला बदर कर रखा था.

जब अशोक उर्फ चौटाला पूरी तरह संदेह के घेरे में आ गया तो अशोक कुमार ने अपने कुछ मुखबिर मामन के बेटे अशोक के पीछे लगा दिए. आखिर एक दिन उन्हें किसी मुखबिर से पता चला कि अशोक की शराब के ठेके पर 2 लोगों से झड़प हो रही थी. वे लोग उस से अपने पैसे मांग रहे थे, जो अशोक ने हत्या के एवज में देने का वादा किया था.

इस के बाद अशोक कुमार ने उन दोनों लोगों के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वे दोनों नीतू उर्फ काला और हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला सुपारी किलर जितेंद्र उर्फ ङ्क्षटकू थे. यह भी जानकारी मिली कि जितेंद्र काला का जिगरी दोस्त है. उस पर भी हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में कई संगीन अपराधों के मुकदमे दर्ज हैं. ये दोनों मिल कर अपराध करते हैं.

इस के बाद अशोक कुमार ने अपनी टीम के साथ हर उस जगह छापा मारा, जहां काला और ङ्क्षटकू मिल सकते थे. लेकिन वे कहीं नहीं मिले. अलबत्ता इस काररवाई में यह जरूर पता चला कि ङ्क्षटकू दिल्ली के छावला स्थित गांव ख्याला खुर्द में किराए का मकान ले कर रहता है, जबकि काला दिल्ली के नरेला के सैक्टर ए-6 के पौकेट 1 में मकान नंबर 167 में किराए पर रहता है. लेकिन दोनों वहां भी नहीं मिले.

इसी बीच पुलिस को पता चला कि मृतक मामन के बेटे अशोक ने 90 लाख में 2 एकड़ जमीन बेची है. मामन का बेटा शक के दायरे में आया था तो अशोक कुमार ने उन की बेटी सोनम के सोनीपत स्थित घर जा कर पूछताछ की थी. इस पूछताछ में उन्होंने जरा भी यह जाहिर नहीं होने दिया था कि उन्हें उस के भाई पर शक है. उन का पहला सवाल था,

“तुम्हारे पिता की किसी से ऐसी कोई दुश्मनी तो नहीं थी, जिस की वजह से उन की हत्या की गई हो?”

“पापा बहुत अच्छे इंसान थे,” सोनम ने कहा, “वह हर किसी के दुखसुख में खड़े रहते थे. भला ऐसे आदमी की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी?”

“फिर भी उन की हत्या हो गई. हत्या की कोई तो वजह होगी? तुम्हारे ख्याल से क्या वजह हो सकती है?” अशोक कुमार ने पूछा.

सोनम कुछ क्षण सिर नीचा किए बैठी रही. उस के बाद गहरी सांस ले कर बोली, “क्या कहूं सर, मेरे ख्याल से पापा की हत्या संपत्ति की वजह से हुई है. मेरा भाई बहुत ज्यादा लाड़प्यार की वजह से बिगड़ गया था. वह अय्याश और नशेबाज है. जुआ भी खेलता है. उस की इन गलत आदतों की वजह से पापा ने उसे और उस की पत्नी को अलग मकान दे कर घर से निकाल दिया था. कोई कारोबार करने के लिए उसे 6-7 लाख रुपए भी दिए थे. भाई ने कारोबार करने के बजाय वे रुपए अपने गलत शौकों में उड़ा दिए. उस के बाद वह लोगों से कर्ज ले कर खर्च करता रहा. पता चला है कि इस समय एक करोड़ के करीब कर्ज है. कर्ज देने वाले उसे परेशान कर रहे थे.”

“तुम्हारे कहने का मतलब है कि तुम्हारे भाई ने पिता की हत्या कराई है?”

“मुझे तो ऐसा ही लगता है.”

“तुम्हारे पिता के पास कितनी संपत्ति होगी?”

“कई मकान, सैकड़ों एकड़ जमीन, करोड़ों का बैंक बैलेंस. कुल मिला कर सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति होगी.”

“इतनी संपत्ति के लिए तो तुम भी पिता की हत्या करवा सकती हो?”

“मैं पापा की हत्या क्यों कराऊंगी. सारी संपत्ति तो वैसे ही वह मेरे नाम करने जा रहे थे.”

“यह बात तुम्हारे भाई को पता थी?”

“जी पता थी. इस बात को ले कर वह अकसर पापा और मुझ से झगड़ा भी करता रहता था. पापा ने उस से कह भी दिया था कि वह उसे एक पैसा नहीं देंगे.”

इस के बाद उन्होंने अशोक उर्फ चौटाला की तलाकशुदा पत्नी रोशनी के घर जा कर पूछताछ की थी. रोशनी ने बताया था कि अशोक शराबी, जुआरी, बाजारू औरतों के पास जा कर मुंह काला करने वाला बदतमीज इंसान है. ऐसे आदमी के साथ कौन औरत गुजारा कर सकती है. परेशान हो कर उस ने भी तलाक ले लिया.

उस के ससुर बहुत अच्छे आदमी थे. अपने गलत शौक पूरे करने के लिए अशोक उन से पैसे मांगता था. पैसे न मिलने पर वह उन के साथ गालीगलौज करता था. कई बार उस ने उन्हें जान से मरवाने की धमकी भी दी थी. जरूर उसी ने उन की हत्या कराई होगी.

अशोक कुमार ने ये सारी बातें एसीपी जितेंद्र ङ्क्षसह को बताईं तो उन्होंने तुरंत अशोक उर्फ चौटाला को हिरासत में लेने का आदेश दे दिया. इस के बाद 22 सितंबर, 2015 को अशोक कुमार की टीम अशोक उर्फ चौटाला को हिरासत में ले कर नेहरू प्लेस स्थित थाना क्राइम ब्रांच ले आई, जहां उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की जाने लगी. पुलिस के पास उस के खिलाफ सारे सबूत थे ही, मजबूरन उसे अपना अपराध स्वीकार कर के सच बताना पड़ा.

इस के बाद पुलिस टीम ने अशोक उर्फ चौटाला की निशानदेही पर जितेंद्र उर्फ ङ्क्षटकू और नीतू उर्फ काला को भी दिल्ली के छावला इलाके से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने 23 सितंबर, 2015 को तीनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया, जहां से पूछताछ के लिए तीनों को एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने नीतू और ङ्क्षटकू की निशानदेही पर गांव ख्याला खुर्द के एक बाग से हत्या में प्रयुक्त गुप्ती बरामद कर ली. रिमांड खत्म होने पर तीनों को 24 सितंबर, 2015 को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. हत्याभियुक्तों के बयान के आधार पर मामन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी:

मामन पुश्तैनी रईस थे, लेकिन वह उन रईसों में नहीं थे, जो विरासत में मिली धनसंपत्ति से ऐश करते हैं. उन्होंने पुरखों से मिली धनसंपत्ति का सदुपयोग करते हुए उस में इजाफा ही किया था. उन की पत्नी की मौत तभी हो गई थी जब बेटा अशोक 14 साल का और बेटी सोनम 11 साल की थी. लोगों के कहने पर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी और बच्चों को खुद ही पालने लगे थे. अधिक लाड़प्यार की वजह से बेटा अशोक बिगड़ गया था.

दूसरी बीवी का खूनी खेल – भाग 1

‘‘बाबूजी, आप की पूरी जिंदगी इसी खेती किसानी में निकल गई.

बदले में क्या मिला? न तो अच्छा जीवन जी सके और न ही कोई ऐसा काम किया जिस से दुनिया में आप का नाम हो. आप की जिंदगी इस गांव में ही सिमट कर रह गई है. कभी शहर में रह कर देखो तब महसूस होगा कि यहां के जीवन और वहां के जीवन में कितना फर्क है?’’ संतोष ने अपने पिता महाराज बख्श सिंह से कहा. वह पिता को बाबूजी कहता था.

महाराज बख्श सिंह लखनऊ जिले से 26 किलोमीटर दूर गोसाईंगंज इलाके के नूरपूर बेहटा गांव में रहते थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी, इसलिए उन की गिनती गांव के प्रतिष्ठित किसानों में होती थी. गांव में रहने के नाते उन का जीवन सरल और सीधा था.

उन्होंने संतोष को पढ़ाना चाहा, लेकिन जब उस का पढ़ाईलिखाई में मन नहीं लगा तो उन्होंने कम उम्र में ही उस की शादी मोहनलालगंज की रहने वाली राजकुमारी के साथ कर दी थी. शादी हो जाने के बाद संतोष अपनी घरगृहस्थी में रम गया. बाद में राजकुमारी 2 बेटों की मां भी बनी. इस के बाद तो उन के घर में खुशियां और बढ़ गईं. बच्चे बड़े हुए तो उन का दाखिला गांव के ही स्कूल में करा दिया.

संतोष गांव में रह कर पिता के साथ खेती करता था, लेकिन खेती के काम में उस का मन नहीं लगता था. इस के अलावा उसे एक गलत लत यह लग गई थी कि उस ने अपने यारदोस्तों के साथ शराब पीनी शुरू कर दी थी. शुरू में महाराज बख्श सिंह ने उसे काफी समझाया था, लेकिन उस ने पिता की बात को अनसुना कर दिया था.

संतोष रोज शराब पी कर वह घर लौटता और पत्नी के साथ झगड़ता था. इस से पत्नी भी परेशान हो गई थी. संतोष का गांव में मन नहीं लगता था. वह चाहता था कि अपने परिवार के साथ शहर में रहे. इस की वजह यह थी कि उस के गांव की जमीन के भाव काफी बढ़ चुके थे. जिस की वजह से गांव के कुछ लोग अपनी खेती की जमीन बेच कर शहर चले गए थे. शहर जा कर उन्होंने अपने निजी कामधंधे शुरू कर दिए और वहां मजे की जिंदगी गुजार रहे थे. बच्चों के दाखिले भी उन्होंने अच्छे स्कूलों में करा रखे थे. उन की देखादेखी संतोष भी शहर जाना चाहता था. इसीलिए वह बारबार पिता पर जमीन बेचने का दबाव डाल रहा था.

महाराज बख्श सिंह जानते थे कि बेटे को दुनियादारी की अभी इतनी समझ नहीं है. वह शहरी जिंदगी के रहनसहन और चकाचौंध की ओर खिंचा जा रहा है इसलिए उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा अपना गांव और अपना खेत ही अपनी पहचान होती है. शहर में कामधंधा करना तो ठीक है पर अपने खेत बेच कर वहां रहना मेरे लिए संभव नहीं है. इसलिए मैं तुझ से भी यही कहना चाहता हूं कि ऐसी बातें मन से निकाल कर यहीं काम में मन लगा.’’

‘‘बाबूजी, हम ने नहर के किनारे वाली 4 बीघा जमीन का सौदा कर लिया है. 60 लाख रुपए मिल जाएंगे. इस पैसे से मैं आप को नया काम कर के दिखा दूंगा. तब आप को लगेगा कि मेरी बात में कितना दम है.’’

‘‘बेटा, तुम्हारी बात में कोई दम नहीं है. तुम शराब के नशे में गलत कदम उठा रहे हो. जमीन बेच कर तुम सारा घरपरिवार बरबाद कर दोगे.’’ महाराज बख्श सिंह बेटे को समझा रहे थे. आवाज सुन कर संतोष की पत्नी राजकुमारी भी वहां आ गई. ससुर की बात पूरी होने से पहले ही वह बोली, ‘‘बाबूजी, आप इन की बातों में मत आना. इन के शराबी यारदोस्तों ने ही इन्हें यह सलाह दी होगी.’’

पत्नी के बीच में बोलने पर संतोष उस के ऊपर बिफर पड़ा, ‘‘मेरी तरक्की से तुझे क्या परेशानी हो रही है. तू नहीं चाहती कि मैं यहां से शहर जाऊं और अच्छी जिंदगी गुजरबसर करूं. तू ने मेरे पैरों में परिवार की बेडि़यां डाल रखी हैं. लेकिन तू अच्छी तरह जान ले कि मैं ने गांव की जमीन बेच कर शहर में काम करने की ठान ली है. अब मुझे इस काम से कोई नहीं रोक सकता.’’ इस के बाद संतोष और राजकुमारी के बीच कहासुनी शुरू हो गई. बेटेबहू की लड़ाई देख कर 70 साल के महाराज सिंह बरामदे में पड़ी चारपाई पर बैठ गए.

बेटे की ऐसी जिद देख कर उन्हें घरपरिवार का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था. वह समझ रहे थे कि बेटा जिद्दी है. वह मानेगा नहीं. इसलिए वह राजकुमारी को ही समझाते हुए बोले, ‘‘बहू इस के मुंह मत लग, जो करता है करने दे. ठोकर खाएगा तो इसे समझ आ जाएगी. शहर में रह कर कामधंधा चलाना कोई आसान काम नहीं. हम ने बहुतों को बरबाद होते देखा है.’’

‘‘बाबूजी शहर जा कर बहुत लोग बन भी गए हैं, उन की जानकारी आप को नहीं है. कुछ अच्छा भी सोचा करें.’’ इतना कह कर संतोष गुस्से में बाहर चला गया. जिस जमीन को बेचने की बात संतोष कर रहा था वह असल में उस के ही नाम थी. पहले वह जमीन ऊसर थी लेकिन अब वहां से सड़क निकल गई तो उस की कीमत बढ़ गई है.

महाराज बख्श सिंह सोचने लगे कैसी विडंबना है कि शहर के लोग महंगी कीमत में जमीन खरीद कर गांवों से जुड़ना चाहते हैं और गांव के लोग जमीन बेच कर शहरों की चकाचौंध में फंसना चाहते हैं. चूंकि संतोष को शहर जाने की सनक सवार थी, इसलिए उस ने अपनी जमीन बेच दी. महाराज सिंह ने उसी समय समझदारी दिखाते हुए जमीन की कीमत का बड़ा हिस्सा संतोष के बेटों के नाम पर बैंक में जमा कर दिया. उन्होंने संतोष को केवल 4 लाख रुपए ही दिए.

संतोष के पास पैसा आ चुका था. इसलिए वह काम की तलाश में लखनऊ चला गया. उसे किसी कामधंधे की जानकारी तो थी नहीं इसलिए लखनऊ जाने के बाद भी वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या काम शुरू करे? ज्यादा से ज्यादा उस ने ढाबा और होटल ही देखे थे और उन के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी थी.

शहर में उसे ऐसी कोई जगह नहीं मिली जहां वह अपना काम शुरू कर सके. एकदो जगह उस ने देखी भी लेकिन उन का किराया बहुत ज्यादा था. शहर में ढाबा खोलना उस के बूते के बाहर था. उसे शहर के बाहर बसी कालोनियों में ढाबा खोलना और चलाना आसान लग रहा था.

संतोष पहले जब कामधंधे की तलाश में लखनऊ आता तो वहां वह एक ढाबे पर खाना खाता था. उस की जानपहचान उस ढाबे पर खाना बनाने वाले श्याम कुमार से थी. संतोष ने उसी के साथ काम शुरू करने की योजना बनाई.

वह श्याम के पास पहुंच कर बोला, ‘‘श्याम भाई, तुम बहुत अच्छा खाना बनाते हो. मुझे उम्मीद है कि यहां तुम जितनी मेहनत करते हो, उस के अनुसार तुम्हें पैसे भी नहीं मिलते होंगे. मैं भी एक ढाबा खोलना चाहता हूं और चाहता हूं कि उस ढाबे को हम दोनों मिल कर चलाएं.’’

यह सुन कर श्याम खुश हो गया. उसे फ्री में बिजनेस करने का मौका मिल रहा था. इसलिए उस ने संतोष के साथ काम करने की हामी भर ली. उस ने कहा, ‘‘संतोष भाई, यहां तो कोई ऐसी जगह नहीं है जहां ढाबा खोला जा सके लेकिन जानकीपुरम इलाके में सेक्टर-2 के पास एक ढाबा है. वो ढाबा इस समय चल नहीं रहा है. तुम कहो तो मैं बात करूं?’’

‘‘ठीक है, तुम बात करो हम मिल कर उस ढाबे को चलाएंगे.’’ संतोष ने कहा तो श्याम ने उस ढाबे के मालिक से बात कर ली. वह उन्हें अपना ढाबा किराए पर देने के लिए राजी हो गया. इस के बाद दोनों ही उस ढाबे को चलाने लगे. दोनों की मेहनत से काम चल निकला.

कपूत की करतूत : अपने पिता की दी सुपारी – भाग 1

62 वर्षीय मामन जमींदार परिवार से थे, इसलिए इलाके के लोग उन का काफी सम्मान करते थे. इस उम्र में भी वह पूरी तरह स्वस्थ थे. इस की वजह यह थी कि वह बहुत ही अनुशासित जीवन जीते थे. वह हर रोज सुबह घर से काफी दूर स्थित पार्क में टहलने जाते थे और अपने हर मिलने वाले का कुशलक्षेम पूछते हुए 7, साढ़े 7 बजे तक घर लौटते थे.

2 नवंबर, 2014 की सुबह जब वह पार्क में टहल कर सवा 7 बजे घर लौट रहे थे तो गली में एक पल्सर मोटरसाइकिल उन के सामने आ कर इस तरह रुकी कि वह उस से टकरातेटकराते बचे. मोटरसाइकिल पर 2 युवक सवार थे. उन के चेहरों पर रूमाल बंधे थे. युवकों की यह हरकत मामन को नागवार गुजरी तो उन्होंने युवकों को डांटने वाले अंदाज में कहा, “यह कैसी बदतमीजी है, तुम्हारे मांबाप ने तुम्हें यह नहीं सिखाया कि बुजुर्गों से किस तरह पेश आना चाहिए?”

“सिखाया तो था, लेकिन हम ने सीखा ही नहीं,” मोटरसाइकिल चला रहे युवक ने हंसते हुए कहा, “ताऊ, हम ने तो एक ही बात सीखी है, पैसा लो और खेल खत्म कर दो.”

“क्या मतलब?” मामन ने हकबका कर पूछा.

मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे युवक ने उतरते हुए कहा, “ताऊ मतलब बताने से अच्छा है, कर के ही दिखा दूं.”

इसी के साथ उस ने हाथ में थामी गुप्ती निकाल कर मामन के पेट में घुसेड़ दी. चीख कर मामन जमीन पर बैठ गए. उस वक्त वह इस तरह घिरे थे कि भाग भी नहीं सकते थे. उन की चीख सुन कर कुछ लोग घरों से निकल आए. तभी मोटरसाइकिल पर सवार युवक ने पिस्तौल लहराते हुए धमकी दी, “अगर कोई भी नजदीक आया तो गोली मार दूंगा.”

उस की इस धमकी से किसी की आगे आने की हिम्मत नहीं पड़ी. इस बीच वह युवक मामन पर गुप्ती से लगातार वार करता रहा. वह चीखते रहे, छटपटाते रहे. लेकिन वह उन्हें गुप्ती से तब तक गोदता रहा, जब तक उन की मौत नहीं हो गई. जब उसे लगा कि मामन मर चुके हैं तो वह कूद कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया. उस के बाद मोटरसाइकिल पर सवार युवक तेजी से मोटरसाइकिल चलाता हुआ चला गया.

मामन इलाके के जानेमाने और सम्मानित व्यक्ति थे. उन की हत्या की खबर पलभर में पूरे इलाके में फैल गई. जहां हत्या हुई थी, थोड़ी ही देर में वहां भारी भीड़ जमा हो गई. किसी ने इस घटना की सूचना फोन से थाना नरेला को दे दी.

इलाके के एक सम्मानित व्यक्ति की हत्या होने की सूचना से थाना नरेला की पुलिस तुरंत हरकत में आ गई. थाने से एएसआई राजेंद्र सिंह, महिला सिपाही मधुबाला, अभिमन्यु एवं बीट के सिपाहियों को तुरंत घटनास्थल पर भेजा गया. राजेंद्र सिंह ने घटनास्थल एवं शव का निरीक्षण कर के वहां एकत्र लोगों से पूछताछ की. इस के बाद औपचारिक काररवाई निपटा कर उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजा हरिश्चंद्र अस्पताल भिजवा दिया.

थाना नरेला पुलिस की जांच का सिलसिला काफी लंबा चला. इस के बावजूद पुलिस न हत्या की वजह जान सकी और न हत्यारों का सुराग लगा सकी. मामन की हत्या जिन 2 युवकों ने की थी, उन्होंने चेहरों पर रूमाल बांध रखे थे, इसलिए हत्या के समय घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी पुलिस को उन के बारे में कुछ भी नहीं बता सके थे. हां, किसी ने उस पल्सर मोटरसाइकिल का नंबर जरूर बता दिया था, जिस से दोनों हत्यारे भागे थे.

पुलिस ने उस नंबर की मोटरसाइकिल के बारे में पता किया तो पता चला कि वह उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर की थी. उस के मालिक ने स्थानीय थाने में 1 नवंबर, 2014 को मोटरसाइकिल की चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा रखी थी. बाद में 13 नवंबर, 2014 को वह नरेला के जंगल से बरामद हो गई थी.

दिल्ली के नरेला स्थित गांव बांकनेर के ममनीरपुर रोड पर मामन का आलीशान मकान था. उस इलाके में मामन के 5 अन्य मकान थे, जिन में तमाम किराएदार रहते थे. हर महीने किराए के रूप में उन्हें करीब 3 लाख रुपए मिलते थे. इस के अलावा उन के पास सैकड़ों एकड़ खेती की जमीन थी. साथ ही वह ब्याज पर पैसा देने का काम भी करते थे. ब्याज के भी उन्हें लाखों रुपए मिलते थे.

मामन के परिवार में एक बेटा अशोक उर्फ चौटाला और एक बेटी सोनम थी. उन की पत्नी की मौत तब हो गई थी, जब बेटी 11 साल की और बेटा 14 साल का था. सयानी होने पर सोनम की शादी उन्होंने हरियाणा के सोनीपत निवासी सत्येंद्र से कर दी थी. अशोक का विवाह उन्होंने दिल्ली के बसंतकुंज के रहने वाले हरिप्रसाद की बेटी रोशनी से किया था. लेकिन अशोक से रोशनी की पटरी नहीं बैठी. वह तलाक ले कर मायके में रहने लगी.

अदालत के आदेश पर उसे हर महीने 20 हजार रुपए गुजाराभत्ता मिलता था, जिसे अशोक हर माह अदालत में जमा करता था. अशोक राजा हरिशचंद्र अस्पताल में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करता था. मतभेदों के चलते मामन ने उसे घर से निकाल दिया था. वह मामन के बनवाए दूसरे मकान में अकेला रहता था.

मामन काफी मिलनसार थे. उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. दुश्मनी होती भी कैसे, वह हर किसी के सुखदुख में खड़े रहते थे. किसी बीमार को इलाज के लिए पैसों की जरूरत होती अथवा किसी की बेटी की शादी होती तो वह बिना ब्याज के पैसा देते थे. जितनी हो सकती थी, मदद भी करते थे. इसी वजह से इलाके के लोग उन की इज्जत करते थे. ऐसे आदमी की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती थी, यह बात पुलिस समझ नहीं पा रही थी.

थाना नरेला पुलिस ने अपने स्तर से काफी छानबीन की, लेकिन वह हत्यारों का सुराग नहीं लगा सकी. जब थाना पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर सकी तो 13 फरवरी, 2015 को यह मामला दिल्ली की अपराध शाखा को सौंप दिया गया. अपराध शाखा के जौइंट कमिश्नर रविंद्र कुमार ने थाना नरेला पुलिस द्वारा की गई जांच का अध्ययन करने के बाद यह केस क्राइम ब्रांच के एडिशनल कमिश्नर अजय कुमार को सौंप दिया. अजय कुमार ने इस मामले की जांच के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राजीव कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में क्राइम ब्रांच के एसीपी जितेंद्र ङ्क्षसह, इंसपेक्टर अशोक कुमार आदि को शामिल किया गया.

थाना नरेला पुलिस ने अपनी जांच की जो फाइल तैयार की थी, इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उसे ध्यान से पढ़ा. उन्हें इस बात पर हैरानी हुई कि थाना पुलिस ने मामन , उन के बेटे अशोक, बेटी सोनम व सोनम के पति के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच करने की जहमत नहीं उठाई थी, जबकि आजकल तमाम केसों का खुलासा मोबाइल फोन से ही हो जाता है.

अशोक कुमार ने तुरंत मृतक मामन, उन के बेटे अशोक उर्फ चौटाला, बेटी सोनम और उस के पति सत्येंद्र के मोबाइल नंबरों को सॢवलांस पर लगवाने के साथ उन के नंबरों की 1 नवंबर से 15 नवंबर, 2014 तक की काल डिटेल्स निकलवाई. उन्होंने तीनों की काल डिटेल्स को ध्यान से देखी तो मामन के बेटे अशोक उर्फ चौटाला की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उन्हें संदेह हुआ.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 7

धनंजय को अगले दिन कोर्ट में पेश करना था. उस रात प्रकाश राय देर तक औफिस में ठहरे थे. एक सिपाही से उन्होंने धनंजय को अपने पास बुलवाया और उसे कुर्सी पर बैठा कर बोले,”धनंजय, मेरा काम पूरा हो गया है. कल तुम्हें जेल भेजने के बाद हमारी मुलाकात कोर्ट में होगी. मुझे मालूम है कि तुम कुछ न कुछ छिपा रहे हो. मैं सत्य जानने के लिए उत्सुक हूं. अब तुम मुझे कुछ भी बतोओगे, उस का कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारे सारे कागजात तैयार हो गए हैं. उस में परिवर्तन नहीं हो सकता है. तुम जो कुछ भी बताओगे, वह मेरे तक ही सीमित रहेगा. अब मुझे बताओ कि तुम ने आनंद और आनंदी को रोहिणी की हत्या की खबर क्यों नहीं दी और आनंदी के फोन नंबर का ‘जी’ तुम ने क्यों फाड़ डाला?”

धनंजय गंभीर हो गया. उस की आंखों में आंसू भर आए. कुछ क्षणों बाद खुद को संभालते हुए बोला, “जो सच है, मैं सिर्फ आप को बता रहा हूं. एक सुखी परिवार को नष्ट करना या बचाना, आप के हाथ में है. पर मुझे विश्वास है कि आप यह बात किसी और को नहीं बताएंगे.

“आगरा में रोहिणी की मौसेरी बहन का विवाह था. उसी विवाह में हम आगरा गए थे. विवाह के बाद शताब्दी एक्सप्रेस से हम लौट रहे थे तो हमारी मुलाकात आनंद और आनंदी से हो गई. वे सामने की सीट पर बैठे थे. मैं 2-3 पैग पिए हुए था, फिर भी मुझे नींद नहीं आ रही थी. उस समय मेरी नींद उड़ गई थी.”

“ऐसा क्यों?”

“मेरे सामने बैठी आनंदी और कोई नहीं, मेरी प्रेमिका थी. हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते थे.”

“क्या?” प्रकाश राय की आंखें हैरानी से फैल गईं, “अच्छा, फिर क्या हुआ?”

“मेरी क्या हालत हुई होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं. पास में पत्नी बैठी थी और सामने प्रेमिका, वह भी अपने पति के साथ. मुझे देखते ही आनंदी भी परेशान हो गई थी. मैं असहज मानसिक अवस्था और बेचैनी के दौर से गुजर रहा था, वह भी उसी दौर से गुजर रही थी. सचसच कहूं तो हम दोनों ही अपने ऊपर काबू नहीं रख पा रहे थे.

“इस मुलाकात के असर से उबरने में मुझे 4 दिन लगे. तब मुझे नहीं मालूम था कि एक चक्रव्यूह से निकल कर मैं दूसरे चक्रव्यूह में फंस गया हूं. तब मैं यह भी नहीं जानता था कि इस दूसरे चक्रव्यूह से निकलने के लिए मुझे रोहिणी की हत्या करनी पड़ेगी. खैर…

“ट्रेन में आनंदी और रोहिणी की गप्पें जो शुरू हुईं तो थोड़ी देर बाद वे एकदूसरे की पक्की सहेली बन गईं. आनंदी 2-3 बार मेरे घर भी आई थी. खुदा का लाख शुक्र था कि हर बार मैं घर पर नहीं रहा. मैं आनंदी से मिलना भी नहीं चाहता था. मैं उस से संबंध बढ़ा कर रोहिणी को धोखा देना नहीं चाहता था. इसलिए रोहिणी और आनंदी की बढ़ती दोस्ती से मैं चिंतित था.”

धनंजय सांस लेने के लिए रुका. प्रकाश राय को लगा, कुछ कहने के लिए वह अपने आप को तैयार कर रहा है. उन का अंदाजा गलत नहीं था. धनंजय भारी स्वर में बोला, “एक दिन ऐसी घटना घटी कि मैं पागल सा हो गया. मुझे लगा, मेरे दिमाग की नसें फट जाएंगी. अपने सिर को दोनों हाथों से थाम कर मैं जहां का तहां बैठ गया. अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो गया.

मैं कंपनी के काम से सेक्टर-18 गया था. वहां एक होटल में मैं ने रोहिणी को एक युवक के साथ सटी हुई बैठी देखा, हकीकत जाहिर करने के लिए यह काफी था. मैं यह जानता था कि उस होटल में रूम किराए पर मिलते थे. मैं उस होटल से थोड़ी दूरी पर ही बैठ कर कल्पना से सब देखता रहा. खून कैसे खौलता है, मैं ने उसी वक्त महसूस किया. 12 बजे उस होटल में गई रोहिणी 4 बजे बाहर निकली थी.

“इसके बाद कुछ दिनों की छुट्टी  ले कर मैं ने रोहिणी का पीछा किया. अनेक बार रोहिणी मुझे उसी युवक के साथ दिखाई दी. वह युवक और कोई नहीं, आनंद था…आनंदी का पति.”

धनंजय ने आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछा. प्रकाश राय स्तब्ध बैठे थे, पत्थर की मूर्ति बने. थोड़ी देर बाद शांत होने पर धनंजय बोला, “कैसा अजीब इत्तफाक था. विवाह से पहले मेरी प्रेमिका के साथ मेरे शारीरिक संबंध थे और विवाह के बाद मेरी प्रेमिका के पति के साथ मेरी पत्नी के शारीरिक संबंध. आनंदी को तो मैं पहले से जानता था, लेकिन रोहिणी और आनंद की पहचान तो शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी.

यात्रा के दौरान जिस चक्रव्यूह में मैं फंसा था, उस से निकलने के लिए मैं ने रोहिणी को हमेशा के लिए मिटा दिया और आनंदी मेरी नजरों के सामने न आए, इसीलिए मैं ने टेलीफोन डायरी से ‘जी’ पेज फाड़ दिया था. मुझे जो भी सजा होगी, इस का मुझे जरा भी रंज नहीं होगा. मैं खुशीखुशी सजा भोग लूंगा. बस यही है मेरी दास्तान.”

इस केस की बदौलत आनंद और आनंदी से प्रकाश राय की जानपहचान हो गई थी. कुछ दिनों बाद आनंद से उन्हें एक ऐसी बात पता चली कि उन का सिर चकरा कर रह गया था. जबजब आनंद और आनंदी उन के सामने आते थे, वह बेचैन हो जाते थे और सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि काश, धनंजय और आनंदी एवं रोहिणी और आनंद का विवाह हो गया होता.

एक दिन बातचीत में आनंद ने कहा, “मुझे धनंजय की सजा का दुख नहीं है. अच्छा ही हुआ, उसे सजा होनी भी चाहिए. मुझे दुख है तो रोहिणी का. मैं ने आप से कहा था कि रोहिणी की और मेरी मुलाकात शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. रोहिणी को देख कर मैं अभेद्य चक्रव्यूह में फंस गया था. आगरा से दिल्ली तक की यात्रा के घंटे मैं ने कैसे बिताए, मैं ही जानता हूं, क्योंकि मेरे सामने बैठी रोहिणी कोई और नहीं, मेरी पूर्व प्रेमिका थी.”

यह सुनते ही प्रकाश राय के होश फाख्ता होतेहोते बचे. विचित्र था संयोग और भयानक थी भाग्य की विडंबना. क्या सचमुच नियति के खेल में मनुष्य मात्र खिलौना होता है?

(कथा सत्य घटना पर आधारित है, किसी का जीवन बरबाद न हो, कथा में स्थानों एवं सभी पात्रों के नाम बदले हुए हैं)

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 6

प्रकाश राय ने फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट अलग रख कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट गौर से देखना शुरू किया था. रिपोर्ट के अनुसार, रोहिणी की मृत्यु लगभग 12 से 14 घंटे पहले हुई थी. रोहिणी का पोस्टमार्टम शाम 4 बजे हुआ था यानी राहिणी की मृत्यु आधी रात के बाद 2 बजे से सुबह 4 बजे के बीच हुई थी. फिर धनंजय सवा 6 बजे से 7 बजे के बीच हत्या होने की बात कैसे कह रहा था? पूरा माजरा प्रकाश राय की समझ में धीरेधीरे आता जा रहा था.  धनंजय को अपने ही घर में चोरी करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल का जवाब भी प्रकाश राय की समझ में आ गया था.

उन्होंने राजेंद्र सिंह को समझाते हुए कहा, “राजेंद्र सिंह, धनंजय बहुत ही चालाक है. तुम एक काम करो,पिछले 2 दिनों से धनंजय बाहर नहीं गया है. आज भी वह घर पर ही होगा. कुछ दिनों बाद वह चोरी का सामान किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर जरूर रखेगा. उस का सारा घर हम लोगों ने छान मारा है. हो सकता है, उस ने बिल्डिंग में ही कहीं सामान छिपा कर रखा हो या फिर…

“धनंजय जिस वक्त गोश्त लाने निकला था, उस समय उस ने सामान कहीं बाहर रख दिया होगा. पर उस ने कहां रखा होगा. राजेंद्र सिंह, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह थैली ले कर नीचे उतरा हो और स्कूटर की डिक्की में रख दी हो?  हो सकता है राजेंद्र सिंह,” प्रकाश राय चुटकी बजाते हुए बोले, “वह थैली अभी उसी डिक्की में ही हो? राजेंद्र सिंह तुम फौरन अपने स्टाफ सहित निकल पड़ो और धनंजय पर नजर रखो.”

इस के बाद राजेंद्र सिंह ने अलकनंदा के आसपास अपने सिपाहियों को धनंजय पर निगरानी रखने के लिए तैनात कर दिया था. धनंजय अपने स्कूटर पर ही निकलेगा, यह राजेंद्र सिंह जानते थे. इसलिए राजेंद्र सिंह ने स्कूटर वाले और टैक्सी वाले अपने 2 मित्रों को सहायता के लिए तैयार किया. सारी तैयारियां कर के राजेंद्र सिंह अलकनंदा के पास ही एक इमारत में रह रहे अपने एक गढ़वाली मित्र के घर में जम गए.

5 तारीख का दिन बेकार चला गया. धनंजय और उस के परिवार को सांत्वना देने के लिए लोगों का आनाजाना लगातार बना हुआ था. शायद इसीलिए धनंजय बाहर नहीं निकल पाया था. लेकिन 6 तारीख को दोपहर के समय धनंजय के नीचे उतरते ही राजेंद्र सिंह सावधान हो गए. धनंजय अपनी स्कूटर स्टार्ट कर के जैसे ही बाहर निकला, वैसे ही अपने सिपाहियों के साथ टैक्सी में बैठ कर राजेंद्र सिंह उस के पीछे हो लिये.

गोल चक्कर होते हुए धनंजय निरुला होटल के पास स्थित बैंक के सामने आ कर रुक गया. राजेंद्र सिंह ने थोड़ी दूरी पर ही टैक्सी रुकवा दी. स्कूटर खड़ी कर के धनंजय ने डिक्की खोली और कपड़े की एक थैली निकाली. धनंजय के हाथ में थैली देख कर ही राजेंद्र सिंह ने मन ही मन प्रकाश राय के अनुमान की प्रशंसा की.

थैली ले कर धनंजय के बैंक में घुसते ही राजेंद्र सिंह ने अपने मित्र को बैंक में भेजा, क्योंकि यह जानना जरूरी था कि धनंजय का बैंक में खाता है या किसी परिचित से मिलने गया था. थैली किसी को देने गया था या लौकर में रखने? उन के मित्र ने लौट कर उन्हें बताया कि धनंजय मैनेजर के साथ लौकर वाले कमरे में गया है. इस से पहले सीधे मैनेजर की केबिन में जा कर उस ने एक फार्म भरा था.

धनंजय को खाली हाथ बाहर आते देख कर अपने 2 सिपाहियों को उस का पीछा करने के लिए कह कर राजेंद्र सिंह वहीं ओट में खड़े हो गए. धनंजय के वहां से जाते ही राजेंद्र सिंह सीधे बैंक मैनेजर की केबिन में पहुंचे. अपना परिचय दे कर उन्होंने कहा, “अभी 5 मिनट पहले जिस व्यक्ति ने आप के यहां लौकर लिया है, वह वांटेड है. हमारे आदमी उस का पीछा कर रहे हैं. आप हमें सिर्फ यह बताइए कि आप से उस की क्या बातचीत हुई. “

“धनंजय को एक महीने के लिए लौकर चाहिए था. यहां उपलब्ध लौकर्स में से उस ने 106 नंबर लौकर पसंद किया. नियमानुसार फार्म भर कर एडवांस जमा किया और लौकर में एक थैली रख कर चला गया.”

लौकर खोलने के लिए 2 चाबियां लगती थीं. पहले बैंक की चाबी, फिर जिस व्यक्ति ने लौकर लिया हो, उस की चाबी से लौकर खुल सकता था. बैंक अधिकारी तहखाने में बने सेफ डिपौजिट वाल्ट में आ कर एक चाबी से लौकर खोल कर चले जाते थे. बाद में ग्राहक बैंक से प्राप्त चाबी से लौकर को खोल कर जो भी सामान रखना चाहे, रख सकता था. इसलिए ग्राहक ने लौकर में क्या रखा या निकाला, बैंक को इस की जानकारी नहीं रहती है.

राजेंद्र सिंह ने बैंक से ही प्रकाश राय को फोन किया. इस के बाद राजेंद्र सिंह ने बैंक मैनेजर से कहा, “यह व्यक्ति शायद कल फिर आए, तब इसे लौकर खोलने की इजाजत मत दीजिएगा. मैं कुछ सिपाही कल सवेरे बैंक खुलने से पहले ही यहां भेज दूंगा. वह यहां आया तो इसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा. अगर यह खुद नहीं आया तो हम इसे ले कर आएंगे.”

धनंजय को बैंक ले जाने के लिए जब प्रकाश राय अलकनंदा पहुंचे थे तो वहां शो केस की वस्तुओं को देखने के बहाने उन्होंने चाबी के गुच्छों में लौकर नंबर 106 की चाबी देख ली थी. टेलीफोन के पास रखी धनंजय की टेलीफोन डायरी को उन्होंने केवल आनंदी का नंबर जानने के लिए यों ही उल्टापलटा था. ‘ए’ पर आनंदी का नंबर न पा कर उन्होंने ‘जी’ पर नजर दौड़ाने के लिए पन्ने पलटे, क्योंकि आनंदी का पूरा नाम आनंदी गौड़ था. मगर ‘एफ’ और ‘एच’ के बीच का ‘जी’ पेज गायब था. वह पेज फाड़े जाने के निशान मौजूद थे.

पकड़े जाने के थोड़ी देर बाद ही धनंजय ने अपने आप पर काबू पा लिया था. गहरी सांस ले कर उस ने कहा, “इंसपेक्टर साहब, मैं ने ही अपनी बीवी की हत्या की है. उस के चरित्र पर मुझे लगातार शक रहता था. आगे चल कर मेरा शक विश्वास में बदल गया. लेकिन कुछ बातें अपनी आंखों से देखने पर मैं बेचैन हो उठा. मेरे मन की शांति समाप्त हो गई. मैं परेशान रहने लगा. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था, पर मुझे धोखा दे कर उस ने सब कुछ नष्ट कर दिया था. उस की चरित्रहीनता का कोई सबूत मैं नहीं दे सकता था. मेरे पास एक ही रास्ता था, उसे हमेशा के लिए मिटा देने का. वही मैं ने किया भी.”

प्रकाश राय धनंजय को कोतवाली ले आए. धनंजय ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से रोहिणी का खून किया था. रोहिणी को यह दिखाने के लिए कि वह उस से बेहद प्रेम करता है, उस ने बाहर जाने का प्लान बनाया और 40 हजार रुपए भी निकलवाए थे, लेकिन वह कहीं जाने वाला नहीं था. रविवार पहली तारीख को उस ने जानबूझ कर आशीष तनेजा और देवेश तिवारी को अपने घर बुलाया.

रात 3 से 4 बजे के बीच रोहिणी की हत्या करने के बाद सवेरे उठ कर वह बड़े ही सहज ढंग से मटनमछली लाने गया था, सिर्फ इसलिए कि कोई उस पर शक न करे. इतना ही नहीं, पुलिस को चकमा देने के लिए उस ने खुद चोरी भी की थी. चोरी का सारा सामान उस ने मटन लेने जाते समय स्कूटर की डिक्की में रख दिया था.

इस के बाद वह कुछ बताने को तैयार नहीं था. जब प्रकाश राय ने टेलीफोन डायरी का ‘जी’ पेज कैसे फटा, इस बारे में पूछा तो जवाब में उस ने सिर्फ 2 शब्द कहे, “मालूम नहीं.”