राजा की मोहब्बत का साइड इफेक्ट

राजा की मोहब्बत का साइड इफेक्ट – भाग 4

महाराजा तुकोजीराव होल्कर के खिलाफ इस तरह का सीधा कोई सबूत नहीं था कि इस घटना में वह किसी भी तरह शामिल हैं क्योंकि गिरफ्तार अभियुक्तों में से किसी ने भी उन का नाम नहीं लिया था. लेकिन आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा क्योंकि इस घटना के सारे आरोपी उन से संबंध रखते थे.

इस के बाद तो लोग तरह तरह की बातें करने लगे थे. यह भी कहा जाता है कि महाराजा होल्कर पर नजर रखने के लिए अंगरेजों ने एक जासूस भेजा था, जो बिजासन माता के मंदिर में साधु बन कर रह रहा था.

इस तरह की बातें फैलीं तो जांच में यह भी सामने आया था कि बावला की हत्या करने वाले लोग जिस कार से आए थे, उस का ड्राइवर ड्राइविंग का खिलाड़ी था. कुछ ही घंटों में उस ने कार इंदौर से मुंबई पहुंचा दी थी.

महाराजा होल्कर के खिलाफ नहीं मिले सबूत

महाराजा होल्कर भी कार ड्राइविंग के बहुत शौकीन थे. कहा जाता है कि होल्कर राजघराने की महारानी चंद्रावती होल्कर देश में कार चलाने वाली पहली महिला थीं. चंद्रावती होल्कर महाराजा तुकोजीराव होल्कर की तीसरी पत्नी थीं. महाराजा से जिद कर के उन्होंने कार चलानी सीखी थी.

इंदौर राजघराने के पास 60 महंगी कारों का काफिला था. महाराजा होल्कर खुद तेज कार ड्राइविंग के शौकीन थे. रतलाम से इंदौर तक की 160 किलोमीटर की दूरी उन्होंने एक घंटे में पूरी की थी.

हाईप्रोफाइल बन चुके बावला हत्याकांड मामले में जिन वकीलों को रुचि थी, उन में एक थे मोहम्मद अली जिन्ना. जिन्ना उस समय एक उत्साही वकील थे. 9 आरोपियों में से एक आरोपी आनंदराव फड़से ने जिन्ना को पत्र लिखा था. फड़से तुकोजीराव का संबंधी था और इंदौर की सेना में उच्च पद पर था. बावला हत्याकांड में आनंदराव सहित 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इन आरोपियों की ओर से जिन्ना ने मुकदमा लड़ा था.

अदालती काररवाई में 4 सैन्य अधिकारियों की गवाही बहुत अहम रही. बौंबे हाईकोर्ट ने 24 दिनों में अपना फैसला सुनाते हुए 9 आरोपियों में से 3 को फांसी की सजा सुनाई थी, जिस में शफी अहमद शोबाद, इंदौर एयरफोर्स के कैप्टन शामराव दिधे और दरबारी पुष्पशील फोंडे शामिल थे.

पुष्पशील का मानसिक संतुलन बिगड़ गया था, इसलिए अदालत ने उसे कालापानी की सजा दी थी. इस के अलावा आनंदराव फड़से सहित 4 लोगों को कालापानी की सजा सुनाई गई थी. 2 लोगों को बरी कर दिया गया था. उस समय इस केस के बारे में रोजाना अखबारों में समाचार छप रहा था. यही वजह थी कि जब 3 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई तो उमरखाली जेल के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. इसलिए जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, उन्हें चुपचाप फांसी दे गई थी.

दोषियों ने प्रिवी काउंसिल (ब्रिटिश ताज के सलाहकारों की सर्वोच्च संस्था) के सामने अरजी करने के साथ जौन साइमन के समक्ष भी अपील की थी. जौन साइमन उन दिनों एक प्रख्यात वकील थे. बाद में 1929 में जिस का प्रचंड विरोध हुआ था, उस साइमन कमीशन के वह चैयरमैन बने थे.

देश छोड़ कर पेरिस क्यों गए महाराजा होल्कर

अखबारों में लगातार छप रहा था कि बावला हत्याकांड का मुख्य सूत्रधार अभी कानून की पकड़ से बाहर है. अखबारों का इशारा इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होल्कर की ओर था. 2 समाज सुधारक महर्षि विट्ठल रामजी शिंदे और प्रचारक सीताराम ठाकरे तुकोजीराव के साथ खड़े थे.

केशव सीताराम ठाकरे, जिन्हें प्रबोधंकर ठाकरे के रूप में भी जाना जाता है, वह मराठी पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और इतिहासकार शिवसेना प्रमुख स्व. बाल ठाकरे के पिता थे.

इतना ही नहीं, इस हत्याकांड का असर मुंबई (महाराष्ट्र) के सामाजिक जीवन पर भी पड़ा था. केशव सीताराम ठाकरे उन दिनों पुणे में रहते थे और ‘प्रबोधन’ नाम से पाक्षिक पत्रिका निकालते थे. केशव ठाकरे ने भी बावला हत्याकांड को ले कर अपनी पत्रिका में खूब लेख लिखे थे. पुस्तिकाएं भी निकाली थीं, जो इंगलैंड में बिकी थीं और संसद के हर सदस्य तक पहुंचाई गई थीं.

महाराजा तुकोजीराव होल्कर को भले ही इस मामले में नहीं शामिल किया गया था, पर अंगरेजों ने उन से स्पष्ट कह दिया था कि वह किसी भी तरह खुद को निर्दोष साबित करें या फिर सत्ता छोड़ दें. अंतत: तुकोजीराव ने सत्ता छोड़ दी थी. इस के बाद उन के बेटे यशवंतराव होल्कर ने सत्ता संभाली थी.

सत्ता छोडऩे के बाद खुद को अपमानित महसूस करते हुए तुकोजीराव देश छोड़ कर पेरिस चले गए थे, जहां उन्हें खुद से 17 साल छोटी नैंसी से प्यार हो गया था. नैंसी अमेरिका की रहने वाली एक क्रिश्चियन थी, इसलिए तुकोजीराव के इस प्रेम संबंध का धननगर समाज ने विरोध किया था. तब बाबासाहेब अंबेडकर और विनायक दामोदर सावरकर ने उन का साथ दिया था.

तुकोजीराव होल्कर ने साफ शब्दों में धमकी दी थी कि अगर उन के इस प्रेम विवाह का विरोध किया गया या किसी तरह की अड़चन डाली गई तो वह इसलाम धर्म स्वीकार कर लेंगे. इस के बाद हिंदू महासभा ने आगे आ कर नैंसी का धर्म परिवर्तन करा कर उस का नाम शर्मिष्ठा रखा और तुकोजीराव से उस का विवाह करा दिया था.

नैंसी से उन्हें 4 बेटियां थीं. उन की एक बेटी का विवाह कोल्हापुर के कागल वंश के राजकुमार से हुआ था, जिन का एक बेटा विजयेंद्र घाटगे फिल्म अभिनेता बन गया था. इन की बेटी सागरिका ने फिल्म ‘चक दे इंडिया’ में एक हाकी प्लेयर की भूमिका निभाई थी और अब क्रिकेटर जहीर खान की पत्नी है.

इस घटना के बाद मुमताज कुछ दिनों तक मुंबई में रही, उस के बाद वह कराची चली गई. कराची में उस ने एक गायिका के रूप में काम किया. फिर उस ने हौलीवुड की ओर रुख किया. इस के बाद मुमताज का कुछ पता नहीं चला और इतिहास के पन्नों से हमेशा के लिए उस का नाम गायब हो गया.

राजा की मोहब्बत का साइड इफेक्ट – भाग 3

कार मुंबई के मालाबार हिल के हैंगिंग गार्डन के पास पहुंची थी कि अचानक पीछे से हार्न बजाती एक कार तेजी से आई और बावला की कार में टक्कर मार कर उसे रोक लिया.

रेड कलर की उस मैक्सवेल कार से 4 लोग हाथों में चाकू और पिस्तौल जैसे घातक हथियार ले कर फुरती से उतरे. उन्होंने बावला को धमकाते हुए कहा, ”हम लोग इंदौर से आए हैं. मुमताज को नीचे उतार कर हमें सौंप दो और तुम जाओ. अगर तुम ने मुमताज को हमें नहीं सौंपा तो हम इसे जबरदस्ती अपने साथ इंदौर ले जाएंगे. यही नहीं, तुम ने विरोध किया तो तुम अपनी जान से भी हाथ धो बैठोगे.’’

लेकिन बावला अपनी प्रेमिका को भला ऐसे कैसे किसी को सौंप सकता था. एक आदमी मुमताज को पकड़ कर खींचने लगा तो बावला ने विरोध किया. उस के अन्य साथियों में से एक ने बावला पर गोली चला दी. गोली की आवाज से घोंसले में लौट रहे पक्षी चीखने लगे तो दूसरी ओर मुमताज की चीखें भी वातावरण की शांति को भंग कर रही थीं.

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कभीकभी संयोग भी अजीब स्थिति खड़ी कर देता है. उस समय भी एक ऐसा संयोग बना कि इंदौर का इतिहास ही बदल गया. जिस समय यह घटना घट रही थी, उसी समय ब्रिटिश सेना के 4 सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जौन मेकलिन, कर्नल सीई विकरी, लेफ्टिनेंट फ्रांसिस बैटली और मैक्सवेल स्टीफन महालक्ष्मी रेसकोर्स के पास के विलिंग्डन स्पोट्र्स क्लब में गोल्फ खेल कर ताजमहल होटल की ओर जा रहे थे.

मेकलिन कार चला रहे थे. उन के बगल वाली सीट पर कर्नल विकरी बैठे थे तो कार की पीछे वाली सीट पर बैटली और स्टीफन बैठे थे. मैकलिन इस रास्ते से थोड़ा अपरिचित थे, इसलिए रास्ता भूल कर कहीं से कहीं चले आए थे.

यह रास्ता मालबार हिल की ओर जाता था. जब ये चारों सैन्य अधिकारी मालाबार हिल के पास पहुंचे तो इन्होंने जो दृश्य देखा, चौंक उठे. उन्होंने देखा कि कुछ गुंडे जैसे लोग हाथ में पिस्तौल और चाकू लिए एक महिला को डराते हुए कार से उतार रहे थे.

सैन्य अधिकारियों ने किया मुकाबला

वह महिला कोई और नहीं, मुमताज थी. चारों सैन्य अधिकारी कार से उतर कर हमलावरों की ओर बढ़े. इन अधिकारियों को अपनी ओर आते देख हमलावरों ने इन्हें डराने की लिए फायर कर दिया. पर ये अधिकारी घबराए नहीं और गोल्फ स्टिक ले कर उन गुंडों पर हमला बोल दिया.

जवाब में हमलावरों ने चाकू से वार किए. लंबी हाथापाई के बाद आखिर हमलावरों को भागना पड़ा. पर इन अधिकारियों को एक पिस्तौलधारी हमलावर को पकडऩे में सफलता मिल गई.

अब्दुल कादिर बावला के सीने में गोली लगी थी, जहां से तेजी से खून बह रहा था. लगातार खून बहने की वजह से उन के कपड़े खून से भीग गए थे. खून से लथपथ बावला को मुंबई के जेजे अस्पताल में भरती कराया गया. डाक्टरों ने तुरंत सर्जरी की.

हमलावरों द्वारा चलाई गई गोली बावला के बाएं फेफड़े से लीवर के पास से गुजर कर कमर के दाहिनी ओर से निकल गई थी. औपरेशन के बावजूद रात सवा बजे बावला की मौत हो गई थी. इस के बाद मुमताज के संघर्ष की एक नई कहानी शुरू हुई. मरने से पहले बावला गर्भवती मुमताज के लिए 40 लाख की संपत्ति छोड़ गया था.

अगले दिन अखबारों की हेडलाइन थी— ‘मुंबई के एक बड़े व्यापारी की हत्या, उस की प्रेमिका के अपहरण का प्रयास और ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बचाव…’ यह घटना पूरे देश में चर्चा का मुद्दा बन गई थी. इस घटना की रिपोर्ट दर्ज हुई थी.

मामला जब पुलिस के पास पहुंचा तो मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर पेट्रिक कैली ने हिंदुस्तान के गृहसचिव को पत्र लिख कर जानकारी दी कि युवती मुमताज काफी समय तक महाराजा इंदौर के साथ रही थी. अप्रैल, 1924 में मुमताज ने शाही परिवार छोड़ दिया था और इधर एकाध साल से अब्दुल कादिर बावला के साथ रह रही थी.

इस के बाद तेजी से पुलिस जांच शुरू हुई. सैन्य अधिकारियों ने जिस आदमी को पकड़ा था, उस का नाम शफी अहमद शोबाद था. वह इंदौर स्टेट पुलिस में रिसालदार (घुड़सवार सेना इकाई का कमांडर) था. पहले तो वह इस अपराध में शामिल होने से इनकार करता रहा, पर बाद में उस ने स्वीकार कर लिया था कि बावला हत्याकांड में वह शामिल था.

उस समय यह मामला काफी चर्चा में रहा. अखबारों के पन्ने इस मामले से भरे रहते थे. उस समय अंगरेजी के ही नहीं, मराठी अखबारों ने भी इस घटना को खूब छापा था. पुलिस पर इस मामले को ले कर काफी दबाव था. मुंबई के पुलिस कमिश्नर पेट्रिक कैली खुद इस मामले को देख रहे थे. वह ठंडे दिमाग से काम लेने वाले अधिकारी थे.

चूंकि यह मामला एक राजघराने से जुड़ा था, इसलिए उन पर काफी दबाव डाला जा रहा था. जिस का असर उन की जांच पर पड़ रहा था. अंत में उन्होंने यहां तक कह दिया था कि अगर उन पर अधिक दबाव डाला गया तो वह अपनी नौकरी से ही इस्तीफा दे देंगे, लेकिन पुलिस ने किसी तरह के दबाव को न मानते हुए अपनी जांच चालू रखी.

जब यह पता चला कि शफी अहमद ही नहीं, इस घटना में शामिल ज्यादातर आरोपी इंदौर राजघराने से जुड़े हैं तो मुमताज का संबंध महाराजा इंदौर के साथ होने से शक की सूई महाराजा तुकोजीराव होल्कर की ओर घूमने लगी. इस मामले में 9 लोगों को आरोपी बनाया गया था. सभी के खिलाफ बौंबे हाईकोर्ट में मुकदमा चला. उस समय हाईकोर्ट के जस्टिस क्रंप थे.

अदालत में सुनवाई के दौरान मुमताज ने अपने बयान में दावा किया था कि इंदौर में महाराजा से संबंध के दौरान उन की एक बेटी पैदा हुई थी, जिसे मार दिया गया था. इस के बाद उस ने इंदौर छोडऩे का मन बना लिया था. फिर उस ने इंदौर छोड़ दिया. यह घटना उसी का प्रतिफल है.

राजा की मोहब्बत का साइड इफेक्ट – भाग 2

महल छोड़ कर चाल में क्यों रहने लगी मुमताज

मुमताज (कमला) अपनी जिद पर अड़ी थी तो सुलेमान अपनी जिद पर. शोर सुन कर रेलवे पुलिस आ गई. आखिर पुलिस ने दोनों को समझाबुझा कर शांत किया. लेकिन मुमताज मंसूरी नहीं गई तो नहीं गई. मंसूरी जाने के बजाय वह अमृतसर चली गई. महारानी की जिद के आगे आखिर सुलेमान को झुकना पड़ा. आखिर था तो वह नौकर ही, भले ही राजा का कितना भी खास रहा हो.

मुमताज (कमला) अमृतसर गई तो इंदौर लौटने का नाम ही नहीं ले रही थी. जबकि महाराजा तुकोजीराव होल्कर का कमला के बिना मन नहीं लग रहा था. उन्होंने कमला को आने के लिए कई संदेश भेजे, पर कमला नहीं आई. कमला के इस व्यवहार से इंदौर के महाराजा को गुस्सा आ गया.

इंदौर राजघराने के बड़ेबुजुर्ग कमला को मनाने अमृतसर गए. उन में एक जिकाउल्लाह भी थे. कमला ने जब इंदौर आने से साफ मना कर दिया तो उन्होंने उसे धमकाते हुए कहा, ”देखो कमला, महाराज का आदेश है, इसलिए तुम्हें हमारे साथ इंदौर चलना ही होगा. अगर तुम सीधी तरह इंदौर नहीं चलती हो तो हमारे पास दूसरे भी अनेक रास्ते हैं.’’

लेकिन कमला टस से मस नहीं हुई. उस ने किसी की कोई बात नहीं मानी. तब जो लोग कमला को मनाने अमृतसर गए थे, सभी खाली हाथ लौट आए.

दूसरी ओर कमला जानती थी कि अब वह अमृतसर में शांति से नहीं रह पाएगी, इसलिए वह अमृतसर से अपने एक रिश्तेदार के यहां नागपुर चली गई. जब महाराजा तुकोजीराव को पता चला कि कमला नागपुर पहुंच गई है तो उन्होंने कमला को लाने के लिए नागपुर भी अपने आदमी भेजे पर कमला नहीं आई.

लेकिन महाराजा से बचना भी आसान नहीं था. अब उसे केवल अंगरेजी शासन का कोई बड़ा अधिकारी ही बचा सकता था. इस के लिए वह मुंबई चली गई, जहां पुलिस कमिश्नर भी बैठता था.

पुलिस कमिश्नर से सुरक्षा पाने के लिए कमला मुंबई पहुंच गई थी. क्योंकि कमला को पता था कि उसे पाने के लिए महाराजा कुछ भी कर सकते हैं, कोई भी रास्ता अपना सकते हैं.

कमला मुंबई अकेली नहीं आई थी. उस के साथ उस की मां और दादी भी थीं. कमला यानी मुमताज के मामा अल्लाबख्श भी मुंबई में रहते थे. पहले कमला ने अंधेरी में अपना ठिकाना बनाया. पर उन लोगों को यहां कुछ खतरा महसूस हुआ तो कमला अपनी मां और दादी के साथ मदनपुरा रहने आ गई. मदनपुरा की रंगारी चाल में एक मकान किराए पर ले कर कमला अपने परिवार वालों के साथ मामा अल्लाबख्श की देखरेख में रहने लगी.

लेकिन महाराजा तुकोजीराव होल्कर ने उस का पीछा नहीं छोड़ा था. उन्होंने उस के पीछे अपने आदमी लगा रखे थे, जो लगातार उस की तलाश में लगे थे.

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यहीं कमला की मुलाकात उस के मामा अल्लाबख्श ने मुंबई के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन अब्दुल कादिर बावला से कराई. अब्दुल कादिर बावला की गिनती मुंबई के बड़े व्यापारियों में होती थी. बावला मुंबई का अतिधनाढ्य व्यापारी होने के साथसाथ नगरसेवक भी था. बावला की संपन्नता का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज से सौ साल पहले उस के पास 40 लाख की संपत्ति थी.

मुंबई की स्थानीय राजनीति में भी उस का अच्छा खासा दखल था. मालाबार हिल इलाके के वह कारपोरेटर भी था. उस ने ही मुंबई के उपनगर परेल में साबू सिद्दीकी मसजिद का निर्माण कराया था, जिसे आज भी बावला मसजिद के नाम से जाना जाता है.  आज भी वह मुंबई की सब से बड़ी मसजिद है.

कमला यानी मुमताज की सुंदरता देख कर अब्दुल कादिर होश खो बैठा था. मुमताज को भी एक ऐसे मजबूत सहारे की जरूरत थी, जो उसे महाराजा से बचा सके. देखने में हैंडसम अब्दुल कादिर बावला भी पहली नजर में मुमताज को भा गया था. इसलिए मुमताज ने अब्दुल कादिर के घर शरण ली.

जान से ज्यादा चाहने लगा कादिर बावला

मुमताज पूरी तरह बावला के प्रति समर्पित हो गई थी. अमृतसर, अजमेर, दिल्ली और शिमला की पहाडिय़ों में दोनों का प्यार खिलने लगा था. बावला का साथ पा कर मुमताज परछाईं की तरह पीछा कर रहे अपने अतीत को भूलने का प्रयास करने लगी थी. पर एक अपराधबोध उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था, क्योंकि वह महाराजा तुकोजीराव होल्कर की पत्नी रह चुकी थी.

यात्रा से लौट कर मुमताज चौपाटी स्थित अब्दुल कादिर बावला के साथ उस के बंगले में रहने लगी थी. बावला अच्छी तरह जानता था कि इंदौर राजघराने की नजर मुमताज पर है. इसलिए उस ने मुमताज से साफ कह दिया था कि उस की गैरमौजूदगी में वह घर के बाहर हरगिज न जाए.

लेकिन वही हुआ, जिस की आशंका मुमताज को दिनरात खाए जा रही थी. अकसर बावला मुमताज को ले कर लांग ड्राइव पर निकल जाता था. उसे साथ ले कर देर रात तक मुंबई की सड़कों पर घूमता. 12 जनवरी, 1925 की शाम को मुमताज और अब्दुल कादिर बावला अपने ड्राइवर के साथ घूमने निकले थे. उन के साथ उन का मैनेजर मैथ्यू भी था. मुंबई शहर को सलाम करता समुद्र की क्षितिज में सूरज अलविदा कह रहा था.

समुद्री खारी हवा से भीगी डूबती सांझ का सौंदर्य मुंबई वालों को आनंद की अनुभूति का अहसास करा रही थी. किसी नववधू जैसी सुंदर शाम का नजारा देखने के लिए बावला अपनी प्रेमिका मुमताज के साथ चौपाटी की ओर जा रहे थे.

समुद्र के किनारे एक ओर कार रोकवा कर दोनों डूबते सूरज की लालिमा को निहार रहे थे. सांझ की खूबसूरती को दोनों आंखों से पी रहे थे. उसी समय अचानक माहौल में भंग पड़ गया.

एक आदमी मुमताज के पास आ कर दबी आवाज में बोला, ”आप के प्रेमी बावला की हत्या करने के लिए कुछ लोग इंदौर से आए हैं.’’

यह सुन कर मुमताज घबरा गई. उस के गोरे सुंदर चेहरे पर खारे पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगीं.

उस ने लपक कर बावला का हाथ पकड़ा और कार में बैठाते हुए ड्राइवर से कहा, ”जितनी जल्दी हो सके, तुम हमें घर पहुंचाओ.’’

हक्काबक्का अब्दुल कादिर बावला ने मुमताज से पूछा, ”क्या बात है, तुम इतना परेशान क्यों हो?’’

मुमताज ने पूरी बात बावला को बताई तो वह भी घबरा गया. उस ने भी ड्राइवर से गाड़ी तेज चलाने को कहा. ड्राइवर ने कार की गति और बढ़ा दी. कार तेजी से मुंबई की सड़क पर भाग रही थी.

राजा की मोहब्बत का साइड इफेक्ट – भाग 1

बात तब की है, जब देश में हुकूमत तो अंगरेजों की थी, लेकिन राज राजा करते थे. इंदौर में उन दिनों राजा तुकोजीराव होल्कर (तृतीय) राज कर रहे थे. अन्य राजाओं की तरह तुकोजीराव भी अय्याशी में डूबे रहते थे. इस की वजह यह थी कि इन राजाओं के पास कोई कामधाम तो होता नहीं था. जनता से लगान की जो रकम आती थी, उस में से अंगरेजों का हिस्सा निकाल कर बाकी रकम वे अपने मौजशौक और अय्याशी पर खर्च करते थे. इसी दौरान उन के संपर्क में एक लड़की आई.

उस लड़की की उम्र उस समय मात्र 10 साल थी. नाम था उस का मुमताज. वह अपनी मां, दादी और साजिंदों के साथ पंजाब के अमृतसर से इंदौर के महाराजा तुकोजीराव के यहां आई थी. खास बात यह थी कि मुमताज बहुत अच्छी नृत्यांगना थी. महाराजा ने उस के रहने की व्यवस्था लालबाग स्थित महल में करा दी थी. वह 2 महीने तक इंदौर में रही. इन 2 महीनों तक रोजाना महाराजा की महफिल लालबाग में जमती रही.

लालबाग के महल में जमने वाली महफिलों में मुमताज ने महाराजा को अपनी सुमधुर आवाज और नृत्य का कायल कर दिया था. मुमताज के सुर और सौंदर्य का महाराज पर ऐसा जादू चला था कि वह उस के दीवाने हो गए थे.

2 महीने तक अपने सुर और सौंदर्य का जादू बिखेर कर मुमताज हैदराबाद के नवाब के यहां चली गई. पर वह वहां ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई, क्योंकि हैदराबाद के नवाब तो वैसे भी कंजूस थे. जब वह खुद पर ही अपने पैसे नहीं खर्च करते थे तो भला नाचने गाने वाली पर कहां से खर्च करते. मुमताज जल्दी ही हैदराबाद से फिर इंदौर आ गई. इंदौर के लालबाग स्थित महल में फिर से मुमताज की महफिलें जमने लगीं.

इंदौर में एक साल तक मुमताज के संगीत और गायन की महफिल जमती रही. महाराजा तुकोजीराव मुमताज के सम्मोहन में बंधते गए. वह उस पर दिल खोल कर रुपए लुटा रहे थे. हीरेजवाहरात और गहनों से उन्होंने उसे लाद दिया था.

एक साल इंदौर में रह कर मुमताज अमृतसर चली गई. पर वह वहां भी ज्यादा दिनों तक ठहर नहीं सकी. जो सम्मान और प्यार उसे इंदौर में मिल रहा था, वह अमृतसर में नहीं मिला तो मुमताज जल्दी ही एक बार फिर इंदौर आ गई.

इस बार मुमताज इंदौर आई तो महाराजा ने उस के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया. एक नाचनेगाने वाली को इतना बड़ा सम्मान मिल रहा था, वह भला कैसे मना करती. तुकोजीराव से विवाह कर के वह महारानी बनने जा रही थी. मुमताज ने महाराजा का प्रस्ताव खुशी खुशी स्वीकार कर लिया. मुमताज का नाम कमलाबाई रख कर महाराजा तुकोजीराव होल्कर (तृतीय) ने उस के साथ बाकायदा रीतिरिवाज के साथ विवाह कर लिया. महाराजा से विवाह कर के मुमताज महारानी कमलाबाई बन गई.

विवाह के बाद महाराजा तुकोजीराव इंगलैंड घूमने गए तो महारानी कमलाबाई को भी साथ ले गए. इस यात्रा से लौट कर कमलाबाई ने एक बेटी को जन्म दिया. कमला का कहना था कि उस लड़की की हत्या कर दी गई थी. महाराजा जहां भी जाते थे, कमलाबाई उर्फ मुमताज को साथ ले जाते थे. यहां तक कि वह शिकार पर भी जाते थे तो कमला को साथ ले जाते थे.

रानी बन कर मुमताज क्यों नहीं थी आजाद

एक बार वह भानपुर शिकार पर गए तो कमला तो साथ गई ही थी, उस की मां और दादी भी साथ गई थीं. इस की वजह यह थी कि महाराजा कमला से इतना प्यार करते थे कि उसे एक पल के लिए खुद से अलग नहीं करते थे. इसलिए कमला अपनी मां और दादी से भी नहीं मिल पाती थी.

मुमताज से मिलने के लिए ही उस की मां और दादी साथ गई थीं कि शायद वहां जब महाराजा शिकार करने चले जाएंगे तो वे मुमताज से मिल लेंगी.

महाराजा कमला (मुमताज) को पल भर के लिए भी आजादी नहीं देते थे. इस तरह मुमताज खुद की तुलना सोने के पिंजरे में बंद पंछी से करने लगी थी. जबकि वह आजाद गगन में विचरण करना चाहती थी. उस पर तरह तरह की पाबंदियां लगी थीं. लगती भी क्यों न, अब वह महाराजा की सब से चहेती रानी जो थी.

लेकिन हर चीज की एक हद होती है. अति किसी भी चीज की हो, वह परेशान करने लगती है. भले ही वह प्यार ही क्यों हो. महाराजा का यह प्यार भी हद से अधिक था. इसलिए महाराजा का यह प्यार अब उस के लिए घुटन बन रहा था. इस के अलावा जब भी मुमताज गर्भवती होती, उस का गर्भपात करा दिया जाता. मुमताज इस से भी परेशान रहती थी.

मुमताज महाराजा के अति से अधिक प्यार और बारबार गर्भपात कराने से इस कदर ऊब गई थी कि अब वह किसी भी तरह महाराजा की कैद से मुक्त होना चाहती थी. इसलिए एक दिन उस ने महाराजा तुकोजीराव से कहा, ”महाराज, मैं राजमहल के इस तामझाम और अदाकारी से ऊब गई हूं. इसलिए कुछ दिन किसी एकांत जगह पर अकेली रहना चाहती हूं. इस के लिए आप मुझे कहीं एकांत और शांत जगह पर जाने की इजाजत दीजिए.’’

”आप कहां जाना चाहेंगी, आदेश कीजिए. मैं उस के लिए सारी व्यवस्था करवा देता हूं.’’ महाराजा तुकोजीराव ने कहा.

”एकांत और शांत जगह तो पहाड़ों पर ही हो सकती है. इसलिए मैं मंसूरी जाना चाहूंगी.’’ मुमताज उर्फ कमलाबाई ने कहा.

”ठीक है, तुम यात्रा की तैयारी करो. मैं तुम्हारे जाने की सारी व्यवस्था करवा देता हूं.’’

मुमताज तो किसी तरह इस सोने के पिंजरे से आजादी चाहती थी. महाराजा का आदेश मिलते ही मुमताज ने सारी तैयारी कर ली. उसे मंसूरी जाने वाली ट्रेन में बैठा दिया गया. वह अकेली ही मंसूरी जाना चाहती थी, पर उस की देखभाल और उसे रास्ते में किसी तरह की परेशानी न हो, इस के लिए महाराजा ने अपने एक विश्वासपात्र सुलेमान को मुमताज के साथ भेज दिया.

लेकिन जब मुमताज मंसूरी जाने के बजाय दिल्ली में ही उतर गई तो सुलेमान हैरान रह गया. उस ने मुमताज (कमला) से मंसूरी चलने का आग्रह किया तो उस ने कहा, ”मुझे मंसूरी नहीं जाना. मेरा जहां मन होगा, मैं वहां जाऊंगी.’’

”पर महाराजा ने तो मुझ से आप को मंसूरी ले जाने के लिए कहा है, इसलिए आप को मंसूरी ही चलना पड़ेगा.’’ सुलेमान ने कहा, ”आप को महाराज के आदेश का पालन करना होगा.’’

”महाराज होंगे तुम्हारे, इसलिए तुम उन के आदेश का पालन करो. मैं यहां से कहीं नहीं जाने वाली.’’ मुमताज ने मंसूरी जाने से साफ मना कर दिया.

पर सुलेमान इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाला था. वह महाराजा तुकोजीराव का खास आदमी था. इसलिए उस ने कहा, ”मैं तो महाराज के आदेश का ही पालन कर रहा हूं. महाराज ने आप को मंसूरी ले जाने का आदेश दिया है, इसलिए मैं आप को मंसूरी ले जाऊंगा.’’