गुनाह : भूल का एहसास

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 3

बातचीत वाली रात फिलिप की तबीयत ठीक नहीं थी. डाक्टर ने उसे कंपलीट रेस्ट के लिए कहा था. खानेपीने के बाद फिलिप ने डौल्टन और उस की पत्नी को सामने बैठा कर बड़ी होशियारी से बात शुरू की. एलेक्स और इजाबेला उस के बगल वाले सोफे पर बैठे थे. उन के चेहरे खुशी से खिले हुए थे.

फिलिप ने कहा, ‘‘मि. डौल्टन, जानते हो मैं ने तुम्हें यहां क्यों बुलाया है? दरअसल मैं स्पष्ट बात करने का आदी हूं. इस शादी से मैं जरा भी खुश नहीं हूं. इसलिए नहीं कि इजाबेला में कोई खराबी है. इस की वजह मेरा और तुम्हारा अतीत है, जिस का एलेक्स और इजाबेला से कोई ताल्लुक नहीं है. मैं यह जानना चाहता हूं कि इस शादी से तुम ने क्या उम्मीदें बांध रखी हैं?’’

फिलिप का यह सवाल इतना अजीब था कि सब हैरानी से उस का मुंह देखते रह गए. थोड़ी देर में डौल्टन ने खुद को संभाल कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, जो होना था, वह हो चुका है. अच्छा है, आप ने साफ बात की. मैं भी आप को बता दूं कि कभी मैं भी दौलतमंद था, लेकिन अब मुश्किल से गुजरबसर हो रहा है. इसलिए मैं अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं कर सकता. जो करना है, वह आप को ही करना है.’’

डौल्टन की बात खत्म होते ही फिलिप ने कहा, ‘‘मुझे नहीं, जो कुछ करना है मि. डौल्टन आप को और एलेक्स को करना है. आप की बेटी एलेक्स से शादी कर रही है, मुझ से नहीं.’’

‘‘लेकिन एलेक्स आप का बेटा है. इसलिए आप इस बात को कतई पसंद नहीं करेंगे कि वह इजाबेला की कमाई खाए.’’

इस तरह डौल्टन ने फिलिप की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश की. जवाब में उस ने कहा, ‘‘पसंद ना पसंद का सवाल मेरे लिए नहीं, एलेक्स के लिए है. मेरी दुआएं उस के साथ हैं. वह पढ़ालिखा नौजवान है, अपनी जिंदगी खुद संवार सकता है. यतीम हो कर मैं ने अपनी जिंदगी खुद बनाई थी. किसी ने मेरी मदद भी नहीं की.’’

डौल्टन ने व्यंग्य से कहा, ‘‘शायद आप अपनी दौलत की बात कर रहे हैं? लेकिन आप भूल रहे हैं कि संयोग भी कोई चीज होती है. लेकिन हालात अब काफी बदल गए हैं.’’

‘‘मैं हालात का मुकाबला करने की हिम्मत रखता हूं.’’ एलेक्स ने विश्वास के साथ कहा.

‘‘लेकिन एलेक्स आप का एकलौता बेटा है,’’ एलेक्स की बात पूरी होते ही डौल्टन की बीवी ने कहा, ‘‘इसलिए वही आप की दौलत का वारिस है.’’

‘‘आप ने सही कहा, लेकिन मेरी मौत के बाद, पहले नहीं. मेरे बाप को छोड़ कर मेरे खानदान में कोई 90 साल से पहले नहीं मरा. इस तरह अभी मेरी आधी जिंदगी बाकी है. सौरी, इसलिए आप की यह उम्मीद जल्दी पूरी नहीं हो सकती.’’ फिलिप ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए जवाब दिया.

रोजा ने फिलिप को घूरा. उस की इस बात से डौल्टन और उस की पत्नी का चेहरा शरम और अपमान से लाल हो गया. एलेक्स के चेहरे की भी चमक खतम हो गई. वह एकदम से उठा और कमरे से निकल गया. इस के बाद डौल्टन, उस की पत्नी और बेटी भी उठ खड़ी हुई. निकलते समय दरवाजे के बाहर एलेक्स ने इजाबेला को रोकने की कोशिश की, ‘‘इजाबेला मेरी बात सुनो.’’

इजाबेला ने बगैर रुके ही कहा, ‘‘अगर एलेक्स तुम्हारे डैड को दौलत प्यारी है तो मेरे पापा को अपनी इज्जत. अब मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहती.’’

तीनों बाहर निकल गए. बाप को नफरत से देखते हुए एलेक्स ने कहा, ‘‘खलनायक की इतनी अच्छी भूमिका अदा करने के लिए आप को बहुतबहुत धन्यवाद. यही बात कोई और कहता तो शायद मैं उसे थप्पड़ मार देता.’’

फिलिप ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेवकूफ मत बनो एलेक्स. मैं तुम्हारे सामने यह साबित करना चाहता था कि वे इजाबेला की शादी तुम से सिर्फ मेरी दौलत के लिए करना चाहते थे. मेरी दौलत से तुम इजाबेला जैसी सैकड़ों लड़कियों से शादी कर सकते हो.’’

‘‘डैडी, औरत खरीदी जा सकती है, बीवी नहीं.’’ एलेक्स ने शांति से कहा. इस के बाद वह सिर थाम कर बैठ गया.

फिलिप को लगा, उस का तीर सही निशाने पर लगा है. उस ने प्यार से कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, जो कुछ मैं ने कहा है, वह सच था? तुम चाहो तो कल इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन तुम ने देखा न, वह तुम से नहीं, तुम्हारी दौलत से प्यार करती है. बहरहाल मेरा जो कुछ भी है, तुम्हारा है. मैं नहीं चाहता कि कोई तुम्हें उल्लू बना कर तुम्हारी दौलत ठग ले.’’

ये बातें फिलिप ने बेटे को उदास देख कर बहुत दूर की सोच कर कही थी. एलेक्स ने जवाब दिया, ‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं, कम से कम उसे मेरी बात तो सुननी ही चाहिए थी. खैर, अपने प्रोग्राम के मुताबिक मैं जा रहा हूं. आप की दौलत और इजाबेला की मुहब्बत, दोनों ने मुझे बरबाद कर दिया.’’

कह कर एलेक्स निढाल और मायूस सा अपने कमरे में चला गया.

मौसम अच्छा होने की वजह से फिलिप शाम को लंबी वाक पर निकल जाता था. रास्ते में ही डौल्टन का घर पड़ता था, जो उजड़ा और पुराना सा था. उस के हालात पहले से भी बुरे हो गए थे. उस की अखबार की नौकरी छूट गई थी. इजाबेला को मिलने वाले वेतन से घर चल रहा था.

उस की हालत देख कर फिलिप को काफी सुकून मिलता था, क्योंकि अपने पुश्तैनी मकान से निकाले जाने के बाद उस ने बहुत बुरे दिन देखे थे. पैसे के लिए उस ने इतनी मेहनत की थी कि उस की सेहत बरबाद हो गई थी. उसी की वजह से आज वह दिल का मरीज बन गया था. इस सब की वजह उसे डौल्टन लगता था.

कभीकभार फिलिप को खूबसूरत, स्मार्ट और ग्रेसफुल इजाबेला भी दिखाई दे जाती थी. कभी स्कूल से आती हुई तो कभी कोई काम करती हुई. इस में कोई शक नहीं था कि वह चाहे जाने लायक थी. अगर फिलिप की डौल्टन से दुश्मनी न होती तो निश्चित वह बेटे की पसंद को दाद देता.

इजाबेला से फिलिप की नजर मिल जाती तो वह मुसकरा देता. वह उस से नमस्ते करती. ऐसे में फिलिप यह जानने का प्रयास करता कि एलेक्स से जुदाई का उस पर क्या असर पड़ा है. पिछले एक साल से एलेक्स बाहर रह रहा था. शुरू में तो उस ने फिलिप से कोई संबंध नहीं रखा, लेकिन बाद में बापबेटे में फोन पर बातें होने लगी थीं. वह कंपनी के काम में काफी रुचि ले रहा था, इसलिए फिलिप को लगने लगा था कि वह उस का उत्तराधिकारी बनने का प्रयास कर रहा है.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 3

मैं ने करामत की पत्नी को वह लिफाफा और खत दिखा कर पूछा, “यह इकबाल कौन है.”

उस ने बताया, “करामत का एक दोस्त है और इसी मोहल्ले में रहता है. वह भी शहर के एक सरकारी औफिस में काम करता है.”

मैं ने उस की पत्नी से पूछा कि करामत किस समय घर से निकला था तो उस ने दुखी हो कर कहा, “वह शाम को खाना खा कर घर से निकलते थे और अपने दोस्तों में समय गुजार कर आधी रात को घर आ जाते थे.”

मोहल्ले के 2-4 आदमियों से पूछा कि रात को करामत और उस के दोस्त इकट्ठा हो कर क्या करते थे तो उन्होंने बताया कि वे ताश खेलते थे.

मैं ने पूछा, “जुआ भी खेलते थे?”

उन्होंने कहा, “नहीं, जुआ नहीं खेलते थे. कभी तमाशा देखने वाले भी आ जाते थे, तब महफिल रात तक जमी रहती थी.”

मैं ने करामत के दोस्त इकबाल का पता दे कर एसआई को यह कह कर उस के घर भेजा कि पूछ कर आए कि करामत वहां आया था या नहीं? उस के बाद मैं ने उस के उन दोस्तों को बुलवाया, जो उस के साथ ताश खेला करते थे. मैं ने उन से बारीबारी पूछताछ की तो सब ने यही बताया कि वह रात के साढ़े 12 बजे ताश खेल कर चला गया था.

साढ़े 12 बजे की बात सुन कर मुझे उस आदमी का खयाल आया, जिस ने कहा था कि उस ने करामत को रात साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था. मैं ने एक कांस्टेबल को भेज कर उस आदमी को बुलवाया, जिस ने करामत को ट्रेन में सवार होने की बात बताई थी.

जब मैं ने उस से कहा कि तुम ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला तो उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह मेरे चेहरे को देखते हुए बोला, “मैं ने झूठा बयान नहीं दिया.”

मैं कुछ देर तक चुप रहा, फिर पुलिसिया अंदाज से बोला, “करामत रात साढ़े 12 बजे तक ताश खेलता रहा था, जिस के 8-10 गवाह हैं. जबकि तुम ने बताया है कि तुम ने उसे साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“मुझ से गलती हो गई, वह कोई और रहा होगा.”

“तुम ने बहुत बड़ी गलती की है, अब उस की सजा के लिए तैयार हो जाओ.” मैं ने हडक़ाया.

वह हाथ जोड़ कर उठ खड़ा हुआ, कांपती आवाज में बोला, “गरीब हूं हुजूर, 20 रुपए महीना वेतन मिलता है, छोटेछोटे 2 बच्चे हैं, 2 भाई हैं. इतने कम वेतन में गुजारा नहीं होता. जाहिद ने मुझ से कहा था कि ऐसा बयान दे दो, तुम्हें 15 रुपए दूंगा. आप जानते हैं हुजूर मेरे लिए 15 रुपए कितनी बड़ी रकम है. यह मेरे पूरे घर की रोटी का खर्च है. लालच में आ कर मैं ने यह बयान दे दिया था.”

“तुम ने यह क्यों कहा था कि करामत के पीछे एक आदमी था, जो कंबल ओढ़े था.” मैं ने उस से पूछा, “तुम ने यह क्यों नहीं कहा कि वह जाहिद की पत्नी थी.”

“मुझे जैसा जाहिद ने कहने को कहा था, मैं ने वैसा ही कह दिया.”

उस की बात सुन कर मुझे यही लगा कि जाहिद चालाक आदमी है, जबकि मैं उसे परेशान समझता रहा.

“अगर तुम्हें कुछ और पता हो तो बता दो, बाद में पता चला तो मैं तुम्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दूंगा.”

उस ने कसमें खा कर कहा कि इस के अलावा वह कुछ नहीं जानता. उस आदमी को मैं ने थाने में बिठाए रखा और जाहिद को बुलवा लिया. मेरे दिमाग में करामत के नाम का लिफाफा और स्लीपर अटक गए थे और यह भी कि वह घर में पहनने वाले कपड़ों में गया था.

जाहिद थाने आया तो मैं ने उस से पूछा, “जाहिद, तुम ने अपने तौर पर अपनी पत्नी को ढूंढऩे की कोशिश नहीं की?”

“मैं कैसे ढूंढ़ सकता हूं जी, पता नहीं वह अपने यार के साथ ट्रेन से कहां चली गई? एक आदमी को मैं आप के पास लाया भी था, जिस ने उन दोनों को गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“वह आदमी अभी थाने में ही है. बस तुम मुझे इतना बता दो कि उस आदमी से तुम ने झूठ क्यों बुलवाया था?”

जवाब देने के बजाय वह मेरे मुंह को देखने लगा. कुछ देर बाद उस ने हिम्मत की, “मैं ने झूठ नहीं बुलवाया हुजूर, वह तो उस ने खुद ही बोला था.”

मैं ने कहा, “जाहिद, उस बेचारे को 2 साल के लिए क्यों अंदर करा रहे हो? वह बालबच्चों वाला आदमी है. तुम ने उसे झूठ बोलने के लिए 15 रुपए दिए थे. कह दो कि यह बात भी झूठी है.

“जाहिद, मुझे कुछ और भी सबूत मिले हैं. क्या तुम्हें पता नहीं कि आज सुबह मैं करामत के घर गया था?”

“पता है.”

“तो तुम्हें यह भी पता होगा कि खेतों में से करामत की कुछ चीजें बरामद हुई हैं. वे चीजें कुछ और ही कहानी कहती हैं.”

इतना सुन कर उस के चेहरे पर ऐसा बदलाव आया, जैसे सिनेमा के परदे पर एक स्लाइड के बाद दूसरे रंग की स्लाइड आ गई हो.

उस ने कांपती आवाज में कहा, “मलिक साहब. मैं ने सोचा है कि अगर मुझे पत्नी मिल जाती है तो मैं उस का क्या करूंगा? क्या ऐसी पत्नी को कोई इज्जतदार आदमी अपने घर में रख सकता है, जो गैरमर्द के साथ चली गई हो. मैं ने तय किया है कि तलाक दे कर कागज उस के बाप को दे दूंगा और आप को एक तहरीर दे कर अपनी रिपोर्ट वापस ले लूंगा.”

“और जो तुम्हारे इतने गहने चले गए हैं, उन का क्या होगा?” मैं ने पूछा.

“संतोष कर लूंगा. मेरा घर तो तबाह हो ही गया है.”

“फिर जानते हो क्या होगा?” मैं ने कहा, “तुम्हारा ससुर तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा कि तुम ने उस की लडक़ी को गायब कर दिया है और उस के गहने तुम हजम कर गए हो.”

“मैं उस के गहने दे दूंगा.”

“कहां से दोगे?”

उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं ने उस के चेहरे पर एक और बदलाव देखा. मुझे लगा, जैसे उस ने अपनी पत्नी को बदनाम करने के लिए कोई चाल चली है. आगे की जांच के लिए मैं जाहिद को उस के घर ले गया.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 2

इजाबेला बहुत ही खूबसूरत लंबीछरहरी लड़की थी. उस के चेहरे पर ऐसी कशिश थी कि उस की उम्र का कोई भी नौजवान उस की ओर आकर्षित हो सकता था. फिलिप के दिमाग में खतरे की घंटी बज उठी.

तभी डौल्टन ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, हम चाहते हैं कि पुरानी बातों को भुला कर अब हम अच्छे दोस्त बन जाएं.’’

‘‘ऐसा कुछ मेरे लिए मुमकिन नहीं है.’’ फिलिप ने बेरुखी से कहा.

डौल्टन भौचक्का रह गया. वह कुछ कहता, उस के पहले ही फिलिप ने उठते हुए कहा, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए, रात काफी हो चुकी है.’’

फिलिप एलेक्स के करीब पहुंचा और उस का बाजू पकड़ कर बोला, ‘‘एलेक्स बेहतर होगा कि तुम भी हमारे साथ चलो, काफी वक्त हो गया है.’’

‘‘डैडी, मैं अभी रुकना चाहता हूं, आप और आंटी जाइए. मैं बाद में आ जाऊंगा.’’ एलेक्स ने इत्मीनान से कहा.

घर आते हुए फिलिप ने बहन रोजा से कहा, ‘‘डौल्टन के यहां पार्टी में आ कर हम ने गलती तो नहीं की? कहीं ऐसा न हो, हमें बाद में पछताना पड़े.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया, जो हमें पछताना पड़ेगा?’’ रोजा ने पूछा.

‘‘डौल्टन ने अपनी खूबसूरत बेटी को चारा बना कर मेरे बेटे के पास भेजा है, ताकि वह उसे अपने जाल में फंसा सके.’’

‘‘तुम्हारा मतलब इजाबेला से है?’’

‘‘हां, देखा नहीं, वह एलेक्स से कैसे हंसहंस कर बातें कर रही थी.’’

‘‘फिलिप, तुम नफरत में अंधे हो चुके हो. ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मैं बहुत दूर की सोचने वालों में हूं. यह जायदाद और दौलत मैं ने अपनी अक्ल और इसी सोच की बदौलत बनाई है. मुझे साफ दिख रहा है कि डौल्टन इजाबेला को माध्यम बना कर मेरी दौलत हड़पना चाहता है. क्योंकि उसे पता है कि एलेक्स मेरा एकलौता बेटा है और यह सब उसी का है.’’

रोजा ने फिलिप को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मन में तसल्ली रखो, ऐसा कुछ नहीं है.’’

फिलिप स्टडी रूम में बैठ कर एलेक्स का इंतजार करने लगा. जब वह आया तो उसे देख कर फिलिप को लगा कि उस का बेटा इतना खूबसूरत है कि कोई भी लड़की उसे पसंद कर सकती है.

उसे इस तरह बैठे देख एलेक्स ने कहा, ‘‘लगता है, आप को पार्टी पसंद नहीं आई?’’

‘‘रोजा ने मुझे वहां जाने के लिए मजबूर किया था, वरना मैं ऐसे लोगों के यहां कतई नहीं जाता.’’

‘‘ऐसे लोगों से आप का मतलब, कहीं आप इजाबेला के बारे में तो..?’’

‘‘तुम इजाबेला के बारे में मेरे विचार क्यों जानना चाहते हो?’’

‘‘इसलिए कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’ एलेक्स ने कहा.

फिलिप एकदम से उठ कर गुस्से से चीखा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो एलेक्स? मैं तुम्हें भी अपनी तरह दूर तक सोचने वाला समझता था. तुम ने एक ही मुलाकात में इतना बड़ा फैसला ले लिया. अपनी और उस की हैसियत देखो, डौल्टन की हमारे आगे क्या औकात है? और वह लड़की, जो गंवार सी है, तुम से उम्र में भी 4 साल बड़ी है.’’

‘‘डैड, आप नफरत में भले ही आंटी की दलीलें रद्द कर देते हैं, लेकिन मैं अपनी चाहत में आप की सारी दलीलें रद्द करने को मजबूर हूं. मुझे पहली मुलाकात में ही वह बहुत अच्छी लगी, इसीलिए मैं ने उस से शादी का फैसला कर लिया है.’’

गुस्से में गिलास दीवार पर मारते हुए फिलिप ने कहा, ‘‘बंद करो यह बकवास. वह कमीना मुझ से बदला लेना चाहता है. इसीलिए अपनी बेटी को तुम्हारे पीछे लगा दिया है. वह मेरी जायदाद पाने के लिए बेटी का इस्तेमाल कर रहा है.’’

‘‘डैड, मुझे मालूम था कि आप यही कहेंगे, इसलिए मैं इजाबेला से शादी कर के कैलिफोर्निया जा रहा हूं. आप चाहें तो मुझे अपनी जायदाद से बेदखल कर सकते हैं.’’

एलेक्स की बात खत्म होते ही रोजा कमरे में दाखिल हुई. फिलिप ने उस से कहा, ‘‘देखा तुम ने, सुनी इस की बातें. मैं नशे में नहीं हूं.’’

रोजा व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘भइया, शराब के नशे से ज्यादा घातक दौलत का नशा होता है.’’

एलेक्स पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया.

फिलिप ने झुंझला कर कहा, ‘‘रोजा, वह गरीब, गंवार मेरा रिश्तेदार कैसे बन सकता है?’’

‘‘तुम्हारे दौलत के गुरूर की वजह से ही तुम्हारी बीवी तुम्हें ठुकरा कर चली गई. अब तुम्हारे बेटे की बारी है, जिसे तुम कहते हो कि बीवी से ज्यादा प्यार करते हो. लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें सब से ज्यादा प्यार दौलत से है.’’ रोजा ने तल्खी से कहा.

‘‘रोजा, मैं एलेक्स के लिए इजाबेला के बारे में सोच भी नहीं सकता.’’

‘‘तो क्या तुम उस की शादी किसी प्रिंसेस से कराना चाहते हो?’’

फिलिप गुस्से से पैर पटक कर रह गया. 2 सप्ताह तक खामोशी रही. एलेक्स ने फिलिप से कोई बात नहीं की. उस ने भी उस से कुछ नहीं पूछा. लेकिन रोजा से उसे पता चला कि एलेक्स इजाबेला से रोज मिलता था.  फिलिप समझ गया कि मामला बहुत आगे बढ़ चुका है. ऐसे में अगर वह जल्दबाजी में कोई फैसला लेता है तो बेटे को हमेशा के लिए खो सकता है.

उस ने काफी सोचविचार कर एक योजना बनाई और एलेक्स को पास बैठा कर बड़े प्यार से बोला, ‘‘मुझे अफसोस है कि उस दिन मैं ने तुम से प्यार से बात नहीं की. शायद ऐसा उम्र के अंतर की वजह से हुआ है. मुझे लगता है कि मैं तुम्हें इजाबेला से शादी की इजाजत दे दूं.’’

एलेक्स इस तरह खामोश बैठा रहा, जैसे उस की बात से उसे कोई खुशी नहीं हुई. फिलिप ने कहा, ‘‘एक शर्त है. शर्त क्या, तुम्हारे लिए चैलेंज है. तुम इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन एक साल बाद भी तुम्हारे जज्बात वही रहने चाहिए, जो इस समय हैं. तब मैं समझूंगा कि भावनाओं में बह कर तुम ने यह फैसला नहीं लिया है.’’

‘‘मुझे मंजूर है. मैं यह शर्त आप की दौलत के लिए नहीं, बल्कि यह साबित करने के लिए मान रहा हूं कि प्यार का संबंध दौलत से नहीं, दिल से होता है. अब यह बताइए कि मुझे कहां जाना होगा?’’ एलेक्स ने गंभीरता से जवाब दिया.

फिलिप ने उस की अक्लमंदी की दाद दी. उस ने कहा, ‘‘तुम जहां चाहो, जा सकते हो. लेकिन उस से पहले मैं डौल्टन और उस के परिवार वालों से मिलना चाहता हूं. क्योंकि मैं इजाबेला और तुम्हारी उपस्थिति में उन से कुछ बातें करना चाहता हूं.’’

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 2

सबइंसपेक्टर इनाम को मैं ने जबलपुर में फौजी के पास भेजा. फौजी का पता उस के पिता से ले लिया था. उसे भेज कर मैं ने अपने मुखबिरों को लगा दिया कि वह करामत, मुनव्वरी, जाहिद, करामत की पत्नी और उन सब के परिवार के बारे में पता करे.

अगले दिन मुनव्वरी का पति जाहिद एक आदमी को ले कर मेरे पास आया. उस आदमी ने बताया कि उस के एक रिश्तेदार का उस के पास खत आया था कि वह रात की गाड़ी से अपने मातापिता और बच्चों के साथ आ रहा है. अपने उन रिश्तेदारों को लेने के लिए वह कल रात स्टेशन पहुंचा. जिस गाड़ी से उन्हें आना था, वह आई, लेकिन वे रिश्तेदार प्लेटफौर्म पर दिखाई नहीं दिए.

मैं काफी देर तक उन्हें इधरउधर घूम कर देखता रहा. उसी समय मैं ने वहां करामत को देखा. वह जबलपुर जाने वाली गाड़ी में रात साढ़े 11 बजे सवार हो रहा था. उस के पीछे एक आदमी भी था. उस ने सिर पर कंबल इस तरह से ओढ़ा हुआ था कि उस का मुंह दिखाई नहीं दे रहा था. वह भी करामत के पीछेपीछे गाड़ी में चढ़ गया था.

मुझे कल ही पता चला कि जाहिद की पत्नी घर से गायब हो गई है. मैं ने जाहिद को करामत और कंबल ओढ़े आदमी के साथ ट्रेन में सवार होने की बात बताई तो जाहिद ने झट से कह दिया कि उस के साथ कंबल ओढ़े हुए मुनव्वरी ही थी. जाहिद के साथ आए उस आदमी को मैं ने गवाहों की सूची में शामिल कर लिया और उस से कह दिया कि मेरे पूछे बिना वह कहीं बाहर नहीं जाएगा.

2 दिनों बाद सबइंसपेक्टर जबलपुर से वापस आ गया. उस ने बताया कि करामत वहां नहीं पहुंचा है.

उसी बीच मुनव्वरी का पिता मलिक नूर अहमद मेरे औफिस में आया. आते ही उस ने कप्तान की तरह पूछा, “थानेदार साहब तफ्तीश कहां तक पहुंची है?” मैं ने उसे गोलमोल जवाब दे दिया.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मुझे यह मामला कुछ और ही दिखाई देता है. मुझे लगता है कि जाहिद ने ही मेरी बेटी और करामत को कहीं गायब करा दिया है. यह भी हो सकता है हत्या करा दी हो.”

“मलिक नूर अहमद साहब.” मैं ने कहा, “क्या आप ने हत्यारे देखे हैं? अलगअलग आदमियों को उन के घरों से गायब कराना, उन की हत्या कराना, कोई ऐसेवैसे आदमी का काम नहीं है. यह किसी पक्के उस्ताद का काम है. मैं ने जाहिद को परखा है, वह ऐसा आदमी नहीं है.”

“मलिक साहब, आप ने केवल जाहिद को देखा है,” उस ने एक गांव का नाम ले कर कहा, “आप ने उस के रिश्तेदारों को नहीं देखा. वे मामूली बात पर हत्याएं कर देते हैं. लड़ाई और मारकुटाई को तो वे मामूली बात समझते हैं.”

जिस गांव का उस ने नाम लिया था, वह गांव मेरे ही थाने में आता था. मुझे उस गांव का एक घराना याद आ गया. उस घराने ने हर थानेदार को मुसीबत में डाला हुआ था. उस गांव में वास्तव में ज्यादातर लोग खुराफाती किस्म के थे.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मैं ने अपनी बेटी जाहिद को दे तो दी थी, लेकिन बेटी ने उस के घर में एकएक दिन एकएक साल के बराबर काटे हैं. वह उसे गालियां देता था, मारता था और सब से गंदी हरकत यह थी कि वह उसे चरित्रहीन कहता था.”

मैं ने पूछा, “चरित्रहीनता का आरोप किसी एक आदमी के साथ लगाता था या वैसे ही चरित्रहीन कहता था.”

“अजी उस की एक बात हो तो बताऊं, पूरा मोहल्ला उस से बहुत दुखी था. आप इस केस को इस तरह न लें कि करामत उसे ले कर भाग गया है, इस केस को दूसरे तरीके से भी देखें.” उस ने मशविरा दिया.

मलिक नूर अहमद ने मेरा इतना दिमाग चाटा कि मैं कुछ सोचने के काबिल नहीं रहा. उस ने चलतेचलते एक बात यह भी कही कि उस की बेटी मुनव्वरी अपने पति से इतनी तंग थी कि उसे उस घर से भाग जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा.

उसी दिन उसी मोहल्ले का एक सम्मानित आदमी मेरे पास एक डाक का लिफाफा ले कर आया. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में एक पत्र और 5-5 के 3 नोट निकले. लिफाफा करामत के नाम था. लिफाफा लाने वाले के साथ एक आदमी और था. उसी के खेत में यह लिफाफा पड़ा मिला था. उस समय गेंहू की फसल एक फुट ऊंची थी.

मैं उन्हें ले कर खेत में उस जगह पहुंचा, जहां लिफाफा पड़ा मिला था. साफ लग रहा था कि वहां से 2-3 आदमी गुजरे हैं. पास के 2 और खेतों को देखा तो वहां भी पौधे टूटे हुए थे. वे मेंड़ों पर सीधे चलते गए थे. जहां से लिफाफा मिला था, उस से लगभग 200 गज दूर एक पैर का स्लीपर मिला था. उन दिनों लोग घरों में स्लीपर पहना करते थे. वह स्लीपर नया था. पुराना होता तो मैं समझ लेता कि इसे फेंका गया होगा.

उस स्लीपर को उठा कर मैं आगे चला गया. जहां खेत खत्म होते थे, वहां जमीन डेढ़-दो गज नीची ढलान पर थी. आगे झाडिय़ां थीं. दूसरा स्लीपर झाडिय़ों में मिला. मैं वहीं रुक गया और जिस आदमी को वह लिफाफा मिला था, उसे दौड़ा कर मैं ने करामत के बाप और भाइयों को बुलवा लिया. बाप और भाइयों को वे स्लीपर दिखा कर पूछा कि वे करामत के तो नहीं हैं.

उन्होंने बताया कि करामत तो उन से अलग दूसरी जगह पर अपनी पत्नी के साथ रहता था, इसलिए कह नहीं सकते कि स्लीपर किस के हैं. फिर मैं उन स्लीपरों को ले कर करामत के घर पहुंचा. वहां उस की पत्नी मिली. करामत की पत्नी को मैं ने वे स्लीपर दिखा कर पूछा, “क्या करामत ऐसे स्लीपर पहनता था?”

“ये उन्हीं के लगते हैं,” उस ने कहा, “2-3 दिन पहले ही तो उन्होंने खरीदे थे.”

“घर में उस के और भी कोई जूते हैं?” मैं ने पूछा.

उस ने कहा, “जी हां, 2 जोड़ी जूते पड़े हैं.”

मेरे कहने पर वह जूते उठा लाई. मैं ने स्लीपर और जूतों के तलवे देखे, दोनों का साइज एक जैसा था. मैं ने पूछा, “करामत के पास कितने जोड़े हैं?”

“यही 2 जोड़े हैं, जिन्हें वह बाहर जाने पर पहनते थे और यह स्लीपर घर में पहनने के हैं.”

“जरा याद करो कि जब वह घर से निकला था तो क्या पहने था?” मैं ने पूछा.

“मुझे अच्छी तरह याद है, वह यही स्लीपर पहने थे. पाजामा और कमीज पहनी थी, ऊपर पुराना स्वेटर था.”

इस तरह कुरेदतेकुरेदते पता चला कि करामत दफ्तर जाता था तो सलवारकमीज और अच्छे प्रकार का स्वेटर और कोट पहनता था. अगर उसे शहर से बाहर जाना होता था तो वह यही कपड़े पहनता था. चूंकि वह एक औरत को ले कर गया है, निश्चित उस ने अच्छे कपड़े पहने होंगे.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 1

फिलिप रौजर की जेब में मौजूद पीले रंग का वह पुराना कागज एक तरह से उस के बाप की वसीयत थी, जिस में उस ने आशीर्वाद के बाद लिखा था कि वह उस के और उस की बहन के लिए भारी कर्ज छोड़े जा रहा है. खानदानी जायदाद और घर रेहन रखने के बाद भाईबहन को वह तकदीर के भरोसे छोड़ कर मौत को गले लगा रहा है. इस के अलावा अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा है.

उस वसीयत के साथ फिलिप को 14 साल की एक लड़की और 24 साल के एक नौजवान की याद आ गई, जो बाप के आत्महत्या कर लेने के बाद बेसहारा हो गए थे. उस दिन पूरे 24 साल बाद फिलिप ने डौल्टन का दरवाजा खटखटाने के लिए दरवाजे पर हाथ रखा तो मन में दहक रही बदले की आग के साथ गर्व का अहसास हुआ, क्योंकि अब उस के पास वह ताकत थी, जिस से वह अपना अतीत खरीद सकता था.

डौल्टन ने दरवाजा खोला. उस के सिर के बाल सफेद हो गए थे, चेहरे पर परेशानी और गरीबी साफ झलक रही थी. फिलिप ने तो उसे पहचान लिया, लेकिन वह उसे नहीं पहचान सका, क्योंकि फिलिप अब 24 साल का दुबलापतला नौजवान नहीं, 48 साल का कीमती सूट में लिपटा शानदार व्यक्तित्व का मालिक था.

फिलिप ने हाथ मिलाते हुए गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मि. डौल्टन, मैं फिलिप रौजर. क्या अंदर आ सकता हूं?’’

डौल्टन घबरा सा गया. हकला कर बोला, ‘‘ओह मि. रौजर, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह आप हैं. आइए, यह आप का ही तो घर है.’’

‘‘है नहीं मि. डौल्टन, था. सचमुच 24 साल पहले यह मेरा ही घर था. लेकिन अब नहीं है.’’

‘‘मि. फिलिप प्लीज, ऐसा मत कहिए. आज भी यह आप का ही घर है. आप अंदर तो आइए.’’ डौल्टन ने बेचैन हो कर कहा.

पूरे 24 सालों बाद फिलिप ने अपने घर में कदम रखा था, जहां आज भी उस का अतीत जिंदा था और उस के मांबाप की यादें थीं. घर की हालत काफी खस्ता हो चुकी थी. वहां रखा फर्नीचर भी काफी पुराना था. हर तरफ गरीबी झलक रही थी. यह सब देख कर फिलिप को खुशी हुई. कीमती पेंटिंग्स, फानूस, बड़ीबड़ी लाइटें, सब गायब थीं.

फिलिप ने एक पुरानी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, ‘‘मैं यहां अपने मतलब की जरूरी बात करने आया हूं.’’

‘‘हां…हां, जरूर कहिएगा, पहले मैं आप को अपने घर वालों से तो मिलवा दूं.’’

‘‘मैं यहां किसी से मिलने नहीं, सिर्फ काम की बात करने आया हूं.’’ कह कर फिलिप ने साथ लाया बड़ा सा सूटकेस खोला और फर्श पर बिछे कालीन पर पलट दिया. नोटों का ढेर सा लग गया. उस ढेर की ओर इशारा करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप ने विज्ञापन दिया है कि आप यह घर बेच रहे हैं. इसलिए मैं यहां आया हूं. शायद मुझ से ज्यादा इस घर की कीमत कोई दूसरा नहीं दे सकता. जितनी रकम चाहो, इस में से निकाल लो.’’

डौल्टन की आंखें हैरत से चौड़ी हो गईं. बातचीत सुन कर डौल्टन की पत्नी भी उस कमरे में आ गई थी. नोटों के उस ढेर को देख कर वह भी हैरान रह गई. फिलिप ने डौल्टन को घूरते हुए कहा, ‘‘24 साल पहले आप ने बड़ी होशियारी से मेरे बाप को मार दिया था.’’

‘‘यह सरासर गलत है मिस्टर रौजर,’’ डौल्टन ने जल्दी से कहा, ‘‘दीवालिया हो जाने के बाद आप के पिता ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘आप ने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर किया था. उस के बाद मुझे और मेरी बहन को धक्के खाने और भूखे मरने के लिए घर से निकाल दिया था. लेकिन संयोग देखो, पांसा पलट गया. बताइए, इस घर के लिए आप को कितनी रकम चाहिए?’’

‘‘मैं इसे 5 लाख डौलर में बेचना चाहता हूं.’’ डौल्टन ने धीरे से कहा.

फिलिप ने गर्व से कहा, ‘‘ये 7 लाख डौलर हैं, लेकिन मेरी एक शर्त है, आप को आज शाम तक यह मकान खाली कर देना होगा.’’

डौल्टन और उस की पत्नी का मुंह हैरत से खुला रह गया. पल भर बाद डौल्टन ने कहा, ‘‘लेकिन मि. फिलिप कानूनी काररवाही में समय लगेगा.’’

‘‘कानूनी काररवाही होती रहेगी, मुझे आज शाम तक घर चाहिए.’’

डौल्टन ने कांपते हाथों से नोट समेटते हुए कहा, ‘‘मि. फिलिप यह मकान आप का हुआ, लेकिन मैं भी उसूलों वाला आदमी हूं. इसलिए आप जो 2 लाख डौलर ज्यादा दे रहे हैं, वे मुझे नहीं चाहिए.’’

फिलिप के गुरूर को धक्का लगा. क्योंकि 2 लाख डौलर डौल्टन ने लौटा दिए थे. इस तरह फिलिप रौजर का पुश्तैनी मकान उस के कब्जे में आ गया था.

इस के कुछ दिनों बाद फिलिप की बहन रोजा ने बाल संवारते हुए कहा, ‘‘फिलिप, तुम्हें तो आज डौल्टन के यहां पार्टी में जाना था?’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जा पाऊंगा उस के यहां पार्टी में.’’ फिलिफ ने बेरुखी से कहा.

‘‘यह गलत बात है फिलिप. हमारे उस के यहां से पुराने संबंध हैं, इसलिए उस के यहां तुम्हें जरूर जाना चाहिए.’’ रोजा ने भाई को समझाया.

‘‘मुझे उस आदमी से नफरत है. उसी की वजह से मेरे बाप ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘यह इल्जाम झूठा है फिलिप. हमारे पिताजी यह मकान और जायदाद जुए और शराब में हार गए थे. इस में खरीदार का क्या दोष? उस ने पैसे दिए थे, बदले में यह सब ले लिया. अब तुम्हें इस में क्या परेशानी है, तुम ने तो अपना मकान वापस ले लिया है. अब डौल्टन के बच्चों का क्या हक है कि वे तुम से नफरत करें, तुम्हें जलील करें? अगर वह आत्महत्या कर लेता तो क्या तुम हत्यारे कहे जाओगे?’’

‘‘तुम तो वकालत बहुत अच्छी कर लेती हो.’’ फिलिफ ने हार मानते हुए कहा.

डौल्टन का नया घर काफी छोटा और पुराना था. उस के इस घर को देख कर फिलिप को बहुत खुशी हुई थी. लेकिन डौल्टन ने दिल से उस का स्वागत किया था. इस के बाद उस ने अपने बगल खड़ी एक लड़की की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘मि. फिलिप, यह मेरी बेटी इजाबेला है.’’

फिलिप ने इजाबेला पर एक नजर डाली और एक किनारे बैठ गया. उस ने किसी से बात नहीं की तो लोग भी उस से दूरी बनाए रहे. शायद वे उस की संपन्नता से सहमे हुए थे. डौल्टन ने वह पार्टी अपना कर्ज अदा करने और यह घर खरीदने की खुशी में दी थी.

पैग ले कर फिलिप धीरेधीरे चुस्कियां ले रहा था. क्योंकि वह शराब उसे पसंद नहीं थी. यह बात उस के चेहरे से ही पता चल रही थी. कर्ज अदा करने और मकान खरीदने में डौल्टन ने काफी रकम खर्च कर दी थी.   गुजरबसर के लिए उस की बेटी इजाबेला एक स्कूल में पढ़ा रही थी तो वह किसी अखबार के दफ्तर में छोटामोटा काम कर रहा था. पार्टी में आए मेहमान खानेपीने में मशगूल थे.

अचानक फिलिप की नजर अपने बेटे एलेक्स पर पड़ी. कीमती सूट में लिपटा शानदार पर्सनैलिटी वाला एलेक्स सब से अलग नजर आ रहा था. वह हंसहंस कर बातें कर रहा था. इजाबेला भी उस से उसी तरह बातें कर रही थी.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 1

मैं थाने में बैठा कत्ल की एक फाइल को पढ़ रहा था, तभी एक आदमी आया जो आते ही बोला, “साहब, मेरा नाम जाहिद है और मैं इसी कस्बे में रहता हूं. मेरी पत्नी भाग गई है. मेरी रिपोर्ट दर्ज कर के उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करिए.”

उस की बात सुन कर मैं चौंका. उस की तरफ देखते हुए मैं ने पूछा, “यह तुम कैसे कह सकते हो?”

“पिछली रात, जब मैं बाथरूम गया था तो वह बिस्तर पर नहीं थी, बाहर का दरवाजा देखा तो कुंडी अंदर से खुली थी. इस

से मुझे लगा कि वह भाग गई है.”

“तुम्हारी बातों से यही लगता है कि तुम्हें पहले से ही शक था कि तुम्हारी पत्नी भाग जाएगी. क्या तुम ने उस के मायके वालों

से पता किया है कि वह वहां तो नहीं चली गई? तुम्हारी ससुराल कहां है?”

“ससुराल तो यहीं है, लेकिन मैं ने वहां पता नहीं किया,” उस ने जवाब में कहा.

“क्या तुम अपने मातापिता के साथ रहते हो?”

“नहीं जी, मैं अलग रहता हूं. लेकिन वह आधी रात को मेरे या अपने मातापिता के घर जा कर क्या करेगी? वह गांव के ही

करामत के साथ गई होगी.”

“यह बात तुम इतने दावे से कैसे कह सकते हो?”

“वह इसलिए कि उस का पहले से ही उस के साथ चक्कर चल रहा था. वह भी अपने घर पर नहीं है.”

“उसे रोकने के लिए तुम ने कुछ नहीं किया?”

“बहुत कुछ किया था. उस के मातापिता से भी शिकायत की थी. मैं ने उस की कई बार पिटाई भी की, लेकिन वह नहीं मानी. मेरे ससुर डीसी औफिस में हैडक्लर्क हैं. मेरे शिकायत करने पर उलटे उन्होंने मेरा अपमान करते हुए मुझे बंद कराने की धमकी दी थी. वह जिस आदमी के साथ गई है, वह भी बहुत पैसे वाला बदमाश किस्म का है.

“अच्छा, तुम मलिक नूर अहमद की बात कर रहे हो,” मैं ने कहा, “वह तुम्हारे ससुर हैं?”

उस के ससुर को मैं जानता था. वह डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में हैडक्लर्क थे, डीसी दफ्तर में नौकरी करना बड़े सम्मान की बात थी.

“आप देख लीजिएगा, वह कभी नहीं मानेंगे कि उस की बेटी भाग गई है. वह मेरे खिलाफ कोई न कोई फंदा डाल देंगे.” उस ने कहा.

मैं ने जाहिद से वह सभी बातें पूछीं, जो ऐसे मामले में पूछनी जरूरी होती हैं. करामत नाम के जिस शादीशुदा आदमी के साथ वह बीवी के भागने की बात कर रहा था, मैं ने उस का भी नामपता नोट कर के एक कांस्टेबल को करामत को बुलाने के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन कांस्टेबल उस की जगह उस के पिता और भाई को ले आया. दोनों ही डरे हुए थे.

उन्होंने बताया कि करामत घर पर नहीं है. पिता ने कहा कि वह सुबह ही घर से निकल गया था, जबकि भाई का कहना था कि वह रात का खाना खा कर निकला था और घर नहीं आया था. दोनों के बयान अलगअलग होने की वजह से मैं ने बाप से पूछा. मेरे सवालों से बाप परेशान हो गया. उस की आंखें लाल हो गईं. लग रहा था कि वह रोने वाला है.

वह कहने लगा, “साहब, मेरा यह बेटा पता नहीं मुझे कहांकहां अपमानित कराएगा. उसी की वजह से मुझे आज थाने आना पड़ा.”

यह कहते समय उस के चेहरे पर जो भाव उभरे, वह मुझे आज भी याद हैं. उस ने आगे कहा, “बड़ी इज्जत से जिंदगी गुजारी थी. लेकिन आज उस की वजह से मुझे झूठ बोलना पड़ा. करामत शाम को ही घर से निकला था. अभी तक उस के घर न लौटने पर मुझे भी लगने लगा है कि कहीं वह उसी के साथ ही तो नहीं भागी? बेटे को बचाने के लिए ही मैं झूठ बोल रहा था.”

वह एक सम्मानित आदमी था, इसलिए मैं उसे पूरा सम्मान दे रहा था. वह अपने बेटे को बचाने की पूरी कोशिश में था. मैं ने उसे झूठी सांत्वना देते हुए कहा कि मैं उस के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश करूंगा.

इस के बाद उस ने कहा, “साहब मैं ने करामत की शादी 4 साल पहले एक सुंदर, सुघड़ और सुशील लडक़ी से की थी. लेकिन उस ने उसे दिल से कबूल नहीं किया, क्योंकि वह मुनव्वरी नाम की एक लडक़ी से शादी करना चाहता था. हम ने मुनव्वरी का हाथ उस के बाप से मांगा, लेकिन पता नहीं क्यों उस ने मना कर दिया. मुनव्वरी बड़ी दिलेर निकली, उस ने अपने पति की परवाह नहीं की और करामत से मिलना जारी रखा.

“पता चला है कि इसी बात को ले कर मुनव्वरी की अपने पति से रोज लड़ाई होती थी. मैं ने भी अपने बेटे को समझाया, लेकिन वह मेरी सुनता ही नहीं था. इसी वजह से वह अपनी बीवी में ज्यादा रुचि नहीं लेता था.

“इस के बावजूद भी उस की बीवी संतोष कर के बैठी रही. उसे एक बच्चा भी हो गया, फिर भी करामत ने घर को घर नहीं समझा. मुनव्वरी के जाल में ऐसा फंसा रहा कि मांबाप और बीवीबच्चों को भूल गया.

“मुनव्वरी के बाप को भी पता था कि उस की बेटी क्या कर रही है. लेकिन डीसी औफिस में नौकरी करने की वजह से वह घमंड में चूर रहता था. उस ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.”

मैं ने उस से पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि करामत मुनव्वरी को ले कर कहां गया होगा?”

वह सोच कर बोला, “जबलपुर छावनी में उस के चाचा का लडक़ा रहता है. वह फौज में है. उस से करामत की गहरी दोस्ती है. हो सकता है वह वहीं गया हो?”

मैं ने उन दोनों से पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. मुनव्वरी और करामत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी. यह मामला खोजबीन का नहीं, पीछा करने का था. खोजबीन उस मामले में होती है, जिस में अपराधी का पता न हो. इस मामले में अपराधी का नामपता सब कुछ था. उन दोनों को सिर्फ ढूंढना था. मैं ने दोनों की फोटो ले कर विभिन्न थानों को सूचना भेज दी. इस मामले को मैं खुद देख रहा था. करामत के चरित्र के बारे में पता चला कि वह इसी कस्बे में एक बैंक में नौकरी करता था, साथ ही एक बीमा कंपनी में एजेंट भी था.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 3

‘‘तुम पहले ही मुझे इतना छल चुके हो कि अब और गुंजाइश बाकी नहीं है. सच तो यह है कि तुम्हारे लिए मेरी अहमियत उस फूल से अधिक कभी नहीं रही, जिसे जब चाहा मसल दिया. तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की कि बिस्तर से परे भी मेरा कोई वजूद है. मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूं. मेरा शरीर भी हाड़मांस से बना हुआ है, जिस के भीतर दिल धड़कता है और जो तुम्हारी तरह ही सुखदुख का अनुभव करता है.’’

‘‘इस बीच रीना ने मेरी बहुत सहायता की. जीने की प्रेरणा दी. कदमकदम पर हौसला बढ़ाया. वह भावनात्मक संबल न देती तो मैं टूट गई होती. अपना अस्तित्व बचाने के लिए मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने भरपूर साथ दिया. तुम ने कभी नहीं चाहा मैं नौकरी करूं. इस के लिए तुम ने हर संभव कोशिश भी की. अपने बराबर मुझे खड़ी होते देख तुम विचलित होने लगे थे. दरअसल, मेरे आंसुओं से तुम्हारा अहं तुष्ट होता था, शायद इसीलिए तुम्हारी कुंठा छटपटाने लगीथी.’’

‘‘मुझे अपने सारे जुर्म स्वीकार हैं. जो चाहे सजा दो मुझे, पर प्लीज अपने घर लौट चलो,’’ मैं असहाय भाव से गिड़गिड़ाता हुआ बोला.

‘‘कौन सा घर?’’ वह आपे से बाहर हो गई, ‘‘ईंट पत्थर की बेजान दीवारों से बना वह ढांचा, जहां तुम्हारे तुगलकी फरमान चलते हैं? तुम्हें जो अच्छा लगता वही होता था वहां. बैडरूम की लोकेशन से ले कर ड्राइंगरूम की सजावट तक सब में तुम्हारी ही मरजी चलती थी. मुझे किस रंग की साड़ी पहननी है, किचन में कब क्या बनना है, इस सब का निर्णय भी तुम ही लेते थे. वह सब मुझे पसंद है भी या नहीं, इस से तुम्हें कुछ लेनादेना नहीं था. मैं टीवी देखने बैठती तो रिमोट तुम झपट लेते. जो कार्यक्रम मुझे पसंद थे उन से तुम्हें चिढ़ थी.

‘‘वहां दूरदूर तक मुझे अपना अस्तित्व कहीं भी नजर नहीं आता था… हर ओर तुम ही तुम पसरे हुए थे. मेरे विचार, मेरी भावनाएं, मेरा अस्तित्व सब कुछ तिरोहित हो गया तुम्हारी विक्षिप्त कुंठाओं में. तुम्हारी हिटलरशाही की वजह से मेरा जीना हराम हो गया था. उस अंधेरी कोठरी में दम घुटता था मेरा, इसीलिए उस से दूर बहुत दूर यहां आ गई हूं ताकि सुकून के 2 पल जी सकूं, अपनी मरजी से.’’

‘‘अब तुम जो चाहोगी वही होगा वहां. तुम्हारी मरजी के बिना एक कदम भी नहीं चलूंगा मैं. तुम्हारे आने के बाद से वह घर खंडहर हो गया है. दीवारें काट खाने को दौड़ती हैं. बेटी की किलकारियां सुनने को मन तरस गया है. उस खंडहर को फिर से घर बना दो रेवा,’’ मेरा गला भर आया था.

‘‘अपनी गंदी जबान से मेरी बेटी का नाम मत लो,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘भौतिक सुख और रासायनिक प्रक्रिया मात्र से कोई बाप कहलाने का हकदार नहीं हो जाता. बहुत कुछ कुरबान करना पड़ता है औलाद के लिए. याद करो उन लमहों को, जब मेरे गर्भवती होने पर तुम गला फाड़फाड़ कर चीख रहे थे कि मेरे गर्भ में तुम्हारा रक्त नहीं, मेरे बौस का पल रहा है. तुम्हारे दिमाग में गंदगी का अंबार देख कर मैं स्तब्ध रह गई थी. कितनी आसानी से तुम ने यह सब कह दिया था, पर मैं भीतर तक घायल हो गईथी तुम्हारी बकवास सुन कर. जी तो चाहा था कि तुम्हारी जबान खींच लूं, पर संस्कारों ने हाथ जकड़ लिए थे मेरे.

‘‘तुम चाहते थे कि मैं गर्भपात करा लूं. अपनी बात मनवाने के लिए जुल्मों का हथकंडा भी अपनाया पर मैं अपने अंश को जन्म देने के लिए दृढ़संकल्प थी. प्रसव कक्ष में मैं मौत से संघर्ष कर रही थी और तुम श्रुति के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे. एक बार भी देखने नहीं आए कि मैं किस स्थिति में हूं. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं ताकि तुम्हारा रास्ता साफ हो जाए. इस मुश्किल घड़ी में रीना साथ न देती तो मर ही जाती मैं.’’

आंखों में आंसू लिए मैं अपराधी की भांति सिर झुकाए उस की बात सुनता रहा.

‘‘मुझे परेशान करने के तुम ने नएनए तरीके खोज लिए थे. तुम मेरी तुलना अकसर श्रुति से करते थे. तुम्हारी निगाह में मेरा चेहरा, लिपस्टिक लगाने का तरीका, हेयरस्टाइल, पहनावा और फिगर सब कुछ उस के आगे बेहूदा था. मेरी हर बात में नुक्स निकालना तुम्हारी आदत में शामिल हो गया था. मूर्ख, पागल, बेअक्ल… तुम्हारे मुंह से निकले ऐसे ही जाने कितने शब्द तीर बन कर मेरे दिल के पार हो जाते थे. मैं छटपटा कर रह जाती थी. भीतर ही भीतर सुलगती रहती थी तुम्हारे शब्दालंकारों की अग्नि में. इतनी ही बुरी लगती हूं तो शादी क्यों की थी मुझ से? मेरे इस प्रश्न पर तुम तिलमिला कर रह जाते थे.

‘‘उकता गई थी मैं उस जीवन से. ऐसा लगता था जैसे किसी ने अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया हो. मेरी रगरग में विषैले बिच्छुओं के डंक चुभने लगे थे. जहर घुल गया था मेरे लहू में. सांस घुटने लगी थी मेरी. उस दमघोंटू माहौल में मैं अपनी बेटी का जीवन बरबाद नहीं कर सकती. उपेक्षा के जो दंश मैं ने झेले हैं, उस की छाया उस पर हरगिज नहीं पड़ने दूंगी. बेहतर है, तुम खुद ही चले जाओ वरना तुम जैसे बेगैरत इंसान को धक्के मार कर बाहर का रास्ता दिखाना भी मुझे अच्छी तरह आता है.

एक बात और समझ लो,’’ मेरी ओर उंगली तान कर वह शेरनी की तरह गुर्राई, ‘‘भविष्य में भूल कर भी इधर का रुख किया तो बाकी बची जिंदगी जेल में सड़ जाएगी,’’ मेरी ओर देखे बिना उस ने अंदर जा कर इस तरह दरवाजा बंद किया जैसे मेरे मुंह पर तमाचा मारा हो.

मैं किंकर्तव्यविमूढ सा खड़ा रहा. इंसान के गुनाह साए की तरह उस का पीछा करते हैं. लाख कोशिशों के बाद भी वह परिणाम भुगते बगैर उन से मुक्त नहीं हो सकता. कल मैं ने जिस का मोल नहीं समझा, आज मैं उस के लिए मूल्यहीन था. यह दुनिया कुएं की तरह है. जैसी आवाज दोगे वैसी ही प्रतिध्वनि सुनाई देगी. जो जैसे बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है. तनहाई की स्याह सुरंगों की कल्पना कर मेरी आंखों में मुर्दनी छाने लगी. आवारा बादल सा मैं खुद को घसीटता अनजानी राह पर चल दिया. टूटतेभटकते जैसे भी हो, अब सारा जीवन मुझे अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना था.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 2

अगले दिन सैकंड सैटरडे था और उस के अगले दिन संडे. इन 2 दिनों की दूरी मेरे लिए आकाश और पाताल के बराबर थी. कुछ सोचता हुआ मैं उसी तेजी से उस औफिस में दाखिल हुआ, जहां से रेवा निकली थी. रिशैप्सन पर एक खूबसूरत लड़की बैठी थी. तेज चलती सांसों को नियंत्रित कर मैं ने उस से पूछा कि क्या रेवा यहीं काम करती हैं? उस ने ‘हां’ कहा तो मैं ने रेवा का पता पूछा. उस ने अजीब निगाहों से मुझे घूर कर देखा.

‘‘मैडम प्लीज,’’ मैं ने उस से विनती की, ‘‘वह मेरी पत्नी है. किन्हीं कारणों से हमारे बीच मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई थी, जिस से वह रूठ कर अलग रहने लगी. मैं उस से मिल कर मामले को शांत करना चाहता हूं. हमारी एक छोटी सी बेटी भी है. मैं नहीं चाहता कि हमारे आपस के झगड़े में उस मासूम का बचपन झुलस जाए. आप उस का पता दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी. बिलीव मी, आई एम औनेस्ट,’’ मेरा गला भर आया था.

वह कुछ पलों तक मेरी बातों में छिपी सचाई को तोलती रही. शायद उसे मेरी नेकनीयती पर यकीन हो गया था. अत: उस ने कागज पर रेवा का पता लिख कर मुझे थमा दिया. मैं हवा में उड़ता वापस आया. सारी रात मुझे नींद नहीं आई. मन में एक ही बात खटक रही थी कि मैं रेवा का सामना कैसे करूंगा? क्या उस से नजरें मिला सकूंगा? पता नहीं वह मुझे माफ करेगी भी या नहीं?

उस के स्वभाव से मैं भलीभांति परिचित था. एक बार जो मन में ठान लेती थी, उसे पूरा कर के ही दम लेती थी. अगर ऐसा हुआ तो? मन के किसी कोने से उठी व्यग्रता मेरे समूचे अस्तित्व को रौंदने लगी. ऐसा हरगिज नहीं हो सकता. मन में घुमड़ते संशय के बादलों को मैं ने पूरी शिद्दत से छितराने की कोशिश की. वह पत्नी है मेरी. उस ने मुझे दिल की गहराइयों से प्यार किया है. कुछ वक्त लिए तो वह मुझ से दूर हो सकती है, पर हमेशा के लिए नहीं. मेरा मन कुछ हलका हो गया था. उस की सलोनी सूरत मेरी आंखों में तैरने लगी थी.

सुबह उस का पता ढूंढ़ने में कोई खास परेशानी नहीं हुई. मीडियम क्लास की कालोनी में 2 कमरों का साफसुथरा सा फ्लैट था. आसपास गहरी खामोशी का जाल फैला था. बाहर रखे गमलों में उगे गुलाब के फूलों से रेवा की गंध का मुझे एहसास हो रहा था. रोमांच से मेरे रोएं खड़े हो गए थे. आगे बढ़ कर मैं ने कालबैल का बटन दबाया. भीतर गूंजती संगीत की मधुर स्वरलहरियों ने मेरे कानों में रस घोल दिया. कुछ ही पलों में गैलरी में उभरी रेवा के कदमों की आहट को मैं भलीभांति पहचान गया. मेरा दिल उछल कर हलक में फंसने लगा था.

‘‘तुम?’’ मुझे सामने खड़ा देख कर वह बुरी तरह चौंक गई?थी.

‘‘रेवा, मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. हर ऐसी जगह जहां तुम मिल सकती थीं, मैं भटकता रहा. तुम ने मुझे सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं दिया. अचानक ही छोड़ कर चली आईं.’’

‘‘अचानक कहां, बहुत छटपटाने के बाद तोड़ पाई थी तुम्हारा तिलिस्म. कुछ दिन और रुकती तो जीना मुश्किल हो जाता. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं. अपनी ओर से तुम ने कोई कसर बाकी भी तो नहीं छोड़ी थी.’’

‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं रेवा,’’ मेरे हाथ स्वत: ही जुड़ गए थे, ‘‘तुम्हारे साथ जो बदसुलूकी की है मैं ने उस की काफी सजा भुगत चुका हूं, जो हुआ उसे भूल कर प्लीज क्षमा कर दो मुझे.’’

‘‘लगता है मुझे परेशान कर के अभी तुम्हारा दिल नहीं भरा, इसलिए अब एक नया बहाना ले कर आए हो,’’ उस की आवाज में कड़वाहट घुल गई थी, ‘‘बहुत रुलाया है मुझे तुम्हारी इन चिकनीचुपड़ी बातों ने. अब और नहीं, चले जाओ यहां से. मुझे कोई वास्ता नहीं रखना है तुम्हारे जैसे घटिया इंसान से.’’

मैं हैरान सा उस की ओर देखता रहा.

‘‘तुम्हारी नसनस से मैं अच्छी तरह वाकिफ हूं. अपने स्वार्थ के लिए तुम किसी भी हद तक गिर सकते हो. तुम्हारा दिया एकएक जख्म मेरे सीने में आज भी हरा है.’’

‘‘मुझे प्रायश्चित्त का एक मौका तो दो रेवा. मैं…’’

‘‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती,’’ मेरी बात बीच में काट कर वह बिफर पड़ी, ‘‘तुम्हारी हर याद को अपने जीवन से खुरच कर मैं फेंक चुकी हूं.’’

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ बातचीत का रुख बदलने की गरज से मैं बोला.

‘‘यह अधिकार तुम बहुत पहले खो चुके हो.’’ मैं कांप कर रह गया.

‘‘ऐसे हालात तुम ने खुद ही पैदा किए हैं आकाश. अपने प्यार को बचाने की मैं ने हर संभव कोशिश की थी. अपना वजूद तक दांव पर लगा दिया पर तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की. जब तक सहन हुआ मैं ने सहा. मैं और कितना सहती और झुकती. झुकतेझुकते टूटने लगी थी. मैं ने अपना हाथ भी बढ़ाया था तुम्हारी ओर इस उम्मीद से कि तुम टूटने से बचा लोगे, पर तुम तो जैसे मुझे तोड़ने पर ही आमादा थे.’’

मैं मौन खड़ा रहा.

‘‘अफसोस है कि मैं तुम्हें पहचान क्यों न सकी. पहचानती भी कैसे, तुम ने शराफत का आवरण जो ओढ़ रखा था. इसी आवरण की चकाचौंध में तुम्हारे जैसा जीवनसाथी पा कर खुद पर इतराने लगी थी. पर मैं कितनी गलत थी. इस का एहसास शादी के कुछ दिन बाद ही होने लगा था. मैं जैसेजैसे तुम्हें जानती गई, तुम्हारे चेहरे पर चढ़ा मुखौटा हटता गया. जिस दिन मुखौटा पूरी तरह हटा मैं हैरान रह गई थी तुम्हारा असली रूप देख कर.

‘‘शुरुआत में तो सब कुछ ठीक रहा. फिर तुम अकसर कईकई दिनों तक गायब रहने लगे. बिजनैस टूर की मजबूरी बता कर तुम ने कितनी सहजता से समझा दिया था मुझे. मैं अब भी इसी भ्रम में जीती रहती, अगर एक दिन अचानक तुम्हें, तुम्हारी सैक्रेटरी श्रुति की कमर में बांहें डाले न देख लिया होता. रीना के आग्रह पर मैं सेमिनार में भाग लेने जिस होटल में गई थी, संयोग से वहीं तुम्हारे बिजनैस टूर का रहस्य उजागर हो गयाथा. तुम्हारी बांहों में किसी और को देख कर मैं जैसे आसमान से गिरी थी, पर तुम्हारे चेहरे पर क्षोभ का कोई भाव तक नहीं था.

मैं कुछ कहती, इस से पहले ही तुम ने वहां मेरी उपस्थिति पर हजारों प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए थे. मैं चाहती तो तुम्हारे हर तर्क का करारा जवाब दे सकती थी, पर तुम्हारी रुसवाई में मुझे मेरी ही हार नजर आती थी. मेरी खामोशी को कमजोरी समझ कर तुम और भी मनमानी करने लगे थे. मैं रोतीतड़पती तुम्हारे इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदलती और तुम जाम छलकाते हुए दूसरों की बांहों में बंधे होते.’’

‘‘वह गुजरा हुआ कल था, जिसे मैं कब का भुला चुका हूं,’’ मैं मुश्किल से बोल पाया.

‘‘तुम्हारे लिए यह सामान्य सी बात हो सकती है, पर मेरा तो सब कुछ दफन हो गया है, उस गुजरे हुए कल के नीचे. कैसे भूल जाऊं उन दंशों को, जिन की पीड़ा में मैं आज भी सुलग रही हूं. याद करो अपनी शादी की सालगिरह का वह दिन, जब तुम जल्दी चले गए थे. देर रात तक तुम्हारा इंतजार करती रही मैं. हर आहट पर दौड़ती हुई मैं दरवाजे तक जाती थी.

लगता था कहीं आसपास ही हो तुम और जानबूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो. तुम लड़खड़ाते हुए आए थे. मैं संभाल कर तुम्हें बैडरूम में ले गईथी. खाने के लिए तुम ने इनकार कर दिया था. शायद श्रुति के साथ खा कर आए थे. मैं पलट कर वापस जाना चाहती थी कि तुम ने भेडि़ए की तरह झपट्टा मार कर मुझे दबोच लिया था. तुम देर तक मुझे नोचतेखसोटते रहे थे और मैं तुम्हारी वहशी गिरफ्त में असहाय सी तड़पती रही थी. तुम्हारी दरिंदगी से मेरा मन तक घायल हो गया था. बोलो, कैसे भूल जाऊं मैं वह सब?’’

‘‘बस करो रेवा,’’ कानों पर हाथ रख कर मैं चीत्कार कर उठा, ‘‘मेरे किए गुनाह विषैले सर्प बन कर हर पल मुझे डसते रहे हैं. अब और सहन नहीं होता. प्लीज, सिर्फ एक बार माफ कर दो मुझे. वादा करता हूं भविष्य में तुम्हें तकलीफ नहीं होने दूंगा.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 1

‘‘रेवा…’’ बाथरूम में घुसते ही ठंडे पानी के स्पर्श से सहसा मेरे मुंह से निकल गया. यह जानते हुए भी कि वह घर में नहीं है. आज ही क्यों, पिछले 2 महीनों से नहीं है. लेकिन लगता ऐसा है, जैसे युगों का पहाड़ खड़ा हो गया.

रेवा का यों अचानक चले जाना मेरे लिए अप्रत्याशित था. जहां तक मैं समझता हूं वह उन में से थी, जो पति के घर डोली में आने के बाद लाख जुल्म सह कर भी 4 कंधों पर जाने की तमन्ना रखती हैं. लेकिन मैं शायद यह भूल गया था कि लगातार ठोंकने से लोहे की शक्ल भी बदल जाती है. खैर, उस वक्त मैं जो आजादी चाहता था, वह मुझे सहज ही हासिल हो गई थी.

श्रुति मेरी सैक्रेटरी थी. उस का सौंदर्य भोर में खिले फूल पर बिखरी ओस की बूंदों सा आकर्षक था. औफिस के कामकाज संभालती वह कब मेरे करीब आ गई, पता ही नहीं चला. उस की अदाओं और नाजनखरों में इतना सम्मोहन था कि उस के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं था. मेरे लिए रेवा जेठ की धूप थी तो श्रुति वसंती बयार. रेवा के जाने के बाद मेरे साथसाथ घर में भी श्रुति का एकाधिकार हो गया था.

सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन अचानक पश्चिम से सुरसा की तरह मुंह बाए आई आर्थिक मंदी ने मेरी शानदार नौकरी निगल ली. इस के साथ ही मेरे दुर्दिन शुरू हो गए. मैं जिन फूलों की खुशबू से तर रहता था, वे सब एकएक कर कैक्टस में बदलने लगे. मैं इस सदमे से उबर भी नहीं पाया था कि श्रुति ने तोते की तरह आंखें फेर लीं. उस के गिरगिटी चरित्र ने मुझे तोड़ कर रख दिया. अब मैं था, मेरे साथ थी आर्थिक तंगी में लिपटी मेरी तनहाई और श्रुति की चकाचौंध में रेवा के साथ की ज्यादतियों का अपराधबोध.

रेवा का निस्स्वार्थ प्रेम, भोलापन और सहज समर्पण रहरह कर मेरी आंखों में कौंधता है. सुबह जागने के साथ बैडटी, बाथरूम में गरम पानी, डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के साथ अखबार, औफिस के वक्त इस्तिरी किए हुए कपड़े, पौलिश किए जूते, व्यवस्थित ब्रीफकेस और इस बीच मुन्नी को भी संभालना, सब कुछ कितनी सहजता से कर लेती थी रेवा. इन में से कोई भी एक काम ठीक वक्त पर नहीं कर सकता मैं… फिर रेवा अकेली इतना सब कुछ कैसे निबटा लेती थी, मैं सोच कर हैरान हो जाता हूं.

उस ने कितने करीने से संवारा था मुझे और मेरे घर को… अपना सब कुछ उस ने होम कर दिया था. उस के जाने के बाद यहां के चप्पेचप्पे में उस की उपस्थिति और अपने जीवन में उस की उपयोगिता का एहसास हो रहा है मुझे. उसे ढूंढ़ने में मैं ने रातदिन एक कर दिए. हर ऐसी जगह, जहां उस के मिलने की जरा भी संभावना हो सकती थी मैं दौड़ता भागता रहा पर हर जगह निराशा ही हाथ लगी. पता नहीं वह कहां अदृश्य हो गई.

मन के किसी कोने से पुलिस में शिकायत करने की बात उठी. पर इस वाहियात खयाल को मैं ने जरा भी तवज्जो नहीं दी. रेवा को मैं पहले ही खून के आंसू रुला चुका हूं. उसे हद से ज्यादा रुसवा कर चुका हूं. पुलिस उस के जाने के 100 अर्थ निकालती, इसलिए अपने स्तर से ही उसे ढूंढ़ने के प्रयास करता रहा.

मेरे मस्तिष्क में अचानक बिजली सी कौंधी. रीना रेवा की अंतरंग सखी थी. अब तक रीना का खयाल क्यों नहीं आया… मुझे खुद पर झुंझलाहट होने लगी. जरूर उसी के पास गई होगी रेवा या उसे पता होगा कि कहां गई?है वह. अवसाद के घने अंधेरे में आशा की एक किरण ने मेरे भीतर उत्साह भर दिया. मैं जल्दीजल्दी तैयार हो कर निकला, फिर भी 10 बज चुके थे. मैं सीधा रीना के औफिस पहुंचा.

‘‘मुझे अभी पता चला कि रेवा तुम्हें छोड़ कर चली गई,’’ मेरी बात सुन कर वह बेरुखी से बोली, ‘‘तुम्हारे लिए तो अच्छा ही हुआ, बला टल गई.’’

मेरे मुंह से बोल न फूटा.

‘‘मैं नहीं जानती वह कहां है. मालूम होता तो भी तुम्हें हरगिज नहीं बताती,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘जहां भी होगी बेचारी चैन से तो जी लेगी. यहां रहती तो घुटघुट कर मर जाती.’’

‘‘रीना प्लीज,’’ मैं ने विनती की, ‘‘मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया है. श्रुति ने मेरी आंखों में जो आड़ीतिरछी रेखाएं खींच दी थीं, उन का तिलिस्म टूट चुका है.’’

‘‘क्यों मेरा वक्त बरबाद कर रहे हो,’’ वह बोली, ‘‘बहुत काम करना है अभी.’’

रात गहराने के साथ ठिठुरन बढ़ गई थी. ठंडी हवाएं शरीर को छेद रही थीं. इन से बेखबर मैं खुद में खोया बालकनी में बैठा था. बाहर दूर तक कुहरे की चादर फैल चुकी थी और इस से कहीं अधिक घना कुहरा मेरे भीतर पसरा हुआ था, जिस में मैं डूबता जा रहा था. देर तक बैठा मैं रेवा की याद में कलपता रहा. उस के साथ की ज्यादतियां बुरी तरह मेरे मस्तिष्क को मथती रहीं. जिस ग्लेशियर में मैं दफन होता जा रहा था, उस के आगे शीत की चुभन बौनी साबित हो रही थी.

अगले कई दिनों तक मेरी स्थिति अजीब सी रही. रेवा के साथ बिताया एकएक पल मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभ रहा था. काश, एक बार, सिर्फ एक बार रेवा मुझे मिल जाए फिर कभी उसे अपने से अलग नहीं होने दूंगा. उस से हाथ जोड़ कर, झोली फैला कर क्षमायाचना कर लूंगा. वह जैसे चाहेगी मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करने के लिए तैयार हूं. उसे इतना प्यार दूंगा कि वह सारे गिलेशिकवे भूल जाएगी. उस के हर आंसू को फूल बनाने में जान की बाजी लगा दूंगा.

अपनी सारी खुशियां उस के हर एक जख्म को भरने में होम कर दूंगा. पर इस के लिए रेवा का मिलना निहायत जरूरी था, जोकि संभव होता नजर नहीं आ रहा था. वह भीड़भाड़ भरा इलाका था. आसपास ज्यादातर बड़ीबड़ी कंपनियों के औफिस थे. शाम को वहां छुट्टी के वक्त कुछ ज्यादा ही भागमभाग हो जाती थी. एक दिन मैं खुद में खोया धक्के खाता वहां से गुजर रहा था कि मेरे निर्जीव से शरीर में करंट सा दौड़ गया. जहां मैं था, उस के ऐन सामने की बिल्डिंग से रेवा आती दिखाई दी.

मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं दौड़ कर उस के पास पहुंच जाना चाहता था पर सड़क पर दौड़ते वाहनों की वजह से मैं ऐसा न कर सका. लाल बत्ती के बाद वाहनों का काफिला थमा, तब तक वह बस में बैठ कर जा चुकी थी. मैं ने तेजी से दौड़ कर सड़क पार की पर सिवा अफसोस कि कुछ भी हासिल न कर सका. मेरा सिर चकराने लगा.