जब सुमिक्षा का कहीं पता नहीं चला तो बुद्धिविलास कालोनी वालों के साथ थाना सिकंदरा पहुंचा और थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह से मिल कर सुमिक्षा की गुमशुदगी दर्ज करा दी.
पुलिस ने भी सुमिक्षा की तलाश शुरू की. थानाप्रभारी ने अर्चना से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में वह उन के सवालों का जवाब देने के बजाय बेटी को ढूंढ़ कर लाने की बात ज्यादा कर रही थी. वह कालोनी की औरतों के साथ थाने भी गई और वहां धमकी दी कि अगर उस की बेटी नहीं मिलती तो वह कुछ भी कर गुजरेगी.
मामला गंभीर था. पुलिस को सुमिक्षा का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. थानाप्रभारी आशीश कुमार सिंह ने मंदिर और परिसर में बने बुद्धिविलास के घर का भी निरीक्षण किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि अर्चना गायब बच्ची की सौतेली मां है. इस के अलावा उस की हरकतें भी उन्हें अजीब और संदिग्ध लगी थीं.
थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह को लग रहा था कि लड़की के गायब होने के पीछे उस की सौतेली मां का ही हाथ है. क्योंकि पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया था कि पति के जाने के बाद उस ने खुद गेट बंद कर के ताला लगा दिया था. ऐसे में उतनी छोटी बच्ची ऊंची दीवारें फांद कर बाहर नहीं जा सकती थी.
थानाप्रभारी ने कालोनी वालों से अर्चना के व्यवहार के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि अर्चना सुमिक्षा को बहुत परेशान करती थी. वह नहीं चाहती थी कि सौतेली बेटी उस के साथ रहे. पुलिस को बुद्धिविलास पर भी शक हो रहा था कि पत्नी के साथ वह भी मिला हो सकता है. लेकिन उस की हालत देख कर पुलिस का यह शक जल्दी ही दूर हो गया.
पुलिस को अर्चना पर पूरा शक था. लेकिन सुबूत न होने की वजह से उस पर हाथ नहीं डाल पा रही थी. यह भी निश्चित था कि अगर अर्चना ने सुमिक्षा की हत्या की थी तो लाश घर में ही कहीं छिपा रखी थी. इसलिए पुलिस ने डौग स्क्वायड भी बुलाया. लेकिन डौग स्क्वायड भी सुमिक्षा की लाश का पता नहीं लगा सके.
सुमिक्षा की गुमशुदगी की सूचना पा कर बुद्धिविलास के 2 भतीजे देवेंद्र और विकास भी आ गए थे. उन्होंने भी अर्चना से सुमिक्षा के बारे में पूछा, लेकिन उस ने उन्हें भी कुछ नहीं बताया. इस के बाद उस ने पुलिस को बताया कि एक ज्योतिषी ने उसे बताया है कि सुमिक्षा मथुरा में है. पुलिस की एक टीम मथुरा भी गई, लेकिन सुमिक्षा उन्हें वहां कहां मिलती. अगले दिन उस ने कहा कि उसे सपना आया है कि सुमिक्षा हाथरस में है. पुलिस टीम हाथरस भी गई.
पुलिस को पूरा विश्वास था कि सुमिक्षा को अर्चना ने ही गायब किया है. इसलिए पुलिस उस पर दबाव बनाने लगी. पुलिस के बढ़ते दबाव से डर कर अर्चना ने फोन कर के अपने पिता रमेश मिश्रा को बुला लिया और मौका मिलते ही रात में उन्हें बता दिया कि उस ने सुमिक्षा की हत्या कर दी है और घर के पास गड्ढा खोद कर उसे दफना दिया है.
बेटी के इस खुलासे से रमेश मिश्रा बुरी तरह डर गए. जैसेतैसे रात बिता कर सवेरा होते ही वह बेटे को ले कर राजामंडी रेवले स्टेशन पर पहुंच गए. वह अपने बेटे को इस झंझट से बचाना चाहते थे. उन का बेटे को इस तरह गुपचुप तरीके से ले कर निकल जाना संदेह पैदा कर रहा था.
देवेंद्र और विकास ने राजा मंडी स्टेशन जा कर उन्हें उस समय घेर लिया, जब वह गाड़ी में बैठ चुके थे. वे उन्हें घर ले आए. शिवपूजन से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह तो सो गया था, इसलिए उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं मालूम, लेकिन दीदी ने उस से कहा है कि पहले दिन उस ने पुलिस को जो बताया था, वही बात सब को बताना. वह सब से वही कहेगा.
24 सितंबर को सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह ने बुद्धिविलास से कहा कि वह अर्चना के साथ सख्ती करे और बेटे की कसम दिला कर सचाई बताने को कहे. इस के बाद बुद्धिविलास ने अर्चना को मंदिर में देवी के सामने खड़ी कर के कहा कि वह बेटे के सिर पर हाथ रख कर कहे कि उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं पता तो वह मान लेगा कि वह सच बोल रही है.
बेटे की कसम खाने की बात आई तो अर्चना टूट गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुमिक्षा को बेहोश कर के जीवित ही गड्ढा खोद कर गाड़ दिया है.
सच्चाई जान कर बुद्धिविलास ने सिर पीट लिया. इस के बाद उस ने फोन कर के थाना सिकंदरा को सूचना दे दी. थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ तुरंत मंदिर आ पहुंचे. उन्होंने गड्ढा खुदवा कर लाश निकलवाई तो लाश देख कर कालोनी की औरतें ही नहीं, आदमी भी रो पड़े.
मासूम बच्ची की लाश की स्थिति देख कर भीड़ बेकाबू हो गई और बुद्धिविलास सहित घर के सभी लोगों की पिटाई कर दी. पुलिस किसी तरह बचा कर अर्चना को महिला थाने ले आई. अर्चना का मैडिकल बड़े ही गुपचुप रूप से कराया गया. कालोनी की औरतें उसे मारने को तैयार थीं.
25 सितंबर को भारी पुलिस सुरक्षा में अर्चना को स्पेशल सीजेएम कृष्णचंद पांडेय की अदालत में पेश किया गया. उन्होंने उसे जेल भेज दिया. अदालत में मौजूद महिलाओं ने भारी पुलिस व्यवस्था के बावजूद अर्चना के मुंह में स्याही पोत दी.
अजय कौशिक और उन की पत्नी संध्या का कहना है कि अगर उन्हें जरा भी अहसास होता कि सौतेली मां अर्चना हत्यारिन भी हो सकती है तो वह बच्ची सुमिक्षा को अपने पास ही रख लेते.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
इस के बाद अर्चना अपनेआप ही ससुराल आ गई. आने पर जब उसे पता चला कि उस के जाने के बाद से सुमिक्षा संध्या के यहां रह रही है तो उस ने बुद्धिविलास से कहा कि अपनी बेटी को दूसरे के घर भेजने की क्या जरूरत थी. वह उसे तुरंत घर ले आए.
बुद्धिविलास सुमिक्षा को लेने संध्या के घर गया तो वह अपने घर आने को तैयार नहीं थी. संध्या पिता की मरजी के बगैर बच्ची को कैसे रोक सकती थीं, इसलिए उन्होंने सुमिक्षा को समझाबुझा कर उस के साथ भेज दिया.
उसी बीच बुद्धिविलास ने सुमिक्षा के नाम 50 हजार की एक एफडी कराई तो अर्चना को लगा कि बुद्धिविलास अपना सब कुछ सुमिक्षा को ही दे देगा. अगर ऐसा हुआ तो उस के बेटे का क्या होगा.
इस के बाद अर्चना ने बुद्धिविलास से कहसुन कर अपने छोटे भाई शिवपूजन को पढ़ने के लिए अपने पास बुला लिया. अर्चना ने उस का दाखिला आगरा में गौतम ऋषि इंटर कालेज में छठीं कक्षा में करवा दिया. शिवपूजन के आने से सुमिक्षा की परेशानी और बढ़ गई. अब भाईबहन, दोनों सुमिक्षा को परेशान करने लगे. भाई के आने से अर्चना के इरादे को और मजबूती मिली. मन ही मन वह सुमिक्षा से छुटकारा पाने की योजना बनाने लगी.
जब उस की योजना बन गई तो वह बुद्धिविलास के बाहर जाने का इंतजार करने लगी. योजनानुसार उस ने सुमिक्षा के प्रति अपना व्यवहार पूरी तरह बदल लिया था. वह सुमिक्षा से इस तरह प्यार का नाटक करने लगी, जैसे एक मां करती है. बुद्धिविलास को इस से हैरानी तो हुई, लेकिन सोचा शायद मायके वालों ने समझाया हो, इसलिए उसे सद्बुद्धि आ गई है.
एक दिन सुमिक्षा ने कोई शरारत की तो अर्चना ने कहा, ‘‘अब तुम बहुत शरारती हो गई हो. अगर तुम्हारा यही हाल रहा तो मैं तुम्हें गांव भेज दूंगी.’’
ऐसा अर्चना ने योजनानुसार कहा था. लेकिन सुमिक्षा डर गई. क्योंकि वह गांव नहीं जाना चाहती थी. अर्चना भी उसे गांव नहीं भेजना चाहती थी. यह तो उस की योजना का एक हिस्सा था. वह चाहती थी कि सुमिक्षा सब से बताए कि मम्मी उसे गांव भेज रही हैं. अपनी इस साजिश में अर्चना सफल भी रही. सुमिक्षा ने यह बात सांध्या कौशिक को बताई. उन्हें लगा कि अर्चना ने उसे डराने के लिए ऐसा कहा होगा. इसलिए उन्होंने उसे आश्वस्त किया कि वह डरे न, उसे कोई गांव नहीं भेजेगा.
एक दिन बुद्धिविलास ने कहा कि उन्हें मूर्तियों के लिए मुकुट खरीदने मथुरा जाना है तो अर्चना की आंखों में चमक आ गई. वह अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी करने लगी. पहला काम तो उस ने यह किया कि अपने आवास के पास खाली पड़ी जमीन में कई गड्ढे खोद डाले. दोपहर में बुद्धिविलास खाना खाने आया तो उन गड्ढों को देख कर पूछा, ‘‘अरे इतने गड्ढे क्यों खोद डाले हैं?’’
‘‘पेड़ लगाने हैं, इसीलिए खोदे हैं.’’ अर्चना ने कहा.
अर्चना की इस बात पर बुद्धिविलास को हैरानी हुई कि अचानक इस के मन में पेड़ लगाने की बात कहां से आ गई. यही सोच कर उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे मन में अचानक पेड़ लगाने की बात कहां से आ गई?’’
‘‘टीवी में देखा था. उसी में देख कर सोचा कि मैं भी अपने घर के आसपास पेड़ लगा दूं तो हराभरा रहेगा.’’
21 सितंबर को बुद्धिविलास को मथुरा जाना था. उस से एक दिन पहले यानी 20 सितंबर को अर्चना ने सुमिक्षा से कहा कि वह संध्या से कह देगी कि अगले दिन वह उन के घर नहीं आ पाएगी. जब यह बात सुमिक्षा ने संध्या से कही तो उस ने पूछ लिया कि क्यों नहीं आएगी तो सुमिक्षा ने कहा कि उसे नहीं मालूम, मम्मी ने ऐसा कहने को कहा है.
अगले दिन 21 सितंबर को बुद्धिविलास 10 बजे के आसपास मथुरा के लिए निकल गया. पति के जाते ही अर्चना ने मंदिर परिसर का बाहरी गेट बंद कर के अंदर से ताला लगा दिया. इस के बाद रसोई में जा कर मैगी बनाई और सुमिक्षा को खाने के लिए दे कर खुद गड्ढा खोदने लगी.
भाई ने पूछा कि वह गड्ढा क्यों खोद रही है तो उस ने कहा, ‘‘तू अंदर जा कर सो जा, मैं क्या कर रही हूं, इस बात पर ध्यान न दे.’’
शिवपूजन जा कर सो गया. अर्चना ने साढ़े 3 फुट गहरा गड्ढा खोद डाला. गड्ढा खोद कर अर्चना अंदर पहुंची तो देखा सुमिक्षा बेहोश पड़ी थी. दरअसल उस ने मैगी में नशीली दवा मिला दी थी, इसलिए मैगी खा कर सुमिक्षा बेहोश हो गई थी.
अर्चना ने बेहोश पड़ी सुमिक्षा के दोनों हाथ पीछे बांध कर मुंह और नाक में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद ऊपर से पौलीथिन लपेट कर उसे उठाया और गड्ढे में लेटा कर ऊपर से 2 थैली नमक डाल कर गड्ढे को ढक दिया. नमक उस ने इसलिए डाला था, ताकि लाश जल्दी गल जाए.
किसी को संदेह न हो, अर्चना ने गड्ढे के ऊपर पत्थर रख कर हवन कुंड बना दिया और उस के पास तुलसी का एक पेड़ लगा दिया. बुद्धिविलास के आने से पहले उस ने वहां दिया जला कर तमाम अगरबत्तियां भी सुलगा दीं.
शाम 7 बजे के आसपास बुद्धिविलास ने आते ही सुमिक्षा को आवाज दी. सुमिक्षा कहां से बोलती. उसे तो अर्चना ने ऐसी जगह भेज दिया था, जहां से कोई लौट कर नहीं आता. अर्चना ने कहा, ‘‘वह तो सुबह से ही गायब है.’’
‘‘क्या… सुबह से गायब है? तुम ने उसे ढूंढ़ा भी नहीं?’’ बुद्धिविलास थोड़ा गुस्से में बोला.
‘‘मुझे पता था, तुम यही कहोगे. तुम ने कैसे सोच लिया कि मैं ने उसे ढूंढ़ा नहीं. मैं ने सब जगह जा कर उसे ढूंढ़ा है, लेकिन किसी से पूछा नहीं. क्योंकि सब यही कहते कि सौतेली मां हूं, इसलिए मैं ने ही गायब कर दिया है. जब तुम इस तरह कह रहे हो तो दूसरे क्यों नहीं कहेंगे?’’ अर्चना ने रोते हुए कहा.
बुद्धिविलास उठा और पैर पटकते हुए घर से निकल गया. सीधे वह संध्या कौशिक के घर पहुंचा. जब उस ने उन से सुमिक्षा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘सुमिक्षा तो मुझ से कह गई थी कि आज वह मेरे घर नहीं आ पाएगी.’’
सुमिक्षा और कहीं नहीं जा सकती थी. साफ हो गया कि वह गायब हो गई है. थोड़ी ही देर में यह बात पूरी कालोनी में फैल गई. सभी एकदूसरे से पूछने लगे. इस से यह बात साबित हो गई कि सभी को सुमिक्षा से सहानुभूति थी. सभी उस की तलाश में लग गए. बुद्धिविलास पागलों की तरह अपना सिर पीट रहा था.
अर्चना भले ही नहीं चाहती थी कि सुमिक्षा वहां रहे, लेकिन अब तो उसे वहीं रहना था. आखिर वही हुआ, जैसा ऊषा ने कहा था. अर्चना पूरी तरह वैसी सौतेली मां निकली, जैसा सौतेली मांओं के बारे में कहा जाता है. मां के व्यवहार से परेशान मासूम सुमिक्षा अकसर मंदिर के बरामदे में उदास बैठी रहती.
एक तो कालोनी की महिलाओं को पता चल गया था कि सुमिक्षा मंदिर के पुजारी बुद्धिविलास की पहली पत्नी की बेटी है, दूसरे उस में ऐसा न जाने क्या आकर्षण था कि हर महिला उस की ओर आकर्षित हो जाती थी.
सुमिक्षा के आने के बाद अर्चना को बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने सुचित रखा. भाई के पैदा होने से सुमिक्षा का ध्यान मां की ओर से हट कर भाई पर जम गया. वह भाई के साथ अपना दिल बहलाने लगी. लेकिन बेटा पैदा होने के बाद अर्चना और क्रूर हो गई.
मंदिर के पास ही बनी मातृछाया बिल्डिंग में रहने वाले दवा व्यापारी अजय कौशिक की पत्नी संध्या कौशिक भी पूजापाठ के लिए मंदिर आती रहती थीं. एक दिन संध्या पूजापाठ कर के मंदिर के सीढि़यां उतर रही थीं तो सीढि़यों पर उन्हें रोती हुई सुमिक्षा मिल गई. उन्होंने रोने की वजह पूछी तो सुमिक्षा ने बताया कि मम्मी ने मारा है.
संध्या को पता था कि सुमिक्षा की मां अर्चना सौतेली है, जो उसे परेशान करती है. इसलिए उन्हें सुमिक्षा पर दया आ गई और वह बुद्धिविलास से पूछ कर उसे अपने घर ले गईं. उस दिन सुमिक्षा ने अपनी प्यारीप्यारी बातों से संध्या का मन मोह लिया. इस के बाद पता नहीं क्यों उन के मन में आया कि अगर वह सुमिक्षा को अपना लें तो उन के बेटों को एक प्यारी सी बहन मिल जाएगी.
शाम को बुद्धिविलास सुमिक्षा को अपने घर ले गया, पर संध्या की ममता सुमिक्षा के साथ जुड़ चुकी थी. उस दिन के बाद संध्या को सुमिक्षा अपनी बेटी सी लगने लगी. मन की बात जब उन्होंने अपने पति अजय कौशिक से कही तो वह सोच में पड़ गए. पराई बेटी के प्रति पत्नी के मोह ने उन्हें चिंता में डाल दिया था. वह जानते थे कि संध्या को एक बेटी की कमी खलती है, लेकिन दूसरे की बेटी के प्रति इतना प्यार उन की समझ में नहीं आ रहा था.
उस दिन के बाद संध्या अक्सर सुमिक्षा को अपने घर ले आने लगी. इस बीच उन्होंने महसूस किया कि सुमिक्षा काफी बुद्धिमान है. अगर इसे कायदे से पढ़ायालिखाया जाए तो आगे चल कर यह कुछ कर सकती है.
लगातार आते रहने से मासूम सुमिक्षा ने अजय कौशिक के दिल में भी अपने लिए जगह बना ली. अब वह उन के घर को अपना घर समझने लगी और कौशिक दंपति को मम्मीपापा कहने लगी. संध्या ने उस का नया नाम बिट्टू रख दिया. कालोनी वालों को भी पता चल गया कि संध्या सुमिक्षा को बेटी की तरह मानती हैं.
संध्या ने बुद्धिविलास से कहा कि वह सुमिक्षा को पढ़ाना चाहती हैं. अगर वह बुरा न माने तो वह उस का दाखिला करा दें. बुद्धिविलास को भला क्यों बुरा लगता. बेटी पढ़लिख कर कुछ बन जाए, इस से अच्छा और क्या हो सकता था. उस ने हामी भर दी तो भागदौड़ कर के अजय कौशिक ने सुमिक्षा का दाखिला आगरा के जानेमाने कान्वेंट स्कूल सेंट फ्रांसिस स्कूल में करा दिया.
सुमिक्षा स्कूल जाने लगी. स्कूल में सभी को यही लगता था कि वह अजय कौशिक की बेटी है. सुमिक्षा को पढ़ाई में दिलचस्पी थी, उस की राइटिंग भी बहुत अच्छी थी. अजय कौशिक ने सुमिक्षा का ट्यूशन भी कालोनी की टीचर विजय कुलश्रेष्ठ के यहां लगवा दिया था. सुमिक्षा अक्सर संध्या से सौतेली मां के अत्याचारों के बारे में बताती रहती थी.
सुमिक्षा का एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना अर्चना को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था. सौतेली बेटी के प्रति लोगों का स्नेह उस के मन में ईर्ष्या पैदा कर रहा था. उस ने यह भी महसूस किया था कि बुद्धिविलास अभी भी अपनी पहली पत्नी को भुला नहीं पाया है. उसे लगता था कि जब तक सुमिक्षा उस के साथ रहेगी, तब तक वह पहली पत्नी को भुला भी नहीं पाएगा. इसलिए वह किसी भी तरह सुमिक्षा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी.
इस के बाद अर्चना सुमिक्षा को पहले से ज्यादा परेशान करने लगी. डर की वजह से सुमिक्षा पिता से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाती थी. लेकिन कालोनी की अन्य औरतों को जब पता चला कि अर्चना इधर सुमिक्षा को कुछ ज्यादा ही परेशान करने लगी है तो उन्होंने इस बात की शिकायत बुद्धिविलास से कर दी.
जब बुद्धिविलास को पता चला कि अर्चना सुमिक्षा को परेशान करती है तो वह बेचैन हो उठा. वह बेटी के लिए ही उसे ब्याह कर लाया था. गुस्से में उस ने अर्चना की पिटाई कर दी.
पति की इस हरकत से अर्चना को बहुत गुस्सा आया. सुमिक्षा से वह वैसे ही नफरत करती थी, इस घटना से उस की नफरत और बढ़ गई. उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह सुमिक्षा से छुटकारा पा कर ही चैन की सांस लेगी. इस के बाद वह पति से नाराज हो कर मायके चली गई.
अर्चना के जाने के बाद संध्या सुमिक्षा को अपने घर ले गई. जब सुमिक्षा संध्या के घर महीने भर से ज्यादा रह गई तो संध्या का मन हुआ कि वह सुमिक्षा को कानूनी तौर पर गोद ले लें. इस के लिए उन्होंने बुद्धिविलास से बात की, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ.
दूसरी ओर अर्चना मायके पहुंची तो घर वालों की लगा कि वह घूमने आई होगी. लेकिन जब अर्चना ने कहा कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी तो रमेश मिश्रा ने कहा, ‘‘बेटी की शादी कर के मांबाप यह सोच लेते हैं कि वे उस से मुक्त हो गए. मैं भी तुम से मुक्त हो चुका हूं. इसलिए अब तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है.’’
मायके में अर्चना को कोई कामधाम तो करना नहीं होता था, इसलिए अपना समय वह टीवी पर आने वाले धारावाहिक देख कर बिताती थी. उन में कुछ आपराधिक कहानियों वाले धारावाहिक भी थे. उन्हीं में से कोई धारावाहिक देख कर उस ने सौतेली बेटी सुमिक्षा से छुटकारा पाने का उपाय खोज लिया.
चित्रकूट के कर्बी के रहने वाले पंडित चंद्रलेख तिवारी के 3 बेटे और एक बेटी थी. बड़ा बेटा रामअवतार एलआईसी का एजेंट था तो उस से छोटा शिवप्रसाद दूध का व्यवसाय करता था. सब से छोटा बुद्धिविलास शास्त्री की पढ़ाई कर के पिता की तरह पूजापाठ कराने लगा था. लेकिन वहां इस काम से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितनी वह चाहता था. इसलिए वह कहीं बाहर जा कर यह काम करना चाहता था.
बुद्धिविलास थोड़ीबहुत कमाई करने लगा तो बड़े बेटों की तरह पंडित चंद्रलेख तिवारी ने उस की भी शादी चित्रकूट में पूजापाठ कराने वाले मंजूनाथ भारद्वाज की बेटी गौरा से कर दी. उन के 10 बच्चों में 7 बेटे और 3 बेटियां थीं. परिवार बड़ा होने की वजह से उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इसलिए गौरा की शादी खातेपीते परिवार में हो जाने से मंजूनाथ काफी खुश थे.
गौरा खूबसूरत भी थी और सलीके वाली भी. इसलिए जहां उसे पा कर बुद्धिविलास खुश था, वहीं खातापीता परिवार और प्यार करने वाला पति पा कर गौरा भी खुश थी. दोनों का दांपत्य हंसीखुशी से बीतने लगा. उन के प्यार का परिणाम भी जल्दी ही आ गया. दोनों एक बच्ची के मांबाप बन गए, जिस का नाम उन्होंने सुमिक्षा रखा था.
सुमिक्षा पूरी तरह मां पर गई थी. लेकिन उसे मां की गोद का सुख नहीं मिल सका. वह 5 महीने की थी, तभी दिल का दौरा पड़ने से गौरा की मौत हो गई थी. पत्नी से ही घर होता है. पत्नी ही नहीं रही तो बुद्धिविलास का कैसा घर. उस का घर तो उजड़ा ही, एक परेशानी और खड़ी हो गई कि 5 महीने की बेटी को पालेपोसे कैसे.
पत्नी की मौत से परेशान और दुखी बुद्धिविलास बेटी को ले कर काफी परेशान था. लेकिन उस की यह परेशानी दूर कर दी उस की बहन ऊषा ने. उस की शादी पास के ही गांव छीबो में गिरिजा पांडेय के साथ हुई थी. वह अध्यापक थे. उन की आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ थी. इसलिए बुद्धिविलास की बेटी सुमिक्षा को ऊषा अपने साथ ले गई.
सुमिक्षा की व्यवस्था हो गई तो बुद्धिविलास अपनी जिंदगी को ढर्रे पर लाने की कोशिश करने लगा. पत्नी की मौत की वजह से घर में उस का मन नहीं लग रहा था, इसलिए वह कहीं बाहर जा कर काम करना चाहता था. इस के लिए उस ने तमाम लोगों से कह भी रखा था. संयोग से उसी बीच उस के किसी परिचित ने बताया कि आगरा के थाना सिकंदरा के मोहल्ला पश्चिमपुरी में काली माता का एक मंदिर बन रहा है. उस मंदिर में एक पुजारी की जरूरत है.
बुद्धिविलास को काम की जरूरत थी ही, वह वहां पहुंच गया. वह पढ़ालिखा था ही, ट्रस्ट वालों ने उसे मंदिर की सेवादारी दे दी. मंदिर के आसपास रहने वाले संपन्न लोग थे, इसलिए मंदिर में चढ़ावा ठीकठाक चढ़ता था. इस के अलावा बुद्धिविलास पूजापाठ करा कर भी अच्छीखासी कमाई कर लेता था. पैसे आने लगे तो वह एक बार फिर गृहस्थी बसाने के बारे में सोचने लगा. रहने के लिए उसे मंदिर परिसर में ही 2 कमरों का मकान मिला था, इसलिए उसे रहने की भी कोई चिंता नहीं थी.
घर वाले तो उस के लिए पहले से ही चिंतित थे. इसलिए बुद्धिविलास के हामी भरते ही उस के लिए लड़की की तलाश शुरू हो गई. बुद्धिविलास के मंझले भाई शिवप्रसाद की पत्नी के एक रिश्तेदार रमेश मिश्रा अपनी बेटी अर्चना के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे. उन की संतानों में 7 बेटियां और एक बेटा था.
अर्चना उन में पांचवें नंबर पर थी. वह हाईस्कूल तक पढ़ी थी. बुद्धिविलास और अर्चना की उम्र में थोड़ा अंतर था, लेकिन रमेश मिश्रा की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह अपनी बेटी की शादी बुद्धिविलास से करने को तैयार थे.
लेकिन जब अर्चना को पता चला कि जिस लड़के से उस की शादी हो रही है, उस की पहली पत्नी मर चुकी है और उसे एक बेटी है तो उस ने बुद्धिविलास से शादी करने से मना कर दिया. लेकिन जब रमेश मिश्रा ने अपनी मजबूरी जाहिर की तो वह किसी तरह शादी के लिए राजी हो गई. इस के बाद बुद्धिविलास की शादी अर्चना के साथ हो गई. यह सन 2012 की बात थी.
शादी के बाद बुद्धिविलास अर्चना को आगरा ले आया. पत्नी आ गई तो वह पहली पत्नी से पैदा बेटी सुमिक्षा को साथ रखने के बारे में सोचने लगा. वह चाहता था कि अब उस की बेटी उस के साथ रहे. सुमिक्षा अब तक 4 साल की हो चुकी थी. वह अपनी बहन के यहां गया और उस ने बहन से सुमिक्षा को साथ ले जाने के लिए कहा तो बहन ऊषा ने कहा, ‘‘जब यह 5 महीने की थी, तब से मैं इसे पाल रही हूं. अब यह मुझे अपनी बेटी की तरह लगती है. इसलिए अब इसे मेरे पास ही रहने दो. इस के चले जाने से मेरा भी मन नहीं लगेगा.’’
‘‘बहन तब इसे कोई पालने वाला नहीं था, इसलिए मैं ने इसे तुम्हें सौंप दिया था. अब इस की मां आ गई है. वह इसे अच्छी तरह पाल लेगी, इसलिए मैं इसे साथ ले जाना चाहता हूं.’’ बुद्धिविलास ने कहा.
‘‘भइया, मैं इस की बूआ हूं और यह मेरा खून है. सौतेली मां सौतेली ही होती है. वह इसे कभी वह प्यार नहीं दे पाएगी, जो मुझ से मिल रहा है. इसलिए इसे मेरे पास ही पड़ी रहने दो.’’
ऊषा ने तमाम तर्कवितर्क किए, पर बुद्धिविलास नहीं माना. वह कर भी क्या सकती थी. पराई बेटी को जबरदस्ती तो रख नहीं सकती थी, मन मार कर सुमिक्षा को उस के हवाले कर दिया.
बुद्धिविलास सुमिक्षा को अपने घर ले आया. चूंकि उस ने अर्चना को बताया नहीं था कि वह सुमिक्षा को लेने जा रहा है, इसलिए जब वह उसे ले कर घर पहुंचा तो अर्चना ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह किसे ले आए?’’
‘‘किसे नहीं, यह हमारी बेटी सुमिक्षा है. अब यह हमारे साथ ही रहेगी.’’ बुद्धिविलास ने कहा.
‘‘क्यों, यह जहां रह रही थी, वहां कोई परेशानी थी क्या, जो इसे यहां ले आए?’’ अर्चना ने मुंह फुला कर पूछा.
‘‘यह वहां इसलिए रह रही थी, क्योंकि यहां इस की कोई देखभाल करने वाला नहीं था. अब तुम आ गई हो, इसलिए इसे यहां ले आया.’’
‘‘तो क्या तुम ने मुझ से शादी इस की देखभाल करने के लिए की थी?’’
‘‘भई, पत्नी बच्चों की देखभाल नहीं करेगी तो और कौन करेगा? तुम मेरी पत्नी हो तो तुम्हें ही मेरे बच्चों की देखभाल करनी होगी.’’ बुद्धिविलास ने कहा.
मांबाप में लड़ाई होते देख सुमिक्षा डर गई. उतनी दूर से सफर कर के आई सुमिक्षा को नाश्तापानी कराने के बजाय अर्चना नाराज हो कर दूसरे कमरे में जा कर सो गई.