
अनंत सिंह से मोर्चा लेने के लिए विवेका पहलवान ने अपना एक गैंग बनाया था. पैसों का जुगाड़ कर के उस ने प्रतिबंधित 2 एके 47 राइफलें खरीदी थीं.
29 नवंबर, 1995 को अनंत सिंह के ऊपर विवेका ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं. इस के बाद विवेका पहलवान ने अनंत सिंह के बड़े भाई फाजो सिंह, उन का मुकदमा लडऩे वाले अधिवक्ता जालेश्वर शर्मा और खास शूटर राजीव सिंह को मौत के घाट उतार दिया था.
भाई की मौत ने अनंत सिंह को तोड़ कर रख दिया था. जून, 2004 में विवेका पहलवान ने एक बार फिर अनंत सिंह पर एके 47 से लदमा में हमला किया था, जिस में अनंत सिंह बुरी तरह घायल हो गए थे. काफी इलाज के बाद अनंत सिंह बच गए. उन के बयान के आधार पर बाढ़ पुलिस ने विवेका पहलवान के खिलाफ हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया.
इलाज के बाद कई मामलों में वांछित चल रहे अनंत सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. उन दिनों बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी. अनंत सिंह के कारनामों से बिहार सरकार की खूब छीछालेदर हुई थी, इसलिए राबड़ी देवी सरकार ने अनंत सिंह पर सीसीए (क्राइम कंट्रोल एक्ट) लगाने की सिफारिश पटना उच्च न्यायालय से की थी. लेकिन उच्च न्यायालय ने सरकार की इस सिफारिश को नामंजूर कर दिया था.
करीब डेढ़ साल बाद फरवरी, 2005 में अनंत सिंह जमानत पर रिहा हो कर जेल से बाहर आए. उस समय विधानसभा के चुनाव होने वाले थे. जनता दल (युनाइटेड) के नेता और मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने अनंत सिंह को अपनी पार्टी में शामिल ही नहीं किया, बल्कि मोकामा से टिकट भी दे दिया. अनंत सिंह चुनाव जीत गए. इस तरह बाहुबली अनंत सिंह सम्माननीय बन कर विधानसभा पहुंच गए. सत्ता की ताकत हाथ में आते ही विधायक अनंत सिंह और खतरनाक हो गए. उन का सीधा दखल नितीश कुमार सरकार में था. इस के बाद उन्हें छोटे सरकार के नाम से जाना जाने लगा.
सत्ता की चकाचौंध से अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार के तेवर बदल गए. सत्ता में आते ही वह प्रौपर्टी डीङ्क्षलग के कारोबार से जुड़ गए. पटना के माल रोड स्थित प्लौट खरीद कर उन्होंने उस पर आलीशान कोठी बनवाई. इसी कोठी में रहते हुए अनंत सिंह ने बिहटा के बाजिदपुर गांव के रहने वाले बड़े प्रौपर्टी डीलर राजू उर्फ राजकुमार सिंह से हाथ मिला लिया. राजू उर्फ राजकुमार सिंह बड़े प्रौपर्टी डीलरों में था. वह जमीनें खरीदता और बेचता था. अनंत सिंह जल्दी ही राजू पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगे थे.
प्रौपर्टी डीलर राजू की बदौलत अनंत सिंह ने पटना के कई इलाकों में अपने, पत्नी नीलम सिंह और कई रिश्तेदारों के नाम तमाम संपत्ति खरीदी. चर्चा है कि 2 बार विधायक रहने के दौरान अनंत सिंह ने अरबों की संपत्ति अॢजत की. खैर, जिस राजू की बदौलत अनंत सिंह ने अरबों की संपत्ति बनाई, बाद में उसी का अपहरण करवा कर सनसनी फैला दी.
बात सन 2014 की है. पटना के व्यापारिक केंद्र कहे जाने वाले बोरिंग रोड में लक्ष्मी कौंपलैक्स के निकट 30-40 कट्ठा का एक प्लौट खाली था. विधायक अनंत सिंह को वह जमीन पसंद आ गई तो उन्होंने राजू से उस प्लौट का सौदा करने को कहा. राजू ने पौने 2 करोड़ रुपए उस प्लौट को खरीदने के लिए अनंत सिंह से एडवांस ले कर कहा कि उस ने जमीन के मालिक को पैसे दे दिए हैं, जल्दी ही रजिस्ट्री हो जाएगी. बाकी की रकम रजिस्ट्री के समय दे दी जाएगी.
राजू की बात पर विश्वास कर के अनंत सिंह निश्चिंत हो गए. कुछ दिनों बाद अनंत सिंह ने राजू से जमीन की रजिस्ट्री कराने को कहा तो वह आनाकानी करने लगा. अनंत सिंह को संदेह हुआ तो उन्होंने अपने हिसाब से पता किया. तब राजू की असलियत सामने आ गई.
सच्चाई सामने आते ही विधायक अनंत सिंह के डर से राजू लापता हो गया. कई महीने लापता रहने के बाद आखिर 14 नवंबर, 2014 को राजू अनंत सिंह के हत्थे चढ़ गया. उन्होंने उसे उठवा लिया. उसे उठाते समय उस की स्कौॢपयो में आग लगा दी गई. घटना के समय अनंत सिंह विधायक थे.
विधायक अनंत सिंह द्वारा राजू के अपहरण करने की सूचना दानापुर के डीएसपी को मिल गई थी. उन्होंने इस की सूचना पटना के एसएसपी जितेंद्र राणा को दे कर विधायक अनंत सिंह और उन के आदमियों को गिरफ्तार करने की अनुमति मांगी. सूचना पा कर खुद जितेंद्र राणा पुलिस बल के साथ बेली रोड स्थित चिडिय़ाघर के पास पहुंच कर अनंत सिंह को रोकने में कामयाब हो गए और अपहृत प्रौपर्टी डीलर राजू को मुक्त करा लिया. राजू विधायक की गाड़ी में पीछे बैठा था.
जितेंद्र राणा प्रौपर्टी डीलर राजू और विधायक अनंत सिंह को थाना शास्त्रीनगर ले आए और समझौता करा कर विधायक के पैसे वापस करा दिए. राजू के खिलाफ पटना में एक गंभीर अपराध का मुकदमा दर्ज था, उसी मुकदमे में उसे गिरफ्तार कर के बेउर जेल भेज दिया गया.
विधायक अनंत सिंह ने प्रौपर्टी डीलर राजू का अपहरण किया था, इसलिए पुलिस ने उन के और उन के आदमियों के खिलाफ अपराध संख्या 859/2014 पर भादंवि की धारा 363/364/365/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पटना से ले कर मोकामा और बाढ़ तक अनंत सिंह की हुकूमत चलती थी. उन की अपनी सरकार थी, अपनी फौज और अदालत. जिस के मुंह से निकले शब्द कानून बन जाते थे, जिस के फैसले के खिलाफ न कोई दलील देने वाला होता था और न अपील.
अंतत: पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया है. कानून को अपने हाथ का खिलौना समझने वाले सफेदपोश नेता यह भूल जाते हैं कि जिस कानून को वे दूसरों के लिए बनाते हैं, वही कानून कभी उन के गिरेबान तक पहुंच सकते हैं.
पुटुस हत्याकांड के सभी अभियुक्त कथा लिखे जाने तक जेल में थे. पुलिस आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर चुकी है. 29 जून, 2015 को अनंत सिंह की जमानत के लिए उन के वकील सफदर हयात ने दानापुर की अदालत में याचिका दायर की थी, जिसे एसीजेएम त्रिभुवननाथ ने खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा है कि मामला संगीन है, इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती.
जमानत के लिए दोबारा 7 जुलाई, 2015 को सैशन कोर्ट के एडीजे फस्र्ट राजकुमार सिंह की अदालत में सरकारी वकील रामकेशर प्रसाद और बचाव पक्ष के वकील सफदर हयात के बीच बहस हुई, इस बार भी अनंत की जमानत याचिका खारिज कर दी गई. पुटुस हत्याकांड के साथ कई पुराने मामले भी खुल चुके हैं. बारीबारी सब की सुनवाई चल रही है.
कथा लिखे जाने तक विधायक अनंत सिंह सहित चारों आरोपियों में से किसी की भी जमानत नहीं हुई थी. वे बेउर जेल में बंद थे. इस बार हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने अनंत सिंह को टिकट नहीं दिया. तब वह निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत भी गए.
—कथा पुलिस एवं जनसूत्रों पर आधारित
अपने कारनामों से विरंची राजपूत बिरादरी की आंखों का किरकिरी बन गया. इस वजह से उस की हत्या कर दी गई. उस समय अनंत सिंह की उम्र मात्र 9 साल थी. वह पांचवीं में पढ़ रहा था. भाई की हत्या ने उस के मन पर गहरा असर डाला.
विरंची की हत्या के बाद विरोधियों ने बालक अनंत सिंह को चोरी के आरोप में बाल सुधार गृह भिजवा दिया. डेढ़ साल की सजा काट कर बाहर आया तो अनंत सिंह टूट चुका था. उस ने सोचा कि अगर बिना जुर्म किए सजा हो सकती है तो क्यों न जुर्म कर के सजा काटी जाए.
आगे स्कूल जाने के बजाय अनंत सिंह अपराध की डगर पर चल पड़ा. हाथों ने कलम के बजाय आग उगलने वाले खतरनाक हथियार थाम लिए. अपने कारनामों की वजह से वजह बाहुबली बन कर विधायक ही नहीं बने, बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते भी बन गए. उन्हें छोटे सरकार कहा जाने लगा.
बाढ़ की राजनीति राजपूतों और भूमिहारों, 2 खेमों में बंटी थी. राजपूतों और भूमिहारों के बीच 36 का आंकड़ा था. इस की नींव साल 1990 में तब पड़ी थी, जब बाढ़ से राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी विजयकृष्ण और जनता दल (युनाइटेड) से अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह मैदान में उतरे थे. दिलीप सिंह को बाढ़ के भूमिहारों ने अपना नेता मान लिया था. दोनों के बीच कांटे की टक्कर थी. अंतत: विजयकृष्ण ने बाजी मार ली. हार के बाद दिलीप सिंह विधायक विजयकृष्ण के खून के प्यासे हो गए.
अब तक अनंत सिंह की मोकामा में तूती बोलने लगी थी. राजनीति का ककहरा तक न जानने वाले अनंत सिंह ताकत के बल पर मोकामा और बाढ़ में राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाडऩे की ताकत रखने लगे थे. भाई की हार के बाद अनंत सिंह की राजनीति में जाने की इच्छा जाग उठी. राजनीति के अखाड़े में अपना सितारा बुलंद करने के लिए उन्होंने लालूप्रसाद यादव की पार्टी जनता दल का दामन थाम लिया. तब जनता दल एक ही पार्टी थी. लालूप्रसाद यादव और शरद यादव उस के खेवनहार थे.
पार्टी का बंटवारा होने के बाद लालूप्रसाद ने अपनी अलग राष्ट्रीय जनता दल नाम की पार्टी बना ली तो शरद यादव ने जनता दल (युनाइटेड). शरद यादव ने पार्टी की कमान नितीश कुमार को सौंप दी. लालूप्रसाद यादव ने सीवान के बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन अंसारी को अपना खेवनहार बनाया. लालूप्रसाद यादव उसे एके 47 कहते थे. जबकि नितीश कुमार ने मोकामा के बाहुबली अनंत कुमार को अपनी ताकत बनाया.
नितीश कुमार को अनंत सिंह की जितनी जरूरत थी, उतनी ही जरूरत अनंत सिंह को नितीश कुमार की थी. उस समय बाढ़ संसदीय सीट से नितीश कुमार चुनाव लड़ रहे थे. उन दिनों बिना बुलेट के चुनाव जीतना मुश्किल था. जिस की लाठी में दम होता था, विजय उसी की होती थी.
अनंत सिंह की बदौलत नितीश कुमार बाढ़ संसदीय सीट से चुनाव जीत गए. इस के बाद नितीश कुमार अनंत सिंह की ताकत का लोहा मान गए. आपराधिक छवि के अनंत सिंह अप्रैल, 1992 में पहली बार कुख्यात के रूप में उभर कर सामने आए. इस की पटकथा खूंखार राजपूत बाहुबली बच्चू सिंह ने लिखी थी. उन दिनों बाढ़ में बच्चू सिंह की तूती बोलती थी.
पटना के बाढ़ के थाना सकसोहरा का रहने वाला था गल्ला व्यापारी शिवकुमार साहू. बच्चू सिंह भी उसी थानाक्षेत्र के गांव भावनचक का रहने वाला था. बच्चू सिंह ने अनंत सिंह के करीबी शिवकुमार साहू का अपहरण कर लिया था. शिवकुमार के अपहरण की सूचना अनंत सिंह को मिली तो बच्चू सिंह के इस दुस्साहस पर वह हैरान रह गए. उन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. बच्चू सिंह के दुस्साहस का जवाब देने के लिए वह हथियारबंद साथियों के साथ गांव भावनचक जा पहुंचे.
वहां दोनों के बीच घंटों गोलियां चलीं, जिस में बच्चू सिंह के चाचा शिवनंदन सिंह और एक साथी जनार्दन महतो की मौत हो गई. अंतत: अनंत सिंह ने व्यवसाई शिवकुमार साहू को बच्चू सिंह से मुक्त करा लिया. शिवनंदन सिंह और जनार्दन महतो की हत्या की रिपोर्ट अनंत सिंह के खिलाफ नामजद दर्ज हुई. हत्या और गैंगवार का मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस अनंत सिंह को गिरफ्तार करने उन के गांव लदमा गई तो पुलिस गांव में नहीं घुस पाई. अंतत: उसे खाली हाथ लौटना पड़ा.
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. बाढ़ की जनता भावनचक गांव में हुई गैंगवार को अभी भुला भी नहीं पाई थी कि बाढ़ के राजपूत राणा राजेंद्र सिंह के बेटे मनोज सिंह का अपहरण कर के अनंत सिंह एक बार फिर सुॢखयों में छा गए. मनोज की फिरौती की रकम न मिलने पर अनंत सिंह ने बड़ी बेरहमी से उस का कत्ल कर दिया था. इस घटना की चारों ओर घोर भत्र्सना हुई, लेकिन यहां भी अनंत सिंह के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बावजूद पुलिस उन का कुछ नहीं कर सकी.
मनोज सिंह के अपहरण और हत्या का दुष्परिणाम अनंत सिंह के बड़े भाई फाजो सिंह को भोगना पड़ा. राणा राजेंद्र सिंह की ओर से अनंत सिंह से बदला लेने के लिए बच्चू सिंह मैदान में उतरे. अपने चाचा शिवनंदन सिंह और जनार्दन महतो की निर्मम हत्या बच्चू सिंह भुला नहीं पाए थे. अनंत सिंह से बदला लेने के लिए उस ने उस के गैंग में अपना खास आदमी शामिल करा दिया, ताकि अनंत सिंह की गतिविधियों की जानकारी उसे मिलती रहे. उसी की सूचना पर बच्चू सिंह ने कचहरी में पेशी पर आए अनंत सिंह के बड़े भाई फाजो सिंह पर हमला कर दिया.
संयोग से इस हमले में फाजो सिंह बच गए. अनंत सिंह को भाई पर कातिलाना हमले की सूचना मिली तो उन्होंने बच्चू सिंह के गांव भावनचक पर धावा बोल दिया. बच्चू सिंह तो उन के हाथ नहीं लगा, लेकिन उस के छोटे चाचा कवींद्र सिंह को वह पकड़ कर अपने गांव लदमा ले आए, ताकि बच्चू सिंह उन्हें छुड़ाने के लिए आए.
चाचा के अपहरण से तिलमिलाए बच्चू सिंह ने अनंत सिंह के करीबी रंजीत का अपहरण कर लिया. अनंत सिंह चुप बैठने वालों में तो थे नहीं, बदले में उन्होंने बच्चू सिंह के खासमखास परमहंस सिंह का अपहरण कर लिया. इस के बाद दोनों गैंगों के बीच हुई खूनी गैंगवार में बच्चू सिंह ने अनंत सिंह के करीबी रंजीत को मार दिया तो अनंत ने बच्चू के चाचा कवींद्र सिंह और परमहंस की हत्या कर के हिसाब बराबर कर दिया.
इस के बाद इलाके में अनंत सिंह की चलने लगी. सियासत का बिगुल उन के तीसरे बड़े भाई दिलीप सिंह की बजती थी. गुंडई की सल्तनत चला चुके अनंत सिंह अब राजनीति के अखाड़े में उतर आए. सत्ता की ताकत का स्वाद अनंत ने भाई से चखा था. राजनीति को सुरक्षाकवच बना कर दुश्मनों को कैसे मात दिया जाए, अब तक अनंत सिंह ने सीख लिया था. उन का सब से बड़ा दुश्मन बच्चू सिंह था, जो अब तक ङ्क्षजदा था. सन 2000 में विधान सभा का चुनाव होना था.
अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह जनता दल (युनाइटेड) के टिकट पर बाढ़ से चुनाव लड़ रहे थे. उन के सामने चुनाव में उतरे बाहुबली सूरजभान सिंह. दिलीप सिंह को हराने के लिए बच्चू सिंह ने सूरजभान सिंह का साथ दिया. सारे राजपूतों ने एकजुट हो कर जीत का सेहरा सूरजभान सिंह के सिर बांधा. दिलीप सिंह को एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा. अनंत सिंह भाई की इस हार से बौखला उठा और उस ने बदले में राजपूतों के नेता बच्चू सिंह की हत्या कर दी.
ऐसा नहीं था कि बच्चू सिंह की मौत के बाद अनंत सिंह का कोई दुश्मन नहीं बचा था. अनंत सिंह का सताया एक दुश्मन उस से बदला लेने के लिए उतावला था. वह दुश्मन कोई और नहीं, बल्कि उन का दूर के रिश्ते का भतीजा विवेका पहलवान था. विवेका पहलवान और अनंत सिंह के बीच दुश्मनी की वजह थी विवेका द्वारा उन के कई आदमियों को बच्चू सिंह और पुलिस के द्वारा खत्म कराना. इसीलिए अनंत सिंह विवेका के पीछे हाथ धो कर पड़े थे.
ऊपर से आदेश मिलते ही एसएसपी जितेंद्र राणा ने काररवाई शुरू कर दी. उन्हें आरोपियों के छिपे होने के स्थान के बारे में पता था. पांचों आरोपी प्रताप, रविशंकर, कन्हैया, चंदन और भूषण सिंह विधायक अनंत के घर में छिपे थे. 22 जून, 2015 को पुलिस पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर के पटना पुलिस लाइन ले आई.
इस के बाद पुलिस ने पत्रकार वार्ता आयोजित की और पुटुस यादव के हत्यारों को पत्रकारों के सामने पेश कर के हत्या का खुलासा कर दिया. उन पांचों ने पत्रकारों के सामने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि छोटे सरकार यानी विधायक अनंत सिंह ने चारों लडक़ों को जान से मार देने के लिए कहा था. उन में से एक ने लिख कर भी दे दिया.
पांचों आरोपियों के अपराध स्वीकार करने के बाद एसएसपी जितेंद्र राणा विधायक अनंत सिंह की गिरफ्तारी की तैयारी में लग गए. लेकिन अचानक उसी रात उन का तबादला पटना से मोतिहारी कर दिया गया और रातोंरात उन की जगह तेजतर्रार एसएसपी विकास वैभव सिंह को चार्ज दे दिया गया. कहा जाने लगा कि जितेंद्र राणा का तबादला अनंत सिंह ने करवाया है.
यह बात राजद अध्यक्ष लालूप्रसाद यादव को काफी नागवार गुजरी. चूंकि वह नितीश कुमार सरकार को समर्थन दे रहे थे, इसलिए दबाव बना कर उन्होंने अपने खास विकास वैभव को चार्ज दिलवाया था. लालूप्रसाद यादव और अनंत सिंह के बीच वर्षों से छत्तीस का आंकड़ा चला आ रहा था, इसलिए उन्होंने मौके का फायदा उठाया और अनंत सिंह की गिरफ्तारी के लिए मुख्यमंत्री नितीश कुमार पर दबाव बनाया.
चार्ज लेते ही एसएसपी विकास वैभव सिंह ने विधायक अनंत सिंह को गिरफ्तार करने और उन के घर की तलाशी लेने के लिए दानापुर अदालत में सर्च वारंट के लिए अरजी दाखिल कर दी. उन की इस अरजी पर 24 जून को सुनवाई के बाद शाम 4 बजे विधायक अनंत सिंह के घर की तलाशी लेने का सर्चवारंट जारी कर दिया.
वारंट हाथ में आते ही उन्होंने डीजीपी पी.के. ठाकुर से बात की और आगे की काररवाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल ले कर माल रोड स्थित अनंत सिंह के मकान की तलाशी के लिए चल पड़े. विधायक अनंत सिंह माल रोड स्थित अपनी कोठी में सफेद कलर की कमीज और उसी से मेल खाती पैंट पहने बरामदे में बैठे अपने समर्थकों से बातें कर रहे थे. उसी समय उन की कोठी के सामने पुलिस की कई गाडिय़ां आ कर रुकीं.
विकास वैभव सिंह की गाड़ी सब से आगे थी. उस के पीछे पटना (पूर्वी) के एसपी सुधीर पोडिक़ा, (पश्चिमी) के एसपी राजीव मिश्रा और (सैंट्रल) के एसपी चंदन कुशवाहा की गाड़ी थी. इन के पीछे रैपिड ऐक्शन फोर्स और स्पेशल टास्क फोर्स की गाडिय़ों में कई सौ जवान थे.
गाड़ी से उतर कर विकास वैभव सिंह कोठी की ओर बढ़े तो उन के पीछे अन्य पुलिस अधिकारी चल पड़े. विकास वैभव सिंह और अधिकारी कोठी में घुसे तो साथ आए पुलिस के जवानों ने कोठी को चारों ओर से घेर लिया. पुलिस अधिकारियों के साथ भारी पुलिस बल देख कर विधायक अनंत सिंह को लगा कि मामला गड़बड़ है. लेकिन अब वह कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थे. क्या किया जाए, वह सोच ही रहे थे कि विकास वैभव सिंह उन के पास पहुंच गए. उन्होंने साथ लाया सर्चवारंट उन्हें थमाया तो उन का चेहरा पीला पड़ गया.
पुलिस अधिकारियों ने कोठी की तलाशी लेनी शुरू की. इस तलाशी में पुलिस को 5 खाली मैगजीन, एक बुलेटप्रूफ जैकेट, खून से सनी एक लाठी, एक गठरी में खून से सने कुछ कपड़े, एक प्रतिबंधित अत्याधुनिक असलहा इंसास बरामद हुआ. जो खाली मैगजीनें मिली थीं, वे इसी इंसास की थीं. बरामद सामान पुलिस ने कब्जे में ले लिया. यह तलाशी करीब 4 घंटे तक चली.
विधायक अनंत सिंह की कोठी पर पुलिस ने छापा मारा है, यह जानकारी मिलते ही प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया के पत्रकारों ने उन की कोठी को घेर लिया. फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया था. पुलिस को शक था कि बरामद खून सने कपड़े पुटुस यादव हत्याकांड के हो सकते हैं.
कोठी से बरामद सारे सबूत विधायक अनंत सिंह के खिलाफ थे. पुलिस ने इन्हीं सबूतों के आधार पर विधायक अनंत सिंह उर्फ दादा उर्फ छोटे सरकार को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन उन्हें कोठी से निकालने में उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी. उन के समर्थक ‘छोटे सरकार ङ्क्षजदाबाद’ के नारे लगाते हुए कोठी को घेरे हुए थे. पुलिस किसी तरह उन्हें ले कर बाहर निकली और थाना सैके्रटरिएट ले आई. उन के समर्थक वहां भी पहुंच गए और हंगामा करने लगे.
डीजीपी के निर्देश पर थाना सैक्रेटरिएट में विधायक अनंत के खिलाफ आम्र्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया और उसी रात करीब 12 बजे दानापुर के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी त्रिभुवननाथ के आवास पर उन्हें पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
पुलिस अनंत सिंह को बेउर जेल ले गई. विधायक की गिरफ्तारी के अगले दिन यानी 25 जून को उन के समर्थक काॢतक सिंह ने अन्य समर्थकों के साथ मिल कर मोकामा में भारी उपद्रव मचाया. भीड़ ने ट्रेन की पटरियां उखाड़ दीं, सरकारी बसों को आग के हवाले कर दिया.
उपद्रवियों को काबू करने के लिए पुलिस को काफी मेहनत करनी पड़ी. काॢतक सिंह सहित कई समर्थकों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस पूछताछ में अभियुक्तों ने जो बयान दिया था, उस के हिसाब से अनंत सिंह की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी-
बिहार की राजधानी पटना से 75 किलोमीटर दूर बाढ़ अनुमंडल के लदमा गांव में रहते थे चंद्रवीर सिंह. उन के 4 बेटे थे, विरंची सिंह, दिलीप सिंह, फाजो सिंह और अनंत सिंह. बेटों में अनंत सिंह सब से छोटे थे, इसलिए मांबाप और भाइयों के काफी लाडले थे.
यह तब की बात है, जब बिहार में नक्सल हिंसा की फसल लहलहा रही थी. उस हिंसा में इंसान फसलों की तरह काटे जा रहे थे. प्रदेश में जंगलराज का बोलबाला था. जिस की लाठी, उसी की भैंस थी. फैसले भी उसी के हक में होते थे.
चंद्रवीर सिंह जमींदार थे. कम्युनिस्ट होने के नाते क्षेत्र में उन का बड़ा नाम था. उन दिनों पटना के मोकामा स्थित बाढ़ इलाका भूमिहारों और राजपूतों के 2 खेमों में बंटा था. चंद्रवीर सिंह भूमिहारों के नेता थे. वह जहां खड़े हो जाते थे, वहीं उन की अदालत लग जाती थी. वह जो कह देते थे, वही होता था. वह मजलूमों और निस्सहायों की ढाल थे.
वह चाहते थे कि उन के बेटे भी उन्हीं के विचारों पर चलें. लेकिन उन का यह सपना पूरा नहीं हुआ. चारों बेटे पिता के विपरीत निकले. चंद्रवीर सिंह का बड़ा बेटा विरंची सिंह जवान हो चुका था. वह थोड़ा गरम स्वभाव का था. राजपूतों के कहर का उस के मन पर गहरा असर था. बंदूकों से गरजती गोलियों की गूंज ने उस के मन को चट्टान बना दिया था. पिता की तरह उस ने भी भूमिहारों का प्रतिनिधित्व करने का बीड़ा उठा लिया. राजपूतों को नीचा दिखाने के लिए विरंची सिंह ने जुर्म से नाता जोड़ लिया. फलस्वरूप मोकामा का बाहुबली बन कर दुश्मनों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया.
दोपहर की तपती धूप काली सडक़ों पर कुछ ज्यादा ही तीखी चमक रही थी. गरमी की वजह से सडक़ें लगभग सूनी थीं. चिलचिलाती धूप में सडक़ों पर इक्कादुक्का लोग ही आजा रहे थे. रंगीन दुपट्टों को मुंह पर बांधे गरम लपटों के थपेड़ों को झेलती 3 लड़कियां तेजी से चली जा रही थीं. वे पटना के बाढ़ इलाके के एएसएन स्कूल से घर लौट रही थीं.
चौक चौराहे पर खड़े 4 लडक़ों ने उन्हें आते देखा तो आपस में कुछ बातें कीं और इधरउधर झांक कर उन के पीछेपीछे चल पड़े. लडक़ों की चालढाल और हावभाव से लड़कियों को समझते देर नहीं लगी कि वे उन का पीछा कर रहे हैं. कपड़े सहेजती हुई लड़कियों ने अपनी चाल बढ़ा दी. लडक़े भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने तेजी से आगे बढ़ कर लड़कियों को रोक लिया.
लडक़ों के इस साहस पर लड़कियां सहम कर रुक गईं. उन में से एक ने कहा, “यह क्या बदतमीजी है? तुम लोगों ने हमारा रास्ता क्यों रोक लिया?”
“मैडम, हम भी आप के साथ चलना चाहते हैं.” चारों लडक़ों में से एक ने कहा तो उस के तीनों साथी बेशरमी से हंसने लगे.
“हटो आगे से, हमें जाने दो.” तीनों लड़कियों में से एक ने कहा.
“लो भई हट गए,” लड़कियों के सामने से हटते हुए उसी लडक़े ने कहा, “लेकिन जाएंगी कहां, कोई न कोई तो आप लोगों को संभालने के लिए साथ होना चाहिए.”
“तुम्हें शायद पता नहीं कि तुम ने किस से पंगा लिया है. तुम लोगों ने जो किया है, इस की सजा तुम सब को जरूर मिलेगी.”
उसी लडक़ी ने गुस्से में कहा.
“पहले मजा ले लेने दो मैडम, उस के बाद सजा भी भुगत लेंगे. आप जैसी हसीनाओं के लिए एक बार की कौन कहे, हम सौ बार सूली पर चढऩे को तैयार हैं.” उसी लडक़े ने बेशरमी से हंसते हुए कहा. बाद में पता चला कि उस लडक़े का नाम पवन उर्फ पुटुस यादव था. वही उन लडक़ों का सरगना भी था. सरगना पुटुस की इस बात पर उस के साथी एक बार फिर उसी तरह बेशरमी से हंसे.
लड़कियां सिर झुका कर लडक़ों के बगल से आगे बढ़ गईं. लडक़े भी चौराहे की ओर लौटे और अपनेअपने घर चले गए. एक तरह से देखा जाए तो यह बात यहीं खत्म हो गई. लेकिन वे लड़कियां किसी मामूली घर की नहीं थीं, इसलिए बात यहीं खत्म नहीं हुई.
दरअसल, वे लड़कियां मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह उर्फ दादा उर्फ छोटे सरकार के परिवार की थीं. छेड़छाड़ का यह मामला भी कोई एक दिन का नहीं था. पवन उर्फ पुटुस यादव अपने साथियों के साथ कुछ दिनों से बराबर उन लड़कियों को छेड़ रहा था.
वे लड़कियां पुटुस और उस के साथियों से पहले से ही परेशान थीं. उस दिन तो उस ने उन का रास्ता रोक कर सारी हदें पार कर दी थी, इसलिए उस दिन मजबूर हो कर उन्होंने घर पहुंच कर उन की शिकायत कर दी. लड़कियों की बात सुन कर घर वाले हैरान भी हुए और परेशान भी. बात इज्जत की थी, इसलिए घर वालों को गुस्सा आना लाजिमी था.
उस समय अनंत सिंह पटना में थे. घर वालों ने फोन कर के घटना की जानकारी उन्हें दी. इस तरह की हरकत कोई आम आदमी नहीं बरदाश्त कर सकता तो भला अनंत सिंह कैसे बरदाश्त करते कि एक अदना सा आदमी उन के घर की लड़कियों की तरफ आंख उठा कर देखे और उन की इज्जत से खिलवाड़ करने की सोचे. अनंत सिंह का खून खौल उठा. उन्होंने पटना से ही अपने खास आदमी प्रताप को फोन कर के घटना के बारे में बता कर किसी भी तरह पुटुस यादव और उस के साथियों को पकड़ कर बाढ़ स्थित अपनी कोठी पर लाने को कहा.
अनंत सिंह का आदेश मिलते ही प्रताप रविशंकर, कन्हैया, चंदन और भूषण सिंह को साथ ले कर चौक पहुंच गया. चौक से उसे पता चला कि पुटुस लहेरिया पोखर गांव के रहने वाले कपिलदेव यादव का बेटा है. इस के बाद प्रताप चारों साथियों के साथ सीधा कपिलदेव यादव के घर जा पहुंचा.
पुटुस घर पर ही मिल गया. प्रताप और उस के साथियों ने पुटुस को जबरन गाड़ी में बैठाया और चल पड़े. उस की निशानदेही पर उस के तीनों साथियों को भी उन के घरों से उठा लिया गया. प्रताप और उस के साथी पुटुस और उस के साथियों को जिस तरह जबरन पकड़ कर गाड़ी में डाल रहे थे, उसे देख कर किसी ने इस बात की सूचना थाना बाढ़ पुलिस को दे दी कि कुछ लोग 4 लडक़ों का अपहरण कर के कहीं ले जा रहे हैं.
इस सूचना पर थाना बाढ़ के थानाप्रभारी परेशान हो उठे. समय गंवाए बगैर थानाप्रभारी थाने में मौजूद पुलिसकॢमयों को साथ ले कर निकल पड़े. थाना बाढ़ पुलिस ने इस घटना की सूचना एसएसपी जितेंद्र राणा को भी दे दी थी. सूचना चौंकाने वाली और गंभीर थी, इसलिए वह भी घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.
पुलिस के आ जाने से 3 लडक़े तो प्रताप और उस के साथियों के चंगुल से छूट कर किसी तरह भाग निकले, लेकिन पुटुस यादव का कुछ पता नहीं चला. अगले दिन बाढ़ के ही एक खेत से पुटुस यादव की लाश मिली. उस की हत्या बड़े ही निर्मम तरीके से की गई थी. हत्यारों ने उस की दोनों आंखें निकाल ली थीं, धारदार हथियार से उस का गुप्तांग भी कुचल दिया गया था. शरीर के हर अंग पर चोट के निशान थे. बाढ़ पुलिस ने लाश बरामद कर के कानूनी प्रक्रिया पूरी की और लाश पोस्टमार्टम के लिए पटना भेज दी.
बेटे की लाश मिलने की सूचना कपिलदेव यादव को मिली तो उन के घर में कोहराम मच गया. वह चीखचीख कर बेटे की हत्या का आरोप विधायक अनंत सिंह पर लगा रहा था. बाढ़ पुलिस ने कपिलदेव यादव द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह और उन के 5 लोगों, प्रताप, रविशंकर, कन्हैया, चंदन और भूषण सिंह के खिलाफ भादंवि की धाराओं 341/323/307/326/302/364/201 और 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर आरोपियों की धरपकड़ की काररवाई शुरू कर दी.
इस मामले की जांच की जिम्मेदारी एसपी (देहात) हरकिशोर राय को सौंपी गई. उन्होंने अपनी जांच में थाना बाढ़ और थाना परसा के थानाप्रभारियों की भूमिका संदिग्ध पाई तो इस बारे में एसएसपी जितेंद्र राणा को बताया. उन्होंने दोनों थानाप्रभारियों को लाइन हाजिर कर दिया. इस के बाद थाना बाढ़ का थानाप्रभारी संजय कुमार को बनाया गया.
चूंकि हत्याकांड से बड़े लोग जुड़े थे, इसलिए इस की गूंज पूरे देश में सुनाई दी. विधायक अनंत सिंह, जिन्हें उन के इलाके के लोग छोटे सरकार कहते थे, वह बड़े सरकार यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खास लोगों में थे, इसलिए उन पर हाथ डालना बिहार पुलिस के लिए आसान नहीं था. एसएसपी जितेंद्र राणा ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और डीजीपी पी.के. ठाकुर से सीधा संपर्क किया. डीजीपी ने आरोपियों को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया.