शर्तों वाला प्यार : प्रेमी ने किया वार – भाग 4

14 अप्रैल को मंधना स्थित गेस्ट हाउस में पहले गोद भराई की रस्म पूरी हुई फिर देर शाम धूमधाम से तिलक समारोह संपन्न हुआ. इस समारोह में हरिओम और सोनू भी शामिल हुए. समारोह के दौरान सोनू ने अन्नपूर्णा से मिलने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह मिल न सकी.

राकेश के घर में शादी की चहलपहल शुरू हो गई थी. रिश्तेनातेदारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. घर में मंडप गड़ चुका था और मंडप के नीचे ढोलक की थाप पर मंगल गीत गाए जाने लगे थे.

इधर ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, त्योंत्यों सोनू की बेचैनी बढ़ रही थी. उसे अन्नपूर्णा की बेवफाई पर गुस्सा भी आ रहा था. आखिर जब उस की बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो उस ने अन्नपूर्णा से आखिरी बार आरपार की बात करने का निश्चय किया.

उस ने इस बाबत अपने दोस्त विनीत और शुभम से बात की तो दोनों उस का साथ देने को राजी हो गए. विनीत नारामऊ में रहता था और उस की मोबाइल शौप थी. जबकि शुभम पंचोर रोड पर रहता था. दोनों को जब भी पैसों की जरूरत पड़ती, सोनू उन की मदद कर देता था. जिस से वह उस के अहसान तले दबे थे.

16 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सोनू मोटरसाइकिल से अन्नपूर्णा के घर के पास पहुंचा. उस के साथ उस के दोस्त विनीत और शुभम भी थे. सोनू ने मोटरसाइकिल सड़क किनारे ठेली लगा कर अंडे बेचने वाले के पास खड़ी कर दी. फिर उस ने विनीत को समझाबुझा कर अन्नपूर्णा को बुलाने भेजा.

विनीत अन्नपूर्णा के घर पहुंचा तो संयोग से वह उसे घर के बाहर ही मिल गई. विनीत ने उसे सोनू का संदेश दे कर साथ चलने को कहा. लेकिन अन्नपूर्णा ने साथ जाने और सोनू से बात करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विनीत ने अपने फोन पर अन्नपूर्णा की बात सोनू से कराई.

अन्नपूर्णा ने सोनू से फोन पर बात की और मिलने से साफ इनकार कर दिया. इस पर सोनू ने उस से कहा कि वह आखिरी बार उस से मिलना चाहता है. साथ ही धमकी भी दी कि यदि वह उस से मिलने न आई तो वह शादी वाले दिन ही उस के घर पर आत्महत्या कर लेगा.

प्रेमी बन गया कातिल

अन्नपूर्णा सोनू की धमकी से डर गई और उस से आखिरी बार मिलने को राजी हो गई. अन्नपूर्णा विनीत के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर सोनू के पास पहुंची. सोनू अन्नपूर्णा और अपने दोनों दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल से दलहन अनुसंधान केंद्र के पास लिंक रोड पर पहुंच गया. वहां उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तब तक रात के 9 बज चुके थे और लिंक रोड पर सन्नाटा पसरा था.

विनीत और शुभम तो मोटरसाइकिल से उतर कर किनारे खड़े हो गए. जबकि सोनू अन्नपूर्णा से बतियाने लगा. बातचीत के दौरान सोनू बोला, ‘‘अन्नपूर्णा तुम ने मेरे साथ बेवफाई क्यों की? प्यार मुझसे किया और शादी किसी और से कर रही हो, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने तुम पर लाखों रुपए खर्च किए हैं. उपहार में ज्वैलरी दी है. या तो तुम मेरे रुपए ज्वैलरी वापस कर दो या फिर मुझ से शादी करो.’’

सोनू की बात सुन कर अन्नपूर्णा गुस्से में बोली, ‘‘सोनू, रुपए ज्वैलरी दे कर तुम ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है. उस के बदले तुम ने मेरे शरीर का भी तो शोषण किया था. अब हिसाबकिताब बराबर. मेरा रास्ता अलग और तुम्हारा रास्ता अलग.’’

‘‘अन्नू, अभी हिसाबकिताब बरबार नहीं हुआ है. तुम मेरी दुलहन नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ इतना कह कर सोनू ने मोटरसाइकिल से लोहे की रौड निकाली जिसे वह साथ लाया था और अन्नपूर्णा के सिर पर भरपूर प्रहार कर दिया. अन्नपूर्णा जमीन पर बिछ गई. इस के बाद उस ने 2-3 प्रहार और किए.

इसी बीच उस की नजर ईंट पर पड़ी. उस ने ईंट से प्रहार कर उस का सिर मुंह, कुचल डाला. उस ने हाथ व कमर पर भी प्रहार किए. अन्नपूर्णा कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. सोनू का रौद्र रूप देख कर विनीत और शिवम डर गए. इस के बाद सोनू दोस्तों के साथ घटनास्थल से भाग गया.

इधर सुबह 8 बजे दलहन अनुसंधान केंद्र के सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह ने लिंक रोड के किनारे एक युवती की लाश पड़ी देखी तो यह सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह घटनास्थल पहुंचे और जांच शुरू कर दी.

लेकिन पुलिस जांच में उलझ गई. आखिर 3 महीने बाद अन्नपूर्णा की हत्या का खुलासा हुआ और कातिल पकड़े गए. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर लोहे की रौड, खूनसनी ईंट तथा सोनू की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

3 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त सोनू, विनीत व शुभम को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शर्तों वाला प्यार : प्रेमी ने किया वार – भाग 3

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन को दी तो उन्होंने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता कर अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर से करीब 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. यह बिठूर थाने के अंतर्गत आता है. राकेश कुमार कुरील अपने परिवार के साथ इसी कस्बे के मोहल्ला नारामऊ में  रहता था. उस के परिवार में पत्नी शिवदेवी के अलावा 4 बेटियां प्रियंका, अन्नपूर्णा, विनीता, नेहा तथा बेटा अमित था. राकेश कुमार एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. वहां से मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार का भरण पोषण करता था. वह बड़ी बेटी प्रियंका का विवाह कर चुका था.

प्रियंका से छोटी अन्नपूर्णा थी. तीखे नयननक्ख और गोरी रंगत वाली अन्नपूर्णा अपनी अन्य बहनों से अधिक सुंदर थी. समय के साथ जैसे-जैसे उस की उम्र बढ़ रही थी, वैसेवैसे उस की सुंदरता में और निखार आता जा रहा था.

बहन की जगह नौकरी मिली अन्नपूर्णा को

अन्नपूर्णा ने मंधना स्थित सरस्वती महिला इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी. इस के बाद वह गूवा गार्डन निवासी ट्रांसपोर्टर हरिओम के औफिस में काम करने लगी थी. इस के पहले उस की बड़ी बहन प्रियंका हरिओम के औफिस में काम करती थी. प्रियंका की जब शादी हो गई तब उस ने छोटी बहन अन्नपूर्णा को औफिस के काम पर लगा दिया था.

खूबसूरत अन्नपूर्णा ने अपनी चंचल अदाओं से ट्रांसपोर्टर हरिओम के दिल में हलचल मचा दी थी. हरिओम उसे चाहने लगा था. इतना ही नहीं वह अन्नपूर्णा पर पैसे खर्च करने लगा था.

अन्नपूर्णा के माध्यम से हरिओम ने उस के घर में भी पैठ बना ली थी. घर वाले आनेजाने पर विरोध न करें, इस के लिए उस ने अन्नपूर्णा के पिता को कर्ज के तौर पर रुपए भी दे दिए थे. धीरेधीरे हरिओम और अन्नपूर्णा नजदीक आते गए और दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

अन्नापूर्णा औफिस के लिए घर से बनसंवर कर इतरातीइठलाती निकलती थी. एक रोज औफिस जाते समय अन्नपूर्णा पर सोनू की निगाह पड़ गई. वह उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई. सोनू अन्नपूर्णा के पड़ोस में ही रहता था. ऐसा नहीं था कि सोनू ने अन्नपूर्णा को पहली बार देखा था. लेकिन उस दिन वह उसे बहुत खूबसूरत लगी थी. उस दिन उस के मन में चाहत की लहर उठी थी.

सोनू, दबंग युवक था. अपने क्षेत्र में वह सट्टा और जुआ खिलवाता था. इस काले धंधे से उसे मोटी कमाई होती थी. उस के कई विश्वासपात्र दोस्त थे जिन्हें वह पैसे दे कर अपने साथ मिलाए रखता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. अन्नपूर्णा सोनू के मन को भायी तो वह उस का दीवाना हो गया. आतेजाते जब कभी नजरें टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे.

सोनू की आंखो में अपने प्रति चाहत देख कर अन्नपूर्णा का मन भी विचलित हो उठा. वह भी उसे चाहने लगी. चाहत जब दोनों ओर से बढ़ी तो एक रोज सोनू ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सोनू की बात सुन कर अन्नापूर्णा के दिल में गुदगुदी होने लगी. शरमाते हुए वह बोली, ‘‘सोनू, जो हाल तुम्हारा है वही मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

उस दिन के बाद सोनू और अन्नपूर्णा का प्यार परवान चढ़ने लगा. अन्नपूर्णा औफिस से छुट्टी के बाद सोनू के साथ सैरसपाटे के लिए निकल जाती. सोनू अन्नपूर्णा पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. अन्नपूर्णा जिस चीज की डिमांड करती, सोनू उसे ला कर दे देता था. सोनू के मार्फत अन्नपूर्णा ने ज्वैलरी भी बनवा ली थी और बैंक बैलेंस भी बना लिया था. दोनों के दिल का रिश्ता जुड़ा तो फिर देह का रिश्ता बनने में देर नहीं लगी.

हरिओम को जब पता चला कि अन्नपूर्णा सोनू के साथ घूमती है तो उस ने अन्नपूर्णा को लताड़ा. साथ ही उस की शिकायत उस के मातापिता से भी कर दी. हरिओम ने तो यहां तक कह दिया कि अन्नपूर्णा के पैर डगमगा गए हैं बेहतर होगा कि उस की शादी कर दी जाए. शादी में लाख डेढ़ लाख का जो भी खर्च आएगा, वह दे देगा.

राकेश को बेटी के डगमगाते कदमों की जानकारी हुई तो उस के होश उड़ गए. उसे लगा कि यदि अन्नपूर्णा सोनू के साथ भाग गई तो समाज में उस की नाक कट जाएगी. पूरे समाज में उस की बदनामी होगी. अत: उस ने उस के हाथ पीले करने का फैसला कर लिया. उस ने इस बाबत पत्नी शिवदेवी से बात की. पत्नी ने भी उस की शादी करने पर सहमति जता दी. इस के बाद राकेश बेटी के लिए लड़का खोजने लगा. थोड़ी मशक्कत के बाद उसे पुनीत पसंद आ गया.

पुनीत के पिता शिवबालक कुरील बिठूर थाना क्षेत्र के गांव कुरसौली में रहते थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. उन के 3 बच्चों में पुनीत सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा स्मार्ट युवक था. साथ ही एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी करता था. राकेश ने विनीत को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी अन्नपूर्णा के लिए पसंद कर लिया. इस के बाद पुनीत और अन्नपूर्णा ने एकदूसरे को देखा. फिर शादी के लिए दोनों राजी हो गए.

14 अप्रैल, 2019 को गोद भराई, तिलक तथा 18 अप्रैल को शादी की तारीख तय हुई. इस के बाद दोनों परिवार शादी की तैयारी में जुट गए.

सोनू नहीं चाहता था कि अन्नपूर्णा शादी करे

उधर सोनू को जब अन्नपूर्णा का विवाह तय हो जाने की जानकारी हुई तो उस ने अन्नपूर्णा पर शादी तोड़ देने की दबाव बनाया. लेकिन अन्नपूर्णा ने पारिवारिक मामला बता कर शादी तोड़ने से इनकार कर दिया. सोनू उस पर दबाव बनाता रहा और अन्नपूर्णा इनकार करती रही.

आगे क्या हुआ? जानें अगले भाग में…

शर्तों वाला प्यार : प्रेमी ने किया वार – भाग 2

उस की मौत अधिक खून बहने व सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते 2 स्लाइडें भी बनाई गईं. पुलिस को मृतका का मोबाइल फोन न तो घटनास्थल से मिला था और न ही घर वालों ने उस की जानकारी दी थी. पुलिस ने इस बारे में मृतका की मां शिवदेवी तथा उस की बेटियों से पूछताछ की.

शिवदेवी ने कहा कि अन्नपूर्णा के पास मोबाइल नहीं था. लेकिन जब उस की बेटियों से अलग से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उस के पास मोबाइल था. अगर उस के पास मोबाइल था, तो शिवदेवी ने क्यों मना किया, यह बात पुलिस की समझ से परे थी. लिहाजा पुलिस ने जब अपने तेवर सख्त किए तो घर वालों से पुलिस ने 3 मोबाइल फोन बरामद किए.

पुलिस ने जब तीनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक फोन की डिटेल्स से पता चला कि अन्नपूर्णा हरिओम के अलावा कई अन्य युवकों से भी बात करती थी. काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने 3 युवकों को पूछताछ के लिए उठाया. इन में एक सोनू था, जो मृतका का पड़ोसी था. जांचपड़ताल से पता चला कि सोनू और अन्नपूर्णा के बीच प्रेमसंबंध थे. सोनू का उस के घर भी आनाजाना था.

सोनू अन्नपूर्णा पर खूब खर्चा करता था, यह पता चलते ही पुलिस ने 2 युवकों को तो छोड़ दिया पर सोनू से सख्ती से पूछताछ की. सोनू ने अन्नपूर्णा के साथ अपने प्रेमसंबंधों को तो स्वीकर किया लेकिन हत्या से साफ इनकार कर दिया. पुलिस ने उसे हिदायत दे कर थाने से भेज दिया.

पुलिस अधिकारियों को औनर किलिंग का भी शक था. उन का शक यूं ही नहीं था. उस के कई कारण थे. पहला कारण तो यह था कि परिजनों द्वारा बेटी की खोजबीन करना तो दूर पुलिस को सूचना तक नहीं दी थी. दूसरा कारण हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करना था और तीसरा कारण मोबाइल के लिए झूठ बोलना था.

हत्या के रहस्य को उजागर करने के लिए पुलिस ने मृतका की मां शिवदेवी, बुआ सुमन तथा बहन प्रियंका, प्रगति व नेहा से अलगअलग पूछताछ की. इन सभी के बयानों में विरोधाभास तो था, लेकिन हत्या की गुत्थी फिर भी नहीं सुलझ पाई. पड़ोसियों से भी पूछताछ की गई, पर पुलिस ऐसा कोई सबूत हासिल नहीं कर सकी, जिस से हत्या की गुत्थी सुलझ पाती.

हत्याकांड का खुलासा करने के लिए पुलिस अधिकारियों ने जब बेंजीडीन टेस्ट कराने का निश्चय किया. बेंजीडीन टेस्ट से खून के उन धब्बों का पता चल जाता है, जो मिट गए हों या धोपोंछ कर मिटा दिए गए हों. इस टेस्ट में एक महीने बाद तक खून के निशान का पता चल जाता है. अन्नपूर्णा की हत्या हुए एक सप्ताह बीत गया था. अत: बेंजीडीन टेस्ट से खुलासा संभव था.

29 अप्रैल, 2019 को एसपी (पश्चिम) संजीव कुमार सुमन थाना बिठूर पहुंचे. थाने पर उन्होंने बेंजीडीन टेस्ट के लिए फोरेंसिक टीम को भी बुलवा लिया. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने मृतका के घर वालों को थाने बुलवा लिया. थाने में फोरैंसिक टीम ने मृतका के मातापिता, भाई व बड़ी बहन पर टेस्ट किया तो रिपोर्ट पौजिटिव आई.

हत्या का शक परिवार वालों पर गहराया तो पुलिस अधिकारियों ने राकेश, उस की पत्नी शिवदेवी, बेटी प्रियंका तथा बेटे अमित को एक ही कमरे में आमनेसामने बिठा कर कहा कि तुम लोगों के खिलाफ हत्या का सबूत मिल गया है. बेंजीडीन टेस्ट में तुम लोगों के हाथों में मृतका के खून के रक्तकण मिले हैं. इसलिए तुम लोग सच बता दो कि तुम ने अन्नपूर्णा की हत्या क्यों की?

बेटी की हत्या के आरोप में अपने परिवार को फंसता देख राकेश हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मैं ने या मेरे परिवार के किसी सदस्य ने अन्नपूर्णा की हत्या नहीं की. हम सब निर्दोष हैं. रही बात बेंजीडीन टेस्ट की तो अन्नपूर्णा की लाश उठाते समय हाथों में खून लग गया होगा. मेरी पत्नी व बेटी ने भी रोते समय अन्नपूर्णा के सिर पर हाथ रखा होगा, जिस से खून लग गया होगा.’’

चुनावों की वजह से लटक गई जांच

पुलिस अधिकारियों को लगा कि राकेश जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. अत: उन्होंने उन सभी को गिरफ्तार करने के बजाए थाने से घर भेज दिया. पुलिस जांच को आगे बढ़ाती उस के पहले ही लोकसभा चुनाव का आगाज हो गया. पुलिस चुनाव की वजह से व्यस्त हो गई. जिस से जांच एकदम ढीली पड़ गई. या यूं कहें कि अन्नपूर्णा हत्याकांड की जांच ठंडे बस्ते में चली गई. लगभग डेढ़ माह तक पुलिस चुनावी चक्कर में व्यस्त रही.

चुनाव निपट जाने के बाद पुलिस अधिकारियों को अन्नपूर्णा हत्याकांड की फिर से याद आई. पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर समूचे घटनाक्रम पर विचारविमर्श किया. साथ ही जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया गया. इस के बाद पुलिस इस निष्कर्ष  पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या औनर किलिंग का मामला नहीं है. उस की हत्या प्रेमसंबंधों में की गई थी.

अन्नपूर्णा के 2 युवकों से घनिष्ठ संबंध थे. एक ट्रांसपोर्टर हरिओम, जिस के दफ्तर में वह काम करती थी और दूसरा उस का पड़ोसी सोनू, जिस का उस के घर आनाजाना था. दोनों के प्यार के चर्चे भी आम थे. पुलिस अधिकारियों का मानना था कि हरिओम और सोनू में से कोई एक है जिस ने प्यार के प्रतिशोध में अन्नपूर्णा की हत्या की है.

पुलिस ने सब से पहले हरिओम को थाने बुलवाया और उस से करीब 4 घंटे तक सख्ती से पूछताछ की. लेकिन हरिओम ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. पुलिस को लगा कि हरिओम कातिल नहीं है तो उसे जाने दिया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनू को थाने बुलवाया और उस से भी कई राउंड में सख्ती से पूछताछ की गई. लेकिन सोनू टस से मस नहीं हुआ. सोनू को 3 दिन तक थाने में रखा गया और हर रोज सख्ती से पूछताछ की गई. पर सोनू ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. मजबूरन उसे भी थाने से घर भेज दिया गया.

लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिल रही थी. अंतत: पुलिस ने खुफिया तंत्र का सहारा लिया. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने नारामऊ, मंधना और बिठूर क्षेत्र में अपने खास मुखबिर लगा दिए और खुद भी खोजबीन में लग गए.

2 अगस्त, 2019 की सुबह करीब 10 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी को अन्नपूर्णा हत्याकांड के बारे में जो जानकारी दी उसे सुन कर उन के चेहरे पर मुसकान तैर आई. मुखबिर ने बताया कि अन्नपूर्णा के प्रेमी सोनू ने उस की हत्या अपने 2 अन्य साथियों के साथ मिल कर की थी. इन में उस का एक दोस्त नारामऊ गांव का विनीत है. जबकि दूसरे का नाम शिवम है. वह रामादेवीपुरम, पचौर रोड मंधना में रहता है.’’

मुखबिर की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने सोनू के दोस्त विनीत व शुभम को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन दोनों से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन दोनों ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या उस के प्रेमी सोनू ने ही की थी. उन्होंने तो दोस्ती में उस का साथ दिया था.

आगे क्या हुआ? जानें अगले भाग में…

शर्तों वाला प्यार : प्रेमी ने किया वार – भाग 1

कानपुर स्थित दलहन अनुसंधान केंद्र का सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह सुबह 8 बजे ड्यूटी पूरी कर अपने घर जा रहा था. जब वह बैरीबागपुर जाने वाली लिंक रोड पर पहुंचा तो उस ने रोड के किनारे एक युवती का शव पड़ा देखा. के.पी. सिंह ने यह सूचना जीटी रोड से गुजर रहे राहगीरों को दी तो कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई. इसी बीच के.पी. सिंह ने फोन द्वारा सड़क किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. यह बात 17 अप्रैल, 2019 की है.

सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. युवती की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस के सिर और चेहरे पर ईंटपत्थर या किसी अन्य वजनी चीज से वार किया गया था. सिर से निकले खून से जमीन लाल हो गई थी. युवती के गले में दुपट्टा लिपटा था. ऐसा लग रहा था कि हत्यारे ने उस का गला भी घोंटा हो. उस के हाथों में चोट के निशान भी थे. थानाप्रभारी ने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी थी.

घटनास्थल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ थी, लेकिन कोई भी युवती को पहचान नहीं पाया. थानाप्रभारी अभी घटनास्थल की जांच कर ही रहे थे कि इसी बीच एक युवक वहां आया. उस ने पहले युवती की लाश को गौर से देखा, फिर फफक कर रो पड़ा. वह वहां मौजूद थानाप्रभारी से बोला, ‘‘साहब, यह मेरे भाई राकेश कुरील की बेटी अन्नपूर्णा है. इस की तो कल बारात आने वाली थी, पता नहीं किस ने इस की हत्या कर दी.’’

शादी से एक दिन पहले दुलहन की हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह स्तब्ध रह गए. उन्होंने लाश की शिनाख्त करने वाले युवक से पूछताछ की तो उसने अपना नाम राजेश कुरील बताया. विनोद कुमार ने उस से बात कर कुछ जरूरी जानकारी हासिल की. इसी बीच सूचना पा कर एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार सिंह भी आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

राजेश ने अपनी भतीजी अन्नपूर्णा की हत्या की खबर घर वालों को दी तो घर में कोहराम मच गया. घर में चल रही शादी की तैयारियां मातम में बदल गईं. राकेश की पत्नी शिवदेवी तथा बेटियां प्रियंका, प्रगति, नेहा तथा परिवार के अन्य सदस्य रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए. शिवदेवी व उस की बेटियां अन्नपूर्णा के शव को देख फूटफूट कर रोने लगीं.

मोहल्ले में किसी ने नहीं सोचा था कि जिस घर में बारात आने की तैयारी हो रही हो, वहां से अर्थी उठेगी. मृतका अन्नपूर्णा की होने वाली सास लक्ष्मी भी उस की मौत की खबर पा कर पति शिवबालक व बेटे पुनीत के साथ घटनास्थल पर आ गई थी. वह कह रही थी, हमें तो बारात ले कर बहू को लेने आना था, लेकिन अर्थी देखने को मिली. पुनीत भी होने वाली पत्नी के शव को टुकुरटुकुर देख रहा था.

घटनास्थल पर कोहराम मचा था. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह रोतेबिलखते घर वालों को धैर्य बंधाया. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका के पिता राकेश कुमार कुरील से कहा कि वह थाना बिठूर जा कर बेटी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराए.

लेकिन राकेश तथा उस के घर वाले हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करने लगे. इस पर पुलिस अधिकारियों को संदेह हुआ कि आखिर वे लोग रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज कराना चाहते. उन्हें लगा कि कहीं यह मामला औनर किलिंग का तो नहीं है.

शक हुआ तो एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने राकेश कुरील से पूछताछ की. राकेश ने बताया कि उस ने अन्नपूर्णा की शादी कुरसौली गांव निवासी पुनीत के साथ तय की थी. 14 अप्रैल, 2019 को उस की गोदभराई तथा तिलक का कार्यक्रम संपन्न हुआ था, 18 अप्रैल को बारात आनी थी.

16 अप्रैल की शाम वह पत्नी शिवदेवी के साथ खरीदारी करने मंधना बाजार चला गया था. रात 9 बजे जब वह घर लौटा तो पता चला अन्नपूर्णा घर में नहीं है. यह सोच कर कि वह पड़ोस में रहने वाली अपनी बुआ के घर पर रुक गई होगी, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. सुबह उस की मौत की खबर मिली.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है, मेरी किसी से दुश्मनी भी नहीं है.’’ राकेश ने बताया.

राकेश खुद आया शक के घेरे में

राकेश की बात सुन कर वहां खड़े सीओ अजय कुमार सिंह झल्ला पड़े, ‘‘राकेश, जब तुम्हें किसी पर शक नहीं है. कोई तुम्हारा दुश्मन भी नहीं है तो तुम्हारी बेटी की हत्या किस ने की? तुम्हीं लोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया होगा?’’

‘‘नहीं साहब, भला हम अपनी बेटी को क्यों और कैसे मारेेंगे?’’

‘‘इसलिए कि अन्नपूर्णा किसी दूसरे लड़के से प्यार करती होगी और उसी लड़के से शादी करने की जिद कर रही होगी, लेकिन तुम ने उस की बात न मान कर शादी दूसरी जगह तय कर दी होगी. जब उस ने तुम्हारा कहा नहीं माना तो तुम लोगों ने उसे मार डाला. इसीलिए तुम लोग उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी कर रहे हो.’’ सीओ अजय कुमार ने कहा.

खुद को फंसता देख राकेश घबरा कर बोला, ‘‘साहब, हम बेटी के कातिल नहीं हैं. हम रिपोर्ट दर्ज कराने को तैयार हैं, लेकिन नामजद नहीं करा सकते.’’ इस के बाद राकेश ने थाने पहुंच कर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही हत्या का शक हरिओम पर जाहिर किया.

पुलिस अधिकारियों ने राकेश से हरिओम के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि हरिओम गूवा गार्डन कल्याणपुर में रहता है और ट्रांसपोर्टर है. पहले उस के दफ्तर में उस की बेड़ी बेटी प्रियंका काम करती थी. प्रियंका की शादी हो जाने के बाद छोटी बेटी अन्नपूर्णा वहां काम करने लगी थी. हरिओम का उस के घर आनाजाना था. अन्नपूर्णा और हरिओम के बीच दोस्ती थी.

यह पता चलते ही पुलिस ने हरिओम को हिरासत में ले लिया. थाने में जब उस से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने बताया कि अन्नपूर्णा उस के औफिस में काम करती थी. दोनों के बीच दोस्ती भी थी. दोनों के बीच अकसर फोन पर बातें भी होती थीं. हत्या से पहले भी अन्नपूर्णा ने उसे फोन किया था और बाजार से कपड़े खरीदने की बात कही थी. लेकिन अपने काम में व्यस्त होने की वजह से वह उस के साथ नहीं जा सका. हरिओम ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

पुलिस को लगा औनर किलिंग का मामला

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हरिओम सच बोल रहा है तो उन्होंने उसे थाने से यह कह कर भेज दिया कि जब भी उसे बुलाया जाएगा, उसे थाने आना पडे़गा. साथ ही उसे हिदायत भी दी गई कि वह बिना पुलिस को बताए कहीं बाहर न जाए.

अब तक की जांच से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या या तो अवैध संबंधों की वजह से हुई है या फिर यह औनर किलिंग का मामला है. उन्होंने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच आगे बढ़ाई. अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

आगे क्या हुआ? जानें अगले भाग में…

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 3

एक विवाहित औरत का किसी पुरुष को इस तरह ताकने का मतलब राजेश्वर तुरंत समझ गया. बोतल खुली और शराब का दौर चलने लगा. दोनों ने एकएक पैग पिया था कि अनीता ने राजेश्वर की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘आज आप पहली बार हमारे घर आए हैं, इसलिए बिना खाना खाए मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘नहीं भाभी, आज नहीं. घर जाने में देर हो जाएगी तो घर वाले परेशान होंगे. अगली बार आऊंगा तो जरूर खा कर जाऊंगा. उसी बहाने आप से मिलने का मौका भी मिल जाएगा.’’ राजेश्वर ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.

‘‘आइएगा जरूर, मुझे आप का इंतजार रहेगा. अब भाभी कहा है तो मेरा आप पर कुछ तो हक बनता ही है.’’

‘‘कुछ नहीं, आप का मेरे ऊपर पूरा हक बनता है. जल्दी ही मैं आप के हाथ का खाना खाने आऊंगा.’’ राजेश्वर ने कहा और वहां से चला गया.  यह बात बिलकुल सच है कि भूख आदमी के ईमान को कभी भी डिगा सकती है, चाहे वह पेट की भूख हो या शरीर की. भूखे इंसान को भटकने में देर नहीं लगती. और तब तो बिलकुल नहीं, जब सामने आंखों को भाने वाला खाना या साथी मौजूद हो.

ऐसा ही हुआ अनीता के साथ. राजेश्वर जैसे सजीले नौजवान को देख कर उस का भी ईमान डोल गया. कपड़ों की छपाई के गुर सीखने आया राजेश्वर अपने काम को भूल कर ज्यादा दिनों तक अनीता नाम की इस कामाग्नि से खुद को बचा नहीं सका और उस आग में खुद को स्वाहा कर दिया.

यह भी सच है कि जवानी नौजवानों को गुस्ताख बना देती है. जिस पर जवानी चढ़ती है वह अपने सामाजिक ही नहीं, पारिवारिक दायित्वों को भी भूल जाता है. ऐसा ही कुछ राजेश्वर के साथ भी हुआ.  जवान हुए राजेश्वर को अपने मातापिता का सहारा बनना चाहिए था, जबकि वह एक विवाहिता औरत के प्रेम में ऐसा उलझा कि मांबाप का सहारा बनने के बजाय जान तक गंवा बैठा.

राजेश्वर अनीता के जाल में उलझा तो काम से लगातार गैरहाजिर रहने लगा. जब इस बात की खबर राजकुमार तक पहुंची तो उन्होंने पता किया कि राजेश्वर काम पर क्यों नहीं जाता.  उन्हें जो जानकारी मिली, वह परेशान करने वाली थी. उन्हें पता चला कि उन का बेटा एक शादीशुदा औरत के चक्कर में पड़ गया है. वह उस पर काफी पैसा भी खर्च कर चुका है. उस ने अपनी जो मोटरसाइकिल बेची थी, उस का पैसा भी उस ने उसी पर खर्च किया था.

राजकुमार समझदार आदमी थे. उन्होंने दुनिया देखी थी. वह जानते थे कि सख्ती से बेटा बगावत कर सकता है, इसलिए एक दिन उन्होंने राजेश्वर को अपने पास बिठा कर प्यार से समझाया कि वह जो कर रहा है, वह न तो उस के लिए ठीक है और न घरपरिवार के लिए. अपना फर्ज समझते हुए राजेश्वर ने पिता की बातें ध्यान से सुनी ही नहीं, बल्कि वादा भी किया कि वह उन की बातों पर गौर करेगा. लेकिन पिता के पास से हटते ही उस ने पिता की जो बातें सुनी थीं, दूसरे कान से निकाल दीं. वह अनीता से पहले की ही तरह मिलता रहा.

राजकुमार ने जब देखा कि उन की बातों का बेटे पर कोई असर नहीं पड़ रहा है तो उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. हद तो तब हो गई, जब मार्च के अंतिम सप्ताह में राजेश्वर ने घर में रखे 10 तोले के सोने के गहने चोरी से ले जा कर अनीता को दे दिए. जब इस चोरी की जानकारी बिटई देवी को हुई तो बिना देर किए वह लोनी में रह रही अनीता के घर जा पहुंचीं.  उन्होंने अनीता को बुराभला तो कहा ही, साथ ही धमकी भी दी कि अगर उस ने गहने वापस नहीं किए तो वह उस के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देंगी.

बिटई देवी ने अनीता को रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का भी डर था कि अगर बात पुलिस तक पहुंचेगी तो उन का बेटा भी इस मामले में फंसेगा. इसलिए वह सिर्फ धमकी ही दे कर रह गई थीं.  लेकिन बिटई देवी की इस धमकी से अनीता और नीरज इस कदर डर गए थे कि वे बचने का रास्ता खोजने लगे. काफी सोचविचार कर उन्हें जो रास्ता सूझा, वह काफी खतरनाक था. फिर भी उन्होंने उसी पर चलने का निश्चय कर लिया.

19 अप्रैल की शाम को अनीता ने 7 बजे फोन कर के राजेश्वर को घर बुलाया और पति के साथ मिल कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. राजेश्वर की हत्या कर के लाश उन्होंने कमरे में ही छोड़ दी और बाहर से ताला लगा कर रात 2 बजे फरार हो गए.

राजेश्वर की हत्या की सारी कहानी उगलवा कर थाना लोनी पुलिस ने अगले दिन नीरज और अनीता को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. उन के बच्चों को घर वाले आ कर ले गए.

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 2

मकान मालिक के पास नीरज शर्मा और उस की पत्नी अनीता का फोन नंबर तो था, लेकिन उस के घरपरिवार के बारे में उसे कुछ पता नहीं था. यह भी पता नहीं था कि वह नौकरी कहां करता था. तब पुलिस ने उस से पूछा कि उस ने उसे अपना मकान किस के कहने पर किराए पर दिया था. इस पर प्रदीप ने बताया कि उस ने पड़ोस में रहने वाले श्यामवीर के कहने पर अपना मकान किराए पर दिया था. वह भी फिरोजाबाद का ही रहने वाला था. शायद उसे नीरज के बारे में पता होगा. क्योंकि उस ने उसी की जिम्मेदारी पर अपना कमरा किराए पर दिया था.

श्यामवीर के बारे में पता किया गया तो वह गांव गया हुआ था. मकान मालिक से नीरज और अनीता के फोन नंबर मिल गए थे. लेकिन जब उन नंबरों पर फोन किया गया तो वे बंद थे. शायद उन्हें पता था कि मोबाइल फोन से पुलिस उन तक पहुंच सकती है, इसलिए उन्होंने फोन बंद कर दिए थे.

जब थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव को नीरज और अनीता तक पहुंचने का कोई भी सूत्र नहीं मिला तो उन्होंने फोरेंसिक टीम बुला कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम के बाद 2-3 दिनों तक लाश शिनाख्त के लिए रखी रही, लेकिन सड़ीगली लाश ज्यादा दिनों तक रखी भी नहीं जा सकती थी, इसलिए उस लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करवा दिया गया.

जांच की जिम्मेदारी मिलते ही भानुप्रताप सिंह ने नीरज और अनीता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए थे. लेकिन उन के फोन बंद होने की वजह से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. श्यामवीर गांव से लौट कर आया तो उस से नीरज के घर का पता मिल गया. तब लोनी पुलिस ने फिरोजाबाद जा कर स्थानीय पुलिस की मदद से उस के घर छापा मारा. लेकिन वे दोनों वहां भी नहीं थे. वहां पता चला कि वे वहां आए तो थे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही चले गए थे. वहां से जाने के बाद वह कहां है, यह किसी को पता नहीं था.

नीरज शातिर दिमाग है. अब तक यह सीनियर सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की समझ में आ गया था. लेकिन फिलहाल वह इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे थे. लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि एक न एक दिन उन दोनों के मोबाइल फोन जरूर चालू होंगे. और सचमुच ढाई महीने बाद अचानक अनीता का फोन चालू हुआ. साइबर एक्सपर्ट ने जांच अधिकारी भानुप्रताप सिंह को बताया कि अनीता ने अपने मोबाइल फोन में नया सिम डाल कर लोनी की ही रहने वाली किसी सुनीता को फोन किया था. इस के बाद वह फोन फिर बंद कर दिया गया था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो मिली जानकारी के अनुसार वह नंबर सुनीता के नाम से ही लिया गया था. फोन भले ही बंद हो गया था, लेकिन पुलिस को उस तक पहुंचने का रास्ता मिल गया था. पुलिस ने उस नंबर वाली कंपनी से सुनीता का पता ले कर अगले ही दिन लोनी स्थित उस के घर छापा मार दिया.

सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि अनीता उस की सहेली है और आजकल वह मोहननगर चौराहे के पास किराए के मकान में छिप कर रह रही है. लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह किस मकान में रह रही थी.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पुलिस ने मोहननगर चौराहे के आसपास अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया. इस का परिणाम पुलिस के लिए सुखद ही निकला. मुखबिरों ने कुछ ही दिनों में नीरज और उस की पत्नी अनीता को ढूंढ निकाला. इस के बाद मुखबिरों की सूचना पर थाना लोनी पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने राजेश्वर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

राजकुमार अपनी पत्नी बिटई देवी और 4 बच्चों के साथ दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर-3 में रहते थे. वह जिस मकान में रहते थे, वह उन का अपना था. गुजरबसर के लिए उन्होंने मकान के ऊपरी हिस्से में कपड़े की छपाई का कारखाना लगा रखा था. इस काम से इतनी आमदनी हो जाती थी कि उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था.

इसी कमाई से उन्होंने दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर दी थी, जो अपनेअपने घरपरिवार की हो चुकी थीं. उन के बाद था बेटा राजेश्वर, जिस ने किसी तरह बारहवीं पास कर लिया था. वह उसे आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन आगे पढ़ने की उस की हिम्मत नहीं हुई.

राजेश्वर ने पढ़ाई छोड़ दी तो राजकुमार उसे काम से लगाना चाहते  थे. राजकुमार के एक मित्र लोनी में रहते थे, जो उन्हीं की तरह कपड़ों की छपाई का काम करते थे. राजकुमार ने सोचा, बेटा उन के पास रहेगा तो मालिक की तरह रहेगा, इसलिए अगर उसे काम सिखाना है तो कहीं और ही भेजना ठीक रहेगा. इसलिए उन्होंने राजेश्वर को अपने उसी लोनी वाले दोस्त के यहां भेजना शुरू कर दिया.

राजेश्वर जहां जाता था, वहां तमाम लोग काम करते थे. उन्हीं में से एक फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा था. 35 वर्षीय नीरज शर्मा अच्छा कारीगर था. एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि वह छपाई के काम का उस्ताद था. लेकिन उस में एक कमी यह थी कि वह पक्का शराबी था.

चूंकि वह काम में माहिर था, इसलिए मालिक से ले कर साथ काम करने वाले तक उस की इज्जत करते थे. इतनी इज्जत मिलने के बावजूद शराब देखते ही उस के मुंह में पानी आने लगता था. फिर तो वह सारे कामधाम भूल कर शराब का हो जाता था. अधिक शराब पीने की वजह से उस का शरीर एकदम खोखला हो चुका था. सही बात तो यह थी कि अब वह शराब नहीं, बल्कि शराब उसे पी रही थी.

कुछ दिनों तक साथ काम करने के बाद राजेश्वर जान गया कि अगर नीरज से छपाई के गुर सीखने हैं तो इसे इस की पसंद शराब की दावत देनी पड़ेगी. यही सोच कर एक दिन वह शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच गया. राजेश्वर को शराब की बोतल के साथ अपने घर आया देख कर नीरज की आंखों में चमक आ गई. उस ने उसे अंदर बुला कर प्यार से बैठाया.  राजेश्वर की आवभगत में नीरज की पत्नी अनीता ने भी पति का साथ दिया. राजेश्वर मजबूत कदकाठी का जवान और खूबसूरत लड़का था, इसलिए अनीता की नजरें उस पर जम गईं.

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 1

उत्तरपूर्वी दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर 3 के रहने वाले राजकुमार का बेटा राजेश्वर उर्फ मोनी देर रात तक घर लौट कर नहीं आया तो उन्हें बेटे की चिंता हुई. उस का फोन भी बंद था, इसलिए यह भी पता नहीं चल रहा था कि वह कहां है. उन्होंने उस के बारे में जानने की काफी कोशिश की, न जाने कितने फोन कर डाले, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

जब उन्हें बेटे के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन का जी घबराने लगा. एक बाप के लिए जवान बेटे का इस तरह लापता होना कितना दुखदाई हो सकता है, यह बात हर बाप को पता होगी. राजकुमार भी परेशान थे, क्योंकि वही उन का भविष्य था.  जब राजेश्वर का कहीं कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी बढ़ने लगी. अचानक आई इस आफत में उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. संयोग से उस समय घर में वही अकेले थे. घर के बाकी लोग शादी के चक्कर में बनारस गए हुए थे.

जब राजकुमार का धैर्य जवाब देने लगा तो उन्होंने राजेश्वर के गायब होने की सूचना पत्नी बिटई देवी को दी. उन्हें जैसे ही यह जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत गाड़ी पकड़ी और दिल्ली आ गईं. इस बीच दिल्ली में रहने वाले कुछ रिश्तेदार उन के घर आ गए थे.

राजकुमार और उन के रिश्तेदारों ने राजेश्वर की खोज में दिनरात एक कर दिया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. अपने हिसाब से खोजतेखोजते 4 दिन बीत गए. लेकिन उस के बारे में कुछ पता न चलने से उन की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.

23 अप्रैल, 2014 की दोपहर को राजकुमार अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना खजूरी खास पहुंचे और थानाप्रभारी को प्रार्थनापत्र दे कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करने की प्रार्थना की. थाना खजूरी खास के थानाप्रभारी ने राजेश्वर की गुमशुदगी दर्ज कर के राजकुमार को आश्वासन भी दिया कि वह जल्दी से जल्दी उन के बेटे का पता लगाने का प्रयास करेंगे. लेकिन जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुलिस गुमशुदगी तो दर्ज कर लेती है, लेकिन खोजने की कोशिश नहीं करती, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर के समझ लिया था कि उस का फर्ज पूरा हो चुका है.

29 अप्रैल, 2014 दिन रविवार को सुबहसुबह राजकुमार को कहीं से पता चला कि 23 अप्रैल को थाना लोनी पुलिस ने एक मकान से एक युवक की लाश बरामद की थी. यह जानकारी होते ही राजकुमार पत्नी बिटई देवी को साथ ले कर थाना लोनी जा पहुंचे कि कहीं वह लाश उन के बेटे की तो नहीं थी.

उन्होंने थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव के सामने राजेश्वर का फोटो रख कर कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम राजकुमार है. यह मेरे बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की फोटो है, जो पिछले 10 दिनों से गायब है. मैं ने थाना खजूरी खास में इस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी है. आज सुबह ही मुझे पता चला है कि 23 तारीख को आप ने एक मकान से एक लड़के की लाश बरामद की थी. मैं उसी के बारे में पता करने आया हूं.’’

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने फोटो ले कर गौर से देखा. उस के बाद एक सिपाही को बुला कर कहा कि पुलिस चौकी लालबाग के प्रभारी एसआई विजय सिंह को फोन कर के कहो कि वह 23 तारीख को राजनजर कालोनी में मिली लाश के कपड़े और फोटो ले कर तुरंत थाने आ जाएं.

थोड़ी देर बाद सबइंसपेक्टर विजय सिंह थाने आए तो उन्होंने जो कपड़े और लाश के फोटो राजकुमार और बिटई देवी को दिखाए, उन्हें देखते ही वे दोनों रोने लगे. इस का मतलब था कि राजनगर कालोनी में मिली वह लाश राजकुमार के 25 वर्षीय बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की थी. जवान बेटे की हत्या हो जाने से राजकुमार और बिटई देवी का बुरा हाल था. साथ आए लोगों ने किसी तरह उन्हें संभाला.

थाना लोनी पुलिस ने लाश की शिनाख्त न होने की वजह से अब तक मुकदमा दर्ज नहीं किया था. राजकुमार ने लाश की शिनाख्त कर दी तो उन की ओर से थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच इंद्रापुरी चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह को सौंप दी.

दरअसल, 23 अप्रैल, 2014 की सुबह थाना लोनी पुलिस को गाजियाबाद की राजनगर कालोनी के रहने वाले प्रदीप उर्फ बबलू ने सूचना दी थी कि उन के मकान के एक किराएदार के कमरे से बहुत ज्यादा बदबू आ रही है. उस कमरे में रहने वाला किराएदार कमरे में ताला बंद कर के 3 दिनों से गायब है. बदबू किसी जानवर के सड़ने जैसी है.

यह सूचना मिलते ही थाना लोनी के थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव पुलिस बल के साथ राजनगर कालोनी पहुंच गए थे. उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़वा कर अंदर प्रवेश किया तो कमरे में एक युवक की लाश पड़ी मिली. गरमी की वजह से वह फूल कर काफी हद तक सड़ गई थी. मृतक के शरीर पर किसी भी तरह की चोट का निशान नजर नहीं आ रहा था. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या जहर दे कर या गला दबा कर की गई थी.

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने मकान मालिक प्रदीप से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के इस कमरे में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा रहता था. उस ने उसे यह कमरा 15 सौ रुपए महीने के किराए पर उसी महीने की 3 तारीख को दिया था. इस में वह अपनी पत्नी अनीता और 3 बच्चों के साथ रहता था.

प्रदीप से मृतक के बारे में पूछा गया तो वह उस के बारे में कुछ नहीं बता सका. मकान के अन्य किराएदार भी उस के बारे में कुछ अधिक नहीं बता सके. उन्होंने इतना जरूर बताया कि मृतक नीरज के घर अकसर आता रहता था. सुबह वह नीरज की पत्नी अनीता को मोटरसाइकिल पर बैठा कर निकल जाता था तो शाम को ही पहुंचाने आता था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 3

दिल्ली पहुंचतेपहुंचते उस के पैसे किराए और खानेपीने में खर्च हो गए थे. पैसों के लिए उस ने दिल्ली में काम की तलाश की, लेकिन बिना जानपहचान के उसे वहां कोई ढंग का काम नहीं मिला. नौबत भूखों मरने की आई तो वह अमृतसर चला गया. क्योंकि उसे पता था कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लंगर चलता है, इसलिए उसे वहां खाने की चिंता नहीं रहेगी. अमृतसर में उसे खाने की चिंता नहीं थी. लंगर में खाने की व्यवस्था हो ही जाती थी. खाना खा कर वह दिनभर इधरउधर घूमता रहता था.

इसी घूमनेफिरने में उस की दोस्ती उत्तर प्रदेश से वहां काम करने आए लोगों से हो गई. उन की जानपहचान का फायदा योगेश को यह मिला कि उसे एक होटल में नौकरी मिल गई. इस तरह खानेपीने और रहने की व्यवस्था तो हो ही गई थी, 4 पैसे भी हाथ में आने लगे थे.

लेकिन जल्दी की उस का मन वहां से उचट गया. दरअसल उसे अपने घर वालों की याद सताने लगी थी. सब से ज्यादा उसे पत्नी की याद आ रही थी. जब उस का मन नहीं माना तो कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह अपने घर पहुंचा. घर पहुंच कर पता चला कि पत्नी तो मायके में है. वह घर में रुकने के बजाय ससुराल चला गया. वह वहां 3 दिनों तक रहा, लेकिन किसी को कानोंकान खबर नहीं लगने दी कि इस बीच वह कहां था. 3 दिन ससुराल में रह कर वह फिर अमृतसर चला गया.

कुछ दिनों अमृतसर में रह कर एक बार फिर वह ससुराल गया. इस बार वह पत्नी को ले कर शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने भी गया. पत्नी को ससुराल में छोड़ कर अमृतसर आ गया. इस बार उस ने होटल की नौकरी छोड़ दी और लौंड्री में नौकरी करने लगा. उस ने यहां अपना नाम अशोक कुमार भल्ला रख लिया था. इसी नाम से उस ने अपना राशन कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था.

इस तरह योगेश ने अपनी पूरी पहचान बदल ली थी. ड्राइविंग लाइसैंस बन जाने के बाद वह किसी कंपनी की गाड़ी चलाने लगा था. खुद को बचाने के लिए योगेश ने काफी प्रयास किया, लेकिन पुणे पुलिस भी उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. किसी तरह पुलिस को उस के पुणे आकर शिरडी जाने का पता चल गया. इस के बाद पुलिस ने घर वालों पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह निकला कि 2 सालों बाद एक बार फिर योगेश शिरडी से पुणे पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

योगेश के पकड़े जाने का फायदा यह हुआ कि नैना पुजारी हत्याकांड की सुनवाई विधिवत शुरू हो गई. क्योंकि उस के फरार होने से इस मामले की सुनवाई एक तरह से रुक सी गई थी. शायद इसीलिए इस मुकदमे का फैसला आने में 8 साल का लंबा समय लग गया. योगेश की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर विधिवत सुनवाई शुरू हुई. कोई अभियुक्त फिर से फरार न हो जाए, इस के लिए सुनवाई वीडियो कौन्फ्रेंसिंग द्वारा कराई जाने लगी.

सुनवाई पूरी होने पर बहस में सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने तर्क दिए कि नैना तो इस विश्वास के साथ जा कर कार में बैठी थी कि कंपनी में काम करने वाले साथ हैं तो किसी बात का डर नहीं है. लेकिन उसे जिन पर विश्वास था, उन्हीं लोगों ने उस के साथ विश्वासघात किया. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठा कर इन लोगों ने उस के साथ मनमानी तो की ही, बेरहमी से उस की हत्या भी कर दी.

इस घटना से घर से बाहर जा कर काम करने वाली महिलाओं में असुरक्षा की भावना भर गई है. महिलाओं का साथ काम करने वालों पर से विश्वास उठ गया है. महिलाओं में व्याप्त भय दूर करने के लिए जरूरी है कि इन अपराधियों को मौत की सजा दी जाए, जिस से आगे कोई इस तरह का अपराध करने की हिम्मत न कर सके.

सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने अपनी बात कहते हुए इस मामले को दुर्लभतम करार देते हुए नैना के साथ की गई बर्बरता का हवाला देते हुए दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की. उन का कहना था कि पीडि़ता के साथ जिस तरह सामूहिक दुष्कर्म कर के उस की हत्या की गई, उसे देखते हुए यह एक दुर्लभतम मामला है. इसलिए दोषियों को फांसी की सजा होनी चाहिए.

वहीं बचाव पक्ष के वकील बी.ए. अलूर ने अपनी दलीलें दीं, लेकिन अपराध संगीन था, इसलिए माननीय जज श्री एल.एल. येनकर ने अभियुक्तों पर जरा भी दया नहीं दिखाई और अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म, लूट और हत्या के अपराध में 3 अभियुक्तों योगेश राऊत, महेश ठाकुर और विश्वास कदम को फांसी की सजा सुनाई. इस के अलावा अलगअलग मामलों में अलगअलग सजाएं और जुरमाना भी लगाया गया है.

चूंकि राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन चुका था, इसलिए उसे दोषमुक्त कर दिया गया. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या किसी के वादामाफ गवाह बन जाने से उस का अपराध खत्म हो जाता है. आखिर अपराध में तो वह भी शामिल था. यहां यह देखा जाना जरूरी है कि वादामाफ गवाह का अपराध कैसा था, वह अपराध में किस हद तक शामिल था?

अदालत के इस फैसले से मृतका नैना पुजारी के पति अभिजीत पुजारी संतुष्ट हैं. उन का कहना है कि फिर इस तरह के अपराध करने की कोई हिम्मत न कर सके, इस के लिए अपराधियों को इसी तरह की सख्त से सख्त सजा की जरूरत थी. पत्नी की हत्या के बाद अभिजीत ने एक संस्था शुरू की है, जो पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 2

थाना यरवदा पुलिस ने उसी समय नैना का हुलिया बता कर पुणे के सभी थानों को उन की गुमशुदगी की सूचना दे दी. 9 अक्तूबर, 2009 को किसी व्यक्ति ने पुणे के थाना खेड़ पुलिस को सूचना दी कि राजगुरुनगर के वनविभाग परिसर में जारेवाड़ी फाटे के पास गंदे नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना खेड़ पुलिस मौके पर पहुंच गई थी.

लाश देख कर पुलिस को यह अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि यरवदा पुलिस ने जिस युवती की गुमशुदगी की सूचना दी है, यह लाश उसी की हो सकती है. थाना खेड़ पुलिस ने इस बात की जानकारी थाना यरवदा पुलिस को दी तो थाना यरवदा पुलिस अभिजीत को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गई. अभिजीत के साथ उस के कुछ रिश्तेदार भी थे.

लाश का चेहरा भले ही बुरी तरह कुचला था, लेकिन लाश देखते ही अभिजीत ही नहीं, उन के साथ आए रिश्तेदार भी फूटफूट कर रोने लगे. इस का मतलब वह लाश नैना की ही थी. लाश की शिनाख्त हो गई तो पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लेकिन वहां से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस नैना के हत्यारों तक पहुंच पाती. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

नौकरी करने वाली हर लड़की बैग और मोबाइल रखती है. बैग में छोटीमोटी जरूरत की चीजों के अलावा डेबिटक्रेडिट कार्ड भी होते हैं. पूछताछ में पता चला कि इस सब के अलावा नैना सोने की चूडि़यां, बाली और मंगलसूत्र पहने थी. उस का मोबाइल और बैग तो गायब ही था, वह जो गहने पहने थी, वे सब भी गायब थे. इस से पुलिस को यही लगा कि किसी ने लूट के लिए उस की हत्या कर दी है.

लेकिन जब नैना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो मामला ही उलट गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नैना के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था. अब पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि नैना की हत्या लूट के लिए नहीं, बल्कि दुष्कर्म के बाद की गई थी, जिस से दुष्कर्मियों का अपराध उजागर न हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नैना पुजारी के अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और लूट का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी. यह ऐसी घटना थी, जिस ने सब को झकझोर कर रख दिया था. दूसरी ओर उन महिलाओं के मन में भी डर समा गया था, जो नौकरी करती हैं. क्योंकि किसी के साथ भी ऐसा हो सकता था.

पुलिस ने नैना के हत्यारों तक पहुंचने के लिए जांच उन की कंपनी से शुरू की. पूछताछ में पता चला कि उस दिन नैना बस से घर नहीं गई थीं. पुलिस को यह भी पता चला कि नैना के एटीएम कार्ड से पैसे निकाले गए थे. पुलिस ने वहां की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई तो उस में जो फोटो मिले, उस के आधार पर पुलिस योगेश से पूछताछ करने उस के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. आखिर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2009 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने साथियों के नाम भी बता दिए. इस के बाद पुलिस ने महेश ठाकुर, राजेश चौधरी और विश्वास कदम को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में चारों ने नैना का अपहरण कर उस के साथ दुष्कर्म और लूट के बाद उस की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने नैना का सारा सामान चारों से बरामद कर लिया. इस मामले के खुलासे के बाद कंपनी में ही काम करने वालों द्वारा इस तरह का अपराध करने से लड़कियों और महिलाओं के मन में डर समा गया कि जब साथ काम करने वाले ही इस तरह का काम कर सकते हैं तो वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं.

इस दर्दनाक घटना ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी. नौकरी करने वाली हर महिला को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी थी. इस बात को ले कर धरनाप्रदर्शन भी शुरू हो गए. एक ओर धरनाप्रदर्शन हो रहे थे तो दूसरी ओर पुलिस अपना काम कर रही थी. पूछताछ कर के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने जांच पूरी कर के 12 जनवरी, 2010 को चारों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी थी. इस के बाद न्यायाधीश श्री एस.एम. पोडिलिकार ने चारों का नारको टेस्ट कराया और इस केस को लड़ने के लिए हर्षद निंबालकर को सरकारी वकील नियुक्त किया. पुलिस को अपना पक्ष मजबूत करने के लिए एक चश्मदीद गवाह की जरूरत थी. पुलिस ने राजेश चौधरी से बात की तो वह वादामाफ गवाह बनने को तैयार हो गया. इस तरह 4 लोगों में राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन गया तो 3 अभियुक्त ही बचे.

इस केस की सुनवाई चल रही थी, तभी एक घटना घट गई. इस मामले का मुख्य अभियुक्त योगेश राऊत 30 अप्रैल, 2011 को फरार हो गया. हुआ यह कि उस ने जेल प्रशासन से शिकायत की कि उस के शरीर में खुजली हो रही है. उसे जेल के अस्पताल में दिखाया गया, लेकिन वहां उसे कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद उसे पुणे के ससून अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे भरती करा दिया. उसी बीच टायलेट जाने के बहाने वह पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग निकला.

पैसे उस के पास थे ही, इसलिए जब वह अस्पताल से बाहर आया तो उसे भाग कर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई. दरअसल, उस ने यह काम योजना बना कर किया था. इसलिए जब वह अस्पताल में इलाज के लिए भरती हुआ तो उस का भाई उस से मिलने आया.

उसी दौरान उस ने योगेश को खर्च के लिए 4 हजार रुपए दे दिए थे. इसलिए अस्पताल से निकलते ही योगेश ने औटो पकड़ा और दौड़ कर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से टे्रन पकड़ कर वह गुजरात के सूरत शहर चला गया. उसे यह शहर छिपने के लिए ठीक नहीं लगा तो वह वहां से दिल्ली चला गया.

 

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 1

9 मई, 2017 को पुणे के सैशन कोर्ट के जज श्री एल.एल. येनकर की अदालत में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. इस की वजह यह थी कि वह 8 साल पुराने एक बहुत ज्यादा चर्चित नैना पुजारी के अपहरण, गैंगरेप, लूट और मर्डर के मुकदमे का फैसला सुनाने वाले थे. चूंकि यह बहुत ही चर्चित मामला था, इसलिए मीडिया वालों के अलावा अन्य लोगों को इस मामले में काफी रुचि थी.

अभियुक्तों को एक दिन पहले यानी 8 मई को सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की लंबी बहस के बाद दोषी करार दे दिया गया था, इसलिए निश्चित हो चुका था कि उन्हें इस मामले में सजा होनी ही होनी है. अब लोग यह जानना चाहते थे कि इंसान के रूप में हैवान कहे जाने वाले उन दरिंदों को क्या सजा मिलती है.

ठीक समय पर जज श्री एल.एल. येनकर अदालत में आ कर बैठे तो अदालत में सजा को ले कर चल रही खुसुरफुसुर बंद हो गई थी. जज के बैठते ही पेशकार ने फैसले की फाइल उन के आगे खिसका दी थी. जज साहब ने एक नजर फाइल पर डाली. उस के बाद अदालत में उपस्थित वकीलों, आम लोगों और अभियुक्तों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने फाइल का पेज पलटा. जज साहब ने इस मामले में क्या फैसला सुनाया, यह जानने से पहले आइए हम पहले इस पूरे मामले को जान लें कि नैना पुजारी के साथ कैसे और क्या हुआ था?

7 अक्तूबर, 2009 की शाम पुणे के खराड़ी स्थित सौफ्टवेयर कंपनी सिनकोन में काम करने वाली नैना पुजारी ड्यूटी खत्म कर के शाम 8 बजे घर जाने के लिए बाहर निकलीं तो अंधेरा हो चुका था. वैसे तो वह शाम 7 बजे तक निकल जाती थीं लेकिन उस दिन काम की वजह से उन्हें थोड़ी देर हो गई थी. शायद इसीलिए कंपनी से निकलते समय उन्होंने पति अभिजीत को फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं.

महिला कर्मचारियों को कंपनी से निकलने में देर हो जाती थी तो घर पहुंचाने की व्यवस्था कंपनी करती थी. इस के लिए कंपनी ने कैब और बसें लगा रखी थीं. लेकिन उस दिन कोई कैब नहीं थी, इसलिए नैना घर जाने के लिए बस का इंतजार करने लगीं. बस आती, उस के पहले ही उन के सामने एक कार आ खड़ी हुई.

वह कार योगेश राऊत की थी. वह कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करता था. नैना उसे पहचानती थीं, इसलिए जब योगेश ने बैठने के लिए कहा तो नैना उस में बैठ गईं. वह कार में बैठीं तो योगेश के अलावा उस में 2 लोग और बैठे थे. उन के नाम थे महेश ठाकुर और विश्वास कदम. ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे. महेश ठाकुर जरूरत पड़ने पर यानी बदली पर कंपनी की गाड़ी चलाता था तो विश्वास कदम सुरक्षागार्ड था.

ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे, इसलिए नैना ने कोई ऐतराज नहीं किया. लेकिन जब कार चली तो योगेश उन्हें उन के घर की ओर ले जाने के बजाय राजगुरुनगर, बाघोली की ओर ले जाने लगा. उन्होंने उसे टोका तो योगेश ने उन की बात पर पहले तो ध्यान ही नहीं दिया. जब तक ध्यान दिया, तब तक कार काफी आगे निकल चुकी थी.

नैना ने जब उस से पूछा कि वह कार इधर क्यों लाया है तो उस ने कहा कि इधर से वह अपने एक साथी को ले कर उसे उस के घर पहुंचा देगा. उस ने वहीं से फोन कर के अपने साथी राजेश चौधरी को बुलाया और उसे बैठा कर कार खेड़ की ओर मोड़ दी तो नैना को शंका हुई.

नैना ने योगेश को डांटते हुए वापस चलने को कहा तो योगेश के साथियों ने उन्हें दबोच कर चाकू की नोक पर चुप बैठी रहने को कहा. नैना ने उन के इरादों को भांप लिया. वह छोड़ देने के लिए रोनेगिड़गिड़ाने लगीं. लेकिन भला वे उसे क्यों छोड़ते. वे तो न जाने कब से दांव लगाए बैठे थे. उस दिन उन्हें मौका मिल गया था. चाकू की नोक पर सभी ने चलती कार में ही बारीबारी से उन के साथ दुष्कर्म किया. इस के बाद एक सुनसान जगह पर कार रोक कर नैना का एटीएम कार्ड छीन कर उस से 61 हजार रुपए निकाले. पिन उन्होंने चाकू की नोक पर उन से पूछ ली थी.

नैना इन पापियों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर उन्हें उस पर जरा भी दया नहीं आई. उन लोगों ने उन के साथ जो किया था, किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ सकते थे. क्योंकि उन के जिंदा रहने पर सभी पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से उन्होंने स्कार्फ से गला घोंट कर उन की हत्या तो की ही, लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए पत्थर से उन के सिर को बुरी तरह कुचल दिया. इस के बाद जंगल में लाश फेंक कर सभी भाग खड़े हुए.

दूसरी ओर समय पर नैना घर नहीं पहुंचीं तो उन के पति अभिजीत को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि कंपनी से निकलते समय उन्होंने फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं. पति ने नैना के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद था, इसलिए उन की बात नैना से नहीं हो सकी. फोन बंद होने से अभिजीत परेशान हो गए. इस के बाद उन्होंने औफिस फोन किया. वहां से तो वह निकल चुकी थीं, इसलिए वहां से कहा गया कि नैना तो यहां से कब की जा चुकी हैं.

इस के बाद अभिजीत ने वहांवहां फोन कर के नैना के बारे में पता किया, जहांजहां उन के जाने की संभावना हो सकती थी. जैसेजैसे रात बढ़ती जा रही थी, उन की चिंता और परेशानी बढ़ती जा रही थी. सब जगह उन्होंने फोन कर लिए थे. कहीं से भी नैना के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अभिजीत की समझ में नहीं आ रहा था कि नैना ने सीधे घर आने को कहा था तो बिना बताए रास्ते से कहां चली गईं. उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अब तक उन के कई रिश्तेदार भी आ गए थे. रात साढ़े 9 बजे कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना यरवदा जा कर थानाप्रभारी से मिल कर उन्होंने पत्नी नैना के घर न आने की बात बता कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.