Punjab Crime : टेलीफोन के तार से बेटी के प्रेमी का घोंटा गला

Punjab Crime : ठंडे बस्ते में पड़ी गुरदीप सिंह की हत्या की फाइल धूल फांक रही थी. मेरे आदेश पर गुरदीप की हत्या के मामले की फिर से जांच की गई तो हत्या की चौंकाने वाली ऐसी कहानी सामने आई कि…  

पूरे मामले को पढ़ने के बाद एक बात मेरी समझ में नहीं रही थी कि जब गुरदीप सिंह 18 तारीख को अपने काम पर लुधियाना चला गया था तो फिर 2 दिन बाद उस की लाश अपने ही घर के सामने कैसे मिली. इस का मतलब यह है कि या तो गुरदीप लुधियाना गया ही नहीं या फिर किसी के बुलावे पर वह 2 दिन बाद ही गांव वापस गया था. पर वह शख्स कौन था, जिस के साथ वह शहर से 2 दिन बाद ही गांव गया था. इन्हीं सब बातों का मुझे पता लगाना था.

साल 2018 के जुलाई महीने में मेरी नियुक्ति पंजाब के खन्ना जिले में बतौर एसएसपी हुई थी. इस के पहले मैं होशियारपुर, दसूहा में रहा था. 2011 बैच से आईपीएस करने के बाद मेरी पहली नियुक्ति 2014 में लुधियाना में एसीपी के पद पर हुई थी. जब मैं ने वहां अपना काम शुरू किया, तब शहर की कानूनव्यवस्था चरमराई हुई थी. यातायात का तो बहुत बुरा हाल था. सब से पहले मैं ने शहरवासियों से मिलमिल कर अपना परिचय बढ़ाया और जगहजगह सभाएं कर पुलिस और जनता के बीच की दूरी खत्म करने की कोशिश की. उन्हें कानून के दायरे में रह कर एक अच्छा नागरिक बनने की सलाह दी.

यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए मैं ने अपने स्टाफ को कड़े आदेश दे रखे थे कि यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाला कोई नेता हो या कोई अधिकारी, उसे बख्शा नहीं जाए. इसी कड़ी में अपनी नौकरी के मात्र 3 महीने बाद ही दिसंबर माह में पंजाब ऐंड हरियाणा हाईकोर्ट के एक जस्टिस की गाड़ी का नो पार्किंग का चालान काटने के बदले में मुझे ट्रांसफर झेलना पड़ा था.

लुधियाना से जालंधर, दसूहा, होशियारपुर आदि होते हुए जब मैं ने खन्ना पहुंच कर एसएसपी का कार्यभार संभाला तो अपनी आदत के अनुसार मैं ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को यह सख्त आदेश दिया कि किसी भी मामले में लापरवाही नहीं बरती जाएगी. कार्यभार संभालने के बाद सब से पहले मैं ने उन फाइलों को अपना निशाना बनाया जो पिछले 3-4 सालों से बंद पड़ी हुई थीं और उन पर अब तक कोई काररवाई नहीं हुई थी.

इन ढेरों फाइलों में एक फाइल सरवन कौर की थी. शिकायतकर्ता 50 वर्षीय सरवन कौर के 23 वर्षीय शादीशुदा बेटे गुरदीप की किसी ने हत्या कर के उस की लाश उसी के ही घर के सामने डंगरों वाले बाड़े में फेंक दी थी. मैं ने सरवन कौर के बयान पढ़े. उस का बयान पढ़ने के बाद पता चला कि वह समराला थाने के गांव लोपो के रहने वाले लक्ष्मण सिंह की पत्नी थी. वह अपने पति के साथ खेतों पर मेहनतमजदूरी करती थी. उस के 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. सभी शादीशुदा थे और अपनेअपने घरों में खुश थे. बेटों में पवित्र सिंह बड़ा था और गुरदीप उर्फ निका छोटा

गुरदीप ने किसी लड़की से लवमैरिज की थी और वह उसी के साथ लुधियाना में रहता था. गुरदीप जेसीबी चलाता था. जब भी मौका मिलता, अपनी मां से मिलने वह गांव चला आता था16 नवंबर, 2015 को भी गुरदीप अपनी मां से मिलने के लिए घर आया था और 2 दिन रहने के बाद 18 तारीख को अपने काम पर लुधियाना लौट गया. 22 तारीख की सुबह 6 बजे गुरदीप का पिता लक्ष्मण सिंह अपने घर के सामने डंगरों के बाड़े में पशुओं को चारा डालने गया तो वहां पर बेटे गुरदीप की लाश देख कर गश खा कर गिर गया

देखने से लग रहा था कि किसी ने गुरदीप की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस के गले में केसरी रंग का पटका बंधा हुआ था. बेटे की लाश देख कर लक्ष्मण ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. रोने की आवाज सुन कर उस के परिवार के साथसाथ गांव वाले भी वहां जमा हो गए. गांव के किसी आदमी ने इस घटना की सूचना थाना समराला को दे दी. थाना समराला के तत्कालीन प्रभारी मंजीत सिंह एसआई नछत्तर सिंह के साथ मौके पर पहुंचे थे. घटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद उन्होंने मृतक के परिवार वालों और ग्रामीणों के बयान दर्ज करने के बाद गुरदीप की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 34 के तहत दर्ज कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दी थी.

आगे की काररवाई के नाम पर तफ्तीश जारी है, लिख कर फाइल बंद कर दी गई थी. थानाप्रभारी मंजीत सिंह का तबादला हो जाने के बाद शायद नए थानाप्रभारी ने उक्त फाइल को खोल कर देखने की जहमत भी नहीं उठाई थी. उस के बाद कई थानाप्रभारी आए और गए, गुरदीप की हत्या की फाइल नीचे दब कर रह गई थी. इस घटना को लगभग ढाई साल गुजर गए थे. फाइल का पूरी तरह से अध्ययन करने के बाद मैं ने तत्कालीन डीएसपी समराला हरसिमरत सिंह शेतरा और थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह को अपने औफिस बुलाया. मैं ने उक्त फाइल उन्हें सौंपते हुए कहा कि मुझे जल्द से जल्द गुरदीप के हत्यारों का पता चाहिए. साथ ही केस की प्रोग्रैस रिपोर्ट रोज शाम को मेरी टेबल पर होनी चाहिए.

इस के बाद थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह ने लोपा गांव में अपना नेटवर्क फैला दिया. गांव में ज्यादातर मेहनतमजदूरी करने वाले लोग थे. किसी को फुरसत नहीं थी. सभी अपने कामों में व्यस्त थे. फिर इतनी पुरानी बात लोग भूल से गए थे. उन्हें सिर्फ इतना याद था कि सरवन के बेटे गुरदीप की हत्या हुई थी. मृतक की मां बेटे के हत्यारों को पकड़ने के लिए समयसमय पर अधिकारियों के यहां चक्कर काटती रहती थी. सरवन ने पुलिस को 4 संदिग्ध लोगों के नाम पुलिस को देते हुए उन पर शक जताया था, पर उस की बातों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

मैं ने उन चारों लोगों के नाम अपने खास मुखबिर को सौंपते हुए कहा था कि इन चारों की पूरी कुंडली का पता लगाओ और साथ में इस बात का भी पता लगाओ कि उस दिन गुरदीप अपने गांव किस के बुलावे पर लुधियाना से आया थाअगले 2 दिन में मुझे इस पूरे मामले की तह तक की जानकारी मिल गई. और तो और, इस हत्या की योजना का एक चश्मदीद गवाह भी मेरे हाथ लग चुका था. सारी बातें मैं ने थानाप्रभारी भूपिंदर सिंह को बताईं. मैं ने उन चारों लोगों के नाम देते हुए कहा, ‘‘इन्हें बुलवा कर पूछताछ करो.’’

भूपिंदर सिंह ने उसी दिन गांव लोपो के मोहन सिंह, गुरमुख सिंह, दविंदर सिंह और बब्बू सिंह को थाने बुलवा लिया. इन चारों में मोहन सिंह के अलावा उस का एक बेटा, एक भाई और एक भतीजा था. मैं भी थाने पहुंच गया. ढाई साल बाद जब गुरदीप की हत्या की जांच शुरू हुई तो सब चौंक गए. काफी देर याद करने का नाटक करने के बाद मोहन सिंह ने बताया था कि लक्ष्मण के बेटे की मौत हुई तो थी पर उस की मौत से उस का या उस के परिवार का कोई वास्ता नहीं था. लेकिन मेरे पास इस बात का पुख्ता सबूत था कि गुरदीप की हत्या के पीछे सिर्फ और सिर्फ मोहन सिंह का ही वास्ता है.

मैं ने काफी कोशिश की थी कि वह प्यार से अपने आप जुर्म कबूल कर के सब कुछ बता दे पर वह अपनी बातों से मुझे गुमराह करने की कोशिश करता. अंत में मैं ने चंद सिंह नाम के उस आदमी को ला कर मोहन सिंह के सामने खड़ा कर दिया, जिस के सामने उस ने अपने बेटे और भाई के साथ मिल कर गुरदीप की हत्या की योजना बनाई थी. चंद सिंह भी लोपो गांव का एक जाट जमींदार था. चंद सिंह को अपने सामने देख कर मोहन की घिग्घी बंध गई. वह बगलें झांकने लगा. अंत में उस ने और अन्य तीनों ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया था कि उन्होंने ही योजना बना कर गुरदीप की हत्या की थी.

चारों आरोपियों को उसी दिन 5 अगस्त, 2018 को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर लिया गया. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद गुरदीप की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस में दोष गुरदीप का अधिक था. गुरदीप के पड़ोस में मोहन सिंह का घर था. मोहन सिंह मजदूर किसान था. मोहन की एक बेटी थी हरमनदीप कौर जो पास के रोपलो गांव में स्थित स्कूल में पढ़ती थी. गुरदीप गांव का बांका नौजवान था. पड़ोसी होने के नाते बचपन से ही हरमन और गुरदीप साथसाथ खेले थे और दोनों परिवारों का एक दूजे के घर काफी आनाजाना था.

हरमन जब जवान हुई तो उस का झुकाव गुरदीप की ओर हो गया था, जबकि गुरदीप ने लुधियाना काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह जब भी गांव आता तो हरमन को अपने आसपास मंडराते पाता था. फिर मौका देख कर दोनों एकदूसरे से मिलने लगे. हरमन के लिए गुरदीप से मिलने में कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि दोनों के परिवार में घनिष्ठ संबंध थे. वह स्कूल से छुट्टी मार कर गुरदीप के साथ सैरसपाटे पर चली जाया करती थी. धीरेधीरे उन के याराने के चर्चे गांव में भी होने लगे थे. उड़तेउड़ते यह बात मोहन सिंह को भी पता चल गई थी. उस ने जब अपनी बेटी की निगरानी की तो असलियत सामने गई थी.

फिर एक दिन मोहन सिंह को स्कूल से खबर मिली कि हरमनदीप कौर कई दिनों से स्कूल से गैरहाजिर है. यह सुन कर मोहन समझ गया कि वह गुरदीप के साथ ही घूमफिर रही होगी. उस दिन मोहन ने बेटी हरमन को खूब डांटाफटकारा. साथ ही उस ने गुरदीप के घर जा कर उस की मां और बाप को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं उन्हें धमकी भी दी कि अगर गुरदीप ने अपनी आदत नहीं बदली तो गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा.

गलती गुरदीप की थी, इसलिए बात को खत्म करने के लिए सरवन कौर और उस के पति लक्ष्मण ने मोहन सिंह के पैर पकड़ कर माफी मांग ली. कुछ दिन के लिए मामला ठंडा पड़ गया था. एक दिन मोहन को गांव वालों से पता चला कि गुरदीप के पास हरमन की अश्लील फोटो हैं. वह गांव में लोगों को बताता फिर रहा है कि अगर मोहन ने उसे हरमन से मिलने से रोका तो ये फोटो इंटरनेट पर डाल कर उन्हें बदनाम कर देगा.  यह बात सुन कर मोहन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मोहन सिंह ने उसी दिन गुरदीप के घर जा कर उस के मांबाप से बात की. उन्होंने मोहन को आश्वासन दिया कि यदि ऐसी कोई फोटो गुरदीप के पास है तो वह उस से फोटो ले कर उन्हें सौंप देंगे. गुरदीप ने वे फोटो किसी को नहीं दिए. इस बात को ले कर मोहन और लक्ष्मण के परिवार में कई बार झगड़ा भी हुआ पर गुरदीप ने वह फोटो नहीं दीं.

गुरदीप को किसी भी तरह मानता देख कर मोहन सिंह को अपनी इज्जत बचाने का एक ही रास्ता दिखाई दिया. वह रास्ता था गुरदीप की हत्या कर देने का. रहेगा बांस, बजेगी बांसुरी. अपने भाई और बेटे के साथ मिल कर मोहन ने गुरदीप की हत्या की योजना बनाई. इस बारे में मोहन सिंह ने चंद सिंह से भी मशविरा किया. अपनी योजना के अनुसार 21 नवंबर, 2015 की शाम को मोहन ने हरमन से गुरदीप का फोन नंबर ले कर उसे फोन कर गांव के बाहर मिलने के लिए बुलाया था. मोहन ने गुरदीप को कहा था कि अगर तुम फोटो वापस नहीं लौटाना चाहते तो हरमन से शादी कर लो. अगर हरमन से शादी करनी है तो आज रात 9 बजे तक गांव के अड्डे पर मिलो. यह बात सुन कर गुरदीप झट से तैयार हो गया. वह ठीक 9 बजे अड्डे पर पहुंच गया.

नवंबर महीने में हलकीहलकी ठंड पड़ रही थी. वैसे भी गांवों में दिन छिपने के बाद लोग अपनेअपने घरों में दुबक जाते हैं. जिस समय गुरदीप अड्डे पर पहुंचा तो उस समय चारों ओर सन्नाटा पसरा पड़ा था. बात करने के बहाने वे चारों उसे सुनसान खेत में ले गए. मोहन सिंह ने एक बार फिर गुरदीप को अपनी इज्जत का वास्ता देते हुए फोटो लौटाने के लिए कहा. गुरदीप ने शराब पी रखी थी. फोटो लौटाने की बात सुन कर गुरदीप भड़क गया. इतना ही नहीं, वह धमकी देने लगा तो मोहन सिंह को गुस्सा गया. चारों ने पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया और अपने साथ लाए टेलीफोन के तार से उस का गला घोंट दिया

इस के बाद उसी के सिर पर बंधे पटके को उतार कर उस के गले में डाला और कस दिया. गुरदीप की हत्या करने के बाद चारों ने उस की लाश खेत से उठा कर उस के घर के सामने डाल दी. इस मुकदमे की जांच पूरी गहराई, तकनीकी ढंग और खुफिया सूत्रों के साथ की गई थी. इसी कारण इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को ढाई साल बाद सुलझाया जा सका था. रिमांड के बाद 6 अगस्त, 2018 को गुरदीप की हत्या के आरोप में मोहन सिंह, गुरमुख सिंह, दविंदर सिंह और बब्बू को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.

स्टोरी में दी गई फोटो काल्पनिक है.

  — प्रस्तुति: हरमिंदर कपूर

 

Rajasthan Crime : संपत्ति के लिए प्रेमी से कराई पति की हत्या

Rajasthan Crime : जब किसी ब्याहता के पैर बहक जाते हैं तो उसे वापस अपने रास्ते पर लाना बड़ा मुश्किल होता है. बैंक मैनेजर रोशनलाल की पत्नी निर्मला के साधनसंपन्न होने के बावजूद पड़ोसी उमेश शर्मा से नाजायज संबंध हो गए. इस का नतीजा इतना दुखद निकला कि…

इसी साल 19 सितंबर की बात है. रोशनलाल यादव को बैंक में काम करतेकरते काफी देर हो गई थी. रोशनलाल जयपुर में गवर्नमेंट हौस्टल चौराहे के पास स्थित सिटी बैंक की शाखा में मैनेजर थे. वैसे तो उन्हें आमतौर पर रोजाना ही शाम के 7-8 बज जाते थे. इस की वजह यह थी कि निजी बैंकों में सरकारी बैंकों की तरह सुबह 10 से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी नहीं होती है. हालांकि निजी बैंकों में भी ड्यूटी आवर्स होते हैं, लेकिन सारी जिम्मेदारियां मैनेजर की होती हैं. इसीलिए उन्हें बैंक से निकलने में रात के साढ़े 8 बज गए थे.

दिन भर कामकाज करने और उच्चाधिकारियों के ईमेल, वाट्सऐप के जवाब देतेदेते रोशनलाल भी थक गए थे. काम की व्यस्तता में वह शाम की चाय भी नहीं पी सके थे. जोरों की भूख भी लग रही थी. वे जल्द घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद भोजन करना चाह रहे थे. रोशनलाल ने बैंक के बाहर खड़ी अपनी कार निकाली और घर की ओर चल दिए. उन के साथ बैंक का एक कर्मचारी उन की कार में पानीपेच चौराहे तक साथ आया, वह पानीपेच चौराहे पर उतर गया. रोशनलाल जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार कालोनी में पत्नी और बच्चों के साथ रहते थे.

कोई पुराना गीत गुनगुनाते हुए रोशनलाल अपनी कार मध्यम रफ्तार से चला रहे थे. रास्ते में उन्हें सिगरेट पीने की तलब लगी तो अपने घर से करीब एक किलोमीटर पहले रास्ते में कार रोक दी. कार से उतर कर वह दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर के पास एक थड़ी पर सिगरेट लेने चले गए. सिगरेट ले कर वह अपनी कार में आ कर बैठे ही थे कि सामने से अचानक एक स्कूटी पर सवार 2 युवक तेजी से उन की कार के सामने आ गए. स्कूटी से उतर कर एक युवक उन के पास आया और नजदीक से 2 फायर कर दिए. दोनों गोलियां रोशनलाल के सीने में लगीं यह रात करीब 9 बजे की घटना है. गोली चलते ही उस इलाके में अफरातफरी मच गई. यह इलाका रोशनलाल के घर के पास था, इसलिए कुछ लोग उन्हें जानतेपहचानते थे.

आसपास के लोग रोशनलाल को उन की ही कार से नजदीकी निजी अस्पताल ले गए. निजी अस्पताल के डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन की गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जाने को कहा. रोशनलाल को निजी अस्पताल ले जाने वाले लोग जब उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में करधनी पुलिस थाने पर रुक कर पुलिस को इस घटना के बारे में बता दिया. थाने में ही खड़ी सरकारी एंबुलेंस से एक पुलिसकर्मी के साथ रोशनलाल को सवाई मानसिंह अस्पताल भेजा गया. साथ ही उन के परिजनों को भी सूचना दे दी गई.

सूचना मिलने पर रोशनलाल की पत्नी निर्मला यादव और कुछ सगेसंबंधी सीधे अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों ने रोशनलाल की जिंदगी बचाने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन रात करीब सवा 11 बजे उन की मृत्यु हो गई. बैंक मैनेजर रोशनलाल पर हुई फायरिंग की जानकारी मिलने पर पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर जांचपड़ताल की. पुलिस ने फायरिंग करने वाले बदमाशों का पता लगाने के लिए घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, लेकिन पुलिस को रात भर की भागदौड़ के बाद भी बदमाशों का कुछ पता नहीं चला. केवल इतना ही पता चल पाया कि बदमाश पहले से ही घात लगा कर बैठे थे. वे लोग रोशनलाल का बैंक से लौटने का इंतजार कर रहे थे.

दूसरे दिन रोशनलाल के बड़े भाई कोटपुतली निवासी रत्तीराम यादव की रिपोर्ट पर थाना करधनी में रोशनलाल की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 व 34 में दर्ज कर लिया गया. पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने रोशनलाल का शव उन के घर वालों को सौंप दिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस जांच में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी निर्मला सहित परिवार के लोगों और बैंककर्मियों से पूछताछ कर के पता लगाने का प्रयास किया कि क्या उन की किसी से दुश्मनी थी. पुलिस ने बैंक के उस कर्मचारी से भी पूछताछ की, जो रोशनलाल के साथ पानीपेच चौराहे तक आया था.

उस ने बताया कि रास्ते में चिंकारा कैंटीन के पास रोशनलाल के मोबाइल पर एक फोन आया था, जिस पर वे कुछ देर तक बात करते रहे थे. फोन किस का था, यह उसे पता नहीं. वह पूरा दिन करीब सौ लोगों से पूछताछ, मौकामुआयना और कैमरों की फुटेज की जांच में निकल गया. रात तक हत्यारों के बारे में कुछ पता नहीं चला. रोशनलाल मूलरूप से जयपुर जिले के कोटपुतली के रहने वाले थे. उन की मौत की सूचना मिलने पर उन के गांव से भी कुछ लोग जयपुर आ गए थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ कर के रोशनलाल के हत्यारों का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन इस से कोई खास मदद नहीं मिल सकी.

पुलिस की जांच में 2-3 बातें मुख्यरूप से सामने आईं. एक तो यह कि रोशनलाल बैंक में कामर्शियल वाहनों के लोन मंजूर करते थे. बैंक से लोन देने के अलावा वह निजी रूप से भी ब्याज पर लोगों को पैसा उधार देते थे. रोशनलाल ने कुछ लोगों को मोटी रकम भी उधार दे रखी थी. एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली कि पत्नी निर्मला से उन का अकसर झगड़ा होता रहता था. निर्मला ने करीब 4 महीने पहले मारपीट की शिकायत पुलिस को दी थी. पुलिस इन तीनों कोणों से जांच करने में जुट गई.

इस के लिए जयपुर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) नितिन दीप ब्लग्गन के निर्देश पर पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (प्रथम) रतन सिंह और झोटवाड़ा के सहायक पुलिस आयुक्त आस मोहम्मद के सुपरविजन में करधनी थानाप्रभारी मानवेंद्र सिंह चौहान, मुरलीपुरा, झोटवाड़ा व कालवाड़ के थानाप्रभारियों और इंसपेक्टर जहीर अब्बास के नेतृत्व में अलगअलग स्पैशल टीमें गठित कीं. इस बीच पुलिस ने रोशनलाल के मकान के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो लोगों ने उमेश शर्मा पर शक करते हुए उस के मोबाइल नंबर भी दे दिए. उमेश पहले रोशनलाल के पड़ोस में ही रहता था. पारिवारिक बातों को ले कर रोशनलाल, उन की पत्नी निर्मला और उमेश के बीच कई बार झगड़े होते थे.

बाद में उमेश वहां से अपना खुद का मकान खाली कर के जयपुर (Rajasthan Crime) में ही मानसरोवर कालोनी में रहने लगा था. उस ने गणेश नगर विस्तार के अपने मकान के 2 कमरे किराए पर दे दिए थे. अपने मकान की देखभाल के बहाने उमेश आए दिन इस कालोनी में आता रहता था. पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबरों की लोकेशन खंगाली तो उत्तराखंड की आई. पुलिस ने उत्तराखंड पुलिस की मदद से 21 सितंबर को उमेश और उस के 3 साथियों को अल्मोड़ा से पकड़ लिया. मृतक की पत्नी भी थी शामिल पुलिस इन सब को जयपुर ले आई. उमेश ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि उस ने बैंक मैनेजर रोशनलाल की हत्या अपने भाई की मार्फत उत्तर प्रदेश के शूटरों को सुपारी दे कर करवाई थी.

उमेश ठेकेदारी करता था. इसी काम के बहाने वह रोशनलाल की हत्या से करीब 10 दिन पहले उत्तराखंड चला गया था. उत्तराखंड से ही वह मोबाइल के जरिए रोशनलाल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. उस ने यह काम शातिराना तरीके से इसलिए किया था, ताकि उस की लोकेशन जयपुर में न आए. उमेश ने पुलिस को बताया कि रोशनलाल की हत्या की साजिश में उन की पत्नी निर्मला भी शामिल थी. इस पर पुलिस ने निर्मला को थाने बुला कर पूछताछ की. निर्मला और उमेश से अलगअलग और आमनेसामने बैठा कर की गई पूछताछ में रोशनलाल की हत्या का राज खुल कर सामने आ गया.

इस से यह बात भी साफ हो गई कि निर्मला ने ही उमेश के साथ मिल कर अपने बैंक मैनेजर पति की हत्या करवाई थी. निर्मला को प्रेमी के साथ पति की संपत्ति भी चाहिए थी, इसलिए उस ने रोशनलाल को तलाक देने के बजाय उन की हत्या करवा दी. यह रोशनलाल का दुर्भाग्य था कि निर्मला की बेवफाई का पता होने के बावजूद वह अपनी जान नहीं बचा सके. उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि उन की पत्नी एक दिन उस की हत्या करा देगी. फिर भी वह इतने दरियादिल थे कि अपनी पत्नी की उस के प्रेमी से शादी कराने को भी तैयार हो गए थे. लेकिन निर्मला का प्रेमी उमेश समय पर अदालत नहीं पहुंचा, जिस से दोनों की शादी नहीं हो सकी.

निर्मला यादव और उमेश शर्मा से पूछताछ के आधार पर पुलिस के सामने जो कहानी आई, वह इस तरह थी—

रोशनलाल यादव जयपुर जिले के कोटपुतली के पवाना गांव के रहने वाले थे. सन 2004 में रोशन का विवाह निर्मला से हो गया. वह उन से उम्र में 6 साल छोटी थी. जब निर्मला की शादी हुई, तब वह 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. उन्होंने शादी के बाद निर्मला को एमए तक पढ़ाया. साथ ही फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी कराया. नौकरी के दौरान रोशनलाल की जहां भी पोस्टिंग हुई, उन्होंने निर्मला को अपने साथ रखा. बैंक में बड़े पद पर होने के कारण रोशन की तनख्वाह भी अच्छी थी. घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रही.

8 साल पहले सन 2010 में जयपुर (Rajasthan Crime) में पोस्टिंग होने पर रोशनलाल ने करधनी में एक प्लौट ले कर अपना मकान बनवा लिया. उसी दौरान उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के नई आबादी रैना गांव के रहने वाले उमेश शर्मा ने भी रोशनलाल के पड़ोस में मकान बनवाया. दोनों ने एक ही दिन अपनेअपने मकान में गृह प्रवेश किया. रोशनलाल और उमेश के बीच बन गए पारिवारिक संबंध उमेश शर्मा 2003 के आसपास जयपुर आया था. उस समय जयपुर में प्रौपर्टी बाजार में बूम आया हुआ था. उमेश ने प्रौपर्टी में रकम लगा कर काफी पैसा कमाया. वह अमीरों की तरह जिंदगी जीता था. फिलहाल उस के पास करधनी इलाके में 2 मकान और अजमेर रोड पर बिचून में 15 बीघा जमीन थी. कई प्रौपर्टीज में उस ने मोटा पैसा लगा रखा था. अब वह ठेकेदारी का काम भी करने लगा था.

पड़ोसी होने के नाते उमेश व रोशनलाल के परिवार के बीच अच्छे संबंध थे. एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में भी काम आते थे. सन 2016 में उमेश और रोशनलाल सहित कालोनी के कई परिवार शिमला घूमने गए. शिमला में उमेश की निर्मला से नजदीकियां बढ़ गईं. शिमला से जयपुर लौटने के कुछ दिन बाद ही निर्मला के भाई की मौत हो गई. उस समय सांत्वना देने के लिए उमेश का पूरा परिवार कई बार निर्मला के घर गया. जनवरी 2017 में उमेश और निर्मला के बीच मोबाइल पर एसएमएस और वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग होने लगी.

कभीकभी दोनों मोबाइल पर भी बातें कर लेते थे. बाद में दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. पहले दोनों छिप कर मिलते थे. बाद में जब उन के संबंधों की चर्चा पासपड़ोस में होने लगी तो रोशनलाल को इस बात का पता चल गया. उन्होंने निर्मला को काफी भलाबुरा कहा और समझाया भी. इस के बाद दोनों परिवारों में झगड़े होने लगे. निर्मला से अवैध संबंधों को ले कर कई बार उमेश और रोशनलाल के बीच मारपीट की नौबत भी आ गई थी. बाद में नवंबर 2017 में उमेश शर्मा गणेश नगर विस्तार करधनी का अपना मकान खाली कर के मानसरोवर कालोनी में रजतपथ पर किराए के मकान में रहने लगा. उमेश ने रोशनलाल के पड़ोस का अपना मकान किराए पर दे दिया था.

उमेश भले ही रोशनलाल के मकान से 20 किलोमीटर दूर रहने लगा था, लेकिन निर्मला से उस की बातचीत होती रहती थी. इतना जरूर हुआ था कि अब निर्मला और उमेश का मिलनाजुलना कम हो गया था. फिर भी जैसे ही मौका मिलता, तब दोनों एकदूसरे से मिल लेते थे. निर्मला करती थी पति को निपटाने की बातनिर्मला जब भी उमेश से मिलती, तो उस से अपने पति रोशनलाल को रास्ते से हटाने की बात कहती थी, ताकि दोनों बिना किसी डर के एकदूसरे के साथ रह सकें. उमेश तो पहले से ही निर्मला के प्यार में अंधा हो चुका था. निर्मला के बारबार कहने पर उस ने इसी साल अप्रैल में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अपने सगे भाई राहुल शर्मा को रोशन की हत्या की जिम्मेदारी सौंप दी. राहुल ने रोशन की हत्या करवाने के लिए अपने भाई से 4 लाख रुपए लिए.

राहुल के खिलाफ उत्तर प्रदेश में मारपीट, लूट और वाहन चोरी के कई मामले दर्ज थे. राहुल ने जयपुर के जगतपुरा में टीएस टेक्सटाइल्स नाम से बैडशीट बनाने की फैक्ट्री लगा रखी थी, जिस में उसे काफी नुकसान हुआ था. वह कर्ज में डूबा हुआ था. राहुल भी पहले गणेश नगर विस्तार में ही रहता था. बाद में वह जगतपुरा में रहने लगा था.  राहुल ने रोशनलाल की हत्या के लिए उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू, पप्पू कश्यप और विष्णु कश्यप नाम के बदमाशों से संपर्क किया. संपर्क होने के बाद राहुल ने इन बदमाशों को जयपुर बुलाया. बदमाश हथियार ले कर जयपुर पहुंचे. राहुल ने 29 मई से 1 जून तक तीनों बदमाशों को जयपुर के एक होटल में ठहराया.

राहुल ने रोशल की हत्या के लिए एडवांस के तौर पर शूटर शिवकांत को 30 हजार रुपए, विष्णु को 15 हजार और पप्पू कश्यप को 10 हजार रुपए दिए थे. राहुल ने भाई उमेश से लिए 4 लाख रुपए में से बाकी पैसे अपना कर्ज चुकाने में खर्च कर दिए थे. इस दौरान राहुल ने इन बदमाशों से रोशनलाल की उन के मकान, सिटी बैंक और कोटपुतली के पास स्थित गांव के आसपास की रैकी करवाई. उमेश शर्मा इन शूटरों से फिरोजाबाद और जयपुर में तो मिला ही, रोशनलाल की रैकी में कई बार उन के साथ भी रहा.

रैकी के दौरान निर्मला अपने पति रोशन के आनेजाने की पूरी सूचना उमेश को देती रही. कई बार कोशिशों के बावजूद उत्तर प्रदेश से आए शूटरों को रोशनलाल की हत्या का मौका नहीं मिला. बाद में तीनों शूटर जयपुर से वापस चले गए. 2 सप्ताह बाद ही राहुल ने फिरोजाबाद से तीनों शूटरों को फिर जयपुर बुलाया. उन्हें 15 और 16 जून को गोपालपुरा के एक होटल में ठहराया गया. इस बार भी राहुल और उमेश ने रोशनलाल की रैकी करवाई, लेकिन शूटर अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके. इस बीच उमेश शर्मा से मुलाकात होने और कई जगह रैकी में साथ रहने के दौरान फिरोजाबाद से आए शूटरों को पता चला कि राहुल तो केवल मोहरा है.

रोशनलाल की जान तो उमेश शर्मा लेना चाहता है और उमेश काफी मोटी आसामी है, इसलिए शूटरों ने राहुल से रोशनलाल को मारने के एवज में अपनी डिमांड बढ़ा कर 15 लाख रुपए कर दी. राहुल उन दिनों कर्ज में डूबा हुआ था. रोशनलाल की हत्या की सुपारी के नाम पर वह अपने भाई उमेश से 4 लाख रुपए पहले ही ले चुका था. दूसरी ओर एकएक दिन गिन रही निर्मला लगातार उमेश पर रोशन को मरवाने के लिए दबाव बना रही थी. इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल पर रोशनलाल की जल्द से जल्द हत्या करवाने या 4 लाख रुपए वापस लौटाने का दबाव बनाया.

भाई पर दबाव बना कर उमेश उत्तराखंड चला गया. उसे उम्मीद थी कि जल्दी ही रोशनलाल का खेल खत्म हो जाएगा. इसलिए अपने बचाव के लिए वह अपने साथी महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू के साथ अल्मोड़ा में कार्यरत अपने साले आकाश रावत के पास चला गया. महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू को रोशनलाल की हत्या की साजिश और पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. वह उमेश के गांव के पास का ही रहने वाला था और दोनों भाइयों उमेश व राहुल का खास दोस्त था. उमेश ने महेंद्र प्रताप को काफी पैसा भी दे रखा था. निर्मला ने प्रेमी को दिया था उलाहना 18 सितंबर को निर्मला ने मोबाइल पर उमेश से बात कर के अभी तक काम न होने का उलाहना दिया.

इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल को रोशन की हत्या या पैसे वापस करने का अल्टीमेटम दे दिया. उन दिनों राहुल का भांजा फरीदाबाद निवासी मनीष उर्फ सनी जयपुर आया हुआ था. आखिरकार राहुल ने अपने भांजे के साथ मिल कर रोशनलाल की हत्या करने का फैसला किया. राहुल ने मनीष के साथ मिल कर 19 सितंबर की रात करीब 9 बजे फायरिंग कर के रोशनलाल की हत्या कर दी. रोशन को गोलियां मारने के तुरंत बाद राहुल ने उमेश को फोन कर के बता दिया कि रोशन को मार दिया. रोशनलाल की मौत की सूचना मिलने के बाद उमेश के साले आकाश रावत ने राहुल के बैंक खाते में 20 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए.

पुलिस ने रोशनलाल की हत्या के मामले में उस की पत्नी निर्मला यादव और उस के प्रेमी उमेश शर्मा के अलावा जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार के रहने वाले महेंद्र प्रताप ओझा उर्फ टीटू, उमेश के साले आकाश रावत और फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू को गिरफ्तार कर लिया. इन में आकाश रावत मूलत: आगरा के सिकंदरा थानांतर्गत शास्त्रीपुरम का रहने वाला था. वह आजकल उत्तराखंड में जिला ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर में रह रहा था. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई राहुल की स्कूटी उस के घर से बरामद कर ली.

पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि रोशनलाल ने लोगों को करीब 50 लाख रुपए ब्याज पर दे रखे थे. निर्मला इस रकम के साथसाथ रोशनलाल की सारी संपत्तियां लेना चाहती थी. इसलिए वह रोशन से तलाक लेने के बजाय उस की हत्या करवाना चाहती थी. उमेश ने भी रोशनलाल से मोटी रकम ब्याज पर ले रखी थी. उमेश चाहता था कि रोशनलाल मारा जाए तो पैसे नहीं चुकाने पड़ेंगे. इसलिए उस ने रोशन की मौत का सौदा किया. वह निर्मला के सामने यह दिखावा करता रहा कि वह यह सब उस के प्रेम की वजह से कर रहा है.

पत्नी के प्रेमी से शादी कराने को राजी हो गए थे रोशनलाल उमेश और निर्मला के अवैध संबंधों के बारे में रोशनलाल को सब से पहले उमेश की पत्नी ने ही बताया था. इस के दूसरे ही दिन रोशन ने घर में नया मोबाइल चार्जिंग के लिए लगा देखा तो निर्मला से पूछा. उस ने बताया कि यह मोबाइल उमेश ने दिया है. रोशन ने पत्नी से मोबाइल का लौक खुलवाया. मोबाइल में निर्मला और उमेश के बीच हुई वाट्सऐप चैटिंग देख कर रोशनलाल अपनी 2 बेटियों और 3 साल के बेटे के भविष्य और अपनी प्रतिष्ठा के कारण खून का घूंट पी कर रह गए.

निर्मला का उमेश के प्रति लगातार बढ़ा झुकाव देख कर रोशनलाल अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए उस की शादी उमेश से कराने को भी तैयार हो गए थे. पतिपत्नी कोर्ट में पहुंच भी गए, लेकिन वहां पर उमेश नहीं आया. इस के कुछ दिन बाद तक रोशन के घर में शांति रही. निर्मला उमेश से नहीं मिली लेकिन कुछ दिन बाद ही वह फिर उस से मिलने लगी. एक दिन रोशन ने दोनों को देख लिया तो निर्मला ने कहा कि उमेश ने उस के साथ जबरदस्ती की है. तब रोशन ने उस से कहा कि अगर जबरदस्ती की है तो उमेश के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज कराने चलो. निर्मला थाने पहुंच भी गई, लेकिन उमेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले ही वह बदल गई. वह आगे से उमेश से न मिलने का वादा कर के रोशनलाल को मना कर बिना रिपोर्ट दर्ज कराए घर वापस लौट आई.

इस के कुछ दिन बाद करीब एक साल पहले निर्मला अपने ढाईतीन साल के बेटे को गोद में ले कर प्रेमी उमेश के साथ भागने के लिए घर से निकल गई. निवारू रोड पर वह उमेश से मिलने के बाद अपने रिश्तेदार के घर चली गई. बाद में रोशन उसे समझाबुझा कर घर ले आए. निर्मला प्रेमी के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि वह अपने प्रेमी और उस के रिश्तेदारों के जरिए पति को धमकी भरे फोन करवाती, फिर खुद ही पड़ोसियों से जा कर कहती कि पति को कोई जान से मारने की धमकी दे रहा है. हत्या से करीब एक सप्ताह पहले निर्मला और रोशनलाल के बीच झगड़ा हुआ. मामला पुलिस तक पहुंच गया.

रोशन ने मिल रही धमकियों के बारे में पुलिस को बताया. लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से न ले कर दोनों को समझा कर घर भेज दिया. पुलिस ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि धमकियां कहां से मिल रही हैं. अगर पुलिस जांच करती तो शायद रोशनलाल आज जीवित होते. बाद में पुलिस ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के शूटर पप्पू कश्यप को भी गिरफ्तार कर लिया. पप्पू ने पुलिस को बताया कि शिवकांत के साथ उस ने और विष्णु कश्यप ने जयपुर व कोटपुतली में रोशनलाल की रैकी की थी.

उन्हें लगा कि अगर रोशन की हत्या के बाद पुलिस उन तक पहुंच गई तो वे फंस जाएंगे. इसलिए पप्पू और विष्णु कश्यप उत्तर प्रदेश में पहले से दर्ज आपराधिक मामलों में जारी वारंट की वजह से खुद ही गिरफ्तार हो गए और जमानत नहीं करवाई. कथा लिखे जाने तक इस मामले में राहुल शर्मा और उस के भांजे मनीष उर्फ सनी के अलावा एक शूटर फरार था. पुलिस इन की तलाश में जुटी थी. पुलिस ने गिरफ्तार सभी 6 आरोपियों को 30 सितंबर को अदालत में पेश कर के जेल भिजवा दिया.

यह विडंबना रही कि निर्मला को अपने बैंक मैनेजर पति के खून से हाथ रंगने के बाद भी प्रेमी नहीं मिल सका. अभी 6वीं और 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्मला की 2 बेटियां बड़ी होने के बाद भी अपनी मां को कभी माफ नहीं कर सकेंगी. और तो और निर्मला के 3 साल के अबोध बेटे से भी मां का आंचल छिन गया है.