स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 4

“चलिए सर, अंकल के हत्यारों को पकड़वाने में मैं आप की मदद करूंगा.’’ सूरज ने उठते हुए कहा. पुलिस टीम के साथ एसएचओ कोडिया कालोनी की मच्छी मार्किट में आ गए. वहां पर सीसीटीवी लगे हुए थे. उन्हें चैक किया गया तो परशुराम के साथ वे 2 लडक़े 2-3 सीसीटीवी फुटेज में नजर आ गए.

“हां सर,’’ वह फुटेज देख कर सूरज जोश में भर कर बोला, ‘‘यही दोनों लडक़े उस शाम अंकल के साथ में थे.’’

एसएचओ ने वह फुटेज ले कर उन दोनों लडक़ों की फोटो अपने खास मुखबिरों के फोन पर भेज कर उन्हें उन की तलाश में लगा दिया. पुलिस टीम भी टिकरी बौर्डर कालोनी, रेलवे ट्रैक और मच्छी मार्किट में फैल कर उन लडक़ों की तलाश करने लगी. काफी भागदौड़ के बाद भी वे लडक़े पुलिस को नहीं मिले.30 अगस्त, 2022 को एसएचओ को एक मुखबिर की काल आई. मुखबिर ने बताया कि उन्हें जो फोटो भेजे गए हैं, वे दोनों लडक़े बाबा हरिदास नगर में प्लौट नंबर 104 खसरा नंबर 31/14/1 में बैठ कर शराब पी रहे हैं.

एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय के साथ बाबा हरिदास नगर के लिए रवाना हो गए. जब वह वहां पहुंचे तो उन्हें वे लडक़े वहां बैठ कर शराब पीते हुए मिल गए. पुलिस ने घेराबंदी कर के दोनों लडक़ों को पकड़ लिया. वे दोनों घबरा गए. उन्हें पूछताछ के लिए थाने लाया गया. उन से सख्ती से पूछताछ शुरू हुई तो परशुराम की हत्या का राज खुल गया. हत्या इन्हीं लडक़ों ने की थी.

इन के नाम सोमदत्त उर्फ रवि (24 साल) बाबा हरिदास नगर, टिकरी बौर्डर, दिल्ली. दूसरे का नाम सिंहासन पासवान उर्फ सिंघम (22 साल), निवासी गांव शहबाजपुर, थाना चंदौती, जिला गया, बिहार था.

शराब बनी हत्या की वजह…

सिंहासन पासवान उर्फ सिंघम ने बताया कि वह कम पढ़ालिखा है. गलत लडक़ों की संगत में शराब की लत लग गई. 5 महीने पहले वह दिल्ली आया था, वह यहां टिकरी बौर्डर पर एक शू फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. उस का परिवार यहां बाबा हरिदास नगर कालोनी में किराए पर रहने लगा था. 2-3 महीने पहले दोस्त संतोष ने उस की दोस्ती सोमदत्त से करवाई थी. वह कुछ दिनों से फैक्ट्री नहीं जा रहा था. सोमदत्त बोलेरो चलाता था. वह उस के साथ बोलेरो में घूमने लगा. दोनों शराब पीने लगे थे, इसलिए उन्हें पैसों की जरूरत पडऩे लगी.

उन्हें पता था कि कुछ लोग रेलवे लाइन के पास खाली प्लौट में बैठ कर शराब पीते हैं और नशा होने पर वहीं लुढक़ जाते हैं. सोमदत्त और सिंहासन ने उन नशे में धुत लोगों की जेबें टटोलनी शुरू कर दीं. ऐसा कर के जो पैसा हाथ आता, उस से नशा कर लेते.

24 अगस्त की शाम को उन्हें परशुराम अंकल मिले. वह नशे में थे. उन के पास बैग भी था. मोटी मुरगी जान कर हम अंकल के पीछे लग गए. जब वह नशा कर के लेट गए तो उन की जेब टटोलने के लिए सिंहासन ने उन की जेब में हाथ डाल दिया. परशुराम को होश था, उस ने उस का हाथ पकड़ कर उठते हुए कहा, ‘‘शराब पीनी है क्या?’’

दोनों ने हां कहा तो परशुराम ने सूरज नाम के लडक़े को फोन कर के बुलाया और उसे 5 सौ का नोट दे कर शराब मंगवा ली. फिर चारों ने शराब पी. शराब पी कर सूरज चला गया तो अंकल ने हमें मच्छी बाजार में ले जा कर मच्छी के पकौड़े खिलाए और बताया कि यदि वह गोलू नाम के व्यक्ति को पीटेंगे तो उन्हें पैसे मिलेंगे. गोलू ने परशुराम को काम से निकलवाया था. गोलू को पीटने की उन दोनों ने हामी भर दी.

फिर वे दोनों परशुराम के साथ हम फैक्ट्री एरिया में आए और अरुण के ढाबे पर रुक कर गोलू का इंतजार करने लगे. गोलू 6 बजे दिखाई दिया. सोमदत्त और सिंहासन ने उस का पीछा किया लेकिन वह भीड़ में न जाने कहां गुम हो गया. इस के बाद परशुराम उन्हें फिर मच्छी बाजार ले गया. वहां ठेके से परशुराम ने शराब की बोतल खरीदी. रेलवे लाइन के पास तीनों ने शराब पी. परशुराम के नशे में होते ही सोमदत्त उर्फ रवि ने उस की जेब में हाथ डाल दिया. परशुराम ने रवि को धक्का दे दिया तब सिंहासन ने परशुराम को पकड़ कर गिरा दिया.

रवि ने उस की जेब से मोबाइल और एटीएम निकाल लिया. परशुराम से एटीएम का पिन पूछने पर उस ने नहीं बताया तो सिंहासन ने उन का गला पकड़ लिया. तब उस ने 3 नंबर 549 बताए. पूरा नंबर नहीं बताने पर सिंहासन ने उस का गला जोर से दबा दिया, जिस से उस की मौत हो गई. उस के सिर पर गिरने से चोट आ गई थी, खून बहने लगा था. दोनों युवकों ने एटीएम और बैग ले लिया. बैग में पासबुक, एक कौपी और कपड़े थे.

परशुराम के पर्स में 1020 रुपए थे और वोटर कार्ड भी. बैग उन्होंने कपड़ों सहित झाडिय़ों में फेंक दिया और पासबुक व कौपी में एटीएम का पिन तलाश किया. पिन नहीं मिलने पर उन्होंने ये चीजें और फोन चारा मंडी के पास गंदे नाले में फेंक दिया. उन दोनों ने टोल टैक्स टिकरी बौर्डर पर पंजाब नैशनल बैंक के एटीएम से रुपए निकालने की कोशिश की, लेकिन पिन पूरा न होने पर रुपए नहीं निकले. तब दोनों घर आ गए. परशुराम का सिर फटने से खून के कुछ छींटे दोनों के कपड़ों पर भी आ गए थे. घर पर उन्होंने खून लगे कपड़े धो दिए.

पुलिस ने दोनों से पूछताछ कर उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 394, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के उन को कोर्ट में पेश कर के एक दिन की रिमांड पर ले लिया गया. उन के घरों से खून सने कपड़े, झाडिय़ों से परशुराम का बैग और कपड़े तथा चारामंडी के गंदे नाले में एक व्यक्ति को उतार कर परशुराम का मोबाइल, आधार कार्ड, पैन कार्ड ढूंढ कर कब्जे में ले लिया. परशुराम का एटीएम कार्ड, बैंक की पासबुक रवि के पास घर से बरामद की गई. मृतक के पर्स में मिले 1020 रुपए दोनों ने आपस में बांट कर खर्च कर दिए थे.

दोनों की रिमांड अवधि खत्म होने के बाद कोर्ट में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 3

गोलू चिढ़ गया. उस ने जेब में से पर्स निकाला और एक हजार रुपए निकाल कर परशुराम के ऊपर फेंकते हुए कहा, ‘‘ले तेरी शराब के पैसे. मैं आज के बाद यहां नहीं आऊंगा.’’

“मत आ, तुझ से मेरी कौन सी दालरोटी चल रही है. अपना कमाता हूं, अपना खाता हूं.’’

“अब तू न कमाएगा, न खाएगा. मैं तुझे दानेदाने को मोहताज कर दूंगा.’’ गोलू गुस्से से चीखा.

“तू मुझे मोहताज करेगा?’’ परशुराम चिल्लाया और गोलू पर झपट पड़ा. थोड़ी देर में दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. यदि वहां मौजूद लोगों ने बीचबचाव न किया होता तो एकदूसरे का लहूलुहान होना लाजिमी था. गोलू गुस्से में पांव पटकता हुआ वहां से चला गया. इस के बाद वह महफिल नहीं जमी. माहौल गरम हो गया था, सभी वहां से चले गए.

उस दिन के बाद गोलू और परशुराम की बोलचाल बंद हो गई. गोलू परशुराम से खार खाने लगा था, वह मौके की ताक में था. यदि परशुराम कोई गलती करे तो वह उस से बदला ले सके. यह मौका गोलू को मिला, तब जब शराब का आदी बन गया परशुराम नशे में डूब कर कामधंधे से मुंह मोड़ कर इधरउधर पड़ा रहने लगा. वह कंपनी में कई दिनों तक काम पर नहीं गया तो गोलू ने उस के खिलाफ सुपरवाइजर को भडक़ाना शुरू कर दिया. इस का नतीजा यह निकला कि परशुराम को काम से निकाल दिया गया.

कंपनी से भी मिली खास जानकारी…

एसआई बनवारी लाल ने एसएचओ को अभी तक की गई परशुराम हत्या केस की रिपोर्ट दे दी थी. परशुराम की हत्या किस ने की और क्यों की? अभी तक यह मालूम नहीं हो सका था. एसएचओ ने अपनी जांच की शुरुआत श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी से की. एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्यायाय अपने साथ एएसआई सुंदर, हैडकांस्टेबल सीताराम, विनोद, सुरेंद्र और कांस्टेबल अनूप को ले कर श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में पहुंच गए. वहां वह गोपीनाथ से मिले.  उन्होंने उन से परशुराम की हत्या हो जाने की बात बता कर पूछा कि परशुराम क्या हत्या वाले दिन काम पर आया था?

गोपीनाथ ने चौंकते हुए कहा, ‘‘सर, आप से ही मुझे मालूम चल रहा है कि परशुराम की हत्या हो गई है. जबकि परशुराम को मैं ने अपनी कंपनी से 22 अगस्त को ही पूरा हिसाब कर के काम से निकाल दिया था.’’

“क्यों?’’ एसएचओ ने हैरानी से पूछा.

“सर, परशुराम हमारे यहां हेल्पर का काम करता था. पिछली 27 जुलाई, 2022 से वह मैनेजर को बिना बताए, बिना सूचना दिए अपनी ड्ïयूटी से गैरहाजिर था. उसे पहले भी इस संबंध में हिदायत दी गई थी और उसे 16 अगस्त, 2022 को एक  लिखित पत्र दिया गया था कि पत्र मिलने के बाद अगर तुम 48 घंटे में काम पर नहीं आए तो तुम्हारे ऊपर अनुशासनात्मक कानूनी काररवाई की जाएगी और नौकरी से भी निकाल दिया जाएगा.

“यह पत्र मिलने के बाद भी परशुराम काम पर नहीं आया तो मैं ने 22 अगस्त को उस का पूरा हिसाब 1,01,995 रुपए का कर के ये रुपए उस के यूनियन बैंक एकाउंट में ट्रांसफर कर दिए. यह बैंक टिकरी कलां बौर्डर पर स्थित है.’’

“उस का एकाउंट नंबर आप के पास था?’’ एसएचओ ने पूछा.

“जी हां, हम अपने सभी वर्कर्स का एकाउंट नंबर अपने पास रखते हैं, ताकि ऐसी परिस्थितियों में उन का हिसाब बैंक द्वारा कर दिया जाए.’’

“मुझे परशुराम का वह एकाउंट नंबर नोट करवाइए. मैं देखना चाहूंगा कि कहीं इन्हीं रुपयों के लिए तो उस की हत्या नहीं कर दी गई.’’ गोपीनाथ ने परशुराम का एकाउंट नंबर एसएचओ को लिख कर दे दिया.

एसएचओ वहां से लौट कर थाने पहुंचे तो परशुराम के पिता बिहारीलाल और बेटा मुकेश कुमार थाने में मिले. एसआई बनवारी लाल दोनों को सब्जीमंडी की मोर्चरी में ले कर गए. दोनों को परशुराम की लाश दिखाई गई तो उन्होंने उस की पहचान कर दी. इस के बाद परशुराम की लाश पोस्टमार्टम के लिए डाक्टर को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम होने के बाद परशुराम की लाश को उस के पिता बिहारीलाल व बेटे मुकेश के हवाले कर दिया गया ताकि वे उस का अंतिम संस्कार कर सकें.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुई हत्या की पुष्टि…

पोस्टमार्टम में परशुराम की मौत का कारण गला दबाना, उस के सिर में मारी गई चोट को दर्शाया गया. साक्ष्य के तौर पर परशुराम का विसरा, ब्लड सैंपल, उस के हाथों के नाखून, उस के पहने हुए कपड़े को सीलमोहर कर के पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया था. एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय ने परशुराम के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस से पता चला कि उस के द्वारा 840934xxxx पर 24 जुलाई, 2022 को आखिरी काल की गई थी. यह नंबर मिला कर बात की गई तो किसी सूरज कुमार ने काल अटेंड कर के अपना नाम पता बताया. थानाप्रभारी ने उसे थाने में आने का आदेश दे दिया. सूरज कुमार थाने में आ गया.

“तुम परशुराम सिंह को पहचानते हो?’’ एसएचओ ने सूरज कुमार के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

“जी हां, मैं उन्हें अंकल कहता हूं.’’

“उन के फोन से तुम्हें 24 जुलाई को शाम को काल की गई थी. परशुराम ने तुम्हें क्यों काल की थी?’’

“सर, उन्होंने मुझ से पूछा था कि मैं क्या कर रहा हूं तो मैं ने बताया था कि क्रिकेट खेलने जा रहा हूं. उन्होंने मुझे आ कर मिलने को कहा तो मैं मिलने चला गया. उन के साथ 2 लडक़े थे. अंकल ने मुझे शराब, पानी और गिलास लाने के लिए 500 रुपए दिए. मैं 4 गिलास, पानी और शराब ले कर आया तो हम ने रेलवे लाइन पर बैठ कर शराब पी. इस के बाद अंकल उन लडक़ों के साथ कोडिय़ा कालोनी मच्छी मार्किट की तरफ चले गए. फिर रात को करीब 8 बजे फिर अंकल की काल आई तो मैं ने काल रिसीव की. उन्होंने कहा कि काल गलती से लग गई है. मैं फिर अपने पिता, भाई के साथ खाना खा कर सो गया.’’

“परशुराम यानी तुम्हारे अंकल की किसी ने हत्या कर दी है, क्या यह बात तुम जानते हो?’’ सूरज के चेहरे पर नजरें जमा कर थानाप्रभारी ने पूछा. सूरज चौंक कर बोला, ‘‘क्या अंकल को किसी ने मार डाला?’’

“हां, हमें उन 2 लडक़ों पर शक है जो 24 अगस्त की शाम को तुम्हारे अंकल के साथ थे. क्या तुम उन्हें जानते हो?’’

“नहीं सर. मैं ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा, लेकिन वे सामने आ जाएं तो मैं उन्हें पहचान सकता हूं.’’

“तुम हमारे साथ मच्छी मार्किट चलो, वहां पर सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे. उन्हें हम चैक करेंगे. हो सकता है, वे उन कैमरों में कैद हो गए हों?’’

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 3

शिखा ने डा. सोनी को बारबार फोन कर बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं डिप्रेशन में हूं. यहां अकेली रहूंगी तो कुछ भी हो सकता है. शिखा ने डाक्टर को इस तरह छोड़ कर चले जाने पर कई तरह के उलाहने भी दिए, साथ ही कहा भी कि अभी पुष्कर आ कर उसे वापस ले चले. शिखा के उलाहनों से तंग आ कर डा. सोनी उसी रात अपनी गाड़ी ले कर पुष्कर गए. वहां रिसौर्ट के कमरे में ठहरी शिखा ने डा. सोनी पर ऐसा जादू चलाया कि वह रात को उसी के कमरे में ठहर गए. इस के अगले दिन डा. सोनी जयपुर आ गए.

2 दिन बाद अक्षत शर्मा व विजय उर्फ सोनू शर्मा डा. सुनीत सोनी के पास पहुंचे. दोनों ने खुद को मीडियाकर्मी बताया और टीवी चैनलों पर खबर चलाने की धमकी दी. उन्होंने शिखा से उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे. लेकिन डा. सोनी ने उन्हें रुपए देने से इनकार कर दिया. इस पर गिरोह के सरगना वकीलों ने शिखा से डा. सुनीत सोनी के खिलाफ अजमेर जिले के पुष्कर थाने में भादंसं की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुष्कर थाना पुलिस ने इस मामले में डा. सुनीत सोनी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद गिरोह ने शिखा से समझौता करने के नाम पर डा. सोनी के पिता व भाई से एक करोड़ रुपए वसूल लिए. रकम लेने के बाद गिरोह के सदस्यों ने अदालत में शिखा के बयान बदलवा दिए. डा. सुनीत सोनी को बलात्कार के इस झूठे मुकदमे में 78 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. उस समय डा. सुनीत सोनी ने जयपुर के वैशालीनगर थाने में लिखित शिकायत भी दी थी, लेकिन पुलिस  ने उस समय कुछ नहीं किया था.

बाद में जब एसओजी को जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली तो इस गिरोह से पीडि़त डा. सुनीत सोनी ने एसओजी में लिखित शिकायत दी. डा. सोनी की शिकायत पर जांचपड़ताल के बाद एसओजी ने 24 दिसंबर, 2016 को इस हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले गिरोह का खुलासा किया. एसओजी ने उस दिन सब से पहले 2 लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में ही एसओजी को गिरोह में शामिल युवतियों के बारे में पता चला. इन में शिखा तिवाड़ी के अलावा एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी, उत्तराखंड की युवती कल्पना और अजमेर की आकांक्षा आदि के नाम सामने आए.

गिरोह की पकड़धकड़ शुरू होेने पर शिखा तिवाड़ी जयपुर से भाग कर मुंबई चली गई. मुंबई में वह डीजे अदा के नाम से म्यूजिकल ग्रुप बना कर होटल, नाइट क्लब व बार में प्रोग्राम करने लगी. मुंबई पहुंच कर उस ने अपने पुराने मोबाइल नंबर बंद कर दिए थे और फेसबुक आईडी भी बदल ली थी.

मुंबई में वह अपने बौयफ्रैंड के साथ लोखंडवाला बैंक रोड, अंधेरी (वेस्ट) की एक बिल्डिंग में किराए के फ्लैट में रहती थी. मुंबई में रहते हुए उस के बौयफ्रैंड के इवेंट मैनेजर दोस्त ने शिखा से यह कह कर ढाई लाख रुपए ऐंठ लिए थे कि जयपुर में पुलिस अफसरों से उस की सेटिंग है, वह उस का नाम ब्लैकमेलिंग मामले में नहीं आने देगा.

बाद में जब शिखा को पता चला कि उस का नाम एसओजी थाने में दर्ज मुकदमे में है तो उस ने उस इवेंट मैनेजर से संपर्क किया. इस के बाद इवेंट मैनेजर भूमिगत हो गया. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह ने शिखा तिवाड़ी को डा. सुनीत सोनी को ब्लैकमेल करने के लिए पहले 10 लाख रुपए दिए थे, लेकिन बाद में उस से 5 लाख रुपए वापस ले लिए थे. बाकी रकम गिरोह के सदस्यों ने आपस में बांट ली थी.

गिरोह के पुरुष सदस्यों के अलावा महिला सदस्यों में सब से पहले एसओजी के हाथ कल्पना लगी. इस के बाद एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी भी एसओजी की गिरफ्त में आ गई. शिखा तिवाड़ी उर्फ डीजे अदा की मुंबई से हुई गिरफ्तारी के समय तक हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले 4 गिरोहों के 32 अभियुक्तों को एसओजी गिरफ्तार कर चुकी थी. इन में कई वकील, फर्जी पत्रकार, पुलिसकर्मी व बिचौलिए भी शामिल थे.

शिखा के पकड़े जाने के बाद उस से पूछताछ में ब्लैकमेलिंग गिरोह की एक और महिला सदस्य आकांक्षा का पता चला. एसओजी ने 16 मई को अजमेर के क्रिश्चियन गंज, माली मोहल्ला की रहने वाली 25 वर्षीया आकांक्षा को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय का कहना है कि आकांक्षा ब्लैकमेलिंग की कई वारदातों में शामिल रही है.

आकांक्षा ने जयपुर से एमबीए की पढ़ाई की थी. एमबीए की पढ़ाई के दौरान वह जयपुर में सिरसी रोड पर एक अपार्टमेंट में रहने लगी थी, तभी उस की पहचान अक्षत शर्मा से हुई थी. अक्षत ब्लैकमेलिंग के मामलों में आकांक्षा का भी सहयोग लेता था. अक्षत शर्मा पहले ही गिरफ्तार हो चुका था. अक्षत ने अपने साथियों की मदद से एक सैन्यकर्मी के फ्लैट पर भी कब्जा कर लिया था. करणी विहार में सिरसी रोड पर स्थित एक फ्लैट का सौदा 45 लाख रुपए में हुआ था, लेकिन अक्षत ने केवल 5 लाख रुपए दे कर अपने साथियों की मदद से उस फ्लैट पर कब्जा कर लिया था.

शिखा व आकांक्षा की गिरफ्तारी के बाद एसओजी ने अक्षत के सामने दोनों को बैठा कर पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि अक्षत व आकांक्षा ने करीब 20 लोगों को अपने जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया था. अक्षत ही आकांक्षा का खर्चा उठाता था. अक्षत ने आकांक्षा को एक फ्लैट व कार गिफ्ट की थी. एसओजी थाने में अक्षत के खिलाफ पांचवां मामला सैन्यकर्मी के फ्लैट पर कब्जे का दर्ज किया गया. आकांक्षा भी गिरोह की गिरफ्तारी शुरू होने पर जयपुर छोड़ कर अजमेर चली गई थी.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि जयपुर में चल रहे हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोहों ने ढाई साल में 45 लोगों से करीब 20 करोड़ रुपए वसूले थे.

कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 2

दुकान का मालिक नित्यानंद ठाकुर था. एसआई ने उसे मृतक के फोटो और उस के कपड़ों पर लगे स्टीकर के फोटो दिखा कर पूछा, ‘‘ये कपड़े तुम्हारी दुकान से सिलवाए गए हैं. बता सकते हो यह व्यक्ति कौन है?’’

“साहब, मेरी दुकान पर कितने ही लोग कपड़े सिलवाने आते हैं. मैं हर किसी का चेहरा याद नहीं रख सकता. कुछ खास लोग मेरी पहचान के होते हैं, उन के बारे में बता सकता हूं.’’

“कपड़े तो तुम्हारे यहां ही सिले गए हैं.’’

“हां साहब, स्टीकर मेरा लगा है तो जाहिर है, ये कपड़े मेरी दुकान से ही सिले गए हैं. ठहरिए साहब.’’ एकाएक कुछ याद आने पर ठाकुर ने कहा, ‘‘मैं ग्राहक को दी गई बिल का रिकौर्ड चैक कर लेता हूं, शायद इस पैंटशर्ट की डुप्लीकेट बिल मिल जाए.’’

“देखो,’’ एसआई ने कहा.

टेलर नित्यानंद ने रिकौर्ड में रखी बिलबुकें निकाल कर उन्हें चैक करना शुरू किया तो एक बिल के साथ मृतक की पहनी पैंटशर्ट की कपड़े की कतरन अटैच्ड की हुई मिल गई. उस बिल पर पैंटशर्ट सिलवाने वाले व्यक्ति का फोन नंबर लिखा हुआ था. नित्यानंद ने वह नंबर 7838937929 एसआई को नोट करवा दिया.

फोन नंबर से मिली सफलता…

एसआई ने यह नंबर अपने मोबाइल से डायल किया लेकिन दूसरी ओर से फोन के स्विच्ड औफ होने का रिकौर्ड सुनाई दिया. एसआई बनवारी लाल ने इस नंबर की काल डिटेल्स हासिल की. उस का अध्ययन करने के बाद इस में दिल गए एक नंबर 906099xxxx पर काल लगाया.

दूसरी ओर से किसी महिला की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो, कौन?’’

“मैं सराय रोहिल्ला थाने से एसआई बनवारी लाल बात कर रहा हूं, मुझे एक नंबर की जांच करनी है. मैं वह नंबर बता रहा हूं, नोट कर के बताओ यह नंबर किसका है?’’

“ज…जी,’’ दूसरी ओर वह महिला पुलिस का नाम सुन कर घबरा गई थी. वह डरते हुए बोली, ‘‘आप नंबर बताइए.’’

एसआई ने टेलर नित्यानंद से मिला नंबर उस महिला को बताया तो वह तुरंत बोली, ‘‘साहब, यह नंबर तो मेरे पति का है.’’

“ठीक है,’’ बनवारी लाल इस मिली सफलता पर खुश होते हुए बोले, ‘‘मुझे अपना नामपता बताओ, तुम से मिलना मेरे लिए बहुत जरूरी है.’’

“साहब, मेरा नाम रिंकू है. मैं इस समय अपनी ससुराल गांव सामरी, जिला रोहताश, बिहार में हूं. मेरे पति दिल्ली में टिकरी बौर्डर की बाबा हरिदासनगर कालोनी में रहते हैं. उन का पता मैं नहीं जानती.’’

“अपने पति का नाम बताओ.’’

“परशुराम सिंह है उन का नाम,’’ रिंकू ने बताते हुए पूछा, ‘‘लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं साहब?’’

एसआई बनवारी लाल ने रिंकू को परशुराम की लाश रेलवे ट्रैक पर मिलने और इस समय उस का शव सब्जीमंडी, दिल्ली की मोर्चरी में रखे होने की जानकारी दे कर तुरंत फोन काट दिया. वह जानते थे कि पति की मौत की खबर सुन कर रिंकू रोने लगेगी. वह किसी स्त्री का रुदन जो किसी भी मजबूत इंसान के दिल को भी झकझोर सकता है, इसलिए नहीं सुनना चाहते थे.

मृतक के नाम और उस के पैतृक गांव का पता एसआई बनवारी लाल को लग गया था. अभी यह मालूम नहीं हो सका था कि परशुराम टिकरी बौर्डर की बाबा हरिदास कालोनी में कहां रहता है, यह मालूम करने के बाद ही जांच को सही दिशा मिल सकती थी. एसआई बनवारी लाल हैडकांस्टेबल सोनू के साथ परशुराम मर्डर केस की सच्चाई जानने के लिए बाबा हरिदास नगर कालोनी में पहुंच गए.

उन्होंने वहां चाय की दुकान और ढाबों पर परशुराम सिंह की डेडबौडी के फोटो दिखा कर उस का सही ठिकाना मालूम करना शुरू किया. एक ढाबे पर उन्हें 2 व्यक्ति मिले, जिन्होंने परशुराम की डेडबौडी की फोटो देख कर उस की पहचान परशुराम सिंह पुत्र बिहारी सिंह, गांव सामरी, टोला कवाई, जिला रोहताश, बिहार के रूप में कर दी. एसआई बनवारी लाल को इन्होंने यह भी बताया कि परशुराम सिंह की उम्र लगभग 40 साल की थी और यह टिकरी कलां बौर्डर एरिया में श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में हेल्पर का काम करता था.

इन के नाम कमलेश गांव सामरी, टोला कवाई, जिला रोहताश, बिहारी और विद्यासागर गांव कल्याणी, थाना दिसपुरा, जिला रोहताश, बिहार थे, इन्हें एसआई बनवारी लाल ने जांच में शामिल कर के इन के बयान सीआरपीसी की धारा 161 में दर्ज कर के इन्हें बुलाए जाने पर हाजिर होने को कह कर जाने दिया.

दिल्ली में मिल गई नौकरी…

बिहार के रोहताश जिले का एक गांव है सामरी, टोला कवाई. इस का थाना दवात पड़ता है. इसी गांव में बिहारी सिंह रहता था. परशुराम सिंह उसी का बेटा था. गांव में खेलकूद कर परशुराम जवान हुआ तो गांव के कुछ युवकों के साथ वह काम की तलाश में दिल्ली चला आया. यहां बिहार के बहुत सारे लोग आ कर कोई न कोई काम कर रहे थे. उन के सहयोग से परशुराम को श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में काम मिल गया.

यह कंपनी टिकरी कलां बौर्डर एरिया में थी. परशुराम ने इस कंपनी में हेल्पर की नौकरी मिल जाने के बाद उस ने छोटूराम नगर, रेल लाइनपार, बहादुरगढ़ में एक कमरा किराए पर ले लिया. वह बहुत पैसों वालों के घर से नहीं था, पिता गांव में मजदूरी करते थे. परशुराम दिल्ली में रह कर ज्यादा से ज्यादा रुपया कमाना चाहता था ताकि मांबापको उस का सहारा मिल सके.

वह कंपनी में मन लगा कर काम करने लगा. तनख्वाह मिलती तो उस में से अपने खाने और कमरे का किराया निकाल कर शेष रुपए वह गांव भेज देता. यहां वह एक ढाबे में खाना खाता था, उस के पिता बिहारीलाल ने बेटे की परेशानी भांप कर उस की शादी रिंकू नाम की सजातीय युवती से कर दी. शादी के लिए परशुराम गांव गया और शादी के बाद पत्नी के साथ 10-12 दिन बिता लेने के बाद वापस दिल्ली लौट आया.

अब वह महीने में एकदो दिन के लिए गांव जाता और खर्च दे कर वापस लौट आता था. पत्नी रिंकू उस के साथ चलने की जिद करती तो उसे समझा देता, ‘मां बूढ़ी हो गई हैं, मुझ से ज्यादा उन्हें तुम्हारी जरूरत है. सही मौका आएगा तो मैं तुम्हें साथ ले चलूंगा.’ रिंकू मन मार कर रह जाती.

समय गुजरता गया. परशुराम की धीरेधीरे आसपड़ोस और कंपनी में अच्छी पहचान बन गई, कुछ दोस्त ऐसे भी बन गए तोखानेपीने का शौक रखते थे. परशुराम की उन के साथ बैठकें जमने लगीं. इन्हीं में एक दोस्त था गोलू, यह भी श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में काम करता था. गोलू कभी दारू के लिए अपना पैसा खर्च नहीं करता था. परशुराम ही शराब और खाने का खर्च उठाता था. एक दिन इसी बात पर गोलू से परशुराम उलझ गया. उस दिन महफिल जमी तो परशुराम ने 3 दोस्तों के गिलास भरे, गोलू का गिलास नहीं भरा.

“ऐ, मेरे गिलास में शराब क्यों नहीं डाल रहे हो तुम?’’ गोलू ने हैरानी से पूछा.

“यहां मुफ्त की शराब नहीं मिलती,’’ परशुराम ने व्यंग्य कसा.

“क्या कहा?’’ गोलू गुर्राया, ‘‘तुम मुझे मुफ्तखोर समझ रहे हो. बोल, तुम ने कितने की बोतल मंगवाई है?’’

“इस बोतल की बात मत कर, आज तक तू मुफ्त में ही पीता आया है, तूने कब पैसे खर्च किए हैं. हिसाब करना है तो उन सभी बोतलों का कर.’’ परशुराम ने कहा.

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 2

दरअसल, मई के पहले सप्ताह में राजस्थान की एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन को सूचना मिली थी कि दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज कराने की धमकी दे कर लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठने वाले हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की सदस्या शिखा तिवाड़ी उर्फ अंकिता उर्फ डीजे अदा आजकल मुंबई में है. मुंबई में वह बड़े होटलरेस्त्राओं में डिस्को जौकी (डीजे) का काम करते हुए लाइव कंसर्ट देती है.

जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह का खुलासा होने के बाद शिखा तिवाड़ी दिसंबर, 2016 में फरार हो गई थी. एसओजी लगातार उस की तलाश कर रही थी. लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. एक दिन एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. को फेसबुक के माध्यम से पता चला कि शिखा तिवाड़ी ने आजकल डीजे अदा के नाम से मुंबई में अपना म्यूजिकल ग्रुप बना रखा है. वह डीजे अदा के नाम से ही मुंबई में रह रही है.

एसओजी को डीजे अदा की ओर से फेसबुक पर पोस्ट की गई उस की लाइव कंसर्ट की फोटो भी मिल गई. इन फोटो से तय हो गया कि शिखा तिवाड़ी ही डीजे अदा है. इस के बाद आईजी ने डीजे अदा की तलाश में जयपुर से अपने तेजतर्रार मातहतों की एक टीम मुंबई भेजी. इस टीम ने कई होटलरेस्त्राओं में पूछताछ के बाद पता लगाया कि डीजे अदा कहांकहां प्रोग्राम करती है. इस के बाद जयपुर से गई एसओजी की टीम ने 14 मई की रात मुंबई से अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी को पकड़ लिया.

शिखा तिवाड़ी को एसओजी की टीम जयपुर ले आई. शिखा से की गई पूछताछ और दिसंबर, 2016 में जयपुर में उजागर हुए हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की जांचपड़ताल के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई, वइ इस तरह थी—

दिसंबर 2016 में एसओजी को हत्या के एक मामले में गिरफ्तार आरोपी से पूछताछ में पता चला था कि जयपुर में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करता है. इस गिरोह में कुछ वकील, पुलिस वाले, प्रौपर्टी व्यवसाई और फर्जी पत्रकार शामिल हैं. यह गिरोह खूबसूरत युवतियों की मदद से रईस लोगों को ब्लैकमेल करता है.

इस गिरोह के लोग पहले रईस लोगों को चिह्नित करते हैं, फिर उन्हें फांसने के लिए उन की दोस्ती गिरोह की खूबसूरत लड़कियों से कराते हैं. इस दोस्ती के लिए ये लोग फार्महाउस पर सेलीब्रेशन के नाम पर पार्टियां आयोजित करते हैं. इन छोटी पार्टियों में पीनेपिलाने का दौर भी चलता है. गिरोह की लड़कियां इन पार्टियों में अपना मोबाइल नंबर दे कर अपने शिकार का नंबर लेती हैं. इस के बाद उन का मुलाकातों का दौर शुरू होता है.

जल्दीजल्दी की कुछ मुलाकातों में ये युवतियां अपने शिकार को अपनी सुंदरता के मोहपाश में इस तरह बांध लेती हैं कि वह उस के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़पने लगते हैं. शिकार को तड़पा कर ये युवतियां हमबिस्तर होने का कार्यक्रम तय करती हैं. इस के लिए वे कई बार जयपुर से बाहर भी जाती हैं. रईसों के साथ हमबिस्तर होते समय गिरोह के सदस्य युवती की मदद से या तो गुप्त कैमरे से या मोबाइल से क्लिपिंग बना लेते हैं. अगर इस में वे सफल नहीं होते तो युवतियां हमबिस्तर होने के बाद अपने अंतर्वस्त्र सुरक्षित रख लेती हैं. इस के बाद उस रईस को धमकाने का काम शुरू होता है. सब से पहले युवतियां अपने उस रईस शिकार को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की धमकी देती हैं.

अधिकांश मामलों में युवतियां पुलिस में शिकायत दे भी देती हैं. इस के बाद फर्जी पत्रकार व वकील का काम शुरू होता है. वे उस रईस को बदनामी का डर दिखा कर समझौता कराने की बात करते हैं. जरूरत पड़ने पर बीच में पुलिस वाले भी आ जाते हैं. रईस अपनी इज्जत बचाने के लिए उन से सौदा करता है. रईस की हैसियत देख कर 10-20 लाख रुपए से ले कर एक करोड़ रुपए तक मांगे जाते हैं. गिरोह के लोग उस शिकार पर दबाव बनाए रखते हैं. आखिर शिकार बने व्यक्ति को सौदा करना पड़ता है.

यह गिरोह खासतौर से जयपुर सहित राजस्थान के बड़े शहरों के नामचीन प्रौपर्टी व्यवसायियों व बिल्डरों, मोटा पैसा कमाने वाले डाक्टरों, ज्वैलर्स, होटल-रिसौर्ट संचालक और ठेकेदार आदि को अपना शिकार बनाता है. इस काले धंधे में एक एनआरआई युवती भी शामिल है.

ये लोग गिरोह की युवती को प्लौट या फ्लैट खरीदने के बहाने प्रौपर्टी व्यवसाई अथवा बिल्डर के पास भेजते हैं और उसे फंसा लेते हैं. इसी तरह लड़कियों को होटल और रिसौर्ट संचालकों के पास नौकरी के बहाने भेजा जाता है. डाक्टर के पास इलाज कराने के बहाने युवतियों को भेजा जाता था. सौदा होने के बाद युवती और उस के गिरोह के सदस्य स्टांप पर लिख कर दे देते थे कि दुष्कर्म नहीं हुआ था.

शिखा तिवाड़ी जयपुर में गुरु की गली, सीताराम बाजार, ब्रह्मपुरी के रहने वाले आदित्य प्रकाश तिवाड़ी की बेटी थी. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सदस्य अक्सर डिस्को बार में जाते थे. वहीं शिखा की मुलाकात अक्षत शर्मा से हुई. अक्षत ने शिखा को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. इस गिरोह ने जयपुर के वैशालीनगर में मेडिस्पा नाम से हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक चलाने वाले डा. सुनीत सोनी को अपने शिकार के रूप में चिह्नित किया. योजनाबद्ध तरीके से शिखा तिवाड़ी को हेयर ट्रीटमेंट कराने के बहाने डा. सुनीत सोनी के पास उन के क्लीनिक पर भेजा गया.

अप्रैल, 2016 में 2-4 बार इलाज के नाम  पर आनेजाने के दौरान शिखा ने डा. सोनी को अपने रूप के जाल फांस लिया. एक दिन उस ने डा. सोनी को बताया कि वह डिप्रेशन में आ गई है. शिखा ने डा. सोनी से कहा कि वह पुष्कर जा कर 2-4 दिन घूमना चाहती है, ताकि डिप्रेशन से बाहर आ सके. शिखा ने डाक्टर से कहा कि वह डिप्रेशन की स्थिति में अकेली पुष्कर नहीं जाना चाहती. जबकि साथ जाने के लिए कोई नहीं है. उस ने डा. सोनी पर घूमने के लिए पुष्कर चलने का दबाव डाला.

डा. सोनी जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपने डाक्टरी पेशे में पेशेंट की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह शिखा के साथ पुष्कर घूमने जाने को तैयार हो गए. डा. सोनी के तैयार हो जाने के बाद शिखा ने गिरोह के सरगना की सलाह पर डा. सुनीत सोनी से पुष्कर के एक रिसौर्ट में कमरा बुक करवा लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार, शिखा व डा. सोनी कार से पुष्कर चले गए. डा. सोनी शिखा को पुष्कर के रिसौर्ट में छोड़ कर उसी शाम जयपुर लौट आए. उन के जयपुर लौट जाने से शिखा को अपना मकसद पूरा होता नजर नहीं आया.

स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 1

रात के करीब सवा 11 बजे थे. उत्तरी दिल्ली के सराय रोहिला थाने के रिसैप्शन काउंटर पर रखे फोन की घंटी बजी, जिसे वहां मौजूद हैडकांस्टेबल राजेश कुमार ने उठाया. यह फोन कंट्रोलरूम से किया गया था. कंट्रोलरूम से बताया गया कि आरपीएफ के कंट्रोलरूम से पुलिस को यह बताया गया है कि बहादुरगढ़ और घेवरा रेलवे लाइन के बीच में एक व्यक्ति की डेडबौडी पड़ी हुई है. यह डेडबौडी पोल नंबर 26/8-10 डाउन लाइन रेलवे ट्रैक निजामपुर फाटक के आसपास में है, जा कर मुआयना किया जाए.

सूचना लाश के संबंध में थी, इसलिए इसे केस डायरी में दर्ज करने के बाद ड्ïयूटी पर मौजूद एसआई बनवारी लाल को घटना की जानकारी दी गई. वह तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने औन ड्यूटी हैडकांस्टेबल सोनू को फोन कर के निजामपुर फाटक पहुंचने की हिदायत दे दी. निजामपुर फाटक पहुंचने पर एसआई बनवारी लाल को हैडकांस्टेबल सोनू और आरपीएफ नागलोई के एएसआई सूरजभान मिल गए. तीनों पोल नंबर 26/8 के पास पहुंचे तो वहां से 12-13 फुट पहले एक व्यक्ति की लाश रेलवे लाइन के बीच में पड़ीहुई मिल गई.

लाश का सिर बहादुरगढ़ साइड में और उस के पैर दिल्ली साइड पर थे. उस व्यक्ति की उम्र करीब 40-45 साल के आसपास थी. एएसआई सूरजभान आरपीएफ ने लाश की फोटो अपने मोबाइल से खींचने के बाद दिल्ली पुलिस के हैडकांस्टेबल सोनू की मदद से लाश को रेलवे ट्रैक से हटा कर वहां से थोड़ी दूर जमीन पर रख दिया ताकि ट्रैक पर रेलगाडिय़ों को सुचारू रूप से चलाया जा सके.

एसआई बनवारी लाल ने उस लाश का निरीक्षण किया. मृतक के शरीर पर ग्रीन ब्राउन रंग की चैकदार फुल बाजू की शर्ट थी और उस ने काले रंग की पैंट पहन रखी थी, जिस पर एसएनटी का टैग लगा हुआ था. शर्ट के नीचे अमूल कोंफी की बनियान और माइक्रोमैन मार्का का अंडरवियर था.शव के पैरों में काले रंग की सैंडल थी, जिन पर लाल रंग से एसएस लिखा हुआ था. उस के दाहिने हाथ में स्टील का कड़ा और लाल रंग का कलावा था. मृतक का मुंह खुला हुआ था, उस के ललाट पर और गले पर चोट के निशान थे.

एसआई ने लाश को पलट कर देखा, उस के सिर के पिछले हिस्से में घाव था, वहां से खून रिस रहा था. ऐसा लग रहा था कि इसी घातक चोट की वजह से इस की मौत हो गई है. यह स्पष्ट था कि इस व्यक्ति की किसी ने हत्या कर दी है.

एसआई बनवारी लाल ने इस हत्या की सूचना फोन द्वारा एसएचओ सराय रोहिल्ला बाला शंकर मणि उपाध्याय को दे दी. उन्होंने डीसीपी (रेलवे) हरिंदर कुमार और एसीपी (रेलवे) प्रवीण कुमार को इत्तला देने के बाद थाने में अपनी रवानगी दर्ज की और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वह अपने स्टाफ के साथ मौके पर पहुंचे. एसआई बनवारी लाल ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम और फोटोग्राफर घटनास्थल पर बुलवा लिए थे. यह क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम रोहिणी से आई थी.

दुर्घटना दिखाने के लिए डाला रेल लाइनों में…

प्रारंभिक जांच में ऐसा लग रहा था कि इस व्यक्ति को कहीं दूसरी जगह मारा गया है, और लाश को यहां रेलवे ट्रैक पर ला कर इस मकसद से डाला गया है कि यहां से गुजरने वाली ट्रेन से लाश कट जाए तो देखने वालों को यही लगे कि यह व्यक्ति रेल से कट कर मर गया है. अब लाश की पहचान करना शेष थी. रात होने के कारण यहां पुलिस और क्राइम टीम के अलावा आरपीएफ के एसआई सूरजभान ही मौजूद थे. इन में से कोई भी इस व्यक्ति को नहीं पहचानता था. जगह सुनसान थी, आसपास कोई बस्ती नजर नहीं आ रही थी.

फोटोग्राफर एएसआई रणवीर व क्राइम टीम रोहिणी जिले के एसआई राजेश कुमार को इस तफ्तीश में शामिल दिखा कर एक एफआईआर कापी तैयार की गई. इस के बाद इन्हें वहां से वापस भेज कर हैडकांस्टेबल हनुमान की कस्टडी में लाश को सब्जीमंडी की मोर्चरी में भिजवा दिया गया. यह बात 24 अगस्त, 2022 की है. दूसरे दिन एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय ने पुलिस टीम के साथ दोबारा घटनास्थल पर जा कर वहां का बारीकी से निरीक्षण किया. वहां कोई ऐसा साक्ष्य मौजूद नहीं था, जिस से मृत व्यक्ति की पहचान हो पाती.

थोड़ी दूरी पर बाबा हरीदास नगर कालोनी, कोडिय़ा कालोनी चौक व एमआईए टिकरी कलां एरिया पड़ता था. एसएचओ के साथ आए एसआई बनवारी लाल, हैडकांस्टेबल राजेश, सोनू व हनुमान सहाय ने बाबा हरीदास नगर कालोनी, कोडिय़ा कालोनी चौक व एमआईए टिकरी कलां एरिया में मृतक की फोटो दिखा कर उस की पहचान करने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. उस व्यक्ति को वहां कोई पहचान नहीं सका. पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने के लिए सब से पहले मृतक की पहचान कर लेना जरूरी होता है.

इस के बाद पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने में आसानी होती है. एसएचओ साहब ने उच्चाधिकारियों को इस ब्लाइंड मर्डर केस की जानकारी दे दी थी. डीसीपी (रेलवे) हरिंदर कुमार ने यह मामला सुलझाने के लिए एसीपी (रेलवे) प्रवीण कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय, एसआई बनवारी लाल, एएसआई सुंदरलाल, हैडकांस्टेबल राजेश कुमार, सोनू, हनुमान सहाय, सीताराम, विनोद, सुंदर और अनूप को शामिल किया गया. सभी इस ब्लाइंड केस की गुत्थी सुलझाने में लग गए. एसआई बनवारी लाल को जांच आगे बढ़ाने के लिए एक युक्ति सुझाई दे गई.

शर्ट के स्टीकर से शुरू की जांच…

मृतक के कपड़ों का उन्होंने मुआयना किया था. उन्होंने उस के शरीर पर पहनी शर्ट के कालर पर लगा हुआ टेलर के नाम का स्टीकर भी देखा था. पहने हुए कपड़े पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए थे. एसआई ने वह कपड़े मंगवा कर शर्ट पर लगे टेलर के नाम का स्टीकर ध्यान से देखा. स्टीकर एस.एन. टेलर, डी-41 टिकरी बार्डर के नाम से था. एसआई बनवारी ने इस केस की जांच इसी स्टीकर से आगे बढ़ाने का निश्चय कर लिया. अपने साथ हैडकांस्टेबल सोनू को ले कर वह टिकरी बौर्डर में टेलर की दुकान की खोज में निकले. डी-41 के पते पर उन्हें एस.एन. टेलर की दुकान मिल गई.

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 1

मुंबई के बारे में कहावत है कि यह शहर कभी नहीं सोता. दिन हो या रात, लोग अपने कामों मे लगे रहते हैं. लोग भी लाखों और काम भी लाखों. लेकिन एक सच यह भी है कि मुंबई दिन के बजाय रात की बांहों में ज्यादा हसीन हो जाती है. इस की वजह यह है कि ज्यादातर फिल्मों, सीरियल्स की शूटिंग तो रात में होती ही है, यहां के होटल, रेस्तरां और पब भी रात को खुले रहते हैं.

इस के अलावा  फिल्मी और टीवी के सितारों तथा बडे़ लोगों की पार्टियां भी रात को ही होती हैं. बड़ीबड़ी पार्टियां हों या शूटिंग, उन में ग्लैमर न हो, ऐसा नहीं हो सकता. मध्यमवर्गीय लोगों के लिए पब हैं, जहां नाचगाने और शराब के साथ ग्लैमर भी होता है. यही वजह है कि मुंबई के लाखोंलाख लोग सुबह नहीं, बल्कि शाम का इंतजार करते हैं.

मुंबई की हर शाम समुद्र की लहरों को चूम कर धीरेधीरे रात की बांहों में सिमटने लगती है और समुद्र ढलती शाम का मृदुरस पी कर जवान होती रात में मादकता भर देता है. 14 मई, 2017 की रात का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस रात मुंबई के एक मशहूर होटल के पब में एक पार्टी चल रही थी. गीतसंगीत ऐसी पार्टियों की जान होता है. ऐसी पार्टियों में फोनोग्राम रिकौर्ड्स पर म्यूजिक प्ले करने वालों को डिस्को जौकी यानी डीजे कहा जाता है. ये लोग संगीत की धड़कन होते हैं.

विभिन्न संगीत उपकरणों माइक्रोफोन, सिंथेसाइजर्स, इक्वलाइजर्स, सिक्वेंसर, कंट्रोलर व इलेक्ट्रौनिक म्यूजिक की-बोर्ड्स व डीजे म्यूजिक सौफ्टवेयर की मदद से ऐसी पार्टियों में गीतसंगीत का ऐसा समां बंध जाता है कि डांस फ्लोर पर युवाओं के हाथपैर ही नहीं, पूरा शरीर थिरकने लगता है. डांस फ्लोर पर हिपहौप, रागे, सनरौक, यूनिक फ्यूजन की आवाजें आती रहती हैं. मुंबई में डीजे अनुबंध के आधार पर अपना प्रोग्राम करते हैं.

मुंबई के होटलरेस्त्रां ने अपने पब में गीतसंगीत की हसीन शाम सजाने के लिए विभिन्न डीजे से अनुबंध किए हैं. मायानगरी में ऐसे डीजे की तादाद सैकड़ों में होगी, लेकिन इन में 20-30 डीजे ही ऐसे हैं, जिन की वजह से होटलरेस्त्रां के पब म्यूजिकल ईवनिंग के नाम पर हसीन और जवान होते हैं. डीजे के इस पेशे में अधिकांश महिलाएं हैं.

डिस्को जौकी की भीड़ में डीजे अदा ने कुछ ही महीनों में अपनी धाक जमा ली थी. वह मुंबई के युवा वर्ग में संगीत की धड़कन के रूप में उभर कर सामने आई थी. अदा अनुबंध के आधार पर अलगअलग होटलों और रेस्त्राओं के पब में प्रोग्राम करती थी. उस के लाइव कंसर्ट में डांस फ्लोर पर युवा झूम उठते थे. पुराने फिल्मी गीतों से ले कर क्लासिकल, रीमिक्स व वेस्टर्न संगीत में डीजे अदा ने महारथ हासिल कर ली थी. उस ने अपनी अदाओं से हजारों फैंस बना लिए थे, जो संगीत से ज्यादा उस के दीवाने थे.

डीजे अदा के कार्यक्रम में अभी कुछ देर बाकी थे, लेकिन डांस फ्लोर पर संगीत व डांस प्रेमी जुटना शुरू हो गए थे. संगीत प्रेमियों की इस भीड़ में जयपुर से आए कुछ युवाओं की टोली भी शामिल थी. जयपुर की इस टोली के युवा डांस फ्लोर पर अलगअलग हिस्सों पर खड़े हो कर आनेजाने वाले पर नजर रखे हुए थे.

इस टोली की महिला सदस्य डांस फ्लोर पर आगे की ओर उस जगह खड़ी थीं, जहां म्यूजिक उपकरण लगे हुए थे. यह टोली भी दूसरे संगीत प्रेमियों की तरह डीजे अदा का इंतजार कर रही थी. हालांकि इस टोली के सदस्यों ने डीजे अदा को ना तो पहले कभी किसी प्रोग्राम में देखा था ना ही कहीं और. इस टोली के सदस्यों के पास डीजे अदा की फोटो मोबाइलों में सेव थी. इसी फोटो के आधार पर वे अदा को पहचान सकते थे.

खैर, इंतजार खत्म हुआ. पब में डीजे के साथी कलाकारों ने अपने उपकरण बजा कर लाइव कंसर्ट की तैयारी शुरू की. इस का मतलब था कि डीजे अदा अब परफौरमेंस देने के लिए फ्लोर पर आने वाली थी. म्यूजिकल ड्रम की तेज आवाजों के बीच हैडफोन लगाए हुए डीजे अदा फ्लोर पर आई और अपना दायां हाथ मिला कर दर्शकों से हैलो कहा. इसी के साथ तेज म्यूजिक बजने लगा और डीजे अदा अपनी अदाओं पर संगीत प्रेमियों के साथ थिरकने लगी. अदा को देख कर जहां कुछ युवा उस की खूबसूरती पर आहें भरने लगे, वहीं संगीत प्रेमी अपनी फरमाइशें करने लगे.

dj ada

जयपुर की टोली ने अपने मोबाइल में सेव डीजे अदा का फोटो देख कर यह निश्चित कर लिया कि वे सही ठिकाने पर आए हैं. अदा का प्रोग्राम जैसेजैसे आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे डांस फ्लोर पर जयपुर की टोली का शिकंजा कसता चला गया. करीब डेढ़, दो घंटे बाद जब अदा का प्रोग्राम खत्म हुआ तो उस ने होंठों पर अपनी हथेली ले जा कर हवा में प्यार बिखेरते हुए श्रोताओं को गुडनाइट कहा. जब वह डांस फ्लोर से जाने लगी, तभी जयपुर की टोली ने उसे चारों ओर से घेर लिया. उस टोली में महिलाएं भी थीं.

एकाएक इस तरह कुछ लोगों के घेरे जाने से अदा ने समझा कि वे लोग संभवत: संगीत के रसिया होंगे, जो उस के प्रोग्राम को देख कर खुश हुए होंगे और उसे धन्यवाद कहने आए होंगे या किसी पार्टी में डीजे के लिए बात करने आए होंगे. अदा की उम्मीद के विपरीत उस टोली में  से एक जवान ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘शिखा…शिखा तिवाड़ी, तुम्हारा खेल खत्म हो गया है.’’

इस के साथ ही उस जवान के साथ खड़ी महिला ने डीजे अदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘शिखा हम लोग जयपुर के एसओजी (स्पेशल औपरेशन ग्रुप) के लोग हैं. तुम यहां कोई तमाशा खड़ा मत करना, वरना तुम्हारी पोल खुल जाएगी और जो लोग अब तक तुम्हारी अदाओं पर थिरक रहे थे, वे तुम पर थूकेंगे.’’

अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी समझ गई कि जिस एसओजी से बचने के लिए वह जयपुर से भाग कर मुंबई आई थी, वह अब उसे छोड़ने वाली नहीं है. उस ने कोई विरोध नहीं किया. वह चुपचाप जयपुर से आई एसओजी टीम के अफसरों के साथ चल दी. जयपुर की एसओजी टीम ने मुंबई के संबंधित पुलिस अधिकारियों को मामले की जानकारी दी और शिखा को पकड़ कर ले जाने की बात बताई. यह बात इसी साल 14 मई की रात की है.

दूदानी का काला कारनामा जिसने सबको हिला दिया – भाग 3

नशीले कारोबार के लिए नेपाल और सिक्किम से मजदूर बुलाने की राय भी उसे लियोन ने ही दी. यहां तक कि उदयपुर में फैक्ट्री लगाने की सलाह भी उस ने यह कह कर दी थी कि यह शांत और सुरक्षित जगह है. साथ ही तुम्हारी जन्मभूमि भी. लोगों में तुम्हारा सम्मान है, कोई तुम पर शक नहीं करेगा.

ड्रग्स तस्करी की दुनिया के सब से बड़े मामले को ले कर कानूनी पेच में फंसे सुभाष दूदानी का हौसला चौंकता है. अदालत में पेश किए जाने के बाद कोर्ट के बाहर उस ने अपनी पत्नी से कहा कि मैं ही जल्दी बाहर आऊंगा. कोई कुछ भी साबित नहीं कर पाएगा. उस का यह भी कहना था कि मुझे किसी वकील की जरूरत नहीं है. अपना केस मैं खुद हैंडल करूंगा.

यह बात दो तरह से चौंकाती है. पहली यह कि अपराध की गंभीरता को ले कर उस में जो बेफिक्रापन नजर आता था, वह. और दूसरा यह कि जिस स्त्री से उस का तलाक हो चुका था, वह अदालत में क्यों मौजूद थी? मौजूद थी भी तो सुभाष दूदानी का उसे तसल्लीबख्श बात कहने का क्या मतलब?

बावजूद इस के मुंबई से उस की पैरवी करने आए एनडीपीएस मामलों के विशेषज्ञ वकील चंद्रभूषण मिश्रा का कथन भी कुछ ऐसा ही है. उन्होंने कहा, ‘अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों से कुछ भी साबित नहीं हो पाएगा. दूदानी को छलपूर्वक फंसाया गया है.’

बहरहाल, सूत्रों के मुताबिक अंडरवर्ल्ड की इन सरगोशियों को भी खारिज नहीं किया जा सकता कि जिस के पीछे डौन दाऊद इब्राहीम हो, उसे कौन फंसा सकता है.

तलाकशुदा जिंदगी

विज्ञान से स्नातक डिग्रीधारी सुभाष दूदानी की काबिलियत समझें तो उस ने एक किताब भी लिखी है. जानकार सूत्रों का कहना है कि उस की शादी ज्यादा दिन नहीं चली. हालांकि उस की पत्नी एक बैंक अधिकारी है और उस की 2 बच्चे भी हैं. लेकिन बाद में दोनों का तलाक हो गया. दरकता दांपत्य जीवन ही उसे गलत धंधों की राह पर ले गया. बाद में उस ने उदयपुर में ही टाटा कंपनी में कार्यरत अपने भतीजे रवि दूदानी को भी अपने धंधे में उतार दिया.

सुभाष का सामाजिक रुतबा भी कम नहीं था. अनेक धार्मिक संस्थानों का ट्रस्टी होने के अलावा उस ने अपने समुदाय के लिए भी अच्छीखासी आर्थिक मदद की थी. इस मामले का खुलासा होने से कुछ दिन पहले उस ने एक शिव मंदिर के निर्माण के लिए 8 लाख रुपए की राशि दान की थी.

रवि दूदानी कलड़वास के औद्योगिक क्षेत्र में बनी फैक्ट्री का काम संभालता था. रात को जब वह फैक्ट्री की तरफ जाता था तो सिक्किमी और नेपाली मजदूर भी उस के साथ होते थे. डीआरडीआई टीम के अधिकारियों ने इस बात पर गहरा आश्चर्य जताया है कि आखिर पुलिस ने इस भेद को क्यों नहीं टटोला कि उदयपुर की फैक्ट्री में स्थानीय श्रमिकों के बजाए बाहरी मजदूर क्यों थे.

डीआरडीआई टीम के अधिकारियों ने इस गोरखधंधे में स्थानीय रसूखदारों का हाथ होने की पूरी आशंका जताई है. उन का कहना था कि इस काम में 10 करोड़ जैसा भारीभरकम निवेश किया गया था. दुबई से करोड़ों की मशीनें आई थीं. स्थानीय मैकेनिक बायलर सरीखे उपकरण भी तैयार कर रहे थे. यहां तक कि दुबई से एंथ्रालिक सरीखा संदिग्ध एसिड भी आ चुका था. इस के बावजूद किसी को जरा भी संदेह क्यों नहीं हुआ.

एंथ्रालिक एसिड मंगवाने के लिए सुभाष दूदानी ने गुजरात के नडियाड में माल रखने के लिए एक शेड किराए पर लिया था, जहां से उसे टाइल एडिसिव की आड़ में नशीली दवाओं का जखीरा निर्यात करना था. जानकार सूत्रों के मुताबिक दूदानी कुल 8 हिस्सों में तैयारशुदा माल को बाहर भेजना चाहता था. इस लिहाज से प्रति खेप ढाई टन माल बाहर भेजा जाना था. इस के लिए नए जहाज का बंदोबस्त भी कर लिया गया था. माल किसे भेजना है, इस के लिए रेडिमिक्स एडीसन टेक्नोलौजी नाम की फरजी फर्म भी बना ली गई थी.

उधड़ रही हैं परतें

नशीली गोलियों के इस नेटवर्क से अंतरराष्ट्रीय तस्करों के साथ मुंबई के नामचीन व्यापारी भी जुड़े रहे हैं. उदयपुर में बड़ी खेप पकड़े जाने के बाद से जांच में जुटी डीआरडीआई ने सुभाष दूदानी से संपर्क रखने वाले परमेश्वर व्यास और अतुल म्हात्रे को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया है. परमेश्वर व्यास दूदानी का वित्तीय सलाहकार भी था और उसे कच्चा माल भी सप्लाई करता था. फिलहाल डीआरडीआई टीम म्हात्रे की पूरी जन्मकुंडली खंगाल रही है कि इस काम में उस ने किसकिस से मदद ली.

इस मामले में ताजा गिरफ्तारी मलकानी की है. जयपुर स्थित प्रतापनगर से गिरफ्तार किए गए मलकानी की सुभाष दूदानी के कारोबार में 5 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी. कारोबार के मुख्य शेयरधारक के रूप में दुबई निवासी धनकानी के नाम का भी खुलासा हुआ है. मलकानी सुभाष दूदानी का दोस्त भी है. मलकानी दूदानी के बंद हुए सीडी प्रोजेक्ट से भी जुड़ा रहा था.

इस काले कारोबार का खुलासा होने के बाद से सब से ज्यादा सवाल इस बात को ले कर उठ रहे हैं कि यह गोरखधंधा उदयपुर में पिछले 7 सालों से चल रहा था, लेकिन इंडस्ट्री के लिए जिम्मेदार रीको, जिला उद्योग केंद्र, सेल्स टैक्स, ड्रग कंट्रोलर, फैक्ट्री ऐंड बायलर तथा प्रदूषण नियंत्रण महकमे को भनक क्यों नहीं लगी?

हालांकि रीको के प्रभारी अफसर एम.के. शर्मा यह कह कर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि किसी उद्योग पर नजर रखना या काररवाई करने का अधिकार हमें नहीं है. ड्रग कंट्रोलर का कहना है कि जब इस फैक्ट्री ने कोई लाइसेंस ही नहीं लिया तो जांच किस बात की करते.

अलबत्ता भारी मात्रा में मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन का जखीरा हाथ लगने के बाद विश्व पटल पर बदनाम हुए उदयपुर के औषधि नियंत्रण विभाग की हकीकत समझें तो विभागीय नुमाइंदे ऐसे पदार्थ की प्रकृति और बिक्री से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं. इस पूरे मामले में गुजरात के 4 शीर्ष अधिकारियों के नामों का भी खुलासा हुआ है.

ड्रग्स बनाने का काम काफी जटिल और उबाऊ था. लेकिन सूत्र कहते हैं कि सुभाष दूदानी ने इस में भी कसर नहीं छोड़ी. मेथाक्यूलिन से मेंड्रेक्स बनाने के लिए उसे धोने और सुखाने तक का काम उस ने खुद किया. इस के लिए उस ने फ्लूइड बेड ड्रायर काम में लिया. दूदानी इस सूखे मेथाक्यूलिन पाउडर को स्टार्च और मैग्नीशियम स्टीरेट व डाईकैल्शियम फास्फेट मिला कर मशीनों से प्रैस कर के इसे गोलियों की शक्ल देता था. फिर उन पर मुसकराहट का चिह्न भी लगाता था.

दूदानी का काला कारनामा जिसने सबको हिला दिया – भाग 2

पुलिस के निशाने पर आने के बाद अभिनेत्री ममता कुलकर्णी अपनी सफाई में बहुत कुछ कह चुकी है, मसलन मुझे आश्चर्य है कि मेरा नाम ड्रग तस्करी से जोड़ा जा रहा है, लेकिन दूदानी के साथ उजागर हुए नए रिश्तों ने एक बार फिर ममता और विक्की को कटघरे में खड़ा कर दिया है. अब जबकि सुभाष दूदानी अपने भतीजे रवि दूदानी के साथ गिरफ्त में आ गया है तो पुलिस को ममता और विक्की की भी बेसब्री से तलाश है.

जानकार सूत्रों की मानें तो सुभाष दूदानी की गिरफ्तारी के बाद इस बात का भी खुलासा हुआ है कि राजस्थान के पुष्कर में अकसर होने वाली रेव पार्टियों में मेंड्रेक्स की सप्लाई भी दूदानी द्वारा ही की जा रही थी. इस में कोई शक नहीं कि पुलिस ने रेव पार्टियों में नशेबाज पर्यटकों की धरपकड़ तो की, लेकिन नशे की सप्लाई के स्रोत को खंगालने में पूरी कोताही बरती.

दूदानी से पूछताछ में नशीली दवाओं के कारोबार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितनी लंबीचौड़ी चेन का खुलासा हुआ है, वह स्तब्ध करने वाला है. दिलचस्प बात यह है कि इन का नेटवर्क यूके, यूएस और दक्षिणी अफ्रीका समेत कई देशों में फैला हुआ है. यानी उदयपुर जैसे शांत शहर से नशे की इतनी बड़ी खेप भारत के विभिन्न इलाकों के अलावा नाइजीरिया और मंगोलिया आदि देशों तक जा रही थी.

नशे के जहरीले कारोबार की बखिया उधेड़ने में जुटी डीआरडीआई की टीम ने सुभाष दूदानी से संपर्क रखने वाले मुंबई निवासी परमेश्वर व्यास और अतुल म्हात्रे को भी दबोच लिया है. जानकार सूत्रों के मुताबिक परमेश्वर व्यास पिछले 20 सालों से सुभाष दूदानी का मित्र होने के अलावा उस का वित्तीय और रासायनिक सलाहकार बना हुआ था. म्हात्रे से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार किया है कि वो कैमिकल इंजीनियर होने के नाते ड्रग्स के निर्माण के लिए तकनीकी सलाह देता था.

इस खुलासे के रहस्यों का पिटारा तो बहुत बड़ा है, लेकिन फिलहाल डीआरडीआई ने उदयपुर के इर्दगिर्द वह ‘स्वर्ण गलियारा’ खोज लिया है, जिसे सुभाष दूदानी ने अभिनेत्री ममता कुलकर्णी और उस के कथित पति विक्की गोस्वामी की मदद से मेंड्रेक्स सरीखी नशीली ड्रग की तस्करी का ट्रांजिट पौइंट बना दिया था. सुभाष दूदानी द्वारा केक और टैबलेट्स की शक्ल में तैयार की गई ड्रग्स को निर्विघ्न रूप से विदेशों में अपने कारोबारी संपर्कों तक भेजा जाना था.

इस के खुलासे से जो बातें पता चली हैं, उस से जाहिर होता है कि उस का इरादा खुफिया एजेंसियों की चौकसी को अंडरएस्टीमेट कर के अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकने का था. इसी मुगालते में दूदानी द्वारा ड्रग्स की तस्करी को पुलिस की निगाहों से बचाने के लिए मौकड्रिल की जा रही थी.

पूछताछ में दूदानी ने बताया कि ड्रग्स बनाने की मशीनरी को समुद्री रास्ते से आयात किए जाने के दौरान ही उसे यह उपाय सूझा था. यानी एक तरफ ड्रग्स तैयार की जा रही थी तो दूसरी तरफ समुद्री रास्ते से सीमेंट और लाइम स्टोन पाउडर केक की शक्ल में बाहर भेजा जा रहा था.

यह मौकड्रिल खुफिया एजेंसियों के अफसरों को भ्रम में डालने के लिए थी ताकि जब भी वह ड्रग्स को केक की शक्ल में भेजे तो यह भ्रम ड्रग्स कारोबार को परदेदारी का अचूक हथियार बना रहे. इस योजना के तहत ही सुभाष दूदानी अडानी पोर्ट से 2 बार दिखावटी केक भेजने के बाद एक बार 5 मीट्रिक टन नशीली गोलियां भेजने में सफल भी रहा था. इस निर्विघ्न मौकड्रिल ने उस के हौसले बुलंद कर दिए थे.

इसी के चलते इस बार वह 24 टन की तैयारशुदा नशीली खेप भेजने की तैयारी में था. पूछताछ में सुभाष दूदानी ने बताया कि यह आखिरी खेप थी. इस के बाद उदयपुर की फैक्ट्री को बंद कर दिया जाता. उधर राजस्व अधिकारियों का कहना है कि ड्रग्स की यह बड़ी खेप अगर विदेशों में पहुंच जाती तो सुभाष दूदानी को लागत का चार गुना मुनाफा मिल जाता. इस के बाद संभवत: उसे कुछ करने की जरूरत नहीं रह जाती.

डीआरआई टीम ने जब फैक्ट्री पर छापा मारा, तब तक सारी मशीनें उखाड़ी जा चुकी थीं. कलपुर्जे अलगअलग कर के कबाड़ के भाव बेचे जा चुके थे. इस तोड़फोड़ का किसी को पता तक नहीं चला था. जेसीबी मशीन चला कर मशीनरी की बुनियाद तक को बराबर कर दिया गया था. सब कुछ नेस्तनाबूद करने का काम सिर्फ घोईदा फैक्ट्री में ही हो पाया था. गुडली और कलड़वास का माल भेजने के बाद वहां भी फैक्ट्रियों का भी नामोनिशान मिटा दिया जाता था, लेकिन उस से पहले ही दूदानी के काले कारनामों का परदाफाश हो गया.

दिलचस्प बात यह है कि इन फैक्ट्रियों की बुनियाद सन औप्टिकल और सीडी बनाने के नाम पर डाली गई थी. लेकिन सौ करोड़ की लागत की फैक्ट्रियों में कुछ दिन ही उत्पादन हो पाया. धंधे में आई मंदी के कारण इस काम को बंद करना पड़ा.

इस काम के लिए सुभाष दूदानी इंडियन ओवरसीज बैंक से 21 करोड़ का कर्ज ले चुका था, लेकिन भुगतान का सिलसिला कुछ समय तक ही चला. बाद में नुकसान बता कर दूदानी ने रकम चुकाने से इनकार कर दिया था. नतीजतन बैंक फैक्ट्री को सीज कर के नीलामी की तैयारी कर रहा था. लेकिन बैंक अधिकारी उस समय हैरान रह गए जब उन्हें सीज फैक्ट्री में काला कारोबार चलने की खबर मिली.

बहरहाल, सुभाष दूदानी शिकंजे में आया भी तो इसी वजह से. सीबीआई इंडियन ओवरसीज बैंक के कर्ज अदायगी के मामले में पहले ही सुभाष दूदानी के मुंबई स्थित ठिकाने पर छापा मार चुकी थी. उस ने यह काररवाई बैंक की शिकायत पर की थी.

शिकायत में कहा गया था कि दूदानी ने कर्ज में ली गई रकम निश्चित उद्देश्य पर खर्च करने के बजाय इधरउधर कर दी है. जिन कार्यों में रकम का निवेश बताया गया है, उस के कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए हैं. बैंक अधिकारियों ने माल निर्यात के बिलों और बिल्टियों को भी संदिग्ध बताया था. यह भी एक वजह रही कि सीबीआई के संदेह के घेरे में आ जाने के कारण सुभाष दूदानी बचा हुआ तैयारशुदा माल निर्यात करने में विफल रहा.

सुभाष दूदानी को विदेशों में ड्रग्स भेजने के तरीके और ठौरठिकानों का मशविरा भी दुबई का तस्कर लियोन देता था. पकड़ा गया माल मोजांबिक और मालवाई भिजवाना था. सूत्रों की मानें तो वर्ष 2004-05 के दरमियान दूदानी ने दुनिया में प्लेनेट औप्टिकल डिस्क बनाने का प्लांट लगाया था. इस प्लांट से उस ने काफी पैसा कमाया. नतीजतन उत्कर्ष के उस दौर में उसे प्रमुख उद्योगपति का सम्मान भी मिला. किंतु वर्ष 2010 में उस का धंधा चौपट हो गया.

तबाही के इस दौर में ही उस की मुलाकात लियोन से हुई थी. दूदानी को नशे के काले कारोबार में धकेलने का काम भी उसी ने किया. लियोन का उसे दिया गया व्यावसायिक मंत्र था ‘कौडि़यों के खर्च में करोड़ों का मुनाफा कमाओ’. उसी ने दूदानी का ज्ञानार्जन किया कि मेथाक्यूलिन से ड्रग्स कैसे बनाई जाती है.

दूदानी का काला कारनामा जिसने सबको हिला दिया – भाग 1

2016 के अप्रैल माह में जब महाराष्ट्र की ठाणे पुलिस ने सोलापुर में एक फार्मा कंपनी ‘एवान लाइफ साइंसेज लिमिटेड’ पर छापा मार कर तकरीबन 2 हजार करोड़ की नशीली ड्रग एफिड्रिन की 20 करोड़ की खेप बरामद की थी तो आरोपियों में गुजरे जमाने की अभिनेत्री ममता कुलकर्णी और उस के तथाकथित पति अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्कर विक्की गोस्वामी का नाम सामने आया था.

इस मामले में जांच के बाद जून 2016 में इस रैकेट के सरगना मनोज जैन समेत 5 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. तब पुलिस ने कल्पना तक नहीं की थी कि इस रैकेट के तार राजस्थान के शहर उदयपुर से भी जुड़े हो सकते हैं. ज्ञातव्य हो कि एफिड्रिन का इस्तेमाल एक्सटेसी जैसी उच्चकोटि की नशीली टैबलेट बनाने में किया जाता है. कनाडा और अमेरिका के छात्रों और खिलाडि़यों के बीच इस की मांग ज्यादा है.

केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के खुफिया निदेशालय डीआरडीआई ने जब मध्य अक्तूबर में उदयपुर जिले के कलड़वास औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्ट्री के गोदाम पर छापा मार कर लगभग 7 हजार करोड़ रुपए मूल्य की तकरीबन 24 टन नशीली ड्रग्स मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन की गोलियां बरामद कीं तो राज्य की वसुंधरा सरकार के होश फाख्ता हो गए. इसे अब तक की दुनिया की सब से बड़ी बरामदगी बताया गया है. राज्य सरकार में गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया इसी शहर के रहने वाले हैं. अपने शहर में इतने बड़े रैकेट के खुलासे से वह स्तब्ध हैं.

घटना से जुड़े 2 बड़े खुलासों ने मुंबई अंडरवर्ल्ड को भी हैरानी में डाल दिया है. पहला यह कि समाजसेवी का मुखौटा ओढ़ कर सुभाष दूदानी और उस के भतीजे रवि दूदानी ने न केवल नशे का इतना बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया बल्कि अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहीम सरपरस्ती भी हासिल कर ली. और दूसरा यह कि इस रैकेट के दूसरे सिरे की डोर 90 के दशक की खूबसूरत, बोल्ड और सैक्स सिंबल कही जाने वाली अभिनेत्री ममता कुलकर्णी और उस के कथित प्रेमी विक्की गोस्वामी ने थाम रखी थी. डीआरडीआई के दावे को सही मानें तो ममता कुलकर्णी इंटरनेशनल ड्रग्स सिंडिकेट में भी शामिल है.

ममता कुलकर्णी और विक्की गोस्वामी के साथ सुभाष दूदानी की कारोबारी डोर जुड़ने की कहानी को समझने के लिए हमें नब्बे के दशक की शुरुआत में जाना होगा. उन दिनों विक्की गोस्वामी जब शराब तस्करी के धंधे में उलझा हुआ था, तभी उस की मुलाकात विपिन पांचाल नाम के शख्स से हुई. उस ने विक्की को ड्रग कारोबार की अहमियत समझाते हुए उस का परिचय मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन से करवाया. इस के बाद वह विपिन पांचाल के साथ मिल कर ड्रग्स का धंधा करने लगा.

1993 में जब पांचाल पकड़ा गया तो कारोबार की पूरी बागडोर विक्की के हाथों में आ गई. विक्की ने मुंबई में पैर जमा कर इस कारोबार को पंख लगा दिए. ड्रग्स के कारोबार के चलते उस ने पहले तो अंडरवर्ल्ड में अपनी पैठ बनाई, फिर अपने बूते पर डौन दाऊद इब्राहीम तथा छोटा राजन से करीबी रिश्ते कायम कर लिए.

हाईप्रोफाइल पार्टियों की जान समझी जाने वाली मेंड्रेक्स की सप्लाई के दम पर उस ने कई फिल्मी हस्तियों से अपने नजदीकी ताल्लुकात बना लिए. इसी दौरान विक्की की जानपहचान ममता कुलकर्णी से हुई. दोनों के बीच कुछ ऐसी पटरी बैठी कि जल्दी ही दोनों रिलेशनशिप में साथसाथ रहने लगे. यहां द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट का हवाला देना जरूरी होगा, जिस में कहा गया था कि नब्बे के दशक की शुरुआत के साथ ही हाईप्रोफाइल तबके में ड्रग पार्टियां सब से चर्चित सेनेरियो बन चुकी थीं.

दिलचस्प बात यह है कि यह वह दौर था, जब ममता और विक्की गोस्वामी मुंबई की हाईप्रोफाइल पार्टियों में दूदानी द्वारा निर्मित ड्रग्स टैबलेट सप्लाई करते थे. कहा जाता है कि इस खेल को निर्विघ्न बनाए रखने में गुजरात के 4 वरिष्ठ अधिकारियों की भी पूरी शह थी.

सुभाष दूदानी ड्रग कारोबार में कैसे आया, इस की शुरुआत भी नब्बे के दशक में हुई थी. दूदानी ने अपनी कारोबारी शुरुआत फिल्म ‘विकल्प’ के निर्माण से की, लेकिन फिल्म फ्लौप हो गई. अलबत्ता फिल्म निर्माण से उस के परिचय के दायरे में नामचीन फिल्मी हस्तियां जरूर आ गईं. उन में ममता कुलकर्णी भी शामिल थी. कहते हैं, ममता कुलकर्णी ने ही उस की मुलाकात विक्की गोस्वामी से कराई. तब तक विक्की गोस्वामी जांबिया शिफ्ट हो चुका था और कुछ रसूखदार लोगों की मदद से मेंड्रेक्स बनाने की फैक्ट्री लगाने की फिराक में था. लेकिन बात नहीं बनी.

इस बीच वह पुलिस की निगाहों में चढ़ चुका था. इसी वजह से उस ने फैक्ट्री लगाने का इरादा छोड़ दिया और साथ ही जांबिया भी. जांबिया से भाग कर उस ने दुबई में पनाह ले ली. इस बीच वह सिर्फ इतना ही कर सका कि उस ने मेंड्रेक्स बनाने की पूरी योजना सुभाष दूदानी के हवाले कर दी.

कहा तो यहां तक जाता है कि दूदानी को मेंड्रेक्स की सप्लाई चेन उपलब्ध कराना भी विक्की गोस्वामी का ही काम था. फिलहाल भले ही ममता कुलकर्णी और विक्की गोस्वामी का ठिकाना केन्या में बताया जाता है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अगर दूदानी के कारोबार में लगातार बरकत हुई है तो उस की वजह विक्की और ममता कुलकर्णी के साथ उस का गठजोड़ है.

जिस समय दूदानी डीआरडीआई की गिरफ्त में आया, उस दौरान वह सप्लाई को सुलभ बनाने के लिए एक नया प्रयोग कर रहा था. उस ने सोचा था कि ड्रग्स को अगर केक की शक्ल में बना कर भेजा जाए तो संदेह की गुंजाइश कम हो सकती है. लेकिन वह अपनी योजना पर अमल कर पाता, इस से पहले ही वह डीआरडीआई की गिरफ्त में आ गया. सूत्रों के मुताबिक, जब्त किया गया 24 टन माल केक के रूप में बाहर भेजने की तैयारी थी. इसे मोजांबिक और मालवाई भेजा जाना था.

ड्रग तस्करी के कारोबार के लिए दूदानी के 3 ठिकाने थे मुंबई, दुबई और उदयपुर. उदयपुर उस का स्थाई निवास होने के कारण मेंड्रेक्स के निर्माण और तस्करी के लिहाज से सर्वाधिक सुरक्षित था. सुभाष दूदानी को मेंड्रेक्स बनाने का मशविरा दुबई के तस्कर लियोन ने भी दिया था. लियोन ने इस काम में तकनीकी मदद के लिए उसे सीरिया निवासी एक डाक्टर से भी मिलवाया था.

वह डाक्टर सुभाष दूदानी के मकसद में काफी मददगार साबित हुआ. लियोन ने दूदानी को मेंड्रेक्स बनाने का रासायनिक फार्मूला तो दिया ही, साथ ही 10 करोड़ की मशीनें लगाने के लिए फाइनेंसर से भी मिलवा दिया. लियोन का मशविरा दूदानी को इसलिए भी पसंद आया था, क्योंकि उस के कहे मुताबिक मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन ड्रग्स खाड़ी देशों और यूके में सब से ज्यादा प्रचलित ड्रग हैं. लियोन का कहना था कि भले ही इस का उत्पादन खर्चीला है, लेकिन इस में मुनाफा भारीभरकम मिलता है.