सोने के व्यापारी को ले डूबी रंगीनमिजाजी – भाग 2

जल्दी ही कुकुकोवा एक परफेक्ट मौडल बन गई. चाहे रैंप पर चलना हो या कैमरे के किसी भी एंगल के सामने खुद को प्रदर्शित करना हो, वह बहुत कम समय में सीख गई. फलस्वरूप जल्द ही वह एक पेशेवर मौडल बन गई. उसे कुछ नामीगिरामी मौडलों के साथ रैंप पर चलने का मौका मिला तो वह एक चर्चित मैगजीन के कवर पर भी जगह बनाने में सफल रही.

इस के बाद फोटोग्राफरों ने उसे इंटरनेशनल मौडलिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की सलाह दी. उस ने ऐसा ही किया और स्लोवाकिया के फैशन और मौडलिंग की दुनिया का मक्का माने जाने वाले शहर मिलान की ओर रुख किया. मौडलिंग की बदौलत कुकुकोवा ने अपनी खास पहचान बना ली. ब्रिटिश और अमेरिकन मौडलों से टक्कर लेते हुए उस ने स्विमवियर या बिकिनी के पहनावे के साथ रैंप पर चल कर निर्णायक मंडल का दिल जीत लिया.

फिर क्या था, उस का सितारा बुलंद हो गया. मल्टीनेशनल कंपनियां उसे जहां अपने ब्रांड के लिए ब्रांड एंबेसडर बनाने को लालायित रहने लगीं, वहीं उसे नौकरी के कुछ औफर भी मिले. लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही वह देर रात तक चलने वाली पार्टियों में भी आनेजाने लगी.

मौडलिंग की दुनिया में इस प्रोफेशन को अपनाने वाली मौडल्स अगर अपनी अदाकारी और शारीरिक सुंदरता बिखेरती हैं तो इस में अमीरजादे प्लेबौय की भी भरमार रहती है. उन की सोच के हिसाब से सुंदरियां मौजमस्ती की सैरगाह में मनोरंजन और रोमांस के साधन की तरह होती हैं. ऐसे ही लोगों में से एक थे इंगलैंड के गोल्ड बिजनेसमैन ‘किंग औफ ब्लिंग’ के नाम से चर्चित एंडी बुश. वह अधेड़ावस्था की दहलीज पर आ चुके थे, लेकिन मौजमस्ती के लिए सुंदरियों के साथ डेटिंग पर जाना उन का खास शौक था.

एंडी ब्रिटेन में सोने के आभूषणों के अरबपति कारोबारी थे. उन की गिनती अमीरजादों में होती थी. 1990 में उन्होंने बीबीसी टीवी प्रजेंटर साम मैसन से शादी की थी. उसी से एक बेटी एल्ली पैदा हुई थी. लेकिन बाद में साम मैसन से उन का तलाक हो गया था. वह एल्ली को बहुत प्यार करते थे और उसे हर तरह से खुश और सुखी रखने की कोशिश करते थे.

एल्ली अपनी मां से ज्यादा बुआ रशेल के करीब रही. दूसरी तरफ बुश की पहचान रंगीनियों में डूबे रहने वाले शख्स की बन गई थी. वह आए दिन लेट नाइट पार्टियों या फैशन शो में जाया करते थे. गर्लफ्रैंड के साथ लौंग ड्राइव या डेटिंग पर जाना उन का खास शौक था.

कुकुकोवा को रैंप पर चलते देख बुश पहली बार में ही उस पर फिदा हो गए थे. बुश को न केवल उस का ग्लैमर भरा सौंदर्य पसंद आया था, बल्कि उस की शारीरिक सुंदरता और अदाएं भी बहुत अच्छी लगी थीं. संयोग से बुश उस फैशन शो वीक के प्रायोजक भी थे, जिस में कुकुकोवा को बतौर मौडल जगह मिली थी. तब दोनों की औपचारिक मुलाकात हुई थी.

पहली मुलाकात में ही कुकुकोवा ने बुश के दिल में इतनी तो जगह बना ही ली थी कि वह कारोबारी व्यस्तता के बावजूद उस से मिलनेजुलने के लिए समय निकालने लगे थे.

इस तरह शुरू हुई मुलाकातों के दौरान कुकुकोवा ने उन से अपने लिए कोई काम तलाशने की इच्छा जताई. इस पर बुश ने उसे ब्रिस्टल स्थित अपने ही सोने के आभूषणों के शोरूम में नौकरी दे दी.

अब बुश के लिए उस से मिलनाजुलना आसान हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उन की मुलाकातें प्रगाढ़ संबंध में बदलती चली गईं.

बुश अपनी सुगठित और चुस्तदुरुस्त देह के लिए काफी मेहनत करते थे. यही वजह थी कि वे 48 की उम्र में भी 28-30 के युवा की तरह दिखते थे. उन की सब से बड़ी कमजोरी सुंदरियों के पीछे भागना थी. नईनई प्रेमिकाएं बनाना, उन्हें महंगे उपहार देना और उन के साथ डेटिंग या लौंग ड्राइव पर जाना उन की जीवनशैली का अहम हिस्सा था.

उन के पास महंगी कारों की बड़ी शृंखला थी, जिन में लाल रंग की फेरारी और ग्रे रंग की लेंबोरगिनी के अतिरिक्त हमर रेंज की कई कारें थीं. उन की कई गाडि़यां कानसेलाडा के समुद्र तटीय गांव स्थित स्पैनिश विला में रखी जाती थीं.

अपनी आरामदायक जिंदगी गुजारने के लिए उन्होंने सन 2002 में करीब 3,20,000 पाउंड में 5 बैडरूम का एक मकान खरीदा था, जो केप्सटो के भीड़भाड़ वाले इलाके से काफी दूर ग्रामीण क्षेत्र मानमाउथशिरे में स्थित था. यह भव्य मकान 7 फुट ऊंची चारदीवारी से घिरा था.

इस के बावजूद इस मकान में सुरक्षा के तमाम अत्याधुनिक इंतजाम किए गए थे. उन्होंने सुरक्षा के लिए विख्यात राट्टेवाइलर डौग गार्ड भी वहां तैनात किए थे. आधिकारिक तौर पर बुश के 4 तरह के कारोबार थे, जिस में 3 तो फिलहाल निष्क्रिय थे. सिर्फ ट्रेडिंग कंपनी बिगविग से ही उन्हें मुनाफा होता था.

बुश के दिल में कुकुकोवा के लिए कितनी जगह थी या फिर कुकुकोवा बुश से कितनी मोहब्बत करती थी, यह कहना मुश्किल था, लेकिन इतना जरूर था कि वह उन के तमाम निजी कार्यों में दखलंदाजी करती थी. वह बुश के उसी शोरूम में एक कर्मचारी थी, जिस का कामकाज बुश की बहन रशेल और बेटी एल्ली संभालती थीं.

सन 2012 में बुश की कुकुकोवा के साथ डेटिंग चरम पर थी. इस का फायदा उठाते हुए कुकुकोवा बुश के साथ रशेल और एल्ली पर भी अपना रौब दिखाती थी. हालांकि उन के ‘लिव इन रिलेशन’ की मधुरता में जल्द ही नीरसता आ गई और नवंबर 2013 में तो उन के संबंध पूरी तरह से खत्म हो गए. इस की वजह यह थी कि उसी दौरान बुश की जिंदगी में एक 20 वर्षीया रूसी युवती मारिया कोरोतेवा आ गई थी.

मारिया इंगलैंड के पश्चिमी इलाके में स्थित एक यूनिवर्सिटी में ह्यूमन रिसोर्सेस की छात्रा थी. उस से बुश की मुलाकात ब्रिस्टल के कोस्टा कैफे की एक शाखा में हुई थी. मारिया बुश की बेटी एल्ली से मात्र एक साल बड़ी थी.

सोने के व्यापारी को ले डूबी रंगीनमिजाजी – भाग 1

मई, 2016 को स्पेन में मलागा की अदालत से आने वाले एक चर्चित मामले के फैसले का लोगों को बड़ी बेसब्री से इंतजार था. आरोपी और पीडि़त के परिजनों से ले कर मीडिया के लोगों तक को फैसला सुनने की उत्सुकता थी. यह हाईप्रोफाइल मामला ब्रिटेन के 48 वर्षीय सोने के व्यापारी एंडी बुश की हत्या का था. उन की हत्या 5 अप्रैल, 2014 को स्पेन के शहर मारबेला के कोस्टा डेल सोल नामक मशहूर बीच पर स्थित होटल हौलिडे विला में उन की पूर्व प्रेमिका द्वारा गोली मार कर की गई थी. हत्या का आरोप 26 वर्षीया स्विमवियर मौडल मायका मैरीका कुकुकोवा पर था. अपराध साबित हो जाने के बाद उसे सजा के लिए दोषी करार दिया जा चुका था.

अदालत में बुश की 22 वर्षीया बेटी एल्ली अपनी 44 वर्षीया बुआ रशेल के साथ मौजूद थी. जबकि ज्यूरी के सामने सिर झुकाए चिंतातुर बैठी आरोपी कुकुकोवा अपने चेहरे को हथेली से बारबार ढंकने का प्रयास कर रही थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किसी से खासकर एल्ली और रशेल से नजरें मिलाने से बचना चाह रही हो. हालांकि सुनवाई के दौरान उन तीनों का अदालत में पहले भी कई बार आमनासामना हो चुका था, लेकिन तब वे अपनीअपनी बातों को साबित करने की कोशिश करते हुए इतनी अधिक असहज महसूस नहीं करती थीं, जितना कि उन्हें फैसले की घड़ी के वक्त महसूस हो रहा था.

मायका मैरीका कुकुकोवा अपने बचाव के लिए हर संभव प्रयास कर चुकी थी. लेकिन सबूतों के अभाव में उस की दलीलों को खारिज कर दिया गया था. फिर भी क्यूडेड ला जस्टिका के निर्णायक मंडल द्वारा उसे एक और अंतिम मौका दिया गया था, ताकि वह बचाव संबंधी औपचारिक याचिका दायर कर सके.

कुकुकोवा ने भले ही बचाव के लिए कोई याचिका नहीं दायर की थी, लेकिन इतना जरूर कहा था कि बुश ने उस के ऊपर हमला किया था और उस ने अपनी आत्मरक्षा में उसे गोली मारी थी.

बुश को चोट पहुंचाने का उस का कोई मकसद कभी नहीं था, क्योंकि अपनी उम्र से दोगुनी उम्र का होने के बावजूद वह उस से बेइंतहा मोहब्बत करती थी. उस ने भावुकता के साथ कहा था कि वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी, लेकिन उन के प्रेम में किसी तीसरे के शामिल होने से वह काफी दुखी थी.

निर्णायक मंडल ने फैसला सुनाने के दरम्यान कहा कि घटना के 6 महीने पहले ही कुकुकोवा और बुश के बीच संबंध खराब हो चुके थे. वह ईर्ष्या, द्वेष की भावना से भरी हुई थी.

सरकारी वकीलों को उम्मीद थी कि इस मामले में 26 वर्षीया मौडल कुकुकोवा को 25 साल की जेल की सजा तो सुनाई ही जाएगी, लेकिन जजों के निर्णायक मंडल ने उसे 15 साल की सजा सुनाने के साथ बुश की 21 वर्षीया बेटी को 1,22,000 पाउंड और 44 वर्षीया बहन रशेल को 30,500 पाउंड की राशि जुरमाने के तौर पर देने का आदेश दिया.

इसी के साथ न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरोपी का पूर्व का कोई आपराधिक रिकौर्ड नहीं है. उस ने जो भी अपराध किया है, वह भावुकता में किया है. इस लिहाज से उसे अपना पक्ष रखने का एक और मौका दिया जाता है लेकिन बचाव के अंतिम मौके का भी कुकुकोवा को कोई लाभ नहीं मिल पाया.

अदालत ने फैसले से संबंधित 17 पृष्ठों का दस्तावेज बुश के परिजनों को भी दे दिया. इस फैसले पर भले ही एल्ली और उस की बुआ रशेल ने न्याय मिलने का संतोष व्यक्त किया, लेकिन बुश से तलाक ले चुकी एल्ली की मां ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा कि कुकुकोवा को कम सजा हुई है. उसे कम से कम 20 साल की सजा होनी चाहिए थी. वह अदालत में अपनी बेटी के साथ नहीं थी, लेकिन उस ने खुद उस की भावनाओं को काफी शिद्दत के साथ महसूस करते हुए कई ट्वीट किए थे.

अदालती सुनवाई और जांचपड़ताल की काररवाई में पाया गया था कि बुश को .38 की रिवौल्वर से 3 गोलियां मारी गई थीं. 2 गोलियां उस के सिर में लगी थीं, जबकि एक गोली उस के कंधे में लगी थी. न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि बुश का हाथ रिवौल्वर के साथ इस तरह से रखा गया था, ताकि पहली नजर में लगे कि उस ने आत्महत्या की है. हत्या के बाद कुकुकोवा बुश की महंगी हमर गाड़ी से करीब 3012 किलोमीटर दूर स्लोवाकिया स्थित अपने घर चली गई थी, जहां उस का प्रेमी इंतजार कर रहा था.

कुकुकोवा ने न केवल 2 देशों की सीमाएं लांघीं, बल्कि इस लंबी यात्रा को 27 घंटे में पूरा भी किया. हालांकि कुछ दिनों बाद ही उसे स्लोवाकिया स्थित उस के पुश्तैनी गांव नोवा बोसाका से हिरासत में ले लिया गया था. उस की गिरफ्तारी स्पैनिश अधिकारियों के अनुरोध पर यूरोपीय वारंट के आधार पर की गई थी.

मायका मैरीका कुकुकोवा एक जमाने में बहुचर्चित स्विमवियर मौडल रही. सन 1990 में उस का जन्म स्लोवाकिया के एक गांव नोवा बोसाका में हुआ था. ग्रामीण परिवेश के साधारण परिवार में पलीबढ़ी कुकुकोवा जब किशोरावस्था में आई तो उसे अहसास होने लगा कि उस के अंदर खूबसूरती के साथसाथ हीरोइन बनने के भी तमाम गुण मौजूद हैं. जब उस के दोस्तों ने उस की सुंदरता की तारीफ के पुल बांधे तो उस की सपनीली आंखों में मौडलिंग की रंगीन दुनिया तैरने लगी.

कुकुकोवा के मातापिता ने उसे अपनी मनमर्जी से कैरियर चुनने की आजादी दे रखी थी. उस ने मौडलिंग के लिए कोशिश की तो थोड़े प्रयास में ही उसे मौका मिल गया. मौडलिंग की दुनिया में शुरुआत की पहली कोशिश में ही उसे सफलता मिल गई.

आगे भी सफलता की सीढि़यां चढ़ने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा. ऊंची जगह बनाने के लिए भी उसे अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा. उस की खूबसूरती और पहली ही नजर में किसी को भी आकर्षित कर लेने वाले ग्लैमर की वजह से उस का आगे का रास्ता खुदबखुद बनता चला गया.

सिरफिरा आशिक : बना अपनी ही प्रेमिका का कातिल

घटना 13 मार्च, 2021 की है, उस समय दिन के यही कोई 10 बज रहे थे, मनीषा गेडाम अपनी पेइंगगेस्ट सहेली जेनेट के साथ बैठ कर गपशप कर रही थी कि तभी जेनेट के मोबाइल पर काल आई, ‘‘जेनेट, फोन मत काटना प्लीज, मुझे मनीषा से कुछ खास बात करनी है. एक मिनट के लिए उसे फोन दो.’’

‘‘मनीषा, मैं सागर बोल रहा हूं, मैं तुम से एक बार मिलना चाहता हूं. फिर मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगा. मैं इस समय तुम्हारी बिल्डिंग के नीचे खड़ा हूं. प्लीज, तुम नीचे आ जाओ.’’

उस की यह बात सुन कर जेनेट और मनीषा दोनों इमारत के नीचे आईं और पूछा, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘मैं जौब के लिए विदेश जा रहा हूं. यह देखो मेरी टिकट आ गई है,’’ अपने मोबाइल में टिकट का फोटो दिखाते हुए बोला.

‘‘ठीक है, अब तुम मुझे भूल जाओ. तुम विदेश जाते हो तो जाओ, इस से मुझे क्या.’’ मनीषा ने कहा

‘‘पर मेरी एक विनती है मनीषा, तुम मेरे साथ सिर्फ एक दिन बिताओ. हम कहीं घूमनेफिरने चलते हैं. शाम को मैं तुम्हें वापस घर पर छोड़ दूंगा. हम दोनों महाबलेश्वर जाएंगे.’’ सागर ने विनती करते हुए कहा, ‘‘अगर तुम आती हो तो… क्योंकि इस के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगा, तुम्हें यहां छोड़ने के बाद मैं सीधे अपने गांव चला जाऊंगा.’’

अपने पूर्व प्रेमी आनंदराव गुडव उर्फ सागर की इस विनती पर मनीषा यह सोच कर उस के साथ जाने को तैयार हो गई कि चलो इस के बाद उस से पीछा तो छूट जाएगा. वह उस की बाइक पर बैठ कर निकल गई.

सुबह 10 बजे की गई मनीषा जब काफी रात तक नहीं लौटी तो मनीषा की सहेली जेनेट को उस की चिंता हुई, उस ने उसे कई बार फोन लगाया. लेकिन हर बार उस का फोन स्विच्ड औफ बता रहा था.

आखिरकार परेशान हो कर जेनेट ने सारी बातें मनीषा के भाई प्रतीक को बताईं. जेनेट की बातें सुन कर प्रतीक के होश उड़ गए थे. प्रतीक ने कहा, ‘‘ये सारी बातें तुम मां को बताओ, मैं भी मां से बात करता हूं.’’

hindi-manohar-love-crime-story

प्रतीक की सलाह पर जेनेट ने मनीषा की मां चित्रा से संपर्क किया और उन्हें सारी बातें बताईं. यह सुन कर वह बेहोश सी हो गई थीं. जब उन्हें होश आया तो मां ने पुलिस थाने में मनीषा की शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा था.

परिवार वालों के कहने पर जेनेट पुणे के चंदननगर थाने पहुंच कर थानाप्रभारी सुनील जाधव से मिली और उन्हें सारी जानकारी दी. तब थानाप्रभारी ने मनीषा की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थानाप्रभारी सुनील जाधव ने इस मामले को संज्ञान में तो लिया, लेकिन जिस तरह से उन्हें काररवाई करनी चाहिए थी, वैसा कुछ नहीं हुआ. पुलिस इस मामले को एक साधारण शिकायत की तरह जांच करती रही. गायब मनीषा की बरामदगी की कोशिश करने के बजाय पुलिस सामान्य तौर पर मनीषा की तलाश करती रही.

इसी तरह 13-14 दिन निकल जाने के बाद मनीषा के घर वालों का धैर्य टूटने लगा तो मनीषा का भाई पुणे आया और एसीपी नामदेव चौहान से मिल कर उन्हें सारी बातें बताईं और अपनी बहन मनीषा के गायब होने में सागर का हाथ बताया. उस ने कहा कि वह उस से एकतरफा प्यार करता था और अकसर उसे परेशान किया करता था. एसीपी नामदेव चौहान ने मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) सुनील थोपटे को सौंप दी.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन पर इंसपेक्टर सुनील थोपटे ने सहायकों की एक टीम बनाई, जिस में उन्होंने एएसआई गजानंद जाधव, भालचंद जाधव, सिपाही गणेश आवाले को शामिल कर मामले की जांच शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि आनंदराव गुडव उर्फ सागर अमरावती जिले के थाना चादुर बाजार क्षेत्र में स्थित पपलपुरा गांव का रहने वला था. पुणे पुलिस ने जब सागर का फोन ट्रैक किया तो उस की लोकेशन चादुर बाजार क्षेत्र की मिली.

यह जानकारी मिलने पर पुणे पुलिस सक्रिय हो गई. तुरंत चादुर बाजार थाने से संपर्क कर उन्हें सारी बातें बता कर पुणे पुलिस की एक टीम सागर के गांव के लिए रवाना हो गई. गांव पहुंच कर पुलिस टीम ने चादुर बाजार पुलिस की सहायता से आनंदराव गुडव उर्फ सागर को अपनी गिरफ्त में लिया.

इंसपेक्टर सुनील थोपटे ने उस से पूछताछ की तो वह पहले तो इधरउधर की बातें कर पुलिस टीम को गुमराह करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सी सख्ती दिखाई तो वह टूट गया और अपना गुनाह कुबूल करते हुए कहा कि वह मनीषा की हत्या कर चुका है. उस ने मनीषा हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.

28 साल की सुंदर और महत्त्वाकांक्षी मनीषा गेडाम महाराष्ट्र के जिला अमरावती के गांव श्रीकृष्ण नगर की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम बापूराव गेडाम था.

परिवार में मां चित्रा के अलावा 3 भाईबहन थे. भाई का नाम प्रतीक और बड़ी बहन का नाम सुहासिनी गेडाम था. सुहासिनी की शादी हो चुकी थी. वह अपने परिवार के साथ पुणे के हडपसर की शिंदे बस्ती में रहती थी. भाई प्रतीक अमरावती के पाटे कालेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था.

परिवार में प्यार था. पिता बापूराव गेडाम अपनी बड़ी बेटी सुहासिनी से कभीकभी मिलने के लिए पुणे आतेजाते रहते थे.

मनीषा बीए तक पढ़ाई करने के बाद पुणे के मंत्री अपार्टमेंट विजयनगर में स्थित आईजीटी कंपनी में नौकरी करने लगी थी. वह अपनी एक सहेली जेनेट अमित पारकर के साथ पेइंगगेस्ट की तरह रहने लगी थी.

बेटी की राजदार मां होती है. मनीषा हर छोटीबड़ी बात मां से शेयर करती थी, इसलिए मनीषा ने जब अपनी मां चित्रा को बताया कि वह अपने कालेज के एक लड़के सागर गुडव से प्यार करती है और दोनों शादी कर के अपना एक सुनहरा संसार बसाना चाहते हैं तो मां को एक झटका सा लगा था.

उन्होंने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘वह लड़का कैसा है?’’

‘‘अच्छा है मां,’’ मनीषा ने बताया.

‘‘ठीक है, इस विषय में मैं तुम्हारे पापा से बात करती हूं.’’

शाम को घर आए पति बापूराव गेडाम को चित्रा ने जब बेटी मनीषा के बारे में बताया तो वह दंग रह गए. लेकिन करते भी तो क्या, मामला नाजुक था.

उन्होंने सागर के बारे में पता लगाया तो उस के विषय में उन्हें जो जानकारी मिली, उस से उन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था. वह उन का दामाद बनने लायक नहीं था. क्योंकि वह शराब सप्लायर के अलावा कई गलत काम करता था.

मौका देख कर मनीषा को परिवार वालों ने समझाया और कहा, ‘‘बेटी, तुम जिस से शादी करना चाहती हो वह संभव नहीं है.’’

‘‘क्यों पापा, सागर में बुराई क्या है?’’ मनीषा ने पूछा.

‘‘बेटी, उस में एक बुराई हो तो बताऊं, वह अपराधी प्रवृत्ति का लड़का है. तुम होशियार और समझदार हो. तुम जो करोगी, अच्छा करोगी. लेकिन बेटी समाज में अपनी भी कुछ इज्जत और मानसम्मान है. क्या तुम चाहती हो कि समाज में अपनी गरदन झुक जाए.’’ पिता ने कहा.

परिवार वालों के समझाने पर मनीषा ने सागर से शादी करने का अपना इरादा बदल दिया और उस से शादी करने से साफसाफ मना कर दिया था. कहा कि वह अपने परिवार वालों की पंसद से शादी करेगी.

मनीषा की इस बात से सागर के तनबदन में आग सी लग गई थी. पहले उस ने मनीषा को कई बार फोन किया. फोन बंद पा कर सागर ने मनीषा का रास्ता रोकना, उस पर दबाब और धमकाना शुरू किया, ‘‘देखो मनीषा, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. अगर तुम मुझे से शादी नहीं करोगी तो अंजाम बहुत बुरा होगा. मैं तुम्हें तो तकलीफ दूंगा ही, तुम्हारे पूरे परिवार को खत्म कर दूगा.’’

सागर के इस तरह के बर्ताव से परेशान हो कर मनीषा अपनी बहन सुहासिनी के घर पुणे चली गई थी. यह बात 2018 की है.

पुणे आने के कुछ दिनों बाद मनीषा को एक अच्छी सी नौकरी मिल गई थी. मनीषा की नौकरी लगने के बाद वह अपनी बहन का घर छोड़ जेनेट के साथ जा कर शेयरिंग में रहने लगी और अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया था.

मनीषा का नंबर बदल जाने के बाद सागर पागल सा हो गया था. मनीषा का नंबर पाने के लिए वह एक दिन उस के घर पहुंच गया. घर पर मनीषा की मां मिली. पूछने पर मां चित्रा ने उसे मनीषा के बारे में कुछ नहीं बताया तो सागर ने मां चित्रा को उन के साथ मारपीट की और उन्हें डरायाधमकाया.

उस की धमकियों से डरी चित्रा अपने एक रिश्तेदार के साथ चादुर बाजार थाने पहुंच गईं और सागर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. जिस पर पुलिस ने सागर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. उस के जेल जाने के बाद थोडे़ दिनों तक तो माहौल शांत रहा.

लेकिन जेल से छूटने के बाद सागर का वही नाटक शुरू हो गया था. उसे इस बीच किसी तरह मनीषा की सहेली जेनेट का फोन नंबर मिल गया था और वह मनीषा से बातें करने लगा. उसे शादी के लिए परेशान करने लगा. उस ने धमकी दी, ‘‘तुम अगर मुझ से शादी नहीं करोगी तो मैं तुम्हारी मां को खत्म कर दूंगा.’’ इस तरह की धमकी से कुछ दिन निकल गए थे.

14 फरवरी को बापूराव अपने बेटे प्रतीक के साथ पुणे में अपनी बड़ी बेटी सुहासिनी के यहां गए हुए थे, वहां उन की दोनों बेटियों के साथ उन का महाबलेश्वर घूमने का कार्यक्रम बन गया था. यहां सागर ने मनीषा को कई बार फोन किया था, पर मनीषा ने उस के एक भी फोन का जवाब नहीं दिया था, बल्कि अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया था.

इस से नाराज सागर वापस मनीषा के घर गया और उस की मां चित्रा से मारपीट की, मनीषा को जब यह जानकारी मिली तो वह अपने पापा और भाई के साथ गांव आई और चादुर बाजार थाने में सागर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दिया. फिर वह वापस पुणे लौट आई थी.

पुलिस ने सागर को फिर से जेल भेज दिया. 15 दिन जेल में रहने के बाद जब सागर बाहर आया तो उसे मनीषा से सख्त नफरत हो गई थी और इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार कर ली थी. अपनी योजना के अनुसार वह पुणे आ गया था और उस की सहेली जेनेट को फोन किया. लेकिन उस दिन उस का काम नहीं बना, मनीषा ने उस दिन उस से बात करने से मना कर दिया था.

घटना के दिन मनीषा को आखिर सागर ने अपनी बातों के जाल फंसा ही लिया था और उस के साथ कुछ समय बिताने के लिए तैयार हो गई थी.

मनीषा के साथ सागर ने पहले महाबलेश्वर जाने की योजना बनाई. लेकिन चंदननगर पुणे रोड पर आने के बाद उस ने अपना इरादा बदल दिया. उस का मानना था कि वहां तक जाने में काफी रात हो जाएगी, इसलिए उस ने अपनी बाइक भाटघर की तरफ मोड़ दी.

जोगवाड़ी, ब्राह्मण घर घूमने के बाद भाटघर वाटर बैंक के पास एक पत्थर पर जा कर दोनों बैठ गए थे. इस के पहले कि वे कुछ बात करते, मनीषा का फोन आ गया था. जिस पर उस की लंबी बातचीत चलने लगी.

इस पर जब सागर ने पूछा कि फोन किस का था, तो मनीषा ने कहा, ‘‘तुम्हें क्या करना है, मेरा फोन है.’’

‘‘लेकिन…’’ सागर कुछ आगे बोलता. मनीषा ने उस की बातों को काटते हुए कहा, ‘‘मेरी तुम से शादी नहीं हुई है, जो तुम मुझ पर इतना दबाव बनाओगे.’’

इस बात को ले कर दोनों में काफी कहासुनी हुई और क्रोध में आ कर सागर ने पास में ही पडे़ पत्थर को उठा कर मनीषा के सिर पर दे मारा. पत्थर के जोरदार हमले से मनीषा की एक दर्दनाक चीख निकल कर वहां के शांत वातावरण में खो गई थी.

कुछ समय के बाद मनीषा के खत्म होते ही उस ने अपनी बाइक उठाई और अपने गांव अमरावती आ गया था. गांव आ कर अपना फोन बंद कर चुपचाप बैठ गया था, जहां से पुलिस ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. फौरी तौर पर पूछताछ करने के बाद उसे उस जगह ले कर गए, जहां मनीषा की हत्या हुई थी.

उस जगह पहुंच कर के पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मनीषा का मोबाइल आदि को अपने कब्जे में ले कर लाश का पंचनामा तैयार किया. फिर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

आनंदराव गुडव उर्फ सागर से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने भादंवि की धारा 364, 302, 34 के अंतर्गत मुकदमा कर उसे पुणे की यरवदा जेल भेज दिया.

शक के कफन में दफन हुआ प्यार – भाग 3

ननिहाल जाने के बहाने मिलता था प्रेमिका से

विवेक बघांव पहुंचा तो उसे देख कर नाना रामधनी खुश हुए. उन्हें क्या पता था कि उन का नाती उन से नहीं, अपनी प्रेमिका चंदना से मिलने आया है. नानानानी से मिलना तो एक बहाना था. नानानानी से मिलने के बाद विवेक चंदना से मिलने उस के घर गया.

घर में चंदना और उस की मां ही थीं. विवेक को देखते ही चंदना का चेहरा खिल उठा. वह उसे हसरत भरी नजरों से देखती रही. विवेक से वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, लेकिन मां के डर की वजह से कुछ नहीं बोल पाई.

मुंह से भले ही न सही पर इशारोंइशारों में दोनों के बीच काफी बातें हुईं. वैसे भी जब दो प्रेमी दिल की गहराई से एकदूसरे को प्यार करते हों तो उन्हें अपनी बात कहने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती.

नाश्ता वगैरह करने के बाद विवेक जब घर से निकलने लगा तो चंदना उसे विदा करने कमरे से बाहर आई. तभी उस ने झटके में मोबाइल फोन उस के हाथों में थमा दिया और बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए गिफ्ट है.’’ चंदना ने झट से फोन अपनी समीज के अंदर रख लिया ताकि कोई देख न सके. उस रात विवेक नाना के घर पर ही रुक गया. अगली सुबह वह अपने घर मऊनाथ भंजन लौट आया.

फोन मिल जाने से दोनों के बीच की दूरियां मिट गईं. भले ही वे एकदूसरे की सूरत देख नहीं पा रहे थे, लेकिन प्यार भरी मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल को तसल्ली दे लेते थे. एक दिन चंदना की छोटी बहन वंदना ने उसे मोबाइल पर किसी से बात करते सुन लिया.

उस ने जब इस बारे में बहन से पूछा तो वह घबरा गई. उस ने वंदना को इस बारे में किसी से कुछ भी न बताने को कहा तो वह मान गई. वंदना ने वाकई किसी से कुछ नहीं बताया. हां, चंदना ने उसे यह नहीं बताया था कि वह किस से और क्यों बातें करती थी. धीरेधीरे दोनों का प्रेम जवां होता रहा.

वे अपने प्यार को ले कर भविष्य के सुनहरे सपने संजोने लगे. रेत के ढेर पर ख्वाबों का आशियाना बनाने लगे. इसी बीच इन प्रेमियों के साथ एक नई घटना घट गई. पता नहीं दोनों के प्यार को किस की नजर लग गई थी.

अचानक बदल गया चंदना का व्यवहार

विवेक ने महसूस किया कि चंदना अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं कर रही है. पता नहीं क्यों वह उस से कटने लगी थी. पहले वह विवेक के फोन की घंटी बजते ही काल रिसीव कर लेती थी, पर अब लगातार फोन की घंटियां बजती रहती थीं. न तो चंदना काल रिसीव करती थी और न ही मिस्ड काल करती थी.

चंदना के इस व्यवहार पर विवेक को गुस्सा आता था. हद तो तब हो गई जब विवेक चंदना को काल करता तो वह अकसर दूसरी काल पर व्यस्त मिलती थी.

विवेक का शक पुख्ता हो गया था कि चंदना का किसी और के साथ संबंध बन चुका है. इसीलिए वह उस से कटीकटी सी रहने लगी है. इस बात को ले कर चंदना और विवेक के बीच विवाद हो गया. विवेक ने उसे बहुत भलाबुरा कहा. उस के बाद चंदना ने विवेक से बात करनी बंद कर दी.

बाद में विवेक ने किसी तरह चंदना को मना लिया और उस से माफी मांग ली. उस ने वादा किया कि अब दोबारा उस से ऐसी गलती नहीं होगी. चंदना से माफी मांग कर विवेक ने एक पैंतरा चला था. उस ने सोच लिया था कि अगर चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी.

इसीलिए उस ने चंदना से माफी मांग कर उसे विश्वास में लिया ताकि कभी बुलाने पर वह उस की बात सुन ले. प्यार में अंधी चंदना को इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि विवेक उस के पीठ पीछे क्या षडयंत्र रच रहा है.

विवेक ईर्ष्या की आग में जल रहा था. वह दिनरात इसी सोच में डूबा रहता था कि चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. आखिर विवेक ने उस की हत्या की योजना बना डाली. योजना बनाने के बाद विवेक बाजार जा कर एक फलदार चाकू खरीद लाया और उसे अपने बैग में छिपा दिया.

16 मार्च की सुबह विवेक मां से नानी के घर जाने को कह कर घर से निकला और बस स्टैंड जा पहुंचा. वहां से वह गाजीपुर जाने वाली एक सरकारी बस में बैठ गया. गाजीपुर पहुंचने के बाद उस ने चंदना को फोन कर के बताया कि वह मिलने आ रहा है. गांव के बाहर लल्लन यादव के खेत के पास पहुंचो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं.

विवेक का फोन आने के बाद चंदना मां से खेतों पर जाने की बात कह कर विवेक के बताए स्थान पर जाने के लिए चल दी. चंदना को क्या पता था कि जो उस से मिलने आ रहा है, वह उस का वफादार प्रेमी नहीं बल्कि मौत है.

साढ़े 9 बजे के करीब चंदना लल्लन यादव के खेत पर पहुंच गई. वहां खेत के चारों ओर कोई नहीं था. तब तक विवेक भी वहां पहुंच गया. प्रेमिका को देख कर विवेक हौले से मुसकराया तो चंदना ने भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दिया. फिर चंदना ने उस से बुलाने की वजह पूछी तो विवेक गुस्से से लाल हो गया और उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए खुद को बरबाद कर दिया. तुम पर पानी की तरह पैसे बहाए. तुम ने बदले में मुझे क्या दिया बेवफाई. मेरे प्यार को ठुकरा कर दूसरों की बाहों में रंगरलियां मना रही हो. ऐसा मैं हरगिज होने नहीं दूंगा. अगर तुम मेरी नहीं हुई तो तुम्हें किसी और की भी होने नहीं दूंगा.’’

विवेक ने किया चाकू से वार

चंदना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही विवेक ने बैग से फलदार चाकू निकाला और उस की गरदन पर जोरदार वार कर दिया. चंदना हवा में लहराती हुई जमीन पर जा गिरी. उस के बाद विवेक तब तक उस के पेट और गरदन पर वार करता रहा, जब तक उस के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए. चंदना की निर्मम हत्या करने के बाद विवेक उस की लाश घसीटते हुए गेहूं के खेत में ले गया और लाश को ठिकाने लगा कर आराम से घर लौट आया.

विवेक ने जिस चालाकी और सफाई से काम किया था, उसे देख कर उसे लगा था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकती. लेकिन पुलिस ने उस की सोच पर पानी फेर दिया. जिस शक की आग में वह जल रहा था, उसी शक की आग ने उसे खाक में मिला दिया.

प्यार का ये मतलब नहीं होता कि किसी की निर्मम तरीके से हत्या कर दे. विवेक अगर समझदारी से काम लेता तो चंदना भी इस दुनिया में सांस ले रही होती. लेकिन एक शक की चिंगारी ने सब कुछ तहसनहस कर दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक के कफन में दफन हुआ प्यार – भाग 2

‘‘मैं अभी लाती हूं.’’ वंदना ने जवाब दिया. फिर वह भागती हुई कमरे में गई और बक्से से मोबाइल फोन निकाल कर ले आई. उस ने मोबाइल थानाप्रभारी के हाथों में दे दिया. यह देख कर दीपचंद और उस की पत्नी भौचक्के रह गए. उन्हें पता ही नहीं था कि उन की बेटी उन की नाक के नीचे क्या गुल खिला रही थी. घर वालों को पता ही नहीं था कि छोटी बेटी भी उस के साथ मिली हुई थी. मांबाप माथा पकड़ कर बैठ गए.

‘‘बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी बहन चंदना किस से बात करती थी?’’ जांच अधिकारी ने वंदना से अगला सवाल किया.

‘‘सर, मुझे उस का नाम तो नहीं पता लेकिन मैं इतना जानती हूं कि दीदी छिपछिप कर किसी से बात करती थी. मैं ने उसे कई बार बातें करते हुए देखा था.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम जा सकती हो. इस के आगे का पता मैं खुद लगा लूंगा.’’ उन्होंने कहा और चंदना का मोबाइल फोन ले कर चले गए.

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी के पास हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए मोबाइल ही आखिरी सहारा था. उन्होंने चंदना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 16 मार्च की सुबह चंदना के फोन पर साढ़े 9 बजे के करीब आखिरी काल आई थी.

मोबाइल से पहुंची कातिल तक पुलिस

उस के बाद उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था. जिस नंबर से चंदना को आखिरी काल आई थी, उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि वह नंबर मऊनाथ भंजन जिले के मुहम्मदाबाद गोहना थाना क्षेत्र के गांव उमनपुर निवासी विवेक कुमार चौहान का था. उस नंबर पर चंदना की काफी लंबीलंबी बातें होती थीं. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मामला प्रेम प्रसंग का था. इसी प्रेम प्रसंग के चक्कर में उस की हत्या हुई थी.

जांच अधिकारी शमीम अली ने दीपचंद को थाने बुलवा कर विवेक कुमार चौहान के बारे में पूछताछ की तो दीपचंद विवेक का नाम सुन कर चौंक गया. उस ने बताया कि विवेक उस के पड़ोस में रहने वाले रामधनी का नाती है. वह अकसर अपने नानानानी से मिलने ननिहाल आता रहता था. वह जब भी यहां आता था, मेरे घर पर भी सब से मिल कर जरूर जाता था. वह बहुत सीधासादा लड़का है.

काल डिटेल्स के आधार पर विवेक शक के दायरे में आ चुका था. घटना वाले दिन से उस का भी फोन बंद था. लेकिन घटना वाले दिन उस के सेलफोन की लोकेशन घटनास्थल पर ही थी. इसी वजह से विवेक शक के दायरे में आ गया.

19 मार्च, 2018 को थानाप्रभारी शमीम अली गाजीपुर से पुलिस फोर्स ले कर मऊनाथ भंजन पहुंचे. मुहम्मदाबाद गोहना थाने की पुलिस की मदद से उन्होंने उमनपुर स्थित विवेक के घर पर दबिश दी. संयोग से विवेक घर पर ही था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर गाजीपुर ले आई. फिर पुलिस ने उसे बहरियाबाद थाने ले जा कर उस से कड़ाई से पूछताछ की.

सख्ती से घबरा कर उस ने सब कुछ बता दिया. अपना जुर्म कबूलते हुए उस ने पुलिस को बताया कि चंदना उस की प्रेमिका थी और उसी ने चाकू से गोद कर उस की हत्या की थी. उस ने यह भी बताया कि उस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू छिपा दिया था.

विवेक ने सिलसिलेवार पूरी कहानी बता दी. थानाप्रभारी ने विवेक की निशानदेही पर लल्लन के खेत से चाकू बरामद कर लिया. आरोपी विवेक से पूछताछ के बाद कहानी कुछ इस तरह पता चली.

चंदना विवेक से लड़ा बैठा था नैना

21 वर्षीय चंदना खूबसूरत तो थी ही, ऊपर से चंचल भी थी. चंदना के पड़ोस में रामधनी चौहान का घर था. रामधनी भले ही दीपचंद की जाति के नहीं थे, लेकिन रामधनी के घर से दीपचंद के परिवार जैसे प्रगाढ़ संबंध थे. रामधनी के घर जब भी कोई मेहमान आता था तो दीपचंद उसे बुला कर अपने घर ले आता और जम कर स्वागत करता. दीपचंद के मेहमाननवाजी से मेहमानों का दिल खुश रहता था.

रामधनी की बेटी का एक बेटा था जिस का नाम विवेक कुमार चौहान था. 21-22 वर्षीय विवेक कभीकभार नानानानी के घर बघांव आया करता था. वह मऊनाथ भंजन जिले के उमनपुर गांव में अपने मांबाप के साथ रहता था. उस के पिता का नाम था विजय बहादुर चौहान. वह सरकारी नौकरी में थे. उसी से 5 सदस्यों वाले परिवार का भरणपोषण होता था. विवेक ने स्नातक तक पढ़ाई कर के नौकरी करने का मन बना लिया था.

3 साल पहले यानी सन 2015 में बात तब की है जब विवेक इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उन्हीं दिनों उस के ननिहाल बघांव में शादी थी. परिवार के साथ विवेक भी बघांव आया था. वहां उसे मामा के घर सप्ताह भर रहना था.

घर वालों के साथ चंदना भी शादी में शामिल हुई. चंदना खूबसूरत तो थी ही, जब वह सफेद रंग के कपड़े पहन लेती थी तो और भी सुंदर लगती थी. उस दिन भी चंदना ने सफेद रंग की पोशाक पहनी थी. इस पोशाक में वह सब से अलग और बहुत खूबसूरत लग रही थी. अचानक उस पर विवेक की नजर पड़ गई तो वह उसे कुछ देर अपलक निहारता रह गया. थोड़ी देर बाद चंदना उस की नजरों के सामने से ओझल हो गई तो उस की आंखें उसे इधरउधर ढूंढने लगीं. लेकिन वह कहीं नहीं दिखी.

प्यार में दोनों हो गए दीवाने

पहली ही नजर में चंदना विवेक के दिल में घर कर गई थी. उस दिन के बाद से विवेक चंदना के करीब जाने के लिए बेताब रहने लगा. वैसे भी उस के लिए दीपचंद के घर आनेजाने की पूरी छूट थी. जब भी मौका मिलता, वह दीपचंद के घर चला जाता और घंटों चंदना के साथ बिताता.

चूंकि चंदना के पिता दीपचंद अध्यापक थे, इसलिए उन का दिन स्कूल में ही बीतता था. बच्चे स्कूल चले जाते थे. चंदना की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इसलिए वह और उस की मां सुमन घर पर ही रहती थी. सुमन को विवेक के चंदना से मिलने पर कोई ऐतराज नहीं था. वह सोचती थी कि विवेक बहुत सीधासादा और नेकदिल युवक है. वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा, जिस से दोनों परिवारों की बदनामी हो.

विवेक जब भी चंदना के पास बैठता था, उसे दीवानगी भरी नजरों से निहारता था. चंदना को विवेक का ऐसा देखना अच्छा लगता था. उस के मन के भीतर एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. धीरेधीरे चंदना भी विवेक को प्यार भरी नजरों से देखने लगी थी.

आंखों के रास्ते दोनों ने एकदूसरे के दिलों में अपना मुकाम बना लिया था. यह भी कह सकते हैं कि दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. जब दिलों की बातें हुईं तो मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर लिया. एक हफ्ते बाद विवेक अपने परिवार के साथ घर लौट गया.

विवेक अपने घर तो लौट आया, लेकिन उस का दिल, उस का चैन, उस का करार सब कुछ चंदना के पास रह गया था. चंदना के बगैर विवेक का मन नहीं लग रहा था. वह उस से मिलने के लिए तड़प रहा था. विवेक यही सोच रहा था कि चंदना से कैसे मिले, कैसे बातें करे. उधर चंदना का भी यही हाल था. विवेक के लिए वह तड़प रही थी. चंदना के पास सेलफोन भी नहीं था जो फोन कर के विवेक से बात कर लेती.

मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. दोनों विरह की अग्नि में जल रहे थे. विवेक से जब चंदना की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो वह मांबाप से झूठ बोल कर नानानानी से मिलने के बहाने बघांव चला आया. बघांव आते हुए रास्ते में उस ने चंदना को उपहार में देने के लिए एक मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोचा कि चंदना के पास सेलफोन होगा तो बात करने में आसानी रहेगी.

शक के कफन में दफन हुआ प्यार – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना बहरियाबाद क्षेत्र में एक गांव है बघांव. पेशे से अध्यापक दीपचंद राम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुमन के साथसाथ 2 बेटे थे सुरेश और सुरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं चंदना और वंदना. चंदना सब से बड़ी, समझदार और खूबसूरत लड़की थी. वह दीपचंद और सुमन की लाडली थी.

16 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9-10 बजे चंदना मां से खेतों पर जाने को कह कर घर से बाहर निकली तो दोपहर के 1 बजे तक घर नहीं लौटी. दीपचंद और सुमन को चिंता हुई. सयानी बेटी के इस तरह से गायब हो जाने से मांबाप परेशान हो गए. उन्होंने अड़ोसपड़ोस में चंदना को ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि चंदना रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गई.

मामला जवान बेटी से जुड़ा था, इसलिए संवेदनशील दीपचंद ने यह सोच कर इस बारे में किसी को नहीं बताया कि व्यर्थ में अंगुलियां उठने लगेंगी. धीरेधीरे शाम ढलने लगी, लेकिन चंदना घर नहीं लौटी. ऐसे में दीपचंद और सुमन की घबराहट और बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही थी.

दोनों बेटी के बारे में सोचसोच कर परेशान थे. उन की बेचैनी और चंदना को ढूंढने की वजह से कुछ लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि चंदना गायब है. फलस्वरूप धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई थी. गांव वाले चंदना को ले कर तरहतरह की बातें करने लगे थे. जब शाम तक चंदना का कहीं पता नहीं चला तो दीपचंद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बहरियाबाद थाने पहुंचा.

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी थाने में ही मौजूद थे. जब दीपचंद अन्य लोगों के साथ थाने पहुंचा तब तक अंधेरा घिर आया था. थानाप्रभारी ने दीपचंद से रात में थाने आने का कारण पूछा तो दीपचंद ने उन्हें पूरी बात बता दी.

मामला गंभीर था. दीपचंद की बातें सुन कर थानाप्रभारी सिद्दीकी ने लिखने के लिए एक सादा पेपर दीपचंद की ओर बढ़ा दिया और तहरीर लिख कर देने के लिए कहा. दीपचंद ने तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने दीपचंद की तहरीर पर चंदना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

लहूलुहान हालत में मिली चंदना की लाश

अगली सुबह यानी 17 मार्च को बघांव का रहने वाला लल्लन यादव गांव के बाहर अपने खेत में पंपिंग सेट देखने पहुंचा. उस ने अपने खेत में पंपिंग सेट लगा रखा था. पैसा ले कर वह दूसरों के खेतों की सिंचाई किया करता था. खेतों में पहुंच कर लल्लन की नजर गेहूं की फसल पर पड़ी तो उसे कुछ अजीब सा लगा. खेत के बीच में काफी दूर तक फसल रौंदी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने खेत में घुस कर उत्पात मचाया हो.

पड़ताल करने के लिए लल्लन अंदर पहुंच गया. उस की नजर जब बरबाद हुई गेहूं की फसल पर पड़ी तो वह वहां का नजारा देख घबरा गया. वह वहां से भागा तो सीधा दीपचंद के घर ही जा कर रुका.

दीपचंद जिस बेटी को 24 घंटे से तलाश कर रहा था, उस की अर्द्धनग्न लाश लल्लन यादव के खेत में पड़ी थी. किसी ने उस के गले और पेट पर चाकू से अनगिनत वार कर के मौत के घाट उतार दिया था.

चंदना की लाश मिलते ही दीपचंद के घर में कोहराम मच गया. दीपचंद और गांव के तमाम लोग लल्लन के खेत पर जा पहुंचे, जहां चंदना की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. चंदना की लाश देख कर गांव वालों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी. लोगों ने घटनास्थल देख अनुमान लगाया कि हत्यारों की संख्या 2-3 से कम नहीं रही होगी, क्योंकि काफी दूरी तक गेहूं की फसल रौंदी हुई थी.

भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कंट्रोलरूम से वायरलैस सेट पर यह सूचना बहरियाबाद थाने को दे दी गई. इस घटना से गांव वाले काफी गुस्से में थे. उन लोगों ने चंदना की लाश ले कर बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग (गाजीपुर-मऊ मार्ग) पर जाम लगा दिया.

कंट्रोलरूम से दी गई सूचना के आधार पर बहरियाबाद थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की टीम में एसआई विपिन सिंह, प्रशांत कुमार चौधरी, विकास श्रीवास्तव, संजय प्रसाद, दिनेश यादव शामिल थे. पुलिस को देखते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. वे पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे.

शमीम अली सिद्दीकी ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए कप्तान सोमेन वर्मा को फोन कर के फोर्स भेजने का आग्रह किया. पुलिस कप्तान ने तत्काल सीओ (सैदपुर) मुन्नीलाल गौड़, सीओ (भुड़कुड़ा) प्रदीप कुमार, सीओ (जखनिया) आलोक प्रसाद सहित जिले के कई थानों के थानाप्रभारियों को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया. वह खुद भी मौके पर पहुंच गए.

कुछ ही देर में बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग पर खाकी वरदी ही वरदी नजर आने लगीं. पुलिस ने पंचनामा के लिए चंदना की लाश लेने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को लाश देने से मना कर दिया. उन की 2 मांगें थीं, पहली यह कि घटनास्थल पर डौग स्क्वायड को बुलवाया जाए और दूसरी यह कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

गांव वालों का विरोध प्रदर्शन

पुलिस कप्तान सोमेन वर्मा ने लोगों की पहली मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, क्योंकि जिले में डौग स्क्वायड की कोई व्यवस्था नहीं थी. अलबत्ता उन्होंने प्रदर्शनकारियों की दूसरी मांग पूरी करने का भरोसा देते हुए वादा किया कि हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

पुलिस की 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद एसपी वर्मा के आश्वासन पर गांव वाले शांत हुए. पुलिस ने जल्दीजल्दी पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. घटना की तफ्तीश की जिम्मेदारी थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी को सौंपी गई.

चंदना की हत्या किस ने और क्यों की, पुलिस के लिए यह गुत्थी सुलझाना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने सब से पहले घटनास्थल का दौरा किया और फिर मृतका चंदना के घर जा कर उस के पिता दीपचंद से पूछताछ की. दीपचंद ने थानाप्रभारी को बताया कि उस की या उस की बेटी चंदना की किसी से कोई अदावत नहीं थी. वैसे भी चंदना अपने काम से मतलब रखती थी. वह किसी के घर भी ज्यादा नहीं उठतीबैठती थी.

चंदना हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. जांच अधिकारी के लिए यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था. उधर चंदना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. उस की मौत का कारण अत्यधिक खून बहना बताया गया था.

थानाप्रभारी शमीम अली ने चंदना हत्याकांड का खुलासा करने के लिए कई मुखबिर लगा दिए थे. इसी बीच जांच के दौरान उन्हें पता चला कि चंदना अपने पास मोबाइल फोन रखती थी और सब से छिपछिपा कर किसी से अकसर बातें करती थी. यह बात वंदना के अलावा कोई नहीं जानता था.

वंदना काफी छोटी थी. थानाप्रभारी शमीम ने सोचा अगर उस से डराधमका कर पूछताछ की गई तो वह डर जाएगी और फिर शायद ही कुछ बता पाए. इसलिए उस से बड़े प्यार और मनोवैज्ञानिक तरीके से बात करनी जरूरी थी. क्या करना है, यह फैसला कर के वह दीपचंद के घर जा पहुंचे.

पुलिस के हत्थे लगा चंदना का मोबाइल फोन

उन्होंने वंदना के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘वंदना.’’ वंदना ने डरते हुए जवाब दिया.

‘‘किस क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘चौथी क्लास में.’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी दीदी अपने पास एक मोबाइल रखती थी? वह मोबाइल कहां है?’’

‘‘जी सर, मुझे पता है दीदी अपने पास एक मोबाइल फोन रखती थी. यह भी पता है कि वह उसे कहां छिपा कर रखती थी.’’ वंदना ने कांपते स्वर में उत्तर दिया.

‘‘तो बताओ वह मोबाइल कहां छिपा कर रखती थी?’’ थानाप्रभारी ने बडे़ प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

खून में डूबा प्यार

मंजू सिदार सैफ से पहली दफा मिलने वाली थी. लगभग एक साल से दोनों फेसबुक और वाट्सऐप पर ही बातें करते रहे थे. उन की दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी.

धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती गई. उन्होंने तय किया कि पहली जनवरी को वे एक साथ पिक्चर देखने चलेंगे. जब मंजू सिदार और सैफ ने एकदूसरे को देखा तो दोनों बहुत खुश हुए. शोएब अहमद अंसारी ने मंजू को बताया कि उस ने टिकट ले ली है और मूवी शुरू होने में अभी थोड़ा समय है. क्यों न पास के रेस्टोरेंट में बैठ कर कुछ बातें कर लें.

मंजू की स्वीकृति के बाद दोनों रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. एकदूसरे को निकटता से समझने के प्रयास में मंजू और सैफ बातों में डूब गए. सैफ मंजू को पहली बार देख कर उस का दीवाना ही हो गया.

मंजू की बातों से सैफ मंत्रमुग्ध सा हो गया. उस दिन उस ने मौका हाथ से नहीं जाने दिया. पिक्चर देखने के बाद तीनों एक गार्डन में बैठ गए, जहां दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सैफ ने तो यहां तक कह दिया कि मैं शादी करूंगा तो तुम से ही करूंगा.

मंजू पहली ही मुलाकात में सैफ के व्यवहार से प्रभावित हो गई. वह बोली, ‘‘सैफ, मैं तुम्हें पसंद करती हूं. मगर शादी के लिए इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. अभी हम एकदूसरे को और समझ लें. वैसे भी अभी मेरी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी नहीं हुई है. मैं रायपुर जा कर पढ़ाई पूरी कर लूं.’’

‘‘ठीक है, तुम सोच लो, मैं तो तुम्हारा हो गया. समझ लो, मैं तुम्हारी इच्छा का गुलाम हूं. जब तुम कहोगी, तब शादी कर लेंगे.’’ सैफ ने कहा.

यह सुन मंजू हंसते हुए बोली, ‘‘तुम मुसलिम हो न, मुझे जाने क्यों मुसलिम बहुत अच्छे लगते हैं. मैं शादी करूंगी, मगर थोड़ा समय दो.’’

मंजू के मुसलमान वाले फिकरे को सुन कर सैफ के कान खड़े हो गए. वह सोचने लगा कि मंजू कहीं उस के मुसलिम होने की वजह से उस से निकाह नहीं करना चाहती या और कोई बात है. सैफ ने मंजू की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा, ‘‘मंजू, अगर तुम्हें आपत्ति है तो मैं तुम्हारी खातिर अपना धर्म बदलने को तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, तुम्हें धर्म बदलने की कोई जरूरत नहीं है. न तुम धर्म बदलो और न मैं बदलूंगी. यह तय है.’’ मंजू बोली.

मंजू की बात सुन कर सैफ खुश हुआ. मंजू ने उस से कहा, ‘‘सैफ, मैं अभी पढ़ना चाहती हूं. मेरे जीवन का उद्देश्य पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना है. मैं नर्स बनना चाहती हूं. बस तुम मुझे थोड़ा समय दो.’’

सैफ ने उस की बातों पर अपनी स्वीकृति दे दी.

इस घटनाचक्र के बाद मंजू सिदार और सैफ अकसर मिलते और साथसाथ समय बिताते. उन की दोस्ती ने रंग लाना शुरू कर दिया. उन का प्यार बढ़ता गया.

शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ रायगढ़ के बोइरदादर कस्बे का रहने वाला था. रायगढ़ में उस की मोबाइल फोन और एक्सेसरीज की दुकान थी.

एक दिन जब दोनों मिले तो मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं अगले हफ्ते रायपुर जाऊंगी, क्योंकि वहीं रह कर मुझे पढ़ाई पूरी करनी है.’’

अब मंजू को पढ़ाई के लिए 2 साल रायपुर में रहना था. त्यौहार आदि पर वह साल में 1-2 बार ही रायगढ़ आ सकती थी.

मंजू की बातें सुन कर सैफ निराश हुआ. उसे निराश होते देख मंजू चहकी, ‘‘तुम इतने दुखी क्यों हो गए?’’

‘‘मैं क्या कहूं,’’ सैफ ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं तो तुम्हारा गुलाम हूं, जो कहोगी सुनूंगा, करूंगा.’’

मंजू ने हंस कर कहा, ‘‘मगर एक खुशी की खबर है.’’

‘‘क्या?’’ सैफ उत्सुक हुआ.

‘‘उस से पहले हम शादी कर सकते हैं, अगर तुम चाहो तो…’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? अंधे से पूछ रही हो कि आंखें चाहिए, मैं तैयार हूं.’’ वह खुश हो कर बोला.

इस के बाद फैसला कर दोनों ने 21 मार्च, 2019 को रायगढ़ से नोटरी पब्लिक शपथ पत्र बनवा लिया और कोर्ट में औपचारिक रूप से विवाह कर लिया. इस विवाह के साक्षी दोनों के नजदीकी मित्र बने. दोनों ने तय किया कि कुछ समय दोनों अलगअलग ही रहेंगे, मगर जल्द ही एकदूसरे के हो जाएंगे.

मंजू छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ के विनीतानगर वार्ड में रहने वाले गजाधर सिदार की बेटी थी. गजाधर रायगढ़ तहसील में पटवारी हैं. उन की 2 बेटियां थीं मंजू और मनीषा. दोनों बेटियों को वह उन के मनमुताबिक पढ़ा रहे थे. दोनों बहनों में आपस में बहुत प्यार था.

मंजू सिदार की छोटी बहन मनीषा कहने को तो उस की बहन थी, लेकिन वह उस की दोस्त भी थी. वह भी मंजू और सैफ के विवाह की गवाह थी. एक दिन उस ने अपनी मां प्रभावती को बातों ही बातों में बता दिया कि मंजू दीदी ने शादी कर ली है.

यह बात जब मां प्रभावती और पिता गजाधर सिदार को पता चली तो दोनों मंजू से बेहद नाराज हुए. मां प्रभावती तो मानो टूट ही गईं. उस ने मंजू को प्यार से समझाया. साथ ही दुहाई दे कर कहा कि तुम गलत दिशा में जा रही हो. तुम ने जो कदम उठाया है, उस से तुम्हारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.

मां की सलाह से धीरेधीरे मंजू के विचार बदल गए. उसे समझ में आने लगा कि उस ने जीवन की बहुत बड़ी भूल की है. सैफ और उस के रास्ते बिलकुल अलग हैं. जब मंजू को यह बात समझ में आई तो धीरेधीरे उस ने सैफ से कन्नी काटनी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, उस ने सैफ से बातचीत भी बहुत कम कर दी. सैफ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मंजू उसे इग्नोर क्यों कर रही है.

एक दिन दोनों की मुलाकात हुई तो सैफ ने बहुत सारे गिफ्ट, जरूरी सामान और पैसे मंजू को देने चाहे. मगर मंजू ने लेने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘सैफ, तुम्हारे और मेरे रास्ते अब जुदाजुदा हैं.’’

सैफ मानो आसमान से जमीन पर गिर पड़ा. वह अचंभित सा मंजू को देखता रह गया.

मंजू ने आगे कहा, ‘‘सैफ, अच्छा तो यही रहेगा कि अब तुम मुझे भूल जाओ.’’

इस पर सैफ बोला, ‘‘मंजू, तुम ने मेरे साथ ब्याह किया है, कोर्ट मैरिज. और अब कहती हो भूल जाऊं. यह भला कैसे हो सकता है. मंजू अगर ऐसी बात थी तो तुम्हें विवाह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है.’’

‘‘नहींनहीं, यह धोखा नहीं बल्कि हमारा बचपना था. मुझ से भूल हुई. बिना मांबाप, परिवार की सहमति के भला विवाह कैसे हो सकता है?’’ वह बोली.

‘‘हम ने कोर्टमैरिज की है, उस का क्या होगा?’’

‘‘उन कागजों को जला दो.’’ मंजू ने सपाट स्वर में कहा.

मंजू की कठोरता देख शोएब अंसारी उर्फ सैफ का दिल टूट गया. उस की आंखों के आगे जैसे अंधेरा घिर आया. उस ने कातर स्वर में कहा, ‘‘मंजू, तुम चाहे जो सोचो, जो कहो, मगर मैं साफसाफ कहता हूं मैं ने सच्चे दिल से तुम्हें चाहा है और सदैव चाहता रहूंगा. मैं तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर चुका हूं.’’

मंजू सैफ की आंखों में देखती रही. उसे लगा सैफ उसे सचमुच दिल से चाहता है, उस का सिर घूम गया. फिर वह अपने घर चली गई.

10 दिसंबर, 2019 को मंगलवार था. उस दिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टिकरापारा के गोदावरी नगर स्थित फ्लैट के बाहर शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ अपने 2 साथियों गुलाम मुस्तफा (18 वर्ष) और रामलाल (15 वर्ष) के साथ खड़ा था.

मंजू वहीं फ्लैट में रह कर अपनी पढ़ाई कर रही थी. उस समय उस की छोटी बहन मनीषा भी उस के पास आई हुई थी. सैफ ने मुस्तफा से कहा, ‘‘देखो, मंजू ने मेरे साथ जो धोखा किया है, उसे मैं अब और बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मंजू मेरे साथ ऐसा करेगी, मैं ने कभी सोचा नहीं था. अब मैं ने फैसला कर लिया है कि ऐसी धोखेबाज को सबक जरूर सिखाना है. यानी उस का काम तमाम करना है. अगर तुम मेरा यह काम कर दोगे, तो मैं तुम्हें 7 लाख रुपए दूंगा.’’ कहतेकहते उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

सैफ की बात सुन गुलाम मुस्तफा बोला, ‘‘देख यार सैफ, तू गुस्सा न हो. तू उस से बात कर. हो सकता है अभी भी वह तेरी हो जाए. मगर सुन ले हमारे पैसे तुम्हें दोनों ही हालत में देने होंगे.’’

‘‘मेरा वादा है, पैसे जरूर दूंगा. बस मेरा काम हो जाए.’’ सैफ ने कहा.

‘‘आओ, फिर हम अपना काम करें.’’ गुलाम मुस्तफा ने कहा. मंजू घर में है या नहीं, पता लगाने के लिए सैफ ने उस के मोबाइल पर फोन कर कहा, ‘‘मंजू, मैं तुम से आखिरी बार कुछ बात करना चाहता हूं. उस के बाद तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगा.’’

मंजू सुबह का नाश्ता बना कर नर्सिंग कालेज जाने के लिए तैयार थी. उसे वहां 12 बजे पहुंचना था. उस ने सैफ को फ्लैट पर बुला लिया. सैफ और मुस्तफा फ्लैट में चले गए और रामलाल फ्लैट के बाहर ही खड़ा रहा. फ्लैट में प्रवेश करते ही सैफ ने देखा मंजू उस समय अपनी छोटी बहन मनीषा के साथ नाश्ता कर रही थी.

सैफ पास पहुंच कर बोला, ‘‘मंजू, मैं आखिरी बार तुम्हारे पास आया हूं, क्योंकि मैं रोजरोज की बातों से आजिज आ चुका हूं. बताओ, तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो?’’

यह सुनते ही मंजू और मनीषा नाश्ता छोड़ उस की ओर देखने लगीं. तभी मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं तो तुम्हें पहले ही बोल चुकी हूं कि अब तुम मुझे भूल जाओ. जो हुआ, वह भी भूल जाओ.’’

मंजू की तल्ख बातें सुन कर सैफ आपे में नहीं रहा. वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम ने रमन के साथ टिकटौक पर वीडियो क्यों डाला? क्या यह वीडियो अपलोड करना तुम्हारी फितरत को बयां नहीं करता?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘सीधी सी बात है, तुम ने मुझे बरबाद किया अब रमन को बरबाद करोगी. पहले मेरे साथ कोर्टमैरिज की, अब उसे फंसा रही हो.’’

‘‘नहीं, मेरी रमन के साथ शादी होने जा रही है.’’ मंजू ने एकाएक जैसे बड़े रहस्य से परदा उठा दिया.

‘‘मुझे छोड़ कर तुम किसी और के साथ शादी नहीं कर सकती.’’ सैफ तल्ख हो गया.

मंजू भी आगबबूला हो गई. दोनों में कहासुनी बढ़ती गई.

तभी सैफ ने वहीं रखा फ्राइंग पैन उठा कर मंजू के सिर पर दे मारा. जिस से मंजू की चीख निकल गई और उस के सिर से खून बहने लगा.

वह वहीं ढेर हो गई. बहन की गंभीर हालत देख कर मनीषा सैफ पर हमलावर हो उठी तो उस ने उसी फ्राइंग पैन से कई वार कर के मनीषा को भी मरणासन्न कर डाला. इस बीच गुलाम मुस्तफा उस का बराबर साथ दे रहा था. वह अपना गमछा ले कर मंजू के पास पहुंचा और गमछे से मंजू का गला घोंट दिया. फिर उसी गमछे से मनीषा का भी गला घोंट दिया, जिस से दोनों की ही मौत हो गई.

सैफ और गुलाम मुस्तफा दोनों ने उन के मोबाइल उठा कर अपने पास रख लिए. अपना काम निपटा कर जब वह घर से बाहर भागने को हुए तो घर के बाहर से किसी की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुन कर वे घबरा गए, जिस से जल्दबाजी में गुलाम मुस्तफा का एक जूता किसी चीज में फंस कर वहीं रह गया. वह दरवाजा खोल भाग खड़ा हुआ. इस दरमियान उस फ्लैट के बाहर दूसरी मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में वे सब कैद हो गए.

मंजू और मनीषा की चीखें सुन कर आसपड़ोस वाले भी वहां आ गए. उन्होंने फ्लैट की खिड़की से झांक कर देखा तो दोनों लड़कियों को लहूलुहान देख कर वह माजरा समझ गए.

उन्होंने सूचना फ्लैट मालिक इंद्रजीत सिंह को दे दी. इंद्रजीत फ्लैट पर पहुंचे तो वहां रहने वाली मंजू और उस की बहन को लहूलुहान हालत में देख कर वह घबरा गए. उन्होंने तुरंत फोन कर के थाना तिकरापारा पुलिस को सूचना दी.

सूचना पा कर टीआई कय्यूम मेमन पुलिस मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले दोनों बहनों को रायपुर के अंबेडकर हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल में 2 पुलिसकर्मियों को छोड़ कर टीआई कय्यूम मेमन घटनास्थल पर पहुंचे.

सूचना पा कर एसपी आरिफ एच. शेख और एएसपी (क्राइम) पंकज चंद्रा भी घटनास्थल पर पहुंचे. स्थिति का मुआयना कर उन्होंने इस दोहरे हत्याकांड को खोलने के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं. टीआई ने मंजू के घर भी फोन कर सूचना दे दी.

कुछ देर बाद मंजू के मातापिता और अन्य लोग अंबेडकर अस्पताल की मोर्चरी पहुंच गए. दोनों बेटियों के शव देख कर वे फूटफूट कर रोने लगे.

पिता गजाधर सिदार से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने रायगढ़ के ही रहने वाले शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ पर अपना शक जताया. उन्होंने बताया कि उस ने उन की बेटी मंजू से कथित रूप से विवाह कर लिया था. मंजू जब रावतपुरा नर्सिंग कालेज, रायपुर में पढ़ाई कर रही थी, तब सैफ लगातार फोन कर के उसे परेशान किया करता था.

उन्होंने यह भी बताया कि सैफ ने उन की बेटी के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए थे. तब उन्होंने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. जिस पर पुलिस ने उसे पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा था.

गजाधर सिदार से यह जानकारी मिलने के बाद टीआई कय्यूम मेमन ने एक पुलिस टीम रायगढ़ के बोइरदादर भेजी, जहां का सैफ रहने वाला था. मगर पुलिस को जानकारी मिली कि वह पिछले 2 दिनों से गायब है.

पुलिस ने उस के मोबाइल को ट्रेस करना शुरू किया और सूत्रों से उस की जानकारी लेनी आरंभ की तो खबर मिली कि सैफ बिलासपुर से पेंड्रा के शहडोल मैहर होता हुआ रीवा पहुंच चुका है. रायपुर पुलिस ने 11 दिसंबर, 2019 को रीवा (मध्य प्रदेश) पुलिस की सहायता से तोपखाना के निकट छिप कर रह रहे सैफ को अपनी गिरफ्त में ले लिया.

सैफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुलाम मुस्तफा को रायगढ़ से और नाबालिग रामलाल को जिला चांपा जांजगीर से अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन्होंने इकबालिया बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने मंजू और मनीषा की हत्या में सैफ की मदद की थी. सैफ ने बताया कि मंजू ने अपनी मरजी से उस के साथ कोर्टमैरिज की थी.

मगर उस के बाद मंजू अपना रंग दिखाने लगी, जिस से वह बहुत निराश हो गया था. मगर जब एक लड़के के साथ उस ने टिकटौक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया तो उस के तनबदन में आग लग गई और उस ने उसी दिन निर्णय लिया कि अब मंजू को मार डालेगा.

इस बारे में उस ने अपने दोस्तों गुलाम मुस्तफा और रामलाल के साथ प्लानिंग की. उस की मंशा सिर्फ मंजू की हत्या करने की थी, लेकिन घटना के समय मनीषा ने जिस तरह विरोध करना शुरू किया तो गुस्से में उन्होंने उस की भी हत्या कर दी.

पुलिस ने हत्यारोपी शोएब अहमद अंसारी, गुलाम मुस्तफा और रामलाल को भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, रायपुर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में रामलाल परिवर्तित नाम है.

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

कुकर्मी बाप की बेटियां

महाराष्ट्र के सतारा जिले की रहने वाली योगिता की शादी करीब 5 साल पहले संजय देवरे से हुई थी. पतिपत्नी दोनों पढ़ेलिखे थे और कमाते भी थे. संजय एक अच्छी कंपनी में काम करता था, तो बीकौम की पढ़ाई कर चुकी योगिता एक एकाउंटेंट के यहां नौकरी करती थी.

जब दोनों कमा रहे थे तो उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं था. भले ही दोनों पढ़ेलिखे थे लेकिन उन के विचारों में काफी अंतर था. दोनों छोटीछोटी बात पर बहस करने लगते थे, जिस से उन के बीच विवाद हो जाता था.
जिस से संजय योगिता की पिटाई कर देता था. यह बात योगिता को बहुत बुरी लगती थी. योगिता ने पति के साथ गृहस्थी को चलाने के तमाम सपने देखे थे. लेकिन शादी के कुछ ही दिनों बाद उसे पति से प्यार के बजाए पिटाई मिल रही थी. जिस से उस के सारे सपने बिखरते दिख रहे थे. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि वह ऐेसे पति के साथ नहीं रहेगी.

इसी दौरान योगिता ने एकाउंटेंट के यहां से नौकरी छोड़ कर एक बिल्डर के यहां नौकरी करनी शुरू कर दी. वहीं पर उस की मुलाकात सुशील मिश्रा नाम के युवक से हुई. सुशील मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. वह काम की तलाश में मुंबई आया था और अपनी बीवी बच्चों के साथ पालघर जिले के नालासोपारा में रहता था.

जिस बिल्डर के यहां योगिता नौकरी करती थी, सुशील उस के यहां बिल्डिंग बनाने का ठेका लेता था. इस वजह से सुशील का योगिता से अकसर मिलनाजुलना होता रहता था. बातूनी स्वभाव के सुशील ने जल्दी ही योगिता से दोस्ती कर ली. इस के बाद योगिता उस से अपने सुखदुख की बातें शेयर करने लगी.

सुशील अय्याश प्रवृत्ति का था. पार्वती नाम की एक महिला के साथ भी उस के अवैध संबंध थे. पार्वती बिल्डरों के यहां बेगार करती थी.

खिलाड़ी था सुशील

शादीशुदा पार्वती शराबी पति से त्रस्त हो कर पति और बच्ची को गांव में छोड़ कर अकेली ही नालासोपारा में रहने लगी थी. पार्वती अकेली ही रहती थी. सुशील ने उस के अकेलेपन का फायदा उठाया. पार्वती से नजदीकियां बन जाने पर जब उस का मन होता वह पार्वती के कमरे पर मौजमस्ती करने चला जाता था. कभीकभी वह उसे खर्चे आदि के पैसे भी दे देता था.

सुशील का मन पार्वती से भर चुका था, इसलिए अब वह योगिता से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश में जुट गया. वह योगिता से इस तरह बात करता कि योगिता को भी उस में अपनापन झलकने लगा.

एक दिन योगिता ने उसे पति से दूर रहने की वजह बता दी. सुशील ने उस से सहानुभूति जताते हुए कह दिया कि वह खुद को अकेला महसूस न करे. कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो उसे बता दे. जब भी वह उसे याद करेगी, हाजिर हो जाएगा.

योगिता को सुशील पसंद आ गया. जिस तरह के सुख व सहानुभूति वह पति से चाहती थी, वह सारे सुशील दे सकता था. लिहाजा एक दिन योगिता ने सुशील के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सुशील की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
मौका देख सुशील ने उस से कहा, ‘‘योगिता मैं भी तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, लेकिन मेरे साथ समस्या यह है कि मैं शादीशुदा और 2 बेटियों का पिता हूं और उन्हें छोड़ नहीं सकता.’’

यह सुन कर योगिता कुछ पल चुप रहने के बाद बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मुझे मंजूर है. यदि आप मेरे साथ शादी नहीं करोगे तब भी मैं बिना शादी के आप के साथ रह लूंगी. आप अपनी पत्नी को गांव छोड़ देना, यहां पर मैं दोनों बेटियों को अच्छे से संभाल लूंगी.’’

योगिता के इस प्रस्ताव से सुशील मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह योगिता के प्यार में इतना डूब चुका था कि उस ने पार्वती के पास जाना बंद कर दिया.
पार्वती इस बात को समझ गई थी कि योगिता ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया है, इसलिए वह योगिता से नफरत करने लगी.

दूसरी ओर सुशील पत्नी को गांव भेजने का उपाय खोजने लगा. एक दिन उस ने पत्नी को विश्वास में लेते हुए कहा, ‘‘गांव में मातापिता की तबीयत खराब है. ऐसा करो, तुम उन की देखभाल के लिए गांव चली जाओ. यहां बच्चों को मैं संभाल लूंगा, वैसे भी हमारी दोनों बेटियां अब बड़ी हो चुकी हैं.’’

पत्नी ने सुशील की बात मान ली तो वह उसे गांव छोड़ आया. इस के बाद योगिता अपने पति को कुछ बोल कर अपने कपड़े आदि ले कर सुशील के घर चली आई. उसे आया देख सुशील की लड़कियां समझ गईं कि इसी महिला के लिए उन के पिता ने मां को गांव का रास्ता दिखा दिया.

उस दिन सुशील को योगिता के साथ अपनी हसरत पूरी करनी थी, इसलिए शाम का खाना खाने के बाद वह योगिता को ले कर बेडरूम में घुस गया. रात में दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस से दोनों ही खुश थे.

अब योगिता सुशील के घर पत्नी की तरह रहने लगी. उसे वहां रहते हुए लगभग एक साल हो चुका था. योगिता का व्यवहार भी बदल चुका था जो सुशील की बेटियों को पसंद नहीं था. जब सुशील घर पर नहीं होता तब दोनों लड़कियां योगिता से झगड़ा मोल लेती थीं. शाम को जब सुशील घर लौटता तब योगिता उस से उन दोनों की शिकायत करती थी.

योगिता की बात पर वह बच्चों को ही डांट देता था. पिता के इस रवैये से दोनों लड़कियां काफी दुखी थीं. दोनों यही सोचती रहती थीं कि इस औरत से कैसे छुटकारा पाया जाए. क्योंकि उसी की वजह से उन की मां उन से दूर चली गई थी.

उसी की वजह से उन्हें रोजाना पिता की डांट भी सुननी पड़ती थी. सुशील की बड़ी बेटी सुधा और छोटी बेटी सुजाता (काल्पनिक नाम) की एक दिन पार्वती माने से जानपहचान हो गई थी.

फिर दोनों बहनों ने पार्वती को अपना दुखड़ा सुनाया और उस से योगिता को घर से बाहर करने का उपाय पूछा.

योगिता का बुरा वक्त

पार्वती भी योगिता से चिढ़ी हुई थी. क्योंकि उस ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया था. इसलिए वह दोनों बहनों की मदद करने को तैयार हो गई. पार्वती ने कहा कि इस का एक ही उपाय है कि योगिता का पता ही साफ कर दिया जाए. एक दिन सुशील को शादी के किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गुजरात जाना पड़ा. अच्छा मौका देख पार्वती, सुजाता और सुधा के प्रेमी शैलेश काले ने मिल कर योगिता की हत्या की साजिश रच डाली.

वारदात के दिन पार्वती और शैलेश काले सुजाता के घर के नजदीक पहुंचे. इमारत के गेट पर मौजूद सुरक्षा गार्ड को शराब का लालच दे कर वे दोनों इमारत में प्रवेश कर गए. उस वक्त योगिता कमरे में बेड पर गहरी नींद में सोई थी. उसी का फायदा उठा कर उन्होंने नींद में ही योगिता का गला चुनरी से घोंट दिया.

उस की हत्या करने के बाद शैलेश काले ने सुजाता के प्रेमी नीरज मिश्रा को फोन कर के आटो रिक्शा लाने को कहा. उस ने नीरज को बताया कि योगिता की तबीयत खराब है, उसे डाक्टर के पास ले जाना है. फिर पार्वती ने योगिता की लाश एक कंबल में लपेट कर आटो रिक्शा में रख दी. उन्होंने जंगल में ले जा कर लाश फेंक दी.

पहली अप्रैल, 2019 को किसी शख्स की नजर लाश पर गई तो उस ने फोन पर यह जानकारी पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना तुलिंज के सीनियर पीआई डानियल बेन, पीआई राकेश, हवलदार दीपक पाटिल, नायक नवनाथ वारडे को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश किसी महिला की थी और छिन्नभिन्न अवस्था में थी.

मौके की काररवाई के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन मृतका को कोई नहीं पहचान पाया. तब पुलिस ने लाश मोर्चरी में रखवा दी. हत्यारों तक पहुंचने से पहले महिला की लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने जिस जगह पर लाश मिली, उस जगह के सारे रास्तों के सीसीटीवी फुटेज की जांच की. इस में पुलिस को सफलता मिल गई.

फुटेज में एक आटोरिक्शा दिखाई दिया, जिस पर जाह्नवी लिखा था. पता लगाने पर जानकारी मिली कि आटोरिक्शा नीरज नाम के युवक का था. पुलिस ने नीरज को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बता दी. इस के बाद पुलिस ने पार्वती माने को भी हिरासत में ले लिया.

पार्वती ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को योगिता की हत्या की सारी कहानी सुना दी. जिस के बाद पुलिस ने 3 अप्रैल, 2019 को शैलेश काले, सुधा और सुजाता को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने सभी को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक दोनों बहनों की जमानत हो चुकी थी. मामले की तफ्तीश पीआई राकेश के. जाधव कर रहे थे.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

दो पाटों के बीच : जितेंद्र ने दी प्यार की कुर्बानी

जितेंद्र सरिसाम और राधा कहार पैसों से भले ही गरीब थे, लेकिन सैक्स के मामले में किसी रईस से कम नहीं थे. भोपाल के पौश इलाके बागमुगालिया की रिहायशी कालोनी डिवाइन सिटी के एक 2 मंजिला बंगले में रहने वाले 26 वर्षीय जितेंद्र को अकसर अमीरों जैसी फीलिंग आती थी. भले ही वह जानतासमझता था कि इस महंगे डुप्लेक्स मकान में वह कुछ दिनों का मेहमान है, इस के बाद तो फिर किसी झोपड़े में आशियाना बनाना है.

दरअसल, जितेंद्र पेशे से मजदूर था. चूंकि रहने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए ठेकेदार ने उसे इस शानदार मकान में रहने की इजाजत दे दी थी, जो अभी बिका नहीं था. यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि जहांजहां भी कालोनियां बनती हैं, वहांवहां ठेकेदार या कंस्ट्रक्शन कंपनी मजदूरों को बने अधबने मकानों में रहने को कह देती हैं. इस से मकान और सामान की देखभाल भी होती रहती है और मजदूरों के वक्तबेवक्त भागने का डर भी नहीं रहता.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले छिंदवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के गांव गुरोकला का रहने वाला जितेंद्र देखने में हैंडसम लगता था और उन लाखों कम पढ़ेलिखे नौजवानों में से एक था, जो काम और रोजगार की तलाश में शहर चले आते हैं.

इन नौजवानों के बाजुओं में दम, दिलों में जोश और आंखों में सपने रहते हैं कि खूब मेहनत कर वे ढेर सा पैसा कमा कर रईसों सी जिंदगी जिएंगे. यह अलग बात है कि अपनी ही हरकतों और व्यसनों की वजह से वे कभी रईस नहीं बन पाते.

जितेंद्र भोपाल आया तो उस के सामने भी पहली समस्या काम और ठिकाने की थी. जानपहचान के दम पर भागदौड़ की तो न केवल मजदूरी का काम मिल गया बल्कि ठेकेदार ने रहने के लिए एक अधबना मकान भी दे दिया.

यह कमरा जितेंद्र के लिए जन्नत से कम साबित नहीं हुआ. आने के 4 दिन बाद ही उसे पता चला कि बगल वाले कमरे में एक अकेली औरत रहती है, जिस का नाम राधा है. बातचीत हुई और पहचान बढ़ी तो उसे यह जान कर खुशी हुई कि राधा भी उस की तरह न केवल अकेली है, बल्कि उस के ही जिले यानी छिंदवाड़ा की रहने वाली है.

35 वर्षीय राधा को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 13 साल के एक बेटे की मां भी है. गठीले कसे बदन की सांवली छरहरी राधा जैसी पड़ोसन पा कर जितेंद्र खुद को धन्य समझने लगा. जल्द ही दोनों में दोस्ती हो गई.

इस इलाके के लोग जब बाहर निकलते हैं तो उन की बातें अपने इलाके के इदगिर्द घूमती रहती हैं. जितेंद्र को राधा ने बता दिया कि उस की शादी कोई 15 साल पहले मदन कहार से हुई थी, जिस ने उसे छोड़ दिया है.

बेटा उस के पिता यानी अपने नाना के घर रहता है और जिंदगी गुजारने की गरज से वह भी उस की तरह मजदूरी कर रही है. कुल मिला कर वह इस दुनिया में अकेली है.

ऐसी ही बातों के दौरान एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘अकेली कहां हो, मैं जो हूं तुम्हारा.’’

इतना सुनने के बाद राधा बहुत खुश हुई और उसी रात दोनों एकदूसरे के हो भी गए. आग और घी पास रखे जाएं तो नतीजा क्या होता है, यह जितेंद्र और राधा की हालत देख कर समझा जा सकता था. जितेंद्र ने पहली बार और राधा ने मुद्दत बाद देहसुख का आनंद लिया तो दोनों एकदूसरे की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे.

दोनों दिन भर मजदूरी करते थे और शाम के बाद रात को एकदूसरे में समा जाते थे. धीरेधीरे दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे चूल्हाचौका एक हो गया, गृहस्थी के लिए आने वाला राशनपानी एक हो गया, खर्चे एक हो गए. फिर देखते ही देखते बिस्तर भी एक हो गया. यानी दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. दूसरे नए मजदूर साथी इन्हें मियांबीवी ही समझते थे, लेकिन पुराने जानते थे कि हकीकत क्या है.

प्यार और शरीर सुख में डूबतेउतराते जितेंद्र और राधा को दुनिया जमाने की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कहतासोचता है. वे तो अपनी दुनिया में मस्त थे, जहां तनहाई थी, सुकून था और प्यार के अलावा रोज तरहतरह से किया जाने वाला सैक्स था,जो मजे को दो गुना, चार गुना कर देता था.

देखा जाए तो दोनों वाकई स्वर्ग की सी जिंदगी जी रहे थे, जिस में कोई बाहरी दखल नहीं था. न तो कोई कुछ पूछने वाला था और न ही कोई रोकनेटोकने वाला. इन्हें और इन की जिंदगी देख कर कोई भी रश्क कर सकता था कि जिंदगी हो तो ऐसी, प्यार और शरीर सुख में डूबी हुई जिस में गरीबी या अभाव आड़े नहीं आते.

राधा को एक गबरू जवान का सहारा मिल गया था तो जितेंद्र को ऐसी पड़ोसन मिल गई थी, जो रोज उसे तरहतरह से कुछ इस तरह प्यार देती थी कि वह निहाल हो उठता था. और कभी थकता या ऊबता नहीं था. एक मर्द और औरत को भरपेट खाने के बाद इस से ज्यादा कुछ और ख्वाहिश भी नहीं रह जाती.

राधा पर भले ही कोई बंदिश नहीं थी, लेकिन जितेंद्र पर थी. इस साल की शुरुआत से ही उस के घर वाले उस पर शादी कर लेने का दबाव बना रहे थे, जिसे शुरू में तो वह तरहतरह के बहाने बना कर टरकाता रहा, लेकिन घर वालों खासतौर से गांव में रह रहे पिता भारत सिंह को उस की दलीलों और बहानों से कोई लेनादेना नहीं था.

उन की नजर में बेटा ठीकठाक कमाने लगा था, इसलिए अब उसे शादी के बंधन में बांधना जरूरी हो चला था, जिस से वह घरगृहस्थी बसाए और बहके नहीं.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि बेटा 4 साल पहले भोपाल आने के तुरंत बाद ही बहक चुका था. घर वालों का दबाव जितेंद्र पर बढ़ा तो उस ने शादी के बाबत हां कर दी.

लेकिन उस ने जब यह बात राधा को बताई तो वह बिफर उठी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह उसे किसी दूसरी औरत, चाहे वह उस की ब्याहता ही क्यों न हो, से बंटते नहीं देख सकती.

राधा की बात सुन कर जितेंद्र सकपका उठा. घर वालों को वह शादी के लिए न कहता तो वे भोपाल आ टपकते और राधा उस की मजबूरी को समझने के लिए तैयार नहीं थी.

अब एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी. धर्मसंकट में पड़े जितेंद्र ने राधा को तरहतरह से समझाया. घर वालों की दुहाई दी और यह वादा भी कर डाला कि वह होने वाली पत्नी रिनिता को भोपाल नहीं लाएगा, बल्कि बहाने बना कर उसे गांव में ही रहने देगा. अपने आशिक की इस मजबूरी से समझौता करते हुए राधा को आखिर तैयार होना ही पड़ा.

मई के महीने में जितेंद्र अपने गांव गुरीकला गया और सलैया गांव की रिनिता से उस की शादी हो गई. रिनिता काफी खूबसूरत भी थी और मासूम और भोली भी, जो शादी तय होने के बाद से ही सपने देख रही थी कि शादी के बाद वह पति के साथ भोपाल जा कर रहेगी. जब वह काम से लौटेगा तो उस के लिए अच्छाअच्छा खाना बना कर खिलाएगी और दोनों भोपाल घूमेंगेफिरेंगे.

इधर राधा चिलचिलाती गरमी के अलावा ईर्ष्या की आग में भी जल रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि नईनवेली पत्नी के चक्कर में फंस कर जितेंद्र उसे भूल जाए और 4 साल सुख भोगने के बाद वह फिर अकेली रह जाए.

रहरह कर उसे दिख रहा था कि जितेंद्र रिनिता की मांग में सिंदूर भर रहा है, उसे मंगलसूत्र पहना रहा है और उस के साथ सात फेरे लेने के बाद सुहागरात मना रहा है.

वह जलभुन कर खाक हुई जा रही थी. राधा के पास सांत्वना देने वाली एकलौती बात यह और थी कि जितेंद्र पत्नी को साथ ले क र नहीं आएगा और फिर दोनों पहले की तरह मौजमस्ती में डूब जाएंगे.

ऐसा हुआ भी, जितेंद्र शादी के कुछ दिनों बाद जब भोपाल आया तो उस समय वह अकेला था. यह देख राधा खुशी से फूली न समाई और उस की बांहों में झूल गई.

दोनों फिर अपनी दुनिया में मशगूल हो गए. शादी के बाद रिनिता के साथ सैक्स में जितेंद्र को वह मजा कतई नहीं आया था, जो भोपाल में राधा के साथ आता था. रिनिता शर्मीली थी और सैक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी, जबकि जितेंद्र पक्का खिलाड़ी था, जिसे नाजनखरे, मनाना और देरी बिलकुल पसंद नहीं आती थी.

बहाने बना कर वह रिनिता को घर छोड़ आया. जब उस ने रिनिता की कोई खोजखबर नहीं ली तो पिता भारत को चिंता हुई. लिहाजा 3 महीने इंतजार करने के बाद उन्होंने रिनिता को भोपाल भेज दिया.

अपने पिता से डरने वाला और उन का लिहाज करने वाला जितेंद्र रिनिता को भोपाल आया देख सकते में आ गया. जबकि राधा के तो मानो तनबदन में आग लग गई. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था, इसलिए वह कसमसा कर रह गई.

कुछ दिन तो दोनों सब्र का दामन थामे एकदूसरे से बेमन से दूर रहे, लेकिन अगस्त के महीने की बारिश राधा के तनमन को कुछ इस तरह सुलगा रही थी कि उस से जितेंद्र की दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी.

इधर रिनिता खुश थी. भीड़भाड़ वाले शहर की रौनक, मौसम और अपना घर इस नईनवेली को उत्साह और रोमांस से भर रहे थे लेकिन पति की बेरुखी की वजह से वह समझ नहीं पा रही थी. राधा को उस ने दूर से देखा भर था, जिस ने पड़ोसन होने का शिष्टाचार भी नहीं निभाया था. इसे वह शहर का दस्तूर मान कर चुप रही और रोज सजसंवर कर पति का दिल जीतने की कोशिश करती रही.

 

2 सितंबर को वह उस वक्त सन्न रह गई, जब उस ने दिनदहाड़े पति को राधा के साथ एकदम निर्वस्त्र हालत में रंगरलियां मनाते देख लिया. रिनिता पर बिजली सी गिरी. पति और पड़ोसन की बेशरमी और बेहयाई के दृश्य देख उस का सब कुछ लुट चुका था. पति की हकीकत उस के सामने थी कि क्यों वह पहले ही उस से खिंचाखिंचा रहता था.

जितेंद्र राधा के साथ रासलीला मना कर वापस आया तो भरी बैठी रिनिता ने उस से सवालजवाब करने के साथसाथ उस के नाजायज संबंधों पर पर भी सख्त ऐतराज जताया. पहले तो जितेंद्र ने सफाई दे कर उसे तरहतरह के बहाने और दलीलें दे कर बहलाने फुसलाने की कोशिश की, लेकिन कुछ देर पहले ही रिनिता ने जो देखा था, उस से कोई भी पत्नी समझौता नहीं कर सकती.

लिहाजा वह पति पर भड़क गई. बात बढ़ते देख रिनिता ने उसे धमकी दे दी कि सुबह होते ही वह ससुर को उस की सारी करतूत बता देगी.

इस पर जितेंद्र की रूह कांप उठी. उसे मालूम था कि सख्त और उसूलों के धनी उस के पिता को यह सब पता चलेगा तो वह उसे यहीं से छिंदवाड़ा तक घसीटते हुए ले जाएंगे और उस का जो हाल करेंगे, वह नाकाबिले बरदाश्त होगा.

पतिपत्नी में तूतू मैंमैं चल ही रही थी कि उसी समय राधा भी वहां आ पहुंची और जितेंद्र के पक्ष में बोलने लगी. राधा और रिनिता दोनों खूंखार बिल्लियों की तरह लड़ते हुए एकदूसरे को दोषी ठहराने लगीं.

इसी दौरान जितेंद्र ने फैसला ले लिया कि रिनिता उसे वह सुख नहीं दे सकती जोकि राधा देती है. लिहाजा उस ने उसी समय दोनों में से राधा को चुनने का फैसला ले लिया.

इस के बाद जितेंद्र ने पत्नी रिनिता की गरदन दबोच ली. राधा भी उस का साथ देने आ गई और दोनों ने उस का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटा कर रिनिता वहीं लुढ़क गई.

हत्या तो कर दी, लेकिन इस के बाद जितेंद्र और राधा दोनों घबरा उठे कि अब लाश का क्या करें, लेकिन कुछ तो करना ही था. उन्होंने उस की लाश बोरे में भर कर एक नाले में फेंक दी.

फिर 5 सितंबर को खुद को हैरानपरेशान दिखाता हुआ जितेंद्र बागमुगालिया थाने पहुंचा और अपनी पत्नी रिनिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई.

टीआई शैलेंद्र शर्मा को उस ने बताया कि उस की 22 वर्षीय पत्नी रिनिता 3 दिनों से गायब है, जिस की वह हर मुमकिन जगह तलाश कर चुका है लेकिन वह नहीं मिली. अनुभवी शैलेंद्र शर्मा ने जब सारी जानकारी ली तो उन्हें लगा कि आमतौर पर नवविवाहितों के नैतिकअनैतिक संबंध हादसे की वजह होते हैं.

उन्होंने जब और गहराई से जितेंद्र से सवालजवाब किए तो यह जान कर हैरान रह गए कि रिनिता तो भोपाल में एकदम नई थी. इसी पूछताछ में राधा का और जिक्र आया तो उन्हें कहानी कुछकुछ समझ आने लगी.

रिपोर्ट दर्ज कर टीआई ने जितेंद्र को जाने दिया, लेकन उस के पीछे अपने मुलाजिम लगा दिए, जो जल्द ही काम की यह जानकारी खोद कर ले आए कि जितेंद्र और राधा के कई सालों से नाजायज संबंध हैं और दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं.

मामला जब भोपाल (साउथ) एसपी संपत उपाध्याय के पास पहुंचा तो उन्होंने एएसपी संजय साहू और एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी को इस मामले की छानबीन के लिए लगा दिया.

पुलिस वालों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. 6 दिसंबर को इसी इलाके की एक और कालोनी रुचि लाइफस्केप के चौकीदार गोवर्धन साहू ने पुलिस को इत्तला दी कि कालोनी के पास बहने वाले नाले में एक बोरे में लाश तैर रही है.

लाश बरामद करने के लिए पुलिस टीम नाले के पास पहुंची तो लाश के बोरे के बाहर झांकते पैर साफ बता रहे थे कि वह किसी युवती की है. पुलिस बोरा खोल पाती, इस के पहले ही जितेंद्र वहां पहुंच गया और बिना लाश देखे ही कहने लगा कि यह उस की पत्नी रिनिता की लाश है.

बात अजीब थी लेकिन एक तरह से खुद जितेंद्र ने जल्दबाजी में अपने गुनाह की पोल खोल दी थी. फिर कहनेकरने को कुछ नहीं बचा था. अनिल त्रिपाठी ने जितेंद्र को बैठा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो उस ने सब कुछ उगल दिया, जिस की बिनाह पर राधा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

दरअसल, सितंबर के पहले सप्ताह में भोपाल में जोरदार बारिश हो रही थी. हत्या के बाद जितेंद्र और राधा ने रिनिता की लाश को बोरे में बंद कर यह सोचते हुए घर से कुछ ही दूरी पर नाले में फेंक दी थी कि वह पानी में बह जाएगी और कुछ दिनों में सड़गल जाएगी. फिर किसी को हवा भी नहीं लगेगी कि रिनिता कहां गई. बाद में जितेंद्र घर वालों के सामने उस के गायब होने का कोई भी बहाना बना देगा. इस के बाद दोनों पहले जैसी ही जिंदगी जिएंगे.

 

पर लाश नहीं बही तो दोनों को चिंता हुई. जितेंद्र जिस ने 3 दिन बाद पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी, वह दरअसल बोरे की निगरानी कर रहा था कि बोरा वहां से बहे तो पिंड छूटे. 6 दिसंबर को जब चौकीदार ने पुलिस को नाले में लाश पड़ी होने की खबर दी तो वह पुलिस टीम के पीछेपीछे ही पहुंच गया और बोरा खुलने से पहले लाश की पहचान भी कर ली.

अब राधा और जितेंद्र जेल में बैठे अपने मौजमस्ती के दिन याद करते कलप रहे हैं. दोनों को सजा होनी तय है, लेकिन बड़ी गलती जितेंद्र की है, जिस ने अधेड़ प्रेमिका की हवस के लिए बेगुनाह बीवी को ठिकाने लगाना ज्यादा बेहतर समझा.

नाजायज संबंधों का ऐसा अंजाम नई बात नहीं है, लेकिन अगर जितेंद्र घर वालों से बगावत कर के और उन की परवाह न करते हुए राधा से ही शादी कर लेता तो दोनों शायद हत्या के गुनाह से भी बच जाते.

लगता नहीं कि दोनों यह सब सोच रहे होंगे, बल्कि वे सोच रहे होंगे कि रिनिता की लाश बह कर सड़गल जाती तो रास्ते का कांटा निकल जाता.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019