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मुरादाबाद के मोहल्ला वारसीनगर के रहने वाले रईस मंसूरी का इनवर्टर बनाने और उस की मरम्मत करने का काम था. उस का यह काम काफी अच्छा चल रहा था. 15 दिसंबर, 2015 को इनवर्टर लगवाने के लिए उस के दोस्त जमा खां के बेटे आलम ने फोन किया.

आलम शहर के ही मोहल्ला बखलान की चामुंडा वाली गली में रहता था. इनवर्टर लगाने के लिए वह रईस को 5 हजार रुपए पहले ही दे चुका था. लेकिन काम ज्यादा होने की वजह से रईस को आलम के यहां इनवर्टर लगाने का समय नहीं मिला था.

आलम ने 15 दिसंबर को रईस को फोन कर के अपने यहां जल्द इनवर्टर लगाने को कहा तो रईस ने उसे भरोसा दिया कि उसी दिन शाम को वह उस के यहां इनवर्टर जरूर लगा देगा. अपने वादे के अनुसार उसी दिन शाम को लगभग साढ़े 7 बजे रईस अपनी स्कूटी से आलम के घर के लिए निकला. आलम के घर जाने वाली बात उस ने अपनी पत्नी नुसरत को बता दी थी.

रईस को आलम के घर गए कई घंटे बीत गए. न तो वह लौटा और न ही उस ने फोन किया. इस से पहले जब कभी उसे देर होने लगती थी तो वह पत्नी को फोन कर देता था. घर आने में कितनी देर और लगेगी, यह जानने के लिए नुसरत ने फोन किया तो रईस का फोन बंद मिला.

नुसरत ने 2-3 बार पति को फोन किया, हर बार कंप्यूटर द्वारा फोन बंद होने की बात बताई गई. नुसरत परेशान हो गई कि उन्होंने फोन बंद क्यों कर दिया है? आधे घंटे बाद उस ने फिर फोन किया. इस बार भी फोन बंद मिला. पति से संपर्क न होने की बात उस ने अपने देवर अमीर को बताई. अमीर आलम को तो जानता ही था, उस ने उस का घर भी देखा था. अमीर भाई के बारे में पता लगाने आलम के घर पहुंचा.

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