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मतलब यह कि चाहतों के हिंडोले में झूलती उम्र की मंजिलें तय करती रही. जब मैं छठी क्लास में थी, तब बड़ी आपा का रिश्ता तय हो गया. उन्हें मैट्रिक के बाद स्कूल से उठा लिया गया, क्योंकि हमारी बिरादरी में लड़कियों को इस से ज्यादा पढ़ाने का रिवाज नहीं था. हमारे खानदान में बिरादरी से बाहर शादी का भी रिवाज नहीं था. बड़ी आपा की शादी के बाद अम्मी ने फौरन ही छोटी आपा की रुखसती की तैयारी शुरू कर दी. वह बचपन से ही ताया अब्बा के बेटे से जोड़ दी गई थी. मेरे 8वीं पास करतेकरते दोनों बहनें विदा हो कर अपनेअपने घर की हो चुकी थीं.

मैट्रिक में आतेआते मुझ पर बहार आ गई. मैं ने ऐसा रूपरंग और कद निकाला कि मैट्रिक करते ही दरवाजे पर रिश्तों की लाइन लग गई. अम्मी का इरादा तो यही था कि मैट्रिक के बाद मुझे भी घर से रुखसत कर दिया जाए, लेकिन मैं अभी और आगे पढ़ना चाहती थी. इसलिए मैं ने अम्मी से छिप कर अब्बू से कालेज में दाखिले की जिद शुरू कर दी. पहले उन्होंने इनकार कर दिया, मगर फिर राजी हो गए.

लेकिन यह बात खुलते ही अम्मी ने हंगामा खड़ा कर दिया. वह मेरे आगे पढ़ने के हक में नहीं थीं. अब्बू ने उन्हें किसी न किसी तरह राजी कर लिया. मैट्रिक में मेरी बहुत अच्छी पोजीशन आई थी, इसलिए बेहतरीन कालेज में दाखिले में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. उस कालेज में ज्यादातर बड़े घरानों की लड़कियां पढ़ती थीं. मुझे उस माहौल में आ कर ऐसा महसूस हुआ, जैसे मैं किसी तालाब से निकल कर विशाल समुद्र में आ गई थी.

कालेज में अगरचे एक से बढ़ कर एक हसीन लड़कियां मौजूदी थीं, मगर उन की सुंदरता मेरे हुस्न के आगे फीकी पड़ गई. अलबत्ता उन की बेबाकियां और बातें मुझे दांतों तले अंगुली दबा लेने पर मजबूर कर देतीं. फिर मैं धीरेधीरे उन से घुलमिल गई. लड़कियां जब अपने चाहने वालों की दीवानगी के अंदाज बयान करतीं तो मैं उन के मुंह देखती रह जाती. यह हकीकत थी कि मेरी खूबसूरती के बावजूद किसी लड़के ने मुझे चाहत का पैगाम नहीं दिया था.

कालेज में मेरा दूसरा साल था. मेरी क्लासफेलो नाजिया की सालगिरह थी और मैं उस जलसे में खासतौर पर तैयार हो कर गई थी. यही वजह थी कि वहां मौजूद हर निगाह कुछ क्षणों के लिए मुझ पर जम कर रह गई. नाजिया करोड़पति बाप की औलाद थी और उस दावत में आई हुई लड़कियां कीमती कपड़ों और बेशकीमती जेवरातों से जगमगा रही थीं.

फिर भी एक नौजवान की निगाहें बारबार मुझ पर ही टिक जाती थीं. लंबा कद, बर्जिशी जिस्म, हल्के घुंघराने बाल, सुर्खी मिली रंगत और चमकती आंखें. वह हाथ में कैमरा लिए तसवीरें खींच रहा था. मैं ने महसूस किया कि बारबार कैमरे की फ्लैश मुझ पर पड़ रही थी. उस की निगाहों की गर्मी मैं फासले से भी महसूस कर रही थी. मेरे होंठों पर एक गुरूरभरी मुसकराहट फैल गई. जल्दी ही परिचय का मौका भी आ गया. वह केक की प्लेट उठाए चला आया.

‘‘आप तो कुछ खा ही नहीं रही हैं मिस!’’ उस ने गहरी नजर से मेरा जायजा लिया.

‘‘गुल.’’ मैं ने कनफ्यूज हो कर अधूरा नाम बताया.

‘‘बहुत खूब. आप बिलकुल गुल (फूल) जैसी ही हैं. मुझे राहेल कहते हैं.’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा.

उसी वक्त नाजिया वहां आ गई.

‘‘राहेल! तुम इस से मिले? मेरी बेस्टफ्रेंड गुलनार है.’’

‘‘मिल ही तो रहा हूं.’’ वह बोला और मैं ने अपने चेहरे पर रंग बिखरता हुआ महसूस किया.

फिर मुझे पता ही नहीं चला कि कब हम बेतकल्लुफी की सीमा में दाखिल हो गए. जाते समय उस ने चुपके से कागज की एक चिट मेरे हाथ में पकड़ा दी, जो मैं ने हथेली में दबा ली. घर पहुंचते ही धड़कते दिल के साथ वह चिट देखी. उस पर एक फोन नंबर लिखा था. उस रात नींद मेरी आंखों से गायब हो गई थी. नतीजे में सुबह कालेज न जा सकी. सारा दिन व्याकुल सी रही. रात हुई तो सब के सोने के बाद टेलीफोन उठा कर अपने कमरे में ले आई. कांपती अंगुलियों से चिट पर लिखा हुआ नंबर डायल किया. पहली ही घंटी पर रिसीवर उठा लिया गया.

‘‘हैलो!’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘मुझे यकीन था कि आप फोन जरूर करेंगी.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई. मेरे स्वाभिमान को धक्का सा लगा और मैं ने बात किए बिना फोन काट दिया. मगर अगली रात को फिर फोन करने से खुद को रोक न सकी, हालांकि कोई अंदर से मुझे खबरदार कर रहा था कि गुल यह खेल मत शुरू कर.

मैं ने गोलमोल शब्दों में उसे अपने दिल की हालत कह सुनाई और उस ने अपनी बेताबियों का खुल कर इजहार किया. यह कच्ची उम्र की जुनूनी मोहब्बत थी, जो नफानुकसान के खयाल से बेपरवाह होती है. इसलिए जब उस ने मुझे कहीं बाहर मिलने को कहा तो मैं सोचेसमझे बिना तैयार हो गई.

उस ने तजवीज पेश की कि मैं कालेज से किसी बहाने छुट्टी ले कर बाहर आ जाऊं. फिर हम दोनों किसी रेस्त्रां में चलेंगे. मुझे एहसास ही नहीं था कि मैं एक अजनबी की मोहब्बत के नशे में डूब कर मांबाप की इज्जत को दांव पर लगा रही हूं. बस मुझे एक ही अहसास था कि शहजादों जैसी खूबसूरती रखने वाला शख्स मेरी मोहब्बत में गिरफ्तार है.

साथ जीनेमरने की कसमों ने मुझे उस के जादू में जकड़ लिया था. पहली मुलाकात में, जो एक रेस्त्रां के फैमिली केबिन में हुई. उस ने वादा किया कि अपनी तालीम पूरी होते ही वह अपने वालिदैन को हमारे घर भेजेगा. उस के बाद मैं हर तीसरेचौथे रोज उस से इसी तरह बाहर मिलती रही.

अगरचे मैं बड़ी कामयाबी से इस सारे सिलसिले को घर वालों की नजरों से छिपाए हुए थी, मगर कुदरत ने माताओं को एक खूबी दे रखी है, जो उन्हें अपनी बेटियों की बदलती अवस्था से आगाह रखती है. शायद मेरी खुशी, गालों के दमकते हुए गुलाबों और आंखों में उतरे सपनों ने उन्हें सचेत कर  दिया. वह अकसर टटोलती निगाहों से मुझे देखतीं. उन के शक की वजह से मैं राहेल से मिलनेजुलने में सावधानी बरतने लगी. मगर उस समय धमाका हो गया, जब मेरा फस्ट ईयर का नतीजा आया और मैं 4 परचों में फेल हो गई.

                                                                                                                                          क्रमशः

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