Madhya Pradesh Crime : साधारण परिवार का जय कुमार जागीरदार राजेंद्र सिंह राठौर के यहां ट्रैक्टर चलाता था. उसी दौरान उसे राजेंद्र सिंह की नाबालिग बेटी संध्या से प्यार हो गया. कई सालों तक दोनों का यह खेल चलता रहा, फिर एक दिन…

16 जनवरी, 2020. हाड़ कंपा देने वाले कोहरे में डूबी ठंडी सुबह के 7 बजे थे. उसी दौरान टीकमगढ़ जिले के बम्हौरीकलां थाने की सीमा में बम्हौरीकलां जतारा रोड पर बामना तिगेला के पास गुजर रहे लोगों ने एक बंद बोरा पड़ा देखा. उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं. जिस से लोगों को शक हुआ कि बोरे में जरूर कोई संदिग्ध चीज है, इसलिए किसी ने यह सूचना फोन द्वारा बम्हौरीकलां थाने में दे दी. सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह पंवार घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस बोरे को खुलवाया तो उस में 22-24 वर्षीय युवक की लाश मिली. मृतका के सिर और आंखों पर गहरी चोट के निशान थे.

थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी एसडीपीओ प्रदीप सिंह राणावत और एसपी अनुराग सुजानिया को दे दी. कुछ ही देर में एसडीपीओ राणावत फोरैंसिक टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने जांच के बाद बताया कि मृतक की हत्या करीब 30-32 घंटे पहले हुई होगी. कड़ाके की ठंड होने के बाद भी वहां तमाम लोगों की भीड़ जमा थी. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से शव की शिनाख्त कराने की कवायद शुरू कर दी. लेकिन शव की पहचान कोई नहीं कर सका. संयोग से उसी समय पास के गांच पचौरा का रहने वाला एक व्यक्ति किशोरीलाल वहां पहुंचा. उस के साथ उस का बेटा नारायण सिंह और जागीरदार राजेंद्र सिंह राठौर भी थे.

दरअसल, उस से 2 दिन पहले किशोरीलाल का बेटा जयकुमार गायब हो गया था. वह अपने बेटे की रिपोर्ट दर्ज करवाने थाने जा रहा था, तभी उसे बामना तिगेला पर अज्ञात युवक का शव मिलने की खबर मिली तो वह मौके पर पहुंच गया. वहां मिली लाश की पहचान उस ने अपने बेटे जयकुमार के रूप में कर दी. मृतक के पिता ने पुलिस को बताया कि जयकुमार पहले गांव के जागीरदार राजेंद्र सिंह राठौर के यहां ट्रैक्टर चलाने का काम करता था. लेकिन कुछ दिनों से उस ने वहां काम छोड़ कर ट्रक चलाना शुरू कर दिया था. पुलिस के पूछने पर किशोरीलाल ने बताया कि जयकुमार की किसी से कोई रंजिश थी या नहीं, इस की जानकारी उसे नहीं है. मौके की जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

अगले दिन पुलिस को जयकुमार की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, उस से साफ हो गया कि मृतक के सिर, चेहरे और पसली पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे. जिस से उस की मौत हो गई. एसपी ने इस हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसडीपीओ प्रदीप सिंह राणावत के निर्देशन में थानाप्रभारी बम्होरीकलां वीरेंद्र सिंह पंवार, चौकीप्रभारी कनेरा एसआई रश्मि जैन और उन के स्टाफ की 3 टीमें गठित करने के निर्देश दिए. इस टीम ने मृतक का मोबाइल नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई. इस में पुलिस को 2 ऐसे नंबर मिले, जिन से मृतक की कई बार काफी देर तक बातें हुआ करती थीं. यही नहीं घटना से पहले भी दोनों नंबरों से मृतक की बात होने का पता चला. घटना के बाद से ही ये दोनों नंबर बंद थे.

इस से थानाप्रभारी पंवार समझ गए कि हत्या का संबंध किसी न किसी तरह से इन दोनों नंबरों से है. मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स से एक और खास बात सामने आई कि मृतक के गांव की कई लड़कियों से दोस्ती थी. उन से उस की फोन पर बातें हुआ करती थीं. इसलिए पुलिस ने इस हत्याकांड की जांच अवैध संबंध के एंगल से भी करनी शुरू कर दी थी. पुलिस मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स से शक के घेरे में आए फोन नंबरों की जांच में जुट गई. इस के अलावा जिस जगह लाश मिली थी, उस तरफ जाने वाले रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी खंगाले गए. पुलिस ने इस रास्ते में काम करने वाले किसानों से पूछताछ कर सबूत जुटाने की कोशिश की.

इस दौरान पचौरा गांव का एक बड़ा किसान राजेंद्र सिंह, जयकुमार की हत्या के संबंध में लगातार पुलिस से संपर्क बनाए हुए था. राजेंद्र सिंह, जयकुमार की हत्या के बारे में आए दिन नईनई थ्यौरी भी पुलिस के दिमाग में बैठाने की कोशिश कर रहा था. उस की यह कवायद देख कर थानाप्रभारी पंवार को राजेंद्र पर ही शक होने लगा. थानाप्रभारी ने अपने शक के बारे में एसडीपीओ राणावत से चर्चा की, उन की सहमति से पंवार ने पचौरा गांव में अपने मुखबिर मृतक जयराम कुमार और जागीरदार राजेंद्र सिंह के परिवार के संबंधों की जानकारी जुटाने में लगा दिए.

इस का परिणाम यह निकला कि मुखबिरों ने थानाप्रभारी को यह खबर दी कि गांव में राजेंद्र की नाबालिग बेटी संध्या (परिवर्तित नाम) के साथ मृतक के नाम की चर्चा आम है. दूसरा यह कि नौकर का नाम बहन के साथ आने पर कुछ दिन पहले राजेंद्र के बेटे धनेंद्र और मृतक जयकुमार में विवाद भी हुआ था. जिस के बाद राजेंद्र ने जयकुमार को नौकरी से निकाल दिया था. यह बात साफ हो जाने पर पुलिस ने धनेंद्र और राजेंद्र के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई जिस में पता चला कि जिस दिन जिस जगह पर जयकुमार की लाश मिली थी, धनेंद्र, उस के पिता और चाचा गजेंद्र के मोबाइल फोन की लोकेशन उसी जगह पर थी. इस आधार पर एसपी के निर्देश पर बम्हौरीकलां पुलिस ने धनेंद्र राजेंद्र और नाबालिग बेटी संध्या को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

पूछताछ में धनेंद्र और राजेंद्र पहले तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश करते रहे लेकिन जब पुलिस ने जुटाए गए सबूत उन के सामने रखे तो उन्होंने संध्या से इश्क के चक्कर में जयकुमार की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उन के बयानों के आधार पर पुलिस की एक टीम धनेंद्र के चाचा गजेंद्र की गिरफ्तारी के लिए गांव पहुंची तो वह घर से फरार मिला. लेकिन पुलिस ने घेराबंदी कर अगने दिन ही चंदेरा तिगला के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया. हत्या की रात जयकुमार के पास 2 मोबाइल थे, क्योंकि वह उस रात अपनी भाभी का मोबाइल भी ले गया था. ये दोनों मोबाइल देवेंद्र ने कुंचेरा बांध में फेंक दिए थे, जहां से पुलिस ने दोनों मोबाइल बरामद कर लिए. इस के अलावा वह कार भी बरामद कर ली, जयकुमार की लाश फेंकने में जिस का इस्तेमाल किया गया था. इस के बाद मालिक की बेटी के संग इश्क की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

पंचैरा गांव के जागीरदार कहे जाने वाले राजेंद्र की बेटी संध्या की खूबसूरती आसपास के गांवों में चर्चा का विषय बनी हुई थी. बुंदेलखंड के ठाकुर परिवार में जन्मी संध्या के चेहरे पर बिखरा राजपूती खून उस की सुदंरता पर चारचांद लगाने लगा था. इसलिए संध्या गांव के हर युवा के दिल की धड़कन बनी हुई थी. लेकिन उस के पिता राजेंद्र सिंह और चाचा गजेंद्र सिंह के रुतबे के कारण कोई भी युवक उसे आंख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं कर पाता था. इस गांव में रहने वाले किशोरीलाल अहीरवार का बेटा जयकुमार काम की तलाश में था सो उस ने गांव के रईस ठाकुर राजेंद्र सिंह से नौकरी की याचना की तो उन्होंने उसे अपने ट्रैक्टर ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया. उस समय जयकुमार 18 वर्ष का था जबकि संध्या 14 वर्ष के आसपास की थी.

घर परिवार की इज्जत के लिए हर एक कदम फूंकफूंक कर रखने वाले राजेंद्र यहीं धोखा खा गए. क्योंकि उन्हें यह तो पता था कि जयकुमार ट्रैक्टर चलाना जानता है. लेकिन इस बात की जानकारी नहीं थी कि 18 साल का यह लड़का उतनी लड़कियों के साथ खेल चुका है, जितनी उस की उम्र भी नहीं थी. जयकुमार भी दूसरों की तरह संध्या की खूबसूरती का कायल था. इसलिए उस ने पहले दिन ही सोच लिया था कि अगर मौका लगा तो संध्या की खूबसूरती पर कब्जा कर के ही मानेगा. इसलिए उस ने काम शुरू करने के साथ संध्या को हासिल करने की कोशिश शुरू कर दी, जिस के चलते उस ने संध्या को छोटी ठकुराइन कह कर बुलाना शुरू कर दिया.

वास्तव में उस ने संध्या के लिए यह संबोधन काफी सोचसमझ कर चुना था. क्योंकि वह जानता था कि उसे इस नाम से बुला कर वह संध्या की नजर में खास बन जाएगा. हुआ भी यही. जब उस ने संध्या को पहली बार छोटी ठकुराइन कह कर बुलाया तो संध्या चौंकी ही नहीं बल्कि उस के मन में छोटी ठकुराइन होने का अहसास शहद की मिठास की तरह घुल गया. घर का यही नौकर जयकुमार उसे खास लगने लगा. इसलिए उस के मुंह से बारबार छोटी ठकुराइन शब्द सुनने के लिए अकसर उस के आसपास मंडराने लगी. जयकुमार इश्क का पुराना खिलाड़ी था. उसे लड़कियों का चेहरा देख कर उन के मन की बात जानने की महारत हासिल थी. इसलिए वह जल्द ही समझ गया कि संध्या उस के पीछे क्यों घूमती रहती है.

ठाकुर परिवार में कडे़ नियम होने की वजह से बाहरी लोगों का घर के भीतर तक आनाजाना आसान नहीं था. ऐसे में संध्या के दिल में उठने वाली तरंगों को छेड़ने वाला जयकुमार के अलावा दूसरा कोई और नहीं था. क्योंकि काम के सिलसिले में उसे घर में आनेजाने की कोई रोक नहीं थी. इस मौके का फायदा उठा कर जयकुमार संध्या के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. जिस के चलते उस ने धीरेधीरे संध्या से उस की तारीफ करनी शुरू कर दी. किशोर उम्र में अपनी तारीफ सुनना हर एक लड़की को अच्छा लगता है, इसलिए संध्या को लगने लगा कि जयकुमार सारा काम छोड़ कर दिन भर उस के सामने बैठ कर उस के रूप का गुणगान करता रहे.

वह जयकुमार से बात करने के लिए कभीकभी उसे अपने निजी काम भी बताने लगी, जिसे जयकुमार एक पैर पर खड़ा हो कर करने भी लगा. जब जयकुमार को लगा कि लोहा गरम है, चोट की जा सकती है तो उस ने एक दिन डरने की एक्टिंग करते हुए संध्या से कहा, ‘‘मुझे आप से एक बात कहनी है छोटी ठकुराइन.’’

‘‘कहो, क्या कहना है?’’ संध्या बोली.

‘‘नहीं डर लगता है कि आप नाराज हो जाएंगी.’’ जयकुमार ने कहा.

‘‘नहीं होऊंगी, बोलो.’’ संध्या बोली.

‘‘छोडि़ए छोटी ठकुराइन, मुझ जैसे गरीब का ऐसा सोचना भी पाप है.’’ कह कर जयराम ने बात अधूरी छोड़ दी. क्योंकि वह जानता था कि अधूरी बात संध्या के मन पर जितना असर करेगी, उतना पूरी नहीं.

हुआ भी यही. जय कुमार का बात अधूरी छोड़ना संध्या को बुरा लगा. क्योंकि सच तो यही है कि खुद संध्या मन ही मन जयकुमार से प्यार करने लगी थी. इसलिए उसे लग रहा था कि बुद्धू अपने मन की बात बोल देता तो कितना अच्छा होता. अगले कुछ दिनों तक जयकुमार के आगेपीछे घूम कर उसे अपने दिल की बात कहने का मौका देने की कोशिश करने लगी. लेकिन अपनी योजना के अनुसार जयकुमार चुप रहा, जिस से संध्या का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. एक दिन जयकुमार ने जब उसे छोटी ठकुराइन कह कर पुकारा तो वह फट पड़ी, ‘‘मत बोल मुझे छोटी ठकुराइन.’’

‘‘क्यों कोई गलती हुई क्या हम से?’’  जय कुमार ने पूछा.

‘‘हां.’’ संध्या बोली.

‘‘क्या?’’

‘‘तुम ने उस दिन बात अधूरी क्यों छोड़ी थी? बोलो, क्या कहना चाहते हो तुम?’’

‘‘कह तो दूंगा पर वादा करो कि आप को मेरी बात अच्छी न भी लगी तो भी न तो मुझ से बात करना छोड़ोगी और न मेरी शिकायत ठाकुर साहब (पापा) से करोगी.’’

‘‘वादा रहा, अब जल्दी बोलो नहीं तो कोई आ जाएगा.’’  संध्या से उतावलेपन से कहा.

‘‘आई लव यू.’’ जयकुमार ने उस की आंखों में देखते हुए कहा तो जैसे संध्या के मन में सैकड़ों गुलाब एक साथ खिल उठे.

‘‘तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो.’’ जय कुमार ने उसे खामोश खडे़ देख पूछा.

‘‘नहीं.’’ कह कर वह थोड़ा मुसकराई.

‘‘क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ संध्या ने सिर हिला कर धीरे से जवाब दिया.

‘‘तो ठीक है, कल दोपहर में जब बड़ी ठकुराइन सोती हैं, मैं काम के बहाने आऊंगा. उस समय पापा और भैया भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए संध्या शरमाते हुए अंदर भाग गई.

सचमुच दूसरे दिन जय कुमार मौका निकाल कर राजेंद्र सिंह की हवेली पर पहुंचा तो संध्या उसी का इंतजार कर रही थी. यह देख कर जयकुमार ने सीधे उस की तरफ बढ़ते हुए उसे अपनी बांहों मे लेने के साथ उस के पूरे बदन पर अपने होंठों की मुहर लगानी शुरू कर दी. जिस से संध्या के शरीर में खुशबू के फव्वारे फूटने लगे. कुछ देर तक जय कुमार उसे पागलों की तरह प्यार करता रहा, फिर वहां से चुपचाप चला गया. चूंकि राजेंद्र सिंह की हवेली काफी बड़ी थी, सो संध्या और जयकुमार को मिलने में कोई परेशानी नहीं थी. इसलिए उस दिन के बाद दोनों मौका मिलते ही एकदूसरे की बांहों में सुख की तलाश करते रहे.

जयकुमार को राजेंद्र सिंह की नाबालिग बेटी से इश्क लड़ाना कभी भी महंगा पड़ सकता था. इसलिए वह काफी डरा हुआ भी रहता था. लेकिन ठाकुर की बेटी होने के कारण इश्क के रास्ते पर निकल पड़ी संध्या को किसी का डर नहीं था. इसलिए वह जयकुमार को खुल कर प्यार करने के लिए उकसाने लगी. दिन में बात नहीं बनी तो उस ने जयकुमार को रास्ता बताया कि रात को सब के सो जाने के बाद वह उस के कमरे मे आ जाए. जयकुमार भी यही चाहता था, सो उस दिन के बाद से वह आए दिन अपनी रातें संध्या के कमरे में उस के साथ प्यार में डूब कर गुजारने लगा.

जयकुमार काफी संभल कर चल रहा था. लेकिन नादानी के दौर से गुजर रही संध्या में अभी इतनी गंभीरता नहीं थी कि वह अपने इश्क को संभाल कर रख सके. प्यार में पागल संध्या दिन भर जयकुमार के इर्दगिर्द रहने लगी, जिस के चलते संध्या के भाई धनेंद्र को दोनों के बीच पक रही खिचड़ी का आभास होने लगा. उस ने दोनों पर नजर रखनी शुरू कर दी, तो कुछ ही दिनों में उसे पूरा यकीन हो गया कि जयकुमार और उस की बहन घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इश्कबाजी कर रहे हैं. एक मामूली नौकर द्वारा अपनी इज्जत पर हाथ डालने के दुस्साहस के कारण धनेंद्र का खून खौल उठा. लेकिन मामला इज्जत का था, सो उस ने विवाद करने के बजाय जयकुमार को डांटफटकार कर घर से निकाल दिया.

राजेंद्र के परिवार ने जयकुमार को नौकरी से निकालने का बहाना उस के द्वारा काम में लापरवाही बरतना बताया. धीरेधीरे गांव वालों में इस के सही कारण की चर्चा होने लगी. लेकिन जयकुमार और संध्या दोनों को एकदूसरे की आदत पड़ चुकी थी, इस से परिवार वालों के विरोध के बाद भी चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की तड़प शांत करने का खेल लगातार जारी रहा. इस के लिए जयकुमार ने संध्या को एक सिम कार्ड उपलब्ध करा दिया, जिस से वह केवल जयकुमार से बात करती थी. घटना वाले दिन भी यही हुआ. उस रोज पास के एक गांव के रईस ठाकुर धनेंद्र के लिए अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आए थे.

दिन भर घर में मेहमानों की भीड़ रही, जिस के बाद ठाकुर परिवार ने खेत पर दारू और मुर्गा पार्टी का आयोजन किया. जिस के चलते शाम होते ही घर के सारे मर्द पार्टी के लिए खेत पर निकल गए. घर पर केवल मां और संध्या थी. संध्या को प्रेमी से मिलने के लिए यह समय काफी मुफीद लगा, इसलिए शाम को ही उस ने जयकुमार को फोन कर रात में चुपचाप अपने कमरे में प्यार की महफिल जमाने का निमंत्रण दे दिया था. जयकुमार नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद भी कई बार इसी तरह संध्या से मिला करता था. इसलिए उस रोज रात गहराते ही वह शराब पी कर चुपचाप संध्या के कमरे में दाखिल हो गया. संध्या उसी का इंतजार कर रही थी. एकदूसरे को आमनेसामने देख कर वे दुनिया को भूल कर प्यार के सागर में गोते लगाने लगे.

इधर खेत पर पार्टी खत्म कर रात 12 बजे के आसपास धनेंद्र अपने चाचा गजेंद्र के साथ घर लौटा, जिस के बाद चाचा तो अपने कमरे मे चले गए. अपने कमरे में जाते समय धनेंद्र संध्या के कमरे के सामने से गुजरा तो उसे कमरे से आवाजें सुनाई दीं. आवाज सुन कर धनेंद्र ने बहन के कमरे में झांका तो अंदर का नजारा देख कर उस का खून खौल उठा. संध्या अपने कमरे में बिस्तर पर जयकुमार के साथ प्यार के सागर में हिचकोले ले रही थी. धनेंद्र ने सब से पहले फोन लगा कर अपने चाचा को यहां आने को कहा और खुद गुस्से में कमरे के दरवाजे पर लात मार कर कमरे में दाखिल हो गया.

धनेंद्र को गुस्से में देख कर संध्या अपने कपड़े समेट कर मां के कमरे की तरफ भाग गई, धनेंद्र पास में पड़ा डंडा उठा कर जयकुमार पर पिल पड़ा. इस पिटाई में जयकुमार की मृत्यु हो गई, उसी समय धनेंद्र का चाचा गजेंद्र भी आ गया. धनेंद्र ने पूरी बात चाचा को बताई. इस के बाद चाचा और भतीजा मिल कर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. तभी राजेंद्र सिंह भी घर पहुंच गया. सोचविचार कर तीनों ने लाश बोरी में बंद कर अपने घर में छिपा दी और अगली रात को अपनी गाड़ी में डाल कर उसे ठिकाने लगाने निकल पड़े. इन लोगों ने बम्हौरीकलां जतारा रोड पर बामना निगेला के पास लाश डाल दी.

उधर जयकुमार 14 जनवरी, 2020 की शाम से लापता था. 2 दिन बाद भी जब वह घर नहीं लौटा तो उस के पिता किशोरीलाल को चिंता हुई. वह 16 जनवरी को बेटे के बारे में पूछने के लिए जमींदार राजेंद्र सिंह राठौर के पास गया. क्योंकि जयकुमार पहले उस के यहां काम करता था. राजेंद्र सिंह ने जयकुमार के बारे में अनभिज्ञता जताई. इतना ही नहीं, सहानुभूति दिखाते हुए वह उस के साथ थाने जाने के लिए तैयार हो गया. जब ये लोग थाने जा रहे थे तभी उन्हें बामना निगेला के पास लाश मिलने की सूचना मिली. वहां जा कर देखा तो लाश जयकुमार की ही निकली.

तीनों ने सोचा था कि किशोरी के साथ लगे रहने से पुलिस उन पर शक नहीं करेगी. लेकिन एसपी अनुराग सुजानिया के निर्देशन और एसडीपीओ प्रदीप सिंह राणावत के नेतृत्व में गठित टीम ने केस का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

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