Superstition : शादी के 10 साल बाद भी जब परशुराम और सुनयना के कोई बच्चा नहीं हुआ तो सुनयना तांत्रिकों के चक्कर लगाने लगी. एक तांत्रिक ने सुनयना को एक बच्ची की बलि दे कर कलेजा खाने की सलाह दी. संतान प्राप्ति के लिए सुनयना और उस के पति ने ऐसा किया भी लेकिन…

उस दिन नवंबर, 2020 की 15 तारीख थी. सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. तभी थाना घाटमपुर प्रभारी इंसपेक्टर राजीव सिंह को नरबलि की खबर मिली. यह खबर भदरस गांव के किसी व्यक्ति ने उन के मोबाइल फोन पर दी थी. उस ने बताया कि दीपावली की रात गांव के करन कुरील की 7 वर्षीय बेटी श्रेया उर्फ भूरी की बलि दी गई है. उस की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी है. खबर पाते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोसपड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैंकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. थानाप्रभारी राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी फिर जांच में जुट गए. श्रेया उर्फ भूरी की नग्न लाश भद्रकाली मंदिर के समीप नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता करन कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी माया कुरील दहाड़े मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

मासूम का पेट किसी नुकीले व धारवाले औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं. मासूम श्रेया के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैर लाल रंग से रंगे थे. देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पल, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला. थानाप्रभारी सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी इस वीभत्स कांड को अंजाम दिया है, वह जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी. अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए. उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मासूम बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे. एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड टीम भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी मासूम के खून के अंश व उस की चप्पल खोजी कुतिया को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर रुक गई. टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस वह आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्रेया के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया गया. उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी प्रीतिंदर सिंह से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया. उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ‘सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौड़ने लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे. मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्पलीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी. मासूम के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद श्रेया का शव उस के पिता करन कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहीद के साथ नवनिर्वाचित विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका श्रेया के पिता करन कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया. चैक लेते समय करन व उन की पत्नी माया की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नर पिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्क आउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने श्रेया को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था. अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की लेकिन अंकुल नहीं टूटा. आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम श्रेया की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी. उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर करन की बेटी श्रेया को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वह गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने उस के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया. उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ला कर दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए. ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था.

इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए, फिर हम लोग घर चले गए. 16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था. उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही श्रेया की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निसंतानों के बच्चे हो जाते हैं. वह भी निसंतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था. चूंकि सभी ने जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. अत: थानाप्रभारी राजीव सिंह ने मृतका के पिता करन कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया. पुलिस जांच में एक ऐसे दंपति की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने अंधविश्वास में पड़ कर संतान पाने की चाह में एक मासूम के कलेजे की सुपारी दी और उसे खा भी लिया. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. परशुराम कुरील इसी दलित बाहुल्य इस गांव में रहता था. लगभग 10 साल पहले उस की शादी सुनयना के साथ हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था.

वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था. भदरस और उस के आसपास के गांव में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है. जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है. बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुर्गे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं. इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या दो बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था. दरअसल, सुनयना की शादी को 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया. लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों व मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी. तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए. लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी रही.

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक काम में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी. क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था. परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के जन्मदिन, मुंडन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे सामाजिक पीड़ा होती थी. सामाजिक अवहेलना से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. 10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बा के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई.

तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह उपाय कर सके.

‘‘कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

‘‘ठीक है बाबा. मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा. उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक पुस्तक हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था. परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ‘‘विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बालिका का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है. अंकुल, परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था. अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ‘‘अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

‘‘वह कैसे चाची?’’

‘‘इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगे तो हमारे घर में खुशी आ सकती है.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करतेकरते उन के सामने भूरी का चेहरा आ गया. श्रेया उर्फ भूरी करन कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. करन परशुराम के घर के समीप रहता था. उस की 3 बेटियों में श्रेया दूसरे नंबर की थी. वह कक्षा 2 में पढ़ती थी. करन किसान था. उसी से जीविका चलाता था. वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया. इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने लाल रंग से भरी एक डब्बी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देश दिए. शाम 6 बजे अंकुल और वीरन, परशुराम के घर से निकले. तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब करन के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम श्रेया पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने भूरी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

भूरी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों भूरी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. श्रेया को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ‘‘भैया, कहां ले जा रहे हो?’’ यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई. फिर वे दोनों भूरी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया. उन दोनों ने श्रेया उर्फ भूरी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने श्रेया के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया. परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय करन को श्रेया नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. करन व उस की पत्नी माया रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी. 17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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