UP Crime News : यूपी के जिला संभल की पुलिस ने बीमा क्लेम हड़पने वाले गैंग के 30 लोगों को गिरफ्तार कर बड़ी सफलता हासिल की है. यह गैंग मरे हुए लोगों का भी मोटी धनराशि का जीवन बीमा करा कर बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से क्लेम ले लेता था. पिछले 8 सालों से देश के विभिन्न राज्यों में गैंग धड़ल्ले से काम कर रहा था. आप भी जानें कि गैंग किस तरह से अपने शिकार तलाशता था?
ओंकारेश्वर मिश्रा बीमा पौलिसी का सर्वे करने वाली फस्र्ट सोल्यूशन सर्विस कंपनी में बतौर जांच अधिकारी के रूप में काम करता था. करीब 8 वर्ष पहले की बात है. वह एक जीवन बीमा क्लेम से संबंधित जांच करने गया था.
जांच में पता चला कि जिस व्यक्ति का इंश्योरेंस क्लेम लेने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया है, उस की बीमा पौलिसी मृत्यु से 3 महीने पहले ही कराई गई थी. ओंकारेश्वर मिश्रा ने और गहनता से जांच की तब पता चला कि वह व्यक्ति कई महीनों से कैंसर से पीडि़त था. उस की जो इंश्योरेंस पौलिसी की गई थी, वह नियम के अनुसार नहीं थी.
मृतक के फेमिली वालों ने मिश्राजी से सांठगांठ की. कुछ लेनदेन की बात चली. कुल मिला कर क्लेम की धनराशि के आधेआधे पर फैसला हो गया. नौमिनी को पौलिसी की राशि का भुगतान हो गया. इस तरह मिश्राजी को इस सांठगांठ से इतनी रकम हासिल हो गई, जितनी उस की एक महीने की सैलरी भी नहीं थी.
इस के बाद ओंकारेश्वर मिश्रा की बुद्धि में चेतना जागी. उस ने इस तरह के घोटाले को अपना धंधा बनाने के विचार पर मंथन शुरू कर दिया. इस के लिए उस ने अपने एक साथी अमित कुमार से विचारविमर्श किया. अमित भी इसी लाइन से जुड़ा था. दोनों ने मिल कर योजना तैयार की. वह किसी ऐसे बीमार व्यक्ति की तलाश में लग गए, जिस की मृत्यु निकट दिनों में ही संभव हो. कई दिनों के प्रयास के बाद भी ऐसा कोई मरणासन्न बीमार उन दोनों के हत्थे नहीं चढ़ा.
ओंकारेश्वर मिश्रा उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के कस्बा फुलवारिया का रहने वाला था. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद ओंकारेश्वर और अमित को सफलता नहीं मिली. कई दिनों से थकेहारे दोनों के चेहरे पर एक दिन चमक जाग उठी. दोनों ने तय किया कि ग्रामीण क्षेत्र की किसी आशा दीदी से कांटेक्ट किया जाए.
अमित की जानकारी में एक आशा दीदी थी. दोनों ने उस महिला से संपर्क किया. वह एक सक्रिय आशा थी. उसे अपने पूरे गांव की जानकारी थी. आशा ने इन दोनों को बताया कि गांव की एक महिला कैंसर से पीडि़त है और इस समय वह मरणासन्न स्थिति में है.
गांव के ही झोलाछाप डाक्टर से दवाई ले कर उस की जिंदगी के दिन पूरे कर रहे थे. महिला 50 प्लस की उम्र में पहुंच चुकी थी.
ओंकारेश्वर और अमित ने उस के परिवार वालों से बातचीत की उन्हें समझाया कि यदि इन का बीमा कर दिया जाए तो काफी रकम उन की मृत्यु के बाद परिजनों को मिल सकती है. परिवार के लोगों ने कहा कि बीमा कराने के लिए उन के पास पैसे नहीं है. मिश्राजी इसी जुमले का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तुरंत कहा कि पैसा हम लगाएंगे, कागज सब तैयार हम करेंगे, लेकिन आप को बीमा की आधी रकम हमें देनी पड़ेगी.
फेमिली के लोग उस की बात पर बिना किसी नानुकुर के तैयार हो गए. पूरा खाका तैयार कर लिया गया. जुगाड़ बाजी करके महिला का बीमा करा दिया गया. इन दोनों ने मिलकर बता दिया कि 5 लाख रुपए का बीमा कराया गया है.
बीमा की 2 किस्तें इन दोनों ने अपनी जेब से भर दीं. इत्तेफाक कहिए या इन लोगों का मुकद्दर, 2 महीने बाद ही महिला की मृत्यु हो गई. इन्होंने क्लेम कर के बीमा राशि निकाल ली और शर्त के अनुसार रकम आधीआधी बांट ली. वृद्धा की फेमिली भी खुश और मिश्राजी भी खुश. इस कामयाबी के बाद ये लोग इसी धंधे में लग गए.
इस के बाद ये लोग किसी बीमार मरणासन्न व्यक्ति की तलाश करते. उस का बीमा करवाते उस की मृत्यु के बाद बीमा राशि क्लेम कर के निकलवा लेते और उस का बंदरबांट कर लेते. इस तरह इन के इस धंधे में और भी लोग जुड़ते रहे और एक गैंग तैयार हो गया. सभी सदस्य भरपूर कमाई कर रहे थे. भरपूर आमदनी हो रही थी. फिर एक दिन अचानक गैंग पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. देखते ही देखते एक आलीशान मजबूत किला रूपी गैंग रेत के घरौंदे की तरह बिखर गया.
बात 17 जनवरी, 2025 की है. रात का समय था. ठंड पड़ रही थी. इस दौरान उत्तर प्रदेश के जिला संभल की एडिशनल एएसपी अनुकृति शर्मा अपनी गाड़ी से थाना रजपुरा पुलिस की रात्रि गस्त की निगरानी कर रही थीं. तभी रास्ते में एक काले रंग की स्कौर्पियो ने उन की गाड़ी को ओवरटेक किया. गाड़ी की स्पीड और ओवरटेक करने का ढंग देख एएसपी अनुकृति शर्मा को शक हुआ. उन्होंने अपने ड्राइवर को निर्देश दिया कि इस स्कौर्पियो को रोका जाए.
पुलिस ने उस स्कौर्पियो का पीछा किया. स्कौर्पियो ने स्पीड और तेज कर दी. एएसपी अनुकृति शर्मा ने भी अपने ड्राइवर को कार का पीछा करने के निर्देश दिए. पुलिस की 2 गाडिय़ां पीछे आते देख कर स्कौर्पियो का ड्राइवर घबरा गया. जैसे ही मौका लगा, एएसपी अनुकृति शर्मा के ड्राइवर ने ओवरटेक कर के स्कौर्पियो रुकवाई. उस में ओंकारेश्वर मिश्रा और अमित कुमार नाम के 2 शख्स बैठे थे.
अमित कार ड्राइव कर रहा था. उन से सामान्य नागरिक की तरह ही कुछ जानकारी पुलिस ने करनी शुरू कर दी. पहले तो वो पुलिस के सवालों को टालते रहे. इस पर एएसपी ने उन की गाड़ी की तलाशी लेने के निर्देश दिए. तलाशी में उन के पास से 16 डेबिट कार्ड, कई बीमा कंपनियों से जुड़े कागजात और 11 लाख से अधिक रुपए नकद मिले. यह सब बरामद होने पर एएसपी को मामला संदिग्ध लगा तो वह उन दोनों को कार सहित थाने ले गई.
संभल रजपुरा थाने में उन से पूछताछ का सिलसिला व्यापक होता गया. बातबात में बात बढ़ती गई. जब आगे जांच हुई तो पता चला कि यह कोई सामान्य लोग नहीं थे, बल्कि ये अंतरराज्यीय बीमा घोटाले के सरगना निकले.
पुलिस ने जब ओंकारेश्वर मिश्रा से पूछताछ की तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं. यह गैंग फरजी बीमा पौलिसी से जुड़ा था. ओंकारेश्वर ने कुबूला कि हम बीमा पौलिसी का सर्वे करने वाली कंपनी में बतौर इन्वेस्टिगेटर काम करते हैं.
मिश्रा और अमित ने दिल्ली स्थित 2 बीमा जांच कंपनियों, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ‘फस्र्ट साल्यूशंस एजेंसी’ के लिए काम किया था, जो कई बीमा कंपनियों के दावों को वेरिफाई करने का काम किया करती थीं. उन का काम पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद नौमिनी के क्लेम की जांच करना था, लेकिन वे उल्टा काम कर रहे थे.
थाना रजपुरा पुलिस द्वारा इन दोनों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद जेल भेज दिया गया और इन से बरामद कागजात व अन्य सामग्री के आधार पर जांच चलती रही.
इन के द्वारा बताए गए अन्य साथियों पर भी पुलिस की निगरानी बढ़ गई. जगहजगह छापे मारे गए. जहां से जो आरोपी हाथ लगा उसे गिरफ्तार किया जाता रहा. यह सिलसिला कई महीने तक चलता रहा. पुलिस ने बीमा घोटाले में शामिल रहे 30 आरोपियों को 15 अप्रैल, 2025 तक गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया.
शुरू के दिनों में गिरोह के लोग बीमार व्यक्ति के फेमिली वालों से संपर्क करते थे. उन्हें सरकारी मदद का झांसा देते थे और आधार कार्ड और पैन कार्ड ले लेते थे. मरीज के इलाज की फाइल के साथ सिग्नेचर या फिर अंगूठे का इंप्रेशन ले लेते थे. गांव में कौन व्यक्ति बीमार है, किस को कैंसर हुआ है. कौन मरने वाला है, उन्हें तलाश कर उन की जीवन बीमा पौलिसी करा दिया करते थे. यह लोग गरीब और अशिक्षित लोगों को ही अपना टारगेट किया करते थे.
यह लोग अब तो किसी मरणासन्न व्यक्ति का ही नहीं अपितु मृत्यु के बाद भी मृतक व्यक्ति का बीमा कराने में कामयाब होने लगे. अब गैंग ने पूरी रकम हड़पने की योजना तैयार कर ली. ऐसा ही एक मामला संभल पुलिस की जांच में देश की राजधानी दिल्ली का सामने आया.
उत्तरी दिल्ली के शक्तिनगर निवासी त्रिलोक कुमार बीते वर्ष 19 जून को बीमारी से मौत हो गई. 25 सितंबर को उन्हें जिंदा दर्शा कर बीमा घोटाला गैंग ने बीमा की 2 पौलिसी करा दी. त्रिलोक कुमार कैंसर से पीडि़त थे. 15 जून, 2024 को वह दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में भरती हुए. 19 जून, 2024 को उन की मौत हो गई थी.
20 जून को दिल्ली के निगम बोध घाट पर उन का अंतिम संस्कार हो गया. फेमिली वालों के पास एमसीडी दिल्ली की श्मशान घाट की रसीद मौजूद थी, जिस पर मौत का कारण कैंसर लिखा था. इस के अलावा राजीव गांधी हौस्पिटल के डाक्यूमेंट्स भी थे. त्रिलोक कुमार के नाम पर कुल 2 जीवन बीमा पौलिसी एलआईसी से कराई गईं. इस में दूसरी वाली पौलिसी 20.48 लाख रुपए की थी. गिरोह ने इन की बीमा धनराशि हड़प ली.
ऐसा ही एक मामला बुलंदशहर जिले के डिबाई थाना क्षेत्र में भीमपुर गांव का सामने आया. पुलिस को सुनीता ने बताया कि उस के पति सुभाष की मौत बीमारी की वजह से पिछले साल हुई. मरने से कुछ दिनों पहले ही गांव की आशा दीदी नीलम उन के पास आई. उस ने कहा कि वह सरकार से कुछ मदद दिला सकती है.
वह सारे कागजात ले गई और वो उस ने इंश्योरेंस गिरोह को सौंप दिए. घोटाले का मामला सोशल मीडिया पर चर्चा में होने के बाद सुनीता को भी उस के पति के बीमे के कागज चैक कराने की याद आई. बाद में पता चला कि उस के पति के नाम पर लाखों रुपए की बीमा राशि निकाली जा चुकी है.
इसी तरह गाजियाबाद में लोनी थाना क्षेत्र की पूजा कालोनी में रहने वाले सौराज की 9 नवंबर, 2022 को मौत हो गई. उसी दिन पूजा कालोनी के श्मशान घाट में उस का अंतिम संस्कार हो गया. फेमिली वालों के पास इस श्मशान घाट की रसीद भी मौजूद है. इस में अंतिम संस्कार 9 नवंबर, 2022 को दोपहर साढ़े 3 बजे होना लिखा है. सौराज की मौत के बाद फरजी बीमा पौलिसी गैंग ऐक्टिव हुआ और उस के घर पहुंच गया.
मर चुके लोगों का भी गैंग ने कराया बीमा
इस गैंग ने सौराज के मृत्यु प्रमाणपत्र अन्य कागजात में हेराफेरी कर के उस की 2 जीवन बीमा पौलिसी करा दीं. एक पौलिसी मौत के 20 दिन बाद 29 नवंबर, 2022 को हुई. यह साढ़े 8 लाख रुपए की थी. दूसरी पौलिसी अन्य बीमा कंपनी से 7 दिसंबर, 2022 को हुई. यह 19 लाख 91 हजार 970 रुपए की थी.
मामला उत्तर प्रदेश के ही जिला बदायूं के गांव सिठौली का सामने आया. यहीं के रहने वाले सुरजीत सिंह की मौत एक लंबी बीमारी के बाद हो गई थी. गैंग ने उन के 2 बीमे करा दिए. सुरजीत सिंह को इसकी भनक भी नहीं लगी. गैंग ने बीमा कंपनी से क्लेम कर के फरजी तरीके से बीमा राशि हड़प ली. इस फरजीवाड़े में बैंककर्मियों की मिलीभगत की संभावना व्यक्त की गई.
घोटाले के एक अन्य मामले में सर्वेश के पति मुकेश कुमार की मृत्यु किडनी फेल होने से हुई थी. उन के नाम पर 20 लाख रुपए का बीमा था. गैंग के लोगों ने सभी दस्तावेज लेकर सर्वेश से उस पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे. इस के बावजूद बीमे की धनराशि सर्वेश के खाते में नहीं आई. 2 जनवरी, 2025 को गिरोह ने सर्वेश के नाम पर खोले गए फरजी खाते से सेल्फ चैक के जरिए से 9 लाख 90 हजार रुपए निकाल लिए.
चौंकाने वाली बात यह रही कि सर्वेश ने दावा किया कि उन्होंने ऐसा कोई खाता नहीं खुलवाया और न ही बैंक जा कर कोई चैक साइन किया. उन का एकमात्र बैंक खाता रजपुरा में था, जबकि नोएडा के सूरजपुर स्थित यस बैंक में उन के नाम से नया खाता खोल दिया गया था.
घोटाले का मामला हाईलाइट हो जाने पर बीमा राशि हड़पने की एक शिकायत जनपद संभल के थाना कुडफ़तेहगढ़ और एक थाना बनियाठेर में दर्ज हुई.
यह मामला अप्रैल 2025 का है. थाना कुडफ़तेहगढ़ क्षेत्र के गांव स्योडारा निवासी मीरावती के पति सुदामा, जो कैंसर से पीडि़त थे. इन की 2020 में मृत्यु हुई थी. इन के नाम की भी एक पौलिसी एलआईसी से कराई गई थी. इन के भी फरजी दस्तावेज तैयार किए गए. बीमा का पैसा मीरावती के खाते में
आया था.
आरोपियों ने प्रथमा ग्रामीण बैंक स्योडारा में मीरावती का खाता खुलवाया था . बैंक से चेक बुक ले कर मीरावती से खाली चेक पर अंगूठा लगवा लिया. मीरावती के खाते से कई लाख रुपए आराम सिंह नाम के व्यक्ति ने अपने बेटे पंकज सिंह के खाते में ट्रांसफर करा लिए.
हर विभाग में कर रखी थी सैटिंग
दूसरे मामले में बनियाढेर क्षेत्र के निवासी सत्यवीर सिंह की पत्नी मृतका सुकरवती को काला पीलिया था. जनवरी 2020 को उन की मृत्यु हो गई. जनवरी 2021 में उन्हें जीवित दिखा कर बीमा कराया गया.
मार्च में मृत्यु दिखा कर दूसरा मृत्यु सर्टिफिकेट ब्लौक बिलारी से ही बनवाया गया. बीमा कंपनियों में क्लेम कर के बीमा राशि प्राप्त कर ली और हेराफेरी कर के नौमिनी के खाते से निकाल ली. इन दोनों फरजीवाड़े के मामलों में नामजद आराम सिंह को नामजद किया गया.
पुलिस द्वारा आराम सिंह निवासी अल्लापुर, बिलारी को गिरफ्तार किया गया. आराम सिंह अंतरराज्यीय बीमा गिरोह का एक सदस्य निकला.
मुख्य आरोपी आराम सिंह ने पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे किए. उस ने बताया कि ओंकारेश्वर मिश्रा, सचिन शर्मा उर्फ मोनू आदि के साथ मिल कर यह धोखाधड़ी की जाती थी. यह गिरोह पिछले 8 सालों से सक्रिय था. संभल, धनारी, बबराला, बिलारी और मुरादाबाद समेत कई क्षेत्रों में इन का नेटवर्क फैला हुआ था. गिरोह ने 12 राज्यों के सैकड़ों लोगों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी करनी स्वीकार की.
एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा की निगरानी में संभल पुलिस को जांच में एक व्यक्ति पंचम सिंह के 2 आधार कार्ड बरामद हुए. एक में उन की जन्मतिथि जनवरी 1955 और एक दूसरे आधार कार्ड में जुलाई 1976 दर्ज थी. दोनों आधार कार्ड का नंबर सेम था.
पंचम सिंह के बेटे विनोद कुमार को 2 आधार कार्ड इस्तेमाल करने के जुर्म में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया. क्योंकि बीमा घोटाला गैंग ने पंचम सिंह की मृत्यु के बाद उन की बीमा राशि हड़प ली थी. पुलिस ने दोनों आधार कार्ड यूआईडीआई का डेटाबेस से चेक कराए.
डुप्लीकेट आधार कार्ड में पंचम सिंह की आयु 21 वर्ष काम कराई गई थी. क्योंकि पीएम जेजेवाई (प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना) का लाभ के लिए उम्र 50 साल से कम की उम्र होनी चाहिए, जबकि पंचम सिंह 70 साल के थे. इसलिए आधार में आयु कम कराई गई थी.
पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि यह सब हुआ कैसे? पंचम सिंह के बेटे विनोद ने आधार कार्ड में जन्मतिथि की हेराफेरी करने की जानकारी दी.
हैरान करने वाली बात यह थी कि आम नागरिक को अगर अपना एड्रेस चेंज कराना हो या मोबाइल नंबर दर्ज करना हो या बदलवाना हो तो लोगों को व्यक्तिगत रूप से आधार के अधिकृत सेंटर पर उपस्थित होना होता है, लेकिन पंचम सिंह ने यह कैसे करा लिया? यह सब कैसे हो गया?
पुलिस की तहकीकात में इल्लीगल तरीके से इन लोगों ने एकदम लुक लाइक पोर्टल बनाया था, जोकि आधार की तरह दिखता था. ये लोग वेब डिजाइनिंग व कोडिंग में बहुत माहिर थे.
पुलिस ने बदायूं और अमरोहा जिले से 4 लोगों को गिरफ्तार किया. जिन के पास से लैपटाप और कंप्यूटर सिस्टम के अलावा बायोमैट्रिक डाटा लेने वाले कई उपकरण बरामद किए गए, जिस में रबड़ के फरजी फिंगरप्रिंट, आइरिस कापी, फरजी पासपोर्ट, कई राज्यों के फरजी जन्म प्रमाणपत्र, मोडिफाई फिंगरप्रिंट स्कैनिंग मशीन, मोबाइल फोन, पैन कार्ड प्रपत्र, फिंगर अपडेशन, आवेदन प्रपत्र 400 से अधिक आधार संशोधन के लिए एनरोलमेंट आवेदन, 8 पासपोर्ट फोटो आदि बरामद किए गए. बीमा घोटाला गैंग की यह टीम आधार कार्ड में संशोधन करने की जिम्मेदारी खुद निभाती थी.
हिरासत में लिए गए लोगों की सूचना पर 6 लोगों को और गिरफ्तार किया गया. इस गिरोह के अन्य सदस्यों के पास से पुलिस ने 81 पासबुक, 35 चेकबुक के अलावा 31 मृत्यु प्रमाण पत्र, कई बैंकों की मोहरें, लैपटाप भी बरामद किए.
गिरफ्तार किए गए आरोपियों में प्रेमपाल और प्रेम सिंह फरजी तरीके से सिम देने का काम करते थे. दोनों ही युवक एक मोबाइल कंपनी के एजेंट थे. जिन के पास से भी पुलिस ने फरजी दस्तावेज बरामद किए.
इन से मोबाइल फोन और 7 भिन्नभिन्न कंपनियों के सिम बरामद किए गए. बरामद डाक्यूमेंट्स राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल के रहने वाले व्यक्तियों से संबंधित हैं जो या तो खुद जीवन बीमा की पौलिसी धारक हैं या फिर मृतक के नौमिनी हैं.
ऐसा ही एक और मामला पुलिस की जांच में सामने आया. बुलंदशहर जिले के पहासू थाना क्षेत्र के मोहल्ला चमारान कला अशोकनगर की रुखसार के पति असलम का बीमा क्लेम गिरोह ने ठग लिया. असलम गंभीर रूप से बीमार थे. गिरोह को जब यह जानकारी हुई तब गैंग के सदस्यों ने असलम का जीवन बीमा करा दिया.
रुखसार को उस का नौमिनी बनाया गया. जब उस के पति की मृत्यु हुई, रुखसार के नाम से एक फरजी खाता खोला गया और उस में बीमा की रकम डाल कर गैंग के सदस्यों द्वारा निकाल ली गई. बैंक में दिए गए मोबाइल नंबर भी गलत थे, जिस से रुखसार को कोई जानकारी नहीं मिली.
रुखसार ने बीमा कंपनी से संपर्क किया तो उसे पता चला कि उस के पति का बीमे का क्लेम पहले ही हो चुका है. रुखसार के बैंक खाते में क्लेम की रकम नहीं आई.
कई राज्यों में फैला हुआ था जालसाजी का नेटवर्क
इस मामले की जांच में सामने आया कि बुलंदशहर जिले के कस्बा अनूपशहर स्थित यस बैंक के 2 डिप्टी मैनेजरों ने फरजी दस्तावेजों पर गिरोह के सदस्य का खाता खोला था. रुखसार के क्लेम की रकम गिरोह के खाते में आई और वह निकाल कर ले गए.
जब पुलिस ने जांच की तो बैंकिंग प्रक्रियाओं में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का पता चला. बैंककर्मियों ने खाताधारक की उपस्थिति के बिना ही खाते खोल दिए, जिस से ठगी की योजना को अंजाम दिया गया. उक्त बैंक के दोनों डिप्टी मैनेजरों को पुलिस ने जेल भेज दिया.
एएसपी अनुकृति शर्मा के निर्देश पर गैंग का खुलासा करने के बाद सभी 10 बीमा कंपनियों को एक लेटर लिखा. उन से 2 साल का डेटा मांगा. इस में सिर्फ उन पौलिसी की डिटेल्स मांगी गईं, जिन में बीमा होने और मरने में सिर्फ एक साल का अंतर रहा हो.
डेटा एनालिसिस करने के बाद एसबीआई लाइफ की 7.27 करोड़, पीएनबी मेटलाइफ की 2 करोड़ रुपए से ज्यादा, कैनरा एचएसबीसी की 7.44 करोड़ रुपए, इंडिया फस्र्ट की 10.33 करोड़ रुपए, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ की 4. कुछ ही कंपनियों द्वारा भेजे गए डेटा में 50 करोड़ रुपए की बीमा पौलिसी सस्पेक्टेड पाई गईं. बाकी बीमा कंपनियों ने कथा संकलन तक डेटा नहीं दिया था.
इन में करीब 70 फीसदी लोगों की मौत का कारण हार्टअटैक बताया है. इस से स्पष्ट होता है कि गैंग ने डाक्टरी रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र सब स्वयं के द्वारा तैयार किए गए होंगे. बीमा कंपनियों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार बीमा पौलिसी उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, दिल्ली, बिहार, असम, वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में हुई थीं.
यानी इन का नेटवर्क पूरे देश में फैला था. चूंकि यह गैंग पिछले 8 सालों से काम कर रहा था और अभी पुलिस को सिर्फ 2 साल का डेटा मिला है, इसलिए अनुमान है कि फरजी पौलिसी की रकम 100 करोड़ रुपए से भी पार पहुंच सकती है. पुलिस अप्रैल 2025 तक गैंग के 30 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी.
गिरफ्तार किए गए आरोपियों में मुख्य रूप से अमित ड्राइवर, ओंकारेश्वर मिश्रा के अतिरिक्त धनारी थाना क्षेत्र के गांव भैयापुर का शाहरुख खान, संजू, अरुण किशोर, हीरेंद्र कुमार, प्रेमपाल, प्रेम सिंह, बुलंदशहर जिले की थाना डिबाई क्षेत्र के गांव बाधौर की नीलम थी.
नीलम आशा कार्यकर्ता है, अन्य मुख्य अभियुक्त अमित पुत्र हीरालाल निवासी मसजिद मोहल्ला बबराला, हाल निवासी अलीपुर चोपला, थाना गजरौला, नितिन चौधरी (डिप्टी मैनेजर, यस बैंक, अनूप शहर ब्रांच) निवासी देवीपुरा मोहल्ला, बुलंदशहर, अभिनेश राघव (डिप्टी मैनेजर, यस बैंक, बुलंदशहर ब्रांच), ईस्ट इंडिया इनवेस्टिगेशन कंपनी के मालिक शैलेंद्र कुमार, नरेश कुमार तथा नरेश का बेटा आकाश यादव निवासी मोहल्ला बाजार कस्बा बिलारी जिला मुरादाबाद है. कुछ लोग अभी फरार हैं, जिन के खिलाफ अदालत में काररवाई की जा रही है.
संभल में हुए बीमा घोटाले में कई थानों की पुलिस ने काररवाई की. इस घोटाले में रजपुरा और गुन्नौर थाना पुलिस ने मुख्य रूप से अंतरराज्यीय गिरोह के सदस्यों को गिरफ्तार किया.
बीमा घोटाला गैंग के खिलाफ प्रभावी काररवाई एसएचओ (थाना रजपुरा) हरीश कुमार, एसएचओ (गुन्नौर) अखिलेश कुमार, दीपक कुमार (सीओ गुन्नौर), एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा और एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई के नेतृत्व में हुई.
कथा लिखने तक जांच जारी थी. घोटाला कहां तक पहुंचेगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.
50 लाख के क्लेम के लिए विकलांग को कुचला
पहली अगस्त, 2024 को संभल जिले के बिसौली थाना क्षेत्र के ढीलवारी गांव निवासी राजेंद्र ने अपने भाई दरियाब जाटव की मौत के संबंध में एफआईआर दर्ज कराई थी. दरियाब 21 जुलाई, 2024 को बाजार जाने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन वह देर शाम तक भी घर वापस नहीं आया. संभावित स्थानों पर तलाश भी किया गया, दरियाब का पता नहीं चला.
सैनिक चौराहे से चंदौसी के आटा गांव जाने वाली सड़क पर करीब डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर रात 10 बजे दरियाब का शव मिला सूचना मिलने पर राजेंद्र भी मौके पर पहुंचा. घटनास्थल देख कर ऐसा लग रहा था कि दरियाब की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.
राजेंद्र के कहने पर और लोगों ने भी अज्ञात वाहन की टक्कर से उसकी मृत्यु होना स्वीकार कर लिया. पुलिस को सूचना दी गई. मौका मुआयना करने के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण सिर में चोट और पूरे शरीर पर छिलने जैसे निशान बताए गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट एक्सीडेंट मामले की ओर इशारा कर रही थी. 2 अगस्त 2024 को राजेंद्र की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात वाहन द्वारा टक्कर मार देने से हुई मृत्यु का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मामले को सड़क हादसा दिखाते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी.
बीमा कंपनी टाटा एआईए को इस मामले में शक हुआ. दरियाब के नाम की एक साल पहले बीमा पौलिसी की गई थी. बीमा कंपनी ने पुलिस को सूचना दी. संभल जिले में बीमा घोटाला माफिया गिरोह पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. उस की जांच भी चल रही थी. इस घोटाले की जांच का नेतृत्व एएसपी अनुकृति शर्मा कर रही थीं. इसलिए बीमा कंपनी की शिकायत संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई ने एएसपी अनुकृति शर्मा को जांच हेतु सौंप दी. 9 महीने पहले दिव्यांग दरियाब की सड़क दुर्घटना की फाइल बंद चुकी थी.
बीमा कंपनी की शिकायत पर फिर से फाइल ओपन की गई. जांच में पता चला कि सड़क दुर्घटना में मौत का शिकार हुए व्यक्ति की 5 बीमा पौलिसी कराई गई थीं. एक सवाल था कि दिव्यांग दरियाब कोई काम नहीं करता था. 5 पौलिसी की किस्तें जमा करने के लिए उस के पास पैसा कहां से आता था.
जांच में सामने आया कि दरियाब दिव्यांग होने के कारण ट्राई साइकिल पर चलता था. उस का एक्सीडेंट उस के घर से करीब 27 किलोमीटर दूर हुआ था. अब सवाल यही उठ रहा था कि वह आखिर 27 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर कैसे पहुंच गया. क्योंकि घटनास्थल पर दिव्यांग की ट्राई साइकिल बरामद नहीं हुई थी.
इस के बाद पुलिस ने आगे की जांच की तो पता चला एक्सिस बैंक के एडवाइजर पंकज राघव ने दरियाब की पौलिसी की थी. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स खंगाली. काल डिटेल्स में पंकज, हरिओम और विनोद की बात सामने आई. पुलिस ने तीनों से पूछताछ की तो पूरा मामला खुल गया.
दरअसल, हरिओम और विनोद नामक 2 सगे भाई एक्सिस बैंक में लोन लेने के लिए गए थे. वहां उन का सिविल खराब होने के कारण लोन देने से मना कर दिया. यहां उन की मुलाकात एक्सिस बैंक के इंश्योरेंस पौलिसी एडवाइजर पंकज राघव से हुई. लोन न मिलने पाने की स्थिति में तीनों की बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा तो शातिर दिमाग पंकज राघव ने पौलिसी हड़पने का घटिया प्लान तैयार किया.
दोनों भाइयों ने मिल कर गरीब दिव्यांग का प्लानिंग के अनुसार दरियाब का 50.68 लाख रुपए का 5 अलगअलग बीमा कंपनियों से एक्सीडेंटल बीमा करवाया. दरियाब के भाई राजेंद्र को विश्वास में लिया. पंकज ने खुद को बचाते हुए बीमा में नौमिनी तो राजेंद्र को बनाया, लेकिन मोबाइल नंबर अपना डलवा दिया, ताकि भविष्य में मैसेज उसी को मिलें. खाते खुलवाए गए आधार कार्ड आदि सभी कागजात राजेंद्र से अपने कब्जे में ले लिए.
क्लेम के कागज तैयार कर के उस पर राजेंद्र के अंगूठे, हस्ताक्षर भी ले लिए. बीमा की किस्तें भी एक साल तक लगातार जमा करते रहे. 31 जुलाई को प्रताप, हरिओम और विनोद दरियाब को कार में बैठा कर चंदौसी लाए.
दरियाब को शराब पिलाई गई और फिर आटा गांव रोड के पास सुनसान जगह पर कार से बाहर निकल कर नशे में बेहोश दरियाब को सड़क पर डाल दिया. उस के ऊपर कार चढ़ा दी गई. कार से कुचलने के बाद भी उस की मौत नहीं हुई तो हथौड़े से उस के सिर पर वार किए गए. जिस से उस की मौत हो गई.
दरियाब की मौत के बाद 50.68 लाख रुपए के कुल बीमे में से इन लोगों ने 15.68 लाख रुपए पुलिस की गिरफ्त में आने से पहले ही हड़प लिए थे. बाकी राशि उन को नहीं मिल पाई थी. दिलचस्प बात यह है कि राजेंद्र के हाथ एक पैसा नहीं लगा. राजेंद्र को प्लानिंग की कोई जानकारी भी नहीं दी गई.
इस खुलासे को अंजाम देने वाली टीम को विभाग की तरफ से 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की गई. गिरोह के 4 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. सड़क दुर्घटना के 9 महीने बाद 30 अप्रैल, 2025 को पूरे मामले का खुलासा संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई ने प्रैस कौन्फ्रैंस में किया. UP Crime News