hindi love story : 24 साल की अनन्या निषाद और 22 साल के विशाल साहनी के बीच 5 साल पुराना प्यार था. प्रेमी की खातिर अनन्या अपने पति को भी छोड़ आई थी. अब वह प्रेमी से शादी करने के सपने संजोए थी. इसी बीच 27 फरवरी, 2025 को एक सूटकेस में अनन्या की लाश मिली. आखिर किस ने की उस की हत्या?

प्रेमिका अनन्या द्वारा पति का घर छोड़ कर वापस लौट आने से विशाल बहुत खुश था, लेकिन शादी वाली बात सुन कर पता नहीं क्यों उस ने अजीब सा बरताव अख्तियार कर लिया था. मतलब अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, अभी अपने पैरों पर और मजबूती से खड़ा हो जाऊं, तब शादी करूंगा, ताकि परिवार बढ़े तो उन्हें सुख से पालापोसा जा सके. अनन्या निषाद अपना मायका (बनारस) छोड़ कर जौनपुर आ गई. यहां उस ने पौश इलाका मछलीशहर मोहल्ले में वकील विमलेश का एक कमरा किराए पर ले लिया और अकेली रहने लगी थी.

उस की माली हालत इतनी मजबूत नहीं थी कि घर बैठे जीवन खुशहाली से बिता सके, फिर घर पर अकेली बैठेबैठे बोर भी हो जाती थी. इसलिए उस ने कोई जौब करने का मन बना लिया था. फिर क्या था, मकान मालिक वकील की मदद से इस्टाइल बाजार स्थित एक शौपिंग माल में जौब शुरू कर दी तो उस की माली हालत में सुधार भी होने लगा और अच्छे से समय भी कटने लगा था. रात ड्यूटी से वापस घर लौटने के बाद वह विशाल से घंटों प्यार भरी बातें करती थी. और जल्द शादी करने के लिए उस पर दबाव भी बना रही थी.

विशाल साहनी अपना मन बदल चुका था. दरअसल, जो विशाल अपनी अनन्या से टूट कर अंधा प्यार करता था, उस के दिल में अब वह प्यार नहीं रह गया था. उसे अनन्या अब जूठन लगने लगी थी. दिखावे के लिए वह उस पर जान छिड़कता था, लेकिन भीतर ही भीतर उस से नफरत करने लगा था. विशाल सिर्फ उस के सुंदर और गदराए बदन से प्यार करने लगा था ताकि वह अपनी कामपिपासा की आग को समयसमय पर बुझा सके.

अनन्या विशाल के इस घृणित विचार से नावाकिफ थी. वह तो आज भी उसे समुद्र की गहराइयों जैसे ही प्यार करती थी और विश्वास भी, लेकिन विशाल के मन में क्या चल रहा है, इस से वह अनभिज्ञ थी. इसी साल के फरवरी महीने के पहले सप्ताह में केरल से विशाल बनारस अपने घर आया था. अनन्या का मोबाइल नंबर उस के पास था ही. दोनों फोन पर घंटों मीठीमीठी प्यार भरी बातें करते थे. अनन्या उस से शादी करने की बात कहना नहीं भूलती थी. अनन्या के बारबार शादी करने के दबाव से अब विशाल बुरी तरह परेशान रहने लगा था और अनन्या से जल्द से जल्द छुटकारा पाने के उपाय ढूंढने लगा था. अनन्या एक तरह से उस के गले की हड्डी बन गई थी.

अनन्या नाम की गले की हड्डी से कैसे छुटकारा पाया जाए, इस के लिए वह तरकीबें ढूढने लगा. एक तरकीब उस के मन में खतरनाक रूप ले चुकी थी, वह तरकीब थी अनन्या की मौत. यानी इस से छुटकारा पाने के लिए उसे मरना होगा. प्लान के मुताबिक, 24 फरवरी, 2025 की शाम 4 बजे विशाल बनारस से बस से जौनपुर के लिए चला और रात 8 बजे जौनपुर पहुंच गया. 2 घंटे इधरउधर बिता कर रात 10 बजे अनन्या के कमरे पर पहुंचा. उस ने प्रेमिका अनन्या को फोन पर पहले ही बता दिया था कि वह उस से मिलने जौनपुर आ रहा है.

प्यार से मिलन के जमीं पर पलक पांवड़े बिछाए अनन्या विशाल के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी थी. उस समय वह कितनी खुश थी, यह किसी से बता नहीं सकती थी. आखिरकार इंतजार की घडिय़ां रात 10 बजे तब खत्म हुईं, जब विशाल को अपने सामने खड़ा पाया. उसे देख कर वह फूली नहीं समा रही थी. बहरहाल, अनन्या और विशाल देर रात तक जागते रहे. दोनों ने साथसाथ खाना खाया और फिर सो गए. विशाल को नींद नहीं आ रही थी, क्योंकि उस के मन में  अनन्या को मौत के घाट उतारने की उथलपुथल मची हुई थी, लेकिन रात में बात नहीं बनी तो उस की आंखें कब लग गईं, उसे पता नहीं चला.

रोज की तरह अगली सुबह यानी 25 फरवरी को भी अनन्या अपने नियत समय पर उठ कर तरोताजा हुई और फिर नाश्ता बना कर तैयार कर दिया था. विशाल सुबह 9 बजे के करीब उठा और फ्रेश हो कर दोनों ने एक साथ बैठ नाश्ता किया. फिर अनन्या खाना बनाने किचन में चली गई, क्योंकि उसे ड्यूटी भी तो जाना था. इसी दरमियान अनन्या ने अपनी शादी करने की बात विशाल से फिर छेड़ दी थी. शादी की बात सुन कर वह भीतर ही भीतर जलभुन उठा और गुस्से से लाल हो गया, ”अरे, कर लूंगा शादी. तुम शादी करने के लिए इतना परेशान क्यों रहती हो. अच्छा समय देख कर शादी कर लेंगे. थोड़ा सा हमें और समय दे दो.’’ विशाल ने अनन्या को समझाने की कोशिश की.

”देखो विशाल, हमें तुम धोखा तो नहीं दोगे. मैं ने अपने प्यार के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी है. पति का घर छोड़ा, मम्मीपापा का घर छोड़ा, सिर्फ तुम्हारे लिए. अगर तुम ने मुझे धोखा दिया तो…’’

”…तो क्या कर लोगी. जाओ, नहीं करता शादी.’’

इतना सुनते ही अनन्या का गुस्सा भी सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस समय विशाल वहीं किचन के दरवाजे के सामने खड़ा बातें कर रहा था. उस ने आव देखा न ताव, स्लैब पर रखा चावल निकालने वाला पल्टा ले विशाल पर घायल शेरनी की तरह टूट पड़ी. यह देख कुछ पल के लिए विशाल घबरा गया था. पहली बार उस ने अनन्या का यह रूप देखा था. फिर क्या था विशाल और अनन्या के बीच गुत्थमगुत्थी हो गई. अपनी जान बचाने के लिए विशाल ने उस के हाथ से पल्टा छीन लिया और उसी पल्टे से उस के सिर पर कई वार किए. वार इतना जोरदार था कि अनन्या वहीं किचन में कटे वृक्ष की तरह फर्श पर धड़ाम से गिर गई और थोड़ी देर में ही उस की मौत हो गई.

कुछ देर बाद जब विशाल का गुस्सा शांत हुआ तो फर्श पर निढाल पड़ी अनन्या को हिलाडुला कर देखा तो उस के होश उड़ गए. उस की सांसें बंद थीं, यानी वह मर चुकी थी. यह देख कर वह घबरा गया और उस के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उस की आंखों के सामने जेल की सलाखें दिखने लगी थीं, लेकिन वह जेल नहीं जाना चाहता था. फिर क्या था? किचन में अनन्या की लाश छोड़ कर विशाल दरवाजे पर चिटकनी लगा कर कमरे में लौट आया. कमरे में नजर घुमा कर चारों ओर देखा तो उसे एक कोने में लाल रंग का बड़ा सा सूटकेस दिखाई दिया.

झट से खोल कर उस ने देखा, उस में अनन्या के रोजमर्रा के कपड़े और कुछ सामान था. फटाफट उस ने सूटकेस खाली किया और सारा सामान वहीं फर्श पर उड़ेल दिया. उसी लाल रंग के सूटकेस में उस ने अनन्या की लाश तोड़मरोड़ कर भर दी. लाश ठिकाने लगाने के लिए वह कुछ देख के लिए कमरे पर ताला लगा कर भाड़े का टैंपो लेने चला गया, टैंपो वाले से उस ने यह बताया था कि कुछ भारी सामान है, रिश्तेदार के यहां पहुंचाना है तो टैंपो वाला तैयार हो गया. फिर टैंपो ले कर वह घर पहुंचा. विशाल लाल सूटकेस को कंधे पर लाद कर बाहर ले आया और टैंपो पर लाद दिया.

वहां से वह कोतवाली के वाजिदपुर तिराहे पर उतर गया और भारी सूटकेस को कंधों पर लाद कर कमला हौस्पिटल के सामने स्थित झाडिय़ों में फेंक कर बनारस के लिए बस पकड़ कर चल दिया. सबूत मिटाने के लिए उस ने अनन्या का फोन अपने पास रख लिया था, ताकि ट्रेस कर के पुलिस किसी भी तरह उस तक न पहुंच सके. उस समय सुबह के 10 बज कर 34 मिनट हो रहे थे. अनन्या निषाद की हत्या का विशाल साहनी को काफी दुख था और पश्चाताप भी. अपने पश्चाताप को कम करने के लिए उस ने सिर मुड़वा दिया और गंगा घाट पहुंच कर नदी में डुबकी लगा कर खुद को पापमुक्त होने का अहसास किया.

यही नहीं, सबूत मिटाने के लिए अपने साथ लाए अनन्या के मोबाइल फोन को नदी में प्रवाहित भी कर दिया. फिर आराम से अपने घर बनारस लौट गया. इधर 27 फरवरी, 2025 की सुबह एक राहगीर ने झाड़ी के पास लाल रंग का सूटकेस देखा तो उस का मन चहक उठा और वह यह सोच कर उस ओर बढ़ा था कि उस में शायद माल भरा होगा. यह सोच कर जैसे ही उस ने सूटकेस की थोड़ी सी चेन खोली तो उस में से पैर निकल आया. यह देख कर उस के मुंह से चीख निकल पड़ी और वह उलटे पांव ‘लाश..लाश’ चिल्लाते हुए बाहर भागा. थोड़ी देर में वहां तमाशबीनों की भारी भीड़ जमा हो गई थी, उसी भीड़ में से किसी ने कोतवाली थाने को फोन कर दिया था.

सूटकेस में लाश पाए जाने की सूचना पा कर कोतवाल मिथिलेश मिश्र कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए. सूटकेस खोल कर देखा तो उस में किसी महिला की लाश थी, जो बुरी तरह सड़ चुकी थी. पहनावे से वह किसी मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. मौके पर जमा तमाशबीनों से कोतवाल मिश्रा ने शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन उस की शिनाख्त न हो सकी. कोतवाल मिथिलेश मिश्र ने लाश मिलने की सूचना एसपी डा. कौस्तुभ, एएसपी (सिटी) अरविंद वर्मा और ट्रेनी आईपीएस सीओ (सिटी) आयुष श्रीवास्तव को दे दी थी. सूचना पा कर सभी पुलिस अधिकारी थोड़ी देर में मौके पर पहुंच गए थे.

खैर, लाश की शिनाख्त नहीं हुई तो कोतवाल मिथिलेश ने पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया था. इस के अगले दिन यानी 28 फरवरी की सुबह में अनन्या के पेरेंट्स उसे ढंूढते हुए जौनपुर कोतवाली थाने पहुंचे, बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए. दरअसल, बेटी भले ही मायके से दूर रहती थी, पेरेंट्स भले ही उस से नाराज रहते थे, लेकिन मोबाइल पर उस से बातें होती रहती थीं. अनन्या की मम्मी 25 फरवरी से ही बेटी से बात करने के लिए उस के मोबाइल पर काल कर रही थी. हर बार उस का फोन स्विच औफ बता रहा था.

यह देख कर वह बुरी तरह से परेशान थी और पति से यह बात बताई. बेटी का पता लगाने के लिए ही 28 फरवरी को पेरेंट्स बनारस से जौनपुर चले थे. जिस कमरे में रहती थी. मकान मालिक से पूछने पर पता चला कि अनन्या 25 फरवरी से ही नहीं दिख रही थी. उस के कमरे में ताला जड़ा था. किसी अनहोनी को देखते हुए पेरेंट्स कोतवाली पहुंच कर बेटी की गुमशुदगी की सूचना लिखाने पहुंचे थे. कोतवाल मिथिलेश मिश्र ने बीते दिन मिली अज्ञात युवती की लाश की तसवीर उन्हें दिखाई और पहचान करने के लिए कहा. तसवीर देखते ही पेरेंट्स फफकफफक कर रोने लगे. मतलब यह था कि युवती उन की बेटी थी और उस का अनन्या नाम था.

लाश की शिनाख्त हो जाने से कोतवाल मिथिलेश मिश्र ने थोड़ी राहत भरी सांस ली. फिर उन्होंने किसी पर आशंका होने की बात पूछी तो जय कुमार ने बताया 24 फरवरी को जब बेटी से बात हो रही थी तो उस ने गांव के ही विशाल साहनी के वहां आने की जानकारी दी थी. विशाल ने ही कोई कांड किया होगा. यह जानकारी उन्होंने एसपी डा. कौस्तुभ और एएसपी (सिटी) अरविंद वर्मा को दे दी. फिर विस्तार से उन्होंने पूरी बात बताई.

इस के बाद पुलिस विशाल साहनी को गिरफ्तार करने वाराणसी पहुंची और उस के फोन नंबर को सर्विलांस पर भी लगा दिया. पहली मार्च 2025 की सुबह विशाल की लोकेशन जौनपुर जंक्शन पर मिली तो पुलिस की तत्परता से वह गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में विशाल ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. उस की निशानदेही पर किचन से पल्टा भी बरामद कर लिया गया. विशाल से पूछताछ के बाद अनन्या की हत्या की जो स्टोरी सामने आई, इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मूड़ादेव टिहरी के रहने वाले थे विशाल और अनन्या निषाद के घर थोड़ी दूरी पर विपरीत दिशाओं में थे. चूंकि दोनों एक ही जातिबिरादरी के थे, ऊपर से पट्टीदार भी, इसलिए दोनों परिवार ही एकदूसरे के सुखदुख में एक पैर पर खड़े रहते थे. यहां तक कि शादीब्याह में भी दोनों एकदूसरे की भरपूर मदद करते थे. अनन्या के पिता का नाम जय कुमार निषाद था तो राकेश कुमार साहनी विशाल के पिता थे. दोनों ही अलगअलग प्राइवेट कंपनियों में काम करते थे और बड़े खुशहाल से उन का परिवार चलता था.

जय निषाद के 4 बच्चों में अनन्या निषाद सब से बड़ी थी. राकेश साहनी के 3 बच्चों में विशाल साहनी सब से बड़ा था. फिलहाल, अनन्या विशाल से करीब 2 साल बड़ी थी. बचपन की गलियों में साथसाथ दोनों चले और बड़े हुए. साथसाथ खेले और स्कूल में भी साथसाथ पढ़े. अनन्या ने बचपन की गलियों को छोड़ कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो इस की सब से पहले खुशबू विशाल तक पहुंची थी. अनन्या ने विशाल की आंखों के रास्ते उस के दिल में मुकाम बना लिया था. उठतेबैठते, हंसतेखेलते, सोतेजागते और दिनरात, हर घड़ी, हर पल अनन्या की तसवीर उस के आंखों के सामने घूमती रहती थी. एक दिन उसे न देखे तो वह बेचैन हो जाता है.

ऐसा नहीं था कि यह आलम एक ओर ही था, बल्कि अनन्या का भी हाल ऐसा ही था. जब से विशाल को देखा था, अपने दिल के कोरे कागज पर उस का सुनहरे अक्षरों में नाम लिख दिया था. विशाल और अनन्या एकदूजे से दिलोजान से प्यार करने लगे थे. लेकिन दोनों अपने प्यार का इजहार करने में झिझक रहे थे. एक दिन विशाल ने अनन्या से जरूरी बात करने के लिए बगीचे में बुलाया. नियत समय पर अनन्या वहां पहुंच गई.

”तुम से कुछ कहना चाहता हूं अनन्या,’’ मीठी सी आवाज अनन्या निषाद के कानों से टकराई तो पलकें नीची झुकाती हुई वह बोली, ”हां, कहो न विशाल, क्या कहना चाहते हो?’’

”अनन्या, जब से मैं ने तुम को देखा है, मेरा दिन का चैन और रातों की नींद उड़ चुकी है. बस, हर घड़ी तुम्हारे बारे में ही ये नादान दिल सोचता रहता है…’’ विशाल ने आगे कहा, ”जैसे तुम्हारे बिना धड़कना भूल जाए. तुम दूर जाती हो तो ये बेचैन हो जाता है. मन परेशान हो जाता है. अपने दिल को कैसे समझाऊं मैं, यही सोचसोच कर हमेशा परेशान रहता हूं.’’

”बस, इतनी सी बात है.’’ मचलती हुई अनन्या बोली, ”मैं ने सोचा कुछ और कहना चाहते हो, तभी तुम ने मुझे यहां बगीचे में बुलाया है. यही बात कहनी थी तो तुम फोन पर भी कह सकते थे, इतनी दूर बुलाने की क्या जरूरत थी.’’ गुस्से में तुनक कर अनन्या बोली.

दरअसल, अनन्या और विशाल के बीच करीब 5 कदम की दूरी रही होगी. आगे अनन्या खड़ी थी तो विशाल उस के पीछे खड़ा था. दोनों अपनेअपने फेमिली वालों की नजरों से बचते हुए गांव के बाहर स्थित इस बगीचे तक पहुंचे थे. विशाल फैसला कर के ही घर से निकला था कि चाहे कुछ भी हो जाए, अनन्या से अपने प्यार का इजहार कर के ही रहेगा. इसीलिए उस ने फोन कर के उसे बगीचे में बुलाया था. अनन्या भी विशाल को अपना दिल दे चुकी थी. वह भी विशाल से सागर की गहराइयों से प्यार करती थी, बस अपने प्यार का इजहार करने से झिझकती थी, जबकि दोनों इस बात से निश्चिंत थे कि दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं.

”नहीं…नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है अनन्या,’’ विशाल तड़प कर बोला, ”दरअसल, मैं तुम से कुछ और ही कहना चाहता था.’’

”तो कह दो न, किस ने रोका है तुम्हें.’’ अनन्या विशाल की ओर पलटी तो विशाल चौंक कर अनन्या को आश्चर्य से देखने लगा. दिल तो सीने में ऐसे धकड़ रहा था जैसे अभी छलक कर बाहर निकल जाएगा. वह थी कि उस की आंखों में आंखें डाले एकटक देखे जा रही थी.

”ऐसे क्यों देख रही हो?’’ विशाल नर्वस हो कर बोला.

”तुम्हें पढऩे की कोशिश कर रही हूं.’’ अनन्या मासूमियत भरे स्वर में बोली.

”मैं कोई दिलचस्प नावेल थोड़े न हूं, जो मुझे पढऩे की कोशिश कर रही हो.’’

”सो तो मैं देख ही रही हूं, तुम क्या बला हो. बहरहाल, यूं ही बकवास करने के लिए मुझे यहां बुलाए हो तो मैं वापस घर जा रही हूं, तुम यहीं खड़ेखड़े पेड़ के पत्तों को गिनते रहना, समझे.’’

कह कर अनन्या वापस जाने के लिए जैसे ही पलटी कि विशाल तड़प उठा, ”नहीं अनन्या, मुझे छोड़ मत जाओ. मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगा, तुम ही मेरी जिंदगी हो. तुम्हें देख कर मैं जीता हूं, सो प्लीज! मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

”तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगी, मैं जा रही हूं.’’ अनन्या ने जैसे ही कदम आगे बढ़ाया, तभी उसे दिल को सुकून देने वाला एक शब्द उस के कानों से टकराया.

”आई लव यू, अनन्या.’’

प्रेमी विशाल के मुंह से आई लव यू सुन कर उस के पांव वहीं रुक गए और खुशी के मारे चेहरा खिल उठा और पलट कर मुसकराती दुई दबे पांव उस तक पहुंची, ”एक बार फिर से कहो, क्या कहा तुम ने? मैं ने सुना नहीं.’’ अनन्या ने उसे छेड़ा.

”आई लव यू, अनन्या.’’ अनन्या की गोरी कलाइयां अपने हाथों में थामे उस ने आगे कहा, ”मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं अनन्या. तुम्हीं मेरी जिंदगी हो और बंदगी भी. तुम्हारे प्यार के बिना एक पल भी मैं जी नहीं सकता, मर जाऊंगा.’’

”आज तो तुम ने यह कह दिया, फिर दोबारा कभी ये शब्द मत कहना.’’

विशाल की बातें सुन अनन्या तड़प उठी और उस के होंठों पर अपनी अंगुलियां रखती हुई आगे बोली, ”तुम्हारे बिना मैं भी जी नहीं सकती विशाल. आई लव यू वैरी मच. यही सुनने के लिए मेरे कान कब से तरस रहे थे.’’

कह कर अनन्या ने विशाल को अपनी बांहों में भर लिया तो उस ने भी उसे अपनी मजबूत बांहों में कस कर जकड़ लिया. कुछ पल तक दोनों एकदूसरे के साथ आलिंगनबद्ध थे और भावनाओं के सागर में डुबकी लगा रहे थे. लेकिन दोनों ने अपनी मर्यादाओं की सीमा को सुरक्षित रखा था. थोड़ी देर बाद जब भावनाओं की लहरें ठंडी पड़ीं और दोनों एकदूसरे के आगोश से अलग हुए तो उन के चेहरे खिले हुए थे. इस सुनहरे और खूबसूरत पल को दोनों ने यादों के पिंजरे में कैद कर लिया था. अपने प्यार का इजहार कर के दोनों ही फूले नहीं समा रहे थे. फिर वे एकदूसरे को बायबाय कह अपने घरों को वापस चले गए.

अनन्या अपनी मम्मी से सहेली से मिलने का बहाना कर घर से निकली थी. उसे घर से निकल हुए घंटों बीत गए थे. उस की चोरी पकड़ी न जाए, इसलिए वह जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती थी. अनन्या के वापस घर लौटते ही विशाल भी अपने घर को लौट गया था. आखिरकार दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर ही दिया. ये बात साल 2019 की है, तब विशाल 17 साल के करीब था और अनन्या निषाद 19 साल की. अनन्या और विशाल साहनी का प्यार खुले आसमान के तले कुलांचे भर रहा था. दोनों अपने प्यार के सुनहरे सपने बुन रहे थे. उन का प्यार 3 सालों तक परदे के पीछे छिपा रहा.

धीरेधीरे दोनों के प्यार के चर्चे फिजाओं में तैरने लगे. गांव वालों से होते हुए यह बात जब अनन्या की फेमिली तक पहुंची तो पेरेंट्स आगबबूला हो उठे. बेटी पर उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि एक दिन वह ऐसा भी गुल खिलाएगी. उस दिन के बाद से अनन्या के पापा जय कुमार ने उस का घर से निकलना बंद कर दिया और पत्नी शीला को सख्त हिदायत देते हुए कहा, ”अनन्या पर कड़ी निगरानी रखो. देखो उस विशाल से चोंच से चोंच मिलाने फिर से न निकल जाए. अगर ऐसा हुआ तो इस की जिम्मेदार तुम होगी और मैं तुम्हें छोडऩे वाला नहीं, समझी तुम.’’ पत्नी पर जय कुमार के मुंह से शब्दों के अंगार निकले थे.

”अब ध्यान रखूंगी, आप बेफिक्र रहिए.’’ अदब के साथ पत्नी शीला ने जबाव दिया, ”जितना नैनमटक्का करना था, कर लिया. मेरे जीते जी फिर विशलवा से नहीं मिल सकती है. फिर मिलने की कोशिश की तो उस की दोनों टांगें तोड़ कर हाथ में दे दूंगी, फिर सारी जिंदगी लंगड़ी बन कर लश्क लड़ाती रहेगी.’’

”यही काम पहले किया होता, उस पर नजर रखी होती तो आज ये दिन देखने नहीं पड़ते. लेकिन तुम्हें तो दिन भर मोबाइल देखने और खाट तोडऩे से फुरसत मिलती तब न बेटी पर ध्यान देती कि वह कब कहां जा रही है, किस से मिल रही है.’’

”देखो अनन्या के पापा, मैं कह देती हूं, नाहक मुझ पर मत भड़को. मैं ने क्या किया है? वो विशाल घर पर आता था, तब आप भी देखते थे. बेटी से मिलता था. बातें करता था तो आप भी सुनते थे, बहरे नहीं थे. फिर क्यों नहीं उसे घर आने से मना किया? आप भी तो बेटी से मिलने से रोक सकते थे, क्यों मना नहीं किया उसे?’’ पति पर जब शीला भड़की तो जय कुमार की घिग्घी बंध गई.

”ठीक है, ठीक है. मैं सोचता हूं कि मुझे क्या करना है, लेकिन उस पर कड़ी नजर रखना, फिर से उस कमीने से मिलने की कोशिश करे तो इस की टांगें तोड़ देना. आगे मैं देख लूंगा.’’

विशाल और अनन्या के प्यार के चर्चे चटखारे ले कर गांव वाले कर रहे थे. गांव मोहल्ले में जय कुमार की खूब बदनामी हो रही थी. जय कुमार ने विशाल के पापा राकेश से साफतौर पर कह दिया था कि वह अपने बेटे को समझा दें कि वह अनन्या से दूर रहे. उस ने यह भी धमकी दी थी कि अगर बेटी से दूर नहीं हुआ और कुछ ऊंचनीच की बात हो गई तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. इस के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं.

जय कुमार की धमकियों से राकेश बुरी तरह डर गए थे. वह उस के नेचर से भलीभांति परिचित थे. इसलिए जय की बातों को उन्होंने गंभीरता से लिया. राकेश ने बेटे विशाल को समाज के रीतिरिवाजों को घोल कर घुट्टी की तरह पिलाया. उसे नीचऊंच के भेदभाव को समझाया, मगर उस के सिर पर तो अनन्या के प्यार का भूत इस कदर सवार था कि उसे अनन्या के अलावा कुछ भी सूझ नहीं रहा था. पापा ने क्या कहा, क्या समझाया, उस के पल्ले तनिक भी नहीं पड़ा था. बस वह अपने प्यार की धुन में मगन था. राकेश समझ चुके थे कि बेटे के सिर इश्क का भूत सवार है, इसलिए उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है. कुछ ऐसा करना होगा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचविचार कर राकेश साहनी इस फैसले पर पहुंचे कि बेटे को घर पर रखना ठीक नहीं है. जब यहां नहीं होगा तो अनन्या से कैसे मिलेगा. राकेश साहनी के परिवार के कई लोग केरल में जौब करते थे. उन्होंने भी बेटे विशाल साहनी को वहीं भेजने का फैसला किया और उसे वहां भेज दिया. हालांकि विशाल केरल जाना नहीं चाहता था, लेकिन पेरेंट्स के फैसले के आगे उस की एक न चली. मजबूर हो कर उसे घर से दूर जाना पड़ा था. विशाल केरल चला तो गया था, लेकिन उस का दिल अनन्या के पास ही था. इधर अनन्या विरह की अग्नि में हौलेहौले जल रही थी, उधर विशाल जल बिन मछली की तरह तड़प रहा था.

प्रेमी युगल एकदूजे से मिलने के लिए बेताब थे. अपनी बेताबियां मोबाइल पर बात कर मिटा लेते थे. बहरहाल, जय कुमार इस बात से बेहद खुश था कि बेटी के रास्ते का कांटा विशाल फिलहाल दूर चला गया है. तभी आननफानन में उस ने एक अच्छा सा लड़का ढूढ कर बेटी अनन्या का हाथ पीला कर दिया था. फेमिली वालों के कठोर फैसले के आगे अनन्या की एक न चली थी, लेकिन उस ने अपने फेमिली वालों को कह दिया था, ”विशाल उस के जीवन का पहला और अंतिम युवक है, जिसे वह अपना पति मान चुकी है. उस के बिना जीवन अधूरा है.

आप सभी के जिद के सामने मैं ने शादी कर तो ली है, लेकिन यह शादी अधूरी है. मैं मर जाऊंगी, लेकिन इस अशोक को कभी अपना पति स्वीकार नहीं करूंगी, कभी नहीं.’’ ये बात 2023 की थी. विशाल को जब पता चला कि अनन्या के घर वालों ने उस की जबरन शादी करवा दी है तो यह सुन कर वह आगबबूला हो उठा था, ‘ये कभी नहीं हो सकता है.’

विशाल होंठों में ही बुदबुदाया, ‘मुझे छोड़ कर अनन्या किसी और से शादी कैसे कर सकती है. वह सिर्फ मेरी है, मेरी. किसी ने उसे मुझ से छीनने की कोशिश को तो मैं उस की बची हुई सांसें छीन लूंगा. जान से मार डालूंगा उसे मैं. अनन्या सिर्फ मेरी थी, मेरी है और मेरी ही रहेगी. क्या हुआ जो उस के घर वालों ने उस की शादी किसी और से करा दी है, मैं जल्द ही अपनी अनन्या को उस से भी छीन लूंगा. चाहे जबरन या चाहे प्यार से. मेरा प्यार मेरे पास ही लौट कर आएगा ये वायदा है जय चाचा तुम से.’

दरअसल, विशाल और अनन्या एक ही गांव के सगे पट्टीदार थे, इसलिए सामाजिक परंपरा के अनुसार उन की शादी नहीं हो सकती थी, दोनों के परिवार प्रेमी युगल के इस फैसले के खिलाफ थे. अनन्या के पापा जय कुमार कभी नहीं चाहते थे कि रिश्ते के भाईबहन लगने वाले मर्यादा को लांघें. खैर, नियति को तो कुछ और ही मंजूर था. अनन्या के जीवन की कुंडली ऐसी बनाई थी कि उस का प्यार विशाल ही उस की सांसों की डोर तोडऩे पर आमादा हो गया था. जिस प्यार को पाने के लिए अनन्या ने घर और समाज यहां तक कि पति से भी बगावत कर घर छोड़ दिया था, वही यमराज बन कर उस की जिंदगी में कुंडली मार कर बैठ गया था.

अनन्या के जीवन में ज्वारभाटा की तरह भूचाल तब आया था, जब उस के पति अशोक को उस के अतीत के बारे में पता चला कि पत्नी का गांव के ही किसी विशाल के साथ लंबे अरसे से अफेयर चला आ रहा है और आज भी दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. ये बात अशोक पचा नहीं सका. कोई भी पुरुष यह कभी नहीं चाहेगा कि उस की पत्नी शादी के बाद भी अपने यार की बांहों में सजने के लिए सजीसवंरी रहे. अशोक ही नहीं, उस के घर वाले भी चरित्रहीन बहू को स्वीकारने के लिए कतई तैयार नहीं थे, लिहाजा 6 महीने के भीतर उन्होंने अनन्या को तलाक दे दिया.

एक ओर अनन्या निषाद जहां इस फैसले से मन ही मन खुश थी कि अब हमारे विशाल साहनी से एक होने से कोई भी रोक नहीं सकता है तो वहीं दूसरी ओर अनन्या के फेमिली वाले बेटी के तलाक से दुखी और परेशान थे. ये सब उस के चलते ऐसा हुआ था, इसलिए घर वालों ने अनन्या को मायके में शरण नहीं दी, बल्कि उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया. अनन्या ने भी फैसला कर लिया था कि वह अपने घर वालों के सिर पर बोझ नहीं बनेगी और न ही मायके (बनारस) जाएगी, बल्कि अपने प्यार के साथ शादी कर के अपनी नई दुनिया बसाएगी.

विशाल को उस ने पति का घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर वापस आ जाने की सूचना दे दी थी और विशाल से यह भी कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. जल्द से जल्द हम दोनों शादी कर लेंगे और सदा के लिए एक हो जाएंगे. लेकिन शादी करने के बजाए विशाल प्रेमिका से पीछा छुड़ाने के रास्ते तलाशने लगा. उस के मन की बात अनन्या भांप नहीं सकी, क्योंकि वह तो विशाल की दीवानी हो चुकी थी. जब भी वह शादी के लिए कहती, विशाल टाल देता था. और फिर एक दिन उस ने प्रेमिका अनन्या की हत्या कर दी. विशाल साहनी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे शाम को उसे अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. hindi love story

 

 

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