Crime ki Kahani : लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अनिल उरांग जिस प्रियंका उर्फ दुलारी से प्यार करते थे, उस से पूर्णिया का शार्प शूटर अंकित यादव भी बेपनाह मोहब्बत करता था. इसी बीच ऐसा क्या हुआ कि यह हाथ ऐसा जुर्म कर बैठे कि…

लोक जनशक्ति पार्टी के आदिवासी प्रकोष्ठ के युवा प्रदेश अध्यक्ष 35 वर्षीय अनिल उरांव रोजाना की तरह उस दिन भी नाश्ता कर के क्षेत्र में भ्रमण के लिए तैयार हो कर ड्राइंगरूम में बैठे अपने भतीजे के आने का इंतजार कर रहे थे. तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अपनी शर्ट की जेब से मोबाइल निकाल कर डिसप्ले पर उभर रहे नंबर पर नजर डाली तो वह नंबर जानापहचाना निकला. स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर अनिल उरांव का चेहरा खुशियों से खिल उठा था. उन्होंने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हैलो!’’

‘‘नेताजी, प्रणाम.’’ दूसरी ओर से एक महिला की मीठी सी आवाज अनिल उरांव के कानों से टकराई.

‘‘प्रणाम…प्रणाम.’’ उन्होंने जबाव दिया, ‘‘कैसी हो प्रियंकाजी?’’ उस महिला का नाम प्रियंका उर्फ दुलारी था.

‘‘ठीक हूं, नेताजी.’’ प्रियंका जबाव देते हुए बोली, ‘‘मैं क्या कह रही थी कि जनता की खैरियत पूछने जब क्षेत्र में निकलिएगा तो मेरे गरीबखाने पर जरूर पधारिएगा. मैं आप की राह तकूंगी.’’

‘‘सुबह….सुबह क्यों मेरी टांग खींच रही हैं प्रियंकाजी. कोई और नहीं मिला था क्या आप को टांग खींचने के लिए? आलीशान और शानदार महल कब से गरीबखाना बन गया?’’ अनिल ने कहा.

‘‘क्या नेताजी? क्यों मजाक उड़ा रहे हैं इस नाचीज का. काहे का शानदार महल. सिर ढंकने के लिए ईंटों की छत ही तो है. बहुत मजाक करते हैं आप मुझ से. अच्छा, अब मजाक छोडि़ए और सीरियस हो जाइए. ये बताइए कि दोपहर तक आ रहे हैं न मेरी कुटिया में, मुझ से मिलने. कुछ जरूरी मशविरा करना है आप से.’’ वह बोली.

‘‘ऐसा कभी हुआ है प्रियंकाजी कि आप बुलाएं और हम न आएं. फिर जब आप इतना प्रेशर मुझ पर बना ही रही हैं तो भला मैं कैसे कह दूं कि मैं आप की कुटिया पर नहीं पधारूंगा, मैं जरूर आऊंगा. मुझे तो सरकार के दरबार में हाजिरी लगानी ही होगी.’’

नेता अनिल उरांव की दिलचस्प बातें सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी तो वह भी अपनी हंसी रोक नहीं पाए और ठहाका मार कर हंसने लगे. उस के बाद दोनों के बीच कुछ देर तक हंसीमजाक होती रही. फिर प्रियंका ने अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट कर दिया तो अनिल उरांव ने भी मोबाइल वापस अपनी जेब के हवाले किया. फिर भतीजे राजन के साथ मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वह मनिहारी क्षेत्र की ओर निकल पड़े. वह खुद मोटरसाइकिल चला रहे थे और भतीजा पीछे बैठा था. यह 29 अप्रैल, 2021 की सुबह साढ़े 10 बजे की बात है. अनिल उरांव को क्षेत्र भ्रमण में निकले तकरीबन 10 घंटे बीत चुके थे. वह अभी तक घर वापस नहीं लौटे थे और न ही उन का फोन ही लग रहा था. घर वालों ने साथ गए जब भतीजे से पूछा कि दोनों बाहर साथ निकले थे तो तुम उन्हें कहां छोड़ कर आए?

इस पर उस ने जबाव दिया, ‘‘चाचा को रेलवे लाइन के उस पार छोड़ कर आया था. उन्होंने कहा था कि वह प्रियंका के यहां जा रहे हैं, बुलाया है, मीटिंग करनी है. थोड़ी देर वहां रुक कर वापस घर लौट आऊंगा, तब मैं बाइक ले कर घर लौट आया था.’’

नेताजी अचानक हुए लापता भतीजे राजन के बताए अनुसार अनिल प्रियंका से मिलने उस के घर गए थे. राजन उस के घर के पास छोड़ कर आया था तो फिर वह कहां चले गए? अनिल के घर वालों ने प्रियंका को फोन कर के अनिल के बारे में पूछा तो उस ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि नेताजी तो उस के यहां आए ही नहीं. यह सुन कर सभी के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. वह प्रियंका के यहां नहीं गए तो फिर कहां गए? लोजपा नेता अनिल उरांव और प्रियंका काफी सालों से एकदूसरे को जानते थे. दोनों के बीच संबंध काफी मधुर थे. यह बात अनिल के घर वाले और प्रियंका के पति राजा भी जानते थे. बावजूद इस के किसी ने कभी कोई विरोध नहीं जताया था.

अनिल को ले कर घर वाले परेशान हो गए थे. उन के परिचितों के पास भी फोन कर के पता लगाया गया, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. घर वालों को अंदेशा हुआ कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. उसी दिन रात में नेता अनिल उरांव की पत्नी पिंकी कुछ लोगों को साथ ले कर हाट थाने पहुंची और पति की गुमशुदगी की एक तहरीर थानाप्रभारी सुनील कुमार मंडल को सौंप दी. तहरीर लेने के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार ने पिंकी को भरोसा दिलाया कि पुलिस नेताजी को ढूंढने का हरसंभव प्रयास करेगी. आप निश्चिंत हो कर घर जाएं. उस के बाद पिंकी वापस घर लौट आई.

मामला हाईप्रोफाइल था. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के आदिवासी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल उरांव की गुमशुदगी से  जुड़ा हुआ मामला था. उन्होंने अनिल उरांव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली और आवश्यक काररवाई में जुट गए. चूंकि यह मामला राज्य के एक बड़े नेता की गुमशुदगी से जुड़ा हुआ था, इसलिए उन्होंने इस बाबत एसपी दया शंकर को जानकारी दे दी थी. वह जानते थे कि अनिल उरांव कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं है. उन के गुम होने की जानकारी जैसे ही समर्थकों तक पहुंचेगी, वो कानून को अपने हाथ में लेने से कभी नहीं हिचकिचाएंगे. इस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ सकती है, इसलिए किसी भी स्थिति से निबटने के लिए उन्हें मुस्तैद रहना होगा.

इधर पति के घर लौटने की राह देखती पिंकी ने पूरी रात आंखों में काट दी थी. लेकिन अनिल घर नहीं लौटे. पति की चिंता में रोरो कर उस का हाल बुरा था. दोनों बेटे प्रांजल (7 साल) और मोनू (2 साल) भी मां को रोता देख रोते रहे. रोरो कर सभी की आंखें सूज गई थीं. फिरौती की आई काल बात अगले दिन यानी 30 अप्रैल की सुबह की है. पति की चिंता में रात भर की जागी पिंकी की आंखें कब लग गईं, उसे पता ही नहीं चला. उस की आंखें तब खुलीं जब उस के फोन की घंटी की आवाज कानों से टकराई.  स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर हड़बड़ा कर वह नींद से उठ कर बैठ गई. क्योंकि वह फोन नंबर उस के पति का ही था. वह जल्दी से फोन रिसीव करते हुए बोली,

‘‘हैलो! कहां हो आप? एक फोन कर के बताना भी जरूरी नहीं समझा और पूरी रात बाहर बिता दी. जानते हो कि हम सब आप को ले कर कितने परेशान थे रात भर. और आप हैं कि…’’

पिंकी पति का नंबर देख कर एक सांस में बोले जा रही थी. तभी बीच में किसी ने उस की बात काट दी और रौबदार आवाज में बोला, ‘‘तू मेरी बात सुन. तेरा पति अनिल मेरे कब्जे में है. मैं ने उस का अपहरण कर लिया है.’’

‘‘अपहरण किया है?’’ चौंक कर पिंकी बोली.

‘‘तूने सुना नहीं, क्या कहा मैं ने? तेरे पति का अपहरण किया है, अपहरण.’’

‘‘तुम कौन हो भाई.’’ बिना घबराए, हिम्मत जुटा कर पिंकी आगे बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? मेरे पति से तुम्हारी क्या दुश्मनी है, जो उन का अपहरण किया?’’

‘‘ज्यादा सवाल मत कर. जो मैं कहता हूं चुपचाप सुन. फिरौती के 10 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर के रखना. मेरे दोबारा फोन का इंतजार करना. मैं दोबारा फोन करूंगा. रुपए कब और कहां पहुंचाने हैं, बताऊंगा. हां, ज्यादा चूंचपड़ करने या होशियारी दिखाने की कोशिश मत करना और न ही पुलिस को बताना. नहीं तो तेरे पति के टुकड़ेटुकड़े कर के कौओं को खिला दूंगा, समझी.’’ फोन करने वाले ने पिंकी को धमकाया.

‘‘नहीं…नहीं उन्हें कुछ मत करना.’’ पिंकी फोन पर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘तुम जो कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. मैं पुलिस को कुछ नहीं बताऊंगी. प्लीज, उन्हें छोड़ दो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, बता दो. तुम्हारे पैसे समय पर पहुंच जाएंगे.

‘‘तुम बहुत समझदार हो. बहुत जल्द मेरी बात समझ गई. रुपए का इंतजाम कर के रखना, जल्द ही फोन कर के बताऊंगा कि पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं.’’ इस के बाद दूसरी ओर से फोन कट गया. अपहर्त्ताओं को दिए 10 लाख रुपए स्क्रीन पर जिस नंबर को देख कर पिंकी की आंखों में चमक जागी थी, वह नंबर उस के पति का था. बदमाशों ने अनिल के फोन से काल कर के फिरौती की रकम मांगी थी. ताकि पुलिस उन तक पहुंच न सके. खैर, पति के अपहरण की जानकारी पिंकी ने जैसे ही घर वालों को दी, उस की बातें सुन कर सभी स्तब्ध रह गए. किंतु उन्हें इस बात से थोड़ी तसल्ली हुई थी कि अनिल जिंदा हैं और बदमाशों के कब्जे में हैं. अगर उन्हें फिरौती की रकम दे दी जाए तो उन की सहीसलामत वापसी हो सकती है.

अनिल उरांव की मिली लाश बदमाशों की धमकी सुन कर पिंकी और उस की ससुराल वालों ने पुलिस को बिना कुछ बताए 10 लाख रुपए का इंतजाम कर लिया और शाम होतेहोते बदमाशों के बताए अड्डे पर फिरौती के 10 लाख रुपए पहुंचा दिए गए. बदमाशों ने रुपए लेने के बाद देर रात तक अनिल को छोड़ देने का भरोसा दिया था. पूरी रात बीत गई, लेकिन अनिल उरांव लौट कर घर नहीं पहुंचे तो घर वाले परेशान हो गए. अनिल उरांव के फोन पर घर वालों ने काल की तो वह बंद आ रहा था. जिन दूसरे नंबरों से बदमाशों ने 3 बार काल की थी, वे नंबर भी बंद आ रहे थे. इस का मतलब साफ था कि फिरौती की रकम वसूलने के बाद भी बदमाशों ने अनिल उरांव को छोड़ा नहीं था. बदमाशों ने उन के साथ गद्दारी की थी. यह सोच कर घर वाले परेशान थे.

बात 2 मई, 2021 की सुबह की है. के. नगर थाने के झुन्नी इस्तबरार के डंगराहा गांव की महिलाएं सुबहसुबह गांव के बाहर खेतों में आई थीं. तभी उन्होंने खेत में जो दृश्य देखा, वह दंग रह गईं. किसी आदमी का एक हाथ जमीन के बाहर झांक रहा था. जमीन के बाहर हाथ देख कर महिलाएं उलटे पांव गांव की ओर भागीं और गांव पहुंच कर पूरी बात गांव के लोगों को बताई. खेत में लाश गड़ी होने की सूचना मिलते ही गांव वाले मौके पर पहुंच गए और इस की सूचना के. नगर थाने को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी डंगराहा पहुंच गए और गड्ढे से लाश बाहर निकलवाई. शव का निरीक्षण करने पर पता चला कि हत्यारों ने मृतक के साथ मानवता की सारी हदें पार कर दी थीं.

उन्होंने किसी नुकीली चीज से मृतक की दोनों आंखें फोड़ दी थीं और शरीर पर चोट के कई जगह निशान थे. डंगराहा में एक अज्ञात शव मिलने की सूचना जैसे ही अनिल के घर वालों को मिली, वे भी मौके पर जा पहुंचे थे. उन्होंने लाश देखते ही पहचान ली. घर वाले चीखचीख कर प्रियंका उर्फ दुलारी के ऊपर हत्या का आरोप लगा रहे थे. लोजपा नेता की लाश मिलते ही क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. अपहर्त्ताओं ने धोखा किया था. रुपए लेने के बाद भी उन्होंने हत्या कर दी थी. जैसे ही नेताजी की हत्या की सूचना लोजपा कार्यकर्ताओं को मिली, वे उग्र हो गए और शहर के हर खास चौराहों को जाम कर आग के हवाले झोंक दिया तथा पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

इधर पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले कर वह पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी और आगे की काररवाई में जुट गए. पुलिस ने मृतक के घर वालों के बयान के आधार पर उसी दिन दोपहर के समय मृतक की प्रेमिका प्रियंका उर्फ दुलारी को उस के घर से हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए के. हाट थाने ले आई. प्रियंका ने पहले तो पुलिस को खूब इधरउधर घुमाया, किंतु जब उस की दाल नहीं गली तो उस ने पुलिस के सामने अपने घुटने टेक दिए. प्रेमिका प्रियंका ने उगला हत्या का राज अपना जुर्म कबूल करते हुए प्रियंका ने कहा,

‘‘इस कांड को अंजाम देने में मैं अकेली नहीं थी. 4 और लोग शामिल थे. घटना का मास्टरमांइड अंकित यादव है और उसी ने योजना के तहत इस घटना को अंजाम दिया था.’’

प्रियंका के बयान के बाद उस की निशानदेही पर पुलिस ने 2 बदमाशों मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को धर दबोचा और थाने ले आई. घटना का मास्टरमाइंड अंकित यादव और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू फरार थे. आरोपी मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा ने भी अपने जुर्म कबूल कर लिए थे. पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के स्थान पर उपर्युक्त सभी को नामजद करते हुए भादंवि की धारा 302, 120बी, 364ए और एससी/एसटी ऐक्ट भी लगाया. पुलिस ने गिरफ्तार तीनों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया और फरार आरोपियों अंकित यादव और मिट्ठू कुमार यादव की तलाश में सरगर्मी से जुट गई थी.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में आरोपितों के बयान के आधार पर कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

35 वर्षीय अनिल उरांव मूलरूप से बिहार के पूर्णिया जिले के के. हाट थाना क्षेत्र स्थित जेपी नगर के रहने वाले थे. पिता जयप्रकाश उरांव के 2 बच्चे थे. बड़ी बेटी सीमा और छोटा बेटा अनिल. जयप्रकाश एक रिहायशी एस्टेट के मालिक थे. विरासत में मिली अरबों की संपत्ति पुरखों की जमींदारी थी. उन्हें अरबों रुपए की यह चलअचल संपत्ति विरासत में मिली थी. आगे चल कर यही संपत्ति उन के बेटे अनिल उरांव के नाम हो गई थी. क्योंकि पिता के बाद वही इस संपत्ति का इकलौता वारिस था.

जयप्रकाश एक बड़ी प्रौपर्टी के मालिक थे. उन का समाज में बड़ा नाम था. उन के घर से कोई गरीब दुखिया कभी खाली हाथ नहीं जाता था. गरीब तबके की बेटियों की शादियों में वह दिल खोल कर दान करते थे. गरीबों की दुआओं का असर था कि कभी घर में धन की कमी नहीं हुई. अगर यह कहें कि लक्ष्मी घर के कोनेकोने में वास करती थी तो गलत नहीं होगा. यही नहीं, उन्होंने अपनी बिरादरी के लिए बहुत कुछ किया था, इसलिए लोग उन का सम्मान करते थे. बाद के दिनों में जब जयप्रकाश का स्वर्गवास हुआ तो उन्हीं के नाम पर उस कालोनी का नाम जेपी नगर रख दिया गया था.

बहरहाल, अनिल को यह संपत्ति विरासत में मिली थी, इसलिए उस की कीमत वह नहीं समझ रहे थे. पुरखों की यह दौलत अपने दोनों हाथों से यारदोस्तों पर पानी की तरह बहाने में जरा भी नहीं हिचकिचाते थे.  समय के साथ अनिल की पिंकी के साथ शादी हो गई. गृहस्थी बसते ही वह 2 बच्चों प्रांजल और मोनू के पिता बने. अनिल की जिंदगी मजे से कट रही थी. खाने को अच्छा भोजन था, पहनने के लिए महंगे कपड़े थे और सिर ढकने के लिए शानदार और आलीशान मकान था. कहते हैं, जब इंसान के पास बिना मेहनत किए दौलत आ जाए तो उस के पांव दलदल की ओर बढ़ने में देरी नहीं लगती है. अनिल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

जमींदार घर का वारिस तो थे ही वह. अरबों की अचल संपत्ति तो थी ही उन के पास. धीरेधीरे उन्होंने उन जमीनों को बेचना शुरू किया. बेशकीमती जमीनों के सौदों से उन के पास रुपए आते रहे. जब उन के पास रुपए आए तो राजनीति की चकाचौंध से आंखें चौधियां गई थीं. उन के रिश्ते के मामा राधा उरांव राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे. राजनीति का ककहरा अनिल ने उसी मामा से सीखा और किस्मत आजमाने रामविलास पासवान के पास पहुंच गए. उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ अनिल के सिर पर रख दिया और उन्हें आदिवासी प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. खद्दर का सफेद कुरता पायजामा पहन कर अनिल उरांव ताकतवर हो गए थे. यह घटना से 7 साल पहले की बात है.

अमीरों की तरह ठाठबाट थे प्रियंका के अनिल के पास अब पैसों के साथ साथ सत्ता की पावर थी और बड़ेबड़े माननीयों के बीच में उठनाबैठना भी. पहली बार अनिल ने सत्ता के गलियारे का मीठा स्वाद चखा था. माननीयों के सामने जब नौकरशाह सैल्यूट मारते थे, यह देख कर अनिल का दिल बागबाग हो जाता था. यहीं से प्रियंका उर्फ दुलारी नाम की महिला अनिल उरांव की किस्मत में दुर्भाग्य की कुंडली मार कर बैठ गई थी. तब कोई नहीं जानता था कि यही प्रियंका एक दिन नागिन बन कर अनिल को डस लेगी. 36 वर्षीया प्रियंका हाट थानाक्षेत्र में स्थित केसी नगर कालोनी में दूसरे पति राजा के साथ रहती थी. पहला पति उसे बहुत पहले तलाक दे चुका था. उस के कोई संतान नहीं थी लेकिन दोनों बड़े ठाठबाट से रहते थे, अमीरों की तरह.

कई कमरों वाले उस के शानदार और आलीशान मकान में सुखसुविधाओं की सारी चीजें मौजूद थीं. घर में कमाने वाला सिर्फ उस का पति था. एक आदमी की कमाई में ऐसी शानोशौकत देख कर मोहल्ले वाले दंग रहते थे. प्रियंका की शानोशौकत देख कर मोहल्ले वालों का दंग रहना जायज था. उस का पति राजा पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजनाथ यादव का एक मामूली सा कार ड्राइवर था. उस की इतनी आमदनी भी नहीं थी कि वह घर खर्च के अलावा नवाबों जैसी जिंदगी जिए. ये ऐशोआराम तो प्रियंका की खूबसूरती की देन थी. गोरीचिट्टी और तीखे नयननक्श वाली प्रियंका की मोहल्ले में बदनाम औरतों में गिनती होती थी. शहर के बड़ेबड़े धन्नासेठों, भूमाफियाओं और नेताओं का उस के घर पर उठनाबैठना था. उस में लोजपा का युवा नेता अनिल उरांव का नाम भी शामिल था.

शादीशुदा होते हुए भी अनिल उरांव प्रियंका की गोरी चमड़ी के इस कदर दीवाने हुए कि उसे देखे बिना रह नहीं पाते थे. लेकिन प्रियंका उन से तनिक भी प्यार नहीं करती थी. वह तो केवल उन की दौलत से प्यार करती थी. वह जानती थी कि अनिल एक एटीएम मशीन है. बस, उस से दौलत निकालते जाओ, निकालते जाओ और ऐश करते जाओ. प्रियंका ने बनाई योजना अनिल उरांव जिस प्रियंका के प्यार में दीवाने थे, पूर्णिया का शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत भी उसी प्रियंका को बेपनाह चाहता था. अनिल का उस की प्रेमिका प्रियंका की ओर आकर्षित होना, अंकित के सीने पर सांप लोटने जैसा था.

उस ने प्रियंका से कह दिया था ‘‘तू अपने आशिक से कह देना कि मेरी चीज पर नजर न डाले, वरना जिस दिन मेरा भेजा गरम हो गया तो उस की खोपड़ी में रिवौल्वर की सारी गोलियां डाल दूंगा.’’

फिर उस ने अपने प्रेमी अंकित को समझाया, ‘‘देखो अंकित, तुम ठहरे गरम खून के इंसान. जब देखो गोली, कट्टा और बंदूक की बातें करते हो, कभी ठंडे दिमाग से काम नहीं लेते. जिस दिन से ठंडे दिमाग से सोचना शुरू कर दोगे, उस दिन बिना गोली, कट्टे के सारे काम बन जाएंगे. क्यों बेवजह परेशान हो कर अपना ब्लड प्रैशर बढ़ाते हो. मैं क्या कहती हूं, उसे ध्यान से सुनो. मेरे पास एक नायाब तरीका है. जिस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

‘‘बता क्या कहना चाहती है तू.’’ अंकित ने पूछा.

‘‘यही कि अनिल उरांव का अपहरण कर लेते हैं और बदले में उस के घर वालों से फिरौती की एवज में मोटी रकम ऐंठ लेते हैं. नेताजी की जान के बदले उस के घर वालों के लिए 10-20 लाख देना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी. बोलो क्या कहते हो?’’ प्रियंका ने प्लान बनाया.

‘‘ठीक है जो करना हो, जल्दी करना. उस गैंडे को तेरे नजदीक देख कर मेरे तनबदन में आग सी लग जाती है, कहीं ऐसा न हो कि मैं अपना आपा खो दूं और तू भी स्वाहा हो जाए. जो करना है, जल्दी करना, समझी.’’ अंकित बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है. क्यों बिना मतलब के अपना खून जलाते हो. समझो कि काम हो गया और तुम्हारी राह का कांटा भी हट गया.’’ प्रियंका ने कहा.

प्रियंका और अंकित ने मिल कर अनिल के अपहरण की योजना बना ली. योजना के मुताबिक, 29 अप्रैल, 2021 की सुबह प्रियंका ने अनिल उरांव को फोन कर के अपने घर आने को कहा. अनिल भतीजे राजन को साथ ले कर मोटरसाइकिल से निकले और बीच रास्ते में खुद मोटरसाइकिल से नीचे उतर कर कहा प्रियंका के यहां जा रहा हूं. जब फोन करूं तो बाइक ले कर चले आना. फिरौती ले कर बदल गई नीयत अनिल प्रियंका के यहां पहुंचे तो उस के घर पर पहले से शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत, उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर मौजूद थे.

अंकित को देख कर अनिल घबरा गए और वापस लौटने लगे तो चारों ने लपक कर उन्हें पकड़ लिया. अनिल ने बदमाशों के चंगुल से बचने के लिए खूब संघर्ष किया. कब्जे में लेने के लिए बदमाशों ने अनिल को लातघूंसों से खूब मारा और कपड़े वाली मोटी रस्सी से उन के हाथपैर बांध कर उन्हें कमरे में बंद कर दिया और उन का फोन भी अपने कब्जे में ले लिया ताकि वह किसी से बात न कर सकें. फिर उन्हीं के फोन से अंकित ने अनिल के घर वालों को फोन कर के अपहरण होने की जानकारी देते हुए फिरौती के 10 लाख रुपए की मांग की. उस के बाद मोबाइल फोन से सिम निकाल कर तोड़ कर फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक पहुंच न पाए.

30 अप्रैल, 2021 को फिरौती की रकम मिलने के बाद बदमाशों की नीयत बदल गई. चारों ने प्रियंका के घर पर ही अनिल की गला दबा कर हत्या कर दी और पेचकस जैसे नुकीले हथियार से अंकित ने अनिल की दोनों आंखें फोड़ दीं. फिर उसी रात अनिल की लाश के. नगर थाने के डंगराहा के एक खेत में गड्ढा खोद कर दफना दी. जल्दबाजी में लाश दफन करते समय मृतक का एक हाथ बाहर निकला रह गया और वे कानून के शिकंजे में फंस गए. कथा लिखे जाने तक फरार चल रहा मुख्य आरोपी अंकित यादव उर्फ अनंत और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव दोनों दरभंगा जिले से नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिए गए थे. दोनों आरोपियों ने लोजपा नेता अनिल उरांव के अपहरण और हत्या  करने का जुर्म स्वीकार लिया था.

जांचपड़ताल में प्रियंका के असम में करोड़ों रुपए संपत्ति का पता चला है, जो अपराध से कमाई गई थी. पुलिस ने संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस पांचों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, अंकित यादव, मिट्ठू कुमार यादव, मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. पांचों आरोपी जेल की सलाखों के पीछे अपने किए की सजा भुगत रहे थे. Crime ki Kahani

—कथा मृतक के रिश्तेदारों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

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