MP News: देवेंद्र खंडेलवाल वकील होने के साथसाथ एक रसूखदार व्यक्ति थे. करीब 20 करोड़ की एक प्रौपर्टी को ले कर उन का अपने खास दोस्त लालचंद हार्डिया से कोर्ट में मुकदमा चल रहा था. लेकिन कोर्ट का फैसला आने से पहले ही देवेंद्र खंडेलवाल की हत्या हो गई. देवेंद्र खंडेलवाल इंदौर के एक जानेमाने वकील थे. 23 दिसंबर, 2014 को वह इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर हातोद कोर्ट में एक केस की पैरवी के लिए गए थे. वह देर रात तक घर नहीं लौटे तो घर वालों ने बात करने के लिए उन्हें फोन किया, लेकिन वह बंद था. कई बार नंबर मिलाने के बाद भी उन का फोन मिला.
इस से घर वाले चिंता में पड़ गए, क्योंकि वह अपना मोबाइल कभी भी बंद नहीं रखते थे. रात काफी गहरा चुकी थी. इतनी रात को उन्हें खोजने के लिए कहीं जाना भी मुमकिन नहीं था. फिर भी उन्होंने कुछ जानकारों के पास फोन किए, लेकिन देवेंद्र खंडेलवाल के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी. तब परिजनों ने सुबह होने पर उन्हें खोजने का मन बनाया. चिंता में जैसेतैसे उन्होंने रात काटी. अगले दिन परिजन इंदौर की कचहरी पहुंचे. देवेंद्र खंडेलवाल के जिन वकीलों के साथ नजदीकी संबंध थे, उन से मालूमात की तो पता लगा कि वह हातोद कोर्ट से शाम 4 बजे इंदौर कचहरी आ गए थे. इस के बाद वह कचहरी के सामने ही स्थित बीजी बार में देखे गए थे.
बीजी बार कोर्ट के ठीक सामने एमजी रोड पर है. बीजी बार से 57 वर्षीय देवेंद्र खंडेलवाल कहां चले गए, यह बात परिजनों को पता नहीं लगी तो वह थाना सेंट्रल कोतवाली चले गए. थानाप्रभारी मंजू यादव को उन्होंने पूरी बात बता दी. मामला चूंकि एक वकील का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा दिया. वकील मामले को तूल न दे दें, इसलिए डीआईजी राकेश गुप्ता ने थाना सेंट्रल कोतवाली, थाना एमजी रोड, थाना तुकोगंज के थानाप्रभारियों की संयुक्त बैठक कर एडवोकेट देवेंद्र खंडेलवाल को तलाशने के निर्देश दिए.
सेंट्रल कोतवाली प्रभारी मंजू यादव ने जांच की शुरुआत बीजी बार से शुरू की. वहां मौजूद सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की जांच की तो पता चला कि देवेंद्र खंडेलवाल बीजी बार गए तो थे, लेकिन वहां से वह 2 व्यक्तियों के साथ निकल गए थे. उन्हीं के साथ वह एक कार में बैठ कर कहीं चले गए थे. थानाप्रभारी ने वह फुटेज जब खंडेलवाल के परिजनों को दिखाई तो उन्होंने उन दोनों व्यक्तियों को पहचान लिया. उन्होंने बताया कि उन में से एक महेंद्र ठाकुर और दूसरा रूपेश उर्फ महेंद्र शर्मा है. दोनों ड्राइवर हैं. वे दोनों ही उन के अच्छे परिचित हैं. उन्होंने बताया कि वे दोनों नंदानगर में रहते हैं.
थानाप्रभारी को रूपेश शर्मा और महेंद्र ठाकुर के फोन नंबर मिल गए थे. फोन नंबरों के आधार पर पुलिस को उन के घर के पते भी मिल गए. एक पुलिस टीम तुरंत उन के घर के पते पर भेजी गई तो अपनेअपने घरों से नदारद मिले. पुलिस ने उन के फोन नंबर सर्विलांस पर लगाए तो उन की लोकेशन राजस्थान के कोटा शहर स्थित एक होटल की मिली. थानाप्रभारी मंजू यादव एक पुलिस टीम के साथ कोटा पहुंच गईं और स्थानीय पुलिस के साथ उस होटल में पहुंचीं. उस होटल की तलाशी ली गई तो एक कमरे में रूपेश और महेंद्र मिल गए. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम इंदौर लौट आई.
दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि एडवोकेट देवेंद्र खंडेलवाल की हत्या की जा चुकी है और उन की लाश जिला खरगोन के घामनोद इलाके में फेंक दी है. उन्होंने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—
एडवोकेट देवेंद्र खंडेलवाल और लालचंद हार्डिया अच्छे दोस्त थे. दोनों ही कामोडिटी व्यापार से जुड़े थे. इंदौर के आर्ट्स ऐंड कौमर्स कालेज के पास देवेंद्र ने एक एकड़ जमीन 30 साल पहले 50 हजार में खरीदी थी. आज इस जमीन की कीमत लगभग 20 करोड़ रुपए थी. बाद में इस जमीन पर लालचंद हार्डिया ने भी अपना हक जताया. दोनों के बीच विवाद बढ़ने पर मामला न्यायालय में पहुंच गया. दोनों के बीच चल रहे टकराव को दूर करने के लिए उन के नजदीकियों ने उन का समझौता भी कराने की कोशिश की, लेकिन दोनों की जिद की वजह से समझौता नहीं हो सका. लालचंद हार्डिया का कहना था कि वह उन की पुश्तैनी जमीन थी और देवेंद्र ने छलबल से इस पर अपना कब्जा कर लिया था.
देवेंद्र खंडेलवाल और लालचंद हार्डिया की तरह किशनलाल उर्फ बड़े भी कामोडिटी व्यापार से जुड़े थे. तीनों ही धनाढ्य थे. किशनलाल की बुरहानपुर में बड़ी धाक थी. वह विवादित जमीनों को औनेपौने दामों पर खरीद कर उसे ऊंची कीमत पर बेचता था. हार्डिया ने किशनलाल से बात की. किशनलाल ने पहले तो देवेंद्र खंडेलवाल को समझाने की कोशिश की. जब समझौते के सारे प्रयास विफल हो गए तो किशनलाल देवेंद्र खंडेलवाल को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. किशनलाल ने रूपेश, महेंद्र और प्रभाकर नाम के व्यक्तियों से बात कर देवेंद्र खंडेलवाल की हत्या के लिए तैयार कर लिया. बदले में सब को एकएक लाख रुपए देने की बात कही. रूपेश और महेंद्र ड्राइवर थे. जबकि प्रभाकर छोटेमोटे अपराधों में संलिप्त था. तीनों लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इसलिए इतने पैसों में ही वे एडवोकेट खंडेलवाल की हत्या करने के लिए तैयार हो गए.
उन्होंने पहले एडवोकेट देवेंद्र खंडेलवाल की रैकी की, इस के बाद वे उन्हें ठिकाने लगाने का मौका तलाशने लगे. एक दिन देवेंद्र स्कूटर से कहीं जा रहे थे, तब रूपेश और महेंद्र टवेरा कार नंबर एमपी-47बी सी 0151 से उन का पीछा करने लगे. एक जगह मौका देख कर उन्होंने जान से मारने के लिए उन के स्कूटर में जोरदार टक्कर मारी. इस से देवेंद्र स्कूटर से उछल कर सड़क के एक तरफ गिर गए और घायल हो गए. उन के हाथ की एक उंगली भी टूट गई थी, जिस में बाद में तार डाला गया. उन का स्कूटर भी काफी क्षतिग्रस्त हो गया. घटनास्थल पर ही दोनों पक्षों में जम कर कहासुनी हुई.
रूपेश ने किशनलाल को फोन कर के यह बात बताई तो किशनलाल ने उस से कहा कि वह फौरन खंडेलवाल से माफी मांगते हुए समझौता कर ले और देवेंद्र की गाड़ी ठीक कराने का, हर्जेखर्चे का जिम्मा ले ले. रूपेश ने देवेंद्र से माफी मांगते हुए उन का स्कूटर सही कराने और उन का इलाज कराने का भरोसा दिया. यह बात उन की हत्या से दोढाई साल पहले की है. तब दोनों में समझौता हो गया. यह पूरा खर्च किशनलाल राय ने उठाया. समझौता हो जाने के बाद उस ने रूपेश और महेंद्र से यह भी कहा कि तुम दोनों इस बहाने देवेंद्र से दोस्ती कर लो. इस से काम और आसान हो जाएगा.
स्कूटर सही कराने में 4-5 दिन लग गए. इस दौरान रूपेश और महेंद्र ने एडवोकेट देवेंद्र खंडेलवाल से अच्छी दोस्ती कर ली. जब सब ठीक हो गया तो रूपेश ने देवेंद्र खंडेलवाल को उन का स्कूटर सौंपते हुए शाम की दावत का प्रस्ताव उन के सामने रखा. खंडेलवाल तैयार हो गए. उस दावत में रूपेश को यह भी पता चल गया कि वह शराब पीने के भी शौकीन हैं. इस के बाद तो उन के बीच आए दिन पीनेपिलाने का दौर चलने लगा. दोस्ती होने के बाद उन्हें अपना काम और आसान होता नजर आया. 23 दिसंबर, 2014 को उन्होंने काम को अंजाम देने की योजना बना ली. क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि उस दिन देवेंद्र खंडेलवाल एक केस के सिलसिले में हातोद कोर्ट गए हुए हैं.
वे शाम को इंदौर सिविल कोर्ट के बाहर खड़े हो कर देवेंद्र के लौटने की राह देखने लगे. करीब 3 बजे देवेंद्र हातोद से इंदौर कोर्ट लौटे तो मेन गेट पर ही रूपेश और महेंद्र उन्हें मिल गए. हालचाल पूछने के बाद रूपेश ने कहा, ‘‘आइए बीजी बार में नाश्तापानी हो जाए.’’
देवेंद्र ने कहा, ‘‘तुम बार में पहुंचो, मैं फाइलें वगैरह रख कर आता हूं.’’
15-20 मिनट बाद देवेंद्र भी बार में पहुंच कर बोले, ‘‘आज कोई खास बात है क्या? अचानक यह पार्टी कैसी?’’
‘‘खास बात यह है कि सांवेर के पास एक खेती की जमीन है. एकदम साफसुथरी, कोई विवाद भी नहीं है उस जमीन पर. जमीन बेचने वाला परिचित है और गरजू भी, इसलिए सस्ते में सौदा हो सकता है. एक बात और कि बेचने वाला उस जमीन का अकेला वारिस है. चल कर देख लेते हैं.’’ रूपेश ने कहा.
‘‘ठीक है, देख लेंगे.’’ देवेंद्र ने रजामंदी जता दी.
खापी कर वे रवाना होने की तैयारी करने लगे तो रूपेश ने अपने एक साथी विजय को फोन कर के बुला लिया. विजय भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. बार से निकल इंडिगो कार में बैठ कर सभी रवाना हो गए. वे पहले ए.बी. रोड पर श्री सत्यसाईं चौराहे के पास किशनलाल के दफ्तर गए. वहां से किशनलाल भी उन के साथ हो लिया. वे कार द्वारा सांवेर की तरफ रवाना हुए. कार रूपेश चला रहा था और देवेंद्र उस के बगल बैठे थे, बाकी साथी पीछे बैठे थे. उन्होंने देवेंद्र को कुछ ज्यादा ही शराब पिला दी थी, इसलिए उन्हें नशा चढ़ने लगा था. जब गाड़ी सुनसान क्षेत्र से गुजर रही थी, तभी पीछे बैठे प्रभाकर और किशनलाल देवेंद्र के गले में मफलर डाल कर गला कसने लगे. विजय और महेंद्र ने भी इस काम में मदद की. थोड़ी देर छटपटा कर देवेंद्र का शरीर शांत हो गया.
अब उन के सामने समस्या यह थी कि लाश को ठिकाने कहां लगाएं. प्लान बना कर वे खरगोन की तरफ रवाना हो गए. धामनोद में उन्होंने एक दुकान से एक केन खरीदी और आगे एक पैट्रोल पंप से 5 लीटर पैट्रोल भरवा लिया. थोड़ी दूर आगे चलने पर एक जगह गाड़ी बंद हो गई. जांच की गई तो पता चला कि गाड़ी के इंजन के पास जो फैन होता है उस की बेल्ट टूट गई थी. जहां गाड़ी रुकी थी, वह भी सुनसान जगह थी. पास ही एक छोटा सा तालाब था. मौका देख कर उन्होंने वहीं पर देवेंद्र की लाश गाड़ी से उतार कर डाल दी. फिर उस पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. उन का मोबाइल फोन उन्होंने तालाब में फेंक दिया. जब तक आग जलती रही, वे वहीं खड़े रहे.
जब देखा कि अब शव पहचानने योग्य नहीं रह गया है तो रूपेश बड़वाह गया और कार का फैन बेल्ट खरीद लाया. इस के बाद गाड़ी ठीक कर के वे बड़वाह के रास्ते इंदौर पहुंच गए. थानाप्रभारी मंजू यादव दोनों अभियुक्तों को ले कर मौकाएवारदात पर गईं तो पता चला कि स्थानीय पुलिस ने लाश बरामद कर ली थी और लावारिस मान कर उस का पोस्टमार्टम करवा कर दफना भी दी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि दम घुटने से व्यक्ति की मौत हुई थी. काररवाई पूरी कर के थानाप्रभारी जमीन से लाश निकलवा कर इंदौर ले आईं और उसे एडवोकेट खंडेलवाल के परिजनों को दिखाई. झुलस जाने की वजह से घर वालों ने उसे देवेंद्र का शव मानने से इंकार कर दिया. उन का कहना था कि देवेंद्र के हाथ की एक अंगुली में तार डाला गया था, जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस का खुलासा नहीं था.
लाश पर से एक धातु की चेन में पैंडल भी पड़ा मिला. उस पैंडल को देख कर देवेंद्र खंडेलवाल की बहन चौंकी, क्योंकि वह पैंडल उन्होंने ही इंदौर के भमोरी इलाके के एक तांत्रिक से उस समय बनवाया था, जब देवेंद्र को जान का खतरा था. परिजनों की मांग को देखते पुलिस ने फिर से शव का पोस्टमार्टम करवाया. तब डाक्टर ने स्पष्ट किया कि देवेंद्र के हाथ की अंगुली में तार डाला गया था, जो बाद में निकलवा लिया गया था. इस का चिह्न डाक्टर को अंगुली में मिला. इस के बाद ही परिजनों ने लाश की पुष्टि देवेंद्र खंडेलवाल के रूप में की. तब पुलिस ने लाश उन के हवाले कर दी.
दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने किशनलाल राय, विजय और प्रभाकर को भी 31 दिसंबर, 2014 को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने सभी अभियुक्तों को 2 जनवरी, 2015 तक रिमांड पर लिया. उन्हें ले कर जब पुलिस कोर्ट से बाहर निकली तो कुछ वकीलों ने अभियुक्तों को पीटना शुरू कर दिया. पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाया. रिमांड अवधि में पुलिस ने अभियुक्तों से विस्तार से पूछताछ की. पूछताछ में लालचंद हार्डिया का नाम सामने आने पर पुलिस ने उन से भी पूछताछ की. उन्होंने घटना में अपना हाथ होने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि विवादित जमीन का मामला कोर्ट में है. कोर्ट जो भी फैसला करेगी, मुझे मान्य होगा.
2 जनवरी, 2015 को अभियुक्तों को पुन: कोर्ट में भारी सुरक्षा के साथ पेश किया गया, जहां से उन्हें सेंट्रल जेल भेज दिया गया. इसी दौरान वकीलों का एक प्रतिनिधिमंडल आईजी विपिन माहेश्वरी से मिला और एडवोकेट देवेंद्र खंडेलवाल हत्या की पृष्ठभूमि में जिन बड़े लोगों का हाथ रहा है उन्हें भी गिरफ्तार करने की मांग की. आईजी ने वकीलों को भरोसा दिलाया कि पुलिस निष्पक्ष जांच कर रही है. दोषी के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. कितना भी रसूखदार व्यक्ति इस घटना में सम्मिलित होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






