Hindi Crime Stories: पैसों के लिए जितेंद्र मां से झोपड़ी बचेने को कह रहा था जबकि मां झोपड़ी बेचना नहीं चाहती थी. जितेंद्र ने झोपड़ी तो बेच दी लेकिन ममता का कत्ल कर के. जितेंद्र को पैसों की सख्त जरूरत थी, लेकिन कहीं से जुगाड़ नहीं बन रहा था. क्योंकि उसे जितने पैसों की जरूरत थी, उतने कोई उधार नहीं दे सकता था. उस के पास इतनी प्रौपर्टी भी नहीं थी कि किसी बैंक से कर्ज मिल जाता. उस के पास कोई ऐसी जमापूंजी भी नहीं थी कि उसी से काम चला लेता. मजदूरी कर के भी वह उतने पैसे इकट्ठा नहीं कर सकता था.
बाप मनीराम पहले ही किसी दूसरी औरत के चक्कर में उसे और उस की मां को छोड़ कर चला गया था. गांव में औरतों को न तो ठीक से काम मिलता था और अगर काम मिलता भी था तो ठीक से मजदूरी नहीं मिलती थी, इसलिए फिरतीन बाई एकलौते बेटे जितेंद्र को गांव में छोड़ कर बिलासपुर आ गई थी, जहां उसे ठीकठाक काम के साथ अच्छी मजदूरी भी मिल रही थी, जिस से उस का गुजर तो आराम से हो ही रहा था, 4 पैसे बच भी रहे थे. जो पैसे बचते थे, महीने में एक बार वह गांव जा कर बेटे की मदद कर देती थी.
बिलासपुर में रहने के लिए फिरतीन बाई ने सरकारी जमीन पर एक झोपड़ी बना रखी थी. यह बात जितेंद्र को पता थी. उसे यह भी पता था कि वह झोपड़ी आराम से 60-70 हजार में बिक सकती है. इसलिए जब जितेंद्र को पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने मां से झोपड़ी बेचने को कहा. लेकिन फिरतीन बाई इस के लिए राजी नहीं हुई. क्योंकि उसे पता था कि जब तक उस के हाथपैर चल रहे हैं, वह इस झोपड़ी में रह कर कमाखा रही है. जो 4 पैसे बचते हैं, उस से बेटे की मदद कर देती है.
बुढ़ापे के लिए उस का हाथ खाली था. उस की जो जमापूंजी थी, वही झोपड़ी थी. कल को हाथपैर नहीं चलेगा तो इस झोपड़ी को बेच कर किसी तरह वह गांव में गुजरबसर कर लेगी. अगर वह अभी झोपड़ी बेच देती है तो सारे पैसे बेटा ले लेगा. उस के बाद वह खाली हाथ हो जाएगी. बेटे पर उसे भरोसा नहीं था कि बुढ़ापे में वह उस की सेवा करेगा. फिरतीन अपने बारे में सोच रही थी तो जितेंद्र अपने बारे में. उसे किसी भी तरह रुपए चाहिए थे. पहले तो जब मां गांव आती थी, तभी वह उस से झोपड़ी बेचने को कहता था.
लेकिन जब मां ने साफ मना कर दिया तो वह मां को मनाने शहर भी जाने लगा, क्योंकि उस की मंशा भांप कर मां ने गांव आना बंद कर दिया था. एकदो बार तो वह अकेला ही गया, लेकिन जब मां ने हामी नहीं भरी तो दबाव डालने के लिए वह रिश्तेदारों को ले कर जाने लगा. काफी कोशिशों के बाद भी फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो अंत में जितेंद्र मां को समझाने के लिए अपने ससुर तिहारूराम को ले कर मां की झोपड़ी पर पहुंचा. समधी पहली बार फिरतीन बाई की झोपड़ी पर आया था, इसलिए उस ने उस की अपनी हैसियत के हिसाब से आवभगत की. नाश्तापानी के बाद झोपड़ी बेचने की बात चली तो तिहारूराम दामाद का पक्ष ले कर फिरतीन बाई को समझाने लगा.
समधी के समझाने पर भी जब फिरतीन बाई झोपड़ी बेचने को राजी नहीं हुई तो जितेंद्र को गुस्सा आ गया. वह उठा और मां के पास जा कर बोला, ‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए झोपड़ी तो तुम्हें बेचनी ही पड़ेगी. सीधे नहीं बेचोगी तो…’’
जितेंद्र की बात पूरी होती, उस के पहले ही फिरतीन बाई बोली, ‘‘तो क्या तू जबरदस्ती मेरी झोपड़ी बिकवा देगा. झोपड़ी मेरी है, जब मैं चाहूंगी तभी बेचूंगी, नहीं चाहूंगी तो नहीं बेचूंगी. तू कौन होता है मेरी झोपड़ी बिकवाने वाला.’’
‘‘मां, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. अगर सीधेसीधे बेच दे तो अच्छा रहेगा, वरना…’’
‘‘वरना क्या…मैं झोपड़ी कतई नहीं बेचूंगी, तुझे जो करना हो कर ले.’’ फिरतीन बाई चीखी.
‘‘देख, मैं क्या कर सकता हूं…’’ कह कर जितेंद्र ने मां के बाल पकड़े और जमीन पर पटक दिया. फिरतीन बाई ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. इसलिए बेटे की इस हरकत पर वह हक्काबक्का रह गई. वह कुछ कहती या करती, जितेंद्र ने अपना दाहिना पैर उठाया और मां के गले पर रख दिया.
फिरतीन बाई ने गला छुड़ाने के लिए दोनों हाथों से जितेंद्र का पैर पकड़ कर हटाना चाहा, लेकिन तब तक तो वह अपना पैर गले पर इस तरह जमा चुका था कि वह टस से मस नहीं कर पाई. गले पर दबाव पड़ा तो वह छटपटाई. लेकिन वह ठीक से छटपटा भी नहीं सकी, क्योंकि जितेंद्र के ससुर तिहारूराम ने उस के दोनों पैर पकड़ लिए थे. पलभर में जितेंद्र ने ससुर की मदद से मां का खेल खत्म कर दिया. अब उन के सामने फिरतीन बाई की लाश पड़ी थी. लाश छोड़ कर वे जा नहीं सकते थे. अगर वहां लाश पड़ी रहती तो झोपड़ी बिक नहीं सकती थी. बाद में लोग उसे लेने से कतराते. अगर कोई लेता भी तो औनेपौने दाम में लेता, इसलिए ससुरदामाद लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे.
जितेंद्र ने टीवी पर आने वाले सीरियल सीआईडी में देखा था कि कोई लाश 2 थानों या 2 जिलों की सीमा पर मिलती है तो मामला सीमा विवाद में उलझ कर रह जाता है. इसलिए उस ने मां की लाश को 2 जिलों की सीमा पर फेंकने का विचार किया. उस का सोचना था कि सीमा पर लाश फेंकने पर मामला सीमा विवाद में तो उलझेगा ही, लाश की शिनाख्त भी जल्दी नहीं हो पाएगी. तब पुलिस किसी भी सूरत में उस तक नहीं पहुंच पाएगी. यही सब सोच कर उस ने ससुर से बात की और लाश को बोरे में भर कर उसे ठिकाने लगाने के लिए मोटरसाइकिल से बलौदा बाजार सीमा की ओर चल पड़ा.
बिलासपुर के थाना पचपेड़ी के अंतर्गत बलौदा बाजार और बिलासपुर जिलों की सीमा पर स्थित गांव नयापारा रहटाटोर के पास शिवनाथ नदी पर बने बांध में उन्होंने लाश फेंक दी और अपनेअपने घर चले गए. इस के बाद जितेंद्र ने बिलासपुर जा कर मां की झोपड़ी यह कह कर 67 हजार रुपए में बेच दी कि उस की मां अब गांव में ही रहेगी. इस तरह जितेंद्र ने मां की हत्या कर के झोपड़ी बेच दी. उसे पूरा विश्वास था कि पुलिस उस तक कतई नहीं पहुंच पाएगी. इस की वजह यह थी कि उन्होंने लाश दूसरे जिले यानी बलौदा बाजार जिले में फेंकी थी, जबकि वह रहती बिलासपुर जिले में थी.
हुआ भी वही. 3 मार्च को बलौदा बाजार पुलिस को बांध में लाश पड़ी होने की सूचना मिली. लेकिन बलौदा बाजार पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची. तब जिला बिलासपुर के घटनास्थल के नजदीकी थाना पचपेड़ी पुलिस ने जा कर लाश कब्जे में ली और घटनास्थल की काररवाई निपटा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटनास्थल पर लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर पता चला कि महिला की गला दबा कर हत्या की गई थी, इसलिए थाना पचपेड़ी पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करा दिया. थाना पचपेड़ी पुलिस को पूरा विश्वास था कि लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान बलौदा बाजार जिले के अंतर्गत आता है, इसलिए उन्होंने मामले की फाइल बलौदा बाजार पुलिस को भेज दी.
लेकिन जब बलौदा बाजार के एसपी ने नापजोख कराई तो पता चला कि जिस स्थान पर लाश पड़ी थी, वह स्थान जिला बिलासपुर के अंतर्गत ही आता है तो उन्होंने फाइल बिलासपुर के एसपी को भिजवा दी. बिलासपुर के एसपी बद्रीनारायण मीणा ने कत्ल के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया और थाना पचपेड़ी पुलिस को निर्देश दे कर फाइल सौंप दी. कत्ल के इस मामले की जांच चौकीप्रभारी वाई.एन. शर्मा को सौंपी गई. इस मामले में सब से मुश्किल काम था लाश की शिनाख्त कराना. श्री शर्मा ने मृतका की शिनाख्त के लिए बिलासपुर के ही नहीं, बलौदा बाजार के भी सभी थानों से पता किया कि इस तरह की महिला की कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.
उन की यह कोशिश असफल रही. क्योंकि इस तरह की महिला की गुमशुदगी किसी थाने में दर्ज नहीं थी. इस के बाद एसपी श्री मीणा ने लाश के फोटो के पैंफ्लेट छपवा कर घटनास्थल से 30 किलोमीटर की रेंज में चस्पा कराने का आदेश दिया. लाश के फोटो वाले पैंफ्लेट गांवगांव चस्पा कराए गए. इस का परिणाम यह निकला कि जिला बलौदा बाजार की पुलिस चौकी लवन के अंतर्गत आने वाले गांव चिचिरदा के रहने वाले फागुलाल ने मृतका की पहचान अपनी बहन फिरतीन बाई के रूप में कर दी. इस के बाद वाई.एन. शर्मा ने जांच आगे बढ़ाई तो संदेह के घेरे में मृतका का बेटा जितेंद्र आ गया. इस की वजह यह थी कि उस ने थाने में मां की गुमशुदगी नहीं दर्ज कराई थी. झोपड़ी बेचते समय उस ने सभी को यही बताया था कि मां अब गांव में रहेगी. लेकिन वह गांव में भी नहीं थी.
पुलिस जितेंद्र को पकड़ कर थाना पचपेड़ी ले आई. पूछताछ में पहले तो उस ने मां की हत्या से इनकार किया. लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो मजबूर हो कर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि मां के झोपड़ी बेचने से मना करने पर उसी ने अपने ससुर तिहारूराम के साथ मिल कर मां की हत्या की थी. इस के बाद जितेंद्र की निशानदेही पर वाई.एन. शर्मा ने उस के ससुर तिहारूराम को गिरफ्तार कर के वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिस से उन्होंने लाश को ठिकाने लगाया था. सारे साक्ष्य जुटा कर पुलिस ने 28 वर्षीय जितेंद्र और 60 वर्षीय तिहारूराम को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.
जितेंद्र से पूछताछ में पता चला कि फिरतीन बाई और उस के भाई के खिलाफ 1991 में बलवा और हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह डेढ़ साल तक जेल में रही थी. Hindi Crime Stories
(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)






