UP Crime News: प्रियंका और अंजू दोनों ही बाचाल किस्म की लड़कियां थीं. उन्होंने जो किया था, उस के लिए उन्हें उम्रकैद की सजा मिली. अगर घर वालों की बात मान कर वक्त रहते दोनों सुधर गई होतीं तो उन का यह अंजाम  न होता. 2 सहेलियां  की कू्ररता का दिल दहला देने वाला कारनामा…

उत्तर प्रदेश के जनपद मेरठ के कचहरी परिसर स्थित जिला न्यायाधीश रामकिशन गौतम की अदालत के बाहर सुबह से ही भारी भीड़ लगनी शुरू हो गई थी. भीड़ में अधिवक्ताओं और आम लोगों के अलावा प्रिंट व इलैक्ट्रौनिक मीडियाकर्मी भी शामिल थे. भीड़ को काबू करने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था. दरअसल, न्यायाधीश गौतम की अदालत में उस दिन दोस्ती और दौलत की खातिर रिश्तों के कत्ल के लिए एक बहुचर्चित हत्याकांड की गुनाहगार 2 सहेलियों को सजा सुनाई जानी थी. ये 2 सहेलियां थीं कुमारी प्रियंका और उस की सहेली कुमारी अंजू. इंजीनियर पिता की बेटी प्रियंका ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था.

वह मेरठ की मिस ब्यूटी क्वीन भी रह चुकी थी, जबकि अंजू एनसीसी ग्रुप की कमांडो रही थी और उस ने  भी इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स कर रखा था. साधन संपन्न, रसूखदार और शिक्षित परिवार की खूबसूरत प्रियंका ऐसी बेरहम लड़की थी, जिस ने उच्च शिक्षित होते हुए भी सहेली से ताजिंदगी अपने रिश्तों को बनाए रखने की चाहत में अपने मातापिता के प्यार को भुला दिया था. प्रियंका न केवल साजिश की सरताज बनी, बल्कि उस ने अपने मातापिता को ही मौत की नींद सुला दिया था. इस बहुचर्चित हत्याकांड ने कानून-व्यवस्था की स्थिति व समाज को हिला कर रख दिया था.

हत्या के बाद किसी सफल अदाकारा की तरह नाटक कर के उस ने लोगों की सहानुभूति भी बटोरी. पुलिस जांचपड़ताल के दौरान साजिश की चादर में छेद नजर आने लगे तो दोनों सहेलियां बेनकाब हो गईं. अदालत में 6 साल 3 महीने में 16 गवाहों की गवाही और सबूतों के बाद आखिर 28 मई, 2015 को इस केस के फैसले का दिन आ ही गया. इस केस की बुनियाद 285 पेजों की इबारत पर टिकी थी. गहमागहमी के बीच प्रियंका और अंजू अपने अधिवक्ता के साथ अदालत में दाखिल हुईं. मीडिया से बचने के लिए दोनों ने अपने चेहरों पर रूमाल बांध रखे थे. सरकारी अधिवक्ता अनिल तोमर पहले की कई तारीखों पर जोरदार बहस कर के दोनों को सख्त सजा दिए जाने की मांग कर चुके थे.

प्रियंका व अंजू को कटघरे में खड़ा कर दिया गया था. मुकदमें की सुनवाई पहले ही पूरी हो चुकी थी. लिहाजा अदालत ने फैसले के लिए 28 तारीख मुकर्रर की थी. न्यायाधीश रामकिशन गौतम अपनी सीट पर आ कर बैठे तो अदालत में खामोशी छा गई. काररवाही शुरू हुई तो बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने एक बार फिर अदालत से आखिरी बार गुहार लगाई, ‘‘जज साहब, इन लड़कियों के सामने पूरी जिंदगी पड़ी हैं, आप इन्हें कम से कम सजा दें. इन्हें मौका मिलेगा तो ये अपनी गलती को सुधार लेंगी.’’

इस पर अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता अनिल तोमर ने दो टूक कहा, ‘‘सर, कानून सभी के लिए बराबर है, इन लड़कियों ने जघन्य अपराध किया है. लिहाजा इन्हें सख्त से सख्त सजा दी जाए.’’

दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद न्यायाधीश ने प्रियंका और अंजू की ओर देख कर पूछा, ‘‘तुम्हें कुछ कहना है?’’ उन्होंने मासूमियत से जवाब दिया, ‘‘हमें फंसाया जा रहा है जज साहब, हम ने ऐसा कुछ नहीं किया.’’

इस के बाद अदालत में खामोशी छा गई. न्यायाधीश रामकिशन गौतम ने एक नजर दोनों लड़कियों की ओर देखा और फिर लिखित फैसले को पढ़ने लगे, ‘‘प्रियंका और अंजू, दोनों का गुनाह निहायत ही संगीन रहा है. परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और गवाहों की गवाही के अलावा दोनों के खिलाफ तमाम सबूत हैं. इन सबूतों और गवाहियों की रोशनी में यह अदालत दोनों मुजरिमों को उम्रकैद की सजा सुनाती है.’’

अदालत के सजा सुनाते ही पुलिसकर्मियों ने दोनों लड़कियों को घेर लिया. तब तक दोनों के चेहरे गमजदा हो चुके थे. दोनों को अदालत से बाहर लाया गया तो मीडियाकर्मियों के सामने दोनों ने खामोशी की चादर ओढ़ ली. पुलिस उन्हें जिला कारागार ले गई. उन्हें मिली उम्रकैद की सजा पर किसी को अफसोस नहीं था. दरअसल, 11 नवंबर, 2008 की सुबह मैडिकल थानाक्षेत्र की पौश कालोनी प्रेम प्रयाग में रहने वाली मंजू सुबह टहलने के लिए निकली तो कोठी नंबर-48 पर ताला लटका देख कर चौंक गईं. कोठी में उन की सगी बहन संतोष अपने पति सेवानिवृत्त इंजीनियर प्रेमवीर सिंह के साथ रहती थीं. मंजू भी पड़ोस में ही रहती थीं. मन में ढेरों सवाल लिए वह अपने घर पहुंचीं और यह बात पति पदम सिंह को बताई.

उन्होंने प्रेमवीर का मोबाइल फोन नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. चिंता की बात यह थी कि प्रेमवीर और संतोष पिछली शाम तक कोठी में ही थे. प्रेमवीर मूलरूप से अलीगढ़ जनपद की तहसील इग्लास के गांव रजाबल के रहने वाले  थे. करीब 10 साल पहले उन्होंने मेरठ में अपनी कोठी बनाई थी. प्रेमवीर पावर कारपोरेशन में जूनियर इंजीनियर रह चुके थे. सेवानिवृत्त होने के बाद वह घर में ही रहते थे. उन के परिवार में पत्नी संतोष सिंह के अलावा बड़ी बेटी सोनिया, उस से छोटा बेटा गौरव और सब से छोटी और खूबसूरत बेटी थी प्रियंका उर्फ गुडि़या.

प्रेमवीर सुलझे हुए मिलनसार और व्यवहारकुशल व्यक्ति थे. बड़ी बेटी का वह एक सैन्य अधिकारी के साथ विवाह कर चुके थे. उस का पति भूटान बौर्डर पर तैनात था. बला की खूबसूरत प्रियंका सन 2005 में मिस मेरठ रह चुकी थी. शोख व चंचल प्रियंका ने ग्रेजुएट किया था और अब दिल्ली के वीमन पालीटैक्निकल कालेज, लाजपतनगर से इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी. वह वहीं हौस्टल में रहती थी. जबकि प्रेमवीर का बेटा गौरव हैदराबाद की एक निजी कंपनी में इंजीनियर था. अनहोनी की आशंका ने सताया तो पदम सिंह कुछ लोगों के साथ प्रेमवीर की कोठी पर जा पहुंचे. उस वक्त अंदर से एफएम पर गाने चलने की आवाज आ रही थी. यह बात सब को थोड़ी अजीब लगी.

घर में विदेशी नस्ल का एक कुत्ता था, वह भी दिखाई नहीं दे रहा था. संतोष या उन के पति को कहीं जाना होता था तो आदतन मंजू के घर बता कर और चाबी दे कर जाते थे. संदेह हुआ तो उन लोगों ने इस की सूचना मैडिकल थाना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही मैडिकल थानाप्रभारी आर.वी. कौल अपनी टीम के साथ मौके पर आ गए. पुलिस ताला तोड़ कर कोठी के अंदर गई. अंदर कमरों में भी ताले लगे हुए थे. खिड़की का परदा हटा कर अंदर झांका गया तो सभी सन्न रह गए. बैडरूम में प्रेमवीर और संतोष की लाशें पड़ी थीं. पुलिस ने किचन का ताला तोड़ कर घर में प्रवेश किया. प्रेमवीर की लाश नीचे पड़ी थी और संतोष की लाश डबलबैड पर थी.

प्रेमवीर सिंह के सिर पर किसी भारी चीज  से प्रहार किया गया था, जबकि संतोष के चेहरे व गले पर अंगुलियों के निशान थे. दोनों के मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था. डबलबैड पर खून के निशान थे. घटनास्थल को देख कर लगता था कि प्रेमवीर ने मृत्युपूर्व हत्यारों से संघर्ष किया था. उन के हाथ व अन्य स्थानों पर चोट के निशान थे. ताज्जुब की बात यह थी कि विदेशी नस्ल का बुलडौग भी कोठी में चेन से बंधा हुआ था. घर का सारा सामान अस्तव्यस्त था.

पुलिस ने घटनास्थल की बारीकी से जांचपड़ताल की तो बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन का वायर निकला हुआ मिला. रिसीवर पर भी खून के धब्बे लगे थे. कालर आईडी फोन डिस्प्ले स्क्रीन पर 100 नंबर की डायलिंग दिख रही थी. इस का मतलब प्रेमवीर ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देने का प्रयास किया था. मृतकों के रिश्तेदारों ने घर का मुआयना कर के बताया कि हत्यारे घर में रखे करीब 50 हजार रुपए नकद, लाखों के आभूषण, लगभग 5 लाख के फिक्स डिपाजिट, मोबाइल फोन व कोठी की वसीयत के कागजात ले गए थे. संतोष के कान और गले की ज्वैलरी भी लापता थी.

पुलिस ने लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मृतक के साढू पदम सिंह की तहरीर के आधार पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या व लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया. एसएसपी रघुवीरलाल ने थाना मैडिकल पुलिस की टीम के अलावा एसओजी टीम को भी इस मामले के खुलासे में लगा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता लगा कि प्रेमवीर और संतोष की मौत दम घुटने से हुई थी. प्रेमवीर के शरीर पर चोटों के 11, जबकि संतोष के शरीर पर 3 निशान पाए गए.

अगले दिन पुलिस ने परिवार के सभी सदस्यों से एकएक कर के पूछताछ का मन बनाया तो यह देख कर आश्चर्य हुआ कि मृत दंपति के सभी नातेरिश्तेदार तो आ गए थे, लेकिन उन की छोटी बेटी प्रियंका नहीं आई थी. पुलिस ने इस की जड़ में जाने का प्रयास किया तो चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. पुलिस को पता चला कि प्रियंका का अपने परिवार से मनमुटाव चल रहा था. यह भी जानकारी मिली कि उस की एक सहेली अंजू उस की हमराज है. पुलिस जब इस मनमुटाव की जड़ में पहुंची तो पता चला कि अंजू के कहने पर प्रियंका ने अंजू के भाई से प्रेम विवाह कर लिया था.

इस मामले में प्रियंका के घर वालों ने अपहरण का मुकदमा भी दर्ज कराया था, लेकिन प्रियंका ने चूंकि अपनी तथाकथित ससुराल के पक्ष में बयान दिए थे, इसलिए मामला कमजोर पड़ गया था. यह अप्रैल, 2008 की बात थी. इस के बाद प्रियंका का परिवार उस से नफरत करने लगा था. पुलिस ने प्रियंका के मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन वह औफ जाता रहा. इस से पुलिस को लगने लगा कि इस हत्याकांड के तार प्रियंका से जुड़े हो सकते हैं. फलस्वरूप शक की सुई उसी पर जा कर ठहर गई. देखतेदेखते 4 दिन बीत गए. मांबाप की हत्या के बाद प्रियंका ने अपने किसी रिश्तेदार तक से संपर्क नहीं किया था. यह पता चलने पर पुलिस को पूरा विश्वास होने लगा कि प्रियंका हत्यारों के साथ थी.

हत्यारों के साथ प्रियंका के होने की बात उस घरेलू कुत्ते की वजह से भी लग रही थी, जिस पर कोई घर वाला ही काबू कर सकता था. दरअसल रात के वक्त कुत्ता खुला रहता था. घटना के दिन भी वह खुला था और उस के होते हुए किसी बाहरी व्यक्ति का घर में घुस पाना आसान नहीं था. खतरनाक बुलडौग भला किसी ऐसे शख्स को कैसे बख्श सकता था, जो उस के मालिक की हत्या कर रहा हो? एसएसपी रघुवीरलाल ने एसओजी के सबइंसपेक्टर राकेश के नेतृत्व में एक पुलिसटीम को दिल्ली भेजा, लेकिन वह दिल्ली में नहीं मिली.

इस पर पुलिस ने प्रियंका के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस की काल डिटेल्स और लोकेशन देख कर पुलिस अधिकारी चौंके. पता चला कि वह अपनी मां के संपर्क में थी. प्रियंका द्वारा खुद किए गए प्रेम विवाह के बाद घर वालों ने एक तरह से उस का बायकाट कर दिया था. लेकिन काल डिटेल्स के आधार पर पता चला कि वह बराबर अपनी मां के संपर्क में रहती थी. घटना वाली रात भी हत्या के समय उस की संतोष से बात हुई थी. प्रियंका की लोकेशन भी उस रात उसी क्षेत्र में पाई गई थी, जबकि घटना की रात और उस से पहले प्रियंका की लोकेशन मेरठ के ही टीपीनगर क्षेत्र के दशमेशनगर में मिली थी. घटना के बाद उस का मोबाइल लगातार औफ था. इस से यह स्पष्ट हो गया कि हो न हो प्रियंका मेरठ में ही शरण लिए हुए हो.

पुलिस ने उस की तलाश शुरू की. आखिर पुलिस को 17 नवंबर को कामयाबी मिल गई. प्रियंका अपनी सहेली अंजू के साथ एक छोटे से कमरे में किराए पर रह रही थी. कमरे की तलाशी के दौरान पुलिस को उन के पास से लूट के 50 हजार रुपए, लाखों की एफडी, लौकर की चाबियां और लाखों के आभूषण भी मिल गए. इस से यह प्रमाणित हो गया कि हत्याओं में उन्हीं दोनों सहेलियों का हाथ था. पुलिस दोनों को गिरफ्तार कर के थाने ले आई. अधिकारियों ने दोनों से पूछताछ की तो ऐसी चौंकाने वाली कहानी पता चली, जिसे सुन कर पुलिस अधिकारी भी दंग रह गए.

प्रेमवीर सिंह के परिवार को देख कर हर कोई कहता था कि यह एक सुखी परिवार है. हर पिता की तरह प्र्रेमवीर सिंह का भी सपना था कि उन के बच्चे बुलंदियों को छुएं. हंसमुख स्वभाव की प्रियंका शुरू से ही महत्वकांक्षी लड़की थी. वह बीए कर रही थी. कुछ साल पहले प्रेमवीर सिंह सेवानिवृत्त हो गए थे. इस बीच गौरव की नौकरी हैदराबाद में लग गई तो वह वहां चला गया. वह बीचबीच में घर आता रहता था. प्रियंका फैशन की दुनिया में नाम कमाना चाहती थी. वह छोटीमोटी प्रतियोगिताओं में भाग लेती रहती थी. इस के लिए प्रेमवीर या उन की पत्नी ने उसे कभी नहीं रोका.

सन 2002 में प्रियंका ने फैशन डिजाइनिंग से डिप्लोमा किया. सन 2005 में प्रियंका को एक प्रतियोगिता में मिस मेरठ चुना गया. इस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि मेरठ की तत्कालीन एसएसपी अंजू गुप्ता ने उसे मिस मेरठ का ताज पहनाया. प्रियंका का जीवन खुशियों से भरा हुआ था. मिस मेरठ बनने के बाद उस का जिंदगी जीने का अंदाज ही बदल गया. उस के कई दोस्त भी बन गए थे. बदलते वक्त के साथ इंसान की सोच और अचारविचार भी बदलते हैं. प्रियंका के साथ भी ऐसा ही हुआ. वह अपनी सहेलियों और दोस्तों के साथ समय बिताने लगी. इस से प्रियंका की उड़ान बेकाबू होती गई. वह स्टाइलिश जिंदगी जीने लगी और उस का ज्यादातर समय दोस्तों के साथ घूमने में बीतने लगा.

प्रियंका का यह रंगढंग पिता प्रेमवीर और भाई गौरव को पसंद नहीं आया. इस के लिए गौरव ने उसे डांटाफटकारा भी. इसी बीच घर वालों ने यह सोच कर उस का दाखिला दिल्ली के पौलिटैक्निक कालेज में इंटीरियर डिजाइनिंग कोर्स के लिए करा दिया कि दोस्तों से उस का पीछा छूट जाएगा. 24 वर्षीया प्रियंका हौस्टल में रह कर पढ़ाई करने लगी. यहीं उस की मुलाकात उस की हमउम्र अंजू से हुई. अंजू उर्फ ज्योति मूलरूप से जिला अमरोहा के गांव शहबाजपुर निवासी संतराम की बेटी थी. जब अंजू छोटी थी, तभी संतराम की मौत हो गई थी. उस के चाचा धर्मपाल ने उस की मां से विवाह कर लिया था. बाद में धर्मपाल का एक बेटा हुआ अजेंद्र.

अंजू बचपन से ही तेजतर्रार थी. पढ़ाई के दौरान ही उस ने एनसीसी में कमांडों की ट्रेनिंग ली थी. बेस्ट कमांडों होने की वजह से उस का सिलेक्शन गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में होने वाली परेड में भी हुआ था. बाद में उस के घर वालों ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के लिए उस का दाखिला दिल्ली के पौलिटैक्निक कालेज में करा दिया था. यहीं  वह प्रियंका से मिली थी. वक्त के साथ प्रियंका और अंजू में ऐसा भावनात्मक लगाव पैदा हुआ कि दोनां एकदूसरे की पूरक बन गईं. इसी के चलते दोनों एक ही कमरे में रहने लगीं. अपनी दोस्ती की बात दोनों ने अपनेअपने घर वालों को भी बता दी थी.

अंजू का भाई अजेंद्र उस के पास दिल्ली आता रहता था. इसी दौरान उस की मुलाकात प्रियंका से हुई. प्रियंका बोल्ड किस्म की लड़की थी. अजेंद्र गांव का सीधासादा देहाती युवक था और प्रियंका हाईप्रोफाइल जमाने के साथ कदम मिला कर चलने वाली लड़की. एक बार अंजू अपने गांव गई तो साथ में प्रियंका को भी ले गई. प्रियंका को अंजू कुछ मिनटों के लिए भी खुद से दूर नहीं होने देती थी. दोनों साथ खातीपीती थीं और साथ सोती थीं. कुछ दिन गांव में रुक कर दोनों दिल्ली चली आईं. प्रियंका अंजू के लगाव में ऐसी डूबी कि उस ने घर वालों से भी दूरी बना ली.

पहले प्रियंका शनिवार को मेरठ आ जाती थी और रविवार को रुक कर चली जाती थी, लेकिन बाद में उस ने बहाने बनाने शुरू कर दिए. शुरू में तो किसी की कुछ समझ नहीं आया. लेकिन एक बार गौरव घर पर आया तो उस ने प्रियंका को जबरन घर बुला कर उसे समझाया. लेकिन इस से प्रियंका में कोई बदलाव नहीं आया. इस की जगह उस की आदतें लगातार बिगड़ती चली गईं. प्रियंका जब भी मेरठ आती थी, वह अपने दोस्तों के साथ घूमने चली जाती थी. उस के इन दोस्तों में उस की सहेलियों के कई भाई भी शामिल थे और अन्य कई लोग भी. जब वह रातों को भी घर से गायब रहने लगी तो घर में तनाव के हालात बन गए.

हालात तब और भी अधिक बिगड़ गए, जब प्रियंका दिल्ली से भी गायब रहने लगी. घर पर उस की अटेंडेंस कम होने का 2 बार नोटिस आया तो घर वालों को पता चला. इस के बाद प्रेमवीर और संतोष उसे खरीखोटी सुनाने लगे. गौरव को भी यह सब अच्छा नहीं लगा तो उस ने प्रियंका को ताने देदे कर उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. वह उस से नफरत करने लगा. प्रियंका को अपनी जिंदगी में घर वालों का दखल गवारा नहीं लगता था. इसी बीच एक बार गौरव को जब पता चला कि प्रियंका अंजू के साथ उस के गांव जाती है तो उस ने उसे जम कर लताड़ा. प्रियंका के साथ अंजू मेरठ भी आई.

अंजू चूंकि तेजतर्रार लड़की थी, इसलिए उसे किसी ने पसंद नहीं किया. घर वालों ने प्रियंका को उस का साथ छोड़ने की सलाह दी, लेकिन उस ने साफ कह दिया कि वह सब कुछ छोड़ सकती है, लेकिन अंजू को नहीं. मार्च, 2008 में गौरव मेरठ में ही था. तभी प्रियंका अंजू को ले कर मेरठ आई. घर में दोनों साथ ही रहीं. अंजू के सामने ही गौरव ने प्रियंका पर हाथ छोड़ दिया. अंजू साथ थी, इसलिए प्रियंका भाई से भिड़ गई. यह बात किसी को अच्छी नहीं लगी. घर में मनमुटाव होने के बाद प्रियंका अंजू के साथ चली गई और परिजनों से संपर्क बंद कर दिया.

प्रियंका के घर वाले उसे बिगाड़ने में अंजू का हाथ मानते थे, क्योंकि वह वही करती थी, जो अंजू कहती थी. एक बार प्रेमवीर की तबीयत खराब हुई तो गौरव ने प्रियंका से मेरठ पहुंचने को कहा. पहले तो उस ने बहाना बनाया, लेकिन जब गौरव ने उस पर दबाव बनाया तो वह अंजू को साथ ले कर मेरठ आ गई. गौरव भी मेरठ आ गया था. कुछ मुद्दों पर बात हुई तो प्रियंका की मुंहजोरी देख कर गौरव ने प्रियंका के साथ मारपीट की. गौरव ने उस से अंजू का साथ छोड़ने को भी कहा, लेकिन प्रियंका ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया.

नतीजतन यह हुआ कि गौरव ने गुस्से में दोनों को बाहर का रास्ता दिखा दिया. दरअसल प्रियंका और अंजू का रिश्ता कुछ ऐसा खास बन गया था कि वह एकदूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकती थीं. अलबत्ता दोनों को लगने लगा था कि घर वाले अब उन्हें साथ नहीं रहने देंगे. प्रियंका को अपने साथ बनाए रखने के लिए शातिर दिमाग अंजू ने एक योजना बनाई. वह अपने इस रिश्ते को शादी की बैशाखी पर चलाए रखना चाहती थी. अप्रैल, 2008 के प्रथम सप्ताह में वह प्रियंका को ले कर अपने गांव पहुंची. उस ने अपने भाई अजेंद्र से कहा कि प्रियंका उस से प्यार करती है और शादी करना चाहती है. यह सुन कर अजेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

प्रियंका ने भी अपनी अदाओं से उसे ऐसा रिझाया कि वह पलक झपकते ही तैयार हो गया. उम्र के हिसाब से अजेंद्र प्रियंका से 3 साल छोटा था. आखिर 7 अप्रैल, 2008 को अंजू ने अमरोहा की आर्य समाज धर्मशाला में दोनों का विवाह करा दिया. यह विवाह पुरोहित  तेजपाल सिंह ने संपन्न कराया. प्रियंका और अंजू को यहां शपथपत्र दाखिल करने पड़े. शपथपत्र में प्रियंका ने अपना मेरठ का फरजी पता लिखवाया. प्रियंका और अजेंद्॑र ने एकदूसरे के साथ फेरे लिए और जयमाला पहनाईं. मंदिर की तरफ से उन्हें विवाह का प्रमाण पत्र भी दे दिया गया. अजेंद्र यह नहीं जानता था कि वह सिर्फ एक मोहरा है.

असली खिलाड़ी तो उस की बहन और उस की सहेली हैं. प्रियंका अजेंद्र की पत्नी तो बन गई, लेकिन पत्नी का धर्म न उसे निभाना था न ही उस ने निभाया. अजेंद्र जब भी उस का साथ पाने की कोशिश करता, वह बीमारी या दर्द का बहाना कर देती. रात में उस के साथ अंजू सोती थी. प्रियंका के घर वाले उसे ले कर पहले ही परेशान थे. जब उन्हें पता चला कि वह अंजू के साथ अमरोहा में रह रही है तो वे लोग वहां पहुंचे और खूब हंगामा किया. उन्होंने प्रियंका को अगवा करने का मुकदमा भी दर्ज करा दिया. लेकिन यहां भी प्रियंका ने जब अंजू का ही साथ दिया तो उन्होंने प्रियंका से रिश्ता तोड़ लिया.

कुछ माह के लिए प्रियंका और अंजू दिल्ली चली गईं और फिर से गांव लौट आईं. वहां दोनों पतिपत्नी की तरह रहती थीं. अजेंद्र ने प्रियंका पर हक जताया और घर में उन के रिश्तों का विरोध हुआ तो प्रियंका और अंजू फिर दिल्ली चली गईं. इस के बाद दोनों को घर से खर्चा मिलना बंद हो गया. आगे कोई उम्मीद नहीं थी. ऐसे में नौकरी करना जरूरी था. दोनों ने चूंकि ताउम्र साथ रहने की कसमें खाई थीं, इसलिए उन्होंने सहारनपुर का रुख किया. सहारनपुर में प्रियंका की एक सहेली का भाई रहता था. वह मारबल कारोबारी का बेटा था. वहां के एक युवक से अंजू की भी दोस्ती थी. दोनों ने कारोबारी के बेटे से आर्थिक हालात का रोना रो कर नौकरी दिलाने की बात कही.

उन्होंने प्रयास भी किए, लेकिन प्रियंका के पास शैक्षणिक प्रमाण पत्र नहीं थे, इसलिए उसे नौकरी नहीं मिल सकी. अलबत्ता दोनों युवकों ने उन्हें अपने एटीएम कार्ड जरूर दे दिए, ताकि वे अपना खर्चा चला सकें. इस के बाद दोनों सहेलियां मेरठ चली आईं और टीपीनगर थानाक्षेत्र की कालोनी दशमेश नगर में 6 सौ रुपए महीने पर किराए का एक कमरा ले कर रहने लगीं. दोनों की जिंदगी के जो थोड़े बहुत गम थे उन्हें वह सिगरेट के धुएं और शराब में उड़ा देती थीं. उधर विद्रोही बेटी से आजिज आ कर प्रेमवीर सिंह ने स्थिति को भांपते हुए अपनी वसीयत तैयार करा ली थी, जिस में उन्होंने प्रियंका को कोई जगह नहीं दी थी. वसीयत में केवल सोनिया व गौरव को शामिल किया गया था.

हालांकि घर के हालात तनावपूर्ण चल रहे थे, इस सब के बावजूद प्रियंका अपनी मां के काफी करीब थी. मां ही थी, जिस की ममता बारबार जोर मार रही थी. मां संतोष गुपचुप ढंग से फोन कर के प्रियंका को समझाती रहती थीं. प्रियंका और अंजू किराए पर रह रही थीं. प्रियंका नौकरी करना चाहती थी, लेकिन उस के प्रमाण पत्र पिता के घर पर थे. उसे पिता की वसीयत का पता चला तो उस के मन में अपने परिवार के प्रति नफरत का सैलाब उमड़ पड़ा. उस की जिंदगी दोराहे पर आ कर खड़ी हो गई थी. आखिरकार 10 नवंबर को उस ने घर जा कर अपने प्रमाण पत्र लाने का फैसला कर लिया. उस दिन रात तकरीबन 9 बजे रिक्शा ले कर प्रियंका और अंजू प्रेमवीर सिंह के घर जा पहुंची. दरवाजा संतोष ने ही खोला. प्रियंका को देख कर वह गुस्से में बोलीं, ‘‘अब तेरे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है.’’

‘‘मैं अंदर बैठ कर बातें करूंगी.’’ वह निर्णायक अंदाज में नरम हो कर बोली. इसी बीच ड्राइंगरूम में बैठे प्रेमवीर भी बाहर आ गए. उन की नजर प्रियंका पर पड़ी तो उन्होंने भी उसे खरीखोटी सुनानी शुरू कर दी और बड़बड़ाते हुए बाहर टहलने के लिए निकल गए. संतोष से बात करते हुए अंजू बैडरूम में पहुंच गई.

‘‘मुझे अपनी डिग्रियां चाहिए.’’ प्रियंका ने कहा तो संतोष गुस्से में बोलीं, ‘‘बेशरम, तूने जो डिग्री ली है, वह क्या कम है? तुझे मैं बहुत समझा चुकी, अब तू मेरे लिए भी मर चुकी है.’’

‘‘मेरी जिंदगी पर सिर्फ मेरा हक है. मैं चाहे जो करूं मेरी मरजी.’’

‘‘यह सब तेरी वजह से हुआ है.’’ संतोष ने अंजू की तरफ घूम कर उसे धक्का देना चाहा. इस पर प्रियंका व अंजू दोनों को ताव आ गया. प्रियंका ने पलक झपकते ही मां के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया. इस पर संतोष बिफर गईं और शोर मचाने का प्रयास करने लगीं. दोनों लड़कियों के रूप में उन्हें अपनी मौत नजर आने लगी थी.

प्रियंका और अंजू समझ गईं कि अब खेल बिगड़ चुका है. संतोष उन्हें बख्शने वाली नहीं है और न ही प्रमाण पत्र मिल पाएंगे. वसीयत में अपना नाम न होने और परिवार की उपेक्षा से वह पहले ही प्रतिशोध की आग में जल रही थी. फलस्वरूप दोनों ने पलक झपकते ही लूट की योजना बना ली. दोनों ने आंखोंआंखों में इशारे कर के संतोष का खेल खत्म करने की ठान ली. अंजू एनसीसी कमांडो रह चुकी थी. उस ने एक ही झटके में संतोष को बैड पर गिरा दिया. संतोष कुछ समझ पातीं, उस से पहले ही अंजू ने उन का गला दबा दिया. संतोष छटपटाईं तो प्रियंका ने उन के पैरों को कस कर पकड़ लिया.

कुछ ही देर में उन की नाक व मुंह से खून आने लगा और वह ठंडी पड़ गईं. उन्हें सांस न आ जाए, इसलिए अंजू ने उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. अचानक पैदा हुई इस स्थिति से प्रियंका व अंजू बौखला गईं. प्रियंका को डर था कि उस के पिता कभी भी आ सकते हैं. सोचविचार कर उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. कुछ देर बाद प्रेमवीर ने दरवाजे पर दस्तक दी तो अंजू ने प्रियंका को दरवाजा खोलने का इशारा किया और खुद हमले के लिए तैयार हो गई. दरवाजा खुलते ही प्रेमवीर जैसे ही अंदर घुसे अंजू ने पीछे से ऐसी लात मारी कि वह लड़खड़ा कर नीचे गिर गए. इस के बावजूद बैड पर पत्नी की लाश पड़ी देख उन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘तुम ने संतोष को मार डाला, मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं, अभी पुलिस को बुलाता हूं.’’ कहते हुए वह फोन की तरफ लपके और 100 नंबर डायल कर दिया. इसी बीच प्रियंका ने फोन का तार खींच दिया. तभी अंजू ने किचन से चाकू ला कर उन के सिर पर वार करने शुरू कर दिए. प्रेमवीर शरीर से मजबूत थे. वह दोनों से गुत्थमगुत्था हो गए. अंजू उन पर वार करती रही और उन के सीने पर सवार हो गई. इसी बीच प्रियंका ने कपड़ा ला कर उन के मुंह में ठूंस दिया. कुछ ही देर में उन्होंने भी दम तोड़ दिया. इस के बाद प्रियंका ने अपने प्रमाण पत्र तो लिए ही, साथ ही सेफ से लाखों की एफडी, जो उस के साथ ज्वाइंट थी, वसीयत, जेवरात व नगदी ले कर एक बैग में डाल लिए, ताकि यह घटना लूटपाट की लगे और उस पर किसी को शक न हो.

इसी के मद्देनजर दोनों ने घर के सामान को उथलपुथल कर के बिखेर दिया. संतोष के मोबाइल को उस ने औफ कर के अपने पास रख लिया और एफएम चला दिया. सारा काम खत्म कर के प्रियंका कोठी के आंगन में घूम रहे बुलडौग को प्यार करते हुए बैडरूम में लाई और उसे चेन से बांध दिया. रात में दोनों दूसरे कमरे में सो गईं. भोर में करीब 5 बजे कोठी में ताला लगा कर दोनों रिक्शा ले कर अपने टीपीनगर स्थित कमरे पर पहुंच गईं. प्रियंका ने संतोष के मोबाइल फोन को ईंट से तोड़ दिया, ताकि उस के जरिए पुलिस उन तक न पहुंच सके और अपना मोबाइल बंद कर दिया. दोनों की योजना बैंक का लौकर खंगालने और एफडी तुड़वाने की थी, ताकि बाकी जिंदगी आराम से कहीं बाहर जा कर बिताई जा सके.

इस बीच इस दोहरे हत्याकांड ने शहर को हिला कर रख दिया था. अखबारों में कई दिन तक यही खबर छाई रही. इस से दोनों कमरे में ही छिपे रहने पर मजबूर हो गईं और माहौल के ठंडा होने का इंतजार करने लगीं. लेकिन आखिर दोनों पुलिस के शिकंजे में आ ही गईं. मिस मेरठ का कारनामा अखबारों और न्यूज चैनलों पर सुर्खियों में आया तो लोग हैरत में रह गए. पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

विवेचनाधिकारी ने 80 दिनों की विवेचना के बाद कोर्ट में इस मामले का आरोप पत्र दाखिल कर दिया. अदालत में मुकदमें पर जिरह शुरू हो गई. 285 पन्नों में सबूतों का दस्तावेज कोर्ट में पेश किया गया. 6 साल में 16 गवाहों की गवाहियां हुईं. इन गवाहों में वादी व प्रियंका के मौसा पदम सिंह, उस का भाई गौरव, विवेचनाधिकारी आर.वी. कौल, डा. नरेंद्र, हेडकांस्टेबल सुरेंद्रपाल, एसआई कृष्णवीर, अमन सिंह, राकेश कुमार, कांस्टेबल किरण, कांस्टेबल पवन सिंह, तेजपाल प्रियंका की मौसी मंजू, राजीव सक्सेना, रमेशचंद, पवन सिंह और रामआसरे शामिल थे. दोनों पक्षों की जिरह सुनने और सबूतों को देखने के बाद अदालत ने प्रियंका और अंजू को 28 मई को उम्रकैद की सजा सुना दी.

कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थीं. दोनों के घर वालों के अलावा सभी रिश्तेदारों ने भी उन का हर तरह से साथ छोड़ दिया था. प्रियंका व अंजू ने अपने बहकते कदमों को वक्त रहते संभाला होता और घर वालों की मानी होती तो उन का भविष्य बरबाद नहीं होता. जिला जेल में उन से महिला कैदियों को पढ़ाने का काम लिया जा रहा है. UP Crime News

कथा न्यायालय के निर्णय पर आधारित

 

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