Hindi Stories: रवि भसीन ने जो काम शौक में शुरू किया था, धीरेधीरे वह उन का जुनून बन गया. इसी का नतीजा है कि आज उन की कोठी दुर्लभ और बेशकीमती चीजों का संग्रहालय बन गई है.
पाकिस्तान में जिला झेलम के गांव लिल्ले खिऊड़ा निवासी बख्शी गोपाल दास भसीन काले नमक की खानों के मालिक थे. इलाके के नामीगिरामी व्यक्ति. इस जगह तैयार होने वाले काले नमक की सप्लाई पूरी दुनिया में होती थी. भसीन साहब के बेटे थे बख्शी ईश्वर दास. कौशल्या देवी से शादी कर के वह 4 लड़कों व 4 लड़कियों के पिता बने. इन में से चौथे नंबर के थे 1945 में जन्मे रविकांत. विभाजन के बाद यह परिवार हिंदुस्तान आ कर शाहाबाद मारकंड में बस गया. यहां परिवार के लोगों ने प्रौपर्टी डीलिंग का व्यवसाय शुरू किया जो खूब फलाफूला. यहीं रहते रविकांत ने मैट्रिक तक की पढ़ाई की.
इस बीच ईश्वर दास ने मनीमाजरा क्षेत्र में चूने के भट्ठे लगा लिए थे. उन का यह काम भी अच्छा चल निकला था. 1964 में ये लोग चंडीगढ़ शिफ्ट कर के सेक्टर-22बी में रहने लगे. जिन दिनों रविकांत कक्षा 8 में था उस के दादा बख्शी गोपालदास ने उसे मुगलकालीन चांदी के कुछ सिक्के दे कर समझाया था, ‘‘इन्हें न खर्च करना न किसी को देना, हमेशा संभाल कर रखना. इतना ही नहीं, बल्कि और भी कोई दुर्लभ वस्तु कहीं से मिले तो उसे भी सहेज कर रखना. ऐसा करने से तुम्हें बड़ा संतोष मिलेगा.’’
रवि पर जुनून की तरह जैसे यही धुन सवार होने लगी. उस के कब्जे में जो भी एंटीक चीजें आईं, उन्हें वह संभालतासहेजता रहा. धीरेधीरे यह उस का शौक बन गया. एक तरह से कारोबार का हिस्सा भी. देखतेदेखते इस तरह की चीजों के संग्रह से रवि भसीन का एक कमरा भर गया. इस संग्रह में पुरातन सिक्कों के अलावा अनेक ऐसी दुर्लभ वस्तुएं भी थीं, जिन्हें देख कर सामने वाला आश्चर्यचकित रह जाता था. 1973 में रविकांत की पूनम से शादी हो गई. पूनम को पति के शौक का पता चला तो उन्होंने भी इसे अपनी पसंद बना कर सहयोग देना शुरू कर दिया. रविकांत ने अब तक अपना अलग प्रौपर्टी डीलिंग का व्यवसाय शुरू कर लिया था. इस के साथ ही एंटीक वस्तुओं की खोज में वह यहांवहां भ्रमण भी किया करते थे.
ऐसी किसी वस्तु की जहां कहीं होने की उन्हें खबर मिलती, वह तुरंत वहां के लिए रवाना हो जाते. आने वाले कुछ ही समय में वह पूरा हिंदुस्तान तो घूम ही लिए, चीन, इंग्लैंड, अमेरिका, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, कुवैत व पाकिस्तान जा कर भी वहां से दुर्लभ वस्तुएं एकत्रित कर लाए. इस के बाद तो उन का घर एंटीक वस्तुओं का अजायबघर सा बन गया. इस के लिए उन्होंने भारी रकम खर्च की थी. इन दुर्लभ वस्तुओं में पाषाण प्रतिमाएं, पैडल से चलने वाला हारमोनियम, केरोसीन से चलने वाले पंखे व रूम हीटर, इटली की पुरातनकालीन पेंटिंग्स, शाही दरबार की क्रौकरी और 1×4 इंच चौड़ी व 3×4 इंच लंबाई वाली हैंडलिथो बुक जैसी पुरानी, लेकिन महत्त्वपूर्ण चीजें घर की शोभा बढ़ाने लगीं
. हैंडलिथो बुक में 56 पन्ने हैं. जिन्हें पढ़ने के लिए कछुए की हड्डी के फ्रेम में लगा मैग्नीफाइंग ग्लास इस्तेमाल किया जाता है. भसीन के पास यह ग्लास भी उपलब्ध है. इस किताब में यूरोप की महान हस्तियों का वर्णन है. सन 1838 में प्रकाशित हुई इस छोटी सी पुस्तक में जहां 6 महान शख्सियतों की जीवनी प्रकाशित की गई है, वहीं इस में हाथ से बनी 8 कलाकृतियां भी मौजूद हैं. इस पुस्तक को पीतल के फोल्डिंग कवर से ढंका गया है. महाराजा रंजीत सिंह के दौर की सिख घड़ी, 200 साल पुराना कैंपर लकड़ी का संदूक व मुगलों के जमाने का हुक्का भी भसीन के संग्रह के बेमिसाल तोहफे हैं. सिख घड़ी आज भी चलती है. इस की अलग तरह की आवाज कानों में मधुर रस घोल देती है.
रवि भसीन के पास फिएट टोपोलेनो 2 सीटर कार भी थी जो उन्होंने सन् 1994 में महाराजा ग्वालियर से खरीदी थी. अभी कुछ साल पहले यह कार उन से अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने खरीद ली थी. रवि के संग्रह में पौन इंच की ‘द इंग्लिश बिजौयस’ बुक भी है तो 1 इंच के आकार की कुरान भी है. उन के पास मुगलकाल, रजवाड़ों और अंगे्रजों के जमाने की अति दुर्लभ वस्तुएं हैं. धातु व कांच के बने बर्तन, शोपीस, ऐतिहासिक ग्रंथ, किताबें, हस्तलिखित धार्मिक पुस्तकें, पुरातनकाल के हथियार, पेंटिंग्स व फर्नीचर वगैरह भी उन के संग्रह में शामिल हैं.
भसीन के पास हाथ से सुनहरी अक्षरों में उर्दू में लिखी खास किस्म के पन्नों वाली ऐसी अद्भुत किताब भी है जिस के बारे में उन का दावा है कि यह कुर्बानी के बकरे की आंतों से निर्मित पन्नों पर सोने की स्याही से लिखी गई है. इस के अलावा उन के पास महाराजा नाभा की सवा 200 साल पुरानी व 36 फीट लंबी जन्मपत्रिका है जिस की बेजोड़ कारीगरी देखते ही बनती है. एक सदी पुराना हस्तलिखित शिवपुराण व 200 साल पहले लिखा गया 7 पन्नों का हस्तलिखित महासार भी उन के संग्रह के नायाब तोहफे हैं. इस की पृष्ठभूमि के बारे में भसीन बताते हैं कि किसी जानवर की हड्डी को घिस कर बनाए गए पत्थरनुमा पन्नों पर गोमूत्र व फूलों से बनी स्याही से लिखा गया है, यह महाभारत सार.
मुगल बादशाहत के दौरान जब किसी को मृत्युदंड दिया जाता था तो अपना हुक्म सुनाते वक्त बादशाह खास किस्म की अंगूठी पहन कर हुक्म सुनाया करता था. अपने हुक्मनामे पर वह इसी अंगूठी को मोहर के रूप में इस्तेमाल कर के ठप्पा लगाता था. यह खास अंगूठी भी रवि भसीन के पास मौजूद है. भसीन के यहां अंगे्रजों के जमाने की बड़ीबड़ी दीवार घडि़यों का तो अच्छाखास संग्रह है. इन में कुकु क्लौक व ग्रैंडफादर क्लौक बहुत मशहूर घडि़यां हैं. ग्रैंडफादर क्लौक वजन से चलती है, जो 7 दिन बाद बंद हो जाती है. इसे फिर से चालू करने के लिए वजन ऊपर खिसकाने पड़ते हैं. पहाड़ी राजा पीतल की जिन बड़ीबड़ी दूरबीनों का इस्तेमाल किया करते थे, वे भी अच्छीखासी मात्रा में रवि भसीन के एंटीक कलैक्शन में शामिल हैं.
इन के अलावा राजाओं द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले पीतल के हमाम, बाएं हाथ का विशाल शंख, गऊमुखी शंख व अंग्रेजों के जमाने के मैडल ही नहीं, बकरे की आंतों की सुराही भी भसीन के यहां आने वालों को सहज ही आकर्षित कर लेती है. अंगे्रजों के जमाने में अंबाला जेल में कैदियों पर चमड़े के जो कोड़े बरसाए जाते थे, उन में से 2 कोड़े व अंगे्रजों के जमाने के अनेक टेलीफोन सेट्स के अलावा रवि भसीन के पास पुरातनकाल के ऐसे वुडन बौक्स भी हैं जो मुस्काफुर (कैंफर) की लकड़ी के बने हैं. आज भी इन के करीब बैठो तो इन में से निकलती भीनीभीनी सुगंध मनमस्तिष्क छा कर मंत्रमुग्ध कर देती है.
भसीन के पास पुरातन तलवारों का भी जखीरा है तो आदिकाल से 20वीं सदी तक के सिक्कों का विशाल संग्रह भी है. सिक्कों का पूरा इतिहास भी रवि भसीन को मालूम है. वह बताते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान जो सिक्के मिले थे और जिन का जिक्र वैदिक ग्रंथों में है, उस से यह बात सामने आई है कि मौखरी, प्रतिहार, कलेचेरी, चालुक्य, चोल, राष्ट्रकूट, पांड्या, गुप्त, मौर्य, कौसल व मुगल शासकों ने अपनी सुविधा, प्रतिष्ठा व संपन्नता के अनुसार सिक्कों में सभी तरह की धातुओं का प्रयोग किया था. इतिहास साक्षी है कि कुषाण शासकों ने सर्वथा पहली दफा यूनानी शैली में सोने का ढला हुआ सिक्का प्रचलित किया. मौर्य शासकों ने पहले टुकड़ों को जोड़ कर, फिर ठप्पे वाले और फिर ढलाई के सिक्के जारी किए.
यह वंश जब तहसनहस हुआ तो अलगअलग तरीकों से अस्तित्व में आईं रियासतों के शासकों ने अपने काल की मुद्राएं भी अलगअलग तरीकों से निकालीं. यहीं से सिक्कों पर राजा के नाम के साथ उस का फोटो उकेरने का प्रचलन शुरू हुआ. कुछ शासकों ने अपने सिक्कों पर धार्मिक चित्र भी उकेरे. 12वीं सदी में तोमरवंश का विनाश करने के बाद मोहम्मद गोरी ने अपना अलग सिक्का जारी किया. मुगल शासन के 1206 ई. से 1526 ई. के कार्यकाल में भी हर शासक ने अपना अलग सिक्का चलाया. इल्तुतमिश ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना शुरू किया. फिर टकसाल का नाम व सिक्का बनाने की तिथि अंकित करना शुरू की.
बलवन ने शासन संभालते ही सिक्कों पर से हर तरह के हिंदू चिह्न हटवा दिए. अलाउद्दीन खिलजी का शासन आया तो उस ने सिकंदर द्वितीय की उपाधि सिक्कों पर खुदवा दी. उस वक्त तक मिश्रित धातुओं के सिक्कों का दौर था. शेरशाह सूरी ने यह चलन बंद करवा कर शुद्ध चांदी व तांबे के सिक्के प्रचलित करवाए. पानीपत की ऐतिहासिक लड़ाई में इब्राहीम लोदी को पराजित करने के बाद बाबर ने हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखते ही स्वर्णमुद्रा चलाना आरंभ की और इसे नाम दिया. अशर्फी सम्राट अकबर का दौर आने पर उन्होंने मेहराबी मोहरें चलाईं. जहांगीर ने हिंदू चक्रचिह्न वाला सिक्का चलाया था, मुगलों ने ‘अल्लाह हू अकबर’ भी लिखवाया. उल्लेखनीय है कि जहांगीर काल में नूरजहां के नाम से भी सिक्का चला था.
ब्रिटिश काल में पहले अशर्फी पर और फिर सिक्कों पर ब्रिटिश चिह्न उभारे जाने लगे. महारानी विक्टोरिया के नाम से 1940 ई. में सोनेचांदी के सिक्के प्रचलन में आए. 1876 में भी सिक्कों पर तिथियां उकेरी गई थीं. इस के बाद 1906 में धातु गिलट से सिक्के बनाए जाने लगे. फिर तो पाई, धेला, आना, दुअन्नी, चवन्नी और अठन्नी वगैरह भी अस्तित्व में आ गए. इतनी सारी मुद्राओं का चलन जार्ज सप्तम के कार्यकाल में आम लोगों की सुविधा के लिए किया गया था.
बकौल रवि भसीन उन के पास इस तरह के अनेक सिक्के मौजूद हैं. इतना ही नहीं, अकबर के शासनकाल वाला तांबे का 40 ग्राम के वजन का दमड़ा और महाराजा रंजीत सिंह द्वारा जारी प्रथम सिख सिक्का जिस पर कुछ शब्द अंकित थे, के अलावा उन के संग्रह में तुगलक, अलाउद्दीन खिलजी, बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह, बाबर, अकबर, जहांगीर व शाहजहां के शासनकाल के निहायत ही दुर्लभ सिक्के भी सुरक्षित हैं. इस के अलावा रवि भसीन के पास ईरान का 27 ग्राम का चांदी का सिक्का, पूर्वी अफ्रीका का 1 रुपए का सिक्का व फ्रांस में सन् 1901 व 1906 में जारी हुए सोने के सिक्के भी मौजूद हैं.
अपने इस शौक को समृद्ध बनाने के लिए रवि भसीन ने निरंतर 40 सालों तक बहुत भागदौड़ की, देशदुनिया की खाक छानी, हालांकि इस दौरान उन की सेहत उन्हें धोखा देने लगी थी. वह कई तरह की बीमारियों से घिरने लगे थे. 1985 में उन्हें शुगर की समस्या ने परेशान करना शुरू कर दिया था. 1997 आतेआते उन की किडनियां जवाब देने लगीं. 1999 में उन की दोनों किडनियां फेल होने की रिपोर्ट आ गई. तब रवि की शरीकेहयात पूनम भसीन ने उन्हें अपनी 1 किडनी दे कर उन की जान बचाई. भसीन दंपत्ति का एक ही बेटा है, करन. वह पिछले 5 सालों से ब्रिस्बेन की 1 हास्पिटैलिटी फर्म में अकाउंट्स मैनेजर है. भसीन दंपति पंचकूला के सेक्टर-11बी की अपनी कोठी में रह रहे हैं.
पतिपत्नी दोनों अपने इसी संग्रह को समर्पित हैं. इस के चलते उन की कोठी का नजारा देखते ही बनता है. उन के घर का हर कमरा, फर्श, दीवार यहां तक कि छत और रसोईघर भी उन के इस बेशकीमती खजाने से अटे पड़े हैं. कोठी के मुख्यद्वार के बाहर बागीची में रौक गार्डन निर्माता पदमश्री नेकचंद द्वारा रवि भसीन को भेंट की गई उन की 1 कृति मौजूद है. यहीं 300 साल पुरानी पीतल की बैलगाड़ी रखी है. जहां एक ओर पत्थर की चौखटें व हवेली के स्तंभ जमीन पर लेटाए गए हैं, वहीं गैलरी में लकड़ी का सीलिंगफैन टंगा है. यहीं एक कोने में मिट्टी के तेल से बर्फ जमाने वाला फ्रिज रखा है. भसीन की कोठी के भीतर जा कर इंसान तिलिस्म सरीखी दुनिया से घिर जाता है. Hindi Stories






