Hindi Stories: संजय गुप्ता सोनू की फितरत समझ नहीं पाए और उस पर विश्वास कर के उस का पुलिस वेरीफिकेशन भी नहीं कराया. शातिर सोनू ने इसी का फायदा उठा कर ऐसा क्या कर डाला कि अब संजय गुप्ता को पछतावा हो रहा है.

उत्तर प्रदेश का नोएडा शहर देश की राजधानी दिल्ली की सीमा से सटे तेजी से विकसित व्यावसायिक नगर के रूप में जाना जाता है. यह शहर एशिया के बड़े औद्योगिक उपनगरों में से एक है. यहां की अधिकांश जमीनों पर बड़ीबड़ी इमारतें बन गईं हैं. विकास की पगडंडियों के बीच यहां रहने वालों की अपनीअपनी जिंदगियां हैं. सेक्टर-41 की कोठी नंबर बी-169 में रहने वाले संजय गुप्ता की पत्नी श्रीमती राखी गुप्ता अच्छी चित्रकार थीं. उन्होंने सैंकड़ों पेंटिंगें बनाई थीं. यह उन का पेशा नहीं, बल्कि शौक था, जिसे पूरा करने के लिए वह कैनवास पर जिंदगी के रंगों को अक्सर उकेरा करती थीं. अभिव्यक्ति के अपने मायने होते हैं, उसे प्रदर्शित करने का सभी का अपना अलगअलग अंदाज होता है.

उस दिन भी सफेद कैनवास पर अपनी अंगुलियों से ब्रश के जरिए जो चित्र उन्होंने उकेरा था, वह एक खुशहाल परिवार का था, जिस में पतिपत्नी और उन के 2 बच्चे प्रसन्न मुद्रा में नजर आ रहे थे. सभी की बांहें एकदूसरे के गले में थीं. ब्रश को किनारे रख कर राखी पेंटिंग को निहारने लगीं. काफी देर तक अपलक निहारने के बाद उन की आंखों में अचानक आंसू छलक आए. आंसुओं ने लुढ़क कर अपना सफर शुरू किया तो राखी ने साड़ी के पल्लू से उन के वजूद को मिटाने की कोशिश की. सोफे पर बैठे संजय की नजर पत्नी पर गई तो नजदीक जा कर उन के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘‘तुम बारबार परेशान क्यों हो जाती हो?’’

‘‘मेरा दुख तुम जानते हो, फिर भी…’’

‘‘हम कोशिश तो कर रहे हैं. इस तरह हिम्मत नहीं हारते, एक दिन हमारा बेटा अवश्य ठीक हो जाएगा.’’

‘‘पता नहीं कैसा संयोग है. मेरा फूल सा बेटा बिस्तर पर पड़ा है. इंजीनियर बनना था, कितने सपने थे हमारे. काश, इस की जगह मेरी यह हालत हो जाती.’’

‘‘मैं तुम्हारा दर्द समझता हूं राखी. लेकिन इस तरह परेशान होने से भी तो काम नहीं चलेगा.’’ संजय ने कहा.

‘‘फिर भी मैं ने कभी नहीं सोचा था कि हमारा होनहार बेटा इस हाल में होगा. मैं मां हूं, इस का दर्द महसूस करती हूं. वह सब जानतासमझता है, लेकिन अपनी वेदना व्यक्त करने में नाकाम है. जब उस की आंखों में छटपटाती बेबसी देखती हूं तो तड़प कर रह जाती हूं. हर पल इसी के बारे में सोचती रहती हूं. मुझे जिंदगी में कुछ नहीं चाहिए, बस मेरा बेटा ठीक हो जाए.’’ कहने के साथ ही राखी फफक कर रो पड़ीं.

‘‘भरोसा रखो, एक दिन सब ठीक हो जाएगा.’’ संजय ने प्यार से समझाया तो राखी ने हर बार की तरह उस दिन भी सुखद उम्मीदों के साथ अपने दिल को समझाने की नाकाम कोशिश की.

यह एक कड़वी हकीकत है कि जिंदगी कई बार इंसान के साथ बहुत सख्ती से पेश आती है. बेबसी तब तूफान की तरह और भी बढ़ जाती है, जब उसे संभालने की सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं. इस दर्द को वह शख्स बखूबी महसूस कर सकता है, जो इस से रूबरू हुआ हो. संजय गुप्ता और उन की पत्नी भी पलपल ऐसी पीड़ा से गुजर रहे थे, जहां उन की कोशिशों को ग्रहण सा लग गया था. संजय गुप्ता रियल एस्टेट कारोबार से जुड़े थे. वह मूलरूप से उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के रहने वाले थे, लेकिन वर्षों पहले वह वहां से चले आए थे. वह अहमदाबाद में इंडियन स्पेस रिसर्च और्गेनाइजेशन (इसरो) में वैज्ञानिक थे, परंतु कई सालों पहले नौकरी छोड़ कर वह नोएडा में प्रौपर्टी का काम करने लगे थे.

बच्चों को उन्होंने शुरू से ही साथ रखा था. उन के परिवार में पत्नी राखी के अलावा 2 बच्चे थे, जिन में बड़ा बेटा जितार्थ और उस से छोटी बेटी स्मिति. दोनों ही बच्चे पढ़ने में होनहार थे. स्मिति दिल्ली के एक फैशन इंस्टीट्यूट में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी, जबकि जितार्थ मणिपाल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. संजय के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. एक साल पहले तक उन की जिंदगी बहुत खुशहाल थी. किसी की हंसतीखेलती जिंदगी में कब गमों का दरिया बहने लगे, इस बात को कोई नहीं जानता.

3 मार्च, 2013 को गुप्ता परिवार में भी ऐसा ही एक दरिया बह निकला. संजय को सूचना मिली कि उन का बेटा गोवा में एक रोड ऐक्सीडेंट का शिकार हो गया है. संजय वहां पहुंचे. जितार्थ को बे्रन हेमरेज हुआ था. लंबे उपचार के बाद वह हेमरेज से उबरा जरूर, लेकिन उस के चलनेफिरने, बोलने की शक्ति जाती रही.  जितार्थ स्थाई रूप से बिस्तर पर पड़ गया. वह कब तक ऐसा ही रहेगा, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. संजय और उन की पत्नी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. संजय बेटे को नोएडा ले आए और बेहतर से बेहतर इलाज कराया. लेकिन उस की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ.

लिहाजा डाक्टरों की सलाह पर वह उसे घर ले आए. घर के एक कमरे में उस के लिए बैड लगवा दिया गया. वह कोमा जैसी स्थिति में था. सभी दैनिक क्रियाएं वह बिस्तर पर ही करता था. बेटे को ले कर संजय भी परेशान थे और राखी भी. बेटा स्थाई रूप से बिस्तर पर पड़ गया था. उस की देखभाल जरूरी थी, इसलिए संजय ने अक्टूबर, 2014 में उस के लिए नर्सिंग का काम जानने वाले 2 अटेंडैंट रख लिए, क्योंकि 24 घंटे किसी एक अटेंडैंट को घर पर रखा नहीं जा सकता था. दोनों अटेंडैंट की ड्यूटी 12-12 घंटे की हुआ करती थी. सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक अटेंडैंट सोनू जितार्थ की देखभाल करता था तो रात 9 बजे से सुबह 9 बजे तक रहता दूसरा लड़का था. सोनू ने खुद को बदायूं का रहने वाला बताया था. नोएडा में वह मोरना में कहीं किराए पर रहता था.

संजय के पास दौलतशोहरत सब कुछ था, लेकिन बेटे के लिए वह कुछ नहीं कर पा रहे थे. बेटे को ले कर राखी अक्सर परेशान हो जाती थीं. उस दिन भी वह चित्रकारी करतेकरते बेटे के बारे में सोच कर रोने लगी थीं. संजय ने किसी तरह समझा कर उन्हें चुप कराया था. उन का परिवार जिस कोठी में रह रहा था, वह सीमा खन्ना की थी. सीमा खन्ना ग्राउंड फ्लोर पर रहती थीं, जबकि संजय का परिवार पहली मंजिल पर किराए पर रहता था.

बेटे की वजह से राखी पूरे वक्त घर पर ही रहती थीं. वह संवेदनशील महिला थीं. खाली वक्त में वह ऐसे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दिया करती थीं, जो पैसे दे कर ट्यूशन नहीं पढ़ सकते थे. ये बच्चे 3 से साढ़े 3 बजे के बीच राखी के यहां आते थे. राखी का सोचना था कि शिक्षा जीवन का प्राथमिक आधार है, इसलिए सभी को शिक्षित होना चाहिए. राखी गरीबों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती थीं. मेल नर्स सोनू के आने के बाद संजय सुबह अपने औफिस चले जाते थे. बेटी स्मिति कालेज चली जाती थी. सुबह घर में एक नौकरानी सुनीता काम करने आती थी. 12 बजे तक वह भी चली जाती थी.

इस के बाद घर में राखी गुप्ता, मेल अटेंडैंट सोनू और बेटा जितार्थ ही रह जाते थे. रोज की लगभग यही दिनचर्या थी. किसी शहर के विकास के बीच अपराध की भी अपनी एक चाल होती है. आम दिनों की भांति 6 अप्रैल, 2015 को भी सेक्टर-41 शांत था. लोगों की आवाजाही और उन के काम जारी थे. राजेंद्र प्रसाद के 2 बच्चे राखी के यहां ट्यूशन पढ़ने आते थे. लगभग 3 बजे बच्चे कोठी की पहली मंजिल पर पहुंचे तो दरवाजा खुला हुआ था. वे रोज आते थे, इसलिए उन्हें लगा कि राखी मैडम दरवाजा बंद करना भूल गई होंगी.

वे अंदर दाखिल हुए तो वहां का नजारा देख कर बुरी तरह डर गए. वे उलटे पांव सीधे अपने घर पहुंचे और उन्होंने वहां जो देखा था, पिता राजेंद्र प्रसाद को बताया. बच्चों की बात से वह हैरान रह गए. राजेंद्र तुरंत संजय के घर पहुंचे और पूरी बात मकान मालकिन सीमा खन्ना और आसपास के लोगों को बताई. आपस में विचारविमर्श कर के कुछ लोग हिम्मत कर के पहली मंजिल पर पहुंचे तो वहां की हालत देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. 45 वर्षीया राखी गुप्ता खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थीं. उन के आसपास खून ही खून फैला था. किसी ने उन की नब्ज टटोली तो वह थम चुकी थी. उन का बीमार बेटा जितार्थ भी नीचे पड़ा था. लेकिन वह ठीक था.

सीमा खन्ना ने तुरंत इस मामले की खबर संजय गुप्ता को दी तो वह कुछ ही देर में घर आ गए. राखी की मौत हो चुकी थी. किसी ने उन की गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों पर नुकीली चीज से प्रहार किए थे. जितार्थ चूंकि बिस्तर से गिर गया था, इसलिए वह दर्द से छटपटा रहा था. उस के सिर में चोट लगी थी. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. इस बीच पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी गई थी. सूचना पा कर कोतवाली सेक्टर-39 के थानाप्रभारी धर्मेंद्र चौहान तुरंत पुलिस बल के साथ मौके पर आ पहुंचे. मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने इस की सूचना अपने आला अधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह और एएसपी विजय ढुल भी मौके पर आ पहुंचे थे.

पुलिस ने मौकामुआयना किया तो हत्या की वजह समझ में नहीं आई. लेकिन यह जरूर लगा कि कातिल का मकसद सिर्फ राखी की हत्या करना नहीं था. क्योंकि थोड़ी नकदी और राखी का मोबाइल गायब था लेकिन घर में रखे अन्य लाखों रुपए बच गए थे. हालांकि जिस लौकर में नकदी रखी थी, उसे तोड़ने की कोशिश जरूर की गई थी. राखी पर किसी नुकीली चीज से प्रहार किए गए थे, लेकिन हत्या में प्रयुक्त वह नुकीली चीज मौके से बरामद नहीं हुई थी. पुलिस ने डौग स्क्वायड और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम को मौके पर बुलवा लिया था. चौंकाने वाली बात यह थी कि मेल अटेंडैंट सोनू लापता था, जबकि उस समय उसे ड्यूटी पर होना चाहिए था.

पुलिस ने निरीक्षण के बाद पूछताछ शुरू की, ‘‘सब से पहले इस घटना की जानकारी किसे हुई?’’

‘‘मुझे साहब.’’ राजेंद्र प्रसाद ने आगे बढ़ कर कहा.

‘‘कैसे?’’ पुलिस ने पूछा तो जवाब में राजेंद्र प्रसाद ने अपने बच्चों के वहां ट्यूशन पढ़ने आने की बात बता दी.

पुलिस ने संजय गुप्ता से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्होंने किसी से भी अपनी दुश्मनी होने से इनकार कर दिया. जितार्थ घटना का चश्मदीद तो था, लेकिन वह कुछ भी बताने लायक नहीं था. हैरानी की बात यह थी कि पड़ोस में भी किसी को घटना के बारे में कुछ पता नहीं चला था. वैसे भी आजकल शहरी जीवनशैली में लोगों की दुनिया अपने तक ही सिमट गई है. संजय गुप्ता के सेक्टर-2 स्थित अपने औफिस चले जाने के बाद घर में कुल 3 लोग ही रह जाते थे. एक राखी गुप्ता, दूसरा उन का 22 वर्षीया बेटा जितार्थ और तीसरा 25 वर्षीय अटेंडैंट सोनू. मकान के जिस हिस्से में संजय गुप्ता का परिवार रहता था, उस में मुख्य दरवाजे पर जाली वाला दरवाजा भी लगा हुआ था.

जाहिर है, अंजान आदमी के लिए दरवाजा नहीं खोला जा सकता था. पुलिस ने सोनू के मोबाइल पर फोन किया तो वह बंद था. इस से उस पर शक हुआ. जबकि संजय यह मानने को तैयार नहीं थे कि सोनू इस तरह हत्या कर सकता है. हत्या के बाद जिस तरह वह गायब था, उसी से संदेह हो रहा था. मकान मालकिन सीमा खन्ना ने पुलिस को बताया कि उन्होंने सोनू को चुपचाप जाते देखा था. उस की तलाश में एक पुलिस टीम मोरना भेजी गई तो उस के मकान मालिक ने बताया कि 1 अप्रैल को वह उन का घर छोड़ कर चला गया था. सवाल यह था कि अगर सोनू ने राखी की हत्या की थी तो इस की वजह क्या थी?

इस बीच पुलिस ने राखी गुप्ता के शव का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और संजय गुप्ता की तहरीर पर सोनू के खिलाफ राखी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. दिनदहाड़े हुई हत्या की इस घटना से समूचे इलाके में हड़कंप मच गया था. लोग पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाने लगे थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में राखी के शरीर पर नुकीली चीज के 8 घाव पाए गए थे. ये घाव उन के गले, हाथ और कंधे पर थे. ये संभवत: किसी सर्जिकल चीज के थे. मैडिकल ट्रीटमेंट के कुछ सामान जितार्थ के कमरे में रहते थे. हाथों पर घाव पाए जाने से एक बात साफ थी कि राखी ने मरने से पहले संघर्ष किया था. दूसरी ओर गिरने की वजह से जितार्थ के सिर में चोट आई थी. डाक्टरों ने उस का सीटी स्कैन कराया. वह नौर्मल था.

पुलिस का सोनू तक पहुंचना जरूरी था. हैरानी की बात यह थी कि सोनू का कोई स्थाई पता या फोटो गुप्ता परिवार के पास नहीं था. संजय ने पुलिस को बताया कि सोनू का फोटो राखी के मोबाइल में था, जबकि उन के मोबाइल को वह साथ ले गया था. घटना क्यों और कैसे घटी, सोनू ही इस से परदा उठा सकता था. एसएसपी ने एएसपी विजय ढुल के निर्देशन में मामले के खुलासे के लिए 3 पुलिस टीमों को गठन किया. पुलिस ने सोनू के मोबाइल की काल डिटेल्स व लोकेशन निकलवाई. उस की आखिरी लोकेशन सेक्टर-39 की मिली थी. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था.

पुलिस ने सोनू के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटानी शुरू की. पता चला कि संजय ने सोनू को अपने यहां इस के पहले काम करने वाले राजकुमार के माध्यम से नौकरी पर रखा था. पुलिस राजकुमार तक पहुंच गई. राजकुमार से पता चला कि सोनू पहले नोएडा के सेक्टर-40 स्थित एक अस्पताल में 2 साल और एक डाक्टर दंपत्ति के घर करीब एक साल तक काम कर चुका था. उसी बीच उस की उस से मुलाकात हुई थी. इस से ज्यादा उस के बारे में वह भी कुछ नहीं जानता था.

पुलिस ने उस की बताई दोनों जगहों पर जा कर पूछताछ की तो पता चला कि सोनू झगड़ालू स्वभाव का था. एक बार उस ने एक नर्स को जान से मारने की धमकी भी दी थी. हैरानी की बात यह थी कि दोनों ही जगहों पर सोनू का फोटो और पता नहीं मिल सका. इन सभी जगहों पर उसे सोनू शेख या सोनू राघव के नाम से जाना जाता था. यही उस का असली नाम था, यह भी किसी को पता नहीं था. घटना को घटे 2 दिन बीत गए, लेकिन संदिग्ध हत्यारे का कोई सुराग नहीं लग सका. पुलिस ने सोनू के फोटो की तलाश के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का भी सहारा लिया. जिस मोबाइल नंबर का इस्तेमाल सोनू करता था, वह फर्जी आईडी पर लिया गया था. इस से उस का पता मिलने की संभावना भी खत्म हो चुकी थी.

सोनू की जो काल डिटेल्स मिली थी, उस में एक नंबर पर उस की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. पुलिस ने उस नंबर पर बात की तो वह नंबर कर्नाटक की एक युवती रीतू (परिवर्तित नाम) का था. उस युवती ने बताया कि 2 महीने पहले मिसकाल के जरिए सोनू उस के संपर्क में आया था, तभी से उस से बातें होने लगी थीं. उस के बारे में वह ज्यादा कुछ नहीं जानती. युवती को उस ने अपना नाम सोनू शर्मा बताया था. इलेक्ट्रौनिक सर्विलांस से पुलिस को पता चला कि सोनू ने अपने मोबाइल में नए नंबर का सिम डाल लिया है. उस नंबर की लोकेशन के अनुसार, सोनू नोएडा से दिल्ली होते हुए पश्चिमी बंगाल चला गया था. उस की लोकेशन पुलिस को वहां के मुर्शिदाबाद जिले की मिल रही थी.

उस नंबर से उस ने दिल्ली के एक नंबर पर बात की थी. पुलिस उस नंबर तक पहुंची तो वह नंबर उस की मौसी का निकला. उस से पता चला कि सोनू की मां दिल्ली में ही रहती थी, लेकिन उस ने दूसरा विवाह कर लिया था, इसलिए उस का अपने परिवार से अब कोई ताल्लुक नहीं था. वह लोगों के घरों में साफसफाई का काम करती थी. उस से पुलिस को सोनू के घर का पता मिल गया. वह पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद का रहने वाला था. डीआईजी रमित शर्मा पूरे मामले पर नजर रखे हुए थे. एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह से उन्होंने केस की प्रगति की पूरी जानकारी ली और एक पुलिस टीम पश्चिम बंगाल रवाना करने के आदेश दिए.

एसएसपी ने थानाप्रभारी धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में 9 अप्रैल को एक पुलिस टीम वहां के लिए रवाना कर दी. इस पुलिस टीम में सबइंसपेक्टर पतनीश यादव, आलोक सिंह और कांस्टेबल अशोक यादव आदि शामिल थे. अगले दिन पुलिस मुर्शिदाबाद स्थित सोनू के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और अपने साथ नोएडा ले आई. पुलिस के लिए यकीनन यह बड़ी सफलता थी. नोएडा ला कर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो राखी की हत्या की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

सोनू मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद निवासी जिल्ले का बेटा था. जिल्ले मेहनतमजदूरी किया करता था. कई सालों पहले सोनू नौकरी की तलाश में दिल्ली चला आया. कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद वह नोएडा आ गया और छोटेमोटे काम करने लगा. इस के बाद वह एक अस्पताल में वार्डबौय का काम करने लगा. समय के साथ वह काम सीख गया. कुछ अस्पतालों में नौकरी करने के बाद उस ने एक डाक्टर दंपत्ति के यहां भी नौकरी की. सोनू शातिर दिमाग युवक था. वह मुसलमान था, लेकिन किसी को वह अपना नाम सोनू शर्मा तो किसी को सोनू शेख तो किसी को सोनू राघव बताता था.

अपना असली नामपता वह किसी को नहीं बताता था. इस के पीछे वजह यह थी कि वह रातोरात अमीर बनने के सपने देखा करता था और किसी अच्छे मौके की तलाश में था. वह नोएडा में ही किराए का कमरा ले कर रहता था. सन 2015 में गुप्ता परिवार को जितार्थ के लिए मेल अटेंडैंट की जरूरत पड़ी तो राजकुमार ने सोनू के बारे में बताया. उन्होंने बेटे की देखभाल के लिए सोनू से बात की तो वह तैयार हो गया. इस के बाद वह उन के घर आने लगा. गुप्ता परिवार सोनू को परिवार के सदस्य की तरह मानता था. उसे 9 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन पर रखा गया था, लेकिन 2 महीने में ही संजय ने उस की तनख्वाह बढ़ा कर 11 हजार रुपए कर दी थी.

सोनू होशियार तो था ही. वह जानता था कि सब से पहले हर किसी का विश्वास जीतना चाहिए. इसलिए उस ने बातों और काम से पूरे परिवार का विश्वास जीत लिया. वह ड्यूटी के समय जितार्थ के पास ही रहता था. इस बीच या तो टीवी वह देखता था या राखी से बातें कर लिया करता था. शुरू में तो सोनू मन लगा कर काम करता रहा. लेकिन झूठ और दिखावे की चमक बहुत लंबे समय तक बरकरार नहीं रहती. समय के साथ राखी की समझ में आने लगा कि वह दिखावा ज्यादा करता है, काम कम. संजय सोनू को 11 हजार रुपए अपने बेटे की पूरी तरह से देखभाल के लिए दे रहे थे. धीरेधीरे सोनू देखभाल में लापरवाही करने लगा. इस की भी एक वजह थी. दरअसल सोनू इस काम से परेशान हो गया था. वह अमीर बनने के सपने देखता था, लेकिन सपने पूरे होने की उसे कोई राह नहीं दिख रही थी.

3 महीने पहले सोनू का संपर्क मोबाइल के जरिए गलत नंबर लग जाने से कोलकाता की रहने वाली रीतू से हो गया, जो कर्नाटक में रहती थी. वह उस से बातें करने लगा. वह उस से आधाआधा घंटे मोबाइल पर बातें करता रहता. राखी को उस की यह लापरवाही बहुत अखरती थी. शुरूशुरू में तो उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन धीरेधीरे उन्होंने सोनू को टोकना शुरू कर दिया. उस का किसी ने पुलिस वेरीफिकेशन नहीं कराया था. संजय गुप्ता ने भी यही गलती की. इस बात से सोनू खुश था.

सोनू की लापरवाही से बेटे की जान भी जा सकती थी. एक दिन राखी ने लापरवाही पर सोनू को न सिर्फ जम कर फटकरा, बल्कि उसे थप्पड़ भी मार दिया. सोनू ने आगे से लापरवाही न करने का वादा किया. वह कभी धोखा दे कर भाग न जाए, इस के लिए राखी ने अपने मोबाइल में उस का फोटो खींच लिया. कुछ समय बाद राखी ने महसूस किया कि सोनू लापरवाही के मामले में बदला नहीं है. जब देखो तब वह मोबाइल पर बातें करने में लगा रहता है. जितार्थ को प्रतिदिन दवाइयां व इंजेक्शन देने होते थे. सोनू इस में भी लापरवाही करने लगा था. सोनू की इस लापरवाही पर राखी उसे खरीखोटी सुना कर थप्पड़ जड़ दिया करती थीं. इस पर सोनू खून का घूंट पी कर रह जाता था.

वक्त के साथ सोनू को राखी का डांटना अखरने लगा. थप्पड़ को ले कर उस के मन में नफरत पैदा होने लगी. सोनू शातिर तो था ही, वह राखी को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा. मन ही मन उस ने सोच लिया कि एक दिन वह राखी के घर को लूट लेगा. इस से उस के थप्पड़ का बदला भी पूरा हो जाएगा और वह मालामाल भी हो जाएगा. सोनू को इस बात का डर नहीं था कि वह पकड़ा जाएगा, क्योंकि उस का रिकौर्ड किसी के पास नहीं था. उस ने अपने मन के गुस्से को जाहिर नहीं होने दिया और आराम से रहता रहा. सोनू का जितार्थ की देखभाल से मन उचट गया था.

वह काम में लापरवाही करने के साथ ही रीतू से मोबाइल पर बातें भी किया करता था. इस पर राखी की सोनू से अकसर नोंकझोंक हो जाया करती थी. सोनू ने लूटने की योजना मन ही मन बना ली थी. इसलिए 1 अप्रैल को उस ने किराए का मकान भी खाली कर दिया. इस के बाद वह उचित मौके की तलाश में रहने लगा. 6 अप्रैल को भी सोनू ने लापरवाही की और मोबाइल पर बातें करने के चक्कर में जितार्थ के गले में कफ निकालने के लिए लगने वाली नली ठीक से नहीं लगाई. इसी बीच राखी कमरे में आ गईं. यह देख कर वह भड़क गईं, ‘‘तुम से कोई भी काम ठीक से नहीं किया जाता?’’

‘‘सौरी मैडम वह…’’ सोनू अपनी बात कह पाता, उस से पहले ही राखी ने उस के गाल पर तमाचा रसीद कर दिया. सोनू पहले ही खार खाए बैठा था. उस दिन वह आगबबूला हो उठा. उस का खून खौल गया. उस ने गालियां देते हुए राखी का हाथ झटक दिया, ‘‘तुम्हारे हाथ बहुत चलते हैं, आज मैं सब से पहले इन का चलना बंद किए देता हूं.’’

कह कर सोनू ने जितार्थ की दवाइयों की ट्रे में रखा सर्जिकल चाकू उठा लिया और राखी की गर्दन पर वार कर दिया. इस अप्रत्याशित हमले से राखी तड़प उठीं. उन्होंने विरोध किया, लेकिन सोनू नौजवान था. उस ने एक के बाद एक राखी पर कई वार कर दिए. राखी नीचे गिर कर तड़पने लगीं. जितार्थ यह सब देख रहा था. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन अंदर ही अंदर घुट रहा था. मां को बचाने के लिए उस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी तो हिलने डुलने से बिस्तर से नीचे गिर गया. सोनू ने इस की परवाह नहीं की. राखी के बचने की कोई गुंजाइश न रहे, उस ने और कई वार कर दिए. राखी की मौत हो गई.

इस के बाद सोनू ने राखी का मोबाइल, घड़ी, डीवीडी व सेफ में रखे करीब 10 हजार रुपए उठा कर एक बैग में रख लिए. सोनू जानता था कि राखी के मोबाइल में उस का फोटो है, इसलिए उस ने उसे भी ले लिया था. उस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी अपने पास रख लिया. हत्या के दौरान उस की कमीज पर थोड़ा खून लग गया था. लगभग साढ़े 12 बजे वह वहां से चला गया. उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया और चालू किया तो नया सिमकार्ड उस में डाल लिया. उस रात वह अपने दोस्त के घर रुका. इस से पहले उस ने सर्जिकल चाकू और कमीज को सेक्टर-41 में एक स्थान पर छिपा दिया था.

अगले दिन वह दिल्ली पहुंचा और कालका मेल से कोलकाता होते हुए मुर्शिदाबाद स्थित अपने घर चला गया. सोनू ने सोचा था कि उस का असली नामपता चूंकि किसी के पास नहीं है, इसलिए पुलिस पश्चिम बंगाल तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. वह आराम से रह रहा था कि इसी बीच वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सनी कमीज बरामद कर ली थी. पूछताछ और जरूरी कागजी काररवाई कर के पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

गुप्ता परिवार ने सोनू की फितरत को समझने की भूल कर दी. उस का पुलिस वैरीफिकेशन न करा कर भी उन्होंने भूल की. सोनू जैसे लोगों पर विश्वास और गुस्सा दोनों ही खतरनाक साबित हुए. कथा लिखे जाने तक सोनू जेल में था. 28 मई को पुलिस ने उस के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया था. Hindi Stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

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