इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘भौकाल’ के दूसरे भाग की काफी चर्चा है. उस में यूपी के एक जांबाज आईपीएस को शातिर ईनामी अपराधियों से सामना करते दिखाया गया है. बात सितंबर 2003 की है, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता बढ़ते अपराधों को ले कर बेहद परेशान थी. मुजफ्फरनगर के माथे पर तो क्राइम के कलंक का जैसे धब्बा लग चुका था. आए दिन अपहरण, हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती की होने वाली ताबड़तोड़ वारदातों से समाजवादी पार्टी की मुलायम की सरकार पर लगातार आरोपों की बौछार हो रही थी.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विधानसभा में विपक्षी राजनीतिक दलों के सवालों के जवाब देते नहीं बन पा रहा था. कारण था शातिरों के सक्रिय कई गैंग और उन की बेखौफ आपराधिक घटनाएं. वे अपराध को अंजाम देने से जरा भी नहीं हिचकते थे.

मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग के आला अफसरों की गोपनीय बैठक बुलाई थी. उन के बीच फन उठाए अपराधों को ले कर गहन चर्चा हुई. बेकाबू अपराधों पर अंकुश लगाने के वास्ते कुछ नीतियां बनीं और कुछ जांबाज पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाई गई. उन्हीं में एक आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा का नाम भी शामिल था.

तुरंत उस निर्णय पर काररवाई की गई. अगले रोज ही आईपीएस नवनीत सिकेरा मुजफ्फरनगर के एसएसपी के पद पर तैनात कर दिए गए. तब डीआईजी मेरठ ने उन्हें पत्र सौंपते हुए कहा था, ‘इस देश में 2 राजधानियां हैं— एक दिल्ली जहां कानून बनाए जाते हैं, दूसरी मुजफ्फरनगर (क्राइम कैपिटल) जहां कानून तोड़े जाते हैं.’

यह कहने का सीधा और स्पष्ट निर्देश था कि कानून तोड़ने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए. दरअसल, 49 वर्षीय नवनीत सिकेरा उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों वह उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हैं. इस से पहले वह इंसपेक्टर जनरल थे.

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वैसे तो उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. कंप्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने के बावजूद वह पिता को आए दिन मिलने वाली धमकियों की वजह से आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए. हालांकि उन्होंने भारत में यूपीएससी की सब से बड़ी परीक्षा अच्छे रैंक के साथ पास की थी और आईएएस के लिए चुने गए थे.

सिकेरा की सूझबूझ और जांबाजी

आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग और फिर आईपीएस बने नवनीत सिकेरा ने मुजफ्फरनगर का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद इलाके में हुई मुख्य वारदातों की सूची के साथ उन के आरोपियों की डिटेल्स मंगवाई. यह देख कर उन्हें हैरानी हुई कि अधिकतर आरोपी हजारों रुपए के ईनामी भी थे.

आरोपियों ने बाकायदा गैंग बना रखे थे. पुलिस की आंखों में धूल झोंकना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. यहां तक कि वे पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूकते थे.

उन्हीं बदमाशों में शौकीन, बिट्टू और नीटू कैल की पूरे जिले में दहशत थी. छपारा थाना क्षेत्र के गांव बरला के रहने वाले शौकीन पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित था. इस के अलावा थाना भवन क्षेत्र के गांव कैल शिकारपुर निवासी बिट्टू और नीटू की आपराधिक वारदातों से भी जिले में दहशत फैली हुई थी.

शौकीन ने गांव के ही 2 लोगों की हत्या के अलावा अपहरण और हत्या की कई वारदातों को अंजाम दिया था.

सिकेरा ने कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल शातिरों की आपराधिक गतिविधियों के साथ कनेक्ट करने में लगाया. सूझबूझ से अपनाई गई डेटा एनालिसिस की तकनीक क्राइम से निपटने में काम आई.

जल्द ही शातिरों के खिलाफ रणनीति बनाने में उन्हें पहली कामयाबी मिली और उन्होंने शौकीन को एनकाउंटर में मार गिराया. उस के बाद नीटू और बिट्टू भी मारे गए. दोनों वैसे शातिर थे, जिन पर पुलिस पर ही हमला कर कारबाइन भी लूटने के आरोप थे.

उस के बाद वह सिकेरा से ‘शिकारी’ बन गए थे. यह संबोधन थाना भवन में बिट्टू कैल का एनकाउंटर करने पर तत्कालीन डीआईजी चंद्रिका राय ने दिया था. तब उन्होंने सिकेरा के बजाए नवनीत ‘शिकारी’ कह कर संबोधित किया था.

हालांकि नवनीत सिकेरा 6 सितंबर, 2003 से ले कर पहली दिसंबर, 2004 तक मुजफ्फरनगर में एसएसपी पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 55 शातिर और ईनामी बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था.

एनकांउटर में मारे गए बदमाशों में पूर्वांचल के शातिर शैलेश पाठक, बिजनौर का छोटा नवाब, रोहताश गुर्जर, मेरठ का शातिर अंजार, पुष्पेंद्र, संदीप उर्फ नीटू कैल, नरेंद्र उर्फ बिट्टू कैल आदि शामिल थे. वैसे यूपी में उन के द्वारा कुल 60 एनकाउंटर करने का रिकौर्ड है.

सब से खतरनाक एनकाउंटर

मुजफ्फरनगर के छोटेमोटे बदमाशों के दबोचे जाने के बावजूद कई खूंखार शातिर बेखौफ छुट्टा घूम रहे थे. उन में कई जमानत पर छूटे हुए थे, तो कुछ दुबके थे.

उन्हीं में शातिर रमेश कालिया का नाम भी काफी चर्चा में था. उस ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था. वह भी ईनामी बदमाश था और फरार चल रहा था.

रमेश कालिया लखनऊ का रहने वाला एक खतरनाक रैकेटियर था. उस का मुख्य धंधा उत्तर प्रदेश के कंस्ट्रक्टर और बिल्डरों से जबरन पैसा उगाही का था. साल 2002 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. तब मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव के सामने प्रदेश की कानूनव्यवस्था को सुधारना बड़ी चुनौती थी.

सरकार के लिए कालिया नाक का सवाल बना हुआ था. उस ने पूरी राजधानी को अपने शिकंजे में ले रखा था. वह गैंगस्टर बना हुआ था. उस के माफिया राज की जबरदस्त दहशत थी.

उस के गुंडे और शूटर बदमाशों द्वारा आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या और फिरौती की वारदातों से सामान्य नागरिकों में काफी दहशत थी, यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेता तक उस के नाम से खौफ खाते थे.

और तो और, सितंबर 2004 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी अजीत सिंह की हत्या का रमेश कालिया ही आरोपी था. अजीत सिंह की हत्या उन के जन्मदिन के मौके पर ही कर दी गई थी. इस कारण राज्य की चरमराई कानूनव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए थे.

तब तक नवनीत सिकेरा का नाम पुलिस महकमे में काफी लोकप्रिय हो चुका था. यह देखते हुए ही सिकेरा को उस के खात्मे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

कालिया 14 साल की उम्र से ही क्राइम की दुनिया में था. उस उम्र में उस ने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला कर दिया था, जिस कारण वह पहली बार जेल गया था. जेल से छूटने के बाद लखनऊ के कुख्यात माफिया सूरजपाल के संपर्क में आ गया था. उस के साथ काफी समय तक रहते हुए वह शातिर बदमाश बन चुका था. वह कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था.

सूरजपाल की मौत के बाद वह उस के गिरोह का सरगना भी बन गया था. इस तरह उस पर कुल 22 केस दर्ज हो गए थे, जिन में से 12 हत्याओं के अलावा 10 मामले हत्या का प्रयास करने के थे. उस पर कांग्रेसी नेता लक्ष्मी नारायण, सपा एमएलसी अजीत सिंह और चिनहट के वकील रामसेवक गुप्ता की हत्या का आरोप था.

इस लिहाज से खूंखार कालिया को शिकंजे में लेना आसान नहीं था. उन दिनों सिकेरा की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के बाद मेरठ में हो चुकी थी. वहां भी लोग आपराधिक घटनाओं से त्रस्त थे.

सिकेरा ने अपराधियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी. उन का नाम लोगों ने सुन रखा था और उन से उम्मीदें भी खूब थीं.

उन्हीं दिनों प्रौपर्टी डीलर इम्तियाज ने कालिया द्वारा जबरन वसूली की मोटी रकम की शिकायत दर्ज करवाई थी. उन्होंने इस बारे में सिकेरा से मिल कर पूरी जानकारी दी थी कि वह पैसे के लिए कैसे तंग करता रहता है.

प्रौपर्टी डीलर ने सिकेरा को जबरन वसूली संबंधी पूछताछ के सिलसिले में बताया था कि उन्होंने कालिया को 40 हजार रुपए दिए थे, जबकि उस की मांग 80 हजार रुपए की थी. कम रुपए देख कर वह गुस्से में आ गया था और उस पर पिस्तौल तान दी थी.

इम्तियाज की शिकायत पर सिकेरा ने वांटेड अपराधी को घेर कर दबोचने की योजना बनाई. उन्होंने पहले एक मजबूत टीम बनाई. टीम में जांबाज पुलिसकर्मियों को शामिल किया और सभी को पूरी प्लानिंग के साथ अच्छी ट्रेनिंग दी.

सिकेरा को 12 फरवरी, 2005 को रमेश कालिया के निलमथा में होने की खबर मिली. यह सूचना उन्होंने तुरंत अपनी टीम के खास साथियों को बुला कर एनकाउंटर का प्लान बनाया.

राजनेताओं के संरक्षण के चलते बेखौफ रमेश कालिया पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. उस ने एक बिल्डर से 5 लाख रुपए की मांग की थी. इस के लिए निलमथा इलाके में निर्माणाधीन मकान पर बुलाया था.

बारातियों की वेशभूषा में किया एनकाउंटर

उस ने चारों ओर अपने साथियों को मुस्तैद कर रखा था. उस के अड्डे तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर न आने पर सिकेरा ने पुलिस की नकली बारात की रूपरेखा तैयार की थी. बैंडबाजे के साथ बारात निलमथा में रमेश कालिया के अड्डे तक जा पहुंची.

उस के बाद सिकेरा ने कालिया को दबोचने के लिए अनोखा प्लान बनाया. उन्होंने पुलिस टीम को बारातियों की वेशभूषा में निलमथा में भेज दिया. उन्हें यह भी मालूम हुआ था कि वह बारात लूटपाट की भी वारदातें कर चुका था.

नकली बारात में एक महिला सिपाही सुमन वर्मा को दुलहन बना दिया गया. उन्हें काफी जेवर पहना दिए गए थे. चिनहट के इंसपेक्टर एस.के. प्रताप सिंह दूल्हे के गेटअप में थे.

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नाचतेगाते बारातियों ने कालिया को चारों तरफ से घेर लिया. उस ने रास्ता लेने के लिए गुस्से में पिस्तौल निकाल ली. वह अभी हवाई फायर करने वाला ही था कि बाराती बने पुलिसकर्मी ऐक्शन में आ गए.

उस का भी वही हश्र हुआ, जो इस से पहले सिकेरा के हाथों अन्य बदमाशों का हुआ था. लगभग 20 मिनट तक चले इस औपरेशन में पुलिस और कालिया गिरोह के बीच 50 से अधिक गोलियां चली थीं. इस गोलीबारी में पुलिस ने रमेश कालिया को ढेर कर दिया था.

पुलिस महकमे में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कालिया एनकाउंटर में मारा गया. यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई. इसी के साथ आईपीएस सिकेरा के नाम एक और शाबाशी का तमगा जुड़ गया. तब तक वे 60 एनकाउंटर कर चुके थे.

सिकेरा की 10 महीने की कप्तानी में इतने एनकाउंटर एक रिकौर्ड है. शिकायतों पर काररवाई करा कर उन्होंने नागरिकों का ऐसा विश्वास जीता कि शहर से ले कर गांव तक उन का खुद का नेटवर्क बन गया था.

कालिया की मौत के बाद लोगों ने काफी राहत महसूस की.

सिकेरा का जब वहां से ट्रांसफर किया गया, तो लोगों को काफी सदमा लगा. वे नहीं चाहते थे कि सिकेरा कहीं और जाएं. उन की लोकप्रियता का यह आलम था कि शहर में उन्हें वापस बुलाने के लिए जगहजगह पोस्टर लगा दिए.

इस सफलता के बाद आईपीएस नवनीत सिकेरा को सन 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला था. मुजफ्फरनगर और लखनऊ के अलावा सिकेरा ने वाराणसी में भी एसएसपी के पद कार्य किया. उस के बाद सिकेरा ने जनपद मेरठ के एसएसपी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया था.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वह एसएसपी के पद पर तैनात रहे थे. उन की पोस्टिंग जहां भी हुई, वहां अपराधियों में खौफ बना रहा. उन का सन 2012 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन हो गया था. उस के अगले साल 2013 में उन्हें  मेधावी सेवा हेतु राष्ट्रपति के पुलिस पदक से नवाजा गया था.

उन्होंने 2 साल तक डीआईजी रह कर कार्य किया. फिर साल 2014 में वह आईजी बना दिए गए. सन 2015 में डीजीपी द्वारा उन्हें रजत पदक दिया गया. उस के बाद 2018 में डीजीपी द्वारा ही स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

सुपरकौप बन कर उभरे सिकेरा

‘सुपर कौप’ बन कर उभरे आईपीएस नवनीत सिकेरा के उस दौर में हुए बदमाशों के खात्मे की कहानी को वेब सीरीज ‘भौकाल’ में दिखाया जा चुका है.

इस में नवनीत सिकेरा के किरदार का नाम नवीन सिकेरा है, कुछ अन्य किरदारों के नाम भी बदल दिए गए हैं. यह सीरीज नवनीत सिकेरा के उस समय के कार्यकाल पर आधारित है, जब वह यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर एसएसपी तैनात हुए. उन की शादी डा. पूजा ठाकुर सिकेरा से हुई, जिन से एक बेटा दिव्यांश और एक बेटी आर्या है.

अपराधियों को नाकों चना चबाने पर मजबूर करने वाले नवनीत सिकेरा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाया और वीमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत की.

इसे कारगर बनाने के लिए काउंसलिंग और सोशल साइटों का भी इस्तेमाल किया. इस से लड़कियों को काफी हिम्मत मिली. जिस की कमान बतौर आईजी के पद पर रहते हुए सिकेरा ने खुद संभाल रखी थी.

वीमेन पावर लाइन-1090 शुरू होते ही पूरे प्रदेश में मशहूर हो गई. शहरों के अलावा गांव से भी महिलाओं द्वारा 1090 पर काल कर मदद मांगी जाने लगी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार वीमन पावर लाइन में हर साल तकरीबन 2 लाख शिकायतें दर्ज होती हैं, जिस के निस्तारण के लिए एक टीम लगाई गई है. सिकेरा वीमेन पावर लाइन को अपने जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

सिकेरा की सफलता के पीछे लंबा संघर्ष

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से आने वाले नवनीत सिकेरा को लंबे संषर्घ का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दरम्यान कई बार उपेक्षा और तिरस्कार से जूझना पड़ा.

शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के आगे तिलमिलाए, झल्लाहट हुई, किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते वह सब हासिल कर लिया, जिस की उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. एटा जिले में किसान मनोहर सिंह के घर जन्म लेने वाले नवनीत सिकेरा ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई उसी जिले के एक सरकारी स्कूल से की थी. उन का घर छोटे से गांव में था. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण अंगरेजी भाषा पर उन की अच्छी पकड़ नहीं थी.

12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह दिल्ली हंसराज कालेज में बी.एससी में प्रवेश के लिए गए. अंगरेजी पर अच्छी पकड़ नहीं आने के कारण कालेज के क्लर्क ने एडमिशन फार्म तक नहीं दिया. फार्म नहीं मिलने पर सिकेरा दुखी हो गए, किंतु हार नहीं मानी.

खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई करने लगे. पहले अंगरेजी ठीक की. बाद में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहली बार में आईआईटी जैसी परीक्षा पास कर ली.

उन का नामांकन आईआईटी रुड़की में हो गया. वहां से उन्होंने कंप्यूटर सांइस ऐंड इंजीनियरिंग से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अपना लक्ष्य एक अच्छा सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने का बनाया. लगातार वह अपने लक्ष्य पर निशाना साधे रहे.

बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आईआईटी में एमटेक में दाखिला ले लिया. एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने पाया कि उन के पिता मनोहर सिंह के पास कुछ धमकी भरे फोन आते थे, जिस से वह बहुत परेशान हो जाते थे. उस के बाद जो वाकया हुआ, उस ने सिकेरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी.

अपमान ने जगा दिया जज्बा

दरअसल, गांव में उन के पिता ने अपनी जमापूंजी से कुछ जमीन खरीदी थी. जिस पर असामाजिक तत्त्वों ने कब्जा कर लिया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गांव लौटे नवनीत पिता को ले कर थाना गए थे, लेकिन वहां पुलिस अधिकारी ने उन की कोई मदद नहीं की. उल्टे उन्हें ही बुराभला सुना दिया.

जब पिता ने बेटे का परिचय एक इंजीनियर के रूप में देते हुए कहा कि उन का बेटा पढ़ालिखा है, तब पुलिस वाले ने एक और ताना मारा, ‘ऐसे इंजीनियर यूं ही बेगार फिरते हैं.’

इस घटना ने सिकेरा को अंदर से झकझोर कर रख दिया. उन्होंने एमटेक करने का विचार छोड़ दिया और देश की सब से प्रतिष्ठित सेवा यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.

शानदार रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, उन्हें आईएएस के अच्छे रैंक के साथ प्रशासनिक पदाधिकारी की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने सबडिवीजनल औफिसर और कलेक्टर बनने के बजाय आईपीएस बनना पसंद किया.

उन की हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग हुई और वे 1996 बैच के आईपीएस अफसर बन गए.

उस के बाद उन की पहली पोस्टिंग बतौर आईपीएस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एएसपी के पद पर मिली.

कुछ समय में उन का तबादला मेरठ हो गया. उस के बाद वे कुछ समय तक जनपद मुरादाबाद में एसपी रेलवे के पद पर रहे. वहां उन की तैनाती टैक्निकल सर्विसेज एसपी के पद पर की गई थी.

सन 2001 में आईपीएस नवनीत सिकेरा को जीपीएस-जीआईएस आधारित आटोमैटिक वेहिकल लोकेशन सिस्टम विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था.

नवनीत सिकेरा के फेसबुक पेज उन के कारनामों से भरे पड़े हैं. अधिकतर पोस्ट उन्होंने खुद लिखे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि कैसे यूपी में पुलिस का चेहरा बदला और क्राइम को कंट्रोल में लाने में सफलता मिली.

आईपीएस नवनीत सिकेरा की एक विशेष खूबी यह रही कि उन्होंने तकनीक को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. पुलिस को सर्विलांस की नई टैक्नोलौजी से परिचित करवाया.

उन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यूपी पुलिस को एक ऐसा तकनीकी मुखबिर देने का काम किया था, जब पुलिस विभाग में कंप्यूटरीकरण का नामोनिशान नहीं था.

वह  पुलिस के लिए सर्विलांस जैसा मुखबिर ले कर आए और इस का प्रयोग करते हुए मुजफ्फरनगर में बदमाशों के खौफ के गढ़ को ढहाने का काम किया.

एनकाउंटर के दौरान उन्होंने बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर से खूंखार बदमाशों को न केवल रौंद डाला, बल्कि छिटपुट बदमाशों को दुबकने पर मजबूर कर दिया.

ऐसा उन्होंने फौरेस्ट कांबिंग के लिए किया था. बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर पर वह एके-47 ले कर खुद सवार होते थे और जंगलों में छिपे बदमाशों को उन के अंजाम तक पहुंचा देते थे.

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