लेखक : सिद्धार्थ मिश्रा
निर्देशक : भाव धूलिया
निर्माता : अजय जी राय
कलाकार: साकिब सलीम, अहाना कुमरा, तिग्मांशु धूलिया, रवि किशन, रणवीर शौरी, भारत चावला और सौरभ गोय.
रंगबाज 1990 के दशक की गोरखपुर की देहाती पृष्ठभूमि पर आधारित एक भारतीय वेब सीरीज है. इसे 22 दिसंबर, 2018 को जी-5 ओरिजनल के रूप में रिलीज किया गया था.
रंगबाज गोरखपुर के नौजवान शिव प्रकाश शुक्ला (साकिब सलीम) की कहानी है. शिव प्रकाश शुक्ला की बहन को एक मवाली सरेआम बाजार में छेड़ता है और यह बात जब उसे पता चलती है तो गुस्से से बेकाबू हो कर देसी कट्टा ले कर उस मवाली के पास पहुंच जाता है, लेकिन वहां गलती से गोली चल जाती है और शिव प्रकाश शुक्ला से उस मवाली का कत्ल हो जाता है. उस के बाद एक नेता शिव प्रकाश शुक्ला को बचाता है और फिर वह उस नेता के लिए काम करने लग जाता है.
इस तरह उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी को इस वेब सीरीज में उकेरा गया है. सीरीज में कुल मिला कर 9 एपिसोड हैं, जिस में 9 कहानियों को अलगअलग दिखाया गया है. रंगबाज वेब सीरीज की स्पीड कहींकहीं पर थोड़ी स्लो दिखाई पड़ती है.
रंगबाज के पहले एपिसोड की कहानी का नाम ‘गैंगस्टर का मोबाइल फोन’ है. इस पहले एपिसोड की शुरुआत एक गाड़ी से होती है, जिस में कुछ गुंडे बैठे हुए होते हैं. वे सब गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला की प्रेमिका के घर पहुंच जाते हैं. शिव प्रकाश का दोस्त प्रेमिका को शिव प्रकाश शुक्ला का दिया हुआ गिफ्ट दे देता है.
उस के बाद प्रेमी और प्रेमिका के बीच मोबाइल से बातचीत होती है. उसी दौरान गैंगस्टर के फोन पर कुछ आवाजें आती हैं. वह प्रेमिका से कहता है, ”लगता है कुछ गड़बड़ है.’’
तभी पुलिस की गाडिय़ों के सायरनों की आवाज जोरजोर से सुनाई पड़ती है. इस वेब सीरीज में भी गंदीगंदी गालियों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो डायरेक्टर की फूहड़ मानसिकता को दर्शाता है.
पुलिस गैंगस्टर के ऊपर फायरिंग शुरू कर देती है तो गैंगस्टर खुद गाड़ी के आगे से अपनी स्वचालित एके-47 से पुलिस के ऊपर फायर झोंक देता है. तभी गैंगस्टर मंत्रीजी को फोन करता है और वह मंत्रीजी को धमकाते हुए कहता है, ”पुलिस मेरे पीछे लगी हुई है, अब तो लगता है कि मुझे पुलिस को यह बताना ही पड़ेगा कि गुडग़ांव वाले एमएलए का मर्डर आप ने करवाया था.’’
वह मंत्री को धमकी देते हुए कहता है, ”व्यवस्था कीजिए वरना कर देंगे हम तुम्हें फेमस.’’
पुलिस और गैंगस्टर के बीच में अब आंखमिचौली का खेल चलने लगता है और पुलिस का सिपाही गैंगस्टर को निकलने का इशारा कर देता है और गैंगस्टर शिव प्रकाश की गाड़ी आसानी से निकल जाती है.
अगले सीन में कहानी एक बार फिर फ्लैशबैक में चली जाती है. यहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के परिवार को दिखाया गया है.
शिव प्रकाश कैसे आया अपराध की दुनिया में
शिव प्रकाश की बहन बाजार से जा रही होती है, तभी एक शोहदा उस के कंधे पर हाथ रख कर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर देता है, जिस की खबर सारी जगह से फैलतेफैलते उन के घर तक पहुंच जाती है.
शिव प्रकाश के मातापिता अपनी बेटी की इस बदनामी से शर्मसार हो जाते हैं. जब यह बात शिव प्रकाश शुक्ला को पता चलती है तो वह अपनी बहन से बात करता है और बहन से शोहदे के बारे में पूछताछ करता है. गैंगस्टर के पिता उसे समझाते हैं कि वह गुस्सा न करे, वह पुलिस में जा कर शिकायत लिखा देंगे.
मगर शिव प्रकाश शुक्ला यह सब बरदाश्त नहीं कर पाता और उस शोहदे के पास पहुंच जाता है और फिर दोनों में गुत्थमगुत्था होने लगती है. तभी गुस्से से गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला से गोली चल जाती है और शोहदे की गोली लगने से मौत हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला उस के बाद घबरा जाता है और अपनी बाइक से घर लौट आता है.
शिव प्रकाश शुक्ला के पिता उस की पिटाई करने लगते हैं कि उस ने उस युवक को जान से क्यों मार दी. अब आगे उस का भविष्य क्या होगा?
शिव प्रकाश शुक्ला रोते हुए पिता को बताता है कि पापा गोली गलती से चल गई. मुझे माफ कर दो पापा, मुझे बचा लो पापा. उस के पिता कहते हैं कि चौबेजी का बेटा वकालत करता है. वह कह रहा था कि आज सरेंडर कर दे.
तभी शिव प्रकाश शुक्ला के घर पर मंत्रीजी की गाडिय़ों का काफिला आ जाता है. मंत्री शिव प्रकाश शुक्ला के पिता से कहता है, ”आप ने तो हमें पराया ही बना दिया. बाहर वालों से कांड का पता चला हमें.’’
उस के बाद मंत्रीजी शिव प्रकाश शुक्ला से कहते हैं कि तुम ने जो कुछ किया ठीक किया. घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ हूं. और फिर मंत्रीजी के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला को वहां से ले जाते हैं. बाद में वह शुक्ला को बैंकाक में पहुंचा देते हैं.
एपिसोड में उस के बाद फिर पुराना सीन आ जाता है, जिस में पुलिस टीम गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर ट्रैक करती दिखाई देती है.
इस कहानी को एक बड़े लेवल पर दिखाया जा सकता था, लेकिन यहां पर इसे काफी साधारण तरीके से प्रस्तुत किया गया है. इसलिए इस में मनोरंजन की डोज दर्शक को नहीं मिल पाई है.
इस एपिसोड में कई बार यहां तक कि बारबार कई सीनों को एकदम से रोक कर दूसरा सीन चालू हो जाता है. कुछ समय तक तो कोई भी इसे बरदाश्त कर सकता है, लेकिन जब बारबार यही क्रम दोहराया जाता है तो एक समय ऐसा आ जाता है कि दर्शक बोरियत सी महसूस करने लग जाता है. गैंगस्टर के तौर पर साकिब सलीम और पौलिटीशियन के तौर पर तिग्मांशु धूलिया का काम भी कोई खास नहीं है.
रवि किशन और अहाना कुमरा का काम इस में काफी साधारण सा दिखाई देता है, क्योंकि उन के लिए इस में करने के लिए कुछ विशेष था ही नहीं. कहानी में भी इस में कुछ विशेष दम नहीं है. यूपी का रंगबाज क्या होता है, ये समझने के लिए साकिब सलीम को कुछ दिन यूपी के गोरखपुर, इलाहाबाद या लखनऊ में गुजारने चाहिए थे.
इस सीरीज के दूसरे एपिसोड का नामकरण ‘जवान होना’ के नाम से किया गया है. इस दूसरे एपिसोड में डीएसपी चौबे शिव प्रकाश शुक्ला के पिता प्रमोद शुक्ला की हिम्मत बढ़ाते हुए दिखता है. इस सीन में कानून की धज्जियां उड़ती दिखती हैं. बाद में पता चलता है कि मंत्रीजी ने ही डीएसपी चौबे को शुक्ला के घर भेजा था.
उधर बैंकाक में बैठे शिव प्रकाश शुक्ला को अपने घर वालों और प्रेमिका की चिंता होती है. वह एक दिन अपने घर फोन करने की कोशिश करता है, लेकिन उस का साथी उसे फोन करने से रोक लेता है. तब उस का साथी उसे एक क्लब में ले जाता है, जहां तमाम खूबसूरत लड़कियां उसे रिझाने में लग जाती हैं. शिव प्रकाश वहां कोई भी एंजौय नहीं करता क्योंकि उसे तो अपनी प्रेमिका की याद आती है.
मंत्रीजी ने क्यों दिया शिव प्रकाश को संरक्षण
अगला दृश्य मंत्रीजी शिवप्रकाश के पिता को फोन कर के समझाते हैं कि वह बेटे की चिंता न करें, सही समय पर वह आ जाएगा.
दूसरे सीन में शिव प्रकाश का साथी उसे बैंकाक में एक मर्डर करने को कहता है और उसे एक पिस्टल देते हुए कहता है कि ये आदमी जो सामने लाल कमीज में बैठा है, तुम्हें इसे मारना है. यह मंत्रीजी का पैसा ले कर भागा है. गोरखपुरिया है. यह मंत्रीजी का हुक्म है.
शिव प्रकाश उस का पीछा करते हुए गोली चलाता है, मगर गोली नहीं चलती और गोरखपुरिया और उस का साथी शिव प्रकाश को पीटने लगते हैं. तभी वहां पर शिव प्रकाश का साथी आ कर उन्हें कहता है बस करो. शिव प्रकाश से उस का साथी कहता है, चलो तुम इस परीक्षा में अब पास हो गए हो. चलो, अब वापस चलो. तुम्हारा गोरखपुर लौटने का समय हो गया है. उस के बाद उस क ा साथी प्लेन में बिठा कर हिंदुस्तान ले आता है.
शिव प्रकाश प्लेन से उतर कर टैक्सी में अपने साथी के साथ बैठ जाता है और वह अपने साथी से पूछता है हम कहां जा रहे हैं? उस का साथी कहता है, गुरुजी तुम से मिलना चाहते हैं और उसे मंत्रीजी पास ले कर आ जाता है.
मंत्रीजी शिवप्रकाश से कहते हैं, आजादी मुबारक हो, अब बड़ा काम करने का वक्त आ गया है. फिर मंत्रीजी उसे अपने एक पुराने दुश्मन विधायक को मारने का आदेश देते हैं. उस के बाद दूसरा एपिसोड समाप्त हो जाता है.
दूसरे एपिसोड में भी सभी कलाकारों का काम औसत दरजे का रहा है. एक एसपी रैंक के अधिकारी का गैंगस्टर के पिता के घर पर जाना और उन्हें संरक्षण देना, भारतीय समाज पर नेताओं और प्रशासन की भूमिका को दर्शाता है कि आज नेता तो भ्रष्ट हैं ही, पुलिस प्रशासन भी अब नेताओं की जूती बन कर रह गया है.
रंगबाज सीजन वन के तीसरे एपिसोड की कहानी भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा पर आधारित है. एपिसोड की शुरुआत में 1974 में गोरखपुर विश्वविद्यालय को दिखाया गया है, जहां पर कुछ गुंडे विश्वविद्यालय की एक कक्षा में घुस कर मारपीट करने लगते हैं.
मारमीट करने से पहले वे सब लड़कियों को क्लास से बाहर जाने को कहते हैं और पढ़ाने वाले प्रोफेसर को भी वहां से बाहर निकाल देते हैं. गुंडों को फिर शिव प्रकाश और उस के साथी पीट देते हैं. उस के बाद वेब सीरीज की कास्टिंग शुरू हो जाती है.
पहले दृश्य में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडेय (रणवीर शौरी) के पास एक विशेष मुखबिर आ कर बताता है कि शिवप्रकाश का दिल्ली से गोरखपुर जाने का प्लान है. पुलिस अधिकारी फिर अपने मातहतों को कुछ आदेश देता है. तभी दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाई देता है.
अहाना कुमरा, शिव प्रकाश को उस के मातापिता की याद दिलाती है तो गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला सीधे अपने घर पहुंच जाता है. शिव प्रकाश की बहन और मां उस से खुशी से लिपट जाते हैं.
अगले दृश्य दृश्य में शिव प्रकाश के साथी उसे किसी को मारने के लिए कहते हैं. शिव प्रकाश अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाया गया है. अगले सीन में पुलिस टीम प्रेमीप्रेमिका की बातों को रिकौर्ड करती दिखाई देती है. फिर शिव प्रकाश शुक्ला परशुराम होस्टल में तनुज को मिलने के लिए बुलाता है और अपने गिरोह में शामिल कर लेता है.