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कुछ देर तक दोनों खामोश बैठे एकदूसरे को देखते रहे. जब खामोशी घुटन का रूप लेने लगी तो प्रीत महेंद्र ने कहा, ‘‘मैं ने तो सोचा था कि चाचा घर पर ही होंगे, ऐसे में कोई बात नहीं हो पाएगी.’’

‘‘वह तो आज शंभू बौर्डर गए हैं. कोयले की गाड़ी आने वाली है. अब तो वह देर रात को ही आएंगे.’’ कुछ सोचते हुए जसमीत ने कहा, ‘‘तुम्हें उन से कोई बात करनी थी क्या?’’

प्रीत ने जब सुना कि चाचा रात से पहले नहीं आएंगे तो उस के दिल में चाची को ले उथलपुथल मचने लगी. उसे लगा कि आज उस के मन की मुराद पूरी हो सकती है. जसमीत की बात का जवाब देने के बजाय वह खयालों में डूब गया तो जसमीत ने फिर कहा, ‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया प्रीत?’’

‘‘जवाब क्या दूं. आप को तो मेरे मन की बात पता ही है.’’ प्रीत महेंद्र ने कहा.

‘‘बिना बताए मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम्हारे दिल में क्या है या तुम किस से कौन सी बात कहने आए हो?’’ जसमीत ने कहा.

जसमीत कम चालाक नहीं थी. वह प्रीत के मन की बात जानती थी, फिर भी उस के मुंह से उस के मन की बात कहलवाना चाहती थी. इसलिए गंभीरता का नाटक करते हुए बोली, ‘‘पहेलियां मत बुझाओ प्रीत, साफसाफ बताओ, क्या बात है?’’

‘‘बात बस इतनी सी है,’’ प्रीत आगे खिसक कर जसमीत का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

प्रीत महेंद्र के ये शब्द सुन कर जसमीत की आत्मा को अजीब सी शांति मिली. उस के मुंह से ये शब्द कहलवाने के लिए उस का दिल कब से बेचैन था. इस के बावजूद वह बनावटी नाराजगी जताते हुए बोली, ‘‘अरे बदमाश, तुझे पता नहीं, मैं तेरी चाची हूं.’’

‘‘और मैं भतीजा,’’ प्रीत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे पति का भतीजा हूं, फिर भी तुम मुझे देख कर उसी तरह मुसकराती हो जैसे कोई लड़की अपने प्रेमी को देख कर मुसकराती है.’’

जसमीत ने प्रीत महेंद्र का हाथ दबाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत होशियार हो भाई. मन की बात जानते थे, फिर भी अपने मन की बात कहने में इतनी देर कर दी. लेकिन एक बात और, तुम यह प्यार कहां तक निभाओगे?’’

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक मैं यह प्यार निभाऊंगा.’’ प्रीत महेंद्र जसमीत का हाथ छोड़ कर अपने दोनों हाथ उस के कंधों पर रख कर बोला, ‘‘यह मत समझना कि मैं ने तुम्हारा शरीर पाने के लिए तुम से प्यार किया है. यह प्यार पूरी जिंदगी निभाने के लिए किया है और हर तरह से निभाऊंगा भी.’’

‘‘सोच लो प्रीत, मुझे धोखे में रख केवल मेरे शरीर से खेलना हो तो अभी साफसाफ बता दो. हम दोनों शादीशुदा ही नहीं, 2-2 बच्चों के मातापिता हैं.’’

‘‘तुम मुझ पर भरोसा करो चाची.’’

‘‘आज के बाद फिर कभी चाची मत कहना.’’ जसमीत ने हंसते हुए प्यार से प्रीत के गाल को थपथपाते हुए कहा. इस के बाद वह उस की बाहों में समा गई. इस तरह प्यार के इजहार के साथसाथ इकरार ही नहीं हो गया, बल्कि दोनों के तन भी एक हो गए.

पल भर में रिश्तों की परिभाषा बदल गई. मन के मिलन के साथ अगर तन का मिलन हो जाए तो मिलन की चाह और अधिक भड़क उठती है. मन हमेशा महबूब से मिलने के लिए बेचैन रहता है. और अगर घर में मिलने की सहूलियत हो तो बात सोने पर सुहागा जैसी हो जाती है.

प्रीत महेंद्र सुबह 10-11 बजे जसमीत के घर आ जाता था. क्योंकि उस समय बच्चे स्कूल गए होते थे, तो परमजीत सिंह डिपो. दोनों का मिलन निर्बाध गति से चलने लगा था. लेकिन नजर रखने वालों की भी कमी नहीं है. ऐसे लोग उड़ती चिडि़या को पर से पहचान लेते हैं.

सीधेसादे परमजीत को भले ही पत्नी और भतीजे की करतूतों का भान नहीं था, लेकिन गलीमोहल्ले में चाचीभतीजे के संबंधों को ले कर खूब चर्चा होने लगी थी. यही नहीं, उड़तेउड़ते यह खबर यूएसए में रह रही परमजीत की बहनों तक तक पहुंच गई थी. उन्होंने पटियाला आ कर जसमीत और प्रीत महेंद्र को समझाया भी, लेकिन गले तक पाप के दलदल में डूबे जसमीत और प्रीत ने किसी की नहीं सुनी.

परमजीत की बहनों ने अपने चचेरे भाई यानी प्रीत महेंद्र के बाप हरदर्शन सिंह से मिल कर उस की शिकायत की कि वह अपने बेटे को समझाएं. लेकिन समझाने की कौन कहे, हरदर्शन ने ढिठाई से कहा, ‘‘तुम लोग अपनी भाभी को ही क्यों नहीं समझातीं कि वह इधरउधर मुंह न मारे.’’

परमजीत की बहनों ने किसी भी तरह पाप के इस खेल को बंद कराने के लिए किसकिस के हाथ नहीं जोड़े. लेकिन कहीं से कुछ नहीं हुआ. इतना सब करने के बावजूद उन्होंने अपने भाई को यह पता नहीं चलने दिया कि भाभी क्या कर रही है. क्योंकि उन्हें पता था कि भाभी की बेवफाई का पता भाई को चल गया तो वह आत्महत्या कर लेगा.

बहरहाल, प्रीत महेंद्र सिंह और जसमीत कौर का यह घिनौना खेल बेरोकटोक चलता रहा. परमजीत सिंह सुबह नाश्ता कर के घर से निकल जाते तो देर रात को ही लौटते थे. इस बीच घर में क्या होता है. उन्हें पता नहीं होता था.

22 मार्च, 2014 को शाम को करीब 5 बजे परमजीत सिंह जसमीत कौर को यह कह कर अपने स्कूटर से घर से निकले कि वह किसी पार्टी के पास जा रहे हैं, डेढ़-2 घंटे में लौट आएंगे. लेकिन जब वह देर रात तक घर नहीं लौटे तो जसमीत कौर को चिंता हुई. वह अपने दोनों बेटों गुरतीरथ, जसदीप और कुछ पड़ोसियों को ले कर परमजीत की तलाश में निकल पड़ी. लेकिन रात भर इधरउधर भटकने के बाद भी परमजीत का कुछ पता नहीं चला.

रात 10 बजे के आसपास परमजीत ने फोन कर के जसमीत को बताया था कि वह अपने किसी दोस्त के घर बैठा है. इस के बाद न उस का कोई फोन आया था और न ही उस के बारे में कुछ पता चला था, क्योंकि उस का फोन बंद हो गया था.

अगले दिन सुबह यानी 23 मार्च को 8 बजे प्रीत महेंद्र ने फोन द्वारा जसमीत को सूचना दी कि सीआईए रोड के सनौली अड्डे पर चाचा की लाश पड़ी है. इसी सूचना पर जसमीत दोनों बेटों और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर सनौली अड्डे पर जा पहुंची थी. वहां पड़ी लाश परमजीत की ही थी. किसी ने गोलियां मार कर उस की हत्या कर दी थी. जसमीत पति की लाश देख कर रोने लगी थी.

दरअसल, प्रीत महेंद्र किसी काम से सनौली अड्डे की ओर जा रहा था तो रास्ते में भीड़ देख कर रुक गया. जब उसे पता चला कि यहां कोई लाश पड़ी है तो उत्सुकतावश वह भी उसे देखने चला गया. वहां जाने पर पता चला कि वह तो उस के चाचा परमजीत की लाश है. उसे पता था कि चाचा कल शाम से लापता हैं. लेकिन इस तरह उन की लाश मिलेगी, यह उम्मीद उसे नहीं थी. उस ने तुरंत फोन द्वारा इस बात की जानकारी चाची को दे दी थी.

जसमीत तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गई थी. वह पुलिस को सूचना देने कोतवाली जा रही थी कि रात की गश्त से लौट रहे कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा खलिया चौक पर ही मिल गए. जसमीत ने जब उन्हें पति की हत्या के बारे में बताया तो वह कोतवाली जाने के बजाय घटनास्थल की ओर चल पड़े.

परमजीत सिंह की लाश सड़क के किनारे पड़ी थी. लाश मिलने की सूचना इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने डीएसपी (सिटी) केसर सिंह को दी तो थोड़ी देर में क्राइम टीम के साथ वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि मृतक परमजीत सिंह को 4 गोलियां मारी गई थीं, 2 सीने में, एक पेट में दांईं ओर किडनी के पास और एक बाईं ओर पेट में. इन चारों गोलियों के खोखे भी घटनास्थल से बरामद हो गए थे.

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