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पुलिस ने देखा कि सर्वेश इस तरह लाइन पर नहीं आ रही है तो पुलिस ने उस के साथ ऐसा खेल खेला कि बड़ी आसानी से वह उस में फंस गई. पुलिस ने उस से कहा था कि नेत्रपाल उन के कब्जे में है और उस ने बता दिया है कि तुम्हारी मदद से उसी ने पाकेश की हत्या की थी.

सर्वेश एकदम से बोली, ‘‘साहब, वह झूठ बोल रहा है. मैं ने उस से पाकेश की हत्या के लिए नहीं कहा था. उस ने अपने आप उस की हत्या की थी.’’

इस तरह सर्वेश ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद लंबी पूछताछ में पुलिस ने सर्वेश से पाकेश की हत्या की पूरी कहानी उगलवा ली, जो इस प्रकार थी.

उत्तराखंड के जसपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर का एक गांव है मोहद्दीपुर हसनपुर. कृपाल सिंह का परिवार इसी गांव में रहता था. उस के पास जो खेतीबाड़ी थी, उसी में मेहनत कर के वह गुजरबसर कर रहा था. शादी के बाद बड़ा बेटा हरियाणा में जा कर रहने लगा था. उस से छोटा धर्मवीर मंदबुद्धि था.

भाईबहनों में पाकेश सब से छोटा था, जो खेतीबाड़ी में कृपाल सिंह की मदद करता था. धर्मवीर मंदबुद्धि था, इसलिए उस की शादी नहीं हो रही थी. तब कृपाल सिंह ने सोचा कि वह पाकेश की शादी कर दें, क्योंकि उस की शादी के लिए लोग आने लगे थे.

बिजनौर के थाना रेहड के पास एक गांव है देहलावाला. उसी गांव के रहने वाले देवेंद्र सिंह चौहान की बेटी सर्वेश कृपाल सिंह को पसंद आ गई तो उस ने पाकेश की शादी उसी से कर दी.

देवेंद्र सिंह भी कृपाल सिंह की ही तरह सीधासादा आदमी था. लेकिन उस की पत्नी मूर्ति देवी काफी तेजतर्रार थी और घर में उसी की चलती थी. सर्वेश ने जैसा अपने घर में देखा था, वैसा ही कुछ ससुराल में करने की कोशिश करने लगी. पाकेश सीधा और शांत स्वभाव का था, इसलिए चंचल स्वभाव वाली सर्वेश को ससुराल में अपनी चलाने में जरा भी परेशानी नहीं हुई.

देहलावाला गांव की गिनती इलाके में अच्छे गांवों में नहीं होती, क्योंकि यहां की कई औरतें देह के धंधे से जुड़ी थीं. वे खुद तो यह धंधा करती ही थीं, अपने साथ कई लड़कियों को भी जोड़ रखा था. इसी देह के धंधे की कमाई से उन के रहनसहन में और गांव के अन्य लोगों के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था.

उन्हीं के रहनसहन को देख कर सर्वेश की मां मूर्ति देवी भी गांव छोड़ कर काशीपुर आ गई थी. काशीपुर आने के बाद उस ने भी वही रास्ता अपना लिया था और नोट कमाने लगी थी. हालांकि सर्वेश को मां के इस धंधे की जानकारी नहीं थी. लेकिन मां के रहनसहन को ही देख कर उस की भी काशीपुर में रहने की इच्छा होने लगी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही कृपाल सिंह की मौत हो गई थी, इसलिए पाकेश अकेला पड़ गया था. वह सीधासादा तो था ही, इसलिए सर्वेश जैसा कहती थी, वह वैसा ही करती थी. सर्वेश उस पर काशीपुर चलने के लिए दबाव बनाने लगी. वह पत्नी को बहुत प्यार करता था, इसलिए उसे नाराज नहीं करना चाहता था. पत्नी के कहने पर ही उस ने अपनी एक एकड़ जमीन बेचने का मन बना लिया.

गांव की जमीन बिकते ही सर्वेश अपनी मां की मदद से काशीपुर में घर बनाने के लिए प्लौट ढूंढने लगी. मूर्ति देवी की काशीपुर के कई प्रौपर्टी डीलरों से अच्छी जानपहचान थी. उन्हीं प्रौपर्टी डीलरों की मदद से मूर्ति देवी ने सर्वेश को बाजपुर रेलवे लाइन के किनारे काशीपुर विकास कालोनी में एक प्लौट दिला दिया.

काशीपुर में प्लौट तो खरीद लिया गया, लेकिन जब उस की रजिस्ट्री करानी हुई तो पाकेश और सर्वेश में तकरार होने लगी. पाकेश उस प्लौट की रजिस्ट्री अपने नाम से कराना चाहता था, जबकि सर्वेश चाहती थी कि रजिस्ट्री उस के नाम हो. इस बात को ले कर विवाद ज्यादा बढ़ा तो पाकेश को ही झुकना पड़ा. क्योंकि वह पत्नी को नाराज नहीं करना चाहता था.

सर्वेश के नाम प्लौट की रजिस्ट्री करा कर पाकेश ने घर बनवा लिया. अब तक सर्वेश 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, जिन में बेटा तुषार और बेटी गार्गी थी. सर्वेश ने अपने दोनों बच्चों का दाखिला भी काशीपुर में करा दिया था.

काशीपुर में गुजरबसर के लिए पाकेश महुआखेड़ा की फैक्ट्री में नौकरी करने लगा था. पाकेश का घर जिस मोहल्ले में था, वहां अभी इक्कादुक्का घर ही बने थे. दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और पाकेश अपनी नौकरी पर. उस के बाद सर्वेश घर में अकेली रह जाती, ऐसे में उस के लिए समय काटना मुश्किल हो जाता था.

काशीपुर आने के बाद सर्वेश का अपनी मां के यहां आनाजाना बढ़ गया था. इसी आनेजाने में उसे मां की हकीकत का पता चल गया. वैसे तो वह महुआखेड़ा की किसी फैक्ट्री में नौकरी करती थी, लेकिन उस की कमाई का मुख्य स्रोत लड़कियों की दलाली थी. यह काम वह मोबाइल फोन से करती थी. उसे लड़कियों की दलाली से अच्छी कमाई हो रही थी.

मां की हकीकत जान कर सर्वेश ने भी उसी राह पर चलने का इरादा बना लिया. उस ने पाकेश से दिन में अकेली रहने वाली परेशानी बता कर एक जूता फैक्ट्री में नौकरी कर ली. उसी जूता फैक्ट्री में उस की मुलाकात नेत्रपाल से हुई. नेत्रपाल वहां सुपरवाइजर था. सर्वेश जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा चंचल और शोख थी.

नेत्रपाल उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के गांव चतरपुर का रहने वाला था. उस का गांव महुआखेड़ा के नजदीक ही था, इसलिए वह घर से ही अपनी ड्यूटी पर आताजाता था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. इसलिए नेत्रपाल के नेत्र सर्वेश से लड़े तो वह उस के लिए पागल हो उठा. जबकि सर्वेश 2 बच्चों की मां थी. लेकिन उस की कदकाठी ऐसी थी कि देखने में वह कुंवारी लगती थी.

कुछ ही दिनों में नेत्रपाल सर्वेश के लिए ऐसा पागल हुआ कि दिनरात उसी के बारे में सोचने लगा. नेत्रपाल के पास सर्वेश का मोबाइल नंबर था ही, इसलिए वह छुट्टी के बाद भी फोन कर के उस से बातें करने लगा.

पाकेश पूरे दिन नौकरी पर रहता था. शाम को थकामांदा आता तो खाना खा कर सो जाता. उसे इस बात की भी चिंता नहीं रहती थी कि पत्नी क्या कर रही है. सर्वेश इसी बात का फायदा उठा कर नेत्रपाल से देर रात तक बातें करती रहती. मोबाइल पर बातें करतेकरते ही नेत्रपाल सर्वेश को अपने इतने नजदीक ले आया कि मौका मिलते ही उस ने उस से अवैध संबंध बना लिए.

नेत्रपाल से संबंध बनने के बाद सर्वेश को पाकेश की अपेक्षा नेत्रपाल की जरूरत ज्यादा महसूस होने लगी थी. सर्वेश को जब भी मौका मिलता, नेत्रपाल को फोन कर देती. नेत्रपाल को उस के फोन का इंतजार रहता ही था, संदेश मिलते ही वह सर्वेश के घर आ जाता.

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