घर में 4 हत्याएं होने की खबर जल्द ही पूरी कालोनी में फैल गई. सुमित के घर के बाहर लोगों की भीड़ उमड़ने लगी. इस बीच किसी के कहने पर पंकज ने पुलिस को सूचना दे दी थी. उस समय शाम के 7 बजे थे. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना अभयखंड चौकी को दी गई. सुमित का घर इसी चौकी के क्षेत्र में आता था.
अभय खंड चौकीप्रभारी एसआई प्रह्लाद सिंह 2-3 सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घर में एक साथ 4 लाशें देखीं तो इंदिरापुरम थानाप्रभारी संदीप कुमार को फोन कर के जानकारी दी. वैसे तो हत्या की वारदात ही पुलिस के लिए बड़ी बात होती है लेकिन यहां तो एक साथ 4 हत्याओं की बात थी.
इंसपेक्टर संदीप कुमार ने इंदिरापुरम क्षेत्र की एएसपी अपर्णा गौतम, एसपी (सिटी) श्लोक कुमार व गाजियाबाद के एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल को इस घटना से अवगत करा दिया.
8 बजते बजते इंदिरापुरम का ज्ञान खंड 4 पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. जिले का हर छोटा बड़ा अधिकारी और फोरैंसिक टीम वहां पहुंच कर जांचपड़ताल में जुट गई.
पंकज ने अपने मातापिता के साथ दिल्ली में रहने वाले अपने भाई व अन्य रिश्तेदारों को इस घटना से अवगत करा दिया था. पंकज के मोबाइल फोन पर सुमित की बहनों व भाई अमित के भी लगातार फोन आ रहे थे, उन्होंने उन्हें भी वास्तविकता से अवगत करा दिया.
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इंदिरापुरम पुलिस के साथ दूसरे तमाम अधिकारी जब घटनास्थल पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि 2 कमरों के फ्लैट में अंदर ड्राइंगरूम में खून से लथपथ प्रथमेश का शव पड़ा था. अंशुबाला का शव बेडरूम में जमीन पर पड़ा मिला. जबकि दोनों जुड़वां बच्चों के शव बेड पर पड़े थे. ऐसा लगता था जैसे उन्हें सोते समय बेहोशी की अवस्था में मारा गया था.
अंशुबाला
फर्श व बैड पर तथा 1-2 जगह दीवारों पर खून के निशान थे. बिस्तर पर पड़ा खून सूख कर काला पड़ने लगा था. तीनों बच्चों और अंशु के गले पर धारदार हथियार के निशान थे. अंशुबाला के पेट और छाती के अलावा हाथ पर भी कई जगह धारदार हथियारों के निशान थे. शरीर पर कई जगह खरोंचे भी थीं और कपड़े भी अस्तव्यस्त थे.
इस से पहली नजर में प्रतीत होता था कि मरने से पहले कातिल से उस की झड़प हुई थी और उस ने अपने बचाव में काफी संघर्ष किया था. शव को सब से पहले देखने वाले पंकज ने पुलिस को बताया कि तीनों बच्चों के मुंह के ऊपर तकिए रखे हुए थे.
सुमित ने शायद परिवार के सभी लोगों को खाने की किसी चीज में कोई नशा दे कर बेहोश कर दिया था. इसीलिए जब उन की हत्या की गई तो आसपड़ोस के किसी भी व्यक्ति ने कोई चीखपुकार नहीं सुनी.
थानाप्रभारी संदीप कुमार ने फोरेंसिक टीम के साथ जब घर की छानबीन शुरू की तो उन्हें रसोई घर में सहजन की सब्जी के टुकड़े मिले. कोल्ड ड्रिंक की 2 खाली बोतलें व नशे की गोलियों के कुछ खाली पैकेट भी मिले. सभी चीजों को पुलिस ने जांच के लिए अपने कब्जे में ले लिया. क्योंकि पुलिस को शक था कि सब्जी में नशीली गोली या पदार्थ मिलाया गया था.
घर की तलाशी में पुलिस को अलगअलग साइज के 5 चाकू भी मिले, जिन में 3 एकदम नए थे. जबकि 2 चाकुओं का इस्तेमाल हत्या में किया गया था, क्योंकि धोने या कपड़े से साफ करने के बावजूद उन पर कहीं कहीं खून के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. फोरैंसिक टीम ने जांच के बाद ये सभी सामान कब्जे में ले लिए.
कई घंटे की मशक्कत और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने तीनों बच्चों व अंशुबाला के शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए. रात में पंकज के भाई मनीष व दूसरे रिश्तेदार भी गाजियाबाद पहुंच गए.
अंशुबाला के भाई पंकज की शिकायत के आधार पर इंदिरापुरम पुलिस ने 21 अप्रैल, 2019 को ही भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज कर लिया था. जांच का काम खुद थानाप्रभारी संदीप कुमार कर रहे थे.
सुबह होते ही पुलिस ने सुमित की खोजखबर लेने के लिए चौतरफा कोशिशें शुरू कर दीं. चूंकि सुमित का मोबाइल नंबर बंद था. इसलिए उस तक पहुंचने का जरिया सिर्फ उस का मोबाइल नंबर ही था.
हैरानी की बात यह थी कि घर में सुमित के अलावा 2 मोबाइल फोन और थे. इन में एक फोन अंशुबाला का था और दूसरा घर में रहता था. वे दोनों फोन भी घर की तलाशी में पुलिस को नहीं मिले थे. यह भी नहीं पता था कि सुमित जिंदा है या मर चुका है.
इसलिए एसएसपी उपेंद्र अग्रवाल से साइबर शाखा की टीम से सुमित व अंशुबाला के दोनों मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए. इन मोबाइल नंबरों की लोकेशन के बारे में मिलने वाली पलपल की जानकारी इंदिरापुरम पुलिस को देने का काम सौंप दिया.
एसपी (सिटी) श्लोक कुमार व एएसपी अपर्णा गौतम ने थानाप्रभारी संदीप कुमार, एसआई प्रह्लाद सिंह और रामप्रस्थ चौकीप्रभारी इजहार अली के नेतृत्व में 3 टीमें बनाईं. पुलिस की टीमों ने सुबह होते ही सब से पहले घटनास्थल पर पहुंच कर आसपड़ोस के लोगों और सुमित कुमार के सभी रिश्तेदारों से बातचीत और पूछताछ करने का काम शुरू किया.
पड़ोसियों से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि मृतक परिवार काफी मिलनसार था. पड़ोसियों से अंशुबाला और सुमित का बहुत अच्छा व्यवहार था.
कालोनी के गार्ड इंद्रजीत ने बताया कि सुबह 3 बजे सुमित यह कह कर बाहर गया था कि वह थोड़ी देर में आ रहा है. वह किस काम से और कहां गया, इस के बारे में उसे पता नहीं था. गार्ड का कहना था कि सुमित के चेहरे से यह आभास नहीं हुआ कि उस ने 4 हत्याएं की हैं.
पड़ोसियों ने 21 अप्रैल की सुबह से सुमित के परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं देखा था. अलबत्ता 20 अप्रैल की शाम को अंशुबाला का बड़ा बेटा प्रथमेश अपनी मां के साथ बाहर जरूर देखा गया था. दोनों एकदम नार्मल थे. पता चला कि सुमित भी अकसर बच्चों के साथ बाहर खेला करता था.
22 अप्रैल की दोपहर तक पुलिस ने अंशुबाला व उस के तीनों बच्चों का पोस्टमार्टम करवा कर चारों के शव उन के परिजनों को सौंप दिए. 21 अप्रैल की रात में ही पंकज ने अपने पिता को फोन कर के इस हादसे की सूचना दे दी थी.
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बेटी और नाती नातिन की हत्या की खबर सुनते ही अंशुबाला के मातापिता अगली सुबह बिहार के सारण से फ्लाइट पकड़ कर दोपहर तक दिल्ली और फिर दिल्ली से गाजियाबाद पहुंच गए. सुमित के भाई अमित व 2 बहनें भी दोपहर तक गाजियाबाद आ गए. दोनों परिवारों ने मिल कर चारों शवों का अंतिम संस्कार किया.
पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल चुकी थी, जिस में अंशु के गले के साथ शरीर के अन्य हिस्सों पर चाकू के 6 निशान पाए गए थे. वहीं, बच्चों की मौत गला रेतने से बताई गई थी. हत्या का समय 20 व 21 अप्रैल की रात 12 बजे के बाद का बताया गया. नशीले पदार्थ या नींद की गोली दिए जाने की पुष्टि नहीं होने के कारण चारों के बिसरा को सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया गया.