8 जनवरी की रात को दोनों बापबेटे खेत पर सोने गए थे, जबकि घर पर संजय की पत्नी मायाबाई और मां कसुम थी. सुबह को संजय की पत्नी मायाबाई ने उसे फोन पर बताया कि थोड़ी देर पहले वह सो कर उठी तो उस के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद मिला. मायाबाई ने उसे आगे बताया कि फोन लगाने से पहले उस ने सासू मां को कई आवाजें दी थीं. लेकिन जब उन की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला, तब उस ने उन्हें फोन लगाया.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि अम्मा दिशामैदान चली गई हों, तुम इंतजार करो. हो सकता है, थोड़ी देर में आ जाएं.’’ संजय बोला.

‘‘मैं काफी देर से उन का इंतजार कर रही हूं, आज तक वह बाहर से दरवाजा बंद कर के कभी नहीं गईं. आप जल्द दरवाजा खोल दो.’’ मायाबाई ने पति से कहा.

पत्नी की बात सुन कर संजय घर पहुंच गया. उस ने कमरे का दरवाजा खोला तो माया बहुत घबराई हुई थी. संजय ने उस से पूछा तो उस ने कहा कि पता नहीं किस ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था.

इस के बाद मियांबीवी दोनों मां के कमरे में गए तो वह कमरे में नहीं थी. कुछ देर तक दोनों ने उस के लौटने का इंतजार किया. काफी देर बाद भी जब वह नहीं लौटी तो संजय ने खेत पर जा कर पिता को यह जानकारी दे दी. मायाबाई भी खेत पर पहुंच गई थी.

पत्नी के गायब होने की बात सुन कर मलुवा चौधरी भी परेशान हो गए. उन के एक खेत में अरहर की फसल खड़ी थी. मायाबाई पति के साथ जब उसी खेत के किनारे से जा रही थी, तभी संजय की नजर अरहर के खेत में पड़ी एक लाश पर गई. वह लाश के नजदीक पहुंचा तो उस की चीख निकल गई. लाश उस की मां कुसुम की थी.

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