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रात के यही कोई 11 बजे आगरा के थाना एतमादपुर के गांव चौगान से जिला नियंत्रण कक्ष को फोन द्वारा सूचना दी गई कि गांव के  अशोक सिंह के घर हथियारों से लैस कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घुस आए थे. घर वालों ने बदमाशों से मोर्चा लिया तो बदमाश भाग निकले. लेकिन लूटपाट का विरोध करने की वजह से जातेजाते बदमाशों ने अशोक सिंह की बड़ी बेटी को गोली मार दी है, जिस की तुरंत मौत हो गई है. बाकी बदमाश तो भाग गए लेकिन एक बदमाश को उन लोगों ने बंधक बना लिया है.

खबर सनसनीखेज थी, लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम ने तुरंत इस खबर को पूरे जिले में प्रसारित कर दी.चौगान गांव थाना एतमादपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए गश्त पर निकले एतमादपुर के थानाप्रभारी अमित कुमार ने जीप में लगे वायरलेस सेट से जैसे ही लूटपाट के इरादे से की गई हत्या की खबर सुनी, तत्काल चौगान गांव के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के साथ 6 सिपाही थे. जीप से ही उन्होंने फोन द्वारा इस घटना की सूचना पुलिस चौकी छलेसर के प्रभारी टोडी सिंह को दे कर चौगान पहुंचने के लिए कह दिया था.

पुलिस को अशोक सिंह का घर ढूंढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगी. गोलियों की आवाज और चीखचिल्लाहट से पूरा गांव जाग चुका था. इसलिए गांव में घुसते ही गांव वालों ने पुलिस को अशोक सिंह के घर पहुंचा दिया था. गांव वालों के साथ घर के बाहर खड़े अशोक सिंह अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर के साथ पुलिस का इंतजार कर रहे थे. घर के अंदर से रोने की आवाजें आ रही थीं. अशोक सिंह के अन्य भाईभतीजे भी वहां मौजूद थे.

अशोक सिंह के जिस मकान में डकैती पड़ी थी, वह 6-7 कमरों का एकमंजिला मकान था. उन का यह मकान चारों ओर से बंद था, लेकिन छत से हो कर मकान के अंदर आसानी से जाया जा सकता था. क्योंकि छत पर जाने की सीढि़यां बाहर से बनी थीं.

पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो देखा कि छत पर आंगन की ओर लगी रेलिंग से बंधी एक साड़ी लटक रही थी. पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि किसी बदमाश के इसी साड़ी के सहारे नीचे आ कर बाकी बदमाशों के आने के लिए दरवाजे की कुंडी खोली होगी.

पूछताछ में अशोक सिंह ने बताया, ‘‘साहब, मैं अपनी पत्नी कमला देवी के साथ अपने कमरे में सो रहा था तो मेरे दोनों बेटे सचिन और विपिन अपनेअपने कमरों में सो रहे थे. एक कमरे में मेरी 2 बेटियां सो रहीं थीं. चूंकि बड़ी बेटी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, इसलिए वह देर रात तक जाग कर पढ़ाई करती थी. इसी वजह से वह अकेली अलग कमरे मे सोती थी.’’

‘‘रात पौने 11 बजे के आसपास मैं ने बड़ी बेटी रुचि के चीखने की आवाज सुनी तो तुरंत कमरे से बाहर आ गया. वही आवाज सुन कर मेरे बेटे भी अपनेअपने कमरे से बाहर आ गए थे. रुचि के चीखते ही तड़ातड़ गोलियां चली थीं. उस के साथ एक बार फिर रुचि चीखी थी.

गोलियां चलाने वाले मुख्य दरवाजे की ओर भाग रहे थे, क्योंकि वे जान गए थे कि अब उन का मकसद पूरा नहीं होगा. तभी मेरी नजर रुचि पर पड़ी, जो गोलियों से घायल हो कर आंगन में गिरी पड़ी थी. बाकी बदमाश तो भाग गए, लेकिन एक बदमाश नहीं भाग सका. उसे हम ने हथियारों के बल पर कमरे में बंद कर दिया है.’’

मामला काफी गंभीर था. आंगन में एक जवान लड़की की लाश पड़ी थी. उस के शरीर से अभी भी खून बह रहा था. आंगन की ओर दीवारों पर गोलियों के कुछ निशान नजर आ रहे थे. माना गया कि बदमाशों ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं होंगी, जिस से कुछ गोलियां दीवारों पर जा लगी थीं.

घटना की सूचना थानाप्रभारी अमित कुमार ने पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. इसी सूचना के आधार पर डीआईजी विजय सिंह मीणा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार गांव चौगान पहुंच गए थे. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के साथ अशोक सिंह तथा घर के अन्य लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

बंधक बना बदमाश अभी तक कमरे में बंद था. उस ने अंदर से कुंडी लगा रखी थी. बदमाश के पास कोई भी हथियार हो सकता था. इस स्थिति में पुलिस ने उसे रात में निकालना उचित नहीं समझा, क्योंकि पुलिस का मानना था कि वह अपनी जान बचाने के लिए पुलिस पर भी हमला कर सकता है.

पुलिस ने सुबह तक का इंतजार करना उचित समझा. सवेरा होने पर खिड़की और झरोखों से देख कर यह निश्चित कर लिया गया कि बंधक बनाए गए बदमाश के पास कोई हथियार नहीं है तो पुलिस ने उस से दरवाजा खोलने को कहा. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में जान की भीख मांगते हुए बदमाश ने दरवाजा खोल दिया.

कमरे से निकला बदमाश 24-25 साल का हट्टाकट्टा नौजवान था. बदमाश के बाहर आते ही पुलिस उस के साथियों के नाम पते पूछने लगी तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे थाने ले चलो, क्योंकि यहां मेरी जान को खतरा है. थाने में मैं सब कुछ बता दूंगा.

क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार ने बदमाश का मुंह ढंक कर जीप में बैठाया और थानाप्रभारी अमित कुमार की देखरेख में उसे थाना एतमादपुर ले जाने के लिए कहा. इस के बाद अधिकारियों की देखरेख में चौकीप्रभारी टोडी सिंह ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर बदमाशों की गोली का शिकार अशोक सिंह की बेटी रुचि की लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मेडिकल कालेज भिजवा दिया. पुलिस ने घटनास्थल से कारतूसों के खोखे भी कब्जे में ले लिए थे.

इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर सहयोगियों के साथ चलने लगे तो उन्होंने अशोक सिंह से थाने चल कर रिपोर्ट लिखवाने को कहा. तब उस ने बड़ी ही लापरवाही से कहा, ‘‘सर, आप चलिए. मैं घर वालों को समझाबुझा कर थोड़ी देर में आता हूं.’’

अशोक सिंह का यह जवाब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर की समझ में नहीं आया. जिस की बेटी को बदमाशों ने मार दिया था और एक बदमाश पकड़ा भी गया था. इस के बावजूद भी वह आदमी मुकदमा दर्ज कराने में हीलाहवाली कर रहा था. वह उसे साथ ले जाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘देखो, रिपोर्ट जितनी जल्दी लिख जाएगी, पुलिस उतनी ही जल्दी काररवाई शुरू कर देगी. तुम्हारी बेटी के हत्यारों को पकड़ना भी है. बिना रिपोर्ट लिखे पुलिस कोई भी काररवाई करने से रही. इसलिए जितनी जल्दी हो सके तुम्हें थाने चल कर रिपोर्ट लिखा देनी चाहिए.’’

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की इस बात का अशोक सिंह पर कुछ असर पड़ा. उस ने अपने भाइयों, पत्नी और बेटों से कुछ सलाहमशविरा किया और फिर पुलिस के साथ थाने आ गया. उसी के साथ गांव के तमाम अन्य लोग भी उस बदमाश को देखने थाने आ गए थे.

पुलिस ने पहले तो गांव वालों को थाना परिसर से बाहर निकाला. क्योंकि वे बदमाश को सामने लाने की बात कर रहे थे. साथ ही वे यह भी कह रहे थे कि जल्दी रिपोर्ट लिख कर अशोक सिंह को जाने दो. गांव वालों को बाहर निकाल कर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर की उपस्थिति में पकड़े गए बदमाश से उस के साथियों के बारे में पूछा गया तो उस ने जो बताया, उसे सुन कर पुलिस दंग रह गई.

पता चला, पकड़ा गया युवक बदमाश नहीं, उसी गांव का रहने वाला शेर सिंह था. उस ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार सारा मामला ही पलट गया था. उस के बताए अनुसार रुचि की हत्या का मुकदमा बदमाशों के बजाय उस के पिता अशोक सिंह सिकरवार तथा उन के बेटों के खिलाफ दर्ज कर के अशोक सिंह को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया था.

जब इस बात की जानकारी थाने आए गांव वालों को हुई तो वे भी हैरान रह गए क्योंकि अभी तक उन्हें ही पता नहीं था कि पकड़ा गया बदमाश कौन था और अशोक सिंह के घर में उस रात क्या हुआ था. दरअसल पुलिस ने कमरे में बंद शेर सिंह को जब बाहर निकाला था, तो उस के मुंह को ढक दिया था, इसलिए गांव वाले उस समय उसे देख नहीं पाए थे.

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