निरीक्षण में घर के अंदर ही हत्या में प्रयुक्त खून से सना चाकू और खून लगी एक शर्ट मिल गई थी. एक मेज पर शराब की खुली बोतल, स्टील का गिलास और पानी की बोतल रखी मिली थी. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम ने जरूरी नमूने उठा कर संदिग्ध सामान को सुबूत के तौर पर कब्जे में ले लिया था. इस के अलावा पुलिस को वहां कोई अन्य सुबूत नहीं मिला था. घटनास्थल को देख कर लगता था कि हत्याओं को पूरी प्लानिंग के साथ निर्दयतापूर्वक देर रात अंजाम दिया गया था.
मरने से पहले मृतक जय सिंह और कुलवंत कौर ने विरोध किया था. उन के हाथों पर आए घाव इस बात की गवाही दे रहे थे. खास बात यह थी कि घर का सामान यथास्थान रखा था. इस से जाहिर होता था कि मामला लूट का नहीं था. हरमीत गफलत की सी स्थिति में था. यह सदमा भी हो सकता था और नाटक भी. इसी बात को ध्यान में रख कर पुलिस ने पूछा, ‘‘क्या तुम कुछ बता सकते हो कि यह सब कैसे और कब हुआ?’’
हरमीत ने कोई जवाब नहीं दिया तो डीजीपी बी.एस. सिद्धू ने उस की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हारा दुख अच्छी तरह समझते हैं. लेकिन कातिल को पकड़ने के लिए जांच तो करनी ही होगी. जांच में तुम्हारा सहयोग जरूरी है. तुम सहयोग करोगे, तभी हम कातिल तक पहुंच पाएंगे.’’
‘‘वे लोग बहुत खतरनाक थे सर.’’ डूबे लहजे में हरमीत ने कहा.
‘‘वे कौन थे?’’
‘‘मैं पहचानता नहीं सर. सभी नकाब बांधे हुए थे. एकएक कर के उन्होंने सब को मार दिया. वे मुझे भी मारना चाहते थे, लेकिन मैं भाग कर बाथरूम में छिप गया. कंवलजीत को भी मैं ने अपने पास छिपा लिया था. वह मेरे पास आ रहा था तो किसी बदमाश ने पीछे से चाकू मार दिया था.’’ इतना कह कर हरमीत सिर पकड़ कर रोने लगा.
उस समय ऐसी स्थिति थी कि हरमीत से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी. पुलिस ने डरेसहमे कवंलजीत को पुचकार कर हत्यारों के बारे में पूछा तो वह डरतेडरते बोला, ‘‘अंकल नकाब वाले 3 आदमी थी.’’
कंवलजीत बहुत डरा हुआ था, इसलिए उस से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी. पुलिस उस के पिता के आने का इतजार करने लगी. हरमीत और कंवलजीत ही थे, जिन से पूछताछ कर के जांच आगे बढ़ाई जा सकती थी.
मामला सामूहिक हत्याओं का था. पौश इलाके में 4 हत्याओं की यह सनसनीखेज खबर बहुत जल्दी जंगल की आग की तरह पूरे शहर में फैल गई. देखते ही देखते सैंकड़ों लोग एकत्र हो गए. इस हत्याकांड से समूची राजधानी दहल तो उठी ही थी, लोगों में आक्रोश भी था. सूचना पा कर जय सिंह के नातेरिश्तेदार आ गए थे. उन के आने के बाद माहौल काफी गमगीन हो गया था. हत्याओं का हर किसी को अफसोस था, लेकिन हत्या किस ने की, यह किसी की समझ नहीं आ रहा था.
घटनास्थल की तमाम काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने मृतकों के शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए थे. इस के बाद मृतक जय सिंह के भतीजे अजीत सिंह की तहरीर पर थाना कैंट में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ अपराध संख्या 187/14 पर धारा 302 व 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
घटना कानूनव्यवस्था को चुनौती देने वाली थी. एडीजी राम सिंह मीना ने अधीनस्थों को मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया. मृतकों के नातेरिश्तेदारों और पड़ोसियों से की गई शुरुआती पूछताछ में जो सामने आया, उस के अनुसार, जय सिंह अपनी पत्नी कुलवंत कौर और बेटे हरमीत के साथ इस घर में रहते थे. हरमीत आवारा प्रवृत्ति का युवक था. उस की इस प्रवृत्ति से घर के सभी लोग परेशान थे.
हरजीत कौर की जय सिंह गोद ली हुई बेटी थी. वह हरियाणा के यमुनानगर में ट्रांसपोर्टर अरविंदर सिंह को ब्याही थी. दीवाली का त्योहार मनाने और प्रसव कराने वह अपने दोनों बच्चों कंवलजीत और सुखमणि के साथ पिता के घर आई थी. 2-4 दिनों में ही प्रसव होना था. डाक्टरों ने समय भी दे रखा था. उस के पति को भी घटना की सूचना दे दी गई थी.
पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, जय सिंह की पत्नी कुलवंत कौर की कोई संतान नहीं थी. हरमीत जय सिंह की दूसरी पत्नी अनीता का बेटा था. अनीता अपने छोटे बेटे पारस के साथ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में रहती थी. चौंकाने वाली बात यह थी कि आसपड़ोस के किसी ने भी सिंह परिवार की चीखपुकार नहीं सुनी थी. सुरक्षा की दृष्टि से कालोनी के बाहर गेट लगा था. उस पर चौकीदार भी रहता था. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि कालोनी का गेट रात साढ़े दस बजे बंद हो जाता था तो सुबह 6 बजे खुलता था. यह काम चौकीदार खुद करता था. सुबह गेट खोल कर वह अपने घर चला जाता था.
पुलिस ने इस बारे में सोचा कि अगर ऐसा था तो फिर हत्यारे अंदर कैसे आए? कहीं चौकीदार की मिलीभगत तो नहीं थी. थानाप्रभारी वी.के. जेठा ने उसे बुलवा कर पूछताछ की तो उस ने दावे के साथ कहा कि वह मुस्तैदी के साथ ड्यूटी पर था और उस रात कोई भी बाहरी आदमी कालोनी के अंदर नहीं आया था. चौकीदार की बातों से पुलिस को लगा कि वह सच बोल रहा था.
अब पारिवारिक पृष्ठभूमि और चौकीदार के बयानों से हरमीत की भूमिका संदिग्ध हो गई. सोचने वाली बात यह थी कि हत्यारों ने लूटपाट नहीं की थी. घर में रखी नगदी और कीमती सामान के अलावा कुलवंत और हरजीत कौर ने जो गहने पहन रखे थे, वे सुरक्षित थे.
सोचने वाली बात यह थी कि अगर हत्यारे पूरे परिवार को खत्म करना चाहते थे तो हरमीत को जिंदा क्यों छोड़ दिया. वह युवा था. सब से ज्यादा विरोध वही कर सकता था. इस से भी प्रमुख वजह यह थी कि उस ने रात से ले कर सुबह तक शोर मचा कर किसी को कुछ नहीं बताया था. यहां तक की नौकरानी को भी उस ने टरकाने की कोशिश की थी.
पुलिस ने हरमीत को हिरासत में ले लिया. इसी बीच मृतका हरजीत कौर का पति अरविंदर आ गया. उस ने बेटे कंवलजीत को ढांढस बंधा कर प्यार से पुचकार कर पूछा तो वह रोते हुए बोला, ‘‘पापा, सभी को मामा ने मारा है.’’