कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

करीब 3-4 दशक पहले किसी ने कल्पना तक नहीं की थी कि सियासत और धंधे में सफलता की सीढिय़ां फांदने वाले अतीक अहमद की दबंगई का जलवा इस कदर मिनटों में मिल जाएगा. 80 के दशक से साल 2006 तक इलाहाबाद (अब प्रयागराज) ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में अतीक अहमद का जबरदस्त जलवा था. उस के काफिले में सैकड़ों कारें और हथियारबंद लोग रहते थे. उस की दबंगई से सभी कांपते थे.

राजनीति में दखल निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर हुई थी और वह 5 बार विधायक और एक बार सांसद बना था. किंतु वक्त के बदलने और सियासत बदलने के साथसाथ अतीक का कद भी कम होता चला गया. बादशाहत की नींव हिल चुकी थी. देखते ही देखते एक समय ऐसा भी आया, जब उन के सितारे गर्दिश में आ गए.

हत्या के समय उस पर उमेश पाल हत्याकांड का मुख्य आरोप था. पुलिस रिमांड पर था. वह धूमनगंज थाने में 14 अप्रैल को अदालत में पेशी के बाद पूछताछ के लिए लाया गया था. अतीक और अशरफ की हत्या के बाद प्रयागराज पुलिस की ओर से धूमनगंज थाने में ही हेडकांस्टेबल राजेश कुमार मौर्य की ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई. एफआईआर में उमेश पाल हत्याकांड में नामजद अभियुक्तों के जेल से लाए जाने से ले कर मौत की जानकारी का विवरण दिया गया.

साथ ही 15 अप्रैल को हुई पूरी घटना का विवरण लिखा गया, जो पुलिस के लिए अहम सबूत था. उस से कई और राज खुल सकते थे. यह भी लिखा गया कि 14 अप्रैल को सही तरह से पूछताछ नहीं होने के बाद अगले रोज 15 अप्रैल को भी दोनों अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ की गई. उन की निशानदेही पर 45 और 32 बोर के एकएक पिस्टल, 58 जिंदा कारतूस, विभिन्न बोर के 5 कारतूस (9 एमएम), जो पाकिस्तानी आर्डिनेंस फैक्ट्री के बने थे. दोनों ने पुलिस रिमांड में बताया था कि जेल में रहते हुए उन्होंने उमेश पाल की हत्या के लिए पूरी साजिश रची थी और हथियार दिलाए थे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 12 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...