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श्वेता बिस्तर पर लेटी जरूर थी, लेकिन नींद न आने की वजह से वह बारबार लंबी सांसें छोड़ कर करवट बदल रही थी. बेचैनी ज्यादा बढ़ जाती तो उठ कर कमरे में ही टहलने  लगती. उस के मन में जो जबरदस्त  अंर्तद्वंद्व चल रहा था, वह उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था. उस ने जो गलती की थी, उसी के पश्चाताप की आग में वह जल रही थी. जैसे ही वह अपने अतीत में झांकती, इतना डर जाती कि सांसें तेजतेज चलने लगतीं. इस के बाद वह सोचने लगती कि अतीत में की गई गलती से वह वर्तमान में कैसे छुटकारा पाए. यही बात उस की समझ में नहीं आ रही थी, जो उस की बेचैनी का सबब बनी हुई थी.

श्वेता ने जो गलती की थी, उस बात पर उसे बेहद अफसोस था. उसी गलती ने आज उसे ऐसी जगह पर ला कर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. जिंदगी उसे मौत से भी बदतर लग रही थी. इसलिए वह मौत के बारे में सोचने लगी थी, क्योंकि मौत ही अब उसे इस समस्या और चिंता से मुक्ति दिला सकती थी.

लंबी सांस ले कर श्वेता ने खिड़की से दूर क्षितिज की ओर देखा. बाहर गहरा अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था. एक गलती की वजह से ठीक वैसा ही अंधकार और सन्नाटा उस के जीवन में भी पसर गया था, जिस के लिए वह स्वयं दोषी थी. अगर वह अपनी बेलगाम इच्छाओं और कामनाओं को काबू रखती तो शायद आज यह दिन उसे न देखना पड़ता.

बिना पतवार की नाव की तरह वह भटकतेभटकते एक ऐसे भंवर में फंस गई थी, जहां से निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. ऐसे में ही कभी वह अपने 4 वर्षीय बेटे हितेन के बारे में सोचती तो कभी पति साहिल के बारे में. साहिल सिंह सारी चिंताओं से मुक्त एकदम शांति से बिस्तर पर लेटा सो रहा था.

कल तक जो साहिल उसे गंवार, साधारण और भोंदू नजर आ रहा था, इसी वजह से वह उस से घृणा करती थी. आज उसी भोंदू साहिल पर उसे प्यार आ रहा था. लेकिन अब अफसोस इस बात का था कि उस के पास उस से प्यार करने का वक्त नहीं था. अब न ही वह उस से दुख प्रकट कर सकती थी, न ही उस का घर बरबाद होने से बचा सकती थी. समय उस की उच्च महत्त्वाकांक्षाओं और हाईसोसायटी के साथ उस के हाथों से सरक गया था.

श्वेता के पास अब पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा था. यहां तक कि उस के पास अपनी गलती का प्रायश्चित करने का भी समय नहीं रह गया था. उस की यह हालत कई दिनों से थी. लेकिन आज जो हुआ था, उस ने उस की बेचैनी को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था. वह अजीब कशमकश में फंसी थी.

बात ऐसी थी कि चाह कर भी वह यह राज किसी को नहीं बता सकती थी. श्वेता जानती थी कि उस ने बहुत बड़ी गलती की थी, लेकिन अब उसे सुधारने का न कोई रास्ता था न समय. वह कई दिनों से उसी गलती की वजह से परेशान थी, जो उस के चेहरे पर साफ झलक भी रही थी. उसे परेशान देख कर साहिल ने पूछा भी था. हर बार वह ‘कोई खास बात नहीं है’, कह कर टाल दिया था.

दरअसल, साहिल अपने कामों में कुछ अधिक ही व्यस्त रहता था, इसलिए श्वेता को बिलकुल समय नहीं दे पाता था. श्वेता के ठीक से जवाब न देने से उसे लगा कि कहीं उसी की वजह से तो वह परेशान नहीं है. इसलिए 10 मार्च की दोपहर को जब वह खाना खाने घर आया तो उस ने कहा, ‘‘श्वेता, आज रात का खाना केवल मां और बाबूजी के लिए ही बनाना. हम दोनों बाहर खाने चलेंगे.’’

अशोक कुमार सिंगला जगराओं शहर के किराना के थोक व्यापारी थे. जगराओं के आतुवाला चौक में उन की बहुत बड़ी दुकान थी. उन का यह व्यवसाय पुश्तैनी था. शहर में उन की गिनती बड़े व्यापारियों में होती थी. जगराओं जैसे छोटे शहर के वह बड़े व्यापारी थे. पास में पैसा था, इसलिए शहर में इज्जत भी थी और रुतबा भी था.

अशोक कुमार सिंगला के परिवार में पत्नी कुसुम के अलावा बेटी शिखा तथा बेटा साहिल सिंह उर्फ रिकी था. शहर के पौश इलाके ग्रेवाल कालोनी में 5 सौ वर्गमीटर में उन की 2 मंजिला विशाल कोठी थी. बेटी की शादी के बाद साहिल पढ़ाई पूरी कर के पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगे थे.

2-4 लड़कियां देखने के बाद अशोक कुमार सिंगला ने साहिल की शादी लुधियाना के रहने वाले बृजभूषण गोयल की बेटी श्वेता को पसंद कर के उस के साथ कर दी थी. बृजभूषण का लुधियाना में कपड़े रंगने का व्यवसाय था. श्वेता के अलावा उन का भी एक ही बेटा था गौरव.

लुधियाना जैसे महानगर में पलीबढ़ी श्वेता को जगराओं जैसा छोटा शहर देहात जैसा लगता था. उस का वश चलता तो वह एक पल भी जगराओं में न रुकती. लेकिन मांबाप की इज्जत की खातिर वह स्वयं को ससुराल में व्यवस्थित करने की कोशिश करने लगी थी. इस में वह काफी हद तक सफल भी हो गई थी.

श्वेता को एक बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम हितेन रखा गया. चूंकि श्वेता उच्चशिक्षा प्राप्त थी और उस ने महानगर और कालेज की रंगीनियों में दिन गुजारे थे, इसलिए कभीकभी न चाहते हुए भी उस के मन को भटका देते थे. घर में पड़ेपड़े श्वेता का दम घुटने लगा तो उस ने लैपटौप खरीद लिया. नेट लगवा कर वह उसी पर समय काटने लगी.

कोई चिंता उसे थी नहीं, उतनी बड़ी कोठी में सास कुसुम के अलावा और कोई नहीं होता था. वह भी ज्यादातर बीमार ही रहती थीं.  नेट से भी मन भर जाता तो श्वेता समय काटने के लिए कार ले कर निकल पड़ती. जगराओं में ऐसा कुछ था नहीं, जहां वह समय गुजारती. इसलिए वह लुधियाना चली जाती. सिंगला परिवार इस का बुरा भी नहीं मानता था.

श्वेता खुले विचारों की आधुनिक युवती थी, जिस से वह आजाद पंछी की तरह हवा में उड़ना चाहती थी. जबकि उस की ससुराल वाले धार्मिक प्रवृत्ति के थे, इसलिए वो आजकल की चकाचौंध और फैशनपरस्ती से काफी दूर थे. यही वजह थी कि ससुराल उसे कैदखाने की तरह लगती थी.

श्वेता कुछ मांबाप की इज्जत का खयाल कर रही थी तो कुछ समाज का, इसीलिए वह साहिल के साथ दांपत्य की गाड़ी खींच रही थी. क्योंकि साहिल उसे भोंदू, गंवार और बेवकूफ लगता था. शायद इसीलिए एक दिन दांपत्य की इस गाड़ी को ऐसा झटका लगा कि श्वेता की गाड़ी दूसरी पटरी पर चली गई.

पिछले साल मई में श्वेता के भाई गौरव की शादी थी. उस के भाई की शादी थी, इसलिए शादी में शामिल होने के लिए वह तो आई ही थी, पति और सासससुर भी शादी में शामिल होने आए थे. यह शादी लुधियाना के गुलमोहर पैलेस में हो रही थी. इसी शादी में श्वेता की मुलाकात हितेश जिंदल से हुई.

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