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इधर राजू आरती को साथ ले कर लखनऊ से कानपुर आ गया. वहां उस ने विजय नगर कच्ची बस्ती में एक मकान किराए पर ले लिया और आरती के साथ रहने लगा. एक महीने बाद दोनों ने शास्त्री नगर स्थित काली मंदिर में एकदूसरे को जयमाला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया.

प्रेम विवाह करने के बाद दोनों सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे. राजू और आरती दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहते थे. राजू आरती को हर तरह से खुश रखने में लगा रहता था. आरती भी अपने दूसरे पति का भरपूर खयाल रखती थी.

हंसीखुशी 3 साल बीत गए. उस के बाद आरती का मन राजू से भर गया. अब वह राजू से दूरियां बनाने लगी. दरअसल, राजू की आर्थिक स्थिति अब कमजोर हो गई थी. उस की कमाई का आधा हिस्सा आरती अपने शृंगार व कपड़ों पर ही खर्च कर देती थी. फिर मकान का किराया और गृहस्थी के अन्य खर्चों की वजह से पैसे का अभाव हो जाता था. इसे ले कर आरती और राजू में झगड़ा होने लगा था.

राजू का एक दोस्त निर्मल श्रीवास्तव था. वह भी राजू के साथ मजदूरी करता था. दोनों में खूब पटती थी. कभी कभी शाम को राजू के घर दोनों की महफिल भी जम जाती थी. वह राजू की आर्थिक मदद भी करता रहता था. इसलिए राजू निर्मल के अहसानों तले दबा रहता था. निर्मल आरती को मन ही मन चाहता था, लेकिन आरती से अपनी बात कह नहीं पाता था.

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