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चेन्नई के वेल्लाचीरी के बहुचर्चित प्रिंस शांता कुमार हत्याकांड की गवाही पूरी हो चुकी थी. 29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. साथ ही आदेश दिया कि प्रिंस शांताकुमार के हत्यारे पी. राजगोपाल, डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 7 जुलाई, 2019 तक कोर्ट में सरेंडर करना होगा.दरअसल, 19 मार्च, 2009 को चेन्नई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने प्रिंस शांताकुमार की हत्या और हत्या की साजिश करार देते हुए इस केस के सभी दोषियों को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. साथ ही हत्याकांड के मुख्य आरोपी और डोसा किंग के नाम से मशहूर पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया था, जिस में से 50 लाख रुपए मृतक की पत्नी जीवज्योति को दिए जाने थे. शेष रकम कोर्ट में जमा करानी थी.

हाईकोर्ट ने जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका सिरे से खारिज कर दी और हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए 7 जुलाई, 2019 तक हाईकोर्ट, चेन्नई में सरेंडर करने का आदेश दिया था.

पी. राजगोपाल ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए एक चाल चली. सरेंडर करने की आखिरी तारीख से 3 दिन पहले यानी 4 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल नाटकीय ढंग से तमिलनाडु के वाडापलानी स्थित विजया अस्पताल में जा कर भरती हो गया.

अस्पताल में उसे औक्सीजन मास्क लगा दी गई. समाचार पत्रों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया को इस बात का पता तब चला जब उस की औक्सीजन मास्क लगी फोटो सामने आई. खबर थी कि प्रिंस शांताकुमार का हत्यारा डोसा किंग पी. राजगोपाल गंभीर रूप से बीमार होने की वजह से विजया अस्पताल में भरती है.

पी. राजगोपाल ने ये चाल जेल जाने से बचने के लिए चली थी ताकि कोर्ट को उस पर दया आ जाए और उसे जेल जाने से बचा ले. अस्पताल में भरती होने के 4 दिन बाद यानी 9 जुलाई, 2019 को वह मास्क लगाए एंबुलेंस से चेन्नई हाईकोर्ट में सरेंडर करने जा पहुंचा.

कोर्ट ने उसे 7 जुलाई तक की मोहलत दे रखी थी, लेकिन दिमाग का शातिर राजगोपाल कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए जानबूझ कर 2 दिन बाद कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचा था, जबकि उस के पांचों साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने पहले ही सरेंडर कर दिया था.

पी. राजगोपाल के वकील ने उसे बचाने के लिए कोर्ट के सामने उस के गंभीर रूप से बीमार होने के दस्तावेज पेश किए. लेकिन हाईकोर्ट ने उस की एक नहीं सुनी. न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान कोर्ट को उस के बीमार होने की कोई सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए उसे जेल जाना होगा.

जेल से अस्पताल पहुंचा राजगोपाल  कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल को हिरासत में ले कर पुजहाल जेल भिजवा दिया. ऐसा करना कोर्ट की विवशता थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था. जेल जाने के 10 दिनों बाद पी. राजगोपाल की तबीयत सचमुच बिगड़ गई.

18 जुलाई को उसे जेल से निकाल कर सरकारी अस्पताल स्टेनली मैडिकल कालेज, चेन्नई में भरती कराया गया. तबीयत में कोई सुधार न होता देख राजगोपाल के बेटे ने अधिकारियों से इजाजत ले कर उसे इलाज के लिए उसे एक निजी अस्पताल में भरती कराया. अगले दिन इलाज के दौरान सुबह करीब 10 बजे पी. राजगोपाल ने दम तोड़ दिया. राजगोपाल की मौत के साथ शांताकुमार के एक हत्यारे की कहानी का अंत हो गया.

प्रिंस शांताकुमार कौन था? पी. राजगोपाल ने उस की हत्या क्यों की या करवाई, वह हत्यारा कैसे बना? इन सवालों से साइड बाई साइड निकली कहानी रोचक और रोमांचक है. प्याज उगाने वाले एक मामूली किसान का बेटा पी. राजगोपाल पिता की कर्मस्थली से भाग कर कैसे फर्श से अर्श तक पहुंचा, इस कहानी को जानने के लिए हमें पी. राजगोपाल के शुरुआती जीवन के पन्नों को पलटना होगा.

राजगोपाल मूलरूप से तमिलनाडु के तूतीकोरिन के पुन्नाइयादी का रहने वाला था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. उस के पिता प्याज की खेती करते थे. इस कहानी की शुरुआत होती है 1973 से. पिता की ख्वाहिश थी कि राजगोपाल खेती में उन का हाथ बंटाए ताकि प्याज का पुश्तैनी कारोबार चलता रहे. प्याज की पैदावार ही उन के परिवार के भरणपोषण का एकमात्र साधन थी.

राजगोपाल मांबाप का एकलौता बेटा था. उसे पिता के साथ खेती करना मंजूर नहीं था. वह गांव छोड़ कर चेन्नई (तब मद्रास) चला आया. चेन्नई के के.के. नगर में उस ने किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली.

करीब 8 साल तक उस ने किराने की दुकान चलाई. इसी दौरान उस की दुकान पर एक ज्योतिषी आया. ज्योतिषी ने बताया कि अगर वह किराने की दुकान के बजाए रेस्टोरेंट खोले तो ज्यादा मुनाफा होगा.

राजगोपाल ने ज्योतिषी की बात मान ली. उस ने किराने की दुकान बंद कर के उसी जगह पर छोटा सा रेस्टोरेंट खोल लिया. उस ने रेस्टोरेंट को नाम दिया— सर्वना भवन. अपने रेस्टोरेंट में उस ने डोसा, इडली, पूड़ी और वड़ा बेचना शुरू किया.

वह दौर ऐसा था, जब अधिकांश भारतीय बाहर खाने के बारे में सोचते तक नहीं थे, लेकिन राजगोपाल ने रिस्क लिया. उस ने डोसा, पूड़ी, वड़ा और इडली बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना शुरू किया. साथ ही मसाले भी अच्छी क्वालिटी के लगाए.

कीमत रखी प्रति थाली सिर्फ 1 रुपया. नतीजा यह हुआ कि उसे एक महीने में 10 हजार रुपए का घाटा हो गया. लेकिन वह न तो कारोबार में हुए घाटे से पीछे हटा और न ही गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता किया.

पी. राजगोपाल की मेहनत रंग लाई. बीतते वक्त के साथ कुछ ऐसा हुआ कि चेन्नई में अगर किसी का बाहर खाने का मन होता तो उस की पहली पसंद सर्वना भवन ही होती थी. उस के स्टाफ में जितने भी कर्मचारी थे, सब को अच्छी सैलरी देनी शुरू कर दी.

निचले स्तर के कर्मचारियों को उस ने मैडिकल की सुविधा भी देनी शुरू कर दी. नतीजा यह निकला कि उस का स्टाफ उसे अन्नाची (बड़ा भाई) कहने लगा. पी. राजगोपाल के अच्छे व्यवहार से उस के कर्मचारी उसे दिल से चाहते थे. अगर उसे छींक भी आ जाती तो वे तड़प उठते थे.

अरबपति बनने की राह पर  राजगोपाल की मेहनत और निष्ठा से उस का कारोबार चल निकला. नतीजा यह निकला कि राजगोपाल का ज्योतिषी पर भरोसा बढ़ गया. बहरहाल, जो भी हो वक्त के साथ कारोबार इतना बढ़ा कि राजगोपाल ने रेस्टोरेंट की चेन शुरू कर दी. धीरेधीरे लोग राजगोपाल का नाम भूल गए और उसे डोसा किंग के नाम से जानने लगे.

ज्योतिषी की सलाह पर राजगोपाल ने रंगीन कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. वह झक सफेद पैंट और शर्ट पहनने लगा. साथ ही माथे पर चंदन का बड़ा टीका भी लगाता.

इतना ही नहीं, उस ने अपने रेस्टोरेंट में अपने ज्योतिषी की तसवीर भी लगवा दी. जीवन में आए इस बदलाव की वजह से उस ने ज्योतिषी को भगवान का दरजा दे दिया. ज्योतिषी जो कहता, राजगोपाल वही करता था.

20 साल के अंदर राजगोपाल का सर्वना भवन देश में ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर हो गया. सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, हौंगकौंग, सऊदी अरब, ओमान, कतर, बहरीन, कुवैत, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्वीडन, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इटली और रोम में भी राजगोपाल के आउटलेट्स खुल गए.

डोसा किंग पी. राजगोपाल की किस्मत आसमान में तारे की तरह चमक रही थी. कारोबार में नोट बरस रहे थे. डोसे की कमाई से उस के पास इतने पैसे आ गए कि वह नोटों के बिस्तर पर सोने लगा. उसी दौरान पी. राजगोपाल ने एक नहीं, 2-2 शादियां कीं. लेकिन दोनों पत्नियां उस के साथ नहीं टिकीं और हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चली गईं.

यह वह समय था जब अर्श तक पहुंचे राजगोपाल की बरबादी की कहानी लिखी जानी शुरू हो गई थी. राजगोपाल के पास अकूत संपत्ति तो थी, लेकिन वह घरगृहस्थी के सुख के लिए तरस रहा था.

हर काम ज्योतिषी से पूछ कर करने वाले राजगोपाल ने उसी ज्योतिषी से सलाह ली.

ज्योतिषी ने उसे तीसरी शादी का सुझाव दिया. राजगोपाल ने उस का सुझाव मान लिया. अब सवाल यह था कि तीसरी शादी किस से की जाए, क्योंकि तब तक राजगोपाल की आयु 50-55 बरस हो चुकी थी. इस उम्र में कोई उसे अपनी बेटी क्यों देता.

राजगोपाल की तीसरी शादी की बात बरबादी के रूप में आई. शादी के चक्कर में उस का टकराव जीवज्योति से हुआ. बात सन 2000 के शुरुआत की है. जीवज्योति पी. राजगोपाल से कुछ पैसे उधार लेने के लिए आई. वह उन्हीं की कंपनी में काम करने वाले असिस्टेंट मैनेजर रामास्वामी की बेटी थी.

जीवज्योति का पति शांता कुमार ट्रैवल एजेंसी शुरू करना चाहता था, जिस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी. इसीलिए पति के कहने पर वह राजगोपाल के पास गई. उस के पिता रामास्वामी बेटी को अकेला छोड़ कर थाइलैंड चले गए थे. वह होते तो यह रकम वह अपने पिता से ले सकती थी.

राजगोपाल ने जब बला की खूबसूरत जीवज्योति को पहली बार देखा तो वह देखता ही रह गया. उस की खूबसूरती आंखों के रास्ते दिल में उतर जाने वाली थी. उस समय जीवज्योति की उम्र 27-28 साल रही होगी. वह राजगोपाल के दिल में उतर गई. उस ने जीवज्योति को तीसरी पत्नी बनाने की ठान ली.

लेकिन यहां राजगोपाल गलत था, क्योंकि वह प्रिंस शांताकुमार की पत्नी थी. जीवज्योति ने शांताकुमार से बहुत पहले ही लव मैरिज कर ली थी. यह बात राजगोपाल को पता भी चल गई थी. फिर भी वह जीवज्योति की खूबसूरती पर मर मिटा.

दरअसल शांताकुमार प्रोफेसर था. वह रामास्वामी की बेटी जीवज्योति को मैथ्स पढ़ाने के लिए उस के घर आता था. वह स्मार्ट और गबरू जवान था, चेन्नई के वेल्लाचीरी का रहने वाला. पढ़ातेपढ़ाते शांताकुमार का दिल जीवज्योति के लिए धड़कने लगा. जीवज्योति का भी हाल कुछ ऐसा ही था.

दोनों को इस बात का अहसास तब होता था, जब ट्यूशन के बाद दोनों अलग होते थे. जीवज्योति ने अपने गुरु की आंखों में अपने प्रति पलते प्यार को देख लिया था. जीवज्योति का दिल भी शांताकुमार के लिए बेकरार था. अंतत: दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. फिर दोनों ने चुपचाप मंदिर में जा कर शादी भी कर ली.

यह बात सन 1999 की है. जीवज्योति ने भले ही अपने प्यार और शादी के राज को दबाए रखा, लेकिन उस का यह राज उस के पिता रामास्वामी के सामने आ ही गया. रामास्वामी को जब यह राज पता चला तो उन्हें धक्का लगा. उन्हें यह शादी मंजूर नहीं थी, क्योंकि शांताकुमार क्रिश्चियन था और जीवज्योति ब्राह्मण.

तमाम विरोधों के बावजूद जीवज्योति और शांताकुमार ने अपनी राह चुन ली थी घर वालों ने इस शादी का घोर विरोध किया. परिवार वालों के विरोध के चलते जीवज्योति अपने मांबाप का घर छोड़ कर प्रेमी से पति बने शांताकुमार के घर चली गई. बेटी के इस कदम से आहत हो कर रामास्वामी थाइलैंड चले गए और वहीं बस गए.

शादी के कुछ समय बाद शांताकुमार की नौकरी छूट गई और वह बेरोजगार हो गया. उस ने अपना व्यवसाय करने के बारे में सोचा. जीवज्योति पी. राजगोपाल को जानती थी, क्योंकि उस के पिता की वजह से राजगोपाल उसे बेटी कहता था और मानता भी खूब था.

पति शांताकुमार ने ही जीवज्योति को सुझाया था कि वह राजगोपाल के पास जा कर कुछ रकम उधार मांगे. जब बिजनैस से पैसा आएगा, तो उस की रकम लौटा देंगे. पति के सुझाव पर जीवज्योति राजगोपाल के पास पैसा मांगने गई. पी. राजगोपाल ने जीवज्योति को उतनी रकम दे दी, जितनी उसे जरूरत थी. इस रकम से शांता कुमार ने ट्रैवलिंग एजेंसी शुरू भी कर दी.

लेकिन दूसरी ओर जीवज्योति को देख कर राजगोपाल की नीयत खराब हो गई थी. उसे जीवज्योति इतनी पसंद आई कि वह उस से तीसरी शादी करने की योजना बनाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने जीवज्योति को महंगेमहंगे गिफ्ट भेजने भी शुरू कर दिए.

राजगोपाल की इस मेहरबानी को न तो जीवज्योति समझ पाई थी और न ही उस का पति शांताकुमार. लेकिन जल्द ही दोनों उस की नीयत को समझ गए कि उस के दिमाग में कितनी गंदगी भरी हुई है. तभी तो बेटी कहने वाला राजगोपाल उस पर नजर गड़ाए हुए था.

दरअसल, राजगोपाल ने एक दिन जीवज्योति को अपने औफिस बुलाया. औफिस में उस की खूब आवभगत की और उस के सामने अपने दिल की बात रख दी कि वह अपने पति शांताकुमार को छोड़ कर उस से शादी कर ले.

उस की बात सुन कर जीवज्योति बुरी तरह भड़क गई और उसे खूब खरीखोटी सुना कर घर लौट आई. इस के बाद राजगोपाल ने पतिपत्नी के बीच दूरी पैदा करने की कोशिश शुरू कर दी.

पी. राजगोपाल अपने बुरे इरादों में कामयाब नहीं हो पाया. फिर भी उस ने जीवज्योति को फोन करना और महंगे तोहफे भेजना बंद नहीं किया. जब से राजगोपाल ने जीवज्योति से शादी की बात की थी, तभी से वह राजगोपाल पर भड़की हुई थी. ऊपर से उस का रोज फोन आना और महंगे तोहफे भेजना, इस सब से वह परेशान हो गई थी. जब उस ने देखा कि पानी सिर से ऊपर बह रहा है तो वह उस के प्रति और सख्त हो गई.

पी. राजगोपाल के फोन करने और महंगे तोहफों से परेशान हो कर जीवज्योति ने उस की शिकायत पुलिस में करने की धमकी दी. लेकिन इस धमकी का उस पर कोई असर नहीं हुआ. इस के बावजूद वह जीवज्योति को रोज फोन करता और महंगे तोहफे भेजता.

जीवज्योति का पति शांताकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि पी. राजगोपाल रसूखदार इंसान है. उस की ऊपर तक पहुंच है. उस से पंगा लेना आसान नहीं होगा. काफी सोचविचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि इस शहर को ही छोड़ दिया जाए.

प्रिंस शांताराम और उस की पत्नी चेन्नई छोड़ पाते, उस से पहले ही 28 सितंबर, 2001 को पी. राजगोपाल अपने 5 साथियों के साथ उन के घर जा पहुंचा. उस ने जीवज्योति से धमकी भरे लहजे में कहा कि 2 दिन के अंदर वह अपने पति से रिश्ता तोड़ दे और उस से शादी कर ले नहीं तो इस का बहुत बुरा अंजाम होगा. जीवज्योति डरी नहीं, उस ने उस के मुंह पर ही कह दिया कि वह अपने पति से किसी भी तरह अलग नहीं हो सकती, चाहे वह जो भी कर ले.

जीवज्योति के मुंह से न सुनते ही पी. राजगोपाल आगबबूला हो उठा. वह न सुनने का आदी नहीं था. वह ऐसा शख्स था, जिस चीज पर उस का दिल आ जाता था, उसे साम, दाम, दंड, भेद चारों नीति अपना कर उसे हासिल कर लेता था, चाहे इस के लिए उसे भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

राजगोपाल को जीवज्योति पसंद आ गई थी. लेकिन उस ने उस के मुंह पर ही मना कर दिया था. उसे यह बात बहुत बुरी लगी, इसलिए उसे गुस्सा आ गया. वह उसे हासिल किए बिना इतनी आसानी से कैसे जाने देता.

जीवज्योति के मना करने के बाद राजगोपाल का इशारा पा कर उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने शांताकुमार को जबरन एक कार में बिठाया और राजगोपाल के के.के. नगर स्थित पुराने गोदाम में ले गए.

जीवज्योति की आंखों के सामने उस के पति का अपहरण हुआ था. वह इसे कैसे सहन कर सकती थी. उस ने के.के. नगर थाने में राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ शांताकुमार के अपहरण की नामजद तहरीर दी. लेकिन पुलिस ने उस का मुकदमा दर्ज नहीं किया.

जीवज्योति कई दिनों तक थाने के चक्कर काटती रही, लेकिन उस का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ. इस बीच वह अपने स्तर पर पति का पता लगाती रही लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

पति को ले कर जीवज्योति निराश हो गई थी. वह सोचती थी कि पता नहीं राजगोपाल के आदमियों ने शांताकुमार के साथ कैसा सुलूक किया होगा. उस ने पति के जीवित होने की आशा छोड़ दी थी. बस वह यही प्रार्थना करती थी कि वह जहां भी हो, सहीसलामत रहे.

अपहरण के 14वें दिन यानी 12 अक्तूबर, 2001 को शांताकुमार अपहर्ताओं के चंगुल से बच निकला और सीधे पुलिस कमिश्नर के औफिस पहुंच गया. उस ने अपनी आपबीती कमिश्नर को सुना दी.

पुलिस ने बात तो सुनी पर नहीं की ठोस काररवाई  शांताकुमार की पूरी बात सुन कर पुलिस कमिश्नर हतप्रभ रह गए. उन्होंने के.के. नगर थाने के थानेदार को जम कर फटकार लगाई और पीडि़त शांताकुमार का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया. इस के बाद पुलिस को राजगोपाल के खिलाफ मुकदमा लिखना ही पड़ा.

पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद शांताकुमार और जीवज्योति को यकीन हो गया था कि पुलिस दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई करेगी. इस के बाद वे दोनों अपनी तरफ से यह सोच कर थोड़ा लापरवाह हो गए थे कि मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद राजगोपाल की हेकड़ी कम हो जाएगी, वह दोबारा कोई ओछी हरकत नहीं करेगा.

लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद पी. राजगोपाल और भी आक्रामक हो गया था. एक अदना सी औरत उस से टकराने की जुर्रत कर रही थी, यह उसे यह बरदाश्त नहीं था. उस ने सोच लिया कि जीवज्योति को इस की सजा मिलनी चाहिए.

2-4 दिन तक जब राजगोपाल की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो शांताकुमार और जीवज्योति को लगा कि अब मामला सुलझ जाएगा.

लेकिन यह उन का भ्रम था. 6 दिन बाद 18 अक्तूबर, 2001 को एक बार फिर से शांताकुमार का अपहरण हो गया. अपहरण राजगोपाल ने ही करवाया था.

शांताकुमार का अपहरण करवाने के बाद पी. राजगोपाल फिर से जीवज्योति पर शादी के लिए दबाव डालने लगा. उस ने फिर से फोन करना शुरू कर दिया. जीवज्योति ने भी साफ कह दिया कि वह मर जाएगी लेकिन शादी के लिए तैयार नहीं होगी.

14 दिनों बाद 31 अक्तूबर, 2001 को कोडैकनाल के टाइगर चोला जंगल में शांताकुमार की डेडबौडी मिली. पति की लाश बरामद होने के बाद जीवज्योति ने थाने जाने के बजाय अदालत की शरण लेना बेहतर समझा. उस का पुलिस से भरोसा उठ चुका था, इसलिए उस ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट का फैसला जीवज्योति के पक्ष में आया और अदालत ने केस दर्ज करने का आदेश दे दिया.

कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन के खिलाफ अपहरण, हत्या की साजिश और हत्या का केस दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस राजगोपाल की तलाश में जुट गई.

आखिर झुकना पड़ा कानून के सामन  अंतत 23 नवंबर, 2001 को राजगोपाल ने चेन्नई पुलिस के समने सरेंडर कर दिया. उस के सरेंडर करने से पहले पुलिस पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. करीब डेढ़ साल तक जेल में रहने के बाद 15 जुलाई, 2003 को पी. राजगोपाल को जमानत मिल गई.

पी. राजगोपाल के जमानत पर बाहर आते ही जीवज्योति फिर से कोर्ट पहुंच गई. उस समय शांताकुमार का केस बहुचर्चित केस था, सो मामला स्पैशल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.

सन 2004 में सेशन कोर्ट का फैसला आ गया. कोर्ट ने अपहरण, हत्या की कोशिश और हत्या के मामले में पी. राजगोपाल और 5 दूसरे लोगों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई.

जीवज्योति इस सजा से खुश नहीं थी. उस ने हाईकोर्ट में अपील कर दी. करीब 5 साल तक मामला हाईकोर्ट में चलता रहा और फिर मार्च, 2009 में हाईकोर्ट का फैसला भी आ गया.

19 मार्च, 2009 को हाईकोर्ट के जस्टिस बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने इसे हत्या और हत्या की साजिश का मामला करार देते हुए सभी दोषियों को मिली 10-10 साल की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. साथ ही पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया, जिस में से 50 लाख रुपए जीवज्योति को दिए जाने थे.

जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.  29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि राजगोपाल को 7 जुलाई, 2019 तक सरेंडर करना होगा.

पी. राजगोपाल का पासा पलट गया था. अब उस का साथ न तो वक्त दे रहा था और न ही ज्योतिषी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद राजगोपाल की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया. लेकिन वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था.

उस ने नया पैंतरा चला. पी. राजगोपाल 4 जुलाई को अस्पताल में दाखिल हो गया. 7 जुलाई को सरेंडर करने की तारीख बीत गई तो उस ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उस ने कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है. उसे थोड़ी और मोहलत दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट पर उस की दलीलों का कोई असर नहीं हुआ.

जस्टिस एन.वी. रमन्ना की खंडपीठ ने कहा कि उसे हर हाल में कोर्ट में सरेंडर करना ही होगा. क्योंकि उस ने केस की सुनवाई के दौरान अपनी बीमारी का जिक्र नहीं किया था. इस के बाद 9 जुलाई, 2019 को वह मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. एक एंबुलेंस उसे कोर्ट ले कर गई थी. नाक में औक्सीजन मास्क लगा हुआ था. कोर्ट के आदेश पर पी. राजगोपाल को जेल भेज दिया गया. 10 दिन जेल में रह कर उस की हालत सचमुच बिगड़ गई. उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां 19 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल का निधन हो गया. राजगोपाल के निधन के बाद केस की काररवाई बंद कर दी गई. बाकी पांचों आरोपी जेल में सजा काट रहे हैं.    —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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