एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 1

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी  खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था.

मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया. मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था. न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तों यारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी?

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 5

मैं आगे बढ़ता रहा. थकान भूखप्यास से बुरा हाल था पर खुदा मुझ पर मेहरबान था. आगे मुझे कुछ मकान दिखने लगे. मेरा घोड़ा भी लस्तपस्त हो गया था. मैं थोड़ा आगे बढ़ा तो एक होटल नजर आया. खाने की खुशबू बाहर तक आ रही थी. पर मेरे पास पैसे नहीं थे, मैं वहीं थक कर बैठ गया. होटल के काउंटर पर बैठा शख्स मुझे गौर से देख रहा था.

कुछ देर बाद वह उठ कर बाहर आया और मुझे ध्यान से देखते हुए बोला, ‘‘यहां पहली बार दिख रहे हो, परदेसी हो क्या?’’

मैं ने बेबसी से कहा, ‘‘हां परदेसी हूं. भूखा हूं, पर जेब में पैसे नहीं हैं.’’

‘‘तुम कुछ पढ़ेलिखे हो? अंगरेजी बोल सकते हो, कुछ हिसाबकिताब कर सकते हो? दरअसल, मेरे यहां जो आदमी काम करता था, वह बाहर चला गया है, तुम मुझे जरूरतमंद और काबिले भरोसा लग रहे हो.’’

मैं ने झट से जवाब दिया, ‘‘मैं अंगे्रजी बोल सकता हूं, हिसाबकिताब भी कर सकता हूं. आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं.’’

होटल के मालिक आदम शेख ने मुझे होटल में रख लिया. होटल के पीछे ही मुझे रिहाइश भी मिल गई. मैं पूरी ईमानदारी से काम करने लगा. ऐतिहासिक शहर होने की वजह से वहां अंगरेज टूरिस्ट आते थे. इसलिए मेरी अहमियत और बढ़ गई. यहां मेरी अंगरेजी की काबिलियत काम आई.

मुझे जो जहर ऐना ने दिया था जब वह जिस्म से निकला तो मेरी बुराइयां भी निकल गईं. शायद मैं पूरी तरह बदल गया. देखने में मैं वैसे भी काफी स्मार्ट था. अब रहनसहन, आदतें बदलने से मेरी निखरी हुई शख्सियत से आदम शेख बहुत प्रभावित हुआ. मेरे काम ने उस का दिल जीत लिया था.

वक्त मुझ पर मेहरबान हुआ, आदम शेख ने अपनी इकलौती बेटी नूरी की शादी मुझ से कर दी. उस ने होटल की सारी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दी. एक खूबसूरत, समझदार बीवी ने मेरी जिंदगी में खुशियां भर दीं. पर दिल की टीस किसी हाल में कम नहीं हुई. जब भी मुझे बाबर और ऐना का जालिमाना रवैय्या याद आता, मेरे जिस्म में जैसे आग सी भर जाती. जुनून सा सवार हो जाता.

मैं ने इस आग को दबाने की बहुत कोशिश की पर वक्त के साथ तपिश बढ़ती गई. दिल चाहता एक बार फिर अजीरा जाऊं और उन दोनों को ऐसी सजा दूं कि उम्र भर याद रखें. मैं ने उन का कुछ नहीं बिगाड़ा था फिर भी उन दोनों ने मुझे जहर दिया और जब मैं ने उस का मुआवजा वसूल किया तो ऐसा सुलूक किया जिसे मैं आज तक नहीं भूल सका.

जिंदगी और मौत की 4 घंटे की वो कशमकश, वो खौफ और दहशत के पल मैं कैसे भूल सकता था. जहर के असर होने के डर से मैं जीतेजी कई बार मरा.

गनीमत यही थी कि मैं मजबूत शरीर का मालिक था जो ये सब झेल गया. कमजोर दिल तो मौत की सोच कर ही मर जाता. अपने सुकून की खातिर मैं ने एक बार अजीरा जाने का फैसला कर लिया.

उन दिनों होटल में काम कम था. मैं ने अपने एक भरोसेमंद साथी को जिम्मेदारी सौंपी. मैं ने नूरी और आदम शेख से एक बहुत जरूरी काम का बहाना किया और अजीरा के लिए रवाना हो गया. वक्त इतना ज्यादा नहीं गुजरा था कि मुझे रास्ता ढूंढ़ने में परेशानी होती.

जब मैं डा. जव्वाद के फार्म हाउस के गेट पर पहुंचा शाम हो रही थी. इस बीच फार्महाउस में थोड़े बदलाव हुए थे. गेट पर घंटी लगी थी. मैं ने बेहिचक घंटी बजाई तो एक उम्रदराज शख्स ने गेट खोला. मेरे कहने पर वह मुझे डाक्टर जव्वाद के पास उन के क्लीनिक वाले पोर्शन में ले गया.

कुछ पल डाक्टर मुझे गौर से देखता रहा. फिर उस की आंखों में चमक उभरीं. मुझे पहचानते ही वह खड़ा हुआ और बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘तुम…तुम… शमशेर हो न, बहुत अच्छा लगा. तुम्हें यहां देख कर.’’

मैं ने अपने साथ लाए तोहफे डाक्टर को पेश करते हुए कहा, ‘‘डा. साहब, मैं इधर से गुजर रहा था, दिल चाहा कि आप से मिलता चलूं. आप की मदद और कुदरत की मेहरबानी से बहुत खुशहाल और शानदार जिंदगी जी रहा हूं. अकसर याद आती थी आप की, आज मिलने का मौका मिल गया.’’

डा. जव्वाद हालचाल पूछता रहा, फिर कहने लगा, ‘‘मुझे अजीरा मे एक सीरियस पेशेंट को देखने जाना है, चाहो तो गेस्ट रूम में आराम करो या मेरे साथसाथ चलो.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं आप के साथ चलूंगा. इस बहाने कस्बा भी घूम लूंगा.’’ मेरे दिल में बाबर के बारे में जानने की बेचैनी थी, इसलिए मैं चाय पीने के बाद डाक्टर के साथ निकल पड़ा. जानेपहचाने रास्ते, डाक्टर की बग्घी जब बाबर की हवेली के आगे रुकी तो मैं हैरान रह गया. डाक्टर के साथ अंदर पहुंचा तो हवेली में एक अजब सी उदासी और खामोशी थी.

सामने जहाजी साइज पलंग पर एक कंकाल सा वजूद पड़ा हुआ था. तभी डाक्टर की आवाज मेरे कानों से टकराई, ‘‘कैसे हो बाबर? तकलीफ कुछ कम हुई या नहीं?’’ मुझे एक झटका सा लगा. हड्डियों का वह ढांचा बाबर है, यकीन नहीं आ रहा था. मेरे कानों में एक कांपती हुई सी आवाज पड़ी, ‘‘बड़ी तकलीफ है, कुछ करो डाक्टर.’’

डाक्टर और उस के नौकर ने बड़ी मुश्किल से उसे उठा कर दवा पिलाई. वह हाथ हिलाने के काबिल भी नहीं था. आंखें धंसी हुईं. चेहरे पर झुर्रियां, गले की लटकी हुई खाल. वह कहीं से बाबर नजर नहीं आ रहा था. मैं उस से बदला लेना चाहता था पर उसे इस हालत में देख कर मैं एक अजीब असमंजस में पड़ गया.

वापसी पर मैं ने डा. जव्वाद से पूछा, ‘‘इसे क्या हो गया डाक्टर? बाबर तो बहुत तंदुरुस्त और कडि़यल जवान था.’’

डाक्टर के चेहरे पर एक रहस्यमय मुसकान फैल गई. वह धीरे से बोला, ‘‘कभीकभी पहाड़ भी अनदेखे ज्वालामुखी से टकरा कर किरचा किरचा हो जाते हैं. हम लोग 2-3 दिन के लिए पहाड़ी इलाके में गए थे. मेरे और ऐना के साथ बाबर भी था. ऐना उसे साथ ले जाने की जिद कर रही थी इसलिए मैं टाल न सका. वहां आदिवासियों ने हम लोगों की बड़ी मेहमाननवाजी की.

‘‘वहां पता नहीं कैसे बाबर जहरीली बूटी खा गया. इत्तफाक से मैं अपनी दवाइयां साथ ले जाना भूल गया था. उस के इलाज में काफी देर हो गई, जहर अंदर तक असर कर चुका है. अब मेरी दवाएं भी फायदा नहीं कर रही हैं. 15 दिन से ऐसी ही शदीद तकलीफ में है.’’

‘‘पर डाक्टर साब आप तो दवाइयां हमेशा अपने साथ रखते हैं, ऐसा कैसे मुमकिन है?’’  मैं ने पूछा तो डाक्टर की आंखों में अजीब सी चमक उभरी.

‘‘शमशेर कुछ चीजें न चाहते हुए भी हो जाती हैं. हो सकता है, उस ने जहर खाया न हो, उसे खिलाया गया हो. जो लोग दूसरों की जिंदगी में जहर घोलते हैं उन्हें भी तो पता चलना चाहिए कि असल में जहर का असर कितना घातक होता है?

‘‘अपनी इज्जत और शोहरत को मैं इस तरह दांव पर नहीं लगा सकता था. इस शर्मनाक मसले का यही एक हल था. ऐना को भी तसल्ली है कि मैं जीजान से बाबर का इलाज कर रहा हूं. ये अलग बात है कि उस की जिंदगी के चंद दिन बाकी हैं.’’

डाक्टर के लहजे की बेरहमी और उस की आंखों की जालिमाना चमक से मैं सारा मामला समझ गया. पिकनिक पर डाक्टर को ऐना और बाबर के ताल्लुक के बारे में यकीन हो गया होगा और उस ने वही किया जो एक इज्जतदार शौहर को करना चाहिए था. उस की बात सुन कर मेरे दिल को बहुत सुकून मिला.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 4

शाम का अंधेरा फैल रहा था. गलियां लैंप पोस्टों से रोशन हो चुकी थीं. वह एक छोटा सा साफसुथरा कस्बा था. वहां के लोग खुशहाल लग रहे थे. मैं बताए गए पते पर पहुंच गया. वह एक बड़ी शानदार हवेली थी. अहाता लैंपों की रोशनी में चमक रहा था. गेट के पास एक खूबसूरत बग्घी खड़ी थी. एक तरफ अस्तबल में घोड़े बंधे थे. मैं ने सोचा किस्मत की बड़ी धनी औरत है ऐना. शौहर भी अमीर और महबूब भी.

जुआरी होने की वजह से मेरी जेब हमेशा खाली रहती थी. बस आखिरी बार जो रकम मेरे हाथ लगी थी वही मेरे पास थी. मुझे इस कस्बे से दौलत की खुशबू आ रही थी. खुशकिस्मती से तुरूप का पत्ता मेरे हाथ लग गया था. अगर मैं एहतियात से खेलता तो एक बड़ी रकम हाथ लग सकती थी. मैं हवेली देख कर लौट आया.

रात का खाना खाने के बाद मैं दवा ले कर डाक्टर के साथ गपशप करने लगा. बातों बातों में मैं ने कस्बे की शानदार हवेली का जिक्र किया तो डाक्टर ने नागवारी से कहा, ‘‘वह हवेली बाबर की है. उस के बाप को कहीं से खजाना मिल गया था, इसलिए इतनी दौलत छोड़ कर मरा है कि वह सारी उम्र उड़ाए तो भी खत्म नहीं होगी.

‘‘बेटा निकम्मा और ऐशपरस्त निकला, बाप की दौलत पर ऐश कर रहा है, नालायक आदमी.’’ डाक्टर के लहजे से बाबर के लिए नफरत साफ झलक रही थी. दवा से मुझे गहरी नींद आई.

सुबह उठा तो एकदम ताजादम था. जब मैं नीचे उतरा तो डाक्टर कहीं गया हुआ था, ऐना नाश्ता लगा रही थी. वह मुझे नाश्ता सर्व करते हुए बोली, ‘‘कल तुम डाक्टर से बाबर का जिक्र कर रहे थे और शायद तुम उस की हवेली भी देख आए हो. मैं तुम्हें आगाह करना चाहती हूं कि तुम उस से पंगा न लो तो तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा. वह बहुत खतरनाक आदमी है.’’

‘‘चलो, मैं तुम्हारी बात मान कर उस से पंगा नहीं लेता, पर तुम दोनों की आशिकी की बात तो सब को बता सकता हूं.’’

‘‘उस से कोई फायदा नहीं होगा, हम साफ इनकार कर देंगे. तुम यहां अजनबी हो, डाक्टर भी तुम्हारी बात का यकीन नहीं करेगा. वो मुझ से बेहद मोहब्बत करता है. वैसे भी इस कस्बे में हमारी बहुत इज्जत और अहमियत है, सब तुम्हें ही झूठा कहेंगे. ये भी मुमकिन है कि एक शरीफ डाक्टर की बीवी पर झूठा इलजाम लगाने की वजह से तुम खुद फंस जाओ.’’

निस्संदेह वह औरत बड़ी शातिर थी. मेरी बातों से जरा भी नहीं घबराई. उस की इस बात में दम था कि एक अजनबी पर कोई यकीन नहीं करेगा. पर अभी भी मेरे हाथ में एक प्लसपौइंट था. मैं ने कहा, ‘‘तुम शायद यह भूल रही हो कि तुम ने मुझे जहर दे कर मारने की कोशिश की थी.’’

इस बार वह थोड़ा घबराई, ‘‘पर इस का क्या सुबूत कि मैं ने तुम्हें जहर दिया था?’’

‘‘इस बात की गवाही खुद डाक्टर जव्वाद देगा कि मुझे जहर दिया गया था. तुम्हारे घर से निकलने के बाद उस रास्ते में कहीं ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां कुछ खायापिया जा सकता. तुम्हारे फार्महाउस से निकलने के 2 घंटे बाद मेरी तबियत बिगड़ने लगी, उल्टी हुई, पेट में जानलेवा दर्द था.

‘‘डाक्टर ने दवा दे कर मेरी जान बचाई. मैं तुम्हारे फार्महाउस में रुका था, तुम ने मुझे खाना खिलाया. यह सब डाक्टर को बता कर मैं तुम पर इलजाम लगाऊंगा. जब बात फैलेगी तो सोचो तुम्हारी क्या इज्जत रह जाएगी. तुम्हारी वजह से डाक्टर की अलग बदनामी होगी क्योंकि कस्बे के कुछ लोग तो जरूर तुम्हारे और बाबर के नाजायज ताल्लुक के बारे में जानते होंगे.’’

‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’ उस का लहजा कमजोर पड़ गया. ‘‘मैं ऐसा ही करूंगा.’’ मैं ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘तुम और बाबर अगर मेरी डिमांड पूरी नहीं करते तो?’’

‘‘तुम्हारी क्या डिमांड है?’’

‘‘सिर्फ 50 हजार रुपए.’’ उस जमाने में यह एक बहुत बड़ी रकम होती थी. 50 हजार की मांग सुन कर उस की आंखें फैल गईं, बोली, ‘‘ये तो बहुत ज्यादा है?’’

‘‘अगर तुम अपनी इज्जत बरकरार रखना चाहती हो तो ये रकम देनी ही पड़ेगी. अपने महबूब को समझाना तुम्हारा काम है. वह लखपति है, उस के लिए 50 हजार कोई बड़ी रकम नहीं है.’’

ऐना चिढ़ कर बोली, ‘‘वह मेरा महबूब नहीं है, वो तो बस एक वक्ती ताल्लुक था.’’

‘‘जब वह तुम्हारा आशिक नहीं है तो तुम डाक्टर को क्यों धोखा दे रही थीं?’’ उस ने धीरे से कहा, ‘‘ये बात तुम नहीं समझोगे.’’

‘‘मुझे समझना भी नहीं है, तुम्हारे पास 2 दिन की मोहलत है. पैसे दे दो वरना कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाओगी.’’ मैं ने कहा तो उस का चेहरा पीला पड़ गया. मैं उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकल गया.

खाने के समय डाक्टर से मुलाकात हुई. उस ने कहा, ‘‘अब तुम्हारी हालत ठीक है, चाहो तो तुम कल जा सकते हो. अब सफर में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

मैं सोच रहा था कि यहां से निकल कर किसी नए शहर में अपनी पहचान छिपा कर रहूंगा. वैसे भी अब बढ़ी हुई दाढ़ी की वजह से मेरा हुलिया काफी कुछ बदल गया था. मैं ने ऐना पर दबाव डालने के लिए जानबूझ कर डाक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, अगर मैं उन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट करना चाहूं. जिन्होंने मुझे जहर दिया था तो क्या आप मेरा साथ देंगे?’’

‘‘हां जरूर, ये एक संगीन जुर्म है. एक डाक्टर होने के नाते मैं ये गवाही जरूर दूंगा कि तुम्हें जहर दिया गया था. ये तो तुम्हारा हक बनता है.’’

‘‘शुक्रिया डा. साहब, सही मानों में आप एक नेक इंसान हैं, मैं आप के अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा.’’

ऐना किचन के पास खड़ी सब सुन रही थी. कुछ देर बाद वह एक बैग ले कर बाहर आई और डाक्टर से बोली, ‘‘मुझे काम से बाहर जाना है. आप को बग्घी की जरूरत तो नहीं है, मैं ले जाऊं?’’

‘‘हां ले जाओ. मैं अब आराम करूंगा,’’ कहते हुए वह उठ कर अपने कमरे में चला गया. कुछ देर बाद मैं भी घोड़ा ले कर ऐना के पीछे निकल गया.

पहले वह एक जनरल स्टोर में गई. फिर कुछ सब्जियां लीं और सीधी बाबर की हवेली की तरफ चली गई. सारा काम मेरी मंशा के मुताबिक हो रहा था. कुछ देर वहां रुक कर वह वापस फार्महाउस चली गई. मैं चुपचाप छिपा खड़ा सब देख रहा था. थोड़ी देर बाद बाबर बग्घी ले कर बाहर निकला, उस का रुख बैंक की तरफ था. मेरा काम हो गया था, मैं फार्महाउस लौट आया.

रात के खाने के बाद डाक्टर ने मुझे दवा का आखरी डोज दिया और मैं ने उस की मुंहमांगी फीस अदा की. वह खुश हो कर अपने शयन कक्ष में चला गया. मैं ऐना के पास बैठ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘मेरा खयाल है, तुम ने बाबर से बात कर ली होगी.’’

‘‘हां, मुझे पता है, तुम मेरा पीछा कर रहे थे. मैं ने बाबर को बामुश्किल 25 हजार देने को राजी किया है. वह भी इस शर्त पर कि तुम फौरन यहां से रवाना हो जाओगे और कभी पलट कर इस तरफ नहीं आओगे.’’

मुझे 25 हजार ठीक लगे. मैं ने कहा, ‘‘पैसे मिलने के बाद यहां लौट कर क्या करूंगा? तुम्हारे हाथ से जहर खा कर हिम्मत टूट गई है.’’

मैं उठ कर अपने कमरे में आ गया. सुबह मुझे निकलना था, मैं डाक्टर से इजाजत ले चुका था. बस अब मुझे रकम का इंतजार था. करीब एक घंटे बाद ऐना आई. उस के हाथ में एक थैली थी.

वह थैली मुझे थमाते हुए बोली, ‘‘ये लो पूरे 25 हजार हैं, सुबह होते ही यहां से निकल जाना वरना अपने अंजाम के तुम खुद जिम्मेदार होगे.’’

मैं ने थैली ले कर पैसे गिने. फिर उसे शुक्रिया कहा तो वह गुस्से में बोली, ‘‘कल सवेरे जल्दी दफा हो जाना.’’

वह पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. मैं ने थैली संभाल कर कपड़ों में छिपाई. फिर कल लाई शराब के कुछ घूंट ले कर मैं ने पैसे मिलने की खुशी मनाई और सो गया.

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जब मेरी आंख खुलीं तो मेरे चेहरे पर तेज धूप पड़ रही थी. कुछ देर तक कुछ भी समझ में नहीं आया. फिर एकदम बौखला कर उठ बैठा. मैं डाक्टर के घर के आरामदेह बिस्तर पर नहीं बल्कि रेत पर पड़ा हुआ था. मैं ने अपने कपड़े टटोले, मेरे पैसे और हथियार गायब थे. सामने देखा तो बाबर घोड़े पर बैठा था. उस की बंदूक की नाल मेरी तरफ उठी हुई थी.

मैं ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘मैं यहां कैसे?’’

‘‘बहुत आसानी से, रात को क्लोरोफार्म, सुंघा कर तुम्हें बेहोश किया और फिर तुम्हें तुम्हारे घोड़े पर डाल कर यहां ले आया. ये जगह फार्महाउस से 4 घंटे की दूरी पर है.’’ मेरी नजर अपने घोड़े पर पड़ी जो झाडि़यों में मुंह मार रहा था. अब न मेरे पास मेरे हथियार थे, न पैसे. मैं एकदम खाली हाथ था. मैं ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘क्या तुम मुझे कत्ल करना चाहते हो?’’

‘‘नहीं, पर तुम ने मुझ से पंगा लेने की भूल की है, उस की सजा तो मिलेगी.’’

‘‘कैसी सजा?’’

बाबर ने बंदूक का रूख मेरी तरफ करते हुए कहा, ‘‘शमशेर तुम्हारे पास दो रास्ते हैं. पहला यह कि मैं तुम्हें गोली मार दूं और दूसरा यह कि,’’ उस ने शराब की एक छोटी बोतल मेरी तरफ उछालते हुए कहा, ‘‘इस शराब को पी लो. इस में वही जहर मिला हुआ है जिस का स्वाद तुम चख चुके हो.’’

उस की बात सुन कर मेरे हाथ से बोतल नीचे गिर गई. बाबर निशाना साधते हुए बोला. ‘‘मैं 10 तक गिनूंगा, इस बीच तुम ने जहर नहीं पिया तो मैं तुम्हें गोली मार कर चला जाऊंगा. एक दो तीन…’’

मैं तड़प कर बोला, ‘‘एक मिनट रुको.’’ मैं बुरी तरह कांप रहा था.

उस ने मुझे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘जहर पीने के बाद तुम्हारे पास जान बचाने के लिए 2 ढाई घंटे होंगे. इस बीच अगर तुम किसी बस्ती तक पहुंच गए तो अपनी जान बचा सकते हो. कोई भी डाक्टर तुम्हारा इलाज कर देगा. पर एक बार गोली चल गई तो बचने का कोई चांस नहीं है. इसलिए जहर पीना ही तुम्हारा नसीब है.’’

वह फिर गिनती गिनने लगा. जब वह 9 तक पहुंचा तो मैं ने बोतल मुंह से लगा ली. वह मुझे शराब पीता देख मुसकरा कर बोला, ‘‘अच्छा किया, तुम ने दूसरा रास्ता चुना. पर अजीरा का रुख न करना क्योंकि वहां तक नहीं पहुंच सकोगे. वैसे भी मेरे आदमी तुम्हारी ताक में हैं.’’

मेरे हाथ से खाली बोतल छीन कर वह घोड़ा दौड़ाते हुए उल्टी तरफ निकल गया. मेरे पास वक्त कम था. मैं ने लपक कर घोड़ा संभाला और घोड़े को विपरीत दिशा में दौड़ाने लगा. इस बार मैं ने जीतने के लिए जिंदगी की बाजी खेली थी और इस जुए में मुझे हर हाल में जीतना था. दांव पर चूंकि मेरी जान लगी हुई थी इसलिए मुझे हर हाल में 2 घंटे में किसी शहर या आबादी में पहुंचना था.

घोड़ा भी शायद मेरी परेशानी समझ कर हवा से बातें करने लगा. मैं भूखप्यास धूप की परवाह किए बिना घोड़ा दौड़ाता रहा. अचानक मुझे अहसास हुआ कि मुझे सफर करते हुए 4 घंटे से ज्यादा गुजर चुके हैं. सूरज सिर पर आ चुका था पर अभी तक जहर ने कोई असर नहीं दिखाया था. मेरी तबियत बिलकुल ठीक थी. इस बीच कोई बस्ती भी नहीं आई थी.

मैं समझ गया बाबर ने जहर की बात झूठ कही थी. निस्संदेह वह चाहता होगा कि मैं जल्द से जल्द उस जगह से बहुत दूर निकल जाऊं. पर इस बीच खौफ और परेशानी में मेरा जो हाल हुआ वह मैं ही जानता था.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 3

डाक्टर की बग्घी बहुत शानदार थी. उस में मोटे गद्दे और नरम कुशन लगे थे. बैठने और लेटने के लिए बड़ी आरामदायक जगह बनाई गई थी. एक काला सा आदमी डाक्टर का कोचवान था.

डाक्टर जव्वाद ने मुझ से यह नहीं पूछा कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं. मैं भी चुपचाप आंख बंद कर के लेटा रहा. कुछ देर बाद उस ने मुझे दूध के साथ दवा दी.

दवाई पी कर मैं ने बग्घी से उतरना चाहा तो मुझे एकदम से जोर का चक्कर आ गया. डाक्टर ने मुझे फिर लिटा दिया. कुछ देर बाद उस ने मुझे नाश्ता और कुछ फल खिलाए. फिर कहा, ‘‘अभी तुम लेटे रहो, चलनाफिरना मुश्किल है. तुम्हें बहुत कमजोरी हो गई है.’’

मैं सोचने लगा कि आहन और तूबा ने मुझे जहर क्यों दिया, उन से मेरी कोई दुश्मनी भी नहीं थी. मेरी आंखों में तूबा का खूबसूरत चेहरा घूम गया. मैं सोच भी नही सकता था कि हुस्न भी इतना जहरीला हो सकता है.

बग्घी वहां से रवाना हो गई. मेरा घोड़ा पीछे आ रहा था. एकाएक डाक्टर ने पूछा, ‘‘तुम्हें जहर किस ने दिया?’’

‘‘मैं एक फार्महाउस पर रुका था. वहां रहने वाले एक मियां बीवी के साथ खानापीना हुआ था. उन लोगों ने ही जहर दिया होगा.’’

‘‘उन से तुम्हारी कोई अदावत थी या कोई झगड़ा हुआ था?’’

‘‘न मेरी उन से कोई दुश्मनी थी न झगड़ा हुआ था, पता नहीं उन लोगों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? वैसे मैं जिन की बात कर रहा हूं उन में मर्द मर्दाना खूबसूरती का नमूना था और औरत बेहद हसीन.’’

‘‘हो सकता है, वे लोग कोई मुजरिम हों और उन्हें तुम से कोई खतरा हो?’’

‘‘नहीं ऐसे तो नहीं लगते थे, खासे अमीर लोग थे.’’ कहते हुए मैं ने डाक्टर से पूछा, ‘‘आप कहां से आ रहे हैं?’’

‘‘मैं इस इलाके के लोगों का इलाज करने के लिए दूरदूर तक जाता हूं. खास कर जहां इलाज और डाक्टर की सहूलियत नहीं है. समझ लो साल के 6 महीने घर से बाहर बीतते हैं.’’

‘‘आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘हां, मेरी बीवी बहुत अच्छी है, मेरी गैरहाजरी में घर अच्छे से संभालती है, फारमिंग वगैरह भी देख लेती है. इस मामले में मैं बहुत खुशनसीब हूं.’’

‘‘डाक्टर साहब, अब मुझे कोई बस्ती देख कर उतार दीजिए. मुझे अपनी मंजिल की तलाश में निकलना चाहिए.’’

‘‘नहीं, नहीं, अभी तुम बहुत कमजोर हो, घुड़सवारी कतई नहीं कर सकते. अगर तुम ने सफर किया तो मेरी सारी मेहनत बेकार जाएगी. अभी तुम्हारे शरीर से जहर का असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. तुम मेरे साथ चलो. 2 दिन मेरे घर पर आराम करना. इलाज के बाद जब पूरी तरह ठीक हो जाओगे फिर जहां चाहो, चले जाना.’’

मैं इनकार करने की सोच ही रहा था कि मेरे दिमाग में एक खयाल बिजली की तरह कौंधा तो मैं ने झट से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, मैं आप का अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा. आप मेरी इतनी परवाह कर रहे हैं तो मैं आप के साथ ही चलूंगा और इलाज पूरा होने के बाद आप की पूरी फीस दे कर जाऊंगा.’’

डा. जव्वाद ने हंस कर कहा, ‘‘मैं इलाज बढि़या करता हूं. इस के लिए फीस भी अच्छी लेता हूं.’’

हम डाक्टर के घर पहुंचे तो मैं चौंका. वह जगह मेरे लिए अपरिचित नहीं थी. जहां गाड़ी रुकी वह वही खूबसूरत फार्महाउस था, जहां मुझे जहर दिया गया था. दरवाजा खोलने वाली वही हसीन औरत थी. वह बड़े प्यार से डाक्टर के गले लग गई. डाक्टर ने पीछे मुड़ कर कहा, ‘‘शमशेर, ये मेरी बीवी ऐना है.’’

उस की नजर मुझ पर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे उस ने कोई भूत देख लिया हो. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. मैं ने झुक कर उसे सलाम किया. गुलाबी साड़ी में उस का हुस्न दमक रहा था.

डाक्टर ने उस से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘ऐना इन के लिए ऊपर का कमरा खुलवा दो, ये 2 दिन यहां रुकेंगे. इन्हें किसी जालिम ने जहर दे दिया था, लेकिन मैं वक्त पर पहुंच गया और इन्हें बचा लिया. मैं इन्हें आराम और इलाज के लिए अपने साथ ले आया हूं.’’

मैं सीढि़यों की तरफ बढ़ा. ऐना मेरे पीछे थी. कमरा खोल कर वह एक तरफ हट गई. वह गुस्से से लाल हो रही थी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘वापस क्यों लौट आए?’’ मैं ने मुसकरा कर व्यंग में कहा, ‘‘ये जानने के लिए कि तुम ने मुझे जहर क्यों दिया?’’ लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘मैं भला तुम्हें क्यों जहर देने लगी? तुम्हें गलतफहमी हुई है.’’

‘‘मैं ने तुम्हारे घर के अलावा कहीं और कुछ नहीं खाया पिया था, इसलिए यकीनन जहर तुम ने दिया था.’’

उस ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम ने खुद कोई जहरीली चीज खा ली होगी. मुझे तुम्हें जहर देने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी क्योंकि मैं ने तुम्हें आहन के साथ देख लिया था. तुम्हारे इश्क का गवाह बन गया था मैं.’’

वह बात काट कर बोली, ‘‘मैं किसी आहन को नहीं जानती.’’

‘‘ओह, यानी तुम दोनों ने मुझे अपने नाम गलत बताए थे. खैर, मैं यहां तुम्हारी आशनाई का राजफाश करने नहीं आया हूं. मुझे डाक्टर से अपना पूरा इलाज करवाना है. उन का कहना है कि अगर इलाज पूरा न हो तो ये जहर कुछ दिन बाद फिर असर दिखाता है. इसलिए दवा का 3 दिन का कोर्स पूरा करना जरूरी है.’’

इस पर उस ने तमक कर कहा, ‘‘अगर तुम ने कुछ उलटासीधा करने की कोशिश की तो बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे, याद रखना.’’

‘‘मैं एक जुआरी हूं, फायदा उठाने के साथसाथ नुकसान उठाने के लिए भी तैयार रहता हूं. यह तुम सोचो कि क्या तुम नुकसान उठा सकती हो?’’

ऐना गुस्से से जाने के लिए पलट गई. मैं ने उसे फिर याद दिलाया, ‘‘ऐना एक बात जहन में रख लो, मैं एक बार धोखा खा सकता हूं, बारबार नहीं.’’

डाक्टर ने मेरा बहुत खयाल रखा. इलाज में भी कोई कोताही नहीं बरती. शाम तक मैं काफी फ्रेश महसूस करने लगा. मैं ने डाक्टर से कहा, ‘‘मैं थोड़ा बाहर घूमना चाहता हूं, आप ठीक समझें तो चला जाऊं?’’

‘‘हां, थोड़ी देर के लिए चले जाओ. पास ही कस्बा अजीरा है, पर ज्यादा नहीं घूमना. थक जाओगे.’’

बाहर निकला तो ऐना को गेट के पास कहीं जाने को तैयार खड़ा देखा. मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं कस्बे जा रहा हूं. आहान को कोई पैगाम देना हो तो बता दो.’’

उस ने गुस्से से दांत पीसे और रुख बदल कर खड़ी हो गई. मैं बाहर निकल गया. थोड़ी दूर चलने के बाद एक शराबखाना नजर आया. मैं ने एक पैग रम का आर्डर दिया, शराब सर्व करने वाला एक 14-15 साल का लड़का था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम बिना किसी मेहनत के 10 रुपए कमाना चाहते हो?’’

वह हैरान सा मुझे देखते हुए बोला, ‘‘क्या काम करना होगा मुझे?’’

‘‘कुछ खास नहीं, मैं तुम्हें एक आदमी का हुलिया बताता हूं, तुम मुझे उस का नाम और पता बता दो बस.’’

हुलिया सुन कर वह डर सा गया, बोला, ‘‘साब, वह बहुत जालिम और खतरनाक आदमी है. बीच में मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’ मैं ने उस का नाम न आने का वादा किया तो उस ने उस का नाम बाबर बताया और उस का पता समझा दिया. मैं उसे 10 रुपए दे कर बाहर आ गया.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 2

फार्महाउस के अहाते पर कांटेदार तार लगा हुआ था. अंदर दो मंजिला खूबसूरत मकान बना था जो बाहर से ही दिख रहा था. मैं बेहिचक गेट खोल कर अंदर दाखिल हो गया. अंदर एक कोने में हैंडपंप लगा था. मैं ने बेताब हो कर पानी निकाला और मुंह हाथ धो कर जीभर के पानी पिया. फिर वहीं रखी एक बाल्टी भर कर घोड़े के आगे रख दी.

फार्महाउस में मक्की की फसल लगी थी. हैंडपंप के पास ही भुट्टे के छिलके और पौधों के तने पड़े थे. मैं ने घोड़े को उस ढेर के पास खड़ा कर दिया ताकि वह पेट भर सके. मैं खुद भी भुट्टा तोड़ कर खाने लगा ताकि कुछ सुकून मिले.

अभी मैं भुट्टा खा ही रहा था कि घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुन मैं ने मुड़ कर देखा. एक हट्टाकट्टा मजबूत जिस्म का व्यक्ति मेरे ऊपर बंदूक ताने खड़ा था मुझे लगा जैसे अभी गोली चलेगी और मेरा काम तमाम हो जाएगा. वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘कौन हो तुम? बिना इजाजत अंदर कैसे आ गए?’’

मैं ने उसे गौर से देखा, तांबे सा चमकता रंग, भूरे घुंघराले बाल, जो गर्दन तक लटके हुए थे. उस के चेहरे और जिस्म से ऐसी मर्दाना खूबसूरती नुमाया हो रही थी जो औरतों के लिए खास कशिश रखती है.

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत प्यासा था, पानी की तलाश में यहां आ गया. मैं किसी गलत मकसद से यहां नहीं आया हूं.’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, शमशेर.’’

उस ने मुझे घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम कहां से आ रहे हो? जाना कहां है?’’

मैं ने अपने शहर का गलत नाम बता कर कहा, ‘‘मैं काम की तलाश में निकला हूं. अगर आप को मेरा आना नागवार लगा है तो मैं तुरंत वापस चला जाता हूं. आसपास कोई आश्रय ढूंढ़ लूंगा.’’ लेकिन मेरी बात से वह संतुष्ट नहीं हुआ और डपट कर बोला, ‘‘तुम्हारे पास कोई हथियार हो तो चुपचप निकाल कर दे दो.’’

मजबूरी थी, मैं ने अपना कट्टा और चाकू उसे दे दिया. इस के बाद उस के तेवर कुछ नरम पड़े. उस ने बंदूक से इशारा करते हुए कहा, ‘‘अपने घोड़े को इस पेड़ से बांध दो ताकि फसल में न घुसे और अंदर चलो.’’

मैं ने घोड़ा बांधा और उस के साथ मकान के अंदर दाखिल हो गया. मकान अंदर से बहुत अच्छा था, खूबसूरत फर्नीचर से सजा हुआ. पर इस से भी खूबसूरत वह औरत थी जो वहां मौजूद थी. उस ने खुला ढीला सा सुर्ख गाउन पहन रखा था. गुलाबी बेदाग रंगत, चमकती नीली आंखें, सुडौल जिस्म, उस की नीली आंखें बड़ी सर्द सी लगी. औरत और उस व्यक्ति का हुलिया यह बताने के लिए काफी था कि कुछ देर पहले दोनों अंदर किस तरह की स्थिति में रहे होंगे.

औरत ने उस व्यक्ति की तरफ देख कर कहा, ‘‘इसे अंदर लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी जानेमन.’’ उस ने मुसकुरा कर कहा और औरत का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में चला गया. घर की सजावट और रहनसहन से लग रहा था कि वे काफी अमीर लोग हैं.

वह व्यक्ति मेरे हथियार अंदर रख कर बाहर आया तो उस के चेहरे पर मुसकुराहट और संतोष के भाव थे. अब उस का अंदाज ही बदला हुआ था. उस ने नरम लहजे में मुझ से कहा, ‘‘माफ करना शमशेर, हम लोग चूंकि वीराने में रहते हैं इसलिए जल्दी से किसी पर एतबार नहीं करते. कस्बा अजीरा भी यहां से थोड़ी दूरी पर है.’’

उस की बात सुन कर मैं ने इत्मीनान की सांस लेते हुए कहा, ‘‘यानि अब आप को यकीन आ गया कि मैं जरूरतमंद हूं.’’

वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने कहा, ‘‘खैर, आप का शुक्रिया. अब अगर आप मेरे हथियार मुझे लौटा दें तो मैं जाना चाहूंगा.’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है? बैठो अभी.’’

इस बीच वह औरत भी ढंग के कपडे़ पहन कर आ गई थी. नीले रंग के सलवार कुर्ते में वह गजब ढा रही थी. इस से ज्यादा हसीन औरत मैं ने पहले कभी नहीं देखी थी. मैं भले ही सब तरह के गुनाहों में डूबा था, पर औरत से दूर रहा था. पर उस औरत को देख कर मेरा दिल अजब से अंदाज में धड़कने लगा था.

औरत ने मुसकुरा कर कहा, ‘‘खाने का वक्त है, मेरे हाथ का खाना तुम्हें पसंद आएगा.’’

मैं भूख से बेहाल था. मैं ने मुसकरा कर उस की पेशकश कुबूल कर ली.’’ वह व्यक्ति बोला. ‘‘मेरा नाम आहन है. ये मेरी बीवी तूबा है.’’

मैं ने खुशदिली से कहा, ‘‘इतना खूबसूरत जोड़ा मैं ने पहली बार देखा है. आप जैसे लोगों की मेहमाननवाजी मेरी खुशनसीबी है.’’

तारीफ सुन कर तूबा के गाल सुर्ख हो गए. वह खाना लगाने अंदर चली गई. इस बीच आहन शराब के 2 पेग बना लाया. शराब बड़ी जायकेदार थी, जल्द ही हम दोनों अच्छे दोस्तों की तररह पीते पीते बातें करने लगे. उस ने बताया कि वह फार्म में मक्की, गेहूं और सब्जियां उगाता है. मैं ने उस से बच्चों के बारे में पूछा तो वह कहकहा लाते हुए बोला, ‘‘फिलहाल हम दोनों अकेले हैं और जिंदगी का आनंद ले रहे हैं. बच्चे तो हो ही जाएंगे, पर ये हसीन पल फिर कहां आएंगे.’’

खाना बेहद मजेदार था, मटन टिक्के बड़े लजीज लगे. मैं ने जी भर खाया. खानेपीने के बाद मैं ने उस से करीबी शहर के बारे में पूछा.

‘‘फाटक के सामने की सड़क पर बाईं तरफ सीधे चले जाओ. रात तक तुम बहादुरगढ़ पहुंच जाओगे. वह एक बड़ा शहर है, वहां काम मिल जाएगा.’’ उस ने मुझे रास्ता बताया.

मैं ने उस से अपने हथियार मांग लिए जिन्हें देने में उस ने कोई आनाकानी नहीं की. मैं ने हथियार और पानी साथ रख लिया. घोड़ा भी खापी कर ताजादम हो चुका था. मैं ने अपना घोड़ा उस के बताए रास्ते पर डाल दिया. सूरज की तपिश कम हो चुकी थी. मैं दोढाई घंटे का सफर तय कर चुका था. अचानक मेरे पेट में तेज दर्द उठा. ऐसा लगा जैसे आंतें फटी जा रही हों. निस्संदेह वह जानलेवा दर्द था. तभी एकाएक मुझे उबकाई के साथ उलटी हो गई. सारा खायापीया बाहर आ गया.

उल्टी में खून देख कर मैं डर गया. उल्टी के बाद थोड़ा आराम जरूर मिला पर कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही थी, सिर चकरा रहा था. घोड़े पर बैठे रहना मुश्किल हो रहा था. दोनों हाथों से घोड़े की गरदन पकड़ कर मैं उस पर गिर सा गया. मेरा वफादार घोड़ा खुद ब खुद आगे बढ़ता रहा. पता नहीं मैं कब होशो हवास से बेगाना हो गया.

‘‘ऐ, होश में आओ.’’ किसी ने मेरे गाल पर थपकी मार कर कहा तो धीरेधीरे मेरी आंखें खुल गईं. मुझे अपने आसपास रोशनी सी महसूस हुई. कुछ देर में मुझे होश आ गया. उस वक्त मैं एक बग्घी में था जिस की छत पर रेशम का कपड़ा मढ़ा हुआ था. जो चेहरा मेरे सामने आया वह किसी अधेड़ उम्र के आदमी का था. हल्की खिचड़ी दाढ़ी, गोरा रंग, नरम चेहरा, सोने के फ्रेम का चश्मा. उस आदमी ने मुझ से बड़े प्यार से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही है. मैं कहां हूं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘मैं डा. जव्वाद हूं. तुम्हें किसी ने जहर दिया था. शुक्र है कि मैं वक्त पर पहुंच गया और तुम बच गए. मैं ने ही तुम्हारा इलाज किया है. गनीमत रही कि तुम्हें उल्टी हो गई थी जिस से जहर का असर कम हो गया था और मेरी दवा की खुराक कारगर साबित हुई. बच गए जनाब तुम.’’

मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘मुझे जहर दिया गया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे पेट में जहर था. एक जंगली जहरीली बूटी है जिस का पाउडर जहर का काम करता है. उस का कोई खास स्वाद या गंध नहीं होती. पानी में डालो तो हलका बादामी रंग झलकता है, शराब या किसी शरबत में तो पता भी नहीं चलता. खासियत यह है कि इस जड़ी को खाने के 2 ढाई घंटे बाद असर होता है.’’

मेरा दिमाग आहन द्वारा खाने के समय दी गई शराब की तरफ चला गया. शराब तो हम तीनों ने पी थी पर शायद उस ने मेरे गिलास में जहरीला पाउडर मिला दिया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि मुझे जहर दिया गया है?’’

‘‘ये तुम्हारी खुशनसीबी थी. ये जहरीली बूटी इसी इलाके में ही पाई जाती है और मैं इस के इलाज का एक्सपर्ट हूं. तुम्हारी कमीज पर जो उल्टी गिरी थी उस में खून भी था. उसे देख कर मुझे पता चल गया कि तुम्हें जहर दिया गया है. इसलिए मैं ने फौरन इलाज शुरू कर दिया था.’’

मैं सोचने लगा कि सचमुच यह इत्तेफाक ही है कि इस वीराने में ये रहमदिल डाक्टर मिल गया और उस के इलाज से मेरी जान बच गई. वरना मौत यकीनी थी. डाक्टर ने मुझे सोच में पड़ा देख पूछा, ‘‘तुम जा कहां रहे थे?’’

‘‘बहादुरगढ़.’’

‘‘पर तुम तो बहादुरगढ़ की उल्टी दिशा में सफर कर रहे थे?’’

‘‘या तो मेरा घोड़ा गलत दिशा में निकल आया होगा या फिर बताने वाले ने गलत दिशा बताई होगी.’’

मुझे अपने घोड़े की याद आई तो मैं ने पूछा, ‘‘मेरा घोड़ा कहां है?’’

‘‘वह देखो पीछे बंधा है.’’ उस ने इशारा कर के कहा, ‘‘दाना खा रहा है.’’ अपने घोड़े को देख मुझे बड़ी तसल्ली मिली.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 1

मेरा नाम शमशेर है. जो बात मैं बताने जा रहा हूं वह 35-40 साल पुरानी है. मेरा बाप तांगा चलाता था. इस काम में हमारी अच्छे से गुजरबसर  हो जाती थी. जब मैं 11-12 साल का था, मेरा बाप एक एक्सीडेंट में चल बसा. मां ने तांगा घोड़ा किराए पर चलाने को दे दिया. वह बड़ी मेहनती औरत थी और घर में बैठ कर सिलाई का काम करती थी. इस तरह हमारी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी.

मां मुझे पढ़ाना चाहती थी. पर मेरा पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. वैसे मुझे अंगरेजी जरूर अच्छी लगती थी. अंगरेजी को मैं बड़े ध्यान से पढ़ता और सीखता था. इसी वजह से 9वीं क्लास में मैं अंगरेजी के अलावा सारे विषयों में फेल हो गया.

फेल होने के बाद स्कूल से मेरा मन एकदम उचाट हो गया था. मैं ने पढ़ाई छोड़ दी. उन्हीं दिनों मेरी दोस्ती गलत किस्म के कुछ युवकों से हो गई. दोस्तों के साथ रह कर मुझे कई तरह के ऐब लग गए. सिगरेट पीना, ताश खेलना, होटलों में जाना मेरी आदतों में शामिल हो गया. इस के लिए पैसे की जरूरत होती थी. पैसे के लिए मैं दोस्तों के साथ मिल कर हाथ की सफाई भी करने लगा.

इस में कोई दो राय नहीं कि बुराई शैतान की आंत की तरह होती है. एक बार शुरू हो जाए तो रुकना आसान नहीं होता. मां ने मुझे फिर से स्कूल भेजने की बहुत कोशिश की पर गुनाह की आदत ने मुझे पीछे नहीं लौटने दिया.

धीरेधीरे मैं जुए में माहिर हो गया. मेरे पास पैसे की रेलपेल होने लगी. ताश के पत्ते मेरे हाथ में आते ही जैसे मेरे गुलाम हो जाते थे. मेरी चालाकी ने मुझे जीतने का हुनर सिखा दिया था. जीतने की कूवत ने मेरी मांग भी बढ़ा दी और शोहरत भी. अब बाहर की पार्टियां भी मुझे बुला कर जुआ खिलवाने लगीं. इस काम में मुझे अच्छाखासा पैसा मिल जाता था. जिंदगी ऐश से गुजर रही थी.

देखतेदेखते मैं 23 साल का गबरू जवान बन गया. मेरी मां से मेरी बरबादी बरदाश्त न हुई और एक दिन वह सारे दुखों से निजात पा गई. मां की मौत के बाद मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था. जुए की महारत ने जहां कई दोस्त बनाए वहीं बहुत से दुश्मन भी बन गए. दोस्त तो पैसे के यार होते हैं. मैं ने ऐसे ही दोस्तों के साथ छोटा सा एक गिरोह बना लिया ताकि दुश्मनों से निपटा जा सके. हम लोग अपने पास चाकू कट्टे भी रखने लगे.

एक दिन मैं जुआखाने में एक बड़े गिरोह के सूरमा के साथ जुआ खेल रहा था. शुरू में वह जीतता रहा फिर अचानक बाजी पलट गई. मैं लगातार जीतने लगा,  नोटों का ढेर बढ़ता गया. यह देख उस के साथी गाली गलोच पर उतर आए. गुस्से में मैं ने खेल रोक कर जैसे ही नोट समेटने चाहे उन लोगों के हाथों में चाकू और पिस्तौल चमकने लगे. मेरे साथियों ने भी हथियार निकाल लिए. गोलियों चलने लगीं.

उसी दौरान एक गोली मेरे बाजू से रगड़ती हुई निकल गई. इस से मुझ पर जुनून सा तारी हो गया. हम 4 लोग थे और वो 7-8. दोनों तरफ से घमासान शुरू हो गया. 3 लोग जमीन पर गिर कर तड़पने लगे. दूसरे लोग चीखतेचिल्लाते हुए बाहर भागे. मैं और मेरे साथी भी सारे नोट समेट कर वहां से भाग लिए. अंधेरे ने हमारा साथ दिया. पीछे से पकड़ो पकड़ो की आवाजों के साथ गोलियां चल रही थीं. भागते भागते मेरा एक साथी भी चीख कर ढेर हो गया.

मैं ने जल्दी से रास्ता बदला और एक तंग गली से होता हुआ एक टूटीफूटी वीरान बिल्डिंग के जीने के नीचे दुबक गया. मेरे साथी पता नहीं किधर निकल गए. मैं घंटों वहां बैठा रहा. रात का गहरा सन्नाटा फैल चुका था. कहीं कोई आहट नहीं थी. मैं छिपते छिपाते घर पहुंचा और अपना घोड़ा ले कर एक अनजानी दिशा की तरफ बढ़ गया.

मैं मौत के मुंह से निकला था और बुरी तरह घबराया हुआ था. जुए से कमाए पैसे मैं ने घर के अंदर कपड़ों में छिपा कर रख रखे थे. मुझ में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उन पैसों को ले आता. अभी तक मैं ने चोरी, लूट और जुआ जैसी छोटीछोटी वारदातें की थीं. मेरे हाथों कत्ल पहली बार हुआ था. मैं ने अपराध भले ही किए थे, लेकिन अभी तक मेरे अंदर का इंसान मरा नहीं था. मेरे हाथों किसी की जान गई है, यह अहसास मुझे मन ही मन विचलित कर रहा था.

मुझे ये पता नहीं था कि मेरे हाथों से कितने लोग मरे हैं, पर मेरा निशाना चूंकि अच्छा था इसलिए मुझे लग रहा था कि कत्ल मेरे हाथों ही हुआ होगा. एक मरे या दो, गुनाह तो गुनाह है और इस गुनाह की सजा मौत है. अगर मैं पुलिस के हाथ लग जाता तो वह मेरी एक नहीं सुनती क्योंकि पुलिस में भी मेरा रिकौर्ड खराब था.

जुए में जीतने की मेरी शोहरत की वजह से मेरे दुश्मनों की कमी नहीं थी. निस्संदेह वे मेरे खिलाफ गवाही दे कर मेरी मौत का सामान कर देते और अगर मैं इत्तफाक से सूरमा के गिरोह के हाथ लग जाता तो वे लोग मेरे टुकड़ेटुकड़े करने में जरा भी देर नहीं लगाते क्योंकि उन के 3-4 आदमी मरे थे.

मुझे जल्द से जल्द वहां से बहुत दूर चले जाना था इसलिए मैं ने जंगल का सुनसान रास्ता पकड़ा. पता नहीं मैं कब तक घोड़ा दौड़ाता रहा. जब घोड़े ने थक कर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और मैं भी भूखप्यास और थकान से पस्त हो गया तो एक साफ जगह देख कर रुक गया. तब तक दिन का उजाला फैलने लगा था. मैं ने घोड़े को एक पेड़ से बांधा और उसी पेड़ के नीचे लेट गया.

जिस वक्त सूरज की तेज तपिश से मेरी आंखें खुलीं तब तक दिन काफी चढ़ आया था. घोड़ा भी आसपास की घासपत्ती खा कर ताजादम हो गया था.

मैं ने पानी की तलाश में आसपास नजर दौड़ाई, लेकिन दूरदूर तक छितराए पेड़ों और झाडि़यों के अलावा कुछ नजर नहीं आया. वह पूरा इलाका सूखा बंजर सा था. मजबूरन मैं ने फिर से अपना सफर शुरू कर दिया. मैं जानबूझ कर बस्तियों से बच कर चल रहा था इसलिए कोई कस्बा या शहर भी रास्ते में नहीं आया. दोपहर तक भूख ने मेरी हालत खराब कर दी. इस के बावजूद मैं किसी ऐसी जगह पहुंच कर रुकना चाहता था जहां मेरे दुश्मन मुझ तक न पहुंच सकें. अब तक मैं काफी दूर निकल आया था. इसलिए जंगल का रास्ता छोड़ कर मैं सड़क पर आ गया.

भूखप्यास बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी. मुझे लग रहा था कि अगर कुछ देर और दानापानी नहीं मिला तो घोड़ा भी नहीं चल पाएगा. मैं ने लस्तपस्त हो कर अपना सिर घोड़े की पीठ पर रख दिया और सोचने लगा कि पता नहीं जिंदगी मिलेगी या मौत. घोड़ा धीमी गति से चलता रहा. कुछ देर बाद मैं ने भूख और धूप से चकराया हुआ अपना सिर उठाया तो सामने एक फार्म हाउस देख कर आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 3

सुबहसुबह साल्वी का फोन घनघना उठा. सोहम का एक दोस्त जो उस के साथ वाले फ्लैट में रहता था, उस ने जो बताया, सुन कर साल्वी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अकबकाई सी वह जिन कपड़ों में थी, उन्हीं कपड़ों में भागी. उस के साथ निधि भी थी.

दोनों सोहम के कमरे पर पहुंच गईं. वहां जा कर देखा तो सोहम बेहोशी की हालत में पड़ा था. इस हालत में उसे देख कर साल्वी घबरा गई. दोनों किसी तरह उसे पास के अस्पताल में ले गईं. मगर डाक्टर ने यह कह कर इलाज करने से मना कर दिया कि यह पुलिस केस है. जब तक पुलिस नहीं आ जाती, वह इलाज नहीं कर सकते.

अस्पताल से पुलिस को फोन कर दिया गया. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. साल्वी का तो रोरो कर बुरा हाल था. अगर निधि वहां नहीं आती तो पता नहीं कौन उसे संभालता. इस बीच उस के दोस्त ने बताया कि रात को उस ने बड़े अनमनेपन से थोड़ा सा खाना खाया था. उस ने पूछा भी कि सब ठीक तो है, कोई परेशानी तो नहीं पर वह सब ठीक है कह कर कमरे में जा कर सो गया.

जब कुछ देर बाद वह भी कमरे में गया तो दंग रह गया क्योंकि वहां नींद की गोलियों की खाली शीशी पड़ी थी और सोहम अचेत पड़ा हुआ था. उसे समझते देर नहीं लगी कि सोहम ने नींद की गोलियां खा ली हैं लेकिन उस की सांसें चल रही थीं. कुछ न सूझा तो घबरा कर उस ने साल्वी को फोन कर दिया था.

घंटों इंतजार के बाद जब डाक्टर ने आ कर बताया कि सोहम खतरे से बाहर है और पुलिस उस का बयान ले सकती है, तो सब की जान में जान आई.

पुलिस पूछताछ के दौरान सोहम बस यही कहता रहा कि किसी ने उसे मरने पर मजबूर नहीं किया, बल्कि उस ने अपनी मरजी से यह फैसला लिया था, क्योंकि थक चुका था वह अपनी जिंदगी से.

पूछताछ कर के पुलिस तो चली गई लेकिन साल्वी यह मानने को तैयार नहीं थी कि सोहम जो बोल रहा है, वह सच है. कोई तो बात जरूर है, जो वह सब से छिपा रहा है.

अस्पताल से आने के बाद साल्वी ने उस से पूछा, ‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सोहम? क्या एक बार भी तुम्हें अपने मातापिता का खयाल नहीं आया? तुम ने यह नहीं सोचा कि तुम्हारी 2-2 जवान बहनें हैं, उन का क्या होगा? बताओ न क्यों किया तुम ने ऐसा? जानती हूं कोई तो ऐसी बात है जो तुम हम से छिपा रहे हो. बोलो, क्या बात है, तुम्हें मेरी कसम. हमारे प्यार की कसम.’’

यह सब सुनने के बाद सोहम अपने आंसुओं का सैलाब रोक नहीं पाया और एकएक कर साल्वी को सारी बातें बता दीं. सुन कर साल्वी का पूरा शरीर कंपकंपा गया.

‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा. लेकिन तुम ने आत्महत्या करने की कोशिश क्यों की? यह नहीं सोचा कि उस नागिन को सजा दिलवानी है.’’ साल्वी हैरानी से सवाल पर सवाल किए जा रही थी और सोहम अपने बहते आंसू पोंछे जा रहा था.

‘‘अब बच्चों की तरह रोना बंद करो और मेरी बात सुनो. वह तुम्हें फिर बुलाएगी और तुम जाओगे. हां, जाओगे तुम. लेकिन ऐसे नहीं पूरी तैयारी के साथ. उस से पहले हमें पुलिस के पास जा कर सारी सच्चाई बतानी होगी.’’

साल्वी के समझाने के बाद सोहम थाने पहुंच गया और एकएक कर सारी बातें पुलिस को बताईं. हकीकत जानने के बाद थानाप्रभारी समझ गए कि मामला गंभीर है. इसलिए उन्होंने सोहम को फिर मनोरमा के पास जाने को कहा, मगर पूरी तैयारी के साथ, जिस से सबूत के साथ उसे पकड़ा जा सके.

4-5 दिन बाद मनोरमा ने सोहम को फोन किया, ‘‘सोहम, कहां थे तुम इतने दिनों तक? अपना फोन भी नहीं उठा रहे हो. एक काम करो, आज रात यहां आ जाओ. एक जगह माल पहुंचाना है.’’

योजनानुसार सोहम उस के यहां पहुंच गया. उस ने वहां जा कर फिर से वही बात छेड़ी, ‘‘नहीं, अब मैं आप की एक भी बात नहीं मानने वाला और क्या लगता है आप को, आप अपनी अंगुलियों पर मुझे नचाती रहेंगी और मैं नाचता रहूंगा. नहीं, अब ऐसा नहीं होगा मैडम.’’

‘‘पता भी है तुम्हें, तुम क्या बोल रहे हो? एक मिनट भी नहीं लगेगा मुझे तुम्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने में. समझ रहे हो तुम?’’ मनोरमा ने धमकी दी.

‘‘हां, मैं सब समझ रहा हूं और देख भी रहा हूं कि एक औरत ऐसी भी हो सकती है. आप को पता है न आंटी, उस वीडियो में जो भी है, वह गलत है. मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरी बेहोशी का फायदा उठाया और मेरे साथ…’’

‘‘चुप क्यों हो गए, बोलो न कि मैं ने तुम्हारा रेप किया. हां, किया ताकि तुम्हें अपनी मुट्ठी में कर सकूं.’’ बोलते बोलते मनोरमा ने अपने ड्रग्स के सालों से चले आ रहे धंधे के बारे में भी बोलना शुरू कर दिया. वह बोलती चली गई, मगर उसे यह नहीं पता था कि उस की सारी बातें रिकौर्ड हो रही थीं और बाहर खड़ी पुलिस भी उस की बातें सुन रही थी.

‘‘देख लिया न इंसपेक्टर साहब, इस औरत का असली चेहरा?’’ पुलिस के साथ अंदर आते ही साल्वी ने कहा.

अचानक पुलिस को अपने सामने देख कर मनोरमा के होश फाख्ता हो गए. जुबान तो जैसे हलक में ही अटक गई. किसी तरह मुंह से कुछ शब्द निकाल पाई, ‘‘आ…प आप यहां किसलिए इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप को नमस्ते करने के लिए मैडम.’’ कह कर जब इंसपेक्टर ने लेडीज कांस्टेबल को उसे हथकड़ी लगाने को कहा तो वह चीख उठी, ‘‘किस जुर्म में आप मुझे हथकड़ी लगा रहे हैं? पता भी है आप को, मैं कौन हूं? ’’ अपने रुतबे की धौंस दिखाते हुए मनोरमा चीखी.

‘‘मैं बताता हूं कि तुम कौन हो? तुम निहायत ही बदचलन और बददिमाग औरत हो.’’ कह कर सोहम ने एक जोर का थप्पड़ उस के गाल पर दे मारा और कहने लगा, ‘‘तुम्हें क्या लगा, तुम बच जाओगी और यूं ही मुझे इस्तेमाल करती रहोगी. आज तुम्हारे कारण मेरा परिवार अनाथ हो जाता. अगर साल्वी न होती तो शायद आज मैं इस दुनिया में ही नहीं होता. बचा लिया इस ने मुझे और मेरे परिवार को भी. शर्म नहीं आई तुम्हें अपने बेटे जैसे लड़के के साथ संबंध बनाते हुए?’’

गुस्से से आज सोहम की आंखें धधक रही थीं. उस के शरीर का खून इतना उबल रहा था कि वश चलता तो वह खुद ही मनोरमा की जान ले लेता. पर कानून को वह अपने हाथों में नहीं लेना चाहता था.

‘‘इंसपेक्टर साहब ले जाइए इसे और इतनी कड़ी सजा दिलवाइए कि यह अपनी मौत की भीख मांगे और इसे मौत भी नसीब न हो.’’ गुस्से से साल्वी ने कहा, ‘‘इसे ऐसी सजा दिलाना कि अब ये मुट्ठी भर उजियारे के लिए तरसती रह जाए.’’ कह कर वह सोहम का हाथ पकड़ कर वहां से निकल गई.

प्राथमिक पूछताछ में गिरफ्तार मनोरमा ने पुलिस को बताया कि वह सालों से नेपाल से ड्रग्स मंगवा कर महानगर के विभिन्न बड़े क्लबों, रेव पार्टियों व अन्य रेस्तराओं में सप्लाई करती आ रही थी. वह कुछ युवकों को गुप्त तरीके से नेपाल भेज कर ड्रग्स मंगवाती थी.

सोहम से मिल कर उसे लगा कि यह लड़का उस के धंधे को और आगे तक ले जा सकता है, इसलिए पहले उस ने उसे अपने जाल में फंसाया और फिर उस का इस्तेमाल करती रही. मनोरमा के साथ इस धंधे में और कौन कौन लोग जुड़े थे, पुलिस ने उन का भी पता लगा लिया.

खुद को बचाने और निर्दोष साबित करने के लिए मनोरमा ने एड़ीचोटी का जोर लगाया, लेकिन असफल रही. क्योंकि पुलिस के पास उस के खिलाफ पक्के सबूत और गवाह थे.

मनोरमा को अब मौत की सजा मिले या उम्रकैद, सोहम और साल्वी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. साल्वी के लिए तो बस इतना काफी था कि सोहम को इंसाफ मिल गया और मनोरमा को उस के कर्मों की सजा.

सोहम को आज साल्वी पर गर्व महसूस हो रहा था. सोच रहा था कि उस के लिए इस से अच्छा जीवनसाथी कोई हो ही नहीं सकता. उधर साल्वी भी सोहम की बांहों में मंदमंद मुसकरा रही थी. खुले आसमान के नीचे दो मुट्ठी उजियारा उन के लिए काफी था.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 2

एग्जाम्स के बाद साल्वी और पीजी की सारी लड़कियां और सोहम के दोस्त अपने अपने घर चले गए. मगर सोहम नहीं गया. पार्टटाइम नौकरी करने की वजह से वह अहमदाबाद में ही रुक गया था. साल्वी के यहां न रहने पर सोहम कभीकभार मनोरमा के घर चला जाता था और वह भी तब जब मनोरमा किसी काम के लिए उसे बुलाती थी, वरना वह व्यस्त रहता था.

एक रोज सोहम के पास मनोरमा का फोन आया, ‘‘हैलो सोहम, मैं मनोरमा आंटी बोल रही हूं. कहीं बिजी हो क्या?’’

‘‘नहीं तो आंटी, कहिए न?’’ सोहम बोला.

‘‘बस ऐसे ही बेटा, अगर फुरसत मिले तो आ जाना. लेकिन अगर बिजी हो तो रहने दो.’’ मनोरमा बड़ी धीमी आवाज में बोली.

‘‘नहींनहीं आंटी, कोई बात नहीं. बस थोड़ा काम है, खत्म कर के अभी आता हूं.’’ सोहम ने कहा और कुछ देर बाद ही वह मनोरमा के घर पहुंच गया.

‘‘क्या बात है आंटी, आज मुझे कैसे याद किया?’’ अपनी आदत के अनुसार हंसी बिखेरते हुए सोहम ने कहा.

‘‘मैं तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं पर तुम ही अपनी आंटी को भूल जाते हो. वैसे जब साल्वी रहती है तब तो खूब आते हो मेरे पास.’’ मनोरमा हंसते हुए बोली.

सोहम झेंप गया और कहने लगा कि ऐसी कोई बात नहीं है. बस काम और पढ़ाई के चक्कर में वक्त नहीं मिलता.

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी बेटा, पर तुम तो सीरियस हो गए. अच्छा बताओ क्या लोगे, चाय, कौफी या फिर कोल्ड ड्रिंक्स लाऊं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ भी चलेगा आंटी.’’ कहते हुए सोहम टेबल पर रखी मैगजीन उठा कर उलटने पलटने लगा, ‘‘अरे क्या बात है आंटी, आप भी सरिता मैगजीन पढ़ती हो? मेरी मां तो इस मैगजीन की कायल हैं. पता है क्यों, क्योंकि सरिता धर्म की आड़ में छिपे अधर्म की पोल खोलती है इसलिए.

‘‘मां के साथसाथ हम भाईबहनें भी इसे पढ़ने के आदी हो गए हैं और चंपक मैगजीन की तो पूछो मत आंटी. हम भाईबहनों में लड़ाई हो जाती थी उसे ले कर कि पहले कौन पढ़ेगा.’’ बोलते हुए सोहम की आंखें चमक उठीं.

चाय पी कर वह जाने को हुआ तो मनोरमा ने उसे रोक लिया और कहा कि अब वह रात का खाना खा कर ही जाए. सोहम ने मना किया पर मनोरमा की जिद के आगे उस की एक न चली. खाने के बाद एकएक कप कौफी हो जाए कह कर मनोरमा ने फिर उसे कुछ देर रोक लिया.

लेकिन कौफी पीतेपीते ही अचानक सोहम को न जाने क्या हुआ कि वह वहीं सोफे पर लुढ़क गया. इस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं चला. सुबह उस ने जो दृश्य देखा, उस के होश उड़ गए. रोरो कर मनोरमा कह रही थी कि उस ने जिसे बेटे जैसा समझा और उसी ने उस का ही रेप कर डाला.

‘‘पर आंटी, मम..मैं ने कुछ नहीं किया.’’ सोहम मासूमियत से बोला.

सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है और आंटी ऐसा क्यों बोल रही हैं.

‘‘तो किस ने किया? कौन था यहां हम दोनों के सिवा. तुम्हें पता है कि रात में तुम ने पी कर कितना तमाशा किया था. मैं लाख कहती रही कि तुम्हारी मां जैसी हूं पर तुम ने मेरी एक नहीं सुनी. मुझे कहीं का नहीं छोड़ा तुम ने सोहम.’’ कह कर सिसकते हुए मनोरमा ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

अपने कमरे में आ कर वह 2 दिन तक यूं ही पड़ा रहा. न तो वह कालेज जा रहा था और न ही काम पर. वह अपने किसी दोस्त से भी बातचीत नहीं कर रहा था, क्योंकि वह खुद में ही शर्मिंदा था. एक ही बात उस के दिल को मथे जा रही थी कि उस से इतनी बड़ी गलती कैसे हुई. धिक्कार रहा था वह खुद को. उधर मनोरमा ने भी इस बीच न तो उसे कोई फोन किया और न ही उसे मिलने के लिए बुलाया.

लेकिन एक दिन मनोरमा ने उसे खुद फोन कर अपने घर बुलाया. वह वहां जाना तो नहीं चाह रहा था, पर डरतेसहमते चला गया.

‘‘आ गया सोहम.’’ मनोरमा ने उस से ऐसे बात की, जैसे उन दोनों के बीच कुछ हुआ ही न हो.

‘‘ये बैग तुम्हें इस होटल में पहुंचाना होगा. ये रहा होटल का पता. देखो, इस नाम के आदमी के हाथ में ही बैग जाना चाहिए, समझे?’’  आज मनोरमा का व्यवहार और उस की बातें सोहम को कुछ अटपटी सी लग रही थीं.

बड़ी हिम्मत कर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘इस बैग में है क्या और इतनी रात को ही क्या इसे उस आदमी तक पहुंचाना जरूरी है?’’

‘‘ज्यादा सवाल मत करो. जानना चाहते हो इस बैग में क्या है, तो सुनो, इस में ड्रग्स और अफीम है.’’ सुनते ही सोहम के रोंगटे खड़े हो गए और बैग उस के हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया.

‘‘अरे, इतना पसीना क्यों आ रहा है तुम्हारे माथे पर. बैग उठाओ और जाओ जल्दी, वह आदमी तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा.’’ इस बार मनोरमा की आवाज जरा सख्त थी.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो सोहम. क्या उस रात के बारे में सोच रहे हो. भूल जाओ उस बात को और जैसा मैं कहती हूं, वैसा ही करो. ऐसी छोटीमोटी गलतियां तो होती रहती हैं इंसान से.’’

मनोरमा की बातें और हरकतें देख सोहम दंग था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही औरत है जिसे वह एक अच्छी और सच्ची औरत समझता था. इस तरह मजबूरी में ही कई बार वह ड्रग्स से भरा बैग यहांवहां लोगों के पास पहुंचाता रहा. लेकिन उस ने सोच लिया कि अब वह यह गलत काम नहीं करेगा. मना कर देगा मनोरमा को.

एक दिन सोहम ने कह ही दिया, ‘‘नहीं मैडम, अब मुझ से यह गंदा काम नहीं होगा. कल को अगर मैं पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो क्या आप बचाने आएंगी मुझे? और क्यों करूं मैं यह काम?’’

कह कर वह वहां से जाने लगा तो मनोरमा ठठा कर हंसी और कहने लगी, ‘‘तुम ने मुझे क्या बेवकूफ समझ रखा है? क्या सोचा मैं भूल गई उस रात की बात? नहीं सोहम, मैं उन लोगों में से नहीं हूं. देखो, गौर से देखो इस वीडियो को. इस में साफसाफ दिख रहा है कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हो और मैं तुम से बचने की कोशिश कर रही हूं. समझ रहे हो इस का क्या मतलब हुआ?’’

वीडियो देख कर सोहम के होश उड़ गए. वह समझ गया कि यह कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि मनोरमा की सोचीसमझी चाल थी, जो उस ने उसे फंसाने के लिए चली थी. वह बोला, ‘‘तो यह सब आप की सोचीसमझी साजिश थी और रेप मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरा किया है.’’

‘‘हां, पर वीडियो तो यही बता रहा है कि रेप तुम ने किया. तुम्हें पता है सोहम, अगर मैं चाहूं तो यह वीडियो पुलिस तक पहुंचा सकती हूं. लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी, क्योंकि मैं तुम्हारी लाइफ बरबाद नहीं करना चाहती और फिर तुम्हारी 2 जवान बहनें हैं. उन का क्या होगा? कौन शादी करेगा उन से?

‘‘तुम्हारे बूढ़े मांबाप उन का क्या होगा? यह सब सोच कर मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. पर तुम मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर रहे हो.’’  मनोरमा का चेहरा उस समय किसी विलेन से कम नहीं लग रहा था.

‘‘पर क्यों, क्या बिगाड़ा था मैं ने आप का? मैं तो आप को अपनी मां समान समझता था और आप ने…’’ सोहम चीखते हुए बोला. आज उसे साल्वी की कही बातें याद आने लगीं कि इस मनोरमा मैडम को कम मत समझना. बिना अपने मतलब के कुछ नहीं करती. पर मैं ही बेवकूफ था, उसे ही चुप करा दिया था.

‘‘अब छोड़ो ये सब बातें और चलो अपने काम पर लग जाओ. कल एक रेव पार्टी में तुम्हें एक बैग पहुंचाना है. समय से आ जाना.’’

सोहम मनोरमा के जाल में इस तरह से फंस चुका था कि उसे निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाला हाल हो गया था उस का. हंसने और सब को हंसाने वाला सोहम अब चुप रहने लगा था. अपने सारे दोस्तों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था. उस से कोई कुछ कहतापूछता तो वह चिढ़ कर उसी से लड़ पड़ता.

अपने आप को वह एक हारे हुए इंसान के रूप में देखने लगा था जो मुट्ठी भर उजियारा तलाशने यहां आया था, अब उसे अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा था. कभी वह सोचता कि सारी बातें साल्वी को बता दे, लेकिन फिर मनोरमा की धमकी उसे याद आने लगती थी और वह सहम कर मुंह सिल लेता.

‘‘सोहम, क्या हो गया है तुम्हें, जब से आई हूं देख रही हूं कि न तो मुझ से मिलने आते हो और न ही कभी फोन करते हो. जब मैं फोन करती हूं तो बाद में करता हूं, कह कर फोन काट देते हो. बोलो न, हो क्या गया है तुम्हें सोहम?’’ तैश में आ कर साल्वी ने पूछा.

‘‘हां, नहीं बोलना. मैं क्या तुम्हारा गुलाम हूं कि जब तुम बुलाओ दौड़ा चला आऊं तुम्हारे पास? अरे मैं यहां पढ़ने आया हूं, तुम्हारा दिल बहलाने नहीं, समझीं. बड़ी आई.’’ कह कर सोहम वहां से चलता बना और साल्वी अवाक उसे देखती रह गई. सोहम ने एक बार पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा कि वह उसे ही देखे जा रही है.

जब भी साल्वी उस से बात करने की कोशिश करती, चुप्पी साधने का कारण पूछती तो वह झुंझला जाता. इतना ही नहीं, वह उसे अनापशनाप बोलने लगता था. धीरेधीरे साल्वी का मन भी उस से खट्टा होने लगा. उस ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया.

इस बीच कई महीनों तक दोनों के बीच कोई खास बातचीत नहीं हुई. बस ‘हां..हूं..’ में ही बातें हो जातीं कभीकभार. सोहम तो जान रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, पर साल्वी नहीं समझ पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो सोहम उस से कटाकटा रहने लगा है. एक दिन साल्वी ने सोहम को मनोरमा मैडम के घर से निकलते देखा तो वह हैरान रह गई. साल्वी ने उस से पूछा भी कि वह यहां क्या कर रहा था.

‘‘मैं कुछ भी कर रहा हूं, तुम्हें इस से क्या मतलब?’’ सोहम ने कहा तो साल्वी चुप हो गई.

सोहम के जाने के बाद साल्वी सोचने लगी, ‘अच्छा, तो अब मुझ से ज्यादा मनोरमा मैडम उस की अपनी हो गई.’

दूसरी ओर सोहम एक पंछी की तरह बंद पिंजरे से निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था. एक तो साल्वी के लिए उस की बेरुखी और ऊपर से मनोरमा मैडम का उसे जबतब बुला कर उस का यूज करना, अब उस के बरदाश्त के बाहर हो रहा था. लेकिन उस दिन बड़ी हिम्मत कर के उस ने बड़ा फैसला ले लिया कि अब वह मनोरमा की एक भी बात नहीं मानेगा, चाहे जो भी हो जाए.

जैसे ही मनोरमा का फोन आया, सोहम ने कहा, ‘‘नहीं, मैं नहीं करूंगा अब ये काम. आप क्या समझती हैं कि आप इस तरह से मुझे अपनी कैद में रख पाएंगी. दिखा दो जिसे भी वीडियो दिखाना हो. एक काम करो, मुझे वह वीडियो भेजो, मैं खुद ही उसे वायरल कर देता हूं. अब सारी सच्चाई दुनिया वालों के सामने आ ही जानी चाहिए. नहीं डरना अब मुझे किसी से भी, जो होगा देखा जाएगा.’’

कह कर सोहम ने फोन काट दिया और साल्वी को सब कुछ बताने के लिए फोन कर ही रहा था कि उस की मां का फोन आ गया. मां कहने लगीं कि उस की बहन का रिश्ता तय हो गया है, वह घर आ जाए. इधर मनोरमा मैडम उसे फोन पर धमकी दिए जा रही थी कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को पुलिस को सौंप देगी.

ऐसे में सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह सोचने लगा कि फिर क्या होगा उस की बहन का?

सोचतेसोचते सोहम को लगा कि उस का दिमाग फट जाएगा. मन तो कर रहा था कि वह कहीं भाग जाए या मर जाए. हर तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था. आखिर उस ने एक फैसला ले ही लिया.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 1

अहमदाबाद में इंजीनियरिंग पढ़ने आई साल्वी ने कई पीजी देखे, पर उसे एक भी पसंद नहीं आया. किसी में सुबह का नाश्ता नहीं मिलता था तो कहीं किराया उस के अनुरूप नहीं था. जो पीजी उसे पसंद आता, वह उस के कालेज से कई किलोमीटर दूर पड़ता था. देखते भालते आखिरकार उसे एक पीजी मिल ही गया जो उस के कालेज से नजदीक भी था और उस के अनुरूप भी.

‘‘यहां तुम्हें साढ़े 8 हजार में 2 शेयरिंग वाला रूम मिलेगा. इन्हीं पैसों में तुम्हें सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात के खाने के अलावा लौंड्री की भी सुविधा मिलेगी.’’ पीजी की मालकिन मनोरमा ने कहा.

‘‘जी मैडम,’’ साल्वी बोली.

‘‘यह मैडम मैडम नहीं चलेगा, दीदी बोलो मुझे, जैसे यहां की सारी लड़कियां बोलती हैं.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘और हां, एक महीने का भाड़ा एडवांस डिपौजिट करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक दीदी, मैं कल ही सारे पैसे दे दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हूं…और एक बात, रात के 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है. बहुत हुआ तो साढ़े 9 बजे तक, उस से ज्यादा नहीं, समझी? वैसे कोई बौयफ्रैंड का चक्कर तो नहीं है न?’’ मनोरमा ने पूछा तो साल्वी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘वैरी गुड, वैसे कहां से हो तुम? हां, तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है?’’

‘‘जी, मैं पटना से हूं और मेरा कोई लोकल गार्जियन नहीं है दीदी,’’ अपने आप को खुद में समेटते हुए साल्वी ने कहा.

‘‘ठीक है तो फिर…’’ कह कर मनोरमा मुसकरा दी.

वैसे तो मनोरमा 44-45 साल की थी, पर उस ने अपने आप को इतना मेंटेन कर रखा था कि 30-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी. देखने में भी वह किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. ठाठ तो ऐसे कि पूछो मत. इतना बड़ा घर, 2-2 गाडि़यां, नौकरचाकर सब कुछ था उस के पास.

होता भी क्यों न, मनोरमा के पति का अमेरिका में अपना बिजनैस था. एक बेटा भी था जो मैंगलूर रह कर पढ़ाई कर रहा था. जब भी मौका मिलता, बाप बेटा मनोरमा से मिलने आ जाते थे. मनोरमा का भी जब मन होता, उन से मिलने चली जाती थी.

मनोरमा से बात कर के साल्वी अपने कमरे में पहुंची तो वहां उस की रूममेट निधि मिली. निधि ने मुसकरा कर साल्वी का स्वागत किया. आपसी परिचय के बाद निधि ने पूछा, ‘‘साल्वी, तुम कहां से हो?’’

‘‘जी, मैं पटना से.’’ साल्वी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, और मैं इंदौर से.’’ कह कर निधि मुसकराई तो साल्वी भी मुसकरा दी.

‘‘यहां पढ़ने आई हो या नौकरी करने?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘जी, यहां के एक कालेज से मैं इंजीनियरिंग करने आई हूं और आप?’’ साल्वी बोली.

‘‘मैं नौकरी करती हूं,’’ निधि ने कहा.

साल्वी के साथ सोहम नाम का एक लड़का भी बीटेक कर रहा था. उस के साथ साल्वी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. अच्छी दोस्ती होने का एक कारण यह भी था कि दोनों बिहार से थे. साल्वी ने जब यह बात अपने मम्मी पापा को बताई तो जान कर उन्हें बहुत अच्छा लगा कि चलो इतने बड़े अनजान शहर में कोई तो है अपने राज्य का.

सोहम ने ही साल्वी को बताया था कि उस से बड़ी उस की 2 बहनें हैं, जिन की अभी शादी होनी बाकी है. उस के पापा रेलवे में फोरमैन हैं और किसी तरह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं. पिता को सोहम से उम्मीद है कि एक न एक दिन वह अपने घर की गरीबी जरूर दूर करेगा और उन का सहारा बनेगा.

‘‘लेकिन तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे? वह सब कैसे हो पाता है?’’ साल्वी ने पूछा.

‘‘वैसे तो मेरा इस कालेज में मेरिट पर एडमिशन हुआ है, लेकिन फिर भी एडमिशन के वक्त पापा को जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ा था, जो उन्होंने दीदी की शादी के लिए रखा था. फिर भी रहनेखाने के लिए भी तो पैसे चाहिए थे न, इसलिए मैं ने पार्टटाइम नौकरी कर ली. उस से मेरे पढ़ने और रहने खाने के खर्चे निकल जाते हैं.’’ सोहम ने चेहरे पर स्माइल लाते हुए बताया.

सोहम के बारे में जानने के बाद साल्वी उस से बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि आज से पहले वह उस के बारे में इतना ही जान पाई थी कि वह बहुत बड़बोला और मस्तीखोर लड़का है. लेकिन आज उसे पता चला कि कालेज के बाद वह अपने दोस्तों के साथ टाइम पास नहीं करता, बल्कि कहीं पार्टटाइम नौकरी पर जाता है.

‘‘हैलो,’’ साल्वी के आगे चुटकी बजाते हुए सोहम ने पूछा, ‘‘कहां खो गईं मैडम?’’

‘‘मैडम!’’ अपने मोबाइल पर नजर डालते हुए साल्वी चौंक कर उठ खड़ी हुई.

‘‘मैडम से याद आया कि साढ़े 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है और देखो 10 बजने जा रहे हैं. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे 10 बज गए तो क्या हो गया? कौन सा आसमान फट गया? चलो, मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ आता हूं और तुम्हारी उस मैडम से भी मिल लूंगा. वैसे भी तुम्हारा पीजी यहां पास में ही तो है.’’ कह कर सोहम उस के साथ चल दिया.

पीजी के नजदीक पहुंचते ही साल्वी ने उस से कहा, ‘‘सोहम, अब तुम यहां से लौट जाओ क्योंकि मनोरमा मैडम ने मुझे सख्त हिदायत दी है कि कोई लड़का पीजी के आसपास भी दिखाई नहीं देना चाहिए.’’ कह कर जैसे ही वह मुड़ी, मनोरमा मैडम बालकनी से उसे ही घूर रही थीं.

मैडम को देखते ही साल्वी घबरा गई. घबराहट के मारे उस की जुबान तालू से चिपक गई तो सोहम नीचे से बोला, ‘‘नमस्ते मैडम, हम एक ही कालेज में पढ़ते हैं इसलिए हमारी दोस्ती हो गई. वैसे भी मैं यहीं पास में ही रहता…’’ बोलते बोलते सोहम की भी घिग्घी बंध गई, जब मनोरमा की घूरती हुई नजर उस पर आ टिकी.

‘‘तुम ने तो कहा था कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं, फिर?’’ मनोरमा साल्वी को घूरते हुए बोली.

‘‘नहीं दीदी, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. हम लोग बस दोस्त हैं.’’ किसी तरह साल्वी बोल पाई.

‘‘देखो, बौयफ्रैंड रखना गलत बात नहीं है पर झूठ मुझे पसंद नहीं और वक्त तो देखो. वैसे लड़का अच्छा है.’’ कह कर मनोरमा मुसकराई तो दोनों की जान में जान आई.

‘‘कोई बात नहीं, तुम भी अंदर आ जाओ.’’ हुक्म मिलते ही सोहम भी साल्वी के पीछे लग गया.

‘‘साल्वी, तुम तो कहती थीं कि तुम्हारी मैडम बड़ी सख्त है, पर ये तो बड़ी रहमदिल है.’’ सोहम ने फुसफुसाते हुए कहा तो साल्वी ने उसे कोहनी मार कर चुप करने को कहा. यह करते हुए मनोरमा ने उसे देख लिया.

वह बोली, ‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी, यह कह रहा था कि अब मैं चलता हूं और कुछ नहीं.’’ साल्वी ने सोहम को इशारे से जाने के लिए कहा.

‘‘अरे इस में क्या है, आया है तो बैठने दो थोड़ी देर.’’ मनोरमा बोली.

सोहम यहां कब से है, कहां रहता है, किस चीज की पढ़ाई कर रहा है और उस के घर में कौनकौन हैं. यह सब जानने के बाद मनोरमा उस से काफी इंप्रैस हुई. फिर वह अपने बारे में भी बताने लगी, ‘‘तुम्हारी ही उम्र का मेरा भी एक बेटा है, जो मैंगलूर में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.’’

धीरेधीरे सोहम की भी मनोरमा मैडम से अच्छी बनने लगी. अब वह जब भी वक्त मिलता बेधड़क मनोरमा मैडम के घर चला आता.  मनोरमा को भी उस का आना अच्छा लगता था. कुछ न कुछ छोटे मोटे काम, जो भी मनोरमा कहती, वह इसलिए कर दिया करता, क्योंकि कहीं न कहीं उस में उसे अपनी मां की छवि दिखाई देती थी.

फिर मनोरमा भी तो उसे अपने बेटे की तरह ही समझती थी. मनोरमा ने उस से यह भी कहा था कि वह उस के लिए एक अच्छी नौकरी देखेगी, जहां उसे ज्यादा सैलरी मिले और उस की पढ़ाई में भी हर्ज न हो. शायद इस लोभ से भी वह मनोरमा का कोई भी काम, जो वह कहती, हंसतेहंसते कर देता था.

जब सोहम का मनोरमा के यहां आनाजाना बढ़ गया तो एक दिन साल्वी बोली, ‘‘सोहम, क्या बात है, आजकल मनोरमा मैडम से बड़ी पट रही है तुम्हारी. कहीं कोई लोचा तो नहीं. देखो, उस औरत को कम मत समझना. मुझे तो वो बड़ी शातिर दिखती है और वैसे भी बिना अपने फायदे के वह किसी की भी मदद नहीं करती.’’

‘‘तुम लड़कियां भी न, कितनी बेकार की कहानियां बनाती हो. कितना अच्छा तो व्यवहार है उस का और तुम कहती हो कि बड़ी सख्त है.’’ कह कर सोहम ठहाका लगा कर हंसने लगा.

‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें. चलो, आज हम कहीं बाहर खाना खाते हैं.’’

‘‘हांहां चलो, वैसे भी पीजी का खाना खा खा कर बोर हो गई हूं. मगर पैसे मैं दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हां, ठीक है.’’

इस के बाद दोनों ने एक अच्छे होटल में जा कर खाना खाया. कुछ देर बातें कीं. फिर अपनेअपने रास्ते चल दिए. दोनों ऐसा अकसर छुट्टी के दिन करते थे. दोनों की छुट्टी बड़े मजे से गुजर जाती थी. इन की दोस्ती और पढ़ाई का भी हंसते खेलते एक साल चुटकियों में निकल गया. अब दूसरे साल का एग्जाम भी नजदीक था, सो सोहम और साल्वी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए.