3 करोड़ के सपने ने पहुंचाया जेल

एक तो कड़ाके की सर्दी, दूसरे रात के यही कोई 2 बज रहे थे, तीसरे पहाड़ी इलाका, ऐसे में सड़कों पर धुंध होने की वजह से काफी शांति थी. कभी कभार इक्कादुक्का वाहन सामने से आता जरूर दिखाई दे जाता था. हालात ऐसे थे कि पीछे से आने वाला कोई वाहन आगे जाने की हिम्मत नहीं कर सकता था. वैसे में उत्तराखंड के हरिद्वार की सड़कों पर एक पुलिस जीप भागी चली जा रही थी.

वह पुलिस जीप जिस समय हरिद्वार के चित्रा लौज के गेट पर पहुंची थी, रात के 3 बज रहे थे. कड़ाके की उस ठंड में हर कोई रजाई में दुबका सो रहा था. लेकिन जीप से आए पुलिस वाले किसी भी चीज की परवाह किए बगैर फुर्ती से जीप से उतरे और सीधे जा कर मैनेजर से मिले.

अपना परिचय दे कर उन्होंने मैनेजर को एक फोटो दिखाया तो वह उन्हें साथ ले कर दूसरी मंजिल की ओर चल पड़ा. दूसरी मंजिल पर पहुंच कर उस ने कमरा नंबर 206 का दरवाजा खटखटाया तो थोड़ी देर बाद आंखें मलते हुए एक युवक ने दरवाजा खोला.

युवक काफी स्वस्थ और सुंदर था. वह वही युवक था, जिस का फोटो पुलिस वाले ने लौज के मैनेजर को दिखाया था. उसे देख कर पुलिस वालों के चेहरे खिल उठे, क्योंकि उन की मंजिल मिल चुकी थी. जबकि उस युवक के चेहरे से साफ लग रहा था कि उतनी रात को दरवाजा खटखटा कर उस की नींद में खलल डालना उसे जरा भी अच्छा नहीं लगा था.

इस हरकत से क्षुब्ध युवक ने बेरुखी से सामने खड़े मैनेजर से पूछा, ‘‘क्या बात हो गई मैनेजर साहब, जो इतनी रात को दरवाजा खटखटा रहे हैं?’’

मैनेजर ने साथ आए लोगों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘ये लोग आप से मिलने आए हैं.’’

युवक उन लोगों से कुछ पूछता, उस के पीछे से आवाज आई, ‘‘कौन है भाई, इतनी रात को दरवाजा खटखटा रहा है?’’

दरवाजा खोलने वाला युवक अपने साथी के सवाल का जवाब दिए बगैर मैनेजर के साथ आए लोगों को पहचानता नहीं था, इसलिए उन्हें पहचानने की कोशिश करने लगा.

तभी मैनेजर के साथ आए लोगों में से सब से आगे खड़े व्यक्ति ने कहा, ‘‘इतनी रात को किसी का दरवाजा खटखटा कर परेशान करना ठीक नहीं है. लेकिन हम मजबूर थे मि. प्रमोद कुमार भाटी. तुम ने काम ही ऐसा किया है कि इतनी रात को तुम्हें परेशान करना पड़ा.’’

अजनबी के मुंह से अपना नाम सुन कर युवक एकदम से घबरा गया, जो उस के चेहरे पर साफ झलक आया था. लेकिन उस ने जल्दी ही खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘क्या कहा आप ने, प्रमोद कुमार भाटी, यह कौन हैं? यहां तो इस नाम का कोई आदमी नहीं है. आप लोग कौन हैं, मैं तो आप लोगों को पहचानता नहीं?’’

‘‘चिंता मत करो, अभी पहचान जाओगे.’’ कह कर उस आदमी ने युवक का कौलर पकड़ कर बाहर खींचा तो उस के साथ आए अन्य लोगों ने उसे दबोच लिया. इस के बाद कमरे के अंदर बैड पर रजाई में दुबके उस के साथी को भी पकड़ लिया गया.

इस के बाद उस कमरे की तलाशी ली गई. कमरे में जो भी जरूरत की चीज मिली, पुलिस ने जब्त कर लिया. सारे सुबूत और दोनों युवकों को साथ ले कर पुलिस स्थानीय थाने आ गई, जहां औपचारिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के तीसरे साथी को उस के घर से पकड़ लिया था.

पकड़े गए तीनों युवकों के नाम प्रमोद कुमार भाटी, कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल तथा भावी कुमार मोदी थे. उन पर मुंबई में एक बड़ी चोरी करने का आरोप था. मुबई की थाना कुर्ला पुलिस ने हरिद्वार पुलिस की मदद से 2 लोगों को चित्रा लौज से उस समय गिरफ्तार किया था, जब वे लौज के कमरे में सो रहे थे, जबकि उन के तीसरे साथी को गुजरात से उस के घर से पकड़ा गया था.

30 जनवरी, 2014 की रात साढ़े 11 बजे मुंबई के उपनगर थाना कुर्ला में 73 वर्षीय रतनचंद जैन ने अपनी फर्म में करोड़ों की चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने वाले रतनचंद जैन अपने परिवार के साथ मुंबई के लालबाग के उदय गार्डन में रहते थे. उन का गहने बनाने का कारोबार था. उन का यह कारोबार आर.आर. संघवी एंड कंपनी के नाम की फर्म के माध्यम से होता था. उन की यह कंपनी कुर्ला न्यू मिल रोड पर थी, जो सोनेचांदी से ले कर हीरेजवाहरात के गहने बना कर बेचती थी.

रतनचंद जैन की यह फर्म लगभग 60 साल पुरानी थी, जिसे वह अपने तीन नौकरों की मदद से चलाते थे. फर्म सुबह ठीक 9 बजे खुलती थी अैर रात के ठीक 9 बजे बंद होती थी. फर्म में काम करने वाले तीनों नौकर फर्म में ही रहते थे. फर्म गुरुवार को बंद रहती थी, इसलिए उस दिन नौकरों को कहीं भी आनेजाने की छूट होती थी.

चोरी गुरुवार को ही हुई थी, जिस दिन फर्म बंद रहती थी. रात साढ़े 10 बजे रतनचंद जैन खापी कर सोने की तैयारी कर रहे थे कि फर्म में काम करने वाले नौकर कैलाश कुमार भाटी ने फोन कर के आशंका व्यक्त की थी कि लगता है फर्म में चोरी हो गई है. चोरी की बात सुन कर रतनचंद घबरा गए, क्योंकि करोडों का मामला था. घर वालों को बिना कुछ बताए ही उन्होंने कपड़े पहने और टैक्सी पकड़ कर फर्म पर जा पहुंचे.

फर्म पर पहुंच कर रतनचंद जैन को पता चला कि उन का एक नौकर प्रमोद कुमार भाटी गायब है. उस का फोन भी बंद है. रतनचंद जैन अपने तीनों नौकरों पर आंख मूंद कर विश्वास करते थे. तीनों नौकरों में 2 तो पुराने थे, लेकिन प्रमोद कुमार भाटी को उन्होंने अभी 6 महीने पहले ही रखा था.

लेकिन वह भी कोई बाहरी नहीं था. वह उन के पुराने और विश्वासपात्र नौकर कैलाश कुमार भाटी का चचेरा भाई था. इसलिए वह उस पर भी उसी तरह विश्वास करने लगे थे, जैसा कैलाश पर करते थे.

प्रमोद के गायब होने से उस के प्रति मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगीं. वैसे तो वह काम में मेहनती और बातचीत में शरीफ था. लेकिन आदमी की कब नीयत खराब हो जाए, कौन जानता है. वह ताला तोड़वा कर अंदर पहुंचे तो फर्म की तिजोरी की स्थिति देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

तिजोरी में रखे सारे जेवरात और पैसे गायब थे. उन्होंने फर्म में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी तो प्रमोद कुमार भाटी का असली चेहरा सामने आ गया.

कैमरे की फुटेज में प्रमोद कुमार भाटी अपने एक साथी के साथ तिजोरी से गहने निकालते हुए साफ दिखाई दे रहा था. इस के बाद उन्होंने इस मामले में देर करना उचित नहीं समझा और दोनों नौकरों के साथ थाना कुर्ला जा पहुंचे.

रतनचंद जैन ने फर्म में हुई चोरी की रिपोर्ट थाना कुर्ला में लिखाई तो करोड़ों की इस चोरी पर थाने हड़कंप सा मच गया. थाने में ड्यूटी पर तैनात सबइंसपेक्टर प्रदीप पगारे ने तुरंत इस चोरी की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और कंट्रोल रूम को दी. इस के बाद कुछ सिपाहियों को साथ ले कर वह रतनचंद जैन की फर्म पर जा पहुंचे.

तिजोरी का निरीक्षण करने पर पता चला कि वह एकदम ठीकठाक थी. इस का मतलब उसे उसी की चाबी से खोला गया था. सबइंस्पेक्टर प्रदीप पगारे अभी निरीक्षण कर रहे थे कि डीसीपी धनंजय कुलकर्णी, एसीपी प्रकाश लाड़गे, सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे, इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले, असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत, सबइंसपेक्टर तुकाराम कोयडे भी वहां पहुंच गए.

डीसीपी धनंजय कुलकर्णी और एसीपी प्रकाश लाड़गे ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए.

अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे ने रतनचंद जैन और उन के दोनों नौकरों से काफी लंबी पूछताछ की. इसी पूछताछ में चोरी गए गहनों की सूची बनाई गई. पता चला, चोरी गए स्वर्ण आभूषणों का वजन साढ़े 10 किलोग्राम था, जिन की बाजार में कीमत 2 करोड़ 84 लाख रुपए के आसपास थी. इस के अलावा तिजोरी में नकद 5 लाख की रकम भी रखी थी.

रतनचंद जैन और उन के दोनों नौकरों से पूछताछ कर के पुलिस थाने आ गई. अब पुलिस को चोरों तक पहुंचना था. चोरों के बारे में उन्हें पता चल ही गया था. मुख्य चोर प्रमोद कुमार भाटी के बारे में उन्हें सारी जानकारी उस के चचेरे भाई कैलाश कुमार भाटी से मिल गई थी.

सीसीटीवी फुटेज से साफ हो गया था कि चोरी प्रमोद कुमार भाटी ने ही अपने 2 साथियों के साथ मिल कर की थी, इसलिए किसी दूसरी दिशा में जांच का कोई सवाल ही नहीं उठता था. चोरों को जल्दी पकड़ना भी था, क्योंकि अगर उन्होंने चोरी का माल ठिकाने लगा दिया तो परेशानी खड़ी हो सकती थी.

इस बात को ध्यान में रख कर सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले को सौंप दी. इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले ने मामले की जांच की रूपरेखा तैयार की और पुलिस की 3 टीमें बना कर अलगअलग लोगों को उन की कमान सौंप दी. इन में से एक टीम का नेतृत्व असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत को सौंपा गया था.

असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत ने अपने सहयोगियों हेडकांस्टेबल निवृत्ती येधे यशवंत पवार, इब्राहीम सैयद, संदीप माने के साथ फर्म के पुराने नौकर कैलाश कुमार भाटी से प्रमोद के बारे में पूरी जानकारी ले कर उसे पकड़ने के प्रयास शुरू कर दिए.

इस तरह की घटना को अंजाम दे कर कोई भी अपराधी जल्दी अपने घर नहीं जाता, यही सोच कर असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत प्रमोद के घर जाने के बजाय उस की तलाश मुंबई में ही रहने वाले उस के नातेरिश्तेदारों के यहां करने लगे. मुंबई में जब उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने उस के गांव का रुख किया.

प्रमोद की तलाश के साथ उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा कर का लोकेशन भी पता किया जा रहा था. उस के मोबाइल की पहली लोकेशन बोरीवली नेशनल पार्क की मिली थी. इस से अंदाजा लगाया गया कि प्रमोद साथियों के साथ मुंबई से बाहर निकल गया है, क्योंकि शहर से बाहर जाने वाली बसें वहीं से जाती थीं.

इस के बाद प्रमोद कुमार भाटी के मोबाइल फोन की लोकेशन गुजरात के उस के गांव की मिली थी. उसी लोकेशन के आधार पर असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत उस के गांव पहुंचे. लेकिन पुलिस टीम के वहां पहुंचने तक उस ने दोस्त के साथ गांव छोड़ दिया था. दादादादी ने पुलिस को बताया कि वह दिल्ली जाने की बात कह कर घर से निकला था.

पुलिस टीम दिल्ली पहुंची. लेकिन दिल्ली में भी प्रमोद उन्हें नहीं मिला, क्योंकि पुलिस टीम के दिल्ली पहुंचने तक वह उत्तराखंड के हरिद्वार पहुंच गया था. पुलिस को यह जानकारी उस के मोबाइल फोन के लोकेशन से मिल रही थी. मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर ही पुलिस टीम हरिद्वार जा पहुंची थी.

पुलिस टीम हरिद्वार तो पहुंच गई थी, लेकिन वहां प्रमोद और उस के साथी को ढूंढ़ना आसान नहीं था. लेकिन चोरों को तो पकड़ना ही था. असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत ने स्थानीय पुलिस की मदद से वहां के होटलों और लौजों में फोटो दिखा कर उन की तलाश शुरू कर दी.

आखिर उन की मेहनत रंग लाई और उन्होंने चित्रा लौज से प्रमोद और उस के साथी कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में प्रमोद ने बताया कि चोरी का सारा माल उस के तीसरे साथी भावी कुमार मोदी के पास रखा है.

असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत ने हरिद्वार से ही यह जानकारी सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे और इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले को दी तो इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले ने तत्काल सबइंस्पेक्टर प्रदीप पगारे की टीम को चोरी का माल बरामद करने के लिए भावी कुमार मोदी के गांव के लिए रवाना कर दिया था.

सबइंसपेक्टर प्रदीप पगारे अपनी टीम के साथ भावी कुमार मोदी के घर पहुंचे तो संयोग से वह घर पर ही मिल गया. उन्होंने उसे गिरफ्तार कर के चोरी का सारा माल बरामद कर लिया.

तीनों को मुंबई लाया गया और अगले दिन महानगर दंडाधिकारी के सामने पेश कर पूछताछ के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में प्रमोद कुमार भाटी और उस के साथियों ने आर.आर. संघवी एंड कंपनी में चोरी की जो कहानी सुनाई, वह चोरी कर के जल्दी से जल्दी करोड़पति बनने की निकली.

प्रमोद कुमार भाटी गुजरात के जिला मानसरोवर के गांव पालनपुर का रहने वाला था. उस के पिता प्रकाश कुमार के पास खेती की थोड़ी जमीन थी, उसी में मेहनत कर के वह किसी तरह गुजारा कर रहे थे. परिवार बड़ा था, इसलिए घर में हमेशा आर्थिक तंगी रहती थी.

प्रमोद कुमार भाटी भाईबहनों में सब से बड़ा था. समझदार हुआ तो कोई कामधंधा कर के वह परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के बारे में सोचने लगा. इसी चक्कर में वह मुंबई में रहने वाले अपने चचेरे भाई कैलाश कुमार भाटी के पास आ गया.

कैलाश कुमार 15 सालों से मुंबई में रतनचंद जैन की गहने बनाने वाली आर.आर. संघवी एंड कंपनी में काम कर रहा था. वह मेहनती और ईमानदार था, इसलिए रतनचंद जैन उसे बेटे की तरह मानते थे. यही वजह थी कि करोड़ों का माल वह उस के भरोसे छोड़ देते थे.

फर्म की तिजोरी की एक चाबी वह अपने पास रखते थे, जबकि दूसरी चाबी उन की फर्म के ठीक सामने स्थित के.के. ज्वैलर्स के मालिक के पास रहती थी.

यह फर्म रतनचंद जैन के रिश्तेदार की थी. यह चाबी उन के पास इसलिए रहती थी कि अगर कभी किसी ग्राहक को अचानक जरूरत पड़ जाए तो फर्म के नौकर इस चाबी से तिजोरी खोल कर उस ग्राहक को माल दे सकें.

रतनचंद कैलाश पर ही नहीं, अपने सभी नौकरों पर उसी तरह भरोसा करते थे. यही वजह थी कि उन के रहने और सोने की व्यवस्था उन्होंने अपनी कंपनी में ही कर रखी थी.

कैलाश कुमार को अपने चाचा के घर की आर्थिक स्थिति पता थी, इसलिए प्रमोद जब गांव से काम की तलाश उस के पास आया तो उस ने अपने मालिक रतनचंद जैन से कह कर उसे अपनी ही कंपनी में नौकरी दिला दी.

प्रमोद कुमार भाटी भी उसी तरह मेहनत और ईमानदारी से काम करने लगा, जिस तरह कैलाश और अन्य नौकर कर रहे थे. अपनी मेहनत और ईमानदारी से जल्दी ही उस ने फर्म के मालिक रतनचंद जैन के मन में अपने लिए खास जगह बना ली. इस तरह अन्य नौकरों की तरह वह भी उन का विश्वासपात्र बन गया.

रतनचंद जैन को प्रमोद पर भरोसा हो गया तो वह उसे भी फर्म की तिजोरी की चाबी देने लगे. इस के बाद जरूरत पड़ने पर अन्य नौकरों की तरह वह भी के.के. ज्वैलर्स के यहां से चाबी लाने लगा.

प्रमोद कुमार भाटी को नौकरी पर लगे 2-3 महीने ही हुए थे कि किसी काम से उसे गांव जाना पड़ा. छुट्टी ले कर वह गांव गया तो वहां वह अपने दोस्तों कमलेश उर्फ कल्पेश पटेल और भावी कुमार मोदी से मिला.

कमलेश उर्फ कल्पेश पटेल और भावी कुमार मोदी के परिवारों की भी आर्थिक स्थिति वैसी ही थी, जैसी प्रमोद कुमार के परिवार की थी. वे ज्यादा पढ़लिख भी नहीं पाए थे. कामधंधा न होने की वजह से गांव में आवारों की तररह घूमते रहते थे.

मुंबई से आए प्रमोद को देख कर उस के दोनों दोस्त हैरान रह गए. बातचीत में जब उन्हें पता चला कि प्रमोद गहने बनाने वाली कंपनी में काम करता है और वहां रोजाना लाखों का कारोबार होता है तो उन के मुंह में पानी आ गया. उन्हें लगा कि अगर फर्म का सारा माल उन के हाथ लग जाए तो वे तुरंत करोड़पति बन जाएंगे. सही बात है, खाली दिमाग शैतान का घर होता है, वह हमेशा उलटा ही सोचता है.

कमलेश और भावी ने जब यह बात प्रमोद से कही तो उस ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. लेकिन उन दोनों ने हार नहीं मानी और लगातार उसे चोरी के लिए राजी करने में लगे रहे. आखिर वे प्रमोद को पटरी पर लाने में कामयाब हो ही गए. उसे भी लगा कि अगर कंपनी का सारा माल उसे मिल जाता है तो उस के परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी. उस के बाद उसे कहीं काम करने की जरूरत नहीं रहेगी.

प्रमोद को कंपनी की सारी गतिविधियों और कामकाज का पता ही था, यह भी पता था कि कंपनी में हमेशा 3-4 करोड़ का माल यानी सोने के गहने, नकदी रखी रहती है.

दोस्तों के साथ करोड़ों की चोरी करने की योजना बना कर प्रमोद छुट्टी खतम होने के बाद मुंबई आ गया और पहले की ही तरह कंपनी के काम करने लगा. लेकिन अब उसे योजना को अंजाम देने के लिए हमेशा मौके की तलाश रहने लगी थी.

चोरी करने के एक दिन पहले यानी 29 जनवरी, 2014 को प्रमोद ने फोन कर के अपने दोनों दोस्तों, कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल और भावी कुमार मोदी को मुंबई बुला लिया. 30 जनवरी, 2014 को कंपनी बंद थी. उस दिन अगलबगल की भी सारी दुकानें बंद रहती थीं, इसलिए रास्ता पूरी तरह साफ था.

शाम 7 बजे कैलाश और अन्य नौकर घूमने और खाना खाने बाहर चले गए तो प्रमोद अपने काम में लग गया. उस ने तुरंत फोन कर के कुर्ला स्टेशन के आसपास घूम रहे अपने दोस्तों को बुला लिया और खुद तिजोरी की चाबी लेने के.के. ज्वैलर्स के यहां चला गया.

के.के. ज्वैलर्स से चाबी लेते समय उस ने कहा था कि एक बड़ा ग्राहक आया है, जिसे और्डर का समान देना है. ऐसा हमेशा होता आया था, इसलिए तिजोरी की चाबी मिलने में उसे कोई परेशानी नहीं हुई.

चाबी ला कर प्रमोद ने भावी कुमार मोदी को फर्म के बाहर निगरानी पर खड़ा कर दिया और खुद कमलेश उर्फ कल्पेश पटेल के साथ अंदर आ गया. इस के बाद तिजोरी खोल कर उस में रखे सारे गहने और 5 लाख रुपए नकद ले कर तिजोरी को बंद कर के चाबी के.के. ज्वैलर्स को दे दी. सारा काम निपटा कर फर्म में बाहर से ताला बंद किया और दोस्तों के साथ चला गया.

तीनों ने कुर्ला स्टेशन के पास से टैक्सी पकड़ी और बोरीवली आ गए, जहां से बस पकड़ कर अपने गांव चले गए. गांव में प्रमोद ने चेरी का सारा माल भावी कुमार मोदी के यहां रखा और गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद कमलेश उर्फ कल्पेश के साथ गांव छोड़ दिया.

गांव से दोनों दिल्ली आए, जहां वसंत विहार के एक लौज में ठहरे. अगले दिन दोनों हरिद्वार चले गए. हरिद्वार में एक रात वे बालाजी लौज में ठहरे. इस के अगले दिन वे चित्रा लौज में ठहरे, जहां से पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. इस के बाद पुलिस ने सारा माल भी बरामद कर लिया. इस तरह उन के करोड़पति बनने और ऐशोआराम से जीने का सपना टूट गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रमोद कुमार भाटी, कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल और भावी कुमार मोदी के खिलाफ चोरी का मामला दर्ज कर के पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित