
सुनील की कमाई का एकमात्र जरिया टैंपो ही थे. अचानक से दोनों टैंपो ने जवाब दे दिया. जिस से जो पैसे घर में आ रहे थे, वो आने बंद हो गए. अचानक आई मुसीबत से सुनील की गृहस्थी की गाड़ी डगमगा गई थी. रेनू के ब्यूटीपार्लर से इतनी कमाई नहीं हो पा रही थी कि गृहस्थी की गाड़ी चल सके. जबकि खर्चे अपनी जगह पूरे थे. ऐसे में घर का खर्च चल पाना मुश्किल हो गया था.
अचानक आई मुसीबत से पति और पत्नी परेशान हो गए. सुनील को कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह करे तो क्या करे. टैंपो बंद हो जाने के बाद सुनील घर में मुट्ठी बंद कर के बैठ गया. उस ने बाहर कहीं हाथपांव मारने की कोशिश नहीं की. पति की उदासीनता देख कर रेनू के हाथपांव फूल गए कि गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलेगी?
आगे का जीवन कैसे कटेगा. ये सोचसोच कर रेनू चिड़चिड़ी हो गई थी. वह पति को कहीं और जा कर नौकरी करने की सलाह देती. पत्नी की सलाह सुनील को अच्छी नहीं लगती थी. वह महसूस करता कि पत्नी उसे अपनी तरह से हांकना चाहती है. इसलिए वह उस पर बिगड़ जाता था. तब पति को डराने के लिए रेनू अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि उस की बात नहीं मानी तो वह भाई से कह कर उसे जेल भेजवा देगी.
पत्नी की धौंस सुन कर सुनील गुस्से के मारे लाल हो जाता था. अब तो बातबात पर पतिपत्नी के बीच तूतू मैंमैं होने लगी थी. दोनों के बीच प्रेम की जगह नफरत खड़ी हो गई. एक ही छत के नीचे रह कर दोनों किसी अजनबी की तरह जीवन के दिन काटने लगे.
दोनों के बीच बातचीत भी कम होने लगी थी. इस का सीधा असर उन के बेटे शिवम पर पड़ रहा था. शिवम बड़ा हो चुका था और समझदार भी. मांबाप के रोजरोज के झगड़े से वह आजिज आ चुका था. इस से उस की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा था.
बेटे के भविष्य को देखते हुए रेनू ने फैसला किया कि वह बेटे को अपने पास नहीं रखेगी. इस से उस के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है. इसलिए इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर लेने के बाद आगे की तैयारी के लिए रेनू ने बेटे को दिल्ली भेज दिया. शिवम दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगा था. ये बात जून, 2018 की है.
इसी बीच रेनू बीमार पड़ गई. अकसर उस के पेट में असहनीय दर्द रहने लगा था. डाक्टर से चैकअप कराने पर पता चला उसे एपेंडिक्स हुआ है. उस के औपरेशन और दवा के खर्च में करीब 15-20 हजार रुपए तक खर्च आ सकते हैं. यह सुन कर सुनील अपना माथा पकड़ कर बैठ गया.
वह समझ नहीं पा रहा था कि इलाज के लिए पैसे कहां से आएंगे? खैर, जो भी हो, रेनू थी आखिर उस की पत्नी. भले ही वह एक छत के नीचे अजनबियों की तरह रह रहे थे, लेकिन पत्नी की अस्वस्थता देख कर उस का मन पसीज गया था. पत्नी को तकलीफ में जीता हुआ वह नहीं देख सकता था. इस बीमारी ने दोनों के सारे गिलेशिकवे भुला कर दोनों को एकदूसरे के करीब ला दिया था. दोनों एकदूसरे के करीब भले ही आ गए थे लेकिन उन के मन की कड़वाहट अभी भी ताजा बनी हुई थी.
सुनील ने जैसे तैसे रुपयों का बंदोबस्त किया और जून, 2018 में पत्नी का औपरेशन करवा दिया. डाक्टर ने रेनू को पूरी तरह बेड रेस्ट करने की सलाह दी. दिन भर चहलकदमी करने वाली रेनू बैड पर पड़ीपड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी. पति की किसी भी बात को सुनते ही उस पर झल्ला उठती थी. ये लगभग रोज की ही उस की आदत बन गई थी.
अब तो वो किसी भी बात को ले कर इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो भैया से शिकायत कर के तुम्हें जेल भिजवा दूंगी. पत्नी के व्यवहार से सुनील सिंह बुरी तरह दुखी था और टूट भी गया था.
पत्नी के रवैये से आजिज आ कर सुनील उस से छुटकारा पाने की युक्ति सोचने लगा कि कैसे इस से जल्द से जल्द मुक्ति पा सके. पत्नी से छुटकारा पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो गया था.
बात 11 सितंबर, 2018 की है. पत्नी को दिखाने सुनील को डाक्टर के पास जाना था. सुनील ने रेनू से कहा कि वह किसी जानने वाले से कार ले कर आता है. उसी से सुनील ने डाक्टर के पास चलने की बात कही तो रेनू भड़क गई. उस ने कह दिया कि वह मांगी हुई कार से चेकअप कराने नहीं जाएगी. चाहे कुछ भी हो जाए. कार अपनी होनी चाहिए. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच जो झगड़ा शुरू हुआ तो वो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था.
देखा जाए तो इस बात में कोई दम नहीं था लेकिन रेनू ने तो उसे एक इश्यू बना लिया था. शाम में झगड़ा शुरू हुआ तो रात के 12 बजे तक चला. घर में चूल्हा तक नहीं जला. दोनों भूखे ही रहे. सुनील को पत्नी से छुटकारा पाने का ये मौका बेहतर लगा.
गुस्से में आपा खोए सुनील ने सिलबट्टे से रेनू के सिर के पीछे ऐसा वार किया कि वह फर्श पर जा गिरी और छटपटाने लगी. फिर धीरेधीरे वह मौत की आगोश में समाती चली गई. खून देख कर सुनील के होश उड़ गए. डर के मारे वह कांपने लगा था. उस की आंखों के सामने जेल की सलाखें नजर आने लगी थीं. पुलिस से बचने के लिए उस ने एक अनोखी कहानी गढ़ डाली.
हत्या को लूट का रूप देने के लिए उस ने फर्श पर पड़े खून को गीले कपड़े से साफ कर दिया. फिर पत्नी की लाश को खींच कर बेड पर लिटा दिया. अलमारी के सामान को चौकी और फर्श पर बिखेर दिया. फिर पत्नी के गले और कान की बालियां निकाल लीं. एक बाली को फर्श पर ऐसे गिरा दिया जैसे लगे कि बदमाशों से जाते समय लूटे गए सामान से वह बाली गिर गई.
क्राइम औफ सीन को उस ने ऐसा बनाने की कोशिश की, जिस से लगे कि लूट के लिए बदमाशों ने रेनू की हत्या की हो. सुनील ने पत्नी की हत्या कर बड़ी सफाई से सबूत मिटा दिए थे. लेकिन सीसीटीवी कैमरे ने उस की सारी कहानी से परदा उठा दिया. पतिपत्नी अगर आपस में सामंजस्य बना कर रहते तो रेनू जीवित रहती और सुनील को जेल भी नहीं जाना पड़ता. लेकिन दोनों के अविवेक ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया.
पुलिस सुनील से यह जानने में जुटी हुई थी कि घटना वाली रात साढ़े 4 बजे वह किस रास्ते से और कहां तक टहलने गया था? आनेजाने में उसे कुल कितना समय लगा था? इन सवालों की बौछार से सुनील के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. वह सकपका गया और दाएंबाएं देखने लगा. पुलिस ने उस के चेहरे की हवाइयों को पहचान लिया कि वह वास्तव में जरूर कुछ छिपा रहा है.
सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस सीसीटीवी कैमरे की तलाश में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई. सुनील के घर से करीब 500 मीटर दूर कालोनी के ही सूरजकुंड ओवरब्रिज के पास एक सीसीटीवी कैमरा लगा मिल गया.
पुलिस ने उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगाली तो खुद सुनील हाथ में एक झोला लिए कहीं जाता हुआ दिखा. झोले में कुछ वजनदार चीज प्रतीत हो रही थी. थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उस के हाथ में झोला नहीं था. हाथ खाली था. सुनील जिन 3 संदिग्यों के होने का दावा कर रहा था, उस घटना वाली रात कैमरे में वह नहीं दिखे.
अब सीसीटीवी कैमरे से तसवीर साफ हो चुकी थी. यानी सुनील झूठ बोल रहा था. पुलिस के शक के दायरे में सुनील आ चुका था.
14 सितंबर की सुबह पत्नी के दाह संस्कार के वक्त पुलिस राजघाट श्मशान पहुंच गई और क्रियाकर्म हो जाने के बाद पुलिस ने सुनील को हिरासत में ले लिया. थाने पहुंचने पर पुलिस ने सुनील से गहनतापूर्वक पूछताछ की. पुलिस के सवालों के आगे वह एकदम टूट गया और पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.
उस ने बताया, ‘‘सर मैं उसे मारना नहीं चाहता था. पर उस ने मेरी जिंदगी एकदम से नरक से भी बदतर बना दी थी. बातबात पर अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस देती थी, जेल भेजवाने की धमकी तो उस की जबान पर हर समय रहती थी. इस के चलते मेरा कामकाज सब ठप्प पड़ गया था. उस की हरकतों की वजह से मैं इतना मजबूर हो गया था कि मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा. इस बात का दुख मुझे भी है और जीवन भर रहेगा.’’ इतना कह कर सुनील रोने लगा.
आखिर सुनील किस बात को ले कर मजबूर हुआ कि उसे ऐसा खतरनाक कदम उठाना पड़ा. पूछताछ करने पर इस की जो वजह सामने आई, इस प्रकार निकली.
45 वर्षीय सुनील सिंह मूलत: संतकबीर नगर जिले के धनघटा के मटौली गांव का रहने वाला था. उस के पिता कालिका सिंह को गोरखुपर के गोला क्षेत्र के नेवास गांव में नेवासा मिला हुआ था. सासससुर और संपत्ति की देखभाल के लिए पत्नी और बच्चों के साथ कालिका सिंह ससुराल में जा कर बस गए थे. गांव में रह कर बच्चे पले और बड़े हुए और उन्होंने उसी इलाके के विद्यालयों से पढ़ाई की.
कालिका सिंह मिलनसार स्वभाव के थे. अपने बच्चों को भी वह अच्छी शिक्षा और अच्छी सीख दिया करते थे. सुनील खुली आंखों से सरकारी अफसर बनने के सपने देखा करता था. इस के लिए वह दिन रात जीतोड़ मेहनत करता था. लेकिन वह कोशिश करने के बाद भी सरकारी मुलाजिम नहीं बन सका.
भाग्य और किस्मत के 2 पाटों के बीच में पिसे सुनील ने सरकारी नौकरी का ख्वाब देखना छोड़ दिया और उस ने खुद का कोई कारोबार करने की योजना बनाई. इसी बीच उस के जीवन में एक नई कहानी ने जन्म लिया. खूबसूरत रेनू सिंह के साथ वह दांपत्य जीवन में बंध गया. कुछ सालों बाद सुनील एक बेटे शिवम का बाप बन गया.
खुद्दार और मेहनतकश सुनील मांबाप के सिर पर कब तक बोझ बन कर जीता. अब वह अकेला नहीं बल्कि परिवार वाला हो चुका था. जीवन की गाड़ी चलाने के लिए उस ने कुछ न कुछ करने का फैसला ले लिया. सन 2008 में सुनील परिवार को ले कर गोरखपुर आ गया. सूरजकुंड कालोनी में उस का साला अजीत सिंह रहता था. अजीत ने ही सुनील को कालोनी में एक किराए का कमरा दिलवा दिया.
शहर में रहना तो आसान होता है लेकिन खर्चे संभालना आसान नहीं होता. वह भी तब जब कमाई का कोई जरिया न हो. ऐसा ही हाल कुछ सुनील का भी था. शुरुआत में सुनील के पिता ने उसे आर्थिक सहयोग किया.
बेटे का स्कूल में दाखिला कराने के बाद सुनील ने पिता के सहयोग से भाड़े पे चलाने के लिए 2 टैंपो खरीद लिए. टैंपो उस ने भाड़े पर चलवा दिए. टैंपो से उस की अच्छी कमाई होने लगी. दोनों ड्राइवरों को दैनिक मजदूरी देने के बाद सुनील के पास अच्छी बचत हो जाती थी.
पैसा आने लगा तो उस की जरूरतें भी बढ़ने लगीं. धीरेधीरे शिवम भी स्कूल जाने लायक हो चुका था. शिवम उस का इकलौता बेटा था. उसे वह अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था. इसलिए सुनील ने बाद में शहर के अच्छे स्कूल में उस का दाखिला करा दिया.
सुनील और रेनू दोनों ने मिल कर तय किया कि जब शहर में ही रहना है तो भाड़े के मकान में कब तक सिर छिपाएंगे. थोड़ा पैसा इकट्ठा कर के मकान बनवा कर आराम से रहेंगे और कमाएंगे खाएंगे.
यह बात रेनू ने अपने बड़े भाई अजीत से कही तो उस ने बहन की बातों को काफी गंभीरता से लिया और अपने मकान से थोड़ी दूरी पर उसे एक प्लौट खरीदवा दिया. इस के बाद सुनील ने इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस प्लौट पर मकान बनवा लिया. फिर वह अपने मकान में रहने लगा.
पति की आमदनी से रेनू खुश नहीं थी. वह जान रही थी कि टैंपो की कमाई स्थाई नहीं है. आज सड़क पर दौड़ रहा है तो पैसे आ रहे हैं, यदि कल को वह खराब हो जाए तो क्या होगा? फिर पैसे कहां से आएंगे. कहां तक घर वालों के सामने हाथ फैलाए खडे़ रहेंगे.
रेनू ने सोचा कि वह भी कुछ ऐसा काम करे जिस से 2 पैसे घर में आएं तो अच्छा ही होगा. वह पढ़ीलिखी तो थी ही अपनी शिक्षा और व्यक्तित्व के अनुरूप ही काम करना चाहती थी.
बहुत सोचनेविचारने के बाद उसे ब्यूटीपार्लर का काम अच्छा लगा. पति से सलाह ले कर ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर लिया फिर घर में ही ब्यूटीपार्लर की दुकान खोल ली. मोहल्ले में होने के नाते उस का पार्लर चल निकला. दोनों की कमाई से बड़े मजे से परिवार की गाड़ी चल रही थी. कुछ दिनों बाद ही पता नहीं किस की नजर लगी कि परिवार से जैसे खुशियां ही रूठ गईं.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना तिवारीपुर के एसओ रामभवन यादव रात्रि गश्त से लौट कर अपने आवास पर पहुंचे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उस समय सुबह के 5 बजे थे. बेपरवाही से उन्होंने फोन स्क्रीन पर नजर डाली. काल किसी बिना पहचान वाले नंबर से आई थी. उन्होंने काल रिसीव कर जैसे ही हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई. मैं एसओ साहब से बात करना चाहता हूं.
‘‘जी बताइए, मैं एसओ तिवारीपुर बोल रहा हूं.’’ रामभवन यादव ने कहा, ‘‘बताइए क्या बात है, आप इतना घबराए हुए क्यों हैं?’’
‘‘सर, मैं सुनील सिंह बोल रहा हूं और सूर्य विहार कालोनी में रहता हूं.’’ फोन करने वाले व्यक्ति ने आगे कहा, ‘‘सर, गजब हो गया. कुछ बदमाश मेरे घर में घुस कर मेरी पत्नी रेनू सिंह की हत्या कर के फरार हो गए.’’ इतना कह कर सुनील सिंह फफकफफक कर रोने लगा. इस के बाद उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.
सुबहसुबह हत्या की खबर सुन कर एसओ रामभवन यादव चौंक गए. मामला गंभीर था. इसलिए वह फटाफट टीम को साथ ले कर सूर्य विहार कालोनी की तरफ रवाना हो गए. इसी बीच गोरखपुर जीआरपी थाने के इंसपेक्टर अजीत सिंह का फोन भी उन के पास आ चुका था. उन से बात कर के पता चला कि मृतका रेनू सिंह अजीत सिंह की सगी बहन थी.
यहां बात विभाग की आ गई. एसओ रामभवन यादव ने इंसपेक्टर अजीत सिंह को भरोसा दिया कि उन के साथ पूरा न्याय होगा. अपराधी चाहे जो भी हो उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. उधर इंसपेक्टर अजीत सिंह ने भी केस के खुलासे में अपनी तरफ से पूरी मदद करने को कहा.
तिवारीपुर थाने से घटनास्थल करीब 2 किलोमीटर दूर था इसलिए एसओ यादव 10-15 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए. पुलिस के पहुंचने के बाद ही कालोनी के लोगों को जानकारी हुई कि बदमाशों ने सुनील के यहां लूटपाट कर उस की पत्नी की हत्या कर दी है.
इस के बाद तो सुनील के घर के सामने कालोनी के लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई. एसओ रामभवन यादव जब सुनील के घर में गए तो उस की पत्नी रेनू सिंह की खून से सनी लाश बेड पर पड़ी हुई थी. लग रहा था कि बदमाशों ने उस के सिर के पीछे कोई भारी चीज मार कर घायल किया था.
वार से सिर की हड्डी भी भीतर की तरफ धंसी हुई थी. सिर पर चोट के अलावा रेनू के शरीर पर चोट का और कोई निशान नहीं था. कमरे में रखी लोहे की अलमारी खुली हुई थी और उस का सामान फर्श पर बिखरा पड़ा था.
कमरे में फर्श पर कान का एक झुमका गिरा पड़ा था. शायद लूटपाट के बाद बदमाशों के वहां से भागते समय लूटे गए गहनों में से झुमका गिर गया था. एसओ ने उस झुमके के बारे में सुनील से पूछा तो सुनील झुमका देखते ही रोते हुए कहने लगा कि यह झुमका उस की पत्नी रेनू का ही है.
इस बीच एसओ रामभवन यादव ने फोन कर के एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह, एसपी (क्राइम), सीओ (क्राइम) प्रवीण सिंह को सूचित कर दिया था. सूचना मिलने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे.
इन अधिकारियों के अलावा सीओ (बांसगांव) वीवी सिंह, सीओ (कोतवाली), एसओ (सहजनवां) सत्य प्रकाश सिंह, स्वाट टीम के इंचार्ज वीरेंद्र राय, एसआई मनोज दुबे, क्राइम ब्रांच के सिपाही वीपेंद्र मल्ल, राजमंगल सिंह, शशिकांत राय, राशिद अख्तर खां, शिवानंद उपाध्याय, कुतुबउद्दीन, राकेश, विजय प्रकाश के अलावा फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई.
चूंकि यह मामला पुलिस विभाग से जुड़ चुका था, इसलिए पुलिस वर्क आउट करने में कोई चूक नहीं करना चाहती थी. अधिकारियों ने मौके का गहनता से निरीक्षण किया. कमरे की हालत देख कर पहली नजर में यह मामला लूट का लग रहा था.
फोरैंसिक टीम मौके से सबूत जुटा रही थी. फोरैंसिक टीम ने कमरे में रखी लोहे की अलमारी की जांच की तो अलमारी का लौक कहीं से टूटा हुआ नजर नहीं आया. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने अलमारी को चाबी से खोला हो. ये देख कर फोरैंसिक टीम हैरान रह गई.
सुनील ने पुलिस को बताया था कि बदमाशों ने अलमारी तोड़ कर जेवर गहने लूटे थे. जबकि घटनास्थल पर इस तरह के कोई निशान नहीं मिले. ये मामला पूरी तरह संदिग्ध लगने लगा और शक के दायरे में कोई अपना ही नजर आने लगा. इसे पुलिस पूरी तरह गोपनीय रखे रही. पुलिस ने उस समय सुनील से कुछ नहीं कहा.
घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर रेनू की लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेजवा दी. सुनील की तहरीर पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ लूट के लिए हत्या करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. यह बात 12 सितंबर, 2018 की है.
अगले दिन 13 सितंबर को रेनू सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट में रेनू सिंह की मौत हेड इंजरी के कारण बताई गई. यही नहीं उस की मौत का जो समय बताया गया था वह सुनील के दिए गए बयान से कतई मेल नहीं खा रहा था.
पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची थी तो उस समय रेनू की डैडबौडी अकड़ चुकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अमूमन इस तरह के लक्षण किसी बौडी में मौत के करीब 4 घंटे बाद देखने को मिलते हैं.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रेनू की मौत 11-12 सितंबर की रात के 12 बजे के करीब हो चुकी थी. जबकि सुनील ने बयान दिया था कि उस ने भोर के साढ़े 4 बजे के करीब 3 संदिग्धों को घर की तरफ से जाते हुए देखा था. उन्हीं तीनों ने घटना को अंजाम दिया था.
सुनील के बयान और मौके के हालात तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट आपस में कहीं भी मेल नहीं खा रहे थे. इस का मतलब साफ हो चुका था कि सुनील घटना में शामिल था या फिर वह पुलिस से कुछ छिपा रहा है. सुनील के बयान को तसदीक करने के लिए पुलिस टीम उन तीनों संदिग्धों की तलाश में जुट गई, जिन पर सुनील को शक था.
किरन की हत्या और रोहतास के साथ हुए अन्याय को मीडियाकर्मियों ने विभिन्न टीवी चैनलों पर दिखाना शुरू कर दिया. इस खबर के बाद क्षेत्र में हंगामा उठ खड़ा हुआ. कई समाजसेवी और महिला संगठन सड़कों पर उतर आए थे.
किरन के हत्यारे मातापिता और भाई की गिरफ्तारी को ले कर आवाज उठने लगी थीं. हर गली, नुक्कड़ पर इस घटना की चर्चा होने लगी थी. कोई इसे उचित ठहरा रहा था तो कोई अन्याय कह रहा था. पुलिस प्रशासन ने इस मामले से निपटने की पूरी तैयारी कर ली थी.
रोहतास की शिकायत पर 14 फरवरी, 2017 को थाना सदर में किरन के भाई अशोक और अन्य लोगों के खिलाफ किरन की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 506, 34 के तहत दर्ज कर लिया गया. पुलिस उसी रात जुगलना गांव पहुंच गई.
पुलिस ने लोगों से पूछताछ कर किरन के बारे में जानकारी जुटाई. देर रात पुलिस ने रोहतास की सुरक्षा के मद्देनजर उसे एक गनमैन दे दिया था. क्योंकि अशोक ने रोहतास को जान से मारने की धमकी भी दी थी. दूसरे ऐसे गंभीर माहौल में रोहतास की सुरक्षा अति आवश्यक बन गई थी.
पुलिस ने श्मशान से बरामद किए सबूत
अगली सुबह पुलिस ने जुगलना गांव जा कर अशोक को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया था. अशोक की गिरफ्तारी के बाद थाना सदर और सीन औफ क्राइम की टीम ने मृतका किरन के कमरे का बड़ी बारीकी से मुआयना किया और कुछ चीजों को अपने कब्जे में ले लिया था. इस के बाद पुलिस परिवार के लोगों, गांव के प्रमुख लोगों और सरपंच को साथ ले कर श्मशान घाट पहुंची.
अशोक की निशानदेही पर उस जगह की पहचान करवाई गई, जहां किरन का अंतिम संस्कार किया गया था. श्मशान से पुलिस ने हड्डियों और राख के सैंपल लिए और उन्हें लैब में भेजने के बाद डीएनए टेस्ट की तैयारी शुरू कर दी थी.
इसी के साथ ही किरन द्वारा लिखा गया बताया जाने वाला सुसाइड नोट भी टीम ने अपने कब्जे में ले लिया था ताकि लिखाई की जांच की जा सके. क्राइम टीम ने छत पर उस जगह की मिट्टी के सैंपल भी लिए जिस जगह जहरीला पानी पीने के बाद किरन ने उल्टी की थी.
इस काम से फारिग होने के बाद 16 फरवरी को अशोक को अदालत में पेश कर 2 दिन का पुलिस रिमांड लिया, ताकि अभियुक्त से मृतका का मोबाइल फोन व इस केस से जुड़ी अन्य चीजें बरामद की जा सकें. रिमांड अवधि में पुलिस ने कई सबूत जुटाए. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने अशोक को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.
पुलिस ने समय पर इस केस की चार्जशीट अदालत में फाइल कर दी थी. यह केस जिला एवं सत्र न्यायालय में एक साल 10 महीने तक चला था. बचाव पक्ष की तरफ से इस केस को ललित गोयल लड़ रहे थे और अभियोजन पक्ष की ओर से इस केस की पैरवी सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट के अधिवक्ता जतिंदर कुश कर रहे थे.
अदालत में डीएनए की रिपोर्ट भी पेश की गई थी जो श्मशान से उठाई गई मृतका की हड्डियों के डीएनए और मृतका के भाई अशोक के डीएनए से मैच कर गई थी. लेकिन पुलिस ने छत से उल्टी के जो सैंपल लिए थे. उन की जांच रिपोर्ट से यह बात साबित नहीं हो सकी कि मृतका को जहर दे कर मारा गया था. जहर की बात रोहतास ने ही पुलिस व अन्य लोगों को अपने बयान में बताई थी.
प्रेमी मुकर गया गवाही से
इस केस में नया मोड़ उस समय आया था, जब मृतका के पति रोहतास ने अदालत में अपनी गवाही देने से मना कर दिया था, जिस प्रेम विवाह की कीमत किरन को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी थी, वही रोहतास बेवफा निकल गया था.
साथ जीनेमरने की कसमें खा कर शादी के बंधन में बंधने के बाद जब किरन की हत्या कर दी गई तो कानूनी लड़ाई लड़ने के बजाय रोहतास गवाही से ही मुकर गया. उस ने अपने बयान में अदालत को बताया था कि उसे पुलिस से कोई शिकायत नहीं है. उस ने अपने तौर पर पता लगा लिया है कि किरन की मौत प्राकृतिक तरीके से हुई थी.
रोहतास के इस बयान के बाद सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट ने किरन हत्याकांड के मुकदमे की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली थी. ट्रस्ट के वकील जतिंदर कुश ने 5 सितंबर, 2018 को अदालत में एक पेटीशन दायर कर प्रार्थना की थी कि अभियुक्त अशोक के पिता पुलिस में हैं, जिस की वजह से सदर पुलिस ने सनातन धर्म ट्रस्ट के पदाधिकारियों की न तो गवाही दर्ज की थी और न ही किसी रजिस्टर या दस्तावेज को चैक किया था. जबकि इस केस में उन की गवाही की बड़ी अहमियत है.
ट्रस्ट की प्रार्थना स्वीकार कर अदालत ने 14 सितंबर को ट्रस्ट के उस रजिस्टर को चैक किया, जिस में शादी के बाद अपने हस्ताक्षर करते वक्त किरन ने अपनी हत्या होने की आशंका व्यक्त की थी.
इस के बाद सनातन धर्म ट्रस्ट के चेयरमैन संजय चौहान के बयान भी अदालत में दर्ज किए गए थे. तमाम गवाहियां और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अतिरिक्त सेशन जज डा. पंकज ने अशोक को किरन की हत्या का दोषी ठहराते हुए फैसले की तारीख 5 दिसंबर, 2018 तय कर दी थी.
न्यायाधीश डा. पंकज ने इस केस में अपना फैसला निर्धारित तिथि को दिन के 3 बज कर 58 मिनट पर सुनाया. इस फैसले से ठीक 10 मिनट पहले 3:48 बजे दोषी अशोक के थानेदार पिता सुशील उठ कर अदालत से बाहर चले गए थे. वह शायद पहले से ही जानते थे कि फैसला उन के पक्ष में नहीं होने वाला है.
दोषी अशोक को सजा सुनाने से पहले जज साहब ने इस मामले पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा था, ‘‘जो ऐसी साजिश रचते हैं, वह याद रखें कि फांसी का फंदा उन का इंतजार कर रहा है.’’
अदालत ने सुनाई फांसी की सजा
अदालत इसे रेयरेस्ट औफ रेयर अपराध मानते हुए किरन की हत्या के अपराध में आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दोषी को फांसी की सजा और एक हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. इस के अलावा धारा 201 के तहत 7 साल के कठोर कारावास की सजा का हुक्म भी दिया.
तभी मुजरिम अशोक ने अदालत से कम सजा करने की अपील करते हुए कहा था कि उस की मां को कैंसर है और वह अकसर बीमार रहती हैं. पिता को अपनी नौकरी से समय नहीं मिलता है. ऐसे में मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं है.
पर अदालत ने उस की अपील को खारिज करते हुए कहा था कि ऐसे अपराधी के साथ नरमी नहीं बरती जा सकती. सजा सुनने के बाद अशोक का सिर शर्म और पश्चाताप से नीचे झुक गया था.
किरन की मौत से पहले सन 2017 तक हिसार के गांव जुगलान में थानेदार सुरेश का हंसताखेलता परिवार था. 4 लोगों के इस छोटे से परिवार में बेटी की मौत हो गई और उस की हत्या के अपराध में बेटा जेल चला गया. पत्नी को कैंसर है और सुरेश स्वयं ड्यूटी पर बाहर रहते हैं. कैंसर से पीडि़त पत्नी अब बिना किसी सहारे के घर में अकेली रहेगी.
आखिर क्या मिला ऐसी मूंछ बचा कर. ध्यान से सोचा जाए तो अशोक ही अपने घर को उजाड़ने का कसूरवार निकला. जिस समाज के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया, अब वह समाज और समाज के ठेकेदार कहां हैं.
प्रिंस और सोनिया की जुगलबंदी
दरअसल प्रिंस और सोनिया अब एकदूसरे को पसंद करने लगे थे लेकिन सोनिया समझ गई थी कि उसे इतनी कमाई नहीं होती कि वह उस के खर्चे लंबे समय तक उठा सके. लेकिन सोनिया के दिल्ली में मातापिता के पास रहने के दौरान भी प्रिंस अकसर सोनिया से मिलने के लिए दिल्ली आता जाता रहता था. सोनिया ने अपने मातापिता को बताया कि वे जल्द ही शादी करने वाले हैं.
कुछ समय बाद ही प्रिंस को उस के घर आतेजाते ये बात पता चल चुकी थी कि दोनों भाई परिवार से अलग हैं और छोटी बेटी हरजिंदर कौर के सोनिया के पति से संबंध हो जाने के बाद उस के मातापिता के पास केवल सोनिया ही थी, जो उस मकान की हकदार थी. उस 100 वर्गगज के मकान की कीमत लगभग 70-80 लाख रुपए थी. इसलिए प्रिंस ने सोनिया के दिमाग में यह बात डाल दी कि अगर वह अपने मातापिता से इस मकान को अपने नाम करा ले तो वे दोनों शादी कर के दिल्ली में इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल कर आगे की जिंदगी चैन से बसर कर सकते हैं.
सोनिया को भी उस की बात पसंद आई. सोनिया ने अपने मातापिता से घर को उस के नाम पर करने के लिए कहा तो पिता बुरी तरह भड़क गए. कहने लगे क्या हुआ जो मेरे दूसरे बच्चे मेरे साथ नहीं रहते. अरे ये मेरी मेहनत की कमाई से बनाई गई प्रौपर्टी है, इस पर उन सब का भी बराबर का अधिकार है. जब तक मैं जिंदा हूं, इस पर किसी एक का अधिकार नहीं हो सकता.
कई बार बात करने के बाद भी गुरमीत सिंह और जागीर कौर मकान को सोनिया के नाम ट्रांसफर करने के लिए राजी नहीं हुए. अपने सपने में मातापिता को बाधक बनता देख कर सोनिया के दिमाग में उन के लिए खुराफाती खयाल आने लगे.
जब उस ने देख लिया कि पिता प्रौपर्टी उस के नाम नहीं करेंगे तो उस ने सब से पहले पिता के संदूक से उस प्रौपर्टी के पेपर चुरा लिए. बाद में उस ने प्रिंस की मदद से उन दस्तावेजों को जालसाजी कर के अपने नाम करवा लिया. फिर उन दोनों ने तिलकनगर के प्रौपर्टी डीलर बिट्टू से इस प्रौपर्टी को बिकवाने के लिए बात की तो उस ने जल्द ही एक तय रकम में इस प्रौपर्टी को बिकवाने का वादा किया.
इस दौरान प्रिंस के बहकावे में आ कर उस ने तय कर लिया कि अगर उन्हें मातापिता की संपत्ति हथियानी है तो उन की हत्या करनी पड़ेगी. बस यह खयाल आते ही उन्होंने इस की प्लानिंग शुरू कर दी. संयोग से मौका भी जल्द ही मिल गया. अपने पिता की मौत हो जाने के कारण 10 फरवरी, 2019 को जागीर कौर पंजाब के जालंधर स्थित अपने मायके चली गई थीं. पिता गुरमीत सिंह के घर में अकेले होते ही सोनिया ने प्रिंस से बात की और कहा कि पापा घर में अकेले हैं. मौका अच्छा है, तुम जल्दी दिल्ली आ जाओ.
प्रिंस समझ गया कि अकेले यह काम उस के वश का नहीं है. लिहाजा उस ने लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन में रहने वाले 2 परिचितों रिंकू और दिवाकर से बात की. दोनों लूट, चोरी व डकैती करते थे. प्रिंस ने दोनों को 50 हजार रुपए दिए और साथ देने के लिए राजी कर लिया. जिस के बाद प्रिंस 21 फरवरी को रिंकू व दिवाकर के साथ दिल्ली में सोनिया के घर पहुंच गया.
पहले पिता को लगाया ठिकाने
उस के घर पहुंचने से पहले ही सोनिया ने रात को अपने पिता को दी गई चाय में नींद की गोलियां पिला कर बेसुध कर दिया. फिर प्रिंस ने उन दोनों के साथ मिल कर गुरमीत की गला घोंट कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उस ने उन की लाश घर में रखे एक लाल रंग के सूटकेस में भरी और गुरमीत सिंह की मोटरसाइकिल पर प्रिंस व रिंकू सूटकेस रख कर सैयद नांगलोई नाले में फेंक आए.
सोनिया के लिए अच्छी बात यह थी कि पिता की खैरखबर लेने वाला कोई नहीं था. कई दिन ऐसे ही गुजर गए. इसी बीच जागीर कौर ने सोनिया को फोन कर के बताया कि वह 2 मार्च को दिल्ली लौटेगी.
यह सूचना सोनिया ने अपने प्रेमी प्रिंस को दे दी. जागीर कौर 2 मार्च की रात को दिल्ली लौट आईं. जागीर कौर ने घर आते ही सोनिया से अपने पति गुरमीत सिंह के बारे में पूछा, तो सोनिया ने जवाब दिया कि उन की तबीयत खराब है और वह अस्पताल में भरती हैं.
जागीर कौर ने पूछा कि ऐसा उन्हें क्या हुआ जो अस्पताल में भरती करना पड़ा.
‘‘मम्मी, अचानक उन्हें हार्ट अटैक हुआ था. मैं ने आप को फोन कर के इसलिए खबर नहीं दी कि आप और परेशान हो जाएंगी क्योंकि नानाजी की मौत पर आप पहले से दुखी थीं.’’ सोनिया ने बताया.
‘‘कल मैं अस्पताल चलूंगी.’’ जागीर कौर बोलीं.
‘‘ठीक है मम्मी, कल मैं आप को पापा के पास ले कर चलूंगी.’’ सोनिया ने मां से कहा. इस के बाद सोने से पहले सोनिया ने उन्हें पीने के लिए चाय दी और उस में उसी तरह नशे की गोलियां मिला दीं जैसे पिता को बेसुध करने के लिए चाय में मिलाई थीं.
चाय पीते ही जागीर कौर पर मूर्छा छा गई और वह गहरी नींद सो गईं. 2 मार्च को प्रिंस रिंकू के साथ लखनऊ से दिल्ली आ चुका था. सोनिया द्वारा फोन करने पर प्रिंस रिंकू को ले कर सोनिया के घर पहुंच गया. वहां पहुंच कर प्रिंस और रिंकू ने उसी तरह गला दबा कर जागीर कौर को भी मार दिया जैसे गुरमीत सिंह को मारा था. उन के शव को ये लोग उस दिन घर में ही रखे रहे.
अगले दिन शाम को प्रिंस व रिंकू नांगलोई के बाजार से एक रैक्सीन का बड़ा ब्रीफकेस खरीद लाए और शाम को जागीर कौर का शव उस में भर कर उसी बाइक पर रखा और सैयद नांगलोई नाले तक ले गए. उन्होंने उसी जगह पर जागीर कौर के शव से भरे सूटकेस को भी फेंक दिया, जहां गुरमीत सिंह के शव को फेंका था. बाद में उन्होंने गुरमीत सिंह की मोटरसाइकिल पश्चिम विहार के एक मौल की पार्किंग में खड़ी कर दी. प्रिंस दीक्षित अगली सुबह रिंकू के साथ लखनऊ चला गया.
4 मार्च, 2019 की सुबह गुरमीत की छोटी बेटी ने जब अपनी मां को फोन किया तो उन का फोन बंद मिला. क्योंकि उसे पता था कि मां 2 मार्च की रात को दिल्ली वापस लौटी होंगी, इसलिए वह उन की कुशलता का समाचार लेना चाहती थी.
जब मां का फोन बंद मिला तो हरजिंदर कौर ने सोनिया को फोन कर के मां से बात कराने को कहा. तब सोनिया ने बताया कि मां अभी दिल्ली नहीं पहुंची हैं. यह सुन कर हरजिंदर परेशान हो उठी.
कई दिनों से उस के पिता का फोन भी बंद आ रहा था. हरजिंदर को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. लिहाजा उस से रुका नहीं गया और वह 4 मार्च की दोपहर को पिता के घर निलोठी एक्सटेंशन पहुंच गई. वहां मां और पिता दोनों ही नहीं थे. पूछने पर सोनिया भी कोई सही जवाब नहीं दे सकी कि वे कहां हैं.
जालंधर में ननिहाल फोन करने पर यह बात साफ हो चुकी थी कि मां तो 2 मार्च की सुबह ही वहां से दिल्ली के लिए चली गई थीं. हरजिंदर समझ गई कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि उसे यह भी पता था कि सोनिया मम्मीपापा पर पिछले कुछ महीनों से मकान को अपने नाम पर कराने का दबाव बना रही थी. लिहाजा उस ने 4 मार्च को ही निहाल विहार थाने में अपने मातापिता की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.
हालांकि हरजिंदर कौर ने गुमशुदगी दर्ज कराते समय निहाल विहार थाने की पुलिस से साफ कहा था कि उस के मातापिता की गुम होने के पीछे उस की बहन सोनिया व उस के प्रेमी प्रिंस दीक्षित का हाथ हो सकता है. लेकिन पुलिस ने हरजिंदर की शिकायत पर गंभीरता से न तो जांच की और न ही कोई काररवाई की.
इस दौरान जब मातापिता दोनों की हत्या हो गई तो सोनिया व प्रिंस तिलक नगर के प्रौपर्टी डीलर बिटटू पर मकान को जल्द बिकवाने का दबाव बनाने लगे. वे दोनों हत्या के बाद प्रौपर्टी बेच कर कहीं दूर भागने की फिराक में थे.
जब पुलिस ने नांगलाई के नाले से पहले जागीर कौर फिर उन के पति गुरमीत सिंह के शव बरामद कर जांचपड़ताल शुरू की और सोनिया व प्रिंस फरार मिले तो उन के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगाया गया.
पुलिस ने इसी आधार पर बिट्टू को थाने ला कर पूछताछ की और पता किया कि वे दोनों उस से किस लिए बातचीत कर रहे थे. तभी पता चला कि दोनों उस से पिता के मकान को बेचने के लिए लगातार बात कर रहे थे. उसी दौरान पुलिस ने सोनिया व प्रिंस को पकड़ने के लिए एक चाल चली.
उस ने सोनिया और प्रिंस को एक साथ एक ही जगह बुलवाने के लिए प्रौपर्टी डीलर बिट्टू से दोनों को फोन करवाया कि प्रौपर्टी को खरीदने का एक ग्राहक मिल गया है, जो उन से मिल कर एक साथ सारी रकम दे कर डील करने में रुचि रखता है.
बस इसी के बाद सोनिया व प्रिंस ने आपस में फोन पर बात की. प्रिंस उस वक्त लखनऊ में था और सोनिया दिल्ली में ही कहीं छिपी थी. दोनों ने बिट्टू को खरीदार के साथ नांगलोई के दिलेर मेहंदी फार्म के पास मिलने का वक्त दे दिया. लखनऊ से दिल्ली आ कर प्रिंस 10 मार्च की रात जैसे ही फार्महाउस के पास पहुंचा तो वहां प्रौपर्टी के खरीदार के रूप में पुलिस पहुंच गई और दोनों को गिरफ्तार कर लिया.
सोनिया के हाथ में मातापिता की प्रौपर्टी तो नहीं आई, लेकिन वह जेल की सलाखों के पीछे जरूर पहुंच गई और उस ने अपना नाम एक ऐसी बेटी के रूप में दर्ज करवा लिया, जिस ने संपत्ति की खातिर अपने ही जन्मदाताओं को मौत के घाट उतार दिया.
—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित
कहा जाता है कि बेटेबेटी का सुख मांबाप के लिए अमृत है. लेकिन यही अमृत अगर जहर बन जाए तो उन के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही कुछ शकुंतला के साथ हुआ. जब उन्हें पता चला कि मधुमती का पति एक नंबर का शराबी और निकम्मा है तो वह टूट कर बिखर गईं. बेटी के गम में वह बीमार रहने लगीं. उन के इस गम ने उन्हें मौत तक पहुंचा दिया.
शकुंतला की मौत से अगर किसी को खुशी हुई थी तो वह गिरीश था. अब उस फ्लैट में वह जैसे चाहेगा, रह सकेगा. मां की मौत के बाद मधुमती बेटे के साथ अपने फ्लैट में रहने आ गई. फ्लैट में आते ही गिरीश उसे बेचने के चक्कर में रहने लगा. वह उस फ्लैट को बेच कर उस का सारा पैसा अय्याशी मे उड़ा देना चाहता था. इस के लिए वह शातिर चाल भी चलने लगा.
मधुमती से शादी करते समय जिस तरह वह संत बन गया था, फ्लैट बिकवाने के लिए भी उसी तरह एक बार फिर संत बन गया. मधुमती और बेटे से खूब प्यार करने लगा. मधुमती के दिल में एक अच्छे आदमी की इमेज बनाने के लिए वह नौकरी भी ढूंढ़ने लगा. जब गिरीश को लगा कि मधुमती उस पर विश्वास करने लगी है, तब उस ने अपनी नायाब चाल चली. मजे की बात, मधुमती उस में फंस भी गई.
भोलीभाली मधुमती को विश्वास में ले कर उस ने बिजनैस की योजना बनाई और उस में 50 लाख रुपए लगाने की बात की. इस के बाद मधुमती का फ्लैट 43 लाख रुपए में बेच कर सारा पैसा अपने नाम जमा करा लिया और रहने के लिए भायंदर के नक्षत्र टावर के 14वीं मंजिल पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया.
जैसे ही फ्लैट का पैसा गिरीश के पास आया, वह एकदम से बदल गया. उस के पास लाखों रुपए आ गए थे, इसलिए वह लखपतियों की तरह ठाठ से रहने लगा. वह बीयर बारों में जा कर अपने ऊपर तो शराब शबाब पर पैसे लुटाता ही था, अपने साथ दोस्तों को भी ले जाता था. उन का खर्च भी वह स्वयं ही उठाता था. मधुमती जब भी उसे रोकने की कोशिश करती, उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि उसे मारतापीटता भी. उसे कतई पसंद नहीं था कि वह उस की मौजमसती में दखल दे.
गिरीश जिस तरह अय्याशी पर पैसे लुटा रहा था, उसे देख कर मधुमती को अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी. उसे लगा कि अगर गिरीश का यही हाल रहा तो उसे भिखारी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. वैसे भी उस ने उसे घर से बेघर कर दिया था.
पति की हरकतों से परेशान हो कर मधुमती ने तय किया कि वह गिरीश से तलाक ले कर अपने बचे हुए पैसों और बेटे के साथ नानी के पास फ्रांस चली जाएगी.
इस के लिए उस ने नानी से बात भी कर ली. लेकिन जब इस बात की जानकारी श्रीरंग पोटे को हुई तो वह परेशान हो उठे. क्योंकि इस से समाज में उन की काफी बदनामी होती. बेटे ने तो वैसे ही इज्जत बरबाद कर रखी थी. रहीसही इज्जत बहू के साथ जाने वाली थी. वह पत्नी को ले कर भायंदर पहुंचे और बहू को समझाने के साथ गिरीश को काफी खरीखोटी सुनाई. इस के बाद वह पोते को साथ ले कर माहीम चले आए.
पिता की डांटफटकार और मधुमती के फैसले के बारे में जान कर गिरीश का पारा आसमान पर जा पहुंचा. वह यह कतई नहीं चाहता था कि मधुमती उसे छोड़ कर फ्रांस चली जाए. क्योंकि उस के जाते ही वह भिखारी बन जाता. अब इसी बात को ले कर गिरीश अकसर मधुमती से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा.
3 दिसंबर को भी पैसों को ले कर गिरीश और मधुमती के बीच कहासुनी शुरू हुई तो बात मारपीट तक पहुंच गई. गिरीश ने मधुमती को इस कदर मारा कि वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने उस का गला दबा दिया. इसी गला दबाने में मधुमती की मौत हो गई.
लेकिन गिरीश को पता नहीं चला कि मधुमती मर चुकी है. उसे लगा कि वह बेहोश होने का नाटक कर रही है, ताकि वह मारना बंद कर दे. वह उसे मारतेमारते थक गया था, इसलिए उसे वैसी ही छोड़ कर गुस्सा शांत करने के लिए बाहर चला गया. काफी देर तक आवारा दोस्तों के साथ रहने के बाद वह घर आया तो उसे यह देख कर हैरानी हुई कि वह मधुमति को जिस स्थिति में छोड़ कर गया था, वह अभी भी उसी स्थिति में पड़ी थी.
गिरीश ने मधुमती को उठाने की कोशिश की तो पता चला कि उस का शरीर ठंडा पड़ कर अकड़ चुका है. उसे समझते देर नहीं लगी कि मधुमती मर चुकी है. उस के होश उड़ गए. वह घबरा गया कि अब क्या करे.
गिरीश बुरी तरह डर गया था. उसे हथकड़ी और जेल के सींखचे नजर आने लगे. इस सब से कैसे बचा जाए, वह तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा. मधुमती की लाश को इस तरह बाहर ले जा कर फेंकना उस के लिए संभव नहीं था. क्योंकि लाश की शिनाख्त होने पर वह पकड़ा जाता. तब उस ने ऐसी योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.
उस ने तय किया कि वह मधुमती के लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के समुद्र में फेंक देगा, जहां समुद्री मछलियां उन्हें खा जाएंगी. इस के बाद मधुमती की लाश ही नहीं मिलेगी तो कानून उस का कुछ नहीं कर पाएगा. अगर कोई मधुमती के बारे में पूछेगा तो वह कह देगा कि मधुमती उस से लड़ाईझगड़ा कर के अपनी नानी के पास फ्रांस चली गई है. इस तरह उस की हत्या का यह राज राज ही रह जाएगा.
लेकिन इस में भी एक समस्या थी. गिरीश मधुमती की लाश के टुकड़े तो कर सकता था, लेकिन उन टुकड़ों को अकेले ले जा कर फेंक नहीं सकता था. उस ने काफी सोचाविचारा तो उसे अपनी बुआ के बेटे नितिन की याद आई. वह उस का दोस्त भी था, इसलिए उस पर विश्वास भी किया जा सकता था. उसे यह भी विश्वास था कि नितिन उस की मदद भी करेगा.
यही सोच कर गिरीश ने नितिन को फोन कर के अपने पास बुलाया और उसे साथ ले कर भायंदर मौल गया. लेकिन जब गिरीश ने नितिन को सच्चाई बताई तो उसे लगा कि अगर उस ने गिरीश की मदद की तो उस के साथ उसे भी जेल जाना होगा. इसलिए वह चुप के से वहां से खिसक गया. इस के बाद उसी की वजह से यह मामला पुलिस तक जा पहुंचा.
नितिन के चले जाने के बाद गिरीश अपने फ्लैट पर पहुंचा और मधुमती की लाश के कई टुकड़े किए. फ्लैट में दुर्गंध न फैले, इस के लिए उस ने उन टुकड़ों की अच्छी तरह पैकिंग कर के कुछ टुकड़े फ्रिज में रख दिए तो कुछ कमरे में बैड के नीचे छिपा दिए. मौका देख कर वह उन्हें ले जा कर फेंक देता. लेकिन उसे इस का मौका ही नहीं मिला, क्योंकि मदद के बहाने नितिन ने फोन कर के उसे बुलाया तो वह शेवारे पार्क में आ गया, जहां से पुलिस ने उसे पकड़ लिया.
पूछताछ के बाद पुलिस ने गिरीश को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक गिरीश जेल में बंद था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
भाई को पता लगी बहन की सच्चाई
अशोक ने बहन से कुछ नहीं कहा बल्कि वह पहले यह पता लगाना चाहता था कि किरन किस से बातें करती है. मौका मिलने पर एक दिन अशोक ने जब किरन का फोन चैक किया तो रोहतास का नाम सामने आया. वह रोहतास से फोन पर बात ही नहीं करती थी, बल्कि वाट्सऐप से भी दोनों एकदूसरे को मैसेज भेजते थे.
तमाम मैसेज अशोक ने देखे तो उस का खून खौल उठा. उस ने किरन से रोहतास के विषय में जब पूछा तो किरन ने झूठ बोलने के बजाए साफ बता दिया था कि रोहतास उस का प्रेमी है और वे शादी कर चुके हैं. क्योंकि अब उस की चोरी पकड़ी जा चुकी थी और बात को छिपाने से कोई फायदा भी नहीं था. मौका मिलने पर वह खुद भी तो यह बात घर वालों को बताना चाहती थी. भाई ने पूछ लिया तो किरन से सब बता दिया.
किरन के इस रहस्योद्घाटन से जैसे घर में भूचाल आ गया था. अशोक और उस की मां ने किरन की जम कर पिटाई की. उन्होंने धमकी भी दी कि वह रोहतास को भूल जाए. अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो उसे जान से मार दिया जाएगा, लेकिन किरन अपनी किसी बात से टस से मस नहीं हुई.
उसे इस बात का पहले से अहसास था कि शादी वाली बात घर वालों को पता चलने पर यह सब तो होना ही था. इसीलिए उस ने अपने आप को इन सब बातों के लिए पहले से ही तैयार कर रखा था.
इस के बाद किरन को घर में कैद कर लिया गया. 22 जनवरी, 2017 को अशोक ने किरन के पति रोहतास को फोन कर के धमकाया कि वह किरन से अपने संबंध खत्म कर ले नहीं तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. यह भी कहा कि वह इस शादी को भूल जाए.
इस के बाद 9 फरवरी, 2017 को किरन ने किसी तरह फोन द्वारा रोहतास को बता दिया कि उन की शादी के बारे में घर वालों को पता चल गया है और अब वे सब उस पर जुल्म ढा रहे हैं. जल्दी कुछ करो.
इस से पहले कि रोहतास कुछ करता, 9-10 फरवरी, 2017 की रात को अशोक ने अपनी मां के सामने ही किरन को पहले प्यार से समझाने की कोशिश की थी. किरन को बताया गया कि रोहतास जाति का सैनी है और हम जाट हैं. ऊपर से रोहतास और हमारी हैसियत में जमीनआसमान का फर्क है. वह मामूली परिवार से है.
अशोक ने किरन को ऊंचनीच, जातिपात और मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए रोहतास से रिश्ता तोड़ने के लिए कहा, लेकिन किरन पर अपनी मां और भाई की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उस ने अपनी बात पर कायम रहते हुए कह दिया, ‘‘चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए, रोहतास मेरा पति है और पति रहेगा. मैं ने अग्नि और भगवान को साक्षी मान कर उसे अपने मन से पति स्वीकार किया है, इसलिए उसे हरगिज नहीं भुला सकती.’’
किरन की बात सुन कर अशोक के तनबदन में आग लग गई थी. वह उस की चोटी पकड़ कर कमरे में ले गया और उस ने किरन से जबरदस्ती एक रजिस्टर पर सुसाइड नोट लिखवाया, जिस में लिखा गया था, ‘मैं किन्हीं कारणवश अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस मामले में मेरे परिवार के किसी सदस्य का कोई लेनादेना नहीं है. उन्हें दोषी न ठहराया जाए.’
किरन को पिला दिया जहर
इस के बाद अशोक किरन को छत पर ले गया और उसे एक गिलास में कोई जहरीला पदार्थ मिला पानी जबरदस्ती पिला दिया. पानी पीते ही किरन को उल्टी हो गई, पर तब तक जहर अपना असर दिखा चुका था. कुछ देर तड़पने और छटपटाने के बाद किरन की मौके पर ही मौत हो गई थी.
किरन की हत्या करने के बाद अशोक उस की लाश को वहीं छत पर ही रजाई से ढक कर नीचे आ कर अपने कमरे में सो गया था. किरन के पिता दरोगा सुरेश सिंह उस समय अपनी ड्यूटी पर रोहतक थाने में थे. उन्हें शायद किरन की हत्या के बाद ही बताया गया था.
अपने बेटे को इस हत्या के केस से और बेटी की बदनामी से बचाने के लिए अगली सुबह गांव में यह बात फैला दी गई कि किरन की हार्ट अटैक से मौत हो गई है. इस के बाद आननफानन में बिना पुलिस या किसी अन्य को सूचना दिए किरन का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.
किरन रोजाना रोहतास को फोन किया करती थी. जब 2 दिन गुजर जाने पर भी किरन का फोन नहीं आया और न ही डायल करने पर उस का फोन मिला तो रोहतास को चिंता होने के साथ दाल में कुछ काला दिखाई देने लगा. उस ने अपने स्तर पर किरन के गांव किसी को भेज कर पता लगवाया तो जानकारी मिली कि पिछली 10 तारीख को किरन की मौत हो गई थी और उस के परिजनों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया था.
पुलिस से की शिकायत
यह खबर सुन कर रोहतास की तो दुनिया ही वीरान हो गई थी. उसे पक्का विश्वास था कि किरन की हत्या कर दी गई है. रोहतास ने यह बात सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट और जय भीम आर्मी ट्रस्ट के चेयरमैन संजय चौहान को बताई. संजय चौहान रोहतास को साथ ले कर तत्कालीन डीएसपी भगवान दास से मिले और उन्हें पूरी बात विस्तार से बताते हुए कानूनी काररवाई करने की अपील की.
मामला औनर किलिंग और 2 अलगअलग जातियों के परिवारों से संबंधित था. ऐसे में जातीय दंगा भड़कने का खतरा था सो मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएसपी भगवान दास ने यह सूचना तत्कालीन एसएसपी (हिसार) राजिंदर मीणा को दी.
एसएसपी के दिशानिर्देश पर डीएसपी ने थाना सदर के इंचार्ज इंसपेक्टर प्रह्लाद सिंह को तुरंत इस मामले में काररवाई करने के निर्देश दिए. उसी दिन थाने के पास ही रोहतास और संजय चौहान ने एक प्रैसवार्ता कर मीडियाकर्मियों को भी इस बात की पूरी जानकारी दे दी.