Love Affair : इश्क में पति की आहुति

Love Affair : मीना के संजय कुशवाहा से अवैध संबंध बने तो उसे अपना पति कांटे की तरह चुभने लगा. संजय के हाथों पति की हत्या कराने के बाद मीना और उस के प्रेमी ने यही सोचा था कि वे कभी पकड़े नहीं जाएंगे, लेकिन पुलिस ने ऐसी युक्ति अपनाई कि वह हत्यारों तक पहुंच गई…

मीना ने अपने प्रेमी संजय कुशवाहा के साथ पति चरण सिंह को मौत के घाट उतारने की योजना बना ली थी. इस के बाद चरण सिंह की हत्या करने का दिन और स्थान भी तय कर लिया गया, लेकिन चरण सिंह इस बात से पूरी तरह बेखबर था. वह तो अपनी पत्नी का मोबाइल तोड़ कर निश्चिंत था कि मीना अब अपने प्रेमी संजय कुशवाहा से बात नहीं कर पाएगी, लेकिन चरण सिंह नहीं जानता था कि घायल शेरनी कितनी खूंखार और खतरनाक होती है.

 

प्लान के अनुसार, मीना अपने व्यवहार में बदलाव ला कर पति का भरोसा जीतने का प्रयास कर रही थी. इस से चरण सिंह को लगा कि सब कुछ ठीक हो गया है. जबकि हकीकत में मामला और बिगड़ गया था. मीना अपने पति को प्रेमी संजय के हाथों मरवाने के बाद निश्चिंत हो कर उसी के साथ मौजमस्ती करना चाहती थी. 20 दिसंबर, 2024 को चरण सिंह के इकलौते बेटे का जन्मदिन था. अत: वह अपने गांव जारह से 19 दिसंबर की सुबह जन्मदिन के लिए जरूरी सामान लेने मुरैना आया था. योजनाबद्ध ढंग से मुरैना में बस स्टैंड पर उसे संजय खड़ा मिल गया.

संजय ने उस से कहा, ”चरण सिंह, तुम बेटे के जन्मदिन का सामान बाद में खरीद लेना, आज मौसम बहुत ही बेहतरीन है. चलो, पहले बाइक से पगारा डैम पर चलते हैं. वहीं बैठ कर तसल्ली के साथ 2-2 पैग लगा लेते हैं.’’

आने वाली आफत से बेखबर चरण सिंह संजय के कहने पर बसस्टैंड से संजय की बाइक पर बैठ कर पगारा डैम चला आया. पगारा डैम पर दोनों ने बैठ कर शराब पी. इस दौरान संजय ने चरण सिंह से उधार लिए डेढ़ लाख रुपए लौटाने को कहा. पैसे मांगने की बात पर उन के बीच झगड़ा हो गया. दोनों में जम कर मारपीट हुई. चरण सिंह समझ गया कि उस के साथ धोखा हुआ है. उस ने वहां से भागने की कोशिश की, लेकिन नशा चढऩे के कारण वह भाग नहीं सका, वहीं मारपीट में सिर में चोट लगाने से चरण सिंह बेहोश हो गया तो संजय ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए उसे उठा कर पगारा डैम में फेंक दिया और अपने घर लौट आया.

चरण सिंह की मौत के बाद संजय और मीना ने राहत की सांस ली, लेकिन जेल जाने और सजा पाने का डर दोनों की आंखों में साफ नजर आ रहा था. उन के इश्क की दीवानगी का सुरूर उतर चुका था. इधर 4 दिन गुजर जाने के बावजूद भी जब चरण सिंह मुरैना से लौट कर घर नहीं आया तो फेमिली वाले चिंतित हो गए. उस का मोबाइल फोन भी स्विच औफ आ रहा था. यह देख कर कर फेमिली वालों का माथा ठनका तो चरण सिंह का छोटा भाई रामचंद्र थाना सराय छौला में उस की गुमशुदगी की सूचना लिखाने चला गया. रामचंद्र ने अपने भाई की गुमशुदगी की सूचना लिखाते हुए शक अपनी भाभी मीना और उस के प्रेमी संजय कुशवाहा पर जताया.

एसएचओ के.के. सिंह ने रामचंद्र को भरोसा दिया कि वह जल्दी ही चरण सिंह का पता लगाने का प्रयास करेंगे. इस के बाद रामचंद्र ने अपनी रिश्तेदारियों में भी फोन किए, लेकिन चरण सिंह का कुछ पता नहीं चला. 26 दिसंबर, 2024 को जिला मुरैना के गांव लख्खा का पुरा निवासी श्याम सुंदर ने जौरा थाने के एसएचओ उदयभान सिंह यादव को फोन कर के सूचना दी कि गुमशुदा चरण सिंह की लाश पगारा डैम में पड़ी हुई है. यह सूचना मिलते ही उदयभान सिंह यादव तुरंत मौके पर पहुंच गए. उन्होंने ग्रामीणों की मदद से पगारा डैम से चरण सिंह की लाश को डैम से निकलवाने के बाद रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस के बाद जौरा थाने के एसएचओ उदयभान सिंह यादव द्वारा वायरलैस से चरण सिंह की लाश पगारा डैम में पड़ी मिलने की सूचना प्रसारित करवाई. इस सूचना को सुन कर सराय छौला के एसएचओ के.के. सिंह ने चरण सिंह के भाई रामचंद्र को थाने बुलाया, क्योंकि रामचंद्र ने सराय छौला थाने में चरण सिंह की गुमशुदगी दर्ज करा रखी थी. इस के बाद वह रामचंद्र को ले कर जौरा के पगारा डैम पहुंच गए. रामचंद्र ने जैसे ही वह लाश देखी तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगा. रामचंद्र ने पगारा डैम से बरामद हुई लाश की शिनाख्त अपने बड़े भाई चरण सिंह के रूप में की. इस के बाद एसएचओ ने लाश को अपने कब्जे में ले कर धारा 103 (1) बीएनएस के तहत रिपोर्ट तरमीम कर दी.

जैसे ही पगारा डैम से चरण सिंह की लाश मिलने की खबर इलाके के लोगों को हुई तो वे हैरान रह गए. सराय छौला पुलिस को अब कातिलों की तलाश थी. चरण सिंह के भाई ने अपनी भाभी  मीना और उस के प्रेमी संजय पर अपना शक जताया था, लिहाजा पुलिस उन दोनों के पीछे लग गई. काफी कोशिश के बाद पुलिस के लंबे हाथ आखिर संजय कुशवाहा तक पहुंच गए. 27 दिसंबर, 2024 को मुखबिर की सूचना पर संजय कुशवाहा को जौरा में नए अस्पताल के पास से पुलिस ने दबोच लिया. पुलिस उसे थाने ले आई. सख्ती से पूछताछ करने पर संजय ने स्वीकार कर लिया कि चरण सिंह की हत्या उस ने ही की थी. हत्या की साजिश में मृतक की पत्नी और उस की प्रेमिका मीना भी शामिल थी.

संजय से मिली जानकारी के बाद पुलिस ने मृतक चरण सिंह की पत्नी मीना को गांव जारह से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद चरण सिंह की हत्या की चौंकाने वाली कहानी सामने आई—

मध्य प्रदेश के जिला मुरैना के थाना सराय छौला के अंतर्गत आने वाले गांव जारह का रहने वाला चरण सिंह जब मेहनतमजदूरी कर के ठीकठाक पैसे कमाने लगा तो उस के विवाह के लिए समाज के लोग आने लगे. तमाम लड़कियां देखने के बाद फेमिली वालों ने उस के लिए जौरा के नयापुरा इलाके की रहने वाली मीना नाम की युवती को पसंद किया. फिर उस के साथ चरण सिंह की शादी कर दी. शादी के बाद मीना ससुराल आई तो जल्द ही उस ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली. जिस से घरपरिवार में उस की गिनती अच्छी बहू के रूप में होने लगी. धीरेधीरे चरण सिंह का परिवार बढऩे लगा. चरण सिंह और मीना 3 बच्चों के मातापिता बन गए, जिन में 2 बेटियां और एक बेटा था. सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन वक्त कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता.

एक सप्ताह पहले चरण सिंह ने एक प्लौट का बयाना दे कर सौदा कर लिया था. शेष डेढ़ लाख रुपए उसे एक पखवाड़े के भीतर चुकाने थे, लेकिन काफी भागदौड़ के बाद जब चरण सिंह पैसों का इंतजाम करने में नाकाम रहा तो उस की पत्नी मीना ने अपने पुराने परिचित संजय कुशवाहा को फोन कर कहा कि मेरे पति ने एक प्लौट का सौदा कर लिया है, अत: उन्हें डेढ़ लाख रुपए की जरूरत है. यदि तुम कुछ समय के लिए डेढ़ लाख रुपए उधार दे दोगे तो मेहरबानी होगी. संजय कुशवाहा ने कुछ सोचविचार कर कहा, ”देखो मीना, इस तरह की बातें मोबाइल फोन पर नहीं हो सकतीं, ऐसा करता हूं कि मैं तुम्हारे घर पर आ जाता हूं. वहीं बैठ कर आराम से इस बारे में बात करेंगे.’’

मीना को लगा कि संजय उस के पति को पैसे उधार देना चाहता है, इसीलिए वह घर पर आना चाहता है. अगले दिन संजय चरण सिंह के घर पहुंच गया. इत्तफाक से जिस वक्त संजय आया, चरण सिंह घर पर नहीं था. मीना ने संजय से पूछा, ”तुम ने कुछ सोचा?’’

”किस बारे में?’’ संजय बोला.

”अरे, पैसे उधार देने के बारे में. मैं ने तुम से डेढ़ लाख रुपए उधार देने के लिए कहा था न…’’

”अच्छा, वह तो मैं तुम्हारे पति को दे दूंगा, लेकिन जो पैसे मैं उधार दूंगा, वह जल्द से जल्द लौटाने की कोशिश करना.’’ संजय कुशवाहा ने कहा.

”संजय, इस बात से तुम बेफिक्र रहो, मैं पूरापूरा प्रयास करूंगी कि जितनी जल्दी हो सके, तुम्हारा पैसा अदा करवा दूं.’’

अगले दिन संजय ने लिखापढ़ी करके चरण सिंह को डेढ़ लाख रुपए दे दिए. चरण सिंह को संजय से डेढ़ लाख रुपए उधार मिल गए तो वह खुश हो गया और खुशीखुशी प्लौट वाले को वायदे के मुताबिक डेढ़ लाख रुपए दे दिए. चरण सिंह को रुपए उधार देने के कारण संजय कुशवाहा का चरण सिंह के यहां आनाजाना शुरू हो गया. चरण सिंह तो सुबह होते ही नाश्तापानी करने के बाद टिफिन ले कर मजदूरी करने निकल पड़ता था और अकसर देर रात को ही घर लौटता था. इस बीच घरगृहस्थी के काम मीना को देखने पड़ते थे, लेकिन जब से संजय उस के घर आनेजाने लगा था, जरूरत पडऩे पर वह मीना की मदद कर देता था. इस के बदले में मीना उसे चायनाश्ता करा देती थी. यदि खाने का समय होता तो खाना भी खिला देती.

ऐसे में ही एक दिन संजय ने कहा, ”मीना, तुम सारे दिन कितना काम करती हो. इस के बाबजूद चरण सिंह तुम्हारी जरा भी फिक्र नहीं करता.’’

मीना ने उसे तिरछी नजरों से देखते हुए कहा, ”यह तुम कैसे कह सकते हो कि वह हमारी फिक्र नहीं करते. मेरे और बच्चों के लिए सुबह से शाम तक मेहनतमजदूरी करते हैं. जब तुम्हारी शादी हो जाएगी

तो तुम्हें भी अपने बालबच्चों के लालनपालन के लिए इसी तरह भागदौड़ करनी पड़ेगी.’’

दरअसल, चरण सिंह के घर आतेजाते संजय कुशवाहा का दिल मीना पर आ गया था, इसलिए वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए चारा डालने लगा था. मीना की इस बात से वह निराश तो हुआ, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. संयोग से एक दिन मीना को घर की जरूरत का सामान खरीदने के लिए बाजार जाना था. वह तैयारी कर ही रही थी कि तभी संजय आ गया. मीना को तैयार होते देख उस ने पूछा, ”कहीं जा रही हो मीना?’’

”गृहस्थी का सामान खरीदना है, इसलिए बाजार जा रही हूं. उन के पास तो इस काम के लिए वक्त है नहीं, इसलिए मुझे ही जाना पड़ रहा है.’’ मीना ने कहा.

” तुम अकेली मत जाओ, मैं तुम्हारे साथ चलता हूं.’’ संजय बोला.

मीना को भला क्यों ऐतराज होता. वह संजय के साथ बाइक से बाजार पहुंच गई. सामान खरीदने के बाद थैला संजय ने उठाया तो मीना हंसते हुए बोली, ”मेरी शादी को 10 साल हो गए, लेकिन वो कभी मेरे साथ बाजार तक नहीं आए.’’ मीना बोली.

”मीना, एक बात बताऊं, यदि तुम्हारे साथ चरण सिंह की शादी नहीं हुई होती तो उसे घर में रोटी भी नसीब नहीं होती. तुम ही हो जो पूरा घर चला रही हो.’’

इस पर मीना कुछ नहीं बोली, लेकिन मुसकरा पड़ी. संजय मीना को ले कर घर पहुंचा तो मीना ने कहा, ”मैं खाना बना रही हूं, अब तुम खाना खा कर जाना.’’

संजय कुशवाहा दालान में पड़े तख्त पर जा कर लेट गया. मीना ने उसे पहले चाय बना कर पिलाई. उस के बाद खाना बना कर खिलाया. संजय मन ही मन सोचने लगा कि मीना के दिल में जरूर ही उस के लिए कोई नरम कोना है, तभी तो वह उस का इतना खयाल रखती है. अब सवाल यह था कि वह उस के दिल की बात जाने कैसे?

उसी दौरान संजय हरियाणा के सूरजकुंड में लगे हस्तशिल्प मेले में गया. वहां हाथ से बनी चीजों की प्रदर्शनी लगी थी. वह प्रदर्शनी देखने गया तो वहां उसे एक दुकान पर एक जोड़ी झुमके पसंद आ गए तो संजय ने वह खरीद लिए. अगले दिन दोपहर को वह चरण सिंह के घर पहुंचा तो मीना घर पर अकेली मिल गई. मीना ने संजय को बैठाया, चायनाश्ता कराया. इस के बाद उस ने झुमके की डब्बी मीना के हाथ में थमा दी. मीना ने डब्बी खोली तो झुमके देख कर बोली, ”झुमके तो बहुत ही शानदार हैं. किस के लिए लाए हो?’’

”मीना, तुम भी कमाल करती हो. जब तुम्हारे हाथ में दिए हैं तो तुम्हारे लिए ही होंगे. कौन मेरी घरवाली बैठी है, जिस के लिए लाऊंगा.’’

”संजय, मेरे लिए तुम इतने महंगे झुमके क्यों खरीद कर लाए हो?’’ मीना ने कहा.

”मुझे अच्छे लगे, इसलिए खरीद लाया. अब जरा पहन कर तो दिखाओ.’’

मीना मुसकराते हुए भीतर कमरे में गई और थोड़ी देर में झुमके पहन कर बाहर दालान में आई तो संजय बोला, ”अरे मीना, झुमके पहन कर तुम बहुत ही खूबसूरत लग रही हो.’’

”क्यों झूठी तारीफ करते हो.’’ शरमाते हुए मीना ने कहा.

”तुम्हारी कसम मीना, सच कह रहा हूं, रात को घर लौटने पर जब चरण सिंह देखेगा तो वह भी यही बात कहेगा.’’

मीना ने आह भरते हुए कहा, ”उन के पास इतना टाइम कहां है कि वह मुझे झुमके पहने हुए देख कर मेरी तारीफ करें. काम से लौट कर उन्हें तो दारू पीने से फुरसत ही कहां मिलती है.’’

संजय मुसकराया, क्योंकि मीना की कमजोर नस अब उस के हाथ में आ गई थी. उस की समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच पतली सी दरार है, जिसे वह प्रयास कर चौड़ी कर सकता है. इस के बाद संजय कुशवाहा मीना के करीब आने की कोशिश करने लगा. मीना को भी उस का आनाजाना और उस से बातचीत करना अच्छा लगने लगा था, लेकिन संजय को अपनी मंजिल नहीं मिल रही थी. उसी बीच संजय ने चरण सिंह से अपने डेढ़ लाख रुपए वापस लौटाने को कहा. चरण सिंह इस बात से काफी परेशान हो गया, क्योंकि उस के पास लौटाने के लिए रुपए नहीं थे.

कड़वा सच तो यह था कि अब उस की नीयत खराब हो गई थी. वह संजय से उधार लिया रुपया लौटाना नहीं चाहता था. एक दिन दोपहर को संजय चरण सिंह के घर पहुंचा तो मीना ने कहा, ”क्या इधरउधर मारेमारे फिरते हो, शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

”शादी..? अभी कुछ महीने पहले ही तो मैं ने तुम्हारे कहने पर चरण सिंह को डेढ़ लाख रुपए बैंक से निकाल कर बिना ब्याज के उधार दिया था, लेकिन कई बार तकादा करने के बावजूद भी तुम्हारा पति मेरे पैसे लौटा नहीं रहा है. वह मेरा रुपया लौटाए, तब मैं शादी करने के बारे में सोचूं. क्योंकि वह मेरी अब तक की कुल कमाई का हिस्सा है.

”मेरे कहने पर जो डेढ़ लाख रुपए तुम ने मेरे पति को उधार दिया है, उस की बिलकुल भी चिंता मत करो.’’ मीना ने तिरछी नजरों से संजय को देखते हुए कहा, ”संजय, तुम मुझे बहुत डरपोक लगते हो. जो तुम्हारे मन में है, वह भी नहीं कह पा रहे.’’

”मीना, मैं ने तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझा.’’ संजय अनभिज्ञ बनते हुए बोला.

”तुम ऐसा करो कि आज रात को आना, चरण सिंह आज रिश्तेदारी में शादी में जाएगा. मैं घर पर अकेली ही रहूंगी, तब अच्छे से समझा दूंगी.’’ मीना ने मुसकराते हुए कहा.

इतना सुनते ही संजय कुशवाहा का दिल एकदम से धड़क उठा. वह भाग कर घर गया और नहाधो कर रात होने का इंतजार करने लगा, लेकिन सूरज था कि अस्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था. किसी तरह शाम हुई तो वह अपने गांव नयापुरा से जारह के लिए चल दिया. जारह पहुंचतेपहुंचते अधेरा हो चुका था. चरण सिंह के घर पहुंच कर संजय ने धीरे से दरवाजा खटखटाया. मीना ने जैसे ही दरवाजा खोला, वह फुरती से घर के भीतर घुस गया कि कोई उसे देख न ले.

घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. बच्चे सो चुके थे. मीना संजय का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गई. वासना से वशीभूत मीना भूल गई कि वह अपने पति से बेवफाई करने जा रही है. संजय को अंदाजा लग गया था कि मीना ने अपने पति की गैरमौजूदगी में उसे क्यों बुलाया है. वह बिना किसी हिचकिचाहट के पलंग पर बैठ गया तो उस से सट कर बैठते हुए मीना ने कहा, ”संजय, मुझे तुम से इश्क हो गया है संजय.’’

”यदि तुम्हारे पति को यह सब पता चल गया तो…?’’

”किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. तुम भी तो मुझ से इश्क फरमाना चाहते हो, बोलो?’’

संजय ने कुछ कहने के बजाय मीना को अपनी बाहों में समेट लिया तो वह उस से लिपट गई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. उन्होंने वह गुनाह कर डाला, जिस का अंजाम आगे चल कर बुरा ही होता है. रात दोनों की अपनी थी. क्योंकि मीना का पति घर पर नहीं था, इसलिए दोनों को किसी तरह का कोई डर नहीं था. लेकिन वे जिस दलदल में उतर गए थे, उस से वे चाह कर भी बाहर नहीं आ सकते थे. भोर होने से पहले ही संजय अपने गांव लौट गया. दोपहर को जब चरण सिंह घर लौट कर आया, मीना बिस्तर पर औंधे मुंह लेटी हुई थी. उसे समझते देर नहीं लगी कि पत्नी की तबियत ठीक नहीं है. उसे क्या पता था कि वह रात की थकावट उतार रही है.

हौलेहौले मीना और संजय का प्यार परवान चढऩे लगा. अवसरों की कोई कमी नहीं थी. चरण सिंह मजदूरी करने गांव से बाहर निकल जाता था. उसी बीच मीना संजय को अपने घर पर बुला कर रंगरलियां मना लिया करती थी. चरण सिंह को भले ही उन दोनों की कारगुजारियों की भनक अभी तक नहीं लग सकी थी, लेकिन पड़ोसी तो देख ही रहे थे. पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि चरण सिंह की गैरमौजूदगी में संजय के आने का मतलब क्या हो सकता है. आखिर एक दिन एक बुजुर्ग ने चरण सिंह को रोक कर कह ही दिया, ”चरण सिंह, मेहनतमजदूरी में इतना ज्यादा व्यस्त रहते हो, अपनी घरवाली का भी खयाल रखा करो.’’

”दादाजी मैं समझा नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं?’’ चरण सिंह ने पूछा.

”मेरा मतलब संजय से है, आजकल वह तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारे घर कुछ ज्यादा ही आ रहा है.’’

पड़ोसी बुजुर्ग की बात सुन कर चरण सिंह सन्न रह गया. वह सब काम छोड़ कर अपने घर पहुंचा और अपनी पत्नी से पूछा, ”मेरी गैरमौजूदगी में संजय यहां क्यों आता है?’’

”नहीं तो, किस ने कहा?’’ मीना ने लापरवाही से कहा.

”आगे से अब मेरी गैरमौजूदगी में संजय यहां आए तो उसे साफ मना कर देना, क्योंकि आसपड़ोस में उसे ले कर तरहतरह की चर्चा हो रही है. मैं नहीं चाहता कि बिना मतलब के हमारी बदनामी हो.’’

मीना ने कोई उत्तर नहीं दिया. चरण सिंह इस बात को ले कर काफी परेशान था. वह खुद भी महसूस कर रहा था कि पिछले कुछ दिनों से मीना का व्यवहार उस के प्रति लापरवाह सा रहने लगा है. कहीं वह गुमराह तो नहीं हो गई, लेकिन उस ने अपनी आंखों से अभी तक दोनों को कोई गलत हरकत करते हुए नहीं देखा था, इसलिए कोई निर्णय कैसे ले सकता था. उधर मीना ने भी फोन कर के संजय कुशवाहा को सचेत कर दिया कि वह कुछ दिनों तक उस के पति की गैरमौजूदगी में मिलने न आए, क्योंकि चरण सिंह और पड़ोसियों  को शक हो गया है. इस के बाद 2 हफ्ते तक संजय ने चरण सिंह के घर की तरफ रुख नहीं किया.

जब मीना ने देखा कि इस मामले में उस का पति लापरवाह हो गया है तो उस ने एक दिन संजय को फोन कर के घर पर बुला लिया, क्योंकि उस दिन चरण सिंह मथुरा जाने को कह कर गया हुआ था. लेकिन जैसे ही वह टिकट लेने के लिए कतार में खड़ा हुआ, तभी उस के पड़ोसी का उस के मोबाइल पर फोन आ गया. वह बोला, ”तुम कहां पर हो? तुम्हारी पत्नी तुम्हारी गैरमौजूदगी में संजय के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. संजय घर पर आया हुआ है.’’

पत्नी को रंगेहाथों पकडऩे के लिए चरण सिंह मथुरा जाने का इरादा त्याग कर घर लौट आया और पड़ोस की छत से घर के भीतर पहुंचा तो मीना को संजय की बाहों में पाया. चरण सिंह ने संजय को पकडऩा चाहा, लेकिन वह उसे धक्का दे कर भाग गया. इस के बाद चरण सिंह ने मीना की जम कर ठुकाई कर दी. जब कुछ गुस्सा शांत हुआ तो वह इस सोच में लग गया कि वह इस चरित्रहीन पत्नी का क्या करे. यदि वह उसे तलाक दे देता है तो उस के तीनों बच्चों का क्या होगा, अपनी मेहनतमजदूरी छोड़ कर वह उन की देखभाल भी नहीं कर सकता था.

मीना ने स्वयं को संभाला और सोचने लगी कि उसे क्या करना चाहिए? पति के द्वारा आपत्तिजनक हालत में रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद वह संजय को किसी भी कीमत पर छोडऩा नहीं चाहती थी और चरण सिंह का घर भी नहीं छोडऩा चाहती थी. क्योंकि जो सुखसुविधा चरण सिंह के घर में थी, वह संजय नहीं दे सकता था. फिर कुछ सोच कर उस ने पति के पैरों में सिर रख कर माफी मांगते हुए कहा, ”मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई, अब मैं कसम खाती हूं कि आगे से ऐसी गलती कभी नहीं होगी.’’

चरण सिंह के पास पत्नी को माफ करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था, इसलिए उस ने पत्नी को माफ कर दिया. दूसरी ओर संजय की अब मीना से मिलने के लिए उस के पास जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, लेकिन मीना ने उस से कहा कि वह उस के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती. उस के बिना उस का जीवन नीरस हो जाएगा. दोनों ने अब घर के बाहर मेलमिलाप का कार्यक्रम तय किया. बहाना बना कर मीना अपने मायके नयापुरा चली जाती थी, जहां उस से मिलने के लिए संजय आ जाता था.

लेकिन वहां भी वे कई लोगों की निगाहों में आ गए. जिस से चरण सिंह को इस मेलमिलाप के बारे में पता चल गया. उस का भरोसा अपनी पत्नी से उठ गया था, वह शराब पी कर उस के साथ आए दिन मारपीट करने लगा. चरण सिंह से एक दिन बाजार में अचानक मुलाकात होने पर संजय ने उस से अपने डेढ़ लाख रुपए लौटाने को कहा. जबकि चरण सिंह अब उस के रुपए लौटाने के मूड में नहीं था. एक दिन मीना और संजय मिले तो मीना ने कहा, ”संजय, चलो हम कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेते हैं.’’

”देखो, हम अपनी दुनिया तो बसा लेंगे, लेकिन खाएंगेपहनेंगे क्या? मीना, इस के लिए हमें कुछ और सोचना होगा.’’ संजय बोला.

चरण सिंह की गृहस्थी में ग्रहण लग चुका था. आसपड़ोस के लोग उस की पत्नी की चुगली करते रहते थे, लेकिन चरण सिंह की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी बेहया पत्नी का क्या करे. उसे अपने बच्चों का भविष्य बरबाद होता दिखाई दे रहा था. पतिपत्नी के बीच आए दिन होने वाले झगड़ों का असर बच्चों पर भी पड़ रहा था. जबकि मीना पति से छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच एक रात चरण सिंह ने मीना को मोबाइल फोन पर बातें करते हुए देखा तो उस के हाथ से मोबाइल फोन छीन कर नंबर चैक किया तो वह नंबर संजय का निकला. चरण सिंह ने कहा, ”इतना सब होने के बावजूद तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही हो?’’

 

जब मीना ने कोई उत्तर नहीं दिया तो चरण सिंह को गुस्सा आ गया. उस ने मीना के गाल पर थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ”चरित्रहीन औरत, अब तू बिलकुल भी भरोसे लायक नहीं रही.’’

इस के बाद उस ने मोबाइल छीन कर तोड़ दिया.

इस पर मीना ने कहा, ”यह तुम ने अच्छा नहीं किया.’’ पति के द्वारा मोबाइल फोन तोड़ देने से तिलमिलाई मीना ने तय कर लिया कि अब वह अपने पति को जिंदा नहीं छोड़ेगी. अगले दिन उस ने अपनी सहेली के मोबाइल से संजय को फोन किया और पूछा, ”अब तुम्हारा क्या इरादा है, मुझे आज साफसाफ बताओ?’’

”मेरी माली स्थिति के बारे में तुम सब कुछ जानती हो. अब मीना तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूं? मैं तुम्हारे पति को उधार दिए डेढ़ लाख रुपए लौटाने के लिए अनेक बार कह चुका, लेकिन वह देने का नाम नहीं ले रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?’’

”देखो संजय, मैं तुम्हारी वजह से रोजरोज तो पिट नहीं सकती, इसलिए अब फैसला लेने का वक्त आ गया है. या तो तुम मुझे छोड़ दो या फिर कुछ ऐसा करो कि हम दोनों सुकून से जी सकें.’’

”अब तुम ही बताओ मीना कि मुझे क्या करना चाहिए?’’

”तुम कुछ ऐसा करो कि मुझे हमेशाहमेशा के लिए चरण सिंह से छुटकारा मिल जाए. उस के बाद हम दोनों सुकून की जिंदगी गुजार सकेंगे.’’

”लेकिन यह सब कैसे होगा?’’

”सब आराम से हो जाएगा, क्योंकि यह हमारे बीच दीवार की तरह है. यह अब मुझे सहन नहीं हो रहा है.’’

”चरण सिंह को ठिकाने लगाने के लिए पैसों की जरूरत होगी, जो मेरे पास हैं नहीं.’’

”पैसे में दे दूंगी. पति का डेढ़ लाख रुपया मेरे पास सुरक्षित रखा हुआ है.’’

सौदा कहीं से भी घाटे का नहीं था. संजय मन ही मन खुश हो गया. उधार दिए डेढ़ लाख रुपए भी वापस मिल जाएंगे और प्रेमिका मीना के साथ उस की संपत्ति भी मिल जाएगी. वह मौज करेगा. लेकिन ऐसा नहीं जो सका. उन का गुनाह छिप न सका और दोनों ही पुलिस की पकड़ में आ गए. हत्या के बाद हर कातिल कानून से बचना चाहता है. इश्क में अंधी मीना पति की हत्या के बाद अधूरी खुशियों को पूरा करना चाहती थी, लेकिन उस के यह अरमान धरे के धरे रह गए. उसे क्या पता था कि वह मौज करने के बजाय प्रेमी संजय कुशवाहाा के साथ जेल चली जाएगी. पुलिस ने दोनों आरोपियों को चरण सिंह की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

 

 

बेवफा पत्नी और वो : पति को मिली मौत

चुनाव नजदीक होने की वजह से 11 नवंबर, 2013 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में चुनाव प्रचार शबाब पर था. तमाम पुलिसकर्मी दीवाली के बाद से ही दिनरात चुनावी ड्यूटी कर रहे थे. प्रचार का शोर, नेताओं की सभाएं और जनसंपर्क खत्म होने के बाद ही पुलिसवालों को थोड़ा सुकून मिल सकता था. रात 10 बजे तक चुनावी होहल्ला कम हुआ तो रोजाना की तरह पुलिस वालों ने इत्मीनान की सांस ली.

थाना पिपलानी के थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया खापी कर अगले दिन के कार्यक्रमों के बारे में सोच रहे थे कि तभी उन्हें फोन द्वारा सूचना मिली कि बरखेड़ा पठानिया के एक खंडहर में एक युवक की अधजली लाश पड़ी है. घटनास्थल पर जाने के लिए वह तैयार हो कर थाने से निकल ही रहे थे तो गेट पर सीएसपी कुलवंत सिंह मिल गए. उन्हें भी साथ ले कर वह बताए गए पते पर रवाना हो गए.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया अपनी जीप से बरखेड़ा के सेक्टर-ई स्थित एक खंडहरनुमा मकान पर पहुंच गए. फोन करने वाले ने उन्हें यहीं अधजली लाश पड़ी होने की बात बताई थी. वहां उन्हें कुछ जलने की गंध महसूस हुई, इसलिए वह समझ गए कि लाश यहीं पड़ी है. वह साथियों के साथ खंडहर के अंदर पहुंचे तो सचमुच वहां कोने में एक युवक की झुलसी लाश पड़ी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ देर पहले ही वह जलाई गई थी.

पुलिस की जीप देख कर आसपास के कुछ लोग आ गए. पुलिस ने उन लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन चेहरा झुलस जाने की वजह से कोई उसे पहचान नहीं सका. लाश का चेहरा ही ज्यादा जला था. जबकि उस के कपड़े काफी हद तक जलने से बच गए थे. शायद हत्यारों ने ऐसा इसलिए किया था कि उस की शिनाख्त न हो सके. पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में 5 हजार रुपए के अलावा घरेलू गैस की एक परची मिली. वह परची प्रियंका गैस एजेंसी की थी, जिस में उपभोक्ता का नाम मनीष तख्तानी लिखा था.

परची पर पंचवटी कालोनी का पता भी था. मृतक सोने की अंगूठी पहने था. पुलिस ने सारी चीजें कब्जे में ले लीं. इस के बाद थानाप्रभारी ने फोन कर के थाने से एक कांस्टेबल को मनीष तख्तानी के घर का पता बता कर वहां जाने को कहा.

मरने वाले की जेब से मिली नकदी और अंगूठी से साफ था कि यह हत्या लूटपाट के इरादे से नहीं की गई थी. हत्या के पीछे कोई दूसरी वजह थी. मरने वाले की कदकाठी ठीकठाक थी. एक आदमी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. इस का मतलब हत्यारे एक से ज्यादा थे.

थाने से भेजा गया कांस्टेबल पंचवटी कालोनी के मकान नंबर ए-43 पर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात दिलीप तख्तानी से हुई. उस ने उन्हें बताया कि बरखेड़ा के एक खंडहर में एक लाश मिली है, जिस की पैंट की जेब से गैस की एक परची मिली है, जिस पर मनीष तख्तानी लिखा है. यह मनीष कौन है?

यह बात सुन कर दिलीप के होश उड़ गए, क्योंकि मनीष उन्हीं का बेटा था. वह बोले, ‘‘आप को धोखा हुआ है. मेरा बेटा कहीं गया हुआ है, वह थोड़ी देर में आ जाएगा.’’

दिलीप तख्तानी ने यह बात कह तो दी, लेकिन उन का मन नहीं माना. उन्होंने उसी समय घर से कार निकाली और उस कांस्टेबल के साथ उस जगह के लिए रवाना हो गए, जहां लाश पड़ी थी. कदकाठी और अधजले कपड़ों को देखते ही दिलीप तख्तानी रो पड़े. उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे मनीष की ही है.

दिलीप तख्तानी के अनुसार, मनीष दुकान से कार से निकला था. लेकिन उस खंडहर के आसपास कहीं कोई कार नजर नहीं आई. मनीष का मोबाइल फोन भी नहीं मिला था. थानाप्रभारी ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद सर्विलांस सेल के माध्यम से उन्होंने मनीष के फोन की लोकेशन का पता कराया तो उस की लोकेशन एमपीनगर (जोन-1) के पास चेतक ब्रिज की मिली.

थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया उसी समय चेतक ब्रिज पर जा पहुंचे. वहां उन्हें एक कार दिखाई दी. दिलीप तख्तानी ने कार पहचान कर बताया कि मनीष की ही कार है. कार का मुआयना किया गया तो सीटों पर खून के धब्बे नजर आए. मनीष का मोबाइल भी कार में ही पड़ा था. कार की इग्नीशन में चाबी भी लगी थी. यह सब देख कर यही लगा कि मनीष की हत्या कार में ही की गई थी. उस के बाद हत्यारे लाश को ठिकाने लगाने के लिए खंडहर में ले गए थे. पुलिस ने कार और अन्य सामान को भी कब्जे में ले लिया.

अब तक की जांच में पता चल गया था कि मनीष शहर के जानेमाने बिजनेसमैन दिलीप तख्तानी का बेटा था. पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. मनीष के घर वालों के अनुसार मनीष हंसमुख स्वभाव का था. उस का पूरा ध्यान अपने बिजनेस पर रहता था.

उस की पत्नी सपना का रोरो कर बुरा हाल था. आंखें सूज चुकी थीं. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया था कि मनीष को कई लोगों से पैसा लेना था. लगता है, उसी लेनदेन के चक्कर में उस की हत्या की गई है. पुलिस को सपना की बात में दम नजर आया, इसलिए पुलिस ने इस बात को ध्यान में रख कर आगे की जांच शुरू की. मनीष की उम्र भी 32-33 साल थी, इसलिए पुलिस जांच में लव ऐंगल को भी ध्यान में रख जांच कर रही थी.

पुलिस ने मनीष की एमपीनगर जोन-2 स्थित दुकान पर काम करने वाले नौकरों से पूछताछ की तो पता चला कि 11 नवंबर, 2013 की शाम को 4 बजे के आसपास उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद उन्होंने दुकान संभालने वाले अपने मामा विनोद तख्तानी से कहा था कि उन्हें लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह दुकान बंद कर देंगे. इतना कह कर मनीष अपनी कार से चले गए थे.

पुलिस को जब पता चला कि शाम को किसी का फोन आने के बाद मनीष दुकान से निकला था, इसलिए पुलिस मनीष के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर यह जानने की कोशिश करने लगी कि उस के फोन पर किस का फोन आया था.

पुलिस को जल्दी ही पता चल गया कि 11 नवंबर की शाम 4 बजे मनीष की जिस नंबर से बात हुई थी, वह नंबर हर्षदीप सलूजा का था. पुलिस ने हर्षदीप सलूजा के बारे में मनीष के घरवालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के एक परिचित का बेटा जिन से उन के पारिवारिक संबंध हैं. दोनों ही परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना है. घर वालों की इस बात से पुलिस संतुष्ट नहीं हुई. वह एक बार हर्षदीप से पूछताछ करना चाहती थी.

पुलिस हर्षदीप को थाने बुला कर पूछताछ करती, उस के पहले ही पुलिस को पता चला कि मृतक मनीष की पत्नी सपना एक महीने पहले बिना बताए कहीं चली गई थी. तब मनीष ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज कराई थी. बाद में वह अपने आप घर आ गई तो पुलिस ने इसे घरेलू विवाद मान कर कोई तूल नहीं दिया.

हत्यारों का पता न लगने पर व्यापारियों की नाराजगी बढ़ती जा रही थी. पुलिस ने इलाके के कई बदमाशों को उठा कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा नहीं हुआ था. इस का नतीजा यह निकला कि मनीष के हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए सिंधी समुदाय आक्रोशित हो कर सड़क पर उतर आया. पुलिस अधिकारियों ने लोगों को जल्द से जल्द केस खोलने का आश्वासन दे कर आक्रोशित लोगों को शांत किया.

इस के बाद पुलिस की कई टीमें बना कर इस मामले की छानबीन में लगा दी गईं. उसी दौरान मनीष के चाचा ने हत्या का इशारा हर्षदीप की तरफ किया. पुलिस को हर्षदीप पर पहले से ही शक था, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने बुला लिया गया.

पूछताछ में वह पहले मनीष की हत्या से इनकार करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस से पूछा कि हत्या वाले दिन उस ने सपना से 2 बार और मनीष को एक बार फोन कर के क्या बात की थी तो पुलिस की इस बात का उस के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी. मजबूर हो कर उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की, वह बहुत ही चौंकाने वाली निकली.

भोपाल की पंचवटी कालोनी के ए ब्लौक में रहने वाले दिलीप तख्तानी का एक ही बेटा था मनीष तख्तानी. दिलीप तख्तानी मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे. देश विभाजन की त्रासदी झेल कर वह अकेले ही भारत आए थे और यहां उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते अपना प्लाईवुड का बिजनेस स्थापित किया. वह शहर के जानेमाने बिजनेसमैन थे. शहर के विभिन्न इलाकों में उन की प्लाईवुड की कुल 6 दुकानें थीं. करोड़ों की हैसियत रखने वाले दिलीप ने अपनी सभी दुकानें एकलौते बेटे मनीष के नाम खोली थीं. उन्होंने बेटे को बिजनेस के सारे गुण सिखा कर उसे एमपीनगर जोन-2 की दुकान सौंप दी थी.

बेटे ने बिजनेस संभाल लिया तो दिलीप ने खंडवा की रहने वाली सपना से उस की शादी कर दी. यह 6 साल पहले की बात है. शादी के वक्त मनीष का परिवार ईदगाह हिल्स में रहता था. वहीं पड़ोस में हर्ष का भी परिवार रहता था. दिलीप तख्तानी ने अपने एकलौते बेटे मनीष की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया था. पूरे हफ्ते मोहल्ले में जश्न का माहौल रहा था. नाचनेगाने वालों में हर्ष अव्वल था. उस वक्त उस की उम्र महज 17 साल थी. वह मनीष को पूरा सम्मान देते हुए भइया कहता था.

मनीष की खूबसूरत बीवी सपना को देख कर किशोर हर्ष के दिलोदिमाग में कुछकुछ होने लगा था. फिर तो सपना भाभी को देखने और उस से बातें करने के लिए वह मनीष के यहां कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा था. किसी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शादी के 2 साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम इशिता रखा गया.

मनीष को अपने कारोबार में काफी समय देना पड़ता था. पारिवारिक संबंधों के चलते हर्ष के घर आनेजाने पर न तो कोई रोकटोक थी, न ही किसी को ऐतराज था. बातचीत के दौरान वे काफी करीब आ गए थे. मोहब्बत और वासना का अंकुर कब हर्ष और सपना के दिलों में फूटा और फलाफूला, इस का अहसास उन्हें शायद हद से गुजर जाने के बाद हुआ.

उसी दौरान तख्तानी परिवार पंचवटी कालोनी स्थित अपने नए मकान में रहने आ गया, जबकि हर्षदीप सलूजा के घर वाले अवधपुरी में शिफ्ट हो गए. दोनों ही परिवार अलगअलग जगहों पर रहने जरूर चले गए, लेकिन हर्ष और सपना की मेलमुलाकातों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. दोनों अब घर से बाहर खासतौर से गुरुद्वारों में मिलने लगे थे.

बाद में हर्ष ने एक अलग मकान किराए पर ले लिया, जिस में हर्ष से मिलने के लिए सपना अकसर आनेजाने लगी. वहीं वे अपनी हसरतें पूरी करते थे. कभीकभी सपना मनीष से मायके जाने की बात कह कर घर से निकल जाती. लेकिन वह मायके न जा कर हर्ष के कमरे पर पहुंच जाती. वहां 1-2 दिन रह कर वह ससुराल लौट आती.

ससुराल में भी सपना अलग कमरे में सोती थी. रात होने पर हर्ष खिड़की के रास्ते सपना के कमरे में आ जाता था और इच्छा पूरी कर के अपने घर चला जाता था. लंबे समय तक दोनों का इसी तरह मिलनाजुलना चलता रहा. मजे की बात यह थी कि हर्ष और सपना के घर वालों में से किसी को भी उन के अवैध संबंधों के बारे में भनक नहीं लगी.

एक शादीशुदा औरत के कदम बहकते हैं तो उसे तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है. सपना अब दो नावों पर सवार थी. हर्ष सपना को ले कर गंभीर था. वह उस के साथ अलग दुनिया बसाने के सपने देखने लगा था. परेशानी तब शुरू हुई, जब हर्ष सपना से शादी करने की जिद करने लगा. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दे दी कि अगर उस ने शादी से मना किया तो वह आत्महत्या कर लेगा.

हर्ष की इस जिद से सपना की नींद उड़ गई. उस के सामने एक तरफ घर की इज्जत और मानमर्यादाएं थीं तो दूसरी तरफ हर्षदीप का समर्पण था. जिस की वजह से वह भंवर में फंस चुकी थी. इस बीच सपना का व्यवहार मनीष के प्रति काफी बदल गया था.

सपना के बदले व्यवहार पर मनीष को शक हुआ तो उस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से मनीष को पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातचीत हर्ष से होती थी. उस ने जब उस से पूछा कि वह हर्ष से इतनी देर क्यों बातें करती है तो उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. लेकिन बाद में नारमल हो कर माफी मांग प्यार जताने लगी. मनीष सपना को बहुत चाहता था, इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. यही नहीं, उस ने उसे एक महंगी कार दिलाई और खर्च के लिए एटीएम कार्ड भी दे दिया.

बकौल हर्ष, वह और सपना एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे, इसलिए किसी भी कीमत पर शादी करना चाहते थे. लेकिन मनीष इस में आड़े आ रहा था. कई बार उस ने सपना से शादी करने को कहा. लेकिन हर बार सपना शादीशुदा होने और मनीष का बहाना बना कर उस की बात टाल गई. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि सपना को पाने के लिए वह मनीष नाम के इस अड़ंगे को अपने रास्ते से हटा देगा. इस के लिए उस ने किराए के हत्यारों का सहारा लिया. भाड़े के हत्यारे कौन थे, पुलिस के पूछने पर हर्ष ने 2 लोगों के नाम बताए थे.

उन दोनों को भी पुलिस ने धर दबोचा. लेकिन किसी की हत्या की बात से वे साफ मुकर गए. वारदात के वक्त उन के मोबाइल फोन की लोकेशन भी दूसरी जगह की मिली थी. लेकिन अमीन नाम का तीसरा युवक, जो हर्ष का नौकर भी था और दोस्त भी, ने पूछताछ में बताया कि हर्ष अकसर उस से पूछता रहता था कि किसी की हत्या का सब से आसान और सुरक्षित तरीका कौन सा है, तब उस ने बताया था कि अगर किसी की हत्या अकेले की जाए तो पकड़े जाने की गुंजाइश कम रहती है.

भाड़े के हत्यारों की बात झूठी निकली तो अकेले हर्ष ने कैसे मनीष की हत्या की, इस सवाल का जवाब हालफिलहाल यही समझ में आ रहा है कि हर्ष ने मनीष की हत्या का पूरा मन बना कर 11 नवंबर, 2013 को मनीष को फोन कर के किसी बहाने से चेतक ब्रिज के पास बुलाया. उस ने 6 महीने पहले एक पिस्टल भी खरीद ली थी. पूरी तैयारी के साथ वह मोटरसाइकिल से चेतक ब्रिज पहुंच गया. मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी कर के वह मनीष की कार में पीछे की सीट पर बैठ कर बातें करने लगा. उसी दौरान हर्ष ने पहली गोली मनीष के सिर पर मारी. उस के बाद बाहर आ कर 2 गोलियां और मारीं.

मनीष की मौत हो गई तो हर्ष ने उस की लाश को बगल वाली सीट पर इस तरह से बैठाया कि देखने में वह जीताजागता इंसान लगे. ऐसा हुआ भी. चुनाव के दौरान चल रही वाहनों की भारी चैकिंग से बचने के लिए वह मनीष की लाश सहित कार को बरखेड़ा ले गया. वहां खंडहरनुमा मकान में लाश डाल कर उस के चेहरे पर ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगा दी. लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह फिर चेतक ब्रिज आ गया.

रास्ते से फोन कर के उस ने अपने नौकर अमीन को पानी ले कर बुलाया और खून के धब्बे धोए. कार में चाबी उस ने इस उम्मीद के साथ लगी छोड़ दी थी कि किसी और की नजर इस पर पड़ जाए और वह कार चुरा ले जाए. इस से कत्ल की गुत्थी और उलझ जाती.

बहरहाल ऐसा नहीं हो सका. मनीष की हत्या का राज खुल गया. हर्ष ने यह भी बताया कि मनीष की हत्या की बात सपना को मालूम थी. उस ने हत्या के लिए डेढ़ लाख रुपए भी देने का वादा किया था. एडवांस के रूप में उस ने 50 हजार रुपए दिए भी थे.

हर्ष से पूछताछ के बाद पुलिस ने सपना को भी थाने बुला लिया. उस से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने भी स्वीकार किया कि वह हर्ष से प्यार करती थी. लेकिन उस ने शादी की बात से इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि शादी के लिए वह मना करती थी तो हर्ष खुदकुशी कर लेने या मनीष की हत्या करने की धमकी देता था. उस की इस बात से वह डर जाती थी. अंत में उस ने कहा कि न तो उसे हत्या के बारे में कुछ मालूम था, न ही उस ने कोई पैसे दिए थे.

पुलिस ने हर्षदीप सलूजा, अमीन और सपना से विस्तार से पूछताछ कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. इस घटना में सब से बड़ा नुकसान इशिता का हुआ, जो मां के गुनाह की सजा अपनी मौसी के पास रह कर भुगत रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

अंधविश्वास ने ली पिता पुत्र की जान

अंधविश्वास हमारे समाज में अमरवेल की तरह फल फूल रहा है.और इसको खाद पानी देने का काम धर्म के ठेकेदार पंडो , पुजारियों के द्वारा बखूबी किया जा रहा है. समाज में फैले तरह-तरह के अंधविश्वास लोगों की जेब से  रुपए पैसे तो ऐंठते  ही हैं, साथ ही जरा सी असावधानी की वजह से जान माल का नुक़सान भी कर रहे हैं.अंधविश्वास के शिकार दलित, पिछड़ों के साथ पढ़े लिखे  नौकरी पेशा लोग भी हो रहे हैं.

एक ऐसा ही ताजा मामला मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में देखने को मिला है. लोगों को न्याय देने जज की कुर्सी पर बैठने वाले एक अंधविश्वासी शख्स की नासमझी ने अपने साथ अपने पुत्र की जान भी गंवा दी. बताया जा रहा है कि  जज के एक महिला मित्र से संबंधों की बजह से परिवार में कलह चल रही थी, जिससे छुटकारा पाने जज साहब तंत्र मंत्र के चक्कर में पड़ गये.

बैतूल  जिला न्यायालय में पदस्थ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश  महेन्द्र कुमार त्रिपाठी  और इसके दो बेटे अभियान राज त्रिपाठी, और  छोटा बेटा आशीष राज त्रिपाठी ने  20 जुलाई 2020 को रात्रि 10.30 बजे के लगभग एक साथ बैठकर डायनिंग टेबल पर  खाना खाया. कुछ समय बाद अचानक वे तीनों उल्टीयां करने लगे . जिस भोजन में परोसी ग‌ई रोटियों की बजह  से तीनों की तबीयत खराब हुई ,वह  जज साहब की पत्नी श्रीमती भाग्य त्रिपाठी ने तैयार की थी.

जज साहब की पत्नी ने दोपहर की बची  रोटियां खाई थी, इस कारण उन्हें कुछ नहीं हुआ.  21  एवं 22 जुलाई  तक जज साहब और इनके बेटो का इलाज न्यायाधीश आवास परिसर बैतूल में ही  चलता रहा. 23 जुलाई को जिला चिकित्सालय के चिकित्सक डॉ. आनद मालवीय की सलाह पर  जज साहब व इनके दोनो बेटों को पाढर अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया.

छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी की तबीयत में सुधार होने के कारण वह घर पर ही रहे .25 जुलाई को शाम के समय जज साहब एवं इनके बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी की तबीयत अचानक ज्यादा खराब होने से  इन्हे नागपुर के प्रतिष्ठित एलेक्सिसी अस्पताल ले जाया गया . जहां अस्पताल के चिकित्सको ने अभियान राज त्रिपाठी को मृत घोषित किया. और जज श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी का ईलाज चलता रह . 26 जुलाई को प्रातः 04.30 बजे के लगभग जज महेन्द्र त्रिपाठी  की भी मौत हो गई.

दोनो पिता पुत्र की मृत्यु के बाद नागपुर के  मानकापुर पुलिस थाने में एफआईआर  जज के छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी ने दर्ज कराते हुए पुलिस को बताया कि नागपुर आते समय उसके पिता महेन्द्र त्रिपाठी ने रास्ते में उसे बताया था कि उनकी किसी परिचित महिला संध्या सिह ने उन्हें  किसी पंडित से पूजा पाठ करवा कर  गेहूं का आटा दिया था और कहा था कि आटा घर के आटे में मिलाकर खाना बनाना . उसी आटे से तैयार रोटी खाने के बाद फुड पाईजनिग से उसके पापा और भाई की मौत हो गई.

न्यायिक क्षेत्र का मामला होने से पुलिस अधीक्षक द्वारा सम्पूर्ण जांच पड़ताल हेतु विशेष कार्य दल का गठन किया गया . इसी संदर्भ में जज महेन्द्र कुमार त्रिपाठी के घर से 20 जुलाई को प्रयुक्त शेष आटे के पैकेट को जप्त कर जांज के लिए लैब भेजा गया. लैब से आई रिपोर्ट में आटे में जहर मिले होने की पुष्टि हुई. पुलिस की जांच में जो कहानी सामने आई वह चौकाने वाली थी.

मूलतः रीवा निवासी श्रीमति संध्या सिंह विगत कई वर्षों से छिन्दवाडा में रहकर एन.जी.ओ चलाती है . महिलाओं को कानूनी सलाह देने जैसे कार्यक्रम आयोजित करने की वजह से जज महेन्द्र त्रिपाठी से नजदीकियां हो गई थी . चूंकि जज बैतूल में अकेले रहते थे, तो अक्सर दोनों की मेल मुलाकात होती रहती थी संध्या जज साहब से रूपए पैसों की मांग भी करने लगी थी.

लाक डाउन की बजह से जज साहब की पत्नी व वेटों के बैतूल आ जाने के कारण से संध्या विगत चार माह से जज  से नहीं मिल पा रही थी. परेशान होकर  उसने छिन्दवाड़ा में अपने ड्रायवर संजू , संजू के फूफा देवीलाल  चन्द्रवशी  और बाबा रामदयाल के साथ मिलकर एक योजना बनाई.   योजना के अनुसार श्रीमति संध्या सिंह ने बैतूल आकर  जज साहब से उनके घर से आटा मंगवाया और वही आटा पन्नी में भरकर बाबा उर्फ रामदयाल को दिया गया .

दो दिन  बाद बाबा उर्फ रामदयाल ने आटे में जहर मिला कर संध्या को दे दिया. 20 जुलाई को  सर्किट हाउस बैतूल में संध्या और जज ने एकांत में मुलाकात की.  संध्या सिंह ने बाबा की पूजा वाला जहरीला आटा जज साहब को देते हुए कहा-

“बाबा ने इस‌ आटे को तंत्र मंत्र से सिद्ध किया है, इसकी रोटी खाने से सारी परेशानियां दूर हो जायेगी और हमारा मिलना जुलना आसान हो जाएगा.”

घर आकर  इसी तंत्र मंत्र वाले आटे को जज साहब ने घर में रखे आटे के डिब्बे में मिला दिया.  इसी आटे की रोटी खाने के बाद जज साहब और इनके दोनो बेटो की तबीयत खराब हुई और अंत में जज  महेन्द्र कुमार त्रिपाठी और इनके बड़े बेटे श्री अभियान राज त्रिपाठी की मौत हो गई .

एक पढ़ें लिखे उच्च पद पर काम करने वाले जज की यह कहानी बताती है कि हम किस तरह आंख मूंदकर तंत्र मंत्र और चमत्कारों पर विश्वास करने लगते हैं. अपनी गर्लफ्रेंड के प्यार में अंधे कानूनी पढाई वाले जज ने कैसे विश्वास कर लिया कि बाबा द्वारा दिए गए इस आटे के टोटके से  घर की परेशानियां दूर हो जायेगी.

आज भी विज्ञान के युग में भले ही हम आधुनिक तकनीक का उपयोग कर अपने आपको माडर्न समझने लगे हैं, परन्तु हमारे समाज में वैज्ञानिक सोच विकसित नहीं हुई है. जब हमारे देश के वैज्ञानिक चंद्रयान की सफलता के लिए पूजा पाठ और हवन करते हो, देश के रक्षा मंत्री राफेल विमान की नारियल और नींबू से पूजा करते हों,तो फिर समाज के दूसरे वर्ग से क्या उम्मीद की जा सकती हैं.

अंधविश्वास का आलम ये है रोज सोशल मीडिया पर देवी देवताओं की पोस्ट वाले मेसैज 5 ग्रुप में फारवर्ड करने की अपील पर हम बिना सोचे समझे भेड़ चाल चलने लगते हैं. ज्ञान विज्ञान और समाज को जागरूक करने  वाली पत्रिकाओं को पढ़ने की रूचि लोगों की खत्म होती जा रही है.

ऐसे में दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएं सरिता, सरस सलिल, मुक्ता, गृहशोभा समाज में फैले पाखंड और अंधविश्वास के प्रति समाज को जागरूक करने का काम कर रही हैं. इसी तरह सत्यकथा और मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित अपराध कथाओं में यह सीख प्रमुखता से दी जाती है कि अपराध का अंजाम सुखद नहीं होता. नशा, अंधविश्वास, धार्मिक आडंबर और अपराध पैसे से तंगहाली लाकर हमें  बर्बाद की ओर ले जाते हैं.