मांगा सुहाग मिली मौत

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 3

आखिर जब नहीं रहा गया तो एक रात बिस्तर पर उस ने पति को समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह अच्छा नहीं है. तुम उस दो टके की औरत के पीछे ऐसे दीवाने हो गए हो, जैसे कोई पागल सांड़ भरी बाजार में बलबला उठता है. मेरा नहीं तो कम से कम अपने बेटे के बारे में सोचो. कल जब वह बड़ा होगा तो तुम्हारा नाम ले कर लोग ताना नही मारेंगे.’’

प्रेम केसरवानी समझ गया कि पत्नी को सब पता चल गया है. वह सिर झुकाए बैड पर बैठा रहा. संगीता आगे बोली, ‘‘आखिर सुशीला में कौन से मोती जड़े हैं? क्या मुझ से ज्यादा उस के अंदर तुम्हें गरमी मिलती है? प्रेम, मैं तुम्हारी पत्नी हूं और सुशीला… सुशीला गंदी नाली का कीड़ा है. वह औरत लटकेझटके दिखा कर तुम्हें तो चूस ही रही है. साथ में तुम्हारी दौलत पर भी उस की नजर लगी हुई है.’’

संगीता ने हर तरह से पति को समझाया, लेकिन संगीता की कोई बात प्रेम की खोपड़ी में नहीं घुसी. उस ने बातें एक कान से सुनीं और दूसरे से निकाल दीं. दरअसल, सुशीला की चाहत में वह इतना आगे निकल चुका था कि वहां से पीछे लौटना अब उस के बस की बात नहीं थी. फिर भी संगीता ने पति का साथ नहीं छोड़ा और उस के पीछे पड़ी रही. सुशीला और प्रेम केसरवानी लव अफेयर की कहानी आगे बढ़ती रही. एकदूसरे को पाने के लिए वे दोनों हमेशा छटपटाते रहते और जब कभी एकांत में मिलने का अवसर मिलता तो आंधीतूफान की तरह एकदूसरे में समा जाते थे. तन की आग बुझ जाती, किंतु मन की प्यास हमेशा बनी रहती.

जैसेजैसे दिन बीतते जा रहे थे, वैसेवैसे संगीता की चिंता बढ़ती जा रही थी. उसे सब कुछ गंवारा था, लेकिन सुहाग का बंटवारा मंजूर न था. इसी चिंता में एक रोज संगीता सुशीला की पान की दुकान पर जा पहुंची. वहां उस ने सुशीला को खूब खरीखोटी सुनाई और पति से दूर रहने की चेतावनी दी. सुशीला मुंहफट थी. संगीता की चेतावनी से न वह डरी न सहमी. वह बेहयाई से बोली, ‘‘अपने खसम को अपने पल्लू से बांध कर रखो. मैं उसे बुलाने नहीं जाती, बल्कि वही कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुआ मेरी चौखट पर आ जाता है. समझा देना उसे कि वह मेरे घर न आया करे.’’

संगीता ने मुंहफट औरत के मुंह लगना उचित नहीं समझा और वापस घर आ गई. वह अपनी किस्मत पर रोती रही. इधर प्रेम को पता चला कि संगीता उस की प्रेमिका की दुकान पर उलाहना देने गई थी तो उस का गुस्सा बढ़ गया. देर रात जब वह घर आया तो उस की संगीता से तकरार हुई और नौबत मारपीट तक आ गई. धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच दूरियां और बढ़ गईं. प्रेम को इस के बावजूद कोई परवाह नहीं थी. तब संगीता ने भी अपना दिल कठोर कर लिया. उसे अब अपने बेटे की चिंता थी. उस ने सब कुछ नियति पर छोड़ दिया था.

इधर सुशीला ने संगीता को फटकार तो दिया था, लेकिन उस के मन में डर समा गया था कि कहीं संगीता का विरोध भारी न पड़ जाए और वह प्रेम को उस से छीन ले. इसी डर के चलते उस शाम वह प्रेम के साथ रेस्टोरेंट पहुंची थी और अपनी चिंता से प्रेम को अवगत कराते हुए संगीता के डर से निजात दिलाने की बात कही थी.

सुशीला रखैल के बजाय बनना चाहती थी पत्नी…

सुशीला चालाक औरत थी. वह प्रेम की रखैल बन कर नहीं रहना चाहती थी. बल्कि उस की पत्नी बनने का सपना संजोने लगी थी. इस सपने को पूरा करने के लिए वह तानाबाना बुनने लगी थी. हालांकि प्रेम सुशीला का पूरा खर्च उठाता था और आर्थिक मदद भी करता था, लेकिन सुशीला इस से संतुष्ट नहीं थी.

एक रोज शाम को प्रेम केसरवानी सुशीला के घर पहुंचा तो घर पर वह अकेली थी. उस के बच्चे ननिहाल गए थे. प्रेम को देख कर सुशीला बहुत खुश हुई. दोनों कुछ देर हंसतेबतियाते रहे फिर साथ बैठ कर खाना खाया. उस रोज सुशीला ने मीट पकाया था, सो खाते वक्त उस ने मीट पकाने के लिए सुशीला की जम कर तारीफ की. रात 10 बजे प्रेम घर जाने लगा तो उस ने बहाने से उसे रोक लिया. प्रेम भी यही चाहता था, इसलिए वह रुक गया. थोड़ी देर बाद दोनों बिस्तर पर पहुंच गए.

सुशीला कुछ देर प्रेम की बांहों में मचलती रही फिर बोली, ‘‘प्रेम एक बात पूछूं, सचसच बताना.’’

“पूछो, क्या जानना चाहती हो?’’

“तुम मुझ से जिस्मानी प्यार करते हो या सच्चा प्यार…’’

“मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं. यकीन न हो तो आजमा कर देख लो.’’ प्रेम बिना सोचेसमझे बोल गया.

“तो फिर कल बारादेवी मंदिर चलो और मां को साक्षी मान कर मेरी मांग में सिंदूर भर दो. अब मैं तुम्हारी रखैल बन कर नहीं, बल्कि पत्नी बन कर रहना चाहती हूं. पत्नी का दरजा मिल जाएगा तो तुम्हारी धनदौलत और मकान पर भी मेरा हक होगा.’’ सुशीला की बात सुन कर प्रेम सन्न रह गया. वह जान गया कि सुशीला के मन में लालच समा गया है. वह उस की पत्नी बनने और संपत्ति हथियाने का ख्वाब देखने लगी है. प्रेम शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. अत: वह सुशीला की बात कैसे मान लेता.

प्रेम कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सुशीला, मुुझे कुछ वक्त दो ताकि मैं तुम्हारा ख्वाब पूरा कर सकूं. क्योंकि सब जानते हैं कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. संगीता तुम्हें सौतन के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेगी. कहीं अलग प्लौट मकान ले कर तुम्हें बसाना होगा.’’

“ठीक है, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं. लेकिन जल्दी ही इंतजाम करो.’’ इस के बाद प्रेम केसरवानी परेशान रहने लगा. उस ने सुशीला से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब वह तभी उस के घर जाता, जब वह जिद कर उसे बुलाती. हर बार वह अपनी बात मनवाने का दबाव डालती.

दे दी हत्या की सुपारी…

प्रेम केसरवानी का एक दोस्त राजेश गौतम उर्फ छोटू था. वह पनकी में रहता था और अपराधी किस्म का था. एक शाम प्रेम ने उसे सीटीआई चौराहा स्थित शराब ठेके पर बुला लिया. वहां बैठ कर पहले दोनों ने शराब पी, फिर प्रेम ने उसे अपनी समस्या बताई और किसी तरह समस्या से निजात दिलाने की बात कही. दोस्त की समस्या से छोटू के माथे पर बल पड़ गए. लेकिन उस ने प्रेम को निजात दिलाने का भरोसा दिया.

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 4

एक रोज प्रेम केसरवानी किसी काम से पनकी गया तो उसे छोटू की याद आ गई. तब उस से मिलने उस के घर जा पहुंचा. राजेश गौतम उर्फ छोटू उस समय घर पर ही था. बातचीत करते हुए प्रेम ने पूछा, ‘‘छोटू, तुम ने हमारी समस्या का कोई हल ढूंढा या फिर यूं ही आश्वासन दे रहे थे?’’

“तुम्हारी समस्या का एक ही हल है कि तुम अपनी प्रेमिका सुशीला का काम तमाम करा दो. लेकिन इस के लिए तुम्हें पैसा खर्च करना पड़ेगा,’’ छोटू ने प्रेम को सुझाव दिया. “ठीक है, मैं तैयार हूं.’’ इस के बाद प्रेेम ने सुशीला की हत्या की सुपारी 70 हजार रुपए में राजेश गौतम उर्फ छोटू को दे दी.

रकम मिलने के बाद छोटू ने हत्या की योजना बनाई और रुपयों का लालच दे कर अपने अपराधी दोस्त अजय, दिनेश व सनी को शामिल कर लिया. ये तीनों मन्नीपुरवा (मैथा) के रहने वाले थे. हत्या की योजना बनाने के बाद राजेश गौतम ने प्रेम को वह सुनसान जगह दिखा दी, जहां सुशीला को ठिकाने लगाना था. उस ने दिन, तारीख व समय भी निश्चित कर दिया. सुशीला को उस स्थान तक लाने की जिम्मेदारी प्रेेम को सौंपी गई.

योजना के तहत 3 दिसंबर, 2022 की शाम 4 बजे प्रेम सुशीला की पान की दुकान पर पहुंचा और प्लौट देखने के लिए साथ चलने को कहा. सुशीला ने दुकान बंद की और प्रेम की स्कूटी पर बैठ कर चल दी. प्रेम सूरज छिपने तक सुशीला को इधरउधर घुमाता रहा, फिर किसान नगर होता हुआ जामू नहर पुल के पास पहुंचा. यहां राजेश गौतम उर्फ छोटू अपने साथी अजय, दिनेश व सनी के साथ खड़ा था. अब तक हलका अंधेरा छा चुका था.

प्रेमी ने कराया मर्डर…

सुशीला जैसे ही प्रेम की स्कूटी से उतरी, तभी राजेश व उस के साथियों ने उसे दबोच लिया और अजय ने तमंचा निकाल कर उस के सीने में 2 फायर झोंक दिए. सुशीला की मौके पर ही मौत हो गई. प्रेम दूर खड़ा करीब 10 मिनट तक देखता रहा कि सुशीला की सांसें चल रही हैं या नहीं. जब उसे विश्वास हो गया कि सुशीला की सांसें थम गई हैं तब वह भी वहां से फरार हो गया. हत्या के बाद राजेश व उस के साथी भी फरार हो गए. प्रेमिका की हत्या हो जाने के बाद प्रेम ने राहत की सांस ली यानी प्रेमी कातिल बन गया.

सुबह जामू गांव के बाहर नहर पुल के पास झाडिय़ों के किनारे कुछ लोगों ने एक महिला की लाश देखी तो उन्होंने सूचना ग्राम प्रधान जनार्दन सिंह को दी. ग्राम प्रधान ने थाना विधनू पुलिस को खबर दी तो मौके पर एसएचओ योगेश सिंह, एसीपी (नौबस्ता) अभिषेक कुमार तथा एडिशनल डीसीपी अंकिता शर्मा आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड व फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. सभी अपनेअपने काम में जुट गए. पुलिस

अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पता चला कि महिला की हत्या सीने में गोली मार कर की गई थी. उस की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. वह पीले रंग की साड़ी व गुलाबी रंग का स्वेटर पहने थी. महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. तब पुलिस ने उस के शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भेज दिया.

इधर रात 10 बजे तक जब सुशीला घर नहीं पहुंची तो उस के बेटे को चिंता हुई. वह और उस की बहन रात भर मां के आने का इंतजार करते रहे. सुबह वे दोनों मां की पान की दुकान पर पहुंचे तो दुकान बंद थी. मां का जब पता नहीं चला तो बेटा थाना गुजैनी जा पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी को मां के लापता होने की बात बताई. थाने में उसे पता चला कि विधनू थाना पुलिस ने एक अज्ञात महिला की लाश बरामद की है. तब वह थाना विधनू पहुंच गया.

एसएचओ योगेश सिंह ने जब उसे लाश की फोटो दिखाई तो वह फफक पड़ा और बताया कि यह लाश उस की मां सुशीला की है. लाश की शिनाख्त होने के बाद एसएचओ योगेश सिंह ने मृतका के बेटे से सहानुभूतिपूर्वक पूछताछ की तो पता चला कि वरुण विहार (बर्रा) का रहने वाला प्रेम केसरवानी उन के घर आताजाता था. मां सुशीला से उस की दोस्ती थी. वह रात में भी उस के घर रुक जाता था. इस से पुलिस को यह शक हो गया कि सुशीला के प्रेमी ने ही मर्डर कराया है.

प्रेम केसरवानी शक के दायरे में आया तो योगेश सिंह ने उस की तलाश शुरू कर दी. फिर छापा मार कर उसे उस के घर से ही हिरासत में ले लिया. प्रेम केसरवानी को थाना विधनू लाया गया. उस से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो तो उस ने सारा रहस्य उगल दिया. प्रेम ने बताया कि सुशीला से उस का नाजायज रिश्ता था, लेकिन वह उस पर पत्नी का दरजा देने का दबाव बना रही थी और संपत्ति में हक मांग रही थी. इसी कारण उस की हत्या की सुपारी अपने दोस्त पनकी निवासी राजेश गौतम उर्फ छोटू को 70 हजार रुपए में दी. उस ने अपने साथी अजय, दिनेश व सनी के साथ मिल कर सुशीला की हत्या कर दी.

इस के बाद एसएचओ योगेश सिंह ने अपनी पुलिस टीम के साथ छापा मार कर पहले राजेश गौतम उर्फ छोटू को भाटिया तिराहा से गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी सनी व अजय गौतम को गड़ेवा नहर पुल के समीप धर दबोचा. राजेश, अजय व सनी ने भी सुशीला की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन का एक साथी दिनेश पुलिस के हाथ नहीं आया.

अजय गौतम के पास से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त .315 बोर का एक तमंचा तथा 2 जिंदा कारतूस बरामद किए. प्रेम ने भी अपनी स्कूटी बरामद करा दी. कानपुर (विधनू) के सुशीला मर्डर केस की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. एक अन्य आरोपी दिनेश फरार था. पुलिस उसे तलाश रही थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 2

सुशीला उम्र मेंं उस से बड़ी थी, इसलिए प्रेम उसे भाभी कहता था और हंसीमजाक भी कर लेता था. सुशीला उस के मजाक का बुरा नहीं मानती थी. अब वह उस के घर भी आने लगा था. सुशीला का सौंदर्य उसे विचलित भी करने लगा था. हंसीमजाक के दौरान प्रेम उस के शरीर को स्पर्श करने से भी नहीं चूकता था. सुशीला बुरा मानने के बजाय मुसकरा कर कह देती, ‘‘आजकल तुम बड़े शरारती हो गए हो. ऐसी हरकतें अच्छी नहीं होतीं. कोई देख लेगा तो..?’’

“कोई देख लेगा तो क्या हो जाएगा भाभी?’’ प्रेम पूछ बैठता.

“तुम्हारा तो कुछ नहीं होगा प्रेम, लेकिन मैं बदनाम हो जाऊंगी.’’ हालांकि सुशीला प्रेम की हरकतों से मन ही मन खुश होती थी और उस का शरीर रोमांच से भर उठता था. प्रेम का घर आना सुशीला को अच्छा लगने लगा था. वह जब भी आता, उस के बच्चों को खानेपीने की कुछ चीजें जरूर लाता, जिस से बच्चे भी उस से घुलमिल गए थे.

एक दिन प्रेम उस के घर आया हुआ था, तभी सुशीला नहा कर बाथरूम से निकली थी. उस के बदन पर पानी की बूंदें मोती की तरह चमक रही थीं. प्रेम को देख कर सुशीला बड़ी अदा के साथ जुल्फों को झटक कर अंदर वाले कमरे में चली गई. कुछ देर बाद सुशीला आई और चाय बना कर लाई. दोनों ने साथ बैठ कर चाय पी, साथ में मुसकरा कर 2-4 बातें कीं. प्रेम उस की इन्हीं अदाओं पर मर मिटा. सुशीला जब हंसती थी तो लगता था, जैसे चूडिय़ां खनक उठी हों. उभारों की बनावट कुछ ऐसी थी जैसे लगता था कि यौवन चोली फाड़ कर बाहर आ जाएगा. यह सब प्रेम के दिमाग में बस गया था.

उस दिन प्रेम का काम में मन नहीं लगा और रात को भी उसे नींद नहीं आई. बिस्तर पर पूरी रात वह करवटें बदलता रहा. पत्नी संगीता ने 2-4 बार पूछा भी था कि आखिर बात क्या है तो उसे बहुत बुरा लगा था. प्रेम चाहता था कि उस की कल्पनाओं में कोई खलल न डाले और वह सुशीला के साथ सपने सजाता रहे. सुबह हुई, तब भी प्रेम का मन किसी काम में नहीं लगा. वह अपनी गोदाम पर गया जरूर था, लेकिन उस का दिलदिमाग सुशीला के घर पर ही था. उस के एकएक अंग प्रेम की आंखों के सामने मचल उठते थे. मन करता कि वह अभी उठे और सुशीला के पास पहुंच जाए.

शुरू हुई अवैध संबंधों की कहानी…

उधर सुशीला का भी कुछ यही हाल था. प्रेम जिन लच्छेदार बातों का सिलसिला वहां छोड़ कर आया था, सुशीला अभी तक उसी में उलझी हुई थी. दिनरात प्रेम केसरवानी की बातें उस के कानों में शहद की तरह टपकती रहतीं और उस पर मदहोशी का आलम छाया रहता. सोतेजागते अब उस की नजरों के आगे प्रेम ही प्रेम दिखाई पड़ता.

दरअसल, सुशीला तन्हा जिंदगी बिता रही थी. पति से अब उसे कोई मतलब न था. अत: वह प्रेम में पति का अक्स तलाशने लगी थी. मोहब्बत की यही तो निशानी है. हीररांझा, लैलामजनूं और न जाने कितने प्रेमीप्रेमिका चाहत की मंजिल पाने को कुरबान हो गए. अब सुशीला और प्रेम भी उसी रास्ते पर चल पड़े थे. रात होते ही सुशीला का दिल मचलने लगता, तनमन बेकाबू हो उठता और इच्छा होती कि प्रेम उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

एक रोज सुबह प्रेम केसरवानी अपनी दुकान जा रहा था. वह विल्स चौराहा पहुंचा तो देखा कि सुशीला की पान की दुकान बन्द है. वह सोचने लगा, ‘‘सुशीला तो सुबह 10 बजे के पहले ही दुकान पर आ जाती थी, फिर आज बंद क्यों है? कहीं कुछ..?’’ मन में उलटेसीधे विचार आए तो प्रेम ने अपनी स्कूटी सुशीला के घर की ओर मोड़ दी. चंद मिनटों में ही वह सुशीला के घर पहुंच गया. सुशीला घर में बैड पर लेटी थी. वह उसे देख कर तड़प उठा, ‘‘यह क्या सुशीला, तुम्हारा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

“नहींनहीं, बस यूं ही थोड़ा बुखार आ गया था.’’ सुशीला ने बिस्तर से उठने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘तुम खड़े क्यों हो? बैठो न प्रेम.’’

“बच्चे दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. कहीं गए हैं क्या?’’ प्रेम ने दाएंबाएं नजर दौड़ा कर पूछा.

“बेटी स्कूल गई है और बेटे को सामान लेने बाजार भेजा है.’’

प्रेम को लगा कि यह उचित मौका है. आज उसे अपने दिल की बात कह देनी चाहिए. वह धीरे से बैड पर उसी के बगल में बैठ गया और एकटक उसे निहारने लगा. सुशीला ने उसे इस तरह निहारते देखा तो बोली, ‘‘प्रेम, तुम मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो. दिल में जो भी बात हो, बता दो.’’

“बता दूं?’’ कहते हुए प्रेम एकदम उस के चेहरे पर झुक गया. उस की आंखों में उसी की तसवीर थी. सुशीला की सांसें गरम हो उठीं. दिल की धडक़नें बढ़ गईं. प्रेम का अंगअंग भी फडक़ने लगा. मदहोशी के आलम में उस का एक हाथ सुशीला के कमर में पहुंच गया और दूसरा छाती पर रेंगने लगा तो सुशीला के भीतर जैसे तूफान मचल उठा. वह सिसियाकर प्रेम से लिपट गई, ‘‘बस, अब और अधिक मत तड़पाओ.’’

प्रेम केसरवानी तो यही चाहता था. सुशीला का आमंत्रण पाते ही उस ने उसे अपनी बलिष्ठ भुजाओं में जकड़ लिया. सुशीला भी उस से लता की भांति लिपट गई. दोनों के बीच खड़ी शर्मोहया की दीवार कुछ ही पलों में तहसनहस हो गई. उन के बीच एक बार अनैतिक संबंध कायम हुए तो फिर यह सिलसिला शुरू हो गया. जब भी समय मिलता वे दोनों एकदूसरे में समा जाते. फिर भी लोगों को उन के प्रेम संबंधों का पता चल ही गया. वे जान गए कि सुशीला और प्रेम के बीच नाजायज रिश्ता है. लेकिन लोगों की परवाह न सुशीला ने की और न ही प्रेम ने. वे दोनों अपनी ही मस्ती में डूबे रहे.

प्रेम की पत्नी को लग गई अवैध संबंधों की भनक…

सुशीला से प्रेम का रिश्ता जुड़ा तो उस की अपनी पत्नी संगीता में दिलचस्पी कम हो गई. वह उस की उपेक्षा करने लगा. प्रेम कभी घर आता तो कभी नहीं भी आता. संगीता पूछती तो बहाना बना देता. संगीता ने जब इस की वजह जाननी चाही तो उस के हाथों के तोते उड़ गए. पता चला कि प्रेम आजकल सुशीला नाम की औरत के साथ अपनी खुशियां बांटता है. तब तो संगीता के होश उड़ गए. वह सोचने लगी कि आखिर सुशीला में ऐसा क्या है, जो उस में नहीं है. संगीता का सिर चकराने लगा. उसे अपनी हरीभरी दुनिया उजड़ती नजर आने लगी.

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 1

कानपुर शहर के दक्षिण में बने एक रेस्टोरेंट की केबिन में बैठे प्रेम और सुशीला अपलक एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. उन्होंने एकदूसरे का हाथ ऐसे पकड़ रखा था, जैसे आज के बाद फिर कभी न मिलने का डर सता रहा हो. काफी देर तक उन के बीच खामोशी छाई रही, फिर सुशीला ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘प्रेम, तुुम पास होते हो तो जिंदगी बहुत सुहानी लगती है. दिल करता है कि बस यूं ही तुम्हारी आंखों में झांकते हुए तमाम उम्र गुजार दूं.’’

सुशीला के दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी. होंठ थरथरा रहे थे. कहने लगी, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते हो. फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है. ऐसा लग रहा है प्रेम, जैसे तुम मुझ से बहुत दूर जाने वाले हो.’’ सुशीला की आंखें भर आई थीं. उस ने धीरे से अपना सिर प्रेम की छाती पर टिका दिया था, ‘‘तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? खामोश क्यों हो? तुम्हारी खामोशी तो मुझे आने वाले किसी तूफान का दस्तक दे रही है.’’

“घबराओ मत सुशीला, धैर्य रखो और हिम्मत से काम लो.’’ प्रेम ने सुशीला की जुल्फों में अपनी अंगुलियां फिराते हुए कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे डर की वजह क्या है, तुम संगीता के बारे में सोच रही हो न?’’

सुशीला चौंक पड़ी, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

“वह मेरी पत्नी है और तुम मेरी धडक़न. मैं खुद से ज्यादा तुम्हें जानता हूं. तुम्हारी इन आंखों में कौन सा सपना है, मुझे सब पता है.’’

“तुम सही कह रहे हो प्रेम, लेकिन संगीता के डर से निजात भी तुम्हीं दिला सकते हो, सिर्फ तुम ही.’’

सुशीला उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) के गजनेर कस्बा के रहने वाले रामकुमार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी शीला थी. सुशीला का कोई भाई नहीं था, इसलिए उन दोनों बहनों को ही घरपरिवार वाले लडक़ों की तरह चाहते थे. पिता रामकुमार व चाचा शिवकुमार, सुशीला व शीला से बहुत प्यार करते थे. उन दोनों की छोटी से छोटी फरमाइश का उन्हें पूरा खयाल रहता था.

रामकुमार की बड़ी बेटी सुशीला दिखने में सुंदर थी. प्रकृति ने न केवल उसे रूपसौंदर्य से सजाया था, बल्कि उसे स्वभाव भी बड़ा मिलनसार दिया था. उस का यही मोहक अंदाज हर किसी के मन को मोह लेता था. उस का यह माधुर्य रूप जहां युवकों की आंखों में यौवन का खुमार पैदा करता था, वहीं उस की सहेलियों में इष्र्या की भावना. सुशीला इन सभी बातों को समझते हुए भी अपने आप में मस्त रहती थी. जब भी उस की कोई सहेली कुछ व्यंग्य करती तो वह उसे हंस कर टाल देती थी.

महत्त्वाकांक्षी थी सुशीला…

बेटी के शरीर पर यौवन का भार लदता देख कर उस के पिता ने उस की शादी कानपुर शहर के बर्रा भाग 8 निवासी रामबाबू उर्फ पप्पू से कर दी. पप्पू मूलरूप से औरैया जिले के गांव मटेरा का रहने वाला था. मातापिता गांव में रहते थे. उन के पास खेती की जो थोड़ीबहुत जमीन थी, उस की खेती से घर का खर्च चलाते थे. पप्पू रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आ गया था. वह दादा नगर स्थित गत्ता बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता था.

रामबाबू उर्फ पप्पू गठीला युवक था. सुशीला के रूप में सुंदर पत्नी पा कर वह निहाल हो गया था. विवाह के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी के बीच शारीरिक आकर्षण ही प्रमुख रहता है. तब मन में झांकने की फुरसत नहीं होती. बस, दोनों एकदूसरे को अच्छे लगते हैं. ऐसा ही रामबाबू और सुशीला के बीच भी हुआ. लेकिन जब धीरेधीरे शारीरिक आकर्षण ठंडा पड़ा तो रामबाबू को पता चल गया कि सुशीला बहुत महत्त्वाकांक्षी किस्म की औरत है. वह रामबाबू से तरहतरह की फरमाइशें करने लगी.

प्राइवेट नौकरी करने वाला रामबाबू उस की हर फरमाइश पूरी करने में असमर्थ था. सुशीला इस बात को नहीं समझती थी बल्कि लड़ाईझगड़े पर उतर आती थी. कुछ ही सालों में दोनों का दांपत्य जीवन कड़वाहट से भर गया. कई बार तो दोनों में मारपीट तक हो जाती और फिर महीनों तक बोलचाल बंद रहती. इसी बीच सुशीला 2 बच्चों की मां बन गई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी सुशीला के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया.

पारिवारिक कलह से निजात पाने के लिए रामबाबू उर्फ पप्पू ने शराब का सहारा लिया. बाद में वह उस का आदी हो गया. खालिस शराब और घर की किचकिच से उस का स्वास्थ्य गिरता चला गया. इस का नतीजा यह हुआ कि उस की नौकरी छूट गई, वह दरदर भटकने लगा और एकएक पैसे को मोहताज हो गया. पत्नी सुशीला ने भी उस से किनारा कर लिया था. अत: रामबाबू अपने गांव में आ कर रहने लगा और पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाने लगा. उस ने भी पत्नी से किनारा कर लिया.

सुशीला ने भी पति की कोई सुध नहीं ली और वह दोनों बच्चों के साथ रहने लगी. बच्चों के पालनपोषण के लिए उस ने दादानगर स्थित प्लास्टिक की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. लेकिन फैक्ट्री में उस का ज्यादा दिनों तक मन नहीं लगा, अत: उस ने नौकरी छोड़ कर बर्रा के विल्स चौराहे पर पान की दुकान खोल ली. शुरू में तो दुकान कम चली, लेकिन बाद में ग्राहकों की संख्या बढ़ती गई और दुकान से आमदनी होने लगी.

सुशीला 30 साल की उम्र पार कर चुकी थी, इस के बावजूद भी उस की खूबसूरती में कोई खास कमी नहीं आई थी. उस का मांसल शरीर तथा बड़ीबड़ी आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम थीं. वह सजधज कर पान की दुकान पर बैठती थी. उस ने अपने कुशल व्यवहार से ग्राहकों का मन मोह लिया था.

एक रोज प्रेम केसरवानी नाम का युवक उस की दुकान पर पान खाने आया तो पहली ही नजर में सुशीला उस के दिल में उतर गई. इस के बाद वह अकसर सुशीला की दुकान पर आने लगा. पान खाने का तो बहाना होता, उस का असली मकसद होता सुशीला का दीदार करना और उस से हंसीठिठोली करना. सुशीला भी उस से खुल गई थी और उस की लच्छेदार बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी.

सुशीला को चाहने लगा प्रेम…

प्रेम केसरवानी वरुण विहार (बर्रा) में रहता था. वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की शादी संगीता से हुई थी. संगीता सांवले रंग की जरूर थी, लेकिन नाकनक्श अच्छा था. संगीता ने विवाह के पहले जैसे राजकुमार की कल्पना की थी, प्रेम ठीक उसी के अनुरूप था. उस का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से गुजर रहा था. प्रेम केसरवानी कबाड़ का व्यवसाय करता था. इस काम में उस की अच्छी कमाई होती थी. इसी कमाई से उस ने दोमंजिला मकान बनवा लिया था और एक गोदाम भी किराए पर ले लिया था. वह अय्याश प्रवृत्ति का था. औरत उस की कमजोरी थी. घर में जवान बीवी होने के बावजूद वह बाहर ताकझांक करता रहता था.