बेवफा पत्नी और वो : पति को मिली मौत

चुनाव नजदीक होने की वजह से 11 नवंबर, 2013 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में चुनाव प्रचार शबाब पर था. तमाम पुलिसकर्मी दीवाली के बाद से ही दिनरात चुनावी ड्यूटी कर रहे थे. प्रचार का शोर, नेताओं की सभाएं और जनसंपर्क खत्म होने के बाद ही पुलिसवालों को थोड़ा सुकून मिल सकता था. रात 10 बजे तक चुनावी होहल्ला कम हुआ तो रोजाना की तरह पुलिस वालों ने इत्मीनान की सांस ली.

थाना पिपलानी के थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया खापी कर अगले दिन के कार्यक्रमों के बारे में सोच रहे थे कि तभी उन्हें फोन द्वारा सूचना मिली कि बरखेड़ा पठानिया के एक खंडहर में एक युवक की अधजली लाश पड़ी है. घटनास्थल पर जाने के लिए वह तैयार हो कर थाने से निकल ही रहे थे तो गेट पर सीएसपी कुलवंत सिंह मिल गए. उन्हें भी साथ ले कर वह बताए गए पते पर रवाना हो गए.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया अपनी जीप से बरखेड़ा के सेक्टर-ई स्थित एक खंडहरनुमा मकान पर पहुंच गए. फोन करने वाले ने उन्हें यहीं अधजली लाश पड़ी होने की बात बताई थी. वहां उन्हें कुछ जलने की गंध महसूस हुई, इसलिए वह समझ गए कि लाश यहीं पड़ी है. वह साथियों के साथ खंडहर के अंदर पहुंचे तो सचमुच वहां कोने में एक युवक की झुलसी लाश पड़ी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ देर पहले ही वह जलाई गई थी.

पुलिस की जीप देख कर आसपास के कुछ लोग आ गए. पुलिस ने उन लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन चेहरा झुलस जाने की वजह से कोई उसे पहचान नहीं सका. लाश का चेहरा ही ज्यादा जला था. जबकि उस के कपड़े काफी हद तक जलने से बच गए थे. शायद हत्यारों ने ऐसा इसलिए किया था कि उस की शिनाख्त न हो सके. पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में 5 हजार रुपए के अलावा घरेलू गैस की एक परची मिली. वह परची प्रियंका गैस एजेंसी की थी, जिस में उपभोक्ता का नाम मनीष तख्तानी लिखा था.

परची पर पंचवटी कालोनी का पता भी था. मृतक सोने की अंगूठी पहने था. पुलिस ने सारी चीजें कब्जे में ले लीं. इस के बाद थानाप्रभारी ने फोन कर के थाने से एक कांस्टेबल को मनीष तख्तानी के घर का पता बता कर वहां जाने को कहा.

मरने वाले की जेब से मिली नकदी और अंगूठी से साफ था कि यह हत्या लूटपाट के इरादे से नहीं की गई थी. हत्या के पीछे कोई दूसरी वजह थी. मरने वाले की कदकाठी ठीकठाक थी. एक आदमी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. इस का मतलब हत्यारे एक से ज्यादा थे.

थाने से भेजा गया कांस्टेबल पंचवटी कालोनी के मकान नंबर ए-43 पर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात दिलीप तख्तानी से हुई. उस ने उन्हें बताया कि बरखेड़ा के एक खंडहर में एक लाश मिली है, जिस की पैंट की जेब से गैस की एक परची मिली है, जिस पर मनीष तख्तानी लिखा है. यह मनीष कौन है?

यह बात सुन कर दिलीप के होश उड़ गए, क्योंकि मनीष उन्हीं का बेटा था. वह बोले, ‘‘आप को धोखा हुआ है. मेरा बेटा कहीं गया हुआ है, वह थोड़ी देर में आ जाएगा.’’

दिलीप तख्तानी ने यह बात कह तो दी, लेकिन उन का मन नहीं माना. उन्होंने उसी समय घर से कार निकाली और उस कांस्टेबल के साथ उस जगह के लिए रवाना हो गए, जहां लाश पड़ी थी. कदकाठी और अधजले कपड़ों को देखते ही दिलीप तख्तानी रो पड़े. उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे मनीष की ही है.

दिलीप तख्तानी के अनुसार, मनीष दुकान से कार से निकला था. लेकिन उस खंडहर के आसपास कहीं कोई कार नजर नहीं आई. मनीष का मोबाइल फोन भी नहीं मिला था. थानाप्रभारी ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद सर्विलांस सेल के माध्यम से उन्होंने मनीष के फोन की लोकेशन का पता कराया तो उस की लोकेशन एमपीनगर (जोन-1) के पास चेतक ब्रिज की मिली.

थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया उसी समय चेतक ब्रिज पर जा पहुंचे. वहां उन्हें एक कार दिखाई दी. दिलीप तख्तानी ने कार पहचान कर बताया कि मनीष की ही कार है. कार का मुआयना किया गया तो सीटों पर खून के धब्बे नजर आए. मनीष का मोबाइल भी कार में ही पड़ा था. कार की इग्नीशन में चाबी भी लगी थी. यह सब देख कर यही लगा कि मनीष की हत्या कार में ही की गई थी. उस के बाद हत्यारे लाश को ठिकाने लगाने के लिए खंडहर में ले गए थे. पुलिस ने कार और अन्य सामान को भी कब्जे में ले लिया.

अब तक की जांच में पता चल गया था कि मनीष शहर के जानेमाने बिजनेसमैन दिलीप तख्तानी का बेटा था. पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. मनीष के घर वालों के अनुसार मनीष हंसमुख स्वभाव का था. उस का पूरा ध्यान अपने बिजनेस पर रहता था.

उस की पत्नी सपना का रोरो कर बुरा हाल था. आंखें सूज चुकी थीं. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया था कि मनीष को कई लोगों से पैसा लेना था. लगता है, उसी लेनदेन के चक्कर में उस की हत्या की गई है. पुलिस को सपना की बात में दम नजर आया, इसलिए पुलिस ने इस बात को ध्यान में रख कर आगे की जांच शुरू की. मनीष की उम्र भी 32-33 साल थी, इसलिए पुलिस जांच में लव ऐंगल को भी ध्यान में रख जांच कर रही थी.

पुलिस ने मनीष की एमपीनगर जोन-2 स्थित दुकान पर काम करने वाले नौकरों से पूछताछ की तो पता चला कि 11 नवंबर, 2013 की शाम को 4 बजे के आसपास उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद उन्होंने दुकान संभालने वाले अपने मामा विनोद तख्तानी से कहा था कि उन्हें लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह दुकान बंद कर देंगे. इतना कह कर मनीष अपनी कार से चले गए थे.

पुलिस को जब पता चला कि शाम को किसी का फोन आने के बाद मनीष दुकान से निकला था, इसलिए पुलिस मनीष के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर यह जानने की कोशिश करने लगी कि उस के फोन पर किस का फोन आया था.

पुलिस को जल्दी ही पता चल गया कि 11 नवंबर की शाम 4 बजे मनीष की जिस नंबर से बात हुई थी, वह नंबर हर्षदीप सलूजा का था. पुलिस ने हर्षदीप सलूजा के बारे में मनीष के घरवालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के एक परिचित का बेटा जिन से उन के पारिवारिक संबंध हैं. दोनों ही परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना है. घर वालों की इस बात से पुलिस संतुष्ट नहीं हुई. वह एक बार हर्षदीप से पूछताछ करना चाहती थी.

पुलिस हर्षदीप को थाने बुला कर पूछताछ करती, उस के पहले ही पुलिस को पता चला कि मृतक मनीष की पत्नी सपना एक महीने पहले बिना बताए कहीं चली गई थी. तब मनीष ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज कराई थी. बाद में वह अपने आप घर आ गई तो पुलिस ने इसे घरेलू विवाद मान कर कोई तूल नहीं दिया.

हत्यारों का पता न लगने पर व्यापारियों की नाराजगी बढ़ती जा रही थी. पुलिस ने इलाके के कई बदमाशों को उठा कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा नहीं हुआ था. इस का नतीजा यह निकला कि मनीष के हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए सिंधी समुदाय आक्रोशित हो कर सड़क पर उतर आया. पुलिस अधिकारियों ने लोगों को जल्द से जल्द केस खोलने का आश्वासन दे कर आक्रोशित लोगों को शांत किया.

इस के बाद पुलिस की कई टीमें बना कर इस मामले की छानबीन में लगा दी गईं. उसी दौरान मनीष के चाचा ने हत्या का इशारा हर्षदीप की तरफ किया. पुलिस को हर्षदीप पर पहले से ही शक था, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने बुला लिया गया.

पूछताछ में वह पहले मनीष की हत्या से इनकार करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस से पूछा कि हत्या वाले दिन उस ने सपना से 2 बार और मनीष को एक बार फोन कर के क्या बात की थी तो पुलिस की इस बात का उस के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी. मजबूर हो कर उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की, वह बहुत ही चौंकाने वाली निकली.

भोपाल की पंचवटी कालोनी के ए ब्लौक में रहने वाले दिलीप तख्तानी का एक ही बेटा था मनीष तख्तानी. दिलीप तख्तानी मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे. देश विभाजन की त्रासदी झेल कर वह अकेले ही भारत आए थे और यहां उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते अपना प्लाईवुड का बिजनेस स्थापित किया. वह शहर के जानेमाने बिजनेसमैन थे. शहर के विभिन्न इलाकों में उन की प्लाईवुड की कुल 6 दुकानें थीं. करोड़ों की हैसियत रखने वाले दिलीप ने अपनी सभी दुकानें एकलौते बेटे मनीष के नाम खोली थीं. उन्होंने बेटे को बिजनेस के सारे गुण सिखा कर उसे एमपीनगर जोन-2 की दुकान सौंप दी थी.

बेटे ने बिजनेस संभाल लिया तो दिलीप ने खंडवा की रहने वाली सपना से उस की शादी कर दी. यह 6 साल पहले की बात है. शादी के वक्त मनीष का परिवार ईदगाह हिल्स में रहता था. वहीं पड़ोस में हर्ष का भी परिवार रहता था. दिलीप तख्तानी ने अपने एकलौते बेटे मनीष की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया था. पूरे हफ्ते मोहल्ले में जश्न का माहौल रहा था. नाचनेगाने वालों में हर्ष अव्वल था. उस वक्त उस की उम्र महज 17 साल थी. वह मनीष को पूरा सम्मान देते हुए भइया कहता था.

मनीष की खूबसूरत बीवी सपना को देख कर किशोर हर्ष के दिलोदिमाग में कुछकुछ होने लगा था. फिर तो सपना भाभी को देखने और उस से बातें करने के लिए वह मनीष के यहां कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा था. किसी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शादी के 2 साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम इशिता रखा गया.

मनीष को अपने कारोबार में काफी समय देना पड़ता था. पारिवारिक संबंधों के चलते हर्ष के घर आनेजाने पर न तो कोई रोकटोक थी, न ही किसी को ऐतराज था. बातचीत के दौरान वे काफी करीब आ गए थे. मोहब्बत और वासना का अंकुर कब हर्ष और सपना के दिलों में फूटा और फलाफूला, इस का अहसास उन्हें शायद हद से गुजर जाने के बाद हुआ.

उसी दौरान तख्तानी परिवार पंचवटी कालोनी स्थित अपने नए मकान में रहने आ गया, जबकि हर्षदीप सलूजा के घर वाले अवधपुरी में शिफ्ट हो गए. दोनों ही परिवार अलगअलग जगहों पर रहने जरूर चले गए, लेकिन हर्ष और सपना की मेलमुलाकातों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. दोनों अब घर से बाहर खासतौर से गुरुद्वारों में मिलने लगे थे.

बाद में हर्ष ने एक अलग मकान किराए पर ले लिया, जिस में हर्ष से मिलने के लिए सपना अकसर आनेजाने लगी. वहीं वे अपनी हसरतें पूरी करते थे. कभीकभी सपना मनीष से मायके जाने की बात कह कर घर से निकल जाती. लेकिन वह मायके न जा कर हर्ष के कमरे पर पहुंच जाती. वहां 1-2 दिन रह कर वह ससुराल लौट आती.

ससुराल में भी सपना अलग कमरे में सोती थी. रात होने पर हर्ष खिड़की के रास्ते सपना के कमरे में आ जाता था और इच्छा पूरी कर के अपने घर चला जाता था. लंबे समय तक दोनों का इसी तरह मिलनाजुलना चलता रहा. मजे की बात यह थी कि हर्ष और सपना के घर वालों में से किसी को भी उन के अवैध संबंधों के बारे में भनक नहीं लगी.

एक शादीशुदा औरत के कदम बहकते हैं तो उसे तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है. सपना अब दो नावों पर सवार थी. हर्ष सपना को ले कर गंभीर था. वह उस के साथ अलग दुनिया बसाने के सपने देखने लगा था. परेशानी तब शुरू हुई, जब हर्ष सपना से शादी करने की जिद करने लगा. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दे दी कि अगर उस ने शादी से मना किया तो वह आत्महत्या कर लेगा.

हर्ष की इस जिद से सपना की नींद उड़ गई. उस के सामने एक तरफ घर की इज्जत और मानमर्यादाएं थीं तो दूसरी तरफ हर्षदीप का समर्पण था. जिस की वजह से वह भंवर में फंस चुकी थी. इस बीच सपना का व्यवहार मनीष के प्रति काफी बदल गया था.

सपना के बदले व्यवहार पर मनीष को शक हुआ तो उस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से मनीष को पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातचीत हर्ष से होती थी. उस ने जब उस से पूछा कि वह हर्ष से इतनी देर क्यों बातें करती है तो उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. लेकिन बाद में नारमल हो कर माफी मांग प्यार जताने लगी. मनीष सपना को बहुत चाहता था, इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. यही नहीं, उस ने उसे एक महंगी कार दिलाई और खर्च के लिए एटीएम कार्ड भी दे दिया.

बकौल हर्ष, वह और सपना एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे, इसलिए किसी भी कीमत पर शादी करना चाहते थे. लेकिन मनीष इस में आड़े आ रहा था. कई बार उस ने सपना से शादी करने को कहा. लेकिन हर बार सपना शादीशुदा होने और मनीष का बहाना बना कर उस की बात टाल गई. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि सपना को पाने के लिए वह मनीष नाम के इस अड़ंगे को अपने रास्ते से हटा देगा. इस के लिए उस ने किराए के हत्यारों का सहारा लिया. भाड़े के हत्यारे कौन थे, पुलिस के पूछने पर हर्ष ने 2 लोगों के नाम बताए थे.

उन दोनों को भी पुलिस ने धर दबोचा. लेकिन किसी की हत्या की बात से वे साफ मुकर गए. वारदात के वक्त उन के मोबाइल फोन की लोकेशन भी दूसरी जगह की मिली थी. लेकिन अमीन नाम का तीसरा युवक, जो हर्ष का नौकर भी था और दोस्त भी, ने पूछताछ में बताया कि हर्ष अकसर उस से पूछता रहता था कि किसी की हत्या का सब से आसान और सुरक्षित तरीका कौन सा है, तब उस ने बताया था कि अगर किसी की हत्या अकेले की जाए तो पकड़े जाने की गुंजाइश कम रहती है.

भाड़े के हत्यारों की बात झूठी निकली तो अकेले हर्ष ने कैसे मनीष की हत्या की, इस सवाल का जवाब हालफिलहाल यही समझ में आ रहा है कि हर्ष ने मनीष की हत्या का पूरा मन बना कर 11 नवंबर, 2013 को मनीष को फोन कर के किसी बहाने से चेतक ब्रिज के पास बुलाया. उस ने 6 महीने पहले एक पिस्टल भी खरीद ली थी. पूरी तैयारी के साथ वह मोटरसाइकिल से चेतक ब्रिज पहुंच गया. मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी कर के वह मनीष की कार में पीछे की सीट पर बैठ कर बातें करने लगा. उसी दौरान हर्ष ने पहली गोली मनीष के सिर पर मारी. उस के बाद बाहर आ कर 2 गोलियां और मारीं.

मनीष की मौत हो गई तो हर्ष ने उस की लाश को बगल वाली सीट पर इस तरह से बैठाया कि देखने में वह जीताजागता इंसान लगे. ऐसा हुआ भी. चुनाव के दौरान चल रही वाहनों की भारी चैकिंग से बचने के लिए वह मनीष की लाश सहित कार को बरखेड़ा ले गया. वहां खंडहरनुमा मकान में लाश डाल कर उस के चेहरे पर ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगा दी. लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह फिर चेतक ब्रिज आ गया.

रास्ते से फोन कर के उस ने अपने नौकर अमीन को पानी ले कर बुलाया और खून के धब्बे धोए. कार में चाबी उस ने इस उम्मीद के साथ लगी छोड़ दी थी कि किसी और की नजर इस पर पड़ जाए और वह कार चुरा ले जाए. इस से कत्ल की गुत्थी और उलझ जाती.

बहरहाल ऐसा नहीं हो सका. मनीष की हत्या का राज खुल गया. हर्ष ने यह भी बताया कि मनीष की हत्या की बात सपना को मालूम थी. उस ने हत्या के लिए डेढ़ लाख रुपए भी देने का वादा किया था. एडवांस के रूप में उस ने 50 हजार रुपए दिए भी थे.

हर्ष से पूछताछ के बाद पुलिस ने सपना को भी थाने बुला लिया. उस से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने भी स्वीकार किया कि वह हर्ष से प्यार करती थी. लेकिन उस ने शादी की बात से इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि शादी के लिए वह मना करती थी तो हर्ष खुदकुशी कर लेने या मनीष की हत्या करने की धमकी देता था. उस की इस बात से वह डर जाती थी. अंत में उस ने कहा कि न तो उसे हत्या के बारे में कुछ मालूम था, न ही उस ने कोई पैसे दिए थे.

पुलिस ने हर्षदीप सलूजा, अमीन और सपना से विस्तार से पूछताछ कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. इस घटना में सब से बड़ा नुकसान इशिता का हुआ, जो मां के गुनाह की सजा अपनी मौसी के पास रह कर भुगत रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

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इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 4

नर्सिंग होम मालिकों ने रची साजिश

इधर अनुज महतो अविनाश के किसी भी मकसद को और पनपने देना नहीं चाहता था क्योंकि वह उस के लिए बेहद खतरनाक बन चुका था.

पहले रची योजना के मुताबिक 9 नवंबर, 21 को अनुज महतो ने रात 9 बज कर 58 मिनट पर पूर्णकला देवी से अविनाश को फोन करवाया और एक अहम जानकारी देने के लिए उसे अपने नर्सिंग होम बुलवाया. नर्स पूर्णकला देवी ने वैसा ही किया जैसा मालिक ने उसे करने को कहा.

नर्स पूर्णकला देवी का फोन आने के बाद अविनाश उस से मिलने फोन पर बात करते हुए अपने औफिस से पैदल ही निकल गया और अपनी बाइक वहीं छोड़ गया था. उसी समय उस की मां संगीता जब खाना खाने के लिए उसे बुलाने पहुंची तो औफिस खुला देख समझा कि यहीं कहीं बाहर गया होगा, आ जाएगा. फिर वह वापस घर लौट आई थीं.

इधर फोन पर बात करता हुआ अविनाश थाना बेनीपट्टी से 400 मीटर दूर कटैया रोड पहुंचा, जहां एक कार उस के आने के इंतजार में खड़ी थी. कार में नर्स पूर्णकला देवी सवार थी. अविनाश को देखते ही उस ने पीछे का दरवाजा खोल कर उसे बैठा लिया.

फिर वहां से सीधे अनुराग हेल्थकेयर सेंटर पहुंची, जहां पहले से घात लगाए सब से आगे वाले कमरे में अनुज महतो बैठा था. उसी कमरे में उस ने लकड़ी का मूसल भी छिपा कर रखा था, जबकि पूर्णकला ने अनुज महतो के चैंबर में लाल मिर्च का पाउडर और एक पैकेट कंडोम रखा था.

अविनाश को साथ ले कर वह सीधा चैंबर में पहुंची, जहां उस ने उपर्युक्त सामान छिपा कर रखा था. खाली पड़ी एक कुरसी पर उसे बैठने का इशरा कर भीतर कमरे में गई और जब लौटी तो उस के हाथ में पानी भरा कांच का गिलास था.

उस ने पानी अविनाश की ओर बढ़ा दिया. अविनाश ने पानी भरा गिलास नर्स के हाथों से ले कर जैसे ही अपने होठों से लगाया, फुरती से मिर्च पाउडर पूर्णकला ने उस की आंखों में झोंक दिया. मिर्च की जलन से अविनाश के हाथ से कांच का गिलास छूट कर फर्श पर गिर पड़ा और खतरे को भांप कर अविनाश आंखें मलता हुआ बाहर की ओर भागा.

तब तक मूसल ले कर कमरे में पहले से घात लगाए बैठा अनुज महतो बाहर निकला और उस के सिर पर पीछे से मूसल का जोरदार वार किया. वार इतना जोरदार था कि वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. तब तक वहां रोशन, बिट्टू, दीपक, पवन और मनीष भी आ पहुंचे.

फर्श पर गिरे अविनाश की सांसों की डोर अभी टूटी नहीं थी. वह बेहोश हुआ था. फिर उसे खींचकर चैंबर में ले जाया गया. वहां अस्पताल की चादर से अविनाश का गला तब तक दबाया गया, जब तक उस का बदन ठंडा नहीं पड़ गया. इस के बाद अनुज महतो पांचों की मदद से एक बोरे में अविनाश की लाश भर कर जिस कार से आया था, उसी कार की डिक्की में छिपा कर औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के जंगल में फेंक कर फरार हो गए.

2 दिनों बाद जब अविनाश की खोज जोर पकड़ी तो अनुज महतो सहित सभी घबरा गए कि कहीं उस की लाश बरामद न हो जाए, नहीं तो सब के सब पकड़े जाएंगे. बुरी तरह परेशन अनुज महतो 11 नवंबर की रात अपनी बाइक ले कर उड़ने चौर थेपुरा पहुंचे, जहां अविनाश की लाश फेंकी थी. उस की लाश अभी वहीं पड़ी थी. फिर क्या था, उस ने बोरे के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी और अपनी बाइक थेपुरा गांव में छोड़ कर फरार हो गया.

अपने दुश्मन अविनाश को रास्ते से हटाने के बाद अनुज महतो ने जो फूलप्रूफ योजना बनाई थी, वह फेल हो गई और आरोपी कानून के मजबूत फंदों से बच नहीं सके. वह असल ठिकाने पहुंच गए. अनुज महतो कथा लिखने तक फरार चल रहा था.

पुलिस ने नर्स पूर्णकला देवी की निशानदेही पर अनुराग हेल्थकेयर सेंटर से मिर्च से भरी डिब्बी, कंडोम का पैकेट, खून से सनी चादर और मूसल बरामद कर लिया था. जांचपड़ताल में यह पता चली थी कि अविनाश और नर्स पूर्णकला देवी के बीच मधुर संबंध थे. ये मधुर संबंध भी अविनाश की हत्या का एक वजह बनी थी.

अविनाश की हत्या के मुख्य आरोपी अनुज महतो, जो फरार चल रहा था, ने पुलिस के दबाव में आ कर 21 जनवरी, 2022 को व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां पुलिस ने 48 घंटे की रिमांड पर ले कर उस से हत्या की जानकारी जुटाई और फिर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पत्रकार अविनाश के सभी आरोपी जेल की सलाखों के पीछे कैद अपनी करनी पर पछता रहे थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 3

अपने ही इलाके बेनीपट्टी के कटैया रोड पर किराए का 5 कमरों का एक मकान ले कर उस में जयश्री हेल्थकेयर के नाम से नर्सिंग होम खोल लिया. भिन्नभिन्न इलाजों के लिए अलगअलग डाक्टरों को नियुक्त कर के नर्सिंग होम शुरू किया था. थोड़ी मेहनत से अविनाश का नर्सिंग होम चल निकला. लेकिन उस के सपनों का शीशमहल धरातल पर ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. इस की बड़ी वजह थी बेनीपट्टी में कुकुरमुत्तों की तरह नर्सिंग होम्स का पहले से संचालित होना.

दरअसल, दरजनों नर्सिंग होम उस इलाके में पहले से चल रहे थे. अच्छी जगह पर अविनाश का नर्सिंग होम खुल जाने और सब से कम पैसों में इलाज करने से बाकी के नर्सिंग होम्स की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी, जिस से सभी नर्सिंग होम संचालकों की नींद हराम हो गई थी.

वे नहीं चाहते थे कि जयश्री हेल्थकेयर चले. फिर क्या था, सभी संचालकों ने मिल कर स्वास्थ्य विभाग में झूठी शिकायत कर के उस का नर्सिंग होम बंद करवा दिया. एक साल के भीतर ही उस का नर्सिंग होम बंद हो गया. यह बात 2019 की है.

ऐसा नहीं था कि धन माफियाओं के डर से हार मान कर अविनाश ने हथियार डाल दिया हो. उस दिन के बाद से अविनाश ने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि स्वास्थ्य के नाम पर नर्सिंग होमों द्वारा गरीबों से मनमाने तरीके से की जा रही वसूली को वह ज्यादा दिनों तक चलने नहीं देगा. उन नर्सिंग होमों को भी वह बंद करवा कर दम लेगा, जिन्होंने उस के सपनों को कुचलामसला था. क्योंकि उसे पता था कि जिले के अधिकांश नर्सिंग होम अपने आर्थिक लाभ के लिए नियमकानून को ताख पर रख कर कैसे संचालित हो रहे हैं.

अवैध नर्सिंग होम्स के खिलाफ अविनाश ने उठाई आवाज

बड़ेबड़े मगरमच्छों से टकराना अविनाश के लिए आसान नहीं था. क्योंकि वह उन की ताकत को देख चुका था. उन्हें कुचलने के लिए एक ऐसे हथियार की उसे जरूरत थी, जो उसे सुरक्षा भी दे सके और दुश्मनों को मीठे जहर के समान धीरेधीरे मार भी सके.

विकास झा अविनाश का सब से अच्छा दोस्त भी था और हमदर्द भी. उस के सीने में सुलग रही आग को वह अच्छी तरह जानता था. बीएनएन न्यूज पोर्टल नाम से वह एक न्यूज चैनल भी चलाता था. शार्प दिमाग वाले अविनाश के मन में आया कि दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए क्यों न पत्रकारिता को अपना ले. फिर उस ने विकास से बात कर के बीएनएन न्यूज पोर्टल जौइन कर लिया.

पत्रकारिता का चोला ओढ़ने के बाद अविनाश बेहद ताकतवर बन गया था. खाकी वरदी से ले कर खद्दर वालों के बीच उस ने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था. धीरेधीरे वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था. अपने विरोधियों और दुश्मनों को धूल चटाने के लिए वह परिपक्व हो चुका था. उस के दुश्मनों की लिस्ट में बेनीपट्टी के 2 नर्सिंग होम अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संजय और अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के मालिक डा. अनुज महतो थे.

2019 के अगस्त महीने में अविनाश ने आरटीआई के माध्यम से दरजन भर नर्सिंग होम्स से सूचना मांगी थी, जिन के नाम अलजीना हेल्थकेयर, शिवा पाली क्लीनिक, सुदामा हेल्थेयर, सोनाली हेल्थकेयर, मां जानकी सेवा सदन, आराधना हेल्थ ऐंड डेंटल केयर क्लिनिक, जय मां काली सेवा सदन, अंशु हेल्थकेयर सेंटर, सानवी हौस्पिटल, अनन्या नर्सिंग होम, अनुराग हेल्थकेयर सेंटर और आर.एस. मेमोरियल हौस्पिटल थे.

अविनाश के इस काम से सभी नर्सिंग होम के संचालकों की भौहें तन गईं कि इस की इतनी हिम्मत कि हमें ही आंखें दिखाने लगा. उसे पता नहीं है किस से टकराने की कोशिश कर रहा है. बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. इन धन माफियाओं की गीदड़भभकी के आगे अविनाश न झुका और न ही डरा. बल्कि इन से टक्कर लेने के लिए वह डट कर खड़ा हो गया था.

काररवाई से तिलमिला गए नर्सिंग होम मालिक

अविनाश द्वारा डाली गई आरटीआई का  किसी भी नर्सिंग होम के संचालकों ने उत्तर नहीं दिया तो उस ने लोक जन शिकायत के माध्यम से इस की शिकायत ऊपर के अधिकारियों तक पहुंचा दी. अविनाश की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपर्युक्त नर्सिंग होमों की जांच की तो उन में से कई नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग के मानक पर खरे नहीं उतरे. अंतत: उन्हें स्वास्थ्य विभाग के कोप का भाजन पड़ा और उन पर ताला लगा दिया गया.

अविनाश ने पानी में रह कर मगरमच्छों से दुश्मनी मोल ले ली थी. विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए अविनाश ने जो तीर छोड़ा था, वह ठीक उस के निशाने पर जा कर लगा था. अविनाश के इस काम से खफा चल रहे सभी नर्सिंग होम संचालक आपस में एकजुट हो गए और मिल कर अविनाश को सबक सिखाने की तैयारी में जुट गए थे. इसी कड़ी में अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संतोष एक दिन अविनाश के घर जा पहुंचे.

इत्तफाक से उन की मुलाकात अविनाश के बडे़ भाई त्रिलोकीनाथ झा उर्फ चंद्रशेखर से हुई. उस समय अविनाश घर पर नहीं था, कहीं गया हुआ था.

त्रिलोकीनाथ को समझाते हुए डा. संतोष ने कहा, ‘‘तुम अपने भाई अविनाश को समझाओ कि वह जो कर रहा है, उसे तुरंत बंद कर दे. वरना जानते ही हो आए दिन सड़कों पर तमाम एक्सीडेंट होते रहते हैं. वह भी किसी दुर्घटना का शिकार हो कर कहीं सड़क किनारे पड़ा मिलेगा. फिर मत कहना कि मैं ने समझाया नहीं.’’

डा. संतोष त्रिलोकीनाथ को धमकी दे कर चला गया. त्रिलोकीनाथ जानता था कि बदले की आग में जल रहा अविनाश अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा है. उस ने संतोष की धमकी को दरकिनार कर दिया और छोटे भाई को कुछ नहीं बताया.

विरोधियों को खाक में मिलाने के लिए पत्रकार अविनाश बहुत आगे निकल चुका था. उस के आरटीआई पर 2 और नर्सिंग होमों अनन्या और अनुराग पर स्वास्थ्य विभाग की काररवाई होनी तय हो गई थी. दोनों नर्सिंग होम भी स्वास्थ्य विभाग के मानकों पर खरे नहीं उतरे थे. अनन्या के मालिक संतोष और अनुराग के मालिक अनुज महतो किसी कीमत पर अपने नर्सिंग होम बंद होने नहीं देना चाहते थे. उन के बंद होने से हाथों से लाखों रुपए की कमाई जा रही थी.

क्रोध की आग में जल रहे अनुज महतो ने अविनाश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी इस योजना में उस ने अपने नर्सिंग होम की सब से विश्वासपात्र नर्स पूर्णकला देवी के साथ रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को मिला लिया.

कहीं से इस की भनक अविनाश को मिल गई थी. 7 नवंबर को फेसबुक पर उस ने बेहद मार्मिक पोस्ट शेयर की, जिस में उस ने अपनी हत्या किए जाने की आशंका जाहिर करते हुए 15 नवंबर को ‘द गेम इज ओवर’ लिखते हुए बड़ा खेल होना पोस्ट किया था.

                                                                                                                                         क्रमशः

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 2

हत्या के विरोध में लोगों ने किया आंदोलन

बहरहाल, पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा की निर्मम हत्या के विरोध में विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का शांतिपूर्ण आंदोलन चरम पर था. उस के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ रही थी. उस से शहर की शांति व्यवस्था उथलपुथल हो चुकी थी.

इस बीच, अविनाश का पोस्टमार्टम कर के उस का पार्थिव शरीर घर वालों को सौंप दिया गया था, लेकिन घर वालों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्यारों के गिरफ्तार होने तक उस का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया.

एसपी डा. सत्यप्रकाश जानते थे कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा, शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जाएगी. उन्होंने एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल अविनाश के घर उन्हें समझाने के लिए भेजा कि अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा, उस का अंतिम संस्कार कर दें.

एसपी सत्यप्रकाश के आश्वासन पर मृतक के घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इधर अविनाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सिर में गहरी चोट लगना बताया गया था. साथ ही मौत 72 से 80 घंटे पहले होनी बताई गई.

यानी जिस दिन अविनाश रहस्यमय ढंग से गायब हुआ था, उसी दिन उस की हत्या हो चुकी थी. पुलिस ने अविनाश के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन अध्ययन किया. काल डिटेल्स में रात के 9 बज कर 58 मिनट पर आखिरी बार किसी को काल आई थी.

जब पुलिस ने अविनाश के न्यूज पोर्टल औफिस में लगे सीसीटीवी कैमरे को चैक किया तो उस समय भी फुटेज में यही समय हो रहा था जब काल रिसीव करते हुए अविनाश बाहर निकल रहा था. उस के बाद वह घर नहीं लौटा था.

बहरहाल, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर पूर्णकला देवी के नाम का निकला. पुलिस ने जब और गहराई से जांच की तो पता चला कि अनुराग हेल्थ सेंटर में काम करने वाली नर्स पूर्णकला देवी और अविनाश के बीच पिछले 3 महीने से मधुर संबंध कायम थे. पुलिस की जांच प्रेम प्रसंग की ओर मुड़ गई थी.

नर्स से मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

पुलिस की जांच तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचती, जब पूर्णकला देवी पुलिस के हाथ लगती. इधर पुलिस पर हत्यारों को गिरफ्तार करने का लगातार दबाव बना हुआ था. अखबारों ने अविनाश हत्याकांड की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर दिया था. चारों ओर पुलिस की आलोचना हो रही थी. घटना का सही ढंग से खुलासा करना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. पूर्णकला देवी के गिरफ्तार होने पर ही निर्मम हत्याकांड का खुलासा हो सकता था.

14 नवंबर, 2021 को अरेर थानाक्षेत्र के अतरौली की रहने वाली पूर्णकला देवी को पुलिस ने दबिश दे कर उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए बेनीपट्टी थाने ले आई. एसडीपीओ अरुण कुमार सिंह और थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की.

नर्स पूर्णकला देवी कोई पेशेवर अपराधी तो थी नहीं, जो घंटों पुलिस को यहांवहां भटकाती. पुलिस के सवालों के सामने उस ने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर बता दिया कि पत्रकार अविनाश हत्याकांड में उस के अलावा कई और लोग शामिल थे. उसी दिन पुलिस ने पूर्णकला देवी की निशानदेही पर बेनीपट्टी के रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई.

पांचों आरोपियों से कड़ाई से हुई पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म कुबूल लिया. उन्होंने अविनाश हत्याकांड के मास्टरमाइंड अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के संचालक डा. अनुज महतो को बताया था, जिस ने अविनाश की ब्लैकमेलिंग से त्रस्त हो कर घटना को अंजाम दिया था. घटना के बाद से ही डा. अनुज महतो फरार चल रहा था.

नीतीश कुमार ने जारी किया फरमान

खैर, अविनाश हत्याकांड की गूंज प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कानों तक पहुंच चुकी थी. उन्होंने प्रदेश के पुलिस प्रमुख को अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजने का फरमान जारी कर दिया था. पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा हत्याकांड हाईप्रोफाइल मर्डर कांड बन चुका था, इसीलिए पुलिस की आंखों से नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने आननफानन में उसी दिन शाम को पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अविनाश के हत्यारों को पेश किया और घटना की असल वजहों से रूबरू कराया. उस के बाद सभी आरोपियों को जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

25 वर्षीय अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा मूलरूप से बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थानाक्षेत्र के लोहिया चौक का निवासी था. अंबिकेश झा के 2 बेटों में वह छोटा था.

सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले अंबिकेश किसान थे. खेतीबाड़ी से इतनी आमदनी कर लेते थे कि परिवार का भरणपोषण करने के बाद कुछ बचा लेते थे. बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पानी की तरह रुपए बहाते थे. ऐसा नहीं था कि उन के दोनों बेटे अपने सामान्य परिस्थितियों को न समझते रहे हों या पैसों की कीमत न समझते हों, बल्कि वे गरीबी की भट्ठी में तप कर कुंदन बन गए थे.

दोनों बेटे त्रिलोकीनाथ और अविनाश पढ़लिख कर योग्य इंसान बनाना चाहते थे. इस के लिए दोनों ही हाड़तोड़ मेहनत करते थे. जिस तरह दोनों हाथों की सभी अंगुलियां एक समान नहीं हैं, उसी तरह अंबिकेश के दोनों बेटे एक समान नहीं थे.

अविनाश घर में सब से छोटा था, इसलिए सब का लाडला था. मांबाप से ले कर भाईबहन सभी उस पर अपना प्यार लुटाते थे. इसलिए वह थोड़ा जिद्दी भी था. जिस भी काम को करने की जिद वह ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. चाहे इस के लिए उसे बड़ी से बड़ी कुरबानी क्यों न देनी पड़े. वह पीछे नहीं हटता था.

अविनाश का नर्सिंग होम करा दिया बंद

बात साल 2018 की है. ग्रैजुएशन पूरा कर चुके अविनाश का सपना था नर्सिंगहोम खोल कर वह गरीबों की सेवा करे. इतनी ही छोटी उम्र में उस की सोच महासागर से भी गहरी थी क्योंकि वह गरीबी अपनी आंखों से देख चुका था. इसलिए वह नहीं चाहता था कि कोई भी गरीब पैसों के अभाव में इलाज के लिए दम तोड़े.

                                                                                                                                           क्रमशः

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 1

रात के साढ़े 10 बज रहे थे. बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली संगीता देवी बेटे अविनाश को ढूंढती हुई दूसरे मकान पहुंची, जहां उस ने न्यूज पोर्टल का अपना औफिस बना रखा था. यहीं बैठ कर वह न्यूज एडिट करता था. लेकिन अविनाश अपने औफिस में नहीं था. दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुले हुए थे. कमरे में ट्यूबलाइट जल रही थी और बाइक बाहर खड़ी थी. संगीता ने सोचा कि बेटा शायद यहीं कहीं गया होगा, थोड़ी देर में लौट आएगा तो खाना खाने घर पर आएगा ही.

लेकिन पूरी रात बीत गई, न तो अविनाश घर लौटा था और न ही उस का मोबाइल फोन ही लग रहा था. उस का फोन लगातार बंद आ रहा था. मां के साथसाथ बड़ा भाई त्रिलोकीनाथ झा भी यह सोच कर परेशान हो रहा था कि भाई अविनाश गया तो कहां? उस का फोन लग क्यों नहीं रहा है? वह बारबार स्विच्ड औफ क्यों आ रहा है?

ये बातें उसे परेशान कर रही थीं. फिर त्रिलोकीनाथ ने अविनाश के सभी परिचितों के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा तो सभी ने ‘न’ में जवाब दिया. उन सभी के ‘न’ के जवाब सुन कर त्रिलोकीनाथ एकदम से हताश और परेशान हो गया था और मांबाप को भी बता दिया कि अविनाश का कहीं पता नहीं चल रहा है और न ही फोन लग रहा है.

पता नहीं कहां चला गया? बड़े बेटे का जवाब सुन कर घर वाले भी परेशान हुए बिना नहीं रह सके. यही नहीं, घर में पका हुआ खाना वैसे का वैसा ही रह गया था. किसी ने खाने को हाथ तक नहीं लगाया था. अविनाश के अचानक इस तरह लापता हो जाने से किसी का दिल नहीं हुआ कि वह खाना खाए.

पूरी रात बीत गई. घर वालों ने जागते हुए पूरी रात काट दी. कभीकभार हवा के झोंकों से दरवाजा खटकता तो घर वालों को ऐसा लगता जैसे अविनाश घर लौट आया हो. यह बात 9 नवंबर, 2021 बिहार के मधुबनी जिले की लोहिया चौक की है.

अगली सुबह त्रिलोकीनाथ दरजन भर परिचितों को ले कर बेनीपट्टी थाने पहुंचे. थानाप्रभारी अरविंद कुमार सुबहसुबह कई प्रतिष्ठित लोगों को थाने के बाहर खड़ा देख चौंक गए. उन में से कइयों को वह अच्छी तरह पहचानते भी थे. वे छुटभैए नेता थे. वह कुरसी से उठ कर बाहर आए और उन के सुबहसुबह थाने आने की वजह मालूम की. इस पर लिखित तहरीर उन की ओर बढ़ाते हुए त्रिलोकीनाथ ने छोटे भाई के रहस्यमय तरीके से गुम होने की बात बता दी.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने जब सुना कि बीएनएन न्यूज पोर्टल के चर्चित पत्रकार और जुझारू आरटीआई कार्यकर्ता अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा से मामला जुड़ा है तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने तहरीर ले कर आवश्यक काररवाई करने का भरोसा दिला कर सभी को वापस लौटा दिया.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने मुखबिरों को भी अविनाश की खोजबीन में लगा दिया था. अरविंद कुमार ने साथ ही साथ इस मामले की जानकारी एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह और एसपी डा. सत्यप्रकाश को भी दे दी थी ताकि बात बनेबिगड़े तो अधिकारियों का हाथ बना रहे.

अविनाश को गुम हुए 4 दिन बीत चुके थे. लेकिन उस का अब तक कहीं पता नहीं चल सका था. बेटे के रहस्यमय ढंग से गायब होने से घर वालों का बुरा हाल था. 3 दिनों से घर में चूल्हा तक नहीं जला था. अब भी घर वालों को उम्मीद थी कि अविनाश कहीं गया है, वापस लौट आएगा. इसी बीच उन के मन में रहरह कर आशंकाओं के बादल उमड़ने लगते थे जिसे सोचसोच कर उन का पूरा बदन कांप उठता था.

झुलसी अवस्था में मिली पत्रकार की लाश

बहरहाल, 12 नवंबर, 2021 की दोपहर में अविनाश के बड़े भाई त्रिलोकीनाथ को एक बुरी खबर मिली कि औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के सुनसान बगीचे में बोरे में जली हुई एक लाश पड़ी है, आ कर देख लें. लाश की बात सुनते ही त्रिलोकीनाथ का कलेजा धक से हो गया. बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर खुद को संभाला, लेकिन घर वालों को भनक तक नहीं लगने दी. अलबत्ता उस ने इस की जानकारी बेनीपट्टी के थानाप्रभारी अरविंद कुमार को दे दी और साथ में मौके पर चलने को कहा.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार टीम के साथ  त्रिलोकीनाथ को ले कर उड़ने चौर धेपुरा पहुंचे, जहां जली हुई लाश पाए जाने की सूचना मिली थी. चूंकि वह क्षेत्र औंसी थाने में पड़ता था, इसलिए इस की सूचना उन्होंने औंसी थाने के प्रभारी विपुल को दे कर उन्हें भी घटनास्थल पहुंचने को कह दिया था. सूचना पा कर थानाप्रभारी विपुल भी मौके पर पहुंच चुके थे.

लाश प्लास्टिक के अधजले कट्टे में थी. लग रहा था कि लाश वाले उस कट्टे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगाई गई थी. जिस से कट्टे के साथ लाश काफी झुलस गई थी. चेहरे से वह पहचानने में नहीं आ रही थी. थानाप्रभारी अरविंद ने त्रिलोकीनाथ को लाश की शिनाख्त के लिए आगे बुलाया.

लाश के ऊपर कपड़ों के कुछ टुकड़े चिपके थे और उस के दाएं हाथ की मध्यमा और रिंग फिंगर में अलगअलग नग वाली 2 अंगूठियां मौजूद थीं. कपड़ों के अवशेष और अंगूठियों को देख कर त्रिलोकीनाथ फफकफफक कर रोने लगा. उसे रोता हुआ देख पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतक उस का भाई अविनाश है, जो पिछले 4 दिनों से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था.

अब क्या था, जैसे ही अविनाश की लाश पाए जाने की जानकारी घर वालों को हुई, उन का जैसे कलेजा फट गया. घर में कोहराम मच गया और रोनाचीखना शुरू हो गया. इस के बाद तो पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की हत्या की खबर देखते ही देखते जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैल गई थी. अविनाश की हत्या की खबर मिलते ही मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई. उस के समर्थकों के दिलों में आक्रोश फूटने लगा थे. समर्थक उग्र हो कर आंदोलन की राह पर उतर आए.

13 नवंबर को अविनाश की निर्मम हत्या के विरोध में शाम के वक्त विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बेनीपट्टी बाजार की मुख्य सड़क पर कैंडल मार्च निकाल कर हत्यारे को फांसी देने, परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देने और हत्याकांड की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग को ले कर प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की. सभी लोग कैंडल मार्च के माध्यम से विरोध प्रकट करते हुए डा. लोहिया चौक से अनुमंडल रोड तक सड़क पर नारेबाजी करते रहे.

कैंडल मार्च भाकपा नेता आनंद कुमार झा के नेतृत्व में शुरू हुआ. वहां जनकल्याण मंच के महासचिव योगीनाथ मिश्र, कांग्रेसी नेता विजय कुमार मिश्र, भाजपा नेता विजय कुमार झा, मुकुल झा और बीजे विकास सहित तमाम लोग मौजूद थे.

एक ओर जहां नेता कैंडल मार्च निकाल कर प्रशासन पर दबाव बना रहे थे तो वहीं दूसरी ओर झंझारपुर प्रैस क्लब के सदस्यों ने ललित कर्पूरी स्टेडियम में एक आपात बैठक कर इस पूरे घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की.

                                                                                                                                          क्रमशः 

प्रेमिका और पत्नी के बीच मौत का खेल

इसी साल मार्च और अप्रैल महीने में महाराष्ट्र में जिस प्रकार से 5 शिवसेना तालुका उप प्रमुखों और नगर सेवकों की हत्याएं हुई थीं, उस से राजधानी मुंबई और उस से सटे ठाणे जनपद के पुलिस अधिकारियों की नींद उड़ गई थी. शिवसेना महाराष्ट्र राज्य की एक बड़ी और जानीमानी पार्टी है.

इन दो महीनों में शिवसेना के 5 नेताओं की हत्या के मामले को राज्य सरकार के गृह विभाग ने भी गंभीरता से लिया था. इन मामलों में से कुछ को तो स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने सुलझा लिया था. पर कुछ शेष थे. इन में से एक मामला शिवसेना के शाहपुर तालुका उपप्रमुख और नगर सेवक शैलेश निमसे की हत्या का भी था.

पुलिस ने शिवसेना के अन्य नेताओं की हत्या के जो मामले खोले थे उन में वजह उन की स्वयं की दुश्मनी, बिजनैस, प्रौपर्टी और रंगदारी की बात सामने आई थी. लेकिन क्राइम ब्रांच ने जब नगर सेवक और ताल्लुका उपप्रमुख शैलेश निमसे की हत्या का मामला खोला तो लोग स्तब्ध रह गए.

घटना 20 अप्रैल, 2018 की थी. थाणे जनपद के भिवड़ी तालुका गणेशपुरी पुलिस थाने में उस समय अफरातफरी मच गई थी, जिस समय चिनचेली गांव के काशीनाथ पाटिल ने थाने आ कर ड्यूटी पर तैनात पीआई शेखर डोबे को यह खबर दी कि देवचोले परिसर की सीमा से लगे दाल्या माला शिखर की पहाडि़यों की झाडि़यों के बीच एक व्यक्ति का झुलसा हुआ शव पड़ा है.

उस समय दिन के यही कोई 10 बज रहे थे. पीआई शेखर डोबे ने पाटिल की इस सूचना को गंभीरता से लिया और मामले की जानकारी थानाप्रभारी के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम को देने के बाद पुलिस टीम ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. जिस समय पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची थी उस समय तक घटना की खबर पूरे इलाके में भी फैल गई थी. देखते ही देखते घटनास्थल पर काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया.

युवक का शव अधजली अवस्था में पड़ा था. वह एक मजबूत कदकाठी वाला था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि उस की हत्या कहीं और करने के बाद यहां ला कर लाश को जलाने की कोशिश की गई होगी ताकि लाश की शिनाख्त न हो सके. पीआई शेखर डोबे अभी अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि मामले की सूचना पा कर थाणे के डीसीपी प्रशांत कदम, एसीपी कृष्णकांत काटकर भी मौके पर पहुंच गए. उन के साथ फोरेंसिक टीम के अधिकारी भी थे.

फोरेंसिक टीम के काम खत्म होने के बाद डीसीपी प्रशांत कदम और एसीपी कृष्णकांत काटकर ने शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर आपस में विचार विमर्श किया. मामले की तफ्तीश के विषय में पीआई शेखर डोबे को आवश्यक निर्देश दे कर वह वहां से अपने औफिस लौट गए.

इस के बाद पीआई शेखर डोबे ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन कोई भी उस लाश को नहीं पहचान सका. यह साबित हो गया था कि मृतक उस इलाके का नहीं है. पुलिस को घटनास्थल से भी कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिस से शव की शिनाख्त और तफ्तीश में कोई मदद मिल सके.

शेखर डोबे ने घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भेज दिया. थाने लौट कर उन्होंने काशीनाथ पाटिल के बयान पर अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की तफ्तीश अपने हाथों में ले ली.

लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि मृतक की शिनाख्त के बिना तफ्तीश कैसे आगे बढ़ाई जाए, दूसरे घटनास्थल से भी कोई सूत्र नहीं मिला था मगर उन्हें केस की जांच तो करनी ही थी. इसलिए उन्होंने जिले के सभी थानों में अज्ञात युवक की लाश बरामद होने का मैसेज वायरलैस से प्रसारित कर दिया था. साथ ही यह भी जानने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में उस हुलिए के युवक की कोई गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. इस कोशिश के बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली.

तफ्तीश जटिल थी लेकिन पुलिस टीम निराश नहीं हुई. इस से पहले कि पुलिस तफ्तीश की कोई दूसरी रूप रेखा तैयार करती टीम को एक अहम जानकारी मिली. पुलिस को पता चला कि घटनास्थल से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर उसी दिन से हुंडई की एक सोनाटा इंबेरा कार लावारिश स्थित में  खड़ी है, जिस दिन पुलिस ने वह अज्ञात व्यक्ति की लाश बरामद की थी.

क्या कार से मृतक का कोई संबंध हो सकता है, यह सोच कर पीआई शेखर डोबे उस कार का निरीक्षण करने पहुंच गए. उन्होंने जब उस कार के पेपर चेक किए तो वह कार शिवसेना के शाहपुर तालुका उपप्रमुख और नगरसेवक शैलेश निमसे की निकली जो अधई गांव के रहने वाले थे.

पुलिस टीम जब शैलेश के घर पहुंची तो उन की पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली ने बताया कि उस रात करीब एक बजे पति के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन रिसीव करने के बाद वह कार ले कर निकल गए थे. जाते समय वह दरवाजे को बाहर से ही बंद कर गए थे. वह कहां गए और क्यों गए थे इस विषय में उसे कोई जानकारी नहीं है. पुलिस ने साक्षी को अस्पताल ले जा कर वह अधजला शव दिखाया तो वह शव को देखते ही दहाड़े मार कर रोने लगी. इस से पुलिस समझ गई कि मृतक साक्षी का पति ही है.

साक्षी से पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि मृतक शैलेश निमसे उस का पति था और वह शिवसेना का शाहपुर तालुका का उपप्रमुख और नगर सेवक था. जैसे ही शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शैलेश निमसे की हत्या की जानकारी मिली, वह पुलिस मुख्यालय के सामने इकट्ठे होने लगे. उन्होंने हत्यारे की गिरफ्तारी और शिवसेना के नेताओं की सुरक्षा की मांग को ले कर नारेबाजी शुरू कर दी.

मामले को तूल पकड़ते देख कर पुलिस आयुक्त, पुलिस उपायुक्त और एसीपी तुरंत प्रदर्शनकारियों के बीच पहुंच गए. अधिकारियों ने जैसेतैसे कर के प्रदर्शन कर रहे शिवसैनिकों को समझाया. उन्होंने उन्हें भरोसा दिया कि इस केस की जांच क्राइम ब्रांच से करा कर जल्द ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. तब कहीं जा कर प्रदर्शनकारी शांत हुए.

इस के बाद पुलिस कमिश्नर ने इस केस को सुलझाने के लिए क्राइम ब्रांच के सीनियर पीआई व्यंकट आंधले के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में सहायक पीआई प्रमोद बड़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, बजरंग राजपूत, विशाल वायकर, हेड कांस्टेबल अशोक पाटिल, विजय ढेगरे और मनोज चव्हाण को शामिल किया गया.

क्राइम ब्रांच की टीम ने कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जांच की लेकिन शैलेश निमसे के मामले में राजनैतिक, प्रौपर्टी, आपसी रंजिश आदि का मामला नजर नहीं आया. तब क्राइम ब्रांच ने शैलेश के घर से ही जांच की शुरुआत की.

घर की कुंडली खंगालने पर पता चला कि शैलेश निमसे के किसी महिला के साथ अवैध संबंध थे. जिस की वजह से शैलेश की अपनी पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली से अकसर लड़ाई होती रहती थी. वह उस के साथ मारपीट करता था. इस बात की जब गहराई से जांच की गई तो शैलेश की पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली पर पुलिस को शक होने लगा. लेकिन मामला एक सभ्य और सम्मानित परिवार से संबंधित था इसलिए पुलिस ने बिना किसी पुख्ता सबूत के उस पर हाथ डालना ठीक नहीं समझा.

दूसरी ओर एपीआई प्रमोद बड़ाख ने शैलेश निमसे के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स व सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को जांचा तो प्रमोद बबन लुटे नाम के एक शख्स की स्थिति संदिग्ध नजर आई. यह जानकारी उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर एपीआई ने प्रमोद बबन लुटे को थाने बुलवा लिया. उस से शैलेश की हत्या के बारे में मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की और उस के सामने फोन की काल डिटेल्स व सीसीटीवी फुटेज रखी तो उस के होश उड़ गए. ऐसे में उस के सामने अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा और कोई दूसरा चारा नहीं था. लिहाजा वह टूट गया और अपना अपराध स्वीकार करते हुए शैलेश की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली.

प्रमोद लुटे के बयान के आधार पर पुलिस ने उसी समय शैलेश निमसे की पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली को भी पति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. मजे की बात यह थी कि साक्षी के चेहरे पर अपने पति की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं था. उसने बिना किसी दबाव के पति की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया.

43 वर्षीय शैलेश निमसे एक संभ्रांत परिवार का युवक था. वह अपने परिवार के साथ ठाणे जनपद के तालुका शाहपुर के अधई गांव में रहता था. मांबाप की अकेली संतान होने के कारण उस का परिवार में कुछ ज्यादा ही प्यारदुलार था. ज्यादा प्यार के कारण वह पढ़लिख भी नहीं सका.

उस की दिलचस्पी नेतागिरी में अधिक थी. स्कूल छोड़ने के बाद वह पूरी तरह से शिवसेना पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता बन गया था. इस के बाद उस की इलाके में धाक बन गई थी, जिस के चलते वह अपना अवैध काम भी करने लगा था. नेतागिरी से उसे कमाई होने लगी तो वह पार्टी को भी चंदे के रूप में मोटी रकम देने लगा. यही कारण था कि वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के काफी करीब आ गया था. तब पार्टी ने उसे शाहपुर का तालुका का उपप्रमुख और नगर सेवक बना दिया था.

करीब 15 साल पहले शैलेश की शादी साक्षी उर्फ वैशाली से हुई थी. उस का अच्छा स्वभाव था. वह शैलेश निमसे को बहुत प्यार करती थी. वक्त के साथ वह 3 बच्चों की मां भी बन गई थी. शादी के 10 सालों तक तो शैलेश ने अपने परिवार का काफी ध्यान रखा. लेकिन 2013 में उस के जीवन में एक ऐसी लड़की ने प्रवेश किया कि उस के परिवार की नींव हिल गई.

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जो शैलेश अपने परिवार के बिना एक क्षण नहीं रह सकता था वह धीरेधीरे अपने परिवार से दूरियां बनाने लगा. वह न तो पत्नी से ठीक तरह से बात करता और न ही बच्चों को प्यारदुलार करता था. धीरे धीरे उस ने घर में भी आना कम कर दिया तो साक्षी परेशान हो उठी.

पहले तो साक्षी को लगा कि पति को कोई पार्टी का तनाव या परेशानी होगी जिस से वह बच्चों और उसे समय नहीं दे पा रहे हैं. लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो साक्षी के होश उड़ गए. साक्षी ने पहले शैलेश को समझाने और मनाने की कोशिश की, उस ने अपने और बच्चों के भविष्य का वास्ता दिया.  लेकिन शैलेश पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

दलदल में डूबे शैलेश ने अपनी पत्नी और बच्चों की बातों को नजरअंदाज करते हुए अपनी प्रेमिका को रहने के लिए फ्लैट दे दिया. यह सब जान कर साक्षी के धैर्य का बांध टूट गया. अब आए दिनों उस की प्रेमिका को ले कर घर का माहौल खराब होने लगा. घर में लड़ाईझगड़े होने शुरू हो गए थे.

इस का नतीजा यह हुआ कि शैलेश ने अपनी पत्नी साक्षी को तलाक दे कर अपनी सारी प्रौपर्टी से बेदखल कर देने का मन बना लिया. इस के लिए उस ने साक्षी को धोखे में रख कर उस से तलाक के पेपरों पर हस्ताक्षर भी करा लिए. ताकि अपनी सारी प्रौपर्टी अपनी प्रेमिका को दे सके.

पति के इस चक्रव्यूह की जानकारी जब साक्षी को हुई तो उस के पैरों के नीचे की जैसे जमीन सरक गई. उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. अगर पति ने ऐसा किया तो वह फिर क्या करेगी. वह अपने छोटेछोटे बच्चों को ले कर कहां जाएगी. उस के और बच्चों के भविष्य का क्या होगा.

इस के लिए उस ने पति को फिर समझाया. उस के सामने रोई, गिड़गिड़ाई, लेकिन शैलेश को बच्चों और पत्नी पर कोई दया नहीं आई. वह अपने फैसले पर अटल रहा. बल्कि उस ने पत्नी को घर छोड़ कर जाने की तारीख भी बता दी थी. पति का यह निर्णय जान कर साक्षी उर्फ वैशाली ने अपना आपा खो दिया और उस ने अपने पति शैलेश निमसे के प्रति एक खतरनाक फैसला कर लिया. उस ने बेवफा पति को सजा देने की योजना बना डाली.

जिस दिन शैलेश पत्नी और बच्चों को अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर अपनी प्रेमिका के साथ रहने को जाने वाला था. उस से एक दिन पहले ही साक्षी ने अपने फैसले के अनुसार पति को सदासदा के लिए नींद के आगोश में भेज दिया. इस में उस का साथ शैलेश के एक किराएदार प्रमोद बबन लुटे ने दिया था.

दरअसल पति के निर्णय से आहत साक्षी को पति से सख्त नफरत हो गई थी. अपनी दर्दभरी कथा जब उस ने अपने यहां रहने वाले किराएदार प्रमोद लुटे को सुनाई तो वह उस की मदद करने के लिए तैयार हो गया. पर इस के लिए उस ने साक्षी के सामने पैसों की मांग रखी. जो साक्षी उसे देने के लिए तैयार हो गई. डेढ़ लाख रुपए की सुपारी लेने के बाद प्रमोद बबन लुटे अपने 2 साथियों को साथ ले कर शैलेश की हत्या की रूप रेखा तैयार करने में जुट गया. अपनी तैयारी पूरी करने के बाद प्रमोद ने इस की जानकारी साक्षी को भी दे दी थी.

19 अप्रैल, 2018 को अपनी मौत से अनभिज्ञ शैलेश जब अपने घर पर आया तो बहुत खुश था. उस ने साक्षी से कहा कि वह आज की रात और इस घर में रह ले. कल सुबह ही वह उसे और उस के बच्चों के साथ इस घर और अपनी पूरी प्रौपर्टी से बेदखल कर के वह अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए चला जाएगा.

लेकिन उसे क्या पता था कि कौन घर छोड़ कर जाएगा. प्रेमिका के साथ रहने का सपना उस का सपना ही रह जाएगा. साक्षी ने रोजाना की तरह पति को शाम का खाना परोस कर दिया. खाना खाने के बाद उस ने साक्षी की तरफ नफरत से देखा और सो गया. उस के सो जाने के बाद साक्षी उस का कमरा खुला छोड़ कर दूसरे कमरे में सोने के लिए चली गई. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उसे प्रमोद लुटे के आने का इंतजार था.

रात करीब एक बजे जब प्रमोद लुटे के आने की आहट हुई तो साक्षी ने उठ कर घर का मेन दरवाजा खोल दिया. प्रमोद लुटे अपने 2 साथियों के साथ एक मोटरसाइकिल से आया था. नींद में सोए शैलेश की उन लोगों ने गला दबा कर हत्या कर दी. शैलेश की हत्या करने के बाद तीनों ने शव को उठा कर के उस की हुंडई सोनाटा इंबेरा कार की डिक्की में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए प्रमोद लुटे अपने एक साथी के साथ गणेशपुरी पुलिस थाने की सीमा में ले गया.

शव को झाडि़यों में डाल कर उन्होंने उस के ऊपर पेट्रौल डाला और आग लगा दी. इस के बाद उस की कार को घटनास्थल से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ले जा कर लावारिश हालत में छोड़ कर वे फरार हो गए. लाश ठिकाने लगाने की जानकारी प्रमोद ने साक्षी को भी दे दी थी.

अभियुक्तों ने पुलिस से बचने की लाख कोशिश की लेकिन क्राइम ब्रांच अधिकारियों की नजर से अधिक दिनों तक फरार नहीं रह सके. 24 अप्रैल, 2018 को क्राइम ब्रांच ने प्रमोद बबन लुटे और शैलेश की पत्नी साक्षी निमसे को अपनी गिरफ्त में ले लिया. दोनों से विस्तृत पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच ने उन्हें आगे की तफ्तीश के लिए गणेशपुरी पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया.

गणेशपुरी पुलिस ने उन के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें तलोजा जेल भेज दिया. कथा लिखने तक इस हत्याकांड में शामिल 2 अन्य अभियुक्तों का पुलिस पता नहीं लगा सकी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित