पुलिस ने मुन्ना को दिल दहला देने वाली यातनाएं दे कर जुर्म कबूल करवा लिया कि उस के सोनू व उस की 10 वर्षीय बेटी दिव्या से नाजायज संबंध थे. दिव्या के रेप व मर्डर की बात कबूल करा कर उसे कानपुर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. लेकिन पुलिस की इस कहानी को सोनू भदौरिया ने सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि मुन्ना बेगुनाह है. पुलिस ने उसे झूठा फंसाया है. मीडिया वालों ने मुन्ना लोध की गिरफ्तारी पर संदेह जता कर छापा तो पुलिस तिलमिला उठी.
सोनू भदौरिया व उस की बेटी दिव्या के चारित्रिक हनन तथा मुन्ना लोध को झूठा फंसाने को ले कर शहर की जनता में फिर से गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
महिला मंच की नीलम चतुर्वेदी, अनीता दुआ, पार्षद आरती दीक्षित, गीता निषाद, श्रम संगठन के ज्ञानेश मिश्रा तथा स्कूली बच्चों ने जगहजगह धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिए. बड़े प्रदर्शन से पुलिस बौखला गई और उस ने प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. पुलिस ने उन पर शांति भंग करने का मुकदमा भी दर्ज कर दिया.
एसपी (ग्रामीण) लालबहादुर व सीओ लक्ष्मीनारायण की शासन में पकड़ मजबूत थी. इसी का लाभ उठा कर उन्होंने पुलिस बर्बरता कायम रखी. सोनू भदौरिया की मदद को जो भी आगे आया, पुलिस अफसरों ने उसे प्रताडि़त किया और झूठे मुकदमे में फंसा दिया. पुलिस रात में दरवाजा खटखटा कर लोगों को डराने लगी.
महिला दरोगा शालिनी सहाय सोनू भदौरिया को धमकाती कि वह केस वापस ले ले. साथ ही सोनू को शहर छोड़ कर गांव चली जाने का भी दबाव बनाया गया. वह उस की बेटी दीक्षा से कहती थी कि वह मां से कहे कि उसे शहर में नहीं गांव में जा कर रहना है.
सोनू के मकान मालिक राजन शुक्ला को भी पुलिस ने धमकाया कि वह सोनू को मकान से निकाल दे. पुलिस ने राजन शुक्ला, उन के भतीजे तथा अन्य किराएदारों को भी पूछताछ के नाम पर प्रताडि़त किया.
समाचार पत्रों ने भी निभाई भूमिका
स्थानीय समाचार पत्रों ने पुलिस की इस दमन नीति को सुर्खियों में छापना शुरू किया तो पुलिस अफसरों की भृकुटि तन गईं. उन्होंने अखबारनवीसों को चेताया कि पुलिस की छवि खराब न करें अन्यथा परिणाम अच्छा नहीं होगा.
लेकिन पुलिस की धमकी से अखबारनवीस डरे नहीं, बल्कि उन्होंने दिव्या कांड व पुलिस की दमन नीति को ले कर कानपुर शहर व प्रदेश की कानूनव्यवस्था बिगड़ने के खतरे का समाचार प्रकाशित किया.
इस के बाद यह मामला सड़क से संसद तथा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक गूंजा. सांसद राजाराम पाल ने दिव्या कांड का मामला संसद में उठाया तो कानपुर शहर के विधायकों ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को इस मामले से अवगत कराया.
राज्यपाल ने प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को चिट्ठी लिखी. इस के बाद जब यह मामला मायावती के संज्ञान में आया तो उन्होंने त्वरित काररवाई करते हुए 23 अक्तूबर, 2010 को यह मामला लखनऊ सीबीसीआईडी को सौंप दिया. यही नहीं मायावती ने दिव्या कांड को उलझाने वाले तथा आरोपियों की मदद करने वाले पुलिस अफसरों पर भी बड़ी काररवाई की.
डीआईजी प्रेम प्रकाश का शासन ने स्थानांतरण कर दिया और उन के खिलाफ जांच बैठा दी गई. एसपी (ग्रामीण) लाल बहादुर, सीओ लक्ष्मीनारायण मिश्र तथा इंसपेक्टर अनिल कुमार को तत्काल निलंबित कर उन के खिलाफ साक्ष्य छिपाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.
आखिर ऊंट आया पहाड़ के नीचे
मामला सीबीसीआईडी के हाथ में आया तो इंसपेक्टर ए.के. सिंह ने अपनी टीम के साथ बारीकी से जांच शुरू की. उन्होंने स्कूल जा कर छानबीन की और खून आदि के नमूने एकत्र किए. इस के बाद मृतका दिव्या के आंतरिक वस्त्र और स्कर्ट में मिले स्पर्म का नमूना लिया. स्पर्म ब्लड के मिलान के लिए जांच अधिकारी ए.के. सिंह ने सीएमएम कोर्ट में 13 लोगों का नमूना लेने की अरजी डाली.
अरजी मंजूर होने पर 9 नवंबर, 2010 को सीबीसीआईडी ने अदालत के आदेश पर चंद्रपाल वर्मा, मुकेश वर्मा, पीयूष वर्मा, संतोष व मुन्ना सहित 13 संदिग्धों के रक्त के नमूने सीएमएम अदालत में लिए. पीयूष, मुकेश, संतोष व चंद्रपाल का स्पर्म नमूना ले कर लखनऊ स्थित एफएसएल लैब भेजा गया. जांच में पीयूष वर्मा के स्पर्म का नमूना दिव्या के स्कर्ट से मिले स्पर्म से मेल हो गया.
सीबीसीआईडी ने अपनी जांच में पीयूष वर्मा, मुकेश वर्मा, चंद्रपाल वर्मा तथा संतोष वर्मा को मामले में दोषी ठहराया, जिस में पीयूष वर्मा को मुख्य आरोपी तथा 3 अन्य को साक्ष्य छिपाने तथा गैरइरादतन हत्या का ठहराया, जबकि मुन्ना लोध को निर्दोष बताया गया. विवेचना के दौरान सीबीसीआईडी को मुन्ना के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला.
सीबीसीआईडी ने धारा 196 (अपराध का होना न पाया जाना) के तहत कोर्ट में अरजी दी. जिस के आधार पर मुन्ना के वकील शिवाकांत दीक्षित ने कोर्ट में बहस की. अदालत ने उसे दोषमुक्त करार दे कर जेल से छोड़ने का आदेश दिया.
11 जनवरी, 2011 को सीबीसीआईडी ने डीएनए टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर पीयूष वर्मा के खिलाफ भादंवि की धारा 377, 302, 201, 109, 376(2)(एफ), 202, 511 के तहत कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. वहीं चंद्रपाल वर्मा, मुकेश वर्मा और संतोष के विरुद्ध भादंवि की धारा 304ए, 201 के तहत कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई.
आरोपियों ने अपने बचाव व जमानत के लिए कानपुर कोर्ट के चर्चित अधिवक्ता गुलाम रब्बानी को नियुक्त किया, जबकि सोनू भदौरिया ने केस को मजबूती से लड़ने के लिए अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया व संजीव सिंह सोलंकी को नियुक्त किया.
अजय सिंह ने आर्थिक रूप से कमजोर सोनू का केस नि:शुल्क लड़ा. गुलाम रब्बानी ने आरोपियों की जमानत हेतु कोर्ट में जम कर बहस की. दूसरी ओर अभियोजन पक्ष के वकील अजय सिंह ने उन के तर्कों का विरोध किया. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कोर्ट ने आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया.
इस के बाद चंद्रपाल वर्मा, मुकेश वर्मा, पीयूष व संतोष ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
हाईकोर्ट ने अंतत: 2 साल जेल में रहने के बाद 19 अप्रैल, 2012 को चंद्रपाल वर्मा, मुकेश व संतोष को जमानत दे दी. लेकिन पीयूष को जमानत नहीं मिली.
इस के बाद इस मामले की कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. सीबीसीआईडी के अधिवक्ता नागेश कुमार दीक्षित ने कोर्ट के सामने मामले को रेयरेस्ट औफ रेयर बताया और आरोपियों के लिए फांसी की सजा की मांग की.
अदालत ने खूब निभाई अपनी भूमिका
अभियोजन पक्ष ने इस मामले में 39 गवाह पेश किए. बचावपक्ष की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता गुलाम रब्बानी ने कोर्ट में 39 गवाहों से 115 पेज की लिखित बहस पेश की. वहीं जवाब में पीडि़त पक्ष (अभियोजन) की ओर से सीबीसीआईडी के वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी नागेश कुमार दीक्षित व पीडि़ता के अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया व संजीव सिंह सोलंकी ने मात्र 12 पेज की संक्षिप्त बहस में सभी तर्कों को खारिज कर दिया.
एडीजे द्वितीय ज्योति कुमार त्रिपाठी ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कहा, ‘‘बचाव पक्ष के सभी तर्क निराधार हैं. यह एक गंभीर अपराध है. ऐसे अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर की ही श्रेणी में आते हैं. ऐसे अपराध और कुकृत्य से समाज में दहशत फैलती है, इसलिए इस अपराध के अभियुक्तों को किसी भी सूरत में राहत नहीं दी जा सकती.’’
इसी के साथ ही उन्होंने दुष्कर्म और हत्या के आरोपी पीयूष वर्मा को आजीवन कारावास की सजा तथा 75 हजार रुपए का जुरमाना भरने की सजा सुनाई.
सहअभियुक्त मुकेश वर्मा व संतोष कुमार उर्फ मिश्राजी को गैर इरादतन हत्या व अपराध की सूचना न देने का दोषी मानते हुए एक साल 3 महीने की सजा तथा 21 हजार रुपए के जुरमाने की सजा दी गई. साक्ष्य के अभाव में अदालत ने चंद्रपाल वर्मा को बरी कर दिया गया. माननीय जज ने जुरमाने की आधी रकम पीडि़त पक्ष को देने का आदेश दिया.
दिव्या रेप मर्डर में फैसला आने में 8 साल का समय लगा. इस का कारण गवाहों का अधिक होना था. कभी गवाह के न आने तो कभी आने पर भी गवाही न होने के कारण तारीख पर तारीख लगती रही. यह मुकदमा 4 कोर्टों में ट्रांसफर हुआ. सुनवाई के दौरान 7 जज बदले.
अंत में 5वीं कोर्ट के एडीजे द्वितीय ज्योति कुमार त्रिपाठी ने अंतिम बहस पूरी की और फैसला सुनाया. फैसले के बाद पीयूष वर्मा को जेल भेज दिया गया.
कोर्ट के फैसले से दिव्या की मां सोनू भदौरिया खुश नहीं है. उस का कहना है कि पीयूष वर्मा को फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी. अन्य आरोपियों को भी कम सजा मिली है. वह कोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपियों को अधिक सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट की शरण लेगी और अपने अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया के मार्फत अपील करेगी.
—कथा कोर्ट के फैसले तथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित
रिपोर्ट दर्ज कर के भी मनमानी करती रही पुलिस
भारतीय ज्ञान स्थली स्कूल में मासूम छात्रा दिव्या से कुकर्म व हत्या की सूचना पा कर कल्याणपुर थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह, रावतपुर चौकी इंचार्ज शालिनी सहाय, सीओ लक्ष्मीनारायण मिश्रा, एसपी (ग्रामीण) लाल बहादुर श्रीवास्तव तथा डीआईजी प्रेमप्रकाश भी हैलट अस्पताल पहुंच गए.
उन्होंने हंगामा कर रहे लोगों को किसी तरह शांत कराया और कहा कि घटना की जांच होगी. दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा. शाम 6 बजे सोनू भदौरिया की तहरीर पर भारतीय ज्ञान स्थली स्कूल के प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा तथा उन के दोनों बेटों पीयूष वर्मा व मुकेश वर्मा के खिलाफ कुकर्म व हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.
रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस अधिकारियों ने स्कूल में छापा मारा तो वहां ताला बंद मिला. पुलिस स्कूल के पास ही रह रहे स्कूल के प्रबंधक के घर पहुंची तो प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा तथा उस के दोनों बेटे पीयूष वर्मा व मुकेश वर्मा फरार थे. घर में मौजूद महिलाओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. उन से स्कूल की चाबी ले कर स्कूल खोला गया. पुलिस ने जब स्कूल की जांच की तो वहां पर दिव्या के साथ हुई हैवानियत के सबूत मिलने शुरू हो गए.
पुलिस को स्कूल की सीढि़यों पर खून के धब्बे मिले. सीढि़यों से ऊपर बने लैब में भी खून के धब्बे थे, जिन्हें पोंछने तथा साफ करने का प्रयास किया गया था. एक कुरसी पर भी खून लगा था. इस के अलावा बाथरूम में भी खून फैला था अैर वाशबेसिन टूटा था.
स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरों से छेड़छाड़ की गई थी, वे सब बंद थे. एसपी (ग्रामीण) के आदेश पर खून के धब्बों का खून बतौर सैंपल एकत्र कर लिया गया. इस के साथ ही दिव्या के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.
भारतीय ज्ञान स्थली स्कूल का प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा शातिर दिमाग व्यक्ति था. उस की शासन प्रशासन में अच्छी पकड़ थी. उस ने जब खुद को और बेटों को फंसते देखा तो पहले ही दिन से बेटों व स्वयं को बचाने के लिए हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए. उस ने हर उस अधिकारी को प्रभाव में लेने का प्रयास किया, जो मामले की जांच कर रहा था.
हर वह सबूत मिटाने का प्रयास किया, जो उन लोगों को फंसा सकता था. वह हर उस नेता को खरीदने का प्रयास करने लगा, जो सोनू भदौरिया का साथ दे रहा था. उस ने कई ऐसे गुर्गों को भी अपने पक्ष में कर लिया था, जो सोनू भदौरिया को केस वापस लेने को धमका सकें.
दौलत के प्रभाव में लपेटा कई को
चंद्रपाल वर्मा के प्रभाव का असर यह हुआ कि घटना की शाम तक सोनू के पक्ष में खड़ी पुलिस अचानक बदल गई. पुलिस अधिकारी कहने लगे कि यह मामला दुष्कर्म का नहीं है. दिव्या की मौत बीमारी से हुई है. इस के लिए सीओ (कल्याणपुर) लक्ष्मी नारायण मिश्रा ने प्राइवेट डा. आभा मिश्रा को स्कूल में जांच के लिए बुलाया. आभा मिश्रा उन की रिश्तेदार थी.
आभा मिश्रा ने जांच में सारा मामला ही पलट दिया. डा. आभा मिश्रा ने कहा कि दिव्या गर्भवती थी. उस ने गर्भ गिराने के लिए गोलियां खाईं, जिस से ब्लीडिंग शुरू हुई. अधिक रक्तस्राव से उस की मौत हो गई. डा. आभा मिश्रा की यह बात आम लोगों के गले नहीं उतरी. इस से लोग आक्रोशित हो उठे.
लोगों के आक्रोश को देखते हुए 28 सितंबर, 2010 को 3 डाक्टरों के पैनल ने दिव्या के शव का पोस्टमार्टम किया. दिव्या की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिल दहला देने वाली थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दिव्या के साथ कुकर्म किया गया था और उस के नाजुक अंग को नाखून से नोचा गया था. डाक्टरों ने बताया कि कोई मानसिक विक्षिप्त आदमी ही ऐसी हैवानियत कर सकता है. उस का गुदाद्वार पूरी तरह से फट गया था और अत्यधिक खून बहने से उस की मौत हो गई थी.
पोस्टमार्टम हाउस में चर्चित महिला नेता पार्षद आरती दीक्षित व पार्षद गीता निषाद भी मौजूद थीं. इन महिला नेताओं ने दिव्या का शव मिलने के बाद पोस्टमार्टम हाउस के बाहर सड़क जाम कर दी और आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग कर रही थीं.
जाम की सूचना पा कर सीओ लक्ष्मीनारायण मिश्रा, इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह तथा एसपी (ग्रामीण) लालबहादुर आ गए. आते ही पुलिस ने जाम खुलवाने के लिए लाठी चार्ज कर दिया. इस लाठी चार्ज में पार्षद आरती दीक्षित, गीता निषाद तथा सोनू भदौरिया घायल हो गईं. इस के बावजूद पुलिस ने पार्षद आरती दीक्षित व गीता निषाद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.
दिव्या उर्फ दिव्या की हत्या से पहले कुकर्म करने की खबर जब कानपुर के प्रमुख समाचारपत्रों में छपी तो लोगों में क्रोध की आग भड़क उठी. लोगों का गुस्सा पुलिसिया काररवाई पर था, जो आरोपियों को बचाने में जुटी थी. देखते ही देखते पूरा शहर मासूम को न्याय दिलाने के लिए उमड़ पड़ा.
पुलिस की कार्यशैली से नाराज लोगों ने आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए कैंडिल मार्च, जुलूस और प्रदर्शन का सहारा लिया. बच्चे हों या बड़े, महिलाएं हों या बुजुर्ग हर कोई हाथों में कैंडिल और बैनर ले कर दिव्या को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतर आया.
लोगों ने लाठियां खाईं पर दिव्या को न्याय दिलाने की मुहिम कमजोर नहीं पड़ने दी. नानाराव पार्क से जुलूस निकाला गया तो माल रोड की दोनों तरफ की सड़कें लोगों की भीड़ से पट गईं.
लोग उतर आए सड़कों पर
भारी भीड़ के आगे पुलिस को सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने पड़े. राजनीतिक दल, स्कूली बच्चे, सामाजिक संगठन, व्यापारी, डाक्टर, शिक्षक, कर्मचारी संगठन, श्रम संगठन और महिला संगठन दिव्या को न्याय दिलाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे. हर घर से मासूम को न्याय दिलाने की आवाज सुनाई दे रही थी.
मोतीझील में निकाले गए कैंडिल मार्च की अगुवाई करने के लिए मुंबई से फिल्म निर्माता निर्देशक महेश भट्ट भी आए थे. इस के बाद तो पूरा शहर उमड़ पड़ा. यह कैंडिल मार्च ऐसा था, जिस में पूरे शहर को आंदोलन की चपेट में ले लिया था. सोनू भदौरिया की आर्थिक मदद हेतु भी लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगे थे. हर रोज उस के खाते में हजारों रुपए आने लगे थे.
आखिर उमड़े जनसैलाब के आगे पुलिस को झुकना पड़ा और उस ने स्कूल के प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा तथा उस के दोनों बेटों पीयूष व मुकेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. लेकिन पुलिस ने अपना खेल अभी भी बंद नहीं किया. इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह ने सोनू भदौरिया के घर के पास किराए पर रहने वाले किन्नर काजल पर जुर्म कबूल करने का दबाव डाला. उसे यातनाएं दीं. लेकिन जब बात नहीं बनी तो उसे छोड़ दिया गया.
इस के बाद पुलिस ने दिव्या की मां सोनू भदौरिया के नजदीक में रहने वाले रिक्शा चालक मुन्ना लोध को टारगेट बनाया. 6 अक्तूबर, 2010 को उसे दिव्या रेप और मर्डर केस में गिरफ्तार कर लिया गया. मुन्ना लोध मूलरूप से उन्नाव जिले के सरावां गांव का रहने वाला था.
वह अपने रिक्शे से बच्चों को स्कूल पहुंचाता था. मुन्ना लोध सोनू भदौरिया की मदद करता था. इन्हीं मधुर संबंधों को जोड़ कर एसपी (ग्रामीण) लालबहादुर श्रीवास्तव, सीओ लक्ष्मीनारायण मिश्रा व इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह ने अनोखी कहानी रच दी.
नई कहानी बनाई पुलिस ने
पुलिस की कहानी के अनुसार मुन्ना लोध के सोनू भदौरिया से अवैध संबंध थे. वह उस की बेटियों दिव्या व दीक्षा की देखभाल करता था. इसी बीच उस ने दिव्या से भी अवैध संबंध बना लिए. अवैध रिश्तों के चलते दिव्या गर्भवती हो गई.
इस की जानकारी जब मुन्ना को हुई तो वह घबरा गया और मैडिकल स्टोर से गर्भ गिराने वाली गोलियां ले आया. घटना वाले दिन उस ने दिव्या को वह गोलियां खिला दीं और स्कूल छोड़ आया. गोलियां खाने से दिव्या को ब्लीडिंग शुरू हो गई. बाद में ज्यादा खून बहने से उस की मौत हो गई.
उस दिन दिसंबर 2018 की 5 तारीख थी. वैसे तो कानपुर कोर्ट में हर रोज चहलपहल रहती है, लेकिन उस दिन अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (द्वितीय) ज्योति कुमार त्रिपाठी की अदालत में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. पूरा कक्ष लोगों से भरा था. कक्ष के बाहर भी भीड़ जुटी थी.
दरअसल उस दिन एक ऐसे मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरी मानवता को शर्मसार किया था. लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे. कोई फांसी की सजा की बात कह रहा था तो कोई आजीवन कारावास होने का अनुमान लगा रहा था.
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ज्योति कुमार त्रिपाठी ने ठीक साढ़े 10 बजे न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और कुरसी पर विराजमान हो गए. मुकदमे के 4 अभियुक्त पीयूष वर्मा, मुकेश वर्मा, चंद्रपाल वर्मा तथा संतोष कुमार उर्फ मिश्राजी कठघरे में खड़े थे. उन के आसपास पुलिस का पहरा था. उन के चेहरों पर न्याय का भय साफ झलक रहा था.
माननीय न्यायाधीश ने अंतिम बार अभियोजन व बचावपक्ष के वकीलों की बहस सुनी और अभियोजन पक्ष के गवाहों की सूची पर नजर डाली, 39 गवाह थे. फैसले की यह घड़ी आने में 8 साल का समय लग गया था.
आखिर मामला क्या था, जिस के फैसले को जानने के लिए सैकड़ों लोग अदालत पहुंचे थे. इस के लिए हमें 8 साल पहले घटी उस घटना को जानना होगा, जो बेहद हृदयविदारक थी.
उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कल्याणपुर थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है रोशननगर. इसी मोहल्ले में राजन शुक्ला के मकान में सोनू भदौरिया नाम की महिला किराए पर रहती थी. सोनू के परिवार में पति हमीर सिंह के अलावा 2 बेटियां दिव्या (10 वर्ष) तथा दीक्षा (7 वर्ष) थीं. सोनू भदौरिया माल रोड स्थित एक मौल में काम करती थी. मौल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण होता था.
सोनू भदौरिया का पति हमीर सिंह मूलरूप से मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गांव रामगढ़ का निवासी था. गांव में रह कर हमीर सिंह खेती करता था. उस की पत्नी सोनू पढ़ीलिखी महिला थी. वह अपनी बेटियों को भी पढ़ालिखा कर योग्य बनाना चाहती थी, इसलिए वह गांव छोड़ कर सन 2010 में कानपुर आ गई थी. यहां उस ने रोशन नगर निवासी राजन शुक्ला के मकान में किराए पर एक कमरा ले लिया था और बेटियों के साथ रहने लगी थी.
उस ने बेटियों के पढ़ने के लिए अच्छे स्कूल की जानकारी जुटाई तो पता चला कि गणेश नगर (रावतपुर) स्थित भारती ज्ञान स्थली स्कूल अच्छा है. उस ने इसी स्कूल में अपनी बेटियों दिव्या का दाखिला कक्षा-6 में तथा दीक्षा का कक्षा-3 में करा दिया. सोनू बच्चों को स्कूल भेज कर अपने काम पर चली जाती थी. पति से अलग रह कर भी वह बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल कर रही थी.
मालिकों ने ही स्कूल को बनाया दुष्कर्म का अड्डा
सोनू भदौरिया मिलनसार व व्यवहार कुशल महिला थी. मकान मालिक राजन शुक्ला व मकान में रहने वाले अन्य किराएदार सोनू से सहानुभूति रखते थे. सोनू के पड़ोस में रहने वाला रिक्शाचालक मुन्ना लोध सोनू की दोनों बेटियों को स्कूल से घर लाता था. सोनू के काम से वापस आने तक वही उन की देखभाल करता था.
भारती ज्ञान स्थली स्कूल के प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा धनाढ्य व्यक्ति थे. गणेश नगर में ही उन का आलीशान स्कूल व बंगला था. चंद्रपाल के 2 बेटे थे मुकेश व पीयूष. दोनों ही स्कूल के संचालन में उन की मदद करते थे. चंद्रपाल का छोटा बेटा पीयूष वर्मा अय्याश प्रवृत्ति का था. उस की कुदृष्टि खूबसूरत लेडी टीचरों व छात्राओं पर गड़ी रहती थी. कुछ तो उस की कुदृष्टि से बच निकलती थीं, पर कुछ मजबूर हो जाती थीं.
एक रोज पीयूष की नजर दिव्या पर पड़ी. पीयूष ने दिव्या के परिवार के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह सोनू भदौरिया की बेटी है जो प्राइवेट नौकरी करती है. 10 वर्षीय दिव्या को अपनी बातों में फांसने के लिए उस ने उस से बोलना बतियाना शुरू कर दिया और उस मासूम के शरीर पर नजरें गड़ाने लगा. दिव्या मासूम बच्ची थी, वह उस के कुत्सित इरादों को कैसे भांपती.
हर रोज की तरह 27 सितंबर, 2010 को सोनू भदौरिया दोनों बेटियों को स्कूल छोड़ कर अपने काम पर चली गई. मौका मिलने पर पीयूष वर्मा दिव्या को बहलाफुसला कर दूसरी मंजिल पर स्थित लैब में ले गया. लैब में पहुंचते ही उस ने दरवाजा बंद कर लिया और दिव्या के साथ अश्लील हरकतें करने लगा.
दिव्या ने विरोध किया तो उस ने उस की पिटाई कर दी. डरीसहमी दिव्या की जुबान बंद हुई तो वह उस मासूम पर बाज की तरह टूट पड़ा. उस ने मासूम बच्ची के साथ प्राकृतिक, अप्राकृतिक कुकृत्य किया.
इस दरम्यान दिव्या दर्द से चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन उस हवस के दरिंदे को उस पर जरा भी दया नहीं आई. हवस के दौरान वह इतना वहशी हो गया कि उस ने मासूम के गुप्तांग पर चोट तो पहुंचाई ही, साथ ही दांतों से उस के चेहरे को भी जख्मी कर दिया.
कर्मचारियों को भी घसीटा जुर्म में
दरिंदा बना पीयूष वर्मा तब घबराया, जब दिव्या बेहोश हो गई और उस के गुप्तांग से ब्लीडिंग होने लगी. घबराहट में पीयूष वर्मा ने स्कूल के क्लर्क संतोष कुमार उर्फ मिश्राजी को बुलाया. संतोष ने दिव्या की हालत देखी तो वह सब समझ गया. संतोष ने तत्काल स्कूल की आया परवीन व माया को बुलाया और ब्लीडिंग बंद कराने का प्रयास कराया, लेकिन दोनों ही असफल रहीं.
खून साफ करने के लिए दिव्या को बाथरूम ले जाया गया. इस के बाद माया व परवीन ने दिव्या के कपड़े बदले. बच्चों का दाखिला होते समय ड्रैस और किताबें स्कूल प्रबंधन द्वारा बेची जाती थीं. दिव्या के कपड़े खून से सन जाने के कारण उस के खून सने कपड़े उस के बैग में रख दिए गए और नई ड्रैस उसे पहना दी गई.
इस के बाद क्लर्क संतोष कुमार, माया और परवीन दिव्या को उस के घर छोड़ कर वापस लौट गए. मकान मालिक राजन शुक्ला ने दिव्या की हालत देखी तो वह घबरा गए. उन्होंने तत्काल सोनू भदौरिया को फोन कर के दिव्या की हालत की जानकारी दे दी. बेटी के बारे में सुन कर सोनू घबरा गई. वह तुरंत औफिस से घर के लिए निकल गई. सोनू घर पहुंची तो दिव्या बेहोश पड़ी थी.
राजन ने बताया कि स्कूल वाले दिव्या को इस हालत में यहां छोड़ कर बिना कुछ बताए चले गए. सोनू ने मकान मालिक राजन शुक्ला तथा 2 किराएदारों गोविंद व योगेंद्र को साथ लिया और दिव्या को इलाज के लिए कुलवंती अस्पताल ले गई. लेकिन दिव्या की हालत देख कर अस्पताल के डाक्टरों ने उसे अपने यहां भरती करने से मना कर दिया.
इस के बाद लगभग 3 बजे सोनू बेटी को ले कर लाला लाजपतराय अस्पताल (हैलट) पहुंची. वहां के डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. बेटी की मौत से सोनू बदहवास हो गई और उस के स्कूल बैग को सीने से चिपका कर रोने लगी. इसी बीच सोनू की निगाह बैग पर लगे खून के धब्बे पर पड़ी.
उस ने बैग खोल कर देखा तो उस में बेटी के खून से सने अंडरगारमेंट देख उस का माथा ठनका. उस ने बेटी के शरीर को गौर से देखा तो उस के नीचे का हिस्सा खून से सना हुआ था और खून रोकने के लिए नाजुक अंग पर पट्टी बांधी गई थी. स्कूल में बेटी के साथ हुए कुकर्म की आशंका से सोनू ने हंगामा खड़ा कर दिया. पड़ोसी भी सोनू का साथ देने लगे.