दीपक का एक दोस्त था वली, जिस के पास होंडा सिटी कार थी. दीपक पार्टी में जाने का बहाना कर के उस की कार मांग लाया. उस ने कार ला कर सुनील के घर के बाहर खड़ी कर दी. रात का खाना खाने के बाद सुनील ने रमा से बाहर घूमने जाने की बात कही तो वह चलने को तैयार हो गई.
12 नवंबर, 2013 की रात को सुनील रमा को होंडा सिटी कार में बैठा कर घूमने निकला. रमा उस वक्त काफी खुश थी. रमा को साथ ले कर सुनील चारकोप स्थित दीपक टाक के घर गया. सुनील ने उस से घूमने चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘लौंग ड्राइव पर चलेंगे.’’
इस बात पर सुनील ने कोई आपत्ति नहीं की. लौंग ड्राइव के बहाने दीपक ने 5-5 लीटर की 2 खाली कैन और नायलौन की रस्सी का एक टुकड़ा कार में रख लिया. इस के बाद वे कार ले कर जिला ठाणे की तहसील भिवंडी की ओर चल दिए.
भिवंडी रोड पर जा कर दीपक टाक ने आदर्श पैट्रोल पंप से दोनों कैन पैट्रोल से भरवा लिए. इस के बाद ड्राइविंग सीट दीपक टाक ने संभाल ली. सुनील पीछे की सीट पर बैठ गया. इस बीच रमा ने घर लौट चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘लौटने की इतनी जल्दी क्या है, इतने दिनों के बाद बाहर घूमने निकले हैं, घूमघाम कर आराम से लौटेंगे.’’
बातोंबातों में कार नासिक बाईपास रोड पर आ गई. तब तक रात के 12 बज गए थे. सडक़ सुनसान थी, सही मौका देख कर सुनील ने पीछे की सीट के पास पड़ी नायलौन की रस्सी उठाई और आगे की सीट पर बैठी रमा के गले में डाल कर तब तक कसता रहा, जब तक वह मर नहीं गई.
रमा की मौत हो चुकी थी. अब उन दोनों को उस की लाश ठिकाने लगानी थी. इस के लिए दीपक ने गाड़ी एक सुनसान जगह पर रोकी और दोनों ने रमा की लाश कार से निकाल कर सडक़ किनारे की खाई में डाल दी. इस के बाद उस पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. फिर दोनों घर लौट आए.
कांताबाई ने जब कई महीने तक रमा को सुनील के साथ नहीं देखा तो सुनील से उस के बारे में पूछताछ की. लेकिन वह कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. उस का कहना था कि रमा गर्भवती थी, इसलिए उस ने उसे विरार में अपने एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया है. इस से कांताबाई के मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगीं.
संदेह हुआ तो कांताबाई ने ओशिवारा थाने जा कर सुनील के खिलाफ बेटी को गायब करने की रिपोर्ट लिखा दी. जब सुनील को इस बात का पता चला तो गिरफ्तारी और पुलिस पूछताछ से बचने के लिए उस ने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली. इस तरह सुनील कांगड़ा ओशिवारा थाने की पुलिस के चंगुल से तो बच गया, लेकिन वह नारपोली थाने की पुलिस की गिरफ्त से नहीं बच सका.
नारपोली पुलिस के नवनियुक्त सीनियर इंसपेक्टर अनिल आकड़े ने लगभग 2 साल पुरानी फाइल को खोला और 2 साल पहले मौत के घाट उतारी गई महिला की पहचान कराई और फिर हत्यारे तक पहुंच गए. रमा का हत्यारा सुनील तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन दीपक टाक घर से फरार हो गया था. उसे पुलिस ने काफी खोजा, कई जगह दबिश दी, लेकिन वह हत्थे नहीं चढ़ा.
जब दीपक टाक का कोई पता नहीं चला तो पुलिस ने सुनील से मिलने आने वाली उस की पत्नी बिंदिया जो दीपक टाक की बहन थी, को थाने बुला कर उस का मोबाइल चैक किया. उस के मोबाइल के वाट्सऐप में दीपक टाक का फोटो मिल गया. यह भी पता चल गया कि वह अपनी बहन के संपर्क में था. पुलिस ने वह तसवीर ले कर वाट्सऐप से मुखबिरों के मोबाइल पर भेज दीं.
इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया. सुनील कांगड़ा की गिरफ्तारी के 15 दिनों बाद पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि दीपक टाक अपनी पत्नी के साथ घाटकोपर के फीनिक्स मौल में फिल्म देखने आने वाला है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी. अनिल आकड़े अपनी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे और दीपक टाक को गिरफ्तार कर लिया. 26 वर्षीय दीपक को गिरफ्तार कर के थाना नारपोली लाया गया. पुलिस ने उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर पूछताछ के लिए 7 दिनों का पुलिस रिमांड लिया.
रिमांड के दौरान उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने वह होंडा सिटी कार भी बरामद कर ली, जिस में रमा कांगड़ा की हत्या की गई थी.
सुनील कांगड़ा और दीपक टाक से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 315, 201 और 34 के तहत केस बनाया और दोनों को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल दोनों जेल में हैं. इस केस की तफ्तीश इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल कर रहे हैं.
उस ने रमा कांगड़ा हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह स्तब्ध कर देने वाली थी.
रमा धनगांवकर के पिता तभी गुजर गए थे, जब वह 4 साल की थी. पति की मौत के बाद कांताबाई धनगांवकर ने अपनी चारों बेटियों को अपने दम पर पालापोसा और पढ़ायालिखाया. कांताबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. वक्त के साथ उस ने चारों बेटियों की शादियां भी कर दीं. रमा उन की सब से छोटी बेटी थी और लाडली भी. शायद इसी वजह से वह ससुराल से ज्यादा मायके में रहती थी. इसी बात को ले कर उस के और पति के बीच मतभेद बढ़े और नौबत तलाक तक आ गई.
तलाक के बाद रमा अपनी मां के पास रहने लगी. सुनील कांगड़ा का परिवार उसी कालोनी में रहता था, जिस में धनगांवकर परिवार रहता था. दोनों के घरों के बीच करीब 2 सौ कदम की दूरी थी. सुनील कांगड़ा और रमा धनगांवकर साथसाथ खेलकूद कर बड़े हुए थे. दोनों ने महानगर पालिका के स्कूल में पढ़ाई भी साथसाथ की थी.
25 वर्षीया रमा धनगांवकर सुंदर ही नहीं, स्वभाव से चंचल भी थी. उस में कुछ ऐसा आकर्षण था कि कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. 27 वर्षीय सुनील कांगड़ा सुंदर और हृष्टपुष्ट था. उस के पिता आजाद कांगड़ा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. लेकिन नौकरी के दौरान ही उन्हें लकवा मार गया था, जिस की वजह से कंपनी ने उन्हें रिटायर कर दिया था.
सुनील की एकलौती बहन की शादी हो चुकी थी. घर में मां, पिता और छोटा भाई ही थे. छोटा भाई भी चूंकि लकवे का शिकार था, इसलिए घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी सुनील पर आ गई थी. उस ने परिवार का खर्च उठाने के लिए बीएमसी (मुंबई महानगर पालिका) में नौकरी कर ली थी.
सुनील कांगड़ा रमा से सीनियर था, लेकिन दोनों एक स्कूल में पढ़े थे. सीनियर होने के नाते सुनील पढ़ाईलिखाई में रमा की मदद किया करता था. इसी नाते दोनों के बीच बचपन से ही भावनात्मक लगाव था. दोनों एकदूसरे के घर भी आतेजाते थे. उम्र के साथसाथ दोनों का एकदूसरे के प्रति लगाव भी बढ़ता गया. पढ़ाई के बाद भी न तो दोनों का मिलनाजुलना कम हुआ और न ही भावनात्मक लगाव. जब दोनों जवान हुए तो उन का भावनात्मक लगाव प्यार में बदल गया और दोनों छिपछिप कर मिलने लगे.
जल्दी ही वह समय भी आ गया जब रमा और सुनील एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में देखने लगे. दोनों को ही ऐसा लगता था, जैसे वे बने ही एकदूसरे के लिए हैं. इस सब के चलते ही दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा ली थीं.
रमा और सुनील के बीच पक रही प्यार की खिचड़ी की भनक जब रमा की मां को लगी तो उस ने यह बात अपनी तीनों बेटियों से बताई. मां और तीनों बहनों ने मिल कर रमा को ऊंचनीच समझाया, परिवार की इज्जत का वास्ता दिया, समाज का डर दिखाया तो रमा की सोच में थोड़ा बदलाव आ गया. रमा का मन बदल गया है, यह सोच कर मां और बहनों के प्रयास से रमा की शादी दूर की एक रिश्तेदारी में कर दी गई. यह अक्तूबर, 2005 की बात है. रमा ससुराल चली गई. उस का पति भी ठीकठाक था.
सुनील ने इसे रमा की बेवफाई समझा. लेकिन धीरेधीरे उस की समझ में यह बात आ गई कि इस के पीछे रमा की कोई मजबूरी रही होगी. समय के साथ वह रमा को भूलने की कोशिश करने लगा. इस में वह काफी हद तक कामयाब भी रहा. अंतत: मई, 2007 में उस ने कांदीवली, मुंबई की बिंदिया से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ली.
बिंदिया भी सुंदर और सुशील थी. वह सुनील के साथसाथ पूरे परिवार का खयाल रखती थी. समय के साथसाथ सुनील एक प्यारी सी बच्ची का पिता भी बन गया. घरगृहस्थी सब ठीम चल रही थी कि सुनील की जिंदगी में रमा तूफान बन कर फिर आ गई.
सन 2010 में रमा अपने पति से तलाक ले कर अपनी मां के पास आ गई और वहीं रहने लगी. यह बात सुनील को पता चली तो 5 सालों से उस के सीने में दबी प्यार की चिंगारी फिर से सुलगने लगी. यही हाल रमा का भी था. चाहत चूंकि दोनों ओर थी, इसलिए जल्दी ही दोनों ने एकदूसरे से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. दोनों नजरें बचा कर साथसाथ घूमनेफिरने लगे. इतना ही नहीं, दोनों ने फिर से एक होने का सपना देखना शुरू कर दिया.
कांताबाई को पता चला तो उस ने रमा को समझाया कि सुनील शादीशुदा और एक बच्ची का पिता है, इसलिए उस से दूर रहे. लेकिन रमा ने मां की बात पर ध्यान न दे कर सन 2011 में सुनील से कोर्टमैरिज कर ली. सुनील ने इस शादी को अपनी पत्नी और परिवार से छिपा कर रखा. कुछ समय तो सब ठीक चलता रहा, लेकिन यह बात छिपी न रह सकी.
जब यह बात सुनील की पत्नी को पता चली तो घर में आए दिन झगड़ा होने लगा. एक तो घर की कलह, ऊपर से पूरे परिवार का बोझ, इस सब से सुनील परेशान रहने लगा. समस्या यह थी कि न तो वह अपने परिवार को छोड़ सकता था और न रमा को.
इसी बीच सन 2013 में जब रमा गर्भवती हो गई तो उस का मानसिक संतुलन और भी बिगड़ गया. वह नहीं चाहता था कि रमा मां बने. उस ने रमा को गर्भपात कराने के लिए समझाया, लेकिन रमा इस के लिए तैयार नहीं हुई. इस पर रमा ने सुनील को काफी डांटाफटकारा. यह बात सुनील को बहुत बुरी लगी. आने वाली संतान को ले कर सुनील और रमा के बीच विवाद इतना बढ़ा कि रमा के प्रति सुनील के मन में समाया प्यार नफरत में बदल गया. वह रमा को अपनी जिंदगी से निकाल फेंकने की बात सोचने लगा.
आखिर सुनील ने तय कर लिया कि अब वह रोजरोज की कलह से मुक्ति पा कर रहेगा. फैसला कर लेने के बाद सुनील ने चारकोप, कांदीवली में रहने वाले अपने साले यानी पत्नी बिंदिया के भाई दीपक टाक से बात की. दीपक को यह बात कुछ जमी नहीं, उस ने सुनील को आड़े हाथों लिया, साथ ही मना भी कर दिया कि वह इस मामले में उस का साथ नहीं देगा.
इस पर सुनील ने भावनात्मक कार्ड खेलते हुए कहा, ‘‘तुम समझ नहीं रहे हो दीपक, उस के जिंदा रहने से तुम्हारी बहन का भविष्य खतरे में पड़ सकता है, साथ ही बच्चों का भी.’’
दीपक टाक उस के भावनात्मक जाल में फंस कर उस का साथ देने को तैयार हो गया. उस के तैयार होते ही दोनों ने रमा को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. उन की योजना के अनुसार एक कार की जरूरत थी, ताकि रमा को मुंबई के बाहर ले जा कर ठिकाने लगाया जा सके.
21 नवंबर, 2013 की सुबह के 6 बजे थे. मुंबई से सटे ठाणे जिले की तहसील भिवंडी के नारपोली थाने के असिस्टैंट इंसपेक्टर माले की नाइट ड्यूटी खत्म होने वाली थी. वह चार्ज दे कर घर जाने की सोच ही रहे थे कि ओवली गांव के रहने वाले कैलाश पाटिल थाने आ पहुंचे. पाटिल काफी घबराए हुए थे. उन्होंने माले को बताया, ‘‘मैं मौर्निंग वाक के लिए जा रहा था तो नासिक बाईपास रोड के किनारे वाली पाइप लाइन के पास खाई में एक महिला की अधजली लाश पड़ी दिखाई दी.’’
कैलाश पाटिल की सूचना की गंभीरता को देखते हुए असिस्टैंट इंसपेक्टर माले ने इस मामले से अपने सीनियर इंसपेक्टर डी.वी. पाटिल को अवगत कराया, साथ ही कंट्रोल रूम को भी यह सूचना दे दी. डी.वी. पाटिल ने माले से इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा और खुद इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल व पुलिस टीम को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.
जब पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची तो वहां काफी भीड़ एकत्र थी. पुलिस ने भीड़ को हटा कर लाश और घटनास्थल की जांच की. वहां पड़ी लाश 25-26 साल की महिला की थी. लाश को कुछ इस तरह से जलाया गया था कि मृतका को पहचाना न जा सके. उस के दोनों हाथ और पांव चिपके हुए थे. लाश के पास ही नायलौन की एक मजबूत रस्सी पड़ी थी. यह बात साफ थी कि पहले मृतका का गला घोंटा गया था और बाद में लाश पर पैट्रोल डाल कर जला दिया गया था.
पुलिस ने क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को घटनास्थल पर बुला कर सबूत ढूंढने की कोशिश की, साथ ही घटनास्थल का भी बारीकी से निरीक्षण किया. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद डी.वी. पाटिल ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आईजीएम अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद इस मामले की जांच इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल को सौंप दी.
घटनास्थल पर कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला था जिस से मृतका की पहचान हो पाती. वारदात की स्थिति से प्रकाश पाटिल ने अनुमान लगाया कि मृतका संभवत: तहसील भिवंडी की रहने वाली नहीं थी. हत्या का केस दर्ज हो चुका था. जबकि मृतका के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली थी. इस पर प्रकाश पाटिल ने कंट्रोल रूम के माध्यम से ठाणे, मुंबई और नवी मुंबई के सभी थानों को मृतका की उम्र और हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवा दिया, ताकि कहीं से कोई महिला गायब हो तो उस की सूचना मिल सके.
इस के साथ ही अगले दिन के समाचारपत्रों में घटनास्थल और मृतका का जली अवस्था का फोटो, हुलिया और उम्र के बारे में भी छपवा दिया गया. लेकिन इस का भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी, जिस में उस की मौत का कारण दम घुटने से सांस का अवरुद्ध होना बताया गया था. इस रिपोर्ट में उसे 7 माह की गर्भवती बताया गया था.
काफी कोशिशों के बाद भी पुलिस न तो मृतका का पता लगा पाई और न उस के हत्यारों का. समय के साथ यह मामला ठंडा पड़ता गया. कुछ और समय बीता तो इस केस की फाइल ठंडे बस्ते में चली गई. देखतेदेखते लगभग 2 साल बीत गए. इस बीच नारपोली पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर डी.वी. पाटिल का तबादला हो गया. उन की जगह मार्च, 2015 में नए सीनियर इंसपेक्टर आए अनिल आकड़े.
अनिल आकड़े ने जब पेंडिंग पड़े केसों की फाइलें खुलवाईं तो इस केस की फाइल भी उन के सामने आ गई. उन्होंने इस केस का अध्ययन किया. उन्हें इस में काफी संभावनाएं नजर आईं. पूरे केस को देखनेसमझने के बाद इंसपेक्टर अनिल आकड़े ने इस केस के विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल को बुला कर उन से उन की विवेचना के बारे में विस्तार से बात की. प्रकाश पाटिल से पूरी बातें जान कर अनिल आकड़े ने ठाणे के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दाभांडे और सहायक पुलिस आयुक्त चंद्रकांत जोशी से विचारविमर्श किया और इस केस की फाइल फिर से खोल दी.
इस केस की जांच के लिए सीनियर इंसपेक्टर अनिल आकड़े ने अपनी तफ्तीश की दिशा तय करने के बाद पुलिस की 2 टीमें तैयार कीं. इन टीमों में प्रकाश पाटिल के अलावा असिस्टैंट इंसपेक्टर लक्ष्मण राठौर, हैडकांस्टेबल संजय भोसले, सत्यवान मोहिते, विक्रम उदमले वगैरह को शामिल किया.
इस केस में सब से बड़ी समस्या थी मृतका की पहचान की. क्योंकि बिना उस की पहचान के तफ्तीश को आगे बढ़ाना संभव नहीं था. मृतका की पहचान के लिए पुलिस की दोनों टीमों ने अपनेअपने मुखबिरों का सहारा लिया. थोड़ा समय तो लगा, पर मेहनत रंग लाई. एक मुखबिर ने पुलिस को बताया कि जिस औरत की 2 साल पहले हत्या कर के लाश को जला दिया गया था, उस का नाम रमा सुनील कांगड़ा था और वह जोगेश्वरी पश्चिम में रहती थी. उस ने यह भी बताया कि उस की गुमशुदगी जोगेश्वरी ओशिवारा थाने में दर्ज कराई गई थी. यह गुमशुदगी उस की मां कांताबाई धनगांवकर ने दर्ज कराई थी.
यह पता चलते ही अनिल आकड़े अपनी टीम के साथ जोगेश्वरी ओशिवारा थाने जा पहुंचे. वहां उन्होंने थानाप्रभारी सुभाष खानविलकर और इस मामले के जांच अधिकारी सबइंसपेक्टर ढवले से इस संबंध में विस्तार से बात की. उन्होंने बताया कि रमा की मां कांताबाई धनगांवकर ने अपनी बेटी की गुमशुदगी 21 मार्च, 2015 को लिखाई थी, जिस में उस ने संदेह व्यक्त किया था कि रमा को संभवत: उस के पति सुनील कांगड़ा ने मार डाला है, क्योंकि वह पिछले डेढ़ सालों से उसे रमा से नहीं मिलवा रहा था. पुलिस ने इस संबंध में सुनील से पूछताछ भी की थी, लेकिन उसे गिरफ्तार इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि उस पर कोई अभियोग नहीं बन रहा था.
पता चला कि कांताबाई धनगांवकर और सुनील कांगड़ा दोनों ही जोगेश्वरी (पश्चिम) की यूसुफ हनीफ कालोनी, आदर्शनगर में रहते थे. इस जानकारी के आधार पर अनिल आकड़े अपनी पुलिस टीम के साथ यूसुफ हनीफ कालोनी जा कर कांताबाई से मिले. पूछताछ करने पर उस ने बताया कि उस की बेटी करीब 2 सालों से गायब है. वह रमा के पति सुनील कांगड़ा से पूछती है तो वह झूठ बोल कर पीछा छुड़ा लेता है. उस ने थाने में बेटी की गुमशुदगी भी लिखाई और उस की हत्या का संदेह भी जाहिर किया, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर पाई.
पुलिस ने कांताबाई को मृतका के फोटो दिखाए, लेकिन वह चूंकि बुरी तरह जली अवस्था में थी, इसलिए कांताबाई पहचान नहीं पाई. कांताबाई से पूछताछ के बाद पुलिस टीम सुनील कांगड़ा के घर पहुंची. पता चला कि पुलिस पूछताछ और गिरफ्तारी से बचने के लिए उस ने मुंबई हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले रखी थी. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि नारपोली थानाक्षेत्र में जो लाश मिली थी, वह रमा कांगड़ा की ही थी और सुनील कांगड़ा किसी न किसी रूप में उस की हत्या से जुड़ा हुआ था.
सुनील कांगड़ा ने चूंकि हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले रखी थी, इसलिए पुलिस उस से पूछताछ नहीं कर सकती थी. इस स्थिति से निपटने के लिए पुलिस ने उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि उसे अग्रिम जमानत सितंबर, 2015 तक के लिए मिली हुई थी. इस पर पुलिस ने उस की घेराबंदी का इंतजाम कर दिया, ताकि वह फरार न हो सके.
जैसे ही उस की जमानत की अवधि समाप्त हुई, नारपोली थाने की पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उसे थाने ला कर विधिवत पूछताछ की गई तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. उस ने यहां तक कह दिया कि वह किसी रमा को नहीं जानता. लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया और अपना अपराध स्वीकार कर लिया.