इंसाफ हम करेंगे : अपनों से किया किनारा

माही बेहाल पड़ी थी. रहरह कर शरीर में दर्द उभर रहा था. पूरे शरीर पर मारपीट के निशान पड़ चुके थे. माही का पति निहाल सिंह शराब पीने के बाद बिलकुल जानवर बन जाता था, फिर तो उसे यह भी ध्यान नहीं रहता था कि उस के बच्चे अब बड़े हो चुके हैं.

जब कभी उस की बेटी रूबी मां को बचाने आती तो वह भी पिट जाती. 2 दिन पहले जब निहाल सिंह शराब पी कर घर में गालियां देने लगा, तो माही ने उसे समझाया, ‘बस करो, अब खाना खा लो. सुबह काम पर भी जाना है.’

निहाल सिंह चीखते हुए बोला, ‘अब तुम रोकोगी मुझे. अभी बताता हूं तुझे,’ फिर तो उस का हाथ न थमा. आखिर रूबी दोनों के बीच में आ गई और उस का हाथ पकड़ कर झटकते हुए बोली, ‘पापा, अब बस कीजिए. गलती तो आप की है, मम्मी को क्यों मार रहे हो?’

इस के बाद रूबी ने मां को उठाया और दूसरे कमरे में ले गई. उस के जख्मों पर दवा लगाई और बोली, ‘मम्मी, बहुत हो गया अब. पापा नहीं सुधरेंगे.’

दर्द सहती माही बोली, ‘हां रूबी, मैं भी अब थक चुकी हूं. मुझे समझ में आ चुका है. अब मैं इन्हें कभी माफ नहीं करूंगी. तुम बुलाओ पुलिस को, अब मैं दूंगी इन के खिलाफ बयान.’

रूबी ने झट से पुलिस का नंबर डायल किया और सारी घटना बता दी.

माही और निहाल सिंह की लव मैरिज हुई थी. घर वालों के खिलाफ जा कर माही ने निहाल सिंह का हाथ थामा था. दोनों भारत से यूरोप आ कर बस गए थे.

माही ने जब काम करना चाहा तो निहाल सिंह ने उस से कहा, ‘तुम घर संभालो, मैं बाहर संभालता हूं.’

कुछ समय तो बहुत अच्छा बीता, मगर धीरेधीरे माही को महसूस होने लगा कि निहाल सिंह का स्वभाव बदलता जा रहा है. काम से आते ही वह शराब पीने लग जाता. तब तक बच्चे भी हो चुके थे.

निहाल सिंह अब छोटीछोटी बातों में भी माही पर शक करने लगा था. जब कभी काम का लोड बढ़ जाता, वह झल्ला कर कहता, ‘मुझ से नहीं होता इतना काम, मैं नहीं उठा सकता इतना बोझ.’

अगर माही नौकरी करने को कहती, तो वह उसे पीटने लगता. बच्चे डरते हुए मां के पीछे छिप जाते थे. वह अब थोड़े बड़े भी हो गए थे. उन का स्कूल में दाखिला कराना जरूरी हो गया था. खर्चा बढ़ गया था, तो माही ने निहाल सिंह को किसी तरह नौकरी के लिए मना लिया. वह घर का सारा काम निबटा कर ही नौकरी पर जाती और वापस आते ही बच्चों और घर को देखती.

निहाल सिंह का मन करता तो माही को प्यार करता नहीं, तो आधी रात को उसे मारपीट कर कमरे से बाहर निकाल देता. इतना सबकुछ होने के बावजूद माही निहाल सिंह का पूरा ध्यान रखती. हर काम समय से करती. सुबह उठते ही सब से पहले उस का टिफिन तैयार करती. किसी तरह उस ने निहाल सिंह को मना कर बच्चों को साथ वाले बड़े शहरों में पढ़ने के लिए भेज दिया था, ताकि वे दोनों पढ़लिख कर अच्छी नौकरियों पर लग सकें.

1-2 बार ऐसे ही किसी बात पर गुस्सा हो कर निहाल सिंह ने माही को आधी रात में घर से बाहर निकाल दिया था. माही की मौसी का बेटा इसी शहर में रहता था. वह उसे फोन करती और वह उसे ले कर अपने घर चला जाता.

फिर उस ने माही को समझाया कि ऐसे तो यह कभी नहीं सुधरेगा, तुम कब तक इस की मारपीट बरदाश्त करोगी. उस ने खुद ही पुलिस में उस की रिपोर्ट लिखवा दी.

जब पुलिस निहाल सिंह को घर से उठा कर ले गई, तब माही डर गई और उस ने भाई को रिपोर्ट वापस लेने के लिए मना लिया. जब ऐसा 2-3 बार हुआ, तो वह भी पीछे हट गया.

माही को पता था कि निहाल सिंह गुस्सैल है, पर उस के बच्चों का पिता है. वह भले ही अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं करता, मगर वह उस के लिए तो आज भी वही उस का प्यार है.

तभी एक दिन निहाल सिंह काम से आते वक्त अपने साथ एक जवान औरत को घर ले आया. माही ने उसे देखते ही निहाल सिंह से उस के बारे में पूछा कि यह कौन है तो उस ने बताया, ‘यह प्रीति है. इस का पति मेरे साथ काम करता था. ज्यादा शराब पीने से वह मर गया. मैं इस की मदद कर रहा हूं, क्योंकि उस के बीमा और पैंशन के बारे में इसे कुछ नहीं पता.’

माही भोली थी. वह बोली, ‘अच्छा है. आप इन की मदद कर रहे हो, वरना कौन बेगाने देश में किसी की मदद करता है.’

अब तो जब भी प्रीति का फोन आता, निहाल सिंह भागाभागा उस के पास पहुंच जाता.

एक दिन माही काम से जल्दी लौट आई, तो घर का दरवाजा खोलते ही बैडरूम से किसी के हंसने की आवाज आई. अंदर अंधेरा था. बिजली का स्विच औन करते ही माही की आंखें खुली रह गईं, जब उस ने उन दोनों को बैड पर देखा. शर्मिंदा होने के बजाय वे दोनों हंसने लगे. इस के बाद तो उस के सामने ही सबकुछ चलने लगा.

माही का दिल टूट चुका था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह उसे इस तरह धोखा देगा.

एक दिन माही को पास बिठा कर निहाल सिंह बोला, ‘तू हां करे, तो मैं इसे भी साथ रख लूं.’

माही चुप रही. उस ने पक्का मन बना लिया कि अब वह उस के साथ  नहीं रहेगी.

बच्चे पढ़लिख कर अब अच्छी नौकरियों पर लग चुके थे. सिर्फ छुट्टियों में ही घर आते थे. वह मां को अपने साथ चलने को कहते, मगर वह जानती थी कि निहाल सिंह बीमारी का शिकार है. उस के खानेपीने का ध्यान उस ने ही रखना है, इसलिए वह सबकुछ बरदाश्त कर के भी उसी के साथ रह  रही थी.

आजकल छुट्टियों में रूबी घर आई हुई थी. कल की हुई मारपीट के बाद माही ने रूबी को निहाल सिंह और प्रीति  के संबंधों के बारे में भी बता दिया.

रूबी को अपने पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उस ने अपने पिता के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी थी.

थोड़ी ही देर में पुलिस आ गई. रूबी और माही ने बयान दे दिया. माही की चोटें उस के साथ हुए जुल्म की साफ गवाही दे रही थी. माही ने यह भी बताया कि जब वह पेट से थी तो निहाल सिंह ने उसे बहुत बार पीटा था.

रिपोर्ट को मजबूत बनाने के लिए पुलिस ने माही की चोटों के फोटो भी खींच कर साथ लगा दिए.

पुलिस निहाल सिंह को साथ ले गई. वहां 2 दिन उसे हिरासत में रखा. फिर उस को चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया कि वह माही के आसपास भी नहीं फटकेगा. अगर उस ने माही को तंग किया, तो उस पर कार्यवाही की जाएगी और 2 साल की जेल भी हो सकती है. उसे एक अलग घर में रहने के लिए  कहा गया.

निहाल सिंह फोन कर के बारबार माही से माफी मांगने लगा. उसे पता था, माही का दिल पिघल जाता है. वह उसे अब भी प्यार करती है. मगर रूबी ने मां को साफसाफ कह दिया, ‘मम्मी इस बार अगर तुम ने पापा को माफ किया, तो मैं कभी आप से बात नहीं करूंगी.’

माही ने निहाल सिंह का फोन उठाना भी बंद कर दिया. रूबी पिता को फोन पर धमकी  देते हुए बोली, ‘आज के बाद अगर आप ने मम्मी को फोन किया, तो पुलिस आप को 2 साल के लिए जेल में डाल देगी.

‘मम्मी अब अकेली नहीं हैं. आज तक जो आप ने उन के साथ किया, उस के लिए हम तीनों आप से कोई रिश्ता नहीं रखेंगे. आज तक जो बेइज्जती मम्मी की हुई है, उस की सजा तो आप को भुगतनी पड़ेगी. मम्मी को उन के बच्चे इंसाफ दिलवाएंगे.’

पहले निहाल सिंह गिड़गिड़ाया, फिर बेशर्मी से बोला, ‘मैं भी तुम लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता. आज तक मैं ने तुम दोनों की पढ़ाई पर जो खर्चा किया वह मुझे वापस चाहिए.’

यह सुनते ही रूबी की आंखों में आंसू आ गए, उस का पिता इतना गिर सकता है उस ने कभी नहीं सोचा था, मगर फिर भी वह हिम्मत कर अपने आंसुओं को साफ करते हुए बोली, ‘पापा, कोई बात नहीं. हमारी नौकरी लग चुकी है. हम दोनों हर महीने आप को खर्चा भेज दिया करेंगे, पर अब मम्मी की और बेइज्जती बरदाश्त नहीं करेंगे,’ कहते हुए रूबी ने फोन रख दिया और माही को अपने गले से लगा लिया.

पासा पलट गया : आभा को लग गया चस्का

आभा गोरे रंग की एक खूबसूरत लड़की थी. उस का कद लंबा, बदन सुडौल और आंखें बड़ीबड़ी व कजरारी थीं. उस की आंखों में कुछ ऐसा जादू था कि उसे जो देखता उस की ओर खिंचा चला जाता. विक्रम भी पहली ही नजर में उस की ओर खिंच गया था.

उन दिनों विक्रम अपने मामा के घर आया हुआ था. उस के मामा का घर पटना से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक गांव में था.

विक्रम तेजतर्रार लड़का था. वह बातें भी बहुत अच्छी करता था. खूबसूरत लड़कियों को पहले तो वह अपने प्रेमजाल में फंसाता था, फिर उन्हें नौकरी दिलाने का लालच दे कर हुस्न और जवानी के रसिया लोगों के सामने पेश कर पैसे कमाता था. इसी प्लान के तहत उस ने आभा से मेलजोल बढ़ाया था.

उस दिन जब आभा विक्रम से मिली तो बेहद उदास थी. विक्रम कई पलों तक उस के उदास चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘क्या बात है आभा, आज बड़ी उदास लग रही हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘विक्रम, मैं अब आगे पढ़ नहीं पाऊंगी और अगर पढ़ नहीं पाई तो अपना सपना पूरा नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कैसा सपना?’’

‘‘पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होने का सपना ताकि अपने मांबाप को गरीबी से छुटकारा दिला सकूं.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘तुम बस इसे इतनी सी ही बात समझते हो?’’

‘‘और नहीं तो क्या…’’ विक्रम बोला, ‘‘तुम पढ़लिख कर नौकरी ही तो करना चाहती हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘वह तो तुम अब भी कर सकती हो.’’

‘‘लेकिन, भला कम पढ़ीलिखी लड़की को नौकरी कौन देगा? मैं सिर्फ इंटर पास हूं,’’ आभा बोली.

‘‘मैं कई सालों से पटना की एक कंपनी में काम करता हूं, इस नाते मैनेजर से मेरी अच्छी जानपहचान है. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे बारे में उस से बात कर सकता हूं.’’

‘‘तो फिर करो न…?’’ आभा बोली, ‘‘अगर तुम्हारे चलते मुझे नौकरी मिल गई तो मैं हमेशा तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

आभा विक्रम के साथ पटना आ गई थी. एक होटल के कमरे में विक्रम ने एक आदमी से मिलवाया. वह तकरीबन 45 साल का था.

जब विक्रम ने उस से आभा का परिचय कराया तो वह कई पलों तक उसे घूरता रहा, फिर अपने पलंग के सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

आभा ने एक नजर कुरसी के पास खड़े विक्रम को देखा, फिर कुरसी पर बैठ गई.

उस के बैठते ही विक्रम उस आदमी से बोला, ‘‘सर, आप आभा से जो कुछ पूछना चाहते हैं, पूछिए. मैं थोड़ी देर में आता हूं,’’ कहने के बाद विक्रम आभा को बोलने का कोई मौका दिए बिना जल्दी से कमरे से निकल गया.

उसे इस तरह कमरे से जाते देख आभा पलभर को बौखलाई, फिर अपनेआप को संभालते हुए तथाकथित मैनेजर को देखा.

उसे अपनी ओर निहारता देख वह बोला, ‘‘तुम मुझे अपने सर्टिफिकेट दिखाओ.’’

आभा ने उसे अपने सर्टिफिकेट दिखाए. वह कुछ देर तक उन्हें देखने का दिखावा करता रहा, फिर बोला, ‘‘तुम्हारी पढ़ाईलिखाई तो बहुत कम है. इतनी कम क्वालिफिकेशन पर आजकल नौकरी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘पर, विक्रम ने तो कहा था कि इस क्वालिफिकेशन पर मुझे यहां नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘ठीक है, मैं विक्रम के कहने पर तुम्हें अपनी फर्म में नौकरी दे तो दूंगा, पर बदले में तुम मुझे क्या दोगी?’’ कहते हुए उस ने अपनी नजरें आभा के खूबसूरत चेहरे पर टिका दीं.

‘‘मैं भला आप को क्या दे सकती हूं?’’ आभा उस की आंखों के भावों से घबराते हुए बोली.

‘‘दे सकती हो, अगर चाहो तो…’’

‘‘क्या…?’’

‘‘अपनी यह खूबसूरत जवानी.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ आभा झटके से अपनी कुरसी से उठते हुए बोली, ‘‘मैं यहां नौकरी करने आई हूं, अपनी जवानी का सौदा करने नहीं.’’

‘‘नौकरी तो तुम्हें मिलेगी, पर बदले में मुझे तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म चाहिए,’’ कहता हुआ वह आदमी पलंग से उतर कर आभा के करीब आ गया. वह पलभर तक भूखी नजरों से उसे घूरता रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

उस आदमी की इस हरकत से आभा पलभर को बौखलाई, फिर उस के जिस्म में गुस्से और बेइज्जती की लहर दौड़ गई. वह बोली, ‘‘मुझे नौकरी चाहिए, पर अपने जिस्म की कीमत पर नहीं,’’ कहते हुए आभा दरवाजे की ओर लपकी.

पर दरवाजे पर पहुंच कर उसे झटका लगा. दरवाजा बाहर से बंद था. आभा दरवाजा खोलने की कोशिश करती रही, फिर पलट कर देखा.

‘‘अब यह दरवाजा तभी खुलेगा जब मैं चाहूंगा,’’ वह आदमी अपने होंठों पर एक कुटिल मुसकान बिखेरता हुआ बोला, ‘‘और मैं तब तक ऐसा नहीं चाहूंगा जब तक तुम मुझे खुश नहीं कर दोगी.’’

उस आदमी का यह इरादा देख कर आभा मन ही मन कांप उठी. वह डरी हुई आवाज में बोली, ‘‘देखो, तुम जैसा समझते हो, मैं वैसी लड़की नहीं हूं. मैं गरीब जरूर हूं, पर अपनी इज्जत का सौदा नहीं कर सकती. प्लीज, दरवाजा खोलो और मुझे जाने दो.’’

‘‘हाथ आए शिकार को मैं यों ही कैसे जाने दूं…’’ बुरी नजरों से आभा के उभारों को घूरता हुआ वह बोला, ‘‘तुम्हारी जवानी ने मेरे बदन में आग लगा दी है और मैं जब तक तुम्हारे तन से लिपट कर यह आग नहीं बुझा लेता, तुम्हें जाने नहीं दे सकता,’’ कहते हुए वह झपट कर आगे बढ़ा, फिर आभा को अपनी बांहों में दबोच लिया.

अगले ही पल वह आभा को बुरी तरह चूमसहला रहा था. साथ ही, वह उस के कपड़े भी नोच रहा था. ऐसे में जब आभा का अधनंगा बदन उस के सामने आया तो वह बावला हो उठा. उस ने आभा को गोद में उठा कर पलंग पर डाला, फिर उस पर सवार हो गया.

आभा रोतीछटपटाती रही, पर उस ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी मनमानी कर ली. ऐसा होते ही वह हांफता हुआ आभा पर से उतर गया.

आभा कई पलों तक उसे नफरत से घूरती रही, ‘‘तू ने मुझे बरबाद कर डाला. पर याद रख, मैं इस की सजा दिला कर रहूंगी. तेरी काली करतूतों का भंडाफोड़ पुलिस के सामने करूंगी.’’

‘‘तू मुझे सजा दिलाएगी, पर मैं तुझे इस लायक छोड़ूंगा ही नहीं,’’ कहते हुए उस ने झपट कर आभा की गरदन पकड़ ली और उसे दबाने लगा.

आभा उस के चंगुल से छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, पर थोड़ी ही देर में उसे यह अहसास हो गया कि वह उस से पार नहीं पा सकती और वह उसे गला घोंट कर मार डालेगा.

ऐसा अहसास करते ही उस ने अपने हाथपैर पटकने बंद कर दिए, अपनी सांसें रोक लीं और शरीर को शांत कर लिया.

जब तथाकथित मैनेजर को इस बात का अहसास हुआ तो उस ने आभा की गरदन छोड़ दी और फटीफटी आंखों से आभा के शरीर को देखने लगा. उसे लगा कि आभा मर चुकी है. ऐसा लगते ही उस के चेहरे से बदहवासी और खौफ टपकने लगा.

तभी दरवाजा खुला और विक्रम कमरे में आया. ऐसे में जैसे ही उस की नजर आभा पर पड़ी, उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई. वह कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘यह क्या किया आप ने? इसे तो जान से मार डाला आप ने?’’

‘‘नहीं,’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘मैं इसे मारना नहीं चाहता था, पर यह पुलिस में जाने की धमकी देने लगी तो मैं ने इस का गला दबा दिया.’’

‘‘और यह मर गई…’’ विक्रम उसे घूरता हुआ बोला.

‘‘जरा सोचिए, मगर इस बात का पता होटल वालों को लगा तो वह पुलिस बुला लेंगे. पुलिस आप को पकड़ कर ले जाएगी और आप को फांसी की सजा होगी.’’

‘‘नहीं…’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘ऐसा कभी नहीं होना चाहिए.’’

‘‘वह तो तभी होगा जब चुपचाप इस लाश को ठिकाने लगा दिया जाए.’’

‘‘तो लगाओ,’’ वह आदमी बोला.

‘‘यह इतना आसान नहीं है,’’ कहते हुए विक्रम की आंखों में लालच की चमक उभरी, ‘‘इस में पुलिस में फंसने का खतरा है और कोई यह खतरा यों ही नहीं लेता.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘कीमत लगेगी इस की.’’

‘‘कितनी?’’

‘‘5 लाख?’’

‘‘5 लाख…? यह तो बहुत ज्यादा रकम है.’’

‘‘आप की जान से ज्यादा तो नहीं,’’ विक्रम बोला, ‘‘और अगर आप को कीमत ज्यादा लग रही है तो आप खुद इसे ठिकाने लगा दीजिए, मैं तो चला,’’ कहते हुए विक्रम दरवाजे की ओर बढ़ा.

‘‘अरे नहीं…’’ वह हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दूंगा, पर इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा. तुम्हें सबकुछ अकेले ही करना होगा.’’ड्टविक्रम ने पलभर सोचा, फिर हां में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘कर लूंगा, पर पैसे…?’’

‘‘काम होते ही पैसे मिल जाएंगे.’’

‘‘पर याद रखिए, अगर धोखा देने की कोशिश की तो मैं सीधे पुलिस के पास चला जाऊंगा.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा,’’ कहते हुए वह कमरे से निकल गया.

इधर वह कमरे से निकला और उधर उस ने बेसुध पड़ी आभा को देखा. वह उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहा था कि आभा उठ बैठी.

अपने सामने आभा को खड़ी देख विक्रम की आंखें हैरानी से फटती चली गईं. उस के मुंह से हैरत भरी आवाज फूटी, ‘‘आभा, तुम जिंदा हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘पर, अब तुम जिंदा नहीं रहोगे. तुम भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का झांसा दे कर जिस्म के सौदागरों को सौंपते हो. मैं तुम्हारी यह करतूत लोगों को बतलाऊंगी, तुम्हारी शिकायत पुलिस में करूंगी.’’

आभा का यह रूप देख कर पहले तो विक्रम बौखलाया, फिर उस के सामने गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘ऐसा मत करना.’’

‘‘क्यों न करूं मैं ऐसा, तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और कहते हो कि मैं ऐसा न करूं.’’

‘‘क्योंकि, तुम्हारे ऐसा न करने से मेरे हाथ एक मोटी रकम लगेगी जिस में से आधी रकम मैं तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘मतलब…?’’

विक्रम ने उसे पूरी बात बताई.

‘‘सच कह रहे हो तुम?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अपनी बात से तुम पलट तो नहीं जाओगे?’’

‘‘ऐसे में तुम बेशक पुलिस में मेरी शिकायत कर देना.’’

‘‘अगर तुम ने मुझे धोखा नहीं दिया तो मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूंगी.’’

तीसरे दिन आभा के हाथ में ढाई लाख की मोटी रकम विक्रम ने ला कर रख दी. उस ने एक चमकती नजर इन नोटों पर डाली, फिर विक्रम की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘अगर दोबारा कोई ऐसा ही मोटा मुरगा फंसे तो मुझ से कहना. मैं फिर से यह सब करने को तैयार हो जाऊंगी,’’ कहते हुए आभा मुसकराई.

‘‘जरूर,’’ कहते हुए विक्रम के होंठों पर भी एक दिलफरेब मुसकान खिल उठी.

राधा, रवि और हसीन सपने

‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद को खत्म कर लूंगी. फिर तुम मुझे कभी नहीं पा सकोगे. अगर तुम वाकई मुझ से प्यार करते हो, तो जैसा मैं कहती हूं, वही तुम्हें करना होगा.’’

रवि ने जब राधा की धमकी सुनी, तो उस के होश उड़ गए. उस ने कभी नहीं सोचा था कि राधा अपने ही भाई को मौत के घाट उतारने के लिए इस कदर बेकरार होगी.

रवि एक बार फिर उसे समझाते हुए बोला, ‘‘राधा, अगर हम ने तुम्हारे भाई उमेश की जान ली, तो हमें भी अपनी जवानी जेल की दीवारों के बीच गुजारनी पड़ सकती है.’’

रवि की बात सुनते ही राधा गुस्से में बोली, ‘‘तो ठीक है, तुम जाओ यहां से. मैं सबकुछ समझ गई. तुम्हें मेरी बात पर जरा भी भरोसा नहीं है…’’

इतना कह कर राधा ने रवि की तरफ से मुंह फेर लिया और करवट बदल कर दूसरी तरफ देखने लगी. रवि और राधा इस वक्त रवि के घर की दूसरी मंजिल पर पलंग पर बिना कपड़ों के लेटे थे.

रवि का सारा मजा किरकिरा हो गया था, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था.

रवि ने राधा को अपनी तरफ घुमा कर पहले जी भर कर चूमा और फिर जब दोनों प्यार की आग में दहकने लगे, तो एकदूसरे में समा गए.  राधा रवि को तब से चाहती थी, जब वह 12वीं जमात के इम्तिहान देने शहर के स्कूल गई थी.

चूंकि राधा और रवि एक ही जगह के रहने वाले थे, इसलिए वहां उन की जानपहचान हो गई थी. राधा अगड़ी जाति की थी और रवि निचली जाति का, इसलिए दोनों के लिए परेशानी थी. लेकिन तकरीबन 3 साल तक लुकछिप कर मुहब्बत करने के बाद जब एक दिन राधा ने परिवार वालों को अपने और रवि के बीच प्यार और शादी की तमन्ना वाली बात बताई, तो उस के घर का माहौल अचानक खराब हो गया.

राधा की 5 बहनों की शादी हो चुकी थी. वह सब से छोटी थी. उमेश इन बहनों के बीच अकेला भाई था. उसी ने राधा के इस प्यार का विरोध किया था. राधा की मां काफी बूढ़ी हो चुकी थीं. पिताजी की मौत एक हादसे में पहले ही हो चुकी थी. उमेश को पिताजी की जगह क्लर्क की नौकरी मिल चुकी थी.

उमेश शादीशुदा था, लेकिन राधा का बेहद विरोधी था, इसीलिए राधा भाई उमेश और भाभी साक्षी को अपना दुश्मन मानती थी. जब एक दिन रात को राधा रवि से फोन पर बातें कर रही थी, तभी उमेश ने उसे बातें करते देख कई तमाचे जड़ दिए थे. इतना ही नहीं, राधा के हाथ से मोबाइल फोन छीन कर उसे बड़ी बहन के घर छोड़ आया था.

राधा रवि को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी, वहीं उमेश की जिद थी कि वह राधा की शादी रवि से कभी नहीं होने देगा. राधा चाहती थी कि रवि उमेश को जान से मार दे, ताकि उस के प्यार पर कोई पाबंदी लगाने वाला न बचे, लेकिन रवि राधा की बात मानने को तैयार नहीं था. वह जानता था कि राधा जो चाहती है, वह जुर्म है.

लेकिन रवि भी इश्क की चाशनी का स्वाद चख चुका था. लाख मना करने के बाद भी आखिर में वह वही करने को तैयार हो गया, जो राधा चाहती थी. तय समय और तारीख पर रवि को राधा के फोन का इंतजार था. जब राधा का फोन आया, तब रवि तुरंत अपने मनसूबों को अंजाम देने चल दिया.

राधा और रवि एकएक कदम सावधानी से आगे बढ़ा रहे थे. शायद इसीलिए जब वे दोनों एकसाथ उमेश के कमरे के पास पहुंचे, तो अचानक राधा ने रवि को हाथ से इशारा कर के रोक दिया और अकेले ही उस के कमरे में घुस गई. राधा ने सब से पहले कमरे की लाइट जलाई और देखा कि उमेश गहरी नींद में सो गया है या नहीं. जब राधा को इतमीनान हो गया कि उमेश गहरी नींद में है, तो उस ने रवि को अंदर बुलाया.

रवि ने उमेश को चादर में लपेट दिया और जोर से उस का गला दबाने लगा. उमेश छटपटा कर पलंग के नीचे गिर गया, लेकिन जल्दी ही राधा और रवि ने उस पर काबू पा लिया था.

जब उन दोनों को भरोसा हो गया कि उमेश अब जिंदा नहीं है, तभी उन्होंने उसे छोड़ा था. फिर उन दोनों ने उमेश का बिस्तर ठीक किया और दोबारा चादर इस तरह ढक दी, जैसे वह गहरी नींद में सो रहा हो. फिर वे दोनों एकदूसरे को बांहों में भर कर चूमने लगे. उस समय राधा काफी सैक्सी लग रही थी. एक बार जब राधा की प्यास जाग जाती थी, तो आसानी से उसे संतुष्ट कर पाना सब के बस की बात न थी. रवि कसरती बदन का मालिक था. वह राधा को बेहद और भरपूर मजा देता था, इसीलिए राधा उसे जीजान से चाहती थी. राधा और रवि इस कदर इश्क में अंधे हो गए कि बगल में पड़ी लाश भी न दिखाई दी. दोनों वहीं पर प्यार के समुद्र में गोते लगाने लगे.

सुबह हुई, तो राधा बिलखबिलख कर पूरे महल्ले के सामने कह रही थी, ‘‘हाय, मेरा एकलौता भाई… कहां चला गया तू…’’ उस ने उमेश की मौत को स्वाभाविक मौत मानने पर सब को मजबूर कर दिया था.

पुलिस भी यही मान कर चल रही थी कि उमेश की मौत स्वाभाविक है कि तभी थाना इंचार्ज ने कहा, ‘‘उमेश की तो शादी हो चुकी है. इस की बीवी को आ जाने दीजिए.’’ तब राधा ने बड़ी चालाकी से कहा,  ‘‘अरे साहब, वह तो इस से झगड़ा कर के मायके गई है. वह आ भी जाएगी, तो क्या करेगी. कम से कम मेरे भाई का अंतिम संस्कार तो समय पर हो जाने दीजिए.’’

राधा की बारबार अंतिम संस्कार की बात पर पहले तो सभी को अटपटा लगा, लेकिन जब वह लाश के सड़नेगलने की बात करने लगी, तो पुलिस भी इस के लिए राजी हो गई.

पुलिस अपना काम पूरा समझ कर वहां से जाने ही वाली थी, तभी बाजी पलट गई. उसी वक्त उमेश की पत्नी साक्षी अपने मायके वालों के साथ वहां आ गई. साक्षी ने आते ही पुलिस से लाश का पोस्टमार्टम कराने की बात कही, तो राधा के होश उड़ गए. जैसे ही पुलिस को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली, तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

शक होते ही राधा को तुरंत गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. इस के बाद पुलिस रवि की खोज में दौड़ गई और उसे भी धर दबोचा. राधा और रवि के हसीन सपने बहुत देर तक पुलिस केसामने टिक न सके. राधा खुद अपनी जबान से काली करतूत बयान करने लगी, ‘‘साहब, हम 6 बहनें हैं. उमेश मेरा एकलौता भाई था. लेकिन केवल कहने का भाई था. उसे अपनी बीवी के अलावा किसी और की चिंता न थी. वह अपनी बीवी के कहने पर मुझ पर जुल्म ढाता था, इसलिए मैं ने उसे खत्म करने का फैसला कर लिया था.

‘‘मैं मौके की तलाश में थी, तभी इस का अपनी बीवी से झगड़ा हो गया. वह अपने मायके चली गई. मैं ने मौका पा कर रवि को फोन कर के बुलाया था. हम दोनों ने उमेश का गला दबा कर उसे मार डाला था.

‘‘साहब, मैं रवि से प्यार करती हूं और उसे मैं किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी…’’ राधा बिना किसी झिझक के अपना बयान दे रही थी. रवि पुलिस के सामने जहां फूटफूट कर रो रहा था, वहीं राधा की आंखों में आंसू का एक भी कतरा नहीं था. उसे अपने हसीन सपनों के लिए भाई की जान लेने का जरा भी दुख नहीं था

हवस का नतीजा : राज ने भाभी के साथ क्या किया

मुग्धा का बदन बुखार से तप रहा था. ऊपर से रसोई की जिम्मेदारी. किसी तरह सब्जी चलाए जा रही थी तभी उस का देवर राज वहां पानी पीने आया. उस ने मुग्धा के हावभाव देखे तो उस के माथे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘भाभी, आप को तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां…’’ मुग्धा ने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘सुबह कुछ नहीं था. दोपहर से अचानक…’’

‘‘भैया को बताया?’’

‘‘नहीं, वे तो परसों आने ही वाले हैं वैसे भी… बेकार परेशान होंगे. आज तो रात हो ही गई… बस कल की बात है.’’

‘‘अरे, लेकिन…’’ राज की फिक्र कम नहीं हुई थी. मगर मुग्धा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मामूली बुखार ही तो है. तुम जा कर पढ़ाई करो, खाना बनते ही बुला लूंगी.’’

‘‘खाना बनते ही बुला लूंगी…’’ मुग्धा की नकल उतार कर चिढ़ाते हुए राज ने उस के हाथ से बेलन छीना और बोला, ‘‘लाइए, मैं बना देता हूं. आप जा कर आराम कीजिए.’’

‘‘न… न… लेट गई तो मैं और बीमार हो जाऊंगी,’’ मुग्धा बैठने वालियों में से नहीं थी. वह बोली, ‘‘हम दोनों मिल कर बना लेते हैं,’’ और वे दोनों मिल कर खाना बनाने लगे.

मुग्धा का पति विनय कंपनी के किसी काम से 3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ था. वह कर्मचारी तो कोई बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन बौस का भरोसेमंद था. सो, किसी भी काम के लिए वे उसे ही भेजते थे.

मुग्धा का 21 साल का देवर राज प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. विनय जैसा प्यार करने वाला पति पा कर मुग्धा भी खुश रहती थी. कुछ पति की तनख्वाह और कुछ वह खुद जो निजी स्कूल में पढ़ाती, दोनों से मिला कर घर का खर्च अच्छे से निकल आता. सासससुर गांव में रहते थे. देवर राज अपनी पढ़ाई के चलते उन के साथ ही रहता था.

जिंदगी में कमी थी तो बस यही कि खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 10 सालों के बाद भी उन के कोई औलाद नहीं थी. अब मुग्धा 35 साल की हो चुकी थी. अपनी हमउम्र बाकी टीचरों को उन के बच्चों के साथ देखती तो न चाहते हुए भी उसे रोना आ ही जाता. वह अपनी डायरी के पन्ने इसी पीड़ा से रंगती जाती.

रोटियां बन चुकी थीं. राज ने उसे कुरसी पर बैठने को बोला और सामान समेटने लगा. मुग्धा ने सिर पीछे की ओर टिकाया और आंखें बंद कर लीं. वातावरण एकदम शांत था. तभी वहां वही तूफान फिर से गरजने लगा जिस का शोर मुग्धा आज तक नहीं भांप पाई थी.

राज की गरदन धीरे से मुग्धा की ओर घूम चुकी थी. वह कनखियों से मुग्धा की फिटिंग वाली समीज में कैद उस के उभारों को देखने लगा था. मुग्धा की सांसों के साथ जैसेजैसे वे ऊपरनीचे होते, वैसेवैसे राज के अंदर का शैतान जागता जाता.

‘‘हो गया सब काम…?’’ बरतनों की आवाज बंद जान कर मुग्धा ने अचानक पूछते हुए अपनी आंखें खोल दीं.

राज हकबका गया और बोला, ‘‘हां भाभी, बस हो ही गया…’’ कह कर राज ने जल्दीजल्दी बाकी काम निबटाया और खाने की चीजों को उठा कर मेज पर ले गया.

मुग्धा ने मुश्किल से 2 रोटियां खाईं, वह भी राज की जिद पर. वह जबरदस्ती सब्जी उस की प्लेट में डाल दे रहा था. खाने के बाद मुग्धा सोने जाने लगी तो राज बोला, ‘‘भाभी, 15 मिनट के लिए आगे वाले कमरे में बैठिए न… मैं आप के लिए दवा ले आता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, रातभर में उतर जाएगा…’’ मुग्धा ने मना किया लेकिन राज कहां मानने वाला था.

‘‘मैं पास वाले कैमिस्ट से ही दवा ले कर आ रहा हूं भाभी… जहां से आप मंगाती हैं हमेशा… दरवाजा बंद कर लीजिए… मैं अभी आया…’’ कहता हुआ वह निकल गया.

मुग्धा ने दरवाजा बंद किया और सोफे पर पैर ऊपर कर के बैठ गई.

राज ने तय कर लिया था कि आज तो वह अपने मन की कर के ही रहेगा. इस बीच कैमिस्ट की दुकान आ गई.

‘‘क्या बात है राज बाबू?’’ कैमिस्ट ने राज को खोया सा देखा तो पूछा. राज का ध्यान वापस दुकान पर आया.

‘‘दवा चाहिए थी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अबे तो यहां क्या मिठाई मिलती है?’’ कैमिस्ट उसे छेड़ते हुए बोला. वह उस का पुराना दोस्त था.

राज मुसकरा उठा और कहा, ‘‘अरे, जल्दी दे न…’’

‘‘जल्दी दे न…’’ बड़बड़ाते हुए कैमिस्ट ने हैरत से उस की ओर देखा, ‘‘कौन सी दवा चाहिए, यह तो बता?’’

राज को याद आया कि उस ने तो सचमुच कोई दवा मांगी ही नहीं है. उस ने ऐसे ही बोल दिया, ‘‘भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है. जरा नींद की गोली देना.’’

‘नींद की गोली बुखार के लिए…’ सोचते हुए कैमिस्ट ने उसे देखा. वह खुद भी मुग्धा के हुस्न का दीवाना था. हमेशा उस के बारे में चटकारे लेले कर बातें किया करता था. उस ने राज के मन की बात ताड़ ली. ऐसी बातों का उसे बहुत अनुभव जो था. उस ने नींद की गोली के साथ बुखार की भी दवा दे दी.

राज ने लिफाफा जेब में रखा और तेजी से वापस चलने को हुआ कि तभी कैमिस्ट चिल्लाया, ‘‘अरे भाई, खुराक तो सुन ले.’’

राज को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह काउंटर पर आया. कैमिस्ट ने उसे डोज बताई और आंख मारते हुए बोला, ‘‘यह नींद वाली एक से ज्यादा मत देना… टाइट चीज है…’’

‘‘अबे, क्या बकवास कर रहा है,’’ राज के मन का डर उस की जबान से बोल पड़ा. उस की तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली हालत हो गई. वह जाने लगा.

कैमिस्ट पीछे से कह रहा था, ‘‘अगली बार हम को भी याद रखना दोस्त…’’

राज उस को अनसुना करता हुआ आगे बढ़ गया. घर लौटने पर डोर बैल बजाते ही मुग्धा ने दरवाजा खोल दिया और बोली, ‘‘यहीं बैठी थी लगातार…’’

‘‘जी भाभी, आइए अंदर चलिए…’’ राज ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा.

मुग्धा अपने कमरे में आ कर लेट गई. राज ने उसे पहले बुखार की दवा दी. मुग्धा दवा ले कर सोने के लिए लेटने लगी तो राज ने उसे रोका, ‘‘भाभी, अभी एक दवा बाकी है…’’

‘‘कितनी सारी ले आए भैया?’’ मुग्धा ने थकी आवाज में बोला और बाम ले कर माथे पर लगाने लगी.

‘‘भाभी दीजिए, मैं लगा देता हूं,’’ कह कर राज ने उस से बाम की डब्बी ले ली और उस के माथे पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने मुग्धा को नींद वाली गोली भी खिला दी और लिटा दिया.

राज उस का माथा दबाता रहा. थोड़ी देर बाद उस ने पुष्टि करने के लिए मुग्धा को आवाज दी. ‘‘भाभी सो गईं क्या?’’

कोई जवाब नहीं मिला. राज ने उस के चेहरे को हिलाडुला कर भी देख लिया. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह समझ गया कि रास्ता साफ हो चुका है.

राज की कनपटियों में खून तेजी से दौड़ने लगा. वह बत्ती जलती ही छोड़ मुग्धा के ऊपर आ गया. मर्यादा के आवरण प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए. कमरे में आए भूचाल से मेज पर रखी विनयमुग्धा की तसवीर गिर कर टूट गई.

सबकुछ शांत होने पर राज थक कर चूरचूर हो कर मुग्धा के बगल में लेट गया.

‘‘बस अब बुखार उतर जाएगा भाभीजी… इतना पसीना जो निकलवा दिया मैं ने आप का,’’ राज बेशर्मी से बड़बड़ाया और मुग्धा की कुछ तसवीरें खींचने के बाद उसे कपड़े पहना दिए.

मुग्धा अब तक धीमेधीमे कराह रही थी. राज पलंग से उतरा और खुद भी कपड़े पहनने लगा. तभी उस की नजर आधी खुली दराज पर गई. भूल से मुग्धा अपनी डायरी उसी में छोड़ी हुई थी. राज ने उसे निकाला और कपड़े पहनतेपहनते उस के पन्ने पलटने लगा.

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

राज की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया और जोरजोर से रोने लगा, फिर भाग कर मुग्धा के पैरों को पकड़ कर अपना माथा उस से रगड़ते हुए रोने लगा, ‘‘भाभी, मुझे माफ कर दो… यह क्या हो गया मुझ से.’’

अचानक राज का ध्यान मुग्धा के बिखरे बालों पर गया. उस ने जल्दी से जमीन पर गिरी उस की हेयर क्लिप उठाई और मुग्धा का सिर अपनी गोद में रख कर बालों को संवारने लगा. वह किसी मशीन की तरह सबकुछ कर रहा था. हेयर क्लिप अच्छे से उस के बालों में लगा कर राज उठा और घर से निकल गया.

अगली सुबह तकरीबन 8 बजे मुग्धा की आंखें खुलीं. उस का सिर अभी तक भारी था. घर में भीड़ लग चुकी थी.

एक आदमी ने आखिरकार बोल ही दिया, ‘‘देवरभाभी के रिश्ते पर भरोसा करना ही पागलपन है…’’

मुग्धा के सिर में जैसे करंट लगा. वह सवालिया नजरों से उसे देखने लगी. तभी इलाके के पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रवेश किया और बताया, ‘‘आप के देवर राज की लाश पास वाली नदी से मिली है. उस ने रात को खुदकुशी कर ली…’’

मुग्धा का कलेजा मुंह को आने लगा. वह हड़बड़ा कर पलंग से उठी लेकिन लड़खड़ा कर गिर गई.

एक महिला सिपाही ने राज के मोबाइल फोन में कैद मुग्धा की कल रात वाली तसवीरें उसे दिखाईं और कड़क कर पूछा, ‘‘कल रंगरलियां मनातेमनाते ऐसा क्या कह दिया लड़के से तू ने जो उस ने अपनी जान दे दी?’’

तसवीरें देख कर मुग्धा हैरान रह गई. अपनी शारीरिक हालत से उसे ऐसी ही किसी घटना का शक तो हो रहा था लेकिन दिल अब तक मानने को तैयार नहीं था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

इंस्पैक्टर ने उस महिला सिपाही को अभी कुछ न पूछने का इशारा किया और बाकी औपचारिकताएं पूरी कर वहां से चला गया. धीरेधीरे औरतों की भीड़ भी छंटती गई.

विनय का फोन आया था कि वह आ रहा है, घबराए नहीं, लेकिन मुग्धा बस सुनती रही. उस की सूनी आंखों के सामने राज का बचपन चल रहा था. जब वह नईनई इस घर में आई थी.

दोपहर तक विनय लौट आया और भागते हुए मुग्धा के पास कमरे में पहुंचा. वह जड़वत अभी भी पलंग पर बैठी शून्य में ताक रही थी. विनय ने उस के कंधे पर हाथ रखा लेकिन मुग्धा का शरीर एक ओर लुढ़क गया.

‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’ चीखता हुआ विनय उसे झकझोरे जा रहा था, पर मुग्धा कभी न जागने वाली नींद में सो चुकी थी.

बाबा का सच : जनता की ठगी

मेरा तबादला उज्जैन से इंदौर के एक थाने में हो गया था. मैं ने बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन आया. रेल चलने के साथ ही उज्जैन के थाने में रहते हुए वहां गुजारे दिनों की यादें ताजा होने लगीं. हुआ यह था कि एक दिन एक मुखबिर थाने में आ कर बोला, ‘‘सर, एक बाबा पास के ही एक गांव खाचरोंद में एक विधवा के घर ठहरा हुआ है. मुझे उस का बरताव कुछ गलत लग रहा है.’’

उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया. फिर मेरे पास उस बाबा के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भी नहीं था. लेकिन मुखबिर से मिली सूचना को हलके में लेना भी गलत था, सो उसी रात  मैं सादा कपड़ों में उस विधवा के घर जा पहुंचा. उस औरत ने पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘दीदी, मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई चमत्कारी बाबा ठहरे हैं, इसीलिए मैं उन से मिलने आया हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, अभी तो बाबा अपने किसी भक्त के घर गए हैं.’’

‘‘अगर आप को कोई एतराज न हो, तो क्या मैं आप से उन बाबा के बारे में कुछ बातें जान सकता हूं? दरअसल, मेरी एक बेटी है, जो बचपन से ही बीमार रहती है. मैं उस का इलाज इन बाबा से कराना चाहता हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, जितनी जानकारी मेरे पास है, वह मैं आप को बता सकती हूं.

‘‘एक दिन ये बाबा अपने 2 शिष्यों के साथ रात 8 बजे मेरे घर आए थे.

‘‘बाबा बोले थे, ‘तुम्हारे पति के गुजरने के बाद से तुम तंगहाल जिंदगी जी रही हो, जबकि उस के दादाजी परिवार के लिए लाखों रुपयों का सोना इस घर में दबा कर गए हैं.

‘‘‘ऐसा कर कि तेरे बीच वाले कमरे की पूर्व दिशा वाला कोना थोड़ा खोद और फिर देख चमत्कार.’

‘‘मैं अपने बीच वाले कमरे में गई, तभी उन के दोनों शिष्य भी मेरे पीछेपीछे आ गए और बोले, ‘बहन, यह है तुम्हारे कमरे की पूर्व दिशा का कोना.’

‘‘मैं ने कोने को थोड़ा उकेरा, करीब 7-8 इंच कुरेदने के बाद मेरे हाथ में एक सिक्का लगा, जो एकदम पीला था.

‘‘उस सिक्के को अपनी हथेली पर रख कर बाबा बोले, ‘ऐसे हजारों सिक्के इस कमरे में दबे हैं. अगर तू चाहे, तो हम उन्हें निकाल कर तुझे दे सकते हैं.’

‘‘मैं ने बाबा से पूछा, ‘बाबा, ये दबे हुए सिक्के बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?’

‘‘वे बोले, ‘तुझे कुछ नहीं करना है. जो कुछ करेंगे, हम ही करेंगे, लेकिन तुम्हारे मकान के बीच के कमरे की खुदाई करनी होगी, वह भी रात में… चुपचाप… धीरेधीरे, क्योंकि अगर सरकार को यह मालूम पड़ गया कि तुम्हारे मकान में सोने के सिक्के गड़े हुए हैं, तो वह उस पर अपना हक जमा लेगी और तुम्हें उस में से कुछ नहीं मिलेगा.’

‘‘आगे वे बोले, ‘देखो, रात में चुपचाप खुदाई के लिए मजदूर लाने होंगे, वह भी किसी दूसरे गांव से, ताकि गांव वालों को कुछ पता न चल सके. इस खुदाई के काम में पैसा तो खर्च होगा ही. तुम्हारे पति ने तुम्हारे नाम पर डाकखाने में जो रुपया जमा कर रखा है, तुम उसे निकाल लो.’

‘‘इस के बाद बाबा ने कहा, ‘हम महीने भर बाद फिर से इस गांव में आएंगे, तब तक तुम पैसों का इंतजाम कर के रखना.’

‘‘डाकखाने में रखे 4 लाख रुपयों में से अब तक मैं बाबा को 2 लाख रुपए दे चुकी हूं.’’

‘‘दीदी, क्या मैं आप के बीच वाले कमरे को देख सकता हूं?’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, वैसे तो बाबा ने मना किया है, लेकिन इस समय वे यहां नहीं हैं, इसलिए आप देख लीजिए.’’

मैं फौरन उठा और बीच के कमरे में जा पहुंचा. मैं ने देखा कि सारा कमरा 2-2 फुट खुदा हुआ था और उस की मिट्टी एक कोने में पड़ी हुई थी. मुझे लगा कि अगर अब कानूनी कार्यवाही करने में देर हुई, तो इस औरत के पास बचे 2 लाख रुपए भी वह बाबा ले जाएगा.

मैं ने उस औरत से कहा, ‘‘दीदी, मैं इस इलाके का थानेदार हूं और मुझे उस पाखंडी बाबा के बारे में जानकारी मिली थी, इसलिए मैं यहां आया हूं.

‘‘आप मेरे साथ थाने चलिए और उस बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाइए, ताकि मैं उसे गिरफ्तार कर सकूं.’’

उस औरत को भी अपने ठगे जाने का एहसास हो गया था, इसलिए वह मेरे साथ थाने आई और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. चूंकि बाबा घाघ था, इसलिए उस ने उस औरत के घर के नुक्कड़ पर ही अपने एक शिष्य को नजर रखने के लिए  बैठा दिया था. इसलिए उसे यह पता चलते ही कि मैं उस औरत को ले कर उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने ले गया हूं. वह बाबा उस गांव को छोड़ कर भाग गया. इस के बाद मैं ने आसपास के गांवों में मुखबिरों से जानकारी भी निकलवाई, लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

मैं यादों की बहती नदी से बाहर आया, तब तक गाड़ी इंदौर रेलवे स्टेशन पर आ कर ठहर गई थी. जब मैं ने इंदौर का थाना जौइन किया, तब एक दिन एक फाइल पर मेरी नजर रुक गई. उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. रिपोर्ट में लिखा था, ‘गडे़ धन के लालच में एक मां ने अपने 7 साला बेटे का खून इंजैक्शन से निकाला.’ उस मां के खिलाफ लड़के के दादाजी और महल्ले वालों ने यह रिपोर्ट लिखाई थी. यह पढ़ कर मैं सोच में पड़ गया कि कहीं यह वही खाचरोंद गांव वाला बाबा ही तो नहीं है.

मैं ने सबइंस्पैक्टर मोहन से कहा, ‘‘मैं इस मामले में उस लड़के के दादाजी से बात करना चाहता हूं. उन्हें थाने आने के लिए कहिए.’’

रात के तकरीबन 10 बजे एक बुजुर्ग  मेरे क्वार्टर पर आए. मैं ने उन से उन का परिचय पूछा. तब वे बोले, ‘‘मैं ही उस लड़के का दादाजी हूं.’’

‘‘दादाजी, मैं इस केस को जानना चाहता हूं,’’ मैं ने पूछा.

वे बताने लगे, ‘‘सर, घर में गड़े धन के लालच में बहू ने अपने 7 साल के बेटे की जान की परवाह किए बगैर इंजैक्शन से उस का खून निकाला और तांत्रिक बाबा को पूजा के लिए सौंप दिया.’’

‘‘दादाजी, आप मुझे उस बाबा के बारे में कुछ बताइए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यह बात तब शुरू हुई, जब कुछ दिनों के लिए मैं अपने गांव गया था. फसल कटने वाली थी, इसलिए मेरा गांव जाना जरूरी था. उन्हीं दिनों यह तांत्रिक बाबा हमारे घर आया और बहू से बोला कि तुम्हारे घर में गड़ा हुआ धन है. इसे निकालने से पहले थोड़ी पूजापाठ करानी पड़ेगी.’’

‘‘मेरी बहू उस के कहने में आ गई. फिर उस तांत्रिक बाबा ने रात को अपना काम करना शुरू किया. पहले दिन उस ने नीबू, अंडा, कलेजी और सिंदूर का धुआं कर उसे पूरे घर में घुमाया, फिर उस ने बीच के कमरे में अपना त्रिशूल एक जगह जमीन पर गाड़ा और कहा कि यहां खोदने पर गड़ा धन मिलेगा.

‘‘उस के शिष्यों ने एक जगह 2 फुट का गड्ढा खोदा. चूंकि रात के 12 बज चुके थे, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए काम रोक दिया कि अब खुदाई कल करेंगे.

‘‘इसी बीच मेरी 5 साल की पोती उस कमरे में आ गई. उसे देख कर तांत्रिक गुस्से में लालपीला हो गया और बोला कि आज की पूजा का तो सत्यानाश हो गया है. यह बच्ची यहां कैसे आ गई? अब इस का कोई उपचार खोजना पड़ेगा.

‘‘अगले दिन रात के 12 बजे वह तांत्रिक अकेला ही घर आया और बहू से बोला, ‘तू गड़ा हुआ धन पाना चाहती है या नहीं?’

‘‘बहू लालची थी, इसलिए बोली, ‘हां बाबा.’

‘‘फिर बाबा तैश में आ कर बोला, ‘कल रात उस बच्ची को कमरे में नहीं आने देना चाहिए था. अब उस बच्ची को भी ‘पूजा’ में बैठा कर अकेले में तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी. जाओ और उस बच्ची को ले आओ.

‘‘इस पर मेरी बहू ने कहा, ‘लेकिन बाबा, वह तो सो रही है.’

‘‘बाबा बोला, ‘ठीक है, मैं ही उसे अपनी विधि से यहां ले कर आता हूं.

‘‘अगले दिन सुबह उस बच्ची ने अपनी दादी को बताया, ‘रात को वह तांत्रिक बाबा मुझे उठा कर बीच के कमरे में ले गया और मेरे सारे कपड़े उतार कर उस ने मेरे साथ गंदा काम किया.’

‘‘जब मेरी पत्नी ने बहू से पूछा, तो वह बोली, ‘बच्ची तो नादान है. कुछ भी कहती रहती है. आप ध्यान मत दो.’

‘‘अगले दिन बाबा ने बीच का कमरा खोद दिया. लेकिन कुछ नहीं निकला. फिर वह बाबा बोला, ‘बाई, लगता है कि तुम्हारे ही पुरखे तुम्हारे वंश का खून चाहते हैं, तुम्हें अपने बेटे की ‘बलि’ देनी होगी या उस का खून निकाल कर चढ़ाना होगा.’

‘‘गड़े धन के लालच में मां ने बिना कोई परवाह किए अपने बेटे का खून ‘इंजैक्शन’ से खींचा और उस का इस्तेमाल तांत्रिक क्रिया करने के लिए बाबा को दे दिया.

‘‘यह सब देख कर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उस ने फोन पर ये सब बातें मुझे बताईं. मैं तभी सारे काम छोड़ कर इंदौर आया और अपने पोते और महल्ले वालों को ले कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.’’

‘‘दादाजी, इस समय वह तांत्रिक बाबा कहां है?’’

‘‘सर, मेरी बहू अभी भी उस के मोहपाश में बंधी है. चूंकि उसे मालूम पड़ चुका है कि मैं ने उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए वह हमारे घर नहीं आ रहा है, लेकिन मैं उस पर नजर रखे हुए हूं.’’

सुबह एक मुखबिर आया और बोला, ‘‘सर, एक सूचना मिली है कि अपने इलाके की एक मलिन बस्ती में एक तांत्रिक आज ही आ कर ठहरा है.’’

रात के 12 बजे मैं अपने कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचा. एक पुलिस वाले ने एक मकान से  धुआं निकलते देखा. हम ने चारों तरफ से उस मकान को घेर लिया. जब मैं ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘क्या है? यहां पूजा हो रही है. आप जाइए.’’

इतना सुनते ही मैं ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया और बीच के कमरे में पहुंचा. मुझे देखते ही वह तांत्रिक बाबा भागने की कोशिश करने लगा, तभी मेरे साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और गाड़ी में डाल कर थाने ले आए.

थाने में थर्ड डिगरी देने पर उस ने अपने सारे अपराध कबूल कर लिए, जिस में खाचरोंद गांव में की गई ठगी भी शामिल थी. मैं थाने में बैठा सोच रहा था कि अखबारों में गड़े धन निकालने के बारे में ऐसे ठग बाबाओं की खबरें अकसर छपती ही रहती हैं, फिर भी न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ कर अपनी मेहनत की कमाई को उन के हाथों सौंप कर ठगे जाते हैं?

साधना कक्ष : बाबा ने की हद पार

बच्चा न ठहरने के चलते अंजलि को अकसर मोहन के ताने भी सुनने पड़ रहे थे इसलिए वह कुछ दिनों के लिए मायके में अपनी मां के पास चली आई.

मां को जब इस की वजह पता चली तो उस ने अंजलि से कहा कि वह एक पहुंचे हुए बाबा को जानती है जो बहुत सी औरतों की गोद हरी कर चुके हैं.

अंजलि झाड़फूंक करने वाले बाबाओं और पीरफकीरों पर जरा भी यकीन नहीं करती थी इसलिए उस ने मां को साफ मना कर दिया.

मां ने उस से कहा कि अगर वह बाबा के पास नहीं जाना चाहती है तो अपने पति के घर वापस लौट जाए.

जब अंजलि ने मोहन से बात की तो उस ने कहा कि वह उस से तलाक लेना चाहता है क्योंकि उसे बच्चा नहीं हो रहा है. ऐसे में अंजलि के पास मां की बात मानने के सिवा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा था.

एक दिन जब अंजलि मां के साथ बाबा के आश्रम पहुंची तो पता चला कि उस आश्रम में मर्दों के आने की मनाही थी. उस आश्रम में उस बाबा को छोड़ उस के तीमारदारों में सिर्फ औरतें ही शामिल थीं.

बाबा की शिष्याओं ने अंजलि से एक कागज के टुकड़े पर बिना किसी को दिखाए अपनी मनपसंद मिठाई का नाम लिखने को कहा.

अंजलि को कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन वह मां की इच्छा रखने के लिए सबकुछ करती गई.

अंजलि ने उस कागज पर मनपसंद मिठाई का नाम लिख कर उसे एक डब्बे में रख दिया जिस में बाबा की शिष्याओं ने ताला लगा कर अंजलि को यह कहते हुए उस के हाथ में थमा दिया कि वह इस डब्बे को ले कर साधना कक्ष में जाए.

बाबा अपनी चमत्कारी ताकतों की बदौलत यह जान गए होंगे कि उस ने इस कागज में क्या लिखा है.

साधना कक्ष में पहुंचने पर उसे वही मिठाई खाने को मिलेगी, जो उस ने इस कागज पर लिखी है.

अंजलि जब बाबा के पास साधना कक्ष में जाने लगी तो उस की मां भी उस के साथ हो ली.

बाबा ने अंजलि को वही मिठाई खाने को दी जो उस ने उस कागज पर लिखी थी तो वह हैरान रह गई, क्योंकि अंजलि के सिवा किसी को भी यह नहीं पता था कि उस ने उस कागज पर क्या लिखा है. उस ने बहुत दिमाग दौड़ाया लेकिन गुत्थी सुलझी नहीं.

समस्या जान कर बाबा ने अंजलि से कहा, ‘‘अगर तुम पेट से होना चाहती

हो तो तुम्हें रातभर इस कमरे में अकेले ही रहना होगा क्योंकि यह मेरा साधना कक्ष है. इस कक्ष में सोने से तुम्हारी गोद यकीनन हरी हो जाएगी.’’

अंजलि को इस कमरे में अकेले रात बिताने पर एतराज था. इस पर बाबा ने कहा, ‘‘इस कमरे में कोई और दरवाजा नहीं है और तुम अकेली ही रहोगी. तुम इस कमरे में अपने साथ लाए गए ताले को लगा लेना, जिस की एक चाबी तुम्हारी मां के पास रहेगी. कमरे में किसी के घुसने का सवाल ही नहीं उठता है.’’

अंजलि बेमन से कमरे में रात बिताने को तैयार हुई. बाबा और उस की मां जब कमरे से बाहर निकलने लगे तो बाबा बोला, ‘‘अंजलि, जो प्रसाद मैं ने तुम्हें दिया है, उसे अभी खा लो.’’

अंजलि ने मिठाई खा ली. बाबा ने बाहर निकलने के बाद कमरे में ताला लगा कर चाबी अंजलि की मां को दे दी.

उधर मिठाई खाने के बाद अंजलि पर अजीब सी खुमारी छाने लगी थी. वह अपनी सुधबुध खोने लगी थी और उस की नींद तब खुली, जब दूसरे दिन की सुबह उस की मां ने बंद कमरे का दरवाजा खोला.

अंजलि कमरे से बाहर निकलते समय सोच रही थी कि उस मिठाई में ऐसा क्या था, जिसे खाने के बाद उसे अजीब सी खुमारी छा गई और इस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं चला. लेकिन वह बेफिक्र भी थी, क्योंकि

उस कमरे की चाबी उस की मां के पास थी और कमरे में घुसने का कोई दूसरा दरवाजा भी नहीं था.

अंजलि को बाबा के आश्रम से लौटे 2 महीने बीत चुके थे कि एक दिन अचानक उसे उलटियां होने लगीं. उस ने अपने डाक्टर दोस्त रमेश से जब चैकअप कराया तो पता चला कि वह पेट से है.

डाक्टर रमेश की बात का अंजलि को यकीन ही नहीं हुआ क्योंकि उसे पति से अलग हुए 5 महीने से ऊपर बीत चुके थे, फिर वह पेट से कैसे हो सकती है?

अंजलि ने डाक्टर रमेश से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, आप एक बार फिर से रिपोर्ट देख लीजिए. कहीं ऐसा न हो कि जांच रिपोर्ट में कोई खामी हो.’’

लेकिन डाक्टर रमेश ने कहा कि उस की रिपोर्ट बिलकुल सही है और वह पेट से है.

घर पहुंचने पर अंजलि ने अपनी मां से पेट से होने की बात बताई तो मां की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन जब अंजलि बोली कि वह मोहन से 5 महीने से मिली ही नहीं है, तो ऐसा कैसे हो सकता है.

अंजलि बोली, ‘‘मां, बाबा के आश्रम में मेरे साथ रेप किया गया है. कहीं तुम ने बाबा के साधना कक्ष की चाबी किसी को दी तो नहीं थी?’’

मां बोली, ‘‘नहींनहीं, मैं ने सारी रात चाबी अपने पास ही रखी थी और सुबह दरवाजा भी मैं ने ही खोला था.’’

अंजलि यह बात मानने को तैयार न थी. उस का कहना था कि बाबा के आश्रम में ही रेप हुआ है, जिस के चलते वह पेट से हुई है. लेकिन उस की मां बाबा के खिलाफ एक बात सुनने को राजी न थी. वह तो इसे बाबा का चमत्कार मान रही थी.

अंजलि ने यह बात जब मोहन को फोन कर के बताई तो उस ने उस पर ही चरित्रहीन होने का लांछन लगा दिया और कभी भी फोन न करने की बात कह कर फोन काट दिया.

उधर अंजलि को अब पूरा यकीन हो चुका था कि उस रात बाबा के आश्रम में उस के साथ कोई तो हमबिस्तर हुआ था. हो न हो, उस कमरे में कोई गुप्त दरवाजा है जिस के रास्ते कोई उस कमरे में घुसता है और साधना कक्ष में पेट से होने के लालच में रात बिताने वाली औरतों के साथ रेप करता है.

अंजलि ने अब निश्चय कर लिया था कि वह उस पाखंडी बाबा की हकीकत दुनिया के सामने ला कर रहेगी.

अंजलि ने अपने मन की बात मां को बताई तो मां बाबा के खिलाफ जाने को तैयार न हुई, पर जब अंजलि ने अपनी जान देने की बात कही तो मां उस का साथ देने को तैयार हो गई.

अंजलि इस बार फिर बाबा के आश्रम पहुंची और उस ने बाबा को बताया कि वह उन के चमत्कार से पेट से तो हो गई है, लेकिन उस का पति उस से तलाक ले कर दूसरी शादी करने जा रहा है. ऐसे में वह नहीं चाहती है कि वह पेट से हो, इसलिए वह चमत्कार कर के उसे पेट से होने से रोक लें.

बाबा ने अंजलि को एक पुडि़या दे कर कहा, ‘‘तुम इस चमत्कारी भभूत का सेवन करो. इस से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और पेट में पल रहा बच्चा भी अपनेआप छूमंतर हो जाएगा.’’

अंजलि बाबा के आश्रम से घर आई और उस बाबा द्वारा दी गई भभूत को डाक्टर रमेश के पास ले गई.

डाक्टर रमेश ने उस भभूत को लैब में टैस्ट के लिए भेजा तो उस में बच्चा गिराने की दवा निकली.

अब अंजलि को पूरा यकीन हो चुका था कि बाबा के आश्रम में औरतों के साथ जबरदस्ती सैक्स संबंध बनाने का खेल खेला जा रहा है.

अंजलि दोबारा उस बाबा के आश्रम में पहुंची और बाबा से बोली, ‘‘बाबा, आप की चमत्कारी भभूत के चलते पेट में पल रहा मेरा बच्चा अपनेआप छूमंतर हो गया है. मेरे पति मुझे अपनाने को तैयार हो गए हैं. उन्होंने एक शर्त रखी है कि इस बार मुझे वे तभी वापस ले जाएंगे, जब मैं वहां जाने पर पेट से हो जाऊं.

‘‘मैं चाहती हूं कि आप के चमत्कार से एक बार फिर मैं पेट से हो जाऊं, क्योंकि इस बार अगर मैं पेट से न हुई तो वे मुझे हमेशा के लिए छोड़ देंगे.’’

बाबा ने कहा, ‘‘तुम दोबारा पेट से हो सकती हो. बस, एक रात साधना कक्ष में गुजारनी होगी.’’

अंजलि साधना कक्ष में रात गुजारने को तैयार हो गई, पर इस बार उस ने पुलिस से मिल कर उस बाबा की असलियत बता दी थी. लेकिन पुलिस बिना सुबूत उस बाबा पर हाथ नहीं डाल सकती थी इसलिए पुलिस ने अंजलि को सुबूत इकट्ठा करने के लिए फिर से बाबा के पास जाने को कहा था.

इस बार अंजलि पूरी तैयारी के साथ बाबा के आश्रम में आई थी और बोली कि उस की माहवारी आने के बाद का 13वां दिन है.

साधना कक्ष में बैठा बाबा अंजलि के साथ आई दूसरी औरत को देख कर चौंक गया और पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

अंजलि ने बताया, ‘‘ये मेरी मौसी हैं. आज मां की तबीयत खराब होने के चलते मौसी के साथ आना पड़ा.’’

हकीकत तो यह थी कि अंजलि के साथ आई वह औरत पुलिस वाली थी. बाबा के आश्रम में महिला पुलिस भी श्रद्धालुओं के रूप में फैली हुई थी.

बाबा ने अंजलि को फिर वही मिठाई खाने को दी जो उस ने परची पर लिखी थी. लेकिन इस बार अंजलि को जरा भी हैरानी नहीं हुई क्योंकि उसे यह पता चल चुका था कि बाबा को परची पर लिखी गई हर बात पता चल जाती है. इस के पीछे कोई न कोई राज जरूर था, जिस से आज परदा उठने वाला था.

अंजलि इसी सोच में डूबी थी कि बाबा की आवाज उस के कानों में गूंजी, ‘‘अब तुम रात बिताने को तैयार हो. जाओ और मिठाई खा कर आराम करो.’’

इतना कह कर बाबा बाहर चला आया और अंजलि के साथ आई मौसी से साधना कक्ष में ताला लगवा कर अपनी आरामगाह में चला गया.

साधना कक्ष में बंद अंजलि ने इस बार बाबा की दी हुई मिठाई नहीं खाई. वह बाबा का हर राज जान लेना चाहती थी. उस ने जब कमरे को बारीकी से देखा तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया जिस से उस कमरे में आने के दूसरे रास्ते के बारे में पता चल पाए.

तभी अंजलि की नजर बाबा के साधना कक्ष के कोने में रखी अलमारी पर गई. उस ने जैसे ही अलमारी के दरवाजे का हैंडल पकड़ कर खोला तो दरवाजा खुल गया.

यह देख कर अंजलि चौंक गई, क्योंकि वह नाममात्र की अलमारी थी. इस कमरे में घुसने का एक खुफिया दरवाजा था, जो दूसरे कमरे में जा कर खुलता था. बगल वाले कमरे में एक बड़ी सी स्क्रीन लगी हुई थी जो पूरे आश्रम का नजारा दिखा रही थी.

तभी अंजलि की नजर एक छोटी सी स्क्रीन पर गई. उस ने उस स्क्रीन पर चल रहे नजारों में जो देखा, उस के बाद उसे परची पर लिखी हर बात के बारे में बाबा को पता चल जाने का सारा राज समझ में आ गया था, क्योंकि जहां पर बैठ कर औरतें अपनी मनपसंद मिठाई का नाम लिखती थीं, वहां आसपास छिपा हुआ कैमरा लगा था.

बाबा इस कमरे में बैठ कर जान लेता था कि किस ने कौन सी मिठाई का नाम लिखा है, फिर उस में वह बेहोशी की दवा मिला कर खुफिया दरवाजे से साधना कक्ष में आ जाता था.

अंजलि को उस कमरे में तरहतरह की मिठाइयां एक फ्रिज में रखी हुई भी मिल गई थीं. तभी उसे बगल के कमरे से कुछ खटपट की आवाज सुनाई दी. वह समझ गई कि इस कमरे में बाबा के आने का समय हो गया है. वह बड़ी सावधानी से साधना कक्ष में लौट आई. वह अपने साथ आई महिला पुलिस को फोन करना नहीं भूली.

अंजलि साधना कक्ष के बिस्तर पर बेहोशी का नाटक कर के पड़ी थी. बाबा साधना कक्ष में आ चुका था.

अंजलि सबकुछ कनखियों से देख रही थी. बाबा अपने कपड़े उतार चुका था. वह अंजलि के ऊपर झुकने ही वाला था कि अंजलि का झन्नाटेदार थप्पड़ बाबा के कान पर पड़ा.

बाबा खुद को संभालते हुए अंजलि पर झपटा लेकिन अंजलि का पैर बाबा के अंग वाले हिस्से पर पड़ा और वह गश खा कर गिर गया.

अंजलि जोर से चिल्लाई. इसी के साथ कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुल गया और एकसाथ कई पुलिस वाले कमरे में धड़धड़ाते हुए घुस आए.

बाबा खुद को संभालते हुए खुफिया दरवाजे की तरफ लपका. पुलिस वाले भी उसे पकड़ने के लिए उस तरफ लपके, लेकिन तब तक बाबा कहां छूमंतर हो गया, पता ही नहीं चला.

पुलिस चारों तरफ से आश्रम को घेर चुकी थी लेकिन बाबा आश्रम में कहीं नहीं मिला. तभी आश्रम की एक साध्वी ने जो बताया, उस से पुलिस वाले भी चौंक गए.

उस साध्वी ने बताया, ‘‘मेरी बहन भी इस बाबा के चक्कर में पड़ कर इस की शिष्या बन गई थी. लेकिन वह एक दिन बाबा का राज जान गई और उस ने बाबा की सारी करतूतों का वीडियो भी बना लिया था. तभी बाबा को यह बात पता चल गई और उस ने मेरी बहन को गायब करा दिया.

‘‘तब से मैं अपनी बहन की खोज में यहां पर बाबा की शिष्या बन कर उस के खिलाफ सुबूत इकट्ठा कर रही हूं. इसी दौरान आश्रम में बनाए गए खुफिया ठिकानों के बारे में भी मुझे पता चला.

‘‘बाबा ने आश्रम के अंदर एक खुफिया कमरा बना रखा है जिस में वह खुद के खिलाफ जाने वालों को न केवल कैद करता है बल्कि उन की हत्या कर के उन्हें वहीं दफना भी देता है.’’

उस शिष्या ने पुलिस वालों को आश्रम के पीछे झाड़झंखाड़ में बने एक गुप्त रास्ते से उस खुफिया कमरे तक पहुंचा दिया. वहां छिपा बाबा धर दबोचा गया. उस कमरे से पुलिस को भारी मात्रा में हथियार और कैद की गई औरतें भी मिलीं. उस कमरे में कई कब्रें भी थीं जिन की खुदाई से कई औरतों की अस्थियां बरामद हुईं.

अंजलि की सूझबूझ से पाखंडी बाबा के साधना कक्ष में औरतों के पेट से होने का राज खुल चुका था.

ईंट का जवाब पत्थर से : चित्रा से हुई गलती

चित्रा सोने की चिडि़या थी. मातापिता की एकलौती लाड़ली. उस के पिता लाखों रुपए कमाने वाले एक वकील थे. मां पूजापाठ के लिए मंदिरों के चक्कर लगाती रहती थीं.

चित्रा पर किसी का कंट्रोल नहीं था. उस की मनमानी चलती थी. चित्रा कालेज में बीए के फर्स्ट ईयर में पढ़ रही थी. वह बहुत खूबसूरत थी. उस के एकएक अंग से जवानी फूटती थी. वह अपने जिस्म को ढकने के बजाय दिखाने में ज्यादा यकीन करती थी.

चित्रा का बैग रुपयों से भरा रहता था, इसलिए उस की सहेलियां गुड़ की मक्खी की तरह उस से चिपकी रहती थीं. लड़के उस की जवानी का मजा लेने के लिए पीछे पड़े रहते थे. इसी बात का फायदा उठा कर चित्रा कालेज में ग्रुप लीडर बन गई. इस से वह और भी ज्यादा घमंडी हो गई.

चित्रा के कालेज में सैकंड ईयर में नंदन नाम का एक लड़का पढ़ता था. वह उस इलाके के सांसद का बेटा था. रोजाना नई कार से कालेज आना उस का शौक था. सच तो यह था कि नंदन कालेज नाम के लिए आता था. लड़कियों को अपने इश्क के जाल में फंसा कर उन से मन बहलाना उस का शौक था. वह एक नंबर का जुआरी था. शराब पीना उस का रोजमर्रा का काम था.

एक दिन नंदन की नजर चित्रा पर पड़ी. दरअसल, उस ने कालेज के इलैक्शन में हिस्सा लिया था. चित्रा भी उन्हीं के ग्रुप में शामिल थी. दोनों ने खूब प्रचार किया. नंदन ने पानी की तरह पैसा बहाया और जीत गया.

इसी जीत की खुशी में नंदन ने अपने फार्महाउस में शानदार पार्टी दी थी. चित्रा और उस के दोस्त भी वहां पहुंच गए थे. रातभर शराब पार्टी चली. सब ने खूब मौजमस्ती की. तभी से नंदन और चित्रा ने क्लबों में घूमना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों नंदन के फार्महाउस में मिलने लगे और उन्होंने हमबिस्तरी भी की.

इसी तरह एक साल बीत गया. वे दोनों हवस के सागर में गोते लगाते रहे. अचानक ही चित्रा को एहसास हुआ कि पिछले 3 महीने से उसे माहवारी नहीं आई है. वह डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने बताया कि वह 3 महीने के पेट से है.

यह सुन कर चित्रा मानो मस्ती के आसमान से नीचे गिर पड़ी. चित्रा ने नंदन से इस बारे में बात की और उस पर शादी करने का दबाव डाला. नंदन लड़कियों के साथ हमबिस्तरी तो करता था, पर चित्रा से शादी करने की उस ने कभी नहीं सोची थी. अपने नेता पिता की तरह वह लड़कियों से प्यार के वादे तो करता था, पर उन्हें निभाता नहीं था.

नंदन चित्रा की बात सुन कर सतर्क हो गया. उस ने चित्रा से मिलनाजुलना बंद कर दिया. जब वह फोन पर उस से बात करना चाहती, तो टाल देता. लेकिन एक दिन चित्रा ने नंदन को पकड़ ही लिया. बहुत दिनों तक बातचीत न होने से नंदन भी थोड़ा नरम पड़ गया था. बातें करतेकरते वे दोनों नंदन के फार्महाउस जा पहुंचे. वह फार्महाउस दोमंजिला था. वे दोनों दूसरी मंजिल पर गए. वहां एक खूबसूरत बैडरूम था. वे दोनों एक सोफे पर जा कर बैठ गए. चित्रा बहुत खूबसूरत लग रही थी. उसे देख कर नंदन की हवस जाग गई. वह बोला, ‘‘डार्लिंग, शुरू हो जाएं क्या?’’ इतना कह कर उस ने चित्रा की कमर पर अपना हाथ रख दिया.

चित्रा ने नंदन के रंगढंग देख कर कहा, ‘‘नंदन, पहले मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं, बाकी काम बाद में,’’ इतना कह कर चित्रा ने नंदन का हाथ अपनी कमर से हटा दिया.

‘‘अच्छा कहो, क्या कहना चाहती हो तुम?’’ नंदन ने पूछा.

‘‘वही बात. शादी के बारे में क्या सोचा है तुम ने? मेरा पेट दिन ब दिन फूल रहा है. घर में पता चल गया, तो पता नहीं मेरा क्या होगा. मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है. ऊपर से तुम भी मुझ से बात नहीं करते हो,’’ कहते हुए चित्रा रोने लगी.

‘‘रोती क्यों हो… मेरे पापा विदेश गए हुए हैं. उन के आते ही हम शादी कर लेंगे,’’ नंदन ने इतना कह कर चित्रा को अपनी बांहों में भरना चाहा.

लेकिन चित्रा छिटक कर दूर हो गई और बोली, ‘‘नंदन, आज मुझे यह सब करने का मन नहीं है. पहले हमारी शादी का फैसला होना चाहिए. हम किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते हैं. हमारे घर चलते हैं. मेरे पापा बुरा नहीं मानेंगे. वे बहुत अमीर हैं. हम शानोशौकत में जीएंगे. हम कोई नया कामधंधा भी शुरू कर लेंगे.’’

‘‘डियर चित्रा, यों चोरीछिपे मंदिर में शादी करना मुझे पसंद नहीं है. हम सब के सामने शान से शादी करेंगे. मेरे पापा इस इलाके के सांसद हैं. हम उन की हैसियत की शादी करेंगे. ‘‘सब से पहले तो तुम यह बच्चा गिरवा लो. इतनी जल्दी बच्चे की क्या जरूरत है. अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मैं पूरा इंतजाम करा दूंगा. थोड़े दिनों के बाद हम फिर से मस्ती मारेंगे.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ यह सुन कर चित्रा ने गुस्से में पूछा.

‘‘मतलब यह है कि अभी से शादी और बच्चे की बातें क्यों? अभी तो हमारे मस्ती के दिन हैं.’’

‘‘नंदन, शादी करने के बाद हम खुलेआम मस्ती करेंगे.’’

‘‘लेकिन, अभी मुझे शादी नहीं करनी है.’’

‘‘क्यों?’’ चित्रा ने जोर दे कर सख्ती से पूछा.

‘‘सच कहूं, तो मेरे पापा ने अपने एक सांसद दोस्त की बेटी से मेरी शादी तय कर रखी है.’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? इतने दिनों तक मेरे तन के साथ खेल कर अब दूर जाना चाहते हो?’’

‘‘नहीं, हम पहले की तरह प्यार करते रहेंगे, पर शादी नहीं. वैसे भी मैं अकेला कुसूरवार नहीं हूं. तुम भी तो मेरा जिस्म पाना चाहती थी. हम ने एकदूसरे की जरूरत पूरी की. लेकिन अब तुम नहीं चाहती, तो मैं अपने रास्ते और तुम अपने रास्ते,’’ नंदन ने दोटूक कह दिया.

‘‘दिखा दी न अपनी औकात. लेकिन, मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं हूं. हमारी शादी तो हो कर ही रहेगी, नहीं तो…’’

‘‘नहीं तो क्या… चुपचाप यहां से चली जाओ. तुम्हारी कुछ अश्लील वीडियो क्लिप मेरे पास हैं. मैं उन को मोबाइल फोन पर अपलोड कर के अपने दोस्तों में भेज दूंगा. तुम्हारी इज्जत को सरेआम नीलाम कर दूंगा.’’

‘‘तो यह है तुम्हारा असली चेहरा. लड़कियों को फूलों की तरह मसलना तुम्हारा शौक है. लेकिन अगर तुममेरे पेट में पल रहे बच्चे के बाप नहीं बने, तो मैं तुम्हारी जिंदगी बेहाल कर दूंगी,’’ इतना कह कर चित्रा ने अपने बैग से एक लिफाफा निकाला और नंदन के मुंह पर फेंक दिया.

‘‘यह सब क्या ड्रामा है?’’ नंदन ने बौखलाहट में पूछा.

‘‘खुद देख लो,’’ चित्रा बोली.

नंदन ने लिफाफा खोला, तो उस में से निकल कर कुछ तसवीरें जमीन पर जा गिरीं. उन तसवीरों में नंदन और चित्रा हवस का खेल खेल रहे थे. नंदन गुस्से से भर उठा और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘ये तसवीरें तुम्हारे पास कहां से आईं?’’

‘‘चिल्लाओ मत. अकेले तुम ही शातिर नहीं हो. अगर तुम मेरी बेहूदा वीडियो क्लिप बना सकते हो, तो मैं भी तुम्हारी ऐसी तसवीरें खींच सकती हूं.’’

यह सुन कर नंदन भड़क गया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘बाजारू लड़की, मैं तुम्हारा रेप कर के यहीं बगीचे में जिंदा गाड़ दूंगा,’’ कह कर उस ने चित्रा को पकड़ना चाहा.

चित्रा उस की पकड़ में नहीं आई और गरजी, ‘‘अक्ल से काम लो और मेरे साथ शादी कर लो, नहीं तो मैं तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूंगी. तुम्हारे पापा भी तुम्हें बचा नहीं पाएंगे. मुझे ऐसीवैसी मत समझना. मैं एक वकील की बेटी हूं.’’

‘‘वकील की बेटी हो, तो तुम मेरा क्या कर लोगी. मैं अभी तुम्हारा गला दबा कर इस कहानी को यहीं खत्म कर देता हूं,’’ इतना कह कर नंदन चित्रा पर झपट पड़ा.

लेकिन चित्रा तेजी से खिड़की के पास चली गई और बोली, ‘‘जरा यहां से नीचे तो देखना.’’

झल्लाया नंदन खिड़की के पास गया और बाहर झांका. नीचे मेन गेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी थी. एक सबइंस्पैक्टर अपने 4 सिपाहियों के साथ ऊपर ही देख रहा था.

‘‘देख लिया… अगर मुझ पर हाथ डाला, तो तुम भी नहीं बचोगे. मैं यहां आने से पहले ही सारा इंतजाम कर के आई थी.

‘‘अब तुम ज्यादा मत सोचो और जल्दी से मेरे साथ शादी के दफ्तर में पहुंचो. मेरे पापा वहीं पर तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं,’’ इतना कह कर चित्रा अपना बैग और वे तसवीरें ले कर बाहर चली गई.

नंदन भीगी बिल्ली बना चित्रा के साथ शादी के दफ्तर पहुंच गया.

बरसात की रात : क्या हुआ चमेली के साथ

चमेली उन से बच कर भाग रही थी. गीली मिट्टी होने की वजह से पीछा करने वालों के पैरों की आहट आ रही थी. कीचड़ के छींटों से उस की साड़ी सन गई थी. उस ने अपने कंधे पर बच्चे को लाद रखा था. तभी बूंदाबांदी शुरू हो गई.

चमेली ने पल्लू से बच्चे के मुंह को ढक दिया. पगडंडी खत्म हुई. वह कुछ देर के लिए रुकी. चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था. अंधेरे में कहीं भी कोई नजर नहीं आ रहा था. बहुत दूरी पर स्ट्रीट लाइट टिमटिमा रही थी.

चमेली ने मुड़ कर देखा. अंधेरे में उसे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था. कोई आहट न थी. उस की जान में जान आई. वे लोग उस का पीछा नहीं कर सके थे.

बारिश कुछ तेज हुई. उसे रुकने का कोई ठिकाना नहीं दिखाई दिया. बहुत दूर कुछ दुकानें थीं, पर उस के पैर जवाब दे चुके थे. बच्चा भीगने के चलते रोने लगा था. उस ने थपकियां दे कर उसे चुप कराने की कोशिश की, मगर वह चुप नहीं हुआ.

अचानक हुई तेज बारिश की वजह से भागना मुश्किल था. थोड़ा दूरी पर एक मकान दिखाई दिया, तो चमेली ने उस का दरवाजा खटखटा दिया.

‘‘कौन है?’’ अंदर से आवाज आई.

चमेली ने देखा, उस आवाज में सख्ती थी, तो कलेजा मुंह को आ गया. वह मंगू दादा का घर था, जिस से सभी डरते थे. वह आसमान से गिरी और खजूर पर अटक गई थी. घबराहट के मारे उस की आवाज नहीं निकली.

‘‘कौन है?’’ मंगू दादा दहाड़ा.

‘‘म… म… मैं हूं,’’ बच्चे को कस कर पकड़ते हुए चमेली ने कहा.

‘‘अरे तू? इस समय यहां? क्या बात है?’’ मंगू ने पूछा.

‘‘नहींनहीं… कुछ नहीं.’’

‘‘घर से लड़ कर आई हो?’’

‘‘हां… मर्द दारू पी कर दंगा कर रहा था,’’ चमेली रोते हुए बोली.

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘रामनगर… मां के पास. सुबह मैं पहली बस से चली जाऊंगी,’’ चमेली धीमी आवाज में बोली.

‘‘रामनगर? इतनी दूर तुम बच्चे के साथ कैसे जाओगी?’’

‘‘जाना ही पड़ेगा… चली जाऊंगी,’’ आवाज सुन कर बच्चा रोने लगा. जवाब का इंतजार किए बिना वह जाने लगी.

‘‘क्या बेवकूफी करती हो? दिमाग खराब है क्या? फूल सा बच्चा लिए बरसात में भीगती हुई जाओगी. वह भी इतनी रात में. चुपचाप अंदर चलो.

‘‘रात भर ठहर जाओ. सुबह चली जाना…’’ वह बोला, ‘‘मुझ पर भरोसा है तो अंदर आओ, नहीं तो इस बारिश में डूब मरो.’’

वह अनमनी सी वहीं खड़ी रही, तो मंगू ने उस के हाथों से बच्चा छीन लिया और अपने कंधे से लगा कर सहलाने लगा.

‘‘तुम्हें शौक है तो मरो, पर इस बच्चे को यहीं छोड़ जाओ. सुबह ले जाना,’’ मंगू उसे लताड़ते हुए बोला.

अब क्या चारा था? जाल में फंसी मछली की तरह वह तड़प उठी. मजबूर हो कर मंगू के घर में घुस गई.

मंगू के पास से गुजरते समय सस्ती शराब की गंध से उस के नथुने भर गए. घर के अंदर भी वही सड़ांध… वही बदबू छाई थी.

‘‘यह लो, बच्चे के कपड़े बदल दो और खुद भी कपड़े पहन लो,’’ मंगू उसे तौलिया देते हुए बोला.

‘‘घर में लड़ाई क्यों हुई?’’ मंगू ने सख्ती से पूछा.

‘‘दारू पीना तो उस की रोज की आदत है. आज वह नशे में धुत्त हो कर 2 आदमियों को भी साथ लाया था. वे दोनों मुझे दबोचने के लिए आगे बढ़े, तो मैं बच्चे को ले कर पिछवाड़े से भाग निकली…’’ चमेली सिसकते हुए बोली.

‘‘दोनों ने मेरा पीछा भी किया, पर मैं किसी तरह से बच गई.’’

मंगू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर कोने में रखे बक्से के पास गया. ढक्कन खोलते ही शराब की बदबू चारों ओर फैल गई.

‘‘शराब…’’ आगे के शब्द चमेली के गले में ही अटक गए.

‘‘इस के बिना मैं नहीं रह सकता,’’ कहते हुए मंगू ने बोतल मुंह से लगाई और गटागट पी गया.

‘‘अकेले डर तो नहीं लगेगा न?’’

‘‘और… आप?’’ उस ने हिचकते हुए पूछा.

‘‘मेरे कई ठिकाने हैं, कहीं भी चला जाऊंगा. दरवाजा ठीक से बंद कर लो,’’ मंगू ने कहा.

मंगू दरवाजा धकेल कर मूसलाधार बारिश में चल पड़ा. उस अंधेरे में चमेली न जाने क्या देखती रही.

उसका दुख : नई दुल्हन का सफर

टैक्सी हिचकोले खा रही थी. कच्ची सड़क पार कर पक्की सड़क पर आते ही मैं ने अपने माथे से पंडितजी द्वारा कस कर बांधा गया मुकुट उतार दिया. पगड़ी और मुकुट पसीने से चिपचिपे हो गए थे. बगल में बैठी सिमटीसिकुड़ी दुलहन की ओर नजर घुमा कर देखा, तो वह टैक्सी की खिड़की की ओर थोड़े से घूंघट से सिर निकाल कर अपने पीछे छोड़ आए बाबुल के घर की यादें अपनी भीगी आंखों में संजो लेने की कोशिश कर रही थी.

मैं ने धीरे से कहा, ‘‘अभी बहुत दूर जाना है. मुकुट उतार लो.’’

चूड़ियों की खनक हुई और इसी खनक के संगीत में उस ने अपना मुकुट उतार कर वहीं पीछे रख दिया, जहां मैं ने मुकुट रखा था.

चूड़ियों के इस संगीत ने मुझे दूर यादों में पहुंचा दिया. मुझे ऐसा लगने लगा, जैसे मेरे अंदर कुछ उफनने लगा हो, जो उबाल आ कर आंखों की राह बह चलेगा.

आज से 15 साल पहले मैं इसी तरह नंदा को दुलहन बना कर ला रहा था. तब नएपन का जोश था, उमंग थी, कुतूहल था. तब मैं ने इसी तरह कार में बैठी लाज से सिकुड़ी दुलहन का मौका देख कर चुपके से घूंघट उठाने की कोशिश की थी. वह मेरा हाथ रोक कर और भी ज्यादा सिकुड़ गई थी.

मैं ने उसे अभी तक देखा ही नहीं था. मैं ने चाचाजी की पसंद को ही अपनी पसंद मान लिया था. अब उसे देखने के लिए मन उतावला हो रहा था.

नंदा को पा कर मैं फूला नहीं समा रहा था. वह भी खुश थी. भरेपूरे परिवार में वह जल्दी ही हिलमिल गई.

मां उस की तारीफ करते नहीं अघाती थीं. घर में जो भी औरतें आतीं, वे अपनी बहू से उन्हें जरूर मिलाती थीं. अपने 5 बेटों और बड़ी बहू का वे उतना ध्यान नहीं रखतीं, जितना उस का रखती थीं.

सासससुर की देखरेख, देवरननदों की पढ़ाई की सुविधा जुटाना, मुझे कालेज में जाने के लिए कपड़े, जूते, किताबें तैयार कराना, नौकरचाकरों को अपनी देखरेख में काम कराना उस के जिम्मे लगने लगा था.

अगर मैं कभीशहर घूम आने या अपने दोस्तों के यहां चलने के लिए कहता, तो वह धीरे से कह देती, ‘ससुरजी को दवा देनी है. नौकरों से सब्जी की गुड़ाई करानी है. जानवरों के सानीपानी देना है. जेठानीजी अकेले कहां करा पाएंगी इतना सारा काम? मैं चली जाऊंगी, तो सासूमां को तकलीफ उठानी पड़ेगी. आज नहीं, फिर कभी.’

उस की ऐसी दलीलों को सुन कर मन मसोस कर मुझे चुप रह जाना पड़ता. जोशीजी की पत्नी ताना दे कर कहतीं, ‘‘मास्टरजी, कभी बहू को तो यहां लाया करो. आप ने तो उन्हें ऐसे छिपा लिया है, जैसे हम नजर लगा देंगे.’’

कालेज से जब घर लौटता, तो थक कर चूर हो जाता था. कभीकभी तो आठों पीरियड पढ़ाने पड़ जाते थे. मेरी तकलीफ नंदा जानती थी. समय निकाल कर जिद कर के वह मालिश करने लग जाती.

एक दिन वह मुझ से नाराज थी. रात को बिना खाए ही सो गई. बात यह थी कि उस ने उस दिन मेरे पास आ कर कहा था, ‘‘पतिजी, एक बात कहूं? अगर आप मानोगे, तो तब कहूंगी,’’ वह बड़ी ही मासूमियत से बोली थी. वह अकेले में मुझे ‘पतिजी’ कहती थी.

मैं ने प्यार से कहा, ‘‘कहो तो सही.’’

‘‘पहले मानूंगा कहो,’’ वह बोली.

‘‘अच्छा बाबा, मानूंगा,’’ मैं बोला.

‘‘मुझे कुछ ज्यादा पैसे चाहिए,’’ उस ने कहा.

‘‘किसलिए चाहिए, यह तो बताओ?’’

‘‘अभी यह मत पूछो. तुम्हें अपनेआप पता चल जाएगा. मुझे 3 सौ रुपए की जरूरत है,’’ वह बोली.

‘‘जब तक तुम वजह नहीं बताओगी, पैसे नहीं मिलेंगे,’’ मैं ने भी अपना फैसला सुना दिया.

इस के बाद वह रात को मुझ से नहीं बोली. सब को खाना खिला कर वह बिना खाए ही सो गई.

दूसरे दिन मांजी को नंदा से कहते हुए सुना, ‘‘क्या बात है, जसौद हरीश व हंसी को साथ ले कर नैनीताल नंदा देवी देखने ले जाने वाला था, अभी तक तैयार नहीं हुए?’’

‘‘पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया मांजी. अगर आप थोड़ा पैसों की मदद कर दें, तो मैं उन से मांग कर आप को दे दूंगी, नहीं तो बच्चों का दिल टूट जाएगा. वे एक हफ्ते से कितने बेचैन हैं?’’ कहते हुए वह मांजी की ओर याचना भरी नजरों से देख रही थी.

‘‘ऐसा था, तो अभी तक क्यों नहीं कहा… मैं तो सोच रही थी कि शायद तुम्हारे जाने का प्रोग्राम बदल गया है,’’ मां बोलीं.

‘‘मांजी, मैं ने सोचा कि उन से कह कर…’’ मुझे देख कर वह चुप हो गई.

मैं कालेज जाने की तैयारी कर रहा था. सासबहू की बातें मेरे कानों में पड़ीं, तो मैं उन के पास पहुंचा और जेब से पैसे निकाल कर नंदा को थमाते हुए बोला, ‘‘अरे भई, पहले ही कह दिया होता. वजह तो मैं पूछ ही रहा था. मैं ने कभी मना किया है तुम्हें?’’

वह मुसकराते हुए पैसे ले कर अंदर की ओर चल दी. वह देवरननद को यह खुशखबरी देने की बेचैनी अपने में नहीं रोक सकी. देवर व ननद से इतना लगाव देख कर मुझे उस से और भी प्यार हो आया.

हमारी खुशहाल जिंदगी के 2 साल बीत गए. इस बीच हमारी गोद में एक नन्हा मुन्ना भी आ गया. बच्चे की जिम्मेदारी मांजी ने अपने ऊपर ले ली थी. वे ही उसे नहलातींधुलातीं, देखरेख करतीं. नंदा केवल अपना दूध पिलाने और रात को पास में ही सुलाने की ड्यूटी निभाती.

सब ठीक ही चल रहा था. बोझ का एहसास तो तब हुआ, जब 4 साल और 2 साल के फर्क में लड़कियां और चली आईं.

उस दिन मेरा बेटा नवीन मेरे पलंग पर आ कर सो गया था. बड़ी बेटी मां के पास सो रही थी. छोटी बेटी को नंदा थपकी दे कर अपनी चारपाई पर सुला रही थी.

मैं ने नंदा के मन को टटोलने के लिए पूछ लिया, ‘‘आधा दर्जन पूरा होने में 3 ही अदद की तो कमी रह गई. तुम्हारा क्या विचार है?’’

वह झुंझला कर बोली, ‘‘तुम भी कैसी बात करते हो जी? इन 2 लड़कियों की फिक्र ही मेरा दिमाग चाट रही है. 2-1 और हो जाएं, तो घर का भट्ठा ही बैठ जाएगा. ब्याहने के लिए कहां से लाओगे इतने पैसे?’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ठीक कह रही हो. वह तो मैं ने तुम्हारे विचार जानने के लिए कहा था. सोच रहा हूं कि इस आने वाले जाड़ों में परिवार नियोजन करा लूं.’’

यह सुन कर वह चौंक पड़ी. कुछ देर वह मेरी ओर ताकती रही, फिर मेरे पास आ कर कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘तुम इतने कमजोर हो. कहीं तुम्हें कुछ हो गया, तो मैं क्या करूंगी? मैं तो कहीं की नहीं रहूंगी. मुझे ही फैमिली प्लानिंग करा लेने दो. तुम जब कहो, तब मैं अस्पताल चल दूंगी.’’

मैं खीझ उठा, ‘‘तुम्हारी सोच तो बस जिद करने की आदत है. तुम यह क्यों नहीं समझतीं कि मर्द को फैमिली प्लानिंग में ज्यादा मुश्किल नहीं होती. औरत के लिए दिक्कत होती है. अस्पताल में कम से कम 2 दिन रुकना पड़ता है. दूसरा कोई आसान तरीका अभी नहीं निकला है. तुम निश्चिंत रहो. मुझे कुछ नहीं होने वाला है.’’

‘‘नहीं, तुम यह कभी मत करना. मैं ने सुना है कि मर्द कमजोर हो जाते हैं. मैं सारी तकलीफ झेलने को तैयार हूं, पर तुम्हें आपरेशन नहीं कराने दूंगी.’’

उस के मासूम चेहरे को देख कर मुझे ‘हां’ कहने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखा.

3 महीने भी नहीं गुजरे थे कि सरकारी आदेश आ गया. 2 बच्चों से ज्यादा जिन के बच्चे हैं, तुरंत नसबंदी कराने के सख्त आदेश कर दिए. उन दिनों इमर्जैंसी चल रही थी. चमचों और पिछलग्गुओं की बन आई थी. नेताओं को खुश करने के लिए, सरकार को खुश करने के लिए जनता पर जीतोड़ कहर ढाया जा रहा था. तब प्रिंसिपल भी भला पीछे क्यों रहें. उन के तो दोनों हाथ में लड्डू थे. सरकार को भी खुश करो और दर्जनभर केस दिलवा कर एक इंक्रीमैंट और जुड़वा लो.

मैं ने आपरेशन कराने से पहले नंदा की रजामंदी ले लेना ठीक समझा, वरना उसे मनाना मुश्किल होगा. इन दिनों वह बच्चों को ले कर रामगढ़ गई हुई थी. जब उसे मालूम हुआ कि मैं आपरेशन कराने वाला हूं, वह दौड़ीदौड़ी चली आई. मेरे समझाने पर भी वह नहीं मानी.

आपरेशन की ड्रैस पहना कर जब नर्सें उसे आपरेशन रूम में ले जा रही थीं, तब मेरा कलेजा काटने को आ रहा था. मैं अपने को धिक्कार रहा था कि मैं उसे क्यों अस्पताल ले आया? क्यों उस की बात मानी?

आपरेशन रूम से बाहर लाने में तकरीबन आधा घंटा लगा होगा. मुझे वे पल घंटों लंबे लगे.

स्ट्रेचर पर सफेद कपड़ों में उसे बेहोश देख कर मुझे एकबारगी रोना सा आ गया. गला ऐसा भर आया, मानो कोई गला घोंटने लगा हो. बेहोशी में कराह के बीच उस का पहला साफ शब्द था, ‘‘पतिजी…’’

3 साल बाद शादी की 13वीं सालगिरह की मनहूस आखिरी रील चल रही थी. इस रील के प्रमुख पात्र थे. मैं नायक था, नायिका नंदा थी और खलनायक खुद ऊपर वाला.

खलनायक को नंदा का मेरे पास रहना अब नागवार सा लगा. फिर क्या था, उस ने उसे मुझ से छीनने की साजिश रच डाली.

चिनगारी बुझने से पहले खूब रोशनी करती है न, ऊपर वाले ने नंदा की जिंदगी का भी यही सब से अच्छा सुनहरा साल चला दिया.

उस का छोटा भाई अपनी दीदी से मिलने आया था. नंदा अपनी खुशी को नहीं संभाल पा रही थी. अंदरबाहर इधरउधर वह तितली सी फुदक रही थी. रात को जब सब लोग मेरे बैडरूम में रेडियो के गानों के बीच गपशप में मशगूल थे, तो नंदा ने मुझ से अपनी तकलीफ जाहिर की, ‘‘आज मैं खाना नहीं खा सकी. मेरे जबड़े में बहुत तेज दर्द हो रहा है.’’

‘‘ज्यादा बोलती है न, इसलिए जबड़ा दर्द करेगा ही,’’ मैं ने बात हंसी में टाल दी.

सुबह अपने भाई को विदा कर वह मेरे पास आ रही थी. आते ही वह सिसकियों से भर गई. आखिर इतना दुख वह कब से अपने में रोके थी? मैं हैरान रह गया. शायद भाई की जुदाई हो.

पर ऐसी कोई बात न थी. उस का रोना शारीरिक दुख था. वह अपना मुंह पूरी तरह नहीं खोल पा रही थी. जबड़े दर्द के साथसाथ कसते चले जा रहे थे. मात्र उंगली डालने लायक जगह बची थी. मैं सहम गया.

उस ने मुझे छुट्टी ले कर अस्पताल चलने को कहा. मैं तुरंत उसे ले कर डाक्टर मेहरा के प्राइवेट अस्पताल को चल दिया. राधा भाभी को भी अपने साथ ले लिया.

डाक्टर मेहरा ने देखा और पूछा, ‘‘कहीं चोट तो नहीं लगी है?’’

नंदा ने सिर हिला कर जवाब दिया, ‘‘नहीं.’’

‘‘कहीं कील या ब्लेड तो नहीं चुभा था?’’

जवाब था, ‘‘नहीं.’’

‘‘इधर महीनेभर के अंदर कोई ऐसी बात याद करो कि तुम्हारे शरीर से खून निकला हो या शरीर में कुछ चुभा हो या फिर तुम ने किसी पिन, सूई जैसी किसी चीज से दांत खुरचा हो?’’

कुछ देर सोचने के बाद उस ने ही कहा, ‘‘कुछ याद नहीं पड़ता.’’

मैं डाक्टर के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था. डाक्टर के चेहरे पर हैरानी और उतारचढ़ाव साफ जाहिर हो रहा था.

डाक्टर बोला, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. जरूर कुछ न कुछ हुआ होगा, जो तुम याद नहीं कर पा रही हो. बिना चोट के तो यह मुमकिन ही नहीं है.’’

फिर डाक्टर ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘मुझे टिटनैस का डर लग रहा है. आप इन्हें जितनी जल्दी हो सके, सरकारी अस्पताल में भरती करा दें.’’

बीमारी का नाम सुनते ही मेरे पैरों की जमीन खिसकने लगी. मैं घबरा गया और उन से पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, कहीं खतरा तो नहीं है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. अगर समय पर टिटनैस के इंजैक्शन लग जाएंगे, तो ठीक हो जाएंगी.’’

मुझे याद नहीं कि मैं ने कब परचा लिया और कब हम तीनों सरकारी अस्पताल पहुंच गए. हम में से किसी को होश नहीं था. खतरे का डर सब को हो गया था, क्योंकि इस बीमारी की भयंकरता सब ने सुन रखी थी.

डाक्टर ने देखा, जांचा, परखा, पूछा आखिर में पहले डाक्टर की बात का समर्थन करते हुए नंदा को स्पैशल वार्ड में दाखिल कर दिया.

एटीएस के 50,000 पावर के इंजैक्शन का इंतजाम भी मुझे ही करना था. वह इंजैक्शन अस्पताल में नहीं था. देर करना खतरनाक था.

नंदा के पास भाभी को छोड़ कर मैं सब्र से काम लेने के लिए कह कर जाने लगा, तो वे दोनों मुंह दबा कर फफक कर रो उठीं.

मैं ने अपने को भरसक संभाला. लगा, जैसे सीना फट जाएगा. समय गंवाना ठीक न समझ कर मैं शहर को चल दिया. घंटेभर बाद इंजैक्शन का भी इंतजाम हो गया.

घर में सूचना देते समय मेरा गला भर गया, आंखें बरसने लगीं. सारे घर में अजीब सा सन्नाटा छा गया.

पहली रात हलकीहलकी कराहने की आवाजें आती रहीं. मैं उस के साथ था. मैं उस के माथे को सहला रहा था. उस ने अपना पर्स, कानों के कनफूल, मंगलसूत्र सब मुझे थमाते हुए कहा, ‘‘पतिजी, इन्हें रख लो. अपना खयाल रखना. बच्चों का खयाल रखना,’’ वह आगे कुछ न कह सकी. आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

मैं ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘चिंता मत करो, तुम बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’

हम दोनों को ही एहसास हो चुका था कि अलविदा का समय नजदीक आ चुका है. शायद रातभर में हम इतना ही बोले थे.

दूसरे दिन तक सारे गांव, इलाके, रिश्तेदारों तक को सूचना मिल गई थी. अस्पताल में भीड़ रोके नहीं रुक रही थी. अब नंदा का रूम डार्करूम बना दिया गया था. आंखों पर पट्टी रख दी गई थी. उस के आसपास आवाज करने की मनाही कर दी गई थी.

अगले दिन उस के पैरों में जकड़न चालू हो गई. पीठ में दर्द, ऐंठन बढ़ गई. दांत आपस में भिंच गए. धीरेधीरे जकड़न व ऐंठन सारे बदन में दाखिल हो गई. हलकेहलके झटके भी पड़ने चालू हो गए.

जब झटके पड़ते, ऐंठन होती, तो हम लोग उस के हाथ, पैर, सीना हलके से मलते. ग्लूकोज की बोतलों में तरहतरह की दवाओं का मिश्रण उसे दिया जा रहा था. एटीएस का तब तक दूसरा भी 50,000 पावर का इंजैक्शन लगा दिया गया था.

एकएक दिन खिसक रहे थे और उस की हालत दिनबदिन खराब होती जा रही थी. उस का शरीर इंजैक्शनों से छलनी हो गया था. पानी के बिना वहां सूखी पपड़ियां तड़क आई थीं. दांत कसने से खून बह रहा था. जूस व पानी के लिए वह संकेत करती, लेकिन डाक्टर की इजाजत नहीं थी. दिल मसोस कर रह जाना पड़ता. फट आए होंठों में ग्रीसलीन लगा कर तर करने की कोशिश की. पानी की 2-4 बूंदें तो दरारों में ही समा जाती थीं. इधर झटके तेज होते गए. दौरों की लंबाई भी बढ़ती गई. दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए उसे नींद के इंजैक्शन दिए जा रहे थे, पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था.

अब ग्लूकोज को भी शरीर ने खींचना छोड़ दिया था. निराशा में सब का दिल डूबने लगा.

अभी छठे दिन की पौ नहीं फटी थी. रात को बारिश के बाद धुंधला सा उजाला होने लगा था. नर्स नींद का इंजैक्शन दे कर चली गई. कुछ समय बाद मैं दूसरे लोगों की देखरेख में नंदा को सौंप कर नहानेधोने चला गया. जब लौट कर आया, तब तक नंदा नहीं रही थी. अब न कोई झटके थे. न दौरे थे. न दर्द था. न कराहें थीं. थीं तो बस घर वालों की, दोस्तों की घुटती सिसकियां.

मेरा सबकुछ लुट गया था. मैं खोयाखोया सा रहने लगा. छोटी बच्चियां जब टकटकी लगा कर मेरी ओर देखतीं, कलेजा मुंह में आने को हो जाता. थपकियां दिला कर, सीने से लगाए उन्हें सुला देता.

नवीन ने चुप्पी साध ली थी. चुपचाप आ कर पुस्तक पढ़ने लग जाता. अब मांजी ही बच्चों की परवरिश कर रही थीं. धीरेधीरे 2 साल निकल गए.

मांजी बच्चों की खातिर दोबारा शादी करने की बात छेड़तीं, तो मैं टाल जाता था. ससुराल वालों ने भी शादी के लिए कहना शुरू कर दिया. कई जगह से रिश्ते भी आने शुरू हो गए, लेकिन मैं साफ मना कर देता. भला पराए बच्चों को कौन नवेली अपना लेगी?

सासजी को शादी के लायक हो आई अपनी बेटी खुशी की उतनी चिंता न थी, जितनी मेरी और मेरे बच्चों की. मैं ने खुशी के लिए योग्य लड़का तलाश कर सूचना भेजी, तो जवाब आया कि खुशी ने इसलिए इनकार कर दिया है कि जब तक जीजाजी शादी नहीं कर लेंगे, वह भी शादी नहीं करेगी.

बात बिगड़ती देख ससुराल वालों ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न खुशी से ही मेरी शादी कर दी जाए. खुशी ने भी अपनी दीदी के बच्चों की खातिर अपना त्याग स्वीकार कर लिया. लेकिन मैं इसे कैसे स्वीकार कर लेता?

मैं ने उसे समझाया, ‘‘खुशी, तुम यह क्या कर रही हो? जरा सोचो तो… मेरी उम्र का 38वां साल पार होने जा रहा है, जबकि तुम अभी 20 साल की होगी. फिर मैं 3 बच्चों का पिता भी हूं. मेरी खातिर अपनी जिंदगी क्यों बरबाद करने पर तुली हो? यह सही नहीं है.’’

वह धीरे से बोली, ‘‘आप मेरी चिंता न करें. सब सोचसमझ कर ही तो मैं ने हां की है. उम्र की क्या कहते हैं? माथे में उम्र लिखी होती, तो दीदी यों ही हमें छोड़ कर चली थोड़े ही जातीं? बच्चे मुझ से हिलेमिले हैं. मां का दुख भूल जाएंगे.

‘‘दीदी पर जितना हक आप का था, क्या मेरा हक नहीं? मुझे भी तो उस का दुख उतना ही है, जितना आप को,’’ उस के अंदर अपनापन और त्याग की भावना साफ झलक रही थी.

बहुत समझाने पर भी उस ने अपना इरादा नहीं बदला, तब मुझे भी सहमति देनी पड़ी. आखिर किसकिस का मुंह संभालता?

टैक्सी ने हिचकोला खाया, तो मेरी पिछली यादें टूट गईं. मैं अपनी यादों में इतना खो गया था कि मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा कि मैं वर बना बैठा हूं. एक दुलहन भीगी पलकों से मुझे ही निहार रही है. मुझे पढ़ रही है. समझ रही है.

शायद तब तक मेरी आंखों के रास्ते कुछ बह कर सूख गया था. वह मुझ पर लुढ़क गई और मेरी गोदी में सो गई.